सत्य का अनुसरण कैसे करें (14)

हाल ही में हमने एक विषय पर संगति की जो कि लोगों की उत्पत्ति के आधार पर उनकी विभिन्न श्रेणियों में अंतर निकालना है। यह एक खास विषय है जो लोगों की जन्मजात स्थितियों, मानवता और भ्रष्ट स्वभावों के और व्यापक विषय के तहत उत्पन्न होता है। हमने इस खास विषय से संबंधित कुछ सामग्री पर संगति की—इसमें क्या शामिल था? (परमेश्वर ने लोगों की उत्पत्ति के अनुसार उन्हें तीन प्रकारों में श्रेणीबद्ध किया : जानवरों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग, दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग और मनुष्यों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग। पहली बार में परमेश्वर ने जानवरों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की चार विशेषताओं के बारे में संगति की : पहली विशेषता यह है कि उनमें विकृत समझ होती है; दूसरी विशेषता यह है कि वे विशेष रूप से सुन्न होते हैं; तीसरी विशेषता यह है कि वे विशेष रूप से भ्रमित होते हैं; और चौथी विशेषता यह है कि वे बेवकूफ होते हैं। दूसरी बार में परमेश्वर ने दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की विशेषताओं के बारे में संगति की : पहली विशेषता यह है कि वे आदतन झूठ बोलते हैं; दूसरी विशेषता यह है कि वे पथभ्रष्ट होते हैं; और तीसरी विशेषता यह है कि वे बुरे होते हैं। इस संगति का मुख्य केंद्र उनके आदतन झूठ बोलने और पथभ्रष्ट होने की दो अभिव्यक्तियों पर था।) आदतन झूठ बोलने की मुख्य अभिव्यक्ति छल है। जहाँ तक पथभ्रष्ट होने की अभिव्यक्तियों की बात है, तो हमने उन्हें भी श्रेणीबद्ध किया—वहाँ कितनी अभिव्यक्तियाँ थीं? (वहाँ तीन अभिव्यक्तियाँ थीं। पहली अभिव्यक्ति स्वभाव से संबंधित है; यानी मनहूस और असामान्य होना। दूसरी अभिव्यक्ति शरीर की दुष्ट वासना से संबंधित है। तीसरी अभिव्यक्ति विचित्र होना है; यानी सुनने से संबंधित और दूसरे संवेदी मतिभ्रमों का अक्सर अनुभव करना और हमेशा असामान्य व्यवहार प्रदर्शित करना।) आमतौर पर इसे शामिल किया गया था।

पिछली बार हमने दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों के पथभ्रष्ट पहलू की कुछ अभिव्यक्तियों पर संगति की। मैंने कलीसिया द्वारा तैयार किए गए निष्कासन-संबंधी दस्तावेजों में एक व्यक्ति की अभिव्यक्तियों के बारे में पढ़ा—सभी सुनो और देखो कि क्या उसकी अभिव्यक्तियाँ उस चीज से संबंधित हैं जिस पर हमने संगति की। यह व्यक्ति खेत में सब्जियाँ उगाने के लिए जिम्मेदार था। उसकी मुख्य अभिव्यक्तियों का वर्णन इस प्रकार किया गया था : “उसकी मानवता दुर्भावनापूर्ण है और ऊपरवाले के प्रति उसका रवैया अनादरयुक्त है,” जिसके साथ कई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ सूचीबद्ध की गई थीं। पहली अभिव्यक्ति थी : “उसने ऊपरवाले के लिए सब्जियाँ उगाने के लिए लापरवाही से जगह चुनी। बाद में पता चला कि उस जगह की जमीन नीची थी और उसमें अक्सर जलभराव हो जाता था। वहाँ डाली गई खाद पानी से बह गई थी जिसके कारण उगाई जाने वाली सब्जियों का आकार बहुत छोटा था। वह जानता था कि खाद फिर से डाली जानी चाहिए, लेकिन उसने बस ऐसा किया ही नहीं। उसने देखा कि सब्जियाँ अच्छी तरह से नहीं उग रही हैं, लेकिन उसने कुछ भी नहीं किया—उसने जान-बूझकर ऊपरवाले को खराब तरीके से उगाई गई सब्जियाँ खाने के लिए दीं।” यह पहली अभिव्यक्ति थी। दूसरी अभिव्यक्ति थी : “आमतौर पर वह सिर्फ भाई-बहनों के लिए उगाई गई सब्जियों की देखभाल करता था और फिर चला जाता था। जहाँ तक ऊपरवाले के लिए उगाई गई सब्जियों की बात है, तो उसने उनकी देखभाल नहीं की या उनका प्रबंध नहीं किया—उसने इस मामले में दिलचस्पी नहीं ली या इस बारे में कुछ नहीं किया।” तीसरी अभिव्यक्ति थी : “वह जानता था कि सब्जियों में बहुत सारे कीड़े लग गए हैं जिन्होंने सब्जियों को चबा-चबाकर दागदार पिंड बना दिया है जो देखने में घिनौना लगता है और जिससे सब्जियाँ खाने लायक नहीं रही हैं, लेकिन उसने बस यूँ ही कुछ कीटनाशक छिड़क दिया बिना यह परवाह किए कि वह असरदार है भी या नहीं। जब दूसरों ने उसे सब्जियों से कीड़े चुनकर निकाल देने की बात याद दिलाई, तो वह पूरी तरह से उदासीन था, सोच रहा था, ‘इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है? मुझे बहुत सारे काम करने हैं—मैं हर रोज इन सब्जियों के इर्द-गिर्द चक्कर नहीं लगा सकता!’” तुम देखो, वह अपने दिल में यह सोचता था—यहाँ तक कि जब दूसरे लोग उसे याद दिलाते थे, तो भी वह कोई कार्रवाई नहीं करता था। चौथी अभिव्यक्ति थी : “ऊपरवाले के लिए सब्जियाँ उगाने के बारे में वह अपने दिल में यह सोचता था : ‘मैं जो सब्जियाँ उगाता हूँ, उनकी पैदावार चाहे जैसी भी हो, तुम्हें बस वही खानी होंगी। अगर उनकी पैदावार अच्छी होती है, तो तुम्हें खाने के लिए अच्छी सब्जियाँ मिलेंगी। अगर मैंने अच्छी सब्जी नहीं उगाई, तो उन्हें मत खाना। जो भी हो, मैंने ये तुम्हारे लिए उगाई हैं—तुम्हें मेरा शुक्रगुजार होना पड़ेगा!’” उसके दिल में ये दुर्भावनापूर्ण विचार थे और उसने ये विचार उन लोगों को बताए जिनके साथ वह रहता था। “जब दूसरों ने उसे यह बात याद दिलाई कि ऊपरवाले को सब्जियाँ पहुँचाते समय वह सब्जियों के सड़े पत्तों की टोकरी का उपयोग न करे, तो उसने कहा, ‘मैं इस बारे में कोई आश्वासन नहीं दे सकता।’” तुम देखो, दूसरों ने उसे याद दिलाया और फिर भी उसने नहीं सुना। उसने जो भी चाहा बस वही किया। यह चौथी अभिव्यक्ति थी। पाँचवीं अभिव्यक्ति थी : “वह ऊपरवाले के लिए उगाई गई सब्जियों से अपने दिल में बिना किसी जागरूकता के, बिना रत्ती भर पछतावे के ऐसे पेश आया। जब भी किसी ने उसे याद दिलाया, उसे और ज्यादा सचेत रहने के लिए कहा, तो वह प्रतिरोधी और विमुख हो गया। जो कोई भी उसे सुझाव देता—उस व्यक्ति से उसे नफरत हो जाती।” अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने कुल पाँच अभिव्यक्तियों का सारांश प्रस्तुत किया। उन्होंने इस व्यक्ति की सामान्य अभिव्यक्तियों के साथ-साथ सत्य के प्रति उसके रवैये और कर्तव्य के प्रति उसके रवैये का सारांश भी प्रस्तुत किया और उन्होंने विशिष्ट उदाहरण भी सूचीबद्ध किए। यह सारांश काफी अच्छा था। इसे सुनने के बाद तुम लोगों को कैसा लग रहा है? क्या जिस व्यक्ति में ये अभिव्यक्तियाँ हैं, उसमें अच्छी मानवता है? (नहीं।) यह कितना बुरा था? क्या इस व्यक्ति की अभिव्यक्तियाँ दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की अभिव्यक्तियों से मेल खाती थीं जिनके बारे में हमने संगति की? (हाँ।) वे किस अभिव्यक्ति से मेल खाती थीं? (ऐसे लोगों के बुरे होने की अभिव्यक्ति से।) बुरा होने के अलावा क्या उसके पास पथभ्रष्ट होने की कोई अभिव्यक्ति थी जो दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की विशेषता है? (हाँ।) यह कैसे स्पष्ट था? (आम लोग ऊपरवाले के लिए सब्जियाँ उगाते समय अच्छी जमीन चुनने को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन उसने भाई-बहनों को खुश करने का चुनाव किया—उसने सिर्फ भाई-बहनों के लिए उगाई गई सब्जियों की देखभाल की। ऊपरवाले के लिए उगाई गई सब्जियों के लिए उसने खराब जमीन चुनी, उनकी देखभाल नहीं की या वह कीड़ों से नहीं निपटा और उसने ऊपरवाले को खाने के लिए हमेशा खराब तरीके से उगाई गई सब्जियाँ दीं। ऊपरवाले के प्रति, परमेश्वर के प्रति उसका रवैया दुश्मनी वाला था।) ऊपर वाले के प्रति उसका रवैया दुश्मनी वाला क्यों था? क्या ऊपरवाले ने उसे नाराज किया था? (नहीं। उसका रवैया उसके प्रकृति सार से निर्धारित था—वह परमेश्वर से नफरत करता था और सकारात्मक चीजों से नफरत करता था।) मैंने सही मायने में इस व्यक्ति को कभी नहीं जाना—मेरा कभी भी उसके साथ बिल्कुल कोई व्यवहार नहीं रहा था। फिर वह अपने दिल में इतनी गहरी नफरत कैसे रख पाया था? यह उसकी प्रकृति की समस्या है। एक बात यह है कि यह बुरा था; दूसरी बात यह है कि यह पथभ्रष्ट था, है ना? क्या यह वैसा ही नहीं है जैसा बड़े लाल अजगर का है? (हाँ।) वह जिस तरीके से परमेश्वर और सकारात्मक चीजों से पेश आता था, उसमें उसके दिल में एक तरह की नफरत थी। अगर तुम उससे पूछते कि क्या चल रहा है, तो वह खुद भी इसे स्पष्ट रूप से नहीं बता पाता—उसे बस नफरत महसूस होती थी। उसे विशेष रूप से परमेश्वर और सत्य से नफरत थी, उसे विशेष रूप से सकारात्मक चीजों से नफरत थी। क्या यह पथभ्रष्ट होना नहीं है? (हाँ।) इस तरह का व्यक्ति दानव होता है। अगर तुम उससे पूछते, “वह कौन है जिसमें तुम विश्वास रखते हो?” तो वह निश्चित रूप से कहता कि वह परमेश्वर में विश्वास रखता है। वह परमेश्वर में विश्वास रखता है और फिर भी वह परमेश्वर से नफरत करता है—इससे दानव की मानसिकता प्रकट होती है। यह पथभ्रष्ट होना है। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? पहली बात, मैं इस व्यक्ति को बिल्कुल भी नहीं जानता था और मैंने कभी उसकी काट-छाँट नहीं की थी, लेकिन फिर भी वह मेरे प्रति इतनी गहरी नफरत रखता था—यह पथभ्रष्ट होना है। दूसरी बात, उसके लिए ये सब्जियाँ उगाने की व्यवस्था भाई-बहनों ने की थी। अगर वह इसे करने का इच्छुक नहीं था, तो वह यह मुद्दा उठा सकता था, लेकिन इसके बजाय उसने अपना गुस्सा सबजियों के खेत पर निकाला। सब्जियाँ लगाने के बाद उसने उनकी उचित रूप से देखभाल नहीं की और ऊपरवाले को खाने के लिए खराब तरीके से उगाई गई सब्जियाँ दीं। तीसरी बात, जब भाई-बहनों के लिए सब्जियाँ उगाने की बात आई, तो वह काफी इच्छुक था और उसने उनकी अच्छी देखभाल की, लेकिन जब ऊपरवाले के लिए सब्जियाँ उगाने की बात आई, तो अपने दिल में वह अनिच्छुक था। वह विशेष रूप से नफरत से भरा हुआ था और यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों—किसी ने उसे नाराज नहीं किया था, लेकिन फिर भी वह ऊपरवाले और परमेश्वर से इस तरीके से पेश आया। क्या यह पथभ्रष्ट होना नहीं है? (हाँ।) यह पथभ्रष्ट प्रेरक शक्ति कितनी बड़ी है! एक बात यह है कि यह बुरी है; दूसरी बात यह है कि यह पथभ्रष्ट है—यह दानव की प्रकृति है। चाहे परमेश्वर का घर दानवों से कितने भी सहनशील और धीरज भरे तरीके से प्रेम से पेश आए, चाहे परमेश्वर का घर कैसे भी उन्हें उद्धार पाने के मौके दे, वे ये बातें बिल्कुल भी नहीं समझते हैं। अपने दिलों में वे बस ऐसे ही परमेश्वर और परमेश्वर के घर से नफरत करते हैं। इसका पूरी तरह से कारण यह है कि दानव की प्रकृति बिल्कुल परमेश्वर से नफरत करना और सकारात्मक चीजों से नफरत करना है। कोई भी स्पष्ट रूप से नहीं कह सकता कि इसका क्या कारण है—दानव बस परमेश्वर और सकारात्मक चीजों के प्रति बेबुनियाद नफरत रखते हैं। इसे ही पथभ्रष्ट होना कहते हैं। वह हर रोज क्या सोचता था? “मैं जो सब्जियाँ उगाता हूँ, उनकी पैदावार चाहे जैसी भी हो, तुम्हें बस वही खानी होंगी। अगर उनकी पैदावार अच्छी होती है, तो तुम्हें खाने के लिए अच्छी सब्जियाँ मिलेंगी। अगर मैंने अच्छी सब्जी नहीं उगाई, तो उन्हें मत खाना। जो भी हो, मैंने ये तुम्हारे लिए उगाई हैं—तुम्हें मेरा शुक्रगुजार होना पड़ेगा!” क्या उसके दिल में चीजें पथभ्रष्ट नहीं थीं? वह जो सोच रहा था, वह सबकुछ दुष्ट, मनहूस और असामान्य था। जमीर और विवेक वाले लोगों को लगता है कि उसके विचार समझ से बाहर हैं—वे किसी भी तरह से यह समझ ही नहीं पाते हैं कि वह इस तरीके से क्यों सोचता है। दानव ठीक इसी तरीके से कार्य करते हैं। वह अपने दिल में जो सोचता था और इरादा रखता था, वह सबकुछ अंधकारमय और दुष्ट चीजें थीं। क्या इस तरह का कोई व्यक्ति—जो दानव है—सत्य स्वीकार कर सकता है? (नहीं।) उसमें तो मूलभूत मानवीय नैतिक मूल्य या जमीर और विवेक तक नहीं था। जब परमेश्वर का उल्लेख किया जाता था, तो वह गुस्सा हो जाता था और उसे नफरत महसूस होती थी। जब दूसरों ने उससे कोई और काम करने के लिए कहा, तो वह उतना प्रतिरोधी नहीं था; सिर्फ जब ऊपरवाले के लिए सब्जियाँ उगाने की बात आई, तो वह विशेष रूप से प्रतिरोधी था। यह बुरा होना है, यह पथभ्रष्ट होना है। हो सकता है कि तुम उससे पूछो कि वह इतना प्रतिरोधी क्यों है—यह दिल का मामला है और हो सकता है कि वह स्पष्ट रूप से यह न बता पाए कि आखिर इसकी जड़ कहाँ है। क्या तुम लोग स्पष्ट रूप से देख पा रहे हो कि इस समस्या की जड़ कहाँ है? वह परमेश्वर से ऐसे क्यों पेश आया? ज्यादातर लोगों को यह पूरी तरह से चकरा देने वाली बात लगेगी : “परमेश्वर में विश्वास रखने वाला व्यक्ति परमेश्वर से ऐसे कैसे पेश आ सकता है? क्या वह अविश्वासी नहीं है?” अब सत्य पर संगति के जरिये क्या तुम विभिन्न प्रकारों के लोगों के सार और उत्पत्ति को थोड़ा-सा और स्पष्ट रूप से देख पा रहे हो? (हाँ।) अब तुम्हें थोड़ा-सा और स्पष्ट रूप से देखने में समर्थ होना चाहिए—ये ठीक उसी तरह के लोग हैं जो दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए हैं और उनकी प्रकृति परमेश्वर से नफरत करना है।

मुझे बताओ, क्या दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग बदल सकते हैं? (वे नहीं बदल सकते।) वे बिल्कुल बड़े लाल अजगर की तरह हैं। वे भी सही शब्द कह सकते हैं, जमीर और नैतिकता से मेल खाने वाले शब्द कह सकते हैं—लेकिन वे अपनी कही हुई चीजों को बिल्कुल भी अमल में नहीं ला सकते। वे बहुत-से सुखद शब्द बोल सकते हैं, लेकिन जब उनके लिए वास्तविक चीजें करने का समय आता है, तो वे एक भी चीज नहीं कर सकते। वे उन्हें क्यों नहीं कर सकते? क्योंकि वे भीतर से दानव हैं। अगर उन्होंने सकारात्मक चीजें और ऐसी चीजें कीं जो मानव जमीर के मानक के अनुरूप हैं, तो वे अंदर से बेचैन और दुखी महसूस करेंगे। सिर्फ बुरे कर्म करते समय, दानवों द्वारा की जाने वाली चीजें करते समय और वह सोचते समय जो दानव सोचते हैं, वे अंदर से आराम और आनंदित महसूस करते हैं। यही इस तरह के व्यक्ति का असली चेहरा है। अगर तुम उनसे बेकार में गपशप करो, दैहिक जीवन के मामलों के बारे में बात करो या मौजूदा घटनाओं और राजनीति पर भी चर्चा करो, तो वे शांत बैठ पाते हैं। लेकिन एक बार जब संगति की सामग्री सकारात्मक चीजों, सत्य, परमेश्वर, परमेश्वर की पहचान, परमेश्वर के सार, परमेश्वर के कार्य, मनुष्य के लिए परमेश्वर के इरादों या मनुष्य के लिए परमेश्वर की अपेक्षाओं का जिक्र करती है, तो वे अपने दिलों में विमुख और प्रतिरोधी हो जाते हैं—वे इसे नहीं सुनना चाहते। वे अपने कान और गाल खुजलाने लगते हैं, मानो वे कीलों और सुइयों पर बैठे हों। उनके दिलों में आवेश और बेचैनी की अनुभूतियाँ रेंगने लगती हैं, मानो उनके भीतर खर-पतवारें उग रही हों। उन्हें लगता है कि एक पल भी और रुकना यातना दिए जाने जैसा है और यहाँ तक कि उनमें से कुछ तो फौरन उठ खड़े होंगे और वहाँ से चले जाएँगे। भले ही कुछ लोग दिखावे की खातिर बहुत विनम्रता से वहाँ बैठे भी रहें और वहाँ से न भी चले जाएँ, लेकिन उनका दिमाग पहले से ही दूर भटक रहा होता है—उनके विचार बहुत पहले ही उड़कर बादलों के पार जा चुके होते हैं और तुम जो कह रहे हो वे उसे बस सुन नहीं रहे होते हैं। उनमें ये अभिव्यक्तियाँ क्यों हैं? क्योंकि अपने दिलों में वे परमेश्वर और सकारात्मक चीजों से दूर भागते हैं। उन्हें सत्य में कोई दिलचस्पी नहीं है; वे इसे नहीं अपना सकते और इसे स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं। जैसे ही सभा के दौरान सत्य पर संगति की जाती है, वे वहाँ से चले जाने के लिए तरह-तरह के बहाने सोचने लगते हैं, कहते हैं, “मुझे किसी चीज को सँभालने के लिए जाना पड़ेगा,” या “मुझे किसी को वापस कॉल करनी है।” वे भागने के लिए बस कोई भी बहाना पकड़ लेना चाहते हैं। ऐसे लोग स्पष्ट रूप से पथभ्रष्ट होते हैं। अगर कोई यह बात मान लेता है कि वह परमेश्वर में विश्वास रखने वाला और उसका अनुसरण करने वाला व्यक्ति है, तो उसमें ये अभिव्यक्तियाँ नहीं होनी चाहिए। लेकिन जब सकारात्मक चीजों से जुड़े या परमेश्वर से जुड़े मामलों की बात आती है, तो दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में ये अभिव्यक्तियाँ होती हैं—यह उनके अपने नियंत्रण से परे है और उनके प्रकृति सार का मामला है। यह उनकी उत्पत्ति से तय होता है और कोई भी इस तथ्य को बदल नहीं सकता। जब तुम सत्य पर, सकारात्मक चीजों पर, परमेश्वर के इरादों पर और परमेश्वर के वचनों पर संगति करते हो, तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे तुम उनके बारे में राय बना रहे हो, जैसे यह उनका जीवन खत्म करने वाला है। यह उनके द्वारा परमेश्वर, सत्य और सकारात्मक चीजों से पेश आने के तरीके की वास्तविक आंतरिक स्थिति है। यकीनन यह भी ऐसे लोगों के दुष्ट सार की एक तरह की अभिव्यक्ति है। क्योंकि वे सकारात्मक चीजों, सत्य और परमेश्वर से दूर भागते हैं और उनसे नफरत करते हैं, इसलिए वे हर रोज अपनी अंदरूनी दुनियाओं में जिस बारे में सोचते हैं और चिंतन करते हैं उसका सकारात्मक चीजों, सत्य या परमेश्वर के कार्य से कोई लेना-देना नहीं होता है। अपने दिलों में वे जिस बारे में भी सोचते हैं वह सबकुछ जो पथभ्रष्ट है उससे संबंधित है। वे इस बारे में सोचते हैं कि कैसे अपना दिखावा करना है ताकि लोगों के बीच उनका रुतबा और प्रतिष्ठा बन सके, कैसे कार्य करना है ताकि लोगों को गुमराह किया जा सके, रुतबा हासिल किया जा सके और ज्यादा लोगों को उन्हें स्वीकार करने और उनका सम्मान करने के लिए मनाया जा सके, कैसे कार्य करना है ताकि लोगों के दिल जीते जा सकें और उनकी स्वीकृति हासिल की जा सके और कैसे परमेश्वर के घर या हर स्तर पर अगुआओं से मान्यता और पदोन्नतियाँ अर्जित की जाएँ। वे जिस बारे में भी सोचते हैं और वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें होड़ करना, लड़ना, लूटपाट करना, धोखा देना, दाँव-पेंच करना, साजिशें रचना, उकसाना, बहलाना, नियंत्रित करना और गुमराह करना शामिल है, है ना? (हाँ।) वे इन चीजों को करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं—वे कोई भी कष्ट सहने को तैयार रहते हैं। अपने कष्ट सहने की पूरी प्रक्रिया के दौरान वे इस बारे में योजनाएँ बना रहे होते हैं और दाँव-पेंच कर रहे होते हैं कि क्या बुरा कर्म करना है, किसके खिलाफ हिसाब लगाना है और कौन-से लक्ष्य हासिल करने हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें रणनीति होती है, उसमें बहाने होते हैं। बाहर से वे खुलेआम ऐसी बातें नहीं कहते हैं जो सत्य के खिलाफ जाती हैं और न ही वे खुलेआम ऐसी चीजें करते हैं जो कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करती हैं या उसमें बाधा डालती हैं और इससे भी बढ़कर यह कि वे खुलेआम परमेश्वर की आलोचना नहीं करते हैं, उस पर हमला नहीं करते हैं या उसकी ईश-निंदा नहीं करते हैं। वे ये स्पष्ट बुरे कर्म नहीं करते हैं। लेकिन अपनी अंदरूनी दुनियाओं में वे कभी भी सत्य या सकारात्मक चीजों से संबंधित किसी भी चीज के बारे में नहीं सोचते हैं और यहाँ तक कि कभी भी मानव जमीर और विवेक या नैतिकता से संबंधित किसी भी चीज पर विचार नहीं करते हैं। तो ऐसा क्या है जिस पर वे जरूर विचार करते हैं? उनके मन पूरी तरह से मंसूबे करने, चालें चलने, हिसाब लगाने, मिलीभगत करने और साजिशें रचने में फँसे होते हैं। इसलिए भले ही तुम उन्हें बाहर से खुलेआम परमेश्वर का प्रतिरोध करते हुए न भी देखो या उन्हें परमेश्वर के खिलाफ शिकायत के, परमेश्वर के प्रति शक के, परमेश्वर की आलोचना के या यहाँ तक कि परमेश्वर के खिलाफ ईश-निंदा के शब्द बोलते न भी सुनो, तो भी अपने दिलों में वे परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर के कार्य और परमेश्वर के कार्य से संबंधित हर चीज के प्रति तिरस्कार, घिन और अनादर के रवैये से भरे होते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर क्या कहता है, परमेश्वर की लोगों से क्या अपेक्षाएँ हैं, परमेश्वर के इरादे क्या हैं या परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले विभिन्न प्रकारों के कार्यों के पीछे क्या सिद्धांत हैं, वे कभी भी उन पर ध्यान नहीं देते हैं या उन्हें स्वीकार नहीं करते हैं—इन लोगों में ये सकारात्मक चीजें प्राप्त करने के लिए बस कोई पात्र ही नहीं है। वैसे तो तुम्हें वे इन सकारात्मक चीजों का खुलेआम प्रतिरोध या तिरस्कार करते दिखाई नहीं देंगे, लेकिन अपने दिलों की गहराइयों के परिप्रेक्ष्य से वे उनसे दूर भागते हैं और उनसे नफरत करते हैं। जब वे धर्मोपदेश सुनते हैं, तो वे इस बात पर विचार नहीं कर रहे होते हैं कि सत्य कैसे स्वीकार करना है और सत्य का अभ्यास कैसे करना है, बल्कि वे इस बात पर विचार कर रहे होते हैं कि वे जो ताजा प्रकाश और वाक्यांश सुनते हैं, उन्हें संक्षेप में कैसे प्रस्तुत करना है और उन्हें दूसरों के साथ साझा करने के लिए अपने शब्दों में कैसे बदलना है ताकि लोग उनका सम्मान करें और उन्हें पूजें। वे मन में सोचते हैं, “अगर फिर मैं इन शब्दों का प्रचार उन लोगों में करूँ जो अभी-अभी कलीसिया में शामिल हुए हैं तो मैं लोगों की और भी ज्यादा श्रद्धा और पूजा प्राप्त कर पाऊँगा और लोगों के बीच मेरा रुतबा और भी ऊँचा हो जाएगा। यह रुतबा इस बात पर आधारित होगा कि मैं कितना धर्म-सिद्धांत समझता हूँ और उस पर पकड़ बनाता हूँ और मैं कितने व्यापक रूप से इस पर पकड़ बनाता हूँ।” भले ही वे वहाँ बैठकर धर्मोपदेश क्यों न सुनें—यहाँ तक कि बहुत ध्यान से और लगन से भी सुनें और इसमें बहुत मेहनत भी करें—उनका रवैया सकारात्मक नहीं होता है और उनका लक्ष्य शुद्ध नहीं होता है। वे सत्य स्वीकार करने के रवैये से नहीं सुनते हैं, बल्कि इस पर ऐसे विचार करते हैं मानो वे धर्मशास्त्र का अध्ययन कर रहे हों, वे धर्मोपदेशों में कही गई बातों की तुलना बाइबल से करते हैं। वे परमेश्वर के वचन स्वीकार नहीं करते हैं और उनसे अपनी तुलना नहीं करते हैं, न ही वे अपनी विभिन्न समस्याओं को समझने का और उनसे समाधान का मार्ग और अभ्यास के लिए सिद्धांत ढूँढ़ने का प्रयास करते हैं ताकि वे खुद को जानना शुरू कर सकें, सच्चा पश्चात्ताप उत्पन्न कर सकें, अपने भ्रष्ट स्वभाव छोड़ सकें, उस तरीके से कार्य कर सकें और व्यवहार कर सकें जो सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है और परमेश्वर के इरादों को संतुष्ट कर सकें—यह उनका लक्ष्य बिल्कुल नहीं होता है। उनका क्या लक्ष्य है? यह लक्ष्य है खुद को ज्यादा धर्म-सिद्धांतों से लैस करना ताकि वे अपनी परेड कर सकें और अपना दिखावा कर सकें और लोगों को उनका सम्मान करने और उन्हें पूजने के लिए मना सकें। यह पहला लक्ष्य है। उनका दूसरा लक्ष्य है आशीषें प्राप्त करने का सबसे सरल मार्ग ढूँढ़ना। धर्मोपदेश सुनने और यह पुष्टि करने के बाद कि यही सच्चा मार्ग है, वे विचार करना शुरू कर देते हैं कि उनके आशीषें प्राप्त करने की कितनी उम्मीद है, उनके उद्धार प्राप्त करने की कितनी उम्मीद है। फिर वे ठान लेते हैं कि वे धोखे से परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भरोसा हासिल करने के लिए कष्ट सहने और कीमत चुकाने के तरीके का उपयोग करेंगे और परमेश्वर को वे कष्ट दिखाएँगे जिन्हें वे सहते हैं और वह कीमत दिखाएँगे जिसे वे चुकाते हैं। वे सोचते हैं कि वे इस तरीके से परमेश्वर में विश्वास रखकर महान आशीषें और एक अद्भुत गंतव्य प्राप्त कर सकते हैं। तुम देखो, धर्मोपदेशों के प्रति और सत्य के हर पहलू के प्रति उनका रवैया सीधे-सीधे इसे स्वीकार करना और फिर इसका अभ्यास करना और अनुभव करना नहीं है—बल्कि उनकी गुप्त योजनाएँ और दाँव-पेंच होते हैं। वे हमेशा अपने मन को और बयानबाजी के हथियारघर को लैस करने के लिए धर्मोपदेशों और संगति से खास वाक्यांशों या श्रेष्ठ सुविचारों का उपयोग करने की उम्मीद करते रहते हैं ताकि वे भाई-बहनों को गुमराह कर सकें, सभी को उनकी पूजा करने के लिए मना सकें, खुद को लोगों के बीच प्रतिष्ठा हासिल करने की अनुमति दे सकें और दूसरों के उच्च सम्मान का आनंद लेने में समर्थ हो सकें। क्या धर्मोपदेश सुनते समय वे जो विचार, इरादे और रवैये रखते हैं वे यह दिखाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं कि ऐसे लोग बहुत ही पथभ्रष्ट होते हैं? (हाँ।) क्या कोई उनमें इस पथभ्रष्ट प्रेरक शक्ति को ठीक कर सकता है? अगर तुम उनसे कहो, “इस तरह से सोचना सत्य स्वीकार करना नहीं है—यह वह रवैया नहीं है जो सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति को रखना चाहिए। अगर तुम इस तरह से सोचते हो, तो सत्य का तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा; यह तुम्हें उद्धार प्राप्त करने में सक्षम नहीं करेगा। तुम्हें सत्य स्वीकार करना चाहिए, इसमें अभ्यास के सिद्धांत ढूँढ़ने चाहिए और वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करना चाहिए ताकि परमेश्वर के वचन तुम्हारी सत्य वास्तविकता बन जाएँ और अंत में वे तुम्हारा जीवन बन जाएँ”—तो क्या वे इसे प्राप्त करने में समर्थ होंगे? (वे नहीं होंगे।) क्यों नहीं? क्या वह इसलिए क्योंकि उन्होंने पर्याप्त मेहनत नहीं की है या इसलिए क्योंकि सत्य पर हमारी संगति ने उनकी भावनाओं का ध्यान नहीं रखा है या सत्य का ऐसा कोई उपयुक्त प्रावधान शामिल नहीं किया है जो उनकी अवस्था की तरफ निर्देशित हो? (इनमें से कोई भी बात नहीं है।) तो फिर क्या कारण है? (यह सत्य से नफरत करने के उनके सार द्वारा तय होता है।) इसलिए यह कहा जाना चाहिए कि इन लोगों की अभिव्यक्तियों को उनके सार से अलग नहीं किया जा सकता—वे घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। कोई भी उनके दिलों में विचारों को ठीक नहीं कर सकता और कोई भी इन लोगों के, जो दानव हैं, दुष्ट प्रकृति सार को नहीं बदल सकता। वे सत्य से नफरत करते हैं और सत्य अस्वीकार करते हैं, इसलिए सत्य उन्हें बदलने में असमर्थ है। तो क्या यह कहा जा सकता है कि इस तरह का व्यक्ति मदद से परे होता है? (हाँ।) उत्तर निश्चित रूप से हाँ है। क्यों? क्योंकि उनका प्रकृति सार वही है जो दानवों का होता है। वे जो कुछ भी प्रकट करते हैं वह पूरी तरह से दानवों की प्रकृति द्वारा शासित होता है—यह बिल्कुल भी भ्रष्टता का अस्थायी प्रकाशन नहीं है और न ही यह भ्रष्ट मानवजाति के दुष्ट भ्रष्ट स्वभावों का प्रकाशन है। वह इसलिए क्योंकि वे दानव हैं, सृजित मनुष्य नहीं हैं—यही समस्या की जड़ है।

धर्मोपदेश सुनते समय इस तरह के व्यक्ति में कुछ अतिरिक्त अभिव्यक्तियाँ होती हैं—हर बार जब परमेश्वर का घर सत्य पर संगति करता है और इसमें निश्चित लोगों के बुरे कर्मों और अभिव्यक्तियों को उजागर करने और उनका गहन-विश्लेषण करने की जरूरत पड़ती है, तो वह ऐसी चीजें कहता है : “क्या तुम उस घटना के बारे में बात नहीं कर रहे हो जो पहले हुई थी? मुझे पूरी कहानी पता है। मुझे ठीक-ठीक पता है कि इसे उठाने में तुम्हारा क्या मकसद है। क्या तुम इस मामले की संगति करने और गहन-विश्लेषण करने का उपयोग करके सिर्फ अपना अधिकार स्थापित करने और लोगों को अपनी बात सुनाने का प्रयास नहीं कर रहे हो? क्या यह सिर्फ यह नहीं है कि तुम कुछ लोगों को सबक सिखाना चाहते हो और कुछ लोगों को दबाना चाहते हैं? क्या यह सिर्फ एक मुहिम शुरू करना नहीं है? सिर्फ एक बेवकूफ ही तुम्हारी बातों पर विश्वास करेगा! सिर्फ एक बेवकूफ ही तुम्हारी बात सुनेगा और सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करेगा!” तुम देखो, यहाँ तक कि जब वे लोगों के कुछ ऐसे उदाहरण, कथन या विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ सुनते हैं जो सत्य के किसी पहलू से संबंधित हैं, तो वे जो समझते हैं वह उस चीज से पूरी तरह से अलग होता है जो दूसरे लोग समझते हैं। वे इन चीजों को सही ढंग से नहीं समझ सकते हैं या उनसे सही ढंग से पेश नहीं आ सकते हैं और यहाँ तक कि वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ भी सकते हैं और सकारात्मक चीजों के बारे में राय भी बना सकते हैं और उनकी निंदा भी कर सकते हैं। वे अपने दिलों में जिस चीज के बारे में सोचते हैं वह हमेशा बहुत ही अंधकारमय होता है, फिर भी उन्हें लगता है कि वे विशेष रूप से चतुर हैं और उन्हें असली कहानी मालूम है। क्या यह पथभ्रष्ट नहीं है? यह बिल्कुल बड़े लाल अजगर की तरह है—बड़ा लाल अजगर कहता है कि जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया लोगों को बाहर निकाल देती है या निष्कासित करती है, तो यह शक्ति के प्रदर्शन के रूप में दूसरों को दिखाने के लिए किया जाता है, लेकिन वह यह कभी नहीं कहता कि जब परमेश्वर का घर, कलीसिया लोगों को बाहर निकाल देती है, तो यह कलीसिया को शुद्ध करना होता है। वह इसलिए क्योंकि वह अविश्वासी दानव है जो सत्य नहीं समझ सकता; वह सकारात्मक चीजों को हमेशा तोड़-मरोड़ देता है, उनके बारे में राय बनाता है और उनकी निंदा करता है और वह सकारात्मक चीजों से सही मानसिकता से बिल्कुल पेश नहीं आएगा। वह यह मानने के बजाय कि मनुष्यों को परमेश्वर ने बनाया है यह मानना ज्यादा पसंद करेगा कि मनुष्य वानरों से विकसित हुए हैं, कि वे ड्रैगन के वंशज हैं। अभी हाल ही में मैंने कुछ वैज्ञानिक शोधकर्ताओं को यह तक कहते सुना कि करोड़ों वर्ष पहले की एक बहुत बड़ी चूहे की प्रजाति मानवजाति की पूर्वज है—यह कितना बेहूदा और विचित्र सिद्धांत है! अगर तुम उनसे यह मनवा लेने का प्रयास करते हो कि मनुष्यों को परमेश्वर ने बनाया, उनसे यह विश्वास करवाने का प्रयास करते हो कि मनुष्यों को परमेश्वर ने बनाया, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम इसे कैसे कहते हो, वे इसे मान लेने से मना कर देते हैं। यह तथ्य उनकी आँखों के सामने पेश किए जाने के बाद भी वे अब भी यह विश्वास नहीं करते हैं। वे बस यही मानते हैं कि मनुष्य वानरों से विकसित हुए हैं या कि वे चूहों की संतानें हैं या कि वे ड्रैगन के वंशज हैं। वे इन दानवी शब्दों पर विश्वास करना ज्यादा पसंद करेंगे बजाय इसके कि मनुष्यों को परमेश्वर ने बनाया—कि मानव जीवन और साँस परमेश्वर द्वारा दी गई। वे इस पर विश्वास नहीं करते हैं, इसे नहीं मान लेते हैं और इस तथ्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं होते हैं। क्या यह पथभ्रष्ट नहीं है? (हाँ।) अगर तुम कहते हो कि वे ड्रैगन के वंशज हैं, तो वे खुश हो जाते हैं। अगर तुम कहते हो कि वे वानरों से विकसित हुए हैं और वानरों के वंशज हैं या कि एक बहुत ही बड़ा चूहा उनका पूर्वज है, तो वे कहते हैं, “हाँ, कितने सम्मान की बात है!” लेकिन अगर तुम कहते हो कि मनुष्यों को परमेश्वर ने बनाया है, तो वे शत्रुतापूर्ण हो जाते हैं—उनकी आँखें गुस्से से धधकने लगती हैं और वे तुम्हारे प्रति नफरत से भर जाते हैं। यह कितना पथभ्रष्ट है!

दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग सत्य पर संगति के शब्दों को सुनने के सबसे ज्यादा अनिच्छुक होते हैं। खासकर जब ये शब्द खुद को जानने, विभिन्न प्रकारों के लोगों की अवस्थाओं का गहन-विश्लेषण करने, सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश करने के तरीके या सत्य का अभ्यास करने के सिद्धांतों के बारे में होते हैं, तो वे अपने दिलों में बहुत ही ज्यादा विकर्षण महसूस करते हैं और साथ ही वे विकृत समझ और राय फैलाते हैं। उदाहरण के लिए, जब कलीसिया कुछ कुकर्मियों को बाहर निकाल देती है, तो इस प्रकार का व्यक्ति दूसरों को उकसाता है, ऐसी बातें कहता है, “परमेश्वर के घर में लोगों के लिए कोई प्रेम नहीं है। ऐसा लगता है जैसे वे खेत जोतने के बाद बैलों को काट रहे हों,” या, “इन लोगों को इसलिए बाहर निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने उच्चतर अगुआओं को नाराज कर दिया।” वे परमेश्वर के घर में कलीसिया की स्वच्छता के कार्य को सही ढंग से नहीं कर पाते हैं और न ही उनमें शुद्ध समझ होती है—वे इस बारे में विकृत तरीके से सोचते और बोलते हैं। तुम्हें उनके मुँह से जमीर या विवेक का कोई शब्द सुनाई नहीं देगा और न ही तुम्हें ऐसे शब्द सुनाई देंगे जो सकारात्मक चीजें हों और ऐसी कोई बात तो बिल्कुल भी सुनाई नहीं देगी जो सत्य सिद्धांतों के अनुरूप हो। उनका दिल शिकायतों, उद्दंडता और परिवेदनाओं से भरा होता है। जब वे असंयमित ढंग से अपने दृष्टिकोण व्यक्त करते हैं, तो वे जो चीजें कहते हैं और जो विचार और दृष्टिकोण प्रकट करते हैं, वे सभी पथभ्रष्ट और विकृत होते हैं। तुम्हें यह समझ से बाहर लगता है—तुम सोचते हो कि उन्होंने इतने वर्षों से परमेश्वर में कैसे विश्वास रखा है और धर्मोपदेश सुने हैं और कैसे बाहर से वे काफी शिष्ट लगते हैं और बुरे नहीं लगते हैं और तुम्हें अचरज होता है कि वे महत्वपूर्ण समय पर ये अनुचित बातें कैसे कह सकते हैं। आखिरकार उन्होंने अपने सच्चे विचार जाहिर कर ही दिए हैं, वे बातें जाहिर कर ही दी हैं जिन्हें उन्होंने लंबे समय से अपने दिल में छिपाकर रखा था—क्या यह वाकई उनकी समस्या को प्रकट नहीं करता? (हाँ।) उन्होंने जो सच्चे विचार प्रकट किए हैं, वे पूरी तरह से विकृत दलीलें और पाखंड हैं। तो क्या उन्होंने ये विकृत दलीलें और पाखंड किसी अस्थायी रूप से खराब मिजाज के कारण व्यक्त किए? (नहीं।) बिल्कुल नहीं। चाहे उन्होंने कितने भी वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा हो और धर्मोपदेश सुने हों, ये विचार उनके दिल में हमेशा छिपे ही रहे हैं, उन्होंने कभी दिन का उजाला नहीं देखा है। लेकिन जब कोई महत्वपूर्ण पल आता है और वे जो कहना चाहते हैं उसे और रोककर नहीं रख पाते हैं, तो यह ज्वालामुखी की तरह फट पड़ता है—यह उनके भीतर बहुत ही तेजी से जमा हो रहा होता है और एक दिन वे इसे और काबू में नहीं रख पाते हैं और यह पथभ्रष्ट गुस्सा बाहर फूट पड़ता है। जब उनकी दानवी प्रकृति फट पड़ती है, तो सभी तरह की विकृत दलीलें, पाखंड और भ्रांतियाँ बाहर आ जाती हैं—वे परमेश्वर के बारे में शिकायत करने वाले शब्द, परमेश्वर की ईश-निंदा करने वाले शब्द, परमेश्वर का अपमान करने वाले शब्द, लोगों के प्रति जलन और नफरत के शब्द और उकसाने वाले शब्द बोलते हैं—वे सभी तरह के दानवी शब्द उगलते हैं और सिर्फ तब तुम्हें एहसास होता है कि वे दानव हैं और पूरी तरह से बेनकाब हो चुके हैं। इससे पहले तुमने देखा कि धर्मोपदेश हमेशा उनके सिर के ऊपर से निकल जाते हैं और कि परमेश्वर में विश्वास रखने के इन सभी वर्षों में उन्होंने कभी भी सत्य नहीं समझा है। तुमने मान लिया कि उनमें खराब काबिलियत है और कि सत्य उनकी समझ से परे है, इसलिए तुमने उन्हें भाई या बहन माना और उनकी मदद करने का प्रयास किया। तुमने उन पर भरोसा किया और उन्हें बताया कि कैसे तुम्हारे अपने भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध किए जाने लगे हैं। लेकिन चाहे तुमने उनके साथ कैसे भी संगति की हो, उन्होंने इस बारे में बात करने के लिए कभी भी अपना दिल नहीं खोला कि वे सही मायने में कैसे हैं। तुम कभी भी समझ नहीं पाए : वे अपना दिल क्यों नहीं खोल सके? उन्होंने अपनी असली अवस्था उजागर क्यों नहीं की? क्या यह हो सकता है कि उन्होंने कभी भी भ्रष्ट स्वभावों का खुलासा न किया हो? तुम कभी भी उनकी असलियत देख नहीं पाए और तुमने यहाँ तक सोचा कि वे शिष्ट, सीधे-सादे और निष्कपट हैं। सिर्फ अब जब उनकी दानवी प्रकृति फट पड़ी है और उन्होंने परमेश्वर की शिकायत करते हुए और उसकी ईश-निंदा करते हुए इतनी सारी बातें कह डाली हैं कि तुम्हें दिखाई देता है कि उनमें वास्तव में कोई मानवता नहीं है और वे पूरी तरह से दानवी प्रकृति के हैं। तुम्हें लगता है, “यह व्यक्ति भयानक है! उसने इन सभी वर्षों में परमेश्वर में विश्वास रखा है, लेकिन यह पता चला है कि उसने हमेशा अपने दिल में सत्य से नफरत की है और उसका प्रतिरोध किया है! इसमें कोई हैरानी नहीं है कि उसने कभी भी किसी के भी सामने खुलकर बात नहीं की—उसे डर था कि दूसरे लोग उसकी दानवी प्रकृति की असलियत देख लेंगे! वह एक सच्चा दानव है!” एक बार जब तुम उसके सार की असलियत देख लेते हो, तो तुम्हें लगता है कि तुम ये सभी वर्ष पूरी तरह से अंधे रहे हो—तुम हर रोज अपना कर्तव्य करते रहे और उसके साथ कलीसियाई जीवन जीते रहे, पूरा समय यही सोचा कि वह एक अच्छा व्यक्ति है, परमेश्वर के घर का सदस्य है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक है और तुम उसका भेद पहचानने में असमर्थ रहे। यह बहुत ही डरावनी परिस्थिति है! अगर तुम भाई-बहनों के साथ रहते हो और उनसे मेलजोल रखते हो और तुम्हें पता चलता है कि किसी में भ्रष्ट स्वभाव हैं या वह अपने कर्तव्य में सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और तुम उसके साथ सत्य की संगति करते हो और उसकी मदद करते हो और वह इसे स्वीकार करने और आभार व्यक्त करने में समर्थ होता है, तो तुम काफी संतुष्ट महसूस करोगे—तुम्हें लगेगा कि यह व्यक्ति बहुत अच्छा है, कि वह सत्य से प्रेम करता है; तुम्हें उसके प्रति बिल्कुल भी विकर्षण महसूस नहीं होगा। लेकिन अगर तुम कई वर्षों तक किसी दानव के साथ मेलजोल रखते हो, हमेशा उससे भाई-बहन की तरह पेश आते हो, अक्सर उसकी मदद करते हो, उसे सहारा देते हो और उसके प्रति प्रेम, धीरज और सहनशीलता दिखाते हो, लेकिन फिर भी वह तुम्हें बहुत शत्रुतापूर्ण नजरों से देखता है, हमेशा तुमसे ऐसे सावधान रहता है जैसे कि तुम उसके दुश्मन हो और उत्तरोत्तर तुम्हें यह एहसास होता है कि अपने दिल में वह सत्य को रत्ती भर भी स्वीकार नहीं करता है और वह एक दानव के अलावा कुछ नहीं है—तो तुम्हें कैसा लगेगा? वह व्यक्ति जिसके बारे में हमने अभी-अभी जिक्र किया कि उसे निष्कासित कर दिया गया था उसे देखा जाए तो—अगर तुम इस तरह के व्यक्ति के साथ मेलजोल रखते हो और एक दिन तुम्हें पता चलता है कि उसकी मानवता बहुत बुरी है, कि वह न सिर्फ अपने दिल में परमेश्वर से नफरत करता है और सत्य बिल्कुल स्वीकार नहीं करता है, बल्कि उनसे भी नफरत करता है जो प्रेम के कारण उसकी मदद करते हैं और इससे तुम्हें यकीन हो जाता है कि इस तरह का व्यक्ति एक सच्चा दानव है, तो तुम्हें कैसा लगेगा? (मुझे लगेगा कि मैं सच में बेवकूफ बना रहा।) सबसे पहले तुम्हें लगेगा कि तुम बेवकूफ बने रहे और तुम्हें अचरज होगा कि तुमने ऐसे व्यक्ति पर इतना सारा निरर्थक प्रयास कैसे कर दिया। और क्या? (मुझे कुछ हद तक घिनौना महसूस होगा।) किसके प्रति घिनौना? उसके प्रति या अपने प्रति घिनौना? (उसके प्रति घिनौना, लेकिन अपने प्रति भी क्योंकि मैं उसका भेद पहचानने में असमर्थ रहा।) तो क्या अब भी तुम भविष्य में उसे देखना या उससे मेलजोल रखना चाहोगे? (नहीं।) तो फिर तुम उसके साथ किस तरह का रिश्ता रखना चाहोगे? उसके साथ मेलजोल रखने में तुम किस तरह का दृष्टिकोण अपनाना चाहोगे? (मैं उसे फिर कभी भी देखना नहीं चाहूँगा—मैं उससे जितना दूर रह सकूँगा, उतना ही अच्छा होगा।) तो फिर अगर ऐसा हो कि अपना कर्तव्य करने के दौरान तुम्हें अब भी कभी-कभी उसे देखना पड़े या उसके साथ कार्य पर चर्चा करनी पड़े और तुम उससे बच नहीं सकते—तो तुम क्या करोगे? क्या तुम लोगों ने इसके लिए किसी सिद्धांत और अभ्यास के मार्ग का सारांश प्रस्तुत किया है? तुम लोगों को उसके प्रति घिनौना महसूस होता है और इसलिए तुम उससे बचना चाहते हो और उसे नहीं देखना चाहते, लेकिन अगर तुम अपने कर्तव्य में उसे देखने से बचते हो, तो इससे कार्य में देरी होगी और उस पर असर पड़ेगा—तो तुम्हें क्या करना चाहिए? क्या तुम लोगों के पास कोई अच्छा समाधान है? (नहीं।) तो फिर मैं तुम लोगों को दो समाधान बताऊँगा। पहला वाला यह है कि अगर इस तरह का व्यक्ति सेवा करने के लिए कलीसिया में रह सकता है, तो जब तुम्हें अपने कर्तव्य में उसके संपर्क में रहने की जरूरत न हो, तो तुम मत रहो। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम उसके प्रति घिनौना महसूस करते हो, उसके संपर्क में रहना अजीब और दर्दनाक लगता है और क्योंकि वह भी यह बता सकता है कि तुम उसके प्रति घिनौना महसूस करते हो, जो उसे परेशान करने वाला लगता है। और इसलिए अब तुम्हें पहले की तरह उसके सामने अपना दिल उजागर करने और अपने अंतरतम विचार बताने की कोई जरूरत नहीं है। इसके बजाय तुम बस सहनशील और धैर्यवान बनो और बुद्धिमान विधियों का उपयोग करके उससे मेलजोल रखो—बस इतना ही काफी है। यह एक सिद्धांत है। दूसरा वाला यह है कि जब तुम्हें अपने कार्य में उसके संपर्क में रहना ही पड़ेगा, तो तुम्हें उसे सौंपा जा रहा कार्य और उससे संबंधित सत्य सिद्धांत उसे स्पष्ट रूप से समझा देने होंगे। यहाँ एक बिंदु है जिस पर तुम्हें जरूर ध्यान देना होगा—तुम्हें यह देखना होगा कि वह उसे सौंपे गए कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करने में सक्षम है या नहीं। अगर वह आमतौर पर इस कार्य को करने में समर्थ है, तो उसके साथ संगति करो और मामले को निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ ढंग से सँभालो। लेकिन अगर वह इस कार्य में हमेशा लापरवाह और गैर-जिम्मेदार रहता है, तो तुम उसे यह कार्य सौंपने में निश्चिंत महसूस नहीं करोगे और इसके बजाय तुम्हें किसी और को चुनना चाहिए। अगर इस मौके पर कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं है और तुम्हारे पास उसका उपयोग करने के अलावा कोई चारा नहीं है, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें उसका पर्यवेक्षण करने के लिए किसी की व्यवस्था करनी चाहिए। जैसे ही यह पाया जाए कि वह वास्तविक कार्य नहीं कर रहा है या इस तरीके से व्यवहार कर रहा है जिससे विघ्न-बाधाएँ या गड़बड़ियाँ उत्पन्न हो रही हैं, तो इसकी तुरंत सूचना दी जानी चाहिए। अगर उसका पर्यवेक्षण करने वाला व्यक्ति प्रभावी ढंग से ऐसा करने में विफल रहता है, तो एक और समाधान है : अगुआओं और कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से उसका पर्यवेक्षण करना चाहिए और उसके कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए और इन अनुवर्ती कार्रवाइयों की आवृत्ति थोड़ी-सी ज्यादा होनी चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसे लोग बेहद गैर-भरोसेमंद होते हैं; जैसे ही उन पर से कड़ी नजर हटा ली जाती है, वे बुरे कर्म करने और कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करने और बाधा डालने की संभावना रखते हैं और फिर उनका उपयोग करने से होने वाले नुकसान फायदों की तुलना में ज्यादा होंगे। इसलिए अगर तुम्हें कार्य के लिए उनसे मेलजोल रखना ही होगा, तो तुम इससे बच नहीं सकते। सिर्फ इसलिए कि तुम उनका भेद पहचान सकते हो और उनका असली चेहरा देख सकते हो, तुम उनसे दूरी नहीं बना सकते या उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते—यह गैर-जिम्मेदारी की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि तुम उनका भेद पहचानने में समर्थ हो और चूँकि तुम्हें पता है कि उनका प्रकृति सार दानव का है और तुम जानते हो कि वे बुरे कर्म कर सकते हैं और विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न कर सकते हैं, इसलिए तुम्हारी और ज्यादा जिम्मेदारी बनती है कि तुम उनका पर्यवेक्षण करो और उन पर अनुवर्ती कार्रवाई करो, बजाय इसके कि आतंक या घिनौनेपन के कारण तुम उन्हें नजरअंदाज कर दो। अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी परमेश्वर के घर के द्वारों की रखवाली करना, परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करना और भाई-बहनों की देखभाल करना है। अब जब दानव ने अपना असली रूप प्रकट कर ही दिया है और तुम पहले से ही उसकी असलियत देख चुके हो और जानते हो कि वह किस किस्म का नीच है, तो तुम्हें और भी अच्छी तरह से उसका पर्यवेक्षण करना चाहिए ताकि वह यथासंभव अधिकतम सीमा तक प्रभावी ढंग से काम करे—यही वह चीज है जो तुम्हें करनी चाहिए। इस कारण से कि तुमने उसकी असलियत देख ली है, तुम्हें उस पर ध्यान देने से इनकार नहीं करना चाहिए या उसे जो कार्य समझाना चाहिए उसे स्पष्ट रूप से समझाने में विफल नहीं होना चाहिए या अगर वह तुमसे कार्य से संबंधित मुद्दों के बारे में पूछता भी है, तो भी तुम्हें उसके साथ संगति करने से इनकार नहीं करना चाहिए। क्या यह परमेश्वर के घर के कार्य पर अपना गुस्सा निकालना नहीं है? क्या यह परमेश्वर के घर के कार्य और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश की उपेक्षा करना नहीं है? अगर तुम ऐसा करते हो, तो तुम गलती कर रहे हो—इसका मतलब है कि तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की है। अपने निजी जीवन में हो सकता है कि तुम्हारा उसके साथ बिल्कुल कोई व्यवहार न हो और हो सकता है कि अब तुम उससे वैसे मेलजोल नहीं रखते हो जैसे पहले रखते थे। लेकिन अगर परमेश्वर के घर का कार्य तुम्हें उसके साथ बातचीत करने और मेलजोल रखने की अपेक्षा करता है, तो तुम इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकते—यह तुम्हारा कर्तव्य और तुम्हारी जिम्मेदारी है और तुम इससे बचने के लिए बहाने नहीं बना सकते। जब दानवों की बात आती है, तो उनसे सिर्फ दूरी बनाए रखने, उन्हें अस्वीकार करने, उनसे दूर रहने और अपने दिल में उनके प्रति नापसंदगी और विमुखता महसूस करने का दृष्टिकोण परमेश्वर के इरादों के अनुरूप नहीं है। तुम्हें उनका पर्यवेक्षण भी करना चाहिए और उन्हें रोकना भी चाहिए। अगर वे सेवा करने को तैयार हैं, तो तुम्हें उनकी मदद करनी चाहिए और उचित रूप से सेवा करने के लिए उनका उपयोग करना चाहिए—उन्हें यथासंभव अधिकतम सीमा तक प्रभावी ढंग से सेवा करने में सक्षम करना चाहिए। अगर वे उचित रूप से सेवा नहीं करते हैं और एक पल के लिए भी निगरानी के बगैर छोड़े जाने पर कलीसिया के कार्य में बाधा डाल सकते हैं और उसे बरबाद कर सकते हैं, तो उनके कारण हुआ नुकसान उनकी उपयोगिता की तुलना में ज्यादा है और उन्हें तुरंत बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। जब भी जरूरत हो, तब गहन-विश्लेषण के लिए ऐसे नकारात्मक उदाहरणों की चर्चा चलाई जानी चाहिए ताकि भाई-बहन भेद पहचानने की क्षमता प्राप्त कर सकें, राक्षसों और शैतानों का प्रकृति सार समझ सकें और फिर दिल से उन्हें अस्वीकार कर सकें, वे उनके द्वारा गुमराह, बाधित या नियंत्रित न हों। परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सेवा करने के लिए राक्षसों और शैतानों का उपयोग करने, सभी चीजों का उपयोग करने का यही मतलब है। यह तुम लोगों की जिम्मेदारी है—यही वह चीज है जो तुम लोगों को करनी चाहिए। लेकिन तुम लोगों में इस जिम्मेदारी का भाव नहीं है। ठीक जैसे तुम लोगों ने इससे पहले कहा—एक बार जब तुममें इस तरह के व्यक्ति का भेद पहचानने की क्षमता आ जाती है, तो तुम्हें घिनौना महसूस होता है और तुम उसे और नहीं देखना चाहते और अगर वह तुम्हें दिख भी जाता है, तो तुम घूम कर चले जाते हो, जितना हो सके उससे उतना दूर रहते हो। समाधान के नाम पर तुम लोगों के पास बस यही है। तुम लोगों में परमेश्वर के घर के कार्य के लिए, परमेश्वर के घर के हितों के लिए या भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के लिए दायित्व का कोई भाव नहीं है। यही तुम लोगों का आध्यात्मिक कद है—यह बेनकाब हो गया है, है ना? तुम एक दानव के सार की असलियत देख लेते हो और फिर जब भी वह तुम्हें दिख जाता है, तुम उससे बचते हो। लेकिन तुम भाई-बहनों की रक्षा नहीं करते हो और नतीजतन उन्हें नुकसान पहुँचता है। तुम अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में विफल रहते हो—यह जिम्मेदारी की उपेक्षा है। जब दानव अभी तक बेनकाब नहीं हुआ है, तब तुम्हें भाई-बहनों को चेतावनी देनी चाहिए, उन्हें कुकर्मियों से सावधान रहने की बात याद दिलानी चाहिए, उन्हें बताना चाहिए कि दानव ने क्या किया, उसने ऐसी चीजें क्यों की, उसके क्रियाकलापों की प्रकृति क्या है, इन क्रियाकलापों से क्या प्रभाव हो सकते हैं और उनके कारण क्या नतीजे हो सकते हैं, परमेश्वर इस दानव को कैसे निरूपित करता है और उससे कैसे पेश आना चाहिए। एक बार जब भाई-बहन भेद पहचाने की क्षमता प्राप्त कर लें और दानव सेवा करना समाप्त कर ले और भाई-बहनों या परमेश्वर के घर के लिए उसका कोई मूल्य न रह जाए, तो तुम्हें उसे बाहर निकाल देना चाहिए जिससे इस राक्षस और शैतान का यह जीवन समाप्त हो जाए। इसे बुद्धिमत्ता कहते हैं—यह सिद्धांतों के साथ कार्य करना और अपने पास अभ्यास के लिए मार्ग होना है। तुम अपने निजी जीवन में इस तरह के व्यक्ति से कैसे मेलजोल रखते हो, यह तुम पर निर्भर करता है—वह तुम्हारी आजादी है। लेकिन एक जिम्मेदारी ऐसी है जिसे अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें उठानी चाहिए : तुम्हें भाई-बहनों की रक्षा करनी चाहिए और परमेश्वर के घर और कलीसिया के कार्य के हितों का बचाव करना चाहिए। इस सिद्धांत की नींव पर, इस प्रकार के व्यक्ति के संबंध में जो कि एक दानव है, अगर फिलहाल वह सेवा कर रहा है तो तुम्हें जल्दी से उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। तुम्हें उसके कार्य का पर्यवेक्षण करना चाहिए और यह देखने के लिए कि वह क्या कर रहा है उसकी हर गतिविधि को ध्यान से देखना चाहिए। जैसे ही कोई ऐसा संकेत नजर आए कि कुछ गड़बड़ है, तुम्हें तुरंत उसे उजागर करने और उसकी काट-छाँट करने का अभ्यास करना चाहिए या उसे उसके पद से हटा देना चाहिए। अगर उजागर और काँट-छाँट किए जाने के बाद वह जरा-सी सेवा कर पाता है, तो यह कलीसिया के कार्य के लिए फायदेमंद है। लेकिन एक बार जब यह पता चलता है कि वह सेवा नहीं करना चाहता, वह सही मार्ग नहीं अपना रहा है, गड़बड़ करने और बाधा डालने वाला है और भाई-बहनों को गुमराह करने के लिए अपने दानवी पंजे बढ़ा रहा है, तो यही वह समय है जब दानव अपना असली रूप प्रकट करता है और उसके खिलाफ कार्रवाई करने का यही सही समय है। उसे सेवा करने का मौका दिया गया था, लेकिन उसने उचित रूप से सेवा नहीं की—तो फिर उसे ब समूह में भेज दो। अगर परिस्थिति गंभीर है, तो उसे बाहर निकाल देने या निष्कासित करने का अभ्यास करो—यह शैतान की किस्मत का अंत करने का भी समय है। जब तक तुम इन दो सिद्धांतों का पालन करते हो, तब तक तुम लोग कुकर्मियों और दानवों से सिद्धांतयुक्त तरीके से पेश आ पाओगे। क्या इस तरीके से इसे करने से तुम्हारी जिम्मेदारी पूरी हो रही है? (हाँ।) एक लिहाज से तुम्हारे पास दानवों का भेद पहचानने की क्षमता होगी, अब तुम और उनके द्वारा गुमराह या बाधित नहीं होगे और अब तुम बेवकूफी भरी चीजें और नहीं करोगे—कम-से-कम, अब तुम ऐसे लोगों के साथ सत्य की संगति और नहीं करोगे जो दानव हैं। अपने दिल में तुम्हें पता होगा : यह व्यक्ति दानव है—उसके साथ सत्य की संगति करना सूअरों के आगे मोती डालने के समान है; चाहे उनके साथ सत्य की संगति कैसे भी क्यों न की जाए, वह व्यर्थ ही जाएगी। इस प्रकार तुम बेवकूफी भरी चीजें नहीं करते रहोगे। तुम उनसे बस कुछ धर्म-सिद्धांतों के बारे में बात करोगे जो उन्हें समझने चाहिए और उन विनियमों के बारे में बात करोगे जिनका उन्हें पालन करना चाहिए—इतना काफी है। अगर तुम इस तरीके से अभ्यास करोगे, तो कलीसिया के कार्य पर असर नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर तुम सिद्धांत नहीं समझते हो, तो तुममें बेवकूफी भरी चीजें करने की क्षमता होगी। दूसरे लिहाज से अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन सेवाकर्मियों और दानवों का उचित रूप से पर्यवेक्षण और उपयोग करना चाहिए जो सत्य को रत्ती भर भी स्वीकार नहीं करते हैं। इस तरीके से अभ्यास करने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि कलीसिया के कार्य को कोई नुकसान न पहुँचे और साथ ही भाई-बहनों की राक्षसों और शैतानों द्वारा गुमराह और बाधित किए जाने से भी रक्षा हो सके। तुम समझ रहे हो? (हाँ।) तुम्हें कुकर्मियों और दानवों से भाई-बहनों की तरह बिल्कुल पेश नहीं आना चाहिए। जब तक तुममें दानवों और कुकर्मियों का भेद पहचानने की क्षमता है, तब तक तुम बेवकूफी भरी चीजें नहीं करोगे। पहले लोगों में भेद पहचानने की क्षमता नहीं थी और वे कई बेवकूफी भरी चीजें करते थे—हमेशा कुकर्मियों और दानवों से भाई-बहनों की तरह पेश आते थे और अपनी कीमत पर दानवों को हमेशा अपनी खिल्ली उड़ाने देते थे। जब तुम दानवों के साथ संगति करने के लिए अपना दिल खोल देते थे, तो वे अंदर से तुम्हारा उपहास करते हुए सोचते थे, “तुम कितने ईमानदार, कितने शुद्ध और खुले हो—तुम सच में बेवकूफ हो!” अब जब तुममें दानवों का भेद पहचानने की क्षमता है, तो तुम इस तरह की बेवकूफी भरी चीज और नहीं करोगे। अब तुम्हें पता है कि संगति में अपना दिल खोलना या किसी को सहारा देना और मदद करना, ऐसा तुम्हें उन सच्चे भाई-बहनों के साथ करना चाहिए, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जिनमें मानवता है—दानवों के साथ नहीं। यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि अब तुम दानवों के सामने दब्बू या भयभीत महसूस नहीं करते हो। तुम जानते हो कि वे दानव हैं और तुम जानते हो कि वे अपने दिलों में क्या सोच रहे हैं। अब जब तुममें उनका भेद पहचानने की क्षमता है, तो तुम्हें पता है कि उनसे उचित रूप से कैसे पेश आना है। तुम्हें हमेशा उन पर कड़ी नजर रखनी चाहिए—देखो कि वे क्या करने का प्रयास कर रहे हैं, वे अपने दिलों में क्या हिसाब कर रहे हैं और साजिशें रच रहे हैं, वे कार्य के किन हिस्सों में बाधा डाल सकते हैं, गड़बड़ कर सकते हैं और तोड़-फोड़ कर सकते हैं, वे दूसरों को भड़काने और गुमराह करने के लिए किस तरह के शब्दों का उपयोग कर सकते हैं और वे कौन-से लक्ष्य हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। एक बार जब तुम इन सभी चीजों को स्पष्ट रूप से देखोगे, तो तुम जान जाओगे कि कैसे उचित रूप से कार्य करना है और तुम सत्य सिद्धांतों का पालन कर रहे होगे।

दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों की पथभ्रष्ट अभिव्यक्तियों का भेद पहचानने पर जब हमने संगति की, उसके बाद अब शायद तुममें से ज्यादातर लोगों के दिलों में कुछ स्पष्टता और भेद पहचानने की जरा-सी क्षमता आ गई है—जैसे कि इतने वर्षों तक लोगों से मेलजोल रखने के बाद उनमें से कौन-से लोग दानवों जैसे लगते हैं जिनके साथ तुम अपनी सच्ची भावनाएँ अब और साझा नहीं करोगे; और कौन-से लोग भाई-बहन हैं जिनके साथ तुम ज्यादा मेलजोल रखोगे, जिनके और करीब जाओगे और—जब कोई बात हो—तो ज्यादा संगति करोगे। इस तरीके से हर तरह के व्यक्ति के साथ तुम्हारा व्यवहार सिद्धांतयुक्त होगा और तुम गलतियाँ नहीं करोगे। लेकिन क्या ज्यादातर लोग दानवों का भेद पहचानने, दानवों की प्रकृति की असलियत देखने के बिंदु तक पहुँच सकते हैं? और अगर कोई दानव सेवा करने को तैयार है, तो क्या वे उस दानव की सेवा का उपयोग कर सकते हैं? ज्यादातर भाई-बहन इस तरीके से अभ्यास करने में अक्षम हैं—लेकिन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऐसा करने में समर्थ होना चाहिए। मैं क्यों कहता हूँ कि उन्हें ऐसा करने में समर्थ होना चाहिए? क्योंकि अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें चीजों की अच्छी तरह से जाँच करनी चाहिए। एक बार जब तुम्हें यह पता चल जाता है कि कोई कुकर्मी बुरे कर्म कर रहा है, तो तुम्हें तुरंत उसे उजागर करने, उसका गहन-विश्लेषण करने और उसकी विघ्न-बाधाओं और गड़बड़ियों पर अंकुश लगाने में समर्थ होना चाहिए। अगर तुम इस तरीके से अभ्यास कर सके, तो तुम कलीसिया के कार्य की सामान्य प्रगति सुनिश्चित कर पाओगे और भाई-बहनों की रक्षा होगी—उनमें भेद पहचानने की क्षमता बढ़ेगी और दानवों की विघ्न-बाधाओं के कारण उनके जीवन-प्रवेश को नुकसान नहीं पहुँचेगा। अगर तुम इस तरीके से अभ्यास करने में असमर्थ रहे—अगर तुम दानवों पर अंकुश नहीं लगा सके, द्वार की रखवाली नहीं कर सके—तो दानव बाधा डालने के लिए लगातार आते रहेंगे। आज वे एक व्यक्ति को बाधित करते हैं, उसे नकारात्मक बनाते हैं और सुसमाचार का प्रचार करने में उदासीन बन जाने का कारण बनते हैं; कल वे किसी और को बाधित करेंगे जिसके फलस्वरूप वे अपना कर्तव्य नहीं करना चाहेंगे जिससे कार्य में देरी होगी और तुम उनकी जगह कोई और व्यक्ति ढूँढ़ने के लिए मजबूर हो जाओगे। तुम्हें कुछ अचानक, अप्रत्याशित परिस्थितियाँ लगातार सँभालनी पड़ेंगी। क्या इस तरह से कार्य करना बहुत निष्क्रिय नहीं है? (हाँ है।) तो फिर अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में क्या तुम मानक-स्तर का होने से बहुत दूर नहीं हो? अगर तुम अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सेवा नहीं कर रहे होते, तो तुम अपने जीवन प्रवेश का, परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने का और अपने कर्तव्य का प्रबंध करने में समर्थ होते। लेकिन एक बार जब तुम अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सेवा करना शुरू कर देते हो, तो तुम हर दिन व्यस्त रहते हो—पागलों की तरह इधर-उधर भागते रहते हो, बहुत दौड़धूप करते रहते हो। या तो कोई मसीह-विरोधी या फिर कोई कुकर्मी दिखाई देता है और कलीसिया में बाधा डालता है या कुछ भाई-बहन नकारात्मक हो जाते हैं और अपना कर्तव्य नहीं करना चाहते हैं या कोई नया विश्वासी अफवाहों से गुमराह हो जाता है और अब विश्वास नहीं रखना चाहता और पीछे हट जाता है। कार्य पर्याप्त रूप से नहीं किया जा रहा है जिससे हर जगह समस्याएँ लगातार पैदा हो रही हैं और इन समस्याओं के लगातार पैदा होने से तुम अभिभूत हो जाते हो और बुरी तरह से थक जाते हो और हर दिन का सामना करने में असमर्थ हो जाते हो, अच्छी तरह से खाने-सोने में असमर्थ हो जाते हो—फिर भी कार्य अच्छी तरह से नहीं किया जाता है। यह कार्य के लिए पूरी तरह से अयोग्य होना है। ऐसा अगुआ या कार्यकर्ता बिल्कुल मानक-स्तर का नहीं है। मैं क्यों कहता हूँ कि तुम मानक-स्तर के नहीं हो? क्योंकि तुमने इन समस्याओं के बारे में, जिनका पैदा होना तय था, पहले से स्पष्ट रूप से वह संगति नहीं की जिससे सभी को सत्य समझने में और भेद पहचानने की क्षमता प्राप्त करने में मदद मिलती ताकि समस्याओं के सामने आते ही उन्हें तुरंत हल किया जा सकता। दूसरे शब्दों में, तुमने ज्यादातर लोगों को इन चीजों का सामना करने की क्षमता से लैस करने के लिए टीका नहीं लगाया। आखिरकार जब ये चीजें एक के बाद एक घटित हुईं, तो तुम बहुत निष्क्रिय हो गए—हमेशा किसी गड़बड़ को साफ करते रहे, हमेशा दुष्परिणाम को साफ करते रहे। इसका मतलब है कि तुम अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में मानक-स्तर का होने से दूर हो। तुम विभिन्न प्रकारों के दानवों से जिस तरीके से पेश आते हो उसमें उन्हें सँभालने की तुम्हारी विधियाँ अनुचित हैं, तुम जो कार्य करते हो, वह अपर्याप्त है और इसलिए कलीसिया का कार्य लगातार बाधित होता रहता है, लगातार समस्याओं से पीड़ित रहता है। तुम्हें हमेशा चीजों को ठीक करते रहना पड़ता है और उन्हें निबटाते रहना पड़ता है, इसलिए तुम खुद को बेहद व्यस्त महसूस करते हो और यह कार्य करना बहुत श्रमसाध्य हो जाता है।

क्या तुम्हें दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों से पेश आने के दो सिद्धांत याद हैं? मुख्य सिद्धांत क्या है? दानवों और शैतानों से मत डरो और उनसे मत बचो। इसके बजाय उनका भेद पहचानना और उनके सार की असलियत देखना सीखो और उनके विचारों के रुझान को समझो; यानी स्पष्ट रूप से यह देखो कि वे कलीसिया में क्या करना चाहते हैं और वे कौन-से लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं। इस तरीके से तुम निष्क्रियता को पहल में बदल सकते हो और उन्हें उजागर करने और उनसे निपटने के लिए सक्रियता से आक्रमण करने की पहल कर सकते हो। अगर दानवों और शैतानों को बोलते और कार्य करते देखकर तुम सिर्फ घिनौना महसूस करते हो और उन पर ध्यान नहीं देना चाहते या उनके साथ मिलकर कार्य नहीं करना चाहते और बस इतना ही—यहाँ तक कि जब तुम दानवों और शैतानों को कलीसिया के कार्य में बाधा डालते और गड़बड़ी करते देखते हो तब भी तुम उसे अनदेखा कर देते हो—तो क्या इस तरह से कार्य करना परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है? (नहीं।) दानवों और शैतानों के कलीसिया में घुसपैठ करने के बाद वे नियमों का पालन करने वाले तरीके से कलीसियाई जीवन नहीं जीएँगे और नियमों का पालन करने वाले तरीके से सेवा तो बिल्कुल नहीं करेंगे। वे अनिवार्यतः साहस के साथ बोलेंगे और चीजें करेंगे, यहाँ तक कि वे तब तक शांत नहीं होंगे जब तक उनके लक्ष्य हासिल नहीं हो जाते। इस प्रकार से दानवों से पेश आने में तुम्हें बुद्धिमान होना चाहिए और सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना चाहिए। जिन्हें उजागर और अस्वीकार किया जाना चाहिए, उन्हें उजागर और अस्वीकार करना होगा। जब किसी दानव को अभी तक बेनकाब नहीं किया गया है, अगर वह सेवा करने को तैयार है तो सेवा करने के लिए उसका उपयोग करो और जब वह ऐसा कर रहा हो तो उस पर कड़ी नजर रखो। उदाहरण के लिए, अगर तुम कार्य के किसी खास मद के निश्चित पर्यवेक्षक की असलियत ठीक से नहीं देख पा रहे हो—तुम देखते हो कि वह दूसरे भाई-बहनों की तरह सीधा-सादा और खुला नहीं है, कि वह कभी भी किसी से भी ईमानदारी से बात नहीं करता है और कि कार्य में कठिनाइयों या समस्याओं से सामना होने पर वह उनका समाधान ढूँढ़ने का प्रयास नहीं करता है—तो तुम्हें उसकी परिस्थिति की तह तक जाने की पहल करने की जरूरत है। तुम्हें निष्क्रिय नहीं रहना चाहिए, इस बात की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए कि वह कार्य को बिगाड़ दे और फिर तुम “घोड़ा भाग जाने के बाद अस्तबल के दरवाजे पर ताला लगाने” का प्रयास करो। तुम्हें उससे बात करने की और यह देखने की जरूरत है कि अपने कर्तव्य के प्रति उसका क्या रवैया है, क्या उसके पास कार्य के लिए विशिष्ट योजनाएँ और व्यवस्थाएँ हैं, क्या उसके पास कार्य करने के सिद्धांत हैं, क्या वह कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार कार्य कर सकता है और क्या वह अपने से ऊपर के लोगों को धोखा देने, अपने से नीचे के लोगों से बातें छिपाने और अपने खुद के तरीके से चीजें करने में सक्षम है। क्या ये ऐसी चीजें नहीं हैं जिन पर तुम्हें ध्यान देना चाहिए? (हाँ हैं।) मान लो कि तुम्हें पता चलता है कि कोई व्यक्ति दानव है और इस प्रकार तुम अब और उससे बातचीत नहीं करते हो, यह तक कहते हो, “यह दानव बहुत ही भयानक है—मुझे इसे सिर्फ देखकर ही घिनौना महसूस होता है। मैं अब और इससे बात नहीं करूँगा। मुझे अपने और इसके बीच एक स्पष्ट रेखा खींचनी होगी और भाई-बहनों से भी एक स्पष्ट रेखा खिंचवानी होगी—सभी को उसे नजरअंदाज करना चाहिए।” क्या इस तरीके से कार्य करना ठीक है? यह कार्य करने का बेवकूफी भरा तरीका है। यह न तो चतुर है और न ही बुद्धिमान और इसमें कोई आध्यात्मिक कद नहीं है। क्या सिर्फ इसलिए कि तुम उनसे बात नहीं करते हो तुम्हें लगता है कि तुम चतुर हो? क्या तुम परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील व्यक्ति हो? क्या तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी की है? क्या तुमने झुंड की रखवाली करने और परमेश्वर के घर के द्वार पर नजर रखने का दायित्व उठाया है? क्या तुम्हें इन चीजों के बारे में भी नहीं सोचना चाहिए? लोगों से दानवों का भेद पहचानने की क्षमता रखने की परमेश्वर की अपेक्षा का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि दानवों को बस अस्वीकार कर देना ही काफी है। तुम्हें दानवों का पर्यवेक्षण करने और उन्हें रोकने में भी समर्थ होना चाहिए; अगर कोई दानव अभी तक बेनकाब नहीं हुआ है और वह सेवा करना चाहता है तो तुम्हें उसका उपयोग करने में भी समर्थ होना चाहिए—ये चीजें भी वह कर्तव्य है जो तुम्हें करना चाहिए, वह जिम्मेदारी है जो तुम्हें पूरी करनी चाहिए और यह पूरी तरह से कलीसिया के कार्य का बचाव करने की खातिर है। अगर तुम देखते हो कि कोई व्यक्ति असाधारण रूप से रहस्यमय है, कि वह जो भी कहता है वह निर्विवाद है और कोई उसे समझ नहीं पाता है तो वह व्यक्ति बहुत खतरनाक है और भरोसे के लायक नहीं है। खासकर अगर तुम किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो जो विशेष रूप से मनहूस और असामान्य, कपटी और चालाक तरीके से व्यवहार करता है—जो कभी भी किसी से भी ईमानदारी से बात नहीं करता है और जिसके साथ बातचीत करने वाले या मेलजोल रखने वाले ज्यादातर भाई-बहन उसकी असलियत नहीं देख पाते हैं—तो ऐसे व्यक्ति को सिर्फ नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है। इसके बजाय तुम्हें उसके पास जाना चाहिए, उसके संपर्क में आना चाहिए और उससे बात करनी चाहिए ताकि उसका भेद पहचानने की तुम्हारी क्षमता और अंतर्दृष्टि बढ़े, तुम देख पाओ कि वह क्या सोच रहा है, उसके क्रियाकलापों का स्रोत और प्रेरणा क्या है, वह क्या करने की योजना बना रहा है, क्या अपना कर्तव्य करते समय वह कार्य की जिम्मेदारी उठा सकता है, क्या वह कलीसिया के कार्य में बाधा डाल सकता है और एक स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सकता है और क्या उसके कर्तव्य करने से फायदे की तुलना में नुकसान ज्यादा होता है और अंत में यह ऐसी हानि होती है जो लाभ से कहीं ज्यादा है। देखो—क्या अगुआ या कार्यकर्ता होना कोई आसान मामला है? जब कलीसिया में ऐसे किसी व्यक्ति का पता चलता है तो तुम्हें न सिर्फ उससे दूरी नहीं बनानी चाहिए और उससे बचना नहीं चाहिए, बल्कि सक्रियता से उसके पास जाना चाहिए और उसके संपर्क में आना चाहिए। ऐसा करने का क्या उद्देश्य है? यह उसकी परिस्थिति को समझने लगना और एहतियाती उपाय अपनाना है। उदाहरण के लिए, अगर तुम्हारे सामने कोई ऐसा सीसीपी एजेंट या जासूस आ जाता है जो तुम्हारी निजी जानकारी में ताक-झाँक करने के मौके लगातार तलाश रहा हो और तुम्हें अपने दिल में यह आभास होता है कि वह एक जासूस है तो तुम्हें उससे सावधान रहना चाहिए और तुम्हें उसे अपनी वास्तविक परिस्थिति बिल्कुल भी नहीं बतानी चाहिए। तुम्हें एक और भी जरूरी बात याद रखनी चाहिए : तुम्हें उसे तुम्हारा फोन नंबर, ईमेल अकाउंट वगैरह पता नहीं चलने देना है। हालाँकि अगर तुम सिर्फ उसके द्वारा तुम्हारी परिस्थिति के बारे में पूछताछ करने से सावधान रहते हो, लेकिन तुम दूसरी चीजों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देते हो और उन्हें यूँ ही जाने देते हो जैसे कि वह और किसके संपर्क में है, वह किसकी जानकारी के बारे में पूछ रहा है और वह कलीसिया की किस परिस्थिति के बारे में पूछ रहा है—यह तक सोचते हो कि तुम ऐसा करने में बहुत चतुर बन रहे हो—तो तुम इस मामले को कैसे सँभाल रहे हो? क्या तुमने कोई बुद्धिमानी दिखाई है? क्या तुमने दिखाया है कि तुम्हारा आध्यात्मिक कद है? क्या तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी की है? क्या तुमने परमेश्वर के घर के हितों का बचाव किया है और भाई-बहनों की रक्षा की है? अगर तुम इन मामलों पर जरा भी विचार नहीं करते हो तो तुम हर पहलू से स्वार्थी और नीच व्यक्ति हो। मान लो कि तुम्हारे सामने कोई ऐसा व्यक्ति आ जाता है जो दानव है और वह तुमसे पूछता है कि तुम कहाँ से हो और क्या तुम्हारे परिवार में कोई परमेश्वर में विश्वास रखता है; तुम्हें पता है कि वह जानकारी के लिए पूछताछ कर रहा है, इसलिए तुम अपनी वास्तविक परिस्थिति बताए बिना उसे टरका देने के लिए यूँ ही कुछ चीजें कह देते हो और फिर तुम प्रश्नों को घुमा देते हो और उससे पूछते हो, “तुम कहाँ से हो? तुम्हारे परिवार में कौन परमेश्वर में विश्वास रखता है? तुम्हारे अपने शहर में कलीसिया में कलीसियाई जीवन कैसा है? क्या वहाँ सीसीपी विश्वासियों को गिरफ्तार करती है? क्या कभी तुम्हें गिरफ्तार किया गया है?” यह सुनकर सीसीपी एजेंट या जासूस मन ही मन सोचता है, “हमेशा मैं ही प्रश्न पूछता हूँ—ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई मेरी तरफ पलटा हो और उसने मुझसे जिरह की हो। यह व्यक्ति होशियार है!” यह देखकर कि तुम उससे लगातार प्रश्न पूछे जा रहे हो, वह इस बात से चिंतित हो उठता है कि उसकी पहचान उजागर हो जाएगी और इस प्रकार वह विषय बदल देता है। तुम्हें ऐसे व्यक्ति को बहुत ध्यान से देखना चाहिए। अगर तुम्हें पता चलता है कि वह बेहद संदेहजनक है और अस्सी प्रतिशत संभावना है कि वह सीसीपी का जासूस है तो तुम्हें उससे सावधान रहना चाहिए—तुम्हें भाई-बहनों के बारे में रत्ती भर भी जानकारी नहीं देनी चाहिए। अगर भाई-बहन उससे बिल्कुल भी सावधान नहीं रहते हैं और बिना किसी संदेह के इस व्यक्ति को अपनी सारी जानकारी बता देते हैं, किसी भी विषय पर बात करने को तैयार रहते हैं तो यह कलीसिया और भाई-बहनों को आसानी से खतरे में डाल सकता है। इसलिए तुम्हें ऐसे व्यक्ति पर कड़ी नजर रखनी चाहिए—तुम्हें देखना चाहिए कि वह लगातार किसके संपर्क में आता है, लगातार किससे जानकारी हासिल करने का प्रयास करता है, क्या वह चुपके से भाई-बहनों के फोन नंबर देख रहा है या उनके कंप्यूटर पर अकाउंट देख रहा है या लोगों की पीठ पीछे परमेश्वर के घर की अंदरूनी जानकारी ढूँढ़ रहा है। तुम्हें उस पर कड़ी नजर रखनी चाहिए—तुम्हें उसे कामयाब नहीं होने देना चाहिए। तुम्हें भाई-बहनों से भी यह कहने की जरूरत है कि वे इस व्यक्ति से सावधान रहें—अगर वह बार-बार जानकारी के लिए पूछताछ करता है तो उससे बचना चाहिए और उसे यह चेतावनी दे देनी चाहिए कि वह लोगों को परेशान न करे। इसके अलावा तुम्हें यह भी देखना होगा कि वह भाई-बहनों को गुमराह करने के लिए कौन-से पाखंड और भ्रांतियाँ फैला रहा है—अगर तुम्हें ऐसे मुद्दों का पता चलता है तो तुम्हें तुरंत उन्हें सँभालना चाहिए और उन्हें हल करना चाहिए। इस तरह से अभ्यास करना कलीसिया के कार्य का बचाव करना और भाई-बहनों की रक्षा करना है—यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है और यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों की भी जिम्मेदारी है। अगर तुम चुपचाप देखते रहते हो और कुछ नहीं करते हो और उसे इच्छानुसार पूछताछ करने की अनुमति देते हो तो हो सकता है कि कुछ बेवकूफ लोग या आस्था में उथली नींव वाले नए आए लोग उन्हें सबकुछ बता दें। इसके बाद मुख्यभूमि चीन की पुलिस तुरंत उनके परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों को गिरफ्तार करना शुरू कर सकती है जिससे कुछ कलीसियाओं और कुछ भाई-बहनों पर मुसीबत आ सकती है। चाहे किसी भी तरह की परेशानी क्यों न उत्पन्न हो जाए, कुछ भी हो जाए, अगर अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति का पता चलता है जो दानव है, लेकिन तुम तुरंत उपाय नहीं करते हो, उचित रूप से एहतियाती कार्यवाही नहीं करते हो और नतीजतन कुछ बेवकूफ और जाहिल लोग ऐसी बहुत-सी चीजों का भेद खोल देते हैं जिनका भेद नहीं खोला जाना चाहिए और भाई-बहनों की जानकारी प्रकट कर देते हैं जिससे कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों पर मुसीबत आ जाती है तो यह तुम्हारी जिम्मेदारी की उपेक्षा करना है। मुझे बताओ, इस मामले में तुम्हारे कर्तव्य का प्रदर्शन कैसा रहा है? क्या तुमने इसे अच्छी तरह से किया? (नहीं।) अपना कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं करना—क्या यह कोई ऐसा मामला है जिसमें तुमने परमेश्वर को निराश किया है? (हाँ।) यह परमेश्वर को निराश करना है। अगर तुम लोग खुद विदेश में काफी सुरक्षित हो, लेकिन अपनी बेवकूफी के कारण किसी सीसीपी एजेंट से मात खा जाते हो, तो इसके खतरनाक नतीजे होंगे; यह मुख्य भूमि में तुम्हारे अपने शहर की कलीसियाओं और भाई-बहनों पर आपदा ले आएगा। क्या तुम लोग ऐसा कोई नतीजा देखने को तैयार हो? (नहीं।) अगर किसी में जरा-सा भी जमीर और जरा-सी भी मानवता है तो वह इस तरह की चीज होते देखने का अनिच्छुक होना चाहिए; चाहे फिलहाल वह खुद कहीं भी हो, वह मुख्य भूमि में किसी भी भाई-बहन को उत्पीड़न सहते हुए नहीं देखना चाहता। अगर कोई कहता है, “ऐसा है, अब मैं विदेश में सुरक्षित हूँ—कौन गिरफ्तार होता है इससे मुझे क्या! अगर कोई कष्ट सहता है, तो इससे मेरा क्या लेना-देना है? मुझे तो अपने परिवार तक की परवाह नहीं है। मुझे जरा भी स्नेह नहीं है”—तो क्या ऐसे व्यक्ति में मानवता है? (नहीं।) उसमें कोई मानवता नहीं है—ऐसे नहीं सोचना चाहिए। अगर तुम यह दावा करते हो कि तुममें जमीर और मानवता है, तो कम-से-कम तुम्हें मुख्य भूमि में अपने रिश्तेदारों और कलीसिया पर मुसीबत नहीं लानी चाहिए। इसलिए जब तुम दानवों का सामना कर रहे हो तो सिर्फ उनका भेद पहचानने की क्षमता होना पर्याप्त नहीं है—तुम्हें व्यापक रूप से सोचना भी चाहिए। तुम्हें इस बारे में सोचना चाहिए कि किस तरीके से कार्य किया जाए जिससे यह सुनिश्चित हो कि तुम खुद को उजागर न करो और साथ ही यह भी सुनिश्चित हो कि मुख्य भूमि में तुम्हारे माता-पिता, रिश्तेदारों और भाई-बहनों को कोई नुकसान न पहुँचे। तुम्हें कलीसिया के कार्य का बचाव करने और परमेश्वर के घर के द्वार की रखवाली करने की अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। यही वह जिम्मेदारी है जो लोगों को पूरी करनी चाहिए। अगर तुमने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है तो भले ही कुछ गलत हो गया हो क्योंकि ऐसी कुछ चीजें थीं जिन्हें तुम करने में असमर्थ थे या क्योंकि तुम किसी मामले की असलियत नहीं देख पाए थे, फिर भी तुम दोषी नहीं हैं—सबकुछ परमेश्वर के हाथ में है। लेकिन लोगों के परिप्रेक्ष्य से तुम्हें उस जिम्मेदारी के बारे में स्पष्ट होना चाहिए जो लोगों को पूरी करनी चाहिए। तुम्हें इससे जी नहीं चुराना चाहिए और तुम सिर्फ अपने बारे में नहीं सोच सकते—तुम्हें अपने आस-पास के भाई-बहनों का और कलीसिया के कार्य का भी ध्यान रखना चाहिए। क्या अब अभ्यास का यह मार्ग स्पष्ट है? (हाँ।) तुम देखो, अगर इन मामलों पर संगति नहीं की जाती तो तुम सबसे निर्णायक और सबसे महत्वपूर्ण चीजों को नजरअंदाज कर देते और फिर भी तुम्हें लगता कि तुम्हें पता है कि दानवों और शैतानों से कैसे पेश आना है। हकीकत में तुम लोग अभ्यास के सिद्धांतों को नहीं समझते हो—यही तुम लोगों का वास्तविक आध्यात्मिक कद है।

चाहे तुम सत्य, सकारात्मक चीजों और परमेश्वर के प्रति दानवों के रवैये को समझ पाओ या नहीं, कुछ भी हो जाए, उनका सार सत्य से नफरत, सकारात्मक चीजों से नफरत और परमेश्वर से नफरत है। यह पथभ्रष्ट होना है। चाहे यह उनके द्वारा प्रकट किए गए शब्दों से हो या उनके दिलों के विचारों और दृष्टिकोणों से, सत्य के प्रति, सकारात्मक चीजों के प्रति और परमेश्वर के प्रति उनके रवैये को देखना संभव है। इस रवैये को देखा जाए, तो यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि दानव सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं, सकारात्मक चीजों को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं और यकीनन परमेश्वर की आराधना को तो बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। इसलिए वे लोगों से कोई भी सही सुझाव, कथन या प्रोत्साहन स्वीकार नहीं करते हैं। फिर जहाँ तक लोगों के लिए परमेश्वर से सत्य सिद्धांतों, परमेश्वर की ताड़नाओं, परमेश्वर की अपेक्षाओं और परमेश्वर की शिक्षाओं का प्रश्न है, वे इन सबको और भी ज्यादा खारिज कर देते हैं और उन्हें कभी स्वीकार नहीं करते हैं। इसके बजाय वे अपने दिलों में उन्हें जो भी पसंद है, उन्हें जो भी फायदा पहुँचाता है उस पर दाँव-पेंच करते रहते हैं। वे अपने रुतबे, अपनी प्रतिष्ठा, अपने गौरव और अपने गंतव्य पर दाँव-पेंच करते रहते हैं; वे अपने वास्तविक जीवन में जिन भी फायदों का आनंद लेना चाहते हैं, जिन्हें भी प्राप्त करना और अर्जित करना चाहते हैं, उनके लिए दाँव-पेंच करते हैं। यह उनकी आंतरिक दुनिया है और यह इस चीज को दिखाने के लिए पर्याप्त है कि उनका प्रकृति सार दुष्ट है। यह पथभ्रष्ट प्रकृति सार कभी नहीं बदलेगा। शुरू से लेकर अंत तक वे जो कुछ भी करते हैं उसका और उनके सभी विचारों और दृष्टिकोणों का सत्य-वास्तविकता से किसी भी प्रकार का कोई लेना-देना नहीं होता है और परमेश्वर की शिक्षाओं या मानव जीवन के सही मार्ग से कोई लेना-देना नहीं होता है; ये सभी दुष्ट और नकारात्मक चीजें हैं। चाहे तुम दुष्ट सार वाले लोगों के साथ सत्य की कैसे भी संगति क्यों न करो, चाहे तुम प्रेम से कैसे भी उनकी मदद करने का प्रयास क्यों न करो, तुम उन्हें नहीं मना सकते, तुम उनके विचारों और दृष्टिकोणों को नहीं बदल सकते और तुम उनकी जीवनशैली नहीं बदल सकते जिसमें वे हर रोज सिर्फ बुराई के बारे में सोचते हैं। यकीनन तुम उनके उन लक्ष्यों को भी नहीं बदल सकते जिनका वे अनुसरण करते हैं और न ही उस तरीके और दिशा को बदल सकते हो जिसमें वे हर मामले की ब्योरेवार योजना बनाते हैं। ये लोग जो दानव हैं, शुरू से लेकर अंत तक एक जैसे ही रहते हैं। उनका दुष्ट सार नहीं बदलेगा। भले ही उन्होंने परमेश्वर के घर में परमेश्वर के नाम को छोड़े बिना या सच्चे मार्ग को छोड़े बिना हमेशा कर्तव्य किया हो, लेकिन क्योंकि वे सत्य स्वीकार नहीं करते हैं और वे जो कुछ भी सोचते हैं और चिंतन करते हैं वह नकारात्मक चीजों और दुष्ट चीजों से संबंधित होता है, उनके भ्रष्ट स्वभाव संभवतः छोड़े नहीं जा सकते हैं और उनकी मानवता में भी संभवतः कोई बदलाव नहीं आ सकता है। यकीनन एक बात तो तय है : ये लोग संभवतः उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते हैं। जहाँ तक उनके गंतव्य का प्रश्न है, वह स्पष्ट है। हम यहाँ इस पर संगति नहीं कर रहे हैं कि उनका गंतव्य क्या है। हम जिस चीज पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वह उनके प्रकृति सार का भेद पहचानना और उनका गहन-विश्लेषण करना है।

दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों के पथभ्रष्ट प्रकृति सार की पहली अभिव्यक्ति—“मनहूस और असामान्य होना”—की अब पूरी तरह से संगति हो चुकी है। हमने मुख्य रूप से जिस पर संगति की, वह विभिन्न रवैये और अभिव्यक्तियाँ थीं जो उनके सकारात्मक चीजों से पेश आने के तरीके में होती हैं और साथ ही वह वे विचार और दृष्टिकोण थे जिन्हें वे अपने दिलों में संजोते हैं और थामे रहते हैं। चाहे ये उनके ठोस प्रकाशन और अभिव्यक्तियाँ हों या उनके दिलों की गहराइयों में छिपी वे चीजें हों जिन्हें वे उजागर करने की हिम्मत नहीं करते हैं, यह सबकुछ साबित करता है कि वे आम भ्रष्ट मनुष्य नहीं हैं। उनमें आम भ्रष्ट मनुष्यों का जमीर और विवेक नहीं है। यह भी कहा जा सकता है कि इन लोगों में आम भ्रष्ट मनुष्यों की मानवता नहीं है। स्पष्ट रूप से कहें तो इन लोगों में कोई मानवता है ही नहीं। चाहे उनके विचार और दृष्टिकोण कितने भी दुष्ट क्यों न हों, चाहे उनके कथन, क्रियाकलाप, व्यवहार और चाल-ढाल कितनी भी दुष्ट क्यों न हो और मानवता के साथ कितनी भी असंगत क्यों न हो, उनमें इसकी जरा-सी भी जागरूकता नहीं है। वे कभी भी अपने प्रकृति सार को दुष्ट, सत्य के विपरीत या उसके प्रति शत्रुतापूर्ण निरूपित नहीं करते हैं। चाहे तुम उनके साथ कैसे भी संगति क्यों न करो, वे तब भी अपने भ्रष्ट स्वभावों के दायरे में ही जीते हैं। आपस में मेल-जोल रखते समय ये लोग बहुत अच्छी तरह से मिलजुलकर रहते हैं और अपनी मलिनता में भी एक जैसी सोच रखते हैं। लेकिन अपने दिलों में वे उन लोगों के प्रति बेहद प्रतिकर्षित होते हैं और उनसे नफरत करते हैं जो सत्य समझते हैं और उसका अनुसरण करते हैं।

पिछली बार दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों के पथभ्रष्ट प्रकृति सार पर चर्चा करते समय हमने उनकी “लम्पटता” और “यौन उत्तेजकता” का जिक्र किया था, जो देह की कामवासना की दो प्रकार की अभिव्यक्तियाँ हैं। इन दोनों के अलावा “लम्पटता” और “यौन उत्तेजकता” से संबंधित एक और पहलू है, जो मानवता का एक प्रकार का बाहरी व्यवहार या जीवन यापन करना है, जो कि “व्यभिचारिता” है। “लम्पटता” और “व्यभिचारिता” की आमतौर पर जोड़ी बनाई जाती है। क्या तुम्हें “व्यभिचारिता” का मतलब पता है? (ऐसा व्यवहार और आचरण जो स्वच्छंद और असंमयित हो और ओछेपन से दूसरों पर डोरे डालना हो।) “व्यभिचारिता” का मतलब है आसक्ति—इसका मतलब है स्वच्छंद और असंयमित होना। ये तीन पहलू देह की कामवासना के लिहाज से इस प्रकार के व्यक्ति की दुष्ट अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करने के लिए पर्याप्त होने चाहिए। वयस्कों को लम्पटता, यौन उत्तेजकता और व्यभिचारिता की अभिव्यक्तियों को समझने में समर्थ होना चाहिए। यह अमूर्त नहीं है क्योंकि ऐसे मामले और ऐसे लोग रोजमर्रा के जीवन में आमतौर पर देखे जाते हैं और सुनने में आते हैं। तो ऐसे लोगों की मुख्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? जब स्त्री और पुरुष में रिश्तों की बात आती है तो वे असंयमित होते हैं, उनकी कोई सीमा नहीं होती है और उनमें ईमानदारी या शर्म का कोई बोध नहीं होता है। अपनी कामवासना की बात आने पर वे विशेष रूप से आसक्त होते हैं, उस पर लगाम नहीं लगाते हैं और उनमें कोई संयम नहीं होता है। साथ ही अपनी कामवासना को तुष्ट करने के बारे में उन्हें जरा भी शर्म महसूस नहीं होती है। चाहे उनकी उम्र कितनी भी हो, उनका लिंग कुछ भी हो या उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, उन्हें विपरीत लिंग में विशेष रूप से दिलचस्पी होती है और वे उन पर विशेष ध्यान देते हैं। जब उनकी मुलाकात लोगों के किसी समूह से होती है तो वे विपरीत लिंग के उन सदस्यों पर ध्यान देते हैं जिनमें उनकी दिलचस्पी होती है। यह ध्यान सिर्फ उन पर सामान्य से ज्यादा देर तक नजर डालना, उनसे गपशप करना या उनसे सामान्य रूप से मिलना-जुलना नहीं है—यह ऐसा है कि वे स्त्री और पुरुष के बीच कामवासना में फँस जाते हैं और रूमानी रिश्ते बना लेते हैं। जब उस व्यक्ति की बात आती है जिसे वे पसंद करते हैं, चाहे उस व्यक्ति की उम्र कितनी भी हो और चाहे दूसरा पक्ष सहमति दे या न दे, जब तक वह व्यक्ति उन्हें आकर्षक लगेगा, तब तक वे उस पर डोरे डालने की पहल करते रहेंगे, यहाँ तक कि दूसरे पक्ष का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ असामान्य क्रियाकलाप या व्यवहार करने की हद तक पहुँच जाएँगे। उदाहरण के लिए, वे समय-समय पर दूसरे व्यक्ति के लिए कुछ बढ़िया पकवान बनाएँगे; छुट्टियों में उसे तोहफे देंगे; चाहे कोई कारण हो या न हो, वे दूसरे व्यक्ति को संदेश भेजेंगे—सुबह पूछेंगे, “क्या तुम उठ गई?” और रात को पूछेंगे, “क्या तुमने शावर ले लिया है?” कुछ दिनों बाद वे कहेंगे, “कुछ दिनों से मौसम ठंडा चल रहा है—ध्यान से कपड़ों की कई परतें पहनना और ठंड मत लगा लेना। अगर तुम्हें किसी भी चीज की जरूरत हो तो तुम मुझसे मदद माँग सकती हो!” वे अक्सर चिंता व्यक्त करते हैं और इसका उपयोग दूसरे व्यक्ति को परेशान करने के बहाने के रूप में करते हैं। इस तरह के लोग कभी भी सिर्फ एक-दो या दो-तीन लोगों पर डोरे नहीं डालते हैं—जो भी उन्हें आकर्षक लगता है, वे उसी पर डोरे डालने लगते हैं। वे जिसे भी देखते हैं, उसे अपना दिल दे बैठते हैं; जैसे ही उन्हें कोई दिलकश लगता है या किसी के बारे में उन्हें अच्छा महसूस होता है, उनमें तुरंत कामुक विचार पैदा होने लगते हैं और वे उस व्यक्ति को पटाने का प्रयास करते हैं। चाहे वे किसी भी समूह में या किसी भी परिवेश में हों, वे इस मामले को कभी नहीं भूलते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, हमेशा तीन, पाँच, एक दर्जन या उससे भी ज्यादा विपरीत लिंग के उन दोस्तों या विश्वासपात्रों को अपना निशाना बनाते हैं जिन्हें वे पसंद करते हैं। अगर वे शारीरिक संपर्क बना पाते हैं तो वे इसे एक रूमानी रिश्ता शुरू करने का लक्ष्य हासिल करना मानते हैं। और अगर यह अभी तक रूमानी रिश्ते के स्तर तक नहीं पहुँचा है तो बस इस तरह से दूसरों पर डोरे डालना ही उन्हें बहुत शानदार महसूस करवाता है—उन्हें अपने दिन मधुर और संतोषजनक लगते हैं। अगर परिवेश इसकी अनुमति नहीं देता है और वे विपरीत लिंग के लोगों पर डोरे नहीं डाल पाते हैं तो वे परेशान हो जाते हैं। अगर कोई उन्हें याद दिलाता है कि ऐसा व्यवहार अनुचित है तो वे अपने दिलों में रंजिश रखते हैं। अगर कोई उन्हें बेतहाशा लोगों पर डोरे डालने से रोक देता है तो वे अपने दिलों में प्रतिरोधी और विरोधी हो जाते हैं और यह तक सोचते हैं, “यह मेरा हक है—किस कारण से तुम मुझे रोकने के काबिल हो? मैं जो कर रहा हूँ वह मेरी आजादी है! मैं न तो कानून तोड़ रहा हूँ और न ही कोई गुनाह कर रहा हूँ, तो तुम कौन होते हो मुझे काबू में रखने का प्रयास करने वाले?” चाहे परिवेश कैसा भी हो, इस तरह के व्यक्ति को अपना मन लगाए रखने के लिए हमेशा किसी न किसी तरह के मनोरंजन की जरूरत महसूस होती है—उसे समय बिताने के लिए, अपने जीवन को भरने और उसे और भी सुखद बनाने के लिए हमेशा कुछ विपरीत लिंग के दोस्तों या यौन साथियों की जरूरत महसूस होती है। नहीं तो उसे लगता है कि उसका जीवन खाली और ऊबाऊ है और उसमें कोई रोचकता नहीं है। कुछ लोग लगातार डोरे डालने के बाद खुद को रोक नहीं पाते हैं और ऑनलाइन पोर्नोग्राफी देखने चले जाते हैं, अपने देह की कामवासना में स्वच्छंद और असंयमित होकर जीते हैं और जब तक स्थितियाँ अनुमति देती हैं, तब तक वे कुछ भी करने में सक्षम होते हैं। दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोग, चाहे अवसर या परिवेश कोई भी हो, चाहे उनका जीवन कितना भी कठिन हो, चाहे उन पर काम का कितना भी बड़ा बोझ हो और चाहे परिवेश इसकी अनुमति दे या न दे, हमेशा कामवासना को तुष्ट करने और विपरीत लिंग के साथ संपर्क बनाने और उस पर डोरे डालने के अवसर तलाशते रहते हैं, अपनी कामवासना को पूरी तरह से संतुष्ट करते हैं। अगर उनकी देह की कामवासना संतुष्ट नहीं की जा सकती है तो उनके मन की इच्छा को संतुष्ट करने से भी काम चल जाएगा। इसे ही पथभ्रष्ट होना कहते हैं—वे बहुत ही पथभ्रष्ट होते हैं। कुछ लोग अब तक बूढ़े हो चुके हैं, उनके बच्चे हैं जो शादीशुदा हैं और उनके अपने परिवार हैं, लेकिन ये लोग अब भी अपनी कामवासना के प्रति बेहद आसक्त हैं और उसमें असंयमित हैं, उनमें ईमानदारी या शर्म का बोध बिल्कुल नहीं है। जब वे विपरीत लिंग के किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो उन्हें पसंद है तो वे उसके साथ अकेले रहने के अवसर पैदा करने का हर संभव तरीका सोचते हैं—फिर वे दूसरे व्यक्ति का हाथ पकड़ते हैं, उसे गले लगाते हैं या उसे छूते हैं और कुछ इश्कबाजी वाली, चुलबुली टिप्पणियाँ करते हैं या कुछ उत्तेजक बातें कहते हैं। ऐसा करने से वे धीरे-धीरे अंत में विपरीत लिंग के कुछ लोगों को परेशान कर डालते हैं। यह लम्पट होना है। इस तरह का व्यक्ति किस हद तक लम्पट होता है? जब वह विपरीत लिंग के किसी ऐसे व्यक्ति को देखता है जो आकर्षक है या जिसका शारीरिक गठन अच्छा है तो उसके मन में कामुक विचार पैदा होने लगते हैं। यहाँ तक कि विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति को सिर्फ मुलायम, दिलकश और अपेक्षाकृत मधुर आवाज में बोलते हुए सुनकर भी उसके मन में कामुक विचार हिलोरें मार सकते हैं। एक बार जब ये कामुक विचार हिलोरें मारने लगते हैं तो ऐसा नहीं है कि वह कभी-कभार ही इन चीजों के बारे में सोचता है—बल्कि वह इनके बारे में अक्सर सोचता है। वह खाते हुए, कार्य करते हुए, यहाँ तक कि सपने देखते हुए भी उसके बारे में सोचता रहता है, हर रोज उसका मन इन कामुक विचारों से लबालब भरा रहता है। क्योंकि उसमें लम्पटता का दुष्ट सार है, इसलिए वह किसी भी संयम के बिना अपनी देह की कामवासना को तुष्ट कर सकता है। यहाँ तक कि जब वह किसी दौलत और रुतबे वाले अच्छे परिवार से किसी व्यक्ति को देखता है—कोई अमीर जवान महिला या दौलतमंद पत्नी या कोई लंबा, अमीर और सुंदर पुरुष या कोई दौलतमंद व्यापारी—तो भी उसके मन में कामुक विचार पैदा होने लगते हैं। जरा देखो कि ऐसे लोग कितनी बुरी तरह से लम्पट होते हैं! और इससे भी बदतर मामले हैं। कलीसिया में एक भाई था जो अच्छा गाता था। वह किसी किस्म का “सितारा-स्तर” का गायक नहीं था—बस उसकी आवाज कुछ हद तक सुरीली थी। जाहिर तौर पर, उसका गाना सुनने के बाद कुछ महिलाओं के मन में उसके लिए अच्छी भावनाएँ पैदा हो गईं और वे उससे शादी करना चाहने लगीं। इन महिलाओं ने कभी यह तक देखा नहीं था कि यह भाई कैसा दिखता है। उन्हें नहीं पता था कि उसकी उम्र कितनी है, उसका व्यक्तित्व कैसा है, उसने किस स्तर तक शिक्षा प्राप्त की है, उसकी काबिलियत कैसी है या परमेश्वर में उसका विश्वास कैसा है। उन्होंने इनमें से किसी भी चीज पर विचार नहीं किया, लेकिन फिर भी वे उससे शादी करना चाहती थीं, उसकी बस आवाज सुनकर ही उनके मन में कामुक विचार हिलोरें मारने लगते थे। मुझे बताओ, क्या ऐसे दानव पथभ्रष्ट प्रकृति के नहीं हैं? सामान्य व्यक्ति किसी को अच्छा गाते हुए सुनकर ज्यादा-से-ज्यादा जरा-सी ईर्ष्या महसूस करेगा, लेकिन वह उससे शादी करने के बारे में कभी नहीं सोचेगा। अगर वह सचमुच किसी से शादी करना चाहता तो वह ऐसा फैसला लेने से पहले उस व्यक्ति के चरित्र और पारिवारिक स्थिति को जान लेता, जैसे कि उसकी उम्र कितनी है, वह कैसा दिखता है, उसका चरित्र कैसा है, उसका परिवार कैसा है—अगर सभी पहलू संतोषजनक होते, सिर्फ तभी वह उससे शादी करने पर विचार करता। लेकिन जो लोग दानव होते हैं वे अलग होते हैं—कुछ महिलाऐं किसी पुरुष को अच्छा गाते हुए सुनने के बाद आगे बढ़ना और उससे शादी करना चाहती हैं; कुछ पुरुष किसी आकर्षक महिला को देखकर आगे बढ़ना और उससे शादी करना चाहते हैं। क्या ऐसे लोग डरावने नहीं हैं? वे डरावने भी हैं और घिनौने भी! जब भी वे किसी रुतबे वाले, ज्ञानी, वाक्पटु या किसी विशेष खूबी वाले व्यक्ति को देखते हैं या किसी सुंदर या सजीले व्यक्ति को देखते हैं तो उनके मन में कामुक विचार पैदा होने लगते हैं। जब वे ऐसे लोगों को देखते हैं तो वे उन्हें बिना पलकें झपकाए आशिक नजर से देखते रहते हैं; उनकी आँखें स्थिर रहती हैं, लेकिन उनके मन बहुत सक्रिय होते हैं और उनकी कामवासना हिलोरें मार रही होती है—यह मन में कामुक विचार होना है। जब भी कोई व्यक्ति विपरीत लिंग के लोगों को बिना नजरें हटाए आशिक नजर से लगातार देखता रहता है—और कुछ तो ऐसे भी होते हैं जिनकी आँखों से एक दुष्ट भाव प्रकट हो जाता है या वे मुँह खोले हुए लार टपकाते रहते हैं—यह मन में कामुक विचार होना है। एक बार जब उनके कामुक विचार हिलोरें मारने लगते हैं तो वे दूसरों को किसी न किसी बहाने से छूने लगते हैं। इसे पथभ्रष्ट होना कहते हैं। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, जब तक उनकी दृश्य वासना, श्रवण वासना या देह की कामवासना जगी रहेगी तब तक उनके मन में कामुक विचार आते रहेंगे—ऐसे लोग दानव होते हैं। क्या दानवों की कामवासना मानवता के जमीर और विवेक द्वारा सीमित या संयमित होती है? यह संयमित नहीं होती, इसलिए उनकी कामवासना लगातार उमड़ती रहती है और वे लगातार व्यभिचारिता की अभिव्यक्तियों का प्रदर्शन करते रहते हैं—वे विशेष रूप से आसक्त होते हैं। उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती कि उनके आस-पास कितने लोग हैं, उनकी अपनी उम्र क्या है या दूसरा पक्ष उन्हें पसंद करता है या नहीं या उसे वे घिनौने लगते हैं या नहीं—जब तक यह कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे वे पसंद करते हैं तब तक उनके मन में कामुक विचार आते रहेंगे और वे फंतासी में लिप्त रहेंगे, अपनी कामवासना को आखिरी हद तक संतुष्ट करते रहेंगे। क्या यह घिनौना नहीं है? ऐसे लोग बेहद लम्पट होते हैं। भले ही उन्हें विपरीत लिंग के साथ संबंध बनाने का मौका न भी मिले, तो भी वे दूसरों पर डोरे डालना चाहते हैं। इस व्यवहार की अभिव्यक्तियाँ हैं उनका तुम्हें आँखों से इशारे करके, तुमसे संपर्क बनाने और तुम्हारे करीब आने का हर संभव तरीका सोचकर—तुम्हारे पास से गुजरते समय जानबूझकर तुम्हारे हाथ, कंधे या पीठ को धीरे से छू लेना—और चुलबुली चीजें कहकर इश्कबाजी के संकेत भेजना, जो सबकुछ जानबूझकर किया जाता है। इससे पता चलता है कि उनके दिल पहले से ही वासना से भरे हुए हैं। सामान्य वयस्क विपरीत लिंग के सदस्यों से मिलते-जुलते समय सीमाओं, संयम और मर्यादाओं का पालन करते हैं। चाहे कामवासना, विचार, बोली, शारीरिक संपर्क या लोगों के बीच शारीरिक दूरी जैसी चीजों का मामला हो, ये सबकुछ उनके जमीर और विवेक द्वारा शासित और संयमित होता है। लेकिन लम्पट और व्यभिचारी लोग ऐसे नहीं होते हैं। चाहे कोई भी अवसर हो, आस-पास कितने भी लोग हों या उस समय परिस्थिति कैसी भी हो और उनकी अपनी उम्र और वैवाहिक स्थिति चाहे जो भी हो, चाहे दूसरा पक्ष इच्छुक हो या न हो, चाहे दूसरा पक्ष उनके प्रति प्रतिकर्षित महसूस करता हो, वे फिर भी वही करते हैं जो वे चाहते हैं, बेहूदगी से अपनी कामवासना को तुष्ट करते रहते हैं। इसे ही व्यभिचारी होना कहते हैं। ऐसे लोग किसी भी चीज से संयमित नहीं होते हैं—यहाँ तक कि वे नैतिक सीमाओं का भी पालन नहीं करते हैं; वे पूरी तरह से आसक्त रहते हैं। और तो और, अगर विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति की त्वचा गोरी, चिकनी और नाजुक हो तो वे अक्सर उसे घूरते रहते हैं, चाहे जानबूझकर या अनजाने में। अगर विपरीत लिंग का कोई व्यक्ति लंबा और छरहरे बदन वाला है तो वे चुपके से पीछे से देखते रहते हैं, बिना नजरें हटाए उसे आशिक नजर से देखते रहते हैं। यह कामवासना से भरा होना है। क्या ऐसे लोग पथभ्रष्ट नहीं हैं? (हाँ।) ऐसे कुछ नाबालिग या शादीशुदा वयस्क भी हैं, जो अक्सर पोर्नोग्राफी या मिस वर्ल्ड जैसी सौंदर्य प्रतियोगिताएँ देखते हैं जिनमें महिलाएँ बहुत अंग प्रदर्शक कपड़े पहनती हैं—जो उनकी दृश्य वासना को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त होता है। जितना ज्यादा वे इस तरह से लिप्त रहते हैं, उतना ही उनकी कामवासना और कामुक विचारों पर लगाम लगाना और उन्हें काबू में रखना मुश्किल होता जाता है। क्या यह दानवों की अभिव्यक्ति है? (हाँ।) क्या सामान्य लोग इस तरीके से जीएँगे? क्या वे इस तरीके से आचरण करेंगे? (नहीं।) कुछ पूर्वी पुरुष अपेक्षाकृत रूढ़िवादी होते हैं और जब वे पश्चिम आते हैं और कई महिलाओं को अंग प्रदर्शक कपड़े पहने देखते हैं तो वे जिज्ञासु हो जाते हैं और कुछ ज्यादा बार नजर डालना चाहते हैं, लेकिन कुछ समय बाद जब उन्हें इसकी आदत हो जाती है तो वे अब और जिज्ञासु नहीं रहते हैं—यह एक सामान्य अभिव्यक्ति है। ऐसे कुछ अविवाहित लोग भी हैं जो कामवासना के मामलों में थोड़े जिज्ञासु होते हैं या जिनमें कभी-कभी किसी वस्तुनिष्ठ परिवेश के कारण कुछ दुष्ट वासना पैदा हो जाती है। ये सभी सामान्य शारीरिक प्रतिक्रियाएँ हैं—इसे पथभ्रष्ट होना नहीं कहा जा सकता। लेकिन जो लोग दानव होते हैं, वे आम लोगों जैसे नहीं होते हैं। उनकी पथभ्रष्टता सामान्य लोगों से ज्यादा होती है—यह विशेष रूप से असामान्य है। ऐसा नहीं है कि वे कामवासना के बारे में सिर्फ जिज्ञासु होते हैं या कि उनमें सामान्य शारीरिक प्रतिक्रियाएँ या जरूरतें होती हैं—वे स्वच्छंद और कामासक्त होते हैं। जब वे दुष्ट वासना में लिप्त होते हैं तो उन्हें बिल्कुल शर्म नहीं आती है। इसे ही पथभ्रष्ट होना कहते हैं। वे किस हद तक पथभ्रष्ट होते हैं? विपरीत लिंग के व्यक्ति की बस त्वचा, आँखें, शारीरिक गठन या रूप-रंग देखकर—या सिर्फ उसकी आवाज सुनकर भी—उनके मन में कामुक विचार पैदा होने लगते हैं और फिर वे दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आने या उसके करीब आने का हर संभव मौका पैदा करते हैं और अपनी कामवासना को संतुष्ट करने के लिए क्रियाकलाप करने के लिए इससे भी आगे चले जाते हैं। इसे ही पथभ्रष्ट होना कहते हैं।

पथभ्रष्ट होने की एक और अभिव्यक्ति यह है कि ये लोग, चाहे वे किसी भी परिवेश में हों, हमेशा विपरीत लिंग के विभिन्न लोगों से घिरे रहते हैं। इस तरह का व्यक्ति एक ही समय में विपरीत लिंग के कई सदस्यों पर डोरे डालेगा और अक्सर एक से ज्यादा लोगों के साथ अस्पष्ट रिश्ते बनाए रखेगा। अस्पष्ट रिश्ते का क्या मतलब है? यह एक ऐसा रिश्ता है जो दोस्ती जैसा तो है, लेकिन रूमानी रिश्ते जैसा भी है—कोई भी स्पष्ट रूप से नहीं बता सकता कि वास्तव में उनमें किस तरह का रिश्ता है। वह विपरीत लिंग के साथ कोई स्पष्ट सीमाएँ नहीं रखता है; उसके रिश्ते विशेष रूप से अस्पष्ट होते हैं—इसमें लगातार इश्कबाजी चलती रहती है और चीजें संदेहास्पद और अस्पष्ट होती हैं। क्या ये अभिव्यक्तियाँ लम्पट प्रकृति से शासित होती हैं? (हाँ।) मानव संबंधों की नैतिकता और आचार-विचार के लिहाज से आज की दुनिया के बुरे चलन इस तरह की घटनाओं की आलोचना भी अब और नहीं करते हैं। लोग इसे सक्षम होना, आधुनिक होना कहते हैं—वे इसे यौन रूप से मुक्त होना कहते हैं। इसलिए कुछ लोग इस तरह के विचारों और दृष्टिकोणों को कलीसिया में ले आते हैं। वे मानते हैं, “चाहे मैं विपरीत लिंग के कितने भी लोगों के साथ रूमानी रूप से जुड़ा रहूँ, यह मेरी आजादी है। अब तो कानून भी इसकी निंदा नहीं करता है, इसलिए मुझे यह चुनने का हक है कि मैं विपरीत लिंग के कितने दोस्तों के साथ रूमानी रूप से जुड़ता हूँ, मुझे यह चुनने का हक है कि मैं अपनी कामवासना को कैसे सँभालता हूँ। मुझे अपने साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए—मुझे अपनी कामवासना को पूरी तरह से मुक्त करने की जरूरत है।” क्या यह एक दुष्ट दलील नहीं है? (हाँ।) चाहे कितने भी लोग समाज के चलन द्वारा प्रचारित राय से सहमत हों या उनकी हिमायत करते हों, चाहे कितने भी लोग उनका अभ्यास करते हों, परमेश्वर के घर में इस तरह के पाखंडों और भ्रांतियों को “पथभ्रष्ट” कहा जाता है और जो लोग इस तरह के पाखंडों और भ्रांतियों को पकड़े रहते हैं, उन्हें भी “पथभ्रष्ट” के रूप में निरूपित किया जाता है—विशिष्ट रूप से कहें तो वे “लम्पट” और “व्यभिचारी” हैं। क्या यह निरूपण सटीक है? (हाँ।) लोगों के शरीर के हर प्रकार्य और सहज प्रवृत्ति के लिए मानवता पर आधारित विनियम के मूलभूत स्तर की जरूरत होती है। और यह विनियम किस पर निर्भर करता है? यह लोगों के जमीर और विवेक पर निर्भर करता है। व्यक्ति की शारीरिक जरूरतें और उसकी कामवासना जमीर और विवेक में ईमानदारी और शर्म के बोध द्वारा उचित रूप से नियंत्रित होनी चाहिए। अगर तुम इसे नियंत्रित या संयमित नहीं करते हो, बल्कि कामवासना में लिप्त रहते हो तो उसे व्यभिचारी होना कहा जाता है, उसे लम्पट होना कहा जाता है। अगर तुममें ऐसी अभिव्यक्तियाँ हैं तो फिर तुम पथभ्रष्ट हो। पथभ्रष्टता नकारात्मक चीज है—यह सकारात्मक चीज बिल्कुल नहीं है। वह इसलिए क्योंकि यह लोगों की मानवता में निहित ईमानदारी और शर्म के बोध की सीमाओं से परे चली जाती है, परमेश्वर द्वारा लोगों से अपेक्षित सामान्य तर्क शक्ति की सीमाओं से परे चली जाती है; यह मानवता की सीमाओं को लाँघ जाती है और भाई-बहनों के सामान्य जीवन में गड़बड़ और नुकसान शामिल करती है। इसलिए पथभ्रष्टता को पूरी तरह से किसी दुष्ट चीज, किसी नकारात्मक चीज के रूप में निरूपित किया गया है; यह बिल्कुल भी सकारात्मक चीज नहीं है। कलीसिया, परमेश्वर का घर यौन मुक्ति को बिल्कुल भी बढ़ावा नहीं देता है। परमेश्वर का घर किस चीज को बढ़ावा देता है? (गरिमापूर्ण और सभ्य होना और सामान्य मानवता का जीवन यापन करना) परमेश्वर का घर संतों की मर्यादा होने और जमीर और विवेक से आचरण करने को बढ़ावा देता है। कम-से-कम जब कामवासना और शारीरिक जरूरतों की बात आती है तो व्यक्ति में ईमानदारी और शर्म का बोध होना ही चाहिए। यानी अगर तुम शादी के रिश्ते में प्रवेश करना चाहते हो, अगर तुम एक सामान्य रूमानी रिश्ता रखना चाहते हो तो यह शादी के उन सिद्धांतों के अनुसार होना चाहिए जो परमेश्वर ने लोगों के लिए विहित किए हैं—इसमें अनाचार, व्यभिचार या लम्पटता शामिल नहीं हो सकती है। तुम समझ रहे हो? (हाँ।)

अभी-अभी हमने जो लोग दानव हैं उनकी पथभ्रष्टता की कुछ अभिव्यक्तियों पर संगति की। क्या यह अच्छा है कि हमने इस तरह के विषय पर संगति की है ताकि तुम्हें भेद पहचानने की कुछ क्षमता प्राप्त करने में मदद मिले? (हाँ।) चाहे अभिव्यक्ति कुछ भी हो, अगर यह सामान्य लोगों के भ्रष्ट स्वभावों के दायरे से बढ़ जाती है या लोगों की जन्मजात प्रकृति और प्रवृत्तियों के दायरे से परे चले जाती है तो यह असामान्य है—यह दानवों की एक अभिव्यक्ति है। हमने अभी-अभी जो संगति की है, उनमें जिन लोगों के विचार और व्यवहार विशेष रूप से मनहूस और असामान्य हैं उनके अलावा एक और तरह का व्यक्ति है जो हो सकता है कि उन स्पष्ट रूप से मनहूस और असामान्य अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित न करे, लेकिन जिसकी स्पष्ट अभिव्यक्ति विशेष रूप से लम्पट और व्यभिचारी होना है। इन स्पष्ट अभिव्यक्तियों का होना यह भी साबित करता है कि उसमें दानवों के पथभ्रष्ट सार का एक पहलू है। तो क्या यह निश्चितता से कहा जा सकता है कि जिन लोगों में ये स्पष्ट अभिव्यक्तियाँ होती हैं वे दानव होते हैं? (हाँ।) वे किसी भी समय अपनी कामवासना को तुष्ट करते हैं, उनके दिल दुष्ट वासना से लबालब भरे होते हैं और उन्हें विशेष रूप से देह की कामवासना से संबंधित मामलों में दिलचस्पी होती है—उनकी दिलचस्पी सामान्य लोगों की शारीरिक जरूरतों से परे चली जाती है। यानी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी उम्र क्या है, वे किस लिंग के हैं या उनकी वैवाहिक स्थिति क्या है, उनके देह की कामवासना की अभिव्यक्तियाँ सामान्य लोगों की अभिव्यक्तियों से कहीं ज्यादा होती हैं और ये सामान्य लोगों की जरूरतों से भी कहीं ज्यादा होती हैं। इसके लिए यह कहना ही काफी है कि इस क्षेत्र में उनकी अभिव्यक्तियाँ सामान्य नहीं होती हैं। उन्हें निरूपित करने के लिए दो शब्दों का उपयोग करें तो वे विशेष रूप से “लम्पट” और “व्यभिचारी” होते हैं। यानी उनकी शारीरिक जरूरतें बेहद असामान्य होती हैं। जब भी वे विपरीत लिंग के किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जिसके पास किसी क्षेत्र में एक निश्चित खूबी या अनुकूल जन्मजात स्थिति है तो उनके मन में कामुक विचार पैदा हो सकते हैं और वे कामवासना मुक्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जब वे विपरीत लिंग के किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जिसके दाँत चमकदार और सीधे हैं और जिसकी मुस्कान विशेष रूप से सुंदर और मधुर है या जिसके बाल या आँखें विशेष रूप से सुंदर हैं तो उनके मन में कामुक विचार पैदा हो सकते हैं। चाहे विपरीत लिंग का कोई भी अंग उन्हें देखने में अच्छा या सुंदर लगे, उनके मन में कामुक विचार पैदा हो सकते हैं—और वे कामवासना मुक्त करने का उपयोग दूसरे व्यक्ति के प्रति अपना लगाव और सराहना व्यक्त करने के तरीके के रूप में करते हैं। क्या यह घिनौना नहीं है? यह बेहद घिनौना है! कुछ दुष्ट लोग जब भी विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति को चेहरे पर कोई विशेष भाव बनाते हुए देखते हैं, जैसे बोलते समय उसका अपनी भौंहें थोड़ी ऊपर उठाना या मुस्कुराते समय उसके गालों पर गड्ढे पड़ना या विशेष रूप से मोहक निगाह प्रदर्शित करना, तो उनके मन में कामुक विचार पैदा हो जाते हैं। उनके मन में कामुक विचारों के हिलोरें मारने की आवृत्ति और जितनी बार ऐसा होता है उसकी संख्या समझ से परे और कल्पना से परे है। सामान्य लोगों को यह बात चकरा देती है : “अगर कोई अच्छा दिखता है तो उस पर एक-दो बार ज्यादा नजर डालना ठीक है—लेकिन इसके कारण कामुक विचार कैसे पैदा हो सकते हैं और कामवासना कैसे मुक्त हो सकती है? क्या यह विकृत नहीं है?” जिन चीजों के बारे में सामान्य लोग सोचते हैं कि वे कामुक विचार नहीं उकसाएँगी, उनसे दुष्ट लोगों में कामुक विचार पैदा हो सकते हैं और उनकी वासना मुक्त हो सकती है और सामान्य लोग इसे समझ नहीं पाते हैं। इसे पथभ्रष्ट होना कहते हैं। सादे शब्दों में, इसे विकृत होना, कामविकृत होना कहते हैं। यहाँ तक कि कुछ स्त्रियाँ जब किसी सुविकसित माँसपेशियों, सुस्पष्ट नैन-नक्श और लंबे कदकाठी वाले पुरुष को देखती हैं, तब उनके भी मन में कामुक विचार पैदा हो सकते हैं। या जब वे किसी ऐसे पुरुष को देखती हैं जिसके पास कुछ कौशल हैं, कुछ क्षमता है और इसके अलावा दौलत और रुतबा भी है तो उनके मन में कामुक विचार लगातार हिलोरें मारने लगते हैं। वे सिर्फ उसकी सराहना नहीं करती हैं या यह नहीं सोचती हैं कि वह सभ्य है, उसके लिए जरा-सा लगाव महसूस नहीं करती हैं और उसके साथ रूमानी रूप से जुड़ना या उसके साथ रिश्ता बनाना नहीं चाहती हैं—बल्कि उनके मन में उसके बारे में कामुक विचार लगातार हिलोरें मारते रहते हैं। मुझे बताओ, क्या यह घिनौना नहीं है? क्या यह पथभ्रष्ट नहीं है? (हाँ।) कामुक विचारों का बार-बार हिलोरें मारना असामान्य है—यह पथभ्रष्ट है।

हम दानवों से पुनर्जन्म लिए हुए लोगों में लम्पटता और व्यभिचार की अभिव्यक्तियों पर अपनी संगति यहीं समाप्त करेंगे। अब चलो हम “यौन उत्तेजकता” के बारे में बात करें। यौन उत्तेजकता वास्तव में लम्पटता और व्यभिचार दोनों से संबंधित है; यह बस एक ही चीज के बारे में अलग परिप्रेक्ष्य से बात करने का एक तरीका है। इसका मतलब है कि किस तरह से कुछ लोग विपरीत लिंग के सदस्यों को पटाने के लिए और उन पर फायदेमंद प्रभाव डालने के लिए अक्सर उनके सामने अपने लुभावना जादू का दिखावा करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ महिलाएँ चटक लाल और कामोत्तेजक लिपस्टिक लगाना पसंद करती हैं, मेकअप से अपनी आँखों को बहुत मनमोहक बनाती हैं और यहाँ तक कि काफी बूढ़ी होने के बावजूद लाली भी लगाती हैं। पोशाक चुनते समय वे हमेशा कामुक, दिलकश और मंत्रमुग्ध करने लायक बनने पर ध्यान देती हैं; बोलते समय वे सुनिश्चित करती हैं कि वे ऐसी नखरेबाज या प्यारी बनें जो विपरीत लिंग को मोहित कर सके वगैरह-वगैरह। कुछ पुरुष अक्सर खुद को ऐसे मजबूत बाँहों वाले हीरो के रूप में पेश करते हैं जिन पर महिलाऐं भरोसा कर सकें। वे अक्सर महिलाओं के सामने अपनी माँसपेशियों को मोड़ते हैं, खुशी-खुशी अपनी कमीज उतारकर अपने पेट की माँसपेशियाँ दिखाते हैं, विपरीत लिंग को आकर्षित करने के लिए इन उपायों का उपयोग करते हैं। उनका लक्ष्य सिर्फ विपरीत लिंग के सदस्यों पर अपनी अच्छी छाप छोड़ना या किसी को डेट पर ले जाने के लिए ढूँढ़ना नहीं है, बल्कि विपरीत लिंग के सदस्यों को पटाना, उनकी दिलचस्पी जगाना और फिर उन्हें कामवासना में फँसाना है। यही उनका मकसद है। क्या यह यौन रूप से उत्तेजक होना नहीं है? (हाँ।) यह उत्तेजक होना है। अविश्वासी लोग ऐसे लोगों को “फूहड़” कहते हैं। ये “फूहड़” लोग किस तरह की चीजें करते हैं? अगर यह कोई महिला है तो वह अपनी लिपस्टिक के चुनाव तक को लेकर बहुत सतर्क रहती है। वह आम लिप बाम का उपयोग नहीं करती है और वह प्रतिष्ठित और सभ्य लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली लिपस्टिक को भी तुच्छ समझती है क्योंकि उसे वह पर्याप्त रूप से ऊँचे स्तर की नहीं लगती। वह विशेष रूप से ऐसे कामोत्तेजक रंगों का चुनाव करती है जो उसके होंठों को विशेष रूप से कामुक और मनमोहक बनाते हैं जिसका मकसद पुरुषों के दिलों में हलचल पैदा करना, उन्हें मोहित करना और उन्हें पूरी तरह से मुग्ध करके उसके प्रेम में पागल करना है। पुरुषों के साथ अपने बातचीत में वह अक्सर उत्तेजक व्यवहार प्रकट करती है, कामवासना मुक्त करती है और यह सबकुछ उन्हें पटाने के मकसद से होता है। जितने ज्यादा पुरुष मौजूद होते हैं, विशेष रूप से उस प्रकार के पुरुष जिन्हें वह पसंद करती है, उतनी ही वह जोशपूर्ण और सक्रिय हो जाती है और उतना ही ज्यादा वह खुद को प्रदर्शित करने का भरसक प्रयास करती है, अपनी वाक्पटुता का दिखावा करती है, ज्यादा परिष्कृत शब्दावली का उपयोग करती है, अपने चेहरे के भावों पर विशेष ध्यान देती है और विशेष रूप से नखरेबाज ढंग से कपड़े पहनती है। इसे उत्तेजक होना कहा जाता है। क्या उत्तेजक लोगों और लम्पट लोगों में कोई अंतर है? क्या वे एक ही प्रकार के होते हैं? (हाँ।) वे एक ही गंदी मिट्टी के बने होते हैं। एक सक्रियता से पटाता है, दूसरा सक्रियता से व्यभिचारिता में लिप्त रहता है। ये दोनों ही आसक्त कामवासना की अभिव्यक्तियाँ हैं, उमड़ती हुई कामवासना और स्वच्छंदता की अभिव्यक्तियाँ हैं, ये सभी पथभ्रष्ट प्रकृति सार द्वारा शासित होती हैं। इस उत्तेजक प्रकार के लोग, चाहे पुरुष हों या महिला, उनकी उम्र या वैवाहिक स्थिति चाहे कुछ भी हो, किसी भी परिस्थिति में अपने व्यवहार को संयमित नहीं करते हैं और न ही वे अपनी कामवासना पर लगाम लगाते हैं या उसका प्रबंध करते हैं। इसके बजाय वे स्वच्छंद और बेढंगे होते हैं, यहाँ तक कि सक्रियता से रूमानी रिश्ते बनाने का प्रयास करते हैं—वे विशेष कपड़े पहनते हैं, विशेष हाव-भावों, विशेष भाषा, बोलने के विशेष तरीकों का उपयोग करते हैं और विपरीत लिंग का ध्यान आकर्षित करने, उन्हें बातचीत करने के लिए ललचाने, उन्हें बहकावे में लाने वगैरह के लिए कुछ विशेष चीजें करते हैं। इसलिए ऐसे लोग न सिर्फ लम्पट होते हैं, बल्कि उत्तेजक भी होते हैं। “उत्तेजक” शब्द सचमुच काफी घिनौना है। संक्षेप में, चाहे ऐसे लोग लम्पटता दिखाएँ या उत्तेजकता, जिस तरह से वे कामवासना मुक्त करते हैं वह व्यभिचारी होते है, उनकी कामवासना मुक्त करने की प्रकृति व्यभिचारी है और उनका सार पथभ्रष्ट है। ऐसे लोगों की अभिव्यक्तियाँ, चाहे लम्पट हों या उत्तेजक, सामान्य लोगों की शारीरिक जरूरतों से ज्यादा होती हैं और उनमें जमीर और विवेक का संयम नहीं होता है। इसलिए ऐसे लोग पूरी तरह से दुष्ट लोग होते हैं। तुम चाहे इसे किसी भी तरह से देखो, वे अच्छे लोग नहीं बल्कि दानव होते हैं। किसी भी समूह में ऐसे एक भी दानव की मौजूदगी विघ्न-बाधा उत्पन्न कर देगी। अभिमानी और सभ्य लोगों को वे घिनौने लगते हैं, जबकि छोटे आध्यात्मिक कद के लोग या जिन लोगों में भेद पहचानने की किसी भी तरह की कोई क्षमता या रुख नहीं होता है—विशेष रूप से वे जिन्होंने जानवरों से पुनर्जन्म लिया है—अक्सर उनके द्वारा गुमराह हो जाते हैं और उनका उत्पीड़न सहते हैं। संक्षेप में, ये दुष्ट अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करने वाले दानव जिस भी समूह में होते हैं वहाँ के लिए संकट होते हैं जिनसे किसी को कोई लाभ या मदद नहीं मिलती है क्योंकि उनकी कामवासना अक्सर उमड़ पड़ती है जो कुछ लोगों के दैनिक जीवन और सामान्य विचारों को अक्सर अस्त-व्यस्त कर देती है।

मुझे बताओ, क्या इस लम्पट, व्यभिचारी और उत्तेजक प्रकार के दुष्ट लोगों का भेद पहचानना आसान है? (हाँ।) वयस्क उनका भेद पहचान सकते हैं और आजकल तो शायद नाबालिग बच्चे भी ऐसा कर सकते हैं। इसलिए दानवों के दुष्ट सार वाले लोगों का सामना करते समय ज्यादातर लोगों में कुछ एहसास, भेद पहचानने की कुछ क्षमता होनी चाहिए; वे इतने बेवकूफ नहीं होंगे कि बता न पाएँ। तो क्या तुम लोगों को पता है कि जब तुम्हारे सामने ऐसे लोग आते हैं, तो तुम्हें उनसे कैसे पेश आना चाहिए? क्या तुम उन्हें अस्वीकार कर दोगे? अगर तुम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हो जो तुम्हारी पसंद के मुताबिक नहीं है, तो हो सकता है कि तुम उसे अस्वीकार कर दो। लेकिन अगर यह कोई ऐसा व्यक्ति हो जो वाकई तुम्हारी पसंद के मुताबिक है—तुम्हारे सपनों का प्रेमी, तुम्हारा आदर्श जीवनसाथी है—तो क्या उसे अस्वीकार करना तुम्हारे लिए आसान होगा? तुम स्पष्ट रूप से जानते हो कि वह इस प्रकार का व्यक्ति है, लेकिन क्योंकि उसका रंग-रूप बहुत ही दिलकश है या उसकी कोई खूबी तुम्हें बहुत ही ज्यादा भावुक कर देती है, वह तुम्हारा दिल चुरा लेता है और तुम्हें मोहित कर लेता है—ऐसी परिस्थिति में उसे अस्वीकार करना तुम्हारे लिए मुश्किल हो जाता है। अगर तुम उसे अस्वीकार नहीं करते हो, तो क्या तुम्हें खतरा नहीं है? (हाँ, यह लालच में पड़ना है।) क्या यह सिर्फ लालच में पड़ना है? यह कामवासना के भँवर में पड़ना है। क्या कामवासना के भँवर में फँसे किसी व्यक्ति के लिए खुद को बाहर निकालना आसान है? (नहीं है।) वह तुम्हारे प्रति चिंता और लिहाज, प्रेम और परवाह दिखाता है और साथ ही वह लगातार तुम पर छोटे-छोटे एहसान करता रहता है। तुम अंदर से बेहद गर्मजोशी महसूस करते हो, सोचते हो, “दुनिया में ऐसा और कोई नहीं है जो मेरे साथ इतना अच्छा व्यवहार करता हो; यह मेरा मनमोहक राजकुमार है, मेरे सपनों का प्रेमी है।” तुम यह समझने में विफल हो जाते हो कि अगर वह एक लम्पट और व्यभिचारी व्यक्ति है, तो वह दूसरों के साथ भी वैसे ही पेश आता है। तुम सिर्फ उसके विपरीत लिंग के सभी दोस्तों में से एक हो; उसके लिए तुम उसके जीवन के लंबे-सफर में बस एक ऐसे व्यक्ति हो जिसके पास से वह गुजर जाता है—जो बस एक पड़ाव भर है। जब उसने तुम्हारे साथ काफी मजे कर लिए होते हैं और तुम अब उसके लिए कोई आकर्षण नहीं रखते हो, तो तुम उसके लिए छोड़ दिए जाने वाली चीज बन जाते हो। वह तुम्हें उतनी ही बेरहमी से छोड़ देता है जितनी बेरहमी से कोई कपड़ा या चीथड़ा कचरे में फेंक दिया जाता है और तब जाकर तुम्हें दर्द का एहसास होता है। जब वह तुम्हें छोड़ने का फैसला करता है, तो तुम्हारा रोना-धोना बेकार है, तुम्हारा उससे मिन्नतें करना बेकार है, यहाँ तक कि तुम्हारा उसके सामने घुटने टेककर बैठना भी बेकार है; कुछ लोग तो आत्महत्या तक कर लेते हैं, लेकिन वह भी बेकार है—कुछ भी उसे झकझोर नहीं सकता। एक बार जब तुम्हारे प्रति उसकी यौन जरूरतें और नहीं रहेंगी, तो वह कहेगा कि अब उसके मन में तुम्हारे लिए कोई भावना नहीं है, कि वह अब तुमसे प्रेम नहीं करता है और वह तुम्हारी जगह किसी और को देने के लिए अगले शिकार की तलाश में निकल पड़ेगा। तब जाकर तुम्हें पता चलेगा कि ऐसे लोग शादी के लिए उपयुक्त साथी नहीं होते हैं, कि किसी मनमोहक राजकुमार, हमसफर या सपनों के प्रेमी का विचार सिर्फ एक धोखे से भरी हुई चाल है और सिर्फ तब तुम्हें यह एहसास होगा कि कामवासना सच्चा प्रेम नहीं है। ऐसे लम्पट और व्यभिचारी लोग चाहे किसी को भी डेट करें, उनमें सिर्फ कामवासना ही होती है, सच्चा प्रेम नहीं। उनका तुम्हारे साथ हमेशा-हमेशा के लिए रहने या कोई जिम्मेदारी पूरी करने का कभी कोई इरादा नहीं होता है। वे बस कामवासना के खेल में लिप्त रहते हैं। एक बार जब वे काफी मजे कर लेंगे और उनकी कामवासना तृप्त हो जाएगी, तो वे तुम्हें दोबारा मुड़कर देखना भी नहीं चाहेंगे और तुम पर तरस खाने की जहमत तक नहीं उठाएँगे। एक बार जब उन्हें अपना नया प्रेम-पात्र मिल जाता है, तो तुम पुराना प्रेम बन जाते हो और फिर तुम सिर्फ गला फाड़कर रो ही सकते हो। इसलिए, चाहे पुरुष हो या महिला, डेट करते समय या साथी की तलाश करते समय कभी-कभी ऐसे दुष्ट लोग सामने आ जाते हैं। वह तुम्हारे प्रति कामुक विचार पैदा कर लेता है और तुम्हें अपने जाल में फँसाने के लिए पटाता है, फिर भी तुम यही मानते हो कि वह तुमसे सही मायने में प्रेम करता है और ऐसे व्यक्ति को अपने जीवन की खुशियाँ सौंप देते हो। सिर्फ जब तुम्हें लात मारकर एक तरफ फेंक दिया जाता है और छोड़ दिया जाता है, तब जाकर तुम्हें एहसास होता है कि तुमने उसके बारे में गलत राय बनाई थी, कि यह कोई मानवता वाला व्यक्ति नहीं है जो जिम्मेदारियाँ पूरी कर सके, बल्कि एक लम्पट और व्यभिचारी व्यक्ति है। तब तक पछतावे के लिए बहुत देर हो चुकी होती है; जब शादी की बात आती है, तो यह एक पथरीला चक्करदार रास्ता होता है। सामान्य मानवता वाले व्यक्ति के लिए खिलवाड़ किए जाने का अनुभव जीवन भर के दर्द का कारण बन सकता है, लेकिन दानव चाहे कितने भी लोगों के साथ खिलवाड़ क्यों न करें, वे उदासीन ही रहते हैं; यहाँ तक कि वे खुद को खुशकिस्मत, खुश और संतुष्ट भी महसूस करते हैं, बेसब्री से इच्छा करते हैं कि वे विपरीत लिंग के और भी लोगों पर डोरे डाल सकें और उनके साथ खिलवाड़ कर सकें। वे इसे जीवन भर की खुशी मानते हैं, इसे अपना हुनर और क्षमता कहते हैं। सामान्य लोग उनसे रिश्ता बनाने का कष्ट सहन नहीं कर सकते हैं। इसलिए, अगर तुम किसी रिश्ते में रहना चाहते हो तो अपनी आँखें खुली रखो और चीजों को स्पष्ट रूप से देखो; तुम चाहे कुछ भी करो, किसी दानव को कभी मत चुनना। अगर तुम किसी सामान्य व्यक्ति को डेट करते हो, तो अगर तुम रिश्ता तोड़ भी देते हो तो भी वह तुम्हें बहुत ज्यादा गहरी चोट नहीं पहुँचाएगा; कम-से-कम तुम आम दोस्त तो बने ही रह सकते हो। लेकिन अगर तुम किसी दानव से रिश्ता बनाते हो, तो तुम्हारा पूरा जीवन उसके हाथों बरबाद हो जाएगा। मुझे बताओ, एक सामान्य व्यक्ति में कितनी सच्चाई और सच्चा स्नेह होता है? इस जीवनकाल में उसके पास कितनी ऊर्जा होती है? अगर हर बार किसी के साथ रिश्ता बनाने पर तुम ठगे जाते हो जिससे धोखा दिए जाने और खिलवाड़ किए जाने से तुम्हें गहरा दुख पहुँचता है, तो तुम इसी साये तले अपने जीवन का पूरा मार्ग तय करोगे जिससे तुम्हारा अस्तित्व बहुत ही दर्दनाक हो जाएगा। इसलिए, तुम चाहे डेटिंग कर रहे हो या विपरीत लिंग के साथ मेल-जोल रख रहे हो, तुम्हें सबसे ज्यादा इन लम्पट और व्यभिचारी लोगों से चौकस रहना चाहिए। तुम चाहे पुरुष हो या महिला, अगर तुम लोगों की असलियत नहीं पहचान पाते हो और यह नहीं जानते हो कि कोई और व्यक्ति लम्पट और व्यभिचारी है या नहीं, तो उसके साथ बेतहाशा मेल-जोल मत रखो ताकि तुम ठगे जाने और जीवन भर के पछतावे से बच सको। एक बार जब कड़वे नतीजे उत्पन्न होते हैं, तो सिर्फ तुम्हें ही उनका सामना करना पड़ता है; कोई भी तुम्हारी जगह नहीं ले सकता और कोई भी तुम्हारे जख्मी दिल को आराम नहीं पहुँचा सकता। भले ही तुम कहो कि तुम लोगों की असलियत देख सकते हो, लेकिन हो सकता है कि तुम ऐसा सटीक रूप से न कर पाओ। आजकल किसी के भी बारे में यकीन नहीं किया जा सकता। किसी व्यक्ति को उद्धार प्राप्त होने से पहले उसके मन में सत्य का अनुसरण करने की सिर्फ इच्छा होती है; उसे देखकर ऐसा लग सकता है कि उसमें सभ्य मानवता है, लेकिन यह अनिश्चित है कि अगर तुम उसके साथ रहो तो चीजें वास्तव में कैसी होंगी। ऐसा कोई भी व्यक्ति जो सत्य नहीं समझता है और जिसे बचाया नहीं गया है भरोसे के लायक नहीं है। वह भरोसे के लायक क्यों नहीं है? मुझे बताओ, इस बुरी दुनिया में रहते हुए क्या कोई ऐसा है जो सत्य प्राप्त किए बिना किसी भी लालच का प्रतिरोध कर सके और किसी भी बुरे चलन के बीच डटा रह सके? एक भी नहीं है। इसलिए, यहाँ भरोसेमंद लोग नहीं हैं। यहाँ भरोसेमंद लोग नहीं हैं का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि किसी के लिए भी, चाहे वह पुरुष हो या महिला, विवाह में प्रवेश करना त्रासदी की शुरुआत है। रोजमर्रा की जरूरतों का ध्यान रखने और दिन-ब-दिन जीवन के छोटे-छोटे ओछेपन और परेशानियों का सामना करने की बाध्यता के कारण यह कहना मुश्किल होता है कि क्या दो लोग अंत तक साथ निभा पाएँगे, क्या वे रास्ते में एक-दूसरे को सहारा देंगे, क्या उनके बीच खुशियाँ होंगी और क्या उनके पास समान आधार और समान लक्ष्य होंगे। इसलिए, एक बार जब कोई शादी के रिश्ते में प्रवेश करता है और वास्तविक जीवन का सामना करता है, तो कष्ट शुरू हो जाता है। तुम देखो, जब तुम अकेले रहते हो, तो सबकुछ सँभालना आसान होता है; तुम अपने लिए फैसले खुद ले सकते हो। लेकिन जब दो लोग साथ रहते हैं, तो क्या तुम सारे फैसले सिर्फ खुद ले सकते हो? क्या दूसरा व्यक्ति तुम्हें जगह देगा? क्या तुम उसे जगह दोगे? क्या वह तुम्हारी परवाह करेगा और तुम्हारे प्रति विचारशील होगा? क्या तुम उसकी परवाह करोगे? ये सब चीजें अज्ञात हैं। भले ही तुम जिस व्यक्ति से मिलते हो वह लम्पट और व्यभिचारी न भी हो और तुम्हें यह लगता भी हो कि तुम लोग एक-दूसरे के लिए सही हो और शादी के रिश्ते में प्रवेश कर सकते हो, तो भी वह शादी के ढाँचे में अपनी जिम्मेदारियाँ पूरा कर पाएगा या नहीं, यह बात अज्ञात है और तुम इस ढाँचे में अंत तक उसके साथ चल सकोगे या नहीं, यह बात भी अज्ञात है। तुम्हारे पास आश्वासन नहीं है और तुम्हें खुद पर भी विश्वास नहीं है, जो साबित करता है कि दूसरे लोग भी ऐसे ही हैं—यह कहने की तो जरूरत ही नहीं है, है ना? (हाँ।)

अगर अपने दैनिक जीवन में तुम इस लम्पट, उत्तेजक और व्यभिचारी प्रकार के लोगों से मिलते हो और वे तुम्हारे करीब आने का प्रयास करते हैं, तो तुम्हें पता होना चाहिए कि ऐसा करने के पीछे उनका क्या मकसद है। अगर तुम उन्हें अस्वीकार नहीं करते हो या अगर तुम अपने दब्बूपन, भोलेपन, बेवकूफी और जाहिलपन या अनुभवजन्य ज्ञान की कमी के कारण उनकी मर्जी चलने देते हो जिससे प्रतिकूल नतीजे सामने आते हैं, तो अंत में सिर्फ तुम्हें ही नतीजे भुगतने पड़ेंगे। लम्पट और व्यभिचारी लोग—दानव—कामवासना को मुक्त करने या अनैतिक चीजें करने के लिए कभी भी कोई अपराधबोध या पछतावा महसूस नहीं करते हैं। उन्हें लगता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है; उन्हें लगता है कि वे फायदा उठा रहे हैं और लोगों को जीवन में ऐसा ही होना चाहिए। लेकिन अगर तुम एक सामान्य व्यक्ति हो, तो तुम्हारी मानवता में जमीर और विवेक ऐसे आघातों, यातना और गंभीर नुकसान को बस सहन कर ही नहीं सकते हैं। इसलिए, अगर ऐसे लम्पट और व्यभिचारी लोग तुम्हारे सामने आते हैं, तो तुम्हें सावधान रहना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए और उससे तुम्हारी रक्षा करने के लिए कहना चाहिए ताकि तुम लालच में न पड़ो। विशेष रूप से अगर सामने वाले के पास ढेरों गुप्त चालें हों, वह एक अनुभवी खिलाड़ी हो और तुम्हारे सपनों का प्रेमी हो, वह प्रेमी जिसे पाने के तुम सपने देखते रहते हो तो फिर तुम बड़ी आसानी से लालच में पड़ जाओगे और बड़ी आसानी से एक सुधार से परे परिस्थिति में फँस जाओगे और अंत में तुम एक ऐसा बुरा परिणाम भुगतोगे जिसे कोई भी नहीं देखना चाहता। तब तक तुम्हारा दिल, मन और देह निश्चित तबाही झेल चुकी होगी। इसके बाद जब तुम अपना कर्तव्य करने के लिए आओगे और परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए उसके सामने आओगे, तो बहुत-सी चीजें अलग होंगी—वे कभी भी वैसी नहीं होंगी जैसी शुरू में थीं और कभी वापस वैसी नहीं होंगी जैसी पहले थीं। एक बार जब कोई व्यक्ति कामवासना से संबंधित कुछ असामान्य या पेचीदे अनुभवों से गुजर चुका होता है, तो यह उसके दिल में कुछ भयानक छाप छोड़ देता है जिसे कोई भी सामान्य व्यक्ति जीवन भर आसानी से नहीं भूल पाता है। वैसे तो जैसे-जैसे थोड़ा-थोड़ा करके समय बीतता है, हो सकता है कि ये यादें और यह दर्द धीरे-धीरे हल्का हो जाए, लेकिन अगर इन घटनाओं से तुम्हारा निश्चित नुकसान हुआ है और तुम्हारी बरबादी हुई है, तो वे तुम्हारे दिल में हमेशा के लिए टीस उठाने वाला बुरा सपना बने रहेंगे। इस जीवनकाल में तुम कभी भी अपने पिछले जीवन में वापस नहीं लौट पाओगे; तुम्हारी आंतरिक दुनिया पहले की तरह शुद्ध और सरल नहीं रहेगी और तुम्हारे लिए अपनी पिछली स्थिति को वापस प्राप्त करना असंभव होगा। इस मौके पर जब तुम अपना कर्तव्य करने आओगे, तो तुम्हारे दिल में एक अतिरिक्त बोझ होगा जिसे तुम झटकना तो चाहोगे, लेकिन झटक नहीं पाओगे। इस बोझ का क्या मतलब है? इसका मतलब नुकसान पहुँचाए जाने के अनुभव की विभिन्न यादें हैं। इन यादों के बारे में सोचना उबकाई लाएगा और ये बार-बार तुम्हारे दिल और तुम्हारी भावनाओं को भी परेशान करेंगी। इस प्रकार तुम्हारी आंतरिक दुनिया अब पहले जैसी शुद्ध और सरल नहीं रहेगी; तुम्हारी भावनाओं में अब बहुत-सी ऐसी चीजें होंगी जो सामान्य मानवता में नहीं होनी चाहिए। कुछ हद तक यह चीज तुम्हारे जीवन, तुम्हारे कर्तव्य के निर्वहन में दखल देगी और परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास और सत्य के अनुसरण में भी दखल देगी। इसे बोझ कहा जाता है। इसलिए, व्यक्ति की उम्र चाहे कुछ भी हो, एक बार जब वह किसी दानव के साथ रूमानी रिश्ते के लालच में पड़ जाता है, तो वह स्वाभाविक रूप से एक वर्णन से बाहर निराशा में डूब जाता है। एक सामान्य व्यक्ति के लिए यह अच्छी घटना नहीं है।

वास्तविक जीवन में लोगों के सामने अक्सर कुछ लम्पट और व्यभिचारी व्यक्ति आ जाते हैं। आज इन शब्दों पर संगति करने के बाद, चूँकि तुम लोग इस प्रकार के व्यक्ति का भेद पहचानने में क्षमता प्राप्त कर चुके हो और तुम जानते हो कि वे सामान्य लोग नहीं बल्कि दानव हैं, इसलिए जब वे तुम्हें पटाने का प्रयास करें तो तुम उन्हें दृढ़ता से अस्वीकार कर सकते हो। उन्हें अव्यक्त रूप से और चतुराई से मत अस्वीकार करना या इतना ज्यादा शर्मिंदा मत महसूस करना कि उन्हें अस्वीकार ही ना कर पाओ या ऐसे लोगों से मत डरना। यकीनन अगर तुम्हें इस बात की परवाह नहीं है कि वे दानव हैं और तुम कहते हो, “मैं पहले से ही तीस-चालीस वर्ष का हो चुका हूँ और अभी तक मैंने शादी का अनुभव नहीं किया है; अगर वाकई किसी को इस तरह से मेरी जरूरत है तो मुझे स्वीकार करने में खुशी होगी” तो चूँकि तुम्हें इस बात की परवाह नहीं है कि इससे क्या नतीजे उत्पन्न हो सकते हैं और न ही मनोवैज्ञानिक निशानों की परवाह है, इसलिए मैं और कुछ नहीं कहूँगा। ऐसा कहने का मेरा उद्देश्य है कुछ बेवकूफ लोगों को, जिनमें विपरीत लिंग के बहकावे के प्रति कोई सतर्कता या सावधानी नहीं है, यह बताना कि जब उनके सामने लालच आए, तो उन्हें क्या सही रवैया अपनाना चाहिए। अगर तुम्हें इस बात की परवाह नहीं है कि कोई व्यक्ति लम्पट और व्यभिचारी है, इस बात की परवाह नहीं है कि वह दानव है और तुम सिर्फ इसलिए बहुत सम्मानित महसूस करते हो क्योंकि वह तुम्हें पसंद करता है—ठीक वैसे ही जैसे अविश्वासी लोगों की यह कहावत है : “एक पुरुष ऐसे किसी के लिए अपने जीवन की आहुति दे देता है जो उसे समझता है, जबकि एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है”—और तुम सोचती हो, “एक महिला होने के नाते अगर कोई मुझे सचमुच पसंद करता है, तो यह दर्शाता है कि मेरा रूप स्वीकार्य है, इसलिए मुझे बेहद सम्मानित महसूस करना चाहिए। उसे मेरे पास बेधड़क आने दो; फिर मैं इसका स्वागत करूँगी और खुली बाहों से उसे गले लगाऊँगी”—यह कैसा रवैया है? मुझे बताओ, क्या “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत महिलाओं के प्रति सम्मानजनक है? (नहीं।) एक पुरुष को उन लोगों के लिए अपनी जान कुर्बान कर देनी चाहिए जो उसे समझते हैं और एक महिला को अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाना-सँवारना चाहिए—क्या यह कहावत सही है? (नहीं।) महिलाएँ इतनी घटिया क्यों हैं? पुरुष भी घटिया हैं। इसलिए पुरुषों को दूसरों के लिए अपनी जान देनी पड़ती है। जो भी तुम्हारा विश्वासपात्र है, वह तुम्हारा मालिक है जिसके लिए तुम्हें अपने जीवन की कुर्बानी देनी होगी—तुम्हारा जीवन इतना बेकार क्यों है? क्या ऐसा हो सकता है कि तुम्हारा जीवन दूसरों का है, तुम्हारा नहीं? परमेश्वर मानव जीवन को सबसे बहुमूल्य मानता है क्योंकि यह जीवन, यह साँस परमेश्वर द्वारा दी गई है; सृजित देह के चलने-फिरने और जीवित प्राणी बनने में समर्थ होने के लिए यह मूलभूत शर्त है। अगर तुम अपने जीवन को संजोकर नहीं रखते हो, बल्कि उसे यूँ ही दूसरों को दे देते हो और उनके लिए कुर्बान कर देते हो, तो यह क्या दर्शाता है? क्या यह नहीं दर्शाता कि तुम घटिया हो? (हाँ।) यह दर्शाता है कि तुम्हारे जीवन का कोई मूल्य नहीं है। तुम अपना जीवन नहीं संजोते हो, तुम अपने जीवन का उपयोग सबसे सार्थक और मूल्यवान चीजें करने के लिए नहीं करते हो, लेकिन जो भी तुम्हें समझता है, तुम उसके लिए यूँ ही मर सकते हो। यह दर्शाता है कि तुम्हारा जीवन बहुत ही सस्ता है; यह बस एक सड़ा हुआ जीवन है, उतना ही बेकार है जितना कि कुत्ते, बिल्ली या मुर्गी का जीवन होता है। तो क्या “एक पुरुष ऐसे किसी के लिए अपने जीवन की आहुति दे देता है जो उसे समझता है” वाली कहावत सही है? (नहीं।) यह कहावत लोगों को नीचा दिखाती है, उनका अनादर करती है; यह कहावत जीवन को नहीं संजोती। दूसरों के लिए आसानी से मर जाना—क्या मानव जीवन आसानी से मिलता है? जीवन आसानी से नहीं मिलता; कोई बस इतनी आसानी से नहीं मर सकता। इसलिए, यह “एक पुरुष ऐसे किसी के लिए अपने जीवन की आहुति दे देता है जो उसे समझता है” वाली कहावत गलत है और इसका बचाव नहीं किया जा सकता। तो फिर क्या “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत सही है? (यह भी सही नहीं है।) यह किस तरीके से गलत है? क्या तुम लोगों को किसी समय यह कहावत वाकई पसंद थी, तुमने इसे स्वीकार किया था, यहाँ तक कि इसे सत्य, आदर्श वाक्य भी माना था? क्या कभी कोई ऐसा व्यक्ति हुआ है जिसने तुम्हारी सराहना की हो? अगर तुम्हारी सराहना करने वाला व्यक्ति कोई ऐसा था जिसे तुम पसंद करती थीं, तो क्या तुम्हें सम्मानित महसूस हुआ था? (एकदम सम्मानित तो नहीं, शायद अंदर से खुशी हुई हो।) तो यह सम्मानित महसूस होने से दूर नहीं है। क्या यह खुशी अच्छी है? (नहीं।) क्यों नहीं? (किसी महिला का किसी पुरुष की तारीफ और स्नेह के लिए सजना-सँवरना, सिर्फ पुरुषों के लिए जीना, अपने सारे विचार इसी में लगा देना—मुझे लगता है कि इस तरह से जीना बहुत ही घटिया है।) क्या यहाँ इससे अलग विचार हैं? यह “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत खुद ही महिलाओं को पुरुषों की तुलना में असमान दर्जा देती है। यह महिलाओं से अपेक्षा करती है कि वे पुरुषों को खुश करने के लिए खुद को सजाएँ-सँवारें, पुरुषों की खुशी के लिए जीएँ और जब कोई उन्हें पसंद करे और उनकी तारीफ करे तो वे सम्मानित महसूस करें। यह असमान है; यह खुद ही महिलाओं के निम्न रुतबे का सच्चा प्रतिबिम्ब है। इस “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत का मतलब यह है कि चाहे कोई महिला अपने अच्छे रंग-रूप के कारण दूसरों को पसंद आती हो या वह पुरुषों का स्नेह इसलिए आकर्षित करती हो क्योंकि वह जानती है कि आँखों को भाने के लिए खुद को कैसे सजाना-सँवारना है, उसे इस कारण से खुश और सम्मानित महसूस करना चाहिए। यह खुद ही महिलाओं की मानहानि है। यह कहावत महिलाओं को बताती है कि उनके अस्तित्व का मूल्य, उनकी खुशी का स्रोत किसी ऐसे व्यक्ति का होना है जो उन्हें पसंद करता है और अगर ऐसा नहीं है, तो उन्हें बदकिस्मत और दुखी महसूस करना चाहिए और इस पर चिंतन करना चाहिए कि कोई उन्हें क्यों पसंद नहीं करता है और कि क्या महिलाएँ होने के नाते वे बेकार और असफल जीवन जी रही हैं। तो क्या यह “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत महिलाओं की मानहानि नहीं है? (हाँ।) इस “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाक्यांश में क्या आमतौर पर कद्रदान का मतलब किसी पुरुष से नहीं होता है? यह कहावत खुद ही पुरुषों को महिलाओं से ऊपर, मालिक के पद पर बिठाती है। इसका मतलब है कि एक महिला को इस बात पर सम्मानित महसूस करना चाहिए कि एक पुरुष—एक मालिक—उसे पसंद करता है और उसकी तारीफ करता है। अगर एक पुरुष—एक मालिक—उसे पसंद नहीं करता है तो उसमें कुछ गड़बड़ है, वह प्रेम किए जाने लायक नहीं है, वह जीवन में असफल है और वह महिला होने के योग्य नहीं है। तुम देखो, यह अनजाने में पुरुषों का रुतबा ऊँचा कर देता है जिससे उन्हें महिलाओं की गर्दन पर पैर रखने और उन पर हावी होने की अनुमति मिल जाती है। यहीं पर इस “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत में गलती है। इसके अलावा, क्या पुरुष महिलाओं को सिर्फ उनके रूप-रंग और बनाव श्रृंगार के लिए पसंद करते हैं? या वे महिलाओं को सिर्फ इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि वे देखते हैं कि महिलाएँ शांत, नेक, अभिमानी और सुश्री होती हैं? क्या पुरुष सिर्फ अपनी आँखों को खुश करने के लिए महिलाओं को पसंद करते हैं? (नहीं, यह देह की कामवासना को संतुष्ट करने के लिए है।) तो फिर पुरुषों को संतुष्ट करने और खुश करने के पीछे महिलाओं का क्या मकसद होता है? (यह देह की कामवासना को तुष्ट करने के लिए भी है।) यानी जब एक दूसरे की बात आती है, तो पुरुष और महिला दोनों की ही जरूरतें होती हैं और इनमें सबसे मूलभूत जरूरत देह की कामवासना है। पुरुष की महिला के लिए जरूरत सिर्फ उसके रूप-रंग को पसंद करना नहीं है, बल्कि उसके आधार पर उसे शारीरिक रूप से प्राप्त करना भी है—और ज्यादा स्पष्ट रूप से कहा जाए तो अपनी कामवासना को संतुष्ट करने के लिए उसका शरीर प्राप्त करना है। इसलिए, इस “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत के पीछे का मकसद वास्तव में पुरुषों की कामवासना को संतुष्ट करना है। इसके लिए महिलाओं को न सिर्फ अपने रूप-रंग और बनाव श्रृंगार को पुरुषों के लिए दिलकश बनाने की जरूरत पड़ती है, बल्कि उनकी कामवासना को भी संतुष्ट करना होता है। क्या यह जीने का बहुत ही घटिया तरीका नहीं है? अगर महिलाएँ अब भी यही मानती हैं कि यह कहावत सही है, कि यह कुछ ऐसा है जिसे उन्हें हासिल करना चाहिए और जिसका पालन करना चाहिए, तो महिलाएँ खुद को नीचा दिखा रही हैं। पुरुषों की महिलाओं के प्रति कामवासना होती है और वे महिलाओं के शरीर से खेलना चाहते हैं; अगर महिलाएँ इसे निंदनीय और घिनौना मानने के बजाय अपने कद्रदानों के लिए खुद को सजाती-सँवारती हैं, सोचती हैं कि यह उनके जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है, सर्वोच्च सम्मान है, तो क्या वे खुद को नीचा नहीं दिखा रही हैं? (हाँ।) यह महिलाओं से उनके हक छीन लेना है। यह न सिर्फ महिलाओं से उनके अस्तित्व का हक, उनकी गरिमा और उनके मानवाधिकार छीन लेता है, बल्कि उन्हें यह भी सोचने के लिए उकसाता है कि यह सबसे बड़ा सम्मान है। क्या यह क्रूर नहीं है? यह बेहद क्रूर है! कोई स्वायत्तता और कोई भी मानवाधिकार नहीं होने के अलावा, एक महिला की खुशी, आनंद और संतुष्टि सिर्फ पुरुषों को खुश करने और उन्हें पूरी तरह से संतुष्ट करने के आधार पर ही हासिल हो सकती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि महिलाएँ किस तरह का अमानवीय व्यवहार सहती हैं, उनसे अब भी इस पर गर्व करने की अपेक्षा की जाती है। क्या यह महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करना और उनका शोषण करना नहीं है? चाहे आधुनिक महिलाएँ हों या प्राचीन, वे सभी इस “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत को अपना आदर्श वाक्य, अपना जीवन लक्ष्य मानती हैं। क्या यह पूरी तरह से गलत नहीं है? क्या यह शैतान द्वारा लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने और उन्हें गुमराह करने के लिए उपयोग की जाने वाली चाल नहीं है? (हाँ।) अगर तुम एक महिला हो और एक पुरुष तुमसे सुख प्राप्त करता है, उसका दिल तुम्हारे लिए दुष्ट वासना से भरा रहता है तो क्या तुम यह जानकर घिनौना महसूस करोगी या बेहद सम्मानित महसूस करोगी? (घिनौना।) जब वह तुम्हारे बारे में सोचता है, तो वह सिर्फ तुम्हारे शरीर और तुम्हारे रूप-रंग के बारे में सोचता है, जबकि वह अपनी कामवासना भी मुक्त करता है। जितना ज्यादा वह तुमसे सुख प्राप्त करता है, उतना ही ज्यादा वह तुम्हारे लिए कामवासना से भर जाता है; जब तुम्हारी बात आती है तो उसके अंदर जो चीजें हिलोरें मारती हैं वे पूरी तरह से कामुक विचार हैं। यहाँ तक कि वह तुम्हें हासिल करने के लिए हर उपाय आजमाता है ताकि वह तुम्हारे शरीर का आनंद ले सके, अपनी कामवासना को पूरी तरह से संतुष्ट कर सके और अपनी कामवासना को मुक्त कर सके। अगर तुम्हें यह पता होता कि तुम्हारे प्रति उसके ऐसे इरादे हैं, तो क्या तुम तब भी यही सोचतीं कि यह “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत सही है? क्या तुम तब भी किसी के द्वारा पसंद किए जाने और तारीफ किए जाने को सम्मान की बात समझतीं? (नहीं।) अगर तुम एक ऐसी महिला हो जिसमें ईमानदारी, शर्म और गरिमा का बोध है, तो तुम्हें यह कहावत घिनौनी लगनी चाहिए और तुम्हें ऐसे लोगों द्वारा पसंद किए जाने से नफरत करनी चाहिए और उसे अस्वीकार करना चाहिए। सिर्फ इसी तरीके से जीने से ही तुममें गरिमा होती है। जो तुम्हारा सही मायने में आनंद लेता है और तुम्हारी तारीफ करता है, वह ऐसा तुम्हारे चरित्र की गुणवत्ता, तुम्हारे लक्ष्यों के कारण करता है क्योंकि तुम सत्य समझती हो और वह तुमसे कुछ नैतिक उन्नति और सहायता भी प्राप्त करना चाहता है—इसलिए नहीं कि वह तुम्हारे शरीर की तारीफ अपनी कामवासना को संतुष्ट करने के लिए करना चाहता है। अगर कोई इस बात की परवाह किए बिना कि तुम्हारा चरित्र कैसा है या तुम सत्य का अनुसरण करती हो या नहीं तुम्हारी तारीफ करता है और ऐसा सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि तुम्हारा रूप-रंग और शारीरिक गठन आँखों को भाता है और उसकी कामवासना को पूरी तरह से संतुष्ट कर सकता है और फिर भी तुम्हें इससे कोई प्रतिकर्षण या नफरत नहीं होती है, बल्कि तुम्हें लगता है कि वह तुम्हें पसंद करता है—विशेष रूप से, क्योंकि उसने तुम्हारे साथ शारीरिक संपर्क बनाने के संकेत दिए हैं, इसलिए तुम्हें यह और भी ज्यादा लगता है कि वह तुम्हें पसंद करता है—और तुम इससे सम्मानित भी महसूस करती हो, तो तुम खुद को नीचा दिखा रही हो। अगर, चाहे किसी का तुम्हारे शरीर के लिए कोई मंसूबा हो या उसके प्रति कोई दुष्ट इरादा हो, तुम्हें इसकी परवाह नहीं है और जब तक वह तुम्हें पसंद करता है तब तक तुम इसे अपना विशेष सम्मान मानती हो और इससे सम्मानित महसूस करती हो तो तुम ईमानदारी और गरिमा वाली महिला नहीं हो और न ही तुम एक अच्छी महिला हो। अगर किसी की तुम्हारे प्रति कामुक जरूरतें हैं और तुम्हें लगता है कि तुम्हें कोई ऐसा मिल गया है जो तुम्हें समझता है और तुम्हें अपनी कामवासना को मुक्त करने का एक अवसर भी मिल गया है और तुम दोनों इसलिए इकट्ठे होते हो क्योंकि ताली दोनों हाथों से बजती है और तुम दोनों एक ही गंदी मिट्टी के बने हो, तो तुम ईमानदारी और गरिमा रहित व्यक्ति हो, तुम पसंद किए जाने लायक नहीं हो; तुम भी लम्पट और व्यभिचारी लोगों के प्रकार के ही हो। अगर तुम सही मायने में एक गरिमा वाली महिला हो, तो तुम्हें ऐसे लम्पट और व्यभिचारी लोगों द्वारा पसंद किए जाने पर नफरत, प्रतिकर्षण और घिनौनापन महसूस होना चाहिए। यकीनन अगर कोई तुम्हें सही मायने में तुम्हारी मानवता, तुम्हारे लक्ष्यों के कारण पसंद करता है या इसलिए पसंद करता है क्योंकि तुममें कुछ खूबी है तो वह भी सम्मानित महसूस करने लायक बात नहीं है। लोगों के यह कहने कि “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” का मकसद निश्चित रूप से उतना सरल नहीं है जितना कि एक पुरुष का किसी महिला की तारीफ करना है। यह पूरी तरह से पुरुषों को ऐसी स्थिति में बिठा देता है जहाँ वे महिलाओं पर हावी हो जाते हैं। ज्यादा सटीक रूप से, यह कहावत इस लोकाचार के तहत उत्पन्न हुई कि पुरुष बेहतर हैं और स्त्रियाँ कमतर हैं। इसके अलावा, हकीकत यह है कि किसी भी सामाजिक व्यवस्था के तहत स्त्रियाँ कमजोर समूह होती हैं जिन्हें पुरुषों की संलग्न वस्तुएँ और खिलौने माना जाता है। इसलिए, यह “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत सभी महिलाओं के लिए पूरी तरह से अपमानजनक है। अगर महिलाएँ विशेष रूप से इस कहावत को स्वीकार करती हैं, तो यह महिलाओं के लिए अफसोस की बात है और हमें उन सभी महिलाओं के लिए तिरस्कार महसूस करना चाहिए जो इसे स्वीकार करती हैं। तो फिर क्या पुरुषों को “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाले दृष्टिकोण को स्वीकार करना चाहिए? (नहीं।) अगर कोई पुरुष किसी महिला को अपने कद्रदान के लिए सजते-सँवरते देखता है, तो क्या उसे ऐसा नहीं लगता है कि ऐसी महिला बहुत अपमानजनक तरीके से जीवन जी रही है और क्या वह भी ऐसी महिला को नीची नजर से नहीं देखेगा? (हाँ।)

क्या अब तुम्हें स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत सही है या नहीं? (यह गलत है।) यह कहावत कोई सकारात्मक चीज नहीं है और न ही यह कोई सही विचार या दृष्टिकोण है। बाइबल में और परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों में देखो—क्या इनमें ऐसा कोई वाक्य है जो महिलाओं से कहता हो कि उन्हें उन लोगों के लिए खुद को सजाना-सँवारना चाहिए जो उनकी सराहना करते हैं? क्या ऐसा कोई वाक्य है जो पुरुषों और महिलाओं के रुतबों को स्तरों में विभाजित करता हो, यह कहता हो कि पुरुष महिलाओं से ऊपर हैं? नहीं, ऐसा कोई वाक्य नहीं है। बाइबल में उत्पत्ति की पुस्तक में यह दर्ज है कि महिला पुरुष की हड्डियों की हड्डी है और उसके माँस की माँस है। पुरुष और महिला दोनों ही परमेश्वर द्वारा सृजित मनुष्य हैं; वे परमेश्वर के आगे बराबर हैं, उनके स्तरों का कोई विभाजन नहीं है, श्रेष्ठ और निम्न में कोई अंतर नहीं है। लोगों को श्रेष्ठ और निम्न में विभाजित करना और रुतबे के स्तरों में अंतर करना कुछ ऐसा है जो शैतान करता है; यह शैतान द्वारा महिलाओं के दमन और उत्पीड़न का वास्तविक प्रमाण है। शुरू में जब से परमेश्वर ने मानवजाति बनाई तब से परमेश्वर की नजर में पुरुष और महिला बराबर रहे हैं। दोनों ही सृजित प्राणी हैं और परमेश्वर के उद्धार के लक्ष्य हैं। परमेश्वर ने यह कभी नहीं कहा कि पुरुष श्रेष्ठ हैं और महिलाएँ निम्न हैं और न ही उसने यह कहा है कि पुरुषों को महिलाओं का मुखिया या उनका स्वामी होना चाहिए, कि पुरुषों को महिलाओं से ऊँचा होना चाहिए, कि किसी भी कार्य में पुरुषों को महिलाओं से ज्यादा महत्व मिलना चाहिए या यह कि पुरुषों की अपनी राय होती हैं और वे ही मुख्य आधार हैं जबकि महिलाओ को पुरुषों की बातें और ज्यादा सुननी चाहिए। परमेश्वर ने ऐसी बातें कभी नहीं कहीं। सिर्फ शैतान की भ्रष्टता के कारण ही लोगों में पुरुषों के श्रेष्ठ होने और महिलाओं के निम्न होने की कहावतें उत्पन्न हुईं और फिर यह चलन पूरे समाज और पूरी मानवजाति में विकसित हुआ जिसने पुरुषों के अधिकार में महिलाओं का निरंतर दमन किया। सत्य की समझ नहीं होने के कारण जब महिलाएँ शैतान के सभी प्रकारों के बुरे चलन द्वारा प्रभावित और गुमराह हो जाती हैं, उसके बाद वे खुद को पुरुषों से गौण या रुतबे में उनसे निम्नतर महसूस करती हैं। यही कारण है कि आज तक बहुत-सी महिलाएँ अब भी यही मानती हैं कि यह “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत सही है। यह बहुत अफसोस की बात है। अगर लोग सत्य नहीं समझते हैं तो वे अभी भी कई विशिष्ट मामलों में शैतान के विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों द्वारा गुमराह और नियंत्रित होते हैं। यहाँ तक कि यह छोटा-सा मामला भी बहुत उदाहरणात्मक है, है ना? (हाँ।) इसका क्या कारण है कि महिलाएँ खुशी से खुद को नीचा दिखाती हैं? इसका कारण यह है कि समग्र सामाजिक परिवेश ऐसा करता है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर रुतबा नहीं मिल पाता है और इसलिए महिलाओं को पुरुषों को रास्ता देना ही पड़ता है और उनके लिए अनुकूल स्थितियाँ बनानी ही पड़ती हैं और पुरुषों को संतुष्ट करने के लिए कई कुर्बानियाँ देनी ही पड़ती हैं और एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। ऐसा समाज के कारण, शैतान द्वारा संचालित विभिन्न बुरे चलन के कारण होता है। तो अब इस लिहाज से सत्य समझने के बाद क्या इस “एक महिला अपने कद्रदान के लिए खुद को सजाती-सँवारती है” वाली कहावत के बारे में एक निश्चित निष्कर्ष नहीं निकलता है? (हाँ।) यह कहावत भ्रामक है और सत्य के अनुरूप नहीं है, है ना? (हाँ।) वास्तविक स्थिति सुनने के बाद क्या महिलाओं को ऐसा नहीं लगता है कि उन्होंने ये सारे वर्ष बहुत दुःखी और घुटन भरे जीवन जीएँ हैं? तो क्या अब भी महिलाओं को अपने कद्रदानों के लिए सजना-सँवारना चाहिए? (नहीं।) सृजित मानवजाति के सदस्य होने के नाते महिलाएँ पुरुषों से सिर्फ लिंग और शरीर-रचना में अलग होती हैं; दूसरे पहलुओं में उनमें बिल्कुल कोई भी अंतर नहीं है। परमेश्वर की नजर में पुरुषों और महिलाओं के रुतबे में किसी प्रकार का कोई भी अंतर नहीं है। परमेश्वर ने कभी भी, किसी भी हालात में, महिलाओं से ऐसी अपेक्षाएँ नहीं रखीं हैं जो पुरुषों से उसकी अपेक्षाओं से अलग हों। परमेश्वर द्वारा चुने गए लोगों की संख्या, उद्धार की उम्मीद, कर्तव्यों को करने के उनके अवसर, उनके द्वारा निर्वहन किए जा सकने वाले कर्तव्य और उनके द्वारा किए जा सकने वाले कार्य जैसे पहलुओं में महिलाएँ मूल रूप से पुरुषों के बराबर हैं; महिलाएँ पुरुषों से कमतर नहीं हैं। यही वास्तविक स्थिति है।

इससे पहले हमने उन दुष्ट लोगों की लम्पटता, व्यभिचारिता और उत्तेजकता की अभिव्यक्तियों के बारे में बात की थी जिनमें दानवों का प्रकृति सार है और इस बारे में भी बात की थी कि जब रूमानी रिश्ते बनाने या साथी की तलाश करने की बात आती है, तो अगर दुष्ट लोग सामने आ जाते हैं, तो उनसे कैसे पेश आना है। क्या तुम लोग ऐसे व्यक्ति से मिलने की उम्मीद करते हो ताकि तुम एक बार प्रेम लीला का अनुभव कर सको, एक बार मस्त होकर कार्य कर सको और एक बार खुद को तुष्ट कर सको? (नहीं।) तो क्या तुम लोग अपने सपनों के प्रेमी, अपने हमसफर, अपने आदर्श पुरुष या आदर्श महिला से मिलने की उम्मीद करते हो? (नहीं।) इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम इसकी उम्मीद करते हो या नहीं। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि तुममें इन लम्पट, व्यभिचारी और उत्तेजक लोगों का भेद पहचानने की क्षमता होनी चाहिए जिनका प्रकृति सार दुष्ट है और तुम्हें उनसे दूर रहना चाहिए। अविश्वासी लोगों के शब्दों में कहा जाए तो इनमें से ज्यादातर लोग अनुभवी खिलाड़ी, दिलकश और रूमानी होते हैं। ज्यादातर वयस्कों में इस प्रकार के लोगों के सामने आते ही उन्हें पहचान लेने की क्षमता होनी चाहिए; शायद कुछ बार बातचीत के बाद ज्यादातर वयस्क यह जान जाएँगे कि वे इस प्रकार के हैं। इस तरह का व्यक्ति जब डोरे डालता है तब विवेकहीन होता है; तुम्हारी उम्र चाहे कितनी भी हो, जब तक तुम देखने में यथोचित रूप से सुंदर हो, वह तुम पर डोरे डाल सकता है जिससे तुम रत्ती भर भी यह पता चले बिना कि क्या चल रहा है उसके जाल में फँस सकते हो। वह तुमसे हमेशा कोमल और सौम्य शब्द बोलता है और तुम्हारे प्रति चिंता, परवाह और लिहाज दिखाता है। वह तुम्हें कामुक नजरों से देखने के, तुम्हें चाय या पानी पिलाने के और कभी-कभी तुम्हारे लिए छोटे-मोटे तोहफे, चॉकलेट वगैरह तक खरीदने के मौके ढूँढ़ लेता है। जब तुम पूरी तरह से असावधान होते हो तो वह तुम्हारी सुरक्षा की दीवारों को भेदकर तुम्हारे दिल में प्रवेश कर जाता है। अनजाने में उसके बारे में सोचने भर से ही तुम्हारे दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं; अगर तुम कुछ दिन उसे नहीं देखते हो, तो तुम्हें लगता है जैसे कहीं कुछ कमी है और तुम सोचते हो, “मेरे आस-पास ऐसा कोई भी नहीं है जो मेरी उतनी परवाह करता हो जितना कि वह करता है। लगता है मुझे उससे प्रेम हो गया है। क्या उसे भी मुझसे प्रेम हो गया है?” यह किस तरह की अवस्था है? (प्रलोभन में पड़ना।) कुछ अनुभवी खिलाड़ी दूसरों को जाने देकर उन्हें शीशे में उतारने में माहिर होते हैं; कुछ समय तक तुम्हारे प्रति चिंता दिखाने और तुम्हारी भूख बढ़ाने के बाद वे तुमसे सारे संपर्क तोड़ देते हैं और तुम्हें खुद ही उनके जाल में फँसने के लिए राजी कर लेते हैं। जब तुम्हें एहसास होता है कि तुम्हें उनसे प्रेम हो गया है और तुम उनके बिना जी नहीं सकते, तो इसका मतलब है कि तुम उनके प्रेम जाल में फँस चुके हो और तुम सम्मोहित हो चुके हो। एक बार सम्मोहित हो जाने पर तुम पूरी तरह से उनके चंगुल में फँस जाते हो। यह प्रेम जाल क्या है जिसमें लोग फँस जाते हैं? यह पारिवारिक स्नेह, दोस्ती या लोगों के बीच परवाह और प्रेम नहीं है, बल्कि कामवासना का जाल है। एक बार जब तुम कामवासना के जाल में फँस जाते हो तो तुम आसानी से नियंत्रण खो सकते हैं। पचानवे प्रतिशत से ज्यादा लोग, विशेष रूप से युवा, इससे उबर नहीं पाते हैं और ऐसे जाल से मुक्त नहीं हो पाते हैं। तो फिर क्या करना चाहिए? चूँकि तुम जानते हो कि ऐसे जाल से मुक्त होना बहुत मुश्किल है, इसलिए खुद को इसमें फँसने ही न दो। उन लोगों, चीजों या परिवेशों से दूर रहने के सारे संभव प्रयास करो जो तुम्हें इस जाल में ले जा सकते हैं। कुछ समय के लिए अपनी दूरी बनाए रखो और परमेश्वर से प्रार्थना करो और परमेश्वर के वचन पढ़ो। धीरे-धीरे तुम्हारी कामुक जरूरतें हल्की पड़ जाएँगी और गायब हो जाएँगी, तुम पर अब इस जाल का नियंत्रण और नहीं रहेगा और तुम मूल रूप से इस प्रलोभन पर काबू पा चुके होगे। हालाँकि यह नहीं पता कि अगली बार जब तुम्हारे सामने ऐसे प्रलोभन और जाल आएँगे तो तुम कैसा करोगे, क्या तुम उन पर काबू पा सकोगे या नहीं। एकमात्र तरीका है प्रार्थना करने और सत्य की तलाश करने के लिए बार-बार परमेश्वर के सामने आना और विभिन्न प्रलोभनों से दूर रहना। यकीनन खुद को सत्य से सुसज्जित करना और सत्य समझना सबसे मूलभूत चीजें हैं। लेकिन खुद को सत्य से सुसज्जित करना आसान नहीं है; इसके लिए तुमसे कुछ अनुभवों से गुजरने की अपेक्षा की जाती है और तुम्हारा आध्यात्मिक कद इतनी जल्दी नहीं बढ़ता, इसलिए विभिन्न पहलुओं में तुम्हारे बचाव भी इतनी जल्दी स्थापित नहीं किए जा सकते हैं। तो फिर क्या करना चाहिए? तुम्हें अक्सर परमेश्वर के सामने रहना चाहिए, तुम्हारे पास परमेश्वर के वचनों का मार्गदर्शन, पवित्र आत्मा का कार्य और परमेश्वर की सुरक्षा होनी चाहिए। ये सभी चीजें उपलब्ध होने और तुम्हारे व्यक्तिगत संकल्प के कारण ऐसे प्रलोभनों का सामना करने पर तुम्हारे पास बचाव के उपाय होंगे। इसके अलावा, जब तुम मामले की प्रकृति और यह जानते हो कि यह क्या नतीजे लाएगा, तो तुम जान-बूझकर ऐसे परिवेशों से बचोगे जिससे यह प्रमाणित होगा कि तुममें ऐसे प्रलोभनों को अस्वीकार करने का संकल्प है। तब तुम्हारे रवैये और तुम्हारी व्यक्तिपरक इच्छा के कारण परमेश्वर ऐसे प्रलोभनों से बचने में तुम्हारी मदद करेगा। अगर तुम्हारे सामने ऐसा परिवेश आ जाता है और तुम अपने दिल में विमुखता और नफरत महसूस करते हो, लेकिन तुम्हें नहीं पता कि कैसे मना करना है, तो परमेश्वर से प्रार्थना करो, उससे तुम्हारी रक्षा करने और तुम्हारे लिए ऐसे परिवेश को हटाने के लिए कहो। जब तुम्हारे पास ऐसी प्रार्थनाएँ और इच्छाएँ होती हैं, तो शायद कलीसियाई कार्य की जरूरतों के कारण जो व्यक्ति तुम्हारे लिए खतरनाक प्रलोभन पेश करता है, उसे तुमसे हटा दिया जाएगा जिससे उसके लिए तुमसे दोबारा संपर्क करना असुविधाजनक हो जाएगा और फिर वह तुम्हारे सामने और नहीं आएगा। यह परमेश्वर द्वारा तुम्हारी मदद करना है; यह परमेश्वर की सुरक्षा है। क्योंकि परमेश्वर तुम्हारी व्यक्तिगत इच्छा, रवैये, दृढ़ निश्चय और संकल्प को देखता है, इसलिए वह तुम्हारी इच्छा पूरी करने में सक्रियता से और पूरी तरह से तुम्हारी मदद करेगा जिससे तुम्हारी रक्षा करने का नतीजा प्राप्त होगा। जब यह व्यक्ति चला जाता है और अब और तुम्हें परेशान नहीं करता है, तो हो सकता है कि तुम अंदर से जरा-सा खालीपन महसूस करो, यह सोचो कि अफसोस कि वह चला गया और यहाँ तक कि यह ख्वाब भी देखो, “काश वह अब भी यहाँ होता तो क्या हम अच्छी तरह साथ निभा पाते?” कभी-कभी ऐसे विचार आ सकते हैं, लेकिन परमेश्वर की सुरक्षा के कारण अंत में तुम्हें प्रलोभन से दूर रखा जाता है। अनजाने में यह मामला धीरे-धीरे तुम्हारे दिल में हल्का पड़ जाता है, यह धीरे-धीरे तुमसे दूर चला जाता है और समय के साथ तुम अपनी शांति वापस पा लेते हो, अपने जीवन की पुरानी स्थिति और सामान्य मानसिकता में लौट आते हो। इस मौके पर यह मामला समाप्त हो जाता है। इसने तुम्हारे लिए कोई खतरा या विघ्न-बाधा खड़ीं नहीं की है, बल्कि यह शैतान पर तुम्हारी जीत और शैतान से तुम्हारे दूर रहने और उसे अस्वीकार करने का एक तगड़ा प्रमाण और गवाही बन गया है। क्या यह बहुत अच्छा नहीं है? (हाँ।) परमेश्वर अपने क्रियाकलापों में कभी किसी को बाध्य नहीं करता है। चूँकि तुम इस व्यक्ति को बहुत पसंद करते हो, चूँकि तुम महसूस करते हो कि वह तुम्हें बहुत बड़ी खुशी और आनंद दे सकता है, तुम्हें सुख दे सकता है, इसलिए परमेश्वर तुम्हें इस खुशी और आनंद से वंचित नहीं करेगा और न ही परमेश्वर इस व्यक्ति को तुमसे दूर करेगा। जहाँ तक नतीजों की बात है, तो उन्हें तुम्हें अकेले ही भुगतना पड़ेगा। होता यह है कि धीरे-धीरे तुम दानवों के, दुष्टों के, लम्पट और व्यभिचारी लोगों के प्रलोभन और वासना भरे अनुचित संबंधों में फँसते चले जाते हो और अंत में अपने जमीर की निंदा और परमेश्वर की मौजूदगी खो बैठते हो। देह की कामवासनाएँ पूरी करने की खुशी और आनंद का मजा लेने के बाद तुम्हें कोई शर्म महसूस नहीं होती है और तुम अपना मन मारकर ऐसे प्रलोभन से दूर नहीं रह पाते हो—इसे ही खुद को अनैतिकता के हाथों छोड़ देना कहते हैं। तुम्हें लगता है कि तुम सबसे खुश व्यक्ति हो, तुम इस खुशी और आनंद का भरपूर मजा लेते हो, ऐसी खुशी और आनंद पाकर खुद को खुशकिस्मत समझते हो और ऐसे प्रेम जाल में फँसा रहकर बहुत संतुष्ट रहते हो। तो फिर अब भी परमेश्वर क्या कर या कह सकता है? परमेश्वर तुम्हें कोई संकेत नहीं देगा, किसी बात की चेतावनी नहीं देगा और कुछ भी नहीं करेगा। बस आगे बढ़ो और मजे करो। कामवासनाओं के जाल में फँसे लोगों के अंतिम नतीजों का पहले से अनुमान लगाया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति जो प्रेम जाल में फँसता है, अंत में खुश या आनंदित नहीं होता है; इसके विपरीत, इसका परिणाम सिर्फ दर्दनाक और दुखद ही हो सकता है। ऐसे नतीजे अकेले तुम्हें ही भुगतने पड़ेंगे और तुम्हें ही इन्हें भुगतना चाहिए। क्या परमेश्वर सिद्धांतों से कार्य करता है? (हाँ।) परमेश्वर तुम्हारे चुनावों का सम्मान करता है। यह मत सोचो, “परमेश्वर मुझ पर नजर रखेगा और मुझे काबू में रखेगा; वह मुझे डेट नहीं करने देगा और न ही मुझे अपनी कामुक जरूरतें पूरी करने देगा।” तुम गलत समझ रहे हो; परमेश्वर तम्हारे मामलों में दखल नहीं देता है। परमेश्वर जो चाहता है वह है प्रलोभन में पड़ने से, कुकर्मियों द्वारा गुमराह किए जाने से, शैतान द्वारा बरबाद किए और बुरी तरह से नुकसान पहुँचाए जाने से तुम्हारी रक्षा करना। लेकिन अगर तुम शैतान से सहमत होने का चुनाव करते हो, तो परमेश्वर कहता है कि यह तुम्हारी आजादी और तुम्हारा चुनाव है; जब तक तुम तैयार हो, जब तक तुम्हें इसका पछतावा नहीं होता है, तब तक परेम्श्वर तुम्हें बाध्य नहीं करेगा; तुम जो बोओगे वही तुम अकेले काटोगे और जब समय आएगा और तुम फूट-फूटकर रो रहे होगे, तब यह शिकायत मत करना कि परमेश्वरर ने तुम्हें याद नहीं दिलाया और यह शिकायत मत करना कि परमेश्वर ने तुम्हारी रक्षा नहीं की। परमेश्वर तुम्हारी रक्षा करना चाहता है, परमेश्वर चाहता है कि तुम प्रलोभन से दूर रहो, लेकिन तुम मना कर देते हो। अगर परमेश्वर उस व्यक्ति को तुमसे दूर कर दे जिसे तुम पसंद करते हो, जिसके साथ तुम प्रेम जाल में उलझे हुए हो, तो तुम उसे ढूँढ़ने निकल पड़ोगे, तुम पागलों की तरह कार्य करोगे, तुम काबू खो दोगे, तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करोगे, परमेश्वर को तुम्हारी भावनाओं के प्रति विचारशील नहीं होने और तुम्हारी कठिनाइयों को न समझने के लिए बुरी तरह फटकारोगे। इसलिए परमेश्वर ऐसा नहीं करेगा; परमेश्वर लोगों से वे चीजें नहीं करवाएगा जो वे करने को तैयार नहीं हैं। चूँकि तुमने वह मार्ग खुद चुना, इसलिए अंत में उत्पन्न होने वाले भयानक नतीजे अकेले तुम्हें ही भुगतने पड़ेंगे। तुम्हारी तरफ से यह वार कोई नहीं सहेगा। क्या अब यह मामला स्पष्ट है? (हाँ।)

अगर कुछ लोग दानवों और शैतानों के—दुष्ट लोगों के—अनुचित संबंधों का सामना करते हैं और उन्हें अस्वीकार नहीं करते हैं, बल्कि उनके साथ अपना जीवन बिताने को तैयार रहते हैं, तो यह उनका अपना चुनाव है। जब अंत में इसके कड़वे नतीजे निकलते हैं, तो उन्हें दूसरों पर इल्जाम नहीं लगाना चाहिए; खुद बहुत ही घटिया और बहुत ही पथभ्रष्ट होने के कारण उन्हें खुद से नफरत करनी चाहिए और अपने गाल पर तमाचे मारने चाहिए और खुद को कोसना चाहिए। अंत में तुम जिस कड़वे फल की फसल काटते हो, उसका परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं है। यह मत कहना, “परमेश्वर ने मेरी रक्षा क्यों नहीं की? परमेश्वर ने मुझे उस समय क्यों नहीं रोका?” मैं तुम्हें बताता हूँ, परमेश्वर का ऐसा कोई दायित्व नहीं है; उसने तुम्हें पहले ही स्पष्ट रूप से बता दिया है कि उसे तुमसे क्या कहना चाहिए। तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जिसके पास स्वतंत्र रूप से सोचने की क्षमता है; परमेश्वर ने तुम्हें स्वतंत्र इच्छा दी है और तुम्हें स्वतंत्र रूप से चुनने का अधिकार है। इसलिए जब तुम्हारे सामने कोई चीज आती है तो परमेश्वर तुम्हें चुनने का अधिकार देता है। चूँकि तुम्हें चुनने का अधिकार है, इसलिए अंत में तुम जिस कड़वे फल की फसल काटते हो, वह तुम्हारे अपने चुनाव से उत्पन्न होता है, इसलिए तुम्हें परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिए या जहाँ भी हो सके इल्जाम नहीं लगाना चाहिए। परमेश्वर तुम्हें सत्य बताने और उद्धार का मार्ग दिखाने का कार्य करता है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि तुम परमेश्वर का अनुसरण करना चुनते हो या शैतान का, वह तुम्हारी मर्जी है। अगर तुम एक धन्य व्यक्ति हो और सत्य का अनुसरण करने को तैयार हो तो फिर परमेश्वर का अनुसरण करो। अगर तुम सत्य से प्रेम नहीं करते हो, बल्कि दुनिया और दुष्टता से प्रेम करते हो—अगर तुम्हारा जीवन सिर्फ एक बेकार जीवन है—तो शैतान का अनुसरण करना चुनो; तुम्हें कोई नहीं रोक रहा है। आज भी कुछ लोग परमेश्वर और परमेश्वर के घर को गलत समझते हैं, हमेशा शिकायत करते रहते हैं, “मेरी उम्र पहले ही तीस-चालीस वर्ष हो चुकी है, मैंने डेट या शादी नहीं की है—परमेश्वर का घर इसकी अनुमति नहीं देता!” परमेश्वर के घर ने कब किसी को डेट या शादी करने से प्रतिबंधित किया है? यह तुम्हारी आजादी है; परमेश्वर का घर इसमें दखल नहीं देता है। हालाँकि एक शर्त है : अगर तुम ऐसा करते हो तो फिर तुम पूर्णकालिक कलीसिया में अपना कर्तव्य नहीं कर सकते क्योंकि रूमानी रिश्ते में होने और अब और अपना कर्तव्य करने का मन नहीं होने से कलीसिया के कार्य में बाधा आएगी। अगर तुम सचमुच डेट और शादी करना चाहते हो तो फिर पहले वह कार्य सौंप दो जिसके लिए तुम जिम्मेदार हो और हम थोड़े समय के लिए अपने रास्ते अलग कर लेंगे। क्या हर किसी के लिए इस लिहाज से सिद्धांत स्पष्ट हैं? (हाँ।) अगर कोई डेट या शादी करना चाहता है तो यह बिल्कुल ठीक है; कोई भी इसे प्रतिबंधित नहीं करता है। हालाँकि विपरीत लिंग पर अंधाधुंध डोरे डालना और कलीसियाई जीवन में बाधा डालना स्वीकार्य नहीं है। जो लोग दूसरों पर अंधाधुंध डोरे डालते हैं, वे दानव हैं; वे दुष्ट, लम्पट और व्यभिचारी लोग हैं और परमेश्वर का घर ऐसे लोगों की मौजूदगी की बिल्कुल भी अनुमति नहीं देता है। इस प्रकार का व्यक्ति चाहे लोगों के किसी भी समूह में हो, वह अंधाधुंध दूसरों पर डोरे डालता है और उनका उत्पीड़न करता है। वह एक अभिशाप की तरह आतंक फैलाता है और लोगों को हमेशा बेचैन और असहज महसूस करवाता है। वह जहाँ भी कलीसियाई जीवन जीता है, उसकी विघ्न-बाधाएँ गंदा परिवेश बनाती हैं और कलीसिया अव्यवस्थित गड़बड़ में बदल जाती है। वह न सिर्फ कलीसिया के कार्य को नाकाम करता है, बल्कि अपना कर्तव्य करने वाले भाई-बहनों के सामान्य क्रम में भी बाधा डालता है। ऐसे लोगों पर कड़ी नजर रखनी चाहिए और उन्हें प्रतिबंधित करना चाहिए और जो लोग गंभीर प्रभाव डालते हैं उन्हें अलग-थलग कर देना चाहिए या बाहर निकाल देना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “मैंने सिर्फ कुछ ही लोगों को नुकसान पहुँचाया है—यह कोई बड़ी समस्या नहीं है, है ना?” अगर तुम कुछ लोगों को नुकसान पहुँचा सकते हो तो तुम दर्जनों लोगों को भी नुकसान पहुँचाने में सक्षम हो। तुम बस इसी किस्म की घटिया चीज हो। कलीसिया में बेतहाशा दूसरों पर डोरे डालना और अनुचित तरीके से कामवासना मुक्त करना—इस तरह से लोगों को नुकसान पहुँचाना—अस्वीकार्य है। अगर तुम लोगों पर डोरे डालना चाहते हो तो अविश्वासी लोगों की दुनिया में ऐयाशी की जगहों पर चले जाओ; वहाँ तुम्हें कोई नहीं रोकेगा। लेकिन परमेश्वर का घर, वह जगह जहाँ भाई-बहन अपने कर्तव्य करते हैं, सत्यनिष्ठ, शांत और पवित्र है; यह किसी भी दानव या शैतान को इसमें बाधा डालने या तोड़-फोड़ करने की अनुमति नहीं देता है। अगर कोई कलीसिया को डेट करने या अनैतिकता की जगह में बदलना चाहता है, अपनी इच्छानुसार कामवासना को तुष्ट करना चाहता है तो यह बिल्कुल अस्वीकार्य है! यह कलीसिया है, परमेश्वर के कार्य का स्थल है, वह जगह है जहाँ पवित्र आत्मा लोगों को शुद्ध करने और पूर्ण बनाने के लिए कार्य करता है। चाहे पुरुष हो या महिला, सभी को गरिमापूर्ण और सभ्य होना चाहिए और उचित कार्य करना चाहिए। दूसरों पर अंधाधुंध डोरे डालने की अनुमति नहीं है और न ही अनुचित रूप से कामवासना मुक्त करने की अनुमति है। अगर तुम अपनी कामवासना को नियंत्रित नहीं कर सकते और बस उसे मुक्त करना चाहते हो तो शादी के लिए कोई उपयुक्त व्यक्ति चुन लो; कलीसिया में दूसरों पर अंधाधुंध डोरे मत डालो। जो कोई भी अंधाधुंध डोरे डालता है और भाई-बहनों की नाराजगी को उकसाता है उसे तुरंत बहिष्कृत या निष्कासित कर देना चाहिए ताकि वह कलीसियाई जीवन में बाधा न डाले। समझे? (समझ आ गया।) पुरुषों और महिलाओं के बीच सीमाएँ होनी चाहिए। अगर कोई पुरुष हमेशा महिलाओं के समूह में घूमता रहता है, कार्य कारणों से नहीं और न ही इस कारण से कि ऐसे महत्वपूर्ण मामले है जिन पर ध्यान देना जरूरी है, बल्कि महिलाओं के बीच अपना दिखावा करने, कामवासना मुक्त करने और उन पर अंधाधुंध डोरे डालने के लिए, तो यह उत्पीड़न है। अगर कोई महिला किसी कारणवश या बिना किसी कारण के हमेशा पुरुषों के समूहों में घूमती रहती है, हमेशा उन पर बेतहाशा डोरे डालती है, उन्हें कामूक नजरों से देखती है और अपने आकर्षण का प्रदर्शन करती है तो उससे भी दानव की तरह निपटा जाना चाहिए। अगर तुम सामान्य रूप से कार्य पर चर्चा या संगति कर रहे हो, तो यह स्वीकार्य है, लेकिन दूसरों पर अंधाधुंध डोरे डालना और इश्कबाजी करना स्वीकार्य नहीं है। ऐसा कोई भी व्यवहार जिससे हंगामा होता है वह कलीसियाई जीवन में बाधा डालने वाला और कलीसियाई कार्य के सामान्य क्रम को नष्ट करने वाला व्यवहार होता है और परमेश्वर के घर में इसकी अनुमति नहीं है। सभी को इन लम्पट, व्यभिचारी, यौन उत्तेजक दानवों को अस्वीकार करना चाहिए और उनसे दूर रहना चाहिए। जब ज्यादातर लोग उन्हें अस्वीकार करने, उजागर करने और उनसे दूर रहने के लिए उठ खड़े होंगे, यह सुनिश्चित करेंगे कि दूसरों पर डोरे डालने के उनके प्रयास विफल हो जाएँ और ऐसा कर देंगे कि वे किसी भी परिस्थिति में अपनी मनमानी न कर पाएँ, तो वे धीरे-धीरे अपनी हरकतें बंद कर देंगे। अगर वे सामान्य रूप से अपना कर्तव्य नहीं कर सकते हैं और जब भी उन्हें खाली समय मिलता है, वे बस बेतहाशा दूसरों पर डोरे डालते हैं और उन्हें परेशान करते हैं, रूमानी रिश्तों में लिप्त रहने के लिए भाग-दौड़ करते रहते हैं और रूमानी रिश्ते में होने के एहसास का मजा लेते हैं, तो उन्हें तुरंत बाहर निकाल दो। जल्दी से इस पेचीदा गुत्थी को सुलझा डालो और इन स्वच्छंद व्यक्तियों से निपटो—उन्हें लोगों को बाधित करने का कोई मौका मत दो। क्या हमारी संगति के जरिये अब यह मामला स्पष्ट हो गया है? (हाँ।) क्या तुम लोगों ने कुछ प्राप्त किया है? क्या तुम्हारे पास अभ्यास का कोई मार्ग है? क्या अब तुम्हारे पास इस प्रकार के लम्पट और व्यभिचारी व्यक्ति का भेद पहचानने की क्षमता है? (हाँ।) क्या तुम इस बात पर स्पष्ट हो कि तुम्हें कैसे आचरण करना है, अपने उचित स्थान पर कैसे बने रहना है और सामान्य मानवता में तुम्हें जो करना चाहिए, उसे कैसे करना है? (हाँ।) इसमें ऐसे सत्य हैं जो लोगों को समझने चाहिए और भेद पहचानने के ऐसे सिद्धांत हैं जिन पर उन्हें स्पष्ट होना चाहिए और यकीनन ऐसे सत्य सिद्धांत भी हैं जिनका लोगों को अभ्यास करना चाहिए और ऐसे मार्ग हैं जिन्हें उन्हें अपनाना चाहिए। इन सब बातों को स्पष्ट कर दिए जाने से यह मामला पूरी तरह से प्रस्तुत कर दिया गया है।

आज की हमारी संगति के लिए बस इतना ही। अलविदा!

11 फरवरी 2024

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परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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