99. जब मुझे मेरे सहकर्मी की गिरफ्तारी और यातना झेलते हुए परमेश्वर को धोखा देने का पता चला

शू चैंग, चीन

मार्च 2024 के मध्य में मुझे उच्च स्तर के अगुआओं से एक चिट्ठी मिली। उसमें लिखा था कि शाओडी, जिसके साथ मैंने साझेदारी में कर्तव्य निभाए थे, उसे गिरफ्तार कर लिया गया था और उसने यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा दिया था। उसने कलीसिया के काम और अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ गद्दारी की थी। अगुआओं ने मुझसे कहीं दूर जाकर छिप जाने को कहा। मेरे दिल की धड़कन मानो रुक सी गई। “शाओडी बाहर से निष्कपट और वफादार दिखता था और अपना कर्तव्य निभाते समय कष्ट सहने और उसके लिए कीमत चुकाने में सक्षम था। हमने कई बार खतरनाक माहौल का सामना किया लेकिन वह कभी पीछे नहीं हटा। उसने अपना कर्तव्य बराबर से निभाया। हमने एक साथ शपथ भी ली थी कि हम यहूदा बनने के बजाय मरना पसंद करेंगे। उसे गिरफ्तार हुए एक साल से ज्यादा हो गया और उसकी कोई खबर नहीं आई थी। मुझे लगा कि वह मजबूती से डटा हुआ है। फिर वह यहूदा कैसे बन गया?” मुझमें इस पर विश्वास करने की हिम्मत नहीं हुई। अगर शाओडी ने मुझसे गद्दारी की होती, तो क्या मैं सीसीपी के सर्वाधिक वांछितों में से एक नहीं बन गई होती? फिर मुझे कुछ समय पहले अपने गृहनगर की कलीसिया से मिली एक चिट्ठी के बारे में याद आया। उसमें लिखा था कि पुलिस मुझे गिरफ्तार करने के लिए मेरे घर गई थी। उन्होंने मेरे परिवार की निगरानी और पूछताछ भी की थी और मेरे घर के सामने एक सीसीटीवी कैमरा लगा दिया था। यह उस समय के आसपास की बात है जब शाओडी को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस निश्चित रूप से मुझे ढूँढ़ने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ा रही थी। मैंने मन ही मन सोचा, “सीसीपी काफी समय से बार-बार सख्त बातें करती आ रही है। वह कहती है कि ‘भले ही परमेश्वर में विश्वास करने वालों को पीट-पीटकर मार डाला जाए, उनकी मौतें बेकार ही जाएँगी।’ मैं उनकी सर्वाधिक वांछित सूची में हूँ। अगर मैं गिरफ्तार कर ली जाती हूँ, तो भले ही मुझे पीट-पीटकर मार न डाला जाए, लेकिन मुझे तब तक पीटा जाएगा जब तक मैं अपाहिज न हो जाऊँ।” फिर मुझे याद आया कि पहले भी कई भाई-बहनों को गिरफ्तार किए जाने के बाद जबरन बयान दिलवाने के लिए प्रताड़ित किया गया था। मेरा दिल घबराहट से भर गया। “अगर मुझे मरने या अपाहिज होने तक पीटा गया, तो क्या परमेश्वर में विश्वास रखने का मेरा जीवन खत्म नहीं हो जाएगा? क्या मेरे पास बताने के लिए कोई भविष्य होगा?” जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मुझे दुखी और दमित महसूस हुआ। शाओडी के साथ कई साल पहले एक यहूदा ने गद्दारी की थी, लेकिन सीसीपी ने उसकी तलाश कभी बंद नहीं की थी। मैं एक पर्यवेक्षक थी और सीसीपी को मेरी तलाश थी। पुलिस निश्चित रूप से मुझे जाने नहीं देगी। अगर मुझे गिरफ़्तार करने के बाद सचमुच पीट-पीटकर मार डाला गया, तो मैं बचाई कैसे जा पाऊँगी? इसके बाद, मुझमें अपना कर्तव्य निभाने की ताकत नहीं बची। जब कलीसिया के काम में समस्याएँ आईं, तो मैं उनसे निपटने के लिए तैयार नहीं थी। पूरे दिन मैं डरी हुई रहती थी कि पुलिस मुझे गिरफ्तार कर लेगी और यातना देगी और मैं बच नहीं पाऊँगी। मेरा दिल चिंता से भर गया था।

मुझे एहसास हुआ कि मेरी दशा बहुत खराब थी और इसका असर मेरे कर्तव्य पर पहले ही पड़ चुका था। मैं प्रार्थना करने और खोजने के लिए परमेश्वर के सामने आई : ऐसे परिवेश से सामना होने पर मुझे क्या सबक सीखने चाहिए? फिर मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा और उसे पढ़ने के लिए ढूँढ़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “आज तुम लोग किन परीक्षणों का सामना करने में सक्षम हो? क्या तुममें यह कहने की हिम्मत है कि तुम्हारे पास एक नींव है, क्या तुम प्रलोभनों के सामने दृढ़ता से खड़े रहने में सक्षम हो? उदाहरण के लिए, क्या तुम लोग शैतान द्वारा पीछा किए जाने और सताए जाने के प्रलोभन या रुतबे और प्रतिष्ठा, विवाह या धन के प्रलोभनोंपर विजय पाने में सक्षम हो? (हम इनमें से कुछ प्रलोभनों पर कमोबेश काबू पा सकते हैं।) प्रलोभन के कितने स्तर होते हैं? और तुम लोग किस स्तर पर काबू पा सकते हो? जैसे, यह सुनकर शायद तुम्हें डर न लगे कि किसी को परमेश्वर में विश्वास करने के कारण गिरफ्तार किया गया है और शायद दूसरों को गिरफ्तार होते और सताये जाते देखकर भी तुम्हें डर न लगे—लेकिन जब तुम गिरफ्तार किए जाते हो, जब तुम खुद को इस स्थिति में पाते हो तब क्या तुम दृढ़ता से खड़े होने में सक्षम हो? यह एक बड़ा प्रलोभन है, है न? उदाहरण के लिए, मान लो तुम किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हो जो बहुत अच्छी मानवता वाला है, जो परमेश्वर में अपनी आस्था को लेकर भावुक है, जिसने अपना कर्तव्य निभाने के लिए परिवार और आजीविका को त्याग दिया है और बहुत-सी कठिनाइयों का सामना किया है : एक दिन अचानक परमेश्वर में विश्वास करने के कारण उसे गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाता है और तुम्हें पता चलता है कि बाद में उसे पीट-पीटकर मार दिया गया था। क्या यह तुम्हारे लिए प्रलोभन है? अगर तुम्हारे साथ ऐसा होता तो तुम क्या करते? तुम इसे कैसे अनुभव करते? क्या तुम सत्य खोजते? तुम सत्य कैसे खोजते? इस तरह के प्रलोभन के दौरान, तुम कैसे अपने आप को दृढ़ रख पाओगे, और परमेश्वर का इरादा कैसे समझोगे, और इससे सत्य कैसे प्राप्त करोगे? क्या तुमने कभी ऐसी बातों पर विचार किया है? क्या ऐसे प्रलोभनों पर काबू पाना आसान है? क्या ये कुछ असाधारण चीजें हैं? असाधारण और मानवीय धारणाओं व कल्पनाओं का खंडन करने वाली चीजों का अनुभव कैसे किया जाना चाहिए? अगर तुम्हारे पास कोई रास्ता नहीं है तो क्या तुम शिकायत कर सकते हो? क्या तुम परमेश्वर के वचनों में सत्य की खोज करने और समस्याओं का सार देखने में सक्षम हो? क्या तुम सत्य का उपयोग करके अभ्यास के सही सिद्धांतों का पता लगाने में सक्षम हो? क्या सत्य का अनुसरण करने वालों में यह गुण नहीं पाया जाना चाहिए? तुम परमेश्वर के कार्य को कैसे जान सकते हो? तुम्हें परमेश्वर के न्याय, शुद्धिकरण, उद्धार और पूर्णता का फल प्राप्त करने के लिए इसका अनुभव कैसे करना चाहिए? परमेश्वर के विरुद्ध लोगों की असंख्य धारणाओं और शिकायतों को दूर करने के लिए किन सत्यों को समझना चाहिए? वे कौन से सबसे उपयोगी सत्य हैं जिनसे तुम्हें खुद को सुसज्जित करना चाहिए, जो विभिन्न परीक्षणों के बीच दृढ़ता से डटे रहने में तुम्हारी मदद करेंगे? अभी तुम लोगों का आध्यात्मिक कद कितना बड़ा है? तुम किस स्तर के प्रलोभनों पर काबू पा सकते हो? क्या तुम्हें इसका थोड़ा सा भी अंदाजा है? अगर नहीं है, तो यह संदेहास्पद मामला है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर के हर एक प्रश्न ने मुझे शर्मिंदा महसूस करवाया। पहले मेरा मानना था कि जब से मैंने परमेश्वर में विश्वास करना शुरू किया तब से मैं एक जुनूनी अनुसरण में लगी रही, चीजों को त्यागा और खुद को खपाया था। कलीसिया को कई बड़ी गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ा, लेकिन मैं ज्यादा कायर नहीं बनी। मेरी पहचान के कई भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन इससे मेरी कर्तव्य निभाने की क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ा। मगर जब मैंने सुना कि शाओडी यहूदा और बड़े लाल अजगर का साथी बन गया था और उसने मुझसे गद्दारी की थी, तो मुझे इस बात की चिंता हुई कि क्या पुलिस पहले से ही मेरी निगरानी कर रही थी। ऐसा लग रहा था कि मुझे कहीं भी या कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है, मैं कायर थी और अपने दिल में डरी हुई थी, परमेश्वर में अपनी आस्था खो चुकी थी। मैंने देखा कि जो कुछ मैंने पहले समझा वह सिर्फ धर्म-सिद्धांत था जिसमें कोई सत्य वास्तविकता नहीं थी। जब मैंने क्लेशों और परीक्षणों का सामना किया, तब मैं परमेश्वर के इरादे खोजने के लिए उसके सामने नहीं आई और यह नहीं सोचा कि परमेश्वर की गवाही कैसे दी जाए। इसके बजाय, मैं नकारात्मक हो गई और अपने काम में ढीली पड़ गई। मैं सच में बहुत विद्रोही थी! इस समय, मुझे अपने दिल में आत्मग्लानि महसूस हुई। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “तुम्हें अपने आध्यात्मिक कद और अभ्यास को गंभीरता से लेना चाहिए। परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें किसी के लिए भी मात्र ढोंग करने का प्रयास नहीं करना चाहिए—अंततः तुम सत्य और जीवन प्राप्त कर सकते हो या नहीं, यह तुम्हारी स्वयं की खोज पर निर्भर करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (3))। जब मैंने परमेश्वर की अपेक्षाओं के मद्देनजर अपने आध्यात्मिक कद को देखा, तो मुझे संकट का आभास हुआ। मेरा वर्तमान आध्यात्मिक कद छोटा था और मुझ में कोई सत्य वास्तविकता नहीं थी। अगर मैं मेहनत से सत्य की खोज किए बिना और खुद को उससे सुसज्जित किए बिना आगे बढ़ती रही तो किसी दिन वास्तव में गिरफ्तार कर लिए जाने पर मेरे लिए डटे रहना बहुत मुश्किल होगा। मैं परमेश्वर के अपने अनुसरण को आखिर में अपमान के रूप में खत्म नहीं होने देना चाहती थी।

मैंने भक्ति के दौरान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और शोधन और क्लेश का अनुभव करने का मतलब समझा। मैंने शाओडी का कुछ भेद भी पहचान लिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “राज्य के युग में मनुष्य को पूरी तरह से पूर्ण किया जाएगा। विजय के कार्य के पश्चात् मनुष्य को शुद्धिकरण और क्लेश का भागी बनाया जाएगा। जो लोग विजय प्राप्त कर सकते हैं और इस क्लेश के दौरान अपनी गवाही पर दृढ़ रह सकते हैं, वे वो लोग हैं जिन्हें अंततः पूर्ण बनाया जाएगा; वे विजेता हैं। इस क्लेश के दौरान मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह इस शुद्धिकरण को स्वीकार करे, और यह शुद्धिकरण परमेश्वर के कार्य की अंतिम घटना है। यह अंतिम बार है कि परमेश्वर के प्रबंधन के समस्त कार्य के समापन से पहले मनुष्य को शुद्ध किया जाएगा, और जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, उन सभी को यह अंतिम परीक्षा स्वीकार करनी चाहिए, और उन्हें यह अंतिम शुद्धिकरण स्वीकार करना चाहिए। जो लोग क्लेश से व्याकुल हैं, वे पवित्र आत्मा के कार्य और परमेश्वर के मार्गदर्शन से रहित हैं, किंतु जिन्हें सच में जीत लिया गया है और जो सच में परमेश्वर की खोज करते हैं, वे अंततः डटे रहेंगे; ये वे लोग हैं, जिनमें मानवता है, और जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं। परमेश्वर चाहे कुछ भी क्यों न करे, इन विजयी लोगों को दर्शनों से वंचित नहीं किया जाएगा, और ये फिर भी अपनी गवाही में असफल हुए बिना सत्य को अभ्यास में लाएँगे। ये वे लोग हैं, जो अंततः बड़े क्लेश से उभरेंगे। भले ही आपदा को अवसर में बदलने वाले आज भी मुफ़्तख़ोरी कर सकते हों, किंतु अंतिम क्लेश से बच निकलने में कोई सक्षम नहीं है, और अंतिम परीक्षा से कोई नहीं बच सकता। ... जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, वे अपने कार्य की परीक्षा का सामना करने में समर्थ हैं, जबकि जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, वे परमेश्वर के किसी भी परीक्षण का सामना करने में अक्षम हैं। देर-सवेर उन्हें निर्वासित कर दिया जाएगा, जबकि विजेता राज्य में बने रहेंगे। मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को खोजता है या नहीं, इसका निर्धारण उसके कार्य की परीक्षा द्वारा किया जाता है, अर्थात्, परमेश्वर के परीक्षणों द्वारा, और इसका स्वयं मनुष्य द्वारा लिए गए निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर हल्के में किसी मनुष्य को अस्वीकार नहीं करता; वह जो कुछ भी करता है, वह मनुष्य को पूर्ण रूप से आश्वस्त कर सकता है। वह ऐसा कुछ नहीं करता, जो मनुष्य के लिए अदृश्य हो, या कोई ऐसा कार्य जो मनुष्य को आश्वस्त न कर सके। मनुष्य का विश्वास सही है या नहीं, यह तथ्यों द्वारा साबित होता है, और इसे मनुष्य द्वारा तय नहीं किया जा सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि ‘गेहूँ को जंगली दाने नहीं बनाया जा सकता, और जंगली दानों को गेहूँ नहीं बनाया जा सकता।’ जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे सभी अंततः राज्य में बने रहेंगे, और परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार नहीं करेगा, जो वास्तव में उससे प्रेम करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मैं समझ गई कि परमेश्वर का कार्य अब समाप्त हो रहा है। यह वह समय है जब परमेश्वर सभी श्रेणियों के लोगों का खुलासा करेगा। सच्चे विश्वासियों को नकली विश्वासियों से अलग करने के लिए, गेहूँ से मोठ घास को अलग करने के लिए परमेश्वर बड़े लाल अजगर के हाथों गिरफ्तारी और उत्पीड़न और तमाम तरह के परीक्षणों और क्लेशों का इस्तेमाल करता है। परीक्षण हर व्यक्ति के लिए एक बड़ा इम्तेहान है। जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, उन्हें चाहे कैसे भी परीक्षणों और क्लेशों का सामना करना पड़े, वे कलीसिया के हितों से गद्दारी करने के बजाय शारीरिक पीड़ा सहना या अपनी जान तक गँवाना पसंद करेंगे। वे परमेश्वर पर भरोसा करते हुए अडिग रहने में सक्षम हैं। ठीक उन भाई-बहनों की तरह जिन्हें गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन वे पुलिस द्वारा किए गए अपमान और यातना को मात देने में सक्षम रहे। पुलिस ने चाहे कितने ही घृणित या क्रूर तरीके अपनाए, उन्होंने कभी भी परमेश्वर को अस्वीकार नहीं किया या उसके साथ विश्वासघात नहीं किया। जहाँ तक उन लोगों की बात है जिनका विश्वास सच्चा नहीं था, चाहे वे ऊपरी तौर पर कितने ही उत्साही दिखते थे या वे चीजों को त्यागने, खुद को खपाने, पीड़ा सहने और कीमत चुकाने में कितने ही सक्षम थे, जैसे ही उनके शारीरिक हितों पर खतरा आया, उन्होंने परमेश्वर को अस्वीकार कर दिया और उसके साथ विश्वासघात किया। ये अवसरवादी लोग थे जो परमेश्वर के घर में चुपचाप घुस आये थे और वे उत्पीड़न और क्लेश के माध्यम से बेनकाब हो गए। सेवा प्रदान करने के लिए परमेश्वर द्वारा बड़े लाल अजगर का इस्तेमाल करने का यही मतलब है। इस तरीके से सच्चे विश्वासियों और झूठे विश्वासियों, गेहूँ और मोठ घास को अलग-अलग किया जाता है। परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमत्ता यहीं पर निहित है। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे अपने दिल में रोशनी महसूस हुई। भले ही शाओडी बाहर से निष्कपट और वफादार दिखता था और परमेश्वर में विश्वास रखने के बहुत सारे सालों के दौरान उसने साफ तौर पर कोई बुरा काम नहीं किया था—उसने तो कुछ अच्छे काम भी किए थे—मगर उसे सत्य में कोई दिलचस्पी नहीं थी। आमतौर पर वह परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति करने को तैयार नहीं होता था और बहुत सालों से परमेश्वर में विश्वास रखने के बावजूद उसमें थोड़ी सी भी सत्य वास्तविकता नहीं थी। जब उसे बड़े लाल अजगर से यातना, धमकियों और प्रलोभनों का सामना करना पड़ा, तो उसने परमेश्वर को अस्वीकार कर दिया, उसके साथ विश्वासघात किया और कलीसिया के कार्य से सरासर गद्दारी की, वह सीसीपी का पिछलग्गू कुत्ता और सहयोगी बन गया। तथ्यों से पता चलता है कि जब पहले उसने चीजों को त्यागा और खुद को खपाया था, तो वह सत्य का अभ्यास नहीं कर रहा था। वह हवा से उड़कर आई मोठ घास जैसा था। वह साफ तौर से एक छद्म-विश्वासी था जो परमेश्वर के कार्य में बेनकाब हो गया। मैं यह भी समझ गई कि किसी में वास्तविकता है या नहीं, यह तय करने के लिए सिर्फ यह नहीं देखा जा सकता कि ऊपरी तौर पर उसने कितने अच्छे काम किए हैं। इसके बजाय यह देखना जरूरी है कि क्या वह सत्य का अभ्यास कर सकता है और क्या वह क्लेशों और परीक्षणों के बीच गवाही दे सकता है। मुझे एहसास हुआ कि शाओडी की तरह मैंने भी सिर्फ कष्ट सहने और खुद को ऊपरी तौर से खपाने पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन सत्य के अनुसरण में प्रयास करने पर जोर नहीं दिया और मुझमें लेशमात्र भी सत्य वास्तविकता नहीं थी। भले ही शाओडी के विपरीत मैंने परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने के लिए कुछ नहीं किया था, मगर मैं कायर थी और खतरनाक परिवेशों का सामना करते हुए डर गई थी, मैं अपने काम में नकारात्मक और सुस्त थी और अपनी गवाही को खो रही थी। जब मैंने इस पर विचार किया तो लगा कि परमेश्वर द्वारा मेरे लिए बनाया गया परिवेश न केवल एक परीक्षा थी, बल्कि यह मेरा उद्धार भी था। इससे मुझे अपने वास्तविक आध्यात्मिक कद को स्पष्ट रूप से देखने के साथ-साथ यह जानने का मौका मिला कि मैं खतरे की कगार पर थी। अगर मैंने सत्य का अनुसरण न करना जारी रखा तो मुझे गिरफ्तार किए जाने की स्थिति में शाओडी की तरह मेरा भी खुलासा हो जाएगा और मुझे भी हटा दिया जाएगा। मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की कि मैं शाओडी की विफलता को एक चेतावनी और सबक के रूप में लेने और गहराई से आत्म-चिंतन करने और खुद को जानने को तैयार हूँ।

इसके बाद मैंने चिंतन किया : एक यहूदा ने जब मुझसे गद्दारी की तो उसके बाद मेरे नकारात्मक दशा में जीने की मूल वजह क्या थी? मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “परमेश्वर का अनुसरण करने वाले बहुत सारे लोग केवल इस बात से मतलब रखते हैं कि आशीष कैसे प्राप्त किए जाएँ या आपदा से कैसे बचा जाए। जैसे ही परमेश्वर के कार्य और प्रबंधन का उल्लेख किया जाता है, वे चुप हो जाते हैं और उनकी सारी रुचि समाप्त हो जाती है। उन्हें लगता है कि इस प्रकार के उबाऊ मुद्दों को समझने से उनके जीवन के विकास में मदद नहीं मिलेगी या कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। परिणामस्वरूप, भले ही उन्होंने परमेश्वर के प्रबंधन के बारे में जानकारी सुनी हो, वे इसके साथ अगंभीर तरीके से पेश आते हैं। उन्हें यह इतना मूल्यवान नहीं लगता कि इसे स्वीकारा जाए, और इसे अपने जीवन के अंग के रूप में लेकर गहराई से समझना तो बिलकुल नहीं होता। ऐसे लोगों का परमेश्वर का अनुसरण करने का केवल एक सरल उद्देश्य होता है, और वह उद्देश्य है आशीष प्राप्त करना। ऐसे लोग ऐसी किसी भी दूसरी चीज पर ध्यान देने की परवाह नहीं कर सकते जो इस उद्देश्य से सीधे संबंध नहीं रखती। उनके लिए, आशीष प्राप्त करने के लिए परमेश्वर में विश्वास करने से ज्यादा वैध उद्देश्य और कोई नहीं है—यह उनके विश्वास का असली मूल्य है। यदि कोई चीज इस उद्देश्य को प्राप्त करने में योगदान नहीं करती, तो वे उससे पूरी तरह से अप्रभावित रहते हैं। आज परमेश्वर में विश्वास करने वाले अधिकांश लोगों का यही हाल है। उनके उद्देश्य और इरादे न्यायोचित प्रतीत होते हैं, क्योंकि जब वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो वे परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाते भी हैं, परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हैं और अपना कर्तव्य भी निभाते हैं। वे अपनी जवानी न्योछावर कर देते हैं, परिवार और आजीविका त्याग देते हैं, यहाँ तक कि वर्षों अपने घर से दूर व्यस्त रहते हैं। अपने परम उद्देश्य के लिए वे अपनी रुचियाँ बदल डालते हैं, अपने जीवन का दृष्टिकोण बदल देते हैं, यहाँ तक कि अपनी खोज की दिशा तक बदल देते हैं, किंतु परमेश्वर पर अपने विश्वास के उद्देश्य को नहीं बदल सकते। वे अपने आदर्शों के प्रबंधन के लिए भाग-दौड़ करते हैं; चाहे मार्ग कितना भी दूर क्यों न हो, और मार्ग में कितनी भी कठिनाइयाँ और अवरोध क्यों न आएँ, वे दृढ़ रहते हैं और मृत्यु से नहीं डरते। इस तरह से अपने आप को समर्पित रखने के लिए उन्हें कौन-सी ताकत बाध्य करती है? क्या यह उनका अंतःकरण है? क्या यह उनका महान और कुलीन चरित्र है? क्या यह बुराई की शक्तियों से बिल्कुल अंत तक लड़ने का उनका दृढ़ संकल्प है? क्या यह प्रतिफल की आकांक्षा के बिना परमेश्वर की गवाही देने की उनकी आस्था है? क्या यह परमेश्वर की इच्छा अच्छी तरह पूरी करने के लिए सब-कुछ त्याग देने की तत्परता के प्रति उनकी निष्ठा है? या यह अनावश्यक व्यक्तिगत माँगें हमेशा त्याग देने की उनकी भक्ति-भावना है? ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए, जिसने कभी परमेश्वर के प्रबंधन को नहीं समझा, फिर भी इतना कुछ देना एक चमत्कार ही है! फिलहाल, आओ इसकी चर्चा न करें कि इन लोगों ने कितना कुछ दिया है। किंतु उनका व्यवहार हमारे विश्लेषण के बहुत योग्य है। उनके साथ इतनी निकटता से जुड़े उन लाभों के अतिरिक्त, परमेश्वर को कभी नहीं समझने वाले लोगों द्वारा उसके लिए इतना कुछ दिए जाने का क्या कोई अन्य कारण हो सकता है? इसमें हमें पूर्व की एक अज्ञात समस्या का पता चलता है : मनुष्य का परमेश्वर के साथ संबंध केवल एक नग्न स्वार्थ है। यह आशीष लेने वाले और देने वाले के मध्य का संबंध है। स्पष्ट रूप से कहें तो, यह एक कर्मचारी और एक नियोक्ता के मध्य का संबंध है। कर्मचारी केवल नियोक्ता द्वारा दिए जाने वाले प्रतिफल प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम करता है। इस प्रकार के हित-आधारित संबंध में कोई स्नेह नहीं होता, केवल एक लेन-देन होता है। प्रेम करने या प्रेम पाने जैसी कोई बात नहीं होती, केवल दान और दया होती है। कोई समझ नहीं होती, केवल असहाय दबा हुआ आक्रोश और धोखा होता है। कोई अंतरंगता नहीं होती, केवल एक अगम खाई होती है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है)। परमेश्वर के वचन उस पर विश्वास रखने के पीछे के लोगों के इरादों और विचारों को उजागर करते हैं। लोग सत्य और जीवन पाने के लिए परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखते हैं। बल्कि वे अनंत आशीष प्राप्त करने के लिए ऐसा करते हैं। परमेश्वर के वचनों ने जो उजागर किया, ठीक वही मेरा व्यवहार था। मैंने इससे पहले खुद को जिस उत्साह से खपाया था उस पर विचार किया। चाहे मुझ पर कितने भी खतरे आए, मैंने अपना कर्तव्य निभाना कभी नहीं छोड़ा। ऐसा इसलिए था क्योंकि मुझे पक्का विश्वास था कि इस तरह से लगातार खुद को खपाने से मुझे परमेश्वर की सुरक्षा मिलेगी और आखिर में अच्छी मंजिल और अच्छा परिणाम मिलेगा। जब एक यहूदा की गद्दारी के बाद वांछित व्यक्ति बनकर मैंने किसी भी समय गिरफ्तारी के खतरे का सामना किया, तो मुझे चिंता हुई कि अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और मैं यातना सहने में असमर्थ हुई और परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया, तो मैं बचाए जाने का मौका खो दूंगी। मुझे लगा कि आशीष पाने की मेरी उम्मीदें खत्म हो गई हैं और इसलिए मैंने परमेश्वर में अपनी आस्था खो दी और कलीसिया के काम में हिस्सा नहीं लेना चाहती थी। मैंने देखा कि मेरे सभी त्याग और मेरा खुद को खपाना पूरी तरह से आशीष प्राप्त करने की इच्छा से प्रेरित थे। जब मुझे लगा कि मुझे आशीष मिलने की उम्मीद है, तो मैं अपना कर्तव्य निभाने में सक्रिय और ऊर्जावान थी, लेकिन जब मैंने देखा कि आशीष पाने की मेरी उम्मीदें खत्म हो गई हैं, तो मैं निराश हो गई। अतीत में मेरे पास अनुसरण के लिए जो ऊर्जा थी और अपना कर्तव्य निभाने की जो प्रेरणा थी, वह सुबह की धुंध की तरह उड़ गई। तथ्यों से पता चलता है कि मैं कई सालों से परमेश्वर में विश्वास रखती आ रही थी, लेकिन परमेश्वर के साथ मेरा रिश्ता वैसा ही था जैसा एक कर्मचारी का अपने नियोक्ता के साथ होता है : मैंने बदले में परमेश्वर से लाभ और एक अच्छी मंजिल पाने के लिए ऊपरी तौर पर त्याग किया और खुद को खपाया। मेरा खुद को खपाना परमेश्वर के प्रति बिना किसी ईमानदारी के अशुद्धियों और चालाकियों से भरा हुआ था। मैं सच में स्वार्थी और घृणित थी, जिसकी वजह से परमेश्वर को मुझसे नफरत और घृणा हो गई। अगर परमेश्वर ने मुझे बेनकाब करने के लिए इस परिवेश का इस्तेमाल नहीं किया होता, तो मैं अनुसरण के अपने गलत दृष्टिकोण पर कायम रहती। मैं अंत तक विश्वास रखती और अंत में परमेश्वर मुझे त्याग कर हटा देता। जब मुझे यह समझ आया, तो मुझे लगा कि परमेश्वर द्वारा ऐसे परिवेशों के आयोजन के पीछे परमेश्वर का श्रमसाध्य इरादा था। यह सब परमेश्वर में मेरे विश्वास की अशुद्धियों को दूर करने, किसका अनुसरण करना चाहिए इस पर मेरे गलत विचारों को बदलने और सही मार्ग पर चलने में मेरी अगुआई करने के लिए था। यह परमेश्वर का प्यार था। उसके द्वारा मेरा उद्धार था। लेकिन मैंने परमेश्वर को गलत समझा और उसके बारे में शिकायत की। मुझ में वास्तव में समझ की कमी थी! मैंने परमेश्वर के दिल को बहुत गंभीर चोट पहुँचाई थी!

बाद में मुझे एहसास हुआ कि मैं कायरता और डर की दशा में इसलिए भी जी रही थी क्योंकि मैं मरने से डरती थी। इस समस्या पर केन्द्रित होकर, मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था, लेकिन दुनिया के लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया, इसके बजाय उनकी भर्त्सना की, पीटा और डाँटा-फटकारा और यहाँ तक कि मार डाला—इस तरह वे शहीद हुए। ... उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं छोड़ा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि उसने समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए जो कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित रह पाई है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी उपादान हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए, जीवन सर्वाधिक सहेजने योग्य है, सर्वाधिक बहुमूल्य है, और असल में कहा जाए तो ये लोग मानव-जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में, अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य चीज अर्पित कर पाए, और वह चीज है—जीवन। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर का नाम नहीं छोड़ा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने के बाद, मुझे समझ आया कि मैं लगातार कायरता और डर में मुख्य रूप से इसलिए जी रही थी क्योंकि मैं अपने जीवन को बहुत संजोती थी और डरती थी कि मुझे गिरफ्तार करने के बाद पीट-पीटकर मार डाला जाएगा। मौत का डर मेरी घातक कमजोरी थी। अभी मुझे गिरफ्तार तो नहीं किया गया था लेकिन मैं इतनी बुरी तरह डर गई थी कि मैं अपना कर्तव्य भी निभा नहीं पा रही थी। अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया, तो मुझमे डटे रहने की क्षमता कम हो जाएगी और मैं शायद किसी भी समय परमेश्वर को धोखा दे दूँ। अगर मैं लगातार गिरफ्तारी से डरती रही और केवल खुद को खतरे से बचाने की कोशिश में हमेशा इसी तरह जीती रही, तो फिर जैसा परमेश्वर ने देखा, मुझमें और मरे हुओं में क्या फर्क रह जाएगा? मैंने उन लोगों के बारे में सोचा जो यहूदा बन गये थे। वे जीवन के लिए लालची थे और मृत्यु से डरते थे। जीवित रहने के लिए उन्होंने अपने भाई-बहनों से गद्दारी करने और परमेश्वर को धोखा देने में संकोच नहीं किया। वे अपमान का प्रतीक बन गए। ऐसे जीने का क्या मतलब था? प्रभु यीशु ने कहा : “जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा(मत्ती 16:25)। प्रभु यीशु का अनुसरण करने वाले शिष्यों को परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार करने के कारण सताया गया। कुछ को पाँच घोड़ों द्वारा विभाजित किया गया, कुछ को पत्थरों से मार डाला गया और पतरस को परमेश्वर के लिए उल्टा क्रूस पर चढ़ाया गया। उन्होंने परमेश्वर की शानदार गवाही देने के लिए अपने जीवन का इस्तेमाल किया। बाहर से तो उनका शरीर मर चुका था, लेकिन उनकी आत्माएँ परमेश्वर के पास लौट गईं। अंत के दिनों में परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने के कारण कई भाई-बहनों को सीसीपी द्वारा गिरफ्तार किया गया है और तरह-तरह की यातनाएँ दी गई हैं। भले ही उन्हें पीट-पीटकर मार डाला जाए या अपाहिज कर दिया जाए, वे परमेश्वर को नकारते नहीं हैं। यह धार्मिकता के लिए उत्पीड़न सहना है। जो सबसे मूल्यवान और अर्थपूर्ण है। उनसे तुलना करने पर मुझे सचमुच शर्मिंदगी महसूस हुई। मुझे उत्पीड़न और क्लेश के बीच अपना कर्तव्य निभाना था। भले ही मुझे सीसीपी द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता और पीट-पीटकर मार डाला या अपाहिज कर दिया जाता, पर वह धार्मिकता के लिए कष्ट सहना होता और अगर मैं मारी जाती, तो यह महिमा के साथ मृत्यु होती।

जून 2024 में, मुझे एक चिट्ठी मिली : एक बहन जिसे गिरफ्तार किया गया था और बाद में रिहा कर दिया गया था, उसने कहा कि जब पुलिस ने उससे पूछताछ की थी, तो सारी बातचीत पिछले साल हमारे द्वारा अपना कर्तव्य निभाने के विवरण के बारे में थी। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर सीसीपी इतने विस्तार से पूछताछ कर रही है, तो उसे चाहे किसी भी हद तक जाना पड़े, वह हमें ढूँढ़ने के लिए तत्पर है। वह हम सभी को गिरफ्तार करना चाहती है!” मैं घबराने से अपने आप को रोक नहीं पाई। “सीसीपी अभी भी हमें गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही है। मैं एक पर्यवेक्षक हूँ—मैं उनके सर्वाधिक वांछित लोगों में से एक हूँ। एक बार पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया, तो वे निश्चित रूप से मुझे तब तक पीटेंगे जब तक कि मैं मौत के दरवाजे पर न पहुँच जाऊँ। अगर मुझे पीट-पीटकर मार डाला गया तो मुझे अपना कर्तव्य निभाने का कोई और मौका नहीं मिलेगा। फिर मैं सत्य का अनुसरण कैसे करूँगी और उद्धार कैसे प्राप्त कर पाऊँगी?” मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से अपने हितों के बारे में सोच रही थी। मुझे ‘एक खतरनाक सुसमाचार यात्रा’ नामक फिल्म के अंत का दृश्य याद आ गया। सीसीपी द्वारा नायक का आखिर तक पीछा किया जा रहा था। फिर भी उसने सुसमाचार का प्रचार किया और परमेश्वर की गवाही दी। जब मुझे यह दृश्य और आखिर का श्रेय गीत याद आया, तो मैंने अपने दिल से बहुत प्रेरित महसूस किया। क्योंकि परमेश्वर ने आदेश दिया था कि अगर मैं बड़े लाल अजगर के देश में परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ, तो मुझमें कष्ट सहने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए। मुझे अपना जीवन त्यागने के लिए तैयार रहना चाहिए, वरना मैं इस रास्ते पर आगे नहीं चल पाऊँगी। चाहे आगे मुझे किसी भी तरह के परिवेश का सामना करना पड़े, मुझे हर समय अपना कर्तव्य निभाते रहना होगा। बाद में, जिस बहन के साथ मैं काम कर रही थी, उसने और मैंने अलग हो कर काम किया। हमने अपने भाई-बहनों के साथ इस बारे में बातचीत की कि बचाव के उपाय कैसे किए जाएँ और सुरक्षा पर ध्यान देते हुए हम अपने कर्तव्य निभाने में लगे रहे। बीते साल या उससे ज्यादा समय को याद करूँ तो जब सीसीपी मेरा पीछा कर रही थी और मुझे हर जगह भागना पड़ा था, तब भले ही मैंने थोड़े कष्ट और शोधन का अनुभव किया, पर मैंने जो हासिल किया वह कुछ ऐसा था जिसे मैं आरामदायक माहौल में हासिल नहीं कर सकती थी। यह वैसा ही है जैसा परमेश्वर कहता है : “बताओ भला, पूरी दुनिया में खरबों लोगों के बीच कौन इतना धन्य है कि परमेश्वर के इतने सारे वचन सुन पाए, जीवन के इतने सत्य और इतने सारे रहस्य समझ पाए? उन सबमें कौन निजी तौर पर परमेश्वर का मार्गदर्शन, उसका पोषण, देखभाल और रक्षा प्राप्त कर सकता है? कौन इतना धन्य है? बहुत कम लोग। इसलिए तुम थोड़े-से लोगों का आज परमेश्वर के घर में जीवनयापन करने, उसका उद्धार पाना, और उसका पोषण पाने में समर्थ होना, ये सब तुम तुरंत मर जाओ तो भी सार्थक है। तुम अत्यंत धन्य हो, क्या यह सही नहीं है? (हाँ।) इस नजरिये से देखें, तो लोगों को मृत्यु के विषय से इतना अधिक भयभीत नहीं होना चाहिए, न ही इससे बेबस होना चाहिए। भले ही तुमने दुनिया की किसी महिमा या धन-दौलत के मजे न लिए हों, फिर भी तुम्हें सृष्टिकर्ता की दया मिली है, और तुमने परमेश्वर के इतने सारे वचन सुने हैं—क्या यह आनंददायक नहीं है? (जरूर है।) इस जीवन में तुम चाहे जितने साल जियो, ये सब इस योग्य है और तुम्हें कोई खेद नहीं, क्योंकि तुम परमेश्वर के कार्य में निरंतर अपना कर्तव्य निभाते रहे हो, तुमने सत्य समझा है, जीवन के रहस्यों को समझा है, और जीवन में जिस पथ और लक्ष्यों का तुम्हें अनुसरण करना चाहिए उन्हें समझा है—तुमने बहुत कुछ हासिल किया है! तुमने सार्थक जीवन जिया है! भले ही तुम इसे साफ तौर पर समझा न पाओ, तुम कुछ सत्यों पर अमल करने और कुछ वास्तविकता रखने में समर्थ हो, और इससे साबित होता है कि तुमने जीवन का थोड़ा पोषण प्राप्त किया है, और परमेश्वर के कार्य से कुछ सत्यों को समझा है। तुमने बहुत कुछ हासिल किया है—सच्ची प्रचुरता हासिल की है—और यह कितना महान आशीष है! मानव इतिहास के आरंभ से ही, सभी युगों के दौरान, कभी किसी ने इस आशीष का आनंद नहीं लिया, मगर तुम इसका आनंद ले रहे हो। क्या अब तुम मरने के लिए तैयार हो? ऐसी तत्परता के साथ मृत्यु के प्रति तुम्हारा रवैया सचमुच समर्पण करने वाला होगा, है ना? (हाँ।)” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (4))। मैंने सोचा कि मैं कितनी भ्रष्ट हूँ, लेकिन फिर भी आज मैं इतनी भाग्यशाली हूँ कि परमेश्वर का अनुसरण कर पा रही हूँ और बड़े लाल अजगर के देश में उत्पीड़न और क्लेशों का अनुभव करने और परमेश्वर के राज्य का प्रशिक्षण स्वीकार करने के लिए भी काफी भाग्यशाली हूँ। यह मेरी सबसे बड़ी आशीष है। इस परिवेश के प्रकाशन में, मैंने अपना असली आध्यात्मिक कद स्पष्ट रूप से देखा और आशीष पाने के पीछे भागने के बारे में मेरे दृष्टिकोण और परमेश्वर में विश्वास रखने में जिस गलत मार्ग पर मैं चल रही थी, उसमें कुछ हद तक बदलाव आया। यह मेरे लिए परमेश्वर की आशीष थी। जब मैंने इस तरह सोचा, तो मेरे कृतज्ञता भरे आँसू बह निकले। मुझे नहीं पता था कि उस पल किन शब्दों से मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त करूँ। मैं बस अपने दिल में लगातार परमेश्वर को धन्यवाद देती रही। अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि परिवेश कितना खतरनाक है या भविष्य में मुझे अच्छा परिणाम या अच्छी मंजिल मिलेगा या नहीं, मैं परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने और अपना कर्तव्य पूरा करने को तैयार हूँ।

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