27. मैं अब सौभाग्य के पीछे नहीं भागती
अप्रैल 2023 के अंत में मुझे उच्च अगुआओं से एक पत्र मिला जिसमें बताया गया था कि एक खास कलीसिया के अगुआ को इसलिए बरखास्त कर दिया गया था क्योंकि वह वास्तविक काम नहीं कर रहा था। उसकी जगह कोई उपयुक्त व्यक्ति न मिलने पर उन्होंने अस्थायी रूप से कलीसिया का कार्य सँभालने के लिए मेरी व्यवस्था की थी। पत्र पढ़ने के बाद मेरे पास सोचने के लिए ज्यादा समय नहीं था और मैं जल्दी से कलीसिया चली गई। मुझे पता चला कि कुछ सिंचनकर्ता अपने कर्तव्यों में आलसी और ढीले थे और उन्हें बदलना जरूरी था और कई नवागंतुक नकारात्मक, कमजोर थे और नियमित रूप से इकट्ठे नहीं होते थे, उनका तुरंत सिंचन करना और सहारा देना जरूरी था। कलीसिया का सुसमाचार कार्य भी अप्रभावी था। मैंने सोचा, “अगुआओं ने मुझे इस कलीसिया में क्यों भेजा जहाँ कार्य के इतने खराब नतीजे हैं? अगर मैं यहाँ लंबे समय तक रही और कार्य में सुधार लाने में विफल रही, तो मेरे अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वे कहेंगे कि मैं इस कर्तव्य के लिए उपयुक्त नहीं हूँ? चूँकि मैं यहाँ हूँ, इसलिए मैं परमेश्वर पर भरोसा करूँगी और सहयोग करने की पूरी कोशिश करूँगी।” यह सोचकर कि कार्य अच्छी तरह से करने के लिए मुझे पहले कर्मियों को दूसरे काम सौंपने होंगे, मैंने सुबह से शाम तक काम किया, हर दिन इन कामों में व्यस्त रही।
थोड़े समय में ही कर्मियों का समायोजन कर दिया गया और सिंचन कार्य से धीरे-धीरे कुछ नतीजे दिखने लगे। बाद में एक सुसमाचार कार्यकर्ता बहन ली मिंग को कलीसिया अगुआ चुना गया। मैं बहुत खुश थी क्योंकि इस बहन को अपने कर्तव्यों में जिम्मेदारी का एहसास था और वह जीवन प्रवेश पर केंद्रित थी और कलीसिया के कार्य में उसका मेरे साथ सहयोग करना बहुत अच्छी बात थी। मगर बहन ली के चुने जाने के कुछ समय बाद अप्रत्याशित रूप से हमें अचानक ऊपरी अगुआओं से पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि ली मिंग को सीसीपी ढूँढ़ रही थी और उसके लिए स्थानीय क्षेत्र में अपना कर्तव्य करना सुरक्षित नहीं था और उसे स्थानांतरित करने की जरूरत है। यह पत्र पढ़ते हुए मैंने सोचा, “हम अभी-अभी तो एक कलीसिया अगुआ चुन पाए हैं और अब उसे जाना होगा। मुझे उम्मीद थी कि ली मिंग के सुसमाचार कार्य का पर्यवेक्षण करने से मेरा बोझ थोड़ा हल्का हो जाएगा, लेकिन अब, न केवल मेरा बोझ कम नहीं हुआ बल्कि एक अनुभवी सुसमाचार कार्यकर्ता को भी स्थानांतरित किया जा रहा है। यदि कार्य अप्रभावी रहा, तो उच्च अगुआ मेरे बारे में क्या सोचेंगे?” हालाँकि मेरे पास अनिच्छुक होकर समर्पण करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। बाद में मुझे सुसमाचार कार्य में सहयोग करने के लिए दो सुसमाचार कार्यकर्ता मिले, लेकिन फिर बड़े पैमाने पर धर-पकड़ की कार्रवाई ने मेरी योजनाओं को ध्वस्त कर दिया। अगले कुछ दिनों में मैं भाई-बहनों के एक के बाद एक गिरफ्तार होने की खबरें सुनती रही, जिनमें वे सुसमाचार कार्यकर्ता भी थे जो मुझे अभी-अभी ही मिले थे। इस सबसे मैं हक्की-बक्की थी और मैंने सोचा, “मैं इतनी बदकिस्मत क्यों हूँ? इस कलीसिया में आने के बाद से दो महीनों में मैंने बहुत सी असफलताएँ देख ली हैं और मैं आखिरकार कर्मियों को समायोजित करने में कामयाब रही, लेकिन अब देखो क्या हो रहा है। न केवल कार्य के नतीजे बेहतर नहीं हुए हैं, बल्कि जो कर्मचारी सहयोग कर सकते थे, वे भी गिरफ्तार कर लिए गए हैं। लगता है कि मेरी किस्मत ही खराब है! पिछले अगुआ को अपने कर्तव्य के दौरान एक सहज और स्थिर समय मिला था। मैं इतनी अभागी क्यों हूँ कि मेरे साथ ये सारी बुरी चीजें हो रही हैं? मेरे हाल के सभी प्रयास बेकार हो गए हैं! उच्च अगुआ निश्चित रूप से सोचेंगे कि मेरे पास कार्य करने की कोई क्षमता नहीं है।” जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मुझे रोना आने लगा और पूरी तरह से हताश हो गई। कार्य के नतीजे न मिलने के कारण मैंने मुद्दों की खोज-खबर लेने की प्रेरणा खो दी और यहाँ तक कि मैं यह जगह भी छोड़ना चाहती थी। जब मैं इस मनोदशा में रह रही थी, तो मैंने पाया कि मेरी आत्मा अंधकार और निराशा में और डूबती जा रही है।
बाद में मैंने अपनी दशा के लिए परमेश्वर के वचनों का एक प्रासंगिक अंश खाया और पिया। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “खुद को हमेशा अभागा माननेवालों के साथ समस्या आखिर क्या है? उनके कार्य सही हैं या गलत यह मापने के लिए, और उन्हें किस मार्ग पर चलना चाहिए, किन चीजों का अनुभव करना चाहिए, और सामने आनेवाली समस्याओं के आकलन के लिए वे हमेशा भाग्य के मानक का प्रयोग करते हैं। यह सही है या गलत? (गलत।) वे बुरी चीजों को दुर्भाग्यपूर्ण और अच्छी चीजों को भाग्यशाली या फायदेमंद बताते हैं। यह नजरिया सही है या गलत? (गलत।) ऐसे नजरिए से चीजों को मापना गलत है। यह चीजों को मापने का एक अतिवादी और गलत तरीका और मानक है। ऐसा तरीका लोगों को अक्सर हताशा में डुबो देता है, यह अक्सर उन्हें परेशान कर देता है, और कभी कोई चीज उनके चाहे जैसे नहीं होती, और उन्हें कभी अपनी चाही हुई चीज नहीं मिलती, जिससे आखिरकार वे निरंतर बेचैन, चिड़चिड़े और परेशान रहने लगते हैं। जब ये नकारात्मक भावनाएँ दूर नहीं होतीं, तो ये लोग निरंतर हताशा में डूब जाते हैं, और उन्हें लगता है कि परमेश्वर उन पर कृपा नहीं करता। उन्हें लगता है कि परमेश्वर दूसरों से ज्यादा अनुग्रह से पेश आता है, उनसे नहीं, और परमेश्वर दूसरों की देखभाल करता है, उनकी नहीं। ‘हमेशा मैं ही क्यों परेशान और बेचैन रहता हूँ? हमेशा मेरे ही साथ बुरी चीजें क्यों होती हैं? अच्छी चीजें मेरे हाथ क्यों नहीं आतीं? मैं बस एक ही बार माँग रहा हूँ!’ जब तुम चीजों को ऐसे गलत तरीके की सोच और नजरिए से देखोगे, तो अच्छे और खराब भाग्य के झाँसे में फँस जाओगे। जब तुम लगातार इस झाँसे में गिरते रहते हो, तो तुम निरंतर हताश महसूस करते हो। इस हताशा के बीच तुम खास तौर से इस बात को लेकर संवेदनशील रहते हो कि जो चीजें तुम्हारे साथ हो रही हैं वे भाग्यशाली हैं या दुर्भाग्यशाली। ऐसा होने पर, यह साबित हो जाता है कि अच्छे और खराब भाग्य के इस नजरिए और विचार ने तुम्हें नियंत्रण में ले लिया है। जब तुम ऐसे नजरिए से नियंत्रित होते हो, तो लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति तुम्हारे विचार और रवैये सामान्य मानवता के जमीर और विवेक के दायरे में नहीं रह जाते, बल्कि एक प्रकार की अति में डूब चुके होते हैं। जब तुम ऐसी अति में डूब जाओगे, तो फिर अपने हताशा में से निकल नहीं पाओगे। तुम बार-बार फिर से हताश होते रहोगे, और भले ही तुम आम तौर पर हताश महसूस न करो, मगर जैसे ही कुछ गलत होगा, जैसे ही तुम्हें लगेगा कि कुछ दुर्भाग्यपूर्ण हो गया है, तुम तुरंत हताशा में डूब जाओगे। यह हताशा तुम्हारी सामान्य परख और निर्णय-क्षमता और तुम्हारी खुशी, क्रोध, दुख और उल्लास को भी प्रभावित करेगा। जब यह तुम्हारी खुशी, क्रोध, दुख और उल्लास को प्रभावित करता है, तो यह तुम्हारे कर्तव्य-निर्वाह और साथ ही परमेश्वर का अनुसरण करने के तुम्हारे संकल्प और आकांक्षा को भी बाधित और नष्ट करता है। जब ये सकारात्मक चीजें नष्ट हो जाती हैं, तो जो थोड़े-से सत्य तुमने समझे हैं, उन्हें तुम भूल जाते हो और तुम्हारे लिए ये जरा भी उपयोगी नहीं रह जाते” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (2))। परमेश्वर कहता है कि किसी भी बुरी चीज को “बदकिस्मत” और किसी भी अच्छी चीज को “किस्मत” या “लाभदायक” कहना किसी ऐसे व्यक्ति का दृष्टिकोण है जो अतिवादी है, जिसके परिप्रेक्ष्य गलत हैं। मैं भी बिल्कुल ऐसी ही थी। जब मैं अपने कर्तव्य करने के लिए इस कलीसिया में आई और पाया कि कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों के नतीजे खराब थे, और सिंचनकर्ताओं में अपने कर्तव्यों के प्रति बोझ की भावना का अभाव था, कई नवागंतुक नकारात्मक और कमजोर थे और सुसमाचार कार्य के अच्छे नतीजे नहीं मिल रहे थे, तो मुझे लगा कि मैं बदकिस्मत हूँ। कार्य अच्छी तरह से करने के लिए मैंने सुबह से शाम तक खुद को व्यस्त रखा, सभाएँ कीं और संगति की और कर्मियों के काम बदले। कुछ समय बाद जब मैंने देखा कि सिंचन कार्य धीरे-धीरे सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रहा है, तो मुझे खुशी हुई और मैं अपना कर्तव्य करने के लिए प्रेरित हुई। लेकिन बाद में जब एक अनुभवी सुसमाचार कार्यकर्ता का तबादला कर दिया गया और फिर कुछ ही समय बाद व्यापक रूप से धर-पकड़ चली और सुसमाचार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जाने लगा और कोई भी सुसमाचार कार्य में सहयोग नहीं कर पाया, तो मैं हताशा की भावनाओं में डूब गई और कुछ भी करने की ऊर्जा नहीं जुटा पाई। मेरे ये व्यवहार मेरे गलत परिप्रेक्ष्य से उपजे थे। जब कार्य के अच्छे नतीजे आ रहे थे और सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा था, तो मुझे लगा कि मैंने उच्च अगुआओं की सराहना प्राप्त कर ली है और इससे मुझे खुशी हुई। लेकिन जब कार्य के अच्छे नतीजे नहीं आए और चीजें वैसी नहीं हुईं जैसे मैं चाहती थी, तो मैंने निराश और कमजोर महसूस किया, अपनी बुरी किस्मत को दोष दिया और यहाँ तक कि अपना कर्तव्य तक छोड़ना चाहती थी। मैंने सोचा कि कैसे छद्म-विश्वासी कभी भी परमेश्वर की ओर से अपने साथ होने वाली किसी भी चीज को स्वीकार नहीं करते और जब प्रतिकूल परिस्थितियाँ आती हैं, तो वे परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हैं और उसे गलत समझते हैं और यहाँ तक कि उससे विश्वासघात भी कर देते हैं। मैं समझ गई कि अगर मेरी दशा नहीं बदली, तो मैं भी वास्तव में खतरे में थी। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उम्मीद जताई कि वह मेरी दशा बदलने के लिए मार्गदर्शन करेगा।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचन और अधिक पढ़े : “ये लोग, जो हमेशा चिंतित रहते हैं कि उनका भाग्य अच्छा है या खराब—चीजों के बारे में क्या उनका नजरिया सही है? क्या अच्छे भाग्य या खराब भाग्य का अस्तित्व है? (नहीं।) यह कहने का क्या आधार है कि इनका अस्तित्व नहीं है? (हर दिन हम जिन लोगों से मिलते हैं और जो चीजें हमारे साथ घटती हैं, वे परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं द्वारा तय किए जाते हैं। अच्छा भाग्य या खराब भाग्य जैसी कोई चीज है ही नहीं; हर चीज जरूरत पड़ने पर होती है और उसके पीछे एक अर्थ होता है।) क्या यह सही है? (बिल्कुल।) यह नजरिया सही है, और यही यह कहने का सैद्धांतिक आधार है कि भाग्य का अस्तित्व नहीं है। तुम्हारे साथ चाहे जो हो, अच्छा या बुरा, सब-कुछ सामान्य है, ठीक चार ऋतुओं के मौसम की तरह—प्रत्येक दिन धूपवाला नहीं हो सकता। तुम नहीं कह सकते कि परमेश्वर धूपवाले दिनों की व्यवस्था करता है, और बादलवाले दिनों, वर्षा, हवा और तूफान की व्यवस्था नहीं करता। सभी चीजें परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं द्वारा तय होती हैं, और प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा उत्पन्न की जाती हैं। यह प्राकृतिक पर्यावरण परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित और स्थापित विधियों और नियमों के अनुसार पैदा होता है। ये सब जरूरी और अनिवार्य हैं, इसलिए मौसम चाहे जैसा भी हो, यह प्राकृतिक नियमों से उत्पन्न होता है। इसमें कुछ भी अच्छा या खराब नहीं है—इस बारे में सिर्फ लोगों की भावनाएँ अच्छी या खराब होती हैं। वर्षा होने, तेज हवा चलने, बादल छाने या ओले पड़ने पर लोगों को अच्छा नहीं लगता। खास तौर पर लोगों को तब अच्छा नहीं लगता जब वर्षा हो रही हो और सब-कुछ गीला हो; उनके जोड़ों में दर्द होता है, और वे कमजोर महसूस करते हैं। तुम्हें बारिश के दिन बुरे लग सकते हैं, लेकिन क्या तुम कह सकते हो कि बारिश के दिन अशुभ हैं? यह सिर्फ एक भावना है जो मौसम लोगों के मन में जगाता है—बारिश होने का भाग्य से कोई लेना-देना नहीं है। तुम कह सकते हो कि धूपवाले दिन अच्छे होते हैं। अगर तीन महीने तक धूप खिली हो, पानी की एक बूँद भी न गिरे, तो लोगों को अच्छा लगता है। वे हर दिन सूर्य को देख सकते हैं, दिन सूखा और गर्म है, कभी-कभार धीमी बयार चलती है, वे जब चाहें बाहर जा सकते हैं। लेकिन पौधे इसे नहीं सह सकते, और फसलें सूखे के कारण मर जाती हैं, इसलिए उस वर्ष फसल नहीं कटती। तो क्या तुम्हें अच्छा लगने का अर्थ यह है कि यह सचमुच अच्छा है? शरद ऋतु आने पर, जब तुम्हारे पास खाने को कुछ नहीं होगा, तो तुम कहोगे, ‘अरे यार, बहुत सारे धूपवाले दिन हों, तो भी अच्छा नहीं है। बारिश न हो तो फसलें चौपट हो जाती हैं, कटाई के लिए कोई फसल नहीं होती, और लोग भूखे रह जाते हैं।’ तब तुम्हें एहसास होता है कि लगातार धूपवाले दिन भी अच्छे नहीं होते। तथ्य यह है कि कोई व्यक्ति किसी चीज के बारे में अच्छा महसूस करता है या बुरा, यह उस चीज के सार के बजाय, उसकी अपनी स्वार्थी मंशाओं, आकांक्षाओं और आत्म-हित पर आधारित होता है। इसलिए जिस आधार पर लोग अनुमान लगाते हैं कि कोई चीज अच्छी है या बुरी, वह गलत है। आधार गलत होने के कारण जो अंतिम निष्कर्ष वे निकालते हैं, वे भी गलत होते हैं। अच्छे भाग्य और खराब भाग्य के विषय पर वापस लौटें, तो अब सब जानते हैं कि भाग्य के बारे में यह कहावत निराधार है, और यह न अच्छा होता है न खराब। जिन भी लोगों, घटनाओं और चीजों से तुम्हारा सामना होता है, वे चाहे अच्छे हों या बुरे, सभी परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था द्वारा तय किए जाते हैं, इसलिए तुम्हें उचित ढंग से उनका सामना करना चाहिए। परमेश्वर से वह स्वीकार करो जो अच्छा है, और जो कुछ बुरा है, उसे भी परमेश्वर से स्वीकार करो। जब कुछ अच्छा घटे, तो मत कहो कि तुम भाग्यशाली हो, और बुरा घटे तो खुद को अभागा मत कहो। यही कहा जा सकता है कि इन सभी चीजों में लोगों के लिए सीखने के सबक होते हैं, और उन लोगों को इन्हें ठुकराना या इनसे बचना नहीं चाहिए। अच्छी चीजों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करो, साथ ही बुरी चीजों के लिए भी उसका धन्यवाद करो, क्योंकि इन सभी चीजों की व्यवस्था उसी ने की है। अच्छे लोग, घटनाएँ, चीजें और परिवेश सबक देते हैं जो उन्हें सीखने चाहिए, मगर बुरे लोगों, घटनाओं, चीजों और परिवेशों से और भी ज्यादा सीखने को मिलता है। ये सभी वो अनुभव और कड़ियाँ हैं जो किसी के जीवन का भाग होनी चाहिए। इन्हें मापने के लिए लोगों को भाग्य के विचार का प्रयोग नहीं करना चाहिए। तो, चीजें अच्छी हैं या बुरी, यह मापने के लिए भाग्य का प्रयोग करनेवाले लोगों की सोच और नजरिए क्या होते हैं? ऐसे लोगों का सार क्या होता है? वे अच्छे भाग्य और खराब भाग्य पर इतना अधिक ध्यान क्यों देते हैं? भाग्य पर अत्यधिक ध्यान देनेवाले लोग क्या आशा करते हैं कि उनका भाग्य अच्छा हो या खराब? (वे आशा करते हैं कि यह अच्छा हो।) सही कहा। दरअसल, वे प्रयास करते हैं कि उनका भाग्य अच्छा हो और उनके साथ अच्छी चीजें हों, और वे बस उनका लाभ उठाकर उनसे फायदा कमाते हैं। वे परवाह नहीं करते कि दूसरे कितने कष्ट सहते हैं, या दूसरों को कितनी मुश्किलें या कठिनाइयाँ सहनी पड़ती हैं। वे नहीं चाहते कि ऐसी कोई चीज उनके साथ हो, जिसे वे अशुभ समझते हैं। दूसरे शब्दों में, वे नहीं चाहते कि उनके साथ कुछ बुरा घटे : कोई रुकावट, कोई विफलता या शर्मिंदगी नहीं, काट-छाँट नहीं, चीजें खोना या हारना नहीं, और कोई धोखा न खाना। ऐसा कुछ भी हुआ, तो उसे खराब भाग्य के रूप में लेते हैं। अगर बुरी चीजें होती हैं, तो व्यवस्था चाहे जो भी करे, वे अशुभ ही हैं। वे आशा करते हैं कि तमाम अच्छी चीजें—पदोन्नति, सबमें श्रेष्ठ होना, दूसरों के खर्चे पर लाभ उठाना, किसी चीज से फायदा लेना, ढेरों पैसे बनाना, या कोई उच्च अधिकारी बनना—उन्हीं के साथ हों, और उन्हें लगता है कि यह अच्छा भाग्य है। वे भाग्य के आधार पर ही उन लोगों, घटनाओं और चीजों को मापते हैं, जिनसे उनका सामना होता है। वे अच्छे भाग्य का पीछा करते हैं, दुर्भाग्य का नहीं। जैसे ही कोई छोटी-से-छोटी चीज गलत हो जाती है, वे नाराज हो जाते हैं, तुनक जाते हैं और असंतुष्ट हो जाते हैं। दो टूक कहें, तो इस तरह के लोग स्वार्थी होते हैं। वे दूसरे लोगों के खर्चे पर खुद फायदा उठाने, अपना फायदा करने, सबसे ऊपर आकर सबसे अलग दिखने का प्रयास करते हैं। यदि प्रत्येक अच्छी चीज सिर्फ उन्हीं के साथ हो तो वे संतुष्ट हो जाते हैं। यही उनका प्रकृति सार है; यही उनका असली चेहरा है” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (2))। परमेश्वर के वचनों से मैंने पाया कि लोग अक्सर अपने भाग्य को इस आधार पर आँकते हैं कि उन्हें निजी फायदा होता है या नहीं। यदि हालात उनके लिए लाभदायक होते हैं, तो वे इसे “सौभाग्य” कहते हैं और यदि नहीं, तो वे इसे “दुर्भाग्य” कहते हैं। इस मानसिकता वाले लोग केवल अपने लिए लाभ चाहते हैं और बेहद स्वार्थी होते हैं। वास्तव में परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित हर स्थिति अच्छी होती है और “सौभाग्य” या “दुर्भाग्य” जैसी कोई चीज नहीं होती। जो परिस्थितियाँ लोगों को अनुकूल या प्रतिकूल लगती हैं, वे सभी उन्हें सबक सीखने देने के लिए होती हैं और उनके जीवन प्रवेश के लिए लाभदायक होती हैं। ठीक मौसम की तरह, धूप और बारिश दोनों ही दिन मानवजाति के लिए जरूरी हैं। लगातार धूप जल्द ही फसलों को सुखा देगी और लंबे समय तक बारिश उन्हें डुबा देगी। इसलिए चाहे धूप हो या बारिश, यह सब परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं का हिस्सा है और मानवजाति के लिए लाभदायक है। जब मेरा सामना ऐसी चीजों से हुआ करता था जो मेरी इच्छाओं के अनुरूप नहीं होती थीं, तो मैं हमेशा सोचती थी कि मैं तो बस बदकिस्मत हूँ, लेकिन ऐसा इसलिए था क्योंकि मेरे अंदर महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ थीं और मैं हमेशा दूसरों की सराहना पाने की कोशिश करती थी और जब मुझे वह नहीं मिलता था जो मैं चाहती थी, तो मैं असहाय और बदकिस्मत महसूस करती थी, परमेश्वर के बारे में शिकायतें करती और बड़बड़ाती थी और हताशा की दशा में जीने लगती थी। मैंने आत्म-चिंतन किया कि इस कलीसिया में आने के बाद मैं शुरू में लोगों की तारीफ पाने के लिए अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना चाहती थी, इसलिए मैंने बिना किसी शिकायत के सुबह से शाम तक काम किया। लेकिन जब चीजें मेरी इच्छा के अनुसार नहीं हुईं और सुसमाचार कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए गए, तो मुझे चिंता हुई कि काम में लोगों के सहयोग के बिना अच्छे नतीजे प्राप्त करना संभव नहीं होगा और जब प्रतिष्ठा और रुतबे की मेरी इच्छा अतृप्त रह गई, तो मैंने बदकिस्मत महसूस किया और मेरा पिछला उत्साह जल्द ही फीका पड़ गया। इस कलीसिया के कार्य की कई मदें पहले से ही नकली अगुआ के असली कार्य न करने के कारण विलंबित हो चुकी थीं और भाई-बहनों की गिरफ्तारियों ने बहुत से कार्य की सामान्य प्रगति में और भी बाधा डाली थी। उच्च अगुआओं ने मुझे यहाँ इस उम्मीद में रखा था कि मैं परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखा पाऊँगी, कार्य की विभिन्न मदों को आगे बढ़ा पाऊँगी और कलीसिया के हितों की रक्षा कर पाऊँगी। लेकिन बड़ी कठिनाइयों का सामना करते हुए मैं हताश हो गई थी, अपने कर्तव्य के प्रति प्रेरणा खो बैठी थी और अपने “दुर्भाग्य” को लेकर शिकायत करने लगी थी। मेरे इस व्यवहार से परमेश्वर को सचमुच घृणा हुई थी। परमेश्वर के प्रति सचमुच में वफादार व्यक्ति, कलीसिया को इन सभी भाई-बहनों की गिरफ्तारी और गंभीर धर-पकड़ का सामना करते देख, अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करता, उसने कर्मियों के काम में बदलाव किए होते और नुकसान को कम किया होता। लेकिन इस तरह के महत्वपूर्ण समय में मैं केवल अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को लेकर ही चिंतित थी। मैं सचमुच स्वार्थी थी और मेरे अंदर अंतरात्मा और मानवता की कमी थी! अब मैंने समझा कि परमेश्वर ने मेरे भ्रष्ट स्वभाव को बदलने के लिए मुझ पर यह हालात आने दिए थे, क्योंकि मैंने प्रतिष्ठा और रुतबे को बहुत महत्व दिया था और मुझे इस हालात की जरूरत थी जो मुझे प्रकट करे और खुद को बदलने में मेरी मदद करे।
एक सुबह अपनी भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के और अधिक वचन पढ़े : “जब तुम अपनी महत्वाकांक्षाओं और आकांक्षाओं को जाने देते हो, जो भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना तुम्हारे साथ हो, उसे ठुकराना या उससे बचना बंद कर देते हो, और इन चीजों को तुम इस तराजू पर तोलना छोड़ देते हो कि तुम कितने खुशनसीब या बदनसीब हो, तो वे ज्यादातर चीजें जिन्हें तुम दुर्भाग्यपूर्ण और बुरी माना करते थे, वे अब तुम्हें अच्छी लगने लगेंगी—बुरी चीजें अच्छी में तब्दील हो जाएँगी। तुम्हारी मानसिकता बदल जाएगी, चीजों को देखने का तुम्हारा तरीका बदल जाएगा, इससे तुम अपने जीवन अनुभवों के बारे में अलग महसूस कर पाओगे और साथ-साथ तुम्हें मिलने वाले लाभ भी अलग होंगे। यह एक असाधारण अनुभव है, जो तुम्हें ऐसे लाभ पहुँचाएगा जिनकी तुमने कल्पना भी नहीं की थी। यह अच्छी बात है, बुरी नहीं। ... तथाकथित ‘अच्छे भाग्य’ के पीछे मत भागो, और तथाकथित ‘खराब भाग्य’ को मत ठुकराओ। तन-मन से परमेश्वर को समर्पित हो जाओ, उसे कार्य और आयोजन करने दो, उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर दो। तुम्हें जब और जिस मात्रा में जो चाहिए वह परमेश्वर तुम्हें देगा। वह उस परिवेश, उन लोगों, घटनाओं और चीजों का आयोजन तुम्हारी जरूरत और कमियों के अनुसार करेगा जिनकी तुम्हें आवश्यकता है, ताकि तुम जिन लोगों, घटनाओं और चीजों के संपर्क में आओ, उनसे वे सबक सीख सको जो तुम्हें सीखने चाहिए। बेशक, इन सबके लिए शर्त यह है कि तुम्हारे पास परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण की मानसिकता हो” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (2))। परमेश्वर कहता है कि जब हम घटनाओं को “सौभाग्य” या “दुर्भाग्य” के रूप में देखना बंद कर देते हैं, तो हम परमेश्वर द्वारा हमारे लिए व्यवस्थित हालात में अप्रत्याशित अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं और अपने अनुभवों के माध्यम से परमेश्वर के कर्मों और संप्रभुता को देख सकते हैं। इसलिए जब प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़े, तो हमें उनसे बचने या उन्हें टालने की कोशिश करने के बजाय उन्हें परमेश्वर से स्वीकार कर लेना चाहिए। लोग जिन घटनाओं को “बुरी” घटनाओं के रूप में देखते हैं, उनके पीछे हमेशा परमेश्वर का इरादा और वे अनुभव होते हैं जिनसे हमें गुजरने की जरूरत होती है। परमेश्वर हमें प्रशिक्षित करने के लिए ऐसे हालात का उपयोग करता है, जिससे हमारे जीवन विकसित होते हैं—यही उसका अच्छा इरादा है। मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपना गलत दृष्टिकोण सुधारना चाहिए और परमेश्वर पर भरोसा करके अपना सर्वश्रेष्ठ करना चाहिए। मुझे विश्वास था कि परमेश्वर कलीसिया के कार्य में सहयोग करने के लिए सही लोगों को तैयार करेगा। जब मैंने इस तरह से सोचा, तो मेरी मनोदशा में बहुत सुधार हुआ। इसलिए मैंने सुसमाचार के कार्य में मदद करने के लिए लोगों की तलाश शुरू कर दी। उस समय एक बहन थी जो पारिवारिक बोझ के कारण कमजोर और हतोत्साहित महसूस कर रही थी। हमने उससे संपर्क किया, उसके साथ संगति कर उसे सहारा दिया। संगति की अवधि के बाद उसकी दशा में सुधार हुआ और वह अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार हो गई। हमारी संगति के बाद एक और बहन भी अपने कर्तव्य निभाने के लिए इच्छुक हो गई। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर ने मुझे वास्तविक कार्य करना सिखाने के लिए इस परिवेश की व्यवस्था की थी, जैसे भाई-बहनों के मुद्दे हल करने के लिए संगति करना। एक बार जब वे परमेश्वर का इरादा समझ गए, तो वे सक्रिय रूप से सहयोग करेंगे। इसके अतिरिक्त इस परिवेश ने हमें और अधिक लोगों को अपने कर्तव्य पूरे करने के लिए तैयार करने में मदद की। मैं परमेश्वर की आभारी थी!
सितंबर में मुझे अचानक एक पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि सुसमाचार उपयाजक को गिरफ्तार कर लिया गया है। अगले कुछ दिनों में और भाई-बहनों की गिरफ्तारियों की खबरें आईं। मैंने मन में सोचा, “जैसे ही हमने आखिरकार टीम को समायोजित किया और कुछ परिणाम देखे, अब सुसमाचार कार्यकर्ताओं को फिर से गिरफ्तार किया जा रहा है। मैं इतनी बदकिस्मत क्यों हूँ? ये दुर्भाग्य मेरे साथ ही होते हैं!” लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि मेरी मनोदशा ठीक नहीं थी, इसलिए मैंने जल्दी से चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे इस मनोदशा से बाहर निकलने में मेरा मार्गदर्शन करने को कहा। मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “तथ्य यह है कि कोई व्यक्ति किसी चीज के बारे में अच्छा महसूस करता है या बुरा, यह उस चीज के सार के बजाय, उसकी अपनी स्वार्थी मंशाओं, आकांक्षाओं और आत्म-हित पर आधारित होता है। इसलिए जिस आधार पर लोग अनुमान लगाते हैं कि कोई चीज अच्छी है या बुरी, वह गलत है। आधार गलत होने के कारण जो अंतिम निष्कर्ष वे निकालते हैं, वे भी गलत होते हैं। अच्छे भाग्य और खराब भाग्य के विषय पर वापस लौटें, तो अब सब जानते हैं कि भाग्य के बारे में यह कहावत निराधार है, और यह न अच्छा होता है न खराब। जिन भी लोगों, घटनाओं और चीजों से तुम्हारा सामना होता है, वे चाहे अच्छे हों या बुरे, सभी परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था द्वारा तय किए जाते हैं, इसलिए तुम्हें उचित ढंग से उनका सामना करना चाहिए। परमेश्वर से वह स्वीकार करो जो अच्छा है, और जो कुछ बुरा है, उसे भी परमेश्वर से स्वीकार करो। जब कुछ अच्छा घटे, तो मत कहो कि तुम भाग्यशाली हो, और बुरा घटे तो खुद को अभागा मत कहो। यही कहा जा सकता है कि इन सभी चीजों में लोगों के लिए सीखने के सबक होते हैं, और उन लोगों को इन्हें ठुकराना या इनसे बचना नहीं चाहिए। अच्छी चीजों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करो, साथ ही बुरी चीजों के लिए भी उसका धन्यवाद करो, क्योंकि इन सभी चीजों की व्यवस्था उसी ने की है। अच्छे लोग, घटनाएँ, चीजें और परिवेश सबक देते हैं जो उन्हें सीखने चाहिए, मगर बुरे लोगों, घटनाओं, चीजों और परिवेशों से और भी ज्यादा सीखने को मिलता है। ये सभी वो अनुभव और कड़ियाँ हैं जो किसी के जीवन का भाग होनी चाहिए। इन्हें मापने के लिए लोगों को भाग्य के विचार का प्रयोग नहीं करना चाहिए” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (2))। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आया कि लोग अक्सर अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और हितों के आधार पर आकलन करते हैं कि परिस्थितियाँ अच्छी हैं या बुरी, न कि सत्य के आधार पर। सुसमाचार उपयाजक की गिरफ्तारी परमेश्वर की अनुमति से हुई; परमेश्वर अपनी संप्रभुता और आयोजनों के अनुसार यह व्यवस्था करता है कि किसे गिरफ्तार किया जाए और ये ऐसे अनुभव हैं जिनसे लोगों को गुजरने की जरूरत होती है। मुझे समर्पण करना चाहिए, बाद की स्थिति सँभालनी चाहिए और सहयोग करने के लिए जो कुछ भी मैं कर सकती हूँ, वह करना चाहिए। इसके बाद मैंने बाद की स्थिति सँभालनी शुरू कर दी। बाद में मुझे पता चला कि सुसमाचार टीम के अगुआ ने तीन नए लोगों के साथ सुसमाचार प्रचार करना और सभाएँ करना जारी रखा। वे बड़े लाल अजगर से भयभीत नहीं थे और उनका सुसमाचार कार्य पहले से भी ज्यादा प्रभावी था। इसके अलावा कुछ बहनों ने कलीसिया के कार्य पर पड़ने वाले प्रभाव से चिंतित होकर अपने कर्तव्य करने की पहल की। यह सब देखकर मैं गहराई से प्रभावित हुई। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित हर स्थिति का कोई उद्देश्य होता है। जो लोग गिरफ्तार किए गए थे, उनके पास ऐसे अनुभव हैं जिनसे उन्हें गुजरना चाहिए और जो गिरफ्तार नहीं हुए, उनके पास गवाही है। परमेश्वर लोगों को पूर्ण बनाने को सेवा कराने के लिए बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का उपयोग करता है।
इस अनुभव के जरिए मैंने समझा कि ये परिस्थितियाँ “बुरी किस्मत” के कारण नहीं हुईं या इसलिए नहीं हुईं कि परमेश्वर की मुझसे बहुत ज्यादा माँगें थीं। इसके बजाय परमेश्वर उनका उपयोग मुझे शुद्ध करने और बदलने के लिए कर रहा था। जब मैंने अपनी मानसिकता समायोजित की और असल में सहयोग किया, तो मैंने परमेश्वर के कार्य को खुलकर सामने आते देखा। जब तक मैंने ईमानदारी से प्रार्थना की और पूरे दिल से अपने कर्तव्य निभाए, परमेश्वर ने मेरे लिए रास्ता खोल दिया। आगे से मैं अपने कर्तव्य पूरा करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करते रहने को तैयार हूँ।