9. वैवाहिक आनंद की खोज से मिला दर्द

ली शिनझू, चीन

जब से मुझे याद है, मैंने अक्सर अपने पिता को अपना आपा खोते और मेरी माँ पर भड़कते देखा है। जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई, मेरी माँ अक्सर मुझसे अपना शादी का दुखड़ा रोती रहती थी। वह कहती कि जब से वह मेरे पिता के साथ है, तब से उसे खाने-पीने और कपड़ों की कमी रही है, वह कभी भी उसके साथ खुश नहीं रही और वह अक्सर उसके साथ अपना आपा खो देता है। वह अक्सर मुझसे कहती थी, “एक औरत सिर्फ ऐसे पति से शादी करके ही जीवन भर खुश रह सकती है जो उसके साथ अच्छा सुलूक करे।” मैं मन ही मन सोचती, “मेरी माँ ने खुद इसे झेला है, इसलिए वह जो कहती है वह सच है। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उसके जैसी नहीं हो सकती। मुझे ऐसा पति ढूँढ़ना है जो मेरे साथ अच्छा सुलूक करे।” बाद में मुझे वही मिला जो मैं चाहती थी और मुझे अच्छे स्वभाव वाला पति मिला जो मेरे साथ अच्छा सुलूक करता था। हमारी शादी के बाद मेरे पति की हमेशा हर चीज में मेरे साथ बनी और उसने कभी मुझ पर अपनी आवाज ऊँची नहीं की। जब भी वह काम से घर आता और मुझे नहीं देखता तो वह फोन करके पूछता कि मैं कहाँ गई हूँ और जल्दी से अपनी बाइक पर मुझे लेने आता। वह रोजमर्रा की जिंदगी में भी मेरा बहुत ख्याल रखता, जब भी वह मुझे परेशान देखता तो हमेशा पूछता, “क्या हुआ? क्या तुम किसी बात से परेशान हो?” इतना प्यार करने वाला और ख्याल रखने वाला पति पाकर मैं बहुत खुश थी और मुझे जीवन में संतुष्टि महसूस हुई।

2004 में मैंने परमेश्वर का नया कार्य स्वीकारा और अपने पति को सुसमाचार सुनाया। उसने इसे नहीं स्वीकारा, लेकिन मेरे विश्वास का विरोध भी नहीं किया। लेकिन बाद में मेरा पति सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में सीसीपी द्वारा गढ़ी गई निराधार अफवाहों पर विश्वास करने लगा और तब से वह मुझे परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने लगा। वह अक्सर मेरे सभाओं में जाने के बारे में भी शिकायत करता था। एक दिन काम से घर आने के बाद उसने मुझसे गंभीर स्वर में कहा, “ऑनलाइन लिखा है कि परमेश्वर में विश्वास करना सीसीपी के खिलाफ है और सरकार इसकी अनुमति नहीं देती। तुम अब परमेश्वर में विश्वास नहीं कर सकती!” जब मैंने उसका नाखुश चेहरा देखा, मुझे पता था कि वह सीसीपी द्वारा फैलाई गई बेबुनियाद अफवाहों से गुमराह हो गया है। मैंने उससे कहा कि ये सब बातें सिर्फ झूठी और बदनाम करने के लिए हैं, लेकिन उसने मेरी एक भी बात नहीं सुनी। एक शाम को मेरे ने पति घर आते ही मुझसे पूछा, “क्या तुम आज फिर किसी सभा में गई थी?” मैंने कहा, “हाँ।” फिर वह मुझ पर चिल्लाया, “मैंने तुमसे कहा है कि परमेश्वर में विश्वास मत करो, लेकिन तुम मेरी बात नहीं सुनती हो! आज वापस आते समय मैंने देखा कि एक टीचर को परमेश्वर में विश्वास करने के कारण गिरफ्तार किया जा रहा है। कौन जानता है कि उसे कितने साल की सजा होगी? अगर तुम अपनी इस आस्था को कायम रखोगी तो देर-सवेर तुम्हें भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा। फिर मैं और बच्चे भी इसी सब में घसीटे जाएँगे और तुम हमारे परिवार को बर्बाद कर दोगी!” यह कहते हुए उसने अपना जूता घुमाया और बिना कुछ कहे मेरे सिर पर मारने लगा और वह मुझे मारते हुए गालियाँ देने लगा, “मैंने तुमसे कहा था कि मेरी बात सुनो, लेकिन तुम नहीं मान रही हो! मैं तुम्हें मार डालूँगा!” मुझे लगा कि अपना गुस्सा निकालने के लिए वह मुझे दो-चार बार मारेगा, लेकिन उसने मुझे बहुत जोर से मारा। पिटने से मेरा सिर घूम रहा था और ऐसा लग रहा था कि वह नहीं रुकेगा। मैंने कभी नहीं सोचा था कि इतने साल तक साथ रहने के बाद वह इतना निर्दयी हो सकता है! फिर मेरे पति ने बच्चों से कहा, “अपनी माँ से बात करो, उससे कहलवाओ कि वह अब से परमेश्वर में विश्वास नहीं करेगी। अगर वह ऐसा नहीं कहती है तो मैं आज उसे पीट-पीटकर मार डालूँगा!” मेरी बेटी रोने लगी और मुझसे भीख माँगने लगी। अपने बच्चों को रोता देख मैं कमजोर पड़ने लगी। मैंने सोचा, “शायद फिलहाल मुझे अपने पति से कह देना चाहिए कि मैं अब से विश्वास नहीं करूँगी। अगर मैं इसी तरह से डटी रही और वह और भी क्रोधित हो गया और मुझे तलाक दे दिया तो यह परिवार खत्म हो जाएगा।” लेकिन फिर मैंने सोचा, “चाहे कुछ भी हो जाए, मैं परमेश्वर के नाम को नकार नहीं सकती। यह कहना कि मैं अब परमेश्वर में विश्वास नहीं करूँगी, इसका मतलब उसे धोखा देना होगा, मैं ऐसा नहीं कह सकती।” इसलिए मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, उससे मुझे बुद्धि और आस्था देने के लिए कहती रही। फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब का परीक्षण हुआ : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ होड़ लगा रहा था और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे और मनुष्यों का विघ्न डालना था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन ने मुझे यह समझने में मदद की कि भले ही ऐसा लगता है कि मेरा पति मुझे सता रहा है, असल में इसके पीछे शैतान की साजिशें हैं। शैतान चाहता था कि मैं परमेश्वर को नकार दूँ और उसे धोखा दूँ। मैं सिर्फ अपने पति के क्रोध के डर से यह नहीं कह सकती कि मैं अब परमेश्वर में विश्वास नहीं करूँगी; मुझे अपनी गवाही में अडिग रहना होगा। उसके बाद मेरे बच्चों ने चाहे मुझसे कितनी भी विनती की हो, मैं चुप रही। बेहद हताश होकर मेरा पति चिल्लाया, “चूँकि तुम्हारी माँ यह नहीं कहेगी, इसलिए मैं आज रात उसे तलाक देकर उसे निकालने जा रहा हूँ। वह हमारे घर में एक दिन भी और नहीं रहेगी!” यह मेरे लिए एक बड़ा झटका था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह वाकई तलाक चाहेगा। मैं इतने साल से दिल और आत्मा से उसके साथ थी, लेकिन सिर्फ मेरे विश्वास के कारण वह मुझे तलाक देना चाहता था और यहाँ तक कि चाहता था कि मैं तुरंत घर से निकल जाऊँ। यह वह पति कैसे हो सकता है जिसके साथ मैं एक दशक से अधिक समय से रह रही हूँ? मैं पूरी तरह से टूट गई। मैंने सोचा, “अगर हम तलाक ले लेते हैं तो मैं खुद से, असहाय और अकेली कैसे रह पाऊँगी?” ऐसा लगा जैसे मेरा दिल चीरा जा रहा हो और मेरे चेहरे पर आँसू बहने लगे। मैंने सोचा कि मनुष्यों का सृजन परमेश्वर ने किया है, परमेश्वर ने हमें जीवन की साँस दी है और हमें वह सब कुछ प्रदान किया है जिसकी हमें जरूरत है, इसलिए लोगों का परमेश्वर की आराधना करना पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है। मुझे लगा कि चाहे जो भी हो, मैं परमेश्वर में विश्वास करना बंद नहीं कर सकती। फिर मेरी बेटी ने अपने पिता से कहा, “अगर तुम दोनों तलाक ले लेते हो तो मैं और मेरा भाई माँ के साथ रहना चाहते हैं, तुम्हारे साथ नहीं।” तभी मेरे पति ने नरमी दिखाई और तलाक की बात छोड़ दी। बाद में सीसीपी का उत्पीड़न और भी बढ़ गया और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम और कलंकित करने वाले हर तरह के पाखंड और भ्रांतियाँ सड़कों तक फैलाई गईं। मेरे पति का मेरे खिलाफ उत्पीड़न और भी बदतर हो गया। हर दिन काम के बाद वह मुझसे पूछता कि क्या मैं अब भी परमेश्वर में विश्वास करती हूँ और वह छोटी-छोटी बातों पर मुझ पर गुस्सा हो जाता। उसे इस तरह देखकर मैं बहुत परेशान हो जाती। भले ही मैं परमेश्वर में विश्वास करती थी और अपना कर्तव्य निभाती थी, फिर भी मैं घर और खेती-बाड़ी का सारा काम सँभालती थी और बच्चों की भी देखभाल करती थी। उसे मुझे इस तरह से प्रताड़ित नहीं करना चाहिए था। लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर सीसीपी का उत्पीड़न और निराधार अफवाहें न होतीं तो शायद वह मेरे साथ ऐसा सुलूक नहीं करता। उसे सीसीपी ने धोखा दिया है। मैं इसे सहन नहीं करूँगी तो यह तय है कि हमारा तलाक हो जाएगा।” अपने परिवार को अटूट रखने और अपनी शादी बचाने के लिए, चाहे मेरे पति ने मुझे कितना भी सताया हो, मैंने चुपचाप सब कुछ सह लिया, यहाँ तक कि उसकी देखभाल करने और उसके लिए अच्छा खाना बनाने की पहल भी की। कभी-कभी इससे मेरे कर्तव्य में देर हो जाती थी।

बाद में मुझे प्रचारक चुना गया और कई कलीसियाओं की जिम्मेदार दी गई। कुछ कलीसिया घर से बहुत दूर थी, इसलिए मैं हर दिन घर नहीं आ पाती और इससे मैं थोड़ी चिंतित हो गई। उस समय मेरे पति का एक अफेयर चल रहा था और शराब के नशे में घर लौटने के बाद उसने मुझे कई बार बताया कि एक महिला ने उससे अपने प्यार का इजहार किया है और वह उसके साथ परिवार बसाना चाहती है। मुझे डर था कि घर से दूर होने और आसानी से वापस न आ पाने के कारण मैं अपने पति से दूर हो जाऊँगी और वह पक्का मुझे तलाक दे देगा। अगर ऐसा हुआ तो हमारा परिवार बिखर जाएगा। लेकिन फिर मैंने सोचा कि कैसे यह कर्तव्य परमेश्वर से आया है और मैं सिर्फ पारिवारिक सद्भाव बनाए रखने के लिए अपने कर्तव्य से इनकार नहीं कर सकती। इसलिए मैंने इसे स्वीकार कर लिया। उस समय मैं हर दो हफ्ते में एक बार कुछ दिनों के लिए घर लौटती थी, घर और खेत का सारा काम करती थी, उम्मीद करती थी इन प्रयासों के जरिए अपने पति का दिल थामे रखूँगी। भले ही मुझे पता था कि उसका किसी से अफेयर है, लेकिन मैंने कभी उससे इस बारे में बात नहीं की क्योंकि मुझे डर था कि यह वाकई तलाक की ओर ले जाएगा। यह मुद्दा अक्सर मुझे परेशान करता था और मैं अपना कर्तव्य निभाते समय भी विचलित रहती थी। अक्सर मैं बस बेमन से काम करती थी। एक कलीसिया में एक झूठा अगुआ था, जिसे तुरंत बर्खास्त करना चाहिए था, लेकिन मैंने सोचा कि बर्खास्तगी के बाद नए अगुआ का चुनाव करने में समय लगेगा, इसलिए मैंने घर जाने का समय निकालने के लिए बर्खास्तगी को टाल दिया। इससे कलीसिया के काम में देरी हुई। एक और बार ऊपरी अगुआ ने मुझे एक कलीसिया में एक मसीह-विरोधी से निपटने में मदद करने के लिए कहा। उस समय कुछ भाई-बहन इस मसीह-विरोधी का भेद नहीं पहचान सके थे, इसलिए समय रहते उनके साथ भेद पहचानने के बारे में सत्यों की संगति करना जरूरी था। मैंने सोचा, “भाई-बहनों को इस मसीह-विरोधी का भेद पहचानने के लिए शायद आधे महीने की संगति लग जाए, फिर भी नतीजा निकलने की कोई गारंटी नहीं है। फिर मैं घर कब जा पाऊँगी?” इसलिए मैंने अगुआ से कहा, “यह मसीह-विरोधी बहुत चालाक है और लोगों को गुमराह करने के उसके तरीके बहुत आधुनिक हैं। भाई-बहनों के लिए उसका भेद पहचानना आसान नहीं होगा और मैं भी उसे सँभाल नहीं पाऊँगी। क्या तुम इस समस्या से निपटने के लिए किसी और को ढूँढ़ सकते हो?” अगुआ ने देखा कि मैं सहयोग करने के लिए तैयार नहीं हूँ और इसे सँभालने के लिए उसे दूसरी बहन ढूँढ़नी पड़ी। लेकिन उस बहन में भेद पहचानने की कमी के कारण इस मसीह-विरोधी से निपटने में प्रगति धीमी रही, नतीजतन यह मसीह-विरोधी कलीसिया में बना रहा, दो महीने से अधिक समय तक परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह और नियंत्रित करता रहा। कलीसिया का सारा काम रुक गया। बाद में अपने कर्तव्य में मेरी गैर-जिम्मेदारी के कारण और क्योंकि मैंने कलीसिया के काम में गंभीर रूप से देरी की थी, मुझे बर्खास्त कर दिया गया। एक सभा के दौरान एक बहन ने मुझसे कहा, “तुम्हारे व्यवहार के आधार पर तुम्हें चिंतन करने के लिए अलग-थलग रहना चाहिए।” उसके शब्दों ने मेरे दिल को गहराई तक चीर दिया। मैं अक्सर अपनी शादी कायम रखने के लिए घर चली जाती थी, जिससे कलीसिया के काम में देर हुई। मैंने वाकई कुकर्म किया था और मुझे चिंतन करने के लिए अलग रहना चाहिए। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम परमेश्वर के आदेशों को कैसे लेते हो, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह एक बहुत ही गंभीर मामला है। परमेश्वर ने जो लोगों को सौंपा है, यदि तुम उसे पूरा नहीं कर सकते, तो तुम उसकी उपस्थिति में जीने के योग्य नहीं हो और तुम्हें दंडित किया जाना चाहिए। यह पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है कि मनुष्यों को परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले सभी आदेश पूरे करने चाहिए। यह मनुष्य का सर्वोच्च दायित्व है, और उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उनका जीवन है। यदि तुम परमेश्वर के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम उसके साथ सबसे कष्टदायक तरीके से विश्वासघात कर रहे हो। इसमें, तुम यहूदा से भी अधिक शोचनीय हो और तुम्हें शाप दिया जाना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। परमेश्वर के वचनों से मैं भय से काँपने लगी। मुझे परमेश्वर का क्रोध महसूस हुआ, मानो उसके द्वारा मेरी निंदा की जा रही हो। भाई-बहनों ने मुझे प्रचारक चुना था। परमेश्वर का इरादा था कि मैं भाई-बहनों को उसके वचन खाने-पीने और सत्य में प्रवेश करने के लिए प्रेरित करूँ और भाई-बहनों को झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों द्वारा बाधित और गुमराह होने से बचाऊँ। लेकिन मेरा दिल अपने कर्तव्य में बिल्कुल भी नहीं था। मैंने अपनी शादी और परिवार को हर चीज से ऊपर रखा, अक्सर अपने पति के साथ अपना रिश्ता कायम रखने के लिए घर जाती रही। मुझे पता था कि कलीसिया में झूठा अगुआ है, लेकिन मैंने उसे समय रहते बर्खास्त नहीं किया। बेनकाब हुए मसीह-विरोधी के बारे में मैं भेद पहचानने पर भाई-बहनों के साथ संगति करने में समय बिताने के लिए भी तैयार नहीं थी। मैंने बहाने भी बनाए, कहा कि यह मसीह-विरोधी इतना चालाक है कि मुझसे नहीं सँभलेगा और अपने कर्तव्य से मुँह मोड़ लिया। इससे मसीह-विरोधी को कलीसिया में भाई-बहनों को गुमराह करने का मौका मिला। अपनी शादी और परिवार की खातिर मैंने अगुआओं और कार्यकर्ताओं के चयन, झूठे अगुआओं की बर्खास्तगी और मसीह-विरोधी से निपटने जैसे महत्वपूर्ण काम अनादर और उदासीनता से किए। इससे कलीसिया के काम और भाई-बहनों के जीवन को नुकसान पहुँचा। मैं इतनी स्वार्थी और नीच थी! मैं किस तरह से मानवता वाली इंसान की तरह व्यवहार कर रही थी? इसलिए मैं परमेश्वर के सामने आई और अपने पाप कबूलते हुए प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, वैवाहिक आनंद की खोज में मैं अपना कर्तव्य ठीक से निभाने में नाकाम रही हूँ और मैंने अपराध किया है। तुम्हारे धार्मिक स्वभाव के अनुसार मैं सजा की हकदार हूँ। फिर भी तुम मेरे साथ मेरे अपराधों के अनुसार पेश नहीं आए और इसके बाद भी मुझे अपना कर्तव्य करने का मौका दिया। अब से मैं अपने कर्तव्य से ऐसे दिल के साथ पेश आने को तैयार हूँ जो तुम्हारा भय माने।”

कुछ समय बाद मेरे पति ने सुना कि कुछ और विश्वासियों को गिरफ्तार किया गया है, इसलिए मेरे प्रति उसका उत्पीड़न और बढ़ गया। एक बार मुझे परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने के लिए उसने मेरे सारे कपड़े जला दिए। मुझे बहुत गुस्सा आया। बाद में पुलिस मुझे अवैध प्रचार के आरोप में गिरफ्तार करने मेरे घर आई, लेकिन तब मैं घर पर नहीं थी और किसी तरह मुसीबत से बच गई। इस वजह से मैं पाँच महीने तक घर जाने की हिम्मत नहीं कर पाई। मेरे पति ने मुझे ढूँढ़ने की कोशिश करते हुए मेरे रिश्तेदारों को फोन किया और मुझ पर घर आने का दबाव डालने के लिए उसने मेरी चचेरी बहन की भी रिपोर्ट कर दी, जो खुद परमेश्वर में विश्वास करती थी। यह सुनकर मैं चौंक गई। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा पति ऐसा कुछ करेगा। मुझे लगा कि वह वाकई भयानक और द्वेषपूर्ण है। अगर वह मेरी चचेरी बहन की रिपोर्ट कर सकता है तो क्या वह मेरी भी शिकायत करेगा? मैंने अपनी शादी कायम रखने के लिए दी अपनी कुर्बानियों के बारे में सोचा और मुझे लगा कि वे इसके लायक नहीं थीं। लेकिन जब मैंने सोचा कि मैं घर वापस नहीं जा सकती और हमारा परिवार इस तरह टूट जाएगा और जिस खुशहाल शादी की मैंने हमेशा तलाश की थी वह कैसे खत्म हो जाएगी तो मुझे अभी भी बहुत तकलीफ हुई। मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की, उम्मीद जताई कि वह मुझे इस गलत मनोदशा से बाहर निकालेगा।

उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “शादीशुदा लोग हमेशा शादी को जीवन की एक प्रमुख घटना मानते हैं और शादी पर बहुत जोर देते हैं। इसलिए वे अपने जीवन की सारी खुशियाँ अपने शादीशुदा जीवन और अपने जीवनसाथी को सौंप देते हैं, वे मानते हैं कि वैवाहिक सुख के पीछे भागना ही इस जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। यही वजह है कि कई लोग वैवाहिक सुख के लिए बहुत प्रयास करते हैं, बड़ी कीमत चुकाते हैं और बड़े त्याग भी करते हैं। ... कुछ लोग ऐसे भी हैं जो परमेश्वर में विश्वास करने के बाद अपना कर्तव्य और परमेश्वर के घर से मिला आदेश स्वीकारते हैं, मगर जब कर्तव्य निभाने का समय आता है तो वे अपनी वैवाहिक सुख और संतुष्टि बरकरार रखने के चक्कर में बहुत पीछे रह जाते हैं। उन्हें मूल रूप से किसी दूर जगह जाकर सुसमाचार प्रचार करना था, जिसमें वे हफ्ते में एक बार या लंबे अंतराल के बाद घर लौटते या वे घर छोड़कर अपनी विभिन्न काबिलियत और परिस्थिति के अनुसार पूरे समय अपना कर्तव्य निभा सकते थे, मगर वे डरते हैं कि उनका जीवनसाथी उनसे नाराज हो जाएगा, उनकी शादी खुशहाल नहीं रहेगी या फिर उनकी शादी ही टूट जाएगी, तो अपनी वैवाहिक सुख को बनाए रखने के लिए वे अपना बहुत सारा समय गँवा देते हैं जो उन्हें अपना कर्तव्य निभाने में लगाना चाहिए था। खास तौर पर जब वे अपने जीवनसाथी को शिकायत करते या नाखुश होते या रोते देखते हैं, तो अपनी शादी को बचाए रखने के लिए और भी सतर्क हो जाते हैं। वे अपने जीवनसाथी को संतुष्ट करने के लिए हर संभव प्रयास और अपनी शादी को खुशहाल बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, ताकि यह टूटने न पाए। बेशक, इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि कुछ लोग अपने वैवाहिक सुख को बरकरार रखने के लिए परमेश्वर के घर की पुकार को ठुकराकर अपना कर्तव्य निभाने से इनकार कर देते हैं। जब उन्हें अपना कर्तव्य निभाने के लिए घर छोड़ देना चाहिए, तब क्योंकि वे अपने जीवनसाथी से अलग होना बर्दाश्त नहीं कर सकते या क्योंकि उनके जीवनसाथी के माँ-बाप परमेश्वर में उनके विश्वास का विरोध करते हैं और उनके नौकरी छोड़कर कर्तव्य निभाने के लिए घर छोड़ने का विरोध करते हैं, तो वे समझौता करके अपना कर्तव्य त्याग देते हैं, और इसके बजाय अपनी वैवाहिक सुख और अपनी शादी की अखंडता बनाए रखने का फैसला करते हैं। अपने वैवाहिक सुख और अपनी शादी की अखंडता बनाए रखने के लिए, और अपनी शादी को टूटकर खत्म होने से बचाने के लिए, वे सिर्फ विवाहित जीवन में अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों को पूरा करने और एक सृजित प्राणी के मकसद को त्यागने का रास्ता चुनते हैं(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (10))। परमेश्वर के वचनों ने मेरी मनोदशा उजागर कर दी। मैं बचपन से ही पारिवारिक मूल्यों से प्रभावित थी, मेरा मानना था कि जीवन में किसी औरत की खुशी इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी शादी खुशहाल है या नहीं और उसका पति उससे प्यार करता है या नहीं। मैंने एक खुशहाल परिवार की तलाश को अपने जीवन का लक्ष्य मान लिया था। मैं “जीवन अनमोल है, प्रेम उससे भी अधिक अनमोल है” और “काश मैं सच्चा प्यार करने वाला दिल जीत लूँ और हम अपने जीवन में कभी अलग न हों” के शैतानी विचारों के साथ जी रही थी। मैंने अपने पति को अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाया, और अपनी आजीवन खुशी उसके हवाले कर दी। परमेश्वर को पाने से पहले मैंने खुशहाल शादी की तलाश में खुद को पूरी तरह से अपने पति और परिवार के लिए न्यौछावर कर दिया। परमेश्वर को पाने के बाद मेरा पति सीसीपी द्वारा फैलाई गई निराधार अफवाहों से प्रभावित होकर मुझे सताने लगा, मुझे परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने लगा और उसने मुझे तलाक की धमकी भी दी और मेरे खिलाफ हिंसा का सहारा लिया। अपनी शादी टूटने से बचाने के लिए मैं चुपचाप सहती रही और समझौता करती रही और जब उसने मेरे साथ रूखा व्यवहार किया और मेरा मजाक उड़ाया, तब भी मैंने सक्रियता से उसे खुश करने की कोशिश की, घर की देखभाल करने में ज्यादा समय बिताया और उन कर्तव्यों की उपेक्षा की, जो मुझे करने चाहिए थे। खासकर जब मैं प्रचारक थी, मुझे साफ पता था कि यह कर्तव्य महत्वपूर्ण है और इसमें कई कलीसियाओं का काम शामिल है, लेकिन मुझे चिंता थी कि हमारी शादी टूट जाएगी, इसलिए मैं अक्सर अपने पति के साथ अपना रिश्ता कायम रखने के लिए घर जाती थी और मैं अपने कर्तव्यों के लिए पूरे दिल से प्रतिबद्ध नहीं हो पाती थी। जब कलीसियाओं में मसीह विरोधी और झूठे अगुआ प्रकट हुए, मैं उनसे समय पर निपटने में नाकाम रही क्योंकि मैं अपने परिवार को एक साथ रखने की कोशिश कर रही थी और इससे कलीसिया के काम में देरी हुई। अपनी शादी बचाने के लिए अपने पति के साथ अपना रिश्ता कायम रखने के लिए मैंने अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों की पूरी तरह से अवहेलना की और गंभीर अपराध किए। मैंने देखा कि मैं कितनी अड़ियल और स्वार्थी थी। चिंतन करने पर मुझे खुद से वाकई नफरत होने लगी।

बाद में मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े : “परमेश्वर ने तुम्हारे लिए शादी की व्यवस्था सिर्फ इसलिए की है ताकि तुम अपनी जिम्मेदारियाँ निभाना सीख सको, किसी दूसरे इंसान के साथ शांतिपूर्ण ढंग से रह सको और मिलकर जीवन बिता सको, और इसका अनुभव कर सको कि अपने जीवनसाथी के साथ जीवन बिताना कैसा होता है, और तुम एक साथ मिलकर सभी तरह के हालात का सामना कैसे कर सकते हो, जिससे तुम्हारा जीवन पहले से अधिक समृद्ध और अलग हो जाए। लेकिन, वह तुम्हें शादी की भेंट नहीं चढ़ाता है, और बेशक, वह तुम्हें तुम्हारे साथी के हाथों बेचता भी नहीं है ताकि तुम उसकी गुलामी करो। तुम उसकी गुलाम नहीं हो, और वह तुम्हारा मालिक नहीं है। तुम दोनों बराबर हो। तुम्हें अपने साथी के प्रति सिर्फ एक पत्नी या पति की जिम्मेदारियाँ निभानी हैं, और जब तुम ये जिम्मेदारियाँ निभाते हो, तो परमेश्वर तुम्हें एक संतोषजनक पत्नी या पति मानता है। तुम्हारे साथी के पास ऐसा कुछ नहीं है जो तुम्हारे पास नहीं है, और तुम अपने साथी से कमतर तो बिल्कुल नहीं हो। अगर तुम परमेश्वर में विश्वास और सत्य का अनुसरण करते हो, अपना कर्तव्य निभा सकते हो, अक्सर सभाओं में हिस्सा ले सकते हो, परमेश्वर के वचन पढ़ते हुए प्रार्थना कर सकते हो और परमेश्वर के समक्ष आ सकते हो, तो ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें परमेश्वर स्वीकार करता है और ये वही चीजें हैं जो एक सृजित प्राणी को करनी चाहिए और एक सृजित प्राणी को ऐसा ही सामान्य जीवन जीना चाहिए। इसमें शर्म की कोई बात नहीं है, और न ही इस तरह का जीवन जीने के लिए तुम्हें अपने साथी का ऋणी महसूस करना चाहिए—तुम उसके ऋणी नहीं हो। पत्नी होने के नाते अगर तुम चाहो, तो तुम परमेश्वर के कार्य के बारे में अपने साथी को गवाही देने का दायित्व निभा सकती हो। हालाँकि, अगर वह परमेश्वर में विश्वास नहीं करता है, वह तुम्हारे साथ एकमन नहीं है और तुम जिस मार्ग पर चलती हो, वह उस मार्ग पर नहीं चलता है तो तुम्हें अपनी आस्था या अपने चुने हुए मार्ग के बारे में उसे कोई जानकारी देने या कुछ समझाने की जरूरत नहीं है, न तो तुम पर इसकी कोई जिम्मेदारी है और न ही उसे यह सब जानने का हक है। तुम्हारा समर्थन करना, तुम्हें प्रोत्साहित करना और तुम्हारी ढाल बनकर खड़े रहना उसकी जिम्मेदारी और दायित्व है। अगर वह इतना भी नहीं कर सकता, तो उसमें मानवता नहीं है। ऐसा क्यों? क्योंकि तुम सही मार्ग पर चल रही हो, और तुम्हारे सही मार्ग पर चलने के कारण ही तुम्हारे परिवार और तुम्हारे जीवनसाथी को आशीष मिली है और वह तुम्हारे साथ परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद उठा रहा है। तुम्हारे साथी को इसके लिए तुम्हारा आभारी होना चाहिए; ऐसा नहीं कि वह तुम्हारे खिलाफ भेदभाव करने लगे या तुम्हारी आस्था के कारण या तुम्हें सताए जाने के कारण तुम्हें धमकाए या फिर यह माने कि तुम्हें घर के काम और दूसरी चीजों में अधिक ध्यान देना चाहिए या यह कि तुम उसकी कर्जदार हो। तुम भावनात्मक या आध्यात्मिक रूप से या किसी अन्य तरीके से उसकी ऋणी नहीं हो—उल्टा वही तुम्हारा ऋणी है। परमेश्वर में तुम्हारी आस्था के कारण ही वह परमेश्वर के अतिरिक्त अनुग्रह और आशीष का आनंद उठा रहा है, और उसे ये चीजें असाधारण रूप से मिलती हैं। ‘उसे ये चीजें असाधारण रूप से मिलती हैं’ से मेरा क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि ऐसे व्यक्ति को ये चीजें पाने का कोई हक नहीं है और उसे यह सब नहीं मिलना चाहिए। उसे यह सब क्यों नहीं मिलना चाहिए? क्योंकि वह परमेश्वर का अनुसरण नहीं करता या परमेश्वर को स्वीकार नहीं करता, इसलिए जिस अनुग्रह का वह आनंद लेता है वह परमेश्वर में तुम्हारी आस्था के कारण आता है। वह तुम्हारे साथ रहकर फायदा उठाता है और तुम्हारे साथ ही आशीष पाता है, और इसके लिए उसे तुम्हारा आभारी होना चाहिए। ... अविश्वासी इसके बाद भी संतुष्ट नहीं होते, वे तो परमेश्वर के विश्वासियों को दबाते और धमकाते भी हैं। देश और समाज विश्वासियों पर जैसा अत्याचार करता है वह पहले से ही उनके लिए एक आपदा है, और फिर भी उनके परिवार वाले उन पर दबाव बनाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में, अगर तुम्हें अब भी लगता है कि तुम उन्हें निराश कर रहे हो और अपनी शादी के गुलाम बनने को तैयार हो, तो तुम्हें ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। वे परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का समर्थन नहीं करते, तो कोई बात नहीं; वे परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का बचाव नहीं करते हैं, तब भी कोई बात नहीं। वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन, उन्हें इसलिए तुम्हारे साथ गुलाम जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए कि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो। तुम गुलाम नहीं हो, एक मनुष्य हो, एक गरिमामय और ईमानदार व्यक्ति हो। कम से कम, परमेश्वर के सामने तुम एक सृजित प्राणी हो, किसी के गुलाम नहीं। अगर तुम्हें गुलाम बनना ही है, तो सत्य का गुलाम बनो, परमेश्वर का गुलाम बनो, किसी व्यक्ति का गुलाम मत बनो, और अपने जीवनसाथी को अपना मालिक तो बिल्कुल मत मानो। दैहिक रिश्तों के मामले में, तुम्हारे माता-पिता के अलावा, इस संसार में तुम्हारे सबसे करीब तुम्हारा जीवनसाथी ही है। फिर भी परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास के कारण तुम्हें वे दुश्मन मानते हैं और तुम पर हमले और अत्याचार करते हैं। वे तुम्हारे सभा में जाने का विरोध करते हैं, कोई अफवाह सुनने को मिल जाए तो वे घर आकर तुम्हें डाँटते हैं और तुम्हारे साथ बुरा बर्ताव करते हैं। यहाँ तक कि जब तुम घर पर परमेश्वर के वचन पढ़ते या प्रार्थना करते हो और उनके सामान्य जीवन में कोई दखल नहीं देते, तब भी वे तुम्हें फटकारेंगे और तुम्हारा विरोध करेंगे, और तुम्हें पीटेंगे भी। बताओ, यह सब क्या है? क्या वे राक्षस नहीं हैं? क्या यह वही व्यक्ति है जो तुम्हारे सबसे करीब है? क्या ऐसा व्यक्ति इस लायक है कि तुम उसके प्रति अपनी कोई भी जिम्मेदारी निभाओ? (नहीं।) नहीं, वह इस लायक नहीं है! और इसलिए, ऐसा शादीशुदा जीवन जीने वाले कुछ लोग अभी भी अपने साथी के इशारों पर नाचते हैं, सब कुछ त्यागने को तैयार रहते हैं, वे अपना कर्तव्य निभाने में दिया जाने वाला समय, अपना कर्तव्य निभाने का अवसर, और यहाँ तक कि अपना उद्धार पाने का मौका भी त्यागने को तैयार होते हैं। उन्हें ये चीजें नहीं करनी चाहिए और कम से कम उन्हें ऐसे विचारों को पूरी तरह त्याग देना चाहिए(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (11))। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि परमेश्वर ने लोगों को जिम्मेदारियाँ अच्छे से निभाना सीखने और भरपूर जीवन का अनुभव लेने के लिए विवाह का विधान बनाया है, न कि शादी का गुलाम बनने के लिए। विवाह में जिम्मेदारियाँ निभाते समय भी कुछ सिद्धांत होने चाहिए। अगर दूसरे व्यक्ति में अच्छी मानवता है और वह परमेश्वर में हमारे विश्वास का समर्थन करता है तो हम विवाह के ढांचे के भीतर अपनी जिम्मेदारियाँ अच्छे से निभा सकते हैं। लेकिन अगर दूसरा व्यक्ति परमेश्वर में हमारे विश्वास में रुकावट डालता है और हमें सताता या निंदा भी करता है तो यह राक्षस का खुद को दिखाना है और उसका सार परमेश्वर से घृणा करता है। इस मामले में हमें अपनी जिम्मेदारियाँ अच्छे से निभाने की जरूरत नहीं है। अगर कोई व्यक्ति अच्छे और बुरे के बीच अंतर नहीं कर सकता है और फिर भी ऐसे जीवनसाथी को थामे रखना चाहता है तो वह पूरी तरह से मूर्ख और अज्ञानी है! परमेश्वर में मेरा विश्वास और सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना परमेश्वर की स्वीकृति के अनुरूप है और यह सबसे उचित बात है, लेकिन मेरे पति ने न सिर्फ मेरा साथ नहीं दिया, बल्कि मेरे साथ दुश्मन जैसा सुलूक किया, मुझे पीटा, डाँटा और तलाक देने की धमकी दी ताकि मैं परमेश्वर में अपना विश्वास छोड़ दूँ। तथ्यों से साफ पता चला कि मेरा पति परमेश्वर से नफरत करता है और उसका सार राक्षस का है। उसे अच्छी तरह पता था कि सीसीपी मेरा पीछा कर रही है और अगर मैं घर लौटती हूँ तो मुझे किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है, फिर भी उसने मेरी चचेरी बहन की रिपोर्ट कर दी और मुझ पर घर लौटने के लिए दबाव बनाने की कोशिश की। उसे मेरे जीने या मरने की कोई चिंता नहीं थी! वह वाकई स्वार्थी और द्वेषपूर्ण था! बाद में मुझे एहसास हुआ कि पहले जब उसने मेरे साथ अच्छा सुलूक किया तो यह इसलिए था क्योंकि मैं हमारे परिवार और उसकी माँ का ख्याल रखती थी, जिससे उसे लाभ हुआ; वरना उसने मुझे बहुत पहले ही तलाक दे दिया होता। उसने मुझसे सच्चा प्यार नहीं किया और उनकी नजर में मैं सिर्फ एक साधन हूँ। लेकिन मैंने हमेशा उसे अपना सहारा माना और अपनी सारी खुशियाँ उसके हवाले कर दीं। मैंने उसे थामे रखने और उसका उपकार पाने के लिए अपने कर्तव्यों को भी एक तरफ रख दिया। यह सोचते हुए मुझे एहसास हुआ कि मुझे धोखा दिया गया है और मैंने देखा कि मैं कितनी अंधी थी! अब मेरे लिए साफ हो गया कि मेरे पति का सार राक्षस जैसा है जो परमेश्वर से घृणा करता है। मैं ऐसे व्यक्ति के साथ कैसे खुश रह सकती हूँ जो परमेश्वर से घृणा करता हो? न सिर्फ मुझे उसके साथ खुशी नहीं मिलेगी, बल्कि मुझे उससे और भी अधिक नुकसान होगा। मैं अब उससे बेबस नहीं रह सकती। मुझे पूरी लगन से सत्य का अनुसरण करना था और अपनी क्षमताओं के अनुसार अपने कर्तव्य अच्छे से पूरे करने का प्रयास करना था।

उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जब शादी की बात आती है, तो चाहे कैसी भी दरारें आएँ या नतीजे कैसे भी हों, तुम्हारी शादी बनी रहे या नहीं, तुम अपनी शादी में एक नए जीवन की शुरुआत कर पाते हो या नहीं, या तुम्हारी शादी उसी मुकाम पर टूट जाए, तुम्हारी शादी तुम्हारी मंजिल नहीं है, और न ही तुम्हारा जीवनसाथी तुम्हारी मंजिल है। परमेश्वर ने उसका तुम्हारे जीवन और अस्तित्व में आना निर्धारित किया था, ताकि वह तुम्हारे जीवन के मार्ग में तुम्हारा साथ दे सके। अगर वह पूरे रास्ते तुम्हारा साथ दे पाता है और अंत तक तुम्हारे साथ चलता रहता है, तो इससे बेहतर और कुछ नहीं है, और तुम्हें परमेश्वर के अनुग्रह के लिए धन्यवाद करना चाहिए। अगर शादी के दौरान कोई समस्या आती है, चाहे दरारें आती हैं या तुम्हारी पसंद के विरुद्ध कुछ होता है, जिसकी वजह से तुम्हारी शादी टूट जाती है, तो इसका मतलब यह नहीं कि अब तुम्हारे पास कोई मंजिल नहीं है, अब तुम्हारा जीवन अंधकार में पड़ गया है, आगे कोई रोशनी नहीं है, और अब तुम्हारा कोई भविष्य नहीं है। यह भी हो सकता है कि तुम्हारी शादी का टूटना तुम्हारे लिए एक शानदार जीवन की शुरुआत हो। यह सब परमेश्वर के हाथों में है, और सब आयोजन और व्यवस्था परमेश्वर ही करेगा। ऐसा हो सकता है कि शादी टूटने से तुम्हें इसकी गहरी समझ मिले और तुम बेहतर मूल्यांकन कर पाओ। बेशक, तुम्हारी शादी का टूटना तुम्हारे जीवन के लक्ष्यों और दिशा के लिए और जिस मार्ग पर तुम चलते हो उसके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। यह तुम्हें मनहूस यादें देकर नहीं जाएगा, और यह दर्दनाक यादें तो बिल्कुल नहीं देगा, न ही यह पूरी तरह नकारात्मक अनुभव और नतीजे देगा, बल्कि इससे तुम्हें सकारात्मक और सक्रिय अनुभव मिलेंगे जो तुम्हें अभी तक शादी में बने रहने से शायद नहीं मिल पाते। अगर तुम्हारी शादी बनी रहती, तो शायद तुम अपने आखिरी समय तक हमेशा यही सादा, औसत दर्जे का और नीरस जीवन जीती रहती। लेकिन, अगर तुम्हारी शादी खत्म होकर टूट जाती है, तो जरूरी नहीं कि यह कोई खराब बात हो। इससे पहले तुम अपनी शादी की खुशी और जिम्मेदारियों के साथ ही अपने जीवनसाथी के प्रति अपनी भावनाओं या जीवन जीने के तरीकों की चिंता करने, उसकी देखभाल करने, उसका ख्याल रखने, उसकी परवाह करने और उसके बारे में फिक्र करने को लेकर बेबस महसूस करती थी। लेकिन, तुम्हारी शादी टूटने के दिन से ही तुम्हारे जीवन की सभी परिस्थितियाँ, जीवन जीने के तुम्हारे लक्ष्य और अनुसरण के तरीके पूरी तरह से बदल जाते हैं, और ऐसा कहना सही होगा कि तुममें यह बदलाव तुम्हारी शादी टूटने के कारण ही आया है। ऐसा हो सकता है कि यह परिणाम, बदलाव और परिवर्तन परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए निर्धारित की गई शादी से और उस शादी को खत्म करने के लिए रास्ता दिखाकर परमेश्वर तुम्हें जो हासिल कराना चाहता है उसकी वजह से आया हो। भले ही तुम्हें पीड़ा हुई है और तुमने एक पेचीदा मार्ग अपनाया है, और भले ही तुमने अपनी शादी के ढाँचे में कुछ अनावश्यक त्याग और समझौते किए हैं, लेकिन अंत में तुम्हें जो हासिल होता है वह वैवाहिक जीवन में रहकर हासिल नहीं किया जा सकता(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (11))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मेरा दिल रोशन हो गया। परमेश्वर ने लोगों के लिए शादी का विधान किया है, लेकिन शादी मनुष्य के लिए मंजिल नहीं है। चाहे किसी व्यक्ति की शादी खुशहाल और पूर्ण हो या फिर टूट गई हो और खत्म हो गई हो, इसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि उस व्यक्ति का गंतव्य अच्छा होगा या नहीं और न ही इससे तय होता है कि उसका जीवन सुखी होगा या नहीं। फिर भी मैंने शादी को अपना गंतव्य और अपने पति को अपना सहारा माना, इसलिए जब मैंने देखा कि मेरी शादी टूट रही है और नाम मात्र के लिए बची है, मुझे लगा कि अब मेरे पास कोई मंजिल या सहारा नहीं है। मेरा दिल भारी हो गया, मैं अकेली और असहाय महसूस करने लगी, मुझे नहीं पता था कि अपने आगे के जीवन का सामना कैसे करूँ। अब मुझे एहसास हुआ कि मेरे विचार सत्य के अनुरूप नहीं थे। परमेश्वर के वचनों से मैंने देखा कि किसी की शादी टूटने का मतलब यह नहीं है कि उस व्यक्ति का कोई भविष्य नहीं है या उसका जीवन बेरंग हो जाएगा; यह ज्यादा शानदार जीवन की शुरुआत हो सकती है। अतीत में खुशहाल शादी कायम रखने के लिए मैंने घर के अंदर और बाहर के सभी काम किए और अपने दिन काम करते हुए बिताए जब तक कि मेरी पीठ में दर्द न होने लगे और मुझे अपने पति का मूड भी समझना पड़ता था। लेकिन इससे भी बुरी बात यह थी कि मैं अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह से समर्पित नहीं हो पाई। मैं बस कामों में व्यस्त रहती थी और इससे कलीसिया के काम में देरी होती थी। मैं अक्सर बेचैन रहती थी, जैसे मेरे दिल पर पत्थर का बोझ हो, मैं दर्द और थकावट की मनोदशा में रहती थी। वैवाहिक आनंद की खोज ने मुझे और अधिक आध्यात्मिक उत्पीड़न और दर्द दिया। पिछले कुछ महीनों में मैं CCP के उत्पीड़न के कारण घर नहीं जा सकी और जब मैंने अपने कर्तव्य करने के लिए अपना दिल शांत किया, मेरे शरीर की थकान कम हो गई और मेरा दिल पहले से कहीं ज्यादा हल्का हो गया। जब मैंने परमेश्वर के वचन खाने और पीने के लिए खुद को शांत किया और भाई-बहनों के साथ कलीसियाई जीवन जिया, मैं कुछ सत्य समझने में सक्षम हुई और मेरा दिल खुशी से भर गया। यह मेरे जीवन के लिए वाकई फायदेमंद रहा। अब भले ही मेरे पास मेरे पति का साथ और देखभाल नहीं है, जब मैंने मुश्किलों और दर्द का सामना किया तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के साथ मुझे लगा कि परमेश्वर मेरे साथ है और वही मेरा सच्चा सहारा है। इन बातों को समझते हुए मुझे अब अपनी शादी कायम रखने की चिंता नहीं रही और मेरा दिल जो इतने लंबे समय से दबा हुआ था, उसे आजादी का एहसास हुआ। बाद में मैं दूसरे क्षेत्रों में अपने कर्तव्यों का पालन करती रही और घर वापस नहीं लौटी।

तीन साल बाद एक दिन मैंने पार्क में एक बहन से मिलने की योजना बनाई और मेरे पति के जीजा ने मुझे रास्ते में देखा। वह बहुत हैरान हुआ और उसने कहा कि वह मुझे ढूँढ़ रहा था। उसकी पत्नी को कैंसर हो गया था और वह किसी भी समय मर सकती है और वह मुझसे अपने घर आने का आग्रह करता रहा। मैंने सोचा कि कैसे मेरा पति अक्सर मेरी बेटी को मेरे ठिकाने के बारे में पूछने के लिए फोन करता है, वह मुझे ढूँढ़ने के लिए मेरी माँ के घर भी गया और वह मुझे ढूँढ़ने की कोशिश करने के लिए रिश्तेदारों को फोन करता रहा। अगर मैं उसकी बहन के घर गई तो उसे तुरंत पता चल जाएगा। क्या होगा अगर मेरे पति ने मुझे देख लिया और मुझसे घर पर रहने की विनती करने लगा? मैंने अपनी बूढ़ी सास के बारे में सोचा और सोचा कि अगर उसकी बहन मर गई तो उसका जीवन काफी मुश्किल हो जाएगा। आखिरकार हमारी शादी को इतने साल हो गए हैं और मैं लगभग तीन साल से घर से बाहर हूँ तो क्या वह अब भी मुझे पहले की तरह सताएगा? इस पर सोचने के बाद मैं अभी भी उलझन में थी, इसलिए मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे मेरा मार्गदर्शन करने और मुझे आगे बढ़ाने के लिए कहा। प्रार्थना करने के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “दानव मनुष्य कैसे बन सकते हैं? यह असंभव है। बड़े लाल अजगर से कसाई का चाकू नीचे रखवाना असंभव है; यह उसकी प्रकृति है। दानव और शैतान एक ही गुट के हैं, इनके बीच सिर्फ यह अंतर है कि इनमें कौन ज्यादा बड़ा है। तुम बड़े लाल अजगर को जिस नजर से देखते हो, उसी नजर से तुम्हें दानवों को देखना चाहिए; यह सही है। अगर दानवों को देखने की तुम्हारी नजर शैतान और बड़े लाल अजगर को देखने की नजर से अलग है तो इससे साबित होता है कि तुम्हारे पास अब भी दानवों की पूरी समझ नहीं है; अगर तुम अब भी यही सोचते हो कि वे मनुष्य हैं, यह मानते हो कि उनमें मानवता है, उनके पास कोई सराहनीय चीज है, उन्हें मुक्ति दिलाई जा सकती है और तुम अब भी उन्हें मौके देते हो तो तुम बेवकूफ हो, तुम फिर से उनके झाँसे में आ गए हो और तुम्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी(वचन, खंड 7, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (15))। राक्षस हमेशा राक्षस ही रहता है और कभी इंसान नहीं बन सकता। मेरे पति ने परमेश्वर से घृणा की और उसका विरोध किया और उसका सार राक्षस का है। मैं अपने पति के साथ सहानुभूति नहीं रख सकती, वरना वह सिर्फ मुझे चोट पहुँचाएगा। चाहे कुछ भी हो, मैं वापस नहीं जा सकती। फिर मैंने परमेश्वर के तत्काल इरादों के बारे में सोचा। परमेश्वर को उम्मीद है कि अधिक से अधिक लोग उसके सामने आ सकें और जितनी जल्दी हो सके उसका उद्धार स्वीकार सकें, इसलिए इस महत्वपूर्ण क्षण में मुझे सुसमाचार कार्य में सहयोग करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना है। मुझे अतीत में अपने कर्तव्य न करने का पछतावा है क्योंकि मैं वैवाहिक आनंद की तलाश में थी। अब मुझे इसकी भरपाई करनी है और परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाने के लिए अपने कर्तव्यों में वफादार होना है। आगे बढ़ते हुए मैंने खुद को नए लोगों को सींचने के काम के लिए समर्पित कर दिया और मुझे सहजता और शांति मिली। मुझे शादी के दर्द से बचाने के लिए मैं परमेश्वर की ईमानदारी से आभारी हूँ।

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