471  परमेश्वर पर भरोसे का सच्चा अर्थ

1

परमेश्वर में भरोसा तो बहुत लोग करते हैं,

मगर उसके असली मायने कुछ ही समझते हैं,

उसके दिल के साथ धड़कने के लिए क्या करें, वे नहीं समझते हैं।

बहुतों न सुना है "परमेश्वर और उसका काम",

मगर न उसे जानते हैं, ना उसका काम।

कोई अचरज नहीं, उनका विश्वास अंधा है।

वे संजीदा भी नहीं क्योंकि ये अनजाना और अनूठा है।

यही वजह है, वो परमेश्वर की मांगों से बहुत पीछे हैं।

परमेश्वर को, उसके काम को जाने बिना, क्या उसके काम आ सकोगे?

क्या परमेश्वर की इच्छा पूरी कर सकोगे?

क्या परमेश्वर की इच्छा पूरी कर सकोगे?

उसके वजूद में विश्वास करना काफी नहीं।

ये बहुत आसान है, धार्मिक भी।

ये उसमें सच्ची आस्था की तरह नहीं।

परमेश्वर पर सच्ची आस्था के मायने हैं,

तुम उसके काम का, वचनों का अनुभव लेते हो,

इस विश्वास पर, कि परमेश्वर का प्रभुत्व है हर चीज़ पर।

फिर तुम भ्रष्ट स्वभाव से मुक्ति पा सकोगे,

परमेश्वर की इच्छा पूरी कर उसे जान सकोगे।

यही है परमेश्वर पर सच्चे विश्वास का रास्ता।

यही है परमेश्वर पर सच्चे विश्वास का रास्ता।


2

बहुत से मानते हैं परमेश्वर में विश्वास करना है सरल और सतही।

ऐसे विश्वास का मतलब नहीं। कैसे करें परमेश्वर स्वीकार?

वे हैं गलत पथ पर।

जिन्हें महज अक्षरों, खोखली तालीम पर भरोसा है, नहीं जानते

उनका विश्वास ख्याली है, परमेश्वर को स्वीकार नहीं।

फिर भी वे शांति और कृपा की प्रार्थना करते हैं।

सोचो क्या इतना सरल है भरोसा करना।

क्या ये है बस शांति और कृपा मांगना?

क्या तुम उसकी इच्छा पूरी कर सकते हो,

जबकि उसे जाने बिना उसका विरोध करते हो?


3

परमेश्वर के वजूद में विश्वास करना काफी नहीं।

ये बहुत आसान है, धार्मिक भी।

ये उसमें सच्ची आस्था की तरह नहीं।

परमेश्वर पर सच्ची आस्था के मायने हैं,

तुम उसके काम का, वचनों का अनुभव लेते हो,

इस विश्वास पर, कि परमेश्वर का प्रभुत्व है हर चीज़ पर।

फिर तुम भ्रष्ट स्वभाव से मुक्ति पा सकोगे,

परमेश्वर की इच्छा पूरी कर उसे जान सकोगे।

यही है परमेश्वर पर सच्चे विश्वास का रास्ता।

यही है परमेश्वर पर सच्चे विश्वास का रास्ता।

यही है परमेश्वर पर सच्चे विश्वास का रास्ता।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना से रूपांतरित

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