569  किसी को भी सक्रिय रूप से परमेश्वर को समझने की परवाह नहीं

1

जब ईश्वर होता है परेशान, वह सामना करता है मानवजाति का

जो उसकी तरफ़ बिलकुल ध्यान नहीं देती,

जो उसका अनुसरण, उससे प्रेम का दावा,

लेकिन उसके भाव की उपेक्षा करती है।

कैसे उसका दिल न दुखे?

यहाँ तक कि जो बनना चाहते हैं विश्वासपात्र ईश्वर के,

वे नहीं जाना चाहते उसके निकट, जानना या उसके दिल का रखना ख़याल।

परमेश्वर अकेला है!

सिर्फ़ इसलिए नहीं क्योंकि भ्रष्ट मानवजाति उसका विरोध करती है,

पर वे जो आध्यात्मिक होना चाहते हैं, वे जो ईश्वर को जानना चाहते हैं,

वे भी जो ईश्वर को जीवन देना चाहते हैं, नहीं समझते उसके विचारों को।

वे नहीं जानते उसका स्वभाव या उसकी भावनाओं को।

ओह, परमेश्वर अकेला है, परमेश्वर अकेला है।


2

परमेश्वर के प्रबंधन कार्य में, वह निष्ठा से कार्य करता और बोलता है,

और बिन रोक के सामना करता है, उसके अनुयायी उसके प्रति अवरुद्ध हैं।

कोई नहीं चाहता पास आना, समझना उसका दिल या उसकी भावना।

यहाँ तक कि जो बनना चाहते हैं विश्वासपात्र ईश्वर के,

वे नहीं जाना चाहते उसके निकट, जानना या उसके दिल का रखना ख़याल।

परमेश्वर अकेला है!

सिर्फ़ इसलिए नहीं क्योंकि भ्रष्ट मानवजाति उसका विरोध करती है,

पर वे जो आध्यात्मिक होना चाहते हैं, वे जो ईश्वर को जानना चाहते हैं,

वे भी जो ईश्वर को जीवन देना चाहते हैं, नहीं समझते उसके विचारों को।

वे नहीं जानते उसका स्वभाव या उसकी भावनाओं को।

ओह, परमेश्वर अकेला है, परमेश्वर अकेला है।


3

जब ईश्वर आनंदित है, कोई नहीं बाँटता उसकी ख़ुशी।

जब ग़लत समझा जाता है, उसे दिलासा नहीं देता कोई।

उसका दिल जब दुखता है भीतर से,

कोई उसके दिल की आवाज़ सुनना नहीं चाहता।

हज़ारों सालों के प्रबंधन कार्य के दौरान,

कोई नहीं समझता भावनाएँ ईश्वर की,

न कोई सराहता या उसके साथ खड़ा रहता है

उसका आनन्द और दुख बाँटने को।

यहाँ तक कि जो बनना चाहते हैं विश्वासपात्र ईश्वर के,

वे नहीं जाना चाहते उसके निकट, जानना या उसके दिल का रखना ख़याल।

परमेश्वर अकेला है!

सिर्फ़ इसलिए नहीं क्योंकि भ्रष्ट मानवजाति उसका विरोध करती है,

पर वे जो आध्यात्मिक होना चाहते हैं, वे जो ईश्वर को जानना चाहते हैं,

वे भी जो ईश्वर को जीवन देना चाहते हैं, नहीं समझते उसके विचारों को।

वे नहीं जानते उसका स्वभाव या उसकी भावनाओं को।

ओह, परमेश्वर अकेला है, परमेश्वर अकेला है।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I से रूपांतरित

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