240 परमेश्वर द्वारा लोगों की निंदा का आधार
1 जिस दौरान, परमेश्वर ने देहधारण नहीं किया था, तब कोई इंसान परमेश्वर विरोधी है या नहीं, यह इस बात से तय होता था कि क्या इंसान स्वर्ग के अदृश्य परमेश्वर की आराधना और उसका आदर करता था या नहीं। उस समय परमेश्वर के प्रति विरोध को जिस ढंग से परिभाषित किया गया, वह उतना भी व्यावहारिक नहीं था क्योंकि तब इंसान परमेश्वर को देख नहीं पाता था, न ही उसे यह पता था कि परमेश्वर की छवि कैसी है, वह कैसे कार्य करता है और कैसे बोलता है। परमेश्वर के बारे में इंसान की कोई धारणा नहीं थी, परमेश्वर के बारे में उसकी एक अस्पष्ट आस्था थी, क्योंकि परमेश्वर अभी तक इंसानों के सामने प्रकट नहीं हुआ था। इसलिए इंसान ने अपनी कल्पना में परमेश्वर में चाहे जैसे भी विश्वास किया हो, परमेश्वर ने न तो इंसान की निंदा की, न ही उससे बहुत ही ऊँची अपेक्षाएँ कीं, क्योंकि इंसान परमेश्वर को देखने में बिल्कुल असमर्थ था।
2 परमेश्वर जब देहधारण कर इंसानों के बीच काम करने आता है, तो सभी उसे देखते और उसके वचनों को सुनते हैं, और सभी लोग उन कर्मों को देखते हैं जो परमेश्वर देह रूप में करता है। उस क्षण, इंसान की तमाम धारणाएँ साबुन के झाग बन जाती हैं। जहाँ तक उन लोगों की बात है जिन्होंने परमेश्वर को देह में प्रकट होते देखा है, यदि वे अपनी इच्छा से उसके प्रति समर्पण करेंगे, तो उनकी निंदा नहीं की जाएगी, जबकि जो लोग जानबूझकर परमेश्वर के विरुद्ध खड़े होते हैं, वे परमेश्वर का विरोध करने वाले माने जाएँगे। ऐसे लोग मसीह-विरोधी और शत्रु हैं जो जानबूझकर परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं। ऐसे लोग जो परमेश्वर के बारे में धारणाएँ रखते हैं, मगर खुशी से उसके प्रति समर्पण करते हैं, वे निंदित नहीं किए जाएँगे। परमेश्वर मनुष्य की नीयत और क्रियाकलापों के आधार पर उसकी निंदा करता है, उसके विचारों और मत के आधार पर कभी नहीं। यदि वह विचारों और मत के आधार पर इंसान की निंदा करता, तो कोई भी परमेश्वर के रोषपूर्ण हाथों से बच कर भाग नहीं पाता।
3 जो लोग जानबूझकर देहधारी परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं, वे समर्पण न करने के कारण दण्ड पाएँगे। जो लोग जानबूझकर परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं, उनका विरोध परमेश्वर के प्रति उनकी धारणाओं से उत्पन्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप वे परमेश्वर के कार्य में विघ्न पैदा करने वाले कार्यकलाप करते हैं। ये लोग जान-बूझकर परमेश्वर के कार्य का विरोध कर उसे नष्ट करते हैं। उनके मन में परमेश्वर को लेकर न केवल धारणाएँ होती हैं, बल्कि वे ऐसे कार्यकलाप भी करते हैं जो परमेश्वर के कार्य में विघ्न डालते हैं, और यही कारण है कि इस तरह के लोगों की निंदा की जाएगी। जो लोग जानबूझकर परमेश्वर के कार्य में विघ्न डालने में लिप्त नहीं होते, उनकी पापियों के समान निंदा नहीं की जाएगी, क्योंकि वे अपनी इच्छा से समर्पण कर पाते हैं और गड़बड़ी और विघ्न उत्पन्न करने वाली गतिविधियों में लिप्त नहीं होते। ऐसे व्यक्तियों की निंदा नहीं की जाएगी।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं