1. चाहे मेरे कर्तव्य कितने भी व्यस्त क्यों न हों, मुझे जीवन प्रवेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए
मैं मार्च 2023 में जिला अगुआ का कर्तव्य निभा रही थी। चूँकि मेरे पास बहुत सारी जिम्मेदारियाँ थीं, मुझे अक्सर जल्दी उठना पड़ता था ताकि सब कुछ जल्दी से निपटा सकूँ और कभी-कभी मैं अंधेरा होने से पहले घर नहीं लौट पाती थी। घर पहुँचने के बाद भी मुझे कुछ पत्र निपटाने होते थे और लगता था कि काम कभी खत्म ही नहीं होगा। कभी-कभी मैं अपने कर्तव्य करते समय कुछ भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करती थी और मैं इसे ठीक करने के लिए परमेश्वर के वचन खाना-पीना चाहती थी, लेकिन मुझे हमेशा लगता था कि भक्ति में बहुत अधिक समय लगेगा। कुछ समय तक ऐसे ही व्यस्त रहने के बाद मुझे लगा कि मैंने जीवन प्रवेश में बहुत प्रगति नहीं की है और मेरा दिल हमेशा खालीपन महसूस करता था। चूँकि मैं जीवन प्रवेश पर ध्यान दिए बिना सिर्फ काम पर ध्यान केंद्रित कर रही थी, मेरी आत्मा धीरे-धीरे सुन्न हो गई और मैं समस्याओं का सामना होने पर सत्य खोजना नहीं जानती थी और सभाओं के दौरान कोई समझ साझा नहीं कर पाती थी। मैं जानती थी कि परमेश्वर के साथ मेरा रिश्ता असामान्य है, इसलिए मुझे थोड़ा डर लगा और मुझे लगा कि मैं संकट में हूँ। अगर मेरे जीवन स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया तो चाहे मैं कितनी भी दौड़-भाग करूँ या पीड़ित दिखूँ, फिर भी मुझे परमेश्वर की स्वीकृति नहीं मिलेगी। इसलिए मैंने अगुआ के अपने कर्तव्य करने बंद कर दिए, सोचती रही कि यह कर्तव्य बहुत व्यस्तता वाला है और मेरे पास अपना भ्रष्ट स्वभाव ठीक करने के लिए सत्य का अनुसरण करने का समय नहीं है। उस समय के दौरान भले ही मैंने अपने कर्तव्य नहीं छोड़े, मैंने अपनी प्रेरणा खो दी और मुझमें अपने कर्तव्यों के लिए जिम्मेदारी की भावना नहीं रही। बाद में मैंने देखा कि जो भाई-बहन पाठ-आधारित कर्तव्य करते थे, वे अक्सर परमेश्वर के वचन और अन्य भाई-बहनों द्वारा लिखी गई अनुभवजन्य गवाहियाँ पढ़ते थे और मैंने सोचा कि पाठ-आधारित कर्तव्य करना बहुत अच्छा होगा और इस कर्तव्य से अन्य कर्तव्यों की तुलना में अधिक लाभ पाया जा सकता है, इसलिए मुझे उम्मीद थी कि एक दिन मैं भी पाठ-आधारित कर्तव्य कर सकूँगी, क्योंकि इससे मुझे अपने जीवन प्रवेश में मदद मिलेगी और उद्धार की मेरी आशा बढ़ेगी।
नवंबर में एक दिन उच्च अगुआओं ने कहा कि पाठ-आधारित कार्य के लिए कर्मियों की तत्काल आवश्यकता है और चूँकि मेरे पास पाठ-आधारित कार्य की देखरेख करने में कुछ प्रभावशीलता थी, इसलिए वे मुझे यह कर्तव्य सौंपना चाहते थे। मुझे यह समाचार पाकर बहुत खुशी हुई क्योंकि मुझे लगा कि यह कर्तव्य करने से मेरे जीवन प्रवेश करने में जरूर मदद मिलेगी और मुझे इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। लेकिन मुझे हैरानी हुई कि जब मैं वाकई सहयोग करने लगी तो मुझे एहसास हुआ कि लेखों की जाँच करने के अलावा मुझे लोगों को विकसित भी करना था, साथ ही भाई-बहनों के जीवन प्रवेश से संबंधित मसले सुलझाने थे और मैंने पाया कि इस कर्तव्य का कार्यभार किसी अगुआ से कम नहीं है। इसके अलावा चूँकि मैंने अभी-अभी प्रशिक्षण शुरू किया था और सिद्धांतों या कार्य से परिचित नहीं थी, मेरे पास हमेशा अंतहीन कार्य होते थे। अपना काम अच्छी तरह से करने को प्राथमिकता देने के साथ मुझे लगा कि सुबह की भक्ति समय की बर्बादी है और शाम को मुझे लेखों की जाँच के लिए ओवरटाइम भी करना पड़ता था; मैंने पाया कि मैं हर दिन काम करने के चक्र में फँस गई हूँ और मैंने अपनी भ्रष्टताओं की जाँच करने पर ध्यान देना बंद कर दिया। कभी-कभी जब मुझे एहसास होता कि मेरी दशा खराब है, मैं इसे ठीक करने के लिए परमेश्वर के वचन खाना-पीना चाहती थी, लेकिन जब भी मैं सारे काम करने के बारे में सोचती, मैं जीवन प्रवेश के मामले को पीछे धकेल देती। मैंने शुरू में सोचा था कि पाठ-आधारित कर्तव्य करने से मुझे अपने जीवन प्रवेश में मदद मिलेगी, लेकिन अब मुझे भक्ति के लिए भी समय नहीं मिल पा रहा था। अगर मैं खुद को हर दिन इतना व्यस्त रखूँगी तो मुझे सत्य खोजने और अपने मुद्दे सुलझाने के लिए समय कैसे मिलेगा? मेरे जीवन स्वभाव में बदलाव के बिना मुझे कैसे बचाया जा सकता है? जितना मैंने इसके बारे में सोचा, मैं उतनी ही दुखी होती गई और मुझे इस कर्तव्य को लेने पर पछतावा भी हुआ। खासकर जब मैंने कुछ भाई-बहनों की अनुभवजन्य गवाहियों के वीडियो बनकर ऑनलाइन अपलोड होते देखा तो मुझे गहरी बेचैनी हुई, क्योंकि मैं कई साल से परमेश्वर पर विश्वास करती थी, लेकिन मैंने एक भी अनुभवजन्य गवाही नहीं लिखी थी और मैंने अभी भी अपने भ्रष्ट स्वभाव के किसी भी पहलू को नहीं सुलझाया था। मेरे हर दिन व्यस्त रहने का क्या मतलब था? मैं न चाहते हुए भी शिकायत करने लगी, सोच रही थी कि अगुआओं ने मुझे अनुपयुक्त कर्तव्य सौंपा है और यह मेरे सत्य के अनुसरण और उद्धार के अवसर में बाधा डाल रहा है। मैं जानती थी कि इस तरह से सोचना गलत है, इसलिए मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे हमेशा लगता है कि मैं अपने कर्तव्यों में इतनी व्यस्त रहती हूँ कि सत्य का अनुसरण करने का समय ही नहीं मिलता। मुझे पता है कि इस तरह से सोचना गलत है, लेकिन मुझे अभी भी अपने बारे में बहुत समझ नहीं है। मुझे प्रबुद्ध करो और राह दिखाओ और मुझे मेरे मुद्दे समझने में मदद करो।”
एक सभा के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “कुछ लोग हमेशा कहते रहते हैं कि वे अपने कर्तव्यों में इतने व्यस्त रहते हैं कि उनके पास सत्य का अनुसरण करने का समय ही नहीं होता। यह मान्य नहीं है। सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति चाहे जो भी कार्य कर रहा हो, जैसे ही उसे किसी समस्या का पता चलता है, वह उसे हल करने के लिए सत्य खोजेगा और सत्य समझकर उसे प्राप्त करेगा। यह निश्चित है। कई लोग हैं, जो सोचते हैं कि सत्य केवल प्रतिदिन सभाओं में जाने से ही समझा जा सकता है। इससे ज्यादा गलत कुछ नहीं हो सकता। सत्य ऐसी चीज नहीं है, जिसे केवल सभाओं में जाकर प्रवचन सुनने से समझा जा सके; व्यक्ति को परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करने की भी आवश्यकता है, और उसे समस्याएँ खोजकर उनका समाधान करने की प्रक्रिया की भी आवश्यकता है। अहम यह है कि उन्हें सत्य खोजना सीखना चाहिए। जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते, वे उसे नहीं खोजते, चाहे उन पर कितनी भी समस्याएँ क्यों न आएँ; सत्य के प्रेमी उसे खोजते हैं, चाहे वे अपने कर्तव्यों में कितने भी व्यस्त क्यों न हों। इसलिए, हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि जो लोग हमेशा शिकायत करते रहते हैं कि वे अपने कर्तव्यों में इतने व्यस्त रहते हैं कि उनके पास सभाओं में जाने का समय नहीं है, इसलिए परिणामस्वरूप उन्हें सत्य का अनुसरण छोड़ना पड़ता है, वे सत्य के प्रेमी नहीं हैं। वे बेतुकी समझ वाले लोग हैं, जिन्हें आध्यात्मिक समझ नहीं है। ... कोई व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है या नहीं, इसका संबंध इस बात से नहीं है कि वह अपने कर्तव्य में कितना व्यस्त है या उसके पास कितना समय है; यह इस पर निर्भर करता है कि वह हृदय से सत्य से प्रेम करता है या नहीं। सच तो यह है कि सभी के पास समय की प्रचुरता समान होती है; अलग बात यह है कि हर व्यक्ति उसे खर्च कहाँ करता है। यह संभव है कि जो व्यक्ति कहता है कि उसके पास सत्य का अनुसरण करने के लिए समय नहीं है, वह अपना समय दैहिक सुखों पर खर्च कर रहा हो, या वह किसी बाहरी मामले में व्यस्त हो। वह उस समय को समस्याएँ हल करने के लिए सत्य खोजने में खर्च नहीं करता। अपने अनुसरण में लापरवाही बरतने वाले लोग ऐसे ही होते हैं। इससे उनके जीवन-प्रवेश के बड़े मामले में देरी होती है” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (3))। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि हमेशा यह महसूस करना कि मैं अपने कर्तव्यों में इतनी व्यस्त हूँ कि जीवन प्रवेश पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती हूँ, मेरी मूल समस्या यह है कि मैं सत्य से प्रेम नहीं करती। एक अगुआ के रूप में मेरे पास बहुत काम रहता था और मुझे लगा कि मेरे पास अपना भ्रष्ट स्वभाव ठीक करने के लिए परमेश्वर के वचन पढ़ने का समय नहीं है, इसलिए मैं सिर्फ एक ही कार्य वाला कर्तव्य करना चाहती थी। लेकिन पाठ-आधारित कर्तव्य में जाने के बाद भी मुझे लगा कि मैं इस कर्तव्य में बहुत व्यस्त हूँ और यह मेरे जीवन प्रवेश को प्रभावित कर रहा है और मेरे उद्धार के अवसर में बाधा डाल रहा है। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरे बहाने पूरी तरह से अमान्य थे। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, वे सत्य खोज सकते हैं और किसी भी स्थिति में आत्म-चिंतन कर सकते हैं और इससे सबक सीखते हैं। लेकिन जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते, वे किसी भी स्थिति में सत्य खोजने पर ध्यान केंद्रित नहीं करते और वे हमेशा सत्य का अनुसरण न करने के लिए हर तरह के बहाने ढूँढ़ते हैं। मैंने कई भाई-बहनों के बारे में सोचा जो अगुआ और पर्यवेक्षक हैं। वे भी हर दिन काम में व्यस्त रहते हैं, फिर भी उनके पास सत्य खोजने और अपने जीवन प्रवेश पर ध्यान केंद्रित करने का समय होता है। ठीक उसी तरह जैसे जब एक अगुआ हमारी टीम में काम का जायजा लेने आई, मैंने देखा कि वह हमारे काम के लिए जिम्मेदार थी और साथ ही अन्य कार्यों का प्रबंधन भी कर रही थी और वह हर दिन मेरी तुलना में बहुत अधिक व्यस्त रहती थी, फिर भी वह भक्ति और परमेश्वर के वचनों पर चिंतन के लिए समय निकाल पाती थी। इसके अलावा उसकी काट-छाँट होने के अनुभवात्मक लाभों को साझा करते हुए सुनना हमारे लिए भी फायदेमंद था। मैंने देखा कि दूसरे लोग सत्य खोज सकते हैं और अपने सामने आने वाली परिस्थितियों में सबक सीख सकते हैं, जिससे जीवन में प्रगति होती है। मुझे कुछ ऐसे व्यक्ति भी याद आए, जिनसे मैं पहले मिली थी, जो एक ही कार्य वाले कर्तव्य करते थे वे हर दिन अपने मौजूदा कार्य पूरे करने में संतुष्ट थे और फिर अपना बाकी समय दैहिक मामलों में बिताते थे। उनके पास स्पष्ट रूप से परमेश्वर के वचनों पर विचार करने और सत्य की खोज करने के लिए बहुत समय था, फिर भी उन्हें अपने जीवन प्रवेश के लिए जिम्मेदारी का कोई एहसास नहीं था और उन्होंने दूसरों के याद दिलाने पर भी ध्यान नहीं दिया, यहाँ तक कि उनका प्रतिरोध भी किया। इन तथ्यों की रोशनी में मैंने देखा कि मेरा यह मानना कि कर्तव्यों में व्यस्त होने का मतलब है व्यक्ति के पास सत्य का अनुसरण करने का कोई समय नहीं है, यह मूलतः सत्य के साथ असंगत और पूरी तरह से बेतुका है। ठीक वैसे ही जैसे अब जब मैं पाठ-आधारित कर्तव्य कर रही थी और अनुभवजन्य गवाहियों की जाँच कर रही थी तो मैंने जिस भी लेख की समीक्षा की, उसमें सत्य शामिल था, लेकिन फिर भी मुझे ऐसा क्यों लगा कि मेरे पास जीवन प्रवेश पर ध्यान केंद्रित करने का कोई समय नहीं है? मूल कारण यह था कि मुझे सत्य से प्रेम नहीं था, फिर भी मैंने अगुआओं को मुझे अनुपयुक्त कर्तव्य सौंपने के लिए दोषी ठहराया, जो कि पूरी तरह से निरर्थक और तर्कहीन था। मैं वाकई ऐसी इंसान थी जिसे परमेश्वर ने बेतुकी समझ रखने वाली और आध्यात्मिक समझ से रहित इंसान के रूप में उजागर किया है!
बाद में मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े और समझा कि हम अपने कर्तव्य करते हुए जीवन प्रवेश कैसे पा सकते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “सत्य का अनुसरण करने वाले लोग अपने कर्तव्यों में चाहे जितने व्यस्त रहें, फिर भी वे खुद पर पड़ने वाली समस्याएँ हल करने के लिए सत्य खोज सकते हैं, और उन चीजों के बारे में संगति की माँग कर सकते हैं जो उनके द्वारा सुने गए प्रवचनों में उन्हें स्पष्ट नहीं होतीं, और रोज शांतचित्त होकर यह चिंतन कर सकते हैं कि उन्होंने कैसा प्रदर्शन किया, फिर परमेश्वर के वचनों पर विचार कर अनुभवात्मक गवाही के वीडियो देख सकते हैं। इससे उन्हें लाभ होता है। अपने कर्तव्यों में वे चाहे जितने व्यस्त रहें, इससे उनके जीवन-प्रवेश में कोई बाधा नहीं आती, न ही उसमें देरी होती है। सत्य से प्रेम करने वाले लोगों के लिए इस तरह अभ्यास करना स्वाभाविक है। सत्य से प्रेम न करने वाले लोग अपने कर्तव्य में चाहे व्यस्त हों या न हों और उन पर चाहे जो समस्या आन पड़े, वे सत्य नहीं खोजते और आत्मचिंतन करने और खुद को जानने के लिए परमेश्वर के सामने खुद को शांत करने के लिए तैयार नहीं होते। इसलिए, वे चाहे अपने कर्तव्य में व्यस्त हों या फुरसत में हों, वे सत्य का अनुसरण नहीं करते। तथ्य यह है कि अगर व्यक्ति के पास सत्य की खोज करने वाला दिल है, और वह सत्य की लालसा रखता है और जीवन-प्रवेश और स्वभावगत बदलाव का दायित्व उठाता है, तो वह दिल से परमेश्वर के करीब आएगा और उससे प्रार्थना करेगा, फिर चाहे वह अपने कर्तव्य में कितना भी व्यस्त क्यों न हो। वह निश्चित रूप से पवित्र आत्मा की कुछ प्रबुद्धता और प्रतिभा प्राप्त करेगा, और उसका जीवन लगातार बढ़ेगा। अगर व्यक्ति सत्य से प्रेम नहीं करता और जीवन-प्रवेश या स्वभावगत बदलाव का कोई दायित्व नहीं उठाता, या अगर उसे इन चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं है, तो वह कुछ भी हासिल नहीं कर सकता। व्यक्ति में भ्रष्टता के जो उद्गार हैं, उन पर चिंतन करना कहीं भी, किसी भी समय किया जाने वाला काम है। उदाहरण के लिए, अगर किसी ने अपना कर्तव्य निभाते समय भ्रष्टता दिखाई है, तो अपने दिल में उसे परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, और आत्मचिंतन कर अपने भ्रष्ट स्वभाव को जानना चाहिए, और उसे हल करने के लिए सत्य खोजना चाहिए। यह दिल का मामला है; इसका मौजूदा कार्य से कोई संबंध नहीं है। क्या यह करना आसान है? यह इस पर निर्भर करता है कि तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो या नहीं। जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते, उन्हें जीवन में विकास के मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं होती। वे ऐसी चीजों पर विचार नहीं करते। केवल सत्य का अनुसरण करने वाले लोग ही जीवन में विकास के लिए कठिन परिश्रम करने के इच्छुक होते हैं; केवल वे ही अक्सर उन समस्याओं पर विचार करते हैं जो वास्तव में मौजूद होती हैं, और इस पर भी कि उन समस्याओं को हल करने के लिए सत्य कैसे खोजें। असल में, समस्याएँ हल करने की प्रक्रिया और सत्य का अनुसरण करने की प्रक्रिया एक ही चीज है। अगर व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाते समय समस्याएँ हल करने के लिए सत्य की खोज पर लगातार ध्यान केंद्रित करता है, और इस तरह कई वर्षों के अभ्यास में उसने काफी समस्याओं का समाधान किया है, तो उसके कर्तव्य का प्रदर्शन निश्चित रूप से मानक के अनुरूप है। ऐसे लोगों में भ्रष्टता का उद्गार बहुत कम होता है, और उन्हें अपने कर्तव्य निभाने में बहुत सच्चा अनुभव प्राप्त होता है। इस तरह वे परमेश्वर के लिए गवाही देने के योग्य होते हैं। ऐसे लोग पहली बार अपना कर्तव्य सँभालने से शुरू करके परमेश्वर के लिए गवाही देने में सक्षम होने तक के अनुभव से कैसे गुजरते हैं? वे समस्याओं के समाधान के लिए सत्य खोजने पर भरोसा करके ऐसा करते हैं। इसीलिए सत्य का अनुसरण करने वाले लोग अपने कर्तव्यों में चाहे कितने ही व्यस्त क्यों न हों, वे समस्याएँ हल करने के लिए सत्य खोजेंगे और सिद्धांतों के अनुसार अपने कर्तव्य निभाने में सफल होंगे, और वे सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के प्रति समर्पित होने में सक्षम होंगे। यह जीवन-प्रवेश की प्रक्रिया है, और यह सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने की भी प्रक्रिया है” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (3))। पहले मैं हमेशा सोचती थी कि भक्ति के लिए परमेश्वर के वचन खाने-पीने, अपनी समस्याओं पर चिंतन करने और उन्हें समझने के लिए पर्याप्त समय की जरूरत होती है और यह जीवन प्रवेश पर ध्यान केंद्रित करने का तरीका है। इसलिए जब भी मैं अपने कर्तव्यों में व्यस्त होती तो मैं केवल काम पर ध्यान केंद्रित करती, जीवन प्रवेश के मामले को एक तरफ रख देती। मैंने अपने जीवन प्रवेश को अपने कर्तव्यों से अलग कर दिया था। सच तो यह है कि भक्ति को विनियमों से नहीं बांधा जाना चाहिए और जो लोग अपने जीवन प्रवेश के प्रति जिम्मेदारी की भावना रखते हैं और सत्य से प्रेम करते हैं वे चाहे कितने भी व्यस्त क्यों न हों, सबक सीख सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे जब कोई व्यक्ति अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कर्तव्य करता है तो उसे हर दिन कई लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी भाई-बहन मुश्किलों में जी रहे होते हैं या उनके भ्रष्ट स्वभाव उनके कर्तव्यों को प्रभावित करते हैं, तब अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनकी दशाओं पर विचार करना होता है और उन्हें सुलझाने में मदद के लिए परमेश्वर के वचन खोजने होते हैं। कभी-कभी जब वे देखते हैं कि भाई-बहन अपना गंभीर भ्रष्ट स्वभाव प्रकट कर रहे हैं, कलीसिया में विघ्न-बाधा डाल रहे हैं तो उन्हें उजागर करने और उनकी काट-छाँट करने की जरूरत होती है। और पाठ-आधारित कर्तव्य करने में जाँचे जा रहे प्रत्येक लेख में सत्य का एक निश्चित पहलू शामिल होता है जो भ्रष्ट स्वभाव का एक पहलू सुलझा सकता है और अगर कोई व्यक्ति ऐसी चीजें साफ तौर पर नहीं समझता है तो उसे सक्रियता से सत्य की खोज करनी होगी ताकि वह सिद्धांतों के अनुसार उपयुक्त लेखों की जाँच कर सके। ये सभी चीजें जीवन प्रवेश से संबंधित हैं। इसके अलावा जब मैं अपनी सहयोगी बहनों के साथ बातचीत करती थी, चूँकि मुझे सिद्धांतों की समझ नहीं थी और मेरे कर्तव्यों में मेरी दक्षता कम थी, मैंने पाया कि मैं अपनी प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा की बहुत परवाह करती थी और अपनी तुलना बहनों के साथ करती थी और मुझे अपना भ्रष्ट स्वभाव ठीक करने के लिए तुरंत सत्य की खोज करनी थी, ताकि मैं जल्दी से अपने कर्तव्यों में जुट जाऊँ। इसके अलावा खुद को परमेश्वर के सामने शांत करने और उसके वचनों पर चिंतन करने के लिए समय निकालना भी बहुत महत्वपूर्ण है, जैसे नहाने, खाने या बातचीत करने में बिताया गया समय भी परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करने या दिन भर में प्रकट होने वाली भ्रष्टताओं पर चिंतन करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। किसी व्यक्ति के कर्तव्यों में ऐसे बहुत से क्षेत्र होते हैं जहाँ उसे सत्य खोजने और सबक सीखने की जरूरत होती है। इसके बाद जब मैं अपने कर्तव्य करती तो मैं परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करती और कभी-कभी जब काम में व्यस्त होती तो मैं थोड़ा पहले उठ जाती या अपने लंच ब्रेक का उपयोग भक्ति से जुड़े नोट या लेख लिखने में करती। इस तरह अभ्यास करने से मुझे लगा कि परमेश्वर के साथ मेरा रिश्ता और भी घनिष्ठ हो गया है। लेखों की जाँच करते समय मैं अपने भाई-बहनों की अनुभवात्मक समझ पढ़ती और सचेत होकर उनकी समस्याओं की रोशनी में अपनी समस्याओं पर चिंतन करती। कभी-कभी उनकी अनुभवात्मक समझ पढ़ने से मुझे अपने स्वयं के मुद्दों में स्पष्ट अंतर्दृष्टि मिलती और हर बार मैं देखती कि मैं कुछ हासिल कर सकती हूँ। धीरे-धीरे मुझे लगा कि मेरी आत्मा और पैनी हो गई है और मुझे वाकई एहसास हुआ कि व्यक्ति का जीवन प्रवेश और कर्तव्य एक दूसरे से असंबंधित नहीं है। मुझे और ज्यादा महसूस हुआ कि यह कर्तव्य करना अद्भुत है और भले ही यह व्यस्त रखता है, इसने मुझे अपना भ्रष्ट स्वभाव ठीक करने में मदद की। मैं इस कर्तव्य में जीवन प्रवेश का अभ्यास करने और ध्यान केंद्रित करना जारी रखने के लिए तैयार हो गई।
एक दिन मैंने एक अनुभवजन्य गवाही में परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिससे मुझे अपनी दशा के बारे में कुछ और जानकारी पाने में मदद मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “लोग आशीष पाने, पुरस्कृत होने, ताज पहनने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। क्या यह सबके दिलों में नहीं है? यह एक तथ्य है कि यह सबके दिलों में है। हालाँकि लोग अक्सर इसके बारे में बात नहीं करते, यहाँ तक कि वे आशीष प्राप्त करने का अपना मकसद और इच्छा छिपाते हैं, फिर भी यह इच्छा और मकसद लोगों के दिलों की गहराई में हमेशा अडिग रहा है। लोग चाहे कितना भी आध्यात्मिक सिद्धांत समझते हों, उनके पास जो भी अनुभवात्मक ज्ञान हो, वे जो भी कर्तव्य निभा सकते हों, कितना भी कष्ट सहते हों, या कितनी भी कीमत चुकाते हों, वे अपने दिलों में गहरी छिपी आशीष पाने की प्रेरणा कभी नहीं छोड़ते, और हमेशा चुपचाप उसके लिए मेहनत करते हैं। क्या यह लोगों के दिल के अंदर सबसे गहरी दबी बात नहीं है? आशीष प्राप्त करने की इस प्रेरणा के बिना तुम लोग कैसा महसूस करोगे? तुम किस रवैये के साथ अपना कर्तव्य निभाओगे और परमेश्वर का अनुसरण करोगे? अगर लोगों के दिलों में छिपी आशीष प्राप्त करने की यह प्रेरणा खत्म हो जाए तो ऐसे लोगों का क्या होगा? संभव है कि बहुत-से लोग नकारात्मक हो जाएँगे, जबकि कुछ अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन हो जाएँगे। वे परमेश्वर में अपने विश्वास में रुचि खो देंगे, मानो उनकी आत्मा गायब हो गई हो। वे ऐसे प्रतीत होंगे, मानो उनका हृदय छीन लिया गया हो। इसीलिए मैं कहता हूँ कि आशीष पाने की प्रेरणा ऐसी चीज है जो लोगों के दिल में गहरी छिपी है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन संवृद्धि के छह संकेतक)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे एहसास हुआ कि मेरे प्रतिरोध और नकारात्मकता के पीछे आशीष पाने की स्वार्थी इच्छा छिपी हुई थी। मैं हमेशा से यही मानती थी कि सत्य का अनुसरण करने और जीवन प्रवेश पर ध्यान केंद्रित करने की मेरी इच्छा में कुछ भी गलत नहीं था और सिर्फ परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से ही मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने ही मुखौटे से गुमराह हो गई थी। जब मैंने पहली बार परमेश्वर को पाया था, उस समय को याद करूँ तो कलीसिया मेरे लिए जो भी व्यवस्था करती थी, मैं उसके प्रति समर्पण करती थी, मैं सक्रिय और उत्साही दिखती थी। बाद में मैंने अपने परिवार और बच्चों को छोड़ दिया और भले ही मेरे दिल में यंत्रणा और तकलीफ थी, मुझे भविष्य में आशीष पाने की उम्मीद थी, इसलिए मैंने दृढ़तापूर्वक अपनी शादी और परिवार को अलग रखकर अपना पूरा समय अपने कर्तव्यों को समर्पित कर दिया। पीछे मुड़कर देखने पर मैंने देखा कि मेरी प्रेरणा आशीष पाने की इच्छा से प्रेरित थी। मैंने सोचा कि अपने कर्तव्य करने के लिए घर छोड़ने से मुझे अभ्यास करने के अधिक अवसर मिलेंगे और इससे भविष्य में बचाए जाने की मेरी संभावनाएँ बढ़ जाएँगी। एक अगुआ के रूप में अपने कर्तव्य करते समय मुझे लगा कि यह कर्तव्य मुझे हर दिन इतना व्यस्त रखता है कि मेरे पास परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने का समय नहीं है और चाहे मैं कितनी भी मेहनत से काम करती दिखूँ, मेरे जीवन स्वभाव में कोई बदलाव नहीं होने पर मैं आखिरकार बेनकाब हो जाऊँगी और हटा दी जाऊँगी। मुझे लगा कि एक अगुआ के रूप में मेरे कर्तव्य मेरे उद्धार और आशीष के लिए फायदेमंद नहीं थे, इसलिए मैंने एक ही कार्य वाले कर्तव्य करने के बारे में सोचा। लेकिन उम्मीद के विपरीत पाठ-आधारित कर्तव्य लेने के बाद भी मुझे परमेश्वर के वचनों को ठीक से खाने और पीने का समय नहीं मिल पाया, इसलिए मुझे पछतावा हुआ, सोचती रही कि यह कर्तव्य मेरे सत्य के अनुसरण और उद्धार में बाधा डाल रहा है जिसके कारण मैंने व्यथित और पीड़ित महसूस किया। मैं बस वही कर्तव्य करना चाहती थी जिससे मुझे आशीष मिलने की संभावना लगती, मैंने उन कर्तव्यों का प्रतिरोध किया और उनके प्रति नकारात्मक हो गई जिनके बारे में मुझे लगता था कि वे मुझे आशीष पाने की नहीं देंगे; मैंने अगुआओं के बारे में भी शिकायत की कि वे ऐसे कर्तव्यों की व्यवस्था कर रहे हैं जो मेरे अनुकूल नहीं हैं और परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने में विफल रही। परमेश्वर ने मुझे अपने कर्तव्य करने के लिए जो अवसर दिए, उन पर विचार करते हुए मुझे एहसास हुआ कि वे मेरा भ्रष्ट स्वभाव ठीक करने के लिए मुझे सत्य की खोज पर ध्यान केंद्रित करने को प्रोत्साहित करने के लिए थे, फिर भी मैं नहीं जानती थी कि मेरे लिए क्या अच्छा है और मैं अभ्यास करने का इतना मूल्यवान अवसर संजोने में विफल रही, लगातार हिसाब लगाती रही कि मैं आशीष पा सकती हूँ या नहीं। मैं बहुत भद्दी और नीच थी। अगर मैंने सुधार नहीं किया तो जल्द ही मैं बेनकाब हो जाऊँगी और हटा दी जाऊँगी! इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मुझे बेनकाब करने के लिए ऐसी स्थिति की व्यवस्था करने और मुझे मेरी कमियाँ देखने में मदद करने के लिए धन्यवाद। मैं अनुसरण का अपना गलत दृष्टिकोण बदलने और तुम्हारे आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के लिए तैयार हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो।”
हालाँकि मैं अभी भी अपने कर्तव्यों में व्यस्त हूँ, लेकिन अब मैं दुखी या उदास नहीं होती। मैं अपने कर्तव्य करते समय मिल रही अंतर्दृष्टि और लाभों को रिकॉर्ड करने और अपनी भ्रष्टता पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करती हूँ और मैं जिम्मेदारी की भावना के साथ परमेश्वर से प्रार्थना करती हूँ, उसके प्रबोधन और मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करती हूँ और धीरे-धीरे आत्म-चिंतन करके खुद को जानती हूँ। अपनी भक्ति के दौरान मैं अनुभवजन्य गवाही वीडियो देखती हूँ जो मेरे मसले करते हैं; मैं हर दिन आत्म-चिंतन करने और सत्य खोजने के लिए कुछ समय निकालने की कोशिश करती हूँ और हर महीने एक अनुभवजन्य गवाही लिखने का प्रयास करती हूँ। एक दिन मैंने देखा कि मेरी लिखी अनुभवजन्य गवाही पर वीडियो बनाकर वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया था। मैं बहुत उत्साहित थी। बाद में मैंने अपना अनुभव कई भाई-बहनों द्वारा साझा होते देखा, जिससे उनके जीवन प्रवेश की समस्याओं का भी समाधान हुआ। मुझे एहसास हुआ कि अनुभवजन्य गवाही लिखने से ऐसी ही समस्याओं वाले अन्य लोगों को लाभ हो सकता है और यह वाकई मूल्यवान और सार्थक है। इससे सत्य का अनुसरण करने का मेरा संकल्प और मजबूत हुआ।
इससे गुजरने के बाद मुझे वाकई एहसास हुआ कि कर्तव्य करते हुए जीवन प्रवेश का अनुसरण करना वाकई मुश्किल नहीं है और जब तक हमारा रवैया बदलता रहेगा और हम वाकई सहयोग करते रहेंगे, तब तक परमेश्वर हमें प्रबुद्ध करेगा और मार्गदर्शन देगा। यह हमारे सत्य के अनुसरण और उद्धार के लिए बहुत लाभकारी है! मैं ये लाभ पाने की अनुमति देने के लिए परमेश्वर के मार्गदर्शन की आभारी हूं।