301 सबसे असल है परमेश्वर का प्रेम
1 जब तुममें परमेश्वर का विजय-कार्य किया जाता है, तो वह एक महान उद्धार है। तुम सब पाप और व्यभिचार की धरती पर रहते हो; और तुम सब व्यभिचारी और पापी हो। आज तुम लोग न केवल परमेश्वर को देख सकते हो, बल्कि उससे भी महत्वपूर्ण रूप से, तुम लोगों ने ताड़ना और न्याय प्राप्त किया है, तुमने यह गहनतम उद्धार प्राप्त किया है, दूसरे शब्दों में, तुमने परमेश्वर का महानतम प्रेम प्राप्त किया है। वह जो कुछ करता है, उस सबमें वह तुम्हारे प्रति वास्तव में प्रेमपूर्ण है। वह कोई बुरी मंशा नहीं रखता। यह तुम लोगों के पापों के कारण है कि वह तुम लोगों का न्याय करता है, ताकि तुम आत्म-चिंतन करो और यह जबरदस्त उद्धार प्राप्त करो। ये सब मनुष्य को पूर्ण करने के लिए किया जाता है। प्रारंभ से लेकर अंत तक, परमेश्वर मनुष्य को बचाने के लिए पूरी कोशिश कर रहा है, और वह अपने ही हाथों से बनाए हुए मनुष्य को पूर्णतया नष्ट करने का इच्छुक नहीं है। आज वह कार्य करने के लिए तुम लोगों के मध्य आया है; क्या यह और भी उद्धार नहीं है?
2 परमेश्वर तुम लोगों से घृणा नहीं करता, न ही तुम्हारे प्रति कोई बुरी मंशा रखता है। तुम लोगों को जानना चाहिए कि परमेश्वर का प्रेम सर्वाधिक वास्तविक है। केवल लोगों के विद्रोही होने के कारण ही उसे न्याय के माध्यम से उन्हें बचाना पड़ता है; यदि वह ऐसा न करे, तो उन्हें बचाया जाना असंभव होगा। क्योंकि तुम लोग नहीं जानते कि कैसे अपना जीवन जिया जाए, यहाँ तक कि जीने का तरीका भी नहीं जानते हो, और चूँकि तुम इस व्यभिचारी और पापमय भूमि पर जीते हो और स्वयं व्यभिचारी और गंदे दानव हो, इसलिए वह सह नहीं सकता कि तुम्हें और अधिक पतित बनने दे, वह तुम्हें इस मलिन भूमि पर रहते हुए देखना नहीं सह सकता जैसे तुम अभी जी रहे हो और शैतान द्वारा उसकी इच्छानुसार कुचले जा रहे हो, और वह नहीं सह सकता कि तुम्हें रसातल में गिरने दे। वह केवल लोगों के इस समूह को प्राप्त करना और तुम लोगों को पूर्णतः बचाना चाहता है। तुम लोगों पर विजय का कार्य करने का यह मुख्य उद्देश्य है—यह उद्धार के लिए है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (4)