271  केवल परमेश्वर ही सर्वश्रेष्ठ है

1 परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं, और वह जो कहता और करता है, वह सब धार्मिक है। उसके वचनों के न्याय से गुजरकर हमें सत्य खोजना चाहिए। चूँकि हम स्वीकार करते हैं कि हमारे स्वभाव भ्रष्ट हैं, इसलिए हमें परमेश्वर के न्याय के प्रति और ज्यादा समर्पित होना चाहिए। जब हमारे स्वभाव से भ्रष्टता दूर हो जाएगी, केवल तभी हम उसकी इच्छा पूरी कर सकते हैं। अपनी धारणाएँ और कल्पनाएँ त्यागकर हम परमेश्वर की ओर देखते हैं और सत्य का अभ्यास करते हैं। हम पतरस का अनुकरण करने का अपना संकल्प मजबूत करते हैं और जोरदार गवाही देते हैं। आओ हम ऊँचे सुर में गाएँ : केवल परमेश्वर ही सर्वश्रेष्ठ है! हम सदा परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता की स्तुति करेंगे।

2 परमेश्वर के वचनों के न्याय का अनुभव करते हुए मैंने देखा है कि मैं शैतान द्वारा कितनी गहराई तक भ्रष्ट कर दिया गया हूँ। मैं अभिमानी, दंभी, कुटिल और धोखेबाज हूँ; मुझमें सचमुच इंसानियत जैसी कोई चीज नहीं है। न्याय को स्वीकार करने और खुद को जानने के बाद मैंने वास्तव में पश्चात्ताप किया है। परमेश्वर के कोई अपराध सहन न करने वाले स्वभाव का स्वाद लेकर मुझमें उसके प्रति हार्दिक श्रद्धा उत्पन्न हो गई है। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के पीछे उसका अपार प्रेम छिपा है। देह-सुख का त्याग और सत्य का अभ्यास करके मुझे परमेश्वर और भी ज्यादा करीब लगता है। आओ हम ऊँचे सुर में गाएँ : केवल परमेश्वर ही सर्वश्रेष्ठ है! हम सदा परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता की स्तुति करेंगे।

3 जब उत्पीड़न, कष्ट और परीक्षण आते हैं, तब हमें परमेश्वर को महिमामंडित करने के लिए उसकी गवाही देनी चाहिए; जीवन-मृत्यु दोनों में सृजित प्राणियों को परमेश्वर के शासन के प्रति समर्पित होना चाहिए। बड़ी विपत्ति और दर्द सहकर हम शैतान से नफरत करने लगते हैं, और इसकी और ज्यादा समझ पाते हैं कि परमेश्वर कितना प्यारा है। शैतान को शर्मिंदा करने के लिए जान जोखिम में डालकर हम विजयी गवाही देते हैं। क्षणभंगुर हलकी पीड़ा के बदले हम सत्य और जीवन पाते हैं। परमेश्वर जो भी कहता और करता है, वह सब प्रेम है; उसमें हमारी आस्था मजबूत और संदेह से मुक्त है। आओ हम ऊँचे सुर में गाएँ : केवल परमेश्वर ही सर्वश्रेष्ठ है! हम सदा परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता की स्तुति करेंगे।

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