मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग पाँच)

II. मसीह-विरोधियों के हित

ग. अपने लाभों के लिए षड्यंत्र करना

आज हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की नौवीं मद और इस मद के उस भाग पर अपनी संगति जारी रखेंगे जो मसीह-विरोधियों के हितों से संबंधित है। पिछली बार, मैंने मसीह-विरोधियों के हितों की तीसरी मद “लाभ” पर संगति की थी। उस मद में, मैंने अनेक पहलुओं की विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में बताया था, और मुख्य रूप से मसीह-विरोधियों के व्यवहार, उनके विचारों और दृष्टिकोणों, और इन विचारों और दृष्टिकोणों के प्रभाव में आकर वे जो कुछ करते हैं उनके बारे में बात की थी। पिछली बार मैंने दो पहलुओं पर संगति की थी : पहला था, परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करना, और दूसरा था, अपनी सेवा में और अपने लिए काम करवाने में भाई-बहनों का इस्तेमाल करना। ये मसीह-विरोधियों की अपने लाभों के लिए षड्यंत्र करने की दो विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। अब जब मैंने इन पर संगति कर ली है, तो क्या तुम लोगों को मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार की समझ है? वास्तव में मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के संदर्भ में भ्रष्ट मनुष्यों में भी कोई बड़ा फर्क नहीं है, चाहे यह उनके स्वभाव से संबंधित हो या उनके प्रकृति सार से। अंतर के बजाय दोनों में समानता ज्यादा है; उनमें बस यही अंतर है कि उनकी मानवता अच्छी है या बुरी, और केवल एक स्पष्ट अंतर सत्य के प्रति उनके रवैये में होता है। हालाँकि लोगों के भ्रष्ट स्वभाव एक जैसे होते हैं, मसीह-विरोधी सत्य से नफरत करने, परमेश्वर का प्रतिरोध करने, परमेश्वर की आलोचना करने और परमेश्वर की ईशनिंदा करने में सक्षम होते हैं, और साथ ही वे बुरे कर्म करने और कलीसिया के काम में बाधा डालने में भी सक्षम होते हैं। मसीह-विरोधी और साधारण भ्रष्ट मनुष्य इन्हीं मामलों में साफ तौर पर एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। हरेक व्यक्ति में मसीह-विरोधी का स्वभाव होता है, लेकिन अगर उसने बुराई नहीं की है और कलीसिया के काम में बाधा नहीं डाली है और सीधे तौर पर परमेश्वर का विरोध नहीं किया है, तो उसे मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित नहीं किया जा सकता। भले ही भ्रष्ट मनुष्यों के विचार, दृष्टिकोण और भ्रष्ट स्वभाव वही हों जो मसीह-विरोधी लोगों के होते हैं या उनसे मिलते-जुलते हों, लेकिन अगर किसी व्यक्ति का मानवता सार एक बुरे व्यक्ति का मानवता सार नहीं है, तो यह उसके और मसीह-विरोधियों के बीच एक स्पष्ट अंतर है। ज्यादातर लोग इस अंतर को नहीं देख पाते, और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों और मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने वाले लोगों को एक साथ रखकर उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करते हैं—ऐसा करके अच्छे लोगों को नुकसान पहुँचाना आसान है! अगर तुम लोग मसीह-विरोधियों के सार को स्पष्ट रूप से नहीं समझते, तो यह तुम्हारे लिए खुद को समझने में भी एक बड़ी बाधा है। अगर तुम देखते हो कि तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव मसीह-विरोधियों के समान है, तो तुम्हें लगेगा कि तुम एक मसीह-विरोधी हो, और अगर तुम देखते हो कि जिस मार्ग पर तुम चल रहे हो वह मसीह-विरोधियों के समान है, तो भी तुम्हें यही लगेगा कि तुम मसीह-विरोधी हो। अगर तुम देखते हो कि तुम्हारे काम करने का तरीका और तुम्हारे विचार और दृष्टिकोण मसीह-विरोधियों के समान हैं, तब भी तुम खुद को मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करोगे। अगर तुम इन तीन दृष्टिकोणों से खुद को मसीह-विरोधी की तरह देखते हो, तो तुम खुद को मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करोगे। इसके क्या परिणाम होंगे? तुम निश्चित रूप से कुछ हद तक नकारात्मक हो जाओगे और खुद से हार मान लोगे। इस तरह से खुद को समझना कुछ हद तक विकृत समझ है। तो फिर, क्या अपने मसीह-विरोधी स्वभाव को समझना अनावश्यक है? नहीं, बेशक यह आवश्यक है। मसीह-विरोधियों के स्वभाव के बारे में संगति करने और उसका गहन विश्लेषण करने का उद्देश्य तुम लोगों को उनसे अपनी तुलना करने में सक्षम बनाना और खुद को सही मायने में समझने में तुम्हारी मदद करना है। अगर तुम बस इतना समझते हो कि तुम्हारे पास एक औसत भ्रष्ट स्वभाव है, मगर यह नहीं पहचानते कि तुम्हारे पास मसीह-विरोधी का स्वभाव है, तो खुद के बारे में तुम्हारी समझ बहुत उथली और एकतरफा है; यह मानक के अनुरूप नहीं है। हो सकता है कि तुम लोग अभी इस बारे में जागरूक न हो। ज्यादातर लोग सोचते हैं, “मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर नहीं चल रहा हूँ, न ही मैं खुद मसीह-विरोधी हूँ, और न ही मुझमें मसीह-विरोधी का सार है, इसलिए मुझे उस बिंदु तक जाने की कोई जरूरत नहीं जहां मैं समझूँ कि मेरे पास मसीह-विरोधी का स्वभाव है, मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने में सक्षम हूँ, और खुद मसीह-विरोधी बन सकता हूँ। अगर मेरी स्वयं के बारे में यही समझ होती, तो क्या मैं खुद को नीचा नहीं दिखा रहा होता?” इस प्रकार, मसीह-विरोधियों को उजागर करने के बारे में इन विषयों में तुम लोगों की बहुत दिलचस्पी नहीं होती है। चाहे तुम्हें दिलचस्पी हो या न हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो, तो एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब तुम धीरे-धीरे सत्य के इन पहलुओं और इन कहावतों को समझने लगोगे। मैंने कुछ लोगों को अपनी अनुभवजन्य समझ के बारे में संगति करते हुए सुना है, मगर वे इस बारे में कुछ भी नहीं कहते कि उनमें मसीह-विरोधी का स्वभाव कैसे है या कैसे वे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलते हैं। यह स्पष्ट है कि उनके विचार, दृष्टिकोण और स्वभाव एकदम मसीह-विरोधी के समान हैं—वे एक जैसे हैं—मगर उन्हें यह बात नहीं समझ आती। यह इस बात का पर्याप्त सबूत है कि कई लोगों की खुद के बारे में समझ बहुत उथली है, वे केवल यही समझ पाते हैं कि उनमें भ्रष्ट स्वभाव है, वे परमेश्वर का प्रतिरोध और परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करते हैं, उनकी मानवता बहुत अच्छी नहीं है, और वे सत्य से बहुत अधिक प्रेम नहीं करते। वास्तव में, वे मसीह-विरोधी का स्वभाव अभिव्यक्त और प्रकट करते हैं, और मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलते हैं, मगर उन्हें यह बात नहीं समझ आती। उन्हें यह बात क्यों नहीं समझ आती? क्योंकि वे मसीह-विरोधी के स्वभाव से संबंधित विभिन्न अभिव्यक्तियों को नहीं समझते, और ऐसे बहुत से लोग हैं जो यह कहने से डरते हैं कि उनमें मसीह-विरोधी का स्वभाव है या वे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहे हैं। भले ही वे इसे समझते हों, मगर इसे कहने की हिम्मत नहीं करते; अगर उन्होंने जोर देकर यह बात कही, तो ऐसा लगेगा जैसे उन्हें कोसा जा रहा है या उनकी निंदा की जा रही है। वास्तव में, चाहे तुम इसे कहो या न कहो, क्या तुम्हारी स्थिति वही नहीं है? क्या यह इस तथ्य को बदल सकता है कि तुममें मसीह-विरोधी का स्वभाव है? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। यह तथ्य कि तुम इसे नहीं समझते, यह साबित करता है कि सत्य के बारे में तुम्हारी समझ बहुत उथली है, और तुम्हें खुद की सच्ची समझ नहीं है।

3. धोखाधड़ी से भोजन, पेय पदार्थ और अन्य वांछनीय चीजें हासिल करने के लिए अपने पद का उपयोग करना

इसके बाद, हम अपने लाभों के लिए षड्यंत्र कर रहे मसीह-विरोधियों की तीसरी अभिव्यक्ति पर संगति करेंगे—धोखाधड़ी से भोजन, पेय पदार्थ और अन्य जरूरी चीजें हासिल करने के लिए अपने पद का उपयोग करना। बेशक, “अपने पद का उपयोग करने” को परमेश्वर में विश्वास करने की आड़ में धोखाधड़ी से भोजन, पेय पदार्थ और अन्य जरूरी चीजें हासिल करना भी कहा जा सकता है। क्या तुम लोगों ने आज से पहले इस मद के बारे में चिंतन-मनन और विचार करने की कोशिश की है? (नहीं, हमने नहीं की है।) क्या तुम लोगों ने ऐसे किसी व्यक्ति को कभी देखा है? क्या इस तरह के व्यक्ति के बारे में तुम लोगों की कोई राय है? क्या तुममें नफरत या घृणा की कोई भावना है? क्या तुम इस तरह के व्यक्ति के प्रति घृणा महसूस करते हो? (बिल्कुल।) वह किस तरह का व्यक्ति है? उसकी मानवता कैसी है? वह ये काम क्यों करता है? परमेश्वर में विश्वास करने में उसका दृष्टिकोण क्या है? क्या परमेश्वर इस तरह के व्यक्ति को बचाता है? अंतिम विश्लेषण में, परमेश्वर में उसके विश्वास का उद्देश्य क्या है? उसने अपने परिवार और करियर को त्याग दिया है, और कष्ट झेलने और कीमत चुकाने की अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित की हैं, लेकिन अंतिम विश्लेषण में, धोखाधड़ी से भोजन और पेय पदार्थ हासिल करने के लिए अपने पद का उपयोग करने में उसका क्या उद्देश्य है? क्या उसे पता है कि जब वह ऐसा करता है, तो परमेश्वर इससे घृणा करता है और नाराज होता है? क्या तुम लोगों ने पहले कभी इन सवालों के बारे में सोचा है? सच कहा जाए तो तुममें से ज्यादातर लोगों ने नहीं सोचा है। और तुमने क्यों नहीं सोचा है? कुछ लोग कहते हैं : “समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं, इसलिए परमेश्वर के घर में उनमें से कुछ का होना कोई बड़ी बात नहीं है। इसके अलावा, हम सभी खुद भी अनिवार्य रूप से इतने निर्मल नहीं हैं।” तुम खुद को सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति मानते हो, मगर फिर भी तुम कभी अपने कर्मों, सोच और विचारों के साथ-साथ दूसरों के कर्मों और व्यवहारों को ध्यान में नहीं रखते हो, और उन्हें देखने और परिभाषित करने के लिए सत्य के परिप्रेक्ष्य का उपयोग करके उनके और सत्य के बीच संबंध नहीं खोजते हो। तो, क्या तुम अभी भी सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो? क्या परमेश्वर में अपने विश्वास में तुमने जो सत्य समझे हैं, वे अभी भी तुम्हारे लिए महत्व और मायने रखते हैं? नहीं, वे नहीं रखते। जो लोग आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं, जबकि उन्हें कोई आध्यात्मिक समझ नहीं है, ऐसे सभी लोगों की आध्यात्मिकता नकली है, और उन्हें पूरे दिन नियमों का सख्ती से पालन करने या शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को बोलने के अलावा और किसी चीज की परवाह नहीं होती है, जैसा कि प्राचीन विद्वान करते थे, “केवल संतों की पुस्तकों का अध्ययन करने में लगे रहते और बाहरी मामलों पर कोई ध्यान नहीं देते थे।” जो लोग आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं, वे सोचते हैं कि दूसरे लोग जो कुछ भी करते हैं उसका उन पर कोई असर नहीं पड़ता, यह कि दूसरे लोग जो भी सोचते हैं वह उनका अपना मामला है, और वे लोगों का भेद पहचानना, चीजों की असलियत देखना और परमेश्वर के वचनों के आधार पर परमेश्वर के इरादों को समझना सीखने से इनकार करते हैं। ज्यादातर लोग ऐसे ही होते हैं; धर्मोपदेश सुनने या परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, वे इसे कागज पर लिख लेते हैं, अपने दिलों में बसा लेते हैं, और इसे धर्म-सिद्धांतों या विनियमों की तरह मानते हैं, जिनका वे बस नाममात्र के लिए पालन करते हैं और बस उनका काम हो गया। जहाँ तक इस बात का सवाल है कि उनके आस-पास होने वाली चीजें या अपने आस-पास के लोगों में वे जो विभिन्न व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ देखते हैं, वे इन सत्यों से किस तरह संबंधित हैं, इस बारे में वे कभी नहीं सोचते या अपने दिल में इस पर विचार करने की कोशिश नहीं करते, और न ही वे प्रार्थना या खोज करते हैं। ज्यादातर लोगों का आध्यात्मिक जीवन इसी तरह की स्थिति में होता है। इसलिए, कई लोग सत्य में प्रवेश करने में धीमे और सतही होते हैं; उनका आध्यात्मिक जीवन बेहद नीरस होता है, वे केवल विनियमों का पालन करते हैं, और उनके काम करने के तरीके में कोई सिद्धांत नहीं होता। यह कहा जा सकता है कि कई लोगों के लिए, उनका आध्यात्मिक जीवन वास्तविक जीवन से अलग और खोखला होता है; इसलिए, जब बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के ढिठाईपूर्ण व्यवहारों और अभिव्यक्तियों की बात आती है, तो उनके पास कोई भी अवधारणा नहीं होती, कोई परिभाषा होने की गुंजाइश तो और भी कम होती है; उनके पास न तो कोई विचार होता है और न ही वे कोई विवेक दिखाते हैं। अपने व्यक्तिगत लाभों के लिए षड्यंत्र करने में मसीह-विरोधियों के व्यवहारों, अभिव्यक्तियों और कहावतों के बारे में, तुम लोगों ने काफी कुछ देखा होगा, मगर अपने दिलों में तुमने कभी यह सोचने की कोशिश नहीं की कि वे किस तरह के लोग हैं, क्या वे परमेश्वर में अपने विश्वास में सत्य प्राप्त कर सकते हैं, क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं, और इसी तरह के कई और सवाल। इसके बजाय, तुम बिना किसी वास्तविक जुड़ाव के दिन भर लक्ष्यहीन ढंग से अपने कर्तव्य करते हो, अपना हर काम आधे-अधूरे मन से करते हो, और सत्य प्राप्त करने या सत्य वास्तविकता को समझने और उसमें प्रवेश करने में सक्षम होने की कोशिश नहीं करते। मसीह-विरोधी खुद के लाभों के लिए षड्यंत्र करने में अपने पद का उपयोग करते हैं और परमेश्वर में विश्वास करने की आड़ में परमेश्वर के घर की सभी जरूरी चीजों को धोखाधड़ी से प्राप्त कर लेते हैं। इन जरूरी चीजों में स्वाभाविक रूप से भोजन और पेय पदार्थ, साथ ही कुछ भौतिक आनंद की चीजें और ऐसी ही अन्य चीजें शामिल हैं। ऐसे लोगों का सार मसीह-विरोधियों के भौतिकवादी सार के समान ही है, जिसके बारे में हमने पहले बात की थी—यह उसी तरह के व्यक्ति का चरित्र है। वे केवल सभी प्रकार की भौतिक सुविधाओं का आनंद लेना चाहते हैं; वे सत्य का अनुसरण नहीं करते और अच्छे कर्म तो और भी कम तैयार करते हैं। वे सत्य का अनुसरण करने का सिर्फ दिखावा करते हैं और सतही तौर पर ऐसा करते हुए दिखाई देते हैं। वे अपने दिल की गहराई में मूलतः खाने, पीने और अपने साथ अच्छा व्यवहार होने के दैहिक आनंद के पीछे भागते हैं, उनके दिमाग में लगातार यही चीजें रहती हैं। इस तरह के लोग काफी हैं; हर कलीसिया में एक या दो, और शायद इससे भी ज्यादा ऐसे लोग हो सकते हैं। आज, मैं सैद्धांतिक रूप से इन लोगों की अभिव्यक्तियों, व्यवहार और सार के बारे में बात नहीं करूँगा। मैं सबसे पहले कुछ विशेष प्रतिनिधिक मामलों के बारे में बात करूँगा और तुम सबको इसे सुनने, इससे अंतर्दृष्टि पाने, और यह देखने का मौका दूँगा कि ऐसे लोग इस मद से किस प्रकार संबंधित हैं जिस पर हम संगति कर रहे हैं और क्या वे अपने पद की आड़ में और परमेश्वर में विश्वास करने का दिखावा करते हुए धोखाधड़ी से भोजन, पेय पदार्थ, धन और भौतिक चीजें हासिल करते हैं। इस तरह के व्यक्ति को पहचानने की कोशिश करो, और फिर सोचो कि जिन लोगों से तुम मिलते हो, क्या उनमें ये अभिव्यक्तियाँ हैं जिनके बारे में हम बात कर रहे हैं। अगर ऐसा कोई व्यक्ति तुम्हें याद आता है, तो तुम लोग कुछ उदाहरण भी दे सकते हो। मुझे बताओ, क्या उदाहरण देना बेहतर है या फिर सामान्य तौर पर ऐसे ही संगति करते रहना? (उदाहरण देना बेहतर है।) उदाहरण देने से क्या फायदा होता है? पहली बात, ज्यादातर लोग इन कहानियों और वास्तविक जीवन के मामलों को सुनने के लिए तैयार होते हैं। उनमें किरदार और कथानक होते हैं, और ज्यादातर लोगों को ये दिलचस्प लगते हैं। यह वैसा ही है जैसे तुम अपने व्यक्तिगत अनुभव के बारे में बात करते हो : अगर तुम इस बारे में कोई लेख लिखते हो, तो लोग आम तौर पर इसे बस एक या दो बार पढ़ते हैं, लेकिन अगर तुम इस बारे में कोई फिल्म या नाटक बनाते हो, तो ज्यादा लोग इसे देखेंगे, और कई बार देखेंगे। इस तरह, लोग सत्य के इस पहलू या संबंधित लोगों, घटनाओं और चीजों को ज्यादा गहराई और ज्यादा स्पष्टता से देखेंगे, और इसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, कुछ विशिष्ट उदाहरण देने से लोगों को सत्य के हरेक पहलू के और अपने बीच तुलना करने और संबंध को ज्यादा सटीकता से समझने में मदद मिलती है।

मामला एक : खाने-पीने की चीजें चुराने के लिए काम करने का दिखावा करना

सबसे पहले, आओ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के कुछ सामान्य उदाहरण लें। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता काम के लिए नई जगह पर आते हैं, जहाँ वे अलग-अलग भाई-बहनों से मिलते हैं, उन्हें कुछ अच्छी चीजें देखने को मिलती हैं, और वे सोचते हैं, “ये अच्छी चीजें हैं। मेरे पास ये क्यों नहीं हैं?” क्या उनके मन में गलत विचार नहीं आते हैं? उनका लालच उभर आया है। जैसे ही लालच उभरता है, ये नीच और बेशर्म घिनौने लोग वहीं रुक जाते हैं और वहीं पर काम करते रहने और उस जगह को नहीं छोड़ने का हर बहाना ढूँढ़ते हैं। उस जगह को नहीं छोड़ने का उनका उद्देश्य क्या होता है? (ताकि एक दिन वे लाभ उठा सकें।) यह सही है, वे लाभ उठाना चाहते हैं। अगर उन्हें यह लाभ नहीं मिलता है तो उनकी रात की नींद उड़ जाएगी। उन्हें चिंता होती है कि अगर वे कहीं और चले गए, तो किसी और को यह लाभ मिल जाएगा और उन्हें यह मौका फिर नहीं मिलेगा, इसलिए वे उसी जगह पर धर्मोपदेश देने और काम करने का बहाना ढूँढ़ते हैं। दरअसल, वे मन में हमेशा इन वांछनीय चीजों के बारे में सोचते रहते हैं, और उनकी नजरें हमेशा इन वांछनीय चीजों पर ही टिकी रहती हैं। आखिर में, वे उस जगह पर अपने पैर जमा लेते हैं, और ज्यादातर भाई-बहनें उनसे बहुत प्यार करते हैं, जानते हैं कि वे धर्मोपदेशक हैं, और उनकी आराधना और सम्मान करते हैं। अब इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह बताने का समय आ गया है कि उन्हें कुछ चाहिए, इसलिए वे इस विषय को उठाने के लिए सभी तरह के अलग-अलग तरीकों के बारे में सोचते हैं, मगर जितना ज्यादा वे अपना मुँह खोलते हैं, उन्हें उतनी ही बेचैनी होती है। वे मन में विचार करते हैं, “मुझे यह चीज कैसे माँगनी चाहिए? मैं भाई-बहनों को यह नहीं बता सकता कि मुझे यह चीज पसंद है और मुझे यह चाहिए। मुझे उन्हें इसे अपनी इच्छा से देने के लिए मजबूर करना होगा; मुझे उन्हें यह नहीं सोचने देना चाहिए कि मैं इसे माँग रहा हूँ, बल्कि वे उसे अपनी इच्छा से मुझे देना चाह रहे हैं, और बेशक मैं उस चीज को पाने का हकदार हूँ।” इसके बाद, वे भाई-बहनों से पूछते हैं, “आजकल तुम्हारा जीवन प्रवेश कैसा चल रहा है?” भाई-बहन कहते हैं, “जब से तुम आए हो, हमारे कलीसियाई जीवन में सुधार हुआ है और हर कोई जोश से भरा है।” “तुम लोगों के जोश में आने का मतलब यह है कि तुम्हारी आत्मा की स्थिति बेहतर है। तुम लोगों का कारोबार भी अच्छा चल रहा है। परमेश्वर की इच्छा से, भविष्य में तुम्हारा कारोबार और भी बेहतर चलेगा।” अगुआ और कार्यकर्ता बात करते हुए, बातचीत को उस चीज की ओर मोड़ लेते हैं जो उन्हें चाहिए। जब भाई-बहनों को यह स्पष्ट हो जाता है कि अगुआ और कार्यकर्ता वह चीज चाहते हैं, तो वे कहते हैं कि अगुआ और कार्यकर्ता जाते समय कुछ चीजें अपने साथ लेकर जाएँ। इस पर अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, “नहीं, मैं इनमें से कुछ नहीं ले सकता। यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। इससे परमेश्वर नाराज होगा।” “कोई बात नहीं। तुम इसके हकदार हो।” “भले ही मैं हकदार हूँ, तो भी इसे नहीं ले सकता।” ऐसा कहने के बाद, उन्हें चिंता होती है कि भाई-बहन वास्तव में उन्हें वह चीज नहीं देंगे, इसलिए वे घुमा-फिराकर कुछ बातें कहते हैं, ताकि भाई-बहन उनकी अच्छाई के लिए उनका धन्यवाद करें, और साथ ही वे सक्रियता से उस चीज के बारे में बात भी करते रहते हैं जो उन्हें चाहिए ताकि भाई-बहन उन्हें कुछ देना याद रखें। इसके बाद, भाई-बहनों को यह स्पष्ट हो जाता है कि अगुआ और कार्यकर्ता क्या कहना चाहते हैं, और वे कहते हैं, “अच्छा अभी उस बारे में बात नहीं करते हैं। जब तुम यहाँ से जाने लगोगे, तब हम इस बारे में बात करेंगे।” भाई-बहनों को यह कहते सुन अगुआओं और कार्यकर्ताओं का दिल बहुत खुश हो जाता है और वे सोचते हैं, “बहुत बढ़िया। आखिरकार मुझे जो चाहिए वह मिल जाएगा!” और फिर वे सोचते हैं, “अगर मैं कल ही चला जाऊँ, तो लोगों को साफ पता चल जाएगा कि मुझे वह चीज चाहिए। इसलिए मैं दो-तीन दिन बाद जाऊँगा।” जब आखिरकार तीसरा दिन आता है, तो भाई-बहन जाते समय उन्हें एक बहुत भारी पैकेज देते हैं। अगुआ और कार्यकर्ता देखते हैं कि यह वही चीज है जो उन्हें चाहिए थी, मगर वे इसे नहीं देखने का दिखावा करते हैं और इसे अस्वीकार नहीं करते। वे बिना कुछ कहे बस वह पैकेज ले लेते हैं। ये किस तरह के लोग हैं? ये वे लोग हैं जो अपने काम को एक साधन की तरह—और अपने श्रम को मुद्रा के रूप में—इस्तेमाल करते हैं, ताकि जरूरी चीजें पाने का षड्यंत्र कर सकें, और जो भाई-बहनों से जबरन चीजें लेते हैं। क्या यह एक तरह की धोखाधड़ी नहीं है? उनके काम का क्या मकसद है? दूसरों को ठग कर जरूरी चीजें पाना। जैसे ही उन्हें कोई ऐसी जगह मिलती है जहाँ कुछ जरूरी चीजें हैं और कुछ ऐसा है जो उन्हें चाहिए, तो वे वहीं रुक जाते हैं और वहाँ से जाना नहीं चाहते। वे हर अच्छी चीज अपने घर के लिए लेते हैं। कई सालों तक अगुआ या कार्यकर्ता रहने के बाद, उनके घरों में भाई-बहनों से ठग कर ली गई कई चीजें जमा हो जाती हैं। उनमें से कुछ ने भाई-बहनों से परिवार के गुप्त नुस्खे या विरासत की चीजें ठग लीं, तो कुछ ने छल से स्थानीय विशिष्ट उत्पादों को हासिल कर लिया। इन लोगों का परमेश्वर में विश्वास ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे जगह-जगह घूम रहे हैं और बदले में कुछ माँगे बिना काम कर रहे हैं, मगर वास्तव में, उन्होंने भाई-बहनों से बहुत सारी जरूरी चीजें ठग ली हैं।

जब कोई अगुआ किसी कलीसिया में आने के बाद देखता है कि वहाँ के बेर देश भर में मशहूर हैं, तो मन ही मन सोचता है “मुझे बेर खाना बहुत पसंद है। अगर मैं यहाँ पैदा हुआ होता तो रोज बेर खा सकता था, मगर दुर्भाग्य से मैं बहुत दिनों तक यहाँ नहीं रह सकता और बेर अभी पके नहीं हैं। मैं उन्हें कब खा पाऊँगा? मुझे पता है—मैं बेर पकने तक रुकने का कोई बहाना ढूँढ़ सकता हूँ, फिर मैं उन्हें खा पाऊँगा, है ना?” इसके बाद वह बहाना बनाता है कि यहाँ के ज्यादातर भाई-बहनों की मनोदशा बुरी है और वे अपने काम में कुछ भी हासिल नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए उसे यहाँ लंबे समय तक रहकर, जाने से पहले काम को सही रास्ते पर लाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। लेकिन, क्या वास्तव में उसके मन में यही बात है? (नहीं।) अपने दिल में, वह हिसाब लगा रहा है : “जब बेर पक जाएँगे और मैं थोड़े बेर अपने साथ ले जा सकूँगा, तभी मैं चला जाऊँगा।” उसका दिल इस विचार से भरा हुआ है, और यह विचार उसे वहीं रोक लेता है और वह वहीं अपना डेरा जमा लेता है। वहाँ रहते हुए, वह कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के उपदेश देता है और कुछ सतही काम करता है, मगर काम के मामले में ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाता। आखिरकार बेर पक जाते हैं, और उसका दिल खुशी से झूम उठता है : “आखिरकार मैं बेर खा सकता हूँ। जिस दिन का मुझे बेसब्री से इंतजार था, आखिर वह दिन आ गया है!” जैसे ही बेर पक जाते हैं, वह उन्हें खाने लगता है, साथ ही अपने दिल में यह भी सोचता है, “मेरे लिए यहाँ रहकर हर दिन सिर्फ बेर खाना ठीक नहीं है। मैं सिर्फ बेर खाने के लिए नहीं रुक सकता। अगर भाई-बहनों को भनक लग गई तो क्या होगा? मुझे कोई ऐसा तरीका सोचना होगा जिससे वे खुद ही मुझे अपने साथ ले जाने के लिए कुछ बेर दे दें। अगर वे मुझे बेर नहीं देते, तो मुझे कड़ी मेहनत करनी होगी और इस बात को आगे बढ़ाने के लिए कुछ और कहना होगा।” जैसे ही वहाँ रहने वाले भाई-बहन देखते हैं कि उसे बेर खाना पसंद है, वे कहते हैं कि जाते समय वे उसे अपने साथ ले जाने के लिए कुछ बेर दे देंगे। यह सुनकर उसे खुशी होती है, मगर उसकी जबान यह कहती है, “मैं इसे नहीं ले सकता। यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। विश्वासी यह लालच नहीं कर सकते। क्या मैं तुम लोगों का फायदा नहीं उठा रहा होऊँगा? मैं तुम्हें पैसे दिए बिना इसे नहीं ले सकता। जाते समय मैं तुम लोगों को इसके पैसे दे दूँगा।” उसकी कही ये बातें सिर्फ बातें ही हैं। जब उसने अपना पेट भर लिया है, और अब जाने का समय आया है, तब भी उसके दिल में हमेशा यही चलता रहता है, “क्या वे मुझे एक भी बेर नहीं देंगे या फिर क्या कुछ खराब बेर ही देंगे? मैं बड़े-बड़े, अच्छे बेर खाना चाहता हूँ।” जाने से दो दिन पहले, वह यही कहता रहता है, “सारे बेर शायद तोड़ लिए गए हैं, है ना? अगले साल वे कब पकेंगे?” जिससे उसका मतलब भाई-बहनों को यह याद दिलाना होता है कि वे उसे साथ ले जाने के लिए कुछ बेर देना न भूलें। भाई-बहन यह सुनते ही समझ जाते हैं : “ऐसा लगता है कि हमें उसे जाने से पहले अपने साथ ले जाने के लिए कुछ बेर देने ही होंगे, और अच्छे वाले बेर देने होंगे; नहीं तो वह हमारे लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।” जब आखिरकार उसके जाने का समय आता है, तो भाई-बहन उसे अपने साथ ले जाने के लिए बेरों के तीन बड़े-बड़े डिब्बे देते हैं। वह उन्हें अकेले नहीं उठा सकता और अपने अधीन काम करने वाले लोगों से मदद करने को कहता है। जाने से ठीक पहले, वह जितना खा सकता है, खा लेता है—फिर चाहे वह बीमार ही क्यों न पड़ जाए, मगर उसे लगता है कि यह इसके लायक है। उसे डर है कि जाने के बाद वह उन्हें फिर से नहीं खा पाएगा। वह न चाहते हुए भी वहाँ से निकलता है, और सोचता है, “इस बार के लिए इतना काफी है। मैं अगले साल इसी समय फिर आऊँगा। मुझे बहुत जल्दी आने की जरूरत नहीं है, मगर मैं बहुत देर से भी नहीं आ सकता। मुझे बेर पकते ही आ जाना चाहिए। इस तरह मैं कुछ ताजे बेर भी खा सकूँगा, और उनके सूखने के बाद कुछ सूखे बेर भी खा सकूँगा। मैं जाते समय कुछ बेर अपने साथ भी ले जा सकूँगा।” क्या वह इस बात का बहुत विस्तार से हिसाब नहीं लगाता? उसका दिल बस इन्हीं बातों के बारे में सोचता रहता है। वह हमेशा लाभ उठाने और जरूरी चीजें पाने के लिए षडयंत्र करने के बारे में सोचता रहता है, साथ ही भाई-बहनों से ऐसी चीजें ठगने के बारे में भी सोचता है जो उसके अपने हित में हों। जो भी जरूरी चीज उसकी नजर में आती है वह उसे जाने नहीं देगा। भले ही वह कोई ऐसी चीज हो जो खास न हो, अगर वह उसकी नजर में आती है और उसके मन में छप जाती है, तो यह पक्का है कि वह आखिरकार उस पर अपना हाथ साफ करके ही रहेगा। क्या यह एक मसीह-विरोधी का व्यवहार नहीं है? क्या इस तरह के लोगों की मानवता और चरित्र खास तौर पर नीच नहीं है? इस तरह के लोग चाहे कितनी भी अच्छी तरह से कष्ट सह लें और सतही तौर पर कीमत चुकाएँ, और चाहे वे अपने परिवार और अपने करियर को कितना भी त्याग दें, क्या यह कहा जा सकता है कि वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं? बिल्कुल नहीं। ये ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर में विश्वास करने का दिखावा करते हुए धोखाधड़ी से भोजन और पेय पदार्थ हासिल करते हैं।

कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार और काम करने के लिए हर तरह की जगहों पर जाते हैं और जब घर लौटते हैं तो वे हर जगह से अलग-अलग विशिष्ट स्थानीय उत्पाद या फिर भाई-बहनों से जबरन हासिल की गई चीजें भी लाते हैं। चाहे वह डिजाइनर कपड़े हों या इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान, अगर वह उन्हें पसंद आता है तो वे उसे नहीं छोड़ते और माँग ही लेते हैं। अगर तुम उन्हें वह नहीं देते, तो वे तुम्हारी काट-छाँट करने के लिए तमाम तरह के बहाने बनाएँगे, तुम्हें समझाएँगे कि वे तुम्हें क्यों काट-छाँट रहे हैं और तब तक नहीं मानेंगे जब तक तुम आखिरकार उन्हें वह चीज नहीं दे देते। ये लोग अपने कर्तव्य निभाने की आड़ में अपने लिए हर तरह की जरूरी चीजें ठग लेते हैं और इन जरूरी चीजों को पाने की कोशिश में वे बेलगाम रवैया अपनाते हैं। कभी-कभार भाई-बहन उन्हें थोड़ा कुछ देते हैं, मगर इन लोगों को यह ज्यादा कीमती नहीं लगता तो वे कहते हैं, “नहीं, शुक्रिया। परमेश्वर ने मुझे भरपूर आशीष दिया है। मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है।” वे मना करने के लिए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं और भाई-बहनों को इस प्रकार छलते हैं कि वे उनसे आकर्षित हों और उनके बारे में ऊँचा सोचें। लेकिन, अगर भाई-बहन उन्हें वो चीज देते हैं जिसका ये लोग सपना देखते हैं, जिसकी उन्हें जरूरत है और जिस बारे में हर वक्त सोचते रहते हैं, तो वे इन चीजों को देखते ही उन्हें हड़पना चाहेंगे, और बिल्कुल भी पीछे नहीं हटेंगे। कुछ महिलाएँ झांसा देकर भाई-बहनों के हाथों से कॉस्मेटिक, अच्छे कपड़े और अच्छे जूते हड़प लेती हैं, और कुछ पुरुष भाई-बहनों के हाथों से उपकरण, मोटरसाइकिल या इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान ठग लेते हैं। वे हर जरूरी चीज को पाना चाहते हैं। भाई-बहनों के पास चाहे कोई भी अच्छी चीज क्यों न हो, अगर वह इन लोगों को पसंद आती है, तो वे धोखाधड़ी से उसे पाने के लिए तमाम तरह के तरीके सोचेंगे। इसके अलावा, ये लोग रात के खाने के लिए एक साथ इकट्ठा होने और असंयमित ढंग से खाने-पीने का लुत्फ उठाने के लिए भी तमाम तरह के बहाने बनाते हैं और सभी तरह के बहाने ढूँढ़ते हैं। किस हद तक? वे जहाँ भी जाते हैं, यही देखते हैं कि किसके परिवार के पास पैसा है और किसके परिवार का खान-पान अच्छा-खासा है, फिर वे उसी परिवार के साथ चिपके रहते हैं और वहाँ से नहीं जाते। फिर, वे सहकर्मियों के लिए सभाएँ आयोजित करने और रात्रिभोज आयोजित करने के लिए तमाम तरह के बहाने ढूँढ़ते हैं। और प्रत्येक रात्रिभोज में उनके शुरुआती शब्द क्या होते हैं? “आज हमारी सभा राज्य की सभा है। भोजन की यह मेज हमें राज्य के भोज का पूर्वानुभव देती है।” उनके तलवे चाटने वाले लोग कहते हैं, “आमीन। परमेश्वर का धन्यवाद!” कुछ तथाकथित अगुआ और कार्यकर्ता ऐसे भी हैं जो जहाँ भी जाते हैं, जमकर खाते-पीते हैं। हर भोजन में पौष्टिक तत्व होने चाहिए, और माँस-मछली होना चाहिए, और हर हफ्ते व्यंजन बदलने चाहिए; वे इन्हें दोहरा नहीं सकते। रात के खाने के बाद उन्हें बढ़िया चाय चाहिए, और वे यह कहते हुए बहाने बनाते हैं, “मैं चाय के बिना नहीं रह सकता। मेरे पास हर दिन बहुत ज्यादा काम होता है, तो मुझे देर रात तक काम करना होगा। अगर मैं खुद को जगाए रखने के लिए थोड़ी सी चाय नहीं पीता, तो मैं रात को काम नहीं कर पाऊँगा।” उनकी जबान से तो यही निकलता है, मगर उनके दिल में क्या चल रहा होता है? “आज मैं जिस पद पर हूँ, वहाँ पहुँचना आसान नहीं था। क्या मुझे अपनी थोड़ी-बहुत धौंस नहीं जमानी चाहिए? साथ ही, मैंने जीवन में कुछ बेहतर चीजों का आनंद लेने का सपना देखा है, तो क्या मुझे अब इन चीजों का आनंद लेने के तमाम तरीकों के बारे में नहीं सोचना चाहिए? अगर मैं अपनी शक्ति का उपयोग अभी नहीं करता, तो जब यह चली जाएगी तब मुझे ऐसा करने का मौका नहीं मिलेगा। मुझे जितना हो सके उतना खाना-पीना चाहिए। क्या पता एक दिन ऐसा आए जब मेरे पास यह पद नहीं रहे और मैं इन चीजों का आनंद न ले सकूँ। तब मेरे पास यह मौका नहीं होगा। तो क्या मेरा पूरा जीवन बर्बाद नहीं हो जाएगा?” इस तरह के लोग काम करने की आड़ में धोखाधड़ी से खाने-पीने की चीजें हासिल करते हैं। वे थोड़ा काम करते हैं और कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देते हैं, और फिर जरूरी चीजों को ठगना और अच्छी चीजें खाना चाहते हैं।

एक व्यक्ति था जो किसी जगह पर काम करता था, और वहाँ रहने वाले भाई-बहनों को हर दिन इस व्यक्ति के लिए एक मुर्गी काटनी पड़ती थी। उसने हर रोज एक मुर्गी खाने की आदत बना ली थी। यह सुनकर तुम्हें कैसा लग रहा है? (घिनौना।) भाई-बहन अंडे के लिए मुर्गियाँ पालते थे, और सिर्फ तभी मुर्गी काटते थे जब वह बूढ़ी हो जाती थी। जब से वह व्यक्ति आया, तब से अंडे देने वाली मुर्गियों को भी काटना पड़ा, इस वजह से मुर्गियों की तादाद कम हो गई और भाई-बहनों ने अपना संयम खो दिया। बाद में, उसे बर्खास्त कर दिया गया और वह अपने घर चला गया, मगर फिर भी अपनी इस गलत आदत को नहीं बदल सका। वह रोज अपनी पत्नी से खाने के लिए एक मुर्गी कटवाता, नहीं तो उससे बहस करता। यह कैसा व्यक्ति है? मुर्गी खाना उसके जीवन का हिस्सा बन गया था। वह हर दिन, हर समय यही खाता था। बर्खास्त किए जाने के बाद भी उसे यही खाना था—वह इस पर निर्भर हो गया था। क्या इस व्यक्ति में कोई समस्या नहीं है? तुम लोग क्या कहते हो, क्या इस तरह के लोग अच्छे हैं? (नहीं।) संक्षेप में, जो लोग परमेश्वर में विश्वास करने का झंडा लहराते हुए, अपने कर्तव्य करते समय सामने आने वाले अवसरों का फायदा उठाकर, हर मोड़ पर भाई-बहनों से जबरदस्ती उनकी संपत्ति छीनते हैं और धोखाधड़ी से भोजन और पेय पदार्थ हासिल करते हैं, वे अच्छे लोग नहीं हैं। उनका सार एक मसीह-विरोधी का सार है। वे काम करने के लिए चाहे कहीं भी जाएँ या कोई भी काम करें, वे सबसे पहले ऐसे मेजबान परिवार चुनते हैं जो अपेक्षाकृत समृद्ध हों और खुशहाल हों, ताकि वे उनका स्वागत कर सकें। ऐसी जगहें ढूँढ़ने के पीछे उनका क्या मकसद होता है? अच्छा खाना खाने और एक अच्छे घर में रहने के लिए—दैहिक सुख की संतुष्टि के लिए। कुछ स्थान ऐसे हैं जहाँ वे प्रतिकूल वातावरण के कारण नहीं रह सकते, मगर क्या वे अपने लालच और अपने इन विचारों को त्याग देंगे? नहीं, वे इन्हें नहीं त्यागेंगे। वे इस तरह की दूसरी जगहें खोजेंगे जहाँ उनकी मेजबानी हो। नतीजतन, विदेशी स्थानों में कई सालों तक काम करने के बाद, वे पूरी तरह से अलग दिखेंगे, और जब घर वापस लौटेंगे, तो वहाँ के भाई-बहन भी उन्हें पहचान नहीं पाएँगे—उनके चेहरे भरे हुए होंगे, उनके पेट गोल होंगे; वे बेहतर कपड़े पहनेंगे; वे ज्यादा नखरे दिखाएँगे, और दिखावा करेंगे। उनके जीवन की आध्यात्मिक प्रगति कैसे होगी? उनमें जीवन में बिल्कुल भी प्रगति नहीं होगी; वे बस अच्छा खा रहे होंगे और अच्छे कपड़े पहन रहे होंगे, मोटे हो गए होंगे, और इतना खाना खाया होगा कि उनके जबड़े भारी हो गए और उनका पेट फूल गया होगा। चीन की मुख्यभूमि जैसे भयानक परिवेश में, कोई व्यक्ति चाहे जो भी कर्तव्य करे, वह एक बहुत ही तनावपूर्ण स्थिति होती है। भले ही वे कभी-कभी अच्छा खाएँ और आरामदायक मेजबान घरों में रहें, मगर उनका वजन नहीं बढ़ेगा। तो, वे किस प्रकार के लोग होते हैं जिनके खा-खाकर जबड़े भारी हो जाते हैं और पेट फूल जाते हैं? (वही जो रुतबे के लाभों में लिप्त रहते हैं।) यही वे लोग हैं जो हमेशा इस बारे में सोचते रहते हैं कि वे क्या खाएँगे, क्या पिएँगे और दिन में तीन बार के भोजन में वे किन चीजों का आनंद उठाएँगे। अगर इस तरह के लोगों को अच्छा खाना नहीं मिलता, तो उनका काम करने या अपने कर्तव्य निभाने का मन नहीं करता है। अगर उनका पेट भरा हुआ नहीं है, तो उनका दिमाग संतुलित नहीं होगा : “आज तो मैंने बहुत कम खाया। खाने में माँस तो बिल्कुल नहीं था, और खाने के बाद तुमने मुझे चाय भी नहीं दी। इसलिए, मैं तुम लोगों को नजरअंदाज करूँगा। जब तुम लोग कलीसिया के काम पर संगति करोगे, तो मैं नहीं बोलूँगा। मैं तुम लोगों से बदला लूँगा। किसने तुम लोगों से कहा कि मुझे अच्छा खाना नहीं देने से चलेगा? मुझे ऐसा खाना खाना पड़ रहा है, और तुम चाहते हो मैं तुम्हारे साथ संगति करूँ। ऐसा नहीं हो सकता!” उनके मन में यही होता है पर वे इसे जोर से कह नहीं सकते। वे बस इतना कहते हैं, “कल मैं बहुत देर रात तक काम करता रहा, इसलिए मुझे आज दोपहर को झपकी लेनी है।” क्या वे बहुत बड़े ठग नहीं हैं? वे दोपहर बाद चार-पाँच बजे तक सोते हैं, और वहाँ बहुत से लोग उनका इंतजार कर रहे होते हैं, मगर वे उठना ही नहीं चाहते। अचानक, उन्हें सेब की खुशबू आती है तो वे यह सोचकर बिस्तर से उछल पड़ते हैं कि उन्हें कोई सेब नहीं मिलेगा। वे इसी तरह काम करते हैं, और इसी तरह अपना कर्तव्य निभाते हैं। ये लोग चाहे कहीं भी जाएँ, और चाहे वे परमेश्वर के वचनों को कैसे भी खाएँ-पिएँ या धर्मोपदेश सुनें, उनके इरादे और उद्देश्य नहीं बदलेंगे, न ही वे अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को त्यागेंगे। सभी भौतिक चीजें ही इस जीवन में उनके अनुसरण का लक्ष्य हैं; अच्छा खाना खाना, अच्छे कपड़े पहनना और अच्छी मेजबानी पाना ही इस जीवन में परमेश्वर में उनके विश्वास के लक्ष्य हैं। वे सोचते हैं कि इस जीवन में परमेश्वर में विश्वास करके, अगर वे लगातार अच्छी चीजें खाने, अच्छे कपड़े पहनने और अच्छे घरों में रहने में सक्षम हैं, साथ ही साथ अगर भाई-बहन भी उनका समर्थन करते हैं—अगर वे धोखाधड़ी से इन चीजों को हासिल कर सकते हैं—तो वे इस जीवन में संतुष्ट होंगे। इस संसार में, किसी सामान्य नौकरी में कड़ी मेहनत करके कोई व्यक्ति ज्यादा पैसा नहीं कमा सकता, और व्यापार करके पैसा कमाना आसान नहीं है—वे इस तरह की चीजों का आनंद नहीं ले पाएँगे। इसलिए, अपने मन में इस पर विचार करने के बाद, उन्हें यही लगता है कि परमेश्वर में विश्वास करना ही सबसे अच्छा है, क्योंकि इसमें ज्यादा कोशिश करने की जरूरत नहीं होती है। उन्हें बस कुछ शब्द बोलने, थोड़ा इधर-उधर भागने और थोड़ा जोखिम उठाने की जरूरत है, और फिर वे अच्छा खा सकते हैं और अच्छे कपड़े पहन सकते हैं, यहाँ तक कि कई लोगों से अपना इंतजार भी करा सकते हैं, और अपने साथ बड़ी हस्तियों जैसा व्यवहार किए जाने का आनंद ले सकते हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह से जीना शानदार है, और परमेश्वर में विश्वास करने के कारण उन्हें भरपूर आशीष मिला है। वे अक्सर भाई-बहनों के सामने कपटपूर्ण बातें कहते हैं, जैसे, “परमेश्वर ने हमें बहुत कुछ दिया है, प्रचुर मात्रा में दिया है और मनुष्य की माँग या चाह से बढ़कर दिया है।” ये शब्द सही हैं, मगर उनके व्यक्तिगत अनुसरण और चरित्र, और उनके विचारों, इरादों और उद्देश्यों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते। उनकी हर बात लोगों को धोखा देने के लिए होती है। उनका इधर-उधर भागते रहना और खुद को खपाते रहने का बाहरी दिखावा भी लोगों को धोखा देने के लिए ही होता है। उनके दिलों की साजिशें, इरादे और लालच ही सच हैं। यह इन लोगों का चरित्र है। वे चाहे कुछ भी करें या कहीं भी जाएँ, इन भौतिक सुखों का उनके दिलों में सबसे ऊँचा स्थान रहता है, और वे उन्हें कभी नहीं त्यागेंगे और कभी नहीं भूलेंगे। भले ही तुम सत्य के बारे में कैसी भी संगति करो और चाहे तुम परमेश्वर के इरादों पर कैसी भी संगति करो, वे इस लालच और इन इच्छाओं से चिपके रहकर, और इन इरादों और उद्देश्यों को मन में बसाकर ही अपने कर्तव्य निभाएँगे, और चाहे उनके पास रुतबा हो या न हो, उनके इरादे नहीं बदलेंगे।

मामला दो : विदेश न जा पाने पर नाराजगी

जब मैं चीन की मुख्यभूमि में काम कर रहा था, वहाँ एक अगुआ था जिसे लगा कि वह हमारे साथ विदेश जा सकता है, और इस बात से बहुत खुश था। उसने सोचा, “आखिर मैंने यह कर दिखाया। अब मैं परमेश्वर के महान आशीषों का आनंद ले सकता हूँ! पहले, मैंने परमेश्वर के साथ कठिनाई झेली। आज मुझे आखिरकार इनाम मिल गया है। मैं इसका हकदार हूँ। कम से कम, मैं एक अगुआ हूँ, और मैंने बहुत-से क्लेशों का अनुभव किया है, इसलिए जब यह अच्छी चीज मेरे सामने आयी है तो मुझे इसमें हिस्सा लेना ही चाहिए—मुझे इस वांछनीय चीज का आनंद लेना ही चाहिए।” वह ऐसा सोचता था। लेकिन, उसके करीब रहकर लंबा समय बिताने के बाद, मैंने देखा कि वह अपनी कथनी और करनी में सिद्धांतहीन था, उसके पास अच्छी मानवता नहीं थी, आशीष पाने की उसकी मंशा और इच्छा काफी मजबूत थी, और कभी-कभी उसकी काट-छाँट करनी पड़ती थी। कई बार काट-छाँट किए जाने के बाद, उसने सोचा, “अब मेरा खेल खत्म है। ऊपरवाले ने मेरी असलियत देख ली है और उसने फिर से विदेश जाने का जिक्र नहीं किया है। ऐसा लगता है कि मेरे विदेश जाने की कोई उम्मीद नहीं है।” वह लगातार अपने मन में इन सबके बारे में विचार कर रहा था। वास्तव में, हम देख सकते थे कि वह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति नहीं था, विदेश जाने के लिए बुनियादी तौर पर अनुपयुक्त था, और अगर वह विदेश जाता भी तो कोई काम नहीं कर पाता, इसलिए हमने उससे इस बारे में कोई बात नहीं की। उसे लगा कि उसके पास विदेश जाने की कोई उम्मीद नहीं है, इसलिए उसने दूसरी योजनाएँ बनानी शुरू कर दी। एक दिन वह बाहर गया और कभी वापस नहीं आया। उसने बस एक चिट्ठी छोड़ी, जिसमें लिखा था, “मैंने इतने सालों से परमेश्वर में विश्वास किया और कुछ काम किया। अब तुम लोग विदेश जा रहे हो, मगर मैं तुम लोगों के साथ जाने लायक नहीं हूँ। आने वाले दिनों में, मैं इसकी भरपाई करने में समय बिताऊँगा। परमेश्वर मुझसे घृणा करता है, इसलिए मैं उसे छोड़ दूँगा। मैं उसे किसी ऐसे व्यक्ति की ओर देखने नहीं दूँगा जिससे वह घृणा करता है। मैं छिप जाऊँगा।” ये शब्द सुनने में ठीक लग रहे थे, और इनमें कोई बड़ी दिक्कत भी नहीं थी। इसके बाद, उसने लिखा, “जब से मैं पैदा हुआ हूँ, तब से ऐसा ही चल रहा है। चाहे मैं किसी के साथ भी रहूँ, मेरा इस्तेमाल ही किया जाता है। मैं दूसरों के साथ कठिनाई तो झेल सकता हूँ, मगर उनके साथ आशीषों का आनंद नहीं ले सकता।” इससे उसका क्या मतलब था? (उसे लगा कि परमेश्वर ने उसका इस्तेमाल किया है।) उसका बिल्कुल यही मतलब था। खास तौर पर जब उसने कहा, “मैं चाहे किसी के भी साथ रहूँ, मैं हमेशा उनके साथ कठिनाई ही झेल सकता हूँ, मैं उनके साथ आशीषों का आनंद नहीं ले सकता,” उसका मतलब था, “मैंने तुम लोगों के साथ बहुत कठिनाई झेली और बहुत अधिक जोखिम उठाए हैं, मगर जब आशीषों का आनंद लेने की बारी आई, तो तुम लोग तैयार नहीं हो।” ये बातें कहकर वह शिकायत कर रहा था, और इस वजह से उसके अंदर नाराजगी पैदा हो गई थी। उसने अपने मुँह से कहा, “परमेश्वर मुझसे घृणा करता है। मैं परमेश्वर को छोड़ दूँगा। मैं उसे घृणा महसूस नहीं करवाऊँगा,” मगर वास्तव में उसके दिल में नाराजगी थी : “तुम लोग आशीषों का आनंद लेने के लिए विदेश जा रहे हो और मुझसे छुटकारा पाना चाहते हो!” क्या वास्तव में ऐसा ही हुआ था? (नहीं।) तो क्या हुआ? उसे लगा कि हमने उससे छुटकारा पाने के लिए उसके साथ काट-छाँट की, इसलिए नहीं कि उसने सत्य का अनुसरण नहीं किया या वह अपनी कथनी और करनी में सिद्धांतहीन था। वह नहीं समझ पाया कि उसमें कोई समस्या थी। इसके बजाय उसने सोचा, “मैंने तुम्हारे साथ कठिनाई झेली, इसलिए मुझे तुम्हारे साथ आशीषों का आनंद लेना चाहिए। तुम्हें अवश्य ही मुझे राज्य में प्रवेश करने देना चाहिए और राज्य के लोगों में से एक बनने देना चाहिए। चाहे मैं कुछ भी करूँ, तुम्हें कभी मुझे छोड़ना नहीं चाहिए।” क्या उसने ऐसा नहीं सोचा? (बिल्कुल सोचा।) इस तरह की सोच का सार क्या है? (यह वही सार है जो पौलुस का था, जब उसने मुकुट के लिए परमेश्वर के साथ सौदा करने की कोशिश की थी।) यह सही है, यह पौलुस का सार है। उसने मुकुट और आशीष पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास किया, परमेश्वर का अनुसरण किया, कठिनाई झेली और कीमत चुकाई। उसके पास सच्ची आस्था नहीं थी, न ही वह सत्य का अनुसरण करता था। उसने बस परमेश्वर के साथ सौदा करने की कोशिश की। जब सौदा विफल हो गया, उसे आशीष नहीं मिला और उसे लगा कि उसका नुकसान हुआ है, तो वह गुस्सा हो गया, उसे लगा कि यह सब बेकार है, और वह पूर्णतः लापरवाही से काम करने लगा, उसके दिल में नाराजगी पैदा हो गई। उसने बोलते समय इन चीजों को अभिव्यक्त किया। इसके बाद इस व्यक्ति ने क्या किया? वह व्यापार करने चला गया और उसके चारों ओर कई युवतियाँ मंडराती रहती थीं। भले ही उसने यह नहीं कहा कि वह परमेश्वर में विश्वास नहीं करता, मगर उसने अपना कर्तव्य नहीं निभाया और वह परमेश्वर का अनुयायी नहीं था। किसी ने कभी नहीं सोचा था कि जरा-सी काट-छाँट के कारण वह परमेश्वर का अनुसरण करने का अपना मौका छोड़ देगा और फिर व्यापार करने चला जाएगा। उसका उग्र व्यवहार और जिस तरह से उसने खुद को पहले अभिव्यक्त किया था, वह दो अलग-अलग लोगों की तरह था। यह उसकी प्रकृति थी जो खुद को उजागर कर रही थी। इससे पहले उसने ऐसा विशुद्ध रूप से इसलिए नहीं किया क्योंकि अभी तक सही परिस्थिति सामने नहीं आई थी। यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि उसने अपनी असलियत छिपाई, दिखावा किया कि असल में वह ऐसा नहीं है और खुद को ऐसा करने से रोक लिया। अगर तुम वास्तव में अच्छे व्यक्ति हो, तो चाहे किसी भी परिस्थिति से तुम्हारा सामना हो, तुम्हें सबसे पहले अपनी जगह पर दृढ़ रहना चाहिए और खुद को पहचानना चाहिए। इसके अलावा, जिन लोगों के पास वाकई थोड़ी-सी भी मानवता है, क्या वे ऐसे काम और ऐसे कुकर्म कर सकते हैं जो मानवता से रहित हों? (नहीं।) वे बिल्कुल नहीं कर सकते। इस मामले से यह स्पष्ट है कि जब लोग सत्य स्वीकारने में असमर्थ होते हैं तो यह सबसे विद्रोही बात होती है, और वे सबसे ज्यादा खतरे में होते हैं। अगर वे कभी सत्य स्वीकार नहीं पाते, तो वे छद्म-विश्वासी हैं। अगर ऐसे व्यक्ति की आशीष पाने की इच्छा टूट जाती है, तो वह परमेश्वर को छोड़ देगा। ऐसा क्यों? (क्योंकि वह आशीष पाने और अनुग्रह का आनंद लेने का अनुसरण करता है।) ऐसे लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं मगर सत्य का अनुसरण नहीं करते। उनके लिए, उद्धार एक आभूषण और एक अच्छा लगने वाला शब्द है। उनका दिल इनाम, मुकुट और वांछनीय चीजों का अनुसरण करता है—वे इस जीवन में सौ गुना पाना चाहते हैं, और आने वाली दुनिया में शाश्वत जीवन पाना चाहते हैं। अगर उन्हें ये चीजें नहीं मिलती हैं, तो वे विश्वास नहीं करेंगे; उनका असली चेहरा सामने आ जाएगा, और वे परमेश्वर को छोड़ देंगे। वे अपने दिल में परमेश्वर के काम पर विश्वास नहीं करते, न ही परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्यों पर विश्वास करते हैं, और वे उद्धार का अनुसरण नहीं करते, सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना तो दूर की बात है; बल्कि यह पौलुस की तरह है—वे बहुत ज्यादा आशीष पाना, बड़ी ताकत पाना, बड़ा मुकुट पाना, और परमेश्वर के समान स्तर पर होना चाहते हैं। ये उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ हैं। इसलिए, जब भी परमेश्वर के घर में कोई लाभ या वांछनीय चीज होती है, तो वे उसे पाने के लिए संघर्ष करते हैं, लोगों को उनकी योग्यता और वरिष्ठता के अनुसार श्रेणीबद्ध करने लगते हैं, और सोचते हैं, “मैं योग्य हूँ। मुझे इसका हिस्सा मिलना चाहिए। मुझे इसे पाने के लिए संघर्ष करना ही होगा।” वे परमेश्वर के घर में खुद को सबसे आगे रखते हैं, फिर सोचते हैं कि उनके लिए परमेश्वर के घर के लाभों का आनंद उठाना सही है। उदाहरण के लिए, विदेश जाने के मामले में, उस व्यक्ति का पहला विचार यह था कि उसे हिस्सा लेने में सक्षम होना चाहिए, ज्यादातर लोग उसके जितने अच्छे नहीं हैं, उन्होंने उसके जितने कष्ट नहीं झेले, वे उसके जितने योग्य नहीं हैं, उन्होंने उतने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास नहीं किया जितना कि उसने किया, और वे उसकी तरह लंबे समय से अगुआ नहीं रहे। उसने खुद को श्रेणीबद्ध करने के लिए सभी तरह के बहाने बनाए और मूल्यांकन के तरीके इस्तेमाल किए। चाहे वह लोगों को कैसे भी श्रेणीबद्ध करें, वह हमेशा खुद को सबसे आगे और योग्य लोगों की श्रेणी में रखता था। आखिरकार, उसे लगा कि उसके लिए इस व्यवहार का आनंद उठाना सही है। जैसे ही उसे यह नहीं मिला, और जैसे ही आशीष और अपनी पसंद की चीजें पाने का उसका सपना टूटा, वह इस बारे में कुछ करने लगा, वह बौखला गया, और समर्पण करने और सत्य खोजने के बजाय वह परमेश्वर से बहस करने लगा। यह स्पष्ट है कि उसका दिल पहले से ही इन चीजों से भरा हुआ था जिनका वह अनुसरण करता था, और यह यह दिखाने के लिए काफी है कि जिन चीजों का उसने अनुसरण किया वे सत्य से पूरी तरह से असंगत हैं। चाहे उसने कितना भी काम किया हो, उसका लक्ष्य और इरादा सिर्फ मुकुट पाना था—जैसे पौलुस का लक्ष्य और इरादा था—वह उससे कसकर चिपका रहा और कभी हार नहीं मानी। उसके साथ चाहे कैसे भी सत्य के बारे में संगति की गई हो, चाहे उसे कैसे भी काटा-छाँटा गया हो, उजागर किया गया हो और उसका गहन विश्लेषण किया गया हो, वह फिर भी आशीष पाने के इरादे पर हठपूर्वक अड़ा रहा और उसने हार नहीं मानी। जब उसे परमेश्वर की स्वीकृति नहीं मिली और उसने देखा कि आशीष पाने की उसकी इच्छा चकनाचूर हो गई है, तो वह नकारात्मक होकर पीछे हट गया और अपना कर्तव्य त्यागकर भाग गया। उसने वास्तव में अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया या राज्य का सुसमाचार फैलाने में अच्छी सेवा नहीं की, और यह पूरी तरह दिखाता है कि परमेश्वर में उसकी सच्ची आस्था नहीं थी, वह वास्तव में समर्पित नहीं था, और उसके पास जरा-सी भी सच्ची अनुभवजन्य गवाही नहीं थी—वह केवल भेड़ की खाल में भेड़िया था, जो भेड़ों के झुंड में दुबका हुआ था। अंत में, वह व्यक्ति जो अंदर से छद्म-विश्वासी था, उसे पूरी तरह से बेनकाब करके हटा दिया गया, और एक विश्वासी के रूप में उसका जीवन यहीं समाप्त हो गया। यह एक मामला है।

ऐसा अकेला मामला नहीं था। यह अकेला व्यक्ति नहीं था जिसने ठोकर खाई और विदेश जाने के मामले से जिसका खुलासा हुआ। अभी-अभी हमने एक पुरुष का उदाहरण दिया, मगर ऐसी एक महिला भी थी। शुरू में विचार यही था कि इस महिला को भी हमारे साथ विदेश आने दिया जाए। जब ऐसा हुआ, तो वह अंदर से बहुत खुश हुई, और इसके लिए योजना बनाने और तैयारी करने लगी, मगर अंत में कई कारणों से वह हमारे साथ नहीं जा सकी। उस समय, उसे सूचित नहीं किया गया क्योंकि स्थिति बहुत खतरनाक थी। सहकर्मियों की एक बैठक में, उसे इस फैसले के बारे में पता चला। इसका विश्लेषण करो : जब इस महिला को पता चला तो परिणाम क्या रहा होगा? (अगर उसकी सोच सामान्य व्यक्ति की तरह होती, तो पता चलने के बाद वह बात का बतंगड़ नहीं बनाती। वह सोचती कि वह विदेश इसलिए नहीं जा सकी क्योंकि परिस्थिति बहुत खतरनाक थी, और वह इस मामले को सही तरीके से संभाल पाती। लेकिन जब इस महिला को पता चला होगा, तो वह गुस्सा हुई होगी और उसने परमेश्वर से बहस करने की कोशिश की होगी।) यह सही है, तुम लोगों ने इस तरह के लोगों के चरित्र को कुछ हद तक समझ लिया है। इस तरह के लोग ऐसे ही होते हैं—मामला चाहे कुछ भी हो, वे अपना नुकसान नहीं होने देंगे, बल्कि इसका लाभ उठाएँगे। हर चीज में उन्हें बाकी सबसे आगे निकलना है, और सबसे बेहतर होना है। हर चीज में उन्हें सर्वश्रेष्ठ होना है; उन्हें हरेक वांछनीय चीज चाहिए, और किसी चीज में उनका हिस्सा नहीं होना उनके लिए अस्वीकार्य है। इस मामले के बारे में पता चलते ही वह महिला गुस्सा हो गई और गुस्सा दिखाते हुए जमीन पर लोटने लगी। उसका राक्षसी पक्ष सामने आ गया, और उसने अपने सहकर्मियों को लताड़ा और अपना गुस्सा उन पर निकाला। उसका गुस्सा कहाँ से आया? ऐसा लग रहा था कि वह भाई-बहनों पर गुस्सा थी, मगर वास्तव में वह किस पर गुस्सा थी? (वह परमेश्वर पर गुस्सा थी।) यही चल रहा था। तो फिर उसके गुस्से का कारण क्या था? इसकी जड़ क्या थी? (क्योंकि उसकी इच्छाएँ पूरी नहीं हुईं।) यही कि उसे वांछनीय चीज नहीं मिली, और उसका लक्ष्य हासिल नहीं हुआ। वह इस बार लाभ उठाने में सफल नहीं हुई; बल्कि, दूसरे लोगों को लाभ मिला और वह हिस्सा नहीं ले पाई, इसलिए वह बौखला गई; वह अब और दिखावा नहीं कर सकती थी; वह फूट पड़ी और उसने अपने दिल की सारी असंतुष्टि और नाराजगी बाहर निकाल दी। अतीत में, ऊपरवाला क्या कर रहा है यह हमेशा सबसे पहले उसे जानना होता था। वह हमेशा ऊपरवाले से संपर्क रखना चाहती थी, और भाई-बहनों से मेलजोल नहीं रखती थी। वह हमेशा खुद को औसत सदस्य नहीं, बल्कि ऊँचे दर्जे का व्यक्ति मानती थी, इसलिए उसने सोचा कि उसे इस बार विदेश भी जाना चाहिए—अगर कोई और नहीं, तो उसे जरूर जाना चाहिए। वह प्राथमिक उम्मीदवार थी, और उसे इस तरह से व्यवहार किए जाने का आनंद मिलना चाहिए। उसके दिल में वास्तव में यही था। अब उसने देखा कि उसे इस तरह से व्यवहार किए जाने का आनंद नहीं मिलेगा, इन वर्षों में उसने जो भी कष्ट सहे, वे सब बेकार थे; उसके पास वह रुतबा नहीं था जिसे उसने कड़ी मेहनत से संभाला था और उसके साथ वैसा व्यवहार नहीं हुआ जैसा वह चाहती थी। इस पल में ये सभी चीजें बिखर कर नष्ट हो गईं। हैरानी की बात है कि वह इतनी बड़ी वांछनीय चीज पाने में सफल नहीं सकी; हैरानी की बात यह भी है कि उसे छोड़ दिया गया था, इसलिए उसने सोचा कि वह परमेश्वर के दिल में ऊँचा स्थान नहीं रखती, और एक औसत व्यक्ति है। उसके दिल में रक्षा-पंक्ति पूरी तरह से ध्वस्त हो गई थी, और उसने अब दिखावा करना और चीजों को छिपाना छोड़ दिया। वह गुस्सा दिखाने लगी, लोगों पर चिल्लाने लगी, भड़ास निकालने लगी, क्रोधित होने लगी, और जो उसके लिए स्वाभाविक था उसे उजागर करने लगी, बिना इस बात की परवाह किए कि दूसरे क्या कहते हैं या इसे कैसे देखते हैं। इसके बाद, कर्तव्य निभाने के लिए उसे एक टीम में भेजा गया। अपना कर्तव्य निभाते हुए उसने कई बुरे काम किए, और टीम के भाई-बहनों ने आखिरकार मिलकर एक चिट्ठी लिखी जिसमें उसे निष्कासित करने की मांग की गई। उसे निष्कासित किए जाने का कारण क्या था? भाई-बहनों ने बताया कि उसके कुकर्मों को सिर्फ एक वाक्यांश में वर्णित किया जा सकता है : उन सबको तो लिखा तक नहीं जा सकता! दूसरे शब्दों में, उसने बहुत सी बुराइयाँ कीं, और उसने जो किया उसकी प्रकृति बहुत गंभीर थी—इसे केवल एक या दो वाक्यों में स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता था, न ही इसे केवल एक या दो कहानियों में सुनाया जा सकता था। उसने अनगिनत बुरे काम किए जिससे लोग नाराज हो गए, इसलिए कलीसिया ने उसे निष्कासित कर दिया। उसने जो बुरे काम किए, वे विदेश जाने का मुद्दा उठने से पहले नहीं किए गए थे, तो फिर यह मुद्दा उठने के बाद वह ये सब क्यों कर पाई? क्योंकि विदेश जाने के मुद्दे का अंत वह नहीं हुआ जो वह चाहती थी। यह स्पष्ट है कि उसने जो बुरे काम किए और जो कुरूपता प्रकट की, वह विशुद्ध रूप से एक तरह का बदला लेना और भड़ास निकालना था, क्योंकि उसे यह वांछनीय चीज नहीं मिली। मुझे बताओ, ऐसी स्थिति का सामना करते हुए भले ही कोई व्यक्ति कई सत्यों को न समझता हो, लेकिन जब वह वास्तव में सत्य का अनुसरण करता है और उसके पास मानवता है, तो क्या वह ये अभिव्यक्तियाँ दिखाने में समर्थ होगा? क्या वह इन चीजों को प्रदर्शित करने में समर्थ हो सकता है? जिस किसी में थोड़ी-सी भी मानवता, थोड़ा-सा भी जमीर और थोड़ी-सी भी शर्म की भावना है, वह ये काम नहीं करेगा, बल्कि खुद को रोक लेगा। भले ही उसका दिल खुश नहीं है, वह असंतुष्ट और थोड़ा-सा दुखी भी है, लेकिन वह यही सोचता है कि वह एक औसत व्यक्ति है, उसे इस चीज को पाने के लिए लड़ाई नहीं करनी चाहिए, जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें सत्य का अनुसरण करना चाहिए, हर चीज में परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पण करना चाहिए, उनकी कोई पसंद-नापसंद नहीं होनी चाहिए, और लोग सृजित प्राणी हैं और वे बिल्कुल भी प्रभावशाली नहीं हैं। ऐसे लोग कुछ दिनों के लिए दुखी होंगे, मगर फिर यह भूली-बिसरी बात हो जाएगी। वे अभी भी पहले की तरह विश्वास करेंगे जैसा उन्हें करना चाहिए, और इस मामले के कारण बुरे कर्म नहीं करेंगे या बदला नहीं लेंगे, न ही वे इस मामले के कारण अपनी भड़ास निकालेंगे। इसके विपरीत, जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते और जिनका चरित्र घृणित है, वे एक छोटी सी बात के कारण ये सभी बुरे कर्म उजागर कर सकते हैं जो उन्होंने पहले कभी नहीं किए हैं। यह समस्या को स्पष्ट करता है। यह इस तरह के लोगों के मानवता सार को स्पष्ट करता है, और इस तरह के लोगों के सच्चे अनुसरण को स्पष्ट करता है, यानी कि इस मुद्दे का खुलासा होने से उनका असली चेहरा पूरी तरह से सामने आ जाता है। पहली बात, उनका सार पूरी तरह से मसीह-विरोधी का है। दूसरी बात, उन्होंने कभी भी सत्य का अनुसरण नहीं किया है, न कभी खुद को उद्धार का पात्र समझा है और न कभी उन्होंने परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण किया है। वे परमेश्वर के प्रति समर्पण का अनुसरण नहीं करते; वे केवल रुतबे और आनंद का अनुसरण करते हैं; वे केवल अच्छे व्यवहार का अनुसरण करते हैं, और केवल परमेश्वर के समान स्तर पर रहने का अनुसरण करते हैं। परमेश्वर जिसका आनंद लेता है, वे भी उसका आनंद लेते हैं। इस तरह, वे व्यर्थ में परमेश्वर का अनुसरण नहीं कर रहे होंगे। ये वे चीजें हैं जिनका वे अनुसरण करते हैं। यह इस तरह के लोगों का प्रकृति सार है; यह उनका असली चेहरा है, और यही उनके दिल का आंतरिक परिदृश्य है। इस मुद्दे ने इस महिला की बीस साल की आस्था को समाप्त कर दिया—सब कुछ व्यर्थ हो गया।

मुझे बताओ, इन दोनों को अभी कहाँ होना चाहिए? कलीसिया में या कहीं और? (अविश्वासी संसार में।) तुमने ऐसा क्यों कहा? तुम लोगों ने यह फैसला कैसे कर लिया? तुम्हारे शब्दों का आधार क्या है? (क्योंकि वे छद्म-विश्वासी हैं, और परमेश्वर में उनका विश्वास सृजित प्राणियों के रूप में अपने कर्तव्य निभाने का अनुसरण करने के उद्देश्य से नहीं है। अंत में, इस तरह के लोग अपनी आस्था में दृढ़ नहीं रह सकते, और सिर्फ संसार में वापस आ सकते हैं।) अंत में, वे अपनी आस्था में दृढ़ नहीं रह सकते, मगर अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है, तो वे कैसे गायब हो गए? तुम्हें यह देखना होगा कि उनके मन में क्या था। वे इस तरह की चीजें तभी कर सकते हैं और इस तरह के विकल्प तभी चुन सकते हैं जब उनके दिल में कुछ गतिविधि चल रही हो। उन्होंने इस मामले का किस तरह से विश्लेषण और आकलन किया जिसने उन्हें ऐसा रास्ता चुनने पर मजबूर किया? अपने दिल में उन्होंने सोचा, “मैंने इतने सालों से परमेश्वर में विश्वास किया है और बहुत कठिनाई झेली है। मैं हमेशा उस दिन के लिए तरसती रही हूँ जब मैं अपना नाम कमा सकूँ। ऊपरवाले के साथ रहकर, मैं अपना नाम कमा सकती हूँ और अपना चेहरा दिखा सकती हूँ। अब आखिरकार मेरे पास विदेश जाने का मौका है। यह बहुत बड़ी बात है! परमेश्वर पर विश्वास करने से पहले मैंने कभी यह सोचने की हिम्मत नहीं की थी। यह परमेश्वर में विश्वास करके मुकुट पाने जैसा ही है, मगर पता चला है कि मैं इतनी बड़ी वांछनीय चीज का हिस्सा नहीं बन पाऊँगी। मैं इसे पाने में सक्षम नहीं हूं। पहले, मुझे लगता था कि परमेश्वर के दिल में मेरा एक निश्चित स्थान है, मगर अब मैं देख सकती हूँ कि ऐसा नहीं है। लगता है मैं परमेश्वर का अनुसरण करके कोई वांछनीय चीज नहीं पा सकती। जब विदेश जाने जैसी बड़ी बात आई तो उन्होंने मेरे बारे में नहीं सोचा, ऐसे में क्या भविष्य में मुझे मुकुट मिलने की संभावना और भी कम नहीं है? यह पक्का नहीं है कि यह किसे मिलेगा, और ऐसा लगता है कि मुझे मिलने की कोई उम्मीद नहीं है।” क्या वे तब भी परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए तैयार थे जब उन्हें लगा कि कोई उम्मीद नहीं बची है? पहले कठिनाई झेलने और कीमत चुकाने के पीछे उनका उद्देश्य क्या था? उन्होंने केवल उस थोड़ी-सी उम्मीद के कारण, उन छोटे विचारों के कारण जो उन्होंने अपने दिलों में पाल रखे थे, उस तरह से काम किया और खुद को उस तरह से अभिव्यक्त किया। अब जब उनकी उम्मीदें चकनाचूर हो गई हैं और उनके विचार व्यर्थ हो गए हैं, तो क्या वे विश्वास करना जारी रख सकते हैं? क्या वे परमेश्वर के घर में रहकर और अपना कर्तव्य निभाकर संतुष्ट रह सकते हैं? क्या वे कुछ भी हासिल न करके परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर सकते हैं? मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ इतनी बड़ी हैं कि उन्हें अपनी कोशिशों और चुकाई गई कीमत का यह परिणाम बिल्कुल भी मंजूर नहीं होगा। वे यह सपना देखते हैं कि उन्होंने जो कीमत चुकाई और जितनी कोशिशें कीं उसके बदले उन्हें एक मुकुट और वांछनीय चीजें मिले, चाहे परमेश्वर के घर में कोई भी वांछनीय चीज क्यों न हों, उन्हें उनका हिस्सा मिलना ही चाहिए—अगर दूसरे लोगों को हिस्सा न मिले तो कोई बात नहीं, मगर उन्हें जरूर मिलना चाहिए। क्या ऐसी प्रबल महत्वाकांक्षाओं और लालच वाले लोग बदले में कुछ पाए बिना अपना कर्तव्य निभा सकते हैं और मेहनत कर सकते हैं? वे ऐसा बिल्कुल भी नहीं कर सकते। कुछ लोग कहते हैं, “उन्हें सत्य का अनुसरण करने दो। जब वे बहुत सारे सत्य सुन लेंगे, तो क्या इसे हासिल नहीं कर सकेंगे?” कुछ अन्य लोग कहते हैं, “अगर परमेश्वर उन्हें ताड़ना देता है और उनका न्याय करता है, तो क्या वे नहीं बदलेंगे?” क्या ऐसा है? परमेश्वर इस तरह से लोगों को ताड़ना नहीं देता और उनका न्याय नहीं करता, न ही ऐसे लोगों को बचाता है। ये बिल्कुल ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर हटा देगा। मैंने जो कहा उसके और तुम लोगों ने अभी जो कहा उसके बीच क्या अंतर है? तुम लोगों ने जो कहा, क्या वह उनके दिलों की सच्ची गतिविधि है? क्या यह इस तरह के लोगों के सार की अभिव्यक्ति है? (नहीं।) तो फिर तुम लोगों ने क्या कहा? (भावनाएँ और खोखले सिद्धांत।) तुम लोगों ने जो कहा उसकी प्रकृति विश्लेषण और आकलन की ओर थोड़ी झुकी हुई है, और यह सिद्धांत के आधार पर उनका आकलन और उन्हें परिभाषित करने की है। ये उनके सच्चे विचार और खुलासे नहीं हैं, न ही ये उनके सच्चे दृष्टिकोण हैं। यह इस तरह के लोगों की अभिव्यक्ति है जिनमें मसीह-विरोधी का सार है। अगर ऐसी कोई वांछनीय चीज उन्हें नहीं मिली, ऐसे किसी लाभ का आनंद उन्होंने नहीं लिया या ऐसा कोई फायदा उन्हें नहीं मिला, तो वे गुस्सा हो जाते हैं, परमेश्वर में विश्वास करने और सत्य का अनुसरण करने की अपनी आस्था खो देते हैं, परमेश्वर में विश्वास नहीं करना चाहते, भाग जाना चाहते हैं, और बुरे काम करना चाहते हैं। वे भड़ास निकालने और बदला लेने के लिए बुरे काम करते हैं—परमेश्वर के बारे में अपनी गलतफहमियों और परमेश्वर के प्रति अपनी नाराजगी को बाहर निकालते हैं। क्या इन लोगों से निपटा जाना चाहिए? क्या उन्हें कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाते रहने देना चाहिए? (नहीं।) तो फिर इन लोगों से कैसे निपटा जाना चाहिए? (उन्हें निष्कासित कर दिया जाना चाहिए।) क्या कोई ऐसा है जिसने विदेश नहीं जा पाने के कारण विश्वास करना छोड़ दिया हो? (हाँ, है।) इस तरह के लोग क्या हैं? (छद्म-विश्वासी। वे केवल आशीष पाने के प्रयास में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और जब उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ संतुष्ट नहीं होती तो वे परमेश्वर से विश्वासघात करते हैं।) वे ऐसी छोटी-सी बात पर परमेश्वर में विश्वास करना बंद कर सकते हैं। इस तरह के लोगों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि उनका विश्वास सच्चा है या झूठा—उनका चरित्र बहुत घटिया होता है!

मामला तीन : ग्रामीण इलाकों में घर लौटने के बाद जीवन जीना मुश्किल लगना

कुछ लोग ग्रामीण इलाकों में पैदा होते हैं और उनके परिवारों के पास जीवन-यापन के लिए बहुत सारा पैसा नहीं होता। वे अपने दैनिक जीवन में साधारण चीजों का इस्तेमाल करते हैं; एक खाट, एक संदूक और एक मेज के अलावा, उनके घर में कोई और असबाब नहीं होता है। उनके घर का फर्श ईंटों या गारे का बना होता है—उनके घर में पक्का फर्श तक नहीं होता। वे बहुत साधारण परिस्थितियों में जीते हैं। परमेश्वर में विश्वास करने के बाद, वे सुसमाचार के प्रचार का अपना कर्तव्य निभाते हुए कुछ संपन्न इलाकों में जाते हैं। ऐसी ही एक महिला थी, उसने चारों ओर देखा तो पाया कि ज्यादातर भाई-बहनों के घरों में या तो मजबूत लकड़ी के फर्श थे या टाइलें बिछी थीं; दीवारों पर वॉलपेपर लगे हुए थे; उनके घर बहुत साफ-सुथरे थे, और वे हर दिन नहा सकते थे। उनके घरों में बहुत सारा फर्नीचर भी था : जैसे कि टेलीविजन स्टैंड और बड़ी अलमारियाँ थीं, साथ ही सोफे लगे थे और घर वातानुकूलित था। उनके शयनकक्ष में सिमंस ब्रांड के बेड थे, और उनके रसोईघर में हर तरह के उपकरण मौजूद थे : जैसे कि रेफ्रिजरेटर, माइक्रोवेव, ओवन, स्टोव, रेंज हुड वगैरह। यह चकराने देने वाला नजारा था। इसके अलावा, इस तरह के बड़े शहरों में, कुछ इमारतें ऐसी भी थीं जिनमें एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर चढ़ने-उतरने के लिए वह लिफ्ट का प्रयोग कर सकती थी। इस जगह ने उसकी आँखें खोल दीं, और वहाँ कुछ समय तक काम करने और सुसमाचार का प्रचार करने के बाद वह वापस घर नहीं जाना चाहती थी। ऐसा क्यों था? उसने सोचा, “मेरे परिवार का कच्चा घर किसी भी तरह से इस जगह की बराबरी नहीं कर सकता। हम सभी परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो इन लोगों का जीवन मेरे परिवार से इतना बेहतर कैसे है? इनका जीवन स्वर्ग जैसा है। जबकि मेरा परिवार सूअर के बाड़े में रहता है—वह इन लोगों के घर से बहुत खराब हालत में है!” यह तुलना करने के बाद, वह दुखी हो गई, उसे इस जगह से और भी ज्यादा लगाव हो गया और वह वापस नहीं जाना चाहती थी। उसने सोचा, “अगर मैं यहाँ लंबे समय तक काम कर सकूँ, तो मुझे घर वापस नहीं जाना पड़ेगा, है ना? वह गंदी झोपड़ी इंसानों के रहने की जगह नहीं है।” वह कुछ समय बड़े शहर में रही और उसने शहर के लोगों की तरह खाना, कपड़े पहनना और जीवन का आनंद लेना सीखा, और शहर के लोगों की तरह जीना सीखा। उसे लगा कि उन दिनों जीवन बहुत अच्छा था। पैसा होना अच्छा था। गरीब होने से लोगों का कोई भविष्य नहीं होता। गरीब लोगों को दूसरे लोग नीची नजरों से देखते थे, और गरीब लोग खुद को भी नीची नजरों से देखते थे। जितना ज्यादा वह इस बारे में सोचती, उतना ही कम वह वापस जाना चाहती थी, मगर उसके पास कोई और चारा नहीं था—उसे घर जाना ही था। घर पहुँचने के बाद, उसके दिल में अलग-अलग तरह की भावनाएँ उठीं और उसे सहना बहुत मुश्किल था। जैसे ही वह घर के अंदर गई, उसे गारे का फर्श दिखा, और जब वह खाट पर बैठी तो उसे बहुत कठोर और असहज महसूस हुआ। जब उसने दीवारों को छुआ तो उसका हाथ धूल-मिट्टी से सन गया। जब उसने कुछ स्वादिष्ट खाने का जिक्र किया तो कोई भी उस व्यंजन का नाम नहीं समझ पाया, और उसने सोने से पहले नहाना चाहा तो यहाँ नहाने की कोई सुविधा नहीं थी। उसे इस तरह से जीना बहुत ही घटिया लगा, और उसे अपने माता-पिता से बहुत शिकायतें थी क्योंकि वे इतने गरीब थे कि उसकी कोई भी मनचाही चीज नहीं खरीद सकते थे, और वह हमेशा उन पर गुस्सा करती थी। वापस आने के बाद से, ऐसा लग रहा था कि वह एक अलग इंसान बन गई है। वह अपने परिवार के लोगों और अपने घर की हर चीज को नापसंदगी की नजरों से देखती थी, सोचती थी कि यह बाबा आदम के जमाने का है कि वह अब वहाँ नहीं रह सकती, और अगर वह वहाँ रहती रही तो अन्याय की चिंताओं के कारण मर ही जाएगी। घर छोड़ने से उसकी आँखें खुल गईं, मगर यह एक बुरी बात हो गयी थी, जिससे उसके माता-पिता बहुत नाराज हो गए। उस समय, उसके मन में एक विचार आया : “अगर मेरे माता-पिता परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, और अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं करती, तो हमारा जीवन निश्चित रूप से अभी के मुकाबले बेहतर होता। भले ही हम सिमंस के बिस्तर पर नहीं सो सकते, मगर हम कम से कम बेहतर खाना तो खा सकते थे, और फर्श पर टाइलें तो लगवा सकते थे।” उसने सोचा कि यह परमेश्वर में विश्वास करने का नतीजा है, परमेश्वर में विश्वास करने का मतलब है कि व्यक्ति को गरीबी में जीना होगा, अगर कोई परमेश्वर में विश्वास करता है तो उसका जीवन अच्छा नहीं हो सकता, और वह अच्छी चीजें नहीं खा सकता या अच्छे कपड़े नहीं पहन सकता। तब से, यह असाधारण साहसी महिला, जिसने कई प्रांतों में घूमकर कुछ हासिल किया था, वह अब अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाती थी और उसे पूरे दिन नींद आती रहती थी। उसे सुबह उठने के लिए संघर्ष करना पड़ता था, और उठने के बाद सबसे पहले वह तैयार होती और मेकअप करती थी, फिर ऐसे कपड़े पहनती थी जो अक्सर शहरी लोग पहनते हैं। फिर वह भौंहें सिकोड़ती और सोचती कि कब उसे इस देहाती जीवन से छुटकारा मिलेगा और वह शहरी लोगों की तरह जी सकेगी। वह जो धर्मोपदेश देती थी और जो संकल्प उसने लिया था, वह सब खत्म हो गया—वह सब कुछ भूल गई थी। वह तो यह भी नहीं जानती थी कि वह विश्वासी है या नहीं। वह इतनी जल्दी बदल गई। उसकी आँखें थोड़ी खुल जाने और उसका जीवन परिवेश और जीवन स्तर बदल जाने के कारण वह प्रकट हो गई।

पहले, यह महिला हर जगह जाकर धर्मोपदेश देती और काम करती थी। उसके पास दृढ़ संकल्प था और अपार शक्ति थी, मगर ये सब सिर्फ बाहरी दशाएँ थीं। यहाँ तक कि वह भी नहीं जानती थी कि वह अंदर से क्या चाहती है, उसे क्या पसंद है और वह किस तरह की इंसान है। शहर जाने के एक अनुभव ने उसके जीवन की दशा पूरी तरह से बदल दी, और कुछ समय तक समृद्ध जीवनशैली के एक अनुभव ने उसके जीवन की दिशा को भी पूरी तरह से बदल दिया था। असल में इसका कारण क्या था? उसे किसने बदला? यह परमेश्वर तो नहीं हो सकता, है ना? बिल्कुल नहीं। तो फिर कारण क्या था? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जीवन परिवेश ने उसे प्रकट किया, उसकी प्रकृति सार का खुलासा किया और उसके अनुसरण के साथ ही वह मार्ग प्रकट किया जिस पर वह चल रही थी। वह किस मार्ग पर चल रही थी? यह सत्य का अनुसरण करने का मार्ग नहीं था, न यह पतरस का मार्ग था, न ही यह उन लोगों का मार्ग था जिन्हें बचाया और पूर्ण किया जाता है, और न ही यह सृजित प्राणी के कर्तव्य को पूरा करने की कोशिश का मार्ग था; बल्कि, यह एक मसीह-विरोधी का मार्ग था। विशेष रूप से, एक मसीह-विरोधी का मार्ग प्रतिष्ठा का अनुसरण करने का, रुतबे का अनुसरण करने का और भौतिक सुखों का अनुसरण करने का मार्ग होता है। यही ऐसे लोगों का सार है। अगर वह इन चीजों का अनुसरण नहीं कर रही होती और वह एक ऐसी व्यक्ति होती जो सत्य का अनुसरण करती तो वातावरण में इस तरह का एक छोटा सा परिवर्तन उसे बिल्कुल भी प्रकट नहीं कर पाता। ज्यादा से ज्यादा, उसका दिल थोड़ा कमजोर होता, वह थोड़ी दुखी होती, और यह उसके लिए थोड़ा दर्दनाक होता, या फिर वह कुछ मूर्खतापूर्ण अभिव्यक्तियाँ दिखाती, मगर इतनी स्पष्टता से नहीं जिससे कि वह बेनकाब हो जाती। ऐसे लोगों के अनुसरणों का सार क्या है? वे उन्हीं चीजों का अनुसरण करते हैं जिनका अनुसरण अविश्वासी और वे लोग करते हैं जो प्रसिद्धि, लाभ और बुरी प्रवृत्तियों का अनुसरण करते हैं। उन्हें अविश्वासियों के फैशनेबल पहनावे पसंद हैं, वे अविश्वासियों की तरह बुरी प्रवृत्तियों का अनुसरण करते हैं और यहाँ तक कि उन्हें अविश्वासियों का देह की असाधारण जीवनशैली के प्रति जुनून पसंद है। इसलिए, अपने परिवेश में एक बदलाव से, इस महिला का जीवन के प्रति दृष्टिकोण और इस संसार और जीवन के प्रति उसका रवैया पूरी तरह से बदल गया। उसने सोचा कि परमेश्वर में विश्वास करना और सत्य का अनुसरण करना सबसे महत्वपूर्ण नहीं है, और जब तक लोग इस संसार में जीवित हैं, उन्हें देह और जीवन का आनंद लेना चाहिए, सांसारिक प्रवृत्तियों का अनुसरण करना चाहिए, और समाज में करिश्माई और आकर्षक व्यक्तियों की तरह होना चाहिए जो जिधर से गुजर जाएँ उधर एक हलचल मचा देते हैं, जिनसे लोगों को ईर्ष्या होती है, और लोग जिन्हें अपना आदर्श बना लेते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो कई परिवेशों का सामना करने के बाद, तमाम तरह के लोगों का सामना करने के बाद, और जब उनकी आँखें खुल जाती हैं, तो वे इन बुरी प्रवृत्तियों और मानवजाति की असलियत को देखने में ज्यादा सक्षम होते हैं क्योंकि वे सत्य का अनुसरण करते हैं और परमेश्वर के इरादों को समझते हैं। उनके दिल सांसारिक लोगों के मार्ग से घृणा करने में ज्यादा सक्षम होते हैं, और साथ ही वे इसका भेद पहचानते हैं और परमेश्वर के बताए मार्ग पर चलने के लिए इसे पूरी तरह से त्याग देते हैं। जहाँ तक उन लोगों का सवाल है जो सत्य का अनुसरण नहीं करते और जिनके पास मसीह-विरोधी का सार है, जैसे ही उनकी आँखें खुलती हैं और विभिन्न परिवेशों से उनका सामना होता है, उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ कम नहीं होतीं, बल्कि बढ़ती ही जाती हैं। जब उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ बढ़ जाती हैं, तो ये लोग संसार में उन लोगों के जीवन से और भी ज्यादा ईर्ष्या करने लगते हैं जो अच्छी चीजों का आनंद लेते हैं और जिनके पास पैसा और प्रभाव है, और उनके दिलों की गहराई में विश्वासियों के जीवन के प्रति हिकारत का भाव उत्पन्न हो जाता है। वे सोचते हैं कि ज्यादातर विश्वासी सांसारिक चीजों का अनुसरण नहीं करते, उनके पास पैसा नहीं है, कोई रुतबा नहीं है, कोई प्रभाव नहीं है और उन्होंने संसार को ज्यादा नहीं देखा है, वे अविश्वासियों जितने करिश्माई नहीं हैं, वे अविश्वासियों जितना जीवन का आनंद लेना नहीं जानते और उनके जितना दिखावा नहीं करते हैं। इस वजह से, परमेश्वर में विश्वास करने के प्रति उनके दिलों में विरोध और शत्रुता गहराती चली जाती है। इसलिए, मसीह-विरोधी के सार वाले कई लोगों के बारे में, जब से उन्होंने परमेश्वर में विश्वास करना शुरू किया था तब से लेकर अब तक, कोई यह नहीं बता सकता कि वे वास्तव में मसीह-विरोधी के सार वाले व्यक्ति हैं या नहीं, मगर एक दिन जब उचित परिवेश बनेगा तो यह उन्हें प्रकट कर देगा। इससे पहले, जब प्रकट किए गए लोग अभी तक प्रकट नहीं हुए थे, उन्होंने भी नियमों का पालन किया और जैसा उन्हें करना चाहिए वैसा ही किया। परमेश्वर का घर उनसे जो भी करने को कहता था, वे करते थे, वे कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सक्षम थे। वे कर्तव्यनिष्ठ, सही मार्ग पर चलने वाले और परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों की तरह दिखते थे और वैसा ही आचरण करते प्रतीत होते थे। लेकिन, चाहे वे बाहर से कुछ भी करते हों, उनका सार और जिस मार्ग पर वे चल रहे थे वह समय की कसौटी पर या विभिन्न परिवेशों के परीक्षण में खरा नहीं उतरा। कोई व्यक्ति चाहे कितने भी वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करता हो, और किसी व्यक्ति के विश्वास का आधार चाहे कितना भी मजबूत हो, अगर उसमें मसीह-विरोधी का सार है और वह मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहा है, तो वह अनिवार्य रूप से भौतिक सुखों के पीछे भागेगा, विलासितापूर्ण जीवनशैली, समृद्ध भौतिक जीवन का अनुसरण करेगा, और इसके अलावा, तमाम तरह की वांछनीय चीजों के पीछे भागने के साथ-साथ सांसारिक लोगों के जीवन जीने के रवैये और दृष्टिकोण से ईर्ष्या करेगा। यह निश्चित है। इसलिए, भले ही अब हर कोई धर्मोपदेश सुन रहा है, परमेश्वर के वचनों को खा-पी रहा है और अपने कर्तव्य निभा रहा है, लेकिन जो लोग ये काम करते हैं मगर सत्य का अनुसरण नहीं करते, वे अनिवार्य रूप से भौतिक चीजों का अनुसरण करेंगे। ये चीजें उनके दिलों में सबसे पहले होंगी, और जैसे ही उचित परिवेश या परिस्थिति आएगी, उनकी इच्छाएँ बढ़ेंगी और अपना असर दिखाने लगेंगी। जैसे ही ये चीजें इस मुकाम पर पहुँचेंगी, वैसे ही उनका खुलासा हो जाएगा। अगर लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, तो देर-सवेर यह दिन उनके लिए आ ही जाएगा। जहाँ तक उन लोगों का सवाल है जो सत्य का अनुसरण करते हैं, सत्य समझते हैं, और जिनके लिए सत्य ही उनका आधार है, जब ये प्रलोभन और परिवेश उनके सामने आते हैं, तो वे उनके प्रति सही रवैया अपनाने, उन्हें अस्वीकार करने और परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रहने में सक्षम होते हैं। जब ये प्रलोभन आते हैं, तो वे सकारात्मक और नकारात्मक को पहचानने में भी सक्षम होते हैं, और जानते हैं कि क्या यह कुछ ऐसा है जो वे चाहते हैं। यह वैसा ही है जैसे कुछ महिलाओं को उन पुरुषों में कोई दिलचस्पी नहीं होती जो उनका पीछा करते हैं, फिर चाहे उनके पास कितना भी पैसा क्यों न हो। वे दिलचस्पी क्यों नहीं लेतीं? क्योंकि उन पुरुषों का चरित्र अच्छा नहीं होता। कुछ महिलाएँ अपने साथी की खोज इसलिए नहीं करतीं क्योंकि कोई अमीर पुरुष उनका पीछा नहीं कर रहा होता। अगर कोई पैसे वाला आदमी उनका पीछा करता है और उन्हें 20,000 युआन की डिजाइनर ड्रेस खरीद कर देता है, तो वे आकर्षित हो जाएँगी, और अगर वह उन्हें 100,000 युआन की मिंक कोट या एक बड़ा डायमंड, एक बड़ा सुंदर घर और एक कार खरीद कर दे, तो वे तुरंत उससे शादी करने को तैयार हो जाएँगी। ऐसे में, जब ये महिलाएँ कहती थीं कि वे शादी नहीं करेंगी, तो क्या यह सच था या झूठ? यह झूठ था। इसलिए, ऐसे कई लोग हैं जो कहते तो हैं कि वे संसार का और संसार की संभावनाओं और सुखों का अनुसरण नहीं करते, मगर ऐसा सिर्फ तब तक के लिए है जब उनके सामने कोई प्रलोभन नहीं होता; परिवेश इसके अनुकूल नहीं होता। जैसे ही अनुकूल परिवेश होता है, वे उसमें गहरे धंस जाते हैं और खुद को बाहर नहीं निकाल पाते। यह वैसा ही है जिसका उदाहरण हमने अभी दिया। उस महिला ने खुद को परिस्थिति से बाहर नहीं निकाला। कुछ समय तक शहरी जीवन का आनंद लेने के बाद, वह खुद को भूल गई और अपने मार्ग से भटक गई। अगर उसे किसी महल में रखा जाता, तो क्या वह अपने माता-पिता को जल्द से जल्द आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं कर देती, ताकि उसका नाम खराब न हो? इस तरह के लोग अपने आनंद, प्रतिष्ठा, विलासितापूर्ण जीवनशैली और उच्च स्तरीय जीवन के लिए किसी भी तरह की मूर्खतापूर्ण हरकत करने में सक्षम हैं। वे बेकार हैं और उनके चरित्र बहुत घटिया हैं। क्या इस तरह के लोगों ने कभी सत्य का अनुसरण किया है? (नहीं।) तो फिर उसने जो उपदेश दिए, वे कहाँ से आए? क्या उसके पास प्रचार करने के लिए धर्मोपदेश थे? उसने जो उपदेश दिए, वे धर्मोपदेश नहीं थे, बल्कि धर्म-सिद्धांत थे। वह धर्मोपदेश नहीं दे रही थी, बल्कि नाटक करके लोगों को गुमराह कर रही थी। उसने इतने सारे धर्मोपदेश दिए, तो वह अपनी समस्याओं का समाधान कैसे नहीं कर पाई? क्या वह जानती थी कि वह इस मुकाम तक पहुँच सकती है? क्या उसने चीजों को स्पष्टता से देखा था? उसने इतने सारे धर्मोपदेश दिए, फिर भी शहर में कुछ समय तक जीवन का आनंद लेने के बाद ही वह ऐसे प्रलोभनों पर काबू नहीं पा सकी, और अपनी गवाही में दृढ़ नहीं रह सकी। तो क्या उसने जो उपदेश दिए, वे धर्मोपदेश थे? जाहिर है कि वे धर्मोपदेश नहीं थे। यह तीसरा मामला है।

मामला चार : कर्ज चुकाने के लिए धोखाधड़ी से भेंटों का उपयोग करना

पहले, जब मैं चीन की मुख्यभूमि में था, हमें सहकर्मियों के मिलने के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थान की जरूरत थी, तो हमने एक मेजबान परिवार को ढूँढ़ा। यह परिवार हमारी मेजबानी के लिए इच्छुक था और इसने उस स्थान की सुरक्षा में मदद की। लेकिन, कुछ समय बीतने के बाद, वह परिवार सोचने लगा, “ऐसा लगता है कि आप लोग यहाँ लंबे समय तक सभाएँ करने की सोच रहे हो। आप लोग मेरे घर के अलावा कहीं और नहीं मिल सकते, इसलिए मुझे इस परिस्थिति का लाभ उठाना चाहिए। ऐसा नहीं किया तो क्या यह मेरी बेवकूफी नहीं होगी?” एक बार जब हम सहकर्मियों की बैठक के लिए इकठ्ठा हुए और सभी सहकर्मी अभी तक नहीं आए थे, तो एक व्यक्ति बिना किसी स्पष्ट वजह के मेजबान परिवार के घर आकर लिविंग रूम में बैठ गया और बाहर नहीं गया। मेजबान आया और उसने कहा कि यह व्यक्ति कर्ज के पैसे लेने आया है, उन्होंने कई साल पहले उससे कर्ज लिया था जो अब तक नहीं चुकाया गया है। तुम लोगों को क्या लगता है कि यहाँ क्या चल रहा था? यह व्यक्ति पहले आ सकता था या बाद में भी आ सकता था, मगर वह कर्ज के पैसे लेने के लिए ठीक इसी समय पर आया। क्या यह महज एक संयोग था या किसी की सोची-समझी व्यवस्था थी? लोगों के मन में संदेह उठा। दाल में कुछ तो काला था। आखिर चल क्या रहा था? क्या उस परिवार के इरादे बुरे नहीं थे और क्या उन्होंने जानबूझकर उस व्यक्ति को बुलाया था? (हाँ, ऐसा ही था।) मैंने कहा, “उसे तुरंत यहाँ से बाहर जाने को कहो।” मेजबान ने कहा, “जब तक उसका कर्ज नहीं चुका देते, वह नहीं जाएगा।” मैंने कहा, “तुम उसके पैसे वापस क्यों नहीं देते?” परिवार हाँ-हूँ करने लगा, जिससे उनका यह मतलब था कि अगर उनके पास पैसे होते तो भी वे कर्ज नहीं चुकाते—वे मुफ्त की उधारी चाहते थे। कर्ज वसूलने वाला वहाँ इंतजार करता रहा और वह तब तक वहीं था जब तक कुछ अन्य सहकर्मियों के आने का समय हो गया। मेजबान क्या करने की सोच रहा था? क्या यह एक सोची-समझी साजिश नहीं थी? (बिल्कुल थी।) बाद में, मैंने किसी से मेजबान को पैसे देकर तुरंत उन्हें कर्ज वसूलने वाले से छुटकारा दिलाने के लिए कहा। मेजबान को पैसे देने के बाद, कर्ज वसूलने वाला आधे घंटे के भीतर चला गया। सामान्य ज्ञान हमें बताता है कि कर्ज वसूलने वाले को वापस नहीं आना चाहिए, मगर यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ था। एक महीने बाद, कर्ज वसूलने वाला फिर से सहकर्मियों की बैठक से पहले आया। मेजबान ने कहा कि पिछली बार कर्ज का केवल एक हिस्सा चुकाया गया था, पूरा कर्ज नहीं। उसके ऐसा कहने का क्या लक्ष्य था? ताकि परमेश्वर का घर फिर से उसका कर्ज चुका दे। इस बार भी पिछली बार की तरह हुआ, मेजबान को पैसे देने के बाद, कर्ज वसूलने वाला वहाँ से चला गया। तब से, जब भी हम बैठक के लिए वहाँ गए, कर्ज वसूलने वाला फिर कभी नहीं आया क्योंकि हमने पहले ही दो किश्तों में उसका सारा कर्ज चुका दिया था। उसे चिंता थी कि अगर वो पहले से इतने पैसे माँगता, तो हम पैसे देने को राजी नहीं होते, इसलिए उसने दो किश्तों में पैसे माँगे। इस पैसे को कैसे देखा जाना चाहिए? क्या परमेश्वर के घर ने यह पैसा उसको उधार दिया था, या फिर उसने परमेश्वर के घर को उन्हें पैसे देने के लिए चालाकी से राजी किया था? (उसने परमेश्वर के घर को चालाकी से राजी किया था।) वास्तव में, उसने परमेश्वर के घर से धोखे से पैसे लिए। तो, परमेश्वर के घर ने उसे पैसे क्यों दिए? क्या हमारे पास उसे पैसे नहीं देने का विकल्प था? आखिरकार, उसे पैसे न देना हमारे लिए उचित और कानूनी है, मगर इसका मतलब यह होता कि सहकर्मी एक जगह मिल नहीं पाते। तो उसे पैसे देने के पीछे हमारा तर्क क्या था? उस समय, मैंने इस पैसे को किराया मान लिया था। अगर हम कोई धर्मशाला या खेल का मैदान किराए पर लेते, तो क्या हमें तब भी पैसे खर्च नहीं करने पड़ते? वैसे भी हम उन जगहों पर नहीं मिल सकते और यह सुरक्षित भी नहीं है। यहाँ, यह मेजबान इस जगह की सुरक्षा में मदद करता है और हमारी सुरक्षा पक्की है, तो क्या परमेश्वर के घर का उसके कर्ज चुकाने के लिए कुछ पैसे खर्च करना उचित है? (हाँ, यह उचित है।) बात बस इतनी है कि पैसे ईमानदार तरीके से नहीं दिए गए थे। लेकिन, बड़े लाल अजगर के देश जैसे परिवेश में ऐसा करना अक्सर जरूरी होता है।

कुछ लोगों में बुरी मानवता होती है और वे मेजबानी करने का कर्तव्य निभाने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होते। हम उन्हें उस स्थान की रक्षा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं जहाँ हम हैं, इसलिए हमें उन्हें परिस्थिति का थोड़ा लाभ उठाने देना चाहिए। लेकिन, क्या लाभ उठाने के बाद भी वे उद्धार पा सकते हैं? नहीं, वे नहीं पा सकते। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर उन्हें नहीं बचाएगा, बल्कि ऐसा व्यक्ति उद्धार नहीं पा सकता। वे सभी को धोखा देते हैं और सभी का लाभ उठाते हैं। जब वे अपने कर्तव्य निभाते हैं और कुछ अच्छे कर्म करते हैं, तो हमेशा उसमें से कुछ वाँछनीय चीज धोखे से ले लेते हैं, और चाहे वे किसी से भी मिलें, वे केवल लाभ उठाने और कभी भी नुकसान न सहने के सिद्धांत के हिसाब से चलते हैं। परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभाने के लिए वे इसी सिद्धांत का पालन करते हैं। तो, ये “अच्छे कर्म” कहाँ से आते हैं? परमेश्वर का घर इन्हें खरीदता और इनके लिए पैसे देता है, न कि ये लोग खुद अच्छे कर्म तैयार करते हैं; वे अच्छे कर्म तैयार नहीं करते। वे एक स्थान उपलब्ध कराते हैं, जिसके लिए परमेश्वर का घर पैसे खर्च करता है, और इसे किराया मानता है। इसका अच्छे कर्मों से कोई लेना-देना नहीं है, और यह उनका अच्छा कर्म नहीं है। जब कोई व्यक्ति परमेश्वर के घर की ओर से भाई-बहनों के लिए जगह उपलब्ध कराने का दिखावा करते हुए धोखाधड़ी से परमेश्वर के घर से पैसे या चीजें प्राप्त करता है, तो यह किस तरह का व्यवहार है? इस तरह के व्यक्ति का चरित्र कैसा होता है? क्या उसका व्यवहार परमेश्वर द्वारा याद रखे जाने योग्य है? लोगों के दिलों में और परमेश्वर के दिल में उसके चरित्र की श्रेणी क्या है? तुम्हें अच्छे कर्म तैयार करने चाहिए—तुम अपनी मंजिल की खातिर अच्छे कर्म तैयार करते हो, और तुम जो कुछ भी करते हो वह तुम्हारे अपने लिए है, दूसरों के लिए नहीं। तुम्हें जो करना चाहिए, उसे करके तुम्हें पहले ही इनाम मिल चुका है, और तुमने वह वाँछित चीज पा ली है जो तुम प्राप्त करना चाहते थे, तो अब परमेश्वर तुम्हें अपने दिल में कैसे देखता है? तुम अच्छे काम अपने हित में कुछ हासिल करने के लिए करते हो, सत्य या जीवन पाने के लिए नहीं, परमेश्वर को संतुष्ट करने की बात तो छोड़ ही दो। क्या परमेश्वर अभी भी इस तरह के लोगों को बचा सकता है? नहीं, वह नहीं बचा सकता। वे बस एक मामूली-सा अच्छा कर्म तैयार करते हैं और एक मामूली-सा दायित्व और कर्तव्य निभाते हैं, फिर भी अपने हाथ फैलाते हुए परमेश्वर के घर से पैसे माँगते हैं, वे परमेश्वर के घर से अठन्नी-चवन्नी के लिए मोलभाव करते हैं, परमेश्वर के घर को धोखा देने और वाँछनीय चीजें हासिल करने के लिए तमाम तरह के तरीके सोचते हैं, और ध्यान रखते हैं कि उन्हें कभी भी नुकसान न हो, मानो कि वे कोई व्यापार कर रहे हों। इसलिए, यह अच्छा कर्म एक अच्छा कर्म नहीं है—यह बुरे कर्म में बदल गया है, और न केवल परमेश्वर इसे याद नहीं रखेगा, बल्कि वह इन लोगों से उनका बचाए जाने का अधिकार भी खत्म कर देगा और छीन लेगा। जब उस मेजबान ने परमेश्वर के घर से अपना कर्ज चुकवाया था, तो क्या यह थोड़ी धोखाधड़ी की प्रकृति थी? यही तो मसीह-विरोधी करते हैं। जब उन्हें पैसे चाहिए होते हैं, तो वे इसे खुले तौर पर नहीं माँगते; बल्कि, वे धोखाधड़ी की प्रकृति वाले तरीके आजमाते हैं, चीजों को जबरन वसूलने के अवसर का लाभ उठाते हैं। क्या परमेश्वर उन लोगों को बचाता है जो परमेश्वर की भेंटों को जबरन वसूलते हैं? (नहीं, वह नहीं बचाता।) अगर ये लोग पश्चात्ताप करते हैं और उनमें सच्चा विश्वास जगता है, तो क्या उन्हें बचाया जाना चाहिए? (नहीं।) क्यों? (यह तथ्य कि ये लोग परमेश्वर के घर के प्रति धोखाधड़ी कर सकते हैं, इसका मतलब है कि परमेश्वर के लिए उनके दिलों में कोई जगह नहीं है—वे पक्के छद्म-विश्वासी हैं।) क्या छद्म-विश्वासी पश्चात्ताप करेंगे? ऐसे छद्म-विश्वासी जो मसीह-विरोधी हैं, क्या वे पश्चात्ताप नहीं करेंगे। उनके हर काम के केंद्र में उनके अपने हित हैं, और अगर वे मर गए, तो भी पश्चात्ताप नहीं करेंगे। वे नहीं मानते कि उन्होंने कोई गलती की है, न ही वे यह मानते हैं कि उन्होंने कोई बुरा काम किया है, तो वे किस बात के लिए पश्चात्ताप करेंगे? पश्चात्ताप उन लोगों के लिए है जिनमें मानवता है, जिनके पास अंतरात्मा और विवेक है, और जो अपनी भ्रष्टता को स्पष्ट रूप से देखकर इसे स्वीकार सकते हैं। जब उस मेजबान परिवार ने एक मामूली-सा कर्तव्य निभाया, तो उसमें से कुछ वाँछनीय चीज धोखे से ले ली, और उन्होंने इस अवसर को गंवाया नहीं। वे बड़े शातिर ठग थे। यह चौथा मामला है।

मामला पाँच : परमेश्वर के घर का काम करने के लिए वेतन माँगना

चीन की मुख्यभूमि में, कुछ ऐसे काम हैं जो काफी खतरनाक और जोखिम भरे हैं, और जिन्हें करने के लिए कुछ समझदार और योग्य लोगों की जरूरत होती है। उस समय, एक व्यक्ति था जिसके पास ये योग्यताएँ थीं, इसलिए ऊपरवाले ने उसके लिए कुछ काम करने की व्यवस्था की। जब वह यह काम कर रहा था, तो उसने एक अनुरोध करते हुए कहा कि जब से उसने यह काम करना शुरू किया है, वह रोज अपनी नियमित नौकरी पर नहीं जा पा रहा है, और उसके परिवार को गुजारा करने में थोड़ी मुश्किल हो रही है। परमेश्वर के घर ने उसे जीवन-यापन के लिए कुछ पैसे दिए, वह इससे बहुत खुश था और उसने वह काम संभाल लिया जो उसे दिया गया था; लेकिन, उसका प्रदर्शन केवल औसत दर्जे का था। कुछ समय के बाद, उसके परिवार को गुजारा करने में तो कोई समस्या नहीं आई, मगर कोई और समस्या सामने आई जिसे उसने परमेश्वर के घर के सामने रखा, और परमेश्वर के घर ने उसे जीवनयापन के लिए कुछ और पैसे दिए, ताकि वह अपना गुजारा चला सके। अनिच्छा से ही सही, वह अपना काम जारी रखने के लिए सहमत तो हो गया, मगर उसने इसे कितनी अच्छी तरह से किया? सब गड़बड़ हो गया था। अगर उसे कुछ करने का मन करता तो वह थोड़ा-बहुत काम करता और अगर उसे कुछ करने का मन नहीं करता तो वह बिल्कुल भी काम नहीं करता था। इससे काम में देरी हुई और कलीसिया के काम को कुछ नुकसान उठाना पड़ा, और दूसरे लोगों को जाकर इसे ठीक करना पड़ा। बाद में, परमेश्वर के घर ने उससे संपर्क किया और उसे अपने काम में मेहनत करने के लिए कहा, और यह भी कहा कि परमेश्वर का घर उसकी किसी भी कठिनाई को हल करने में उसकी मदद करता रहेगा। उसने परमेश्वर के घर से सीधे तौर पर यह बात नहीं कही, बल्कि कुछ भाई-बहनों से निजी तौर पर कहा, “क्या मुझे बस जीवनयापन के खर्च की ही जरूरत है? उस थोड़े-से पैसे से कौन-सी बड़ी समस्या हल हो सकती है? यह काम करके मैं परमेश्वर के घर के लिए इतनी बड़ी समस्या हल कर रहा हूँ। परमेश्वर के घर को मेरी बड़ी समस्याओं को भी हल करना चाहिए। अभी मेरे बेटे के पास ट्यूशन के लिए पैसे नहीं हैं और यह समस्या हल नहीं हुई है। मुझे इन थोड़े-से पैसों की कमी नहीं है।” ये वही चीजें थीं जो उसने वास्तव में सोची थी, मगर वह परमेश्वर के घर से मुँह पर ये सब नहीं कह सका; बल्कि, जब उसने अकेले में भड़ास निकाली तब इस बात का खुलासा हुआ। इस परिस्थिति को कैसे सुलझाया जाना चाहिए? क्या परमेश्वर के घर को उसका इस्तेमाल करते रहना चाहिए, या किसी और को ढूँढ़ना चाहिए? (किसी और को ढूँढ़ना चाहिए।) क्यों? क्योंकि उसका चरित्र और सार पहले ही बेनकाब हो चुका था। वह बस यही नहीं चाहता था कि परमेश्वर का घर उसके परिवार की आजीविका सँभाले, बल्कि वह चाहता था कि परमेश्वर का घर उसके बेटे की ट्यूशन फीस भी भरे, और बाद में उसने कहा कि उसकी पत्नी बीमार है और वह चाहता था कि परमेश्वर का घर उसके इलाज के लिए भी पैसे दे। क्या उसकी माँग बढ़ती नहीं जा रही थी? उसने सोचा कि परमेश्वर के घर के लिए यह छोटा-सा काम करके उसने एक बड़ा योगदान दिया है, और परमेश्वर के घर को बिना शर्त उसकी हर जरूरत पूरी करनी चाहिए। अगर वह कोई नियमित नौकरी करता, तो क्या वह अपने बेटे को यूनिवर्सिटी भेजने में सक्षम होता? क्या वह अपनी पत्नी के इलाज का खर्च उठा पाता? जरूरी तो नहीं है। फिर, जब उसने परमेश्वर के घर में यह छोटा-सा काम किया, तो उसने लगातार परमेश्वर के घर से पैसे क्यों माँगे? वह क्या सोच रहा था? इस मामले पर उसका क्या नजरिया था? उसने सोचा कि उसके अलावा, परमेश्वर के घर में यह काम करने वाला कोई और नहीं होगा, इसलिए उसे इस अवसर का लाभ उठाकर परमेश्वर के घर से और पैसे माँगने के बहाने बनाने चाहिए, उसे इसे व्यर्थ ही नहीं छोड़ना चाहिए, और अगर वह चूक गया तो यह अवसर चला जाएगा। क्या उसका यही मतलब नहीं था? उसने सोचा कि यह काम करना नौकरी करके पैसे कमाने जैसा है, इसलिए उसे परमेश्वर के घर से पैसे वसूलना चाहिए। बाद में, जब उसे एहसास हुआ कि वह परमेश्वर के घर से पैसे नहीं वसूल सकता, तो उसने अपना काम नहीं किया। क्या यह वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करने वाला व्यक्ति है? (नहीं।)

जो लोग परमेश्वर में सच्चा विश्वास करते हैं, वे अपना कर्तव्य निभाते समय कठिनाई सहने से नहीं डरते। कुछ लोग उन कठिनाइयों का जिक्र नहीं करते जो कर्तव्य निभाने के दौरान उनके परिवारों को सहनी पड़ती हैं। गरीब इलाकों में कुछ लोग मेजबानी का कर्तव्य करते हैं, और जब भाई-बहन आते हैं और खाने के लिए चावल नहीं होते, तो वे बाहर जाकर पैसे उधार ले लेते हैं, मगर कुछ कहते नहीं हैं। अगर वे कुछ कहते, तो क्या परमेश्वर का घर उन्हें पैसे दे सकता था? (हाँ, दे सकता था।) परमेश्वर का घर भाई-बहनों की मेजबानी का जरूरी खर्चा उठा सकता है। तो, वे कुछ कहते क्यों नहीं? अगर तुम उन्हें पैसे देते हो, तो वे मना कर देंगे। बाहर जाकर पैसे उधार लेने के बाद वे धीरे-धीरे खुद ही उधारी चुका देंगे। उन्हें परमेश्वर के घर से पैसे नहीं चाहिए। मसीह-विरोधी इसके एकदम उलट होते हैं। वे शर्तें रखते हैं और कोई भी काम करने से पहले ही अपने हाथ फैलाकर माँगने लगते हैं। उनके लिए हाथ फैलाना इतना आसान कैसे है? वे इतने “आत्मविश्वास” से अपने हाथ कैसे फैला सकते हैं? ऐसे लोगों को कोई शर्म नहीं होती, है ना? कुछ पैसे माँगने के बाद, उन्हें और चाहिए। अगर उन्हें पैसे नहीं दिए गए तो वे कोई काम नहीं करेंगे—जब तक उन्हें फायदा नहीं दिखेगा, वे जरा-सी भी मेहनत नहीं करेंगे : “मैं उतना ही काम करूँगा जितने के लिए मुझे पैसे मिले हैं। अगर तुम मुझे पैसे नहीं देते, तो मुझसे अपना कोई और काम करवाने की मत सोचना। यह मेरे लिए एक काम है, और अगर मुझे इससे कोई फायदा नहीं होगा, तो मैं इसे नहीं करूँगा। मैं अपना कर्तव्य निभाने के लिए खुद को जोखिम में डालता हूँ, तो इसके लिए मुझे कुछ मिलना ही चाहिए, और यह मेरे काम के हिसाब से मिलना चाहिए, उससे कम नहीं। मुझे नुकसान नहीं होना चाहिए!” तो, उन्हें वे चीजें माँगनी पड़ती हैं, जिनके लिए वे खुद को हकदार मानते हैं, और उन्हें माँगने के लिए बहाने खोजने पड़ते हैं—उन्हें माँगने के लिए अपना दिमाग लगाना पड़ता है, और तमाम तरह के तरीकों के बारे में सोचना पड़ता है। अगर उन्हें ये दिए जा सकते हैं तो यह और भी बेहतर है, और अगर नहीं दिए जा सकते, तो वे सब कुछ छोड़-छाड़कर चले जाएँगे, और उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। इसके अलावा, उन्हें लगता है कि परमेश्वर के घर द्वारा किए जाने वाले सभी कामों में जोखिम शामिल है, और अगर परमेश्वर का घर उन्हें वे चीजें नहीं देता जो वे माँगते हैं, तो परमेश्वर के घर को डर रहेगा कि वे उसकी रिपोर्ट कर देंगे, और उसके पास कोई और उपयुक्त व्यक्ति नहीं है, इसलिए उसे उनका ही इस्तेमाल करना होगा, और अगर परमेश्वर का घर उन्हें इस्तेमाल करता है तो उन्हें पैसे भी देने होंगे। क्या यह थोड़ी धोखाधड़ी की प्रकृति नहीं है? क्या यह थोड़ी शोषण की प्रकृति नहीं है? क्या इस तरह के लोगों को विश्वासियों में गिना जाता है? ये छद्म-विश्वासी हैं जो परमेश्वर के घर का हिस्सा नहीं हैं—वे कलीसिया के शुभचिंतक भी नहीं हैं। जब कलीसिया के शुभचिंतक देखते हैं कि विश्वासी महान लोग हैं, तो वे उन्हें सुरक्षा प्रदान करने, और कुछ काम करने में उनकी मदद करते हैं। इस तरह के लोगों को थोड़ा आशीष दिया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर, मसीह-विरोधी केवल वाँछनीय चीजें पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास करते हैं। अगर उन्हें वाँछनीय चीजें नहीं मिल सकती हैं, तो वे कोई कर्तव्य नहीं करेंगे, कोई दायित्व नहीं निभाएँगे, और खुद को बिल्कुल भी नहीं खपाएँगे। जब परमेश्वर का घर उनके लिए कोई कर्तव्य निभाने की व्यवस्था करता है, तो वे सबसे पहले यही पूछते हैं कि इसके बदले कौन-सी वाँछनीय चीजें मिलेंगी, और अगर इसके बदले कोई भी वाँछनीय चीज नहीं मिलती, तो वे यह काम नहीं करेंगे। उनके और अविश्वासी संसार के ठगों के बीच क्या अंतर है? ये लोग अभी भी बचाए जाना और परमेश्वर का आशीष पाना चाहते हैं। क्या वे नामुमकिन चीजों की माँग नहीं कर रहे हैं? अगर इन लोगों के पास नीच चरित्र नहीं होता और वे बेशर्म नहीं होते, तो उनके दिल ऐसे विकृत तरीके से काम करने के बारे में कैसे सोच पाते? उनका अपना कर्तव्य करने के प्रति ऐसा रवैया कैसे होता? क्या तुम लोग ये काम करने में सक्षम हो? (हाँ, हम भी सक्षम हैं।) किस हद तक? क्या कोई सीमा है? तुम्हें कब लगेगा कि अब मामला गंभीर हो गया है, और तुम इन चीजों को अब और नहीं कर सकते? (कभी-कभी मेरा दिल धिक्कारता है, और मेरी अंतरात्मा मुझे दोषी ठहराती है। ऐसे समय भी होते हैं जब मुझे डर लगता है कि दूसरे लोग मेरे द्वारा किए गए कामों को उजागर कर देंगे, इसलिए मैं अब ऐसा नहीं करता।) लोग चाहे जो भी करें, उनका चरित्र बेहद महत्वपूर्ण है। जिस व्यक्ति में रत्ती भर भी शर्म नहीं होती, वह किसी भी तरह का बुरा काम करने में सक्षम होता है। ऐसे लोग पूरी तरह से बुरे व्यक्ति होते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, उसकी कोई सीमा नहीं होती और वे अपनी अंतरात्मा के अनुसार काम नहीं करते। वे किस तरह के लोग हैं, जिनकी मानवता में अंतरात्मा नहीं है? वे जानवर और राक्षस हैं और परमेश्वर उन्हें नहीं बचाएगा। जो लोग परमेश्वर की भेंटों को धोखे से हासिल करने और परमेश्वर के काम करते समय उसकी भेंटों को जबरन वसूलने में सक्षम हैं, और जो परमेश्वर के घर से पैसे माँगते हैं, वे अच्छे लोग नहीं हैं। उन्हें लगता है कि परमेश्वर के घर को धोखा देना आसान है और परमेश्वर के घर की चीजों की देखभाल करने के लिए जिम्मेदार कोई नहीं है और परमेश्वर के घर की चीजों का कोई मालिक नहीं है, इसलिए वे अपने मन से इन चीजों को अपने पास रख सकते हैं और धोखे से इन्हें हासिल कर सकते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करके उन्होंने लाभ उठा लिया है। क्या यह लाभ उठाना वाकई इतना आसान है? तुमने जो लाभ हासिल किया वह बड़ा नहीं था, मगर इसका क्या परिणाम है? अपना जीवन गँवाना।

अगर किसी व्यक्ति में वाकई थोड़ी-सी भी मानवता और अंतरात्मा है तो क्या वह ये काम कर सकेगा? तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, फिर भी उसे धोखा देने और उसकी भेंटों को जबरन वसूलने में सक्षम हो। तुम किस तरह के व्यक्ति हो? क्या तुम एक इंसान हो भी? इस तरह की हरकतें सिर्फ राक्षस ही करते हैं। जानवर ये सब नहीं करते। कुत्ते को ही देखो। कुत्ते के मालिक ने उसे पाला और वह अपने मालिक के लिए घर की रखवाली करता है। जब कोई बुरा व्यक्ति आता है, तो वह उस पर भौंकता है और हमला करता है। जो कोई भी उसके मालिक की चीजें छीनता है, वह उसका पीछा करता है। जब उसके मालिक के घर में मुर्गियाँ, बत्तखें और हँस भाग जाते हैं, तो वह उन्हें ढूँढ़ने में मदद करता है। जब उसके मालिक के घर में सूअर लड़ रहे होते हैं, तो वह उनकी लड़ाई रोकने की कोशिश करता है। कुत्ता जानता है कि उसका मालिक चाहता है कि वह सूअरों पर नजर रखे, इसलिए वह यह जिम्मेदारी निभाने में सक्षम है। कुत्ता अपने मालिक से बहस कर यह नहीं कहता, “मैंने तुम्हारे लिए सूअरों पर नजर रखी, तो तुम मुझे कुछ मुर्गी या कुछ और खाने को क्यों नहीं देते?” वह ऐसा कभी नहीं कहता। एक कुत्ता भी अपने मालिक के घर की रक्षा करने में सक्षम है, और बिना किसी इनाम के अपने मालिक के प्रति अपने दायित्वों को निभाता है, मगर ये लोग जानवरों के बराबर भी नहीं हैं। एक छोटा-सा दायित्व निभाने के बाद, उन्हें लगता है कि उन्हें नुकसान हुआ है, और कुछ जिम्मेदारियों को पूरा करने और थोड़ी मेहनत करने के बाद ही, वे असहज महसूस करने लगते हैं, उन्हें लगता है कि व्यवस्था सही नहीं थी, और उनका इस्तेमाल किया गया है, तो वे हिसाब बराबर करने के लिए तमाम तरह के तरीकों के बारे में सोचते हैं। जब तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो परमेश्वर तुम्हारी रक्षा और तुम्हारा मार्गदर्शन करता है, और तुम्हें बहुत सारे सत्य प्रदान करता है। तुम उसका प्रतिदान करने के बारे में कैसे नहीं सोच सकते? तुम उसके प्रतिदान के बारे में नहीं सोचते, मगर परमेश्वर इस मामले को तूल नहीं देता है। लेकिन जब तुम एक छोटा-सा दायित्व निभाते हो, तो हिसाब बराबर करने के लिए परमेश्वर के पास चले जाते हो। एक छोटा-सा दायित्व निभाकर तुम चीजों को जबरन हड़पना और धोखाधड़ी से कुछ हासिल करना चाहते हो—तुम इसकी भरपाई के लिए तमाम तरह के तरीके सोचते हो। ऐसा करके मरना चाहते हो क्या? क्या परमेश्वर ने तुम्हें जो दिया है वह बहुत ज्यादा नहीं है? लोगों की अभिव्यक्तियों के संदर्भ में, वे किस चीज के हकदार हैं? क्या लोगों के पास वे चीजें जिनका वे आनंद लेते हैं और जो आज उनके पास हैं वे इसलिए हैं क्योंकि वे उनके हकदार थे? नहीं। ये वे चीजें हैं जो परमेश्वर ने तुम्हें दी हैं और ये वे आशीष हैं जो उसने तुम्हें दिए हैं। तुम पहले से ही बहुत कुछ पा चुके हो। परमेश्वर ने बदले में कुछ माँगे बिना तुम्हें जीवन, सत्य और मार्ग दिया है। तुमने उसका ऋण कैसे चुकाया है? जब तुम अपने दायित्वों और कर्तव्यों में से कुछ भी करते हो, तो तुम्हें अंदर से लगता है कि इसे सहना मुश्किल है और तुम्हें नुकसान हुआ है, और तुम इसकी भरपाई के लिए तमाम तरीकों के बारे में सोचते हो। अगर तुम इसकी भरपाई चाहते हो तो परमेश्वर तुम्हें बदले में कुछ दे सकता है, मगर इसे पाने के बाद क्या तुम अभी भी बचाए जा सकोगे? एक दिन ऐसा आएगा जब ये लोग ठीक से जान लेंगे कि सबसे महत्वपूर्ण क्या है और सबसे मूल्यवान क्या है। जिन लोगों में मसीह-विरोधी का सार है, वे कभी भी सत्य का मूल्य नहीं जान पाएँगे। जब उनके परिणाम का खुलासा करने वाला दिन आएगा, और जब सब कुछ बेनकाब हो जाएगा और सार्वजनिक हो जाएगा, तब उन्हें पता चलेगा। क्या तब तक बहुत देर नहीं हो चुकी होगी? सभी चीजों का परिणाम निकट है, और सभी चीजें गुजर जाएँगी। केवल परमेश्वर के वचन और उसका सत्य अनंत काल तक बने रहेंगे। जिन लोगों के पास सत्य है और जो परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करते हैं, वे उसके वचनों और उसके सत्य के साथ बने रहेंगे। यह परमेश्वर के वचनों का मूल्य और शक्ति है। लेकिन, मसीह-विरोधी इस तथ्य को कभी स्पष्ट रूप से नहीं समझेंगे, इसलिए वे परमेश्वर पर विश्वास करने का दिखावा करते हुए विभिन्न लाभ पाने के लिए अपना दिमाग खपाते हैं, तमाम तरह के तरीकों के बारे में सोचते हैं और हर मुमकिन उपाय करते हैं, और परमेश्वर की भेंटों को पाने के लिए और भी ज्यादा भद्दे धोखाधड़ी के तरीके इस्तेमाल करते हैं, और उसकी भेंटों को हड़प लेते हैं। इन सभी लोगों के क्रियाकलाप और व्यवहार परमेश्वर की किताब में अक्षरशः दर्ज हैं। जब उनके परिणामों का खुलासा होने का दिन आएगा, तो परमेश्वर इन्हीं अभिलेखों के आधार पर हरेक व्यक्ति का परिणाम निर्धारित करेगा। ये सभी बातें सत्य हैं। तुम चाहे इसे मानो या न मानो, इन सभी बातों का खुलासा होकर रहेगा। यह पाँचवाँ मामला है। यह आदमी किस तरह का व्यक्ति है? उसका चरित्र नेक है या नीच? (नीच।) परमेश्वर की नजरों में, वह सम्माननीय व्यक्ति नहीं है; वह नीच है। उसे संक्षेप में “कमीना इंसान” कहते हैं।

मामला छह : भोजन और वस्त्रों की खातिर पद हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना

परमेश्वर में विश्वास करने के बाद, बहुत से लोग हमेशा रुतबे का अनुसरण करते हैं और चाहते हैं कि दूसरे लोग उनके बारे में ऊँचा सोचें। परमेश्वर के घर में, वे हमेशा भीड़ से अलग दिखना और सबसे आगे रहना चाहते हैं। इन चीजों की खातिर, वे अपने परिवार छोड़ देते हैं और अपने करियर त्याग देते हैं, कठिनाई झेलते हैं और कीमत चुकाते हैं, फिर आखिर में उनकी इच्छा पूरी हो जाती है और वे अगुआ बन जाते हैं। अगुआ बनने के बाद, इन लोगों का जीवन वास्तव में बदल जाता है। उनके मन में अधिकारियों की जो छवि और शैली थी, उनके कपड़े पहनने के ढंग से लेकर तैयार होने, बात करने और काम करने के तरीके तक, वे उनके हर पहलू को अभिव्यक्त करते हैं। वे एक अधिकारी की तरह बात करना सीखते हैं, लोगों को आदेश देना सीखते हैं, और यह सीखते हैं कि अपने निजी मामलों को लोगों से कैसे संभलवाएँ। सरल शब्दों में कहूँ तो, वे अधिकारी बनना सीखते हैं। जब वे अगुआ बनने के लिए किसी स्थान पर जाते हैं, तो इसका मतलब है कि वे अधिकारी बनने के लिए वहाँ जा रहे हैं। अधिकारी बनने का क्या अर्थ है? वे “भोजन और वस्त्रों की खातिर पद हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं।” यह भौतिक सुखों से संबंधित मामला है। अगुआ बनने के बाद, उनके जीवन में पहले से क्या बदलाव आया है? उनका खान-पान, पहनावा, और उनकी इस्तेमाल की चीजें, ये सब बदल गया है। खाते समय, वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि खाना पौष्टिक और स्वादिष्ट हो। वे अपने कपड़ों के ब्रांड और स्टाइल का खास ध्यान रखते हैं। एक साल तक किसी स्थान पर अगुआ रहने के बाद, वे थुलथुल और मोटे हो जाते हैं; वे सिर से पैर तक डिजाइनर कपड़ों में लिपटे होते हैं; और उनके सेल फोन, कंप्यूटर और उनके घर में मौजूद उपकरण सभी विलासिता वाले और महँगे होते हैं। क्या अगुआ बनने से पहले उनकी यह स्थिति थी? (नहीं।) अगुआ बनने के बाद उन्होंने पैसे कमाने की कोशिश नहीं की, तो फिर उनके पास ये सब चीजें खरीदने के लिए पैसे कहाँ से आए? क्या भाई-बहनों ने उन्हें ये चीजें दान में दीं, या परमेश्वर के घर ने उन्हें ये चीजें सौंपी? क्या तुम लोगों ने कभी परमेश्वर के घर को हर अगुआ और कार्यकर्ता को ये चीजें सौंपने के बारे में सुना है? (नहीं।) तो, उन्हें ये चीजें कैसे मिलीं? चाहे जो भी हो, उन्होंने ये चीजें अपनी मेहनत से हासिल नहीं की थीं; बल्कि, ये सब चीजें उन्हें रुतबा पाने और “अधिकारी” बनने के बाद—जहाँ उन्होंने रुतबे के लाभों का आनंद लिया—दूसरों से जबरन वसूली करके, धोखाधड़ी से, और चीजें जब्त करके मिलीं। हर जगह कलीसियाओं में, क्या किसी भी पद पर इस तरह के अगुआ और कार्यकर्ता थे जिनसे तुम लोगों की मुलाक़ात हुई हो? जब वे पहली बार अगुआ बनते हैं तो उनके पास कुछ भी नहीं होता है, मगर तीन महीनों के भीतर उनके पास उन्नत ब्रांड के कंप्यूटर और सेल फोन आ जाते हैं। अगुआ बनने के बाद, कुछ लोग सोचते हैं कि उन्हें उच्च-स्तरीय सुख-सुविधाओं का आनंद लेना चाहिए—जब वे बाहर जाएँ तो उन्हें कार से सफर करना चाहिए; वे जिन कंप्यूटर और सेल फोन का इस्तेमाल करते हैं, वे औसत लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कंप्यूटर और सेल फोन की तुलना में बेहतर होने चाहिए, वे उन्नत ब्रांड के होने चाहिए, और जब मॉडल पुराना हो जाए तो उन्हें नया मॉडल लेना चाहिए। क्या परमेश्वर के घर में ये नियम हैं? परमेश्वर के घर में ये नियम कभी नहीं थे, और ऐसा एक भी भाई या बहन नहीं है जो ऐसा सोचता हो। तो ये चीजें जिनका ये अगुआ आनंद लेते हैं, कहाँ से आती हैं? एक बात तो यह है कि उन्होंने इनमें से कुछ चीजें भाई-बहनों से जबरन वसूली करके पाई हैं और कुछ चीजें परमेश्वर के घर का काम करने की आड़ में अमीर लोगों से अपने लिए खरीदवाई हैं। इसके अलावा, उन्होंने खुद ही इन चीजों को भेंटों का दुरुपयोग करके और उनकी चोरी करके खरीदा है। क्या वे ऐसे घिनौने लोग नहीं हैं जो धोखाधड़ी से खाने-पीने की चीजें हासिल करते हैं? क्या यह उन लोगों से जरा-सा भी अलग है जिनके बारे में मैंने पिछले कुछ मामलों में बात की थी? (नहीं।) उनमें क्या समानता है? उन सबने भेंटों का गबन करने और भेंटें जबरन वसूलने के लिए अपने पद का इस्तेमाल किया था। कुछ लोग कहते हैं, “परमेश्वर के घर में काम करके और अगुआ या कार्यकर्ता बनकर, क्या वे इन चीजों का आनंद लेने के हकदार नहीं हैं? क्या वे परमेश्वर के साथ उसकी भेंटों का हिस्सा लेने के हकदार नहीं हैं?” मुझे बताओ, क्या वे इसके हकदार हैं? (नहीं।) अगर उन्हें परमेश्वर के घर का काम करने के लिए कुछ चीजें खरीदनी हैं, तो ऐसे में परमेश्वर के घर के अपने नियम हैं जो कहते हैं कि वे ये चीजें खरीद सकते हैं, मगर क्या ये लोग इन नियमों को ध्यान में रखते हुए ये चीजें खरीद रहे हैं? (नहीं।) तुम लोगों को कैसे पता कि वे ऐसा नहीं कर रहे हैं? (अगर उन्हें वाकई काम के लिए इसकी जरूरत होती, तो वे सोचते कि अगर किसी चीज से काम हो सकता है तो वह ठीक है, मगर मसीह-विरोधी उन्नत डिजाइनर चीजें चाहते हैं, और वे सिर्फ सबसे अच्छी चीजों का इस्तेमाल करते हैं। इस बात को देखें तो पता चलता है कि वे इन भौतिक चीजों का आनंद लेने के लिए अपने रुतबे का इस्तेमाल कर रहे हैं।) यह सही है। अगर काम के लिए जरूरत होती, तो कोई भी चीज जिससे काम हो जाए, ठीक है। उन्हें ऐसी फैंसी और महंगी चीजों का इस्तेमाल करने की क्या जरूरत है? साथ ही, जब उन्होंने ये चीजें खरीदीं, तो क्या अन्य लोगों ने फैसला लेने में भाग लिया और क्या वे इससे सहमत थे? क्या यह एक समस्या नहीं है? अगर अन्य लोगों ने फैसला लेने में भाग लिया होता, तो क्या वे सभी इन उन्नत चीजों को खरीदने के लिए उनके साथ सहमत होते? बिल्कुल नहीं। यह एकदम स्पष्ट है कि उन्होंने ये चीजें भेंटों की चोरी करके हासिल की हैं। यह बात बिल्कुल साफ है। वैसे भी, परमेश्वर के घर का एक नियम है—हरेक कलीसिया में, न तो भेंटों की सुरक्षा करना, न ही काम करने के लिए साझेदारी करना, कभी भी सिर्फ एक व्यक्ति का काम नहीं होता। तो, ये लोग अकेले, अपनी मर्जी से भेंटों का इस्तेमाल और उन्हें खर्च क्यों कर पाए? यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। क्या उनके द्वारा किए जाने वाले इन कामों की प्रकृति भेंटों की चोरी करने की नहीं है? उन्होंने दूसरे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की सहमति और स्वीकृति के बिना ही इन चीजों को खरीदा और हासिल किया, दूसरे लोगों को सूचित करना तो दूर की बात है, और किसी को इस बारे में पता तक नहीं लगा। क्या इसकी प्रकृति कुछ चोरी जैसी नहीं है? इसे भेंटों की चोरी करना कहते हैं। चोरी करना धोखा है। इसे धोखा क्यों कहते हैं? क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के घर का काम करने का झंडा फहराकर ये शानदार चीजें खरीदीं और उन्हें हासिल किया। इस तरह के व्यवहार को धोखाधड़ी कहते हैं, और यह धोखा है। क्या इसका इस तरह निरूपण करके मैंने हद पार कर दी है? क्या मैं बात का बतंगड़ बना रहा हूँ? (नहीं।) इतना ही नहीं, बल्कि कुछ समय तक किसी स्थान पर रहने के बाद इन तथाकथित अगुआओं को बहुत स्पष्ट रूप से पता चल जाता है कि वहाँ के भाई-बहन संसार में क्या काम करते हैं, उनके क्या सामाजिक संबंध हैं, और वे इन लोगों से ठगी करके क्या-क्या लाभ पा सकते हैं, और किन संबंधों का फायदा उठा सकते हैं। उदाहरण के लिए, कौन-कौन भाई-बहन किसी अस्पताल में, किसी सरकारी विभाग में या किसी बैंक में काम करते हैं, या कौन उद्यमी है, किसके परिवार के पास दुकान, कार या बड़ा घर वगैरह है, उन्हें इन चीजों का बहुत स्पष्ट रूप से पता चल जाता है। क्या ये चीजें इन अगुआओं के काम के दायरे में आती हैं? वे इन चीजों का पता लगाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? वे इन संबंधों का इस्तेमाल करना चाहते हैं और इन भाई-बहनों का फायदा उठाना चाहते हैं जिनके पास संसार में विशेष पद हैं, ताकि वे उनसे अपना काम करवा सकें, अपनी सेवा करवा सकें, और उनसे सुविधाएँ ले सकें। क्या तुम लोगों को लगता है कि वे कलीसिया का काम करने के लिए ऐसा कर रहे हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की कठिनाइयाँ दूर करने के लिए सत्य पर संगति कर रहे हैं? क्या वे यही कर रहे हैं? वे जो कुछ भी करते हैं उसके पीछे एक मंशा और उद्देश्य होता है। जब सच्चे अगुआ और कार्यकर्ता काम करते हैं, तो वे समस्याएँ सुलझाने और कलीसिया के काम को अच्छे से करने पर ध्यान देते हैं। वे उन चीजों पर ध्यान नहीं देते जिनका कलीसिया के काम से कोई लेना-देना नहीं है। वे बस यह पूछने पर ध्यान देते हैं कि कलीसिया में कौन अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभा रहा है, कौन अपने कर्तव्य में प्रभावी है, कौन सत्य स्वीकार सकता है और सत्य का अभ्यास कर सकता है, और कौन अपने कर्तव्य में वफादार है। फिर, वे उन्हें बढ़ावा देते हैं, और उन लोगों की जाँच-पड़ताल करते हैं जो व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करते हैं और सिद्धांत के अनुसार उनसे निपटते हैं। जो लोग इस तरह से अभ्यास करते हैं केवल वे ही सच्चे अगुआ और कार्यकर्ता होते हैं। क्या मसीह-विरोधी ये चीजें करते हैं? (नहीं।) वे क्या करते हैं? वे अपने लिए और अपने हितों की खातिर वाँछनीय चीजें इकट्ठा करने के लिए काम और तैयारियाँ करते हैं, मगर खुद को कलीसिया के काम में नहीं लगाते हैं, और इसे महत्व नहीं देते। इसलिए, किसी स्थान पर अपना पैर जमाने के बाद, वे काफी हद तक यह पता लगा लेते हैं कि कौन-से भाई-बहन उनके लिए क्या सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जो कोई भी दवा बनाने के कारखाने में काम करता है, वह उनके बीमार होने पर मुफ्त में दवाएँ दे सकता है, और उन्हें उच्च गुणवत्ता वाली विदेशी दवा दे सकता है; जो कोई भी बैंक में काम करता है, वह उनके लिए पैसों की जमा या निकासी का कार्य सुविधाजनक बना सकता है; वगैरह-वगैरह। उन्हें ये सारी चीजें बहुत स्पष्ट रूप से पता चल जाती हैं। वे इस बात की परवाह किए बिना कि इन लोगों की मानवता अच्छी है या नहीं, इन्हें अपने सामने इकट्ठा कर लेते हैं। जब तक ये लोग उनकी बात मानते हैं और उनके सहायक और समर्थक बनने के लिए तैयार रहते हैं, तब तक मसीह-विरोधी उन्हें वाँछनीय चीजें देंगे, और उन्हें अपने करीब रखेंगे और उनका भरण-पोषण और सुरक्षा करेंगे, जबकि ये लोग कलीसिया में इन मसीह-विरोधियों की स्थिति को मजबूत करने और इनकी ताकतों को बनाए रखने के लिए काम करते हैं। इसलिए, जब तुम यह देखना चाहते हो कि कलीसिया का कोई अगुआ वास्तविक कार्य कर रहा है या नहीं, तो उससे उस कलीसिया में भाई-बहनों की वास्तविक स्थिति के बारे में पूछो, और यह पूछो कि कलीसिया का काम कैसे चल रहा है, तो तुम स्पष्ट रूप से देख पाओगे कि क्या वह वास्तव में ऐसा व्यक्ति है जो वास्तविक कार्य करता है। कुछ लोगों को कलीसिया में भाई-बहनों के पारिवारिक मामलों और उनके जीवन स्तर का स्पष्ट रूप से पता होता है। अगर तुम उनसे पूछो कि कौन दवा कारखाने में काम करता है, किसके परिवार के पास दुकान है, किसके परिवार के पास कार है, किसके परिवार का बड़ा व्यवसाय है, या कौन किसी स्थानीय विभाग में काम करता है और कौन भाई-बहनों के लिए काम कर सकता है, तो वे तुम्हें सटीक रूप से बता सकते हैं। यदि तुम उनसे पूछो कि कौन सत्य का अनुसरण करता है, कौन अपने कर्तव्य में अनमना है, कौन मसीह-विरोधी है, कौन लोगों को जीतने की कोशिश करता है, कौन सुसमाचार का प्रचार करने में प्रभावशाली है, या स्थानीय स्तर पर कितने संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता मौजूद हैं, तो वे ये चीजें नहीं जानते। ये किस तरह के लोग हैं? वे जिस स्थान पर हैं, वहाँ सभी सामाजिक संबंधों का उपयोग करना चाहते हैं, और उन्हें एक छोटे सामाजिक समूह में एकजुट करना चाहते हैं। इसलिए, जिस स्थान पर ये अगुआ हैं उसे कलीसिया नहीं कहा जा सकता। जब वे अपना काम कर चुके होते हैं, तो यह एक सामाजिक समूह बन जाता है। जब ये लोग मिलते हैं, तो वे अपने दिलों को नहीं खोलते और एक-दूसरे की अनुभवजन्य समझ के बारे में संगति नहीं करते; इसके बजाय, वे देखते हैं कि किसके अधिक मजबूत संबंध हैं, समाज में किसकी उच्च प्रतिष्ठा है और कौन बहुत संपन्न है, समाज में कौन जाना-माना है, समाज में किसका प्रभाव है, और कौन अगुआ को विशेष रूप से सुविधाजनक सेवाएँ और वाँछनीय चीजें उपलब्ध करवा सकता है। ये लोग जो भी हों, अगुआ के दिल में उनकी प्रतिष्ठा है। क्या यही मसीह-विरोधी का काम नहीं है? (बिल्कुल है।) मसीह-विरोधी क्या कर रहे हैं? क्या वे कलीसिया का निर्माण कर रहे हैं? वे कलीसिया को तोड़ रहे हैं और नष्ट कर रहे हैं, और परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा कर रहे हैं। वे अपना स्वतंत्र राज्य, अपना निजी समूह और गुट बना रहे हैं। मसीह-विरोधी यही करते हैं।

मैं इतने सालों से तुम लोगों के संपर्क में हूँ, मगर क्या मैं यह पूछता हूँ कि तुम्हारे परिवार क्या करते हैं, तुम्हारे परिवार कितने संपन्न हैं और तुम लोगों की पृष्ठभूमि क्या है? (नहीं।) मैं ये चीजें क्यों नहीं पूछता? ये चीजें पूछने का कोई मतलब नहीं है। परमेश्वर का घर समाज नहीं है। यहाँ दूसरों को खुश करने या दूसरों के साथ संबंध बनाने की कोई जरूरत नहीं है। इन चीजों के बारे में पूछने का परमेश्वर में विश्वास करने से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर के घर को समाज में मत बदलो। तुम्हारी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है, चाहे वह गरीब रही हो या समृद्ध, तुम किस परिवेश में रहते हो, चाहे वह शहर हो या कोई ग्रामीण इलाका, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते, तो चाहे समाज में तुम्हारा कितना भी ऊँचा स्थान रहा हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं इस पर ध्यान नहीं दूँगा। जब मैं लोगों से बात करता हूँ, तो कभी उनके परिवार की स्थिति के बारे में नहीं पूछता। अगर वे इस बारे में बात करना चाहते हैं, तो मैं सुनता हूँ, मगर मैंने कभी भी इन चीजों को महत्वपूर्ण जानकारी नहीं माना है जिसके बारे में मुझे पूछना चाहिए; लोगों का इस्तेमाल करने के लिए किसी तरह की जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश करना तो दूर की बात है। लेकिन, जब मसीह-विरोधी इन चीजों के बारे में पूछते हैं तो उनका इरादा सिर्फ बातचीत करने का नहीं होता; बल्कि, वे कुछ वाँछनीय चीजें बटोरने के लिए ऐसा कर रहे होते हैं। उदाहरण के लिए, जिस किसी के परिवार के पास स्वास्थ्य उत्पाद बेचने वाली दुकान है और वह उन्हें थोक भाव पर स्वास्थ्य उत्पाद बेच सकता है, वे इस परिवार के साथ घुल-मिल जाते हैं; या जिस किसी के पास कोई ऐसा दोस्त है जिससे वे अच्छी चीजें खरीदने में मदद ले सकते हैं, वे उसे याद रखेंगे। वे इन “संबंधों” और इन लोगों की एक सूची रखते हैं जो उन्हें काफी प्रतिभाशाली लगते हैं, और अहम पलों में उनका इस्तेमाल करते हैं। उन्हें लगता है कि ये सभी लोग प्रतिभाशाली हैं और उनके लिए बहुत काम आएँगे। क्या यह दृष्टिकोण सही है? (नहीं।) जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, और जो संसार और शैतान के हैं, वे इन चीजों को जीवन और सत्य से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। अगर कोई व्यक्ति समाज में साधारण कार्यकर्ता हुआ करता था, और अगुआ को यह बात पता चलती है, तो वह उस व्यक्ति पर कोई ध्यान नहीं देगा, फिर चाहे वह अपनी आस्था में कितनी भी ईमानदारी से आगे क्यों न बढ़ रहा हो; मगर जब अगुआ देखता है कि कोई व्यक्ति किसी राजनैतिक दल का अहम सदस्य हुआ करता था और उसका परिवार संपन्न है, उसकी जीवनशैली बेहतर है और वह शानदार जीवन जीता है, तो वह उसकी चापलूसी करेगा, तो क्या यह एक अच्छा अगुआ है? (नहीं।) क्या तुम लोगों के साथ कभी इस तरह का व्यवहार किया गया है? इस तरह से व्यवहार किए जाने के बाद तुम लोगों ने मन में क्या सोचा? क्या तुम्हें लगा कि परमेश्वर के घर में कोई प्यार या स्नेह नहीं है? क्या मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर का प्रतिनिधित्व करते हैं? वे परमेश्वर के घर का प्रतिनिधित्व नहीं करते। वे शैतान का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके काम करने का तरीका, और उनका सार, सब कुछ शैतान का है और उनका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है। वे केवल खुद का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी हैं जो इन “संबंधों” को अपनी हथेली में लेकर उनसे संपर्क करने के बाद, इन संबंधों का इस्तेमाल अपने निजी मामलों को संभालने के लिए करते हैं, या यहाँ तक कि अपने परिवार के सदस्यों के लिए काम की व्यवस्था करने के लिए भी करते हैं। मुझे बताओ, क्या इस तरह की चीजें होती हैं? (हाँ, बिल्कुल।) मसीह-विरोधी ये सब चीजें करने में पूरी तरह सक्षम हैं। जिस व्यक्ति में कोई अंतरात्मा नहीं है, जिसे कोई शर्म नहीं है, और जो स्वार्थी और हद दर्जे का नीच है, वह कुछ भी कर सकता है—ऐसे लोग वो सब कर सकते हैं जो सत्य के अनुरूप नहीं है, और जो नैतिकता और व्यक्ति की अंतरात्मा के विपरीत है। इसलिए, मसीह-विरोधियों की नजरों में, अपने निजी मामलों को संभालने के लिए अपने पद का फायदा उठाना, लाभ पाना और इस तरह की चीजें संसार में बहुत सामान्य बातें हैं, और इन्हें सामने नहीं लाया जाना चाहिए और न ही इन्हें पहचाना या समझा जाना चाहिए। यह वैसा ही है जैसा कि अविश्वासी कहते हैं, “भोजन और वस्त्रों की खातिर पद हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना।” यही वह लक्ष्य है जिसे मसीह-विरोधी भी अगुआ बनकर हासिल करना चाहते हैं। अपने अनुसरण की तरह ही, वे भी जरा-सी भी आत्मग्लानि के बिना इस दिशा में कड़ी मेहनत कर रहे होते हैं, अपनी शक्ति और अपने पद का इस्तेमाल भाई-बहनों को धमकाने के लिए कर रहे हैं, मानो यही उचित हो, और भाई-बहनों के सामने तमाम तरह के अभ्यास और माँगें रख रहे हैं, जो सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं। कुछ भ्रमित लोगों को, जिनमें भेद पहचानने की क्षमता की कमी है, इन अगुआओं द्वारा उनकी इच्छा के विरुद्ध इस्तेमाल किया जाता है और आदेश दिया जाता है; कुछ ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो उनके लिए काम करने के लिए अपने खुद के पैसे इस्तेमाल करते हैं, मगर कुछ कह नहीं सकते, और सोचते हैं कि ऐसा करके वे अपना कर्तव्य निभा रहे हैं और अच्छे कर्म तैयार कर रहे हैं। मैं तुम्हें बता दूँ : दरअसल तुम गलत हो। ऐसा करके तुम अच्छे कर्म तैयार नहीं कर रहे हो; बल्कि, बुरी चीजें करने में एक बुरे व्यक्ति की मदद कर रहे हो, और एक बुरे व्यक्ति की ताकत बढ़ा रहे हो। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? जब तुम ये चीजें करते हो तो यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होता। तुम अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे होते हो। तुम निजी हितों के लिए षड्यंत्र रचने में एक मसीह-विरोधी की मदद कर रहे हो, और उसके लिए उसके निजी मामले सँभाल रहे हो। यह तुम्हारा कर्तव्य नहीं है; यह तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है। परमेश्वर ने तुम्हें यह आदेश नहीं दिया है, न ही यह परमेश्वर के घर का काम है। ऐसा करके, तुम शैतान की सेवा कर रहे हो और शैतान के लिए काम कर रहे हो। क्या शैतान का काम करने के लिए परमेश्वर तुम्हें याद रखेगा? (नहीं।) तो फिर परमेश्वर क्या याद रखेगा? बाइबल में एक वाक्यांश है। प्रभु यीशु ने कहा था : “मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया” (मत्ती 25:40)। यही परमेश्वर ने निर्धारित किया है। इन वचनों का क्या मतलब है? अगर तुम छोटे से छोटे भाई-बहनों के लिए कुछ कर सकते हो, तो वह कार्य यकीनन सिद्धांतों के अनुसार और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार किया जाता है। तुम यह नहीं देखते कि किसी व्यक्ति का रुतबा कितना ऊँचा है, बल्कि सिद्धांत के अनुसार काम करते हो। कुछ लोग केवल रुतबे वाले लोगों के लिए काम और कोशिश करते हैं, और उत्साहपूर्वक उनका समर्थन करते हैं, लेकिन अगर कोई ऐसा व्यक्ति जिसके पास कोई रुतबा नहीं है, उनसे कुछ करने को कहता है, चाहे यह कोई कर्तव्य हो या ऐसी जिम्मेदारी जो उन्हें निभानी चाहिए, तो भी वे उस पर कोई ध्यान नहीं देते। फिर, वे जो काम करते हैं उन्हें कैसे निरूपित किया जाता है? परमेश्वर के दृष्टिकोण से, इन चीजों को शैतान के लिए काम करने के रूप में निरूपित किया जाता है, और वह इन चीजों को बिल्कुल भी याद नहीं रखेगा। यह छठा मामला है। क्या तुम लोगों में से किसी ने इस तरह के मामले देखे हैं? (मैंने एक मामला देखा है, परमेश्वर। पहले, एक मसीह-विरोधी महिला थी जो हमारे यहाँ एक अगुआ हुआ करती थी, उसने भाई-बहनों द्वारा दान किए गए अच्छे भोजन, उपयोगी वस्तुओं, श्रृंगार सामग्री और अन्य चीजों को अपने पास रखने के लिए अपने पद का इस्तेमाल किया। कुछ चीजें पहले ही खराब हो चुकी थीं, मगर फिर भी उसने उन्हें भाई-बहनों को नहीं दिया; उसने इन सभी चीजों का गबन कर लिया। इसके अलावा, उसने एक डाउन जैकेट भी खरीदा, मगर बाद में जब उसने देखा कि एक बहन ने वैसा ही एक डाउन जैकेट खरीदा है जो ज्यादा महंगा नहीं था और अच्छी क्वालिटी का था, तो वह उस बहन से उसकी जैकेट ठगने के लिए तरह-तरह की चीजें सोचने लगी, और बहन को अपनी डाउन जैकेट खरीदने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पर मजबूर किया।) यह कहा जा सकता है कि हर मसीह-विरोधी एक बुरा व्यक्ति होता है, और उसमें कोई मानवता नहीं होती, कोई अंतरात्मा नहीं होती, और उसका चरित्र बेहद नीच होता है। इन लोगों को आखिर में बेनकाब करके निकाल देना चाहिए।

अतीत में, तीन लोगों का एक परिवार था जो अपना कर्तव्य निभाने के लिए विदेश आया था। वहाँ पहुँचने के बाद, उन्होंने भाई-बहनों को हर दिन चीजें खरीदने के लिए उन्हें बाहर लेकर जाने को मजबूर किया—उनमें से कोई डाउन जैकेट खरीदना चाहता था, कोई पैंट लेना चाहता था, और किसी को जूते लेने थे। उन्होंने बहाने बनाए, कहा कि वे ज्यादा पैसे लेकर नहीं आए हैं। अगर वे इतने पैसे लेकर नहीं आए हैं तो उन्हें चीजें नहीं खरीदनी चाहिए थी, मगर वे फिर भी चीजें खरीदना चाहते थे, और उन्हें औसत दर्जे की चीजें नहीं, बल्कि शानदार चीजें चाहिए थीं, जिनके लिए भाई-बहनों ने अपने पैसों से भुगतान किया। जैसे-जैसे परिवार ने कुछ समय तक अपना कर्तव्य निभाया, लोगों ने उनके व्यवहार को नापसंद करना शुरू कर दिया—वे जो खाना खाते थे, जिस जगह पर वे रहते थे, और जिन चीजों का इस्तेमाल करते थे, वे सभी ज्यादा ही आलीशान थे! परिवार में पिता ने भाई-बहनों से अपने लिए दूध भी खरीदवाया, और जब प्यास लगती थी, तो पानी की जगह दूध ही पीता था। इस संसार में ऐसे कितने लोग हैं जो दूध को पानी की तरह पी सकते हैं? वे किस श्रेणी के लोग होंगे? बाद में, उसने भाई-बहनों से कीनू और संतरे खरीदने को कहा, और उन्होंने एक बड़ा थैला भरकर कीनू और संतरे खरीदे जिसे परिवार ने दो दिन में ही खत्म कर दिया। इसके बाद, उसने कहा कि उन्हें कुछ पूरक विटामिन चाहिए, इसलिए उसने भाई-बहनों से कुछ चेरी खरीदने को कहा, यहाँ तक कि परमेश्वर का बहाना देते हुए कहा, “तुम्हें परमेश्वर के लिए चेरी खरीदनी है!” मैंने कहा, “अभी सर्दी का मौसम है। यह चेरी खाने का मौसम नहीं है। मैं चेरी नहीं खाऊँगा; मेरे लिए चेरी मत खरीदो।” उसने कहा, “हमें फिर भी खरीदना है!” जब भाई-बहनों ने चेरी की एक पेटी खरीदी, तो उसके परिवार ने कुछ ही समय में उसे सफाचट कर दिया। मैंने कभी किसी को इस तरह से खाते नहीं देखा था—वे फल ऐसे खाते थे जैसे कि वह चावल हो और दूध ऐसे पीते थे जैसे कि वह पानी हो। और फिर, जब खाना खाने का समय आया, तो उन्होंने देखा कि मछली बनी है और उसे गपागप खा लिया। उनके खाने के तरीके से तुम लोगों को घिन आएगी—वे भूखे पिशाचों की तरह थे जिन्होंने पहले कभी कुछ अच्छा नहीं खाया था। उन्होंने सोचा कि अच्छी चीजें पाने के इस मौके का फायदा उठाना चाहिए, तो वे उत्सुकता से जल्दी-जल्दी अपना पेट भरने लगे। अंत में, बच्चे ने इतना खा लिया कि वह बीमार पड़ गया। इसके बाद, बच्चे ने कुछ ऐसा कहा जिसका कोई मतलब नहीं था : “अगर मैंने परमेश्वर की जगह पर वह मछली नहीं खाई होती, तो मैं बीमार नहीं पड़ता!” जब उसने मछली खाई तो मैं वहाँ था ही नहीं, और मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता था। उसने इसे अपनी मर्जी से खाया—वह इसका दोष मुझे कैसे दे सकता है? मगर उसने दोष मुझ पर डाल दिया। ऐसे लोगों से कैसे निपटा जाना चाहिए? (उन्हें हटा दिया जाना चाहिए।) वे क्या हैं? (दानव और शैतान।) वे दानव हैं। उस समय, मैंने स्थानीय कलीसिया के अगुआओं से कहा, “उन्हें हटा दो और यहाँ से निकाल दो, जितना हो सके उतनी दूर कर दो। मैं उनके चेहरे फिर कभी नहीं देखना चाहता!”

मैं कुछ कलीसियाओं में गया हूँ और बहुत से भाई-बहनों से मिला हूँ। मैंने सभी तरह के गंदे और बुरे लोगों को देखा है, मगर मैं जिन लोगों से सामान्य रूप से जुड़ सकता हूँ, उनकी संख्या काफी कम है। वास्तव में ज्यादातर लोगों से मेलजोल करने का कोई तरीका है ही नहीं, और बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास सूझ-बूझ नहीं है। उनकी कही हर बात में विकृत और गलत तर्क होता है, और वे झूठ को ऐसे पेश करते हैं जैसे कि वह सच हो—वे बस जानवर, राक्षस और शैतान हैं, और उनमें मानवता या विवेक का लेशमात्र भी अंश नहीं है। हर कलीसिया में कम से कम एक तिहाई लोग ऐसे ही होते हैं। उनमें से कोई भी किसी काम के लायक नहीं है, और किसी को भी बचाया नहीं जा सकता; उन्हें जल्द से जल्द हटा देना चाहिए। जिन लोगों से मुझे मेलजोल करना पसंद है वे ऐसे लोग हैं जो सत्य स्वीकार सकते हैं, जो अपेक्षाकृत ईमानदार हैं, और जो अपने दिल से बोल सकते हैं। चाहे वे जितनी भी भ्रष्टता दिखाएँ या उनमें जो भी खामियाँ हों, अगर वे सत्य पर संगति करने के लिए तैयार हैं और सत्य स्वीकार सकते हैं, मैं उनके साथ मिलजुल सकता हूँ। जहाँ तक कपटी लोगों और दूसरों का फायदा उठाने वालों की बात है, मैं उन पर कोई ध्यान नहीं देता। कुछ लोग हमेशा मेरे सामने खुद का दिखावा करना चाहते हैं और चाहते हैं कि मैं उनके बारे में ऊँचा सोचूँ। वे मेरे सामने एक तरह से काम करते हैं और मेरी पीठ पीछे दूसरी तरह से, ताकि मुझे धोखा दे सकें। इस तरह के लोग दानव हैं, और उन्हें जितना हो सके उतनी दूर भेज देना चाहिए; मैं उन्हें फिर कभी नहीं देखना चाहता। जब लोगों में कमजोरियाँ और खामियाँ होती हैं तो मैं उनका समर्थन और पोषण कर सकता हूँ, और जब उनमें भ्रष्ट स्वभाव होता है तो मैं उनके साथ सत्य पर संगति कर सकता हूँ, मगर मैं राक्षसों से नहीं जुड़ता या राक्षसों की बातें नहीं सुनता। कुछ लोग नए विश्वासी हैं और कुछ ऐसे सत्य हैं जिन्हें वे नहीं समझते, इसलिए वे अज्ञानतापूर्वक बोलने और कार्य करने में सक्षम होते हैं। हम सत्य पर संगति कर सकते हैं, लेकिन अगर तुम कुछ सत्यों को समझने के बाद भी जानबूझकर हंगामा करते हो, मेरे प्रति अनुचित व्यवहार करते हो और मुझमें दोष निकालते हो, तो मैं तुम्हें बर्दाश्त नहीं करूँगा। मैं तुम्हें बर्दाश्त क्यों नहीं करूँगा? क्योंकि तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो जिसे बचाया जा सकता है, तो मैं तुम्हें क्यों बर्दाश्त करूँ? किसी को बर्दाश्त करने का मतलब है कि मैं उसके साथ सहनशील और धैर्यवान हो सकता हूँ। मैं अज्ञानी लोगों और औसत भ्रष्ट व्यक्ति के साथ धैर्यवान हूँ, मगर दुश्मनों या राक्षसों के साथ नहीं। अगर राक्षस और दुश्मन तुम लोगों से अच्छी-अच्छी बातें कहने का दिखावा करें और तुम्हें रिश्वत दें, तुम्हें धोखा दें, या तुम्हें पल-भर की खुशी दें, तो क्या तुम उनकी बातों पर विश्वास कर लोगे? (नहीं, हम नहीं करेंगे।) क्यों नहीं? क्योंकि वे सत्य स्वीकार नहीं सकते, तुमने इसे पहले ही स्पष्ट रूप से देखा है, और ये लोग पहले ही बेनकाब हो चुके हैं। वे जो कहते हैं उसमें ईमानदार नहीं होते, जब वे सत्य पर संगति करते हैं तो यह सब सिर्फ पाखंड होता है, और यह समझना कठिन हो जाता है कि वे जो कहते हैं वह सच है या झूठ। अगर तुम इन चीजों को सही-सही देख सकते हो, तो तुम निश्चित हो सकते हो कि वे राक्षस और शैतान ही हैं। केवल उन्हें बाहर निकालकर या निष्कासित करके ही समस्या का पूरी तरह से समाधान किया जा सकता है। कुछ लोग कहते हैं, “उन्हें थोड़ी छूट क्यों नहीं दी जाती?” इन लोगों के पास पश्चात्ताप करने का कोई अवसर नहीं है; उनके लिए पश्चात्ताप करना मुमकिन ही नहीं है। वे शैतान जैसे ही हैं—चाहे परमेश्वर कितना भी सर्वशक्तिमान और बुद्धिमान क्यों न हो, उसके परिप्रेक्ष्य से यह वह सार नहीं है जो परमेश्वर के पास होना चाहिए। वह परमेश्वर को परमेश्वर नहीं मानता, और उसे लगता है कि उसकी कपटी साजिशें ही बुद्धिमानी हैं, उसका प्रकृति सार ही सत्य है, और परमेश्वर सत्य नहीं है। यह पक्का शैतान है, और यह अंत तक परमेश्वर से दुश्मनी निभाता रहेगा। इसलिए, बुरे लोगों का सत्य से प्रेम करने में और सत्य का अनुसरण करने में असमर्थ होना निश्चित है, और इसलिए, परमेश्वर उन्हें नहीं बचाता। उन्हें कलीसिया से बाहर निकालना और परमेश्वर के घर से निष्कासित करना सबसे सही फैसला है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

आज जिन मसीह-विरोधियों के बारे में मैंने संगति की और जिनका गहन-विश्लेषण किया, वे कभी भी अपने अनुसरण की दिशा और लक्ष्य नहीं बदलेंगे। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें अपने हितों को सबसे आगे रखते हैं, अपनी पूरी ताकत लगाते हैं और परमेश्वर के घर में धोखाधड़ी से भोजन और पेय पदार्थ हासिल करने के लिए अपना दिमाग खपाते हैं। उन्होंने कभी भी ईमानदारी से परमेश्वर के लिए खुद को नहीं खपाया है; वे बस भोजन और पेय पदार्थों के लिए, अपने हितों के लिए और अच्छा बर्ताव पाने के लिए धोखाधड़ी करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि परमेश्वर इसे नहीं देखता, इस बारे में नहीं जानता, और इसकी पड़ताल नहीं कर सकता, तो वे एकाग्रचित्त होकर इन चीजों का अनुसरण करते हैं। बेशक, यही उनका प्रकृति सार है—वे सत्य से प्रेम नहीं करते, न ही वे सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकते हैं, इसलिए वे मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित किए जाने के लिये अभिशप्त हैं। परमेश्वर इस तरह के लोगों को हटा देता है और ये ऐसे लोग हैं जिनका पता लगते ही परमेश्वर के घर को इन्हें निष्कासित कर देना चाहिए। कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहा है यह पता लगने से लेकर उस दिन तक जब वह ऐसे कई कार्य करता है जो सत्य के अनुरूप नहीं हैं, और फिर उस दिन तक जब उसे मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया जाता है, सभी को यह दिखाता है कि मसीह-विरोधी नहीं बदलते। उनका अंतिम परिणाम परमेश्वर के घर से निष्कासित होना और परमेश्वर द्वारा हटाया जाना ही है—वे नहीं बदल सकते। तो, इन बातों को जानने से तुम लोगों को क्या लाभ होगा? कुछ लोग कहते हैं, “हम धोखे से भोजन और पेय पदार्थ हासिल नहीं करते। हम सत्य का अनुसरण करते हैं और सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाना चाहते हैं। हम परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करते हैं। हम मसीह-विरोधियों की तरह काम नहीं करते, न ही हम मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने की सोचते हैं। इन मामलों के बारे में जानने से हमें क्या लाभ होगा?” साधारण भाई-बहनों के लिए, मसीह-विरोधियों की ये अभिव्यक्तियाँ और खुलासे हरेक व्यक्ति के लिए चेतावनी का काम कर सकते हैं, और उन्हें बता सकते हैं कि कौन-सा मार्ग सही है और कौन-से व्यवहार और काम करने के तरीके परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हैं। कलीसिया में सभी स्तरों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए, यह मसीह-विरोधियों को पहचानने का जीता-जागता प्रमाण है। मसीह-विरोधियों को पहचानने से कलीसिया के काम को क्या लाभ होता है? इससे तुम लोगों को मसीह-विरोधियों को सही ढंग से पहचानने और उन्हें सही समय पर कलीसिया से निष्कासित करने में मदद मिलती है, जिससे कलीसिया अधिक शुद्ध रहे और इन मसीह-विरोधियों की बाधाओं, गड़बड़ी, और नुकसान से मुक्त रहे, ताकि जो लोग वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं और जो ईमानदारी से खुद को परमेश्वर के लिए खपा सकते हैं, उनके पास राक्षसों और शैतानों की बाधाओं से मुक्त एक स्वच्छ और शांत परिवेश हो। तो, जब मसीह-विरोधियों को पहचानने के सत्य की बात आती है, तो चाहे तुम उन्हें तथ्यों और अभिव्यक्तियों के परिप्रेक्ष्य से पहचानो या सत्य सिद्धांतों के आधार पर, तुम्हें इन दोनों पहलुओं को ठीक से समझना होगा। यह तुम्हारे जीवन प्रवेश और कलीसिया के काम के लिए फायदेमंद है—तुम लोगों को इसे समझना चाहिए।

आज मैंने कई मामलों के बारे में बात की। ये सभी मामले मसीह-विरोधियों की क्रूरता, बेशर्मी और नैतिक मूल्यों की किसी भी निचली रेखा का पूर्ण अभाव दर्शाने वाले कुछ व्यवहार, काम करने के तरीके और अभिव्यक्तियाँ हैं। ये सभी ऐसे मामले हैं जो तुम लोगों के आस-पास हुए हैं, और यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधियों के काम करने के तरीके और उनकी अभिव्यक्तियाँ कुछ हद तक तुम लोगों के भीतर मौजूद हैं। दूसरे शब्दों में, तुम लोगों में मसीह-विरोधियों के कुछ स्वभाव और मसीह-विरोधियों के कुछ तौर-तरीके हैं। इसलिए, जैसे-जैसे तुम लोग मसीह-विरोधियों को पहचानते हो, तुम्हें अपने व्यवहार की भी जाँच, परीक्षण और उस पर चिंतन करना चाहिए। कुछ लोग कह सकते हैं, “तुम हमेशा ऐसे मामलों, ऐसी गपशप के बारे में बात करते हो, और इनकी गहराई में जाते हो। इससे हमें सत्य में प्रवेश करने में क्या लाभ होगा? अभी हम अपने कर्तव्यों में बहुत व्यस्त हैं, और हम इन चीजों को नोट करना या उन्हें सुनना नहीं चाहते। सत्य में प्रवेश करते समय, दो चीजों पर टिके रहना काफी है—एक तो परमेश्वर के प्रति समर्पण करना, और दूसरा अपना कर्तव्य ठीक से निभाना। यह कितना सरल है!” सिद्धांत में यह इतना सरल हो सकता है, मगर सटीक और विशिष्ट रूप से कहें, तो यह इतना सरल नहीं है। अगर तुम कुछ ही सत्यों को समझते हो, तो तुम्हारा प्रवेश ऊबड़-खाबड़ और उथला होगा, और अगर जिन सत्यों को तुम समझते हो वे सामान्य हैं, तो तुम कम विवरणों का अनुभव करोगे, और तुम कभी भी परमेश्वर की उपस्थिति में शुद्ध नहीं हो पाओगे। परमेश्वर लोगों से सत्य का अनुसरण करने और सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश करने के लिए कहता है, तो लोगों को इन विवरणों को समझना चाहिए। इससे तुम लोगों को क्या पता चलता है? परमेश्वर ने तुम लोगों को बचाने का मन बना लिया है, इसलिए उसे तुम्हारे साथ गंभीर रहना होगा और वह बिल्कुल भी लापरवाह, भ्रमित नहीं होगा या पर्याप्त करीब होने या लगभग सही होने से संतुष्ट नहीं होगा। परमेश्वर के लिए, “लगभग सही होना,” “पाँच में से चार,” “शायद,” और “हो सकता है” जैसे शब्द मौजूद नहीं हैं। अगर तुम बचाया जाना चाहते हो और उद्धार के मार्ग पर चलना चाहते हो, तो तुम्हें सत्य के इन सभी विवरणों को समझना होगा। अगर तुम अभी इस काम के लिए तैयार नहीं हो, तो कोई बात नहीं—सत्य के विवरण में प्रवेश करना शुरू करने में अभी बहुत देर नहीं हुई है। अगर तुम बिना कोई गलती किए अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से करने और तुम्हारे साथ कुछ घटित होने पर समर्पण करने के रवैये से ही संतुष्ट हो, तो तुम कभी भी सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश नहीं कर पाओगे। परमेश्वर द्वारा लोगों को दिए जाने वाले हरेक सत्य में बहुत सारे विशिष्ट विवरण होते हैं, और अगर लोग इन विवरणों को नहीं समझेंगे, तो वे सत्य को या परमेश्वर के इरादों को कभी नहीं समझ पाएँगे। क्या यह अच्छी बात है कि परमेश्वर लोगों के साथ गंभीर है? (बिल्कुल है।) चाहे यह उनके कर्तव्यों, उनके समर्पण, उनके पारस्परिक संबंधों या उनकी संभावनाओं और भाग्य के मामले से उनके पेश आने का तरीके से संबंधित हो, या यहाँ तक कि उन चीजों से संबंधित हो जिनके बारे में मैं अभी बात कर रहा हूँ, जैसे कि मसीह-विरोधियों को कैसे पहचाना जाए, मसीह-विरोधी के मार्ग पर कैसे न चला जाए, और मसीह-विरोधी के स्वभाव को कैसे त्यागा जाए, उन्हें इन पर एक-एक करके पकड़ बनानी चाहिए। एक बार जब तुम लोग वास्तव में इन विवरणों का भेद पहचानने में सक्षम हो जाओगे और केवल थोड़े-से सरल और खोखले धर्म-सिद्धांतों का ही प्रचार करना नहीं जानोगे, तो तुम लोगों ने सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश कर लिया होगा। जो लोग सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश करते हैं, केवल उनके पास ही बचाए जाने का मौका और उम्मीद होती है; केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करना तो बस श्रम करना है। अगर लोग सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश करना चाहते हैं, तो उन्हें इन विवरणों से शुरुआत करनी चाहिए। नहीं तो, वे कभी भी अपना स्वभाव नहीं बदल पाएँगे।

4 अप्रैल 2020

पिछला:  मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग चार)

अगला:  मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ विश्वासघात तक कर देते हैं (भाग छह)

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

Connect with us on Messenger