84. परमेश्वर पर विश्वास करने के कारण जब मैं वॉन्टेड हो गई

ग्वांग चुन, चीन

जुलाई 2023 में, मैंने कलीसिया में अगुआ का कर्तव्य निभाना शुरू किया। अगस्त में, मैंने एक भाई के साथ सभा करने की योजना बनाई, लेकिन सभा से एक रात पहले, उसे गिरफ्तार कर लिया गया। यह खबर सुनकर, मैं थोड़ी घबरा गई, “अगर वह भाई सभा के लिए यहाँ आ जाता और पुलिस उसका पीछा करते हुए आ जाती, तो मैं भी गिरफ्तार हो जाती। बाल-बाल बची!” मैं सोचने लगी, “आजकल, पुलिस परमेश्वर में विश्वास करने वालों को पागलों की तरह गिरफ्तार कर रही है। अगर मैं काम के बारे में संगति करने के लिए लोगों से मिलना-जुलना जारी रखती हूँ, तो मुझे किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है। अब से, मैं घर से ही पत्रों के जरिए कलीसिया के काम का जायजा लूँगी। इस तरह, मेरी गिरफ्तारी का खतरा कम होगा।” इसलिए, मैंने भाई-बहनों से मिलने की अपनी योजनाएँ रद्द कर दीं। बाद में, एक यहूदा ने मेरे साथ विश्वासघात किया, इसलिए पुलिस को मेरी पहचान की जानकारी मिल गई और उन्हें पता चल गया कि मैं एक अगुआ हूँ। इसके तुरंत बाद, मुझे घर से एक पत्र मिला जिसमें लिखा था कि कई पुलिस अधिकारी मेरी तस्वीर लेकर मुझे गिरफ्तार करने के लिए मेरे घर आए थे। मेरे पिता ने कहा कि मैं घर पर नहीं थी, और पुलिस ने जवाब दिया, “अपनी बेटी से कहो कि वह वापस आकर पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण कर दे। अगर वह वापस नहीं आई, तो हम उसके लिए वॉन्टेड नोटिस जारी कर देंगे!” घर से आया पत्र पढ़ने के बाद, मेरा दिल बहुत भारी हो गया, “पुलिस जानती है कि मैं एक अगुआ हूँ और वे मेरी तस्वीर लेकर मुझे ढूँढ़ने मेरे घर गए हैं। वे मेरे लिए वॉन्टेड नोटिस भी जारी कर देंगे! अगर मैं पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर ली गई, तो वे कबूल करवाने के लिए मुझे निश्चित रूप से यातना देंगे, और मुझे कलीसिया के धन और भाई-बहनों के साथ विश्वासघात करने पर मजबूर करेंगे। अगर मैंने कुछ नहीं बताया, तो मैं पीटे जाने से मारी नहीं तो अपाहिज ज़रूर बना दी जाऊँगी! मेरी सेहत बहुत कमजोर है। मैं सीसीपी की यातना कैसे सह पाऊँगी? अगर मैं अपनी गवाही में अडिग नहीं रह पाई और यहूदा बन गई, तो मेरा परिणाम अच्छा नहीं होगा, और परमेश्वर में विश्वास करने के बावजूद, मेरा उद्धार नहीं होगा।” फिर जब मैंने सोचा कि कैसे गिरफ्तार होने के बाद भाई-बहनों को यातना दी जाती है, तो मैं बहुत डर गई, “अगुआ का कर्तव्य निभाना बहुत खतरनाक है। अगर मैं एक साधारण विश्वासी होती, तो मैं सीसीपी की गिरफ्तारी का मुख्य निशाना नहीं बनती, और मुझे मौत के खतरे का सामना नहीं करना पड़ता।” उस दौरान, मैं इस मामले को लेकर अक्सर चिंता और बेचैनी से भरी रहती थी। मैं बहुत डरती थी कि कहीं किसी दिन मैं पुलिस के हाथ लग जाऊँगी, और मैं अपना कर्तव्य करने के लिए अपने दिल को शांत नहीं कर पा रही थी।

सितंबर में एक सुबह, मुझे एक बहन का पत्र मिला, जिसने पहले मुझे अपने घर पर ठहराया था। उसने कहा कि मेरे उसके घर से चले जाने के बाद, एक रात 11 बजे के बाद, दस से ज़्यादा पुलिस अधिकारियों ने उसके घर को घेर लिया था। उसकी दरवाज़ा खोलने की हिम्मत नहीं हुई, इसलिए पुलिस ने कैंची लिफ्ट का इस्तेमाल किया और दूसरी मंजिल की खिड़की से सीधे अंदर आकर घर की तलाशी लेने लगे। उन्होंने कई घंटों तक तलाशी ली, लेकिन कुछ न मिलने पर वे चले गए। यह संदेश देखकर मेरे तो होश ही उड़ गए। मैं बस एक महीने पहले ही उस घर में रह रही थी। अगर मैं वहाँ से नहीं गई होती, तो मैं गिरफ्तार हो जाती। पुलिस अधिकारियों के एक दल को मुझे गिरफ्तार करने आते हुए सोचकर ही मैं डर गई, और मुझे लगा कि अगुआ होना बहुत जोखिम भरा है। मैं शिकायत किए बिना नहीं रह सकी, “अगर मैं अगुआ न होती तो बेहतर होता। तब पुलिस मुझे नहीं ढूँढ़ रही होती। अगर मैं गिरफ्तार हो गई, तो मुझे डर है कि मैं बच नहीं पाऊँगी। मैं अभी भी इतनी जवान हूँ, और परमेश्वर में विश्वास करके मैंने अभी तक सत्य नहीं पाया है। अगर पुलिस ने मुझे पीट-पीटकर मार डाला, तो क्या मैं उद्धार का मौका नहीं खो दूँगी? क्या परमेश्वर में विश्वास के इतने सालों में मैंने जो कुछ भी खपाया है, वह सब व्यर्थ नहीं हो जाएगा?” उन दिनों, मैं चिंता और डर में जी रही थी, और चाहती थी कि कोई और मेरा कर्तव्य सँभाल ले। मैंने सोचा कि इस तरह मैं सीसीपी द्वारा पीछा किए जाने और गिरफ्तार होने से बच सकती हूँ। लेकिन, कलीसिया में लोग लगातार गिरफ्तार हो रहे थे। कई अगुआ और कार्यकर्ता भी गिरफ्तार कर लिए गए। अगर मैं इस समय इस्तीफा दे देती, तो न केवल कलीसिया का काम प्रभावित होता, बल्कि मैं एक अपराध भी कर बैठती। मेरे ज़मीर ने मुझे इस्तीफा नहीं देने दिया, लेकिन मेरे दिल में कोई जोश नहीं था। उस समय, कलीसिया में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की कमी थी, और कुछ भाई-बहन गिरफ्तारी के डर से नकारात्मकता और कमजोरी में जी रहे थे। कार्य की विभिन्न मदें मूल रूप से ठप हो गई थीं। हालाँकि मैंने कलीसिया में ये सभी समस्याएँ देखीं, लेकिन उन्हें हल करने का मेरा मन नहीं था। इसके बजाय, मैं दिन भर चिंता में डूबी रहती थी, इस डर से कि कहीं किसी दिन मैं पुलिस के हाथ न लग जाऊँ और अंतहीन यातना न सहूँ। जब मैं डरपोक और असहाय महसूस कर रही थी, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, जब पुलिस ने मुझे वॉन्टेड लिस्ट में डाल दिया और मुझे गिरफ्तार करने की कोशिश की, तो मैं अब और अगुआ का कर्तव्य नहीं करना चाहती थी। मैं जानती हूँ कि इस तरह से अपना कर्तव्य करना आपके प्रति कोई वफादारी नहीं दिखाता है, लेकिन मुझे गिरफ्तार होने का भी डर है। हे परमेश्वर, मुझे प्रबुद्ध करो और मेरा मार्गदर्शन करो ताकि मैं समर्पण कर सकूँ।”

बाद में, मैंने एक बहन को अपनी अवस्था के बारे में खुलकर बताया। उस बहन ने मेरे लिए परमेश्वर के वचनों के दो अंश ढूँढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जब लोग परमेश्वर द्वारा आयोजित माहौल और उसकी संप्रभुता को स्पष्ट रूप से देख, समझ और स्वीकार कर उसके आगे समर्पण नहीं कर पाते, और जब लोग अपने दैनिक जीवन में तरह-तरह की मुश्किलों का सामना करते हैं, या जब ये मुश्किलें सामान्य लोगों के बरदाश्त के बाहर हो जाती हैं, तो अवचेतन रूप में उन्हें हर तरह की चिंता और व्याकुलता होती है, और यहाँ तक कि संताप भी हो जाता है। वे नहीं जानते कि कल कैसा होगा या परसों या उनका भविष्य कैसा होगा और इसलिए वे हर चीज के बारे में संतप्त, व्याकुल और चिंतित महसूस करते हैं। ऐसा कौन-सा संदर्भ है जो इन नकारात्मक भावनाओं को जन्म देता है? होता यह है कि वे परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास नहीं रखते—यानी वे परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास करने में और इसकी असलियत देख पाने में असमर्थ होते हैं, और उनके दिलों में परमेश्वर के लिए कोई सच्ची आस्था नहीं होती। यहाँ तक कि अपनी आँखों से देखने पर भी परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य को नहीं समझ सकते या उस पर यकीन नहीं कर सकते। वे नहीं मानते कि उनके भाग्य पर परमेश्वर की संप्रभुता है, वे नहीं मानते कि उनके जीवन परमेश्वर के हाथों में हैं और इसलिए उनके दिलों में परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति अविश्वास पैदा हो जाता है और फिर शिकायतें पैदा होती हैं और वे समर्पण नहीं कर पाते(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (3))। “अगर लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, तो वे इन मुश्किलों में फँस कर संताप, व्याकुलता और चिंता की नकारात्मक भावनाओं में नहीं डूबेंगे। इसके उलट अगर लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, तो ये मुश्किलें उनमें पहले की ही तरह मौजूद होती हैं, और परिणाम क्या होगा? ये तुम्हें उलझा देंगी ताकि तुम बच कर निकल न सको, और अगर तुम इन्हें दूर न कर पाओ, तो आखिरकार ये नकारात्मक भावनाएँ बन जाएँगी जो तुम्हारे अंतरतम में गाँठ बन कर पैठ जाएँगी; ये तुम्हारे सामान्य जीवन और तुम्हारे सामान्य कर्तव्य-निर्वहन को प्रभावित करेंगी, और ये तुम्हें दबा हुआ और छुटकारा पाने में असमर्थ महसूस करवाएँगी—तुम पर इनका यह परिणाम होगा(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (3))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मैं समझ गई कि मैं चिंता और बेचैनी में इसलिए जी रही थी क्योंकि मैं परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं समझती थी और उसके प्रति समर्पण नहीं कर पा रही थी। जब पुलिस ने मुझे वॉन्टेड लिस्ट में डाल दिया, तो मैं डर और खौफ में जी रही थी, इस डर से कि अगर मैं पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर ली गई और पीट-पीटकर मार डाली गई, तो मैं उद्धार का मौका खो दूँगी। खुद को बचाने के लिए, मैंने अगुआ के कर्तव्य से इस्तीफा देने के बारे में सोचा। मैं परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण करने को तैयार नहीं थी और मैंने परमेश्वर का इरादा नहीं खोजा, न ही मैंने सबक सीखने के लिए आत्म-चिंतन करके खुद को जाना। मुझे एहसास हुआ कि अगर मेरी अवस्था इसी तरह बनी रही, तो यह मेरे लिए बहुत खतरनाक होगा। परमेश्वर के वचनों के इन दो अंशों को पढ़ने के बाद, मैं परमेश्वर का इरादा समझ गई। मुझे अपनी अवस्था को सुलझाने के लिए सत्य खोजना था, और मैं नकारात्मक भावनाओं में जीती नहीं रह सकती थी; इससे मेरे जीवन प्रवेश और मेरे कर्तव्य पर असर पड़ता। बाद में, मैंने अपनी अवस्था को परमेश्वर के सामने लाकर प्रार्थना की, और परमेश्वर से विनती की कि इस परिवेश का अनुभव करने में वह मेरा मार्गदर्शन करे।

प्रार्थना करने के बाद, मैंने अपने दिल को शांत किया और इस दौरान की अपनी अवस्था के बारे में सोचने लगी। मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “अपनी सुरक्षा पर ध्यान देने के अलावा कुछ मसीह-विरोधी और क्या सोचते हैं? वे कहते हैं, ‘फिलहाल, हमारा परिवेश अनुकूल नहीं है, इसलिए हमें लोगों के सामने कम ही आना चाहिए और सुसमाचार का कम प्रचार करना चाहिए। इस तरह हमारे पकड़े जाने की संभावना कम होगी और कलीसिया का काम नष्ट नहीं होगा। अगर हम पकड़े जाने से बच गए तो हम यहूदा नहीं बनेंगे और फिर हम भविष्य में कायम रह पाएँगे, है ना?’ क्या ऐसे मसीह-विरोधी नहीं हैं जो अपने भाई-बहनों को गुमराह करने के लिए ऐसे बहाने बनाते हैं? कुछ मसीह-विरोधी मौत से बहुत डरते हैं और अपने घिनौने वजूद को घसीटते रहते हैं; उन्हें प्रतिष्ठा और रुतबा भी पसंद है और वे अगुआई की भूमिकाएँ निभाने के लिए तैयार रहते हैं। भले ही वे जानते हैं कि ‘अगुआ का काम आसान नहीं है—अगर बड़े लाल अजगर को पता चला कि मुझे अगुआ बना दिया गया है तो मैं मशहूर हो जाऊँगा और हो सकता है कि मुझे वांछित लोगों की सूची में डाल दिया जाए, और जैसे ही मैं पकड़ा जाऊँगा, मेरी जान खतरे में पड़ जाएगी,’ फिर भी इस रुतबे के लाभों में लिप्त होने की खातिर वे इन खतरों को नजरअंदाज कर देते हैं। जब वे अगुआ के रूप में काम करते हैं तो केवल अपने दैहिक आनंद में लिप्त रहते हैं और वास्तविक कार्य नहीं करते। विभिन्न कलीसियाओं के साथ थोड़े-बहुत पत्राचार के अलावा वे कुछ और नहीं करते हैं। वे किसी स्थान पर छिप जाते हैं और किसी से नहीं मिलते, खुद को बंद रखते हैं और भाई-बहनों को नहीं पता होता कि उनका अगुआ कौन है—ये अगुआ इतने अधिक डरे हुए होते हैं। तो क्या यह कहना सही नहीं है कि वे केवल नाम के अगुआ हैं? (सही है।) वे अगुआ के रूप में कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं; उन्हें बस खुद को छिपाने की परवाह होती है। जब दूसरे उनसे पूछते हैं, ‘अगुआ होना कैसा है?’ तो वे कहेंगे, ‘मैं बहुत व्यस्त रहता हूँ और अपनी सुरक्षा की खातिर मुझे घर बदलते रहना पड़ता है। यह परिवेश इतना अस्थिर करने वाला है कि मैं अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता।’ उन्हें हमेशा ऐसा लगता है कि उन पर बहुत सी नजरें गड़ी हुई हैं और वे नहीं जानते कि कहाँ छिपना सुरक्षित है। वेश बदलने, अलग-अलग जगहों पर खुद को छिपाने और एक स्थान पर टिके न रहने के अलावा वे प्रति दिन कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। क्या ऐसे अगुआ होते हैं? (हाँ।) वे किन सिद्धांतों का पालन करते हैं? ये लोग कहते हैं, ‘एक चालाक खरगोश के पास तीन बिल होते हैं। खरगोश को शिकारी जानवर के हमले से बचने के लिए तीन बिल बनाने पड़ते हैं ताकि वह खुद को छिपा सके। अगर किसी व्यक्ति का खतरे से सामना हो और उसे भागना पड़े, मगर उसके पास छिपने के लिए कोई जगह न हो तो क्या यह स्वीकार्य है? हमें खरगोशों से सीखना चाहिए! परमेश्वर के बनाए प्राणियों में जीवित रहने की यह क्षमता होती है और लोगों को उनसे सीखना चाहिए।’ अगुआ बनने के बाद से वे इस धर्म-सिद्धांत को समझ गए हैं और यहाँ तक मानते हैं कि उन्होंने सत्य को समझ लिया है। वास्तविकता में वे बहुत डरे हुए हैं। जैसे ही वे यह सुनते हैं कि किसी अगुआ की रिपोर्ट पुलिस में इसलिए की गई क्योंकि वह किसी असुरक्षित जगह पर रह रहा था या कोई अगुआ बड़े लाल अजगर के जासूसों के चंगुल में इसलिए फँस गया कि वह अपना कर्तव्य निभाने के लिए अक्सर बाहर जाता और बहुत से लोगों से मिलता-जुलता था और आखिरकार कैसे इन लोगों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया तो वे तुरंत डर जाते हैं। वे सोचते हैं, ‘अरे नहीं, क्या पता इसके बाद मुझे ही गिरफ्तार किया जाए? मुझे इससे सीखना चाहिए। मुझे ज्यादा सक्रिय नहीं रहना चाहिए। अगर मैं कलीसिया के कुछ काम करने से बच सकता हूँ तो मैं उसे नहीं करूँगा। अगर मैं अपना चेहरा दिखाने से बच सकूँ तो मैं नहीं दिखाऊँगा। मैं अपना काम जितना हो सके उतना कम करूँगा, बाहर निकलने से बचूँगा, किसी से मिलने-जुलने से बचूँगा और यह पक्का करूँगा कि किसी को भी मेरे अगुआ होने की खबर न हो। आजकल, कौन किसी और की परवाह कर सकता है? सिर्फ जिंदा रहना भी अपने आप में एक चुनौती है!’ जबसे वे अगुआ बने हैं, बैग उठाकर छिपते फिरने के अलावा कोई काम नहीं करते। वे हमेशा पकड़े जाने और जेल जाने के निरंतर डर के साये में जीते हैं। मान लो वे किसी को यह कहते हुए सुन लें, ‘अगर तुम पकड़े गए तो तुम्हें मार दिया जाएगा! अगर तुम अगुआ न होते, अगर तुम बस एक साधारण विश्वासी होते तो तुम्हें छोटा-सा जुर्माना भरने के बाद शायद छोड़ दिया जाता, मगर चूँकि तुम अगुआ हो, इसलिए कुछ कहना मुश्किल है। यह बहुत खतरनाक है! पकड़े गए कुछ अगुआओं या कर्मियों ने जब कोई जानकारी नहीं दी तो पुलिस ने उन्हें पीट-पीटकर मार डाला।’ जब वे किसी के पीट-पीटकर मार दिए जाने के बारे में सुनते हैं तो उनका डर और बढ़ जाता है, वे काम करने से और भी ज्यादा डरने लगते हैं। हर दिन वे बस यही सोचते हैं कि पकड़े जाने से कैसे बचें, दूसरों के सामने आने से कैसे बचें, निगरानी से कैसे बचें और अपने भाई-बहनों के संपर्क से कैसे बचें। वे इन चीजों के बारे में सोचने में अपना दिमाग खपाते हैं और अपने कर्तव्यों को बिल्कुल भूल जाते हैं। क्या ये निष्ठावान लोग हैं? क्या ऐसे लोग कोई काम सँभाल सकते हैं? (नहीं, वे नहीं सँभाल सकते।) इस तरह के लोग बस डरपोक होते हैं और हम यकीनन सिर्फ इस अभिव्यक्ति के आधार पर उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित नहीं कर सकते, मगर इस अभिव्यक्ति की प्रकृति क्या है? इस अभिव्यक्ति का सार एक छद्म-विश्वासी का सार है। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों की सुरक्षा कर सकता है और वे यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर की खातिर खुद को खपाने के लिए समर्पित होना खुद को सत्य के लिए समर्पित करना है और यह एक ऐसी चीज है जिसे परमेश्वर स्वीकृति देता है। वे अपने दिलों में परमेश्वर का भय नहीं मानते; वे केवल शैतान और दुष्ट राजनीतिक दलों से डरते हैं। वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते, वे यह नहीं मानते कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है और यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर एक ऐसे व्यक्ति को स्वीकृति देगा जो परमेश्वर की खातिर, परमेश्वर के मार्ग पर चलने की खातिर और परमेश्वर का आदेश पूरा करने की खातिर सब कुछ खपाता है। वे इनमें से कुछ भी नहीं देख पाते। वे किसमें विश्वास करते हैं? वे यह विश्वास करते हैं कि अगर वे बड़े लाल अजगर के हाथ लग गए तो उनका बुरा हश्र होगा, उन्हें सजा हो सकती है या यहाँ तक कि अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। अपने दिलों में वे केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं। क्या ये छद्म-विश्वासी नहीं हैं? (हाँ, वे हैं।) बाइबल में क्या कहा गया है? ‘जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा’ (मत्ती 10:39)। क्या वे इन वचनों पर विश्वास करते हैं? (नहीं, वे नहीं करते।) अगर उनसे अपना कर्तव्य निभाते समय जोखिम उठाने को कहा जाए तो वे खुद को कहीं छिपाना चाहेंगे और किसी को भी उन्हें नहीं देखने देंगे—वे अदृश्य होना चाहेंगे। वे इस हद तक डरे हुए होते हैं। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर मनुष्य का सहारा है, कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, कि अगर कुछ वाकई गलत हो जाता है या वे पकड़े जाते हैं तो यह परमेश्वर की अनुमति से हो रहा है और लोगों के पास समर्पण वाला दिल होना चाहिए। इन लोगों के पास ऐसा दिल, ऐसी समझ या यह तैयारी नहीं है। क्या वे वाकई परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? (नहीं, वे नहीं रखते।) क्या इस अभिव्यक्ति का सार एक छद्म-विश्वासी का सार नहीं है? (हाँ, ऐसा है।) यह ऐसा ही है। इस तरह के लोग बहुत ज्यादा डरपोक, बुरी तरह से डरे हुए होते हैं और वे शारीरिक कष्टों और अपने साथ कुछ बुरा होने से डरते हैं। वे डरपोक पक्षियों की तरह डर जाते हैं और अब अपना काम नहीं कर पाते(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी जैसे ही अपने कर्तव्यों में किसी खतरनाक माहौल का सामना करते हैं, वे केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे अपने कर्तव्य के प्रति वफादार नहीं होते और परमेश्वर के घर के हितों का ध्यान नहीं रखते। इस तरह के व्यक्ति के दिल में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं होती, और वह परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास नहीं करता। वे छद्म-विश्वासी हैं। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मैं शर्मिंदा और दुखी थी। मुझे एहसास नहीं हुआ था कि मैं एक मसीह-विरोधी की तरह ही स्वार्थी और नीच थी। मैंने एक भाई के साथ सभा करने की योजना बनाई थी, और वह सभा से एक दिन पहले ही गिरफ्तार हो गया। मैं जो गिरफ्तारी से बच सकी, वह परमेश्वर की सुरक्षा के कारण था। लेकिन, मैंने परमेश्वर का धन्यवाद नहीं किया और अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया, बल्कि कलीसिया के काम को एक तरफ रखकर केवल खुद को सुरक्षित रखने के बारे में सोचा। इसके अलावा, जब मुझे पता चला कि पुलिस मुझे गिरफ्तार करने मेरे घर आई थी और मुझे वॉन्टेड लिस्ट में डालने वाली है, और जिस मेजबान परिवार के साथ मैं पहले रही थी, उसकी तलाशी ली गई थी, और मैंने देखा कि सीसीपी मुझे गिरफ्तार करने के लिए इतने बड़े पैमाने पर लामबंदी कर रही है, तो मैं डर गई। खुद को बचाने के लिए, मैंने अगुआ का कर्तव्य निभाने की हिम्मत भी नहीं की। जब कलीसिया सीसीपी के उत्पीड़न और गिरफ्तारियों का सामना कर रही थी, तो एक अगुआ के तौर पर, मुझे कलीसिया के हितों की रक्षा करनी चाहिए थी और तुरंत बाद की स्थिति को अच्छी तरह से सँभालना चाहिए था। इसके अलावा, कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों के नतीजे गिर रहे थे, और मेरे भाई-बहन नकारात्मकता और डर में जी रहे थे, जिन्हें मदद और सहारे के लिए सत्य पर संगति की जरूरत थी। यह सारा काम किए जाने की जरूरत थी, लेकिन गिरफ्तारी से बचने के लिए, मैं हर कदम पर अपनी सुरक्षा और बचने का रास्ता निकालने के लिए चालें चल रही थी; मेरा दिल अपना कर्तव्य करने में नहीं लग रहा था, और कलीसिया की समस्याएँ तुरंत हल नहीं हो पा रही थीं। जैसा कि कहा जाता है, “विपत्ति में ही सच्चे मन का पता चलता है।” सामान्य समय में जब मेरे व्यक्तिगत हितों पर कोई असर नहीं पड़ता था, तो मैं अपना कर्तव्य निभा पाती थी, लेकिन अब जब मुझ पर एक खतरनाक माहौल आ पड़ा, तो मैं खुद को बचाने के लिए एक कायर कछुए की तरह अपने खोल में सिकुड़ गई थी। यही असली आध्यात्मिक कद था। मैंने परमेश्वर में विश्वास किया था और परमेश्वर के इतने सारे वचन पढ़े थे, लेकिन नाजुक मौके पर, मैंने सत्य का अभ्यास करने की कोई गवाही नहीं दी, और कलीसिया के हितों की रक्षा करने की मेरी बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी। मैं एक मसीह-विरोधी की तरह ही स्वार्थी और नीच थी। मैं दुखी और आत्म-ग्लानि से भर गई, और इतना स्वार्थी होने के लिए खुद से नफरत करने लगी। मैं सचमुच इतने महत्वपूर्ण कर्तव्य के लायक नहीं थी! मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं बहुत स्वार्थी हूँ! नाजुक मौके पर, मैंने बिल्कुल भी वफादारी नहीं दिखाई। हे परमेश्वर, मुझे प्रबुद्ध करो और मेरा मार्गदर्शन करो ताकि मैं खुद को जान सकूँ और इस माहौल में अपना कर्तव्य निभाती रह सकूँ।”

मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “सभी भ्रष्ट लोग स्वयं के लिए जीते हैं। हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए—यह मानव प्रकृति का निचोड़ है। लोग अपनी खातिर परमेश्वर पर विश्वास करते हैं; जब वे चीजें त्यागते हैं और परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाते हैं, तो यह धन्य होने के लिए होता है, और जब वे परमेश्वर के प्रति वफादार रहते हैं, तो यह भी पुरस्कार पाने के लिए ही होता है। संक्षेप में, यह सब धन्य होने, पुरस्कार पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के उद्देश्य से किया जाता है। समाज में लोग अपने लाभ के लिए काम करते हैं, और परमेश्वर के घर में वे धन्य होने के लिए कोई कर्तव्य करते हैं। आशीष प्राप्त करने के लिए ही लोग सब-कुछ छोड़ते हैं और काफी दुःख सहन कर पाते हैं। मनुष्य की शैतानी प्रकृति का इससे बेहतर प्रमाण नहीं है। जिन लोगों के स्वभाव बदल गए हैं, वे अलग हैं, उन्हें लगता है कि अर्थ सत्य के अनुसार जीने से आता है, कि इंसान होने का आधार परमेश्वर के प्रति समर्पित होना, परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना है, कि परमेश्वर की आज्ञा को स्वीकारना ऐसी जिम्मेदारी है जो पूरी तरह से स्वाभाविक और न्यायोचित है, कि सृजित प्राणी के कर्तव्य पूरे करने वाले लोग ही मनुष्य कहलाने के योग्य हैं—और अगर वे परमेश्वर से प्रेम करने और उसके प्रेम का प्रतिफल देने में सक्षम नहीं हैं, तो वे इंसान कहलाने योग्य नहीं हैं। उन्हें लगता है कि अपने लिए जीना खोखला और अर्थहीन है, लोगों को परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए, अपने कर्तव्य अच्छी तरह से पूरे करने के लिए जीना चाहिए, और उन्हें सार्थक जीवन जीना चाहिए, ताकि जब उनके मरने का समय हो तब भी, वे संतुष्ट महसूस करें और उनमें जरा-सा भी पछतावा न हो, और वे समझें कि उनका जीवन व्यर्थ नहीं गया(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। “लोग आशीष पाने, पुरस्कृत होने, ताज पहनने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। क्या यह सबके दिलों में नहीं है? यह एक तथ्य है कि यह सबके दिलों में है। हालाँकि लोग अक्सर इसके बारे में बात नहीं करते, यहाँ तक कि वे आशीष प्राप्त करने का अपना मकसद और इच्छा छिपाते हैं, फिर भी यह इच्छा और मकसद लोगों के दिलों की गहराई में हमेशा अडिग रहा है। लोग चाहे कितना भी आध्यात्मिक सिद्धांत समझते हों, उनके पास जो भी अनुभवजन्य ज्ञान हो, वे जो भी कर्तव्य निभा सकते हों, कितना भी कष्ट सहते हों, या कितनी भी कीमत चुकाते हों, वे अपने दिलों में गहरी छिपी आशीष पाने की प्रेरणा कभी नहीं छोड़ते, और हमेशा चुपचाप उसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं। क्या यह लोगों के दिल के अंदर सबसे गहरी दबी बात नहीं है? आशीष प्राप्त करने की इस प्रेरणा के बिना तुम लोग कैसा महसूस करोगे? तुम किस रवैये के साथ अपना कर्तव्य निभाओगे और परमेश्वर का अनुसरण करोगे? अगर लोगों के दिलों में छिपी आशीष प्राप्त करने की यह प्रेरणा दूर कर दी जाए तो ऐसे लोगों का क्या होगा? संभव है कि बहुत-से लोग नकारात्मक हो जाएँगे, जबकि कुछ अपने कर्तव्यों के प्रति प्रेरणाहीन हो जाएँगे। वे परमेश्वर में अपने विश्वास में रुचि खो देंगे, मानो उनकी आत्मा गायब हो गई हो। वे ऐसे प्रतीत होंगे, मानो उनका हृदय छीन लिया गया हो। इसीलिए मैं कहता हूँ कि आशीष पाने की प्रेरणा ऐसी चीज है जो लोगों के दिल में गहरी छिपी है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन संवृद्धि के छह संकेतक)। परमेश्वर के वचनों से, मैंने देखा कि जब लोग केवल अपने हितों के लिए काम करते हैं, तो वे शैतानी ज़हर के अनुसार जी रहे होते हैं, और “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” को जीने का नियम मानते हैं, वे केवल वही काम करते हैं जो उनके लिए फायदेमंद हों। मैं बिल्कुल इसी तरह की इंसान थी। जब मैंने अगुआ का कर्तव्य निभाना शुरू किया था, तो मैं किसी खतरनाक माहौल में नहीं थी। मैं जानती थी कि यह कर्तव्य निभाने से, मैं और ज़्यादा सत्य समझूँगी और कई अच्छे कर्म कमा सकती हूँ, और इसलिए मैंने बिना किसी झिझक के इसे स्वीकार कर लिया। लेकिन, जब मैंने अपने भाई-बहनों को गिरफ्तार होते देखा और पुलिस को मेरा पीछा करते और मुझे वॉन्टेड लिस्ट में डालते देखा, तो मैं डर गई कि अगर मैं पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर ली गई और पीट-पीटकर मार डाली गई, तो मैं उद्धार का अपना मौका खो दूँगी। इसलिए मैंने अपने भले के लिए सोचना और योजना बनाना शुरू कर दिया, और मुझे लगने लगा कि अगुआ का कर्तव्य निभाकर मैं बहुत बड़ा जोखिम उठा रही हूँ। मैंने यह भी शिकायत की कि कलीसिया ने मेरे लिए इतने महत्वपूर्ण कर्तव्य की व्यवस्था क्यों की, और मैं इसे छोड़ देना चाहती थी। मैं हर कदम पर अपनी मंज़िल के बारे में सोचती थी, और मैंने परमेश्वर के प्रति बिल्कुल भी कोई वफादारी या समर्पण नहीं दिखाया। मैं बहुत स्वार्थी थी! बिना उजागर हुए, मैं यही मानती रहती कि अपना कर्तव्य निभाने में त्याग करना और खुद को खपाना ही परमेश्वर के प्रति वफादारी दिखाना है। अब मुझे आखिरकार एहसास हुआ कि मेरा अतीत का खपना पूरी तरह से मंशाओं और अशुद्धियों से भरा था : वे आशीष पाने के लिए थे; वे परमेश्वर के साथ सौदेबाज़ी करने की कोशिश थे। यह परमेश्वर की घृणा और नफरत का कारण बना। इस समय, मैं परमेश्वर का इरादा समझ गई। पुलिस द्वारा हमें गिरफ्तार करने की कोशिश के इस माहौल का अनुभव करने से न केवल मुझे बड़े लाल अजगर की दुष्टता को स्पष्ट रूप से देखने में मदद मिली, बल्कि परमेश्वर में मेरे विश्वास के भीतर कई सालों से छिपी आशीष पाने की मंशा को पहचानने में भी मदद मिली। मैंने इस माहौल की व्यवस्था करने के लिए तहे दिल से परमेश्वर का धन्यवाद किया, और अनुभव किया कि यह मेरे लिए परमेश्वर का उद्धार था।

एक रात, मैंने इस दौरान की अपनी अवस्था के बारे में एक बहन से बात की। जब मैंने गिरफ्तार होने और मरने के डर का जिक्र किया, तो मेरी बहन ने मेरे साथ मृत्यु के अर्थ के बारे में संगति की। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया, और मैंने उसे ढूँढ़कर पढ़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “प्रभु यीशु के उन शिष्यों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी रूप से दंडित किया गया था? नहीं। उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था, लेकिन दुनिया के लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया, इसके बजाय उनकी भर्त्सना की, पीटा और डाँटा-फटकारा और यहाँ तक कि मार डाला—इस तरह वे शहीद हुए। ... वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की घोर निंदा करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहाँ तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं नकारा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि उसने समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए जो कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित रह पाई है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपना कर्तव्य निभाया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी चीजें हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए जीवन सबसे अधिक प्रिय और संजोने योग्य होता है, सबसे बहुमूल्य होता है, और यही कारण है कि ये लोग मानवजाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में अपनी सबसे बहुमूल्य वस्तु—जीवन—अर्पित कर सके। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर के नाम को नहीं नकारा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में जब उसने उनसे उनके प्राणों की कीमत भी वसूल ली, तब भी उन्होंने अपना कर्तव्य नहीं छोड़ा। यही अपना कर्तव्य चरम सीमा तक पूरा करना है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रचार करना वह कर्तव्य है जिसे सभी विश्वासी पूरा करने को बाध्य हैं)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मैं समझ गई कि अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए अपनी जान दे देता है, तो भले ही उसका शरीर नष्ट हो जाए, उसकी आत्मा जीवित रहती है। अगर किसी व्यक्ति को परमेश्वर के लिए गवाही देने के कारण मौत तक सताया जाता है, तो यह मूल्यवान और सार्थक है, और परमेश्वर द्वारा इसे अनुमोदित किया जाता है। लेकिन, मेरा मानना था कि अगर सीसीपी ने मुझे मौत तक सताया तो मैं उद्धार नहीं पा सकूँगी, और इसलिए मैं डर और खौफ में जीती रही, अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए अपनी जान देने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। असल में, मुझमें परमेश्वर के प्रति सच्चा समर्पण नहीं था, मैंने सत्य का अभ्यास करने की कोई गवाही नहीं दी, और परमेश्वर ने मेरा सच्चा दिल हासिल नहीं किया था। भले ही मेरा शरीर जीवित रहता, मैं कभी भी परमेश्वर की स्वीकृति नहीं पा सकती थी। परमेश्वर की नज़रों में, मैं पहले से ही मर चुकी होती, और अंत में मेरी आत्मा, प्राण और शरीर, सब कुछ नष्ट हो जाता। इसके अलावा, मैं डरती थी कि अगर मैं मर गई, तो परमेश्वर द्वारा मेरा उद्धार नहीं होगा : ऐसा इसलिए था क्योंकि मैं परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को नहीं समझती थी। मैंने प्रभु यीशु का अनुसरण करने वाले उन शिष्यों के बारे में सोचा, जिन्हें सुसमाचार का प्रचार करते समय शैतानी शासनों द्वारा सताया गया था। कुछ को पाँच घोड़ों की मदद से चीर दिया गया, कुछ को पत्थर मारकर मार डाला गया, और पतरस को अंत में परमेश्वर के लिए उल्टा सूली पर चढ़ाया गया। उन्होंने परमेश्वर के लिए एक ज़बरदस्त गवाही देने के लिए अपनी जान दे दी। हालाँकि सतह पर उनके शरीर मर गए, लेकिन उनकी आत्माएँ परमेश्वर के पास लौट गईं, और उन्होंने परमेश्वर की स्वीकृति पाई। यही सबसे मूल्यवान और सार्थक बात है। मृत्यु का अर्थ समझ जाने के बाद, मेरे दिल को और ज़्यादा आज़ादी महसूस हुई। मेरा जीवन परमेश्वर ने दिया था, और मुझे अपना कर्तव्य निभाते रहना था। मैं इस तरह से स्वार्थी होकर जीती नहीं रह सकती थी।

एक दिन अपनी भक्ति के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “शैतान ने कभी परमेश्वर के अधिकार को लांघने का साहस नहीं किया है, और, इसके अलावा, उसने हमेशा परमेश्वर के आदेश और विशिष्ट आज्ञाएँ ध्यान से सुनी हैं और उनका पालन किया है, कभी उनका उल्लंघन करने का साहस नहीं किया है, और निश्चित रूप से, परमेश्वर के किसी भी आदेश को मुक्त रूप से बदलने की हिम्मत नहीं की है। ऐसी हैं वे सीमाएँ, जो परमेश्वर ने शैतान के लिए निर्धारित की हैं, और इसलिए शैतान ने कभी इन सीमाओं को लाँघने का साहस नहीं किया है। क्या यह परमेश्वर के अधिकार का सामर्थ्य नहीं है? क्या यह परमेश्वर के अधिकार की गवाही नहीं है? मानव-जाति की तुलना में शैतान को इस बात की ज्यादा स्पष्ट समझ है कि परमेश्वर के प्रति कैसे व्यवहार करना है, और परमेश्वर को कैसे देखना है, और इसलिए, आध्यात्मिक क्षेत्र में, शैतान परमेश्वर की हैसियत और अधिकार को बहुत स्पष्ट रूप से देखता है, और वह परमेश्वर के अधिकार की शक्ति और उसके अधिकार प्रयोग के पीछे के सिद्धांतों की गहरी समझ रखता है। वह उन्हें नजरअंदाज करने की बिल्कुल भी हिम्मत नहीं करता, न ही वह किसी भी तरह से उनका उल्लंघन करने की या ऐसा कुछ करने की हिम्मत करता है, जो परमेश्वर के अधिकार को लांघता हो, और वह किसी भी तरह से परमेश्वर के कोप को चुनौती देने का साहस नहीं करता। हालाँकि शैतान दुष्ट और अहंकारी प्रकृति का है, लेकिन उसने कभी परमेश्वर द्वारा उसके लिए निर्धारित हद और सीमाएँ लाँघने का साहस नहीं किया है। लाखों वर्षों से उसने इन सीमाओं का कड़ाई से पालन किया है, परमेश्वर द्वारा दी गई हर आज्ञा और आदेश का पालन किया है, और कभी भी हद पार करने की हिम्मत नहीं की है। हालाँकि शैतान दुर्भावना से भरा है, लेकिन वह भ्रष्ट मानव-जाति से कहीं ज्यादा बुद्धिमान है; वह सृष्टिकर्ता की पहचान जानता है, और अपनी सीमाएँ भी जानता है। शैतान के ‘विनम्र’ कार्यों से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य स्वर्गिक आदेश हैं, जिन्हें शैतान लांघ नहीं सकता, और यह ठीक परमेश्वर की अद्वितीयता और उसके अधिकार के कारण है कि सभी चीजें एक व्यवस्थित तरीके से बदलती और बढ़ती हैं, ताकि मानव-जाति परमेश्वर द्वारा स्थापित क्रम के भीतर रह सके और वंश-वृद्धि कर सके, कोई भी व्यक्ति या वस्तु इस आदेश को भंग करने में सक्षम नहीं है, और कोई भी व्यक्ति या वस्तु इस व्यवस्था को बदलने में सक्षम नहीं है—क्योंकि ये सभी सृष्टिकर्ता के हाथों से और सृष्टिकर्ता के विधान और अधिकार से आते हैं(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मैं समझ गई कि शैतान चाहे कितना भी दुष्ट क्यों न हो, वह हमेशा परमेश्वर के हाथों में है। परमेश्वर की अनुमति या परमेश्वर के आदेश के बिना, वह जो चाहे वह करने की हिम्मत नहीं करता। उदाहरण के लिए, सीसीपी लगातार परमेश्वर में विश्वास करने वालों को गिरफ्तार करती और सताती है और परमेश्वर की कलीसियाओं को खत्म करने का प्रयास करती है, लेकिन असल में, सीसीपी भी परमेश्वर के नियंत्रण में है। चाहे उसकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, या लोगों को नुकसान पहुँचाने के उसके तरीके कितने भी चालाकी भरे क्यों न हों, सीसीपी परमेश्वर की अनुमति के बिना हमारा कुछ नहीं कर सकती। मैंने सोचा कि इस दौरान सीसीपी ने मुझे गिरफ्तार करने का पक्का इरादा कर लिया था, लेकिन हर बार, मैं बाल-बाल बच गई। परमेश्वर की अद्भुत व्यवस्थाओं के कारण, मैं बार-बार गिरफ्तारी से बच गई। अब, मैं परमेश्वर के अधिकार और परमेश्वर की संप्रभुता के कारण अपना कर्तव्य सही-सलामत कर सकती हूँ। परमेश्वर की अनुमति के बिना, चाहे सीसीपी मुझे गिरफ्तार करने की कितनी भी कोशिश करे, मैं कभी भी उनके हाथ नहीं लगूँगी। यह परमेश्वर द्वारा तय किया गया था कि मैं गिरफ्तार नहीं हुई, और कलीसिया के काम के लिए मेरी ज़रूरत थी, इसलिए मुझे अपने कर्तव्य में अपना दिल लगाना था। यह समझ हासिल करने के बाद, मेरी चिंताएँ और बेचैनी बहुत कम हो गईं। मैं परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने, और कलीसिया का काम अच्छी तरह से करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने को तैयार थी। मैंने अपने हाथ में लिए काम के लिए एक नई योजना बनाई। मैंने सोचा कि अब कितने सारे अगुआ और कार्यकर्ता गिरफ्तार हो चुके हैं, और बाद में बहुत सारा काम किए जाने की ज़रूरत है। कई भाई-बहन नकारात्मकता और कमजोरी में जी रहे थे, और नहीं जानते थे कि इस माहौल का अनुभव कैसे करें : उन्हें अपने साथ संगति करने और सहारा देने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं की ज़रूरत थी। मुझे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी थीं। बाद में, मैंने अपने कर्तव्य में अपना दिल लगाया। मैंने अपने भाई-बहनों के साथ काम किया, और कुछ समय की कड़ी मेहनत के बाद, कलीसिया ने नए अगुआ और कार्यकर्ता चुने और कार्य की विभिन्न मदों का कार्यान्वयन जारी रह सका। मेरे भाई-बहनों की अवस्थाओं में भी कुछ सुधार हुआ, और कलीसिया का काम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।

इस माहौल के प्रकाशन का अनुभव करने के बाद, मैंने देखा कि परमेश्वर में विश्वास करने का मेरा दृष्टिकोण गलत था : यह आशीष पाने के लिए था, यह परमेश्वर के साथ सौदेबाज़ी करने की कोशिश थी, और मैं गलत रास्ते पर चल रही थी। उसी समय, मैंने बड़े लाल अजगर की दुष्ट प्रकृति को भी स्पष्ट रूप से देखा, और मैं तहे दिल से बड़े लाल अजगर से नफरत करने लगी। इसके अलावा, मैंने देखा कि मुझमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं थी : जब मुझ पर गिरफ्तारी का खतरा आया, तो मैं डर गई। मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा था। अब से, मैं अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने को तैयार हूँ। मैं एक आरामदायक माहौल में यह लाभ हासिल नहीं कर सकती थी। मैंने अनुभव किया कि मेरे लिए इस माहौल की व्यवस्था करना परमेश्वर का मेरे लिए सच्चा उद्धार था, और मैं तहे दिल से परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ!

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