सत्य का अनुसरण कैसे करें (15)
पिछली बार हमने दानवों से पुनर्जन्म लेने वालों में विचलन की तीन विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की थी : लंपटता, कामोत्तेजकता और व्यभिचारिता—यानी लोगों में यौन इच्छा से संबंधित विचलन की अभिव्यक्तियाँ। ऐसे लोगों की मुख्य समस्या यह है कि यौन इच्छा के प्रति उनका दृष्टिकोण विशेष रूप से उच्छृंखल होता है; वे सामान्य मानवता के जमीर और विवेक की सीमाओं का उल्लंघन करते हैं और किसी भी परिस्थिति में अपनी यौन इच्छाओं पर संयम नहीं रखते या उन्हें नियंत्रित नहीं करते, बल्कि उन्हें खुली छूट देते हैं। लोगों का एक हिस्सा ऐसे व्यक्तियों का भी होता है जो विशेष रूप से उच्छृंखल होते हैं; अर्थात् उच्छृंखल होने के आधार पर वे अनैतिक हो जाते हैं, बद से बदतर होते जाते हैं। उनमें से कुछ तो सुसमाचार का प्रचार करते हुए भी अपनी यौन इच्छाएँ पूरी करने के लिए तमाम तरह के अवसर खोजते और बनाते हैं। वे विशेष रूप से विपरीत लिंग के सदस्यों को सुसमाचार सुनाते हैं, और एक बार जब उन्हें कोई उपयुक्त लक्ष्य मिल जाता है तो वे हमला बोल देते हैं, दूसरे पक्ष को अपने जाल में फँसाने के लिए विभिन्न तरीके और साधन इस्तेमाल करते हैं, यहाँ तक कि अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए घृणित चालें भी चलते हैं। सुसमाचार का प्रचार करते हुए ये लोग न केवल इस तरह से व्यवहार करते हैं, बल्कि ऐसे काम भी करते हैं जिनसे परमेश्वर का नाम बदनाम होता है। केवल इतना ही नहीं है कि वे कामुक विचार रखते हैं, बल्कि वे सुसमाचार के प्रचार के बहाने अपनी यौन इच्छाएँ पूरी करने के लिए अवसर का फायदा उठाते हैं। यही नहीं, वे अलग-अलग उम्र और अलग-अलग परिस्थितियों वाले लोगों के साथ वही चीजें करते हुए वही गलती बार-बार करते हैं। मुझे बताओ, जब ऐसे लोगों का पता चले तो उन्हें कैसे सँभालना चाहिए? क्या उन्हें सुसमाचार के प्रचार का कर्तव्य निभाते रहने देना चाहिए या उन्हें चलता कर देना चाहिए और इस कर्तव्य को निभाने से रोक देना चाहिए? (उन्हें चलता कर देना चाहिए।) क्या उन्हें चलता कर देना अफसोस की बात है? अगर वे किसी और व्यक्ति को प्राप्त कर सकते हों तो? (अगर उन्हें वहीं रखा गया और सुसमाचार का प्रचार करते रहने दिया गया, तो परिणाम और भी गंभीर होंगे। एक बार जब वे व्यभिचारी गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं, तो बदनामी परमेश्वर के नाम पर आती है।) मुझे बताओ, क्या ऐसे लोग, जिनका मन लगातार यौन इच्छा से भरा रहता है, सुसमाचार का प्रचार करते समय लोगों को प्राप्त कर सकते हैं? (नहीं, वे नहीं कर सकते।) भले ही वे सुसमाचार का प्रचार करके कभी-कभार कुछ लोगों को प्राप्त कर लें, लेकिन वे ऐसी चीजें करने में भी सक्षम होते हैं जो परमेश्वर का नाम बदनाम करती हैं। क्या ऐसे लोगों का उपयोग करने से लाभ कम और नुकसान ज्यादा नहीं होता? (हाँ, होता है।) तो क्या उन्हें चलता कर देना तब भी अफसोस की बात है? (नहीं।) क्या ऐसे व्यक्ति बदल सकते हैं? क्या उनकी समस्या का समाधान होना आसान है? (यह आसान नहीं है। यह उनके प्रकृति सार की समस्या है; यह बदल नहीं सकती।) जो लोग काम-वासना से भरे होते हैं, वे मनुष्य नहीं होते; उनके भीतर दानववास करता है, जो उनके देह का उपयोग वह कहने के लिए करता है जो वह कहना चाहता है और वह करने के लिए करता है जो वह करना चाहता है। अगर दूसरे लोग जमीर और विवेक के अनुरूप उपदेशों और चेतावनियों का उपयोग करते हैं, तो क्या ये चीजें उनके प्रकृति सार को बदल सकती हैं? (नहीं बदल सकतीं।) तो क्या उनकी मदद करने के लिए इस समस्या का समाधान सत्य की संगति करके किया जा सकता है? (नहीं किया सकता।) अगर उनकी काट-छाँट की जाए, किसी को उनके पर्यवेक्षण के लिए नियुक्त किया जाए या उन्हें किसी अलग परिवेश में स्थानांतरित कर दिया जाए ताकि उन्हें अपनी यौन इच्छाएँ तृप्त करने का कोई अवसर न मिले, तो भी क्या उनके भीतर की दानवी प्रकृति का समाधान किया जा सकता है? (नहीं।) दानवों से पुनर्जन्म लेने वाले लोग जो कुछ भी करते हैं, वह मानवता से रहित होता है। यह उनके प्रकृति सार से निर्धारित होता है। इसलिए, तुम उन्हें उपदेश देने या उनकी मदद करने के लिए सत्य पर चाहे कितनी भी संगति करो, यह उनके प्रकृति सार की समस्या का समाधान नहीं कर सकता। एक तो, ऐसा इसलिए है क्योंकि दानवों का प्रकृति सार ऐसा होता है कि वे सत्य से घृणा करते हैं और सत्य जरा भी नहीं स्वीकार सकते। दूसरे, दानवों से पुनर्जन्म लेने वालों में जमीर और विवेक की कमी होती है और उनमें स्वयं द्वारा किए गए बुरे कर्मों के बारे में जरा भी जागरूकता नहीं होती और वे कभी शर्म, पश्चात्ताप या दुःख महसूस नहीं करते। इस तरह उनमें वह शर्मिंदगी या लज्जा का भाव नहीं होता जो सामान्य लोगों में होना चाहिए। वे मानवीय नैतिकता और आचार-नीति, या व्यक्ति के आचरण में जो गरिमा और लज्जा की भावना होनी चाहिए, उसे नहीं समझते। वे इन चीजों में से कुछ नहीं समझते। भले ही वे कुछ अच्छे लगने वाले धर्म-सिद्धांत प्रस्तुत कर सकते हों, लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि उनमें सामान्य मानवता है; वे सिर्फ पाखंडी और धोखेबाज लोग होते हैं। इसलिए ऐसे लोगों के लिए चाहे जिन सत्यों पर संगति की जाए, उनका प्रकृति सार नहीं बदला जा सकता। तो फिर इसका एक ही उपाय है : ऐसे लोगों को कर्तव्य के लिए इस्तेमाल मत करो। उन्हें दूर करो। इससे समस्या का समाधान हो जाता है। कुछ लोग कहते हैं, “अगर उन्हें हटा दिया जाए और बाहर निकाल दिया जाए, और वे अब परमेश्वर के घर में अपनी यौन इच्छाएँ तृप्त नहीं करते और कार्य में बाधा नहीं डालते, तो क्या वे गैर-विश्वासियों के बीच ये चीजें करके लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाएँगे? क्या उन्हें समाज में लोगों को नुकसान पहुँचाने से रोकने के लिए, किसी को उनके पर्यवेक्षण के लिए नियुक्त करके उन्हें परमेश्वर के घर में ही नहीं रखे रखना चाहिए?” क्या यह कथन सही है? (नहीं।) यह गलत क्यों है? (उन्हें परमेश्वर के घर में रखने से भाई-बहनों को नुकसान पहुँचता है, कलीसिया के कार्य में बाधा डलती है और परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ होती है। यह अनुचित है। उन्हें दुनिया में वापस जाने दो। दुनिया में बहुत सारे दानव और शैतान हैं, और चाहे वे जिस भी तरह की विघ्न-बाधाएँ पैदा करें, उसे दानवों को नुकसान पहुँचाना नहीं माना जा सकता। चूँकि वे सभी दानव हैं, इसलिए वे जो करते हैं उसे नुकसान पहुँचाना नहीं माना जा सकता।) क्या यह विचार वास्तविकता के अनुरूप नहीं है? (बिल्कुल है।) यह विचार सही है। जो लोग यौन इच्छाएँ तृप्त करते हैं, वे दानव हैं और उन्हें भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाने के लिए परमेश्वर के घर में नहीं रहने दिया जा सकता। वे समाज में जो कुछ भी करते हैं उसका परमेश्वर के घर से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते उनमें मानवता का अभाव होता है और वे सभी दानव होते हैं। चाहे दानव आपस में कैसे भी लड़ाई करें, उससे परमेश्वर के घर के काम में बाधा नहीं पड़ेगी। वे सभी शैतान के हैं और उनकी पहले से ही शैतान के साथ साँठ-गाँठ है। वे हजारों साल से एक-दूसरे से लड़ते और एक-दूसरे को नुकसान पहुँचाते आ रहे हैं। हमारा इससे क्या लेना-देना? वे एक-दूसरे को नुकसान पहुँचाते हैं और ऐसा वे स्वेच्छा से करते हैं। वे सब एक ही प्रकार की खराब किस्म के लोग हैं; एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। संक्षेप में, परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को नहीं चाहता। क्योंकि जो लोग दानव हैं, वे उचित कार्य नहीं करते और उनमें जमीर या विवेक नहीं होता, वे जहाँ भी होते हैं, सिर्फ बाधाएँ ही पैदा करते हैं, और वे सिर्फ तोड़फोड़ और विनाश में ही लगे रहते हैं। वे ऐसा कुछ नहीं कर सकते जो लोगों के लिए लाभदायक हो। वे सिर्फ लोगों को नुकसान पहुँचा सकते हैं। अगर वे कुछ सेवा कर भी सकें, तो भी उनके द्वारा पहुँचाया गया नुकसान उससे कहीं ज्यादा होता है। ऐसे लोग भले ही बहुत शिष्ट लगें और ऐसा लगे कि उन्होंने कुछ भी बुरा नहीं किया है, लेकिन एक बार मौका मिलते ही वे वास्तव में बुरी चीजें करने में सक्षम होते हैं। इसलिए, ऐसे लोगों को तुरंत बाहर निकालकर उनसे निपटा जाना चाहिए। हालाँकि वे कुछ सेवा प्रदान कर सकते हैं और कुछ सही चीजें कर सकते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उन्होंने वाकई पश्चात्ताप किया है, और यह तो बिल्कुल भी नहीं कि उनका प्रकृति सार बदल गया है। उनकी वर्तमान स्थिति चाहे जो भी हो, किसी को उनके झूठे रंग-रूप से गुमराह नहीं होना चाहिए, उन पर भरोसा या यह विश्वास तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए कि वे कोई काम कर सकते हैं। चूँकि उनका प्रकृति सार दानव का होता है, इसलिए जहाँ भी वे कलीसियाई जीवन जीते हैं, वे एक टाइम बम की तरह होते हैं और सभी के लिए खतरा हैं। अगर वे अस्थायी तौर पर बुरी चीजें करने से दूर रहते हैं, तो भी उनका हर शब्द और हर क्रियाकलाप, उनका हर कदम तुम्हारे मन और भावनाओं में दखल देगा, यहाँ तक कि वह तुम्हारे दृष्टिकोण को भी प्रभावित कर सकता है। यह दानव के आसपास होने का परिणाम है। उदाहरण के लिए, मान लो तुम हाल ही में किसी बुरी दशा में या कुछ हद तक नकारात्मक रहे हो या तुमने कुछ नकारात्मक प्रचार और निराधार अफवाहें सुनी हैं, जिनके कारण तुमने परमेश्वर के बारे में धारणाएँ विकसित कर ली हैं। अगर तुम्हारे आसपास कोई दानव है, तो हो सकता है तुम्हें सोते समय बुरे सपने आते रहें। यह भी हो सकता है कि उससे बातचीत करने के बाद न सिर्फ तुम्हारी दशा सकारात्मक और उत्साहित होने में विफल रहे, बल्कि तुम अपने आत्मा के भीतर उत्तरोत्तर खिन्न और अंधकारमय महसूस करो। तुम उसके जितने करीब आते हो, उतना ही कम तुम परमेश्वर की उपस्थिति महसूस कर सकते हो। तुम जितने लंबे समय तक उसके संपर्क में रहते हो, तुम्हारा हृदय परमेश्वर से उतना ही दूर होता जाता है, और तुम्हें परमेश्वर में विश्वास करना उतना ही निरर्थक लगेगा, यहाँ तक कि उसका हर शब्द और क्रियाकलाप तुम्हारे विचारों को प्रभावित करेगा और तुम्हारे आसपास के लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति तुम्हारे दृष्टिकोणों और रवैयों को प्रभावित करेगा। लेकिन जब तुम साधारण भ्रष्ट मनुष्यों के साथ बातचीत करते हो और उनसे जुड़ते हो, तब अलग बात होती है, और तब तुम्हें ये प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ नहीं मिलेंगी। इसलिए, अगर लोग ऐसे लोगों के आसपास होने पर जो दानव हैं, उनकी वजह से होने वाला नुकसान स्पष्ट रूप से महसूस नहीं कर सकते, तो भी वे दूसरों को जो नुकसान पहुँचाते हैं वह स्थायी होता है, वैसे ही उनसे अन्य लोगों को खतरा भी स्थायी होता है। अगर वे तुम्हारे प्रति काफी मित्रवत दिखें, तुमसे घृणा करते न दिखें और उन्होंने तुम्हारी आलोचना या तुम पर हमला न किया हो, तो भी जब तक वे दानव हैं और मनुष्य नहीं हैं, तब तक उनके शब्दों और क्रियाकलापों, वाणी और व्यवहार का तुम पर प्रभाव पड़ेगा। यह प्रभाव तुम्हारे जाने बिना ही पड़ता है, और जो लोग सत्य नहीं समझते वे हो सकता है इसे महसूस न करें। इसलिए अगर दानवों से पुनर्जन्म लेने वाले लोग सुसमाचार-टीमों के भीतर पाए जाते हैं, खासकर वे लोग जो बेलगाम अपनी यौन इच्छाएँ तृप्त करते हैं, तो उनसे तुरंत निपटना चाहिए और उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए। बुरे लोगों के साथ उदार नहीं होना चाहिए और उन्हें बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। लोग हमेशा सोचते हैं कि सुसमाचार-टीमों में एक और व्यक्ति का होना सुसमाचार के प्रयासों में काफी ताकत जोड़ता है। एक और व्यक्ति का होना स्वीकार्य है, लेकिन किसी दानव के जुड़ने का मतलब है मुसीबत। अगर वह एक और व्यक्ति है, तो भले ही उसकी काबिलियत थोड़ी खराब हो और वह सिर्फ आसान काम ही कर सके, कम से कम वह किसी दानव की तरह कलीसिया के काम में बाधा तो नहीं डालेगा या उसे नुकसान तो नहीं पहुँचाएगा। लेकिन दानव अलग होता है। शायद वह बाहर से स्पष्टवादी और वाक्पटु हो और अपनी काबिलियत के आधार पर किसी खास कार्यक्षेत्र के पर्यवेक्षक के रूप में वह सक्षम हो सकता है। लेकिन उसके प्रकृति सार को देखते हुए उसके लिए कार्य अच्छी तरह से करना बिल्कुल असंभव है। वह उसे पूरी तरह से बिगाड़ ही सकता है, क्योंकि दानव जो कुछ भी करते हैं, वह गड़बड़ी, विघ्न और नुकसान ही लाता है। इसलिए, ऐसे लोगों के बुरे कर्म तुरंत उजागर करने चाहिए और उनका भेद पहचानना चाहिए, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग दानवों के बुरे कर्म पहचान सकें और उनका भेद पहचान सकें। जब तक तुम्हें यह पता नहीं चलता या एहसास नहीं होता कि वे दानव हैं और तुम्हें लगता है कि वे सामान्य लोग हैं जो कभी-कभार अपनी दुष्ट काम-वासना प्रकट कर देते हैं—यह उन्हें आगे की निगरानी के लिए रुकने देने का मुश्किल से एक औचित्य हो सकता है। अगर तुम्हें पता चले कि वे सिर्फ कभी-कभार दुष्ट काम-वासना प्रकट नहीं करते, बल्कि उसमें आनंद लेते हैं, उन लंपट लोगों की तरह जो जहाँ भी जाते हैं, अपनी यौन इच्छाओं को तृप्त करने के लिए विपरीत लिंग के अपने पसंदीदा सदस्यों को खोजना अपनी प्राथमिकता बना लेते हैं—जैसे दानवों का उन आत्माओं को खोजना जिन्हें वे निगल सकें, हर जगह लोगों को गुमराह करना, फँसाना और नुकसान पहुँचाना—और वे जिसके भी संपर्क में आते हैं वही उनका उत्पीड़न सहता है, और वे अपने पीछे लगातार ऐसी समस्याएँ छोड़ते जाते हैं, तो यह किसी इंसान का व्यवहार नहीं है; यह स्पष्ट रूप से किसी दानव का व्यवहार है। भावी परेशानी से बचने के लिए दानवों को जल्द से जल्द बाहर निकाल देना चाहिए। हर व्यक्ति कभी-कभार गलतियाँ कर सकता है, नियंत्रण खो सकता है, यहाँ तक कि मानवता की सीमाएँ लाँघने वाली चीजें भी कर सकता है, लेकिन यह व्यवहार स्थायी नहीं होता, वह इसमें आनंद नहीं लेता, और गलत काम और अपराध करने के बाद उसे पछतावा, अपराध-बोध और शर्मिंदगी महसूस होती है। जब उसका फिर से उसी स्थिति या मामले से सामना होता है, तबवह प्रलोभन से बच सकता है और पीछे मुड़ने और पश्चात्ताप करने के संकेत दिखा सकता है। लेकिन दानव कभी पीछे नहीं मुड़ते, क्योंकि वे पश्चात्ताप नहीं कर सकते, न ही वे पश्चात्ताप करते हैं। क्या तुमने कभी दानवों की परमेश्वर का विरोध करने, उसकी निंदा करने और उस पर आक्रमण करने की प्रकृति बदलते देखी है? वह नहीं बदलती। चाहे परमेश्वर ने कितने भी समय तक मानवजाति पर संप्रभुता रखी हो और उसका प्रबंध किया हो, और चाहे परमेश्वर ने अपनी कितनी भी सर्वशक्तिमत्ता, बुद्धि और अधिकार प्रकट किया हो, शैतान उद्दंड बना रहता है और परमेश्वर के विरुद्ध शोर मचाता रहता है। हालाँकि वह हमेशा से परमेश्वर का पराजित शत्रु रहा है, फिर भी वह परमेश्वर के विरुद्ध शोर मचाता है, और फिर भी वह उस पर आक्रमण और उसका विरोध करता है। इसलिए, अगर किसी व्यक्ति का प्रकृति सार दानव का है, तो उसकी विचलन भरी प्रकृति कभी नहीं बदल सकती। विचलन ही उसका असली चेहरा होता है, विचलन ही उसकी प्राथमिकता होती है और उसकी प्रकृति भी, इसलिए वह नहीं बदलेगा। तुम्हें चाहे किसी भी कलीसिया में ऐसा व्यक्ति दिखाई दे, तुम्हें यथाशीघ्र उसे उजागर करनाचाहिए, उसका भेद पहचानना चाहिए और फिर उसे बाहर निकाल देना चाहिए। दानवों को पश्चात्ताप करने का मौका मत दो। यह तरीका अपनाने से कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को लाभ होता है। तो फिर कैसे व्यक्ति को पश्चात्ताप का मौका देना चाहिए? तुम्हें निश्चित होना चाहिए कि वह व्यक्ति एक सामान्य व्यक्ति है, दानव नहीं है, और उसने सिर्फ अस्थायी कमजोरी या विशेष परिस्थितियों में ही अपराध किया था, लेकिन बाद में उसे पछतावा हुआ, यहाँ तक कि उसने खुद से नफरत की और अपने चेहरे पर थप्पड़ भी मारे। तुम्हें निश्चित होना चाहिए कि उसका जमीर काम कर सकता है। ऐसे लोगों को पश्चात्ताप करने का मौका दिया जा सकता है। लेकिन दानवों को जब भी मौका मिलता है, वे अपनी यौन इच्छाएँतृप्त करते हैं। यह उनकी प्रकृति से निर्धारित होता है। इसलिए दानवों को पश्चात्ताप करने का मौका नहीं दिया जा सकता, और उनसे जितनी जल्दी हो सके निपटा जाना चाहिए, उन्हें बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति के साथ व्यवहार करने का यही सिद्धांत है, और यही उसे सँभालने का सबसे अच्छा तरीका है। क्या अब यह मामला स्पष्ट है? (हाँ।)
कुछ लोग चीजों की असलियत नहीं जान सकते। वे देखते हैं कि दानवों में से कुछ काफी बूढ़े हैं, फिर भी वे लगातार यौन इच्छा के खेल में लगे रहते हैं। दूसरे लोग सत्य पर चाहे कैसे भी संगति करें, वे इस पर ध्यान नहीं देते। अगर वे आमने-सामने स्वीकार कर लें कि उन्होंने गलती की है, तो भी बाद में वे वही करेंगे जो वे चाहते हैं। जो लोग चीजों की असलियत नहीं जान सकते, वे हैरान रह जाते हैं : “दानवों में इतनी प्रबल यौन इच्छाएँ कैसे हो सकती हैं? इतने बुढ़ापे में भी वे इतने पथभ्रष्ट कैसे हो सकते हैं? यह व्यक्ति इन मामलों में आदतन अपराधी है, लगातार इस तरह का व्यवहार करता रहता है। इसमें शर्मिंदगी का एहसास कैसे नहीं हो सकता? यह संयम कैसे नहीं जानता?” क्या यह चीजों की असलियत जानने में विफल होना नहीं है? इतने सालों तक परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी वे लोगों के साथ उनके प्रकृति सार के आधार पर व्यवहार करना नहीं जानते, न ही वे यह समझते हैं कि दानवों का प्रकृति सार कभी नहीं बदलता। क्या यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण और अज्ञानतापूर्ण नहीं है? दानव ऐसे ही पैदा होते हैं; पुरुष हों या स्त्री, उनकी कोई भी उम्र हो, वे ठीक इसी तरह के प्राणी होते हैं। उनका प्रकृति सार दानव जैसा ही होता है। दानवों की लंपटता, कामोत्तेजकता और व्यभिचारिता की एक अभिव्यक्ति विशेष रूप से यौन इच्छा के खेल में लिप्त होना और तब तक लिप्त रहना है जब तक उनका देह नष्ट न हो जाए। इसलिए चाहे वे कितने भी बूढ़े हो जाएँ, वे इसी तरह के व्यक्ति बने रहते हैं और बदलेंगे नहीं—यह कोई अजीब बात नहीं है। देखो, वे युवा नहीं हैं और बाहरी तौर पर वे यौन इच्छा के खेल में लिप्त होने वाले व्यक्ति नहीं लगते, लेकिन चूँकि उनके भीतर एक दानव निवास करता है, इसलिए वे अपने देह की उम्र या लिंग से या अपने परिवेश से सीमित हुए बिनायौन इच्छा के खेल में लगे रहते हैं। यह जरूरी नहीं कि यह उनके परिवार या माता-पिता से संबंधित हो; यह आनुवंशिकी का मामला नहीं है, बल्कि उनके आंतरिक प्रकृति सार की समस्या है। उनका प्रकृति सार विकृत होता है और वही निर्धारित करता है कि उनका लक्षण दानव का है। चूँकि उनका प्रकृति सार पहले ही उजागर हो चुका होता है और उनका प्रकृति सार ही उनके लक्षण को निर्धारित करता है, इसलिए इस तरह के लोगों के मामले में, चाहे वे पहले किसी भी व्यवसाय में रहे हों, चाहे उनकी उम्र अब कितनी भी हो, और चाहे उनके बोलने के कौशल या उनकी जन्मजात स्थितियाँ कैसी भी हों—इनमें से कोई भी उनके लक्षण को प्रभावित नहीं करता। अगर तुम सिर्फ उनका बाहरी रंग-रूप देखते हो, तो तुम उससे आसानी से गुमराह हो जाओगे और कहोगे : “यह व्यक्ति बहुत सुसंस्कृत और सभ्य दिखता हैऔर बहुत सुरुचिपूर्ण ढंग से बोलता है; निश्चित रूप से यह ऐसा व्यक्ति है जो मर्यादा, धार्मिकता, सत्यनिष्ठा और लज्जा को समझता है। यह ऐसी दुष्ट चीजें कैसे कर सकता है? यह यौन इच्छा के खेल में लिप्त होने वाला व्यक्ति नहीं लगता!” तुम इस मामले की असलियत नहीं समझ सकते; तुम्हें यह कुछ हद तक अकल्पनीय और कुछ हद तक मुश्किल से विश्वास करने योग्य लगता है। तुम बड़े मूर्ख हो जो यह दृष्टिकोण रखते हो! दानव चाहे किसी भी देह में हो, दानवोचित चीजें ही कर सकता है। वह व्यक्ति बाहरी रूप से चाहे कैसा भी दिखे, उसकी उम्र कितनी भी हो या उसका व्यक्तित्व कैसा भी हो, वह वही करेगा जो उसकी प्रकृति के अनुरूप होगा। इसका उसके रंग-रूप, उम्र या शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है, न ही उसकी धार्मिक पृष्ठभूमि से कोई लेना-देना है, उसकी जातीयता से तो बिल्कुल भी लेना-देना नहीं है, और बेशक, इसका उसके पारिवारिक परिवेश से भी कोई लेना-देना नहीं है। उसका ये चीजें कर सकना और ये अभिव्यक्तियाँ रखना उसके सार और प्रकृति से निर्धारित होता है। इसलिए, एक तो इसे अजीब या अकल्पनीय मत समझो; और दूसरी बात, मूर्खतापूर्ण चीजें मत करो। उसे हमेशा बर्दाश्त करने, उसके साथ धैर्य रखने और उसे पश्चात्ताप के मौके देने की चाहत मत रखो, उसे इसलिए बचाने की इच्छा मत रखो कि वह बदल जाएगा, उसे इसलिए सत्य से प्रेम करने के लिए प्रेरित मत करो कि वह सामान्य मानवता के मार्ग पर लौट सकेगा। अगर तुम अब भी इन लोगों की, जो कि दानव हैं, मदद करने और उन्हें बचाने का इरादा रखते हो, तो तुम बहुत मूर्ख हो—तुम ऐसे व्यक्ति का सार नहीं समझते, उसके साथ व्यवहार करने के सिद्धांत नहीं समझते, सत्य नहीं समझते और परमेश्वर के इरादे नहीं समझते। अगर तुम देखते हो कि उसमें एक विकृत प्रकृति सार है और फिर भी उसकी इसलिए मदद करने का इरादा रखते हो कि वह पश्चात्ताप कर ले, तो यह दर्शाता है कि तुम परमेश्वर के वचनों पर विश्वास नहीं करते; तुम परमेश्वर के वचनों के आधार पर लोगों, घटनाओं और चीजों को नहीं देख रहे हो या उनका मूल्यांकन नहीं कर रहे हो, और तुममें परमेश्वर के वचनों के प्रति सच्चा समर्पण या स्वीकृति नहीं है। तुम सिर्फ जो देखते हो उसके और बाहरी परिघटनाओं के आधार पर विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को देखना और उनका मूल्यांकन करना चाहते हो, और सिर्फ अपने उत्साह और नेक इरादों के आधार पर क्रियाकलाप करना चाहते हो। यह एक भ्रांत विचार और दृष्टिकोण है और यह विद्रोहशीलता की अभिव्यक्ति भी है। यौन इच्छा के खेल में लिप्त रहने वाले ऐसे व्यक्ति को सँभालने का उपाय बहुत सरल है : उसके साथ उसके सार के अनुसार व्यवहार करो। अगर तुम्हें यकीन है कि वह ऐसा व्यक्ति है, तो उसे बाहर निकालकर उससे निपटो; उसे पश्चात्ताप करने का एक और मौका देने की कोई जरूरत नहीं है। अगर दूसरे न समझें, तो भीबेबस मत हो। दानवों का सार नहीं बदलेगा। वे अपनी युवावस्था में ऐसे प्राणी होते हैं, अधेड़ावस्था में भी ऐसे ही व्यक्ति बने रहते हैं, और बुढ़ापे में—उम्रदराज होने के बावजूद—वे अब भी ऐसे ही प्राणी होते हैं; वे नहीं बदलेंगे। मुझे बताओ, क्या सत्तर-अस्सी साल के ऐसे पुरुष हैं जो जवान लड़कियों को फुसलाते हैं, या साठ-सत्तर साल की ऐसी स्त्रियाँ हैं जो जवान लड़के खोजती हैं? (हाँ।) समाज में ऐसी कई विचित्र और विकृत चीजें हैं। क्या उन्होंने सिर्फ बूढ़े होने पर ही यौन इच्छा के खेल में संलग्न होना शुरू किया? (नहीं।) वे जवानी में भी ऐसे ही थे; वे जीवन भर ऐसे ही प्राणी रहे हैं। गैर-विश्वासी इसका वर्णन करने के लिए किन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं? वे इसे “पालने को लूटना” कहते हैं; वे इसे रसिक होना कहते हैं। देखो उनके शब्द कितने मधुर हैं। वे ऐसी चीज और ऐसे व्यक्ति का वर्णन करने के लिए “रसिक”, “आजाद पंछी”, “जिंदादिल इंसान” या “सांसारिक रूढ़ियाँ तोड़ने में सक्षम” जैसे शब्दों या कहावतों का इस्तेमाल करते हैं। गैर-विश्वासी लोग ऐसे मामले परिभाषित करने के लिए जिन शब्दों और कहावतों का इस्तेमाल करते हैं, वे घृणित हैं। वे इन मामलों का जड़ से, सार से निरूपण करने के लिए सही शब्दावली इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि एक ओर गैर-विश्वासी दुनिया और यह मानवजाति स्वयं पथभ्रष्ट है, और दूसरी ओर, कोई भी ऐसी समस्याओं की असलियत नहीं जान सकता। इसलिए, इन मामलों को परिभाषित करने में उनके दृष्टिकोण बहुत उथले और साथ ही बहुत बेतुके और दुष्टतापूर्ण हैं; वे इन मामलों के सार से अलग हैं।
दानवों से पुनर्जन्म लेने वालों में विचलन के भीतर लंपटता, व्यभिचारिता और कामोत्तेजकता की अभिव्यक्तियों के बारे में संगति करने के बाद आओ, विचलन की एक और अभिव्यक्ति—विचित्रता—के बारे में संगति करें। “विचित्र” शब्द बहुत विषयवस्तु समेटे हुए है, जिसका निश्चित रूप से विचित्रता की विशिष्ट अभिव्यक्तियों से कुछ संबंध है। विचित्र होने के अलावा अलौकिक, अतिवादी और असामान्य होने जैसी अभिव्यक्तियाँ भी हैं; ये सभी शैतानों और दानवों की विकृत अभिव्यक्तियाँ हैं। ये पहलू—विचित्र, अलौकिक, अतिवादी और असामान्य होना—ऐसी चीजें हैं जिन्हें लोग समय-समय पर दैनिक जीवन में या दूसरों के साथ अपनी बातचीत में देखते हैं। आओ, सबसे गंभीर मामलों से शुरू करें, फिर औसत दर्जे के मामलों पर चर्चा करेंगे। हर हाल में, चाहे यह किसी भी रूप में अभिव्यक्त हो, इन सबमें विचलन का प्रकृति सार शामिल है। सबसे गंभीर स्थिति बार-बार अनजान भाषाओं में बोलना है। यह विशेष रूप से सभाओं में प्रार्थना के दौरान होता है, जहाँ वे कुछ ऐसी विचित्र भाषाएँ बोल सकते हैं जो किसी भी जातीय समूह की भाषाएँ नहीं होतीं और जिन्हें कोई नहीं समझ सकता। जब ऐसा होता है, तब यह व्यक्ति स्वयं नहीं बोल रहा होता, बल्कि किसी और आत्मा के वशीभूत होता है। उसे खुद नहीं पता होता कि वह क्या कह रहा है; उसने उसे सीखा नहीं होता, न ही किसी ने उसे सिखाया होता है, फिर भी किसी खास स्थिति में वह बस बोल उठता है। वह अनजान भाषाओं में कभी अग्रसक्रिय रूप से, कभी निष्क्रिय रूप से, कभी सचेत रूप से, कभी अनजाने ही बोल पड़ता है। क्या यह बहुत अजीब नहीं है? उसके बोलना समाप्त करने के बाद अगर तुम उसे दोबारा ऐसा करने के लिए कहो, तो वह नहीं कर सकता। अगर तुम उससे पूछो कि उसने क्या कहा, तो इसका भी उसे पता नहीं होता। यह एक तरह की स्थिति है। ऐसे लोग भी हैं जो अक्सर ऐसी आवाजें सुनते हैं जिन्हें सामान्य लोग नहीं सुन सकते। उदाहरण के लिए, वे किसी को अपने आसपास बोलते हुए सुन सकते हैं, लेकिन दूसरे लोग ऐसे किसी व्यक्ति को देख या सुन नहीं सकते। असल में वे अनजान प्राणियों से बातचीत कर रहे और बोल रहे होते हैं। वे बड़े उत्साह से बोलते हैं और तुम उन्हें बीच में टोक नहीं सकते या एक शब्द भी बोल नहीं सकते। इसके अलावा, उनकी बातचीत की विषयवस्तु बेतरतीब होती है; शब्द अचानक बेमेल ढंग से और बिना किसी कारण के निकल पड़ते हैं। एक दर्शक के रूप में इसे देखकर तुम्हें डर लगता है और तुम्हारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। क्या ऐसी अभिव्यक्तियाँ बहुत विचित्र नहीं हैं? (हाँ, हैं।) ऐसे व्यक्ति को अक्सर अजीबोगरीब चीजें भी दिखाई देती हैं, ऐसी चीजें जो भौतिक संसार में खुली आँखों से दिखाई नहीं देतीं। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों को उनके दिवंगत रिश्तेदार हाथ हिलाते हुए, मुस्कुराते हुए, सिर हिलाते हुए, यहाँ तक कि उनका अभिवादन करते हुए भी दिखते हैं। यह देखकर वे विशेष रूप से उत्साहित हो जाते हैं। कुछ लोग तो अक्सर काले कपड़े पहनी आकृतियों को अपने पास आते और अपने हाथ-पैर बाँधते हुए भी देखते हैं; वे संघर्ष करते हैं और कह उठते हैं, “मुझे छोड़ दो! मैं नहीं जाऊँगा! मैं कहीं नहीं जा रहा!” उनके आसपास के लोग पूछते हैं कि क्या हुआ, लेकिन उन्हें यह आभास ही नहीं होता कि कोई उनसे बात कर रहा है और वे बस यह चिल्लाते हुए संघर्ष करते रहते हैं, “हे परमेश्वर, मुझे बचाओ! ...” काले कपड़े पहनी आकृतियाँ डरकर भाग जाती हैं और फिर वे वापस सामान्य हो जाते हैं। होश में आने के बाद वे अपने आसपास के लोगों से पूछते हैं कि क्या उन्होंने काले रंग की आकृतियाँ देखीं। सामान्य लोग उन्हें नहीं देख सकते; अगर देख सकते तो यह एक गंभीर समस्या होती। लेकिन ये लोग उन्हें देख सकते हैं और महसूस कर सकते हैं। एक और तरह की स्थिति होती है : कुछ लोग आमतौर पर शांत रहते हैं, मजाक करना या धींगामस्ती करना पसंद नहीं करते, लेकिन किसी तरह अचानक वे अपनी जगह पर घूमना शुरू कर देते हैं, रोने लगते हैं, हँसने लगते हैं, हंगामा मचाने लगते हैं और उन्हें बहुत पसीना आ जाता है। कुछ तो अचानक साँपों की तरह जमीन पर रेंगने भी लगते हैं या कुछ लोग बत्तखों की तरह चलने लगते हैं। अचानक एक जीवित इंसान जानवर में बदल जाता है; उसकी चाल-ढाल और क्रियाकलाप बिल्कुल जानवर जैसे, इंसान से बिल्कुल अलग, हो जाते हैं। वह समय-समय पर ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करता है। क्या यह विचित्र नहीं है? (हाँ, है।) क्या ये विचित्र अभिव्यक्तियाँ अलौकिक नहीं हैं? (हाँ, हैं।) ये अभिव्यक्तियाँ बहुत अलौकिक हैं। अलौकिक का अर्थ है असामान्य, प्राकृतिक या सामान्य परिस्थितियों से परे—इसे अलौकिक कहते हैं। यह असाधारण है, साधारण लोगों की सामान्य अभिव्यक्तियों से अलग है; यह असामान्य है। इसे विचित्र, अलौकिक, असामान्य होना कहते हैं। बेशक, इन अभिव्यक्तियों का अतिवादी होने से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन विचित्र, अलौकिक और असामान्य होने की प्रकृति को देखते हुए इन अभिव्यक्तियों में विकृत सार है और ये सामान्य भ्रष्ट देहधारी मनुष्यों की अभिव्यक्तियों के अनुरूप नहीं हैं। सामान्य देहधारी मनुष्य इंसानी प्रवृत्तियों, स्वतंत्र इच्छा, सामान्य सोच, विवेक और विभिन्न सामान्य इंसानी क्षमताओं द्वारा सीमित, संयमित और नियंत्रित होते हैं। लेकिन जो दानव हैं, उनमें ये विचित्र, अलौकिक, असामान्य अभिव्यक्तियाँ पहले ही सामान्य इंसानी प्रवृत्तियों, स्वतंत्र इच्छा, क्षमताओं, सामान्य सोच और सामान्य विवेक के दायरे से परे जा चुकी होती हैं। अर्थात्, वे अब सामान्य मानवता द्वारा नियंत्रित नहीं होतीं; वे नियंत्रण से बाहर हैं। नियंत्रण से बाहर होने का अर्थ है असामान्य ढंग से क्रियाकलाप करना। उनमें कुछ असामान्य अभिव्यक्तियाँ और अभ्यास दिखाई देते हैं जो सामान्य लोगों को प्रदर्शित नहीं करने चाहिए। इसका अर्थ है कि ऐसे लोग सामान्य विवेक, सामान्य सोच या स्वतंत्र इच्छा से नियंत्रित नहीं होते, बल्कि किसी बाहरी चीज या किसी दुष्ट आत्मा से नियंत्रित और संचालित होते हैं, जिससे वे सामान्य मानवता से परे की चीजें करते हैं, ऐसी चीजें जो अथाह, हैरान करने वाली और दूसरों के लिए सिहरन पैदा करने वाली तक होती हैं। इसे विचित्र, अलौकिक, असामान्य होना कहते हैं। मुझे बताओ, क्या ये अभिव्यक्तियाँ विकृत नहीं हैं? (हाँ, हैं।) ये विचित्र अभिव्यक्तियाँ निश्चित रूप से विकृत कही जा सकती हैं। दानवों से पुनर्जन्म लेने वालों में कई विचित्र अभिव्यक्तियाँ होती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग अक्सर सुनते हैं कि कोई अस्पष्ट रूप से उनसे बोल रहा है, लेकिन दूसरे लोग इसे नहीं सुन सकते। वे अक्सर अपने मन में एक आवाज भी सुनते हैं जो उनसे बात करती है, उन्हें यह या वह करने का निर्देश देती है। कुछ लोग हमेशा ऐसी चीजें देख सकते हैं जिन्हें सामान्य लोग नहीं देख सकते या महसूस नहीं कर सकते। वे कहते हैं, “मैंने सड़क पर तोपों और टैंकों के साथ सैनिकों की एक टुकड़ी गुजरते देखी, जिनकी संख्या एक-दो हजार नहीं तो तीन सौ से पाँच सौ जरूर होगी—वहाँ काफी अफरा-तफरी मची हुई थी!” दूसरे लोग ये चीजें नहीं देख सकते, लेकिन वे देख सकते हैं। हमें इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि वे जो देखते हैं वह तथ्यपरक है या आध्यात्मिक क्षेत्र की कोई परिघटना; यह तथ्य कि वे ये चीजें देख सकते हैं, बहुत असामान्य है। मैं क्यों कहता हूँ कि यह असामान्य है? मैं क्यों कहता हूँ कि यह विचलन की अभिव्यक्ति है? क्योंकि किसी भी सामान्य व्यक्ति की परमेश्वर द्वारा सृजित ज्ञानेंद्रिय की निश्चित सीमाएँ हैं कि वह क्या अनुभव कर सकती है, चाहे वह आसपास का परिवेश हो या उसके आसपास के लोग, घटनाएँ और चीजें। ये सब देह की सहज प्रवृत्तियों द्वारा प्राप्य परास के भीतर अनुभव किए जाते हैं; चाहे वे देह द्वारा देखी जा सकने वाली चीजें हों, सुनी जा सकने वाली चीजें हों, सूँघी जा सकने वाली चीजें हों या महसूस की जा सकने वाली चीजें हों, उनकी सीमाएँ होती हैं। ये सीमाएँ किसे संदर्भित करती हैं? ये भौतिक जगत के दायरे तक सीमित होने को संदर्भित करती हैं। तो फिर, परमेश्वर ने लोगों को ऐसी ज्ञानेंद्रियाँ क्यों दीं? इसलिए कि कोई भी चीज जो भौतिक जगत से संबंधित नहीं है, चाहे वह आध्यात्मिक क्षेत्र की कोई सकारात्मक चीज हो या नकारात्मक, लोगों के जीवन में हस्तक्षेप न करे, लोगों की किसी भी ज्ञानेंद्रिय में दखल न दे और भौतिक जगत में लोगों के जीवन के क्रम और प्रतिरूपों को प्रभावित न करे। इसलिए मनुष्य इस भौतिक जगत में रहते हैं, और भौतिक जगत के बाहर चाहे और जो कुछ भी मौजूद हो, परमेश्वर तुम्हें तुम्हारी दैहिक ज्ञानेंद्रियों के दायरे से बाहर इन चीजों को देखने, सुनने या महसूस करने नहीं देगा। यह तुम्हारे मन और विवेक को भौतिक जगत के बाहर के किसी भी प्राणी के हस्तक्षेप से बचाने के लिए है, ताकि तुम सामान्य रूप से जी सको। जब तक व्यक्ति का मन और विवेक सामान्य है, तब तक उसकी स्वतंत्र इच्छा सामान्य रूप से कार्य करेगी, उसका निर्णय सामान्य रहेगा और उसकी जन्मजात इंसानी स्थितियों के तमाम पहलू अपनी मूल अवस्था में, अक्षुण्ण रहेंगे। अक्षुण्ण होने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि तुम्हारा तंत्रिका-तंत्र, तुम्हारी ज्ञानेंद्रियाँ, तुम्हारी काबिलियत और तुम्हारी जन्मजात स्थितियों के तमाम दूसरे पहलू दैहिक जीवन के दायरे में सामान्य और सुदृढ़ हैं। जब मन और विवेक सामान्य होते हैं, तब व्यक्ति के ये तमाम पहलू सामान्य रहेंगे और अपनी मूल अवस्था बनाए रख पाएँगे। व्यक्ति की ज्ञानेंद्रियाँ जो अनुभव कर सकती हैं, अगर वह देह द्वारा प्राप्य परास पार कर जाती है और अब इस बाधा से सीमित नहीं रहती, तो उसके मन और विवेक के साथ समस्याएँ उत्पन्न होंगी; वे भौतिक संसार से बाहर की चीजों से प्रभावित, क्षतिग्रस्त और बाधित होंगे। फिर उनकी तंत्रिकाओं के साथ समस्याएँ उत्पन्न होंगी और उनके मन अव्यवस्थित हो जाएँगे। इससे किस तरह की स्थिति उत्पन्न होगी? वे मानसिक रूप से बीमार हो जाएँगे; वे पागल हो जाएँगे, बकवास करेंगे, बेशर्मी से इधर-उधर भागेंगे, रोएँगे और हंगामा करेंगे। तब ऐसा व्यक्ति पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है। बर्बाद होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि व्यक्ति के दिल में कोई और चीज प्रवेश कर गई है, जो उसके मन और विवेक को परेशान और क्षतिग्रस्त कर रही है, जिससे उसका दिल सामान्य विवेक से नहीं, बल्कि किसी और चीज से नियंत्रित हो रहा है। एक बार जब वह दूसरी चीज किसी व्यक्ति को नियंत्रित कर लेती है, तो चिकित्सकीय भाषा में, इसकी बाहरी अभिव्यक्ति सिजोफ्रेनिया होती है। एक बार जब कोई व्यक्ति सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त हो जाता है, तो क्या वह अब भी एक सामान्य व्यक्ति रहता है? (नहीं।) वह अब एक सामान्य व्यक्ति नहीं रहता, और परमेश्वर ऐसे लोगों पर कार्य नहीं करेगा। समझे? (समझ गए।)
परमेश्वर द्वारा लोगों को दी गई स्वतंत्र इच्छा, सामान्य सोच और जमीर और विवेक उनके लिए क्या भूमिका निभाते हैं? क्या वे लोगों के मन और विवेक की रक्षा करने की भूमिका नहीं निभाते? (हाँ, निभाते हैं।) लोगों के मन और विवेक की रक्षा करने की भूमिका निभाना लोगों की रक्षा करने की भूमिका निभाने के समान है; वे सुनिश्चित करते हैं कि लोगों की मानसिक स्थिति और विवेक सामान्य रहें, उनमें भौतिक संसार से बाहर की चीजों का हस्तक्षेप न हो, न ही वे भौतिक संसार से बाहर की किसी ध्वनि या छवि से बाधित हों। इससे लोग शांतिपूर्वक परमेश्वर में विश्वास कर पाते हैं और सामान्य रूप से जी पाते हैं और उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा सुनिश्चित होती है। यह एक अच्छी चीज है। लेकिन विचित्र, अलौकिक और असामान्य अभिव्यक्तियों से भरे लोगों में सामान्य लोगों जैसी स्वतंत्र इच्छा, सामान्य सोच और जमीर और विवेक नहीं होते। वे कभी भी, कहीं भी साधारण लोगों को दिखाई न देने वाली विचित्र चीजें या दृश्य देख सकते हैं, साधारण लोगों को सुनाई न देने वाली ध्वनियाँ सुन सकते हैं या साधारण लोगों द्वारा न की जा सकने वाली चीजें कर सकते हैं, विचित्र व्यवहार प्रदर्शित कर सकते हैं। उनके आसपास के लोग इसे नहीं समझ सकते और वे ऐसे मामलों के सार की असलियत जानने में असमर्थ होते हैं। ऐसे व्यक्ति का किसी दानव से पुनर्जन्म हुआ होता है; वह मानवजाति का हिस्सा नहीं होता। ऐसा नहीं है कि शैतान ने उन्हें जीवन में बाद में बंदी बनाया हो; ऐसा व्यक्ति मूल रूप से ही दानव होता है। सरल शब्दों में कहें तो, जो व्यक्ति दानव होता है, उसका मन और विवेक जन्म से ही सामान्य नहीं होते; अर्थात् उसकी स्वतंत्र इच्छा, सोच और विवेक, सब खराब होते हैं। अगर वह शिक्षा प्राप्त कर ले, तो भी उसमें सामान्य मानवता की ये चीजें नहीं होतीं। तुम उसे विशिष्ट परिस्थितियों में, जब उसे कोई बीमारी नहीं होती, अपेक्षाकृत सामान्य रूप से बोलते हुए देखते हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह सामान्य व्यक्ति है। उसमें ये विचित्र अभिव्यक्तियाँ होना दर्शाता है कि वह सामान्य व्यक्ति नहीं है, बल्कि अमानवीय है—दानव है। उसकी ये रहस्यमय, अलौकिक और असामान्य अभिव्यक्तियाँ किसी से सीखी नहीं गई होतीं, न ही किसी के द्वारा संप्रेषित की गई होती हैं। तो फिर ये कैसे घटित हुईं? ये जन्मजात होती हैं; ऐसे व्यक्ति का लक्षण दानव का होता है। दानव का लक्षण होने का क्या अर्थ है? इसके दो अर्थ हैं। पहला अर्थ यह है कि ऐसे व्यक्ति का पुनर्जन्म दानव से हुआ होता है। दूसरा यह है कि वह बिना मानव आत्मा के जन्म लेता है और बाद में कोई दानव उस पर कब्जा कर लेता है। संक्षेप में, ऐसे लोगों का प्रकृति सार दानव का होता है, इंसान का नहीं। चूँकि वे इंसान नहीं होते, ठीक इसलिए उनकी ज्ञानेंद्रियाँ और उनकी जन्मजात स्थितियों के तमाम पहलू सामान्य लोगों से भिन्न और विशिष्ट होते हैं। ज्ञानेंद्रियों के संदर्भ में, वे अक्सर ऐसी चीजें अनुभव कर सकते हैं जिन्हें सामान्य लोग अनुभव नहीं कर सकते, देख नहीं सकते या सुन नहीं सकते। दैहिक प्रवृत्तियों के संदर्भ में, वे चीजें जो वे करते या कहते हैं, उनकी कुछ अभिव्यक्तियाँ अक्सर लोगों को यह एहसास कराती हैं कि वे सामान्य इंसानी प्रवृत्तियों के दायरे से परे हैं; वे बहुत अलौकिक होती हैं। अलौकिक का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है दैहिक प्रवृत्तियों से परे जाना। सामान्य लोग दैहिक प्रवृत्तियों द्वारा प्राप्य परास पार नहीं कर सकते, लेकिन ये व्यक्ति ऐसा आसानी से कर लेते हैं; ये दैहिक प्रवृत्तियों द्वारा नियंत्रित या सीमित नहीं होते, इसलिए प्राकृतिक रूप से ये अक्सर विचित्र, अलौकिक और असामान्य व्यवहार या अभ्यास प्रदर्शित करते हैं। क्या अब तुम ऐसे व्यक्ति के सार के बारे में स्पष्ट हो? (हाँ।) क्या तुम लोग ऐसे व्यक्ति से ईर्ष्या करते हो? (नहीं।) क्या उससे ईर्ष्या करना अच्छी चीज है? (नहीं।) कुछ लोग कहते हैं, “देखो, वे प्रार्थना के दौरान अनजान भाषाओं में बोल सकते हैं; हम उसे समझ या बोल नहीं सकते। और वे बिना सीखे ही कई भाषाएँ जानते हैं। वे कभी बीमार नहीं पड़ते, कई दिनों तक बिना खाए रहने पर भी भूख महसूस नहीं करते और कई दिनों तक बिना सोए रहने पर भी थकान महसूस नहीं करते।” दूसरे कहते हैं, “यह आदमी सक्षम है; यह अतीत में झाँक सकता है और भविष्यवाणी कर सकता है, खगोलविज्ञान से लेकर भूगोल तक सब कुछ जानता है, लोगों के चेहरों से उनके भाग्य पढ़ सकता है और भविष्य बता सकता है। व्यक्ति चाहे कैसा भी दिखता हो, यह एक नजर में ही उसका भाग्य जान लेता है। यह सचमुच उस्ताद है! रात में तुम इसे सोता हुआ देखते हो, लेकिन असल में यह सेवक के रूप में काम करने के लिए पाताल लोक गया होता है।” कुछ लोग ऐसे व्यक्ति की क्षमताओं के कारण उससे ईर्ष्या करते हैं। क्या ऐसे लोगों से ईर्ष्या करना मूर्खता नहीं है? (हाँ, है।) क्या तुम लोगों ने कभी इन विशेष शक्तियों वाले अलौकिक लोगों से यह कहते हुए ईर्ष्या की है, “मेरे पास कोई विशेष शक्ति नहीं है। काश मुझे थोड़ा-सा जादू आता; अगर गर्मी होती और मुझे आइसक्रीम चाहिए होती, तो मैं अपने हाथ के एक इशारे से कुछ आइसक्रीम बार बना सकता—चॉकलेट, स्ट्रॉबेरी, जो भी फ्लेवर मुझे चाहिए होता”? क्या तुम लोगों के मन में कभी ऐसे विचार आए हैं? हर किसी के मन में बचकाने विचार आते हैं; जब लोग स्पष्ट रूप से देख लेते हैं कि ये विचार गलत हैं, तब वे प्राकृतिक रूप से उन्हें त्याग सकते हैं। परमेश्वर बस यही चाहता है कि सामान्य लोग जीवन का अनुभव करें, जीवन का स्वाद लें, जीवन के सुख-दुख, उसकी विभिन्न कठिनाइयों और निराशाओं का अनुभव करें, और अनुभव करने की प्रक्रिया में परमेश्वर की संप्रभुता को सराहें, सृष्टिकर्ता के प्रति सृजित प्राणियों के विभिन्न गलत रवैये पहचानें, और फिर सही मार्ग पर लौट आएँ, परमेश्वर की आराधना और परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण हासिल करें। जब लोगों को जीवन के ये अनुभव होंगे, तब उन्हें इस तथ्य का एहसास होगा कि सृष्टिकर्ता मनुष्य की नियति पर संप्रभुता रखता है, फिर वे इस तथ्य को स्वीकारेंगे, इस पर विश्वास करेंगे और इस तथ्य के प्रति समर्पण करेंगे कि सृष्टिकर्ता मनुष्य की नियति पर संप्रभुता रखता है। इसके बाद वे सही मार्ग पर लौट सकते हैं और सही सृजित प्राणी बन सकते हैं। किन्हीं अवास्तविक विचारों के अनुसार मत जियो; वे चीजें कभी वास्तविकता नहीं बनेंगी। वे अलौकिक, विचित्र और असामान्य चीजें हमेशा शैतानों और दानवों का अनन्य क्षेत्र हैं; उनका सामान्य मनुष्यों से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए, चाहे जब भी हो, कभी भी अलौकिक व्यक्ति, विशेष शक्तियों से संपन्न व्यक्ति बनने के बारे में मत सोचो, न ही अपनी प्रवृत्तियाँ या अपनी सीमाएँ लाँघने के बारे में सोचो। बस जमीन पर पैर रखने वाले एक साधारण व्यक्ति बनो, अपने उचित स्थान पर रहो और अपना कर्तव्य निभाओ। लोगों को यही करना चाहिए।
जो लोग दानव हैं, क्या उनमें विचित्रता की अभिव्यक्तियाँ अब मूलतः स्पष्ट हो गई हैं? ये कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं जो सबसे गंभीर हैं। ये स्पष्ट रूप से लोगों को यह एहसास और बोध कराती हैं कि ऐसे लोग सामान्य लोगों जैसे नहीं हैं। सामान्य लोगों के बीच वे अत्यधिक भटके हुए प्रतीत होते हैं। यह भटकाव लोगों को यह एहसास कराता है कि उनका व्यवहार और चाल-ढाल और साथ ही दैनिक जीवन में उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ विशेष रूप से विचित्र, अलौकिक और असामान्य हैं—वे बस साधारण लोगों से भिन्न हैं। वे देह की सहज प्रवृत्तियों से सीमित नहीं होते और अपने अतार्किक व्यवहारों पर लगाम नहीं लगा सकते, और बिल्कुल भी सचेत प्रतीत नहीं होते, मानो दुष्ट आत्माओं के कब्जे में हों। इसका निरूपण दानवों के विकृत प्रकृति सार के एक पहलू के रूप में करना चाहिए, एक ऐसी चीज के रूप में जिसे लोगों को नकार देना चाहिए। इन अलौकिक और असामान्य चीजों से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए और उनका अनुसरण तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए। अगर तुम कभी अलौकिक व्यक्ति बनने या ये अलौकिक चीजें करने का इरादा रखते थे, तो अब रुक जाओ। पीछे मुड़ो, और किनारा नजदीक है। ऐसा व्यक्ति बनने की योजना मत बनाओ। एक बार जब तुम इस रास्ते पर चल पड़ते हो और तुम्हारे मन में दानव घुस जाता है, तो फिर परमेश्वर तुम्हें नहीं चाहेगा और तुम बर्बाद हो जाओगे। मैं क्यों कहता हूँ कि तुम बर्बाद हो जाओगे? क्योंकि एक बार जब दानव तुम पर कब्जा कर लेता है और तुम्हारे मन को नियंत्रित कर लेता है, तो तुम चौपट हो जाओगे। एक बार जब दानव तुम पर कब्जा कर लेता है, तो वह तुम्हारे अंदर हस्तक्षेप करना शुरू कर देता है, तुम्हारे विचारों और मन को बाधित कर देता है। वह तुम्हारे दैनिक जीवन में भाग लेता है और लोगों, घटनाओं और चीजों पर विचार करते समय तुम्हारी विचार-प्रक्रिया में भी भाग लेता है। अगर तुम उसके हस्तक्षेप को नकार नहीं सकते, तो तुम धीरे-धीरे अपनी इच्छाशक्ति खो दोगे और अंत में तुम दब्बूपन के साथ समर्पण कर दोगे। जब कोई दानव तुम्हें पूरी तरह से नियंत्रित कर लेता है, तो चिकित्सकीय भाषा में, तुम्हारा निदान सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त व्यक्ति के रूप में किया जाएगा और परमेश्वर के घर में तुम्हें मौत की सजा दी जाएगी। तुम खत्म हो जाओगे। बर्बाद हो जाओगे। क्या वह व्यक्ति, जिसका निदान सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त व्यक्ति के रूप में किया जाता है, एक सामान्य व्यक्ति होता है? (नहीं।) क्या परमेश्वर अब भी ऐसे व्यक्ति को चाहता है? परमेश्वर की नजर में यह कैसा व्यक्ति होता है? (एक गैर-मानव।) परमेश्वर की नजर में तुम पर शैतान ने कब्जा कर लिया है। यह थोड़ा अमूर्त लग सकता है। सीधे शब्दों में कहें तो, इसका मतलब है कि शैतान तुम्हारे दिल पर नियंत्रण रखता है। इसका मतलब है कि शैतान तुम्हारे दिल पर राज करता है और उस पर शक्ति रखता है और तुम शैतान की कठपुतली बन गए हो। इसका मतलब है कि शैतान ने तुम पर कब्जा कर लिया है। एक बार जब शैतान किसी पर कब्जा कर लेता है, तो वह उन लोगों जैसा ही बन जाता है जो दानव हैं और जल्दी ही विचित्र, अलौकिक और असामान्य हो जाता है। ऐसे लोग बचाए नहीं जा सकते। इससे मेरा क्या मतलब है? मैं तुमसे कह रहा हूँ कि तुम्हें उन लोगों की विचित्र अभिव्यक्तियों का भेद पहचानना चाहिए जो दानव हैं। भेद पहचानने के बाद तुम्हें ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए और उनके करीब नहीं जाना चाहिए। चाहे कुछ भी हो, उनकी बातों और कामों में मत पड़ो। उन्हें गंभीरता से मत लो। उदाहरण के लिए, मान लो वे किसी ऐसी चीज के बारे में बोलते हैं जिसे तुम बिल्कुल भी देख नहीं सकते या महसूस नहीं कर सकते। तुम्हें यह बताने का उनका उद्देश्य तुम्हारे करीब आना और तुम्हें फुसलाना है। अगर तुम उत्सुक होते हो और उत्साहपूर्वक उनसे ईर्ष्या करते हो और उनका अनुसरण करते हो, तो तुम बहुत खतरे में हो। मैं क्यों कहता हूँ कि तुम खतरे में हो? क्योंकि यह शैतान है जो लोगों को गुमराह कर रहा है और फुसला रहा है और उन आत्माओं को खोज रहा है जिन्हें वह निगल सकता है। अगर तुम जरा भी शैतान का भेद नहीं पहचानते और अभी भी उत्सुक और ईर्ष्यालु हो, तो तुम पहले ही प्रलोभन में पड़ चुके हो और बहुत संभव है कि शैतान तुम पर काम करने का मौका लपक लेगा। इसलिए तुम बहुत खतरे में हो। तुम बिना किसी सतर्कता के शैतान के पास जाते हो—क्या यह मूर्खता नहीं है? (हाँ, है।) जब शैतान देखता है कि तुममें उसके प्रति कोई सतर्कता नहीं है, तो वह किसी बदमाश की तरह लगातार तुम्हें छेड़ने और लुभाने की कोशिश करेगा। अगर तुम मना नहीं करते हो, तो वह मान लेता है कि तुम मौन सहमति दे रहे हो, इसलिए वह फिर और आगे बढ़ेगा। अगर तुम हमेशा उन लोगों द्वारा, जो कि शैतान हैं, कही गई विचित्र, अलौकिक और असामान्य चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहते हो, यहाँ तक कि उनके बारे में पूछते हो और पूछताछ भी करते हो, तो क्या यह साबित नहीं करता कि तुम ऐसी चीजों में रुचि रखते हो, और उनसे घृणा नहीं करते हो? ऐसी चीजों में रुचि रखना कोई अच्छा संकेत नहीं है। अगर तुम इन चीजों में रुचि रखते हो, तो शैतान की नजर में इसका मतलब है कि तुम परमेश्वर, सत्य या सकारात्मक चीजों में रुचि नहीं रखते। इससे वह प्रसन्न होता है और प्राकृतिक रूप से, वह तुम पर काम करने के इरादे से खुशी-खुशी तुम्हारी ओर “दोस्ताना” हाथ बढ़ाएगा। इस तरह, तुम खतरे में हो। इसलिए ऐसे लोगों से सामना होने पर उनके करीब मत जाओ और उनमें रुचि मत लो। इसके बजाय, तुम्हें भेद पहचानना चाहिए, उनसे सावधान रहना चाहिए और उनसे दूरी बनानी चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “अगर हम उनके पास न जाएँ या उनमें रुचि न लें, तो हम उन्हें कैसे पहचान सकते हैं? जैसे कि कहावत है, ‘खुद को जानो और अपने दुश्मन को जानो, और तुम कभी पराजित नहीं होगे।’ अगर हम दुश्मन में घुसपैठ नहीं करते, तो हम खुद को और अपने दुश्मन को कैसे जान सकते हैं?” क्या यह कथन सही है? यह वैसा ही है जैसे, जब कोई महामारी फैलती है तो कुछ वैज्ञानिक और शोधकर्ता वायरस पर हाथ डालने और उसका अध्ययन करने पर जोर देते हैं, और नतीजतन, उनमें से कुछ खुद वायरस से संक्रमित होकर मर जाते हैं। इसलिए, तुम्हें उन दानवों से सख्ती से सतर्क रहना चाहिए जो विचित्र और अलौकिक अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं। उन्हें खुद को नुकसान पहुँचाने का मौका देने से बेहतर है कि तुम बहुत ज्यादा सतर्क रहो। अभ्यास करने का यही सबसे चतुराई भरा तरीका है। एक तो उनमें रुचि मत लो, और उनसे संपर्क मत करो और उनके करीब मत जाओ। दूसरे, उनकी विचित्र, अलौकिक अभिव्यक्तियों का अनुसरण या अनुकरण मत करो। तुम्हें भी इसी तरह अभ्यास करना चाहिए। अगर तुम अक्सर इन अलौकिक, विचित्र और असामान्य लोगों के संपर्क में आते हो और अपनी असतर्कता की वजह से तुम उनसे प्रभावित हो जाते हो और लगातार उनकी अभिव्यक्तियों के बारे में सुनते और उन्हें देखते रहते हो, तो अनजाने ही उनकी विचित्र अभिव्यक्तियाँ तुम्हारे हृदय और स्मृति में सुरक्षित हो जाएँगी। फिर, अनजाने ही तुम उनका अनुसरण और अनुकरण करना चाहोगे। यह और भी ज्यादा खतरनाक संकेत है। एक बार जब तुम उनका अनुसरण और अनुकरण करना चाहते हो, तो इसका अर्थ है कि तुम्हारे हृदय की सुरक्षा पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है। यह शैतान के तुम पर नियंत्रण करने और तुम्हें अपने कब्जे में लेने के लिए तुम्हारे हृदय में प्रवेश करने देने पर तुम्हारे सहमत होने के बराबर है। ऐसा करके तुम खुद को शैतान के हवाले कर रहे होते हो और इस तरह शैतान जल्दी से तुम पर नियंत्रण कर सकता है। तब क्या तुम बर्बाद नहीं हो गए हो? अपना हृदय परमेश्वर को देना लोगों के लिए सचमुच कठिन है। परमेश्वर के लिए लोगों के हृदय में सत्तासीन होना आसान नहीं है। परमेश्वर आसानी से लोगों के हृदय का प्रभार नहीं लेता और उसमें सत्तासीन नहीं होता। परमेश्वर मानवजाति पर जो कार्य करता है, उसमें मनुष्यों की जन्मजात स्थितियों के आधार पर उनका सिंचन करना, उनकी चरवाही करना, उनका प्रबोधन करना, उन्हें रोशन करना, उनका मार्गदर्शन और उनकी सुरक्षा करना शामिल है। इसके अलावा, परमेश्वर उन्हें अनुशासित करता है, ताड़ित करता है, उन्हें ताड़ना देता है और उनका न्याय करता है, साथ ही लोगों के लिए विभिन्न प्रकार की स्थितियों का इंतजाम भी करता है। यह उन्हें, जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, वस्तुनिष्ठ स्थितियों में धीरे-धीरे परमेश्वर के कार्य और सत्य के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान प्राप्त करने देता है। फिर, धीरे-धीरे—सामान्य मनुष्य की सोच के अनुसार—परमेश्वर के वचन और सत्य उनके हृदय में जड़ जमा लेते हैं और उनका जीवन बन जाते हैं, और इस तरह, ये लोग परमेश्वर द्वारा प्राप्त कर लिए जाते हैं। इस सबकी एक प्रक्रिया है। लेकिन शैतान द्वारा लोगों को गुमराह और भ्रष्ट करना अलग है। हम क्यों कहते हैं कि शैतान का सार विकृत है? वह लोगों पर बलपूर्वक कब्जा कर लेता है और उन्हें नियंत्रित करता है। यह पहलू यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि शैतान का सार विकृत है। यह ठोस प्रमाण है। जब तुम ऐसा व्यक्ति बनने का अनुसरण करते हो जो दानव है, और जब तुम इन विचित्र, अलौकिक और असामान्य अभिव्यक्तियों, व्यवहारों और क्षमताओं का अनुसरण करते हो, तो तुम्हारा हृदय शैतान के लिए खुल जाता है। यह ऐसा है जैसे तुम अपने हृदय में शैतान से कह रहे हो : “अंदर आ जाओ, मैंने तुम्हारे लिए एक स्थान आरक्षित कर रखा है। तुम मेरे पूरे अस्तित्व को नियंत्रित कर सकते हो।” शैतान तुमसे क्या कहेगा? “अगर तुम मेरी बात सुनो और मुझे अपने हृदय में सत्तासीन होने दो, तो तुम वह सब कुछ सीख सकते हो जो तुम प्राप्त करना चाहते हो। तुममें सभी विचित्र, अलौकिक चीजें होंगी, तुम साधारण लोगों से आगे निकल जाओगे और तुम आम लोगों से भी आगे निकल जाओगे।” लोगों का इन विचित्र, अलौकिक और असामान्य व्यवहारों, अभिव्यक्तियों या क्षमताओं का अनुसरण करना उनका शैतान से बातचीत करने के बराबर है और यह उनका अपने हृदय में शैतान को अपनाने के बराबर भी है। अगर तुम इन विचित्र, अलौकिक चीजों का अनुसरण करोगे, तो शैतान तुम्हारे हृदय में तेजी से काम करना शुरू कर देगा। इस समय, जब तुम परमेश्वर के वचन फिर से सुनोगे, तो तुम्हारे विचार, दृष्टिकोण और रवैये सामान्य व्यक्ति के नहीं रहेंगे, बल्कि तुम 180 डिग्री पर मुड़ चुके होगे। सत्य के प्रति तुम्हारा रवैया सामान्य व्यक्ति के रवैये से पूरी तरह अलग होगा। तुम जो अभिव्यक्त करोगे, वह सत्य से विमुखता और सत्य के प्रति शत्रुता होगी। यह ऐसा ही है। अगर तुम सत्य से विमुख और उसके प्रति शत्रुतापूर्ण हो, तो क्या तुम अभी भी सत्य प्राप्त कर सकते हो? नहीं कर सकते। तुम पर शैतान द्वारा कब्जा कर लिया गया है। इसलिए जहाँ तक दानवों से पुनर्जन्म लेने वालों की विचित्र, अलौकिक और असामान्य अभिव्यक्तियों का संबंध है, लोगों को उनसे सख्ती से सतर्क रहना चाहिए, उनके साथ सावधानी और समझदारी से पेश आना चाहिए और उन्हें महत्वहीन समझकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यानी तुम्हें इन अभिव्यक्तियों का भेद पहचानना चाहिए। इनमें रुचि मत लो या ऐसे लोगों के करीब मत जाओ, अपने दिल में उनसे ईर्ष्या, उनकी प्रशंसा, यहाँ तक कि उनका अनुसरण और अनुकरण भी मत करो। इसके बजाय, तुम्हें ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए, उनका भेद पहचानना चाहिए, उनके प्रति स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए और उनके और अपने बीच एक स्पष्ट सीमा खींचनी चाहिए। समझे? (समझ गए।)
हमने अभी जिन अभिव्यक्तियों पर संगति की, वे उन लोगों में विचित्रता की सबसे गंभीर अभिव्यक्तियाँ थीं जो दानव हैं। इन अभिव्यक्तियों का भेद पहचानना लोगों के लिए थोड़ा आसान होता है। कुछ अभिव्यक्तियाँ थोड़ी कम गंभीर भी होती हैं। यानी दैनिक जीवन में वे अक्सर कुछ चरम विचार और दृष्टिकोण रखते हैं, और चरम व्यवहार और अभ्यास करते हैं; उनके क्रियाकलाप अक्सर सामान्य मानवता की सहनशीलता की सीमा पार कर जाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर वे कुछ गलत कहते हैं या करते हैं, तो वे खुद से नफरत करते हैं, अपने चेहरे पर थप्पड़ मारते हैं, यहाँ तक कि दिन में खाना न खाकर और रात में नींद न लेकर खुद को सजा भी देते हैं। वे अक्सर अपने देह को सजा देने के लिए चरम तरीके इस्तेमाल करते हैं और इसका अपनी गलतियाँ सुधारने का अपना दृढ़ संकल्प दिखाने के तरीके के तौर पर उपयोग करते हैं। हो सकता है कोई उन्हें यह सलाह दे, “ऐसा करने से समस्या हल नहीं होगी। तुम्हें पहले परमेश्वर के वचनों के आधार पर आत्म-चिंतन करना होगा और खुद को जानना होगा, फिर अभ्यास के सिद्धांत और अभ्यास का मार्ग खोजना होगा, तभी धीरे-धीरे बदलाव आ सकता है। किसी भी तरह का भ्रष्ट स्वभाव बदलना कोई ऐसी चीज नहीं है जो एक-दो दिन में हो सकती है; इसके लिए एक निश्चित समय की जरूरत होती है, इसकी एक प्रक्रिया होनी आवश्यक है।” यह एक सटीक कथन है, लेकिन वे न तो इसे स्वीकारते हैं, न ही इसका अभ्यास करते हैं। वे विभिन्न समस्याओं का समाधान सत्य-सिद्धांतों के आधार पर नहीं करते, बल्कि चरम उपाय अपनाते हैं। वे कितने चरम होते हैं? देखो, समस्याएँ हल करने के लिए अक्सर वे ऐसे तरीके इस्तेमाल करते हैं जो उनके देह को नुकसान पहुँचाते हैं और ऐसे तरीके इस्तेमाल करते हैं जो उन्हें पीड़ा देते हैं। क्या यह चरम नहीं है? (हाँ, है।) वे दूसरों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार करते हैं, उनके विरुद्ध भी चरम तरीके इस्तेमाल करते हैं। वे विभिन्न मामलों से पेश आने के लिए भी चरम तरीके इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कोई महिला अक्सर महसूस करती है कि वह अपने काम में बहुत व्यस्त रहती है और उसे लगता है कि बाल काटने और धोने में समय बिताना बहुत झंझट भरा है, इसलिए वह अपने सारे बाल मुँड़वा लेती है। बाल मुँड़वाने की आवृत्ति कम करने के लिए वह बालों की सामान्य बढ़त रोकने के लिए कुछ रासायनिक उत्पाद भी लगाती है। क्या यह चरम नहीं है? उसे गंजा देखकर लोग मान लेते हैं कि वह पुरुष है, लेकिन उसकी आवाज और देहयष्टि से आँकने पर उन्हें लगता है कि वह स्त्री हो सकती है—वे बस बता नहीं सकते कि वह पुरुष है या स्त्री। दूसरे भाई-बहनों से पूछने पर ही उन्हें पता चलता है कि वह स्त्री है और परेशानी से बचने के लिए उसने अपना सिर मुँड़वा लिया है। भेद न पहचानने वाले कुछ लोग तो ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा करते हुए इसका अनुमोदन भी कर देते हैं : “देखो, देह के विरुद्ध विद्रोह करने का उसका दृढ़ संकल्प वाकई साधारण लोगों से परे है। देह के प्रति उसकी घृणा सच्ची घृणा है; जब देह से लगाव न रखने की बात आती है, तो वह सचमुच कार्रवाई करती है! एक दिन मैं भी उसकी तरह अपना सिर मुँड़वा लूँगा।” कुछ तो उसकी नकल भी करते हैं! क्या वे भी उसी तरह के नहीं हैं? उनकी मुलाकात एक हमरूह इंसान से हुई है; न सिर्फ वे इस मामले का भेद नहीं पहचानते, बल्कि वे इसकी बहुत प्रशंसा भी करते हैं और इसका अनुकरण करना चाहते हैं। क्या ये चरम लोग नहीं हैं? (हाँ, हैं।) मुझे बताओ, क्या चरम लोग हर चीज किसी विकृत प्रेरक शक्ति के साथ नहीं करते? (हाँ, करते हैं।) यह विकृत प्रेरक शक्ति कहाँ से आती है? क्या सामान्य मानवता में यह विकृत प्रेरक शक्ति होती है? (नहीं।) तो सामान्य मानवता में यह विकृत प्रेरक शक्ति क्यों नहीं होती? क्योंकि, अगर लोगों में सामान्य मानवता की सोच, जमीर और विवेक हो, तो वे मामलों पर अपेक्षाकृत सामान्य, सकारात्मक और व्यावहारिक तरीके से विचार करेंगे; इस प्रकार वे इन चरम व्यवहारों में बिल्कुल भी संलग्न नहीं होंगे। अर्थात्, चाहे वे कुछ भी करें, चाहे वह उन्हें पसंद हो या न हो, वे सामान्य और तर्कसंगत तरीके से व्यवहार करेंगे और चरम तक नहीं जाएँगे। तो क्या यह कहा जा सकता है कि चरम तक जाने वाले इस तरह के व्यक्ति की सोच में कुछ गड़बड़ है? (हाँ।) उनकी समझ में कुछ समस्या है, है ना? (हाँ।) उदाहरण के लिए, परमेश्वर अपेक्षा करता है कि लोग अपना कर्तव्य निभाने में वफादार रहें। वे मनन करते हैं कि वफादारी कैसे हासिल करें और इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उन्हें कष्ट सहना चाहिए, इसलिए वे कष्ट सहने का अभ्यास करते हैं : वे हर भोजन के लिए विनियमों का पालन करते हैं, एक निश्चित संख्या में चावल के दाने और सब्जी के टुकड़े खाते हैं; जब उनके कपड़े फट जाते हैं तो वे उन पर पैबंद लगाते हैं और उन्हें पहनना जारी रखते हैं, दूसरों के सामने तपस्वी जैसे लगते हैं; जहाँ दूसरे लोग प्रतिदिन छह से आठ घंटे सोते हैं, वे सिर्फ एक-दो घंटे ही सोते हैं। उन्हें लगता है कि उनमें कष्ट सहने का संकल्प है और वे किसी और से ज्यादा वफादार हैं। वे हमेशा इन चरम विचारों और व्यवहारों पर मनन करते हैं, जिन्हें सामान्य लोग नहीं समझ सकते। उदाहरण के लिए, अगर वे किसी से बात करते समय कुछ गलत कह देते हैं या किसी शब्द का गलत इस्तेमाल कर देते हैं और उनका मजाक उड़ाया जाता है, तो वे अपमानित महसूस करते हैं और सोचते हैं : “मैं अपने जीवन में फिर कभी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करूँगा, और इतना ही नहीं—मैं इस व्यक्ति को अपने जीवन में फिर कभी नहीं देखूँगा और इस व्यक्ति से कभी बात नहीं करूँगा, ताकि यह मुझमें कोई दोष न निकाल सके!” और वे ऐसा कर सकते हैं—वे इस पर अड़े रह सकते हैं। वे जीवन भर किसी चरम व्यवहार या विचार और दृष्टिकोण पर अड़े रह सकते हैं और किसी के द्वारा भी मनाए जाने पर इनकार कर सकते हैं। वे बस इसी तरह अड़े रहते हैं, यहाँ तक कि उनके पास अपने अड़े रहने के कारण और आधार भी होते हैं, वे मानते हैं कि यह सत्य के प्रति समर्पण की अभिव्यक्ति है, परमेश्वर से प्रेम करने की अभिव्यक्ति है और वफादारी की अभिव्यक्ति है। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोग परेशानी पैदा करने वाले नहीं होते? (हाँ, होते हैं।) क्या उनके साथ मेलजोल रखना आसान है? (नहीं।) तो उनके व्यवहार कैसे पैदा होते हैं? क्या वे एक तरह की चरम सोच के कारण पैदा नहीं होते? वे इन चरम व्यवहारों और अभिव्यक्तियों को सत्य का अभ्यास करना समझते हैं और ऐसा करने में लगे रहते हैं। क्या ये चरम विचार और दृष्टिकोण इस प्रकार के व्यक्ति में इन व्यवहारों की जड़ नहीं हैं? वे मानते हैं कि इस तरह से चीजें करना सत्य का अभ्यास करना और परमेश्वर के प्रति वफादारी व्यक्त करना है, और इसके अलावा, वे उन लोगों से जो ऐसा नहीं करते, मन ही मन घृणा करते हुए उनकी निंदा और उनके साथ भेदभाव करते हैं। उदाहरण के लिए, पूर्व में उल्लिखित उस महिला पर विचार करो जिसने अपना सिर मुँड़वा लिया था; दूसरों को सिर न मुँड़वाते देखकर वह सोचती है, “हुँह, तुम लोग ऐसे लंबे बाल रखते हो, यहाँ तक कि उन्हें तरह-तरह से सँवारते भी हो। तुम सब लोग कितने घमंडी हो; तुम लोग परमेश्वर से प्रेम नहीं करते! मुझे देखो, मैं इतने सालों से गंजी हूँ और कभी हँसी उड़ाए जाने से नहीं डरी; मैं घमंडी नहीं हूँ। तुम लोग अपने बाल इतने लंबे रखते हो और तुम्हें उन्हें बार-बार धोना पड़ता है—समय की कितनी बर्बादी होती है! उतने समय में क्या परमेश्वर के वचन और पढ़ना, और थोड़ा और कर्तव्य निभाना अच्छा नहीं रहेगा?” यहाँ तक कि वह दूसरों की निंदा भी करती है! ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के बहुत सारे वचन सुनता है और इतने वर्षों से धर्मोपदेश सुनता है, फिर भी यह नहीं समझता कि सत्य क्या है। वह अभी भी कई चरम विचार रखता है और इन चरम विचारों के मार्गदर्शन में वह कई चरम व्यवहार, अभ्यास और शैलियाँ प्रदर्शित करता है, फिर खुद को परमेश्वर से सबसे ज्यादा प्रेम करने वाले और सबसे वफादार व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है। क्या यह विचलन की एक और अभिव्यक्ति नहीं है? (हाँ, है।) हर चीज में चरम पर जाना विचलन है। मुझे बताओ, ये चरम अभिव्यक्तियाँ दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचातीं, तो फिर हम इन्हें विचलन क्यों कहते हैं? (ये अभिव्यक्तियाँ सामान्य लोगों की सोच के अनुरूप नहीं होतीं; ये वे व्यवहार और अभ्यास नहीं हैं जो सामान्य लोगों में होने चाहिए।) इन चरम अभिव्यक्तियों का सामान्य लोगों की सोच और अभिव्यक्तियों से बिल्कुल भी लेना-देना नहीं है; ये वास्तविकता से अलग हैं, उस वस्तुनिष्ठ, व्यावहारिक जीवन से अलग हैं जो सामान्य मानवता वाले लोगों का होना चाहिए। वे विभिन्न मामलों से पेश आने का एक उग्र तरीका अपनाते हैं, फिर इन चरम, उग्र विचारों, दृष्टिकोणों और व्यवहारों को सकारात्मक चीजों के रूप में परिभाषित करते हैं, जबकि सत्य को एक नकारात्मक चीज के रूप में परिभाषित करते हैं। क्या यह सही को गलत और गलत को सही समझना, काले को सफेद में बदलना नहीं है? (हाँ, है।) सही को गलत और गलत को सही समझना, काले को सफेद में बदलना, भ्रमित करके अवधारणाओं में अदला-बदली करना—यह विचलन है। चाहे तुम सामान्य मानवता, जमीर और विवेक, सामान्य लोगों की सोच या उन विचारों और दृष्टिकोणों के बारे में जो विभिन्न मामलों के प्रति सामान्य लोगों में होने चाहिए, कैसे भी संगति करो, वे उसे ग्रहण नहीं कर सकते और आंतरिक रूप से वे उसे स्वीकारते ही नहीं है। उसे न स्वीकारने के अलावा, वे कुछ हास्यास्पद और विचित्र प्रथाएँ, व्यवहार, यहाँ तक कि ऐसे विचार और दृष्टिकोण भी गढ़ लेते हैं जो सामान्य मानवता के मार्ग से अलग होते हैं, उन्हें अपने अंदर कार्यान्वित करते हैं, और साथ ही इसे तमाम लोगों, घटनाओं और चीजों को मापने के मानक के रूप में इस्तेमाल करते हैं और मानते हैं कि जो कुछ भी उनके चरम विचारों, दृष्टिकोणों और व्यवहारों के अनुरूप नहीं है वह गलत है, जबकि जो कुछ भी उनके चरम विचारों, दृष्टिकोणों और व्यवहारों के अनुरूप है वह सही है और सत्य के अनुरूप है। क्या यह सही को गलत और गलत को सही समझना नहीं है? क्या यह काले को सफेद में बदलना नहीं है, क्या यह भ्रमित करके अवधारणाओं की अदला-बदली करना नहीं है? यह दानवों से पुनर्जन्म लेने वालों में विचलन की एक और अभिव्यक्ति है। यानी वे कभी सकारात्मक चीजें नहीं स्वीकारते, बल्कि गैर-सकारात्मक या नकारात्मक चीजों को सकारात्मक बताकर लोगों को उनका अनुकरण करने और नकल उतारने के लिए प्रेरित करते हैं और इससे लोगों को परमेश्वर से दूर करने का लक्ष्य प्राप्त करते हैं। यह भी एक तरह का चरम व्यवहार है।
जो लोग दानव हैं उनमें विचलन की एक और अभिव्यक्ति होती है : वे सत्य से जरा भी प्रेम नहीं करते। वे असामान्य, अलौकिक चीजों का अनुसरण करना पसंद करते हैं, हमेशा पूरी तरह से आध्यात्मिक सिद्धांतों और कहावतों का एक समुच्चय गढ़ना चाहते हैं, यहाँ तक कि इन अलौकिक मामलों के आधार के बारे में शोध भी करना चाहते हैं। वे इन चीजों को सत्य, दैनिक जीवन के क्रियाकलापों के लिए मार्गदर्शक, दिशा-निर्देश और लक्ष्य समझते हैं और इनका इस्तेमाल तमाम तरह के लोगों, घटनाओं और चीजों से निपटने और उनका आकलन करने के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए, जब उनके लिए चीजें सुचारु रूप से नहीं चलतीं, तो वे याद करते हैं कि पिछली रात उन्होंने क्या सपने देखे थे, क्या उनके आसपास कोई असामान्य परिघटना घटी थी या क्या कोई अशुभ संकेत मिले थे, और अपने भाग्य का निर्धारण करने के लिए उनमें कोई आधार खोजने की कोशिश करते हैं; ये ऐसी चीजें हैं जिनका वे हमेशा अनुसरण करते हैं। खासकर जब उनका सामना गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों से होता है, तो वे उन्हें अशुभ समझते हैं और मानते हैं कि ऐसे लोगों से संपर्क उनकी जीवन-ऊर्जा समाप्त कर देगा और दुर्भाग्य लाएगा। इसलिए ऐसे लोगों से संपर्क होने के बाद वे अक्सर आईने में देखते हैं कि उनका माथा काला तो नहीं पड़ गया या उनके आसपास दुर्भाग्य का कोई भाव तो नहीं है। साधारणतया वे हमेशा यही मनन करते रहते हैं कि भला उनका भाग्य कैसा होगा। जब भी उनके पास खाली समय होता है, वे पुराने पंचांग पलटते हैं या ऑनलाइन जाकर भविष्य बताने वाली कहावतें खोजते हैं। उन्होंने जो सपना देखा या दूसरों से कोई अंधविश्वास भरी कहावत सुनी—इन सबको वे इस बात का अनुमान लगाने का आधार बना सकते हैं कि उनका भाग्य अच्छा है या बुरा। हालाँकि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन वे कभी अपने आसपास के लोगों, घटनाओं और चीजों के साथ पेश आने के आधार के रूप में परमेश्वर के वचनों का इस्तेमाल नहीं करते, न ही वे अपने आसपास घटने वाली हर घटना के साथ पेश आने के आधार के रूप में सत्य का इस्तेमाल करते हैं। इसके बजाय, वे हमेशा कुछ असामान्य अनुभूतियाँ तलाशते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी दिन गाते समय वे थोड़े अस्वस्थ महसूस करते हैं, तो वे सोचते हैं, “क्या परमेश्वर मुझे रोक रहा है? क्या परमेश्वर नहीं चाहता कि मैं गाऊँ?” अगर वे किसी दिन सुसमाचार का प्रचार करने जाते हैं, तो भले ही उन्होंने किसी के साथ समय और स्थान स्पष्ट रूप से तय कर लिया हो, फिर भी उन्हें अपनी आत्मिक अनुभूति को समझने के लिए प्रार्थना करनी पड़ती है। प्रार्थना करने के बाद वे कुछ मिनट प्रतीक्षा करते हैं, लेकिन उन्हें कुछ महसूस नहीं होता। तब वे देखते हैं कि उस दिन सूर्य के साथ कोई असामान्य परिघटनाएँ तो नहीं हो रही हैं, या बाहर मुटरियाँ चहचहा तो नहीं रही हैं या कौवे काँव-काँव तो नहीं कर रहे हैं, इनका इस्तेमाल कर वे यह तय करते हैं कि उस दिन उनका भाग्य कैसा रहेगा, क्या सुसमाचार का प्रचार करने जाना सुचारु रूप से होगा और क्या उन्हें लोग प्राप्त होंगे। अगर ये तरीके काम नहीं करते, तो वे यह तय करने के लिए कि जाना है या नहीं, सिक्का तक उछालेंगे। अगर चित आता है तो उनके लिए इसका मतलब होता है कि चीजें सुचारु रूप से चलेंगी और वे लोगों को प्राप्त कर पाएँगे; अगर पट आता है तो इसका मतलब है कि चीजें सुचारु रूप से नहीं चलेंगी और उन्हें लोग प्राप्त नहीं होंगे। वे इन्हीं चीजों के आधार पर तय करते हैं कि उन्हें बाहर जाना है या नहीं। ऐसे लोग चाहे कितने भी लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास कर रहे हों, वे सत्य को अपने अभ्यास के आधार या सिद्धांत के रूप में कभी इस्तेमाल नहीं करते। इसके बजाय, वे लोगों, घटनाओं और चीजों का आकलन करने, अपने आसपास घटित होने वाले विभिन्न मामलों से निपटने या वे सिद्धांत निर्धारित करने के लिए जिनके अनुसार उन्हें अभ्यास करना चाहिए, हमेशा उन अंधविश्वास भरी कहावतों या असामान्य अनुभूतियों और परिघटनाओं पर भरोसा करते हैं। वे हमेशा इन निराधार, विचित्र, अजीब, अलौकिक अनुभूतियों की तलाश में रहते हैं और हमेशा इन्हीं के आधार पर क्रियाकलाप करते और जीते हैं। कुछ लोग बाहर जाते समय काली बिल्ली देखकर यह मान लेते हैं कि यह दुर्भाग्य का प्रतीक है और बाहर जाने के बजाय मामले को कुछ समय के लिए टालना चाहते हैं। कुछ लोगों की कार कोई काम सँभालने के लिए जाते समय रास्ते में खराब हो जाती है और वे मानते हैं कि परमेश्वर उन्हें रोक रहा है, कि आज उनकी किस्मत खराब है और उन्हें बाहर नहीं निकलना चाहिए था। कुछ लोग बाहर जाते समय ताबूत देखकर मान लेते हैं कि आज भाग्यवश उन्हें धन की प्राप्ति होगी। कुछ भी करते समय ऐसा व्यक्ति हमेशा किसी तरह की अंधविश्वास भरी कहावत में आधार खोजता है; उसके पास सत्य पर आधारित अभ्यास के सटीक सिद्धांत नहीं होते। दूसरे लोग चाहे कैसे भी संगति करें या परमेश्वर का घर कैसे भी कार्य करे, वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार जीना और कार्य करना कभी नहीं सीखते। अगर घर में कभी कोई असामान्य परिघटना घट जाए, जैसे नल का अचानक टूट जाना और रिसना, तो वे इसे अपशकुन मानते हैं। अगर कभी हवा का झोंका आने से खिड़की खुल जाए और शीशा टूट जाए तो उन्हें लगता है, “यह हवा का झोंका सामान्य नहीं है; यह आपदा का संकेत लगता है। क्या परमेश्वर मुझे बाहर जाने से रोक रहा है?” अगर उनके बाहर जाने पर बर्फबारी हो जाए तो वे कहते हैं, “देखो, जैसे ही मैं बाहर गया, बर्फबारी शुरू हो गई। लोग अक्सर कहते हैं, ‘जब प्रतिष्ठित लोग बाहर जाते हैं तो हवा और बर्फ को आकर्षित करते हैं।’ लगता है मैं एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हूँ!” क्या यह बकवास नहीं है? वे हर चीज आँकने और तय करने के आधार के रूप में इन अजीब और विचित्र कहावतों का इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर बाहर जाते समय उनके पीठ के थैले का पट्टा किसी दरवाजे के दस्ते में फँस जाता है, तो वे मानते हैं कि इसके लिए कोई कहावत है और इसका कोई अभिप्राय है। वे जल्दी से पंचांग से परामर्श करते हैं और देखते हैं कि इस समय चीजें करने बाहर जाने के लिए यह कहावत है : “सारे मामले प्रतिकूल हैं; बाहर जाने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।” वे मनन करते हैं, “सारे मामले प्रतिकूल हैं—इसका मतलब है कि मैं कुछ नहीं कर सकता, मुझे घर पर ही रहना चाहिए। यह परमेश्वर है जो मुझे आराम करने और सुख लेने दे रहा है; यह परमेश्वर की सुरक्षा है!” यहाँ तक कि वे इसके लिए एक आधार भी ढूँढ़ लेते हैं। क्या यह हास्यास्पद नहीं है? स्थिति चाहे जो भी हो, उन्हें लगता है कि उसके लिए कोई न कोई कहावत होगी। क्या यह विचित्र नहीं है? अपने आसपास घटित होने वाली हर चीज को वे एक विचित्र परिघटना मानते हैं और उनके इन “विचित्र परिघटनाओं” को सँभालने का आधार तरह-तरह की विचित्र कहावतें होती हैं। वे अपने आसपास घटित होने वाली हर चीज के साथ पेश आने के लिए इन तरह-तरह की विचित्र कहावतों का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए अगर तुम ऐसे व्यक्ति के साथ रहते हो, तो तुम्हें अक्सर लगेगा कि वे विशेष रूप से विचित्र हैं। वे अचानक कुछ ऐसा कह सकते हैं जिससे तुम्हारा दिल जोरों से धड़कने लगे, तुम्हारे भीतर सिहरन दौड़ जाए। उदाहरण के लिए, देर रात कुत्ते का भौंकना सुनाई देना बहुत सामान्य है, लेकिन उनके लिए यह एक बड़ी घटना होती है। उन्हें जानकारी खोजनी होगी, शकुन-विचार और भविष्य-कथन का सहारा लेना होगा, ताकि यह पता चल सके कि कौन-सी कहावत उस समय कुत्ते के भौंकने का अर्थ बताती है। कुछ समय उनके साथ बातचीत करने और जुड़ने के बाद तुम कैसा महसूस करोगे? तुम निश्चित रूप से कुछ बेतुकी कहावतों से अक्सर बाधित होगे। क्या तुम्हारे दिल में शांति और आनंद होगा? (नहीं।) बिना शांति और आनंद के तुम उन्हीं की तरह बेचैन हो जाओगे, हर चीज के लिए कोई न कोई कहावत ढूँढ़ने की जरूरत महसूस करोगे। तुम्हारे खोज पर खोज करने पर परमेश्वर तुम्हारे दिल से ओझल हो जाएगा और तुम्हारे दिल में सिर्फ वही अंधविश्वास भरी कहावतें रह जाएँगी। इसका मतलब है कि तुम दुष्टात्माओं, दानवों और शैतानों द्वारा इस हद तक बाधित किए जा रहे हो कि तुम्हारे विचार क्षुब्ध हो गए हैं, तुम्हारे दिल में शांति या आनंद नहीं रहा, तुम्हारी सोच अराजक हो गई है और तुम सामान्य मानवता की अभिव्यक्तियाँ खो देते हो। इन अराजक विचारों और अराजक कहावतों से लोगों के जीवन की सामान्य व्यवस्था और प्रतिरूप पूरी तरह अव्यवस्थित हो जाते हैं। चाहे कुछ भी हो जाए, ऐसा व्यक्ति उसे किसी विचित्र कहावत से समझा सकता है और अंततः उसके साथ हास्यास्पद, अजीब तरीके से पेश आ सकता है। यह विचलन है। कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं जो किसी अगुआ द्वारा काट-छाँट किए जाने के बाद सोचते हैं : “आज सुबह मुझे महसूस हुआ कि मेरे शरीर के साथ कुछ ठीक नहीं है। चेहरा धोते समय मैंने देखा कि मेरा माथा काला पड़ा हुआ था। निश्चित रूप से आज मेरी काट-छाँट की गई। देखो, इसके संकेत हैं। इसलिए मुझे रोज जब भी फुरसत मिले, आईना देखना चाहिए। अगर मुझे दिखे कि मेरा माथा काला पड़ गया है, तो मुझे सावधान रहना होगा—हो सकता है कि मेरी काट-छाँट की जाए, हो सकता है मैं किसी दीवार से टकरा जाऊँ या किसी चीज में निराश हो जाऊँ।” जब कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार करने जाते हैं और देखते हैं कि संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता एक बहुत अच्छा इंसान है जिसका दिल लालायित रहता है और खोजता है, और संगति किए जाने पर वह सत्य स्वीकार सकता है, तो परमेश्वर का धन्यवाद करने के अलावा वे यह भी सोचते हैं : “कल मैंने सपना देखा कि मैं एक झरने में अपने पैर धो रहा हूँ। वह झरना धन का प्रतीक है और धन प्राप्त करना सुसमाचार के प्रचार के जरिये किसी को प्राप्त करने का प्रतीक है। इसलिए, आज इस व्यक्ति को प्राप्त करने के लिए मुझे परमेश्वर का भी धन्यवाद करना चाहिए; परमेश्वर ने पहले ही एक संकेत दे दिया है!” चाहे उनका सामना जिससे भी हो या उन्हें जो भी महसूस हो, वे हमेशा उसके मूल कारण का पता लगाना चाहते हैं और उन्हें हमेशा एक आधार खोजने की जरूरत पड़ती है। कुछ लोग इस अंधविश्वास भरी कहावत पर विश्वास करते हैं, “बाईं आँख का फड़कना अच्छे भाग्य की भविष्यवाणी करता है, लेकिन दाईं आँख का फड़कना विपत्ति की भविष्यवाणी करता है,” और इसी को अपने साथ घटित होने वाली घटनाओं का आकलन करने के आधार के रूप में इस्तेमाल करते हैं। वे सत्य के लिए कभी प्रयास नहीं करते, न वे सत्य खोजते हैं और न ही विभिन्न मामलों का आकलन करने के आधार के रूप में सत्य का इस्तेमाल करते हैं। उनके दिल पूरी तरह से विभिन्न विचित्र, हास्यास्पद, अजीब, यहाँ तक कि अलौकिक कहावतों, विचारों और दृष्टिकोणों, पाखंडों और भ्रांतियों से भरे रहते हैं; वे इन चीजों में रमे रहते हैं।
कुछ लोग बाहर से बिलकुल सामान्य दिखाई देते हैं; उनका जीवन, कार्य और दूसरों के साथ मेलजोल कोई चरम, अलौकिक या विचित्र अभिव्यक्तियाँ नहीं दिखाते। लेकिन उनके साथ लंबे समय तक जुड़े रहने के बाद व्यक्ति को पता चलता है कि उनके मन और दिल पूरी तरह से तमाम तरह की हास्यास्पद, विचित्र और विकृत अंधविश्वासपूर्ण कहावतों से भरे हुए हैं, जो बुरी प्रवृत्तियों से उत्पन्न होती हैं और वे अपने आसपास घटित होने वाले विभिन्न मामलों का आकलन करने के लिए आधार के रूप में इन चीजों का इस्तेमाल करते हैं। यहाँ तक कि जब वे यह जानते हैं कि चीजें परमेश्वर की संप्रभुता, व्यवस्थाओं और संरक्षण के अधीन हैं, तब भी वे ऐसे मामलों की व्याख्या करने के लिए किसी तरह की अंधविश्वासपूर्ण कहावत आधार के रूप में खोजते हैं और परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं की व्याख्या अंधविश्वासपूर्ण कहावतों से करते हैं। क्या यह विचलन नहीं है? (हाँ, है।) इतना सारा सत्य सुनने के बाद भी ऐसा कैसे है कि वे सत्य नहीं समझ सकते, समस्याएँ सत्य के साथ नहीं देख सकते और एक भी चीज सत्य के अनुरूप नहीं कह सकते? उनके दिल सत्य से रहित कैसे हो सकते हैं और उसके बजाय उन पाखंडों, भ्रांतियों और अंधविश्वासों के कब्जे में और उनसे भरे हुए कैसे हो सकते हैं? क्या यह विचलन नहीं है? (हाँ, है।) कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं, “चींटियों पर पैर नहीं रखना चाहिए! चींटी भी एक जीवित प्राणी है। अगर तुम किसी चींटी पर पैर रखते हो और उसे मार देते हो, और वह आध्यात्मिक क्षेत्र में लौटकर आकाश में उस बूढ़े व्यक्ति से तुम्हारी रिपोर्ट कर दे, तो तुम दंड भुगतोगे।” “अगर तुम कोई मछली मारते हो और उसका मुँह तुम्हारी ओर खुला रहता है, तो इसका मतलब है कि वह तुम पर आरोप लगा रही है! तुम वह मछली नहीं खा सकते; खाओगे तो तुम्हें दंड भुगतना होगा! मुर्गे, कुत्ते, बैल, सूअर मारना—यह सब जीवन लेना है; तुम इसके लिए दंड भुगतोगे!” उन्हें ये पाखंड और भ्रांतियाँ कहाँ मिलती हैं? क्या वे इन्हें इस दुष्ट मानवजाति से नहीं सुनते? वे एक कहावत यहाँ से और एक कहावत वहाँ से उठाते हैं, उन सभी को स्वीकारते हैं, यहाँ तक कि इन कहावतों को सर्वोच्च आदेश मानते हैं, उन्हें परमेश्वर की इच्छा जितना ही ऊँचा मानते हैं। कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी कुछ लोग ऐसी बातें कहते हैं, “तुम मुर्गे नहीं मार सकते। अगर तुम इस जन्म में मुर्गे मारोगे, तो अगले जन्म में मुर्गा बनोगे और किसी के हाथों मारे जाओगे। इसलिए तुम जीवन नहीं ले सकते; जीवन लेने पर तुम्हें दंड भुगतना पड़ेगा!” वे ऐसा कहते हैं, लेकिन जब मुर्गा खाने की बात आती है, तब वे खुद एक बार में ही एक पूरा मुर्गा खा सकते हैं। क्या यह विचलन नहीं है? दूसरे कहते हैं, “तुम जानवरों की खाल नहीं पहन सकते। जानवरों के मरने के बाद भी उनकी आत्माएँ महसूस कर सकती हैं। अगर तुम जानवरों की खाल पहनते हो, तो यह खुद को जानवर की आत्मा से आच्छादित करने जैसा है। अगर यह जानवर अन्यायपूर्ण तरीके से मरा है, तो यह तुम्हें ढूँढ़कर तुम्हारा पीछा कर सकता है और एक बार जब वह तुम्हारा पीछा करना शुरू कर देगा, तो फिर तुम्हें चैन नहीं मिलेगा।” बताओ, क्या ये कहावतें अजीब नहीं हैं? (हाँ, हैं।) कुछ और लोगों के पास भी, किसी और को नकली बाल पहने देखकर, कुछ कहने के लिए होता है : “तुम्हारे पास जो नकली बाल हैं, हो सकता है उसके मूल मालिक की मृत्यु अन्यायपूर्ण ढंग से हुई हो; उसकी आत्मा अभी भी बालों में है। अगर तुम उसके बाल पहनोगे तो उसकी आत्मा तुम्हारा पीछा करेगी।” तमाम तरह की विचित्र, अजीब और बेतुकी कहावतें ऐसे व्यक्ति के लिए दिल में सँजोकर रखने वाली चीजें बन जाती हैं; ये उनके लिए सर्वोच्च निर्देश होते हैं। वे इन बेतुकी और हास्यास्पद कहावतों का ऐसे पालन करते हैं मानो वे सत्य हों, और फिर भी वे मानते हैं कि वे परमेश्वर के मार्ग पर चल रहे हैं। न सिर्फ वे खुद इनका पालन करते हैं, बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने के लिए कहते हैं। अगर दूसरे लोग इनका पालन नहीं करते, तो वे उन्हें डराने-धमकाने के लिए डरावनी, रोंगटे खड़े कर देने वाली कहावतें तक इस्तेमाल करते हैं और उन्हें इनकी अनुपालना करने के लिए मजबूर करते हैं। जो लोग सत्य नहीं समझते, वे इनसे भयभीत हो जाते हैं। ये अजीब और हास्यास्पद कहावतें दानवों और शैतान द्वारा मानव-जगत में फैलाई गई कुछ निराधार अफवाहें और भ्रांतियाँ होती हैं। एक तो ये लोगों की सामान्य सोच और स्वतंत्र इच्छा में हस्तक्षेप करती हैं और उन्हें नियंत्रित करती हैं; दूसरे, दानव और शैतान इन पाखंडों और भ्रांतियों का इस्तेमाल कुछ लोगों को अपने वश में करने के लिए करते हैं, जिससे ये लोग इस मानव-जगत में उनकी सेवा करने और उनके निकास-मार्ग बनने, उनके विभिन्न अजीब और विचित्र विचारों के कार्यान्वयनकर्ता बनने के लिए बाध्य हो जाते हैं। इसलिए इन विचित्र लोगों की किसी भी अभिव्यक्ति से आँकें तो, उनका प्रकृति सार दुष्ट होता है। वे सत्य जरा भी नहीं स्वीकारते; वे विकृत चीजों का सबसे ज्यादा सम्मान करते हैं। यही समस्या है। जब लोग सत्य नहीं समझते और जब उनमें भेद पहचानने की क्षमता नहीं होती, तब वे अक्सर अनजाने ही इन विचित्र और अजीब कहावतों से प्रभावित और गुमराह हो जाते हैं। लेकिन जब लोग सत्य समझते हैं, तब वे सामान्य विवेक और सामान्य सोच के आधार पर यह तय करना जानते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, और जब उन पर चीजें आकर पड़ती हैं तो वे जानते हैं क्रियाकलाप कैसे करने चाहिए, क्या कायम रखना चाहिए और क्या त्याग देना चाहिए। यही वह चीज है जिसे सामान्य मानवता वाले लोगों को समझना और कायम रखना चाहिए, न कि भेद पहचानने, आकलन करने और यह निर्णय लेने के लिए कि लोगों, घटनाओं और चीजों के साथ कैसे पेश आना है, इन अजीब और हास्यास्पद कहावतों का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसे विचित्र व्यक्ति का भेद पहचानने के बाद क्या तुम उसका सार स्पष्ट रूप से देखते हो? उसका सार क्या है? वह विचलन का सार है। वह परमेश्वर को महान नहीं मानता, बल्कि शैतान को महान मानता है। यहाँ तक कि जब वह सत्य के किसी पहलू के बारे में बात करना चाहता है, परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहता है या परमेश्वर द्वारा निर्धारित परिवेश स्वीकारना चाहता है, तब भी वह अपने आधार के रूप में कोई विचित्र, अजीब, हास्यास्पद या बेतुकी कहावत खोजता है। उसके लिए ये विचित्र और हास्यास्पद कहावतें और विचार सत्य और परमेश्वर की संप्रभुता से ऊपर होते हैं। इसलिए ऐसे व्यक्ति का प्रकृति सार निस्संदेह एक विकृत सार होता है। क्योंकि जो जीवन वह जीता है वह शैतान का जीवन होता है, जिसकी वह बड़ाई, वकालत और सराहना करता है वह सत्य नहीं, बल्कि शैतान के पाखंड और भ्रांतियाँ होती हैं। भले ही तुम जो देखते हो वह उसका व्यक्तिगत व्यवहार है, इन व्यक्तिगत व्यवहारों के पीछे की प्रेरक शक्ति दानवों और शैतान के विभिन्न विचार और दृष्टिकोण होते हैं। हालाँकि वह बाहर से मानव प्रतीत होता है, फिर भी वह दानवों और शैतान के विभिन्न पाखंडों और भ्रांतियों के लिए एक निकास, उनका उत्तराधिकारी और गवाह होता है। वह जिसकी गवाही देता और वकालत करता है वह शैतान के पाखंड और भ्रांतियाँ होती हैं, सत्य नहीं। यह उनके विकृत प्रकृति सार की अभिव्यक्ति होती है।
मुझे बताओ, क्या देवदूत देख पाना किसी व्यक्ति के लिए अच्छी चीज है? अगर कोई सचमुच देवदूत देख सकता है तो यह निश्चित रूप से एक अच्छी चीज है। लेकिन अगर वह देवदूत सच्चा देवदूत न होकर देवदूत के भेस में शैतान है, तो उसे देखना बहुत खतरनाक है। अगर शैतान देवदूत का भेस बनाता है और तुम्हें उसे देखने देता है, तो यह तुम्हारे लिए अच्छी चीज है या बुरी चीज? (बुरी चीज।) तुम क्यों कहते हो कि यह बुरी चीज है? क्या सामान्य परिस्थितियों में नश्वर देह देवदूत को देख सकता है? (नहीं।) क्या मनुष्यों में यह क्षमता है? (हममें नहीं है।) सटीक रूप से कहें तो, मनुष्यों में शैतान या देवदूत, जो आध्यात्मिक क्षेत्र के हैं, उनको देखने की क्षमता नहीं है। लेकिन अगर तुम उन्हें देखते हो, तो क्या हो रहा है? क्या इसका मतलब यह नहीं है कि तुम्हारे देह की क्षमता कुछ बदल गई है? (हाँ।) बिल्कुल यही बात है। जब देह की क्षमता के साथ कोई अपप्राकृतिक परिघटना घटी है, तो क्या वह परमेश्वर द्वारा बदली गई थी, किसी और चीज द्वारा बदली गई थी या तुम्हारे द्वारा बदली गई थी? (शायद वह किसी और चीज द्वारा बदली गई थी।) तो क्या परमेश्वर इसे तुम्हारे लिए बदल देगा? (नहीं, परमेश्वर ऐसा कार्य नहीं करता।) जब लोग जीवित होते हैं, तब क्या परमेश्वर उनकी आस्था दृढ़ करने के लिए उनकी क्षमताएँ बदल देगा, क्या उन्हें देवदूत या आध्यात्मिक क्षेत्र की कुछ चीजें देखने देगा? क्या परमेश्वर ये चीजें करेगा? (नहीं।) हम निश्चितता के साथ कह सकते हैं कि वह नहीं करेगा। किसी व्यक्ति के उद्धार प्राप्त करने से पहले परमेश्वर ये चीजें बिल्कुल नहीं करेगा; यह निश्चित है, कोई शक नहीं है। फिर, अगर तुम्हारे देह की क्षमता अचानक बदल जाती है और कोई अपप्राकृतिक परिघटना घटित होती है—और उसे परमेश्वर ने नहीं बदला, न ही तुम खुद उसे बदल सकते—तो ये क्या हो रहा है? परमेश्वर ऐसी चीज नहीं करेगा और तुम खुद इसे बदल नहीं सकते। एकमात्र संभावना यह है कि शैतान और दुष्ट आत्माएँ तुम पर काम कर रही हैं; अर्थात् शैतान और दुष्ट आत्माओं ने तुम्हें गुमराह और नियंत्रित किया है, जिससे तुम अलौकिक अभ्यासों में संलग्न हो जाते हो, जिससे तुम ऐसी चीजें देख पाते हो जिन्हें सामान्य लोग नहीं देख सकते और ऐसे शब्द सुन पाते हो जो सामान्य लोग नहीं सुन सकते। यह अच्छी चीज बिल्कुल नहीं है। अगर शैतान तुम्हें ऐसी चीजें देखने देता है जिन्हें दूसरे लोग नहीं देख सकते, तो उसका मकसद क्या है? क्या यह तुम्हारे क्षितिज को व्यापक बनाने के लिए है, क्या यह तुम्हें आध्यात्मिक क्षेत्र के अस्तित्व में विश्वास दिलाने के लिए है, या क्या यह तुम्हें परमेश्वर में आस्था देने के लिए है? (नहीं।) जब शैतान तुम्हारे साथ ऐसा करता है तो क्या उसके इरादे या उद्देश्य नेक होते हैं? (नहीं।) निश्चित रूप से नहीं। शैतान तुम्हारी इस अपप्राकृतिक क्षमता का इस्तेमाल करके तुम्हें कुछ ऐसी चीजें देखने देता है जिन्हें सामान्यतः तुम नहीं देख सकते, और इससे वह तुम्हें ललचाता है और आध्यात्मिक क्षेत्र के मामलों में तुम्हारी रुचि बढ़ाता है। वह तुम्हें यह थोड़ा-सा लाभ, थोड़ा-सा स्वाद देता है और फिर तुम्हें वह स्वीकार करने के लिए फुसलाता है जो वह आगे करेगा। और वह क्या होगा? क्या शैतान तुम्हें सत्य प्रदान करेगा? क्या वह तुम्हें जीवन की आपूर्ति करेगा? नहीं, वह तुम्हें क्षत-विक्षत कर देगा, तुम्हारे देह की विभिन्न जन्मजात क्षमताएँ नष्ट कर देगा, फिर तुम पर कब्जा कर लेगा, तुम्हें परमेश्वर के पक्ष से छीन लेगा और तुमसे परमेश्वर का त्याग करवा देगा। चाहे शैतान किसी व्यक्ति को देवदूत या आध्यात्मिक क्षेत्र की कोई परिघटना देखने दे, मुझे बताओ, क्या यह अच्छी चीज है? (नहीं।) अगर कोई अक्सर ऐसी चीजें देख सकता है जिन्हें दूसरे नहीं देख सकते, या कहता है कि वह अक्सर अपनी छत पर देवदूत उड़ते हुए देखता है और कहता है कि देवदूत गौरवर्ण और साफ-सुथरे होते हैं और अक्सर उससे बात करते हैं, तो ऐसे व्यक्ति से सामना होने पर तुम्हें क्या करना चाहिए? (तुरंत दूर हो जाना चाहिए।) तुम्हें ऐसे व्यक्ति से तुरंत दूर हो जाना चाहिए; उससे किसी चीज की चर्चा मत करो। अगर तुम इस मामले में रुचि लेते हो और इस पर उससे चर्चा करते हो, तो यह खतरनाक है। उससे यह मत कहो, “तुम खतरे में हो; तुम हमेशा ऐसी चीजें देख सकते हो जिन्हें दूसरे नहीं देख सकते। तुम पथभ्रष्ट हो रहे हो, मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।” तुम्हें ये चीजें कहने की जरूरत नहीं है; बस अपने दिल में सचेत रहो—इतना काफी है। शैतान और दानव पहले ही उसे निशाना बना चुके हैं, या यह व्यक्ति प्राकृतिक रूप से दानव है, इंसान नहीं। इंसान दानवों के साथ नहीं रह सकते। दानवों के साथ रहने वाले इंसानों का एक ही अंतिम परिणाम होता है : दानवों द्वारा निगल लिया जाना। जब तुम्हारा ऐसे व्यक्ति से सामना हो जो अलौकिक परिघटनाओं का अनुभव करता है, तो चाहे वह कितनी भी अजीब या विचित्र बातें कहे, तुम्हें बिल्कुल भी उत्सुक नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों से तुरंत दूर हो जाओ; उनका अवलोकन मत करो, अध्ययन मत करो या उन्हें बदलने की कोशिश मत करो, उन्हें सुसमाचार सुनाने और परमेश्वर में विश्वास करने के लिए प्रेरित करने की तो बात ही छोड़ दो। अगर तुम ऐसा करते हो तो तुम बहुत मूर्ख हो। यहाँ तक कि परमेश्वर भी ऐसे लोगों को नहीं चाहता जो दानव हैं; फिर भी तुम किसी दानव को परमेश्वर के घर में ले आओगे और उससे कर्तव्य निभवाओगे। क्या इससे कलीसिया के कार्य को लाभ हो सकता है? इससे न सिर्फ कोई लाभ नहीं होगा, बल्कि यह कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधाएँ भी लाएगा। हालाँकि तुम यह अच्छे इरादों से करते हो, फिर भी परमेश्वर इसे याद नहीं रखेगा और तुम्हारी निंदा तक करेगा; यह एक बुरा कर्म है। इसलिए तुम्हें ऐसी चीजें कभी नहीं करनी चाहिए। चाहे वह तुम्हारा कोई परिचित व्यक्ति हो या नहीं, चाहे वह तुम्हारे परिवार से हो, निकटतम रिश्तेदार हों, या मित्र हों, या वे भाई-बहन हों जिनके साथ तुम सहयोग करते हो—अगर वे अक्सर किसी को अपने आँगन में टहलते हुए देखते हैं या किसी को हमेशा दरवाजे की दरार से झाँककर उन्हें ताकते हुए देखते हैं, और वे अक्सर यह भी कहते हैं कि वे देवदूतों से बात कर सकते हैं, परमेश्वर उनसे जो कहता है वे उसे सुन सकते हैं, वे पहले से ही महसूस करते हैं कि वे विजयी नर बालक हैं, वे ज्येष्ठ पुत्र हैं, ऐसे व्यक्ति हैं जो स्वर्गारोहित होंगे—क्या तुम अभी भी ऐसे व्यक्ति को भाई-बहन मान सकते हो? (नहीं।) तुम लोगों को अपने दिलों में स्पष्ट होना चाहिए; ऐसे लोगों को भाई-बहन समझने की गलती मत करो, मूर्ख मत बनो। अगर तुम मूर्ख हो और ऐसे लोगों को देखकर सोचते हो, “ये विजेता हैं, ज्येष्ठ पुत्र हैं, पूर्ण किए गए लोग हैं; इनके पास सत्य है, मुझे इनके करीब जाना चाहिए,” तो तुम न सिर्फ खतरे में हो, बल्कि तुम उनके द्वारा आसानी से गुमराह भी कर दिए जाओगे जो तकलीफदेह होगा। तुम लोगों का भेद नहीं पहचान सकते या उनके प्रकृति सार की असलियत नहीं जान सकते। क्या परमेश्वर ऐसा कार्य करेगा? परमेश्वर दानवों और शैतानों को नहीं बचाता। परमेश्वर का कार्य लोगों को सत्य की आपूर्ति करना है, ताकि वे सत्य समझकर, उसका अभ्यास करके और उसके प्रति समर्पण करके सत्य को अपना जीवन बनाना हासिल कर सकें, और सच्चा ज्ञान और परमेश्वर का सच्चा भय प्राप्त कर सकें, जिससे वे शैतान के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त हो सकें और उद्धार प्राप्त कर सकें। यही वह कार्य है जो परमेश्वर करता है। सिर्फ सत्य ही लोगों को बचा सकता है, कोई विचित्र कहावतें, पाखंड या भ्रांतियाँ नहीं। इन पाखंडों और भ्रांतियों का सत्य से कोई संबंध नहीं है; ये सिर्फ लोगों को गुमराह और भ्रष्ट कर सकती हैं, और लोगों को उद्धार प्राप्त करने में सक्षम बिल्कुल नहीं बना सकतीं। उद्धार प्राप्त करने, परमेश्वर के प्रति समर्पण हासिल करने और बुराई से दूर रहने के लिए लोगों के पास एकमात्र मार्ग सत्य स्वीकारना और सत्य का अभ्यास करना है; कोई दूसरा मार्ग नहीं है। उद्धार प्राप्त करने के लिए कुछ चरम तरीकों या कहावतों, या हास्यास्पद और अजीब कहावतों को सत्य के रूप में प्रस्तुत करने या उन्हें सत्य से बदलने का प्रयास मत करो। इनमें से कोई भी मार्ग काम नहीं करता; ये परमेश्वर से नहीं आए हैं।
आओ, दानवों से पुनर्जन्म लेने वालों में विचलन की अभिव्यक्तियों पर संगति समाप्त करने के बाद अब उनकी एक और अभिव्यक्ति—बुराई—पर संगति करें। बुराई की अभिव्यक्तियाँ विचलन की अभिव्यक्तियों से समानताएँ रखती हैं, लेकिन उनमें अंतर भी हैं। विचलन की अभिव्यक्तियाँ सामान्य मानवता की सोच, जमीर, विवेक या सहज प्रवृत्तियों के अनुरूप नहीं होतीं, न ही वे सृजित मनुष्यों के लिए सामान्य मानवता की परमेश्वर द्वारा निर्धारित विभिन्न जन्मजात स्थितियों के अनुरूप होती हैं; बल्कि वे सामान्य मानवता की इन विभिन्न जन्मजात स्थितियों के पार निकल जाती हैं। समग्र अभिव्यक्ति असामान्य, अलौकिक, चरम और विचित्र होना है। अर्थात् सामान्य मानवता के जमीर और विवेक वाले लोग ऐसे व्यक्तियों को उनकी अभिव्यक्तियों और व्यवहारों के साथ-साथ उनके विचारों और दृष्टिकोणों के संदर्भ में भी बहुत अजीब पाते हैं। तुम थाह ही नहीं पा सकते कि वे इस तरह क्यों सोचते हैं या इस तरह क्रियाकलाप क्यों करते हैं। अब, संगति के माध्यम से, तुम समझते हो। तो इसकी जड़ कहाँ निहित है? वह उनके प्रकृति सार और दानवी लक्षण में निहित है। ये मूलतः विचलन की अभिव्यक्तियाँ हैं। लेकिन दानवों की बुराई में सिर्फ कुछ सामान्य रूप से दिखाई देने वाली बाहरी अभिव्यक्तियाँ ही शामिल नहीं होतीं; बल्कि उसमें सीधे तौर पर ऐसे व्यक्ति का सत्य के प्रति दृष्टिकोण शामिल होता है। यह विचलन से भी घृणित और ज्यादा गंभीर है। बुराई की अभिव्यक्तियाँ, निस्संदेह, इस बात से भी चिह्नित होती हैं कि ऐसे लोग सत्य के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। पहले तो, जो लोग दानव होते हैं वे सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण होते हैं; यह बुराई की पहली अभिव्यक्ति है। बुराई की दूसरी अभिव्यक्ति यह है कि सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखने के अलावा, दानव अग्रसक्रिय रूप से उस पर आक्रमण भी करते हैं। बुराई की तीसरी अभिव्यक्ति यह है कि सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण होने और उस पर आक्रमण करने के अलावा दानव एक कदम आगे बढ़कर सत्य को बदलना चाहते हैं। बुराई की उनकी अभिव्यक्तियाँ सिर्फ सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण होने और उस पर आक्रमण करने तक ही सीमित नहीं रहेंगी; बल्कि इन दो अभिव्यक्तियों की नींव पर वे सत्य को बदलना भी चाहते हैं। यही उनका सार है। दानवों में बुराई की कई अभिव्यक्तियाँ मसीह-विरोधियों के सार वाले लोगों की अभिव्यक्तियों के समान ही होती हैं, जिन पर हम पहले संगति कर चुके हैं, इसलिए इन पहलुओं में गहरे जाने की जरूरत नहीं है। आज हम मुख्य रूप से दानवों में बुराई की इन तीन अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करेंगे : सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण होना, सत्य पर आक्रमण करना और सत्य को बदलने का प्रयास करना।
आओ, पहले उन लोगों में सत्य के प्रति शत्रुता की अभिव्यक्ति पर संगति करें, जो दानव हैं। हम सत्य के प्रति शत्रुता के विषय पर पहले काफी संगति कर चुके हैं; तुम लोगों के सामने यह विषय पहली बार नहीं आया है। सत्य के प्रति शत्रुता की अभिव्यक्ति उन लोगों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, जो दानव हैं। अर्थात् वे कोई भी सकारात्मक चीज, कोई भी ऐसी चीज नहीं स्वीकार सकते जो सही और मानवता के जमीर और विवेक के अनुरूप है। खासकर जब वह ऐसी चीज है जिसमें सत्य सिद्धांत शामिल हैं, तब वे उसे स्वीकारने में और भी कम समर्थ होते हैं। स्वीकारने में उनकी असमर्थता सिर्फ उनके सिर हिलाकर मना करने का मामला नहीं है; बल्कि वे अपने दिल में विकर्षण और जुगुप्सा के साथ-साथ घृणा भी महसूस करते हैं। उनकी घृणा कितनी गहरी होती है? अगर कोई व्यक्ति विशिष्ट रूप से और वास्तविकता के साथ सत्य पर संगति करता है, तो वह व्यक्ति उन्हें अप्रिय लगता है। यह थोड़ी-सी ईर्ष्या मात्र नहीं है—यह शत्रुता है। शत्रुता क्या होती है? इसका अर्थ है तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करना मानो तुमने उनके पिता की हत्या कर दी हो। दरअसल, हो सकता है तुम्हारा उनके साथ कोई गहरा मेलजोल न हुआ हो, न ही वे अनिवार्य रूप से तुम्हें जानते हों, लेकिन अगर तुम सत्य समझते हो और सत्य पर संगति करते हो तो वे अपने दिलों में विकर्षण महसूस करते हैं। वे किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति विकर्षण महसूस नहीं करते जो शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलता है, लेकिन उस व्यक्ति के प्रति प्रबलता से विकर्षण महसूस करते हैं जो उनके साथ सत्य पर संगति करता है, उन्हें लगता है मानो वह उनकी हत्या कर रहा हो—उनकी घृणा इस हद तक पहुँच जाती है। उनकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं? जब दूसरे लोग सत्य सिद्धांतों या परमेश्वर के इरादों पर संगति करते हैं, तो वे इसे सुनकर विमुख हो जाते हैं और शांत नहीं बैठ सकते। कुछ लोग कोई बहाना बनाकर चले जाते हैं, जबकि दूसरे लोग बिना किसी झिझक के उठकर चले जाते हैं। दूसरी ओर, सामान्य मानवता के जमीर और विवेक वाले लोग भले ही सही शब्दों की—खासकर सत्य के अनुरूप शब्दों की—लालसा न रखते हों या उन्हें स्वीकार न करते हों—ज्यादा से ज्यादा उन्हें अपने दिलों में स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन फिर भी वे अपनी इज्जत बचाने के लिए शांत बैठे रह सकते हैं। लेकिन जो शैतान हैं वे शांत नहीं बैठ सकते। वे सत्य सुनते ही अपने दिलों में विकर्षण और व्याकुलता महसूस करते हैं और जब वे इतने व्याकुल हो जाते हैं तब वहाँ रुक नहीं सकते, बाहर निकल जाते हैं। अगर वे ऐसा नहीं कर सकते तो ऑनलाइन जाकर वीडियो देखते हैं, अपने मन को भटकने देते हैं और कुछ ध्यान भटकाने वाले क्रियाकलापों में लगने देते हैं, विषय बदलकर बेकार की बातें करने में लग जाते हैं या दूसरों को नीचा दिखाते हुए और भाषण झाड़ते हुए अपने “गौरवशाली” इतिहास का गुणगान करने लगते हैं और उसकी गवाही देने लगते हैं। संक्षेप में, अगर तुम सत्य पर संगति करते हो तो वे विकर्षण महसूस करते हैं; सत्य के प्रति उनका रवैया चरम शत्रुता का होता है। अगर तुम सत्य पर संगति नहीं करते, बल्कि सिर्फ कुछ प्रशासनिक या सामान्य कार्यों के बारे में संगति करते हो, सुसमाचार का प्रचार करने के कुछ किस्से साझा करते हो या बाहरी मामलों के बारे में बातचीत करते हो, तो वे शांत बैठकर बाकी सभी के साथ बातचीत करने में समर्थ होते हैं और काफी सामंजस्यपूर्ण दिखते हैं। लेकिन जैसे ही सत्य पर संगति की जाती है, खासकर जब परमेश्वर के वचन पढ़े जाते हैं तब उनका सार और असली चेहरा सामने आ जाता है। वे उत्तेजित हो जाते हैं और अगर थोड़ा भी और सुन लिया तो उन्हें लगता है जैसे उनका सिर फट जाएगा। जितना ज्यादा तुम परमेश्वर के वचन पढ़ते हो, उतना ही ज्यादा उन्हें लगता है कि उनका न्याय किया जा रहा है और उतना ही ज्यादा उन्हें लगता है कि उनकी निंदा की जाएगी और उन्हें हटा दिया जाएगा, और उनकी जान जोखिम में है। जितने ज्यादा तुम परमेश्वर के वचन पढ़ते हो, उतना ही ज्यादा विकर्षण और जुगुप्सा वे अपने दिलों में महसूस करते हैं, मानो उन्हें कोई बीमारी लग गई हो। मुझे बताओ, क्या यह समस्या बहुत गंभीर नहीं है? क्या ऐसे लोगों को अब भी बचाया जा सकता है? खासकर जब बात सत्य का अभ्यास करने और एक ईमानदार इंसान बनने की आती है, तब जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, चूँकि वे ईमानदार बनना चाहते हैं इसलिए, वे सच बोलने, खुलकर अपनी बात कहने और अपनी असलियत उजागर करने के लिए खुद को प्रशिक्षित करते हैं। जब दानव यह सुनते हैं तो उनके दिलों में विकर्षण पैदा होता है, वे तुम्हारा तिरस्कार करते हैं और तुमसे घृणा करते हैं। उन्हें लगता है कि तुम सत्य का अभ्यास करने के कारण नीच हो, जबकि वे सत्य का अभ्यास न करने के कारण सम्माननीय—और तुमसे ज्यादा नेक और महान—हैं। यह कैसा दृष्टिकोण है? क्या यह काले को सफेद में बदलना नहीं है? सत्य के प्रति शत्रुता रखने वाले लोग ऐसे ही होते हैं। अगर तुम सत्य पर या अभ्यास के किसी सिद्धांत पर संगति करते हो, तो वे न सिर्फ अपने दिल में तुम्हारा तिरस्कार करते हैं, बल्कि तुमसे विकर्षण भी महसूस करते हैं; वे तुमसे आँखें भी नहीं मिलाते। अगर तुम उनसे कलीसिया के कार्य के बारे में चर्चा करना चाहो, तो वे हमेशा तुमसे बचते हैं; वे तुमसे बात नहीं करना चाहते और उन्हें लगता है कि तुम दोनों में कोई चीज समान नहीं है। तुम उनसे किसी भी विषय पर बात कर सकते हो, सिवाय उन विषयों के जो सत्य या मनुष्य को बचाने के परमेश्वर के कार्य से संबंधित हों; वे इन विषयों पर चर्चा नहीं करना चाहते। उदाहरण के लिए, अगर तुम उनसे कहते हो, “आओ, इस बारे में संगति करें कि अपना कर्तव्य वफादारीपूर्वक कैसे निभाएँ, और इस चरण में अपना कर्तव्य निभाने में अभी भी क्या समस्याएँ हैं और उनका समाधान कैसे करें,” तो यह सुनकर उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनका सिर फट जाएगा, वे अपने दिलों में चरम विकर्षण महसूस करते हैं, और उनकी आँखों में आग भी भड़क सकती है क्योंकि वे तुम्हारे प्रति विरोधी हो जाते हैं। वे शैतान के प्रति वफादार रहने के लिए कोई भी कष्ट सहने को तैयार रहते हैं, लेकिन परमेश्वर और सत्य से उन्हें विशेष रूप से घृणा होती है, वे सत्य जरा भी नहीं स्वीकारते। चाहे जो भी उनके साथ सत्य पर संगति करे, वे उसे ग्रहण नहीं कर सकते। अगर तुम उन्हें ज्ञान या प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों का अध्ययन करने के लिए कहो, तो वे बहुत इच्छुक होते हैं और खुद को बहुत अभिजात समझते हैं। लेकिन जब वे धर्मोपदेश या दूसरों को सत्य पर संगति करते हुए सुनते हैं तो ऐसा लगता है मानो उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा हो या उन पर अदालत में मुकदमा चलाया जा रहा हो। वे जिस चीज के सबसे ज्यादा अनिच्छुक होते हैं, वह है परमेश्वर के वचन पढ़ना और सत्य पर संगति करना। इसलिए अपने दैनिक जीवन में वे कुछ सामान्य मामलों का कार्य और ऐसी चीजें तो करते हैं जिनसे उनका रुतबा, प्रतिष्ठा और आशीष पाने की संभावनाएँ बढ़ती हैं, लेकिन ऐसे लोग कभी परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ते या आध्यात्मिक भक्ति में संलग्न नहीं होते। वे सभाओं के दौरान सत्य पर संगति भी नहीं करते और कभी अपना व्यक्तिगत अनुभवजन्य ज्ञान साझा नहीं करते; सभाओं में उनकी उपस्थिति एक औपचारिकता भर होती है। अगर तुम उनसे परमेश्वर के वचनों के अपने ज्ञान पर या सत्य पर संगति करने के लिए कहो, तो वे एक शब्द भी नहीं बोल सकते और यह सोचकर अपने दिलों में विकर्षण महसूस करते हैं, “परमेश्वर के वचनों और सत्य पर संगति करना गृहिणियों और समाज के निचले तबके के लोगों का काम है। मेरे जैसा महान व्यक्ति ऐसा कैसे कर सकता है? मैं ऐसा व्यक्ति हूँ जो बड़ी चीजें और बड़ा कार्य करता है, ऐसा व्यक्ति जिसे बड़े आशीष प्राप्त होंगे। जब मैं राज्य में प्रवेश करूँगा, तो मैं परमेश्वर के राज्य में एक स्तंभ और आधार बनूँगा। मैं ऐसा व्यक्ति हूँ जो बड़ी जिम्मेदारियाँ उठाता है। तुम लोग खुद को क्या समझते हो? तुम लोगों के साथ एक ही कलीसिया में सभाओं में भाग लेना भी मुझे नीचा दिखाता है!” देखो, वे कितने घमंडी हैं! सत्य के प्रति उनकी शत्रुता सत्य से जुड़े तमाम लोगों और चीजों के प्रति, और साथ ही सत्य से जुड़े अभ्यासों और कथनों के प्रति भी, शत्रुता है; यहाँ तक कि वे सकारात्मक चीजों के प्रति भी शत्रुता रखते हैं। उदाहरण के लिए, अगर तुम कहते हो कि कलीसिया में भाई-बहनों को संतों जैसी मर्यादा रखनी चाहिए, स्त्री-पुरुषों के बीच मेलजोल—चाहे काम पर हो या रोजमर्रा की जिंदगी में—कुछ सीमाओं के भीतर होना चाहिए, हर किसी को गरिमापूर्ण और सभ्य होना चाहिए, असावधानीवश छेड़खानी में संलग्न नहीं होना चाहिए, और स्त्री-पुरुष के बीच के रिश्तों का सम्मान करना चाहिए और विवाह का सम्मान करना चाहिए, इस संबंध में परमेश्वर के वचनों के अनुसार आचरण करना चाहिए, और परमेश्वर का घर यौन मुक्ति की वकालत नहीं करता, तो यह सुनकर वे क्या सोचेंगे? “यह एक पुरानी कहावत है, एक घिसा-पिटा मुहावरा। अभी हम किस जमाने में जी रहे हैं, अभी भी स्त्री-पुरुष के बीच संतों जैसी मर्यादा और सीमाओं की बात कर रहे हैं! अतीत में सम्राटों के महलों में पूरे हरम हुआ करते थे—कितना शानदार था वह! अगर मेरे पास क्षमता और साधन होते, तो भले ही मेरे पास हरम न होता, यौन संबंध बनाने के लिए कम से कम मेरे पास कुछ लोग तो होते!” वे कभी कोई सकारात्मक चीज, कोई सही कथन, खासकर सत्य के वचन नहीं स्वीकारते, यहाँ तक कि उनसे काफी विकर्षित भी होते हैं और नफरत भी करते हैं। इसलिए, सत्य के प्रति अपनी शत्रुता की बुनियाद पर ये लोग लगातार सत्य और सकारात्मक चीजों पर हमला करते हैं। चाहे सत्य के किसी भी पहलू या परमेश्वर की किसी भी विशिष्ट अपेक्षा पर संगति की जाए, उनके पास हमेशा उसकी आलोचना और न्याय करने के लिए पाखंडों और भ्रांतियों का एक समुच्चय होता है। क्या यह आलोचना और न्याय एक हमला नहीं है? (हाँ, है।) चाहे कितने भी लोग सत्य और सकारात्मक चीजें स्वीकार लें, वे कभी नहीं स्वीकारेंगे। वे मानते हैं कि परमेश्वर का घर जिनकी वकालत करता है और सत्य लोगों से जिनका अभ्यास करने की अपेक्षा करता है, वे सब नारे और औपचारिकताएँ हैं, और जो वास्तव में मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं, वे सांसारिक प्रवृत्तियाँ हैं; सांसारिक प्रवृत्तियाँ अब जिसकी भी वकालत करती हैं, वही सर्वोच्च सत्य है। क्या यह बुराई की पूजा करना नहीं है? इसलिए, चाहे तुम सत्य के किसी भी पहलू पर संगति करो, वे व्यक्तिपरक रूप से उसके प्रति शत्रुतापूर्ण होते हैं, और इसके अलावा, वे उसकी आलोचना करेंगे, उस पर आक्रमण करेंगे और उसकी निंदा करेंगे। उदाहरण के लिए, परमेश्वर लोगों से ईमानदार होने की अपेक्षा करता है। वे ईमानदार व्यक्ति होने को कैसे परिभाषित करते हैं? “ईमानदार होना मूर्खों का काम है; सिर्फ मूर्ख ही ईमानदार व्यक्ति होने का अभ्यास करते हैं। सिर्फ मूर्ख ही दूसरों को बताते हैं कि वे अपने दिलों में क्या सोचते हैं, उनके निजी मामले क्या हैं। सिर्फ मूर्ख ही सच बोलते हैं। सिर्फ मूर्ख ही अपना भाग्य नियंत्रित करने के लिए दूसरों को सौंपते हैं। मैं मूर्ख नहीं हूँ; मेरा भाग्य मेरे हाथों में है और दूसरों को उसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है! मैं अपने दिल में जो सोचता हूँ, उसे कहना चाहूँ या नहीं, दूसरों को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। अगर कोई चीज ऐसी नहीं है जो मैं लोगों को बताना चाहता हूँ, तो यह जानने का सपना भी मत देखना कि वह क्या है!” क्या यह सत्य से विमुख होना और सत्य से घृणा करना नहीं है? (हाँ, है।) जो लोग दानव हैं, वे सत्य नहीं स्वीकारते और उसका अभ्यास नहीं करते। सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण होने और उस पर आक्रमण करने के अलावा वे एक कदम और आगे बढ़कर सत्य को बदलने के लिए शैतान के विभिन्न शैतानी विषों, दृष्टिकोणों और अभ्यासों का इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए, वे आशीष पाने और परमेश्वर से सौदेबाजी करने की शर्तों के रूप में दूसरों को गुमराह करने के लिए षड्यंत्रों, झूठों, विभिन्न साधनों या कष्ट सहने और कीमत चुकाने के दिखावे का इस्तेमाल करते हैं। वे सोचते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करने में किसी को ईमानदार व्यक्ति होने की जरूरत नहीं है, अपने कर्तव्य के प्रति वफादार होने की जरूरत नहीं है और सत्य स्वीकारने और उसका अभ्यास करने की जरूरत नहीं है; जब तक व्यक्ति ज्यादा कष्ट सहता है, ज्यादा कीमत चुकाता है, ज्यादा कार्य करता है, ज्यादा अच्छी चीजें करता है और ज्यादा पुण्य संचित करता है, ज्यादा ऐसी चीजें करता है जिन्हें लोगों का अनुमोदन और उच्च सम्मान प्राप्त होता है और इन उपायों के जरिये भाई-बहनों का भरोसा और साथ ही उनका उन्नयन और समर्थन प्राप्त करता है, तब तक वह इन सबके बदले में स्वर्ग के राज्य के आशीष प्राप्त करने का लक्ष्य हासिल कर सकता है। क्या यह दृष्टिकोण अत्यंत हास्यास्पद नहीं है? (हाँ, है।)
चाहे सत्य की आलोचना और निंदा करना हो, सत्य के प्रति शत्रुता रखना और उस पर आक्रमण करना हो या हमेशा सत्य को बदलने के लिए शैतान के पाखंडों और भ्रांतियों का इस्तेमाल करने की चाहत रखना हो, ये सब इस बात की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं कि दानव सत्य के साथ कैसे पेश आते हैं। वे चाहे जो भी अभिव्यक्तियाँ हों, वे सब दानवों के बुरे सार को पूरी तरह से उजागर करती हैं। सत्य के प्रति शत्रुता रखना, सत्य पर आक्रमण करना और सत्य को बदलने का प्रयास करना—ये ऐसे क्रियाकलाप हैं जिन्हें सिर्फ दानव ही कर सकते हैं। सिर्फ दानव ही सत्य और परमेश्वर के साथ इतनी घृणा, आलोचना और निंदा का व्यवहार करते हैं और लोगों को गुमराह करने के लिए, धोखा देने के लिए और उन्हें सत्य और परमेश्वर से दूर करने हेतु फुसलाने के लिए किसी भी हद तक गिरने में सक्षम हैं। सिर्फ दानव ही लोगों के दिलों में परमेश्वर का स्थान बदलने के प्रयास में धोखे से लोगों का भरोसा, समर्थन और प्रशंसा जीतने, लोगों के दिल खरीदकर उन्हें नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल करने का हर संभव तरीका सोचेंगे। संक्षेप में, यह तथ्य कि दानव सत्य के प्रति और सत्य का अनुसरण करने वालों के प्रति ऐसा रवैया अपनाते हैं, यह उजागर करता है कि उनका सार बुरा है। सभी सृजित मनुष्य सकारात्मक चीजों और सत्य की लालसा रखते हैं और उनसे प्रेम करते हैं, और ये लोगों द्वारा सँजोए जाने योग्य भी हैं। निस्संदेह, ये वे चीजें भी हैं जिनकी सृजित मनुष्यों को सबसे ज्यादा जरूरत है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सत्य मानवजाति के लिए शैतान के प्रभाव से मुक्त होने के लिए, सही मार्ग पर चलने के लिए और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में समर्थ होने के लिए आवश्यक चीज है। सामान्य लोगों द्वारा उद्धार प्राप्त करने के लिए सत्य का अनुसरण करना, सत्य स्वीकारना और सत्य का अभ्यास करना एक आवश्यक प्रक्रिया है; इसका कोई दूसरा रास्ता नहीं है। अपने भ्रष्ट स्वभाव होने के कारण अगर उनके लिए सत्य स्वीकारना और उसका अभ्यास करना कठिन हो, तो भी अपने अंतरतम अस्तित्व और अपनी व्यक्तिपरक इच्छा के परिप्रेक्ष्य से वे सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं होते; उनका व्यक्तिपरक रवैया सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं होता, न ही उनका रवैया जानबूझकर सत्य पर हमला करने का या सत्य बदलने के लिए किसी भी पाखंड और भ्रांति का इस्तेमाल करने के लिए हर साधन आजमाने का होता है। सिर्फ शैतान ही ऐसा कर सकता है; सत्य के प्रति उसकी शत्रुता का सार बड़े लाल अजगर के सार के समान ही होता है। जो भी सकारात्मक चीज है, जिसमें भी सत्य शामिल है, शैतान उसे नकारता है, उसकी निंदा करता है और उसे अस्वीकार करता है। अगर ये सत्य उसके लिए खतरा न हों, तो भी वह इनसे शत्रुता रखता है और घृणा करता है; यह उसकी प्रकृति द्वारा आदेशित है। चूँकि दानवों में बुरी प्रकृति होती है, इसलिए उनकी नजर में सत्य उनका शत्रु होता है। “शत्रु” शब्द का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि शत्रु कभी सुसंगत नहीं हो सकते, कभी मित्र नहीं हो सकते, कभी हमखयाल साथी नहीं हो सकते। यह बड़े लाल अजगर की तरह होता है। वह परमेश्वर में विश्वास करने वालों के साथ विशेष घृणा और शत्रुता का व्यवहार करता है। जब तक तुम परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ देते हो और परमेश्वर का अपमान करते हो, तब तक तुम समाज में कोई भी बुराई कर सकते हो—तुम चाहे चोरी करो, डकैती करो या व्यभिचार में लिप्त रहो, उसे कोई परवाह नहीं; तुम उसके साथ साँठगाँठ करके कोई भी बुरा काम कर सकते हो। लेकिन अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो और सही मार्ग पर चलते हो, तो वह तुम्हें इसकी अनुमति नहीं देगा; वह तुम्हें गिरफ्तार करेगा, तुम्हें सताएगा, यहाँ तक कि तुम्हें मौत के घाट भी उतार देगा। वह तुम्हें जीवित ही नहीं रहने देगा। जब तक तुम जीवित हो, तब तक तुम उसके लिए जी का जंजाल हो; हर दिन जब तुम जीवित रहते हो, वह अंदर से व्यथित और बेचैन महसूस करता है। सिर्फ जब वह तुम्हें नष्ट कर देता है, जब तुम जीवित नहीं रहते, तभी वह विजयी, सहज और शांत महसूस करता है। जो लोग दानव हैं, उनका सत्य के प्रति रवैया प्रकृति में बड़े लाल अजगर की सत्य के प्रति घृणा के समान ही होता है। अगर तुम सत्य का अनुसरण करते हो, सत्य का अभ्यास करते हो, सब कुछ सिद्धांतों के अनुसार करते हो, एक रवैया रखते हो और सिद्धांत कायम रखते हो, तो वे तुम्हें नापसंद करेंगे और तुमसे घृणा करेंगे। अगर वे अगुआ बन गए और सत्ता पा गए, तो वे तुम्हें सताने के लिए अपनी स्थिति का फायदा उठाने का हर संभव उपाय सोचेंगे, यहाँ तक कि तुम्हें दूर करने के लिए किसी अपराध में भी फँसा देंगे। जब सत्य का अनुसरण करने वाले उनके द्वारा अलग-थलग कर दिए जाते हैं और कलीसिया में बचे हुए तमाम लोग भ्रमित होते हैं जो सत्य जरा भी नहीं समझते, तो वे सुरक्षित महसूस करते हैं, वे महसूस करते हैं कि उन्हें कोई खतरा नहीं है और उनके दिन आसानी से कटेंगे। इसलिए, जो लोग दानव हैं वे न सिर्फ सत्य के प्रति शत्रुता रखते हैं, बल्कि उन लोगों के प्रति भी शत्रुता रखते हैं जो सत्य से प्रेम करते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं। क्या ये नहीं दर्शाता कि उनकी प्रकृति बुरी है? (हाँ।) दानवों द्वारा निंदित, अलग-थलग और प्रताड़ित किए जाने के बाद कुछ लोग कहते हैं, “मैंने उन्हें नाराज नहीं किया, फिर भी वे मुझे नापसंद क्यों करते हैं?” क्या यह भ्रमित बात नहीं है? क्या यह चीजों की असलियत जानने में विफल होना और लोगों का भेद पहचानने में असमर्थ होना नहीं है? क्या बड़ा लाल अजगर ईसाइयों को इसलिए गिरफ्तार करता है और सताता है क्योंकि ईसाई कानून तोड़ते हैं और अपराध करते हैं? या इसलिए क्योंकि ईसाई उसे उखाड़ फेंकने और उसकी राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिए राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं? (दोनों में से कोई भी नहीं।) तो फिर वह ऐसा क्यों करता है? हम राजनीति में भाग नहीं लेते, न ही उसका विरोध या पर्दाफाश करते हैं, उसकी सत्ता हथियाने के लिए राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना तो दूर की बात है। तो फिर वह हममें से उन लोगों को, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, इस तरह क्यों दबाता है और गिरफ्तार करता है? सिर्फ इसलिए कि तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, सत्य स्वीकारते हो, परमेश्वर को महान मानते हो और उसकी आराधना करते हो, वह तुमसे घृणा करता है। वह मानता है कि तुमने उसके साथ विश्वासघात किया है; तुम उसका अनुसरण, उसकी आराधना और उसके प्रति समर्पण नहीं करते, इसलिए वह तुमसे घृणा करता है। इसलिए वह तुम्हें दबाना और हटाना चाहता है, ताकि तुम्हें गायब करने का उद्देश्य हासिल कर ले। चूँकि वह एक दुष्ट दानव है और उसकी प्रकृति सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण है, इसलिए अगर तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो तो वह तुम्हारे प्रति शत्रुता रखेगा, तुमसे घृणा करेगा और तुम्हें सताने, हटाने और परमेश्वर के पास से छीनने का हर संभव उपाय करेगा। यही उसका उद्देश्य है। अगर तुम परमेश्वर का अनुसरण करना छोड़ दो, तो वह तुम्हारे प्रति इतनी शत्रुता नहीं रखेगा। बेशक, वह अभी भी तुम्हें बर्बाद करने, भ्रष्ट करने, तुम्हारे साथ खिलवाड़ करने और तुम्हें नियंत्रित करने का प्रयास करेगा। अगर तुम उसकी आराधना और अनुसरण कर सको, तो वह प्रसन्न होगा और तुम्हें यातना नहीं देगा, लेकिन अंत में तुम सिर्फ उसके साथ दफनाए ही जाओगे। शैतान की आराधना करने वाले किसी भी व्यक्ति का अंत कभी अच्छा नहीं होता!
परमेश्वर का विरोध करने की शैतान की प्रकृति कभी नहीं बदलेगी। शैतान के वे लोग, जो मसीह-विरोधी हैं, सत्य और परमेश्वर के प्रति इतने शत्रुतापूर्ण क्यों हैं? मुझे बताओ, उनका प्रकृति सार कितना बुरा है! वे निरपवाद रूप से सत्य, परमेश्वर का कार्य, कोई भी सकारात्मक चीज या सही कथन और अभ्यास नहीं स्वीकारते। वे न सिर्फ अपने दिलों में विकर्षण महसूस करते हैं और उन्हें स्वीकारने से इनकार करते हैं, बल्कि वे परमेश्वर का प्रतिरोध करने के लिए सक्रिय रूप से बुरे कर्म भी करते हैं और सत्य और सकारात्मक चीजों की निंदा करने के लिए तरह-तरह की निराधार अफवाहें और भ्रांतियाँ फैलाते हैं। ऐसे बुरे लोग परमेश्वर में विश्वास करके आशीष भी प्राप्त करना चाहते हैं; वे छल-कपट से परमेश्वर के घर में पैठ बना लेते हैं, लेकिन चूँकि वे सत्य जरा भी नहीं स्वीकारते, इसलिए उन्हें बेनकाब कर दिया जाता है और हटा दिया जाता है। उदाहरण के लिए, काट-छाँट स्वीकारना एक सकारात्मक चीज है। जब सामान्य लोग गलत काम करते हैं और उनकी काट-छाँट की जाती है, तो वे आत्म-चिंतन करेंगे। अगर उनका गलत काम गलत इरादों या भ्रष्ट स्वभाव के कारण था, तो वे उसका समाधान करने के लिए सत्य खोजेंगे। अगर उनका गलत काम उनकी खराब काबिलियत और चीजें स्पष्ट रूप से न देखने के कारण हुआ है, तो वे अग्रसक्रिय रूप से उसका समाधान करने के लिए कोई मार्ग भी खोजेंगे और अच्छी काबिलियत वाले ऐसे लोगों को ढूँढ़ेंगे जो सत्य समझते हों, ताकि वे उनकी मदद और मार्गदर्शन कर सकें। संक्षेप में, अपने जमीर और विवेक के मार्गदर्शन और विनियमन के तहत वे काँट-छाँट किए जाने को सही तरीके से लेंगे। लेकिन जो दानव होते हैं, वे काँट-छाँट किए जाने को कैसे लेते हैं? दानव खुद सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण होते हैं, लेकिन अपनी बुरी प्रकृति के कारण वे सिर्फ शत्रुता पर ही नहीं रुकेंगे; वे सत्य की निंदा, प्रतिरोध और ईश-निंदा भी करेंगे। इसलिए जब उनकी काँट-छाँट की जाती है, तब वे जोर-शोर से बहस करने और अपना बचाव करने की कोशिश करते हैं। वे न सिर्फ सत्य को नकारते हैं, बल्कि उन लोगों पर हमला और उनकी निंदा भी करते हैं जो उनकी काट-छाँट करते हैं, यहाँ तक कि ऐसे शब्द भी फैलाते हैं : “परमेश्वर में विश्वास करना बहुत कठिन है! हममें से खराब काबिलियत वालों को जो सत्य नहीं समझते, अंततः बाहर निकाल दिया जाएगा। परमेश्वर के घर पर पलना आसान नहीं है! खराब काबिलियत वाले लोगों के पास आगे का कोई रास्ता नहीं है; हम दूसरों द्वारा प्रताड़ित होने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। दूसरे हमारे साथ चाहे कैसे भी दुर्व्यवहार करें, हमें बस सहना होगा। हम अपनी खराब काबिलियत के अलावा किसे दोष दे सकते हैं? अगर तुम्हारी काबिलियत खराब है, तो तुम दूसरों से कमतर हो!” न सिर्फ वे काट-छाँट नहीं स्वीकारते या आत्म-चिंतन नहीं करते और खुद को नहीं जानते, बल्कि वे इस समस्या के समाधान के लिए अभ्यास के सिद्धांत या अभ्यास का मार्ग भी नहीं खोजते। अगर उनकी काबिलियत वाकई खराब है, तो वे अपनी अंतर्निहित स्थितियों की बुनियाद पर अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने और अपनी वफादारी अर्पित करने के लिए अपना सर्वोत्तम कैसे दे सकते हैं? क्या वे इस तरह सोचेंगे? वे सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण होते हैं, इसलिए वे इस तरह बिल्कुल नहीं सोचेंगे। इतना ही नहीं, वे चीजों को अगले स्तर तक ले जाएँगे और आलोचना और बदनामी में लग जाएँगे, यहाँ तक कि अपने दिल में गुप्त रूप से उन लोगों को कोसेंगे, जो उनकी काट-छाँट करते हैं : “हम्म! तुमने आज मुझे असहज कर दिया है। एक दिन मैं तुम लोगों को दिखाऊँगा कि हकीकत क्या है! तुम्हें लगता है कि मेरी काबिलियत खराब है? मैं कई सालों से परमेश्वर में विश्वास करता आया हूँ, जबकि तुम लोगों ने बस कुछ ही साल विश्वास किया है! तुम मुझे नापसंद करते हो? एक दिन मैं तुम्हें इसके नतीजे भुगतवाऊँगा, तुम्हें एक भयानक मौत मरवाऊँगा!” देखो, जब उनकी काट-छाँट की जाती है, तब हालाँकि वे कुछ कहते नहीं, यहाँ तक कि मुस्कुराते भी हैं, लेकिन उनके दिल आक्रोश, घृणा और शापों से भरे रहते हैं। कुछ लोग काट-छाँट स्वीकारने में अपनी अनिच्छा दिखाते हैं, समय-समय पर शिकायत, हमले या आलोचना के शब्द बोलते हैं। वे न सिर्फ काट-छाँट के प्रति शत्रुतापूर्ण होते हैं, बल्कि वे उन लोगों पर हमला करने की पहल भी करते हैं जो उनकी काट-छाँट करते हैं, जो भी ऐसा करता है उसे बख्शने से इनकार कर देते हैं। कुछ महिलाएँ थोड़ी पिद्दी-सी हो सकती हैं और बाहर से काफी नाजुक दिख सकती हैं, लेकिन जब कोई सचमुच उनकी काट-छाँट करता है, तब वे आगबबूला हो जाती हैं : “मैंने इन तमाम सालों में परमेश्वर में विश्वास करते हुए बहुत कष्ट सहे हैं—क्या यह आसान रहा है? तुम मुझे नापसंद करते हो—पर जब तुम पैदा भी नहीं हुए थे, तबसे मैं सुसमाचार का प्रचार कर रही हूँ! क्या तुम मुझे सिर्फ इसलिए धौंस देने की कोशिश कर रहे हो क्योंकि मैं बूढ़ी हूँ? मैं तुम्हें बता दूँ, ऐसा नहीं होने वाला! जाकर लोगों से पूछ लो—मैं अपने पूरे जीवन में किसके आगे झुकी हूँ?” क्या ऐसे स्वभाव वाले लोग सत्य स्वीकार सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं। वे न सिर्फ काट-छाँट स्वीकार नहीं करते, बल्कि जो उनकी काट-छाँट करते हैं उन्हें कोसते भी हैं। क्या वे बहुत दुर्भावनापूर्ण नहीं हैं? जो लोग शैतान और दानव होते हैं, वे कुटिल, धूर्त, विश्वासघाती और चालाक होते हैं। चूँकि सत्य के प्रति उनका रवैया शत्रुता और आक्रमण का होता है, इसलिए जब उनके बुरे कर्म उजागर किए जाते हैं और उन्हें बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया जाता है, और उनके आशीष पाने की कोई उम्मीद नहीं बचती, तो वे शिष्ट या विनम्र बिल्कुल भी नहीं रहेंगे, बल्कि प्रतिरोध करने के साधन अपनाएँगे। कुछ लोग झूठ गढ़ते हैं, कहते हैं कि अगुआ और कार्यकर्ता उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं, दूसरों को अपने बचाव में आने के लिए उकसाते हैं, जानबूझकर कलीसिया के कार्य में बाधा डालते हैं। कुछ दूसरे लोग यह कहते हुए समर्पण का ढोंग करते हैं, “परमेश्वर का घर मेरे साथ चाहे जैसा भी व्यवहार करे, अगर मुझे बी ग्रुप में भेज दिया जाए या निकाल दिया जाए, तो भी मैं अपना कर्तव्य निभाऊँगा। मैं परमेश्वर के प्रति वफादार हूँ और कभी इस मार्ग से इनकार नहीं करूँगा या अपने कर्तव्य का त्याग नहीं करूँगा।” वे लोगों को ठगने के लिए दिखावा करते हैं जिससे यह लगे मानो उन्होंने पश्चात्ताप कर लिया है, मानो परमेश्वर का घर उनके साथ कैसा भी व्यवहार करे, वे स्वीकार और समर्पण कर सकते हैं और अपना कर्तव्य नहीं छोड़ेंगे। दरअसल, वे तुम्हें धोखा दे रहे हैं और तुम्हारे साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। वे मन ही मन सोचते हैं : “हम्म! सेवा प्रदान करने के लिए मेरा इस्तेमाल करना चाहते हो? ठेंगा! जब मैं तुम्हारे सामने अपना संकल्प व्यक्त करता हूँ और कहता हूँ कि मैं अपना कर्तव्य निभाने को तैयार हूँ, तब वह सिर्फ एक औपचारिकता होती है, मैं तुम लोगों को बेवकूफ बना रहा होता हूँ!” बाहरी तौर पर, वे विशेष रूप से विनम्र और आज्ञाकारी दिखाई देते हैं, जिससे लोगों को लगता है कि वे कर्तव्य निभाने को तैयार हैं। लेकिन जब तुम वास्तव में उनके लिए कर्तव्य निभाने की व्यवस्था करते हो, तो वे लापरवाह होते हैं, छल-कपट करते हैं और तुम्हें धोखा देते हैं, यहाँ तक कि तुम्हारे सामने से गायब भी हो जाते हैं। उन्हें कोई कार्य सौंपे हुए दस दिन से ज्यादा हो सकते हैं और कोई प्रगति नहीं होगी। कुछ लोग अज्ञानी होते हैं और भेद नहीं पहचानते, और उन्हें यह चीज हैरतअंगेज लगेगी, वे सोचेंगे : “जब उसने यह करने के लिए हामी भरी थी, तो वह काफी गंभीर था, कह रहा था कि वह अपना कर्तव्य निभाने को तैयार है। ऐसा नहीं लगता था कि वह झूठ बोल रहा है। अब वह कहीं नजर क्यों नहीं आ रहा?” मैं तुम लोगों को सच बता दूँ : वे बस बड़े ठग हैं, वे दानव हैं। जो दानव हैं वे कर्तव्य निभाने को क्या समझते हैं? वे इसे परमेश्वर के घर द्वारा सेवा प्रदान करने के लिए अपना इस्तेमाल करना, अपने साथ खिलवाड़ करना समझते हैं। जो दानव हैं उनकी कर्तव्य निभाने के प्रति यही मानसिकता रहती है। तुममें ऐसा क्या है जो इस्तेमाल किए जाने लायक हो? ज्यादा से ज्यादा, तुम किसी खास पेशे के बारे में थोड़ी समझ रखते हो। अगर परमेश्वर के घर को इस क्षेत्र के कार्य में कोई जरूरत है, तो इसका मतलब ज्यादा से ज्यादा यह है कि तुम उस कर्तव्य को निभाने के लिए उपयुक्त हो। कर्तव्य निभाने के मामले का तुम्हें मापने और तुमसे अपेक्षाएँ करने के लिए इस्तेमाल करना तुम्हारा उत्कर्ष है। अगर तुम मना करते हो और स्वीकार नहीं करते, तो तुम दया की कद्र करने में विफल हो रहे हो। जो लोग दानव हैं वे तर्क से पूरी तरह अछूते होते हैं, यह बस यही दर्शाता है। वे कर्तव्य निभाने की माँग करते हैं और जब कलीसिया उनके लिए कार्य की व्यवस्था करती है, तब वे मान लेते हैं कि परमेश्वर का घर उनका इस्तेमाल करना चाहता है। अगर तुममें कलीसिया में इस्तेमाल किए जाने के लिए सचमुच कोई मूल्य है, तो यह तुम्हारे लिए सौभाग्य की बात है या दुर्भाग्य की? (सौभाग्य की।) यह तुम्हारे लिए आफत है या आशीष? (आशीष।) तुम क्यों कहते हो कि यह आशीष है? (परमेश्वर की सेवा कर पाना परमेश्वर का उत्कर्ष है, इसलिए यह एक आशीष है।) तुम्हें यह समझना चाहिए : परमेश्वर की सेवा करना परमेश्वर का उत्कर्ष है। उत्कर्ष का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि तुममें जो यह थोड़ी-सी व्यावसायिक सामर्थ्य है इसका इस्तेमाल परमेश्वर के घर के कार्य में किया जा सकता है, जो कि परमेश्वर द्वारा तुम्हें दिया गया एक मौका है, परमेश्वर ने तुम्हें अपनी सेवा करने का मौका दिया है, उद्धार प्राप्त करने का मौका दिया है, और यह तुम्हारे लिए आशीष पाने की एक मूलभूत शर्त है। जब तुममें यह मूलभूत स्थिति होती है, केवल तभी तुम्हें सत्य स्वीकारने और कदम-दर-कदम सत्य का अभ्यास करने और उद्धार पाने का मौका मिल सकता है। अगर तुममें कतई कोई मुक्तिदायक गुण नहीं है, तो परमेश्वर के घर में तुम निकम्मे हो। क्या परमेश्वर का घर तब भी तुम्हारा मुफ्त में भरण-पोषण करेगा? अगर परमेश्वर के घर में तुम्हारे निभाने के लिए कोई कर्तव्य नहीं है, तो परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध बनाए रखने के लिए तुम्हारे पास एक उपयुक्त और उचित साधन और मूलभूत स्थिति का अभाव है। अगर परमेश्वर के घर में तुम्हारा किसी विशिष्ट कार्य में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, तो इसका अर्थ है कि तुमने परमेश्वर के साथ कोई संबंध स्थापित नहीं किया है और इस तरह तुम्हारे पास परमेश्वर के सामने आने का कोई मौका नहीं है, मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले कार्य का कोई चरण या अवधि स्वीकारने का कोई मौका नहीं है। तो क्या तुम्हारे पास अभी भी उद्धार प्राप्त करने का मौका और स्थितियाँ हैं? इसलिए, अगर यह कहा जाए कि तुम्हारा इस्तेमाल किए जाने योग्य मूल्य है, तो यह गैर-विश्वासी दुनिया में असहज लग सकता है और शायद “इस्तेमाल” वहाँ एक नकारात्मक शब्द है—लेकिन परमेश्वर के घर में तुम्हें यह देखना होगा कि तुम्हारा इस्तेमाल कौन कर रहा है। इस “इस्तेमाल” की व्याख्या कैसे की जानी चाहिए? अगर परमेश्वर तुम्हारा इस्तेमाल करता है, तो इससे साबित होता है कि तुम्हारा अभी भी कुछ मूल्य है और तुम अभी भी परमेश्वर के लिए सेवा प्रदान कर सकते हो। जब तुम परमेश्वर के लिए सेवा प्रदान करते हो, तब क्या यह परमेश्वर द्वारा तुम्हारा उत्कर्ष करना नहीं है? (हाँ, है।) यह परमेश्वर द्वारा तुम्हें एक मौका देना है, परमेश्वर द्वारा तुम्हारा उत्कर्ष करना है। यह एक अच्छी चीज है; इससे साबित होता है कि परमेश्वर तुम्हारे प्रति कुछ सम्मान रखता है और वह अभी भी तुम्हें एक मौका देने का इच्छुक है। तो क्या परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किया जाना शर्मनाक है? क्या यह नुकसान है? क्या इस्तेमाल किए जाने से तुम्हें कोई नुकसान होता है? क्या इससे तुम्हारी ईमानदारी या गरिमा नष्ट होती है? नहीं, तुम्हें इससे कहीं ज्यादा मिलता है। इससे तुम्हें परमेश्वर के सामने आकर सत्य और परमेश्वर का उद्धार स्वीकारने का मौका मिलता है। तुम्हें बिल्कुल भी नुकसान नहीं होता; तुम्हें बहुत बड़ा लाभ होता है। लेकिन जिन्होंने दानवों से पुनर्जन्म लिया है, वे इसे इस तरह नहीं देखते। उनमें बुरी प्रकृति होती है। शैतान चाहे उन्हें कैसे भी इस्तेमाल करे और भ्रष्ट करे, उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती; वे इससे पूरी तरह संतुष्ट रहते हैं। अगर सरकारी अधिकारी उनका इस्तेमाल करते हैं, तो वे इसे सौभाग्य, समृद्धि का संकेत मानते हैं। वे इसका भेद नहीं पहचानते, इसका विरोध नहीं करते, इसका प्रतिरोध नहीं करते या इसे अस्वीकार नहीं करते। लेकिन कलीसिया में, अगर उन्हें कोई कर्तव्य निभाने के लिए पदोन्नत किया जाता है, तो उन्हें लगता है कि यह सेवा प्रदान करना है, वे खुद को बेच रहे हैं और कलीसिया उनका इस्तेमाल कर रही है। उदाहरण के लिए, एक खास महिला किसी खास पेशेवर कौशल के बारे में थोड़ी-बहुत समझ रखती है, इसलिए कलीसिया उसके लिए उस क्षेत्र में काम करने की व्यवस्था करती है। वह न सिर्फ इसे परमेश्वर से स्वीकार नहीं कर सकती, बल्कि अपने दिल में विशेष रूप से घृणा भी महसूस करती है : “मेरा इस्तेमाल करने की कोशिश? दोबारा सोचो! मैं उतनी मूर्ख नहीं हूँ! मैं इतने लंबे समय से जीवित हूँ और किसी ने कभी मेरा इस्तेमाल नहीं किया। ऐसा कोई माई का लाल अभी तक पैदा ही नहीं हुआ जो मेरा इस्तेमाल कर सके!” तुम्हें इतना उत्तेजित होने की जरूरत नहीं है। अगर तुम अपना कर्तव्य निभाने के इच्छुक हो, तो उसे परमेश्वर से स्वीकार करो और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाओ। अगर तुम अपना कर्तव्य निभाने के इच्छुक नहीं हो, तो परमेश्वर के घर से चले जाओ। परमेश्वर के घर का द्वार खुला है; तुम किसी भी समय जा सकते हो और जहाँ चाहो वहाँ जा सकते हो। परमेश्वर लोगों को मुफ्त में सत्य प्रदान करता है। परमेश्वर का लोगों को सत्य प्रदान करना और उसके द्वारा लोगों को जीवन की आपूर्ति, सब निःशुल्क है। क्या उसने तुमसे एक पैसा भी माँगा है? (नहीं।) तुम थोड़ा-सा कर्तव्य निभाते हो और फिर भी इसे परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किया जाना समझते हो। क्या यह जमीर की कमी नहीं है, दया की कद्र नहीं करना नहीं है? क्या हुआ अगर परमेश्वर तुम्हारा इस्तेमाल करता है? क्या यह गलत है? तुम्हारा जीवन ही परमेश्वर का दिया हुआ है। क्या परमेश्वर तुम्हारा इस्तेमाल करने के योग्य नहीं है? क्या वह पात्र नहीं है? क्या तुम सिर्फ इसलिए अहंकारी और अवज्ञाकारी हो सकते हो कि तुम किसी पेशे के बारे में थोड़ा जानते हो? क्या परमेश्वर को तुम्हारा ताबेदार होना होगा, सम्मानपूर्वक तुमसे विनती करनी होगी, तुम्हें चीजें देने का वादा करना होगा, तुम्हें ऊँचा रखना होगा और सिंहासन पर बिठाना होगा—क्या इससे तुम खुश होगे? सामान्य मानवता से रहित लोग कर्तव्य निभाने का मामला ठीक से नहीं समझ सकते। वे हमेशा कहते हैं, “परमेश्वर का घर मेरा इस्तेमाल कर रहा है। मैं इतना मूर्ख नहीं हूँ; सिर्फ मूर्ख ही परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए तैयार होते हैं!” देखो, यह विचार विकृत भी है और बुरा भी, और पूरी तरह से अनुचित है! ऐसे लोगों के साथ कैसे व्यवहार किया जाना चाहिए? यह आसान है : चाहे उन्हें बाहर निकालना हो या बी ग्रुप में रखना हो, बस उन्हें दूर कर दो। अगर तुम इस्तेमाल किए जाने से इतना डरते हो, तो तुम अब भी परमेश्वर के घर से क्यों चिपके हो और क्यों कहते हो कि तुम कोई कर्तव्य निभाना चाहते हो? क्या यह पाखंड और लोगों को धोखा देना नहीं है? अगर तुम इस्तेमाल किए जाने से डरते हो, तो परमेश्वर का घर कभी भी कोई कर्तव्य निभाने के लिए तुम्हारा इस्तेमाल नहीं करेगा; परमेश्वर का घर लोगों पर चीजें थोपता नहीं है। अब समय आ गया है कि हर किसी को उसके प्रकार के अनुसार छाँटा जाए। जो कोई अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार है, वह रहेगा; जो कोई अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं है, उसे तुरंत कलीसिया से चले जाना चाहिए और कभी वापस नहीं आना चाहिए। परमेश्वर का घर किसी को मजबूर नहीं करता। जो लोग स्वेच्छा से अपना कर्तव्य निभाते हैं, सिर्फ वे ही परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं। जो लोग अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं हैं, वे सब शैतान के नौकर हैं जो यहाँ कलीसिया के कार्य में बाधा डालने के लिए हैं। कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाकर आशीष प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन साथ ही इस्तेमाल किए जाने से डरते भी हैं। क्या इन लोगों में जमीर और विवेक है? (नहीं।) ये हमेशा नुकसान उठाने से डरते हैं, हमेशा महसूस करते हैं कि परमेश्वर का घर उनका फायदा उठा रहा है, उन्हें बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है। क्या यह, यह पहचानने में विफलता नहीं है कि उनके लिए क्या अच्छा है? तुम्हें क्या नुकसान हुआ है? अगर तुम अपने तकनीकी कौशलों का विनिमय सत्य और उद्धार से करने की कोशिश करते हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम वह विनिमय नहीं कर सकते; तुम योग्य नहीं हो, तुम पात्र नहीं हो। परमेश्वर के वचन जीवन हैं; वे मानवजाति के लिए भ्रष्ट स्वभाव त्यागने और शैतान के प्रभाव से मुक्त होने के सबसे शक्तिशाली हथियार हैं। सिर्फ परमेश्वर के वचन, सिर्फ सत्य ही उस पुरानी मानवजाति का उन्मूलन कर सकते हैं जिसमें शैतान का प्रकृति सार है। सिर्फ परमेश्वर का जीवन, सिर्फ सत्य ही इस मानवजाति को जीवित रहने और शैतान की नियति समाप्त करने दे सकता है। परमेश्वर का जीवन और सत्य अमूल्य निधियाँ हैं; दुनिया की किसी भी भौतिक चीज का और किसी भी ऐसी चीज का जिसे लोग बहुमूल्य समझते हैं, उनके साथ विनिमय नहीं किया जा सकता। अगर लोग अपने जीवन अर्पित कर दें, तो भी उनसे उनका विनिमय नहीं किया जा सकता, उनके तुच्छ तकनीकी कौशलों की तो बात ही छोड़ो। सत्य बिक्री के लिए नहीं है; परमेश्वर का घर सत्य नहीं बेचता, जीवन नहीं बेचता। तो लोग जीवन पाने के लिए भला क्या कर सकते हैं? सिर्फ सत्य स्वीकार कर, सत्य के प्रति समर्पण करके, परमेश्वर के प्रति अपनी वफादारी और ईमानदारी अर्पित करके और एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाकर ही वे जीवन प्राप्त कर सकते हैं।
शैतान के बुरे सार वाले लोगों में विशेष रूप से दुर्भावनापूर्ण स्वभाव होते हैं। वे न सिर्फ सत्य के प्रति शत्रुता दिखाते हैं और सत्य पर हमला करते हैं, बल्कि सत्य को प्रतिस्थापित करने के लिए अपने ही पाखंडों और भ्रांतियों का इस्तेमाल भी करना चाहते हैं। उनकी मुख्य अभिव्यक्ति यह होती है कि जो कोई भी उनकी काट-छाँट करता है या उन्हें उजागर करता है, वे उससे घृणा करते हैं और उस पर हमला करते हैं, और उसके लिए चीजें मुश्किल बना देते हैं। यह स्वभाव सार बहुत बुरा होता है, किसी खूँखार जानवर के स्वभाव सार से भी ज्यादा क्रूर होता है। हालाँकि बाघों और शेरों में खूँखार स्वभाव होते हैं, लेकिन जब वे भूखे नहीं होते या जब तुम उनके लिए कोई खतरा नहीं बनते, तब वे तुम्हें नजरअंदाज कर देते हैं और तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते। लेकिन दानव अलग होते हैं। अगर तुम उन्हें नजरअंदाज कर दो तो भी, जब तक तुम उनके रुतबे के लिए खतरा हो तब तक वे तुम्हें नहीं छोड़ेंगे; वे तुम पर हमला करने की पहल करेंगे—अगर तुम उन्हें उजागर कर दो और उनकी काट-छाँट कर दो तो वे यह और कितना ज्यादा करेंगे। वे न सिर्फ कभी काट-छाँट स्वीकार नहीं करते, बल्कि वे कोई सही कथन या सुझाव सुनने से भी इनकार कर देते हैं। इसके बजाय, वे हार को जीत में बदलने, हर संघर्ष और मुकाबले में बढ़त हासिल करने, निष्क्रियता को पहल में बदलने के लिए दूसरे पक्ष से बदला लेने के तरह-तरह के तरीके सोचते हैं। मान लो तुम कलीसिया में किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो जो नियमों का पालन नहीं करता, किसी बंधन से बँधा नहीं है, किसी के द्वारा की गई आलोचना या अवहेलना बर्दाश्त नहीं कर सकता, जब कोई सत्य पर संगति करता है तो उसे स्वीकार नहीं करता, काट-छाँट किए जाने पर प्रतिरोध और बहस करता है, और जो कोई उसे उजागर करता है उससे नफरत करता है और उस पर हमला करता है—तो यह एक दानव है। कुछ लोग अपने काम में कुछ गलतियाँ कर देते हैं, और इससे पहले कि दूसरे लोग किसी चीज के लिए उनकी आलोचना करें या उन्हें उजागर करें, वे पहले ही हमला कर देते हैं, खुद को सही ठहराने और अपना बचाव करने के लिए हर तरह के तर्क ढूँढ़ने लगते हैं, कहते हैं कि उनके खराब काम के पीछे कारण और स्पष्टीकरण हैं और किसी ने उसे बिगाड़ा है, जिम्मेदारी दूसरों पर डालने और अपना नाम हटाने की हर संभव कोशिश करते हैं। जब कोई अपने भ्रष्ट स्वभाव पर संगति करता है और उसका गहन-विश्लेषण करता है, तब वे यह मानते हुए विशेष रूप से संवेदनशील हो जाते हैं कि यह असल में उनके बारे में है, और वे अपने अहंकार की रक्षा करने और अपनी गलतियाँ छिपाने का हर संभव प्रयास करते हैं, यहाँ तक कि सत्य पर संगति करने वालों की आलोचना और निंदा भी करते हैं। ऐसे लोग कभी अपनी गलतियाँ नहीं स्वीकारेंगे या आत्म-चिंतन नहीं करेंगे, पश्चात्ताप करना तो दूर की बात है। इसके बजाय, वे खुद को छिपाने का, दूसरों की नजरों में परिपूर्ण और दोषरहित व्यक्ति बनने का हर उपाय सोचते हैं, ऐसा व्यक्ति जिसे दूसरे लोग कभी गलती न करने वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं। चाहे वे कोई वाक्यांश गलत बोलें, कोई गलत शब्द इस्तेमाल करें, या उनके काम में कुछ विचलन या खामियाँ हों, या वे कुछ भ्रष्ट स्वभाव और इरादे उजागर करें जो दूसरों को पता चल जाते हैं, उन्हें लगता है कि यह एक अपशकुन है, मानो कुछ भयानक होने वाला हो, उनका जीवन दाँव पर लगा हो या दुनिया खत्म हो रही हो। फिर वे खुद को सही ठहराने और अपना बचाव करने के विभिन्न तरीके सोचते हैं; यह उनकी सहज प्रतिक्रिया है। अपने आसपास के लोगों को धोखा देने के लिए वे कुछ दिखावे भी करते हैं, ऐसी चीजें कहते हैं जो लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप होती हैं, ऐसे शब्द कहते हैं जो लोगों का दिल जीत लेते हैं। वे खास तौर पर इस बात से डरते हैं कि लोग उनके असली रूप, उनकी कमजोरियाँ और खामियाँ न जान जाएँ, और खास तौर पर अपनी असली स्थिति उजागर होने से डरते हैं। वे कभी स्वीकार नहीं करते कि उनकी काबिलियत खराब है या उनकी मानवता में कोई समस्या है, और बेशक, वे स्वयं द्वारा की गई गलतियाँ या स्वयं द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभाव तो बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। वे खुद को पूरी तरह से छिपाकर रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि अनजाने में कुछ बाहर न आ जाए। उनका लक्ष्य अपने रुतबे और प्रतिष्ठा की रक्षा करना, लोगों के दिलों में हमेशा एक शानदार, निष्कलंक छवि बनाए रखना है, ताकि लोग यह सोचें कि उनकी मानवता में कोई दोष नहीं है, वे सत्य से प्रेम करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, सत्य का अभ्यास कर सकते हैं, कष्ट सह सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं, और उनमें कोई भ्रष्ट स्वभाव नहीं हैं। ऐसे लोग इंसान नहीं, दानव होते हैं। दानव सत्य स्वीकार ही नहीं करते, यहाँ तक कि खुद को सत्य के साक्षात स्वरूप, एक पूर्ण छवि के प्रतीक के रूप में छिपाने का हर संभव तरीका सोचते हैं। यह विकृत भी है और बुरा भी, है ना? चाहे वे कितने भी वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करते हों, वे हमेशा खुद को दोषरहित, परिपूर्ण व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं। अगर उनमें नकारात्मकता, कमजोरी या धारणाएँ हों तो भी वे कभी उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं करते, बस उन्हें छिपाए रखते हैं। एक बार जब कोई उन्हें उजागर कर देता है, तो फिर वे उस व्यक्ति से घृणा करते हैं और उसे सताने के तरह-तरह के तरीके सोचते हैं, साथ ही अपनी छवि सुधारने के लिए विभिन्न तरीके और साधन इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग हमेशा कुछ भ्रामक दानवी बातें बोलते हुए और जानबूझकर काले को सफेद करते हुए और सही-गलत को गड्ड-मड्ड करते हुए अपना बचाव करते हैं, ताकि भेद पहचानने में असमर्थ कुछ लोगों को गुमराह कर अपने बारे में उनकी धारणा बदली जा सके और लोगों से अपने चरित्र-चित्रण का पुनर्मूल्यांकन करवाया जा सके। ऐसे लोग असली दानव होते हैं, जिनमें लेशमात्र भी मानवता नहीं होती। दानव चाहे जितना भी अच्छा निर्वहन कर लें, विभिन्न मामलों पर उनके जो भी दृष्टिकोण हों, संक्षेप में, चूँकि उनमें बुरी प्रकृति होती है, इसलिए वे सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण रहेंगे। अर्थात्, अपने दिलों की गहराइयों से वे कभी सत्य या सकारात्मक चीजें स्वीकार नहीं करते। वे परमेश्वर के वचन नहीं सुनते या स्वीकार नहीं करते; उनका प्रकृति सार परमेश्वर से घृणा करना होता है। परमेश्वर जो कुछ भी कहता है, उससे वे विकर्षण महसूस करते हैं। शायद तुम उनका विकर्षण महसूस न कर सको; बाहरी तौर पर, वे भी सभाओं में जाते हैं और परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं और हर सत्य के प्रति शत्रुता का रवैया नहीं दिखाते। लेकिन जब कुछ ऐसा होता है जो उनकी धारणाओं के अनुरूप नहीं होता या उनके हितों से जुड़ा नहीं होता, तब वे परमेश्वर की, परमेश्वर के घर की और सत्य की आलोचना करेंगे, सत्य का अनुसरण करने वालों की आलोचना करेंगे और उन पर हमला करेंगे, और किसी भी सकारात्मक चीज की आलोचना करेंगे—वे अपनी बुरी प्रकृति उजागर करेंगे। इस समय तुम पाओगे कि सत्य स्वीकारने के लिए तैयार होने का उनका दावा सिर्फ दिखावा है; अपने दिलों की गहराई में वे सत्य से घृणा करते हैं और उसे ठुकराते हैं और उसे जरा भी नहीं स्वीकारते। लेकिन चूँकि वे खुद को छिपाने में माहिर हैं, इसलिए वे बिल्कुल फरीसियों की तरह कुछ लोगों को धोखा दे देते हैं।
जो लोग दानवों से पुनर्जन्म लेते हैं, वे सत्य के प्रति शत्रुता, आलोचना और हमलों के सिवा कुछ नहीं रखते; ऐसी मानसिकता के साथ उनके लिए सत्य स्वीकारना असंभव है। जब परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं की बात आती है, तो वे उन्हें बस सरसरी तौर पर पढ़कर सुना देते हैं ताकि दूसरे उन्हें सुन लें और फिर उन्हें लागू हुआ मान लेते हैं। जब वास्तविक कार्य करने का समय आता है, तब वे कार्य व्यवस्थाओं में अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार बिल्कुल अभ्यास नहीं करते, बल्कि अपनी इच्छा, अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार कार्य करते हैं। यहाँ तक कि वे सिर्फ उन्हीं कार्य व्यवस्थाओं को लागू करेंगे जो उनके रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए लाभदायक हों; अगर कार्य व्यवस्थाएँ उनकी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए लाभदायक नहीं होतीं, तो वे उन्हें लागू नहीं करेंगे, भले ही उनमें ऐसा करने की काबिलियत हो। ऐसा क्यों है? क्योंकि एक बार कार्य व्यवस्थाएँ लागू हो जाने पर लोग जान जाएँगे कि यह परमेश्वर के घर ने किया है और वे सिर्फ परमेश्वर को धन्यवाद देंगे, उन्हें नहीं; लोगों को लगेगा कि परमेश्वर मनुष्य से प्रेम करता है और उन्हें यह नहीं लगेगा कि उनमें कोई गुण है, जिसका अर्थ है कि उन्हें प्रतिष्ठा, रुतबा या कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। यह एक कारण है। दूसरा कारण यह है कि चूँकि दानवों की प्रकृति सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण होती है, इसलिए वे कुछ भी सत्य सिद्धांतों के अनुसार नहीं करेंगे, बल्कि अपनी महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं और प्रवृत्तियों के अनुसार क्रियाकलाप करेंगे। शैतान की प्रवृत्तियाँ क्या हैं? बुराई करना और परमेश्वर का प्रतिरोध करना, परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ करना, और लोगों को परमेश्वर से दूर करवाना, उनसे परमेश्वर के साथ विश्वासघात करवाना और उसके बजाय अपनी आराधना करवाना। कलीसिया में आने का शैतान का उद्देश्य कलीसिया के कार्य में बाधा डालना और उसे नष्ट करना है। वह कलीसिया के कार्य में अराजकता और बाधा लाने वाला हर काम करेगा। अगर इससे उसके रुतबे या प्रतिष्ठा को कोई लाभ न हो तो भी, अगर यह कलीसिया के कार्य में गड़बड़, बाधा और क्षति ला सकता है तो वह अपना लक्ष्य प्राप्त कर चुका होता है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर का घर समस्त इलाकों की कलीसियाओं से अपेक्षा करता है कि वे हर महीने सुसमाचार प्रचार के जरिये प्राप्त लोगों की संख्या की सटीकता और सच्चाई के साथ रिपोर्ट करें। क्या वे इसे बिना किसी छल-कपट के कर सकते हैं? नहीं, वे धोखा देने और झूठी संख्याएँ बताने का हर तरीका सोचेंगे, इस महीने सौ अतिरिक्त लोगों की रिपोर्ट करेंगे, अगले महीने दो सौ अतिरिक्त लोगों की, और अगर किसी को पता नहीं चला, तो वे कई सौ और लोगों की रिपोर्ट करेंगे। वे कभी कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार अभ्यास नहीं करते और चाहे उन्हें किसी भी समस्या का सामना करना पड़े, वे सत्य-सिद्धांत नहीं खोजते; वे जिस तरह आचरण या क्रियाकलाप करते हैं, उसमें कोई नैतिक सीमाएँ नहीं होतीं। वे दानव हैं। चाहे सत्य पर कैसे भी संगति की जाए, वे उसे स्वीकार नहीं करेंगे। उनका जमीर भावना से रहित होता है; वे बेजमीर प्राणी हैं। परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाएँ परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें वितरित करने के सिद्धांत निर्धारित करती हैं—किसे उन्हें लेना चाहिए और किसे नहीं। क्या वे इन सिद्धांतों के अनुसार क्रियाकलाप कर सकते हैं? (नहीं।) कार्य व्यवस्थाएँ निर्धारित करती हैं कि एक कलीसिया स्थापित करने के लिए कितने लोगों की आवश्यकता है, कितनी कलीसियाएँ एक जिले का गठन करती हैं, कितने जिले एक क्षेत्र का गठन कर सकते हैं और सभी स्तरों पर अगुआ स्थापित करने के लिए क्या शर्तें और सिद्धांत हैं। क्या वे इन सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास कर सकते हैं? (नहीं।) वे ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो परमेश्वर के घर के कार्य या भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के लिए लाभदायक हो। वे मन ही मन सोचते हैं, “अगर मैं तुम्हारे लिए अच्छी तरह से काम करूँ और सभी भाई-बहन जीवन में आगे बढ़ें और मेरा भेद पहचान जाएँ, तो क्या मैं तब भी अपना स्थान और रुतबा बनाए रख पाऊँगा? निश्चित रूप से मैं तुम्हारे लिए खुद को थकाऊँगा नहीं! मैं बस बेतरतीबी से काम करूँगा। परमेश्वर का घर अपेक्षा करता है कि पचास लोग एक कलीसिया गठित करें, लेकिन मैं अस्सी या नब्बे पर जोर दूँगा। रही बात यह कि कलीसिया के अगुआओं का चुनाव कैसे किया जाता है, तो यह इस पर निर्भर करता है कि मुझे किस अभ्यास से लाभ होता है। अगर कलीसिया का चुना गया अगुआ मेरी पसंद का न हुआ, तो मैं किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करूँगा जो मेरी बात सुने और मेरी आज्ञा माने।” उनके इस तरह काम करने से क्या सामान्य कलीसियाई जीवन साकार हो सकता है? इसमें बहुत समय लगेगा। सामान्य कलीसियाई जीवन के बिना क्या भाई-बहन जीवन प्रवेश में तेजी से आगे बढ़ सकते हैं? क्या नए विश्वासी जल्दी से नींव स्थापित कर सकते हैं? (नहीं।) कहने का तात्पर्य यह है कि ये नकली अगुआ और मसीह-विरोधी, जो कि दानव हैं, ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के लिए लाभदायक हो। तुम उन्हें पूरी ऊर्जा के साथ व्यस्त देखते हो, लेकिन वे कर क्या रहे हैं? वे सिर्फ अपनी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए काम कर रहे हैं। वे जो चाहें करते हैं, जब तक कि इससे उन्हें लाभ होता है, और खुद को ऐसा करने की पूरी स्वतंत्रता देते हैं। उनकी जो भी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ होती हैं, सत्ता हासिल करने पर वे उन्हें पूरी तरह से साकार करेंगे; वे यह मौका बिल्कुल नहीं चूकेंगे। जहाँ तक कलीसियाई जीवन की, भाई-बहनों के जीवन प्रवेश की, कलीसिया की व्यवस्था की और परमेश्वर के घर के सुसमाचार कार्य और दूसरे क्षेत्रों में कार्य के आगे बढ़ने या सुचारु रूप से आगे बढ़ने की बात है—इनमें से कोई भी उनकी चिंता का विषय नहीं होता। उदाहरण के लिए, अगर उन्हें बताया जाए कि कलीसिया को किताबें कैसे और किसे वितरित करनी चाहिए, तो वे सोचते हैं, “इतना सख्त होने की जरूरत नहीं है। मैं उन्हें कैसे भी वितरित कर दूँगा और बस हो जाएगा।” जब उनसे यह पूछा जाता है कि क्या कलीसिया में किताबें रखने की जगह सुरक्षित है, तो वे कहते हैं, “किसे पड़ी है कि वह सुरक्षित है या नहीं? कुछ भी हो, हमारे पास किताबें रखने की जगह है, इसलिए यह ठीक है।” देखो, उनके पास उच्चाधिकारियों की नीतियों के प्रतिकार के उपाय हैं। वे परमेश्वर के घर की कोई भी कार्य व्यवस्था या अभ्यास के विशिष्ट सिद्धांत लागू नहीं करते; इसके बजाय वे अपने विचारों और तरीकों के अनुसार क्रियाकलाप करते हैं। क्या यह सत्य को अपने अभ्यासों से प्रतिस्थापित करने की कोशिश करना नहीं है? अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसे दानवों के हाथों में पड़ गए, तो वे कष्ट झेलेंगे—दानव जो चाहें सो करेंगे और हर किसी को उनकी बात सुननी होगी, मानो वे डाकुओं के सरगना हों, स्थानीय तानाशाह, मालिक या सम्राट हों। परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए सामान्य कलीसियाई जीवन जीना असंभव होगा, उनके लिए सच्चे मार्ग पर शीघ्रता से नींव स्थापित करना असंभव होगा और उनके लिए विभिन्न सत्यों में तेजी से प्रगति करना असंभव होगा। दानव एक भी अच्छा काम नहीं करेंगे। कहीं भी कोई कलीसिया बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों से बाधाएँ महसूस करती है और अराजकता की स्थिति उत्पन्न होती है, तो इससे यह साबित होता है कि उस कलीसिया के अगुआ वास्तविक कार्य करने में अक्षम हैं और सिर्फ नाममात्र के अगुआ हैं। जो भाई-बहन विश्वास में नए हैं, वे नींव स्थापित करने से पहले ही मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह कर दिए जाते हैं और कलीसियाई जीवन भी अराजकता में डूब जाता है। यह सब झूठे अगुआओं द्वारा वास्तविक कार्य न करने के कारण होता है। क्या ऐसा हो सकता है कि झूठे अगुआओं के पास वास्तविक कार्य करने का समय न होता हो? (नहीं।) अगर वे यह अनिवार्य कार्य करना चाहते, तो उनके पास पर्याप्त से ज्यादा समय होता, लेकिन वे बस उसे करते नहीं हैं। यह दानवों की बुरी प्रकृति उजागर करता है। वे कलीसिया में अराजकता न होने से ज्यादा किसी चीज से नहीं डरते, वे चाहते हैं कि वह पूरी तरह से अराजक हो जाए, वे कलीसिया के कार्य में अराजकता और ठहराव की स्थिति की लालसा रखते हैं, वे आशा करते हैं कि कलीसिया के तमाम सदस्य बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों की आज्ञा मानेंगे और मसीह-विरोधियों, बुरे लोगों और दानवों द्वारा गुमराह किए जाएँगे और परमेश्वर का अनुसरण नहीं करेंगे। यह ठीक वही होगा जो वे चाहते हैं और वे खुश और संतुष्ट होंगे। जब भाई-बहनों का कलीसियाई जीवन सामान्य होता है, वे सामान्य रूप से परमेश्वर के वचन खा-पी सकते हैं और सत्य पर संगति कर सकते हैं, और कलीसियाई जीवन में भाग लेकर हर बार कुछ न कुछ हासिल कर सकते हैं, तब वे असहज महसूस करते हैं। क्योंकि अगर लोग हमेशा कुछ न कुछ हासिल करते रहते हैं और जीवन में धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहते हैं, तो वे उनका भेद पहचान जाएँगे और उन्हें अस्वीकार कर देंगे, और वे अपना रुतबा खो देंगे, और यह एक ऐसा परिणाम है जो वे नहीं देखना चाहते। उन्हें लगता है कि कलीसिया जितनी ज्यादा अव्यवस्थित होगी, उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने के उतने ही ज्यादा मौके मिलेंगे, अपनी प्रतिभा का उपयोग करने की उतनी ही ज्यादा गुंजाइश रहेगी, और वे उतना ही ज्यादा अपने रंग में रह सकेंगे और अराजकता में जीत खोज सकेंगे। वाकई दानवों की यही साजिश होती है! जहाँ दानव मौजूद होते हैं, वहाँ कोई सत्य सिद्धांत और कोई विशिष्ट कार्य व्यवस्था लागू नहीं की जा सकती। भाई-बहन कार्य व्यवस्थाएँ पढने में समर्थ नहीं होते और उनके पास अपना कर्तव्य निभाने का कोई रास्ता नहीं होता। जब कलीसिया में अराजकता फैलती है, तब ये झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी, जो दानव होते हैं, उसे बिल्कुल नहीं सुलझाते, यहाँ तक कि गुप्त रूप से खुशी भी मनाते हैं। वे गड़बड़ी पैदा करने का हर संभव तरीका सोचते हैं, किसी दूसरे दानव या मसीह-विरोधी को अगुआ नियुक्त करते हैं जिससे कलीसिया और भी ज्यादा अराजक हो जाती है; इससे उन्हें और ज्यादा खुशी मिलती है। क्या यह वैसा ही नहीं है, जैसे बड़ा लाल अजगर चीजें करता है? बड़ा लाल अजगर लोगों को परमेश्वर में विश्वास करने, उसका अनुगमन करने या अपना कर्तव्य निभाने नहीं देता; वह लोगों को सिर्फ पार्टी की बात सुनने और पार्टी का अनुगमन करने देता है। वे खा-पी सकते हैं, मौज-मस्ती कर सकते हैं और कोई भी अपराध कर सकते हैं; वे चाहे जो अपराध करें, वह उन्हें नहीं रोकता। समाज में कई स्थानीय गुंडे, बदमाश और वेश्याएँ हैं; लोग पाप में जीते हैं और पाप के मजे लेते हैं, इसलिए कोई राष्ट्रीय मामलों की परवाह नहीं करता, और कोई यह जाँच नहीं करता कि सीसीपी ने पर्दे के पीछे कितनी बुराई की है। इसे ध्यान भटकाना कहते हैं। चीन पर अपने कई वर्षों के शासन के दौरान बड़े लाल अजगर की सबसे कारगर रणनीति विभिन्न देशों से विभिन्न बुरी प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार और दृष्टिकोण चीन में लाना रहा है। इसके बाद चीनी लोग सेक्स के मामले में पूरी तरह आजाद हो गए हैं, उनका मन खुला होता है और सेक्स पर बात करने का उनका तरीका भी खुला होता है। वे दिन भर इन्हीं चीजों के बारे में सोचते रहते हैं। आम लोगों की जिंदगी क्या हो गई है? वह भोजन और सेक्स, उनकी प्राकृतिक इच्छाओं के इर्द-गिर्द घूमती है। तमाम आम लोग ऐसे ही दुष्चक्र में फँसे हुए हैं, इसलिए वे राजनीति और शासकों के प्रति अपनी सतर्कता कम कर देते हैं, राजनीति और शासकों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं रखते और अब उनकी परवाह भी नहीं करते। अफीम के नशेड़ियों की तरह उनकी इच्छाशक्ति क्षीण हो जाती है। पुरुषों में अब करियर बनाने की महत्वाकांक्षा नहीं रही और महिलाओं में अब अच्छी पत्नी और प्यारी माँ बनने की इच्छा नहीं रही। लोग सही मार्ग पर नहीं चलते या उचित कार्य नहीं करते। कोई भी राजनीति में भाग नहीं लेता और हर कोई पूरी तरह से बड़े लाल अजगर के अधीन है। इस तरह, बड़े लाल अजगर का शासन मजबूत होता जाता है, क्योंकि ऐसे लोगों पर शासन करना आसान होता है। “शासन करना आसान होने” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि बड़ा लाल अजगर आम लोगों पर चाहे जितना भी अत्याचार करे, उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती और उन्हें इसे सहना ही होता है। क्या ठीक यही वह प्रभाव नहीं है जो अब प्राप्त हुआ है? (हाँ।) चीनी फिल्मों या ऑनलाइन वीडियो पर नजर डालो; उनमें से अस्सी से नब्बे प्रतिशत यौन इच्छा या स्त्री-पुरुष संबंधों के बारे में होती हैं। इनका लोगों पर भयंकर प्रभाव पड़ता है; ये बच्चों और नाबालिगों की रक्षा नहीं करते। पश्चिमी देशों के बाशिंदों के इस संबंध में कड़े विनियम हैं; वे बच्चों और नाबालिगों की सुरक्षा करते हैं और उनके लिए निवारक उपाय करते हैं। चीनी युवा आज ऐसे सामाजिक परिवेश में बड़े होते हैं। बहुत कम उम्र में ही उनके मन में रोमांस, प्रेम, सेक्स और विवाह जैसी बातें ठूँस दी जाती हैं। यह भयावह है! अगर मानवजाति ऐसे समाजीय संदर्भ में रहती है और सामाजिक परिवेश के अनुकूलन और शिक्षा के माध्यम से मानवजाति की सामान्य शारीरिक आवश्यकताएँ शैतान द्वारा पतित स्तर तक भ्रष्ट कर दी जाती हैं, तो लोगों के दिल दुष्ट और पतित हो जाएँगे। दुष्टता और पतितता की एक अभिव्यक्ति यह है कि लोगों में इस संबंध में शर्मिंदगी की कोई भावना नहीं होती या इस संबंध में शर्मिंदगी की भावना का उनका मानक नीचा कर दिया जाता है। चूँकि कुछ लोगों में जमीर और विवेक होता है, इसलिए उनके दिलों में एक रेखा होती है जिसे वे पार नहीं करते; यह शर्मिंदगी की वह छोटी-सी भावना है जिसे उनका अल्प जमीर और विवेक प्राप्त कर सकता है। लेकिन परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी ये लोग उस समाजीय संदर्भ में पले-बढ़े होने की छाया और छाप लिए रहते हैं। आज कुछ लोग धीरे-धीरे उनसे छुटकारा पा रहे हैं, जबकि कुछ अभी भी उस छाया में जी रहे हैं और उससे बाहर नहीं निकले हैं। ऐसे सामाजिक परिवेश और पृष्ठभूमि में पले-बढ़े लोगों की सकारात्मक चीजों के लिए, न्याय के लिए आंतरिक इच्छा और सही मार्ग पर चलने का उनका संकल्प, निश्चय या उसकी लालसा कुछ हद तक नष्ट हो चुकी होती है। “नष्ट होने” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि ऐसे सामाजिक परिवेश से अनुकूलित और शिक्षित होने के कारण इन लोगों का सकारात्मक चीजों की लालसा करने और प्रकाश और न्याय का अनुसरण करने का दृढ़ संकल्प, दृढ़ता और इच्छाशक्ति बहुत कमजोर होती है; वे किसी तूफान, किसी बाधा या किसी पराजय का सामना नहीं कर सकते। यह उन लोगों की तरह है जिन्होंने अफीम का सेवन किया है; अगर वे छोड़ भी दें तो भी नशे का नुकसान यहीं नहीं रुकता। जब उन्हें बाधाएँ या असफलताएँ मिलती हैं, जब वे हतोत्साहित या नकारात्मक महसूस करते हैं, तब वे फिर से नशे की लत में पड़ सकते हैं और अपने मन को सुन्न करने और जीवन की विभिन्न कठिनाइयों से बचने के लिए फिर से अफीम का सेवन कर सकते हैं। यानी उनके लिए नशे की लत हमेशा के लिए छोड़ना असंभव है; वे मार्ग में फिर से भटक जाएँगे, अपने पुराने तौर-तरीकों पर लौट जाएँगे और जीवन की विभिन्न समस्याएँ हल करने के लिए वही तरीका इस्तेमाल करेंगे। ऐसे बुरे सामाजिक परिवेश और पृष्ठभूमि में पले-बढ़े इन लोगों ने शैतान से कई पाखंड और भ्रांतियाँ पाई हैं, जिन्होंने उनके दिलों में गहरी जड़ें जमा ली हैं। सत्य का अनुसरण करने की उनकी इच्छा अभी भी बहुत कमजोर है, और वे शैतानी बुरी शक्तियों द्वारा गुमराह किए जाने और बहकाए जाने का या उनके विभिन्न प्रलोभनों का सामना नहीं कर सकते। अर्थात्, हालाँकि ये लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हैं फिर भी जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण, उनकी मूल्य-पद्धति, प्रेम के प्रति उनका दृष्टिकोण और सुख के प्रति उनका दृष्टिकोण, सभी बुरी प्रवृत्तियों से गहराई से प्रभावित और अनुकूलित हैं, यहाँ तक कि वे इन चीजों से बँधे और जकड़े हुए हैं। कुछ लोग अभी भी सुखी विवाह, दो लोगों की दुनिया की चाहत रखते हैं और यौन इच्छा तृप्त करने के लिए दुनिया की बुरी प्रवृत्तियों की ओर लौट जाते हैं। इन लोगों का उन बुरे विचारों और दृष्टिकोणों से फिर से प्रभावित या नियंत्रित होना बहुत आसान है। खासकर जब लोग प्रेम और विवाह से जुड़ी कुछ फिल्में देखते हैं, तब उनके दिल कमजोर हो जाते हैं, वे उन गैर-विश्वासियों से ईर्ष्या करने लगते हैं जो विवाहित हैं, प्रेम करते हैं और जीवन का आनंद ले रहे हैं, और उनमें सत्य का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य निभाने की इच्छा खत्म हो जाती है। यह बहुत भयानक चीज है। इन वास्तविक स्थितियों से यह देखा जा सकता है कि आज तक परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए अनगिनत कष्ट सहने के बावजूद हर व्यक्ति अभी भी सुरक्षित नहीं है। शायद तुम्हें लगता हो कि तुमने सत्य का अनुसरण करने, सत्य स्वीकारने और सत्य का अभ्यास करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, लेकिन तुममें मनुष्य पर शैतान के कहर के प्रभावों का उन्मूलन अभी भी नहीं हुआ है, इसलिए तुम अभी भी बहुत खतरे में हो।
आओ, दानवों की बुरी अभिव्यक्तियों पर संगति जारी रखते हैं। दानवों की बुरी अभिव्यक्तियाँ बहुत ज्यादा हैं; तुम कह सकते हो कि वे सर्वव्यापी हैं—तुम उन्हें लोगों के किसी भी समूह में पाओगे। हम दानवों की विभिन्न बुरी अभिव्यक्तियाँ मुख्यतः सत्य के अनुसार मापते हैं, ताकि उनके बुरे सार का चित्रण किया जा सके। यह सबसे सटीक तरीका है। सत्य के प्रति दानवों के विभिन्न रवैयों—उसके प्रति शत्रुतापूर्ण होना, उस पर हमला करना और उसे प्रतिस्थापित करने का प्रयास करना—के आधार पर, ऐसे व्यक्ति का प्रकृति सार एक बुरा सार, दानव का सार होता है। वह कभी नहीं बदलेगा, क्योंकि वह कभी सत्य नहीं स्वीकारता और सत्य को कभी सकारात्मक चीज नहीं मानता। वह सत्य को सकारात्मक चीज क्यों नहीं मानता? क्योंकि उसमें मानवता नहीं होती और वह दानव होता है; वह सत्य नहीं स्वीकार सकता और उसमें सत्य स्वीकारने का कोई गुण नहीं होता, न ही उसे सत्य स्वीकारने की कोई आवश्यकता होती है। तो फिर, उसे किस चीज की आवश्यकता होती है? वह है बुरी चीजें करना, ऐसी चीजें जो परमेश्वर और सत्य की विरोधी होती हैं और ऐसी चीजें जो सत्य पर आक्रमण करती हैं और उसका स्थान लेती हैं। यही उसका मिशन होता है और यह उसके प्रकृति सार से भी आदेशित होता है। इसलिए, अंत में ऐसे लोगों को सिर्फ कलीसिया से बाहर ही निकाला जा सकता है। परमेश्वर के घर में उनके लिए कोई स्थान नहीं है, न ही उनके निभाने के लिए कोई कर्तव्य है। परमेश्वर के घर को उनकी जरा भी आवश्यकता नहीं है। जो लोग परमेश्वर के घर में ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाते हैं, चाहे वे सत्य से प्रेम करते हों या नहीं, वे कम से कम व्यक्तिपरक रूप से सत्य स्वीकारने के इच्छुक होते हैं, सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण नहीं होते, कभी सत्य से इनकार नहीं करेंगे और कभी परमेश्वर की आलोचना, उस पर हमला या उसकी निंदा नहीं करेंगे। निस्संदेह, वे जानबूझकर कोई ऐसा कथन नहीं कहेंगे या ऐसे व्यवहारों या अभ्यासों में संलग्न नहीं होंगे जो सत्य का स्थान लेते हों। शैतान और दानवों की बुरी अभिव्यक्तियाँ—सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण होना, सत्य पर हमला करना और सत्य को प्रतिस्थापित करना—यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि शैतान में बुरा सार है; वह कलीसिया में नहीं रह सकता। जैसे-जैसे परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य ज्यादा से ज्यादा समझते हैं और जैसे-जैसे ज्यादातर लोग विभिन्न प्रकार के ऐसे लोगों का भेद पहचानते हैं जो सत्य से विमुख और उसके प्रति शत्रुतापूर्ण होते हैं, वैसे-वैसे उन लोगों का प्रकृति सार, जो दानव हैं, ज्यादा से ज्यादा स्पष्ट रूप से उजागर होता जाता है और लोगों द्वारा ज्यादा से ज्यादा स्पष्ट और सटीक रूप से जाना जाता है और उसका भेद पहचाना जाता है। इसलिए, ये लोग दूसरों द्वारा लगातार और अधिक अस्वीकृत होते जाते हैं और दूसरों के साथ सौहार्दपूर्ण ढंग से रहने और सहयोग करने में लगातार और अधिक असमर्थ होते जाते हैं। अंततः, तब उन्हें सिर्फ धीरे-धीरे हटाया ही जा सकता है। क्या तुम लोग ऐसे लोगों को हटाए जाते हुए देखना चाहते हो? (हाँ।) उनका धीरे-धीरे हटाया जाना एक अच्छी बात है। एक तो यह ये साबित करता है कि परमेश्वर के चुने हुए ज्यादातर लोगों का कद बढ़ा है और उन्होंने उनका भेद पहचान लिया है जो दानव हैं, अब वे उन्हें परमेश्वर में विश्वास करने वाले या भाई-बहन नहीं मानते। दूसरे, जो दानव हैं उनके द्वारा की गई चीजें लगातार और अधिक उजागर होती जाती हैं। लोग अपना प्रकृति सार उजागर कर देते हैं और हर कोई देख लेता है कि वे सेवा प्रदान करने योग्य भी नहीं हैं; वे सिर्फ कलीसिया में बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करते हैं और कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं डालते। एक बार जब उन्हें हटा दिया जाता है और बाहर निकाल दिया जाता है, तो फिर कलीसिया का कार्य सामान्य रूप से आगे बढ़ता है। जो लोग दानव होते हैं, उनमें कोई मानवता नहीं होती; वे जानवरों से भी बदतर होते हैं। कुछ जानवर अपने मालिकों की बात सुनना जानते हैं, लगन से काम करते हैं और अपने मालिकों के लिए परेशानी खड़ी नहीं करते। जानवरों के पास कुछ विवेक होता है, लेकिन दानव इसे हासिल नहीं कर सकते। अगर तुम कोई काम करने के लिए उनका इस्तेमाल करते हो, तो फिर भी तुम्हें उनका पर्यवेक्षण करने के लिए कुछ लोगों की व्यवस्था करनी होगी। अगर वे आज्ञाकारी ढंग से सेवा कर सकें, तो यह स्वीकार्य होगा, लेकिन वे ठीक से सेवा प्रदान नहीं करेंगे। अगर तुम उनका पर्यवेक्षण भी करते हो तो भी ऐसे अवसर हमेशा होंगे जब तुम उन पर नजर नहीं रख पाओगे। अगर तुम एक पल के लिए भी उनसे नजरें हटा लो या एक चीज नजरअंदाज कर दो, तो दानव इस खामी का फायदा उठाएँगे और कलीसिया के कार्य में अराजकता और परेशानी पैदा कर देंगे। तुम उन पर नजर रखने के लिए कई लोगों का इस्तेमाल करते हो, और फिर भी अंत में, उनके द्वारा फैलाई गई गंदगी साफ करने के लिए तुम्हें कई लोगों की जरूरत पड़ेगी। तुम्हें लगेगा कि किसी कर्तव्य के लिए उनका इस्तेमाल करने से बहुत बड़ा नुकसान होता है, यह इसके लायक नहीं है, और उनका इस्तेमाल करना बहुत कष्टदायक और क्रोधित करने वाला है। उन्हें काम करते देखना जानवरों को काम करते देखने जैसा है; वे कभी वह नहीं कर सकते जो सामान्य लोग कर सकते हैं। अंततः तुम उनकी असलियत जान जाओगे: ऐसे लोग जानवर हैं, वे दानव हैं; वे कभी नहीं बदलेंगे। जानवर और दानव कभी सत्य नहीं स्वीकारेंगे। अंततः तुम इस मामले को स्पष्ट रूप से समझ जाते हो और अंततः तय करते हो कि फिर कभी दानवों का इस्तेमाल नहीं करोगे और तुम उन्हें दूर कर देते हो। क्या जानवर और दानव मनुष्य बन सकते हैं? यह असंभव है। बड़े लाल अजगर से कसाई का चाकू नीचे रखवाना असंभव है; उसकी प्रकृति दानव की प्रकृति है—वह बिना पलक झपकाए लोगों को मार देता है। दानव और शैतान एक ही गुट के हैं। तुम जिस तरह से बड़े लाल अजगर को देखते हो, उसी तरह से तुम्हें इन जानवरों और दानवों को देखना चाहिए; यह सही है। अगर दानवों को देखने की तुम्हारी नजर शैतान और बड़े लाल अजगर को देखने की नजर से अलग है तो इससे साबित होता है कि तुम्हें अब भी दानवों के सार की पूरी समझ नहीं है; अगर तुम अब भी उन्हें मनुष्य समझते हो, मानते हो कि उनमें मानवता है, उनमें कुछ सराहनीय गुण हैं और उन्हें अभी भी छुटकारा दिलाया जा सकता है और तुम्हें उन्हें अभी भी मौके देने की जरूरत है तो तुम अज्ञानी हो, तुम फिर से उनके झाँसे में आ गए हो और तुम्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। उनके झाँसे में आने से बचने के लिए तुम्हें दानवों को पूरी तरह से बाहर निकाल देना चाहिए। उनके साथ कोई नरमी मत बरतो! ठीक है, दानवों की बुरी अभिव्यक्तियों पर आज की संगति में बस इतना ही। अलविदा!
17 फरवरी 2024