54. घाव जो मिटाए नहीं जा सकते
2008 में सीसीपी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के खिलाफ दमन और गिरफ्तारियों का बड़े पैमाने पर राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया। उस दौरान भाई-बहनों को लगभग हर दिन गिरफ्तार किया जाता था। कुछ लोगों को तब गिरफ्तार किया गया जब वे सभाओं में थे और दूसरों को तब ले जाया गया जब पुलिस रात में उनके घरों में घुस गई। मैं हर दिन डर में जीती थी, नहीं जानती थी कि पुलिस कब घुस आएगी। उस समय मैं दो बहनों की मेजबानी कर रही थी और एक रात लगभग 11 बजे, जब हम सब आराम कर रहे थे, अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई जिसने मुझे चौंका दिया। मैंने सोचा, “क्या इतनी देर रात को पुलिस दरवाजा खटखटा रही होगी?” मैं जल्दी से दोनों बहनों से अलग हो गई ताकि परमेश्वर के वचनों की किताबें और कलीसिया की चीजें छिपा सकूँ। बाहर लोगों का वह समूह दरवाजा खटखटा रहा था और एक चाबी से दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था, थोड़ी देर बाद ही उनके दरवाजा तोड़ने की आवाजें आने लगीं। मैं बहुत घबराई हुई थी, इधर-उधर भाग रही थी, लगातार परमेश्वर से प्रार्थना कर रही थी, “परमेश्वर, ऐसा लगता है कि पुलिस मेरा दरवाजा तोड़ने की कोशिश कर रही है। मुझे क्या करना चाहिए? मैं दोनों बहनों की हिफाजत कैसे कर सकती हूँ? परमेश्वर, मैं तुमसे अपना दिल शांत करने में मदद चाहती हूँ...।” प्रार्थना करने के बाद मेरा दिल थोड़ा शांत हुआ। बाहर का समूह कुछ देर तक दरवाजे पर जूझता रहा और फिर उन्होंने दरवाजा ठोकना शुरू कर दिया। आधी रात में आवाज खासकर भयानक लग रही थी, लेकिन काफी देर बाद भी वे दरवाजा नहीं खोल पाए।
जैसे ही भोर होने वाली थी, मैंने अचानक बाहर किसी को चिल्लाते हुए सुना, “इस तरफ, थोड़ा और इस तरफ।” मैंने पर्दों से झाँका और नीचे एक अधेड़ उम्र का आदमी दिखा जो ऊपर देख रहा था और छत पर लोगों को निर्देश दे रहा था, मुझे एहसास हुआ कि वे खिड़की से मेरे घर में घुसने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी इमारत में छह मंजिलें थीं और मैं पाँचवीं मंजिल पर रहती थी। मुझे नहीं पता था कि वे कब खिड़की से घुस आएँगे, मैं बहुत डरी हुई थी और मेरा दिल धड़क रहा था। मैंने फिर से पर्दों से झाँका और मैंने देखा कि इमारत के प्रवेश द्वार पर पुलिस की एक कार और एक सफेद सेडान खड़ी है, जिसने इस बात की पुष्टि कर दी कि दरवाजा खोलने की कोशिश करने वाला समूह वाकई पुलिस ही है। मैं सुनने के लिए दरवाजे के पास वापस गई, लेकिन बाहर से कोई आवाज नहीं आ रही थी और मुझे झाँकने के छेद से बाहर काई नहीं दिखा, इसलिए मैंने अनुमान लगाया कि वे छत पर चले गए होंगे। मैंने सोचा, “दोनों बहनें अभी छोटी हैं। मैं उन्हें पुलिस के हाथों में पड़ने और प्रताड़ित होने नहीं दे सकती।” इसलिए मैंने जल्दी से उनसे पहले जाने का आग्रह किया। मैंने दरवाजा खोला, लेकिन दरवाजा एक बड़े पत्थर और लकड़ी की बड़ी मेज से अवरुद्ध था, फिर भी मैं बिना ज्यादा प्रयास के दरवाजा खोलने में कामयाब रही और मैंने अपने दिल में परमेश्वर को धन्यवाद दिया! बहनों के जाने के बाद मैं बेपरवाह होकर घर से बाहर चली गई। चलते हुए मैंने देखा कि चालीस साल से अधिक का अधेड़ उम्र का एक आदमी मेरा पीछा कर रहा है और मैं अपने दिल में प्रार्थना करती रही, परमेश्वर से मुझे बुद्धि और साहस देने के लिए कहती रही। मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए : “इस या उस चीज से डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा सहायक बल है और तुम्हारी ढाल है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के वचनों से मेरा मार्गदर्शन हुआ, मैं थोड़ी शांत हो गई। मैंने दो बार टैक्सी बदली, एक नया बैग और बदलने के लिए कपड़े खरीदने मॉल में गई। आखिरकार मैं अपना पीछा कर रहे व्यक्ति को भटकाने में कामयाब रही। फिर मैं एक रिश्तेदार के घर गई और तीन दिनों तक वहाँ छिपी रही। आखिरकार मैं दूसरे शहर में अपने घर लौट आई। उस दिन घर पहुँचने के बाद मैं बेचैन हो गई। मैं सोचती रही, “क्या पुलिस मुझे यहाँ ढूँढ़कर गिरफ्तार कर लेगी?” उस रात मैं सो नहीं पाई और सोचती रही कि मुझे छिपने के लिए कोई और जगह ढूँढ़नी होगी। अप्रत्याशित रूप से अगली सुबह लगभग 8 बजे चार पुलिस अधिकारी अचानक मेरे घर में घुस आए। उन्होंने मेरा फोटो पहचान पत्र दिखाया और कहा, “तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती हो। हम तुम्हारे घर की तलाशी लेंगे!” इसके बाद वे अलग-अलग हो गए और जगह की तलाशी लेने लगे। उस जगह सब कुछ उलट-पुलट कर दिया गया। उन्हें 5,900 युआन नकद, एक मोबाइल फोन और एक बाइबल मिली और वे नियमित प्रक्रिया के नाम पर उन सभी चीजों को ले गए। इसके बाद उन्होंने मुझे हथकड़ी लगाई और शहर के सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो में ले गए।
लगभग 4 बजे एक अधिकारी ने मुझे पुलिस की गाड़ी में धकेल दिया और जैसे ही मैं अंदर गई, उसने मेरे सिर को मोटे कपड़े से कसकर ढक दिया। इसमें इतनी घुटन थी कि मैं मुश्किल से सांस ले पा रही थी। मुझे नहीं पता था कि वे मुझे कहाँ ले जा रहे हैं या वे मुझे कैसे प्रताड़ित करेंगे। मैं बहुत डरी हुई थी और मैं लगातार अपने दिल में प्रार्थना कर रही थी, परमेश्वर से अपने दिल की रक्षा करने के लिए कह रही थी कि चाहे मैं किसी भी परिस्थिति का सामना करूँ, मैं अपनी गवाही में अडिग रहूँगी और परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी। एक घंटे से थोड़ा ज्यादा समय के बाद कार रुकी। जब मैं कार से बाहर निकली तो उन्होंने मेरे सिर से कपड़ा हटा दिया। मैंने देखा कि कार एक बड़े प्रांगण में रुकी थी। प्रांगण में दो मंजिला इमारत थी लेकिन इलाका सुनसान था, आस-पास कोई घर नहीं था, जिससे एक अजीब सा एहसास हो रहा था। एक अधिकारी ने मुझसे कहा, “क्या तुम जानती हो कि हम कहाँ हैं? यह एक नजरबंदी शिविर है जो खासकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वालों के लिए बनाया गया है।” अंदर जाने पर उन्होंने मुझे एक यातना देने वाली बेंच पर बाँध दिया और आठ या नौ पुलिस अधिकारियों ने मुझे घेर लिया। करीब तीस साल के लंबे पुरुष अधिकारी ने मुझसे पूछा, “तुम्हारी कलीसिया का पैसा कहाँ है? तुम्हारे अगुआ कहाँ हैं? तुम्हें सुसमाचार किसने सुनाया? तुम सभाओं के लिए कहाँ जाती हो?” मैंने जवाब में एक सवाल पूछा, “कलीसिया का पैसा परमेश्वर को उसके चुने हुए लोगों द्वारा दिया गया चढ़ावा है। इसका तुमसे क्या लेना-देना है?” अधिकारी गुस्से में आ गया और उसने मुझे कई बार थप्पड़ मारे और मेरा चेहरा मार खाकर काला पड़ गया। उसी समय मैंने बाहर से कई कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनी। एक अधिकारी ने मुझे धमकाते हुए कहा, “हम अनजान जगह पर हैं। यहाँ लोगों से पूछताछ करके उन्हें मौत के घाट उतारना हमारे लिए आम बात है और जब लोग मर जाते हैं तो हम उन्हें पिछवाड़े में फेंक देते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता, फिर बड़े कुत्ते उन्हें खा जाते हैं, इसलिए कोई शव भी नहीं बचता!” यह सुनकर मैं बेहद डर गई। ये पुलिसवाले कोई भी बुराई करने को तैयार थे और अगर उन्होंने वाकई मुझे पीट-पीटकर मार डाला और इस सुदूर इलाके में कुत्तों को खिला दिया तो मेरा शव भी नहीं मिलेगा। जितना मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही बुरा लगा। फिर अचानक मुझे परमेश्वर के वचनों की एक पंक्ति याद आई : “जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है” (मत्ती 10:28)। परमेश्वर सब कुछ नियंत्रित करता है और सभी पर संप्रभुता रखता है। मेरा जीवन भी परमेश्वर के हाथों में है। पुलिस सिर्फ मेरे शरीर को मार सकती है, लेकिन वह मेरी आत्मा को नष्ट नहीं कर सकती। मैं मृत्यु के भय से परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था दी और मेरा हृदय बहुत शांत हो गया। इसलिए मैंने कहा, “अगर मैं मर जाती हूँ तो मर जाने दो। अब जब तुमने मुझे पकड़ लिया है तो मेरा बचने का कोई इरादा नहीं है।” पुलिस ने मुझसे अगुआओं के नाम और पते पूछे, लेकिन मैंने उनसे सवाल किया, “क्या संविधान साफ तौर पर विश्वास रखने की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करता है? हमने कुछ भी अवैध नहीं किया है तो तुम हमें क्यों गिरफ्तार कर रहे हो?” लेकिन जैसे ही ये शब्द मेरे मुँह से निकले, एक पुलिस अधिकारी गुस्से में आ गया, उसने मेज से कुछ सामान लिया, उसे लपेटा और मेरे सिर पर जोर से दे मारा, जबकि दूसरा अधिकारी मेरे पीछे आया और मेरी पसलियों के बीच के हिस्से में जोर से मारा। मुझे तुरंत ऐसा लगा जैसे मेरी पसलियाँ टूट रही हैं, दर्द की वजह से मेरा सिर सूज गया और मुझे साँस लेने में दिक्कत होने लगी। मैं न चाहते हुए भी चिल्लाने लगी। उन्होंने मुझसे कबूलनामा माँगते हुए मेरी पसलियों पर मारना जारी रखा, लेकिन जब उन्होंने देखा कि मैं नहीं बोलूँगी तो वे मेरी पसलियों के बीच के हिस्से को कुचलते रहे। मुझे तब तक प्रताड़ित किया गया जब तक कि मैं हिलने-डुलने में असमर्थ न हो गई और पूरी तरह से थक न गई। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मुझे डर है कि मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, इसलिए मैं पुलिस की यातनाओं का सामना नहीं कर पाऊँगी और मैं शैतान के सामने झुक सकती हूँ, जिससे मेरी गवाही चली जाएगी। मुझे अपने शरीर की कमजोरी पर काबू पाने के लिए आस्था और शक्ति दो।” प्रार्थना करने के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया, जिसका शीर्षक था “सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए” : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए खुद को बलिदान करना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा और तुम्हें और अधिक सत्य प्राप्त करने की खातिर और अधिक कष्ट सहना होगा। यही तुम्हें करना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रेरित किया। आज मसीह का अनुसरण करने का अर्थ है सत्य के लिए सभी प्रकार के कष्ट सहना। मैंने परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहने और शैतान की अंधेरी शक्तियों के आगे न झुकने का अडिग संकल्प और साहस पाया।
पूछताछ के दौरान मुझे पुलिस से पता चला कि उस रात मेरे घर में घुसने की कोशिश करने वाले लोग सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो की शाखा से थे। वे उन अगुआओं पर नजर रख रहे थे, जिनकी मैं महीनों से मेजबानी कर रही थी, अगुआओं को भी उन्होंने पकड़ लिया था और उन्होंने 9 मिलियन युआन का चढ़ावा भी जब्त कर लिया था। जैसे ही मुझसे पूछताछ की जा रही थी, एक पुलिस अधिकारी अंदर आया और मुस्कुराते हुए बोला, “हमें और 500,000 युआन मिले हैं।” जब मैंने यह सुना तो मुझे गुस्सा आ गया। यह वही चढ़ावा है जो भाई-बहनों ने परमेश्वर को अर्पित किया था। वे इसे कैसे ले सकते हैं? वे वाकई दानव हैं! उस दिन पुलिस ने मुझे देर रात तक नरम और कठोर दोनों तरीकों से प्रताड़ित किया। यह देखकर कि मैं कुछ नहीं बोलूँगी, एक पुलिस अधिकारी ने दाँत पीसते हुए कहा, “तुम लोग जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हो, कीलों से भी ज्यादा सख्त हो। अगर हम आज तुम्हें सबक नहीं सिखाएँगे तो तुम कुछ नहीं बोलोगी। मैं नहीं मानता कि हम तुमसे निपट नहीं सकते!” यह कहने के बाद उसने मेरी हथकड़ी खोल दी, मेरे हाथों को यातना देने वाली बेंच के दोनों ओर खंभों से बाँध दिया और फिर उन्होंने बेंच को पीछे धकेल दिया। मेरा पूरा शरीर पीछे की ओर झुका हुआ था और कुछ ही देर में मुझे लगा कि मेरी आँखें बाहर निकल आएँगी और मेरा सिर इस तरह धधक रहा था जैसे कि वह फट जाएगा। मेरी कलाइयाँ हथकड़ियों में फँसी हुई थीं, ऐसा लग रहा था कि वे कट जाएँगी और मेरे अंदर चीर डालने वाला दर्द हो रहा था। मेरी रीढ़ की हड्डी यातना देने वाली बेंच पर बने लोहे के उभार से दब गई थी और ऐसा लग रहा था कि मेरे दिल को चाकू से काटा जा रहा हो। मुझे नहीं पता था कि यह सब कब तक चलता रहा। एक पुलिस अधिकारी ने मुझे फिर से धमकाते हुए कहा, “तुमसे पहले यहाँ करीब साठ साल की एक महिला थी, जिसने सिर्फ डेढ़ घंटे में अपना अपराध कबूल लिया लिया। देखते हैं तुम कब तक टिक पाओगी।” थोड़ी देर बाद उसने मेरा मजाक उड़ाते हुए कहा, “क्या तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास नहीं करती? वह तुम्हें बचाने क्यों नहीं आता? तुम्हें उससे खुद को बचाने के लिए कहना चाहिए!” पुलिस का मजाक और ईशनिंदा सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। इन पुलिस अधिकारियों ने बेवजह परमेश्वर पर हमला किया और उसकी ईशनिंदा की, यह वाकई दानवों का एक समूह है जो सत्य से नफरत करता है और परमेश्वर का विरोध करता है!
मुझे थकावट की हद तक प्रताड़ित किया गया और दो घंटे से ज्यादा समय तक ऐसे ही लटकाए रखा गया। मेरा शरीर सहने की हद तक पहुँच गया था और मैं मुश्किल से सांस ले पा रही थी। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर ऐसा ही चलता रहा तो मैं सचमुच यहीं मर जाऊँगी। मेरे पति और पिता का हाल ही में निधन हुआ है और घर पर मेरी माँ अभी भी है जो सत्तर से ज्यादा उम्र की है और मेरा बच्चा अभी भी स्कूल में है। अगर मैं मर गई तो उनकी देखभाल कौन करेगा? बच्चा पहले ही अपने पिता को खो चुका है और मेरी माँ भी प्रियजन को खोने के दर्द से पीड़ित है। अगर मैं भी मर गई तो क्या वे इसे सहन कर पाएँगे?” मैं बहुत उलझन में थी, सोच रही थी, “अगर मैं उन्हें बस थोड़ा कुछ बता दूँ तो शायद वे मुझे जाने देंगे। लेकिन अगर मैं कुछ भी कहूँ तो क्या मैं यहूदा की तरह परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी?” इस समय मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम उन्हें मेरे हाथों में क्यों नहीं सौंप देते? क्या तुम्हें मुझ पर पर्याप्त विश्वास नहीं है? या ऐसा है कि तुम डरते हो कि मैं तुम्हारे लिए अनुचित व्यवस्थाएँ करूँगा?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 59)। स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीजें परमेश्वर के नियंत्रण में हैं और मेरी माँ और बच्चे से जुड़ी हर चीज परमेश्वर के हाथों में है। मुझे और किस बात की चिंता करनी थी? यह सोचकर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरी माँ और बच्चे का भाग्य तुम्हारे हाथों में है। मैं उन्हें तुम्हारे हवाले करने और तुम्हारी ओर देखने को तैयार हूँ। चाहे मैं आज जियूँ या मरूँ, मैं खुद को तुम्हारे आयोजनों की दया पर छोड़ने को तैयार हूँ। मैं तुम्हें धोखा देने के बजाय मरना पसंद करूँगी!” प्रार्थना के बाद मेरा दिल बहुत शांत हो गया और मैं मरने के लिए तैयार हो गई। उसके बाद मुझे लगा कि मेरा शरीर धीरे-धीरे ऊपर की ओर तैर रहा है और चमत्कारिक रूप से मुझे बहुत कम दर्द महसूस हुआ। यह देखकर कि मैं गिरने वाली हूँ, पुलिस ने मुझे यातना देने वाली बेंच से बाहर निकाला। मेरा शरीर पूरी तरह से कमजोर पड़ रहा था और मैं लगातार ऐंठने लगी। मेरा पूरा शरीर अनियंत्रित रूप से सिकुड़ गया और मुझे लगा कि मेरा पूरा शरीर पूरी तरह से अकड़ गया है। पुलिस ने मेरे हाथ खोलने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे नहीं खोल पाए। मुझे नहीं पता कि यह सब कितनी देर तक चला, लेकिन भोर से ठीक पहले मुझे थोड़ा बेहतर महसूस होने लगा। एक अधिकारी ने मुझसे कहा, “अगर तुम कल नहीं लड़खड़ाती तो हम तुम्हारे हाथ-पैर बाँधकर लटका देते!” यह सुनकर मैंने चुपचाप परमेश्वर को उसकी सुरक्षा के लिए धन्यवाद दिया। उस रात पुलिस मुझे स्थानीय हिरासत केंद्र ले गई।
वहाँ पहुँचने पर एक पुलिस अधिकारी ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, “यह इंसान बहुत ही खराब हालत में है। अगर वह यहाँ मर जाती है तो इसका दोष किसका होगा?” मेरे साथ आए दो अधिकारियों ने उनसे कुछ देर तक बातचीत की और उसके बाद ही उन्होंने अनिच्छा से मुझे अंदर ले लिया। स्वास्थ्य जाँच के दौरान डॉक्टर ने कहा कि मुझे दिल की समस्या है और मैं कभी भी मर सकती हूँ। उस रात उन्होंने कैदियों से समय-समय पर मेरी नाक की जाँच करवाई कि क्या मैं अभी भी साँस ले रही हूँ। आधे महीने बाद मेरे परिवार ने कुछ पैसे खर्च किए और मेरी मेडिकल रिहाई की व्यवस्था करने के लिए कुछ उपाय किए। जिस दिन मैंने हिरासत केंद्र छोड़ा पुलिस ने 10,000 युआन का जुर्माना माँगा और मुझे चेतावनी दी, “तुम अपनी मर्जी से इलाका नहीं छोड़ सकती, तुम्हारा फोन 24 घंटे चालू रहना चाहिए और तुम्हें हर समय उपलब्ध रहना होगा। अगर तुम फिर से पकड़ी गई तो तुम्हें जेल से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी!” जब मैं घर लौटी तो मेरे परिवार और सहकर्मियों ने मुझे बताया कि पुलिस मेरी छानबीन करने के लिए मेरे कार्यस्थल और रिश्तेदारों के घर गई थी, उन्होंने निराधार अफवाहें फैलाईं कि मैं अंग तस्करी गिरोह की सरगना हूँ और इसे मेरे बैंक खातों की जाँच करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल किया। मेरे परिवार ने मेरी आलोचना की और मेरे खिलाफ शिकायत की, मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों ने मेरा मजाक उड़ाया और खुद को मुझसे दूर कर लिया। मैं बहुत गुस्से में थी, सोच रही थी कि परमेश्वर में विश्वास करना अच्छी बात है और यही सही रास्ता है, फिर भी इन पुलिस अधिकारियों ने मेरे बारे में बेबुनियाद अफवाहें फैलाईं, जिससे मैं अपने रिश्तेदारों और सहकर्मियों के सामने अपना सिर उठाकर नहीं चल सकती। मैंने बहुत अपमानित महसूस किया और कुछ हद तक कमजोर पड़ गई, सोच रही थी कि शायद मुझे अब अपना कर्तव्य करने के लिए बाहर नहीं जाना चाहिए और घर पर ही परमेश्वर में विश्वास करना चाहिए। बाद में मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में सोचा : “तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो बल्कि अपनी अशुद्ध देह के भीतर रहते हो, तो क्या तुम बस मानव भेष में जानवर नहीं हो? चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। ... तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि परमेश्वर पर विश्वास करना और अपना कर्तव्य करना वही है जो एक सृजित प्राणी को करना चाहिए और सिर्फ इस तरह से जीने से ही जीवन मूल्यवान और सार्थक होता है। मैं अपने कर्तव्य करने पर कैसे पछता सकती हूँ क्योंकि मुझे अपमानित किया गया था? किस तरह से मेरे पास परमेश्वर के प्रति कोई अंतरात्मा या विवेक था? पुलिस ने मुझे परमेश्वर से दूर करने और उसे धोखा देने के लिए मेरे बारे में निराधार अफवाहें फैलाई और मुझे बदनाम किया था, लेकिन मैं शैतान के जाल में नहीं फँस सकती थी। गैर-विश्वासी मेरा उपहास कर रहे थे और मुझे बदनाम कर रहे थे, लेकिन मुझे धार्मिकता के लिए सताया जा रहा था। यह पीड़ा मूल्यवान और सार्थक थी! चाहे पुलिस ने मुझे कितना भी बदनाम किया हो, मेरी गरिमा का अपमान किया हो या मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाया हो, मैं कभी भी परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी! मैंने परमेश्वर में विश्वास करने के मार्ग पर चलने का दृढ़ निश्चय किया था! यह सोचकर मैं सीधी हो गई और अब मुझे अपमानित होने का डर नहीं था। बाद में पुलिस बार-बार मेरे पास आई, मुझसे पैसे ऐंठने की कोशिश की और मुझे धमकाते हुए कहा, “तुम्हारा मामला बड़ा या छोटा हो सकता है या फिर अस्तित्वहीन भी हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम कितना पैसा खर्च करती हो। अगर तुम पैसे नहीं देती तो हम जब चाहें, तुम्हें कभी भी जेल में डाल सकते हैं!” मैं गुस्से में थी। मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा था, फिर भी पुलिस बार-बार मुझसे पैसे ऐंठने की कोशिश करती रही। यह कुछ और नहीं बल्कि डाकुओं का गिरोह था!
बाद में मैं उस घर में वापस आई, जहाँ पुलिस ने आधी रात को घुसने की कोशिश की थी। जब मैंने दरवाजा खोला तो मैं दंग रह गई और मुझे इतना गुस्सा आया कि चक्कर खाकर गिरने ही वाली थी। घर पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था; वे सारी कीमती चीजें, यहाँ तक कि कपड़े, रजाई और रोजमर्रा की जरूरत की चीजें भी ले गए थे। वहाँ चार लैपटॉप थे, मेरा 3,000 युआन से ज्यादा कीमत का फोन, दस ग्राम से ज्यादा वजन का सोने का हार, चार सोने की अंगूठियाँ, चार जोड़ी सोने की बालियाँ और 10,000 युआन की पूरी नकदी। ये सारी चीजें वे ले गए थे। बाकी सामान तोड़-फोड़ दिया गया था। बेडरूम में लकड़ी का बिस्तर टूट गया था और यहाँ तक कि बेड की प्लाई और अलमारी के दरवाजे भी टूट गए थे। लैंडस्केप पेंटिंग का कांच का फ्रेम और बालकनी का कांच टूट गया था, बाथरूम में फ्रिज और सिंक टूट गए थे और यहाँ तक कि आटे के थैले में रखा आटा भी बिखेर दिया गया था। घर में सब कुछ नष्ट हो गया था और फर्श पर बिखरा हुआ था और जब मैं कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ पैर रखने के लिए भी जगह नहीं थी। तहस-नहस हुए घर को देखकर मुझे बहुत दुख हुआ और गुस्सा आया, मैंने सोचा : पुलिस एक अच्छे-भले घर को इस तरह कैसे नष्ट कर सकती है? मुझे वाकई दानव सीसीपी से नफरत हुई! मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुआ? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अँधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब बुराई को छिपाने की चालें हैं! ... परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहाँ हैं? निष्पक्षता कहाँ है? आराम कहाँ है? गर्मजोशी कहाँ है? परमेश्वर के जनों को छलने के लिए धोखे भरी चालों का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? मनुष्यों की गर्मजोशी कहाँ है? लोगों के बीच उसका स्वागत कहाँ है? परमेश्वर में ऐसी तड़प क्यों पैदा की जाए? परमेश्वर को बार-बार पुकारने पर मजबूर क्यों किया जाए? परमेश्वर को उस बिंदु तक क्यों धकेल दिया जाए कि उसे अपने प्रिय पुत्र के लिए चिंता करनी पड़े? यह समाज इतना अंधकारपूर्ण है—इसके घिनौने रक्षक कुत्ते परमेश्वर को उस दुनिया में स्वतंत्रतापूर्वक आने-जाने क्यों नहीं देते जो उसने बनाई है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मैंने सीसीपी के बदसूरत चेहरे की असलियत देखी। यह न्याय करने का दिखावा करती है, “धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता” और “लोगों के लिए कानून प्रवर्तन” का दावा करती है, लेकिन पर्दे के पीछे यह परमेश्वर में विश्वास करने वालों को गिरफ्तार करने और सताने के लिए सभी प्रकार की चालों का इस्तेमाल करती है। चीन में ईसाइयों के पास कोई मानवाधिकार या स्वतंत्रता नहीं है और सीसीपी कभी भी छापा मार सकती है, तुम्हें गिरफ्तार कर सकती है, तुम्हारे घर की तलाशी ले सकती है और तुम्हारी संपत्ति जबरन जब्त कर सकती है। उसकी हरकतें डाकुओं और अत्याचारियों से भी बदतर हैं। पहले मैं सीसीपी के बारे में कोई भेद नहीं पहचानती थी, लेकिन व्यक्तिगत रूप से इसकी गिरफ्तारियों और उत्पीड़न को झेलने के बाद मुझे एहसास हुआ कि सीसीपी राक्षसों का एक समूह है जो परमेश्वर से घृणा करता है और उसका प्रतिरोध करता है।
भले ही मुझे जेल से रिहा कर दिया गया था, लेकिन मेरे पास कोई व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं थी। पुलिस हमेशा मेरी निगरानी और पीछा करती रहती थी और मैं उनसे बच नहीं सकती थी। एक बार मैं बाहर गई और जहाँ जाना था उसके आधे रास्ते तक पहुँच गई, लेकिन जब मुझे याद आया कि मैं कुछ भूल गई हूँ और उसे लेने वापस जाना चाहती थी, मैंने पलटकर देखा कि जिस पुलिस अधिकारी ने मुझे गिरफ्तार किया था, वह मेरा पीछा कर रहा है। जब मैं किराने का सामान खरीदने के लिए बाजार गई तो एक पुलिस अधिकारी मेरे पास आया और पूछा, “तुम अपने लिए इतना सारा किराने का सामान क्यों खरीद रही हो?” उसने मुझसे यह भी पूछा, “तुम रात में कभी लाइट क्यों नहीं जलाती? तुम कहाँ रहती हो?” पुलिस की बातें सुनकर मुझे बहुत घिन आई और बेइंतहा नफरत हुई। सीसीपी की निगरानी में रहना बहुत दर्दनाक था और मैं हमेशा घबराई रहती थी, डरती थी कि पुलिस कभी भी आकर मुझे परेशान कर सकती है। दिन में काम के दौरान मैं हमेशा अपने दफ्तर का दरवाजा कसकर बंद रखती थी और उसे लापरवाही से खोलने की हिम्मत नहीं करती थी। रात में मैं घर पर अकेले रहने की हिम्मत नहीं करती थी, लाइट जलाने की तो बात ही छोड़ दो। पुलिस भी अक्सर मेरे ठिकाने के बारे में पूछने के लिए फोन करती थी। मैं वाकई दमित महसूस करती थी, अपने भाई-बहनों से मिलना चाहती थी लेकिन डरती थी कि मैं उन्हें खतरे में डाल दूँगी। ऐसा लगता था कि अपना कर्तव्य निभाना एक विलासिता होगी। उन वर्षों के दौरान मैं किसी भी चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती थी, मुझे नहीं पता था कि ऐसे दिन कब खत्म होंगे। मुझे यहाँ तक लगा कि इस तरह जीना मौत से भी बदतर है। यातना दिए जाने, पीछा करने, परेशान किए जाने और मेरे घर पर छापेमारी के बाद मैं न सिर्फ शारीरिक रूप से कमजोर हो गई थी, बल्कि मुझे एक गंभीर मनोवैज्ञानिक आघात भी सहना पड़ा था। हिरासत केंद्र से बाहर आने के बाद मुझे दो साल तक सामान्य जीवन जीने के लिए दवा और इंजेक्शन पर निर्भर रहना पड़ा, मेरी याददाश्त काफी कमजोर हो गई थी और मैं अक्सर चीजें भूल जाती थी। गिरफ्तार होने से पहले मैं बहुत स्वस्थ थी और अक्सर परमेश्वर के वचनों की संगति करती थी और अपने भाई-बहनों के साथ अपना कर्तव्य निभाती थी। वे वाकई खुशी के पल थे। लेकिन जब से मुझे गिरफ्तार किया गया, मैं परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ पाई और अपने भाई-बहनों से संपर्क करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। मेरा शरीर पीड़ित था और मेरी आत्मा प्रताड़ित थी। अपनी पीड़ा और कमजोरी में मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “चूँकि तुम निश्चित हो कि यह रास्ता सही है, इसलिए तुम्हें अंत तक इसका अनुसरण करना चाहिए; तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखनी चाहिए। चूँकि तुमने देख लिया है कि स्वयं परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाने के लिए पृथ्वी पर आया है, इसलिए तुम्हें पूरी तरह से अपना दिल उसे समर्पित कर देना चाहिए। भले ही वह कुछ भी करे, यहाँ तक कि बिलकुल अंत में तुम्हारे लिए एक प्रतिकूल परिणाम ही क्यों न निर्धारित कर दे, अगर तुम फिर भी उसका अनुसरण कर सकते हो, तो यह परमेश्वर के सामने अपनी पवित्रता बनाए रखना है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे मेरे दर्द से बाहर निकाला। परमेश्वर मेरी वफादारी और गवाही चाहता है और वह इस परिवेश का इस्तेमाल मेरी आस्था को पूर्ण करने के लिए कर रहा है। मैं अब और नकारात्मक नहीं रह सकती, चाहे मुझे कितना भी कष्ट क्यों न सहना पड़े, मुझे परमेश्वर के प्रति वफादार रहना होगा और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपनी गवाही में अडिग रहना होगा। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं अपनी गवाही में अडिग रहने और अपना कर्तव्य करने के लिए तैयार हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो और मेरे लिए एक रास्ता खोलो।” बाद में मुझे पुलिस की निगरानी से बचने का एक रास्ता मिल गया और मैं अपना कर्तव्य करने के लिए दूसरी जगह चली गई।
सीसीपी द्वारा गिरफ्तार किए जाने और सताए जाने में भले ही मेरे शरीर ने कुछ कष्ट सहे, लेकिन इसने मुझे सीसीपी का सार स्पष्टता से देखने की अनुमति दी, जो एक राक्षस के रूप में सत्य से घृणा करता है, परमेश्वर का प्रतिरोध करता है और परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है, मैंने इसे पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया और अपने दिल से इसके खिलाफ विद्रोह किया। इस अनुभव के माध्यम से मैंने वाकई परमेश्वर के प्रेम और उद्धार का स्वाद चखा, जब मुझे यातनाएँ सहन करनी पड़ीं और मेरा शरीर इसे सहन नहीं कर सका तो परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी, उन राक्षसों की यातना पर विजय पाने के लिए मेरा मार्गदर्शन किया। हर बार जब मैं नकारात्मक और कमजोर हुई, अंधकार और पीड़ा महसूस की तो परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध किया, मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे शक्ति दी। मैंने परमेश्वर के वचनों के अधिकार और सामर्थ्य का अनुभव किया, जिनसे उसमें मेरी आस्था मजबूत हुई। चाहे सीसीपी मुझे कैसे भी सताए मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करती रहूँगी और मैं एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य नहीं छोड़ूँगी!