34. क्या दयालुता के मायने अच्छी मानवता है?

शाओ जिन, चीन

अगस्त 2023 में मैं कलीसिया में पाठ आधारित कार्य के लिए जिम्मेदार था। आमतौर पर जब भी भाई-बहनों को अपने पेशे या कार्य में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता, मैं धैर्यपूर्वक उनका मार्गदर्शन और सहायता करता। हर संगति के बाद सबके चेहरों पर मुस्कान देखकर मुझे बहुत खुशी और संतुष्टि मिलती थी। मुझे लगता था कि सब लोग मुझे स्वीकारते हैं। कुछ समय बाद मैंने देखा कि समूह अगुआ, बहन वांग यिंग को अपने कर्तव्य के प्रति कोई जिम्मेदारी महसूस नहीं होती और वह कार्य के प्रति लापरवाही बरतती है। जब कार्य के परिणाम खराब होते तो वह मुद्दों का सारांश प्रस्तुत करने में सभी की अगुआई करने की पहल नहीं करती। अपने दैनिक कर्तव्य में वह केवल आदेश देती थी और दूसरों को कार्य करने के लिए निर्देश देती थी। इसके अलावा वह उपदेशों के चयन में भी सतर्क नहीं थी और अक्सर साधारण मुद्दों पर भी गलतियाँ कर देती थी। जब उसके साथ कार्य करने वाली बहन ने उसकी समस्याओं के बारे में बताया तो उसने मौखिक रूप से तो उन्हें स्वीकार कर लिया, लेकिन उसके बाद भी वह लापरवाही बरतती रही। शुरू में तो यह देखते हुए कि वह युवा है और उसे परमेश्वर पर विश्वास करते हुए अभी कम ही समय हुआ है, मैंने उसकी मदद की और उसका मार्गदर्शन किया। लेकिन कुछ समय बाद मैंने देखा कि उसमें कोई खास बदलाव नहीं आया है। मुझे पता था कि मुझे उसके साथ संगति कर उसकी समस्याओं को उजागर करना होगा ताकि उसे अपनी समस्याओं की गंभीरता का एहसास हो सके। लेकिन जब वास्तव में उसे उजागर करने का समय आया तो मुझे चिंता हुई। मैंने सोचा, “अगर मैं बहुत कठोरता से बात करूँगा तो वह यह तो नहीं सोचेगी कि मैं रूखा और भावनाशून्य हूँ और उसकी कमजोरियों को नहीं समझता? और अगर वह मेरे बारे में दूसरे भाई-बहनों से इस तरह बात करेगी तो वे कहीं यह तो नहीं सोचेंगे कि मुझमें प्रेम की कमी है और अच्छी मानवता नहीं है? तो फिर भविष्य में मेरा साथ कौन देगा? शायद मुझे उसे उजागर और उसकी काट-छाँट नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय मुझे बस धैर्यपूर्वक उसकी मदद करनी चाहिए।” इसलिए मैंने वांग यिंग को संक्षेप में बता दिया कि उसके कार्य में क्या कमी है और अपने कर्तव्यों को पूरा करने में उसके कुछ लापरवाह व्यवहारों की ओर भी इशारा किया। यह सुनने के बाद वांग यिंग ने केवल यह स्वीकारा कि उसमें दायित्व-बोध नहीं है, लेकिन कार्य के प्रति अपने कर्तव्य के लापरवाह प्रदर्शन के कारण होने वाले नुकसान के बारे में उसने कोई चिंतन या समझ नहीं दिखाई। फिर उसने तुरंत उस विषय पर बात करना शुरू कर दिया जिसमें उसकी रुचि थी और ऐसे चमक उठी जैसे कुछ हुआ ही न हो। जब मैंने उसकी प्रतिक्रिया देखी तो मुझे पता चल गया कि मेरी संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। लेकिन फिर मैंने सोचा, “मैंने उसे चेताया तो है और उसने कहा भी है कि वह बदलाव लाएगी इसलिए मैं बस उस पर आगे नजर रखूँगा।” बाद में मुझे पता चला कि वांग यिंग को अभी भी अपने कर्तव्यों में कोई दायित्व-बोध नहीं है। मैं यह सोचकर काफी चिंतित हो गया कि मुझे उसकी समस्याओं को सख्ती से उजागर करने की जरूरत है वरना इससे कार्य पर गंभीर असर पड़ेगा। एक बार जब मैं उसके कार्य का मार्गदर्शन कर रहा था तो मैंने काफी सख्ती से उसकी काट-छाँट कर दी। उसे सिर झुकाए, त्योरियाँ चढ़ाए और परेशान देखकर मैं सोचने लगा कि क्या मेरी टिप्पणी बहुत कठोर थी। मैंने सोचा, “कहीं वह यह तो नहीं सोचेगी कि मैं पूरी तरह से भावनाशून्य हूँ और मेरे शब्द बहुत चोट पहुँचाने वाले हैं? क्या भविष्य में भी उसके मन में मेरी अच्छी छवि रहेगी?” इसलिए मैंने तुरन्त सांत्वना और प्रोत्साहन के कुछ शब्द कहे और समझाया कि काट-छाँट करना अच्छी बात है, और उसे नकारात्मक नहीं होना चाहिए और भविष्य में बदलाव लाना चाहिए। लेकिन इसके बाद भी उसे अपने कर्तव्यों के प्रति कोई दायित्व-बोध नहीं हुआ जिससे कार्य में गंभीर देरी हुई। अंत में मेरे पास उसे बरखास्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

उसकी बरखास्तगी के बाद उच्च अगुआ ने मुझसे पूछा, “तुमने वांग यिंग की समस्याओं को पहले भी देखा था। तुमने उस समय उसकी काट-छाँट और उसे उजागर क्यों नहीं किया? इस तरह शायद वह पहले ही सुधर जाती और अगर तुम्हें पता चल गया था कि उसे कोई पश्चात्ताप नहीं है तो तुम उसे पहले ही बरखास्त कर सकते थे। उसके लगातार लापरवाह रवैये के कारण बहुत सारा कार्य अटक गया है!” अगुआ की बातें सुनकर मैं सोचने लगा, “मैंने वांग यिंग की समस्याओं को बहुत पहले ही देख लिया था और उसे कई बार चेताया भी था, लेकिन मैंने कभी भी उसके मुद्दों की प्रकृति का गहन-विश्लेषण नहीं किया था, उन पर उचित ढंग से विचार किए बिना केवल सतही तौर पर चर्चा की थी। मेरा व्यवहार भी पहले ऐसा ही था। जब मैं दूसरों की समस्याओं को देखता हूँ तो उनके बारे में बताने और उन्हें उजागर करने में असमर्थ क्यों हो जाता हूँ, मुझे हमेशा यह डर क्यों लगा रहता है कि बहुत कठोर होने से दूसरों पर मेरे बारे में गलत प्रभाव पड़ेगा? आखिर इसमें समस्या क्या है?” मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मुझे प्रबुद्ध करे ताकि मैं अपनी समस्याओं को पहचान सकूँ।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जब कोई कलीसियाई अगुआ भाई-बहनों को अनमने ढंग से अपने कर्तव्य करते हुए देखता है, तो उन्हें डाँटता नहीं, हालाँकि उसे डाँटना चाहिए। स्पष्ट रूप से यह देखने पर भी कि परमेश्वर के घर के हितों को ठेस पहुँच रही है, वह इस बारे में कोई चिंता नहीं करता है और न ही कोई पूछताछ करता है और वह दूसरों को जरा भी नाराज नहीं करता है। दरअसल, वह लोगों की कमजोरियों के प्रति सचमुच विचारशील नहीं है; बल्कि, उसका इरादा और लक्ष्य लोगों के दिल जीतना है। उसे पूरी तरह से मालूम है कि : ‘जब तक मैं ऐसा करता रहूँगा और किसी को नाराज नहीं करूँगा, तब तक वे यही सोचेंगे कि मैं एक अच्छा अगुआ हूँ। वे मेरे बारे में अच्छी, ऊँची राय रखेंगे। वे मुझे स्वीकार करेंगे और मुझे पसंद करेंगे।’ वह इसकी परवाह नहीं करता है कि परमेश्वर के घर के हितों को कितनी ठेस पहुँच रही है या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को कितने बड़े-बड़े नुकसान हो रहे हैं या उनके कलीसियाई जीवन को कितनी ज्यादा बाधा पहुँच रही है, वह बस अपने शैतानी फलसफे पर कायम रहता है और किसी को नाराज नहीं करता है। उसके दिल में कभी कोई आत्म-निंदा का भाव नहीं होता है। जब वह किसी को गड़बड़ियाँ और विघ्न उत्पन्न करते देखता है, तो ज्यादा से ज्यादा वह उससे इस बारे में कुछ बात कर लेता है, मुद्दे को मामूली बनाकर पेश करता है, और फिर मामले को समाप्त कर देता है। वह सत्य पर संगति नहीं करेगा या उस व्यक्ति को समस्या का सार नहीं बताएगा, उसकी स्थिति का गहन-विश्लेषण तो और भी कम करेगा और परमेश्वर के इरादों के बारे में संगति तो कभी नहीं करेगा। नकली अगुआ कभी भी लोगों द्वारा बार-बार की जाने वाली गलतियों या प्रायः प्रकट किए जाने वाले भ्रष्ट स्वभावों को उजागर या गहन विश्लेषित नहीं करते। वह किसी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं करता है, बल्कि हमेशा लोगों के गलत अभ्यासों और भ्रष्टाचार के खुलासों में शामिल रहता है, और भले ही लोग कितने भी निराश या कमजोर क्यों ना हों, वह इस चीज को गंभीरता से नहीं लेता है। वह सिर्फ कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का ही प्रचार करता है और मेल-मिलाप बनाए रखने का प्रयास करते हुए बेपरवाह तरीके से स्थिति से निपटने के लिए प्रोत्साहन के कुछ शब्द बोल देता है। फलस्वरूप, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यह मालूम नहीं होता है कि उन्हें कैसे आत्म-चिंतन करना है और आत्म-ज्ञान कैसे प्राप्त करना है, वे जो भी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं उनका कोई समाधान नहीं निकलता है और वे जीवन प्रवेश के बिना ही शब्दों और धर्म-सिद्धांतों, धारणाओं और कल्पनाओं के बीच जीवन जीते रहते हैं। वे अपने दिलों में भी यह मानते हैं, ‘हमारी कमजोरियों के बारे में हमारे अगुआ को परमेश्वर से भी ज्यादा समझ है। परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने के लिए हमारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। हमें बस अपने अगुआ की अपेक्षाएँ पूरी करने की जरूरत है; अपने अगुआ के प्रति समर्पण करके हम परमेश्वर के प्रति समर्पण कर रहे हैं। अगर ऐसा कोई दिन आता है जब ऊपरवाला हमारे अगुआ को बरखास्त कर देता है तो हम अपनी आवाज उठाएँगे; अपने अगुआ को बनाए रखने और उसे बरखास्त किए जाने से रोकने के लिए हम ऊपरवाले से बातचीत करेंगे और उसे हमारी माँगें मानने के लिए मजबूर करेंगे। इस तरह से हम अपने अगुआ के साथ उचित व्यवहार करेंगे।’ जब लोगों के दिलों में ऐसे विचार होते हैं, जब वे अपने अगुआ के साथ ऐसा रिश्ता बना लेते हैं और उनके दिलों में अपने अगुआ के लिए इस तरह की निर्भरता, ईर्ष्या और आराधना की भावना जन्म ले लेती है, तो ऐसे अगुआ में उनकी आस्था और बढ़ जाती है, और वे हमेशा परमेश्वर के वचनों में सत्य तलाशने के बजाय अगुआ के शब्दों को सुनना चाहते हैं। ऐसे अगुआ ने लोगों के दिलों में परमेश्वर की जगह लगभग ले ली है। अगर कोई अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ ऐसा रिश्ता बनाए रखने के लिए राजी है, अगर इससे उसे अपने दिल में खुशी का एहसास होता है और वह मानता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए, तो इस अगुआ और पौलुस के बीच कोई फर्क नहीं है, वह पहले से ही एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर अपने कदम रख चुका है और परमेश्वर के चुने हुए लोग पहले से ही इस मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह हो चुके हैं और उनमें सूझ-बूझ का पूरा अभाव है। दरअसल, इस अगुआ के पास सत्य वास्तविकता नहीं है और वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के बारे में बिल्कुल भी बोझ नहीं उठाता है। वह सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांतों का ही उपदेश दे सकता है और दूसरों के साथ अपने रिश्ते बनाए रख सकता है। वह पाखंडी तरीकों का उपयोग करके दिखावा करने में अच्छा होता है, उसकी बोली और क्रियाकलाप लोगों की धारणाओं से तालमेल रखते हैं और इस तरह से वह लोगों को गुमराह करता है। उसे सत्य की संगति करने या आत्म-ज्ञान प्राप्त करने का तरीका नहीं मालूम होता है और इसलिए वह दूसरों की अगुवाई करके उन्हें सत्य वास्तविकता में नहीं ले जा सकता है। वह सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए काम करता है और सिर्फ मीठे-मीठे शब्द बोलता है जो लोगों को फाँस लेते हैं। वह पहले से ही लोगों को उसकी आराधना करने और उसका आदर करने के लिए मनाने का लक्ष्य प्राप्त कर चुका है और इससे कलीसिया का कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन प्रवेश गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है और उसमें देरी हुई है। क्या ऐसा व्यक्ति मसीह-विरोधी नहीं है?(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद एक : वे लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं)। परमेश्वर उजागर करता है कि झूठे अगुआ भाई-बहनों के कर्तव्यों में समस्याओं का पता लगने पर भी उन्हें उजागर नहीं करते या उनकी काट-छाँट नहीं करते, ऐसे अगुआ इस बात की परवाह नहीं करते कि कार्य में कितनी देरी हो रही है या इन मुद्दों की प्रकृति कितनी गंभीर है। वे केवल सतही बातें करते हैं और समस्याओं को हल करने के लिए सत्य पर संगति नहीं करते। इसके अलावा वे निरंतर क्षमाशील और सहनशील बने रहते हैं, दूसरों को यह एहसास दिलाते रहते हैं कि वे वाकई प्रेमपूर्ण हैं ताकि दूसरे लोग उन्हें स्वीकारें और उनका समर्थन करें। यह लोगों के दिलों को जीतने और उन्हें गुमराह करने के लिए किया जाता है और यह मसीह-विरोधियों की आदत होती है। सच तो यह है कि मैं भी ऐसा ही था। जब मैंने देखा कि वांग यिंग अपने कर्तव्य में लापरवाही बरत रही है और वास्तविक कार्य नहीं कर रही है तो मैं जानता था कि उसके इस तरह से अपना कर्तव्य निभाने से कार्य में गंभीर देरी होगी और अगर वह पश्चात्ताप नहीं करेगी तो उसे बरखास्त करना ही एकमात्र विकल्प होगा। लेकिन जब मैंने उसकी समस्याओं की ओर ध्यान दिलाना चाहा तो मुझे डर था कि वह कहेगी कि मैं उसकी कमजोरियों के प्रति सहानुभूति नहीं रखता, मैं रूखा और भावनाशून्य हूँ और मुझमें प्रेम और मानवता की कमी है। उसकी नजरों में अपनी अच्छी छवि बनाए रखने के लिए मैं उसकी काट-छाँट और उजागर करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर सका। इसके बजाय मैं बस उसे केवल सतही तौर पर चेताता रहा कि वह अपने कर्तव्यों में अधिक मन लगाए, लेकिन मैंने उसके क्रिया-कलापों की प्रकृति और परिणामों को उजागर नहीं किया। बाद में जब मैंने देखा कि वांग यिंग अभी भी अपने कर्तव्यों में लापरवाही बरत रही है तो मैंने केवल कुछ कठोर शब्द कहे, लेकिन जब मैंने उसे सिर झुकाए और परेशान देखा तो मुझे चिंता होने लगी कि वह मेरे बारे में क्या सोचेगी, इसलिए मैंने जल्दी से सांत्वना और प्रोत्साहन के कुछ शब्द कहे। नतीजतन वांग यिंग को यह एहसास नहीं हुआ कि उसकी समस्याएँ गंभीर हैं और उसने कोई पश्चात्ताप या कोई बदलाव नहीं किया और अंत में उसे बरखास्त कर दिया गया। भाई-बहनों के मुद्दों का सामना करते समय मैंने इस बात पर विचार ही नहीं किया कि उन्हें हल करने के लिए सत्य पर संगति कैसे की जाए। मैं केवल उनकी नजरों में अपनी एक दयालु और प्रेमपूर्ण छवि बनाए रखने पर ध्यान देता रहा और लगातार अपनी असलियत छिपाए रहा। अब मुझे अंततः यह समझ आया कि यह तथाकथित प्रेम झूठा है। मैं तो बस अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बचाए रखने तथा दूसरों की प्रशंसा पाने का प्रयास कर रहा था। एक पर्यवेक्षक के रूप में मेरी जिम्मेदारियाँ भाई-बहनों की समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य की संगति करना, उन्हें अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से करने में सहायता करना और कलीसिया के कार्य की रक्षा करना थीं। लेकिन मैंने बस यही कोशिश की कि मैं उनके दिलों में अपनी जगह सुरक्षित रखूँ और मैंने अपनी जिम्मेदारियों को रत्तीभर भी पूरा नहीं किया जबकि मैं लगातार खुद को एक प्रेमपूर्ण व्यक्ति के रूप में छिपाए रहा। इस प्रकार मैं लोगों को गुमराह कर उन्हें अपने जाल में फँसा रहा था और मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहा था। मेरे कार्य करने के तरीके से भाई-बहनों को सचमुच नुकसान पहुँचा। ऐसा करके मैं कलीसिया के कार्य में बाधा डाल रहा था और कुकर्म कर रहा था! इस पर विचार करते हुए मुझे बहुत दुख और ग्लानि हुई और मैं पश्चात्ताप करने को तैयार था।

बाद में मैंने विचार किया, “मैंने सोचा कि अच्छी मानवता का मतलब समझदार, सहानुभूतिपूर्ण और सहनशील होना है जबकि दूसरों की समस्याओं की काट-छाँट करना और उन्हें उजागर करना रूखा और भावनाशून्य होना है, प्रेम और मानवता की कमी होना है। क्या मेरा यह दृष्टिकोण सही है? वास्तव में अच्छी मानवता क्या है?” मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और मेरा हृदय रोशन हो गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “अच्छी मानवता होने का कोई मानक अवश्य होना चाहिए। इसमें संयम का मार्ग अपनाना, सिद्धांतों से चिपके न रहना, किसी को भी नाराज न करने का प्रयत्न करना, जहाँ भी जाओ वहीं चापलूसी करके कृपापात्र बनना, जिससे भी मिलो उससे चिकनी-चुपड़ी बातें करना और सभी से अपने बारे में अच्छी बातें करवाना शामिल नहीं है। यह मानक नहीं है। तो मानक क्या है? यह परमेश्वर और सत्य के प्रति समर्पित होने में सक्षम होना है। यह अपने कर्तव्य को और सभी तरह के लोगों, घटनाओं और चीजों को सिद्धांतों के साथ और जिम्मेदारी की भावना से लेना है। सब इसे स्पष्ट ढंग से देख सकते हैं; इसे लेकर सभी अपने हृदय में स्पष्ट हैं। इतना ही नहीं, परमेश्वर लोगों के हृदयों की जाँच-पड़ताल करता है और उनमें से हर एक की स्थिति जानता है; चाहे वे जो भी हों, परमेश्वर को कोई मूर्ख नहीं बना सकता। कुछ लोग हमेशा डींग हाँकते हैं कि वे अच्छी मानवता से युक्त हैं, कि वे कभी दूसरों के बारे में बुरा नहीं बोलते, कभी किसी और के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाते, और वे यह दावा करते हैं कि उन्होंने कभी अन्य लोगों की संपत्ति की लालसा नहीं की। जब हितों को लेकर विवाद होता है, तब वे दूसरों का फायदा उठाने के बजाय नुकसान तक उठाना पसंद करते हैं, और बाकी सभी सोचते हैं कि वे अच्छे लोग हैं। परंतु, परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाते समय, वे कुटिल और चालाक होते हैं, हमेशा स्वयं अपने हित में षड्यंत्र करते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचते, वे कभी उन चीजों को अत्यावश्यक नहीं मानते हैं जिन्हें परमेश्वर अत्यावश्यक मानता है या उस तरह नहीं सोचते हैं जिस तरह परमेश्वर सोचता है, और वे कभी अपने हितों को एक तरफ नहीं रख सकते ताकि अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। वे कभी अपने हितों का परित्याग नहीं करते। यहाँ तक कि जब वे बुरे लोगों को बुरे कर्म करते हुए देखते हैं, वे उन्हें उजागर नहीं करते; उनके रत्ती भर भी कोई सिद्धांत नहीं हैं। यह किस प्रकार की मानवता है? यह अच्छी मानवता नहीं है। ऐसे व्यक्तियों की बातों पर बिल्कुल ध्यान न दो; तुम्हें देखना चाहिए कि वे किसके अनुसार जीते हैं, क्या प्रकट करते हैं, और अपने कर्तव्य निभाते समय उनका रवैया कैसा होता है, साथ ही उनकी अंदरूनी दशा कैसी है और उन्हें किससे प्रेम है। अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम परमेश्वर के प्रति उनकी निष्ठा से बढ़कर है, अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम परमेश्वर के घर के हितों से बढ़कर है, या अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम उस विचारशीलता से बढ़कर है जो वे परमेश्वर के प्रति दर्शाते हैं, तो क्या ऐसे लोगों में मानवता है? वे मानवता वाले लोग नहीं हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि अच्छी मानवता इस बात से निर्धारित नहीं होती कि कोई व्यक्ति दयालुता और शिष्टता से बोलता है या कठोरता और सीधेपन से। इसके बजाय यह इस बात पर आधारित है कि क्या कोई व्यक्ति परमेश्वर और सत्य के प्रति समर्पित है और क्या वह अपने कर्तव्यों को जिम्मेदारी से निभाता है। जैसे कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कर्तव्यों में गैर-जिम्मेदार होने के कारण भाई-बहनों की काट-छाँट करने में सक्षम होते हैं और वे परमेश्वर के वचनों के प्रकाश में इन भाई-बहनों के कार्यों की प्रकृति और परिणामों को उजागर कर सकते हैं। हालाँकि ये बातें सुनकर उन्हें दुख हो सकता है, उनमें से जो सत्य का अनुसरण करते हैं वे इस अवसर का उपयोग स्वयं को जानने और आत्मचिंतन करने के लिए कर सकते हैं जिससे उनके जीवन प्रवेश और उनके कर्तव्यों की पूर्ति दोनों को लाभ मिलता है। कुछ लोग दयालु दिख सकते हैं, लेकिन जब वे भाई-बहनों को सिद्धांतों के विरुद्ध काम करते और कार्य को नुकसान पहुँचाते देखते हैं और उन्हें इसके लिए संगति और प्रकाशन की आवश्यकता होती है तो वे स्वयं को सुरक्षित रखते हैं, दूसरों के साथ अनमने ढंग से पेश आने के लिए केवल अच्छे लगने वाले शब्द ही बोलते हैं। वे इस बात पर विचार नहीं करते कि दूसरों की वास्तविक मदद कैसे की जाए या कलीसिया के हितों की रक्षा कैसे की जाए। वे सचमुच स्वार्थी और चालाक होते हैं और ये अच्छी मानवता वाले लोग नहीं होते। मैं भी वैसा ही व्यवहार करता था, केवल अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के बारे में सोचता था, जब मैं दूसरों को गलत रास्ते पर जाते देखता तो उनकी ओर मदद का हाथ तक नहीं बढ़ाता था। मुझे लगता था कि मुझमें अच्छी मानवता है, लेकिन परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन और तथ्यों के खुलासे से मैंने देखा कि मैं एक अच्छी मानवता वाला इंसान होने से कोसों दूर हूँ। यह जानकर मुझे बहुत दुख और शर्मिंदगी हुई और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मुझे अपने आपसे बेहद घृणा हुई और मैं इस तरह का व्यवहार नहीं करते रहना चाहता था।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और अभ्यास का मार्ग पाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जब तुम दूसरों के साथ बातचीत करते हो, तब तुम्हें पहले उन्हें अपने सच्चे दिल और ईमानदारी का एहसास कराना चाहिए। अगर बोलने और इकट्ठे कार्य करने, और दूसरों के साथ संपर्क करने में, किसी के शब्द लापरवाह, आडंबरपूर्ण, मजाकिया, चापलूसी करने वाले, गैर-जिम्मेदाराना और मनगढ़ंत हैं, या उसकी बातें केवल सामने वाले से अपना काम निकालने के लिए हैं, तो उसके शब्द विश्वसनीय नहीं हैं, और वह थोड़ा भी ईमानदार नहीं है। दूसरों के साथ बातचीत करने का उनका यही तरीका होता है, चाहे वे कोई भी हों। ऐसे व्यक्ति का दिल सच्चा नहीं होता। यह व्यक्ति ईमानदार नहीं है। मान लो, कोई नकारात्मक दशा में है और वह तुमसे ईमानदारी से कहता है : ‘मुझे बताओ, असल में मैं इतना नकारात्मक क्यों हूँ। मैं बिल्कुल समझ नहीं पाता।’ और मान लो, तुम अपने दिल में उसकी समस्या वास्तव में जानते हो, लेकिन उसे बताते नहीं, बल्कि उससे कहते हो : ‘यह कुछ नहीं है। तुम नकारात्मक नहीं हो रहे हो; मैं भी ऐसा हो जाता हूँ।’ ये शब्द उस व्यक्ति के लिए बहुत बड़ी सांत्वना हैं, लेकिन तुम्हारा रवैया ईमानदार नहीं है। तुम उसके साथ अनमने हो रहे हो, उसे अधिक सहज और आश्वस्त महसूस कराने के लिए तुमने उसके साथ ईमानदारी से बात करने से परहेज किया है। तुम ईमानदारी से उसकी सहायता नहीं कर रहे और उसकी समस्या स्पष्ट रूप से नहीं रख रहे जिससे वह अपनी नकारात्मकता छोड़ सके। तुमने वह नहीं किया, जो एक ईमानदार व्यक्ति को करना चाहिए। उसे सांत्वना देने के प्रयास में और यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसके साथ तुम्हारा कोई मनमुटाव या झगड़ा न हो, तुम उसके साथ अनमने रहे हो—और यह ईमानदार व्यक्ति होना नहीं है। इसलिए, एक ईमानदार व्यक्ति होने के लिए, इस तरह की स्थिति से सामना होने पर तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें उसे वह बताना चाहिए, जो तुमने देखा और पहचाना है : ‘मैं तुम्हें वह बताऊँगा, जो मैंने देखा और अनुभव किया है। तुम निर्णय करना कि मैं जो कह रहा हूँ, वह सही है या गलत। अगर वह गलत है, तो तुम्हें उसे स्वीकारने की जरूरत नहीं है। अगर वह सही है, तो आशा है तुम उसे स्वीकारोगे। अगर मैं कुछ ऐसा कहूँ जिसे सुनना तुम्हारे लिए कठिन हो और तुम्हें उससे चोट पहुँचे, तो मुझे उम्मीद है, तुम उसे परमेश्वर से आया समझकर स्वीकार पाओगे। मेरा इरादा और उद्देश्य तुम्हारी सहायता करना है। मुझे तुम्हारी समस्या स्पष्ट दिखती है : चूँकि तुम्हें लगता है कि तुम्हें अपमानित किया गया है, और कोई तुम्हारे अहं को बढ़ावा नहीं देता, और तुम्हें लगता है कि सभी लोग तुम्हें तुच्छ समझते हैं, कि तुम पर प्रहार किया जा रहा है, और तुम्हारे साथ इतना गलत कभी नहीं हुआ, तो तुम इसे बरदाश्त नहीं कर पाते और नकारात्मक हो जाते हो। तुम्हें क्या लगता है—क्या वास्तव में यही बात है?’ और यह सुनकर वह महसूस करता है कि वास्तव में यही मामला है। तुम्हारे दिल में वास्तव में यही है, लेकिन अगर तुम ईमानदार नहीं हो, तो तुम यह नहीं कहोगे। तुम कहोगे, ‘मैं भी अक्सर नकारात्मक हो जाता हूँ,’ और जब दूसरा व्यक्ति सुनता है कि सभी लोग नकारात्मक हो जाते हैं, तो उसे लगता है कि उसका नकारात्मक होना सामान्य बात है, और अंत में, वह अपनी नकारात्मकता पीछे नहीं छोड़ता। अगर तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो और ईमानदार रवैये और सच्चे दिल से उसकी सहायता करते हो, तो तुम सत्य समझने और अपनी नकारात्मकता पीछे छोड़ने में उसकी मदद कर सकते हो(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल एक ईमानदार व्यक्ति ही सच्चे मनुष्य की तरह जी सकता है)। परमेश्वर के वचन हमें बताते हैं कि हमें भाई-बहनों के साथ सच्चे दिल से पेश आना चाहिए और जब हमें उनमें कोई समस्या नजर आए तो हमें ईमानदारी से उनकी मदद और समर्थन करना चाहिए। यह मदद किसी तरीके या नियम से बंधी नहीं होती। अगर संगति और चेतावनी जैसी चीजें प्रभावी हो सकती हैं तो हमें उनका उपयोग करना चाहिए, लेकिन अगर उनकी समस्याओं की प्रकृति गंभीर है तो फिर उनकी काट-छाँट, उन्हें उजागर करना और गहन-विश्लेषण जरूरी हो जाता है। संगति के जो भी साधन समस्याओं को हल कर सकते हैं या परिणाम प्राप्त कर सकते हैं, हमें उनका उपयोग करना चाहिए। अगर हम केवल अपने आत्म-सम्मान और छवि पर विचार करते हैं, समस्याओं के सार को उजागर करने से बचते हैं और लोगों से अनमने ढंग से पेश आने के लिए केवल कुछ हल्के और सतही शब्द कहते हैं तो हम लोगों की मदद नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्हें नुकसान ही पहुँचा रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे जब मुझे पता चला कि वांग यिंग अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह है। हालाँकि मैंने उसे चेताया था और उसकी मदद करने की कोशिश की थी, लेकिन उसने मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लिया। इस मामले में, उसकी काट-छाँट जरूरी थी, परमेश्वर के वचनों के प्रकाश में उसके लापरवाह व्यवहार की प्रकृति और परिणामों का गहन-विश्लेषण करना आवश्यक था ताकि वह अपनी समस्याओं की गंभीरता को समझ सके। यह उसके प्रवेश के लिए लाभदायक होता। इन बातों को समझने के बाद मुझे अभ्यास का एक मार्ग मिला जिसके द्वारा मैं दूसरों की मदद कर सकता था और मैंने उसी के अनुसार अभ्यास करना शुरू कर दिया।

अक्टूबर 2023 में मैंने देखा कि बहन झोउ शिन अपने कर्तव्यों के प्रति गैरजिम्मेदार है। वह कई वर्षों से पाठ आधारित कार्य कर रही थी जबकि अन्य भाई-बहन अभी शुरुआत ही कर रहे थे, फिर भी वह केवल अपने कार्यों पर ही ध्यान देती थी और उसमें समग्र कार्य के प्रति कोई दायित्व-बोध नहीं था। मैंने पहले भी इस मुद्दे पर उसके साथ चर्चा की थी, लेकिन उसे इसमें प्रवेश नहीं मिला। मैंने उसके कार्य-कलापों की प्रकृति का गहन-विश्लेषण करने पर विचार किया ताकि उसमें बदलाव आ सके। लेकिन जब मैंने उसकी समस्याएँ बताने के बारे में सोचा तो मेरे मन में कुछ चिंताएं पैदा हुईं, “झोउ शिन कुछ समय पहले बहुत खराब दशा में थी, इसलिए अगर मैंने उसकी समस्याएँ बताईं और उन्हें उजागर किया तो कहीं वो मुझे असंवेदनशील और मानवता-विहीन तो नहीं समझेगी? अगर ऐसा हुआ तो निश्चित रूप से उसके मन में मेरी गलत छवि बनेगी।” जब ये विचार मेरे मन में आए तो मैं झिझक गया, सोचने लगा कि क्या मुझे उसे उजागर करने और उसकी काट-छाँट करने से बचना चाहिए। जब मैं यह सोच रहा था तो मुझे अचानक याद आया कि मैं पहले वांग यिंग के मामले में असफल हो चुका हूँ और मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया जो मैंने पहले पढ़ा था : “अगर तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो और ईमानदार रवैये और सच्चे दिल से उसकी सहायता करते हो, तो तुम सत्य समझने और अपनी नकारात्मकता पीछे छोड़ने में उसकी मदद कर सकते हो(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल एक ईमानदार व्यक्ति ही सच्चे मनुष्य की तरह जी सकता है)। मैं खुद से यह सवाल पूछे बिना न रह सका, “क्या मैं झोउ शिन की खातिर उसकी समस्याओं को उजागर करने से बच रहा हूँ?” सच में मैं बच रहा था। मुझे डर था कि झोउ शिन मुझे उसकी कमजोरियों के प्रति बहुत कठोर और असहानुभूतिपूर्ण समझेगी इसलिए मैं झिझक रहा था ताकि उसकी नजरों में मेरी छवि अच्छी बने रहे। मैंने यह भी सोचा कि कैसे बहन स्वार्थी और घृणित भ्रष्ट स्वभाव में जी रही है, वह अपने कर्तव्यों के प्रति गैरजिम्मेदार रही है और उसने पहले ही कार्य में देरी कर दी है। इस समस्या को उसके सामने उजागर करके और उसकी समस्याओं की गंभीरता का एहसास कराकर ही उसे पूरी तरह से बदलने का मौका दिया जा सकता था। भले ही उसे ऐसा महसूस हो जैसे उसके दिल को चीरा जा रहा है और कुछ समय के लिए वह इसे स्वीकार न कर पाए, फिर भी यह मेरी ईमानदारी से उसकी मदद करने की कोशिश होगी और मेरा जमीर साफ होगा। बाद में सभा के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों पर ध्यान दिया जो उसके केवल अपने कार्य पर ध्यान केंद्रित करने की प्रकृति और परिणामों को उजागर करते थे और जिसके कारण समग्र कार्य की उपेक्षा हो रही थी। मैंने देखा कि वह काफी परेशान है, लेकिन संगति के बाद, उसने कहा कि उसे अपनी समस्याओं के बारे में कुछ हद तक जानकारी थी, लेकिन उसने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया था और इस गहन-विश्लेषण से उसे आखिरकार पता चल गया कि उसकी समस्याएं कितनी गंभीर हैं। उसे एहसास हुआ कि वह कार्य के रुकने को लेकर चिंतित नहीं थी, न ही उसने इन समस्याओं के समाधान पर ध्यान दिया था, हालाँकि वह जानती थी कि ये समस्याएँ मौजूद हैं। उसे यह भी एहसास हुआ कि वह उदासीन और बेखबर थी जिसके कारण कार्य में देरी हुई और वह वास्तव में स्वार्थी और नीच है और उसे गंभीरता से चिंतन करने और बदलाव लाने की आवश्यकता है। मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि इस बहन ने ऐसी समझ हासिल कर ली है और मुझे लगा कि मैंने आखिरकार एक बार तो दूसरों की मदद की।

इस अनुभव से मुझे मानवता की अच्छाई को मापने के कुछ सिद्धांत समझ आए और मैंने यह भी स्पष्ट रूप से देखा कि ईमानदारी से दूसरों की मदद करने में मेरी विफलता, समस्याओं को बताने में मेरी हिचकिचाहट, केवल अपनी रक्षा करना और कलीसिया के कार्य को आगे न बढ़ाना, ये अच्छी मानवता न होने की अभिव्यक्तियाँ हैं। साथ ही मैंने सीखा कि प्रेम से दूसरों की मदद करने का वास्तविक अर्थ क्या होता है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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