72. उत्पीड़न और क्लेश के अनुभव से मैंने जो सबक सीखे

चेन वेन, चीन

2022 में मैं कलीसिया में नवागतों का सिंचन कर रही थी। अगस्त की शुरुआत में मुझे पता चला कि सीसीपी ने हमारे सभी जिला अगुआओं को गिरफ्तार कर लिया है। जैसे ही मैंने यह खबर सुनी, मैं चौंक गई। “ये सभी अगुआ गिरफ्तार कैसे हो गए? कलीसिया के कार्य का क्या होगा?” तब मुझे याद आया कि उनकी गिरफ्तारी के दिन सुबह जिले के दो अगुआ मेरे घर आए थे और हम साथ मिलकर नवागतों का सिंचन करने गए थे। मैं उनसे लगातार संपर्क में थी। क्या सीसीपी मेरी निगरानी भी करेगी? कुछ समय बाद ही मैंने सुना कि और भी भाई-बहन गिरफ्तार हो गए हैं। गिरफ्तार किए गए लगभग सभी लोग मेरे घर आ चुके थे। अगर वे अपनी गवाही में दृढ़ नहीं रह पाए और मुझे धोखा दे दिया तो मैं बहुत खतरनाक स्थिति में पड़ जाऊँगी। इसके अलावा जब मैंने पहली बार परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया था तो मेरी रिपोर्ट कर दी गई थी, इसलिए पिछले कुछ सालों से पुलिस लगातार मेरी तलाश कर रही थी। अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो पुलिस निश्चित रूप से मुझे आसानी से नहीं जाने देगी। मुझे पहले कैंसर था और ऑपरेशन हो चुका था जिससे मेरी सेहत कमजोर हो गई थी। मैं यातना कैसे झेल पाऊँगी? इसके तुरंत बाद मुझे एक पत्र मिला। पत्र में लिखा था कि एक गिरफ्तार हुई अगुआ ने जिसे हाल ही में रिहा किया गया है, कहा है कि पुलिस उस क्षेत्र की निगरानी कर रही है जहाँ मैं रहती हूँ और मुझे घर छोड़कर जल्द से जल्द छिपने को कहा है। खबरों की इस लगातार बमबारी ने मुझे डर में जीने पर मजबूर कर दिया। मैंने जल्दी से अपना सामान समेटा और घर बदल लिया। मैंने मन ही मन सोचा, “मुझे घर पर ही रहना चाहिए, मैं अब कहीं भी बाहर नहीं आ-जा सकती।” लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि मैं सिंचन टीम की अगुआ हूँ। अब जबकि लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर अत्याचार किया गया है तो नवागतों का सिंचन करना और उन्हें सहारा देना जरूरी है। इस समय सबसे जरूरी काम उन नवागतों को अच्छे से सहारा देना था। लेकिन जब मैं नवागतों का सिंचन करने जाऊँगी, पुलिस मेरा पीछा तो नहीं करेगी? सीसीपी की निगरानी चप्पे-चप्पे पर है। अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया जाता है और मैं गवाही में दृढ़ रहने के बजाय यहूदा बन जाती हूँ तो क्या इतने बरसों का मेरा विश्वास व्यर्थ नहीं हो जाएगा? फिर मुझे कभी ऐसी अच्छी मंजिल कैसे मिलेगी? गिरफ्तारी से बचने के लिए बहन शियाओल ने अभी-अभी सिंचन कर्तव्य करने का प्रशिक्षण लेना शुरू किया था, मैंने उससे नवागतों के साथ सभा करने को कहा।

एक बार शियाओल ने सभा से वापस आकर बताया कि एक नवागत गिरफ्तारी के डर से अब परमेश्वर में विश्वास रखने की हिम्मत नहीं कर पा रही है। साथ ही एक नवागत इस बात को लेकर परेशान है कि गिरफ्तार होने से उसके बच्चे के भविष्य पर असर पड़ेगा, इसलिए अब वह भी विश्वास रखने का साहस नहीं कर पा रही है। जब मैंने यह सुना तो मैं वाकई चिंतित हो गई। मुझे पता था कि शियाओल को परमेश्वर में विश्वास रखते हुए थोड़ा ही समय हुआ है और इससे पहले उसने कभी नवागतों का सिंचन नहीं किया है। वह नवागतों की कुछ समस्याओं और दशाओं को पूरी तरह से हल करने में सक्षम नहीं थी। इन नवागतों की समस्याओं को सत्य पर संगति करके जल्दी से हल किया जाना था। वरना उनके कलीसिया से अलग होने का खतरा था। लेकिन अगर मैं नवागतों का सिंचन करने बाहर निकली तो मुझे कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता है। मुझे एक बड़ी बीमारी हो चुकी थी। मैं पुलिस की यातना कैसे झेल पाऊँगी? मेरी आँखों के सामने भाई-बहनों को यातना दिए जाने के दृश्य घूम गए : पुलिस ने उन्हें उल्टा लटकाकर पीटा था, उन पर उबलता पानी उँड़ेला था और बिजली के झटके दिए थे। उन्होंने यातना देने का हर घृणित तरीका इस्तेमाल किया था। गिरफ्तार होने के बाद बहुत से भाई-बहनों को यातना दी गई थी। कुछ तो अपाहिज हो गए थे और कुछ को पीट-पीटकर मार डाला गया था। अगर पुलिस ने मुझे गिरफ्तार किया और यातना देकर मार डाला तो मैं उद्धार का अपना मौका गँवा बैठूँगी। मैं जितना सोचती उतनी ही डर जाती। मैंने सोचा, “नवागतों को सहारा देने के लिए शायद शियाओल को भेजना बेहतर होगा। वह परमेश्वर की विश्वासी के रूप में प्रसिद्ध नहीं है।” लेकिन जब मैंने इस तरह सोचा तो मुझे थोड़ा असहज महसूस हुआ, “शियाओल ने अभी-अभी नवागतों को सिंचित करने का प्रशिक्षण शुरू किया है। वह नवागतों की समस्याओं के बारे में बहुत स्पष्ट रूप से संगति करने में सक्षम नहीं है। अगर नवागत सत्य नहीं समझे तो वे कलीसिया छोड़ सकते हैं और उनके जीवन को नुकसान हो सकता है। साथ ही ये नवागत हमेशा से मेरी जिम्मेदारी रहे हैं। दूसरे लोग उनकी स्थितियाँ नहीं समझते। मेरे लिए सबसे उपयुक्त यही है कि मैं जाकर उन्हें सहारा दूँ। अगर मैं अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के कारण उन्हें दर-किनार कर दूँ और उन पर ध्यान न दूँ तो क्या यह मेरा अपने कर्तव्य के प्रति गैर-जिम्मेदार होना नहीं होगा?” लेकिन मुझे बाहर जाने पर गिरफ्तार होने का डर था। इस दुविधा में फँसी होने पर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मार्गदर्शन माँगा ताकि मैं इस माहौल में कलीसिया के कार्य की रक्षा कर सकूँ। प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “शैतान चाहे जितना भी ‘ताकतवर’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और साजिशें जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं के प्रति समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदिनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानवजाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि शैतान चाहे कितना भी बेकाबू क्यों न हो, वह हमेशा परमेश्वर के हाथों में ही रहता है। उसे परमेश्वर के निर्देश और आदेश मानने ही होंगे। परमेश्वर की अनुमति के बिना वह पानी की एक बूँद या जमीन पर पड़े रेत के एक कण को भी छूने की हिम्मत नहीं कर सकता। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था दी कि सभी चीजें और घटनाएँ परमेश्वर द्वारा नियंत्रित होती हैं। मेरा गिरफ्तार होना या न होना परमेश्वर पर निर्भर था। अब इन नवागतों की समस्याओं का तत्काल समाधान करने की आवश्यकता थी। मैं केवल अपनी सुरक्षा के बारे में नहीं सोच सकती थी। नवागतों की समस्याओं का समाधान करना बहुत जरूरी था। अगली बार होने वाली नवागतों की सभा में मुझे जाना था। अगर मुझे वाकई गिरफ्तार कर लिया गया तो इसमें परमेश्वर की अनुमति होगी। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान चाहे कितना भी बेकाबू हो जाए, मैं सुरक्षित रहूँगी। सभा के दिन मैं जल्दी निकल गई और सभा स्थल पर जाने से पहले आसपास कई चक्कर लगाए। सभा में परमेश्वर के वचन पढ़कर और अनुभवजन्य समझ के बारे में संगति के जरिए नवागतों ने परमेश्वर के इरादे समझे और अब वे उतने भयभीत और डरे हुए नहीं थे। उनके चेहरों पर मुस्कान आ गई और उनकी दशा बदल गई। मुझे दिल में खुशी और शांति महसूस हुई।

मैंने 2023 में कलीसिया में अगुआ का कर्तव्य निभाना शुरू कर दिया। 6 जुलाई की दोपहर को मेरी सहयोगी बहन गाओ ली तीन नवागतों के साथ सभा कर रही थी जो उसकी गिरफ्तारी के समय अगुआ और उपयाजक थे। जब मैंने यह खबर सुनी तो मेरा कलेजा मुँह को आ गया। “मैं लगभग हर दिन गाओ ली के घर जाती हूँ और अक्सर इन तीन नवागतों से मिलती हूँ। इन नवागतों ने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास नहीं रखा है और सत्य की उनकी समझ भी बहुत कम है। क्या ये पुलिस के उत्पीड़न का सामना कर अपनी गवाही में दृढ़ रह पाएँगे? अगर ये उत्पीड़न नहीं सह पाए और यहूदा बनकर मुझे धोखा दे बैठे तो? मैं तो पहले से ही बीमार हूँ, अगर गिरफ्तार हो गई तो पुलिस का उत्पीड़न कैसे सह पाऊँगी?!” उन दिनों मुझे अक्सर ऐसे पत्र मिला करते थे जिनमें लिखा होता था कि फ्लाँ भाई या बहन जिसके मैं संपर्क में थी, उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। मुझे लगता मैं कभी भी गिरफ्तार की जा सकती हूँ और मैं अपने दिल को शांत नहीं कर पाती थी। मैं हर दिन तनाव में डूबी रहती थी। मैं बस कोई ऐसी जगह ढूँढ़कर छिप जाना चाहती थी जहाँ मेरा चेहरा न दिखे। लेकिन फिर मैं सोचती, मैं कलीसिया में अगुआ हूँ और बाद की स्थिति को संभालना मेरी जिम्मेदारी है। खास तौर पर गाओ ली को उन घरों की जानकारी थी जहाँ परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें सुरक्षित रखी गई थीं। पुस्तकों को जितनी जल्दी हो सके वहाँ से हटाना जरूरी था। लेकिन उस समय का माहौल बहुत प्रतिकूल था, हर जगह निगरानी थी। अगर पुस्तकें हटाते हुए पुलिस मुझे ढूँढ़ लेती तो परिणाम इतने भयानक होते कि सोच भी नहीं सकते! दूसरे यह कि मैं कलीसिया में अगुआ भी थी। अगर पुलिस को मेरे अगुआ होने का पता चल जाता तो वह यकीनन मुझे यातना देकर मौत के कगार पर पहुँचा देती। जैसे ही मुझे उन दृश्यों का ख्याल आया जहाँ पुलिस ने भाई-बहनों का उत्पीड़न किया था, मैं डर से काँप उठी। अगर पुलिस ने मुझे पीट-पीटकर मार डाला तो मैं हमेशा के लिए उद्धार पाने का अपना मौका खो दूँगी और परमेश्वर में मेरे इतने सालों का विश्वास व्यर्थ चला जाएगा। लेकिन अगर गाओ ली यातना न सह पाई और यहूदा बन गई और परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें समय पर हटाई न गईं तो वे पुलिस के हाथों में पड़ सकती थीं। तब वह मेरा अपने कर्तव्य की उपेक्षा करना होगा। यह एक गंभीर अपराध होगा! परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को स्थानांतरित करने में एक पल की भी देरी नहीं की जा सकती थी। उस रात मैंने परमेश्वर से कई बार प्रार्थना की, मैंने खुद को जाँचा और देखा कि मैं डर में जी रही हूँ, अपना चेहरा दिखाने से डर रही हूँ जो कि परमेश्वर के इरादों के अनुरूप नहीं है, डर और भय शैतान की चाल है। मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा जिसे मैंने अक्सर पढ़ा था : “अब मैं तुम्हारी निष्ठा और समर्पण, तुम्हारा प्रेम और गवाही चाहता हूँ। यहाँ तक कि अगर तुम इस समय नहीं जानते कि गवाही क्या होती है या प्रेम क्या होता है, तो तुम्हें अपना सब-कुछ मेरे पास ले आना चाहिए और जो एकमात्र खजाना तुम्हारे पास है : तुम्हारी निष्ठा और समर्पण, उसे मुझे सौंप देना चाहिए। तुम्हें जानना चाहिए कि मेरे द्वारा शैतान को हराए जाने की गवाही मनुष्य की निष्ठा और समर्पण में निहित है, साथ ही मनुष्य के ऊपर मेरी संपूर्ण विजय की गवाही भी। मुझ पर तुम्हारी आस्था का कर्तव्य है मेरी गवाही देना, मेरे प्रति वफादार होना और किसी और के प्रति नहीं और अंत तक समर्पित बने रहना। इससे पहले कि मैं अपने कार्य का अगला चरण आरंभ करूँ, तुम मेरी गवाही कैसे दोगे? तुम मेरे प्रति वफादार और समर्पित कैसे बने रहोगे? तुम अपने कार्य के प्रति अपनी सारी निष्ठा समर्पित करते हो या उसे ऐसे ही छोड़ देते हो? इसके बजाय तुम मेरे प्रत्येक आयोजन (चाहे वह मृत्यु हो या विनाश) के प्रति समर्पित हो जाओगे या मेरी ताड़ना से बचने के लिए बीच रास्ते से ही भाग जाओगे?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम आस्था के बारे में क्या जानते हो?)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं परमेश्वर के इरादे समझ गई। इस समय परमेश्वर मेरी पड़ताल कर रहा था कि क्या मैं शैतान के सामने गवाही दे सकती हूँ, क्या मैं परमेश्वर के प्रति वफादार और आज्ञाकारी हूँ। अब माहौल खतरनाक था और परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को तत्काल स्थानांतरित करने की आवश्यकता थी। कलीसिया में अगुआ होने के नाते मुझे बिना किसी हिचकिचाहट के यह काम करना चाहिए। मैंने सोचा कि सीसीपी कितनी दुष्ट, नीच और षड्यंत्रों से भरी हुई है। मुझे नहीं पता था कि गिरफ्तार किए गए भाई-बहन पुलिस की धमकियों और प्रलोभनों के चलते दृढ़ रह पाएँगे या नहीं। मुझे जल्द से जल्द बाद की स्थिति को संभालना था। पुस्तकों के स्थानांतरण को एक पल के लिए भी रोका नहीं जा सकता था। मैं अब और देरी नहीं कर सकती थी। मैंने उपदेशक के साथ पुस्तकों को स्थानांतरित करने के तरीके पर तत्काल चर्चा की, परमेश्वर से प्रार्थना की और मामले को उसके हाथों में सौंप दिया। परमेश्वर की सुरक्षा में हमने परमेश्वर के वचनों की सभी पुस्तकों को सुरक्षित तरीके से वहाँ से स्थानांतरित कर दिया। तब जाकर मैंने राहत की साँस ली।

बाद में मुझे एक और पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि बहन ली जी को भी गिरफ्तार कर लिया गया है, गिरफ्तारी के तीन दिन बाद एक और बहन को पीट-पीटकर मार डाला गया है, पुलिस लगातार कलीसिया में भाई-बहनों का पीछा कर रही है और उन्हें गिरफ्तार कर रही है। जब मैंने ये समाचार सुने तो मुझे फिर से चिंता होने लगी। अगर मुझे गिरफ्तार कर यातना दी गई और पीट-पीटकर मार डाला गया तो? अनायास ही मेरा दिल थोड़ा कायर और भयभीत हो गया। मैंने सोचा कि मैं अब बाहर नहीं जा सकती, मुझे घर में ही छिपे रहना चाहिए। मुझे एहसास हुआ कि इन विचारों को प्रकट करना गलत है और मैं आत्म-चिंतन करने लगी। मैं इतनी कायरता और भय में क्यों जीती हूँ, जैसे ही कोई खतरनाक स्थिति मेरे सामने आती है मैं भाग क्यों जाना चाहती हूँ? मैंने अपनी दशा के बारे में परमेश्वर से प्रार्थना की। प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “अपनी सुरक्षा पर ध्यान देने के अलावा कुछ मसीह-विरोधी और क्या सोचते हैं? ... जैसे ही वे यह सुनते हैं कि किसी अगुआ की रिपोर्ट पुलिस में इसलिए की गई क्योंकि वह किसी असुरक्षित जगह पर रह रहा था या कोई अगुआ बड़े लाल अजगर के जासूसों के चंगुल में इसलिए फँस गया कि वह अपना कर्तव्य निभाने के लिए अक्सर बाहर जाता और बहुत से लोगों से मिलता-जुलता था और आखिरकार कैसे इन लोगों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया तो वे तुरंत डर जाते हैं। वे सोचते हैं, ‘अरे नहीं, क्या पता इसके बाद मुझे ही गिरफ्तार किया जाए? मुझे इससे सीखना चाहिए। मुझे ज्यादा सक्रिय नहीं रहना चाहिए। अगर मैं कलीसिया के कुछ काम करने से बच सकता हूँ तो मैं उसे नहीं करूँगा। अगर मैं अपना चेहरा दिखाने से बच सकूँ तो मैं नहीं दिखाऊँगा। मैं अपना काम जितना हो सके उतना कम करूँगा, बाहर निकलने से बचूँगा, किसी से मिलने-जुलने से बचूँगा और यह पक्का करूँगा कि किसी को भी मेरे अगुआ होने की खबर न हो। आजकल, कौन किसी और की परवाह कर सकता है? सिर्फ जिंदा रहना भी अपने आप में एक चुनौती है!’ जबसे वे अगुआ बने हैं, बैग उठाकर छिपते फिरने के अलावा कोई काम नहीं करते। वे हमेशा पकड़े जाने और जेल जाने के निरंतर डर के साये में जीते हैं। मान लो वे किसी को यह कहते हुए सुन लें, ‘अगर तुम पकड़े गए तो तुम्हें मार दिया जाएगा! अगर तुम अगुआ न होते, अगर तुम बस एक साधारण विश्वासी होते तो तुम्हें छोटा-सा जुर्माना भरने के बाद शायद छोड़ दिया जाता, मगर चूँकि तुम अगुआ हो, इसलिए कुछ कहना मुश्किल है। यह बहुत खतरनाक है! पकड़े गए कुछ अगुआओं या कर्मियों ने जब कोई जानकारी नहीं दी तो पुलिस ने उन्हें पीट-पीटकर मार डाला।’ जब वे किसी के पीट-पीटकर मार दिए जाने के बारे में सुनते हैं तो उनका डर और बढ़ जाता है, वे काम करने से और भी ज्यादा डरने लगते हैं। हर दिन वे बस यही सोचते हैं कि पकड़े जाने से कैसे बचें, दूसरों के सामने आने से कैसे बचें, निगरानी से कैसे बचें और अपने भाई-बहनों के संपर्क से कैसे बचें। वे इन चीजों के बारे में सोचने में अपना दिमाग खपाते हैं और अपने कर्तव्यों को बिल्कुल भूल जाते हैं। क्या ये निष्ठावान लोग हैं? क्या ऐसे लोग कोई काम सँभाल सकते हैं? (नहीं, वे नहीं सँभाल सकते।) इस तरह के लोग बस डरपोक होते हैं और हम यकीनन सिर्फ इस अभिव्यक्ति के आधार पर उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित नहीं कर सकते, मगर इस अभिव्यक्ति की प्रकृति क्या है? इस अभिव्यक्ति का सार एक छद्म-विश्वासी का सार है। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों की सुरक्षा कर सकता है और वे यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर की खातिर खुद को खपाने के लिए समर्पित होना खुद को सत्य के लिए समर्पित करना है और यह एक ऐसी चीज है जिसे परमेश्वर स्वीकृति देता है। वे अपने दिलों में परमेश्वर का भय नहीं मानते; वे केवल शैतान और दुष्ट राजनीतिक दलों से डरते हैं। वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते, वे यह नहीं मानते कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है और यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर एक ऐसे व्यक्ति को स्वीकृति देगा जो परमेश्वर की खातिर, परमेश्वर के मार्ग पर चलने की खातिर और परमेश्वर का आदेश पूरा करने की खातिर सब कुछ खपाता है। वे इनमें से कुछ भी नहीं देख पाते। वे किसमें विश्वास करते हैं? वे यह विश्वास करते हैं कि अगर वे बड़े लाल अजगर के हाथ लग गए तो उनका बुरा हश्र होगा, उन्हें सजा हो सकती है या यहाँ तक कि अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। अपने दिलों में वे केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं। क्या ये छद्म-विश्वासी नहीं हैं? (हाँ, वे हैं।) बाइबल में क्या कहा गया है? ‘जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा’ (मत्ती 10:39)। क्या वे इन वचनों पर विश्वास करते हैं? (नहीं, वे नहीं करते।) अगर उनसे अपना कर्तव्य निभाते समय जोखिम उठाने को कहा जाए तो वे खुद को कहीं छिपाना चाहेंगे और किसी को भी उन्हें नहीं देखने देंगे—वे अदृश्य होना चाहेंगे। वे इस हद तक डरे हुए होते हैं। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर मनुष्य का सहारा है, कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, कि अगर कुछ वाकई गलत हो जाता है या वे पकड़े जाते हैं तो यह परमेश्वर की अनुमति से हो रहा है और लोगों के पास समर्पण वाला दिल होना चाहिए। इन लोगों के पास ऐसा दिल, ऐसी समझ या यह तैयारी नहीं है। क्या वे वाकई परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? (नहीं, वे नहीं रखते।) क्या इस अभिव्यक्ति का सार एक छद्म-विश्वासी का सार नहीं है? (हाँ, ऐसा है।)” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर ने ठीक मेरी दशा उजागर कर दी। जब से मैंने सुना कि मेरी सहयोगी बहन को गिरफ्तार कर लिया गया है, मैं तनाव और आतंक में जीने लगी थी। मुझे पता था कि मैं कलीसिया में अगुआ हूँ, कोई खतरनाक माहौल बनने पर मेरी पहली प्राथमिकता थी परमेश्वर की भेंटों और परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों की रक्षा करना। लेकिन फिर मैंने सोचा कि वर्तमान माहौल बहुत खतरनाक है, हर जगह निगरानी है। अगर मैंने इस तरह के माहौल में इतनी सारी किताबें स्थानांतरित कीं तो जैसे ही पुलिस मुझे गिरफ्तार करेगी, वह मुझे आसानी से जाने नहीं देगी। अगर मुझे अपाहिज होने तक पीटा गया या फिर पीट-पीटकर मार डाला गया तो मैं पूरी तरह से उद्धार का मौका खो दूँगी। जब मैंने इन भयानक परिणामों के बारे में सोचा तो मैं किताबों को स्थानांतरित करने की हिम्मत नहीं कर पाई। मैं यह काम उपदेशक पर थोप देना चाहती थी। इस महत्वपूर्ण मोड़ पर मैंने केवल अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में सोचा। मेरा दिमाग अपने हितों से भरा हुआ था, मैंने कलीसिया के हितों के बारे में कोई विचार नहीं किया। मैं बहुत स्वार्थी और नीच थी, मुझमें मानवता नहीं थी! इस माहौल के हमारे सामने आने से पहले मैं अक्सर भाई-बहनों के साथ इस बारे में संगति करती थी कि बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के कार्य के लिए सेवा प्रदान करने का एक साधन मात्र है, परमेश्वर लोगों को प्रकट करने और उन्हें पूर्ण बनाने के लिए बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का उपयोग करता है। लेकिन जब खतरा मुझ पर आया तो उसने मुझे प्रकट कर दिया। मैं पूरे दिन भय और डर में जीती थी। मुझे डर था कि पुलिस मुझे यातना देकर मार डालेगी। मुझे परमेश्वर में सच्चा विश्वास नहीं था। मैंने देखा कि आम तौर पर मैं शब्दों और धर्म-सिद्धांतों पर ही संगति करती थी। मुझे परमेश्वर में जरा-सी भी आस्था नहीं थी। मैं एक छद्म-विश्वासी थी जिसे परमेश्वर ने उजागर कर दिया!

बाद में मैंने आत्म-चिंतन किया। जब भी मेरे लिए कोई खतरनाक माहौल बनता तो मैं हमेशा अपना कर्तव्य दूसरों पर क्यों थोप देना चाहती थी? किस प्रकृति सार की वजह से ऐसा होता था? खोज करते हुए मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और घिनौने होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं होती, परमेश्वर के प्रति निष्ठा तो बिल्कुल नहीं होती; जब उनके सामने कोई मसला आता है तो वे केवल अपना बचाव और अपनी सुरक्षा करते हैं। उनके लिए अपनी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी और कुछ नहीं है। अगर वे जिंदा रह सकें और गिरफ्तार न हों तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया के काम को कितना नुकसान हुआ है। ... मसीह-विरोधी कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चढ़ावे को छोड़कर भाग जाते हैं और वे गिरफ्तारी के बाद की स्थिति को सँभालने के लिए लोगों की व्यवस्था नहीं करते। यह बड़े लाल अजगर को परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों को अपने कब्जे में लेने की अनुमति देने के समान है। क्या यह परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों के साथ गुप्त विश्वासघात नहीं है? जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं और खुद को बचाने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम कर जाते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य करने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए व्यक्ति को अपना कर्तव्य निभाने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें व्यक्ति को बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन उसे अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और यह सबसे पहले आता है। मसीह-विरोधी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं; उनका मानना है कि किसी और चीज का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब किसी दूसरे के साथ कुछ होता है तो वे परवाह नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो। जब तक खुद मसीह-विरोधियों के साथ कुछ बुरा नहीं होता, तब तक वे आराम से बैठे रहते हैं। वे निष्ठारहित होते हैं, जो मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार से निर्धारित होता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर ने उजागर किया कि मसीह-विरोधी खतरे के समय पर केवल अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में ही सोचते हैं। वे यह नहीं सोचते कि कहीं परमेश्वर के घर के हितों को तो नुकसान नहीं पहुँच रहा और अपने भाई-बहनों की सुरक्षा पर ध्यान नहीं देते। वे बहुत स्वार्थी और नीच होते हैं! जब मैंने अपने द्वारा प्रकट किए गए स्वभाव की तुलना मसीह-विरोधी के स्वभाव से की तो पाया कि दोनों में समानता है। मैं “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” के विष के अनुसार जी रही थी। खतरनाक माहौल में मैं पहले अपने हितों के बारे में सोचती थी। एक साल पहले हमारी कलीसिया में ऐसा ही एक माहौल बन गया था। मुझे चिंता हुई कि मुझे गिरफ्तार कर यातना दी जाएगी, इसलिए मैं नवागतों का सिंचन करने के लिए बाहर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। इसका मतलब था कि नवागतों की समस्याओं का समय पर समाधान नहीं हो सकता था। जब मेरी सहयोगी बहन और कई अगुआओं, उपयाजकों को गिरफ्तार कर लिया गया तो मुझे तुरंत उसके बाद के हालात को संभालना था। लेकिन मुझे अभी भी यही डर था कि मुझे गिरफ्तार कर यातना दी जाएगी और पीट-पीटकर मार डाला जाएगा, इसलिए मैं अपना कर्तव्य दूसरों पर थोप देना चाहती थी। कलीसिया में अगुआ होने के नाते कलीसिया के हितों और भाई-बहनों की सुरक्षा करना मेरी जिम्मेदारी थी। लेकिन जब मेरे सामने एक खतरनाक माहौल आया तो मैं लगातार उस लड़ाई से भाग जाना चाहती थी, केवल अपनी जान बचाने और अपना कर्तव्य दूसरों पर थोप देने के बारे में सोच रही थी। मैं कायरतापूर्वक मौत से डरकर और लालची बनकर हर कीमत पर जीवन से चिपकी हुई थी। मुझे केवल अपनी देह की परवाह थी। मैं बहुत ज्यादा स्वार्थी और नीच थी। मुझमें परमेश्वर के प्रति कोई निष्ठा नहीं थी। मैंने विचार किया कि परमेश्वर शैतान की ताकत से मानवता को पूरी तरह से बचाने के लिए व्यक्तिगत रूप से शेर की माँद में प्रवेश कर अपने जीवन को जोखिम में डालता है। चीन की सत्तारूढ़ पार्टी लगातार परमेश्वर का पीछा करती आ रही है, लेकिन उसने कभी भी हमारा उद्धार करना नहीं छोड़ा, बल्कि वह हमारा मार्गदर्शन करने के लिए निंरतर बोल रहा है और वचन व्यक्त कर रहा है। लोगों के लिए परमेश्वर का प्रेम बहुत विशाल है! जो लोग वास्तव में परमेश्वर के प्रति वफादार होते हैं, वे परमेश्वर के घर के हितों को प्राथमिकता देते हैं। भले ही उन्हें जोखिम उठाना पड़े, वे उसके बाद की स्थिति को अच्छे से संभालते हैं। मैंने परमेश्वर के वचनों के प्रावधान और चरवाही का आनंद लिया है, लेकिन कभी परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना नहीं जाना और परमेश्वर के प्रेम के प्रतिदान की नहीं सोची। मुझमें वाकई जमीर और विवेक नहीं था! मैं मसीह-विरोधी से अलग नहीं थी : मैं स्वार्थी, नीच और पूरी तरह से मानवता से रहित थी। अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया तो परमेश्वर की घृणा की पात्र बन जाऊँगी और हटा दी जाऊँगी। जब मुझे इसका एहसास हुआ तो मैं प्रार्थना करने के लिए तुरंत घुटनों के बल बैठ गई, “प्रिय परमेश्वर, जब भी मैं किसी खतरनाक माहौल का सामना करती हूँ तो मैं केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचती हूँ। मैं कलीसिया के हितों या भाई-बहनों की सुरक्षा के बारे में नहीं सोचती। मैं बहुत ही स्वार्थी और नीच हूँ! मेरा व्यवहार तुम्हारे लिए बहुत घृणित है! प्रिय परमेश्वर, मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव में नहीं जीना चाहती। मैं अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने के लिए तुम पर भरोसा करने को तैयार हूँ।”

बाद में मैंने गिरफ्तार किए जाने और पीट-पीटकर मार डाले जाने के अपने निरंतर भय की दशा से संबंधित परमेश्वर के वचनों के अंश खोजे। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपना कर्तव्य निभाया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी चीजें हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए जीवन सबसे अधिक प्रिय और संजोने योग्य होता है, सबसे बहुमूल्य होता है, और यही कारण है कि ये लोग मानवजाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में अपनी सबसे बहुमूल्य वस्तु—जीवन—अर्पित कर सके। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर के नाम को नहीं नकारा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में जब उसने उनसे उनके प्राणों की कीमत भी वसूल ली, तब भी उन्होंने अपना कर्तव्य नहीं छोड़ा। यही अपना कर्तव्य चरम सीमा तक पूरा करना है। इससे मेरा क्या आशय है? क्या मेरा आशय यह है कि तुम लोग भी परमेश्वर की गवाही देने और उसका सुसमाचार फैलाने के लिए इसी तरीके का उपयोग करो? तुम्हें हूबहू ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु तुम्हें समझना होगा कि यह तुम्हारा दायित्व है, यदि परमेश्वर ऐसा चाहे, तो तुम्हें इसे कुछ ऐसा मानकर स्वीकार करना चाहिए जिसे करने को तुम कर्तव्यबद्ध हो। आज लोगों के मन में भय और चिंता व्याप्त है, किंतु ये अनुभूतियां किस काम की हैं? यदि परमेश्वर तुमसे ऐसा करने के लिए न कहे, तो इसके बारे में चिंता करने का क्या लाभ है? यदि परमेश्वर को तुमसे ऐसा कराना है, तो तुम्हें इस उत्तरदायित्व से न तो मुँह मोड़ना चाहिए और न ही इसे ठुकराना चाहिए। तुम्हें आगे बढ़कर सहयोग करना और निश्चिंत होकर इसे स्वीकारना चाहिए। मृत्यु चाहे जैसे हो, किंतु उन्हें शैतान के सामने, शैतान के हाथों में नहीं मरना चाहिए। यदि मरना ही है, तो उन्हें परमेश्वर के हाथों में मरना चाहिए। लोग परमेश्वर से आए हैं, और उन्हें परमेश्वर के पास ही लौटना है—यही विवेक और रवैया सृजित प्राणियों में होना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रचार करना वह कर्तव्य है जिसे सभी विश्वासी पूरा करने को बाध्य हैं)। परमेश्वर के वचनों से मुझे परमेश्वर के इरादे और अपेक्षाएँ समझ आ गईं। अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपने जीवन का बलिदान देता है तो यह गवाही का सर्वोच्च स्वरूप है। परमेश्वर इसे स्वीकारता है। जब कोई व्यक्ति न्यायोचित कारण के लिए अपना जीवन देता है, भले ही देह की मृत्यु होती है, आत्मा और प्राण परमेश्वर के पास लौट जाते हैं। जैसा कि बाइबल कहती है : “जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा(मत्ती 10:39)। पतरस को परमेश्वर के लिए सूली पर उल्टा लटका दिया गया और उसने अपना दैहिक जीवन गँवा दिया, लेकिन उसने परमेश्वर की गवाही दी और अनंत जीवन प्राप्त किया। साथ ही जो भाई-बहन यहूदा बनने के बजाय बड़े लाल अजगर द्वारा यातना दिए जाने से मरना पसंद करते थे, उन्होंने परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपनी जान दे दी। इस प्रकार की मृत्यु को परमेश्वर याद रखता है। मुझे लगातार चिंता रहती थी कि मैं अपने कर्तव्य का पालन करते हुए पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर ली जाऊँगी और पीट-पीटकर मार डाली जाऊँगी : यह जीवन और मृत्यु की महत्ता को न समझना था। मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में है और परमेश्वर इस पर संप्रभु है; मेरे फेफड़ों में जो साँसें हैं, वो परमेश्वर ने दी हैं। मुझे अपना जीवन और मृत्यु परमेश्वर को सौंपकर उसके आयोजन और व्यवस्था के प्रति समर्पित हो जाना चाहिए। अगर पुलिस ने मुझे गिरफ्तार भी कर लिया और यातना देकर मार डाला तो यह मूल्यवान और महत्वपूर्ण होगा अगर मैं परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रह पाई। प्रभु यीशु ने कहा था : “जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्‍ट कर सकता है(मत्ती 10:28)। शैतान केवल किसी व्यक्ति के शरीर को नुकसान पहुँचा सकता है। सीसीपी भले ही हमें परमेश्वर में विश्वास रखने की वजह से यातना दे और हम शरीर में कष्ट सहें या शहीद भी हो जाएँ, फिर भी हम परमेश्वर के समक्ष गवाही में दृढ़ रहेंगे। इसे परमेश्वर स्वीकारता है। इस जीवन में मैं खुशकिस्मत रही कि मैंने परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार स्वीकारा, परमेश्वर के वचनों से बहुत प्रावधान और मार्गदर्शन प्राप्त किया। मैंने जीवन के रहस्यों और महत्ता को समझा, शैतान के नुकसान और चालों से बच गई। मैं सृष्टिकर्ता की देखभाल और सुरक्षा के अधीन जी पाई। ये चीजें परम आशीष हैं। अब अगर मैं मर भी जाती तो मेरा मरना सार्थक होता : यह जीवन व्यर्थ नहीं जाता। यह समझ लेने के बाद मैं पहले की तरह मृत्यु से बेबस नहीं थी। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करने, परमेश्वर पर भरोसा करने और उसके बाद के हालात को संभालने के लिए अपनी बुद्धि का उपयोग करने के लिए तैयार थी।

बाद में एक बहन ने मुझे बताया कि पुलिस को मेरा असली नाम पता चल गया था। जब मैंने यह खबर सुनी तो सोचा कि मुझे भविष्य में और भी अधिक सतर्क रहना होगा। लेकिन इसके तुरंत बाद ही उच्च अगुआओं का एक पत्र आया जिसमें कहा गया था कि कुछ कार्य तत्काल लागू किए जाने हैं और केवल मैं ही इस बारे में जानने वाले किसी व्यक्ति को ढूँढ़ सकती हूँ। मैंने विचार किया कि पुलिस को मेरी वास्तविक स्थिति के बारे में पता चल गया था और हर कोने पर निगरानी रखी जा रही थी। अगर मैं बाहर गई और मुझे गिरफ्तार कर पीट-पीटकर मार डाला गया तो क्या होगा? उस समय मुझे एहसास हुआ कि मेरी दशा फिर से गलत है। मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति की तो बात ही छोड़ दो(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। मुझे गिरफ्तार किया जाएगा या नहीं यह परमेश्वर पर निर्भर था। अगर मुझे गिरफ्तार किया भी गया तो वह मेरा गवाही में दृढ़ रहने का समय होगा। अगर पुलिस मुझे पीट-पीटकर मार भी डाले तो भी मैं खुशी-खुशी स्वीकारूँगी और समर्पण करूँगी। मैं कभी भी यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी। मेरा मार्गदर्शन करने और मुझे राह दिखाने वाले परमेश्वर के वचन मेरे साथ थे, मेरा घबराया हुआ दिल शांत हो गया, अब मैं कायर या डरी हुई नहीं थी। इसलिए मैंने अपना भेष बदला और बाहर जाकर बिना किसी झिझक के चीजों को व्यवस्थित किया। उस समय मेरा दिल सहज और शांत महसूस कर रहा था। हालाँकि इसके बाद भी माहौल काफी खतरनाक था, लेकिन परमेश्वर के वचनों का मार्गदर्शन पाकर मैं अब कायर या डरी हुई महसूस नहीं कर रही थी। इसके बजाय मैंने परमेश्वर पर भरोसा किया और अपना कार्य पूरा करने के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया, धीरे-धीरे कलीसिया का जीवन सामान्य हो गया।

इन हालात का अनुभव करने के बाद मैंने परमेश्वर की बुद्धि, सर्वशक्तिमत्ता देखी और व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर की संप्रभुता का अनुभव किया। मुझे अपनी स्वार्थी और नीच शैतानी प्रकृति की भी कुछ समझ हासिल हुई। मैंने जाना कि परमेश्वर से कैसे प्रार्थना करनी है और उस पर कैसे भरोसा करना है, मैंने महसूस किया कि परमेश्वर के साथ मेरा रिश्ता और निकट आ गया है। बड़ा लाल अजगर अभी भी पागलों की तरह भाई-बहनों को गिरफ्तार कर रहा है, लेकिन अब मैं गिरफ्तार होने के भय की दशा में नहीं जीती। मैं परमेश्वर के सभी आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने और क्लेशों के बीच अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने को तैयार हूँ। परमेश्वर का धन्यवाद!

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