18. उत्पीड़न और क्लेशों ने मुझे प्रकट किया
मैं कुछ कलीसियाओं में शुद्धिकरण के काम के लिए जिम्मेदार थी। जुलाई 2022 में एक दिन मैं यांग शिन से कुछ चीजों के बारे में जानकारी हासिल करने उसके घर गई। घर का दरवाजा उसके पति ने खोला। घबराई हुई आवाज में वह फुसफुसाया, “तुम किससे मिलने आई हो?” अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए मैंने कहा, “मैं अपनी बड़ी बहन से मिलने आई हूँ।” उसने तुरंत कहा, “वह बाहर गई हुई है।” यह कह कर उसने दरवाजा बंद कर लिया। जब वह दरवाजा बंद कर रहा था, तभी मैंने दरवाजे की दरार से देखा कि उसके घर में दो ऐसे पुरुष बैठे थे जो अपनी उम्र के 30 या 40 के दशक में होंगे और दोनों ही मुझे देख रहे थे। मैं चौंक गई, “वे दोनों जिस तरह से लोगों को देखते हैं वह तरीका आम लोगों से अलग है। वे मुझे वैर-भाव से देखते हुए तोल रहे थे। क्या वे पुलिस वाले हो सकते थे?” मेरे मन में भय की भावना उमड़ी और मैं वहाँ से फटाफट चली गई।
जब मैं अपने मेजबान घर लौटी तो एक बहन घबराई हालत में वहाँ पहुँची और बोली कि उसने अभी-अभी कलीसिया के दो अगुआओं की गिरफ्तारी की बात सुनी है। मेरा कलेजा मुँह को आ गया, “अरे, नहीं! हो सकता है कि यांग शिन को भी गिरफ्तार कर लिया गया हो। उसके घर में मैंने संयोग से जो दो अजनबी देखे, बहुत संभव है कि वे पुलिस वाले हों और वहाँ निगरानी रख रहे हों।” मन ही मन मैं डरने लगी। इसके तुरंत बाद ही मुझे पता चला कि सुबह के दो या तीन बजे कई भाई-बहनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। इतने सारे भाई-बहनों को एकबारगी गिरफ्तार कर लिया गया था और मेरा दिल घबराहट में जोर-जोर से धड़क रहा था। मुझे ख्याल आया कि तीन साल पहले पुलिस ने मेरा एक फोटो रख लिया था ताकि लोग मेरी पहचान कर सकें; गिरफ्तार किए गए भाई-बहनों को भी उस घर के बारे में पता है जहाँ मैं अभी रह रही हूँ। अगर मैं वहाँ रुकी रही तो मुझे किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है, इसलिए मैंने अपना सामान उठाया और वह जगह छोड़ने के लिए तैयार हो गई। इसी समय एक बहन वहाँ भागती हुई आई और मुझसे बोली कि कलीसिया के अगुआ, कार्यकर्ता और सुसमाचार कार्य और सिंचन कार्य के पर्यवेक्षक सबके सब गिरफ्तार किए जा चुके हैं। उसने मुझसे कहा कि मैं यह घर जल्दी से छोड़ दूँ। मैंने यह सुना तो सदमे से मेरे पाँव जहाँ के तहाँ जैसे जम गए। “इतने सारे लोगों के गिरफ्तार हो जाने के चलते अनुवर्ती कार्य कौन सँभालेगा? मुझे जल्दी से किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ना होगा जो मेरे भाई-बहनों को बता सके ताकि वे लोग भाग सकें!” लेकिन तभी मेरे मन में दूसरा विचार आया कि “मैं उन भाई-बहनों के निकट संपर्क में रही हूँ जो गिरफ्तार किए गए हैं और पुलिस के पास मेरी फोटो है। अगर पुलिस मुझे गिरफ्तार कर लेती है तो भले ही वह मुझे पीट-पीटकर न मार डाले, लेकिन तब तक जरूर पीटेगी जब तक मैं अपंग नहीं हो जाती। मुझे जल्दी से छिप जाना चाहिए!” इसलिए मैं एक रिश्तेदार के घर गई। यद्यपि फिलहाल मैं सुरक्षित थी, लेकिन मेरा दिल लगातार बेचैन था, “कलीसिया के साथ क्या हो रहा है? क्या किसी और की भी गिरफ्तारी हुई है? इस बार गिरफ्तार किए गए सभी लोग अगुआ और कार्यकर्ता हैं तो अनुवर्ती कार्य कौन सँभाल रहा है? मैं भी कलीसिया की सदस्य हूँ तो क्या सचमुच मैं बस इस तरह छिपने जा रही हूँ?” दिल में भारी उथल-पुथल मची थी।
अगले दिन मुझे उच्च अगुआओं का पत्र मिला जिसमें मुझे अनुवर्ती कार्य सँभालने को कहा गया था। उस समय मैं भीतर से थोड़ा डरी हुई थी। “इतने सारे भाई-बहन गिरफ्तार कर लिए गए हैं। यह तो वास्तव में झंझावात का केंद्र-बिंदु है। इस समय अनुवर्ती कार्य सँभालकर क्या मैं खुद को गोलीबारी की कतार में नहीं ला रही हूँगी? इसके अलावा, पुलिस के पास मेरी फोटो है। उसने एक बार मेरी घेराबंदी कर दी तो मैं उसके चंगुल से कैसे बच निकल पाऊँगी? फिर मेरा स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है। एक बार गिरफ्तार हो गई तो दानव की यातना कैसे सह सकूँगी—क्या मैं बस पीट-पीटकर मार नहीं डाल दी जाऊँगी? अगर मैं मर गई तो क्या तब मेरा इतने वर्षों का विश्वास व्यर्थ नहीं हो जाएगा?” जब मैंने यह सोचा तो ऐसा महसूस हुआ मानो मेरा दिल हलक में आ फँसा हो। लेकिन यदि मैं अपने कर्तव्य से इनकार करती हूँ, वह भी तब जब कलीसिया पहले ही पंगु स्थिति में है इस अत्यंत महत्वपूर्ण क्षण में अपने भगौड़े होने को मैं सही नहीं ठहरा पाऊँगी! यह अनवरत द्वंद्व ऐसा महसूस हो रहा था मानो यह मेरे दिल को दो दिशाओं में खींच रहा हो। बाद में मैंने अगुआओं को उत्तर दिया कि मेरी सुरक्षा को लेकर जोखिम हैं। मैंने यह भी कहा कि “तुम लोग यह तय कर सकते हो कि मुझसे यह काम कराना कारगर रहेगा कि नहीं। अगर तुम लोगों को लगता है कि मैं इसके लिए उपयुक्त हूँ तो फिर मैं जाऊँगी।” मेरा इरादा उन्हें यह बताने का था कि मेरी सुरक्षा खतरे में है और कि मैं नहीं चाहती वे मुझे भेजने की व्यवस्था करें। जब मैंने यह पत्र भेज दिया तो मुझे अपने दिल में धिक्कार महसूस हुआ। “यह पत्र लिख कर क्या मैं धोखेबाजी नहीं कर रही हूँ? परमेश्वर के घर ने इतने वर्षों तक मुझे विकसित किया है, लेकिन इस महत्वपूर्ण क्षण में मैंने बस अपने आप को बचाने की कोशिश की। क्या यह वह है जो कोई मानवता युक्त व्यक्ति करेगा? जैसी कि कहावत भी है, ‘सच्ची भावनाएँ मुश्किल वक्त में ही प्रकट होती हैं।’ अब जब कलीसिया में इतने सारे लोग गिरफ्तार कर लिए गए हैं तो अनुवर्ती कार्य सँभालने की तुरंत आवश्यकता है। लेकिन मैं अपने कर्तव्य से इनकार कर रही हूँ—यह सचमुच कुछ ऐसा नहीं है जो कोई मनुष्य करेगा!” इसके बावजूद मैं मन ही मन थोड़ा डरी हुई थी, इसलिए मैंने परमेश्वर की प्रार्थना करते हुए भीख मांगी कि वह मुझमें आस्था जगाए कि मैं उठ खड़ी होऊं और कलीसिया के काम की रक्षा करूँ। प्रार्थना करने के बाद मैं परमेश्वर के वचन पढ़े : “जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, वे अपने कार्य की परीक्षा का सामना करने में समर्थ हैं, जबकि जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, वे परमेश्वर के किसी भी परीक्षण का सामना करने में अक्षम हैं। देर-सवेर उन्हें निर्वासित कर दिया जाएगा, जबकि विजेता राज्य में बने रहेंगे। मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को खोजता है या नहीं, इसका निर्धारण उसके कार्य की परीक्षा द्वारा किया जाता है, अर्थात्, परमेश्वर के परीक्षणों द्वारा, और इसका स्वयं मनुष्य द्वारा लिए गए निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर हल्के में किसी मनुष्य को अस्वीकार नहीं करता; वह जो कुछ भी करता है, वह मनुष्य को पूर्ण रूप से आश्वस्त कर सकता है। वह ऐसा कुछ नहीं करता, जो मनुष्य के लिए अदृश्य हो, या कोई ऐसा कार्य जो मनुष्य को आश्वस्त न कर सके। मनुष्य का विश्वास सही है या नहीं, यह तथ्यों द्वारा साबित होता है, और इसे मनुष्य द्वारा तय नहीं किया जा सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि ‘गेहूँ को जंगली दाने नहीं बनाया जा सकता, और जंगली दानों को गेहूँ नहीं बनाया जा सकता।’ जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे सभी अंततः राज्य में बने रहेंगे, और परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार नहीं करेगा, जो वास्तव में उससे प्रेम करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद मैं समझ गई कि परमेश्वर बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न और गिरफ्तारियों का उपयोग यह जाँचने के लिए करता है कि लोगों की आस्था सच्ची है या झूठी। सच्ची आस्था वाले लोग कलीसिया के काम की रक्षा करने और क्लेशों के समय में अपने कर्तव्यों को पूरा करने में सक्षम होते हैं। नकली आस्था वाले लोग भी सामान्य समय में खुद को परमेश्वर के लिए खपाने में सक्षम होते हैं जब तक उनके अपने हित प्रभावित नहीं होते, लेकिन किसी खतरनाक माहौल का मुकाबला होने पर वे कायर और भयभीत बन जाते हैं और केवल खुद को बचाने की सोचते हैं। वे कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचते। इस तरह के व्यक्ति को प्रकट किया और हटा दिया जाता है। इसकी तुलना मैंने खुद अपने व्यवहार से की। मैंने कई सालों तक परमेश्वर पर विश्वास किया था, परमेश्वर के बहुत से वचनों को खाया और पिया था, और अक्सर अपने भाई-बहनों के साथ संगति की थी कि क्लेशों और परीक्षणों के आने पर हमें अपने कर्तव्यों पर कैसे टिके रहना है और परमेश्वर की गवाही देनी है। हालाँकि, जब कलीसिया को गिरफ्तारियों की इस बड़ी लहर का सामना करना पड़ा, और अगुआओं और कार्यकर्ताओं और कई भाइयों और बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया, तो मैंने जो बात सबसे पहले सोची वह यह थी कि मैं जल्दी से छिप जाऊँ। जब ऊपर वाले अगुआओं ने मुझे बाद के काम को संभालने के लिए कहा, तो मैं यह सोचते हुए झिझकी कि इस कर्तव्य को करना बहुत खतरनाक है, और इस आधार पर इनकार कर दिया कि मेरी सुरक्षा को खतरा है। मैंने इस बारे में सोचा कि कैसे कलीसिया पर इतनी बड़ी मुश्किल आ गई थी और सभी अगुआ और कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए गए थे। यदि भेंटों और कलीसिया के सामानों को तत्परता से स्थानांतरित नहीं किया गया तो पुलिस उन्हें उठा ले जाएगी। बहुत से भाई-बहन ऐसे भी थे जो इस बात से अनजान थे कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। अगर मैंने उन्हें समय पर सूचित नहीं किया, तो उन्हें भी गिरफ्तारी के खतरे का सामना करना पड़ेगा। फिर भी इस महत्वपूर्ण क्षण में, बार-बार मैंने खुद को बचाने और अपने कर्तव्य से इनकार करने का विकल्प चुना। मैं बहुत स्वार्थी और नीच थी और मानवताहीन थी। मैं सच में परमेश्वर के सामने जीने लायक नहीं थी! जब मैंने यह सोचा, तो मैंने खुद को ऋणी और अपने किए हर काम के लिए पश्चाताप महसूस किया, और अब मैं अपने आप को और सुरक्षित नहीं रखना चाहती थी। इसके बाद, मैंने उस समय के अपने घृणित इरादों के बारे में बात करने के लिए उच्च अगुआओं को एक पत्र लिखा, और कहा कि मैं गिरफ्तारियों के बाद वाले काम को सँभालने के लिए तैयार हूँ।
इसके बाद, भेष बदल कर मैं अपने भाई-बहनों से मिलने निकल पड़ी ताकि चर्चा कर सकूँ कि परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को कैसे स्थानांतरित किया जाए। फिर, जिन भाई-बहनों की सुरक्षा को खतरा था उन्हें सूचित किया कि उन्हें जल्दी से छिप जाने की ज़रूरत है, और कमज़ोर, नकारात्मक, डरपोक और भयभीत भाइयों और बहनों के साथ संगति करने के लिए पत्र लिख कर उन्हें कलीसियाई जीवन जीने और अपना कर्तव्य निभाने को परमेश्वर पर भरोसा करने के लिए प्रोत्साहित किया। जब मैं बाद के काम को सक्रिय रूप से सँभाल रही थी, तभी एक और घटना घटी जिसने मुझे फिर से प्रकट कर दिया। मुझे पता चला कि पुस्तकों का संरक्षण कर रहे एक भाई की पत्नी और बेटी को गिरफ्तार कर लिया गया है। स्थिति बहुत गंभीर थी। परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को जल्द से जल्द हटाया जाना था। जब मैंने यह सुना, तो मुझे बहुत चिंता हुई। अगर ये पुस्तकें पुलिस के हाथ लग गईं, तो नुकसान बहुत ज़्यादा होगा। मुझे उन्हें जल्द से जल्द हटाने का कोई तरीका ढूँढ़ना था। इसलिए मैंने स्थिति को ठीक से समझने के लिए किताबों का संरक्षण करने वाले भाई से मिलने की योजना बनाई। इसके तुरंत बाद, गिरफ्तार करने के बाद रिहा किए गए भाई-बहनों से मुझे पता चला कि गिरफ्तार किए गए कुछ लोग शैतान की चालों को नहीं समझ पाए थे और वे गद्दारी और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की पहचान करने लगे थे। इस भाई की बेटी ने गद्दारी करते हुए सबसे ज़्यादा जानकारी दी थी। यह सुनकर मैं बहुत डर गई, “इस दौरान मैं अक्सर निगरानी के बीच इधर-उधर आती-जाती रही हूँ। जैसे ही कोई मुझे पहचान लेगा, क्या मैं बर्बाद नहीं हो जाऊँगी?” यह सोचकर मैं पीछे हटने लगी। इसी समय, मैंने सुना कि बहन ली ज़ुआन दूसरे क्षेत्र से लौटी है। मुझे पता था कि वह पहले भी बाद के कामों को सँभाल चुकी है, इसलिए मैं चाहती थी कि वह मेरे कर्तव्य का जिम्मा ले ले। मैंने अपनी साथी बहन वांग शिन से कहा, “क्या हम ली ज़ुआन को बाद के कामों को संभालने के लिए कह सकते हैं? उसकी सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है और वह पहले भी बाद वाले कामों को सँभाल चुकी है।” वांग शिन ने आश्चर्य से कहा, “तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो? वह अभी भी अपने दूसरे काम कर रही है। क्या यह उचित है?” वांग शिन के सवाल को सुनकर, मुझे एहसास हुआ कि यह वास्तव में अनुचित था, “यह स्पष्ट रूप से मेरा कर्तव्य है, लेकिन फिर भी मैंने कलीसिया के हितों पर जरा भी विचार किए बिना इसे दूसरों पर डालने की कोशिश की। लेकिन अगर मैं यह कर्तव्य निभाती रही तो मुझे डर है कि मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। अगर मैं शैतान की चालों को नहीं समझ पाई और परमेश्वर से गद्दारी करती हूँ, तो इसका मतलब होगा अनंत विनाश और छुटकारे का कोई अवसर नहीं होगा। मैं उद्धार पाने का मौका पूरी तरह से खो दूंगी!” मैंने जितना सोचा, उतना ही डर गई। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर! मुझ पर जब खतरा आता है तो मैं पीछे हटना चाहती हूँ। कृपया मेरा मार्गदर्शन करो और मुझे आस्था और शक्ति दो!”
मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता। हालाँकि, ‘देह’ की परिभाषा में यह कहा जाता है कि देह शैतान द्वारा दूषित है, लेकिन अगर लोग वास्तव में स्वयं को अर्पित कर देते हैं, और शैतान से प्रेरित नहीं रहते, तो कोई भी उन्हें मात नहीं दे सकता—और इस समय देह अपना दूसरा कार्य निष्पादित करेगा, और औपचारिक रूप से परमेश्वर के आत्मा से दिशा प्राप्त करना शुरू कर देगा। यह एक आवश्यक प्रक्रिया है; इसे कदम-दर-कदम होना चाहिए; यदि नहीं, तो परमेश्वर के पास जिद्दी देह में कार्य करने का कोई उपाय नहीं होगा। ऐसी परमेश्वर की बुद्धि है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ में आया कि मैं क्यों भय और डर में जी रही थी, डरती थी कि अगर मैं हर दिन निगरानी करने वाले कैमरों के सामने से गुजरती रही, तो मुझे कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। मुख्य कारण यह था कि मैं अपने जीवन को बहुत ज़्यादा महत्व देती थी, और डरती थी कि मुझे गिरफ़्तार कर लिया जाएगा और पीट-पीटकर मार डाला जाएगा। मृत्यु का भय मेरी कमजोरी बन गया था। मैं गिरफ़्तार होने के पहले से ही बहुत डरी हुई थी : अगर मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया, तो मैं निश्चित रूप से अपनी गवाही में दृढ़ नहीं रह पाऊँगी। मैंने उन लोगों के बारे में सोचा जो यहूदा बन गए थे। अपनी खाल बचाने के लिए बेताब इन लोगों ने अपने भाई-बहनों और परमेश्वर के घर के हितों से धोखा करने में संकोच नहीं किया। उन्होंने शैतान के सामने हथियार डाल दिए और परमेश्वर को धोखा देकर शैतान को उनका उपहास करने का मौका दिया। इस तरह जीने का क्या मतलब है? प्रभु यीशु ने कहा था : “क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा” (मत्ती 16:25)। जो लोग परमेश्वर के लिए शहीद हुए, जैसे स्तीफनुस, जिसे प्रभु यीशु की घोषणा करने और गवाही देने पर पत्थर मार-मार कर मार डाला गया था; या पतरस, जिसे परमेश्वर के लिए सलीब पर उलटा लटकाया गया, उन्होने परमेश्वर की गवाही देने में अपने प्राण त्यागे। यद्यपि उनकी देह मर गई, लेकिन उन्हें परमेश्वर की स्वीकृति मिल गई। ऐसे भाई-बहन भी हैं जो बड़े लाल अजगर का क्रूर उत्पीड़न झेलने के बाद परमेश्वर के लिए शहीद हुए : यद्यपि उनकी देह मर गई, फिर भी उनकी गवाही शैतान को हराने का सबूत बन गई, और उनकी आत्माएँ सृष्टिकर्ता के सामने लौट आईं। उन्हें धार्मिकता के लिए सताया गया, और उनकी मृत्यु मूल्यवान और महत्वपूर्ण थी! फिर मैंने खुद को देखा, अब तक मृत्यु से बेबस थी और परमेश्वर में सच्ची आस्था का अभाव था। मेरा जीवन परमेश्वर ने दिया था, और मेरा जीवन और मृत्यु परमेश्वर के हाथ में है। यदि परमेश्वर मुझे गिरफ्तार होने देता है, तो यह परमेश्वर द्वारा निर्धारित है। यदि परमेश्वर मुझे गिरफ्तार होने नहीं देता, तो यह भी परमेश्वर की संप्रभुता है। मुझे परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए।
बाद में, मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “मुख्यभूमि चीन में, बड़े लाल अजगर ने अक्सर परमेश्वर के विश्वासियों को खतरनाक परिवेशों में रखते हुए लगातार और क्रूरता से उनका दमन किया, उन्हें गिरफ्तार करके उनका उत्पीड़न किया है। उदाहरण के लिए, सरकार विश्वासियों को पकड़ने के लिए तमाम तरह के बहाने बनाती है। जब भी उन्हें किसी मसीह-विरोधी के ठिकाने का पता चलता है, तो मसीह-विरोधी सबसे पहले किस बारे में सोचता है? वह कलीसिया के काम को ठीक से व्यवस्थित करने के बारे में नहीं, बल्कि इस खतरनाक परिस्थिति से बच निकलने के बारे में सोचता है। जब कलीसिया को दमन और गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ता है, तो मसीह-विरोधी कभी भी आगे के काम में नहीं लगते। वे कलीसिया के लिए जरूरी संसाधनों या कर्मियों की व्यवस्था नहीं करते हैं। बल्कि, अपने लिए एक सुरक्षित जगह पक्की करने और इससे निपटने के लिए बहाने और तर्क ढूँढ़ते हैं, और उनका काम पूरा हो जाता है। जब उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा पक्की हो जाती है, तो वे कलीसिया के काम, कर्मियों या संसाधनों की व्यवस्था करने में शायद ही कभी व्यक्तिगत रूप से शामिल होते हैं, और न ही वे मामले की जाँच करते या कोई विशेष व्यवस्थाएँ करते हैं। इस वजह से कलीसिया के संसाधनों और पैसों को तुरंत सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया नहीं जा सकता है, और अंत में, बहुत कुछ बड़े लाल अजगर द्वारा लूट और छीन लिया जाता है, जिससे कलीसिया को काफी नुकसान होता है और ज्यादा भाई-बहनों को पकड़ लिया जाता है। जब मसीह-विरोधी अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं तो यही परिणाम होता है। मसीह-विरोधियों के दिलों की गहराई में, उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा हमेशा सबसे ऊपर होती है। यह मुद्दा उनके दिलों में लगातार चिंता का विषय बना रहता है। वे मन-ही-मन सोचते हैं, ‘मुझे मुसीबत में नहीं पड़ना चाहिए। चाहे कोई भी पकड़ा जाए, बस मैं न पकड़ा जाऊँ—मुझे जिंदा रहना है। मैं अभी भी परमेश्वर का कार्य पूरा होने पर परमेश्वर की महिमा में हिस्सा पाने का इंतजार कर रहा हूँ। अगर मैं पकड़ा गया, तो यहूदा की तरह बन जाऊँगा, और मेरे लिए सब खत्म हो जाएगा। मेरा परिणाम अच्छा नहीं होगा। मुझे दंडित किया जाएगा।’ इसलिए, जब भी वे काम करने के लिए किसी नई जगह जाते हैं, तो सबसे पहले यह जाँच-पड़ताल करते हैं कि किसके पास सबसे सुरक्षित और सबसे शक्तिशाली घर है, जहाँ वे सरकार की तलाशी से छिप सकें और सुरक्षित महसूस कर सकें। ... अपना डेरा जमाने और यह महसूस करने के बाद कि वे हानि से दूर हैं, और खतरा टल गया है, मसीह-विरोधी कुछ सतही काम करने में लग जाते हैं। मसीह-विरोधी अपनी व्यवस्थाओं में काफी सावधानी बरतते हैं, मगर यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे किसके साथ काम कर रहे हैं। वे अपने हितों से जुड़े मामलों के बारे में बहुत सावधानी से सोचते हैं, मगर जब बात कलीसिया के कार्य या उनके अपने कर्तव्यों की आती है, तो वे अपनी स्वार्थपरता और नीचता दिखाते हैं और कोई जिम्मेदारी नहीं उठाते, उनमें जरा भी जमीर या विवेक नहीं होता है। ठीक इन्हीं व्यवहारों के कारण उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित किया जाता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर ने कहा कि जब मसीह-विरोधियों पर खतरा आता है तो वे कभी भी परमेश्वर के घर के हितों या अपने भाई-बहनों की सुरक्षा के बारे में नहीं सोचते। इसके बजाय, वे अपने हितों और सुरक्षा को सबसे पहले रखते हैं। वे बेहद स्वार्थी और नीच हैं। अतीत में, मैंने ये वचन पढ़े थे लेकिन उन्हें कभी खुद से नहीं जोड़ा था। मैं मानती थी कि मैं ऐसी व्यक्ति हूँ जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करती है और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर सकती है। जब तथ्यों ने मुझे उजागर किया, केवल तब मुझे पता चला कि मैं कितनी स्वार्थी और नीच हूँ, और मैंने कलीसिया के काम की थोड़ी सी भी रक्षा नहीं की थी। जब मैंने सुना कि कुछ लोग यहूदा बन गए हैं, तो मुझे चिंता हुई कि अगर मैं बाद के काम को संभालती हूँ और बहुत से लोगों के संपर्क में आती हूँ, तो कोई धोखा दे देगा। खुद को बचाने के लिए, मैं यह कर्तव्य दूसरों पर थोपना चाहती थी ताकि मैं छिप सकूँ। मैंने देखा कि मैंने जो प्रकट किया वह एक मसीह-विरोधी का स्वभाव था। मेरे मन में अपनी देह के हितों के लिए हर तरह के घृणित विचार थे। मैं वास्तव में स्वार्थी, घृणित और दुर्भावनापूर्ण थी! परमेश्वर के घर ने इतने वर्षों तक मुझे विकसित किया, और मैंने परमेश्वर के बहुत से सत्यों के प्रावधान का आनंद लिया था, लेकिन महत्वपूर्ण क्षण में, मैंने परमेश्वर के घर के हितों की अनदेखी की। मेरे पास वास्तव में कोई अंतरात्मा नहीं थी! मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर देहधारी हुआ और हमें बचाने के लिए चीन आया, जहाँ शैतान का शासन है। उसे हर समय और हर जगह प्राणघातक खतरे का सामना करना पड़ा, लेकिन उसने कभी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में नहीं सोचा। इतने पर भी वह हमें सींचने और हमारे प्रावधान के लिए सत्य व्यक्त करने कलीसियाओं में अब भी आता-जाता है। हालांकि, इस प्रतिकूल वातावरण में मैंने केवल यही सोचा कि गिरफ्तारी और पीट-पीटकर मार डाले जाने से कैसे बचा जाए। कलीसिया के काम के बारे में मैंने बिल्कुल भी नहीं सोचा। मेरे मन में परमेश्वर के प्रति वफादारी बिल्कुल नहीं थी। जब मुझे इसका एहसास हुआ, तो मुझे अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी महसूस हुई। परमेश्वर के सामने मैंने दृढ़ निश्चय किया, “प्रिय परमेश्वर, मैं गलत थी। मुझे इस महत्वपूर्ण क्षण में परमेश्वर के घर के हितों की अनदेखी करते हुए खुद को बचाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी। मुझमें अंतरात्मा की बहुत कमी थी! प्रिय परमेश्वर, चाहे बाद के काम को संभालना कितना भी खतरनाक क्यों न हो, और भले ही पुलिस मुझे पकड़ ले और मुझे पीट-पीट कर मार डाले, मैं अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने की इच्छुक हूँ।”
इसके बाद, अपनी साथी बहन से इस बारे में चर्चा कर लेने के बाद, मैंने दूरदराज के इलाके में पुस्तकों की रखवाली कर रहे भाई से मिलने का प्रबंध किया ताकि पता चल सके कि क्या चल रहा था। उस समय तक उसकी पत्नी को रिहा कर दिया गया था, उसने विस्तार से जानकारी दी कि उसकी बेटी ने पुलिस को क्या-क्या बताया। उसकी बेटी ने न केवल लोगों को धोखा दिया, बल्कि वह पुलिस के लिए जासूसी करने पर भी सहमत हो गई थी। पुलिस ने उसकी बेटी से यह भी कहा, “अगर हम अगले कुछ दिनों तक तुम्हारे घर की तलाशी लें, तो हम गारंटी देते हैं कि हमें और भी कुछ मिल जाएगा।” जब मैंने यह सुना, तो चिंता से मेरा दिल जल उठा, “हमें पुस्तकों को जल्दी से जल्दी हटा देना चाहिए! पिछली बार, मैंने पुस्तकों को स्थानांतरित करने का सबसे अच्छा अवसर हाथ से जाने दिया था क्योंकि मैं खुद को बचा रहा थी। इस बार, मैं और देरी नहीं कर सकती। मैं पुस्तकों को स्थानांतरित करूंगी, भले ही यह करने में मुझे अपनी जान देनी पड़े!” इसलिए मैंने पुस्तकों को स्थानांतरित करने के लिए उनके साथ एक समय तय किया। जब पुस्तकों को स्थानांतरित करने का समय आया, तो मुझे एहसास नहीं हुआ कि उनके घर के सामने का रास्ता सँकरा है। हमने बड़ी मुश्किल से कार को अंदर पहुँचाया, लेकिन गेट के अंदर आते ही वह फँस गई। हम न अंदर जा सकते थे, न बाहर आ सकते थे। पड़ोसी का कुत्ता भौंकता रहा। दिल ही दिल में मैं घबराई और डरी हुई थी। “अगर पड़ोसी ने हमारी रिपोर्ट कर दी, तो कुछ ही मिनटों में पुलिस यहाँ आ जाएगी। फिर हमें क्या करना चाहिए?” मैंने अपने दिल में चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की। मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “इस या उस चीज से डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा सहायक बल है और तुम्हारी ढाल है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के वचनों ने मुझमें आस्था जगाई कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है और परमेश्वर अपने काम की रक्षा करेगा। प्रार्थना करने के बाद, हम फँसी हुई कार की दिशा को ठीक करने और उसे पीछे की ओर निकालने में सफल हो गए। इस तरह, हमने दो बार गाड़ी में पुस्तकें भरकर वहाँ से बाहर निकालीं। जब हमने पैकिंग शुरू की थी तब से लेकर आखिरी फेरे तक, हमें लगभग एक घंटा लगा। पड़ोसी का कुत्ता भौंकता रहा, लेकिन पड़ोसी एक बार भी बाहर नहीं आया। बाद में, हमने एक अन्य संरक्षक के घर से भी पुस्तकों को बिना परेशानी के सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया।
इस अनुभव के बाद, मैं अपने स्वार्थी और घृणित शैतानी स्वभाव के बारे में कुछ समझ सकी, और मैं समझ गई कि किसी व्यक्ति की नियति और अंतिम परिणाम परमेश्वर के हाथ में है। किसी व्यक्ति को जो करना चाहिए वह है अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना। भले ही उसे गिरफ्तार कर लिया जाए और जेल में डाल दिया जाए या पीट-पीटकर मार डाला जाए, फिर भी वह सार्थक और मूल्यवान है। जब मैं अपना जीवन त्यागने को तैयार थी और अपने लाभ-हानि के बारे में सोचना बंद कर दिया, तो मैंने परमेश्वर की संप्रभुता देखी। मेरी परमेश्वर में आस्था और बढ़ गई!