46. मैं दूसरों को विकसित करने के लिए तैयार क्यों नहीं थी?

लिन जिंग, चीन

मार्च 2023 में मेरे पास कलीसिया में धर्मोपदेश कार्य की जिम्मेदारी थी। उस समय मैं अकेले काम करती थी, इसलिए काम का बोझ काफी ज्यादा था। एक दिन अगुआओं ने ली किंग को इस कर्तव्य में मेरी सहयोगी बना दिया। यह सुनकर मैं बहुत खुश हो गई। कुछ समय तक विकसित होने के बाद ली किंग धीरे-धीरे स्वतंत्र रूप से काम करने में सक्षम हो गई। मेरा बोझ काफी हद तक हल्का हो गया और मैं बहुत ज्यादा खुश थी। मैंने मन ही मन सोचा, “इस तरह से काम करना इतना थकाऊ नहीं होगा और मेरे पास सिद्धांतों का अध्ययन करने के लिए अधिक समय होगा। धर्मोपदेशों की गुणवत्ता भी सुधर जाएगी।” जब मैं अभी जश्न मना ही रही थी, अप्रत्याशित रूप से कुछ दिनों बाद हमारी अगुआ ली जिन ने ली किंग के साथ एक सभा रखी। मैं चौंक गई, सोचने लगी, “वह ली किंग के साथ सभा क्यों कर रही है? इन दिनों सिंचनकर्मियों की वाकई कमी है और कोई पर्यवेक्षक भी नहीं है। अगुआओं ने अन्य टीमों के सदस्यों का तबादला करने की जरूरत का उल्लेख किया है। ली किंग नवागंतुकों का सिंचन करने में अच्छी है, क्या ली जिन उसे उस कर्तव्य में लगाने की योजना बना रही है? मैंने ली किंग को स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए विकसित करने में बहुत मेहनत की है, इसलिए अगर उसका तबादला हो जाता है तो क्या उसे विकसित करने में लगा मेरा सारा समय और प्रयास व्यर्थ नहीं हो जाएगा? अगर वह चली जाती है तो सारा काम फिर से मुझ पर आ जाएगा और मुझे किसी नए व्यक्ति की तलाश करनी होगी और उसे विकसित करना होगा। उस स्थिति में कुछ मूल्यवान धर्मोपदेश समय पर जाँचे और प्रस्तुत नहीं किए जा सकेंगे तो फिर कार्य प्रभावी कैसे हो सकता है?” यह सब सोचते हुए मैं बहुत प्रतिरोधी हो गई। मैंने सोचा, “मुझे इस बारे में अगुआओं को एक पत्र लिखना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या ली किंग का काम बदले जाने से रोकना संभव है।” पत्र में मैंने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि ली किंग पाठ-आधारित कर्तव्यों के लिए उपयुक्त है और संकेत दिया कि अगुआओं को उसे हमारी टीम में रखना चाहिए। मैंने अगुआओं से यह भी कहा, “तुम टीम के सदस्यों का आँख मूंदकर तबादला नहीं कर सकते। ऐसी व्यवस्था सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।” इसके बाद मैंने इस मामले पर और चिंतन करते हुए सोचा, “फिलहाल सिंचन कार्य करने वालों की कमी है और पर्यवेक्षक भी नहीं है। शायद अगुआओं ने देखा होगा कि पाठ-आधारित कार्य अभी भी सामान्य रूप से चल रहा है और उन्होंने समग्र कार्य के अपने मूल्यांकन के आधार पर यह व्यवस्था की है। अभी नए लोगों की मदद के लिए पर्याप्त सिंचनकर्ता नहीं हैं और अगर मैं ली किंग को जाने से रोकती रहूँगी तो क्या मैं ऐसी नहीं दिखूँगी कि मुझमें मानवता की कमी है?” मन में यह बात आने पर मैं अब इतनी प्रतिरोधी नहीं रही। बाद में अगुआओं ने ली किंग को सिंचन कर्तव्य निभाने के लिए स्थानांतरित कर ही दिया और मैं थोड़ी-सी निराश हो गई।

ली किंग के जाने के बाद मुझे अपने कामों की पहले जैसी व्यस्त समय सारिणी बनानी पड़ी और मैं पाठ-आधारित टीम के सदस्यों को उनके काम में आने वाली मुश्किलें और मुद्दे सुलझाने, पत्रों का जवाब देने और धर्मोपदेशों की जाँच करने में व्यस्त रहने लगी। मैंने देखा कि ली किंग के जाने के बाद काम तुरंत ही बढ़ने लगा। जिन धर्मोपदेशों का मूल्यांकन किया जाना था, उन्हें समय पर जाँचा या प्रस्तुत नहीं किया जा सका, इसलिए मुझे चिंता होने लगी कि काम की प्रभावशीलता कम हो जाएगी, जिससे अगुआओं को यह लग सकता है कि मुझमें काम के प्रति बोझ की भावना नहीं है। इन विचारों ने मेरे अंदर प्रतिरोध की भावना जगा दी, “पिछले एक साल में मैंने कई भाई-बहनों के साथ सहयोग किया है। उनमें से कुछ को पदोन्नत कर दिया गया, जबकि अन्य के कर्तव्य बदल दिए गए और अंत में हमेशा मैं ही अकेली पड़ जाती हूँ। वे आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन मैं यहीं रहती हूँ, अकेली, एक पोकर खिलाड़ी की तरह स्थिर। मैं विकसित करने की विशेषज्ञ बन गई हूँ। अकेले मेरे ऊपर इतना सारा काम लादा जा रहा है, अगुआ मेरी मुश्किलों पर विचार क्यों नहीं करते? जिन लोगों को मैंने विकसित किया है, उनमें से किसी ने भी आखिर में मेरे काम का बोझ साझा नहीं किया। अगर मैं किसी और को भी विकसित करती हूँ, अगर उसका भी तबादला हो जाए तो क्या होगा? यह सब बेकार चला जाएगा!” इतना सब होने के बाद मुझे किसी को खोजने या विकसित करने की कोई जल्दी नहीं थी। यहाँ तक कि जब मैं संभावनाओं वाले किसी व्यक्ति से मिलती थी तो भी मुझे उसे विकसित करने के लिए प्रयास करने की उत्सुकता नहीं होती थी। उस दौरान मैं डोंग फी नाम की पाठ-आधारित कार्यकर्ता को जानती थी। वह कुछ सिद्धांत समझने में सक्षम थी, उसमें अपने कर्तव्य के प्रति बोझ की अच्छी-खासी भावना थी और वह ऐसी इंसान थी जिसे विकसित किया जा सकता था। अगर उसे टीम अगुआ के रूप में पदोन्नत किया जाता तो वह शायद और भी तेजी से प्रगति करती। लेकिन मैंने सोचा, “अगर मैं उसे बढ़ावा देती हूँ और विकसित करती हूँ और वह अपने कौशल में सुधार करती है तो अगुआ उसे प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में पहचान सकते हैं और फिर उसे और तरक्की दे सकते हैं। क्या उसे विकसित करने में मेरे द्वारा किया गया सारा प्रयास व्यर्थ नहीं चला जाएगा? मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती जिसमें बहुत सारा प्रयास करना पड़े लेकिन उससे मुझे फायदा न हो।” यह सोचकर मैंने तय किया कि मैं अगुआओं के सामने डोंग फी को तरक्की देने का जिक्र नहीं करूँगी। बाद में जब अगुआओं ने लोगों को विकसित करने के काम के बारे में पूछने के लिए पत्र लिखा, मैंने बहाने बनाए, कहा कि काम का बोझ इतना ज्यादा है कि मैं यह सब नहीं सँभाल पाई। मेरे कारण लोगों को विकसित करने का कार्य दरकिनार हो गया। मुझे एहसास हुआ कि मेरी दशा ठीक नहीं है और इस दशा में रहने से काम में देरी होगी, इसलिए मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की और अपनी समस्या पहचानने के लिए उससे प्रबोधन माँगा और इस गलत दशा से बाहर निकलने में उससे मदद माँगी।

एक दिन मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “अगर किसी मसीह-विरोधी के अधीनस्थ किसी अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति को दूसरा काम करने के लिए स्थानांतरित किया जाता है, तो अपने दिल में मसीह-विरोधी इसका हठपूर्वक विरोध करता और इसे नकार देता है—वह काम छोड़ देना चाहता है, और उसमें अगुआ या समूह-प्रमुख होने का कोई उत्साह नहीं रह जाता। यह क्या समस्या है? उनमें कलीसिया की व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता क्यों नहीं होती? उन्हें लगता है कि उनके ‘दाएँ-हाथ जैसे व्यक्ति’ का तबादला उनके काम के परिणामों और प्रगति को प्रभावित करेगा, और परिणामस्वरूप उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा प्रभावित होगी, जिससे उन्हें परिणामों की गारंटी देने के लिए कड़ी मेहनत करने और ज्यादा कष्ट उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा—जो आखिरी चीज है, जिसे वे करना चाहते हैं। वे सुविधाभोगी हो गए हैं, और ज्यादा मेहनत करना या अधिक कष्ट उठाना नहीं चाहते, इसलिए वे उस व्यक्ति को जाने नहीं देना चाहते। अगर परमेश्वर का घर तबादले पर जोर देता है, तो वे बहुत शिकायत करते हैं, यहाँ तक कि अपना काम भी छोड़ देना चाहते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? परमेश्वर के घर द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को केंद्रीय रूप से आवंटित किया जाना चाहिए। इसका किसी अगुआ, समूह-प्रमुख या व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। सभी को सिद्धांत के अनुसार कार्य करना चाहिए; यह परमेश्वर के घर का नियम है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते, वे लगातार अपनी हैसियत और हितों के लिए साजिशें रचते हैं, और अपनी शक्ति और हैसियत मजबूत करने के लिए अच्छी क्षमता वाले भाई-बहनों से अपनी सेवा करवाते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? बाहरी तौर पर, अच्छी क्षमता वाले लोगों को अपने पास रखना और परमेश्वर के घर द्वारा उनका तबादला न होने देना ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे कलीसिया के काम के बारे में सोच रहे हों, लेकिन वास्तव में वे सिर्फ अपनी शक्ति और हैसियत के बारे में सोच रहे होते हैं, कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते। वे डरते हैं कि वे कलीसिया का काम खराब तरह से करेंगे, बदल दिए जाएँगे, और अपनी हैसियत खो देंगे। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य के बारे में कोई विचार नहीं करते, सिर्फ अपनी हैसियत के बारे में सोचते हैं, परमेश्वर के घर के हितों को होने वाले नुकसान के लिए जरा भी खेद न करके अपनी हैसियत की रक्षा करते हैं, और कलीसिया के कार्य को हानि पहुँचाकर अपनी हैसियत और हितों की रक्षा करते हैं। यह स्वार्थी और नीच होना है। जब ऐसी स्थिति आए, तो कम से कम व्यक्ति को अपने विवेक से सोचना चाहिए : ‘ये सभी परमेश्वर के घर के लोग हैं, ये कोई मेरी निजी संपत्ति नहीं हैं। मैं भी परमेश्वर के घर का सदस्य हूँ। मुझे परमेश्वर के घर को लोगों को स्थानांतरित करने से रोकने का क्या अधिकार है? मुझे केवल अपनी जिम्मेदारियों के दायरे में आने वाले काम पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय परमेश्वर के घर के समग्र हितों पर विचार करना चाहिए।’ जिन लोगों में जमीर और विवेक होता है, उन लोगों के विचार ऐसे ही होने चाहिए, और जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनमें ऐसा ही विवेक होना चाहिए। परमेश्वर का घर समग्र के कार्य में संलग्न है और कलीसियाएँ हिस्सों के कार्य में संलग्न हैं। इसलिए, जब परमेश्वर के घर को कलीसिया से कोई विशेष आवश्यकता हो, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है। नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों में ऐसा जमीर और विवेक नहीं होता। वे सब बहुत स्वार्थी होते हैं, वे सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, और वे कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं सोचते। वे सिर्फ अपनी आँखों के सामने के लाभों पर विचार करते हैं, वे परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य पर विचार नहीं करते, इसलिए वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करने में बिल्कुल अक्षम रहते हैं। वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं! परमेश्वर के घर में उनकी हिम्मत इतनी बढ़ जाती है कि वे विनाशकारी हो जाते हैं, यहाँ तक कि वे अपने मनसूबों से बाज नहीं आते; ऐसे लोग मानवता से बिल्कुल शून्य होते हैं, दुष्ट होते हैं। मसीह-विरोधी इसी प्रकार के लोग हुआ करते हैं। वे हमेशा कलीसिया के काम को, भाइयों और बहनों को, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर की सारी संपत्ति को जो उनकी जिम्मेदारी के दायरे में आती है, निजी संपत्ति के रूप में ही देखते हैं। मानते हैं कि यह उन पर है कि इन चीजों को कैसे वितरित करें, स्थानांतरित करें और उपयोग में लें, और कि परमेश्वर के घर को दखल देने की अनुमति नहीं होती। जब वे चीजें उनके हाथों में आ जाती हैं, तो ऐसा लगता है कि वे शैतान के कब्जे में हैं, किसी को भी उन्हें छूने की अनुमति नहीं होती। वे बड़ी तोप चीज होते हैं, वे ही सबसे बड़े होते हैं, और जो कोई भी उनके क्षेत्र में जाता है उसे उनके आदेशों और व्यवस्थाओं का पालन शिष्ट और कोमल तरीके से करना होता है और उनकी अभिव्यक्तियों से इशारा लेना होता है। यह मसीह-विरोधियों के चरित्र के स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति होती है। वे परमेश्वर के घर के कार्य पर कोई ध्यान नहीं देते, वे सिद्धांतों का ज़रा भी पालन नहीं करते, और केवल निजी हितों और अपने ही रुतबे के बारे में सोचते हैं—जो मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और नीचता के हॉल्मार्क हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक))। जब मैंने परमेश्वर के प्रकाशन से ऐसे वाक्यांश पढ़े जैसे कि “बड़ी तोप चीज,” “सबसे बड़े” और “ऐसा लगता है कि वे शैतान के कब्जे में हैं” तो मुझे लगा जैसे मेरा दिल छलनी हो गया है। मसीह-विरोधी अपने काम में सिर्फ अपने निजी लाभ और हानि के बारे में सोचते हैं और वे कभी भी परमेश्वर के इरादों के बारे में नहीं सोचते। जब वे देखते हैं कि उनकी जिम्मेदारी के दायरे में लोगों को विकसित किया जा रहा है और इससे उनकी अपनी देह, प्रतिष्ठा और रुतबे को लाभ होता है तो वे इन लोगों को अपने करीब रखना चाहते हैं और उनसे अपनी निजी संपत्ति की तरह पेश आते हैं। उनकी अनुमति के बिना किसी को भी इन लोगों का तबादला करने की इजाजत नहीं होती है, फिर भले ही यह काम की जरूरत के लिए किया जा रहा हो। अगर परमेश्वर का घर सिद्धांतों के आधार पर लोगों को उनकी जिम्मेदारी के दायरे से स्थानांतरित करता है तो वे इसके रास्ते में खड़े होने की कोशिश करेंगे। वे कलीसिया के समग्र कार्य में देरी कर देंगे लेकिन अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे पर आँच नहीं आने देंगे। ऐसे लोग “बड़ी तोप चीज” और “सबसे बड़े” की तरह होते हैं, जिसका उल्लेख परमेश्वर करता है—वे स्वार्थी, घृणित होते हैं और उनमें कोई मानवता नहीं होती। मेरा व्यवहार ठीक वैसा ही था जैसा परमेश्वर द्वारा उजागर किए गए मसीह-विरोधियों का होता है। मैं कलीसिया के काम के लिए या परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि अपनी स्वार्थी इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए पाठ-आधारित कार्यकर्ताओं को विकसित करना चाहती थी। मेरे काम का बोझ साझा करने वाला कोई और होता तो मेरे लिए चीजें आसान हो जातीं और अगर काम ज्यादा कारगर होता तो इससे दूसरे लोग मेरे बारे में अच्छा सोचते। इसलिए जब मेरे द्वारा विकसित किए गए लोगों का तबादला किया गया तो मैं इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं कर सकी। मुझे लगा कि जिन लोगों को विकसित करने के लिए मैंने इतनी कड़ी मेहनत की उन्हें अपने हिस्से का काम सँभालना चाहिए और मेरी सहमति के बिना अगुआ उनका तबादला कर ही नहीं सकते। भले ही मैं अनिच्छा से ली किंग के तबादले के लिए मान गई, लेकिन जब काम की प्रभावशीलता कम हो गई तो मैं शिकायत करने लगी कि अगुआ को उसे स्थानांतरित नहीं करना चाहिए था और मैंने काम पर भी अपनी भड़ास निकाली। हालाँकि मुझे साफ पता था कि डोंग फी को पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है, मुझे डर था कि एक बार जब उसे विकसित किया जाएगा तो अगुआ उसे भी स्थानांतरित कर देंगे और मुझे एक बार फिर से सक्षम सहायक के बिना छोड़ देंगे। इसलिए मैंने अगुआओं को नहीं बताया कि डोंग फी विकसित होने लायक है और मैंने उसे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की सेवा करते रहने के लिए अपनी जिम्मेदारी के दायरे में रखा। कलीसिया काम की जरूरतों के आधार पर लोगों का काम बदलती है और व्यवस्था करती है। उदाहरण के लिए, ली किंग का काम बदला गया क्योंकि नवांगतुकों को सींचने के लिए लोग नहीं थे। ली किंग को यह जिम्मेदारी सौंपने पर वह इसे उठा सकती थी, समय पर नवागंतुकों का सिंचन कर सकती थी और उन्हें सहारा दे सकती थी। अगुआओं ने कलीसिया के समग्र कार्य को ध्यान में रखते हुए यह व्यवस्था की और यह सिद्धांतों के अनुरूप थी। लेकिन मैंने इनमें से किसी पर भी विचार नहीं किया। मुझे केवल अपनी आँखों के सामने दिखने वाले लाभों की परवाह थी। जब तक काम मेरे लिए थकाऊ नहीं था और मैं अब भी दूसरों के सामने अपना नाम कमा सकती थी, तब तक यह ठीक था और मुझे किसी और चीज की परवाह नहीं थी। मैं वाकई स्वार्थी और नीच थी! असल में प्रतिभाशाली लोगों को परमेश्वर के घर के समग्र कार्य के लिए विकसित किया जाता है। जब कार्य के किसी क्षेत्र में कर्मचारियों की कमी होती है तो विशेष कौशल वाले लोगों को उनके विशेष कौशल और कार्य की आवश्यकताओं के आधार पर उचित कर्तव्य सौंपा जाना चाहिए ताकि कलीसिया का काम सुसंगठित और व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ सके। अंतरात्मा और विवेक वाले लोग परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हैं और अच्छी काबिलियत वाले लोगों को बढ़ावा देते हैं, उन्हें परिश्रमपूर्वक निर्देश देते हैं और विकसित करते हैं ताकि वे परमेश्वर के घर के काम के लिए उपयोगी हो सकें। लेकिन मैंने कलीसिया के काम पर विचार नहीं किया। मानो जब तक भाई-बहन मेरी जिम्मेदारी वाली टीम में हैं तब तक वे मेरे लोग हैं, वे मेरे इस्तेमाल के लिए हैं और उनके तबादले का अधिकार किसी को नहीं है। मैं इन भाई-बहनों के साथ अपनी निजी संपत्ति जैसा व्यवहार करती थी। क्या मैं वैसा ही व्यवहार नहीं कर रही थी जैसा परमेश्वर “बड़ी तोप चीज” और “सबसे बड़े” के व्यवहार को उजागर करता है? इन बातों पर विचार करते हुए मुझे थोड़ा डर लगा।

फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश याद आया, इसलिए मैंने उसे पढ़ने के लिए खोजा। परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर अपनी 6,000 वर्षीय प्रबंधन योजना का कार्य कर रहा है, और इसमें उसकी सारी मेहनत लगी है। अगर कोई परमेश्वर का विरोध करता है, जानबूझकर परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाता है, और जानबूझकर परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने की कीमत पर अपने व्यक्तिगत हितों और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण करता है, और कलीसिया के कार्य को बिगाड़ने में कोई संकोच नहीं करता है, जिससे परमेश्वर के घर का कार्य बाधित और नष्ट हो जाता है, और यहाँ तक कि परमेश्वर के घर को भारी भौतिक और वित्तीय नुकसान भी होता है, तो क्या तुम लोगों को लगता है कि ऐसे लोगों को माफ किया जाना चाहिए? (नहीं, उन्हें माफ नहीं करना चाहिए।) तुम सब कहते हो कि उन्हें माफ नहीं किया जा सकता, तो क्या परमेश्वर ऐसे लोगों से गुस्सा है? बेशक, वह गुस्सा है। ... अगर तुम यह कहते रहो कि तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, उद्धार का अनुसरण करते हो, परमेश्वर की पड़ताल और मार्गदर्शन को स्वीकारते हो, और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार कर उसके प्रति समर्पण करते हो, मगर यह सब कहते हुए भी तुम कलीसिया के विभिन्न कार्यों में बाधा डाल रहे हो, उनमें गड़बड़ी पैदा कर रहे हो और उन्हें नष्ट कर रहे हो, और तुम्हारी इस बाधा, गड़बड़ी और तबाही के कारण, तुम्हारी लापरवाही या कर्तव्यहीनता के कारण या तुम्हारी स्वार्थी इच्छाओं और अपने व्यक्तिगत के हितों के अनुसरण के कारण, परमेश्वर के घर के हितों, कलीसिया के हितों और अन्य अनेक पहलुओं को नुकसान हुआ है, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर के कार्य में बहुत बड़ी गड़बड़ी हुई और वह तबाह हो गया है, तो फिर, परमेश्वर को तुम्हारे जीवन की किताब में क्या परिणाम लिखना चाहिए? तुम्हें क्या किस रूप में चित्रित किया जाना चाहिए? निष्पक्षता से कहें तो तुम्हें दंड मिलना चाहिए। इसे ही तुम्हारा उचित परिणाम मिलना कहते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। मुझे ऐसा लगा जैसे परमेश्वर रूबरू होकर अपने कठोर शब्दों से मेरा न्याय कर रहा है और मैंने महसूस किया कि परमेश्वर का स्वभाव अपमान बर्दाश्त नहीं करता। परमेश्वर का घर प्रतिभाशाली लोगों को विकसित करने की अपेक्षा करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कार्य की विभिन्न मदें अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ़ें। लेकिन मैंने सिर्फ अपना काम आसान बनाने और पहचान हासिल करने के लिए लोगों को विकसित किया। जब मेरे द्वारा विकसित किए गए लोगों को स्थानांतरित कर दिया गया तो मैं शिकायत करने लगी, मेरी मुश्किलों पर विचारशील न होने के लिए अगुआओं के बारे में बड़बड़ाने लगी और मैंने किसी और को विकसित करने से इनकार करके कर्तव्य पर अपनी भड़ास भी निकाली। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि डोंग फी विकसित होने के लायक है और यह उसकी जीवन प्रगति और कलीसिया के काम दोनों के लिए फायदेमंद होगा। लेकिन मुझे चिंता थी कि अगर मैंने उसे विकसित किया तो उसे भी स्थानांतरित किया जा सकता है। इसलिए मैंने उसकी प्रगति को दबा दिया और उसे विकसित न करने का फैसला किया। प्रतिभाशाली लोगों को विकसित करने के कलीसिया के कार्य में जानबूझकर रुकावट डालकर मैं अपने हितों को संतुष्ट करने के लिए कलीसिया के हितों की बलि दे रही थी, जो परमेश्वर के खिलाफ घोर अवज्ञा है। अगर मैं इसी तरह आगे बढ़ती रही तो परमेश्वर मुझे निश्चित रूप से निकाल देगा। यह एहसास होने पर मैं डर गई और अपना अपराध स्वीकारने और पश्चात्ताप करने के लिए परमेश्वर के सामने घुटने टेककर बैठ गई।

बाद में मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “जब तुममें स्वार्थ और अपने फायदे के लिए साजिशें प्रकट हों, और तुम्हें इसका एहसास हो जाए, तो तुम्हें इसे हल करने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करके सत्य को खोजना चाहिए। पहली बात जो तुम्हें पता होनी चाहिए वह यह है कि अपने सार में इस तरह का व्यवहार सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन है, कलीसिया के काम के लिए नुकसानदायक है, यह स्वार्थी और घृणित व्यवहार है, यह ऐसा व्यवहार नहीं है जो अंतरात्मा और विवेक वाले लोगों को करना चाहिए। तुम्हें अपने निजी हितों और स्वार्थ को एक तरफ रखकर कलीसिया के काम के बारे में सोचना चाहिए—यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है। प्रार्थना और आत्मचिंतन करने के बाद, अगर तुम्हें सच में यह एहसास होता है कि इस तरह का व्यवहार स्वार्थी और घृणित है, तो अपने स्वार्थ को दरकिनार करना आसान हो जाएगा। जब तुम अपने स्वार्थ और फायदे के लिए साजिशें रचने को एक तरफ रख दोगे, तो तुम खुद को स्थिर महसूस करोगे, और तुम्हें सुख-शांति का एहसास होगा, लगेगा कि अंतरात्मा और विवेक वाले व्यक्ति को कलीसिया के काम के बारे में सोचना चाहिए, उन्हें अपने निजी हितों पर ध्यान गड़ाए नहीं रहना चाहिए, जो कि स्वार्थी, घृणित और अंतरात्मा या विवेक से रहित होना कहलाएगा। निस्वार्थ होना और अपने कार्य-कलापों में कलीसिया के कार्य के बारे में विचारशील होना और केवल परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए काम करना सम्माननीय और उत्तम है और इससे तुम्हारे अस्तित्व का महत्व होगा। पृथ्वी पर इस तरह का जीवन जीते हुए तुम ईमानदार और स्पष्ट रहते हो, सामान्य मानवता जीते हो और वास्तविक व्यक्ति के समान जीते हो, और न सिर्फ तुम्हारी अंतरात्मा साफ रहती है बल्कि तुम परमेश्वर की सभी कृपाओं के भी पात्र बन जाते हो। तुम जितना ज्यादा इस तरह जीते हो, खुद को उतना ही स्थिर महसूस करते हो, उतनी ही सुख-शांति और उतना ही उज्जवल महसूस करते हो। इस तरह, क्या तुम परमेश्वर में अपनी आस्था के सही रास्ते पर कदम नहीं रख चुके होगे?(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर कहता है कि जब हम स्वार्थ प्रकट करते हैं और अपने हितों को संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं तो हमें अवश्य ही सत्य खोजना चाहिए और अपने खिलाफ विद्रोह करना चाहिए। इस तरह से चलते हुए हम सच्चे और न्यायपूर्ण होते हैं और स्पष्टवादी और ईमानदार ढंग से जीवन जीते हैं। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं प्रबुद्ध हो गई और मुझे अभ्यास के लिए एक मार्ग मिला। मुझे याद आया कि जब बहन ली किंग का तबादला हुआ था तो मैंने शिकायतों और नकारात्मकता के साथ प्रतिक्रिया दी और एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को दबाने के लिए चालें चलीं। इस तरह से पेश आना बहुत ही घिनौना और घटिया था! अगर मुझे फिर से अपने हितों को प्रभावित करने वाले मामलों का सामना करना पड़े तो सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए। इसके बजाय मुझे परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करना चाहिए, अपने हितों को छोड़ना सीखना चाहिए और कलीसिया को प्रतिभाशाली लोग देने चाहिए। बाद में समीक्षा के जरिये मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास काम का ढेर लगता जा रहा है और अच्छे धर्मोपदेश समय पर चुने और प्रस्तुत नहीं किए जा रहे हैं—इसका संबंध इस बात से था कि मैं कामों को प्रभावी ढंग से प्राथमिकता नहीं दे पा रही थी। मुझे अपने मौजूदा काम को अधिक उचित और प्रभावी ढंग से व्यवस्थित करने, महत्वपूर्ण कार्यों को प्राथमिकता देने और कम जरूरी कार्यों को बाद में करने की जरूरत थी। इस तरीके से काम में देरी नहीं होती। इसका एहसास होने पर मैंने अगुआओं से डोंग फी को टीम अगुआ के रूप में पदोन्नत करने के बारे में चर्चा की। अगुआओं ने सहमति जताई कि डोंग फी को विकसित करना उपयुक्त है, इसलिए मैंने उसे सिखाने में प्रयास लगाया। जब मैंने देह के खिलाफ विद्रोह किया और सत्य का अभ्यास किया तो मुझे अपने दिल में शांति और सहजता का एहसास हुआ और मेरी मनोदशा असाधारण रूप से अच्छी हो गई।

सितंबर 2023 में चेन जिंग ने पाठ-आधारित कर्तव्य करने का प्रशिक्षण शुरू किया। शुरू में वह काम से अपरिचित थी और उसे लगा कि यह असाधारण रूप से कठिन है, इसलिए वह यह कर्तव्य नहीं करना चाहती थी। मैंने उसके साथ आमने-सामने संगति की। कुछ समय के प्रशिक्षण के बाद धीरे-धीरे वह इस कर्तव्य को लगन से करने के लिए तैयार हो गई। यह नतीजा देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। अप्रत्याशित रूप से कुछ ही दिनों बाद सिंचाई कार्य के लिए लोगों की कमी हो गई, अगुआओं ने देखा कि चेन जिंग पहले नवागंतुकों का सिंचन कर चुकी है और उन्होंने उसे फिर से सिंचन कार्य में लगाने की योजना बनाई। जब मैंने यह समाचार सुना तो मैं चौंक गई, सोचने लगी, “चेन जिंग पाठ-आधारित टीम की सदस्य है जिसे विकसित करने के लिए हमने कड़ी मेहनत की है। अगर उसका तबादला हो जाता है तो मुझे फिर से किसी और को विकसित करने के लिए खोजना होगा। अगर मुझे कोई नहीं मिलता है तो कार्य की प्रभावशीलता पक्का कम हो जाएगी।” मैं अगुआओं के बारे में कुछ शिकायतें करने लगी। फिर मुझे अचानक एहसास हुआ कि मेरी दशा ठीक नहीं है और मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “जब परमेश्वर के घर के कार्य को आवश्यकता हो, तो चाहे वे कोई भी हों, सभी को परमेश्वर के घर के समन्वय और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए, और किसी एक अगुआ या कार्यकर्ता द्वारा नियंत्रित नहीं होना चाहिए, मानो वे उसके हों या उसके निर्णयों के अधीन हों। परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता बिल्कुल स्वाभाविक और उचित है और इन व्यवस्थाओं की किसी के द्वारा अवहेलना नहीं की जा सकती, जब तक कि कोई अगुआ या कार्यकर्ता कोई मनमाना तबादला नहीं करता जो सिद्धांत के अनुसार न हो—उस मामले में इस व्यवस्था की अवज्ञा की जा सकती है। अगर सिद्धांतों के अनुसार सामान्य स्थानांतरण किया जाता है, तो परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों को आज्ञापालन करना चाहिए, और किसी अगुआ या कार्यकर्ता को किसी को नियंत्रित करने का प्रयास करने का अधिकार या कोई कारण नहीं है। क्या तुम लोग कहोगे कि ऐसा भी कोई कार्य होता है जो परमेश्वर के घर का कार्य नहीं होता? क्या कोई ऐसा कार्य होता है जिसमें परमेश्वर के राज्य-सुसमाचार का विस्तार शामिल नहीं होता? यह सब परमेश्वर के घर का ही कार्य होता है, हर कार्य समान होता है, और उसमें कोई ‘तेरा’ और ‘मेरा’ नहीं होता। अगर तबादला सिद्धांत के अनुरूप और कलीसिया के कार्य की आवश्यकताओं पर आधारित है, तो इन लोगों को वहाँ जाना चाहिए जहाँ इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि भाई-बहन परमेश्वर के घर के हैं और किसी के स्वामित्व में नहीं हैं। अगर कोई तबादला सिद्धांतों के अनुरूप है तो किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है और हम सबको इसके प्रति अवश्य ही समर्पण करना चाहिए। मैंने इस बात पर विचार किया कि कैसे मैंने पहले अपने हितों के लिए डोंग फी को दबाया था। हर बार जब मैं इसके बारे में सोचती तो मुझे बेचैनी होती। उस समय नवागंतुकों को सहारा देने के लिए सिंचनकर्मियों की तत्काल जरूरत थी और चेन जिंग को इस क्षेत्र में कुछ अनुभव था। मुझे एहसास हुआ कि अगुआओं की व्यवस्था कार्य की जरूरतों पर आधारित है। मैं सिर्फ अपने हितों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकती; मुझे कलीसिया के काम में सक्रिय सहयोग करने और सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि चेन जिंग अपना कर्तव्य वहीं निभाए, जहाँ उसकी सबसे अधिक जरूरत है। इसके बाद उसे सिंचाई के काम में स्थानांतरित कर दिया गया। जाने से पहले उसने पाठ-आधारित कर्तव्य के लिए उपयुक्त दो बहनों की सिफारिश की। कुछ समय तक विकसित करने के बाद वे दोनों कुछ काम करने में सक्षम हो गईं और टीम के किसी भी सदस्य के स्थानांतरण से पाठ-आधारित काम में देरी नहीं हुई। मैं अब अपने स्वार्थी और घृणित शैतानी स्वभाव के अनुसार नहीं जी रही थी, बल्कि परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास कर रही थी, मुझे अपने दिल में शांति और सहजता की गहरी भावना महसूस हुई।

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