14. गलती छिपाने पर चिंतन
मैं हमेशा से कलीसिया में वीडियो एडिटिंग का कर्तव्य करता आया हूँ। मई 2022 में, एक फिल्म की शूटिंग के बाद, इसका पोस्ट-प्रोडक्शन का काम गहनता से शुरू हो गया और एडिटिंग का काम जल्दी पूरा करना जरूरी था ताकि उसे समीक्षा के लिए अगुआ को सौंपा जा सके। हर सीन को एडिट करने में काफी समय बिताने के बाद, मैंने गलती से डिलीट बटन दबा दिया और पहले पाँच एडिट किए गए सीन का फुटेज तुरंत डिलीट हो गया। मैंने सहज ही पिछली कार्रवाई को वापस लाने की कोशिश की, लेकिन सॉफ्टवेयर न केवल उसे बहाल करने में नाकाम रहा—बल्कि पूरी तरह से फ्रीज हो गया। खाली टाइमलाइन देखकर, मेरा दिमाग बिल्कुल सुन्न हो गया। होश में आने के बाद, मैंने प्रोजेक्ट को वापस लाने के लिए जल्दबाजी में हर संभव कोशिश की और खोजते समय, मैं सोचता रहा, “सब खत्म हो गया; अब मैं क्या करूँ? मैंने पिछले कुछ दिनों से इसका बैकअप नहीं लिया है—प्रोजेक्ट जरूर खो गया होगा। मैंने पहले अपने कर्तव्य में शायद ही कभी गलतियाँ की हैं और पर्यवेक्षक मुझ पर भरोसा करता है। अगुआ को समीक्षा के लिए सौंपने से ठीक पहले इस नाजुक मौके पर कुछ गलत कैसे हो सकता था? अगर सबको पता चल गया कि इतने लंबे समय तक एडिटर रहने के बाद मैंने ऐसी नौसिखिए वाली गलती की है, तो वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? एक नया व्यक्ति भी जानता है कि डेटा के अचानक खो जाने से बचने के लिए रोज बैकअप लेना होता है, लेकिन मैंने सोचा कि चूँकि मैंने सालों से इस तरह काम करते हुए कभी कोई प्रोजेक्ट नहीं खोया था, इसलिए रोज बैकअप लेना जरूरी नहीं था। मैंने खुद पर इतना भरोसा क्यों किया?” पहले, जब दूसरे भाई-बहन ऑपरेशन में त्रुटियों के कारण गलतियाँ करते थे, तो मैं आत्म-संतुष्टि के साथ कहता था, “इस तरह की समस्या से थोड़ी और सावधानी बरतकर बचा जा सकता है।” यह सोचकर मेरा चेहरा तमतमा गया। मैंने इस नाजुक मौके पर बहुत बड़ी गलती कर दी थी और इतना गैर-जिम्मेदाराना काम किया था। अगर सबको पता चला तो वे मुझे नीची नजर से देखेंगे। क्या मेरी अच्छी प्रतिष्ठा और छवि पूरी तरह से बर्बाद नहीं हो जाएगी? नहीं, जब तक बिल्कुल जरूरी न हो, मैं अपने भाई-बहनों को इस बारे में नहीं बता सकता। मैंने कुछ दिन पहले का एक बैकअप देखा और पाया कि हाल ही में शूट किए गए केवल दो सीन को बदलने की जरूरत थी। मैं रात भर जागकर इसे लगभग ठीक कर सकता था और फिर जब मैं इसे पूरी तरह से ठीक कर लेता, तो भाई-बहनों को कभी पता भी नहीं चलता कि मैंने प्रोजेक्ट खो दिया था और मैं अपनी अच्छी छवि बनाए रख सकता था। यह सोचकर, मैं प्रोजेक्ट को बहाल करने के लिए दौड़ पड़ा, लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान, मैंने देखा कि फिल्म की कलर ग्रेडिंग और ऑडियो, सब कुछ दोबारा करने की जरूरत थी। अपने सामने काम का बोझ देखकर, मैं जानता था कि इसे एक दिन और एक रात में बहाल नहीं किया जा सकता। मैं सचमुच हताश हो गया। यह मेरे लिए साफ था कि मैं इस प्रोजेक्ट को अकेले पूरा नहीं कर सकता और मैं केवल दूसरों से मदद माँग सकता था। मैंने मन में सोचा : “अगर मैं अभी किसी से पूछता हूँ, तो क्या उसे पता नहीं चल जाएगा कि मैंने प्रोजेक्ट खो दिया है? अगर सबको पता चला तो हर कोई मुझे नीची नजर से देखेगा। लेकिन अगर मैं कुछ नहीं कहता, तो काम में और भी देरी हो जाएगी। इसके अलावा, सच्चाई हमेशा सामने आ ही जाती है।” मुझे एहसास हुआ कि यह कोई संयोग से हुई घटना नहीं थी और इसमें एक सबक था जो मुझे सीखना था। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “परमेश्वर, मैंने प्रोजेक्ट का बैकअप नहीं लिया और मैं इस नौसिखिए वाली गलती का सामना करने से डरता रहा हूँ। मैं दूसरों को पता चलने से बहुत डरता रहा हूँ और इसलिए मैं इसे छिपाना चाहता रहा। मैं एक ईमानदार व्यक्ति नहीं हूँ। परमेश्वर, मेरा मार्गदर्शन करो, मुझे सरल बनने और इस समस्या के बारे में भाई-बहनों के सामने खुलकर बात करने और मदद माँगने में सक्षम बनाओ।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “मेरे राज्य को उन लोगों की ज़रूरत है जो ईमानदार हैं, उन लोगों की जो पाखंडी और धोखेबाज़ नहीं हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 33)। परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है। मैंने साफ तौर पर एक गलती की थी, मुझे सरल और खुले दिल का होना चाहिए था, अपनी गलती मानकर मदद माँगनी चाहिए थी। लेकिन मैं यही सोचता रहा कि इसे कैसे छिपाऊँ ताकि किसी को पता न चले। मेरा दिल कितना अंधकारमय और धोखेबाज था! सच में, एक बार गलती हो जाने पर, मुझे पहले उसे मान लेना चाहिए और चाहे भाई-बहन मुझे कैसे भी देखें या मेरी आलोचना या काट-छाँट ही क्यों न हो, मैं इसी लायक हूँ। अपनी गलतियों का सामना करते हुए, ईमानदार लोग उन्हें स्वीकारने की हिम्मत कर सकते हैं और जिम्मेदारी उठाने का साहस रखते हैं। मैं इस तरह से अभ्यास क्यों नहीं कर सका? यह सोचने के बाद ही मैंने सबसे मदद माँगना शुरू किया। मैंने एक-एक करके उन भाइयों को संदेश भेजा जो शायद इसे हल करना जानते हों। मैंने देखा कि मैंने लगभग सबसे पूछ लिया था और इसे वापस लाने का कोई रास्ता नहीं था। तभी, ऑडियो रिकॉर्डिंग के लिए जिम्मेदार भाई अंदर आया और पूछा, “क्या तुम्हें वह मिल गया?” मैंने निराशा से जवाब दिया, “नहीं।” फिर उसने कहा, “मैंने कल ही एडिटिंग प्रोजेक्ट का बैकअप लिया था।” जब मैंने यह सुना, तो मैं लगभग रो पड़ा। पता चला कि पिछली रात मेरा काम खत्म होने के बाद, ऑडियो रिकॉर्डिंग करने वाला भाई अगली सुबह स्टूडियो में आया था और उसने एक बैकअप बना लिया था। यह ठीक वही था जो मैंने खो दिया था। मैंने अपने सामने बैकअप प्रोजेक्ट को देखा। एडिटिंग, कलर ग्रेडिंग और ऑडियो सब कुछ सही-सलामत था। मैं अपने दिल में परमेश्वर को धन्यवाद दिया और उसकी प्रशंसा की। खोए हुए प्रोजेक्ट का मसला खत्म हो गया। इस राहत के बाद, मैंने आत्म-चिंतन करना शुरू किया, “जब मैं अपने कर्तव्य में कोई गलती करता हूँ तो मैं हमेशा चीजों को छिपाने की कोशिश क्यों करता हूँ और नहीं चाहता कि दूसरों को पता चले?”
अपने चिंतन के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “भ्रष्ट मनुष्य छद्मवेश धारण करने में कुशल होते हैं। चाहे वे कुछ भी करें या किसी भी तरह की भ्रष्टता प्रकट करें, वे हमेशा छद्मवेश धारण करते ही हैं। अगर कुछ गलत हो जाता है या वे कुछ गलत करते हैं, तो वे दूसरों पर दोष मढ़ना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि अच्छी चीजों का श्रेय उन्हें मिले और बुरी चीजों के लिए दूसरों को दोष दिया जाए। क्या वास्तविक जीवन में इस तरह का छद्मवेश बहुत अधिक धारण नहीं किया जाता? ऐसा बहुत होता है। गलतियाँ करना या छद्मवेश धारण करना : इनमें से कौन-सी चीज स्वभाव से संबंधित है? छद्मवेश धारण करना स्वभाव का मामला है, इसमें अहंकारी स्वभाव, दुष्टता और धूर्तता शामिल होती है; परमेश्वर इससे विशेष रूप से घृणा करता है। वास्तव में, जब तुम छद्मवेश धारण करते हो, तो हर कोई समझता है कि क्या हो रहा है, लेकिन तुम्हें लगता है कि दूसरे इसे नहीं देखते, और तुम अपनी इज्जत बचाने और इस प्रयास में कि दूसरे सोचें कि तुमने कुछ गलत नहीं किया, बहस करने और खुद को सही ठहराने की पूरी कोशिश करते हो। क्या यह बेवकूफी नहीं है? दूसरे इस बारे में क्या सोचते हैं? वे कैसा महसूस करते हैं? मतली और घृणा। यदि कोई गलती करने के बाद तुम उसे सही तरह से ले सको, और अन्य सभी को उसके बारे में बात करने दे सको, उस पर टिप्पणी और विचार करने दे सको, और उसके बारे में खुलकर बात कर सको और उसका गहन-विश्लेषण कर सको, तो तुम्हारे बारे में सभी की राय क्या होगी? वे कहेंगे कि तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो, क्योंकि तुम्हारा दिल परमेश्वर के प्रति खुला है। तुम्हारे कार्यकलापों और व्यवहार के माध्यम से वे तुम्हारे दिल को देख पाएँगे। लेकिन अगर तुम खुद को छिपाने और हर किसी को धोखा देने की कोशिश करते हो, तो लोग तुम्हें तुच्छ समझेंगे और कहेंगे कि तुम मूर्ख और नासमझ व्यक्ति हो। यदि तुम ढोंग करने या खुद को सही ठहराने की कोशिश न करो, यदि तुम अपनी गलतियाँ स्वीकार सको, तो सभी लोग कहेंगे कि तुम ईमानदार और बुद्धिमान हो। और तुम्हें बुद्धिमान क्या चीज बनाती है? सब लोग गलतियाँ करते हैं। सबमें दोष और कमजोरियाँ होती हैं। और वास्तव में, सभी में वही भ्रष्ट स्वभाव होता है। अपने आप को दूसरों से अधिक महान, परिपूर्ण और दयालु मत समझो; यह एकदम अनुचित है। जब लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और उनकी भ्रष्टता का सार और असली चेहरा तुम्हें स्पष्ट हो जाते हैं, तब तुम अपनी गलतियाँ छिपाने की कोशिश नहीं करते, न ही दूसरों की गलतियों को उनके विरुद्ध पकड़कर रखते हो—तुम दोनों का सही ढंग से सामना कर पाते हो। तभी तुम समझदार बनोगे और मूर्खतापूर्ण काम नहीं करोगे, और यह बात तुम्हें बुद्धिमान बना देगी। जो लोग बुद्धिमान नहीं हैं, वे मूर्ख होते हैं, और वे हमेशा अपनी छोटी-छोटी गलतियों में उलझे रहते हैं और पर्दे के पीछे छिपकर हरकतें करते रहते हैं। यह देखकर घृणा होती है। वास्तव में, तुम जो कुछ भी करते हो, वह दूसरों पर तुरंत जाहिर हो जाता है, फिर भी तुम खुल्लम-खुल्ला वह करते रहते हो। लोगों को यह मसखरों जैसा प्रदर्शन लगता है। क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? यह सच में मूर्खतापूर्ण ही है। मूर्ख लोगों में कोई अक्ल नहीं होती। वे कितने भी उपदेश सुन लें, फिर भी उन्हें न तो सत्य समझ में आता है, न ही वे चीजों की असलियत देख पाते हैं। वे अपने हवाई घोड़े से कभी नीचे नहीं उतरते और सोचते हैं कि वे बाकी सबसे अलग और अधिक सम्माननीय हैं; यह अहंकार और आत्मतुष्टता है, यह मूर्खता है। मूर्खों में आध्यात्मिक समझ नहीं होती, है न? जिन मामलों में तुम मूर्ख और नासमझ होते हो, वे ऐसे मामले होते हैं जिनमें तुम्हें कोई आध्यात्मिक समझ नहीं होती, और तुम आसानी से सत्य को नहीं समझ सकते। मामले की सच्चाई यह है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के स्व-आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचनों के माध्यम से, मैं समझ गया कि हमारे कर्तव्यों में कुछ त्रुटियों या विचलनों का होना अनिवार्य है, लेकिन परमेश्वर यह चाहता है कि लोग अपनी गलतियों का सही ढंग से सामना करें, उन्हें छिपाने और उन पर परदा डालने की कोशिश न करें। गलतियाँ छिपाना और उन पर परदा डालना दुष्टता और धोखेबाजी का एक शैतानी स्वभाव है—जिससे परमेश्वर घृणा और नफरत करता है। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से, मुझे एहसास हुआ कि जब मैं अपने कर्तव्य में गलतियाँ करता था, तो मेरा पहला विचार उन्हें छिपाने का होता था—यह एक दुष्ट और धोखेबाज शैतानी प्रकृति से प्रेरित था। यह सोचकर कि मैं कुछ समय से वीडियो एडिटिंग का कर्तव्य कर रहा था, मेरे पास कुछ अनुभव था और हर कोई मेरे बारे में काफी अच्छा सोचता था, मुझे लगा कि मैं गलतियाँ नहीं कर सकता, खासकर नाजुक मौकों पर तो बिल्कुल नहीं। मुझे लगा कि मुझे दूसरों से ज्यादा भरोसेमंद और विश्वसनीय होना चाहिए। इसलिए जब गलतियाँ हुईं, तो मुझे चिंता हुई कि मैं अपना आत्म-सम्मान और रुतबा खो दूँगा और मैं उन्हें छिपाने और किसी को पता न चलने देने की पूरी कोशिश करता था। खासकर जब यह इस तरह की एक नौसिखिए वाली गलती थी, तो मुझे और भी डर था कि अगर दूसरों को पता चला, तो वे मुझे नीची नजर से देखेंगे और उनकी नजरों में मेरा रुतबा गिर जाएगा। मैं जितना ज्यादा इस तरह सोचता, उतना ही मैं अपनी गलती का ठीक से सामना करने में असमर्थ होता गया। मैं खुद को एक त्रुटिहीन व्यक्ति के रूप में छिपाना चाहता था और मैं अपनी गलती मानने या मदद माँगने की हिम्मत नहीं करता था। मैं तो चुपचाप किसी को बताए बिना इसे ठीक कर देना चाहता था, ताकि मैं अपनी इज्जत बचा सकूँ। सच्चाई यह थी कि गलती तो हो ही चुकी थी और अगर मैं सरल और खुले दिल का होता, उसे स्वीकार लेता और उससे सीखता तो सब ठीक रहता। फिर भी मैंने इस पर परदा डालने और धोखे का सहारा लेने के लिए हर संभव प्रयास किया। परमेश्वर हर चीज की पड़ताल करता है—भले ही मैं लोगों को मूर्ख बना सकूँ, क्या मैं सचमुच परमेश्वर को मूर्ख बना सकता था? क्या मैं सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ रहा था? मैं सचमुच मूर्ख था! हर कोई गलतियाँ करता है—इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है और इसके अलावा, यह वास्तव में मेरे लिए एक चेतावनी थी, जो मुझे दोबारा अपना कर्तव्य करते समय और अधिक सावधान रहने देती। लेकिन जब मैं गलतियाँ करता, तो मैं उन्हें छिपाने के तरीकों के बारे में सोचने के लिए अपना दिमाग खपाता था। परमेश्वर की नजरों में, यह धोखेबाज छिपाव इन गलतियों से कहीं ज्यादा गंभीर था। मैं अपनी गलतियों को जितना ज्यादा छिपाता, उतना ही यह साबित होता कि मेरा स्वभाव कितना दुष्ट और धोखेबाज था। मैं इसके बारे में जितना ज्यादा सोचता, उतना ही मुझे लगता कि मैं पाखंडी था और परमेश्वर के लिए सचमुच घिनौना और बेहद घृणित था। मैंने यह भी सोचा कि अगर इस बार मैं खुद प्रोजेक्ट को वापस ला पाता, तो मैं बिल्कुल किसी को नहीं बताता या दूसरों से मदद नहीं माँगता और यह तो केवल इसलिए था क्योंकि मेरे पास इसे ठीक करने का कोई रास्ता नहीं था कि मैंने भाई-बहनों को सच बताया। तो जिन साधारण गलतियों को मैं आमतौर पर छिपा सकता था, क्या मैं उन्हें और भी ज्यादा नहीं छिपाता? मैं पहले अपने कर्तव्य करने की छवियों को याद किए बिना नहीं रह सका। कभी-कभी जब मैं छोटे वीडियो एडिट करता था, तो मैं सिर्फ प्रशंसा पाने के लिए गति और आउटपुट को प्राथमिकता देता था और नतीजतन, छोटी-छोटी बारीकियों के मसलों के कारण अक्सर काम को दोबारा करने और संशोधन की जरूरत पड़ती थी। जब दूसरे मुझसे पूछते कि ये समस्याएँ क्यों हुईं, तो मुझे डर लगता कि दूसरे कहेंगे कि मैं लापरवाह और असावधान था। इसलिए मैं वस्तुनिष्ठ कारण गढ़ लेता, यह कहते हुए कि यह फिल्मांकन के चरण के कारण था या मैं कहता कि मेरे सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी आ गई थी, यह सब सिर्फ इसलिए ताकि मैं खुद को बचा सकूँ। ये चीजें मुझमें हर समय प्रकट होती थीं। यह सोचते हुए, मुझे एहसास हुआ कि मैं खुद कितना ढोंग करता था और दूसरों को धोखा देता था। मैं इस धोखेबाज स्वभाव के सहारे जीता नहीं रह सकता था और मुझे एक ईमानदार व्यक्ति के मानक का अभ्यास और उसमें प्रवेश करना शुरू करना था। इसके बाद जो हुआ, उसने मुझे और भी गहराई से चिंतन करने और खुद के बारे में कुछ समझ पाने के लिए प्रेरित किया।
कुछ ही समय बाद, फिल्म समीक्षा के लिए अगुआ को सौंप दी गई। लेकिन फिर एक भाई ने देखा कि एक सीन में, ऑडियो तेरह फ्रेम से आगे-पीछे था और वह निश्चित नहीं था कि इसे दोबारा रेंडर करने की जरूरत है या नहीं। मेरे दिल में उथल-पुथल होने लगी, “मैंने इसे क्यों नहीं पकड़ा? ध्यान से देखने पर, यह वास्तव में काफी स्पष्ट था। वीडियो और ऑडियो आधे सेकंड से मेल नहीं खा रहे हैं। मैंने तो एक बहन से उस हिस्से की जाँच करने के लिए भी कहा था। उसने भी इसे कैसे नहीं पकड़ा? दोबारा रेंडर करने में कई घंटे लगेंगे—इससे काम सचमुच रुक जाएगा! शायद मुझे किसी को बताना ही नहीं चाहिए। वैसे भी यह कोई बड़ा मसला नहीं है—ज्यादातर लोग इस पर ध्यान भी नहीं देंगे। अगर सबको पता चल गया कि वीडियो में ऐसी समस्या है, तो वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वे कहेंगे कि मैं भरोसेमंद या जिम्मेदार नहीं हूँ? मैं हाल ही में बार-बार ये नौसिखिए वाली गलतियाँ कर रहा हूँ; अगर मैं ऐसा ही करता रहा, तो मुझ पर कौन भरोसा करेगा?” मुझे शांति महसूस नहीं हुई और अंदर से एक दोष की भावना महसूस हुई। लेकिन बार-बार सोचने के बाद भी, मैंने कुछ न कहने का ही फैसला किया। जब मैंने वह फैसला कर लिया, तो मुझे अपने कंप्यूटर पर बैठे हुए बहुत बेचैनी महसूस हुई, मेरा दिल सचमुच बहुत घबराया हुआ था और मुझे अंदर से बहुत अंधकारमय महसूस हुआ। मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से एक गलती छिपा रहा था, इसलिए मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की : “परमेश्वर, अब मुझे सच में महसूस हो रहा है कि सच बोलना और एक ईमानदार व्यक्ति बनना कितना मुश्किल है। जब भी मेरा आत्म-सम्मान या घमंड दाँव पर होता है, तो मैं खुद को बचाने से रोक नहीं पाता, झूठ बोलना और धोखा देना चाहता हूँ। मैं इस तरह से नहीं जीना चाहता। मुझे अपने वचनों के अनुसार ईमानदार होने का अभ्यास करने का साहस और हिम्मत दो।” प्रार्थना करने के बाद, मेरे दिल में कुछ ताकत आई और मैंने इस मसले के बारे में अपने भाई-बहनों से खुलकर बात की। बाद में, वीडियो में और भी दूसरे मसले थे, तो मैंने उन सभी को एक साथ ठीक किया, सब कुछ जाँचा और फिर उसे अगुआ को वापस भेज दिया।
उस अनुभव ने मुझे चिंतन करने पर मजबूर कर दिया, “मैं हमेशा गलतियों को क्यों छिपाना चाहता हूँ? इस मसले की जड़ क्या है?” मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े : “अगर परमेश्वर तुमसे अभी ईमानदार व्यक्ति बनने और सच बोलने के लिए कहे, कुछ ऐसा जिसमें तथ्य शामिल हों, और कुछ ऐसा जिससे तुम्हारा भविष्य और भाग्य जुड़ा हो, जिसके परिणाम शायद तुम्हारे लिए फायदेमंद न हों, और दूसरे अब तुम्हें सम्मान से न देखें, और तुम्हें ऐसा लगे कि तुम्हारी प्रतिष्ठा नष्ट हो गई है—तो क्या ऐसी परिस्थिति में तुम बेबाक रह सकते हो और सच बोल सकते हो? क्या तुम अभी भी ईमानदार रह सकते हो? यह करना सबसे कठिन काम है, अपना जीवन त्यागने से भी कहीं अधिक कठिन। तुम कह सकते हो, ‘मुझसे सच बुलवाना नामुमकिन है। मैं सच बोलने के बजाय परमेश्वर के लिए मरना पसंद करूँगा। मैं ईमानदार व्यक्ति बिल्कुल भी नहीं बनना चाहता। हर कोई मुझे नीची निगाह से देखे और मुझे एक आम व्यक्ति समझे, इसके बजाय मैं मर जाना पसंद करूँगा।’ यह क्या दिखाता है कि लोग किस चीज को सबसे ज्यादा सँजोते हैं? लोग जिसे सबसे ज्यादा सँजोते हैं, वह है उनका रुतबा और प्रतिष्ठा—ऐसी चीजें जो उनके शैतानी स्वभावों से नियंत्रित होती हैं। जीवन गौण होता है। हालात मजबूर करें तो वे अपनी जान देने की ताकत जुटा लेंगे, लेकिन हैसियत और प्रतिष्ठा त्यागना आसान नहीं है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उनके लिए अपनी जान देना अत्यंत महत्वपूर्ण नहीं है; परमेश्वर अपेक्षा करता है कि लोग सत्य को स्वीकार करें, और वास्तव में ऐसे ईमानदार लोग बनें जो अपने दिल की बात कहते, खुलकर बोलते और सबके सामने खुद को उजागर करते हैं। क्या ऐसा करना आसान है? (नहीं, यह आसान नहीं है।) वास्तव में, परमेश्वर तुमसे अपना जीवन त्यागने के लिए नहीं कहता। क्या तुम्हारा जीवन तुम्हें परमेश्वर ने ही नहीं दिया था? परमेश्वर के लिए तुम्हारे जीवन का क्या उपयोग होगा? परमेश्वर उसे नहीं चाहता। वह चाहता है कि तुम ईमानदारी से बोलो, दूसरों को यह बताओ कि तुम किस तरह के व्यक्ति हो और अपने दिल में क्या सोचते हो। क्या तुम ये बातें कह सकते हो? यहाँ, यह कार्य कठिन हो जाता है, और तुम कह सकते हो, ‘मुझे कड़ी मेहनत करने दो, मुझमें उसे करने की ताकत होगी। मुझे अपनी सारी संपत्ति का त्याग करने दो, और मैं ऐसा कर सकता हूँ। मैं आसानी से अपने माता-पिता और बच्चों, अपनी शादी और आजीविका का त्याग कर सकता हूँ। लेकिन अपने दिल की बात कहना, ईमानदारी से बोलना—यही एक काम मैं नहीं कर सकता।’ क्या कारण है कि तुम ऐसा नहीं कर सकते? इसका कारण यह है कि तुम्हारे ऐसा करने के बाद जो कोई भी तुम्हें जानता है या तुमसे परिचित है, वह तुम्हें अलग तरह से देखेगा। वह अब तुम्हारा आदर नहीं करेगा। तुम्हारी मान-मर्यादा चली जाएगी और तुम बुरी तरह से अपमानित होगे, तुम्हारी सत्यनिष्ठा और गरिमा खत्म हो जाएगी। दूसरों के दिलों में तुम्हारा ऊँचा रुतबा और प्रतिष्ठा नहीं रहेगी। इसलिए ऐसे हालात में चाहे कुछ भी हो जाए, तुम सच नहीं कहोगे। जब लोगों के सामने यह स्थिति आती है, तो उनके दिलों में एक जंग होती है। जब वह जंग खत्म होती है, तो कुछ लोग अंततः अपनी कठिनाइयों से निकल आते हैं, जबकि अन्य अपने शैतानी स्वभावों की बेड़ियों और बाधाओं को आज तक तोड़ नहीं पाए हैं और अपने रुतबे, अभिमान, घमंड और तथाकथित गरिमा से नियंत्रित होते रहते हैं। यह एक कठिनाई है, है न?” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, उचित कर्तव्यपालन के लिए आवश्यक है सामंजस्यपूर्ण सहयोग)। “तुम एक ईमानदार व्यक्ति बनने की इच्छा रखते हो, लेकिन तुम अपना अभिमान, दिखावा और व्यक्तिगत हित नहीं छोड़ पाते। इसलिए तुम इन चीजों को बनाए रखने के लिए सिर्फ झूठ बोलने का ही सहारा ले सकते हो। अगर तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसे सत्य से प्रेम है, तो सत्य का अभ्यास करने के लिए तुम विभिन्न कठिनाइयाँ सहन करोगे। अगर इसका मतलब अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत का बलिदान और दूसरों से उपहास और अपमान सहना भी हो, तो भी तुम बुरा नहीं मानोगे—अगर तुम सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने में सक्षम हो, तो यह पर्याप्त है। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं, वे इसका अभ्यास करना और ईमानदार रहना चुनते हैं। यही सही मार्ग है, और इस पर परमेश्वर का आशीष है। अगर व्यक्ति सत्य से प्रेम नहीं करता, तो वह क्या चुनता है? वह अपनी प्रतिष्ठा, हैसियत, गरिमा और सत्यनिष्ठा बनाए रखने के लिए झूठ का उपयोग करना चुनता है। वह धोखेबाज़ होना ज्यादा पसंद करेगा और परमेश्वर उससे घृणा कर उसे ठुकरा देगा। ऐसे लोग सत्य को नकारते हैं और परमेश्वर को भी नकारते हैं। वे अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत चुनते हैं; वे धोखेबाज होना चाहते हैं। वे इस बात की परवाह नहीं करते कि परमेश्वर प्रसन्न होता है या नहीं, या वह उन्हें बचाएगा या नहीं। क्या परमेश्वर अभी भी ऐसे लोगों को बचा सकता है? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि उन्होंने गलत मार्ग चुना है। वे सिर्फ झूठ बोलकर और धोखा देकर ही जीवित रह सकते हैं; वे रोजाना सिर्फ झूठ बोलकर उसे छिपाने और अपना बचाव करने में अपना दिमाग लगाने का दर्दनाक जीवन ही जी सकते हैं। अगर तुम सोचते हो कि झूठ वह प्रतिष्ठा, रुतबा, दिखावा और अभिमान बरकरार रख सकता है जो तुम चाहते हो, तो तुम पूरी तरह से गलत हो। वास्तव में झूठ बोलकर तुम न सिर्फ अपना अभिमान और दिखावा, और अपनी गरिमा और सत्यनिष्ठा बनाए रखने में विफल रहते हो, बल्कि इससे भी गंभीर बात यह है कि तुम सत्य का अभ्यास करने और एक ईमानदार व्यक्ति बनने का अवसर चूक जाते हो। अगर तुम उस पल अपनी प्रतिष्ठा, रुतबा, अभिमान और दिखावा बचाने में सफल हो भी जाते हो, तो भी तुमने सत्य का बलिदान किया है और परमेश्वर को धोखा दिया है। इसका मतलब है कि तुमने उसके द्वारा बचाए और पूर्ण किए जाने का मौका पूरी तरह से खो दिया है, जो सबसे बड़ा नुकसान और जीवन भर का अफसोस है। जो लोग धोखेबाज हैं, वे इसे कभी नहीं समझेंगे” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल एक ईमानदार व्यक्ति बनकर ही कोई सच्चे मानव के समान जी सकता है)। परमेश्वर का हर एक वचन मेरे दिल में चुभ गया। मैं लोगों के दिलों में अपने रुतबे को किसी भी चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण मानता था और इन चीजों की रक्षा के लिए, मैं एक भी ईमानदार शब्द नहीं बोल पाता था। मैं एक ऐसा ईमानदार व्यक्ति बनने के बजाय, जो सरल हो, खुलकर बात करे और सत्य का अभ्यास करे, धोखेबाज बनना और अपनी गलतियों को छिपाना पसंद करता था। इससे पता चला कि मुझे सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं था। ईमानदार लोग अपनी कमियों और समस्याओं का सीधे सामना कर सकते हैं और सत्य का अभ्यास करने के लिए, वे हर तरह का अपमान और दर्द सहने को तैयार रहते हैं। लेकिन मुझे बस अपनी गलतियों और समस्याओं के बारे में सरल और खुले दिल का होना था और बिना किसी अपमान या उपहास का सामना किए भी, मैं फिर भी ऐसा नहीं कर सका। जब समस्याएँ आतीं, तो मैं हमेशा खुद को सही ठहराने और अपना बचाव करने के लिए बहाने बनाता था, अपने मसलों को छिपाने की कोशिश करता था। मैं या तो प्री-प्रोडक्शन प्रक्रिया जैसी चीजों को दोष देता या फिर उपकरण या सॉफ्टवेयर को। इस बार जब फिल्म में कोई मसला था, तो मैं दूसरे पर दोष भी मढ़ना चाहता था और मैंने गलती न पकड़ने के लिए मन ही मन बहन के बारे में शिकायत की। मुझमें सचमुच विवेक की कमी थी और मैं धोखेबाज था! मुझे एहसास हुआ कि अपने आत्म-सम्मान और रुतबे को बचाने के लिए, मैं कोई भी बहाना बना सकता था। मुझे एहसास हुआ कि मैं “जैसे पेड़ को उसकी छाल की जरूरत है वैसे ही लोगों को आत्मसम्मान की जरूरत है,” और “मान-सम्मान अनमोल है” जैसे शैतानी जहरों से भ्रष्ट और प्रभावित हो गया था। मैं हमेशा मानता था कि मेरे जीवन का कोई मूल्य तभी है जब दूसरे मेरा आदर करें और मुझे स्वीकार करें और दूसरों की प्रशंसा के बिना, जीवन का कोई अर्थ नहीं था। अपने कर्तव्य में, मैं लगातार अपने आत्म-सम्मान और रुतबे के बारे में सोचता था और जैसे ही कोई गलती होती, मैं दूसरों को पता चलने से बहुत डर जाता था। मेरे सतर्क और बचाव वाले व्यवहार से पता चलता था कि मैं रुतबे और प्रतिष्ठा को सबसे ऊपर महत्व देता था। बाहरी तौर पर, मैंने अपना कर्तव्य करने के लिए अपने परिवार और करियर का त्याग किया था, मैंने ओवरटाइम काम किया और कीमत चुकाई, लेकिन जब अपनी गलतियाँ मानने का समय आया, सच्चाई से बोलने और खुलकर अपनी भ्रष्टता और कमियों को उजागर करने का समय आया, तो मैं बस ऐसा नहीं कर सका। अपने आत्म-सम्मान और रुतबे को बचाने या एक ईमानदार व्यक्ति होने के बीच, मैंने बार-बार पहले वाले को ही चुना। मैंने देखा कि आत्म-सम्मान और रुतबे ने मुझे कितनी मजबूती से बाँध और नियंत्रित कर रखा था। बाहरी तौर पर मैंने शायद अपनी गलतियाँ छिपा ली थीं, लेकिन मैंने अपने भाई-बहनों को धोखा दिया था और बिना किसी सत्यनिष्ठा या गरिमा के जिया था और मैं अब भी शैतान की शक्ति के अधीन जी रहा था। मैं स्पष्ट रूप से शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया था, शैतानी स्वभावों और सभी प्रकार के शैतानी जहरों से भरा हुआ था और फिर भी मैं खुद को एक अचूक, त्रुटिहीन संत के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करता था। मैं कितना नकली और पाखंडी था! भले ही मैं अपनी गलतियाँ छिपा सकता, उससे वास्तव में क्या हासिल होता? बार-बार, मैंने सिर्फ अपनी इज्जत बचाने के लिए चालाकी और धोखे का सहारा लिया, सत्य का अभ्यास करने और एक ईमानदार व्यक्ति बनने का मौका गँवा दिया। परमेश्वर की नजरों में, ऐसा व्यवहार धोखा और पाखंड है और अगर मैं धोखेबाजी और ढोंग के इस भ्रष्ट स्वभाव को त्यागे बिना चलता रहा, तो मैं निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा ठुकराकर हटा दिया जाऊँगा और यह एक बहुत बड़ा नुकसान होगा! यह सोचकर, मैं अब और आत्म-सम्मान की खातिर नहीं जीना चाहता था और मैं खुद को छिपाने और धोखा देने के मसले को हल करने के लिए सत्य खोजने को तैयार हो गया।
बाद में, मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “कोई भी समस्या पैदा होने पर, चाहे वह कैसी भी हो, तुम्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और तुम्हें किसी भी तरीके से छद्म व्यवहार नहीं करना चाहिए या दूसरों के सामने नकली चेहरा नहीं लगाना चाहिए। तुम्हारी कमियाँ हों, खामियाँ हों, गलतियाँ हों, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव हों—तुम्हें उनके बारे में कुछ छिपाना नहीं चाहिए और उन सभी के बारे में संगति करनी चाहिए। उन्हें अपने अंदर न रखो। अपनी बात खुलकर कैसे रखें, यह सीखना जीवन प्रवेश का सबसे पहला कदम है और यही वह पहली बाधा है जिसे पार करना सबसे मुश्किल है। एक बार तुमने इसे पार कर लिया तो सत्य में प्रवेश करना आसान हो जाता है। यह कदम उठाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम अपना हृदय खोल रहे हो और वह सब कुछ दिखा रहे हो जो तुम्हारे पास है, अच्छा या बुरा, सकारात्मक या नकारात्मक; दूसरों और परमेश्वर के देखने के लिए खुद को खोलना; परमेश्वर से कुछ न छिपाना, कुछ गुप्त न रखना, कोई स्वांग न करना, धोखेबाजी और चालबाजी से मुक्त रहना, और इसी तरह दूसरे लोगों के साथ खुला और ईमानदार रहना। इस तरह, तुम प्रकाश में रहते हो, और न सिर्फ परमेश्वर तुम्हारी पड़ताल करेगा बल्कि अन्य लोग यह देख पाएँगे कि तुम सिद्धांत से और एक हद तक पारदर्शिता से काम करते हो। तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा, छवि और हैसियत की रक्षा करने के लिए किसी भी तरीके का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है, न ही तुम्हें अपनी गलतियाँ ढकने या छिपाने की आवश्यकता है। तुम्हें इन बेकार के प्रयासों में लगने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम इन चीजों को छोड़ पाओ, तो तुम बहुत आराम से रहोगे, तुम बिना बाधित हुए या पीड़ा के जियोगे, और पूरी तरह से प्रकाश में जियोगे” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गया कि एक ईमानदार व्यक्ति बनने का पहला कदम सरल और खुले दिल का होना है। व्यक्ति को अपनी कमियों और भ्रष्टता के बारे में खुलकर बात करने की हिम्मत करनी चाहिए। खासकर जब तुमने कोई गलती की हो और तुम नहीं चाहते कि दूसरों को पता चले, तभी तुम्हें खुद को खोलकर रख देने की जरूरत है और चाहे गलती कितनी भी मूर्खतापूर्ण या नौसिखिए वाली क्यों न लगे, तुम्हें उसके बारे में ईमानदार होना चाहिए। परमेश्वर जिस चीज को महत्व देता है, वह है सत्य से प्रेम करने वाला दिल और ईमानदार होने का प्रयास करने वाला रवैया, भले ही इसकी कीमत अपनी इज्जत गँवाना ही क्यों न हो। मैंने देखा कि मैं अभी भी एक ईमानदार व्यक्ति होने से बहुत दूर था, लेकिन मैं इस क्षेत्र में प्रशिक्षण लेने और अभ्यास करने को तैयार था। आगे से, अगर मैं अपने कर्तव्य में कोई गलती या त्रुटि करता, तो मैं सचेत रूप से दूसरों से इस बारे में खुलकर बात करता और जब मैंने ऐसा किया, तो भाई-बहनों ने मुझे नीची नजर से नहीं देखा। इसके बजाय, मुझे उनकी सच्ची मदद मिली। धीरे-धीरे, मैं पहले की तरह गलतियाँ करने पर दोषी, भयभीत महसूस नहीं करता था या उन्हें छिपाने की कोशिश नहीं करता था। पीछे मुड़कर देखूँ तो जब मैं गलतियाँ करने के बाद खुलकर बात करने की हिम्मत नहीं करता था, तो मैं एक अंधेरे कोने में छिपे चूहे की तरह था, जो रोशनी में आने से डरता है। अब, भाई-बहनों से खुलकर बात करने के बाद, मैंने मुक्त महसूस किया, जैसे कि कोई बोझ उतर गया हो। बाद में, मैंने खोई हुई प्रोजेक्ट फाइलों और ऑडियो-वीडियो में तालमेल न होने जैसी समस्याओं पर चिंतन किया। ऐसा मुख्य रूप से इसलिए हुआ था क्योंकि मैं अपने कर्तव्य में लापरवाह था और अनुभव पर भरोसा करता था और क्योंकि मुझे खुद पर बहुत ज्यादा भरोसा था। भविष्य में इन समस्याओं से बचने के लिए, मैं नियमित रूप से प्रोजेक्ट का बैकअप लेता और अब खुद पर इतना भरोसा नहीं करता और इसके बजाय, मैं अपने कर्तव्य को सावधानी से करता।
एक बार, लापरवाही से, मैंने पहले से अपलोड किए गए कई वीडियो प्रोजेक्ट डिलीट कर दिए। भाई-बहनों ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और इसके बारे में अगुआ को रिपोर्ट करने की जरूरत है। लेकिन मुझे सच में चिंता थी कि पता चलने पर अगुआ मेरे बारे में बुरा सोचेगा, इसलिए मैं मामले को दबाना चाहता था। मैंने उन प्रोजेक्ट को बहाल करने में कुछ समय बिताया, यह सोचते हुए कि समस्या को ठीक करना ही काफी होगा, इसलिए मैंने तुरंत अगुआ को नहीं बताया। लेकिन बाद में, मुझे काफी अपराध-बोध हुआ। एक सभा के दौरान, मैं अपनी की हुई गलती के बारे में अगुआ से खुलकर बात करना चाहता था, लेकिन मैं अभी भी अपने आत्म-सम्मान को लेकर इतना चिंतित था कि बोल नहीं पाया। तभी, हमने संयोग से परमेश्वर के वचनों का एक ऐसा अंश पढ़ा जिसने मुझे गहराई से प्रभावित किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “भ्रष्ट मानवजाति में एक और दोष है : वह खुद को विशेष रूप से कुलीन और महान, विशेष रूप से अंतर्दृष्टिपूर्ण और संपन्न और विशेष रूप से एक विशेष रुतबे और पृष्ठभूमि वाले के रूप में वर्णित करना पसंद करती है। वह कभी भी उन घिनौनी और बेवकूफी भरी चीजों का जिक्र नहीं करती जो उसने गुप्त रूप से की हैं और न ही अपनी की हुई गलतियों का या उसमें जो कमियाँ और दोष हैं उनका जिक्र करती है—वह एक शब्द नहीं कहती और न ही रत्ती भर विवरण मुँह से निकलने देती है, डरती है कि दूसरे लोग उसके बारे में सच्चाई का पता लगा लेंगे, कि दूसरे लोग देख लेंगे कि वह वास्तव में क्या है। क्या यह मुखोटा लगाना नहीं है? क्या यह झूठ बोलना और धोखा नहीं है? (हाँ।)” (वचन, खंड 7, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (25))। जब मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया, तो मुझे एहसास हुआ कि मैं एक बार फिर अपने आत्म-सम्मान और रुतबे को बचाने के लिए अपनी गलती छिपाने की कोशिश कर रहा था। भले ही मैंने सभी प्रोजेक्ट को बहाल कर दिया और ऐसा लगा कि कलीसिया के काम को कोई नुकसान नहीं हुआ है, मैं अभी भी इस मामले में अपनी गलतियों को छिपाने की प्रवृत्ति दिखा रहा था और मैं नहीं चाहता था कि दूसरे मेरी कमियों को देखें। यह एक भ्रष्ट स्वभाव था और यह मामला मेरे कर्तव्य के दौरान उत्पन्न हुई एक समस्या थी, इसलिए मुझे सभी बारीकियों की रिपोर्ट अगुआ को स्पष्ट रूप से और ईमानदारी से करने की जरूरत थी। तो मैंने मन ही मन प्रार्थना की : “परमेश्वर, मैं अपने धोखेबाज भ्रष्ट स्वभाव के सहारे नहीं जीना चाहता। मेरे दिल की पड़ताल करो। मैं सरल, खुले दिल वाला और एक ईमानदार व्यक्ति बनने को तैयार हूँ।” प्रार्थना करने के बाद, मैंने इसमें प्रकट हुई अपनी भ्रष्टता और खुद के बारे में अपनी समझ के बारे में संगति की। अपनी बात खत्म करने के बाद, मुझे लगा जैसे कोई बोझ उतर गया हो। भले ही उस समय मैं थोड़ा शर्मिंदा था, जब मैंने खुलकर संगति की तो मेरे दिल को बहुत अधिक सहजता महसूस हुई। परमेश्वर का धन्यवाद!