सत्य का अनुसरण कैसे करें (7)

पिछली सभा में हमने इस बारे में संगति की थी कि काबिलियत क्या होती है और व्यक्ति की काबिलियत मापने का क्या तरीका है। हमने व्यक्ति की काबिलियत मापने के लिए कुल कितने मानकों की सूची बनाई थी? (ग्यारह।) इन ग्यारह मानकों को एक बार फिर दोहराओ। (सीखने की क्षमता, चीजों को समझने की क्षमता, समझने की क्षमता, चीजों को स्वीकार करने की क्षमता, संज्ञानात्मक क्षमता, राय बनाने की क्षमता, चीजों को पहचानने की क्षमता, चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता, फैसले लेने की क्षमता, चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता और अभिनव क्षमता।) इन ग्यारह क्षमताओं में से हर क्षमता व्यक्ति की व्यापक काबिलियत की माप का एक हिस्सा है। पिछली बार हमने इनमें से लगभग दस के बारे में संगति की थी, चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता तक संगति की थी। हर क्षमता के लिए हमने अच्छी काबिलियत, औसत काबिलियत, खराब काबिलियत और कोई काबिलियत न होने की अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की थी। बिना काबिलियत वाले लोगों के पास मूल रूप से कोई खूबी नहीं होती है, कोई सच्चा शौक या रुचि नहीं होती है। किसी भी चीज का सामना करते समय उनकी कोई राय नहीं होती है और उनमें राय बनाने की क्षमता नहीं होती है। उनमें लोगों, घटनाओं और चीजों को पहचानने की कोई क्षमता नहीं होती है; उनमें कुछ भी स्वीकार करने की भी कोई क्षमता नहीं होती है और यकीनन यह तो कहा ही नहीं जा सकता है कि उनमें चीजों पर प्रतिक्रिया करने या फैसले लेने की क्षमता होती है। क्योंकि ऐसे लोगों में कोई खूबी नहीं होती है, इसलिए वे चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता से जुड़े ही नहीं होते हैं।

चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता के बारे में हमने पिछली सभा में इसकी विषय-वस्तु के कुछ हिस्से के बारे में संगति की थी। चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता का मुख्य रूप से क्या मतलब है? मूल्यांकन वह चीज है जिसे लोग इस अर्थ में भेदभाव कहते हैं कि यह लोगों, घटनाओं और चीजों के विचारों, दृष्टिकोणों, रुखों और हिमायत किए गए विषयों को पहचानने की क्षमता है। चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता में मुख्य रूप से कुछ मुद्दों के संबंध में व्यक्ति के विचार और दृष्टिकोण शामिल हैं; यानी वे चीजें जो विचार के क्षेत्र से संबंधित हैं। अगर तुममें इन चीजों को पहचानने और उनकी सराहना करने की क्षमता है तो तुम चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता वाले व्यक्ति हो। अगर तुम्हें यह नहीं मालूम कि कैसे देखना है और तुम विचारों और दृष्टिकोणों से संबंधित इन मुद्दों को मूल रूप से महसूस नहीं कर पाते हो तो तुम्हें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता वाला व्यक्ति नहीं माना जा सकता है—इस क्षमता का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन जब तुम किसी चीज का सामना करते हो, तो अगर तुम उस चीज की उत्पत्ति और उसके पीछे का उद्देश्य पहचान पाते हो और यह पहचान पाते हो कि वह जो विचार और दृष्टिकोण व्यक्त करती है और जिनकी हिमायत करती है वे ठीक हैं या नहीं और यह भी पहचान पाते हो कि क्या ये विचार और दृष्टिकोण मान्य हो सकते हैं, वे सकारात्मक चीजें हैं या नकारात्मक और क्या वे चीजों के विकासात्मक नियमों के अनुरूप हैं या परमेश्वर द्वारा बनाई गई सभी चीजों को नियंत्रित करने वाले नियमों में परिघटनाओं के करीब हैं—अगर तुममें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की इस प्रकार की क्षमता है तो इससे यह साबित होता है कि तुम्हारी काबिलियत काफी अच्छी है। अगर इस चीज द्वारा हिमायत किए गए विचार और दृष्टिकोण में या यह जिस दिशा और लक्ष्य का प्रचार करती है उनमें गलतियाँ, विकृतियाँ हैं या ऐसी चीजें हैं जो मानवता के या सोचने-विचारने के तर्क के अनुरूप नहीं हैं या ऐसी चीजें हैं जो परमेश्वर द्वारा बनाई गई सभी चीजों को नियंत्रित करने वाले वस्तुनिष्ठ नियमों के अनुरूप नहीं हैं—अगर तुम इन सबका पता लगा सकते हो और तुम क्या ठीक है और क्या दोषपूर्ण है इन दोनों का पता लगा सकते हो तो यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि तुममें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता है और तुम्हारी चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता ऊँची है; तुममें यह क्षमता होने का मतलब है कि तुम्हारी काबिलियत बहुत अच्छी है। उदाहरण के लिए, जब तुम कलीसिया के किसी भाई या बहन का लिखा कोई लेख पढ़ते हो, तो तुम पता लगा सकते हो कि क्या चीजों की उनकी समझ, लोगों के प्रकृति सार की उनकी समझ और परमेश्वर के वचनों की उनकी समझ सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है, क्या लेख में व्यक्त दृष्टिकोण विकृत हैं और वे जो दृष्टिकोण और रुख अपनाते हैं वे ठीक हैं या दोषपूर्ण—तुन इन सभी चीजों का पता लगा सकते हो। अगर तुम लेख में सही विचारों और दृष्टिकोणों से सहमत हो सकते हो; और अगर तुम लेख में भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों को भी पहचान सकते हो और उन्हें ठीक कर सकते हो और तुम्हें पता है कि ऐसे विचार और दृष्टिकोण क्यों गलत हैं और वे सोचने-विचारने के तर्क के किन पहलुओं या सकारात्मक चीजों के किन वस्तुनिष्ठ नियमों का उल्लंघन करते हैं और एक गहरे स्तर पर तुम यह देख सकते हो कि वे सत्य सिद्धांतों के ऐसे किस पहलू का उल्लंघन करते हैं जिसके बारे में परमेश्वर ने मानवजाति को चेताया है—इससे साबित होता है कि तुम्हारी काबिलियत अच्छी है। एक बात यह है कि अगर तुम यह देख पाते हो कि इस लेख में ऐसी कौन-सी सकारात्मक चीजें हैं जो सीखने लायक हैं और तुम यह आकलन भी कर सकते हो कि यह लोगों को कौन-सी सकारात्मक दिशा प्रदान करता है और साथ ही, यह अपने साथ कौन-सा सकारात्मक प्रावधान, सहायता और समर्थन लाता है—और इसके अलावा, अगर तुम यह जान पाते हो कि इस लेख में कौन-सी प्रतिकूल, नकारात्मक और विकृत बातें हैं; इसमें ऐसे कौन-से भ्रामक विचार और दृष्टिकोण हैं जो लोगों की सोच को गलत दिशा में ले जा सकते हैं और लोगों पर उनका क्या नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है; इन भ्रामक चीजों को कैसे ठीक करना चाहिए; और कैसे कुछ कमियों की भरपाई की जानी चाहिए ताकि यह लोगों को ज्यादा लाभ पहुँचा सके—तो यह चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता होने की अभिव्यक्ति है। उदाहरण के लिए, नृत्य सीखने में जब तुम कोई नृत्य प्रदर्शन देखते हो, तो तुम यह पता लगा सकते हो कि कौन-सी हरकतें बहुत मानवीय बनाई गई हैं, मानवता में विचारों और इच्छाओं को व्यक्त करती हैं, मानवता के परिप्रेक्ष्य से उत्पन्न होती हैं, मानवता में निहित हैं और सामान्य मानवता के जमीर और विवेक की जरूरतों के बहुत ही अनुरूप हैं; और तुम यह पता लगा सकते हो कि कौन-सी हरकतें, चेहरे की अभिव्यक्तियाँ और शरीर के हाव-भाव के अभिव्यंजक तरीके और साथ ही उनमें हिमायत किए गए विचार सकारात्मक हैं और व्यक्ति की आध्यात्मिक दुनिया को समृद्ध कर सकते हैं—तुम इन सभी चीजों को देखने में समर्थ हो। तुम सिर्फ नृत्य करने या कुछ आसान मुद्राएँ करने में समर्थ नहीं हो—बल्कि तुम किसी नृत्य प्रदर्शन में हिमायत किए गए विचार देख पाते हो; तुम इसमें विचारों के अर्थ समझ पाते हो और साथ ही इन विचारों के मार्गदर्शन में उपयोग की गई नृत्य शैलियों को भी समझ पाते हो। अगर नृत्य की शैलियाँ और शरीर के हाव-भाव लोगों के लिए फायदेमंद हैं और कुछ ऐसी चीज हैं जो तुम्हें सीखनी चाहिए, स्वीकार करनी चाहिए और जिससे तुम्हें प्रेरित होना चाहिए—तुम इन चीजों को देखने और सीखने में समर्थ हो और तुम इसके सकारात्मक तत्वों को स्वीकार कर पाते हो—तो यह चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता होने की अभिव्यक्ति है। यकीनन, अगर यह नृत्य कुछ ऐसे विकृत विचार पेश करता है जो मानवता के अनुरूप नहीं हैं और तुम उन्हें महसूस भी कर पाते हो और तुम यह पहचान पाते हो कि गलतियाँ कहाँ निहित हैं और तुम्हें यह भी पता है कि पेशकश के इस रूप में क्या गलत है और इसके पीछे मार्गदर्शन देने वाले विचार क्या हैं—अगर तुम यह सब देख और पहचान पाते हो, तो यह भी चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता होने की अभिव्यक्ति है। ये दो उदाहरण देने के बाद क्या अब तुम लोग समझ गए हो कि चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता क्या होती है? क्या यह मापने का मानक स्थापित हो चुका है कि क्या किसी में अच्छी काबिलियत और चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता है? (हाँ।)

अगर तुम कुछ देखते हो और तुम्हें पता है कि यह किन विचारों और दृष्टिकोणों की हिमायत करता है या यह कौन-सा परिप्रेक्ष्य और रुख अपनाता है, लेकिन तुम्हें यह नहीं मालूम कि ये विचार और दृष्टिकोण ठीक हैं या दोषपूर्ण तो तुममें चीजों को पहचानने की ज्यादा क्षमता नहीं है। हो सकता है कि तुम सिर्फ यह महसूस करो, “यह नृत्य बहुत अच्छा है; यह लेख बहुत अच्छा है; यह फिल्म बहुत अच्छी है; इसका कलात्मक मूल्य है और इसकी अभिव्यंजक तकनीकें बहुत अच्छी हैं,” तुम इस चीज को सिर्फ उद्योग के परिप्रेक्ष्य से या ज्ञान के परिप्रेक्ष्य से देखते हो और इससे सीखते हो, लेकिन यह तय करने में समर्थ नहीं हो कि यह चीज जिन विचारों और दृष्टिकोणों की हिमायत करती है वे ठीक हैं या दोषपूर्ण, सही हैं या गलत, सकारात्मक हैं या नकारात्मक; और हो सकता है कि तुम ऐसे प्रश्न पूछो, “क्या ये विचार और दृष्टिकोण सत्य के अनुरूप हैं? क्या यह कार्य मानवता के अनुरूप है? क्या यह चीजों के विकासात्मक नियमों के अनुरूप है? क्या ऐसे लोगों का अस्तित्व है? क्या ऐसी घटनाएँ हुई हैं? क्या यह कोई सकारात्मक चीज है?” अगर तुम जो भी वाक्य बोलते हो वह प्रश्न चिह्न से समाप्त होता है, तो तुममें चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं है। अगर तुम सिर्फ उन्हीं शामिल पहलुओं को जानते हो जो तकनीकी, पेशेवर या ज्ञान-आधारित हैं, लेकिन जब विचार के स्तर पर चीजों की बात आती है, तो तुममें यह राय बनाने की क्षमता नहीं है कि वे ठीक हैं या दोषपूर्ण, सही हैं या गलत, तो यह तुम्हारी क्षमता के बारे में क्या कहता है? यह बताता है कि तुम औसत काबिलियत वाले हो। वैसे तो तुममें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की कुछ क्षमता है, लेकिन तुम्हारी क्षमता लेखक के विचारों की तकनीकी और पेशेवर परिप्रेक्ष्य से सराहना करने तक ही सीमित है। तुम सिर्फ यह बात पकड़ सकते हो या समझ सकते हो कि लेखक ने जो किया वह क्यों किया, लेकिन तुम यह मूल्यांकन नहीं कर सकते कि वह जिन विचारों और दृष्टिकोणों की हिमायत करता है वे ठीक हैं या नहीं और क्या वे सकारात्मक चीजें हैं या एक बार पेश किए जाने पर लोगों पर इन विचारों और दृष्टिकोणों का कितना बड़ा प्रभाव पड़ता है या यह सकारात्मक प्रभाव है या नकारात्मक प्रभाव या लोगों पर उनके क्या नतीजे आते हैं—तुम्हें इनमें से कुछ भी नहीं पता। इस स्तर के आधार पर ऐसे लोगों की काबिलियत सिर्फ औसत होती है। वे सिर्फ सराहना कर सकते हैं, लेकिन मूल्यांकन नहीं कर सकते और इसलिए वे चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता वाला होने की काबिलियत तक नहीं पहुँच पाते हैं। कुछ लोग में, चाहे वे कोई भी कर्तव्य क्यों न करें, चीजों को पहचानने की खराब क्षमता होती है। उन्हें लगता है कि चीजों को किसी भी तरीके से करना स्वीकार्य है। उनके दृष्टिकोण और रवैये बहुत संदेहास्पद और पूरी तरह से अस्पष्ट होते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई और क्या कहता है, वे इसे स्वीकार कर सकते हैं, उनके पास सटीक दृष्टिकोण या अभ्यास के सिद्धांत नहीं होते हैं। नतीजतन, वे कोई भी कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं करते हैं। चाहे वे कोई भी कार्य स्वीकार करें, जब अपना कार्य करने के दौरान उठने वाले विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों की सकारात्मकता या नकारात्मकता और सही या गलत होने के संबंध में सीमाएँ परिभाषित करने और उन्हें खींचने की बात आती है, तो वे विशेष रूप से संदेहास्पद और अस्पष्ट होते हैं। जब लोग उनसे पूछते हैं, “इस तरह का विचार या दृष्टिकोण उत्पन्न हुआ है—क्या यह ठीक है?” वे कहते हैं, “लोगों के मन आजाद हैं। उन्हें सीमित नहीं करना चाहिए। विविधता होनी चाहिए—किसी भी तरह का विचार पेश करने और अभिव्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए।” विभिन्न विचारों के अस्तित्व के बारे में उनका यह दृष्टिकोण है। यानी चाहे कोई भी विचार या दृष्टिकोण क्यों न उत्पन्न हो—चाहे वह सही हो या गलत, ठीक हो या दोषपूर्ण—वे मानते हैं कि उन सभी को अस्तित्व में रहने की अनुमति देनी चाहिए और उन्हें मुक्त भाव से पेश किया जाना चाहिए। वे सोचते हैं कि जब तक व्यक्ति किसी तरह से सोचता है, जब तक व्यक्ति की कोई जरूरत है, जब तक किसी विचार के लिए कोई श्रोता है या ऐसे लोग हैं जो उसका समर्थन करते हैं, तब तक उसके अस्तित्व में मूल्य है। उनका यह विचार और दृष्टिकोण बहुत संदेहास्पद है। अविश्वासियों के शब्दों में, इसका अस्तित्व अक्सर बिना सीमाओं के “धूसर क्षेत्र” में होता है। इन लोगों के पास यह राय बनाने के लिए कड़े मानक या कसौटियाँ नहीं होती हैं कि चीजें ठीक हैं या दोषपूर्ण। यह भी कहा जा सकता है कि ऐसे लोगों का कोई रुख नहीं होता है, उनका कोई वास्तविक विचार या दृष्टिकोण नहीं होता है। यकीनन यह भी कहा जा सकता है कि इन लोगों के पास किसी भी चीज के बारे में कोई सकारात्मक हिमायत नहीं होती है। तो फिर क्या ऐसे लोग सत्य स्वीकार कर सकते हैं? क्या वे सत्य समझ सकते हैं? यह कहना वाकई कठिन है। खराब काबिलियत होना समस्या वाली बात है। जब खराब काबिलियत वाले लोगों के सामने एक ही समय में दो विचार या दृष्टिकोण आते हैं, तो उनकी अपनी कोई राय नहीं होती है; उन्हें नहीं पता होता है कि कौन-सा ठीक है और कौन-सा दोषपूर्ण। वे उसी पक्ष का अनुसरण करते हैं जो ज्यादा जोरदार होता है। इसे कोई रुख नहीं होना कहते हैं। ऐसे लोग भ्रमित व्यक्ति होते हैं। हम इस बात पर चर्चा नहीं करेंगे कि उनकी मानवता का अनुसरण कैसा है या उनका चरित्र कैसा है—बस चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की उनकी क्षमता के लिहाज से बात की जाए, तो ऐसे लोगों की काबिलियत बस औसत होती है। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? क्योंकि वैसे तो उनकी काबिलियत उन्हें विचार के स्तर पर कुछ चीजों की सराहना करने में सक्षम बनाती है, लेकिन उनमें चीजों की सत्यता का मूल्यांकन करने और यह पहचानने की क्षमता नहीं होती है कि चीजें सही हैं या गलत, ठीक हैं या दोषपूर्ण। इसलिए, उनकी काबिलियत को औसत के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। क्योंकि जब चीजों का मूल्यांकन करने की बात आती है, तो उनके विचार, दृष्टिकोण और रुख बहुत ही संदेहास्पद होते हैं और उनके पास आधार या कसौटी के रूप में सकारात्मक चीजें नहीं होती हैं, वे कुछ अच्छी चीजें तो कर सकते हैं, लेकिन कुछ बुरी चीजें भी कर सकते हैं। वे कुछ अपेक्षाकृत ठीक चीजें कर सकते हैं जो दूसरों को लाभ पहुँचाती हैं और मानवता की सहायता करती हैं, लेकिन साथ ही वे ऐसी चीजें भी कर सकते हैं जो दूसरों को नुकसान पहुँचाती हैं और उन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। इसलिए, ऐसे लोगों की काबिलियत बस औसत होती है। उदाहरण के लिए, मान लो कि एक फिल्म है जिसमें निर्देशक द्वारा हिमायत किए गए विचार अपेक्षाकृत सकारात्मक और अपेक्षाकृत मानवीय हैं और वे ऐसी चीजें हैं जो मानवता की जरूरतों के अपेक्षाकृत अनुरूप हैं—ये ऐसी जरूरतें हैं जो आज के समाज में जायज हैं, जैसे कि लोकतंत्र, आजादी, मानवाधिकार और दूसरी सकारात्मक चीजें—और यह निर्देशक फिल्म के जरिये मानवीय विचारों की गहराई में बसी इन चीजों को बाहर लाता है ताकि लोगों को उन्हें जानने में मदद मिले। अगर औसत काबिलियत वाला कोई व्यक्ति यह फिल्म देखता है, तो वह पहचान सकता है कि वे विचार अच्छे और ठीक हैं। वे देख पाते हैं कि वे विचार आज के समाज में अपेक्षाकृत लोकप्रिय और सम्मानित हैं; वे निर्देशक द्वारा हिमायत किए गए विचारों का सही होना महसूस कर पाते हैं। लेकिन अगर इस फिल्म में निर्देशक कुछ अपेक्षाकृत विशिष्ट विचारों की भी हिमायत करता है—ऐसी चीजें जिनके बारे में ज्यादातर वयस्क और समझने की क्षमता वाले लोग नहीं सोचेंगे, जो बहुत चरम हैं और यह तक कहा जा सकता है, जो ऐसी चीजें हैं जो शायद ही कभी देखी जाती हैं या चीजों के सामान्य विकासात्मक नियमों के अनुसार जिनका होना लगभग असंभव हैं—तो चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की औसत क्षमता वाले लोग फिल्म देखते समय उनका भेद नहीं पहचान पाएँगे। वे सोचेंगे, “निर्देशक द्वारा हिमायत किए गए ये विशेष विचार गलत नहीं हैं। भले ही ये चीजें सिर्फ थोड़े-से लोगों द्वारा ही पसंद की जाती हों और अपनाई जाती हों, फिर भी आज के समाज में इन विचारों का सम्मान किया जाना चाहिए; उन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए ताकि हर कोई उन्हें जान सके और स्वीकार कर सके।” देखा तुमने, चाहे निर्देशक द्वारा उसी फिल्म में हिमायत की गई चीजें सकारात्मक हों या लोगों पर उनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता हो, वे उन्हें स्वीकार करेंगे और उनकी विशेष रूप से सराहना भी करेंगे। उनके लिए ठीक और दोषपूर्ण के बीच कोई स्पष्ट या निश्चित अंतर नहीं है। इसलिए, वे इस फिल्म में सकारात्मक चीजों को स्वीकार कर सकते हैं और नकारात्मक चीजों को भी स्वीकार कर सकते हैं। चूँकि वे इन चीजों को स्वीकार कर सकते हैं, इसलिए वे उन्हें लागू भी करेंगे। वे इन चीजों को अपने विचार और दृष्टिकोण व्यक्त करने वाले कार्यों में शामिल करेंगे या उन्हें दैनिक जीवन में दूसरों के मन में बिठाएँगे जिससे दूसरे लोग प्रभावित होंगे। यकीनन सकारात्मक चीजों का लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा, जबकि निश्चित रूप से नकारात्मक चीजों का लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसलिए, ऐसे लोग अच्छी चीजें करते हुए कुछ बुरी चीजें भी करेंगे। यानी जब तुम भूखे हो, तो वे, उदाहरण के लिए, तुम्हें एक कटोरा दलिया देंगे, लेकिन यह साफ-सुथरा नहीं होगा और इसमें कुछ रेत मिली होगी और इसे लंबे समय तक खाने से तुम्हारी सेहत को नुकसान पहुँचेगा। या फिर वे तुम्हें एक कटोरा भोजन देंगे, लेकिन उसमें मक्खी-मच्छर जैसी चीजें मिली होंगी। तुम्हें यह स्वादिष्ट लग सकता है, लेकिन इसमें कुछ ऐसे जीवाणु हैं जो शरीर के लिए नुकसानदायक होते हैं। वैसे तो ऐसे लोग तुम्हारी भूख मिटा चुके होंगे और तुम्हारा पेट भर चुके होंगे, लेकिन वे तुम्हारे शरीर पर कुछ प्रतिकूल प्रभाव भी डाल चुके होंगे। इसी तरह, अगर तुममें सूझ-बूझ नहीं है, तो जब तुम कोई कार्य देखते हो, तो इस बात की संभावना है कि तुम उसमें से कुछ गलत विचार और दृष्टिकोण स्वीकार करोगे और उसके द्वारा गुमराह कर दिए जाओगे और जहर दे दिए जाओगे। इसलिए, चीजों को पहचानने की क्षमता होना भी बहुत महत्वपूर्ण है। ये औसत काबिलियत वाले लोगों की चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता के लिहाज से अभिव्यक्तियाँ हैं।

अगले स्तर पर खराब काबिलियत वाले लोग हैं। खराब काबिलियत वाले लोगों में चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की कोई क्षमता नहीं होती है। यानी जब उन्हें कुछ भी दिखाई देता है, तो वे नहीं जानते हैं कि कौन-से विचार और दृष्टिकोण होना ठीक है और न ही उन्हें पता होता है कि कौन-सा नजरिया या रुख अपनाना ठीक है। वे यह भी नहीं जानते हैं कि इस मामले में लोग किस प्रकार के दोषपूर्ण विचार और दृष्टिकोण रखते हैं या ऐसे मामलों का सामना करते समय लोग कौन-से विचारों से नियंत्रित होते हैं—इसमें सोचने-विचारने का तर्क शामिल है और खराब काबिलियत वाले लोग इसमें पीछे रह जाते हैं, इसलिए यह असंभव है कि वे चीजों की सराहना करने में समर्थ हों। सिर्फ जब कोई व्यक्ति चीजों की सराहना करने में समर्थ होता है, उसके बाद ही यह कहा जा सकता है कि उसकी चीजों की सराहना कैसी है या क्या उसमें चीजों का मूल्यांकन करने की क्षमता है। अगर वह चीजों की सराहना भी नहीं कर पाता है, तो इस पर चर्चा करने का कोई मतलब भी नहीं बनता है कि क्या उसमें चीजों का मूल्यांकन करने की क्षमता है। उदाहरण के लिए, एक लेख पढ़ने के बाद कुछ लोग कहते हैं : “इस लेख में अलंकृत भाषा का उपयोग किया गया है, इसे बहुत सहज रूप से व्यक्त किया गया है और यह काफी मजाकिया है। यह लेख शानदार ढंग से लिखा गया है!” कोई पूछता है : “इस लेख में लेखक ने कौन-से विचार और दृष्टिकोण व्यक्त करने का लक्ष्य रखा? इस प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति उनका क्या रवैया है?” “ओह, इसमें कोई रवैया है? इसमें विचार और दृष्टिकोण भी शामिल हैं? मैंने इस पर ध्यान ही नहीं दिया। बहरहाल, मुझे लगता है कि उसका लेख बढ़िया लिखा गया है और मुझे उसे पढ़ने में आनंद आया।” दूसरा पक्ष पूछता है : “तो फिर तुमने उनके द्वारा व्यक्त किन विचारों और दृष्टिकोणों का आनंद लिया? क्या तुम्हें पता है कि कौन-सा अनुच्छेद या कहानी लेखक के किस प्रकार के विचार और दृष्टिकोण व्यक्त करती है और इस लेख का मुख्य विचार क्या है?” वे कहते हैं : “मैं अभी तक यह नहीं समझ पाया हूँ।” वे इसे दो-तीन बार और पढ़ते हैं और फिर भी उन्हें यही लगता है कि लेख बढ़िया लिखा गया है और वाक्पटु है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि यह कौन-से विचार और दृष्टिकोण व्यक्त करता है, तो वे इसे महसूस नहीं कर पाते हैं। इससे उनकी काबिलियत उजागर होती है, है न? अगर वे यह लेख पढ़ते हैं और यह महसूस नहीं कर पाते हैं कि यह लेख कौन-से विचार और दृष्टिकोण समझाता है, तो सिर्फ यही कहा जा सकता है कि उनमें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता नहीं है और वे कम काबिलियत वाले व्यक्ति हैं। अगर लेख में ऐसी स्पष्ट भाषा है जो पहले से ही ठीक विचार और दृष्टिकोण समझाती है और फिर भी वे इसे महसूस नहीं कर पाते हैं, तो इससे साबित होता है कि उनकी काबिलियत बेहद खराब है। वे सिर्फ इतना ही कह सकते हैं, “यह लेख बढ़िया लिखा गया है, इसकी भाषा सहज है और लेखन शैली अच्छी है,” लेकिन वे यह नहीं जानते या समझते हैं कि क्या इस लेख में चर्चित तथ्य वस्तुनिष्ठ हैं, यह पाठकों को क्या महसूस करवाता है या पाठक इससे क्या सीख सकते हैं और क्या प्राप्त कर सकते हैं—उन्हें अभी भी लेखक से पूछना पड़ेगा। यह पूरी तरह से साबित करता है कि ये लोग खराब काबिलियत वाले हैं। उनकी खराब काबिलियत कैसे दिखाई पड़ती है? उनकी खराब काबिलियत विचारों और दृष्टिकोणों को नहीं समझने में और चीजों की सराहना कैसे करनी है इसे नहीं समझने में दिखाई पड़ती है और यकीनन यह उनके द्वारा चीजों का मूल्यांकन करने में पूरी तरह से असमर्थ होने में और भी ज्यादा दिखाई पड़ती है। सामूहिक रूप से इसे चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता की कमी कहा जाता है। जिन लोगों में चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता नहीं होती है वे औसत काबिलियत वाले लोगों से ऐसे बदतर हैं कि उनमें न सिर्फ चीजों का मूल्यांकन करने की क्षमता नहीं होती है, बल्कि चीजों की सराहना करने की क्षमता की भी कमी होती है। इसलिए, जब विचारों और दृष्टिकोणों, सोचने-विचारने के तर्क के स्तर पर चीजों की या कोई चीज मानवता या चीजों के वस्तुनिष्ठ नियमों के अनुरूप है या नहीं इसकी बात आती है, तो वे उनकी असलियत नहीं देख पाते हैं और उन्हें नहीं पता होता है कि उनकी सराहना कैसे करनी है। वे यह भी महसूस नहीं कर पाते हैं कि क्या यह लेख कोई विचार या दृष्टिकोण समझाता है, फिर यह पहचानना तो दूर की बात है कि ये विचार और दृष्टिकोण ठीक हैं या दोषपूर्ण। सिर्फ इसी कारण से कि वे स्कूल गए हैं, वे शब्दों, ज्ञान, तकनीकी कौशलों और व्यवसायों से संबंधित चीजें पढ़ सकते हैं, लेकिन वे चीजों की सराहना कर पाए बिना उन्हें पढ़ने, देखने और सुनने में समर्थ होने के स्तर पर ही रह जाते हैं। ऐसे लोग खराब काबिलियत वाले लोग होते हैं। खराब काबिलियत वाले लोग तकनीकी कौशलों और व्यवसायों या ज्ञान के स्तर से संबंधित चीजों के बारे में बात कर सकते हैं, जैसे कि कोई चीज किस मशहूर व्यक्ति का कार्य है, किस मशहूर व्यक्ति के मशहूर विचार का उल्लेख किया गया है, अभिव्यक्ति की किस शैली का जिक्र किया गया है या इसे प्राप्त करने के लिए किस तकनीकी कौशल या पेशे का उपयोग किया गया है—वे इन चीजों को महसूस कर सकते हैं। लेकिन वे इन पेशों और तकनीकी कौशलों या ज्ञान के स्तर के आधार पर हिमायत और व्यक्त की जा रही अवधारणाओं को और साथ ही इस बात को नहीं समझते हैं कि इन चीजों की रूपरेखा और पेशकश के पीछे की अवधारणाएँ, आधार या मूलभूत बातें क्या हैं। खराब काबिलियत होने का यही मतलब है। ऐसे लोगों की एक विशेषता होती है : उन्हें नहीं पता होता है कि मुद्दों पर कैसे चिंतन करना है या उनके बारे में कैसे सोचना है। वे यह नहीं जानते हैं कि किसी चीज के कारण होने वाली परिघटनाओं का मूल कारण और सार कैसे पहचानना है, उनके बारे में कैसे राय बनानी है या उन्हें कैसे जानना है या भविष्य में इन परिघटनाओं के विकास की दिशा क्या है और उनके कारण लोगों, घटनाओं और चीजों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। ऐसे लोगों में सामान्य सोच नहीं होती है। वे जो चीजें समझ सकते हैं और जीवन के जो अनुभव समझ सकते हैं, वे बेहद सीमित हैं। चाहे उनका सामना कितने भी जटिल मामलों से क्यों न हो, वे उन्हें नहीं समझ पाते हैं या उनकी असलियत नहीं देख पाते हैं। यानी वे सिर्फ किसी चीज से संबंधित उन्हीं शब्दों के बारे में सोच सकते हैं जो उन्हें सुनाई पड़ते हैं और उस पाठ के बारे में सोच सकते हैं जो उन्हें किसी सतह पर दिखाई देते हैं और साथ ही इनमें शामिल बाहरी रूपों और विधियों के बारे में सोच सकते हैं जिससे वे सिर्फ इसी स्तर तक पहुँचते हैं। जहाँ तक गहरे पहलुओं की बात है, जैसे कि विभिन्न चीजों के बीच रिश्तों, तर्क और आपसी प्रभाव, वे न तो उनके बारे में सोचते हैं और न ही उनके बारे में सोचने में सक्षम होते हैं। कुछ लोग तो किसी चीज के बारे में इस हद तक भी सोचते हैं कि उनकी भूख मर जाती है, नींद उड़ जाती है या वे उदास हो जाते हैं और फिर भी वे उसकी असलियत नहीं समझ पाते हैं। खराब काबिलियत होने का यही मतलब है। इस बात की माप कि क्या किसी व्यक्ति में चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता है इस बात पर निर्भर करती है कि क्या किसी मामले का सामना करते समय वह विभिन्न चीजों के बीच जटिल रिश्तों, जुड़ावों या आपसी प्रभावों के और उनके द्वारा प्राप्त किए जा सकने वाले प्रभावों के संबंध में कई संभावनाएँ पेश करने के लिए राय बना सकता है या नहीं। अगर कोई व्यक्ति सिर्फ वही कह सकता है जो किसी ने कहा या किया, वह किसी सूझ-बूझ के बिना और किसी भी मुद्दे को महसूस कर पाए बिना सिर्फ जो सुना या देखा उसे बयान करता है, तो इससे पता चलता है कि उसके पास सामान्य सोच नहीं है। जिन लोगों में सोचने की क्षमता नहीं होती है, उनमें चीजों की सराहना करने की क्षमता नहीं होती है और यकीनन उनमें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता भी नहीं होती है और वे नहीं जानते हैं कि कैसे सोचना है। तो हमें इस क्षमता पर चर्चा करने की क्यों जरूरत है? अगर लोगों में भौतिक दुनिया की सराहना करने के लिए विभिन्न क्षमताएँ नहीं हैं, तो इन लोगों की काबिलियत खराब है। वे नहीं जानते हैं कि कैसे सोचना है और उनकी सोच में तर्क की कमी होती है, इसलिए ऐसे लोगों में सत्य समझने की क्षमता नहीं होती है। वह इसलिए क्योंकि सत्य में एक लिहाज से लोगों के वास्तविक जीवन में मुद्दों के विभिन्न पहलू शामिल होते हैं; साथ ही इसमें वे विभिन्न सिद्धांत भी शामिल होते हैं जिनका लोगों को अपने भ्रष्ट स्वभाव छोड़ देने के लिए अभ्यास करना चाहिए। यकीनन इसमें लोगों के वास्तविक जीवन में आने वाली विभिन्न प्रकार की एकल-पक्षीय या जटिल, बहुआयामी समस्याएँ और उनके बीच के रिश्ते और भी ज्यादा शामिल होते हैं। चाहे यह किसी अकेले सत्य के बारे में हो या एक से ज्यादा, आपस में जुड़े सत्यों के बारे में, कोई भी सत्य विनियम नहीं है; बल्कि वे चीजों की एक श्रेणी मापने के लिए सिद्धांत या कसौटियाँ हैं। सिद्धांतों और कसौटियों की बात की जाए तो वे एक जमा एक बराबर दो जैसे विनियम या सूत्र नहीं हैं। चूँकि वे सूत्र नहीं हैं, इसलिए वास्तविक जीवन में मामलों का सामना करते समय लोगों को इस बात पर चिंतन करने और यह तलाश करने में समर्थ होना चाहिए कि मानवता की कौन-सी समस्याएँ शामिल हैं, क्या इस पहलू में मानवता के प्रकाशनों में भ्रष्ट स्वभाव के तत्व शामिल हैं और एक ही प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव के लिए किन दशाओं और प्रकाशनों का अस्तित्व है और साथ ही लोगों को इसे परिवर्तित करने के लिए सत्य के किन पहलुओं का अभ्यास और पालन करना चाहिए—लोगों को यह सब कुछ समझने की जरूरत है। अगर तुम्हें सत्य के सिर्फ शब्द पता हैं लेकिन तुम्हें यह नहीं पता कि सत्य के इस पहलू में बोले गए सिद्धांत क्या हैं, तो तुम यह नहीं जानोगे कि वास्तविक जीवन की चीजों के साथ इसे सह-संबंध कैसे करना है और न ही तुम यह जानोगे कि सत्य का अभ्यास कैसे करना है। अगर तुममें सत्य समझने की क्षमता नहीं है, तो तुम इसे खुद में मौजूद समस्याओं के साथ या वास्तविक जीवन में आने वाली समस्याओं के साथ सह-संबंध नहीं कर पाओगे। तुम नहीं जानोगे कि सत्य के कितने पहलू शामिल हैं, अभ्यास और प्रवेश का मार्ग क्या है या तुम्हें कौन-सी समस्याएँ हल करनी चाहिए। यकीनन यह असंभव है कि तुम परमेश्वर के वचनों के आधार पर लोगों और चीजों को देख पाओगे या आचरण और कार्य कर पाओगे या तुम सत्य सिद्धांतों का पालन कर पाओगे या सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास कर पाओगे। अगर तुममें मानव जीवन से संबंधित कुछ लोगों, घटनाओं और चीजों की सराहना करने की क्षमता नहीं है, उनके बारे में तुम्हारा कोई विचार या दृष्टिकोण नहीं है और तुम मूल रूप से विचार के स्तर से संबंधित चीजें गहराई से समझ नहीं पाते हो, तुममें उनकी सराहना करने की क्षमता नहीं है और उनका मूल्यांकन करने की क्षमता तो और भी नहीं है, तो यह कहा जा सकता है कि तुममें सत्य समझने की क्षमता नहीं है। अगर तुममें सत्य समझने की क्षमता नहीं है और तुम सत्य समझने में असमर्थ हो, तो तुम अपनी मानवता में दोषों को बदलने और अपने भ्रष्ट स्वभाव छोड़ देने के लिए क्या उपयोग करोगे? अगर तुममें सत्य समझने की क्षमता नहीं है, तो तुम यह नहीं जानोगे कि तुम्हारे सामने जो मामले हैं उनमें कौन-से सत्य सिद्धांत शामिल हैं। यकीनन तुम यह भी नहीं जानोगे कि तुम्हें किन सत्य सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। ऐसे में तुम आँख मूँदकर कार्य करोगे—या तो विनियमों का पालन करोगे या धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर कार्य करोगे या नहीं तो बेतहाशा गलत कर्म करोगे। सत्य नहीं समझने से ये नतीजे, ये अभिव्यक्तियाँ होती हैं।

जब बात चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता की आती है, तो भले ही इसमें भ्रष्ट स्वभाव छोड़ देने के लिए सत्य का अनुसरण करने का मुद्दा शामिल न हो, खुद मानव जीवन के लिहाज से, अगर तुममें चीजों की सराहना करने की क्षमता नहीं है, तुम जो कुछ भी देखते हो उसके बारे में तुम्हारा कोई दृष्टिकोण नहीं होता है और न ही विचार के स्तर पर कोई राय होती है—तुम हर चीज को ऐसे देखते हो मानो तुम्हारी आँखों पर पट्टी की परत चढ़ी हो, तुम यह देखने में असमर्थ हो कि वहाँ कोई समस्या है—और तुम सिर्फ पूरी घटना या इसमें शामिल लोगों, घटनाओं और चीजों का खुलासा होने की प्रक्रिया जानते हो, लेकिन तुम यह नहीं जानते कि समस्या का सार क्या है या लोगों के संबंधित विचार और दृष्टिकोण क्या हैं, तो यह दर्शाता है कि तुम खराब काबिलियत वाले व्यक्ति हो। इसका कारण यह है कि तुम्हारे पास अपने जीवन की सभी समस्याओं के संबंध में कोई भी विचार नहीं है। तुम्हें नहीं पता कि विचार के स्तर पर समस्याओं पर कैसे विचार करना है, सोचना है या उन्हें परिभाषित करना है। तुम्हें यह नहीं मालूम कि अपनी उम्र, अपनी मानवता की परिपक्वता या अपने पिछले अनुभवों के आधार पर यह कैसे विचार करना है कि कोई चीज वास्तव में किस तरह की समस्या है, तुम्हें इससे क्या सीखना चाहिए और क्या प्राप्त करना चाहिए, इसका तुम पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह तुम्हारे लिए क्या सबक लाती है, तुम्हें इस प्रकार की समस्या को किस परिप्रेक्ष्य से देखना चाहिए और कैसे सँभालना चाहिए या अगर तुम इस प्रकार के मामले का दोबारा सामना करते हो तो तुम्हें कैसे कार्य करना चाहिए और क्या करने से बचना चाहिए। तुममें इन सभी विचारों की कमी है। चाहे तुम्हारे साथ कुछ भी हो जाए, तुम एक जानवर की तरह सीधे-सादे व्यक्ति हो और तुम्हारा कोई दृष्टिकोण नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितनी उम्र तक जिंदा रहते हो या तुमने कितना अनुभव किया है, तुम्हें अब भी यह नहीं पता कि समस्याओं के बारे में कैसे सोचना है। तुम यह नहीं जानते कि विभिन्न पहलुओं में समस्याओं पर विचार करने के लिए अपने पिछले अनुभवों, अपने ज्ञान और तुमने जो सीखा है उसका कैसे उपयोग करना है। इस तरह के लोग खराब काबिलियत वाले होते हैं। खराब काबिलियत वाले लोगों के लिए सत्य में प्रवेश करने की तो बात ही छोड़ दो—वे तो दैनिक जीवन के मामूली मामलों में भी किसी भी मिसाल का सारांश प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं। भले ही वे चालीस, पचास, सत्तर या अस्सी वर्ष तक जिंदा रहें, वे तब भी भ्रमित लोग ही रहेंगे जो कोई भी अनुभव साझा नहीं कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति मंदबुद्धि लोग होते हैं जिनके पास कोई विचार नहीं होता है। क्योंकि उनकी काबिलियत खराब होती है और उनमें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता नहीं होती है, चाहे ऐसे लोग कितनी भी उम्र तक जिंदा क्यों न रहें, वे कभी भी किसी भी चीज को विचार के स्तर पर नहीं देखते हैं। वे नहीं जानते हैं कि चीजों को कैसे देखना है और वे किसी भी चीज की असलियत नहीं जान पाते हैं। इसलिए, किसी की काबिलियत का आकलन करते समय, विशेष रूप से इसका कि क्या उसमें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता है, उसकी उम्र या उसके पिछले अनुभव मत देखो। बल्कि तुम्हें क्या देखना चाहिए? (हमें यह देखना चाहिए कि क्या उसके पास विचार हैं।) यानी तुम्हें यह देखना चाहिए कि क्या चालीस या पचास वर्षों तक विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का अनुभव करने के बाद उसके पास विचार के स्तर पर कोई व्यक्तिगत समझ है और साथ ही क्या उसके पिछले अनुभवों में मानव जीवन का मूल्य, लोगों द्वारा अपनाए जाने वाला मार्ग या मानवीय विचारों की गहराई और उनकी आध्यात्मिक दुनिया से संबंधित चीजें शामिल हैं। अगर उनके अनुभव सिर्फ कुछ मामलों से संबंधित हैं और विचार के स्तर पर चीजों को शामिल नहीं करते हैं, तो उनमें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता नहीं है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग अक्सर कहते हैं, “हमारी पीढ़ी में हम जैसे-तैसे गुजारा किया करते थे। कोई अच्छी चीज खाना आसान नहीं था; हम सिर्फ नववर्ष या दूसरे त्योहारों पर थोड़ा-सा माँस खा पाते थे। हमारी पीढ़ी के लोग बहुत सीधे और निष्कपट थे और हम बहुत सादे कपड़े पहनते थे।” वे इस तरह की बातें करते रहते हैं। जिस पर दूसरे लोग कहते हैं, “तुम लोगों की पीढ़ी इतनी याद करने लायक क्यों है? क्या ऐसी चीजें हैं जिनसे हम नौजवान कुछ प्राप्त कर सकें और जिनके बारे में हम विचार के स्तर पर बातचीत कर सकें?” वे उत्तर देते हैं, “हमारे समय में जब हम जंग के मैदान में लड़ने जाते थे, तो हम कई दिनों तक बिना सोए रहते थे क्योंकि हमें लगातार कूच करना पड़ता था। कभी-कभी हमें पूरा दिन एक बार का भोजन भी नहीं मिलता था। जब हम शिविर पहुँचते थे, तो रंगरूट सीधा सोने चले जाते थे, लेकिन हम पुराने सैनिक पहले भोजन करते थे और फिर सोने जाते थे। नहीं तो हमें भोजन के समय के बाद जब फिर से सड़क पर चलना पड़ता, तो हम सड़क पर भूखे रह जाते।” दूसरे लोग कहते हैं, “यह तो बस एक घटना है; इसे विचार के स्तर पर कुछ नहीं माना जाता है। कुछ ऐसा बताओ जो हम नौजवानों के सीखने लायक हो या कुछ सबक बताओ जो घूम-घूमाकर जाने से बचने में हमारी मदद कर सकें और हमें गलतियाँ करने या बेवकूफी के कारण निम्न स्तर की गलतियाँ करने से रोक सकें।” वे कहते हैं, “उस समय हम आजकल के नौजवानों जैसे नहीं थे जो आलसी और पेटू हैं और कार्य से नफरत करते हुए आराम पसंद करते हैं। उस जमाने में हम बस ज्यादा कष्ट सहना, ज्यादा कार्य करना चाहते थे और अच्छा निर्वहन करना चाहते थे ताकि हम अपने अगुआओं का ध्यान आकर्षित कर सकें और हमें तरक्की मिल सके।” क्या इन शब्दों में विचार के स्तर पर कोई चीज है? (नहीं।) यह सुनने के बाद क्या इससे तुम्हें लगता है कि ये किसी आध्यात्मिक गुरु के शब्द हैं, उस तरह की प्रेरणादायक बातें हैं जो अविश्वासी लोग कहते हैं? क्या यह तुम्हारी सोच को व्यापक बनाता है, तुम्हारे विचार के स्तर को उन्नत करता है, चीजों को जानने की तुम्हारी क्षमता को बढ़ाता है या तुम्हें कुछ नई चीजों की खोज करने या उन विचारों और दृष्टिकोणों को ठीक करने में मदद करता है जिनके बारे में तुमने पहले कभी सोचा ही नहीं था? (नहीं।) तो क्या ऐसे लोगों में चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता होती है? चाहे तुम उनसे विचार के स्तर से जुड़े मामलों के बारे में कैसे भी क्यों न पूछो, तुम्हें उनसे कोई भी उत्तर नहीं मिलेगा। ऐसा वाकई नहीं है कि वे बोलने के अनिच्छुक हैं; बात यह है कि उनके अंदर बस कुछ है ही नहीं। खराब काबिलियत होने का यही मतलब है। यहाँ तक कि जब वे पचास या साठ वर्ष के हो जाते हैं, तब भी उनके पास कोई विचार या दृष्टिकोण नहीं होता है; वे जीवन में बस इसी तरह से जैसे-तैसे चलते रहते हैं। उन्हें नहीं मालूम होता है कि जीना सिर्फ संभावनाओं, अच्छे परिवार, अच्छी नौकरी या अच्छे जीवन का अनुसरण करने के बारे में नहीं है, बल्कि विचार के स्तर पर भी ऐसे मामले हैं जिनके लिए दिल की गहराइयों में विचार करने, चिंतन करने और निरंतर सारांश प्रस्तुत करने की जरूरत पड़ती है। उन्हें नहीं मालूम होता है कि मानव जीवन के मार्ग पर लोग कई अनजान चीजों का सामना करेंगे और न ही वे यह जानते हैं कि उन्हें उनका सामना कैसे करना चाहिए। जब उनके साथ कुछ नहीं होता है, तो वे घूम-घूमाकर जाने या गलत मार्ग पर चलने से बचने के लिए पहले से नहीं सोचते या चिंतन नहीं करते हैं। उन्हें यह भी नहीं पता होता है कि उन्होंने जिन कुछ चीजों का अनुभव किया है उनमें उन्होंने एक निश्चित तरीके से क्यों कार्य किया, क्या उस तरह से कार्य करना सही था या गलत या खुशी से जीने, मन की शांति के साथ जीने और निरर्थक नहीं बल्कि मूल्य वाला जीवन जीने के लिए आगे के मार्ग पर कैसे चलना चाहिए। क्योंकि ऐसे लोग खराब काबिलियत वाले होते हैं, इसलिए वे इन मुद्दों के बारे में नहीं सोचते हैं। जब ये लोग साठ वर्ष के हो जाते हैं, तो वे बस याद करते हुए वहाँ बैठे रहते हैं, कहते हैं, “जब मैं छोटा था, तो मैं सुंदर और प्रतिभाशाली था; मेरे पीछे कितने सारे लोग भागते थे! आह, मैं अपनी जवानी में...।” वे हमेशा सिर्फ अपने गौरव के दिनों की कहानियाँ शुरू कर देते हैं, ये ऐसी चीजें हैं जो जिक्र करने लायक नहीं होती हैं। खराब काबिलियत वाले लोग, चाहे वे कितनी भी उम्र तक जिंदा क्यों न रहें, मानव जीवन से संबंधित मुद्दों, लोगों द्वारा अपनाए जाने वाले मार्ग या इसके बारे में नहीं सोचते हैं कि लोगों को कैसे जीना चाहिए। वे इस बारे में नहीं सोचते हैं कि विभिन्न मामलों से निपटने के दौरान लोगों को किस प्रकार के दृष्टिकोण रखने चाहिए। नतीजतन, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कैसे जीते हैं, उनके विचारों का स्तर नहीं सुधरेगा, उनके विचारों में तत्व की कमी रहेगी, उनकी आध्यात्मिक दुनिया गरीब ही रहेगी और उनके पास कोई वास्तविक जीवन अनुभव नहीं होगा। खराब काबिलियत होने का यही मतलब है। जब तुम ऐसे लोगों से बातचीत करते हो, तो बीस वर्ष की उम्र में वे काफी बचकाने और सीधे-सादे होते हैं, वे जल्दी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं और बदमिजाज होते हैं। जब वे तीस वर्ष के हो जाते हैं, तब भी वे उसी तरह के घटिया व्यक्ति होते हैं। पचास वर्ष की उम्र होने पर वे जिस तरीके से बोलते हैं, वह अब भी उसी स्तर का होता है—वे सिर्फ कुछ सादे वाक्यांश बोलना जानते हैं। उनके चेहरे पर ज्यादा झुर्रियाँ और उम्र के कारण धब्बे होते हैं और उनके बाल और सफेद हो चुके होते हैं। स्पष्ट रूप से उनकी कुछ उम्र तो हो चुकी होती है, लेकिन उनके पास कोई विचार या दृष्टिकोण नहीं होता है। दूसरों से बातचीत करते समय उनके पास कहने के लिए कभी भी कुछ नहीं होता है। उनके जीवन के ये सारे वर्ष बर्बाद हो चुके होते हैं और उन्होंने कोई प्रगति नहीं की होती है। खराब काबिलियत वाले लोग जीवन में ऐसे होते हैं और अगर वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो उनकी अभिव्यक्तियाँ शुरू से लेकर अंत तक एक जैसी होती हैं। जब वे अपने बीस वर्ष की उम्र में पहली बार परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो वे ऐसे होते हैं। जब वे तीस या पचास वर्ष के हो जाते हैं, तो वे अब भी ऐसे ही होते हैं, उन्होंने बिल्कुल कोई प्रगति नहीं की होती है। वे जो बातें कहते हैं, वे अब भी पहले जैसी ही होती हैं। बस इतनी सी बात है कि उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रखते हुए कुछ चीजों का अनुभव किया होता है, कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को समझा होता है और वे आध्यात्मिक शब्दावली को और पूरी तरह से बोल पाते हैं। लेकिन उनके पास कोई वास्तविक अनुभवजन्य समझ नहीं होती है। उनके विचारों में अब भी गहराई नहीं होती है, चीजों पर उनके दृष्टिकोण नहीं बदले होते हैं, परमेश्वर और सत्य के बारे में उनका ज्ञान नहीं बढ़ा होता है और उनके आत्म-ज्ञान में बढ़ोतरी नहीं हुई होती है। उनमें कोई बदलाव नहीं आया होता है, है ना? (सही कहा।) याददाश्त से या समय के तपतपाने से कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों या आध्यात्मिक शब्दावली को इकट्ठा करना बदलाव नहीं है, प्रगति नहीं है और यह निश्चित रूप से प्राप्ति नहीं है। खराब काबिलियत वाले लोगों की बिल्कुल यही अभिव्यक्ति है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितने बड़े उतार-चढ़ावों से गुजरते हैं या कितनी रुकावटों, असफलताओं या निराशाओं का अनुभव करते हैं, वे कोई सबक नहीं सीखते हैं या कोई अनुभव प्राप्त नहीं करते हैं और कोई भी फायदेमंद चीज प्राप्त नहीं कर पाते हैं। एक बार जब कोई चीज समाप्त हो जाती है, तो उनके लिए बस यह समाप्त हो जाती है—वे सिर्फ प्रक्रिया से गुजरते हैं और अंत में कुछ भी प्राप्त नहीं करते हैं। ऐसे लोगों को बहुत दयनीय कहा जा सकता है। हम बिल्कुल इसलिए यह कहते हैं कि ऐसे लोगों की काबिलियत बहुत खराब होती है क्योंकि उनमें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता नहीं होती है। यह तो कहा ही नहीं जा सकता कि उनमें सत्य समझने की कोई क्षमता होती है और न ही यह कहा जा सकता है कि उनमें कोई बदलाव आया है।

खराब काबिलियत वाले लोग चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता के लिहाज से कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं। जहाँ तक बिना कोई काबिलियत वाले लोगों की बात है, तो उनमें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता होती ही नहीं है—वे चीजों की सराहना नहीं कर पाते हैं और इससे भी ज्यादा यह कि वे उनका मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं। जब तुम किसी चीज के बारे में अपने विचार और दृष्टिकोण साझा करते हो, तो ये सुनकर खराब काबिलियत वाले लोग दंग रह जाते हैं, वे कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाते हैं। वे अपने दिलों में सोचते हैं, “इसमें विचार और दृष्टिकोण हैं? मैं यह क्यों समझ नहीं पाया?” भले ही तुम जो कहते हो, वे उसमें से थोड़ा-सा समझ पाते हों, लेकिन वे इसे सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों या एक सूत्र के रूप में ही सुन पाते हैं। जहाँ तक बिना काबिलियत वाले लोगों की बात है, जब वे दूसरों को किसी चीज में विचारों और दृष्टिकोणों के बारे में या समस्या के सार और लोगों को इसके संबंध में क्या रुख अपनाना चाहिए इस बारे में संगति करते हुए सुनते हैं, तो वे इसे समझ नहीं पाते हैं। उन्हें बस यही लगता है कि यह कुछ हद तक गहन है, लेकिन यह उनकी समझ से परे है। जितना ज्यादा तुम विचारों और समझ के बारे में संगति करते हो, उतना ही वे भ्रमित हो जाते हैं। उन्हें लगता है, “यह साधारण मामला जटिल कैसे हो गया है? मैं विचारों, दृष्टिकोणों या रुखों का मतलब क्यों नहीं समझ पा रहा हूँ? कौन-सा रुख? हमें बस परमेश्वर में उचित रूप से विश्वास रखना है और अपने कर्तव्य उचित रूप से करने हैं और परमेश्वर स्वीकार करेगा। ऐसा क्यों है कि जितना ज्यादा समय कोई परमेश्वर में विश्वास रखता है, चीजें उतनी ही जटिल होती जाती हैं? तुम्हारी बात सुनकर ऐसा लगता है जैसे कोई भी राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता!” क्या तुम ऐसे लोगों से बात कर सकते हो? (नहीं।) न सिर्फ तुम उनसे बात नहीं कर सकते, बल्कि वे कुछ अनुचित बातें भी कह सकते हैं : “क्या तुमने जिन विचारों और दृष्टिकोणों का जिक्र किया वे वाकई इतने अच्छे और इतने सही हैं? मुझे ऐसा नहीं लगता! लोग पैसे के बिना कभी नहीं रह सकते। लोगों को हमेशा अच्छा भोजन करना चाहिए और अच्छी चीजों का आनंद लेना चाहिए। खर्च करने के लिए पैसे या खाने के लिए अच्छे भोजन के बिना कोई अपना कर्तव्य कैसे कर सकता है?” यह किस प्रकार का तर्क है? वे कहते हैं, “तुम हमेशा मानव जीवन, लोगों के मूल्यों, विचारों और दृष्टिकोणों तथा लोगों द्वारा अपनाए जाने वाले मार्ग के बारे में बात करते रहते हो। तुम खाने-पहनने के बारे में बात क्यों नहीं करते? तुम इस बारे में बात क्यों नहीं करते कि अपने शरीर की देखभाल कैसे करनी है ताकि तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से कर सको?” वे इन्हीं चीजों के बारे में सोच रहे हैं—क्या वे अब भी सत्य समझ सकते हैं? तुम बस ऐसे लोगों से बात कर ही नहीं सकते। जब तुम उनसे बात करने का प्रयास करते हो, तो वे बस पैसे कमाने की बात करते हैं। वे पैसे कमाना, अपना जीवन जीना, दुनिया का अनुसरण करना और अपना जीवन खाने-पीने और मौज-मस्ती में बिताने को मानव जीवन के मुख्य मामले और वह मार्ग मानते हैं जिस पर लोगों को चलना चाहिए। जहाँ तक यह प्रश्न है कि लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखकर क्या अनुसरण करना चाहिए या प्राप्त करना चाहिए, तो उनके विचारों या चेतना में इन चीजों का अस्तित्व नहीं होता है। वे मानते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग कितने वर्ष परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उन्हें अब भी खाने और जीने की जरूरत पड़ती है और अच्छी तरह से जीने के लिए तुम पैसे के बिना नहीं रह सकते—पैसा होने का मतलब है अच्छा जीवन होना और पैसे के बिना जीवन नहीं चल सकता। उनका यह तर्क है; ऐसे लोगों में विकृतियों की संभावना होती हैं। जिन लोगों में विकृतियों की संभावना होती है, उनके पास कोई सही विचार या दृष्टिकोण नहीं होता है; वे बिना आत्मा वाले लोगों जैसे होते हैं। ऐसे लोगों के जीवन और सूअरों या कुत्तों के जीवन के बीच क्या अंतर है? (कोई अंतर नहीं है।) अगर तुम किसी कुत्ते या बिल्ली को आज्ञाकारी बनाने और उससे तमीजदार बच्चे की तरह व्यवहार करवाने के लिए शिक्षित करने का प्रयास करते हो, तो क्या वह समझ सकता है? (वह नहीं समझ सकता।) कुत्ता ज्यादा-से-ज्यादा क्या समझ सकता है? अगर तुम उससे “बैठो” कहते हो और फिर उसे माँस का एक टुकड़ा देते हो, तो वह याद रखेगा। उसके बाद जैसे ही तुम “बैठो” कहोगे, तो चाहे वह कितनी भी दूर क्यों न हो, वह तुरंत बैठ जाएगा और उसे माँस खिलाने के लिए तुम्हारी प्रतीक्षा करेगा। कुत्ता इस मशीनी क्रियाकलाप को याद रख सकता है; जब तक तुम उसे बताते हो कि बैठने से इनाम मिलता है, तब तक वह तुम्हारी बात मानेगा। उसके विचार इतने सीधे-सादे होते हैं। तो, बिना काबिलियत वाले लोगों के विचारों और जानवरों के विचारों में कितना बड़ा अंतर होता है? (कोई खास अंतर नहीं होता।) जानवर हर रोज खाना खाने के बाद खेलने के लिए बाहर चले जाते हैं। जब फिर से खाने का समय होता है और तुम उन्हें वापस बुलाते हो, तो वे तुरंत दौड़कर चले आते हैं। चाहे तुम उन्हें बाँध दो या बिठा दो, वे मानेंगे। ऐसा क्यों है? क्योंकि वहाँ खाने के लिए भोजन है। उस जरा-से भोजन की खातिर वे तुम्हारे आदेशों का पालन करके बेहद खुश होते हैं। जानवरों के विचार इतने सीधे-सादे होते हैं। उनके लिए ऐसे किसी विनियम या सूत्र का पालन करना ही पर्याप्त है जिससे उन्हें फायदा होता है; वे ज्यादा और कुछ नहीं सोचते। क्योंकि परमेश्वर जानवरों को जो सहज प्रवृत्तियाँ देता है, वे इन चीजों तक ही सीमित हैं, जो उनके जिंदा बचे रहने के लिए पर्याप्त हैं और परमेश्वर ने उन्हें कोई आदेश नहीं दिया है, इसलिए जानवरों को जीवन, भविष्य, अपने गंतव्य या अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों पर विचार करने की जरूरत नहीं पड़ती है। उन्हें यह भी विचार करने की जरूरत नहीं पड़ती है कि उन्हें कौन-सा मार्ग अपनाना है या किसी सार्थक जीवन का अनुसरण करना है, वगैरह-वगैरह। लेकिन लोग अलग होते हैं। परमेश्वर ने लोगों को विभिन्न सहज प्रवृत्तियाँ प्रदान की हैं और सत्य भी दिया है ताकि वह उनका जीवन बने। इसलिए, परमेश्वर ने लोगों के लिए मानकों की अपेक्षा की है। इस तरह से लोगों को इन मुद्दों पर विचार करना चाहिए; सिर्फ ऐसा करना ही उनके सत्य प्राप्त करने के अनुकूल है ताकि वह उनका जीवन बने। लोगों के पास यही जिम्मेदारी और दायित्व होना चाहिए और यकीनन यह उनका अधिकार भी है। लेकिन अगर तुम इस अधिकार का उपयोग नहीं कर सकते हो या तुममें मुद्दों के बारे में सोचने की यह क्षमता नहीं है, तो इससे यह साबित होता है कि तुम्हारी काबिलियत बहुत खराब है। मनुष्यों के स्तर पर जीवित प्राणियों के बीच तुम खराब काबिलियत वाले लोगों की श्रेणी में आते हो। तुम अपने लिए नहीं सोच पाते हो और यहाँ तक कि जब दूसरे लोग तुम्हें चीजें समझाते हैं, तब भी तुम समझ नहीं पाते हो। ज्यादा गंभीर मामलों में तुम दूसरों का प्रतिरोध करते हो, उनका मजाक उड़ाते हो, उन्हें ताने देते हो या यहाँ तक कि उनकी आलोचना भी करते हो। अगर तुम्हारी काबिलियत इस हद तक खराब है, तो इसका मतलब है कि तुममें बिल्कुल कोई काबिलियत नहीं है। उदाहरण के लिए, एक बिना काबिलियत वाला व्यक्ति कोई अनुभवजन्य गवाही लेख पढ़ता है और तुम उससे पूछते हो, “क्या यह लेख अच्छा है?” वह कहता है, “यह काफी अच्छा है। हर अनुच्छेद को सटीक रूप से बाँटा गया है और विराम चिह्न ज्यादातर सटीक हैं। पहला अनुच्छेद समय और जगह बताता है, दूसरा अनुच्छेद किरदारों की पृष्ठभूमि देता है, तीसरा अनुच्छेद कहानी का घटनाक्रम बयान करना शुरू करता है और फिर यह चरमोत्कर्ष और निष्कर्ष पर पहुँच जाता है।” अगर तुम उससे पूछते हो कि लेखक के विचार और दृष्टिकोण क्या हैं, तो वह कहता है, “इसमें विचार और दृष्टिकोण हैं? परमेश्वर के वचनों का वह भाग जिसका लेखक ने हवाला दिया है, वही विचार और दृष्टिकोण हैं।” तुम पूछते हो, “क्या उसने परमेश्वर के जिन वचनों का हवाला दिया है वे उपयुक्त हैं? क्या वह जो विचार और दृष्टिकोण व्यक्त करना चाहता है, वे सटीक हैं?” वह कहता है कि उसे नहीं पता। फिर तुम ऐसे प्रश्न पूछते हो, “क्या लेखक ने जो समझ साझा की है वह सच्ची और व्यावहारिक है? क्या वह जो समझता है वह धर्म-सिद्धांत है या यह वास्तविकता के करीब है? क्या यह दूसरों की नैतिक उन्नति करता है या उनके लिए मूल्यवान है? क्या यह पाठकों को मदद या लाभ प्रदान करता है?” उन्हें इसमें से कुछ भी नहीं मालूम और वे इसे बूझ नहीं पाते हैं। बहुत खराब काबिलियत होने का यही मतलब है। अगर तुम उनके साथ लेख में विचारों और दृष्टिकोणों में गलतियों और इसके बारे में संगति करते हो कि कौन-से भाग व्यावहारिक हैं और कौन-से नहीं, तो भी वे नहीं जानते हैं और उसे लेख से जोड़ नहीं पाते हैं। क्या यह काबिलियत की कमी दर्शाता है? (हाँ।) यहाँ तक कि जब दूसरे लोग मौजूदा समस्याओं के बारे में संगति करते हैं, तो भी उन्हें नहीं पता होता है। क्या यह काबिलियत की कमी नहीं दर्शाता है? यह कुछ कलीसियाई अगुआओं जैसा है : जब कलीसिया में कुकर्मी या अविश्वासी दिखाई देते हैं, तो उन्हें नहीं पता होता है कि इनसे कैसे निपटना है। जब तुम उनके साथ सत्य सिद्धांतों पर संगति कर लेते हो, उसके बाद उन्हें समझ नहीं आता है और वे तुमसे उदाहरण देने के लिए कहते हैं। जब तुम एक उदाहरण दे देते हो, उसके बाद भी उन्हें नहीं पता होता कि इनसे कैसे निपटना है। वे कहते हैं, “कृपया मुझे सिखाओ। मुझे उस व्यक्ति से आखिर कैसे निपटना चाहिए? क्या मुझे उसे किसी साधारण कलीसिया में रखना चाहिए, उसे ब समूह में रखना चाहिए या उसे बाहर निकाल देना चाहिए? मुझे उस व्यक्ति के साथ कैसे संगति करनी चाहिए? कृपया मुझे इसे एक-एक शब्द के अनुसार समझाओ। मैं इसे दर्ज करूँगा और फिर परिस्थिति से निपटने के लिए इसके एक-एक शब्द का पालन करूँगा—इस तरह से मैं इसे कर सकता हूँ।” जब वे इस तरह के हैं, तो उनके साथ सिद्धांतों की संगति करने का क्या फायदा है? यहाँ तक कि जब तुम उदाहरण भी देते हो, तो भी उन्हें समझ नहीं आता है और वे मामले से निपट नहीं पाते हैं। ऐसे लोगों में बस समझने की क्षमता ही नहीं होती है। फिर भी वे अंत में पूछते हैं, “मुझे बताओ कि मुझे इस मौजूदा मुद्दे के बारे में क्या करना चाहिए और मैं वैसा करूँगा।” तुम उन्हें बताते हो कि इस मामले से निपटने के लिए कहाँ जाना है, इसे करवाने के लिए किससे क्या कहना है और इस मामले को पूरी तरह से हल हो चुका माने जाने के लिए इसे किस हद तक निपटाना है। जब तुम समझाना समाप्त कर लेते हो, उसके बाद ऐसा लगता है कि वे समझ गए हैं, लेकिन फिर भी वे इससे निपट नहीं पाते हैं और तुम्हें इसे पूरा करने के लिए ऐसे किसी को ढूँढ़ना पड़ता है जो उनका सहयोग करे। ऐसे लोग बेहद मंदबुद्धि होते हैं और उनमें काबिलियत नहीं होती है। उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम नृत्य सीखने वाले लोगों से कहते हो कि किसी खास नृत्य की मुद्राएँ बहुत अच्छी हैं और इन्हें सीखने के लिए तुम उन्हें एक वीडियो का अनुसरण करने के लिए कहते हो। कुछ दिन बाद जब तुम पूछते हो कि उन्होंने कैसी प्रगति की है, तो कुछ मंदबुद्धि लोग कहते हैं कि वे यह नहीं बता पाए कि कौन-सी मुद्राएँ अच्छी हैं। भले ही उनके पास शिक्षण सामग्री हो, फिर भी वे इसे नहीं सीख पाते हैं। उन्हें नहीं पता कि कौन-सी हरकतें अच्छी हैं या कौन-सी उपयोगी हैं और वे नहीं जानते कि कैसे चुनना है। आखिरकार वे क्या करते हैं? उनके पास एक तरकीब है; वे कहते हैं, “मेरे सीखने के लिए बस कुछ नृत्य मुद्राएँ चुन लो और मैं उनका अनुसरण करूँगा—बात खत्म।” उनके पास यह हुनर है; जबकि वे सिद्धांत नहीं समझते हैं, उनमें थोड़ी-सी होशियारी होती है। क्या वे ठीक मशीनी मानवों जैसे नहीं हैं? उनके पास ज्ञान और शिक्षा हो सकती है, लेकिन उनमें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता की कमी होती है—काबिलियत नहीं होने का यही मतलब है। उन्हें नहीं मालूम होता है कि तुम उन्हें जो सीखने के लिए कह रहे हो, वह उन्हें क्यों सीखना चाहिए। तुम उन्हें जो चीजें नहीं सीखने के लिए कहते हो उनके बारे में वे नहीं जानते हैं कि उनमें क्या गलत है या उन्हें वे चीजें क्यों नहीं सीखनी चाहिए। यहाँ तक कि उन्हें बताए जाने के बाद भी वे इसे देख नहीं पाते हैं। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोगों में काबिलियत होती है? (नहीं।) अपने आप चीजों का जानकार होने की क्षमता न होनाऔर स्वतंत्र रूप से सही और गलत की पहचान करने और इनके बीच का भेद जानने की क्षमता न होना—काबिलियत नहीं होने का यही मतलब है। मवेशियों या घोड़ों की तरह उन्हें हमेशा किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती है जो उनका आगे मार्गदर्शन करे—तो क्या वे सिर्फ साधन नहीं हैं? अगर तुम्हारे पास काबिलियत होती, तो क्या फिर भी तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती जो तुम्हारा आगे मार्गदर्शन करता? तो फिर तुम्हारे पास दिमाग किसलिए है? तुम्हारा दिमाग बेकार है। सटीक रूप से कहा जाए तो तुममें कोई काबिलियत नहीं है। तुम्हें दूसरों की बात सुननी होगी और उनके मार्गदर्शन में आगे बढ़ना होगा—तुम सिर्फ एक साधन हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस तरह के लोग किसी खास पेशे का कितना अध्ययन करते हैं या वे उससे जुड़े कितने सिद्धांत सुनते हैं, वे फिर भी उन्हें समझ नहीं पाते हैं या उनकी बारीकियाँ पकड़ नहीं पाते हैं। अंत में वे नहीं जानते हैं कि इन सिद्धांतों का कैसे उपयोग करना है या उन्हें कैसे कार्यान्वित करना है। ये सबसे खराब काबिलियत वाले लोग हैं—जिनमें कोई काबिलियत नहीं होती है। कुछ लोग कहते हैं, “यह मत सोचो कि सिर्फ इसलिए कि उनमें चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता नहीं होती है और वे हमेशा अपना कर्तव्य करने में तुम्हारे मार्गदर्शन का अनुसरण करते हैं, इसका यह मतलब है कि उनमें खराब काबिलियत है। दरअसल उनमें काबिलियत की कमी सिर्फ तब होती है जब सत्य समझने की बात आती है। जब उनके अपने हितों से जुड़े मामलों की बात आती है, तो वे हर नुकसान से अपनी रक्षा करने के लिए हमेशा हर संभव तरीके के बारे में सोच लेते हैं। वे इन चीजों में तेज होते हैं—वे निश्चित रूप से मंदबुद्धि लोग नहीं हैं। कलीसिया में वे मंदबुद्धि लगते हैं, लेकिन अगर वे दुनिया में वापस लौट जाएँ, तो वे मंदबुद्धि नहीं होंगे। वे जिन चीजों का आनंद लेते हैं, उनमें उनके विचार और निर्मित कार्य होंगे; शायद उन्हें कुछ सफलता मिल सकती है।” ऐसे लोग भी हैं जो कलीसिया में बेतहाशा गलत कर्म करते हैं और हर कोई कहता है कि उनकी काबिलियत खराब है, लेकिन खुद उन्हें विश्वास नहीं है : “तुम कहते हो कि मेरी काबिलियत खराब है, लेकिन अगर मैं अविश्वासी दुनिया में होता, तो मैं अब भी पैसे और आजीविका कमा सकता था। मैं अब भी फल-फूल सकता था—यह बात पत्थर की लकीर नहीं है कि मैं दूसरों से बदतर करूँगा!” क्या अविश्वासी दुनिया हर चीज को सत्य सिद्धांतों से मापती है? क्या नींव के रूप में यह परमेश्वर के वचनों पर भरोसा करती है? अगर नहीं, तो भले ही उनके द्वारा निर्मित कार्य अविश्वासी दुनिया में मान्य हो सकें, लेकिन इससे यह साबित नहीं होता है कि उनमें काबिलियत है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग चित्रकारी करते हैं और पहली नजर में ऐसा लगता है कि उनके चित्रों के रंग, संरचना, प्रकाश-व्यवस्था, आकृतियों के अनुपात और दूसरे पहलू काफी अच्छे हैं। लेकिन जब वे परमेश्वर के घर में कुछ प्राचीन संतों के चित्र बनाते हैं, तो समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं। मैं कहता हूँ, “इस चित्रकार की कलाकृतियाँ अविश्वासियों के बीच काफी बिकती थीं और लोग उनकी सराहना करते थे। लेकिन मुझे अब्राहम, अय्यूब और नूह के उसके चित्रण इतने अजीब क्यों लगते हैं? अलग-अलग युगों के ये तीन लोग अंत में एक ही परिवार के सदस्यों जैसे कैसे दिखने लगे? वे प्राचीन इस्राएली थे और उनके चेहरे की विशेषताओं की अस्थि संरचना में उस जातीय समूह की विशेषताएँ दिखाई देनी चाहिए। भले ही वे हर आकृति के व्यक्तित्व को न जानते हों, कम-से-कम उन्हें यह तो समझना चाहिए कि उस जातीय समूह की कंकाल संरचना और विशेषताएँ कैसी हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे जिस व्यक्ति का चित्र बना रहे हैं वह किस युग का है, उसकी जातीय विशेषताओं पर जोर दिया जाना चाहिए और उन्हें उसके बालों, चेहरे की विशेषताओं, आँखों के रंग और चेहरे के आकार के जरिये स्पष्ट किया जाना चाहिए।” फिर भी ऐसा क्यों है कि उन्होंने इन विभिन्न युगों के जिन व्यक्तियों के चित्र बनाए वे अलग-अलग जमाने के होने के बावजूद सभी की अस्थि संरचना उनके जातीय समूह से मिलती-जुलती नहीं है? उन सभी के चेहरे आयताकार हैं; छोटी उम्र के लोगों की बस कम झुर्रियाँ हैं और गहरे रंग के बाल हैं, जबकि बड़ी उम्र के लोगों की ज्यादा झुर्रियाँ हैं, त्वचा साँवली है और उनके सफेद बाल ज्यादा हैं। इन आकृतियों की सारी विशेषताएँ मूल रूप से एक जैसी हैं : चौड़े, आयताकार चेहरे, लंबा कद और विशेष रूप से मजबूत गठन। मैं कहता हूँ, “ये सभी आकृतियाँ एक जैसी क्यों दिखती हैं? वे बहुत ज्यादा मिलती-जुलती हैं और उनमें विशिष्ट विशेषताओं की कमी है।” खुद चित्रकार को यह समस्या दिखाई नहीं देती है। शायद उसने इस तरह की बहुत ज्यादा कलाकृतियाँ बनाई हैं, उसकी तकनीक बहुत ज्यादा परिष्कृत हो गई है और उसकी शैली स्थिर हो गई है। जब भी वह आकृतियाँ बनाता है, तो पुरुषों के चेहरे का आकार लगभग हमेशा एक जैसा होता है और वह अलग-अलग किरदारों के चेहरे की अनोखी विशेषताओं को पकड़ नहीं पाता है। क्या उसकी चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता थोड़ी-सी खराब नहीं है? (हाँ।) चित्र पूरा करने के बाद उसे नहीं पता होता है कि उसने जिन चेहरे की विशेषताओं का चित्रण किया है वे उस जातीय समूह की कंकाल विशेषताओं के साथ मेल खाती भी हैं या नहीं; वह उन विशेषताओं के बारे में निश्चित नहीं हैं। क्या तुम लोग कहोगे कि इस क्षेत्र में उसकी काबिलियत औसत है या खराब है? (खराब।) क्या दूसरों के सुझाव देने के बाद वह इसे ठीक कर सकता है? एक बार मैंने उसे सुझाव दिए थे, लेकिन जब मैंने बाद में उसका कार्य देखा, तो वह तब भी वैसा ही था। उस मौके पर कहने के लिए और कुछ नहीं था—आगे समझाना अब भी उसकी समझ से परे होता।

जब लोगों की चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता से संबंधित मुद्दों की बात आती है, तो ये काबिलियत के विभिन्न स्तरों पर लोगों की अभिव्यक्तियाँ हैं। अच्छी काबिलियत वाले लोग न सिर्फ चीजों की सराहना कर सकते हैं, बल्कि वे उनका मूल्यांकन भी कर सकते हैं। इससे भी बेहतर काबिलियत वाले लोग ठीक विचारों और दृष्टिकोणों का सामना करने पर उनकी हिमायत करते हैं और उन्हें दूसरों के साथ साझा करते हैं या उन्हें प्रदान करते हैं और जब वे दोषपूर्ण विचारों और दृष्टिकोणों का सामना करते हैं, तो वे उन्हें पहचान सकते हैं और ठीक कर सकते हैं। औसत काबिलियत वाले लोगों में चीजों की सराहना करने की एक निश्चित क्षमता होती है, लेकिन उनमें चीजों का मूल्यांकन करने की क्षमता की कमी होती है—वे विचार के स्तर पर चीजों की पहचान नहीं कर पाते हैं। खराब काबिलियत वाले लोग विचार के स्तर पर चीजों को नहीं समझते हैं, इसलिए उनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता है कि उनमें चीजों को पहचानने की कोई क्षमता है। बिना काबिलियत वाले लोग इन मामलों को बिल्कुल भी नहीं समझ पाते हैं। अगर कोई उन्हें ये समझा भी दे, तो भी वे यह नहीं समझ पाते हैं कि जिन विचारों और दृष्टिकोणों पर चर्चा की जा रही है वे वास्तव में क्या हैं। उनके लिए यह किसी दूसरे ग्रह के बारे में कहानी सुनने जैसा है—यह उनकी समझ से बिल्कुल परे है। ये चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता के लिहाज से अलग-अलग काबिलियत वाले लोगों द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली अलग-अलग विशेषताएँ हैं।

व्यक्ति की काबिलियत मापने का ग्यारहवाँ मानक अभिनव क्षमता है। अभिनव क्षमता वह रचनात्मक क्षमता है जो किसी चीज के मूलतत्वों, सिद्धांतों और नियमों को जानने के बाद तुम्हें जो समझ प्राप्त होती है उसके आधार पर तुम्हारे पास होती है। इस रचनात्मक क्षमता का मतलब है इस चीज को उसके मूल आधार पर बेहतर बनाना, उसका विकास करना, उसके प्रभाव का दायरा बढ़ाना या उसे किसी विशेष चीज की नई पीढ़ी में बदल देना—इसे अभिनव क्षमता कहते हैं। विशेष रूप से इसका मतलब है कि किसी विशेष चीज के वस्तुपरक नियमों को सटीक रूप से गहराई से समझने के आधार पर तुम उन्हें वास्तविक जीवन में लागू कर सकते हो, उनके उपयोग का दायरा बढ़ा सकते हो और व्यापक बना सकते हो और इन मूलतत्वों और सिद्धांतों को अनुमति दे सकते हो जो ज्यादा लोगों की सेवा करने के लिए चीजों के विकासात्मक नियमों के अनुरूप हैं ताकि ज्यादा लोगों को इससे लाभ और मदद मिले। एक बात यह है कि तुम इन मूलतत्वों और सिद्धांतों को बनाए रख रहे हो, लगातार उनके प्रभाव का दायरा और दर्शक बढ़ा रहे हो। इसके अलावा तुम उन्हें शाब्दिक प्रस्तुति से एक ऐसी मूर्त चीज में बदल रहे हो जिससे लोग ज्यादा व्यावहारिक तरीके से और एक कदम आगे जाकर वास्तविक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अभिनव क्षमता होने का यही मतलब है। अगर कोई व्यक्ति अपने पारिवारिक परिवेश और विकास की पृष्ठभूमि और अपने द्वारा प्राप्त ज्ञान की नींव पर किसी चीज के मूलतत्वों, सिद्धांतों और विकासात्मक नियमों को सटीक रूप से गहराई से समझ सकता है, यह जान सकता है कि इन मूलतत्वों और सिद्धांतों को कैसे लागू करना है और इन मूलतत्वों और सिद्धांतों को सिद्धांत से मूर्त चीजों में कैसे बदलना है—वह शब्दों और सिद्धांतों के स्तर पर नहीं रुक जाता है, बल्कि उन्हें वास्तविक जीवन में लागू करता है, उन्हें लोगों के जीवन का हिस्सा बनाता है और उन्हें ऐसे नतीजों में बदल देता है जो लोगों की सेवा करते हैं, लोगों को उनसे लाभ और मदद प्राप्त करने देते हैं और लोगों के जीवन को ज्यादा सुगम और सुविधाजनक बनाते हैं—अगर कोई यह स्तर प्राप्त कर पाता है तो वह अभिनव क्षमता वाला व्यक्ति है और अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति है। कहने का यह मतलब है कि अगर तुम चीजों के विकासात्मक नियमों और सत्य सिद्धांतों के मूलतत्वों को समझने के आधार पर किसी चीज के प्रचार, बने रहने, विस्तार या नवीकरण को वास्तविक बना सकते हो—अगर तुममें यह क्षमता है या तुम इनमें से किसी एक को पूरा कर सकते हो और किसी सकारात्मक चीज के मूलतत्वों और नियमों या सत्य के सिद्धांतों को लोगों के बीच कार्यान्वित करने, मूर्त रूप दिए जाने और विस्तारित करने की अनुमति दे सकते हो—तो इससे यह साबित होता है कि तुम्हारी काबिलियत अच्छी है। भले ही तुम इसे और गहरे स्तर पर न ला सको, कम-से-कम अगर तुम इसे बनाए रख सकते हो, विस्तारित कर सकते हो और मूर्त रूप दे सकते हो और इसके सकारात्मक प्रभाव को बढ़ा सकते हो, तो इससे यह साबित होता है कि तुम अभिनव क्षमता वाले व्यक्ति हो। अगर तुममें यह क्षमता नहीं है और तुममें सिर्फ सकारात्मक चीजों के नियम समझने की क्षमता है, लेकिन यह समझने की क्षमता सिर्फ शाब्दिक और सैद्धांतिक समझ के स्तर पर ही रहती है और तुम उन्हें लोगों के साथ लागू नहीं कर पाते हो या उन्हें मूर्त रूप नहीं दे पाते हो और न ही तुम उनसे लोगों की सेवा करवा पाते हो और लोगों को लाभ दिला पाते हो, तो तुममें अभिनव क्षमता नहीं है। तुम्हें व्यावहारिक रूप से मूलतत्वों, सिद्धांतों, कानूनों और नियमों को परिचालित करने और लागू करने में समर्थ होना चाहिए—तभी यह कहा जा सकता है कि तुममें अभिनव क्षमता है। जिन लोगों के पास यह क्षमता होती है सिर्फ वही अच्छी काबिलियत वाले लोग होते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ अगुआ और कार्यकर्ता या पर्यवेक्षक परमेश्वर के घर के सिद्धांतों और प्रावधानों को समझ लेते ही फौरन उन्हें कार्यान्वित कर सकते हैं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ कार्य की हर मद के सत्य सिद्धांतों को कार्यान्वित करते हैं, ज्यादा लोगों को सत्य समझने में मदद करते हैं और ऐसा करते हैं ताकि कलीसिया का कार्य व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़े—यानी ताकि यह सिद्धांतों के दायरे में सकारात्मक रूप से प्रसारित हो, किसी विचलन के बिना लगातार विकसित होता रहे और आगे बढ़ता रहे। लोग इससे क्या नतीजा देखते हैं? इस कार्य के दायरे में हर कोई वही करता है जो उसे करना चाहिए, हर कोई सिद्धांतों को समझता है और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता है, कार्य विचलित नहीं होता है और यह कार्य लगातार नए नतीजे या कार्य के नए भाग प्रस्तुत करता रहता है। अगर प्रक्रिया में विशेष परिस्थितियाँ उत्पन्न हो भी जाएँ, तो भी पर्यवेक्षकों को यह पता होगा कि उन्हें कार्य के मूलतत्वों, प्रावधानों और सिद्धांतों के अनुसार लचीले ढंग से कैसे सँभालना है। उनकी अगुआई में यह कार्य व्यवस्थित तरीके से लगातार आगे बढ़ता रहता है और मूल रूप से रुकता नहीं है। यानी, चाहे कोई भी परिस्थिति उत्पन्न हो जाए, चाहे कोई भी व्यक्ति बाधा डालने या भ्रांति फैलाने आ जाए, इससे कार्य की व्यवस्थित प्रगति प्रभावित नहीं होगी; कार्य लगातार आगे बढ़ता रहता है। क्या यह कहा जा सकता है कि इस कार्य के मूलतत्व और इस लिहाज से सत्य सिद्धांत लगातार बनाए रखे जा रहे हैं? (हाँ।) इस कार्य के मूलतत्वों और सिद्धांतों के कार्यान्वयन, समर्थन और विकास के जरिये यह कार्य बाधित नहीं हुआ है; इसे लगातार व्यवस्थित तरीके से कार्यान्वित और समर्थित किया जाता है और साथ ही, विभिन्न अवधियों में अच्छे कार्य नतीजे निकलकर आते हैं। इन कार्य नतीजों का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है और इनसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ पहुँच रहा है। जिन लोगों को लाभ पहुँचता है, दरअसल उन्हें कार्य-व्यवस्थाओं के विभिन्न सिद्धांतों, मूलतत्वों और यहाँ तक कि उन कड़े प्रावधानों से भी लाभ पहुँचता है जिन्हें ये पर्यवेक्षक समझ सकते हैं और स्वीकार कर सकते हैं। अभिनव क्षमता होने का यही मतलब है। अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति जिन कार्य सिद्धांतों और सत्य सिद्धांतों को समझता है और स्वीकार करता है वह उन्हें उस कार्य में लगातार कार्यान्वित कर सकता है जिसके लिए वह जिम्मेदार है और उन्हें सभी के साथ कार्यान्वित कर सकता है जिससे कार्य व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ने में सक्षम होता है। साथ ही, कार्य नतीजे समय-समय पर या अनियमित रूप से उत्पन्न किए जाएँगे; अविश्वासी लोग इसे “कार्यों का उत्पादन करना” कहते हैं—यानी, कार्य नतीजे लगातार दिखाई देंगे और इन कार्य नतीजों के दिखाई देने से बाद में ज्यादा प्रभाव आएगा और ये ज्यादा लोगों तक पहुँचेंगे। जिन लोगों के पास यह क्षमता है, वे अंत में कार्य नतीजों को लगातार बढ़ा सकते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ पहुँचे। ऐसे लोग अच्छी काबिलियत वाले लोग होते हैं। अपनी अभिनव क्षमता से अपनी काबिलियत मापने के लिए यह देखना जरूरी है कि कार्य सिद्धांत, कार्य प्रावधान और सत्य सिद्धांत समझ लेने के बाद उन्हें कार्यान्वित करने, विकसित करने और विस्तार करने की तुम्हारी क्षमता कैसी है; यानी, इस कार्य को समर्थित करने की तुम्हारी क्षमता कैसी है। दूसरा, यह देखना जरूरी है कि तुम्हारे द्वारा किए गए कार्य से कितने लोगों तक पहुँचा जाता है, जिन तक पहुँचा जाता है उनका दायरा कितना बड़ा है, प्रभाव की मात्रा कितनी बड़ी है और तुम्हारे कार्य की कुशलता और नतीजे कैसे हैं। अगर तुम्हारी कार्य कुशलता ज्यादा है, तुम्हारे कार्य नतीजे अच्छे हैं और जिन लोगों तक पहुँचा जाता है उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है, तो इसका मतलब है कि तुम्हारी काबिलियत अच्छी है। अगर पहुँचे गए लोगों की संख्या कम है, कार्य कुशलता निम्न है, नतीजे खराब हैं और लगातार नए सिरे से कार्य किया जा रहा है, अड़चनें आ रही हैं और खामियाँ दूर की जा रही हैं, तो इसका मतलब है कि तुम्हारी काबिलियत औसत है। अगर कोई व्यक्ति कार्य सिद्धांतों, कार्य-व्यवस्थाओं और दूसरे पहलुओं को काफी अच्छी तरह से और जल्दी समझ लेता है, लेकिन कार्यान्वयन में उसकी प्रगति बहुत धीमी है और उसकी कुशलता बहुत निम्न है—सामान्य हालातों में नतीजे एक महीने में उत्पन्न किए जा सकते हैं, लेकिन यहाँ उन्हें उत्पन्न करने में तीन या यहाँ तक कि छह महीने भी लग रहे हैं और उत्पन्न किए गए नतीजे अब भी बहुत औसत हैं, पहुँचे गए लोगों की संख्या कम है और लोगों को मिला लाभ महत्वपूर्ण नहीं है—ऐसा व्यक्ति औसत काबिलियत वाला होता है।

कुछ लोग कुछ सिद्धांतों या मूलतत्वों को समझ लेने के बाद उस समय उनका सिर्फ शाब्दिक अर्थ ही पकड़ते हैं और इसे अपने कार्य में उन लोगों, घटनाओं या चीजों से जोड़ नहीं पाते हैं जिनमें ये सिद्धांत या मूलतत्व शामिल होते हैं। वे सिद्धांतों और मूलतत्वों को सिर्फ विनियमों या धर्म-सिद्धांतों के रूप में सुनते हैं और उन्हें सुनने के बाद वे अपने दिलों में कोई योजना नहीं बनाते हैं और वे नहीं जानते हैं कि उन्हें कैसे कार्यान्वित करना है या कार्य-व्यवस्थाओं और जिन मूलतत्वों या सिद्धांतों को वे समझते हैं उन्हें वास्तविक जीवन में कैसे लागू करना है। वे मूल रूप से वास्तविक जीवन और इन मूलतत्वों या सिद्धांतों के बीच कोई संबंध नहीं बना पाते हैं। जब वास्तविक जीवन या कार्य की बात आती है, तो वे सिद्धांतों, मूलतत्वों और चीजों के विकासात्मक नियमों को एक तरफ रख देते हैं, उन्हें लागू करने में असमर्थ होते हैं और बस वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं। चलो अभी के लिए हम इस बारे में बात न करें कि उनकी मानवता अच्छी है या बुरी या उनका चरित्र कैसा है या क्या वे किसी चीज को जानबूझकर नहीं करते हैं या क्या वे किसी चीज को नहीं करना चाहते हैं—बस काबिलियत के लिहाज से ऐसे लोगों की काबिलियत खराब होती है। चाहे वे कहीं भी जाएँ, वे बहुत सारे धर्म-सिद्धांत बोल सकते हैं, कुछ मूलतत्वों के बारे में बात कर सकते हैं और दूसरों के साथ चीजों के कुछ तथाकथित विकासात्मक नियमों पर चर्चा कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि उनके पास काफी उच्च स्तर का विचार है और समझने की क्षमता है और उन्हें देखकर लगता है कि उनमें कुछ काबिलियत है। लेकिन जब उन्हें कार्य की कोई मद सौंपी जाती है, तो एक-दो महीने बिना किसी नतीजे के गुजर जाते हैं और उनसे किसी अद्यतन की सूचना नहीं मिलती है। अपना संकल्प व्यक्त करते समय वे बहुत अच्छी तरह से बोलते हैं, लेकिन जब वास्तव में इसे करने की बात आती है, तो वे नहीं जानते हैं कि क्या करना है। “ऊपरवाले ने सिद्धांतों को बहुत स्पष्ट रूप से समझाया, तो अब मुझे क्या करना चाहिए? मुझे किसे पर्यवेक्षक के रूप में और किसे उपदेशक के रूप में नियुक्त करना चाहिए और किसे बाहरी मामले सँभालने चाहिए? मुझे तो पता ही नहीं कि क्या करना है! लेकिन मैंने दबंग दावे किए और अपना संकल्प व्यक्त किया, इसलिए मुझे यह करना ही पड़ेगा!” वे इतने बेचैन होते हैं कि उनके अंदर गर्मी पैदा हो जाती है और उनके मुँह में छाले पड़ जाते हैं, वे खा-सो नहीं पाते हैं जिससे वे अस्त-व्यस्त और अभिभूत हो जाते हैं, फिर भी उन्हें नहीं पता होता है कि क्या करना है। ये खराब काबिलियत वाले लोगों की अभिव्यक्तियाँ हैं। यह बात छोड़ दो कि जब उनके लिए कार्य की व्यवस्था की जाती है, तो वे कैसे गंभीर सौगंध खाते हैं और अपना संकल्प व्यक्त करते हैं, ऐसी भावना से दबंग और शानदार शब्द बोलते हैं—तुम्हें यह देखना होगा कि क्या वे कार्य कर सकते हैं, क्या उनके पास चरण और योजनाएँ हैं और क्या वे समझते हैं कि कार्य-व्यवस्थाओं को कैसे कार्यान्वित करना है और सिद्धांतों के अनुसार कैसे कार्य करना है। अगर वे इसे नहीं समझते हैं या नहीं कर पाते हैं, तो इसका मतलब है कि उनमें खराब काबिलियत है। अगर वे सिर्फ धर्म-सिद्धांत समझते हैं लेकिन सिद्धांतों को लागू नहीं कर पाते हैं और बस आँख मूँदकर और बेतहाशा कार्य करते हैं, तो यह भी खराब काबिलियत दर्शाता है। जब तक तुम सिद्धांतों, मूलतत्वों या चीजों के विकासात्मक नियमों को प्रभावी रूप से और वास्तविक जीवन में कार्यान्वित नहीं कर पाते हो, तब तक चाहे तुम बेचैन और घबराए हुए हो या बेतहाशा गलत कर्म करते हो, ये खराब काबिलियत की अभिव्यक्तियाँ हैं। क्या ये शब्द सटीक हैं? (हाँ।) कुछ लोग आँख मूँदकर कार्य करते हैं, जबकि दूसरे लोग यह नहीं जानते हैं कि इसे कैसे करना है और वे ऐसा करने की हिम्मत नहीं करते हैं—उन्हें तो यह भी मालूम नहीं होता है कि कहाँ से शुरू करना है। खराब काबिलियत वाले लोगों की अभिनव क्षमता के लिहाज से उनकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ ये हैं कि उन्हें नहीं पता कि मूलतत्वों और सिद्धांतों को विशिष्ट, वास्तविक कार्य में कैसे लागू करना है; वे सिर्फ शब्दों को तोते की तरह रटने, धर्म-सिद्धांतों को सीखने और विनियमों को याद करने में समर्थ होते हैं। सिर्फ धर्म-सिद्धांतों और विनियमों को याद करना बेकार है और इससे यह प्रकट नहीं होता है कि तुममें अभिनव क्षमता है। तुममें अभिनव क्षमता है या नहीं, यह इस बात से जाहिर होती है कि क्या तुम इन मूलतत्वों, सिद्धांतों और विनियमों को वास्तविक जीवन में लागू कर पाते हो, क्या इन मूलतत्वों और सिद्धांतों से संबंधित कार्य को अच्छी तरह से कर पाते हो ताकि ये मूलतत्व और सिद्धांत शब्द और धर्म-सिद्धांत, विनियम और सूत्र ही न रह जाएँ, बल्कि लोगों के जीवन में कार्यान्वित किए जाएँ और लोगों पर लागू किए जाएँ, जिससे लोग उनका उपयोग कर सकें और उनसे लाभ और सहायता प्राप्त कर सकें, वे जीवन में अभ्यास का एक मार्ग बनें या जीने के लिए एक मार्गदर्शक, दिशा और लक्ष्य बनें। अगर किसी व्यक्ति में यह अभिनव क्षमता नहीं होती है और वह सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को बघारना और नारे लगाना जानता है और अपना कर्तव्य करने का समय आने पर इन सिद्धांतों और मूलतत्वों को उपयोग में लाने में असमर्थ होता है तो ऐसे अगुआ या पर्यवेक्षक का अनुसरण करने वाले लोग सत्य के इस पहलू में अभ्यास के सिद्धांत प्राप्त नहीं करेंगे। ऐसे अगुआ या पर्यवेक्षक खराब क्षमता वाले, कार्य करने में असमर्थ लोग होते हैं और जैसे ही उनकी पहचान हो जाती है, उनकी रिपोर्ट कर देनी चाहिए और उन्हें हटा देना चाहिए। यह मूल्यांकन करने के लिए कि क्या कोई व्यक्ति कार्य की किसी मद की जिम्मेदारी उठा सकता है, तुम्हें सबसे पहले यह देखना चाहिए कि क्या वह कार्य-व्यवस्थाएँ पढ़ने और सत्य सिद्धांत समझने के बाद उन्हें व्यवस्थित और कार्यान्वित कर सकता है और कार्य शुरू कर सकता है। चाहे कलीसिया में कितने भी लोग क्यों न हों, अगर वे कलीसिया के कार्य की सभी मदें शुरू करते हैं और चाहे वे कितने भी लोगों के कार्य के लिए जिम्मेदार क्यों न हों—चाहे पचास हों या सौ—वे कार्य को फलता-फूलता बना सकते हैं जिससे सुनिश्चित होता है कि हर किसी के पास अपनी जगह है और वह सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर सकता है और अपना कर्तव्य कर सकता है, तो ऐसे व्यक्ति को अगुआ या पर्यवेक्षक के रूप में चुनने पर विचार किया जा सकता है। यकीनन तुम्हें यह भी देखना चाहिए कि उसका चरित्र कैसा है, क्या वह सही व्यक्ति है और क्या वह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति है—ये चीजें पता होनी जरूरी है! अगुआ या कार्यकर्ता में कम-से-कम इन पहलुओं में काबिलियत और आध्यात्मिक कद होना ही चाहिए ताकि वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में ले जा सके और ताकि हर कोई कार्य-व्यवस्थाओं या सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर सके और अपना कर्तव्य कर सके—इस तरह से परमेश्वर के चुने हुए लोग उससे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अगर उसमें यह क्षमता नहीं है, तो उसे नहीं चुना जा सकता। अगर तुम ऐसे व्यक्ति को चुनते हो, तो वैसे तो हर रोज जब तुम उसके पीछे-पीछे घूमते हो, तो कोई भी कार्य नहीं करते हुए इधर-उधर मौज-मस्ती करना तुम्हारे देह को आराम पहुँचा सकता है, लेकिन क्या तुम अपनी आत्मा में तृप्त महसूस करोगे? अगर तुम हर रोज कुछ घंटे सभाओं में बिताते हो और उसे धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देते हुए सुनते हो, लेकिन कोई वास्तविक कार्य नहीं करते, तो क्या यह तुम्हारा कर्तव्य करना है? (नहीं।) वह हर रोज तुम्हें धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देता है और जबकि हो सकता है कि इससे तुम्हारे कान समृद्ध होते हों, लेकिन तुम अपना कर्तव्य नहीं कर रहे हो और सिर्फ लक्ष्यहीन उलझन में उसके पीछे-पीछे चल रहे हो। ऐसे में तुम उसके द्वारा गुमराह और बाधित किए गए हो। अगर तुम उसे वे शुष्क शब्द और सिद्धांत बोलते हुए सुनते रहते हो, अंत में अपना कर्तव्य नहीं करते हो या निष्ठा नहीं दिखाते हो, तुम्हारे पास सत्य में कोई वास्तविक अनुभव नहीं होता है, परमेश्वर ने तुम्हें जो सौंपा है, तुम उसमें निष्ठा नहीं देते हो और कार्य शुरू नहीं करते हो या कोई नतीजा प्राप्त नहीं करते हो—जिससे जब परमेश्वर लोगों से नतीजे माँगता है, तो तुम्हारे पास पेश करने के लिए कुछ नहीं होता है—तो क्या तुम्हें नुकसान नहीं हुआ होगा? इसलिए, अगर इससे पहले तुम सोचते थे कि ऐसे लोग अगुआ बनने के लिए उम्मीदवार हैं, तो अब जल्दी से अपना दृष्टिकोण बदल डालो और ऐसे लोगों को अपनी उम्मीदवारों की सूची से हटा दो। उन्हें अगुआ के रूप में नहीं चुना जाना चाहिए। खराब काबिलियत और बिना अभिनव क्षमता वाले लोग कहाँ कम पड़ जाते हैं? वे इसमें कम पड़ जाते हैं कि वे सिर्फ आरामकुर्सी पर बैठे जनरलों की तरह कार्य करना जानते हैं, जबकि उन्हें यह कभी पता नहीं होता है कि अपने विचारों को वास्तविक जीवन के कार्य में कैसे लागू करना है और इस कारण से वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं। अगर ऐसे लोग अगुआ बन जाएँ, तो क्या नतीजे होंगे? वे सिर्फ कार्य को पूरी तरह से गड़बड़ कर देंगे। अगर वे मुख्यभूमि चीन में कलीसियाई अगुआ के रूप में सेवा करें, तो वे पूरी कलीसिया को बरबादी की तरफ ले जाएँगे। न सिर्फ वे खुद सत्य प्राप्त करने में विफल होंगे, बल्कि उन्होंने जिन लोगों की अगुआई की उनके जीवन को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। अगर तुम ऐसे लोगों की तुरंत पहचान कर सके और उन्हें हटा सके, तो कुछ आपदाओं को रोक दिया जाएगा और कलीसियाई कार्य को नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। लेकिन अगर तुम ऐसे लोगों के अधीन अनुयायी बने रहे और तुमने उनकी अगुआई स्वीकार कर ली, तो तुम्हारे उद्धार पाने की उम्मीद उनके द्वारा बरबाद हो सकती है और तब तुम्हारे उद्धार का अवसर चला जाएगा। इसलिए एक अगुआ या कार्यकर्ता या पर्यवेक्षक के लिए अभिनव क्षमता एक महत्वपूर्ण क्षमता है। अगर तुममें कार्य करने की बुनियादी काबिलियत और क्षमता नहीं है तो तुम्हें जरूर बिल्कुल सतर्क रहना चाहिए और जोश में आकर बस अँधाधुँध आगे नहीं बढ़ना चाहिए और हमेशा अलग से दिखाई देने की चाह नहीं रखनी चाहिए और हमेशा अगुआ या पर्यवेक्षक बनने की चाह नहीं रखनी चाहिए। ऐसा करने से न सिर्फ तुम अपने लिए अड़चन डालते हो, बल्कि दूसरों के उद्धार प्राप्त करने में भी अड़चन डालते हो। अगर तुम सिर्फ अपने लिए अड़चन डालते हो तो तुम बस अपनी मौत का कारण बनते हो, लेकिन अगर तुम भाई-बहनों के लिए अड़चन डालते हो तो क्या तुम कई लोगों को नुकसान नहीं पहुँचा रहे हो? हो सकता है कि तुम्हें अपनी जान की परवाह न हो, लेकिन दूसरों को तो अपनी जान की परवाह होती है। इसके अलावा, अपने दैनिक जीवन या आर्थिक सफलता में अड़चन डालना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन कलीसिया के कार्य में अड़चन डालना कोई छोटी बात नहीं है। क्या तुम ऐसी जिम्मेदारी उठा सकते हो? अगर तुम सही मायने में जमीर वाले व्यक्ति हो और यह महसूस करते हो कि इस मामले में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी शामिल है, कि कलीसिया के कार्य में अड़चन डालना कोई ऐसी चीज नहीं है जिसके लिए तुम जवाबदेह हो सकते हो तो तुम्हें अगुआई के लिए दिखावा और होड़ करने के किसी भी हथकंडे का सहारा बिल्कुल नहीं लेना चाहिए। अगर तुममें काबिलियत और आध्यात्मिक कद नहीं है तो हमेशा अलग दिखाई देने का प्रयास मत करो। अधिकार की अपनी लालसा को संतुष्ट करने मात्र के लिए कलीसिया के कार्य में अड़चन मत डालो या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सत्य में प्रवेश करने और एक अच्छा गंतव्य प्राप्त करने में अड़चन मत डालो—यह अधर्म है! तुममें कुछ आत्म-जागरूकता होनी चाहिए। तुम जो करने में सक्षम हो, वही करो और हमेशा अगुआ बनने की आकांक्षा मत रखो। अगुआ बनने के अलावा भी ऐसे बहुत से दूसरे कर्तव्य हैं जो तुम कर सकते हो। अगुआ होना तुम्हारा विशिष्ट अधिकार नहीं है, न ही यह तुम्हारा लक्ष्य होना चाहिए। अगर तुममें अगुआ बनने की काबिलियत और आध्यात्मिक कद है और तुममें बोझ की भावना भी है तो बेहतर यह है कि तुम खुद को दूसरों को चुनने दो। इस अभ्यास से कलीसिया के कार्य और इसमें शामिल सभी लोगों को फायदा पहुँचता है। अगर तुममें अगुआ बनने की काबिलियत नहीं है तो तुम्हें कुछ दयालुता दिखानी चाहिए और दूसरों के भविष्यों के लिए कुछ जिम्मेदारी लेनी चाहिए। हमेशा अगुआ बनने की होड़ मत करो और दूसरों के लिए अड़चन मत डालो। खराब काबिलियत होने के बावजूद अगुआ बनने और कलीसिया के कार्य का प्रभारी बनने की चाह विवेक की कमी दर्शाता है। अगर तुममें काबिलियत और आध्यात्मिक कद की कमी है तो बस अपने कर्तव्य अच्छी तरह से निभाओ। सही मायने में अपने कर्तव्य पूरे करना दिखाता है कि तुम्हारे पास कुछ विवेक है। तुम अपनी क्षमता के अनुसार जो भी कार्य कर सकते हो, करो; महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ मत पालो। कलीसिया के कार्य के प्रति लापरवाह होते हुए सिर्फ अपनी व्यक्तिगत इच्छाएँ पूरी करने का प्रयास मत करो—इससे तुम्हें और कलीसिया दोनों को नुकसान पहुँचता है। अभिनव क्षमता के लिहाज से खराब काबिलियत वाले लोगों की यही अभिव्यक्ति होती है।

खराब काबिलियत वाले सभी लोगों में पर्याप्त अभिनव क्षमता नहीं होती है—फिर बिना काबिलियत वाले लोगों में तो यह क्षमता होती ही नहीं है। ऐसे लोग जब चीजों के मूलतत्व, विकासात्मक नियम या सत्य सिद्धांत सुनते हैं, तो वे उन्हें बिल्कुल भी समझ नहीं पाते हैं। परमेश्वर के वचन पढ़ते समय भले ही वे देख सकते हों कि यही सत्य सिद्धांत हैं, लेकिन वे सिद्धांतों को उनके अनुप्रयोग के दायरे या उन लोगों और मामलों से नहीं जोड़ पाते हैं जिनमें वे शामिल हैं। वे यह तक सोचते हैं, “सत्य पर यह संगति बहुत ही ब्योरेवार है और यह बहुत ज्यादा है। ये शब्द सुनकर मैं समझ सकता हूँ कि ये सिद्धांत हैं, लेकिन मैं यह नहीं जानता कि सिद्धांतों की परिभाषा क्या है या सिद्धांत किस दायरे को सीमांकित करते हैं।” अगर उन्हें सिद्धांतों की परिभाषा तक नहीं मालूम तो वे निश्चित रूप से नहीं जानते कि उन्हें कैसे कार्यान्वित करना है या उनका अभ्यास कैसे करना है। उदाहरण के लिए, जब ऐसा कुछ होता है जिसे सँभालने की जरूरत होती है, तो दूसरे लोग उनसे कहते हैं : “तुम्हें सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करना चाहिए।” वे कहते हैं : “मुझे तो यह भी नहीं पता कि सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास कैसे करना है। मैं नहीं जानता कि यह मामला किस सिद्धांत से संबंधित है।” जब दूसरे उन्हें यह समझा देते हैं कि इस मामले को सँभालने में उन्हें किस सिद्धांत का अभ्यास करना चाहिए, उसके बाद भी उन्हें नहीं पता होता कि क्या करना है। ऐसे लोगों की काबिलियत बेहद खराब होती है; वे मानव भाषा तक नहीं समझ पाते हैं और इससे भी ज्यादा यह कि वे उपयोग के अयोग्य होते हैं। क्या यह नहीं दिखाता कि ऐसे लोग इतने अयोग्य होते हैं कि उनकी मदद नहीं की जा सकती? जो लोग असहाय रूप से अयोग्य हैं, उनके पास सामान्य मानवता की चीजें समझने की सोच और क्षमता नहीं होती है, फिर सोच-विचार करने के तर्क की बात ही छोड़ दो। इसलिए, जो लोग सत्य सिद्धांत या विभिन्न मूलतत्व और नियम समझते हैं, उनके पास उन लोगों से बातचीत करने का कोई तरीका नहीं होता है जिनमें काबिलियत की कमी होती है; वे आम सहमति तक नहीं पहुँच पाते हैं और यकीनन उनके पास कोई आम भाषा नहीं होती है। वे बातचीत क्यों नहीं कर पाते हैं? यहाँ मूलभूत समस्या यह है कि लोगों के इन दो प्रकारों की विभिन्न चीजों से परिचित होने, उन्हें पहचानने, उनके बारे में राय बनाने, उन्हें समझने और स्वीकार करने की क्षमताएँ एक ही स्तर या एक ही पथ पर नहीं होती हैं—वे दो समानांतर रेखाओं की तरह होती हैं जो एक दूसरे को कभी भी नहीं काटेंगी। यह कुछ हद तक अमूर्त शब्दों में बोलना है। इसे ठोस रूप में कहा जाए तो लोगों के इन दो प्रकारों की काबिलियत में जमीन-आसमान का फर्क होता है और वे एक ही स्तर पर नहीं होते हैं। इसलिए, उनमें कभी भी राय बनाने की बराबर क्षमता, चीजें पहचानने की बराबर क्षमता या एक ही मामले के बारे में बराबर संज्ञानात्मक क्षमता नहीं होगी। यानी, अच्छी काबिलियत या औसत काबिलियत वाले लोग जो पहचान सकते हैं, उसे बिना काबिलियत वाले लोग बिल्कुल भी नहीं पहचान पाते हैं—वे इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं और हमेशा खरे नहीं उतरेंगे, मानो उनके पास वह कार्य है ही नहीं। उदाहरण के लिए, जब मुर्गी बड़ी हो जाती है, तो वह स्वाभाविक रूप से अंडे देती है। भले ही उसका उत्पादन कम हो, फिर भी वह अंडे देगी क्योंकि उसके पास वह प्रकार्य है। हालाँकि, मुर्गे को चाहे कितना भी अच्छा खिलाया क्यों न जाए, वह अंडे नहीं दे सकता क्योंकि उसके पास वह प्रकार्य नहीं है। मुर्गा कहता है : “वैसे तो मेरे पास अंडे देने का प्रकार्य नहीं है, लेकिन मैं सुबह बाँग दे सकता हूँ!” चाहे तुम कितनी भी बार बाँग क्यों न दो या तुम्हारी आवाज कितनी भी ऊँची क्यों न हो, इसका यह मतलब नहीं है कि तुम अंडे दे सकते हो। जबकि मुर्गी बाँग नहीं देती है, लेकिन उसके पास अंडे देने का प्रकार्य है। मैं तुम्हें यह उदाहरण क्यों दे रहा हूँ? क्योंकि बिना काबिलियत वाले लोग इस तरह के विकृत, भ्रामक, बेतुके तर्क बोलेंगे—इसे बिल्कुल काबिलियत नहीं होना कहते हैं। इसलिए, जब अच्छी काबिलियत, औसत काबिलियत या यहाँ तक कि खराब काबिलियत वाले लोग उन लोगों से बातचीत और चर्चा करते हैं जिनमें कोई काबिलियत नहीं होती है, तो यह अजीब महसूस होता है। खराब काबिलियत वाले लोगों से तुम फिर भी कुछ सरल और आसानी से समझ आने वाले मामलों पर बातचीत कर सकते हो। लेकिन जिन लोगों में कोई काबिलियत नहीं होती है, उनके साथ कोई भी बातचीत नहीं कर सकता है क्योंकि उनमें किसी भी चीज के बारे में कोई समझने की क्षमता और विचार या दृष्टिकोण नहीं होते हैं। यह बिना काबिलियत वाले लोगों का वर्णन या स्पष्टीकरण है। जब तुम उन्हें किसी चीज के बारे में बताते हो, तो भले ही तुम इसे पूरी तरह से और स्पष्ट रूप से समझाते हो और हो सकता है कि वे कहते हों कि वे समझते हैं, फिर भी जब वही चीज दोबारा होती है, तो वे अब भी नहीं समझते हैं और दोबारा विकृत, भ्रामक तर्क देते हैं। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोग सत्य समझ सकते हैं? (नहीं।) उनमें चीजें पहचानने या उनसे परिचित होने की कोई क्षमता नहीं होती है—वे सत्य कैसे समझ सकते हैं? यह कहना सिर्फ बकवास ही होगा कि वे सत्य समझ सकते हैं। बिना काबिलियत वाले लोगों में अभिनव क्षमता की कमी होती है, इसलिए इस संबंध में उनकी अभिव्यक्तियाँ ऐसी होती हैं। क्योंकि वे कोई मूलतत्व या सिद्धांत नहीं समझते हैं, इसलिए वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें उनकी कोई योजना नहीं होती है। उनके मन में कोई योजना या चरण नहीं होता है और इससे भी बड़ी बात यह कि वे कोई मूलतत्व या सिद्धांत कार्यान्वित नहीं कर सकते हैं। वे जो भी करते हैं वह पूरा गड़बड़ होता है, पूरी अव्यवस्था होती है। ऐसे लोग सिर्फ शारीरिक श्रम कर सकते हैं और शारीरिक कार्य कर सकते हैं। वे मुश्किल से एक आसान, अकेला काम कर सकते हैं; आखिर वे साधारण लोग हैं, जो एक अकेला काम कर सकते हैं, लेकिन जब परिस्थिति कार्य के किसी मद को हाथ में लेने के स्तर तक बढ़ जाती है, तो वे अब इसके योग्य नहीं रह जाते हैं। ऐसे लोग कोई भी कीमती या तकनीकी रूप से मेहनत वाला कार्य करने में अक्षम होते हैं। वे जैसे-तैसे सिर्फ कुछ छोटे-मोटे काम ही सँभाल सकते हैं, जैसे कि शारीरिक श्रम, खेती का काम या पशुपालन और तब भी उन्हें निरीक्षण करने और अपनी सहायता करने के लिए अपने आसपास एक पर्यवेक्षक की जरूरत होती है। कभी-कभी जब उनका मिजाज खराब होता है, तो किसी को उनका मिजाज शांत करने की जरूरत पड़ती है; और कभी-कभी जब वे विकृतियों में फँस जाते हैं या नकारात्मक हो जाते हैं, तो किसी को उन्हें उनके सोचने के तरीकों पर सलाह देनी पड़ती है। यहाँ तक कि छोटे-मोटे कामों के लिए भी किसी को यह जाँचने की जरूरत होती है कि वे क्या करते हैं; नहीं तो समस्याएँ और गलतियाँ पैदा होने लगती हैं और कार्य को एक नए सिरे से करना पड़ता है। अगर वे सामग्री बरबाद नहीं कर रहे होते हैं, तो वे ऊर्जा या पानी, बिजली और गैस बर्बाद कर रहे होते हैं। पश्चिमी देशों में लगातार दूसरे लोगों द्वारा उनकी रिपोर्ट की जाती है और पुलिस द्वारा उन पर जुर्माना लगाया जाता है। यहाँ तक कि वे बिना किसी की निगरानी के छोटे-मोटे काम भी उचित रूप से नहीं कर सकते हैं—वे बस इतने समस्यात्मक और दयनीय होते हैं। ये बिना काबिलियत वाले लोगों की अभिव्यक्तियाँ हैं। क्या ऐसे लोग बस निकम्मे और बेवकूफ नहीं हैं? क्या अब भी उनका मनुष्यों के रूप में उपयोग किया जा सकता है? दरअसल परमेश्वर के घर में ऐसे लोग सिर्फ थोड़ा-सा शारीरिक श्रम कर पाते हैं। जब कलीसियाई कार्य की बात आती है, तो वे इसे नहीं कर पाते हैं; वे कुछ भी करने में अक्षम हैं। यहाँ तक कि जिन कामों के लिए शारीरिक श्रम की जरूरत होती है उन्हें भी वे स्वतंत्र रूप से पूरा नहीं कर पाते हैं और वे जो भी करते हैं उसके लिए अब भी उन्हें निर्देश देने, निगरानी करने और जाँच करने के लिए दूसरों की जरूरत होती है। लेकिन जब वे ऐसे काम करते हैं जिनके लिए शारीरिक श्रम की जरूरत होती है, तो उन्हें अब भी लगता है कि यह उनकी प्रतिभाओं के लायक नहीं है, वे अति-योग्य हैं और वे उद्दंड हो जाते हैं, यहाँ तक कि शिकायत भी करते हैं : “उन लोगों को देखो जो तकनीकी कंप्यूटर कार्य कर रहे हैं, लेख लिख रहे हैं, गा रहे हैं और नृत्य कर रहे हैं या अभिनय कर रहे हैं—वे कितने दिलकश हैं! लेकिन मैं सिर्फ मेजबानी और खाना पकाने का काम सँभाल सकती हूँ, सारा दिन चिकनाई और धुएँ से निपटती रहती हूँ। कुछ वर्षों में मैं एक थकी-हारी महिला में बदल जाऊँगी। देखो मैं कितनी दयनीय हूँ!” वे यह कार्य करते हुए काफी दयनीय महसूस करते हैं, लेकिन वे कभी यह सोचने के लिए रुकते नहीं हैं कि वे सिर्फ इसी तरह का कार्य ही क्यों कर सकते हैं। वे यह नहीं मापते हैं कि क्या वे सही मायने में दूसरे कार्य सँभालने में सक्षम हैं। क्योंकि उनकी काबिलियत खराब है इसलिए वे कुछ ऐसे काम करते समय हमेशा परेशान हो जाते हैं जिनमें शारीरिक श्रम की जरूरत होती है। अगर सही मायने में उनकी काबिलियत अच्छी होती, तो वे परेशान नहीं होते। उनकी काबिलियत पहले से ही इतनी खराब है कि वे सिर्फ शारीरिक काम ही कर सकते हैं, फिर भी उन्हें लगता है कि यह उनकी प्रतिभाओं के लायक नहीं है। क्या वे बेवकूफ नहीं हैं? ऐसे लोग सही मायने में बेवकूफ होते हैं! इस तरह के लोग ऐसे काम भी उचित रूप से नहीं कर पाते हैं जिनके लिए शारीरिक श्रम की जरूरत होती है। खाना पकाते समय वे या तो बहुत ही ज्यादा या बहुत ही कम पकाते हैं और चाहे वे कितनी भी देर तक खाना क्यों न पकाएँ, फिर भी उन्हें यह नहीं पता होता कि ऐसा करते समय उन्हें किस तरीके का पालन करना चाहिए। फिर भी उन्हें अब भी लगता है कि ऐसे काम उनकी प्रतिभाओं के लायक नहीं हैं, वे अति-योग्य हैं और वे सोचते हैं कि उन्हें ऐसे काम नहीं करने चाहिए जिनमें शारीरिक श्रम की जरूरत होती है। वे मानते हैं कि उन्हें किसी कार्यालय में सचिव के रूप में कार्य करना चाहिए, परमेश्वर के घर में कार्य की किसी मद की जिम्मेदारी उठानी चाहिए या कम-से-कम एक कलीसियाई अगुआ के रूप में सेवा करनी चाहिए। क्या यह पूरी तरह से सूझ-बूझ की कमी नहीं है? मुझे बताओ, तुम किस कार्य के लिए योग्य हो? अगर तुम किसी भी तरह के कार्य के लिए योग्य नहीं हो और तुम्हें ऐसे काम दिए जाते हैं जिन्हें करने के लिए शारीरिक श्रम की जरूरत होती है जबकि परमेश्वर का घर अब भी तुम्हारा भरण-पोषण करता है, तो क्या यह तुम्हारा उन्नयन नहीं है? और फिर भी तुम असंतुष्ट रहते हो। क्या तुम्हारी सूझ-बूझ बहुत ही ज्यादा कमजोर नहीं है? (हाँ।) क्या सूझ-बूझ और काबिलियत के बीच कोई संबंध है? (हाँ।) खुद को नहीं जानना, यह नहीं जानना कि अपनी काबिलियत किस स्तर पर है, हमेशा यह सोचना कि अपनी काबिलियत ऊँची है—क्या ये खराब काबिलियत की अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं? (हाँ।) अच्छी काबिलियत वाले लोगों को यह पता होगा कि अपना मूल्यांकन कैसे करना है और मूल्यांकन करने के बाद वे अपनी काबिलियत का स्तर जान जाएँगे। एक बार जब वे यह तय कर लेंगे कि उनकी काबिलियत क्या है, तो वे कलीसिया में अपनी जगह ढूँढ़ निकालने में समर्थ हो जाएँगे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे क्या करते हैं, वे निश्चिंत ही महसूस करेंगे और वे जो कर्तव्य करते हैं उसके बारे में तर्कसंगत रूप से सोचने में समर्थ होंगे। भले ही उन्हें ऐसे कार्य सौंपे जाएँ जिनमें शारीरिक श्रम की जरूरत पड़ती है, तो भी वे ऐसा करने में शांति और जायज महसूस करेंगे; वे अपने दिलों की गहराई से इसके प्रति समर्पण करेंगे और इससे सहमत होंगे, यह काम और यह जिम्मेदारी स्वीकार करेंगे। इसे तार्किकता होना कहते हैं। अगर कोई व्यक्ति अपना कर्तव्य करते समय कभी भी निश्चिंत नहीं रहता है, हमेशा दुखी रहता है और सोचता है कि उसे जो भी करने के लिए कहा जाता है वह चीज उसकी प्रतिभाओं के लायक नहीं होती है, तो क्या उसमें सूझबूझ की कमी नहीं है? (हाँ।)

अब हमने किसी व्यक्ति की काबिलियत मापने के लिए ग्यारह क्षमताओं में से अंतिम क्षमता अभिनव क्षमता पर चर्चा समाप्त कर ली है। इन ग्यारह क्षमताओं पर संगति करने के बाद क्या तुम लोग अपनी खुद की काबिलियत के बारे में कुछ हद तक स्पष्ट हो? (हाँ।) तो क्या तुम लोग इसे मापने में समर्थ हो? क्या तुम सटीक रूप से यह माप सकते हो कि सही मायने में तुम्हारी अपनी काबिलियत क्या है? जब यह निर्धारित करने की बात आती है कि क्या तुम्हारी अपनी काबिलियत अच्छी है, औसत है, खराब है या है ही नहीं, तो मापन का एक मानक है—तुम सिर्फ एक पहलू को नहीं देख सकते; इसे व्यापक रूप से मापना चाहिए। तो किसी व्यक्ति की काबिलियत क्या है इसे मापने के लिए कौन-से पहलू देखने चाहिए? हमने जिन ग्यारह क्षमताओं पर संगति की, उनकी अभिव्यक्तियों को देखा जाए तो किसी व्यक्ति को अच्छी काबिलियत वाले के रूप में मापने के लिए कम-से-कम उसके पास कई अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण क्षमताएँ होनी चाहिए। एक पल के लिए विचार करो : ग्यारह में से कौन-सी मुख्य क्षमताएँ हैं जो यह प्रदर्शित कर सकती हैं कि किसी व्यक्ति में अच्छी काबिलियत है? क्या तुम इसे माप सकते हो? यह क्रम अंतिम क्षमता से पहली क्षमता की तरफ बढ़ना चाहिए : अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति में कम-से-कम अभिनव क्षमता होनी ही चाहिए; उसके बाद चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता, फैसले लेने की क्षमता और चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता आती है; फिर चीजों को पहचानने की क्षमता, राय बनाने की क्षमता और संज्ञानात्मक क्षमता आती है; अंत में चीजों को स्वीकार करने की क्षमता, समझने की क्षमता, चीजों को समझने की क्षमता और सीखने की क्षमता आती है। यह क्रम इसी तरह से है। इस क्रम को उल्टा क्यों किया गया है? हमने शुरू में जो क्रम व्यवस्थित किया था वह निम्न से उच्च था, लेकिन अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति को मापने के लिए इसे उच्च से निम्न में व्यवस्थित किया गया है। अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति में कम-से-कम अभिनव क्षमता तो होनी ही चाहिए। इस पर पहले से ही फैसले लेने की क्षमता, चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता और चीजों को पहचानने की क्षमता होने की नींव पर पहुँचा जा चुका है। अगर तुम चीजों से परिचित होने, उन्हें पहचानने और उनके बारे में राय बनाने में समर्थ हो और तुम्हारे पास चीजों को समझने की क्षमता भी है और फिर तुम नवपरिवर्तन कर सकते हो तो इससे तुम अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति बन जाते हो। ऐसे लोग अगुआई क्षमता वाले लोग होते हैं, जो फैसले लेने के स्तर में प्रवेश करने में सक्षम होते हैं; वे अगुआ होने में प्रतिभाशाली होते हैं और कार्य के एक विशेष क्षेत्र की अध्यक्षता कर सकते हैं। ये अच्छी काबिलियत वाले लोग हैं। औसत क्षमता वाले लोग वे हैं जिनकी अभिनव क्षमता से लेकर सीखने की क्षमता तक सभी पहलुओं में क्षमताएँ औसत होती हैं। चीजें करने में उनकी कुशलता और नतीजे दोनों ही औसत होते हैं। ये औसत काबिलियत वाले लोग हैं। औसत काबिलियत वाले लोगों की प्राथमिक अभिव्यक्ति क्या है? वह यह है कि सिद्धांतों की उनकी बूझ और समझ में गहराई नहीं होती है और ये बहुत सटीक नहीं होते हैं। कार्यान्वयन और अभ्यास करते समय हमेशा खामियाँ और विचलन होते हैं। उनके पास हमेशा कोई न कोई चीज नहीं होती है, वे अमुक और अमुक चीज भूल जाते हैं और व्यापक रूप से सभी चीजों का ध्यान नहीं रख पाते हैं। उदाहरण के लिए, उन्हें कलीसियाई अगुआ बनने के लिए चुना जाता है, लेकिन वे व्यापक रूप से कार्य के सभी पहलुओं का प्रभार लेने में असमर्थ होते हैं। जब वे सुसमाचार कार्य के लिए जिम्मेदार होते हैं, तो वे सिर्फ सुसमाचार कार्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं और दूसरे कार्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। वे सुसमाचार कार्य शुरू तो कर सकते हैं, लेकिन उनके पास पाठ-आधारित कार्य या फिल्म निर्माण कार्य के बारे में प्रश्न पूछने का समय नहीं होता है। ऐसा क्यों है? क्योंकि उनकी काबिलियत पूरी तरह से औसत है और वे कार्य के सिर्फ एक पहलू को ही सँभाल सकते हैं; वे मुश्किल से कार्य के एक क्षेत्र में जैसे-तैसे सक्षम हो पाते हैं, लेकिन जब उनसे दूसरे कार्य पर ध्यान देने के लिए कहा जाता है, तो वे नाराजगी से शिकायत करते हैं और अभिभूत हो जाते हैं, कोई भी कार्य ठीक से नहीं कर पाते हैं। अपने कार्य में वे जो भी करते हैं, उसका पर्यवेक्षण करने, याद दिलाने, निरीक्षण करने और पुनरीक्षण करने के लिए किसी को रहना पड़ता है। उन्हें सहारा देने, सत्य की संगति करने, बार-बार कार्य के सिद्धांतों पर और हो सकने वाले विभिन्न विचलनों और खामियों पर जोर देने के लिए किसी को उनके साथ रहना पड़ता है। उन्हें याद दिलाने के लिए हमेशा किसी को रहना पड़ता है। ऐसा क्यों है कि उन्हें याद दिलाने और निर्देश देने के लिए उन्हें हमेशा किसी की जरूरत होती है? इसका कारण यह नहीं है कि उनका कार्य अनुभव अपर्याप्त है, बल्कि यह है कि उनकी काबिलियत औसत है। वे उन परिस्थितियों और समस्याओं का अनुमान नहीं लगा पाते हैं जिनके पैदा होने की संभावना रहती है या वे जो अनुमान लगा पाते हैं वह बहुत सीमित होता है। इसलिए, मार्गदर्शन देने, पुनरीक्षण करने और अनुवर्ती कार्रवाई करने के लिए हमेशा उनके साथ किसी को रहना पड़ता है जिसे अक्सर उनसे पूछताछ करने की जरूरत पड़ती है। पूछताछ करने पर पता चलता है कि उन्होंने या तो कार्य कि अमुक मद नहीं की है या वे कार्य की अमुक मद भूल गए हैं; नहीं तो उन्होंने किसी पहलू को नजरअंदाज कर दिया है या वे नहीं जानते हैं कि आगे कैसे बढ़ना है, फिर भी उन्हें नहीं मालूम होता है कि किससे पूछना है या कैसे तलाश करनी है और वे अब भी प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। संक्षेप में, कार्य के लिए सक्षम होने की उनकी क्षमता बहुत औसत है। इस “औसत” का इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि वे कितने दृढ़ संकल्पी हैं, वे कितने मजबूत हैं, उन्हें कार्य करना कितना पसंद है या वे कितना कष्ट सह सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं—इसका इन बातों से कोई लेना-देना नहीं है। बल्कि, यह सिर्फ सूचित करता है कि उनकी कार्य क्षमता औसत है। दूसरी तरफ, अच्छी काबिलियत वाले लोग मूल रूप से अपने कार्य में बड़ी गलतियाँ नहीं करते हैं। वे जिन सिद्धांतों, निर्देश और व्यापक रूपरेखा का पालन करते हैं, वे मूल रूप से सटीक होते हैं। वैसे तो हो सकता है कि वे अक्सर कुछ छोटे विवरणों को अनदेखा कर दें, लेकिन ये विवरण पूरे कार्य की कुशलता और नतीजों को प्रभावित नहीं करते हैं। ये अच्छी काबिलियत वाले लोग हैं। यकीनन, कोई भी मनुष्य परिपूर्ण नहीं होता है। यहाँ तक कि अच्छी काबिलियत वाले लोगों के कार्य में भी कुछ छोटी-मोटी खामियाँ हो सकती हैं, कभी-कभी वे पल भर के लिए किसी चीज को अनदेखा कर देते हैं या कार्य के किसी मद के प्रति थोड़ी लापरवाही कर देते हैं क्योंकि वे हाल ही में किसी दूसरे कार्य में व्यस्त रहे हैं। लेकिन, बस अपनी काबिलियत के लिहाज से वे जल्दी से परिस्थिति को बदल सकते हैं और इसे प्रबंधित और नियंत्रित कर सकते हैं जिससे यह सुनिश्चित होता है कि पूरा कार्य वास्तव में गलतियों से मुक्त हो और सारा कार्य आमतौर पर सत्य सिद्धांतों, कार्य-व्यवस्थाओं या प्रशासनिक आदेशों के प्रावधानों के अनुरूप किया जाए और यह व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़े। यहाँ तक कि जब मसीह-विरोधी या कुकर्मी उनके कार्य के दायरे में विघ्न डालने के लिए प्रकट होते हैं, तो क्योंकि उनके पास चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता होती है, इसलिए वे जल्दी से परिस्थिति को सँभाल लेते हैं। वे पहले अवसर पर ही मामले को सँभाल लेते हैं और उसे हल करते हैं जिससे सुनिश्चित होता है कि कलीसियाई कार्य जल्दी से सही रास्ते पर लौट आए और भाई-बहनों के लिए अपना कर्तव्य करने का परिवेश प्रभावित न हो। यहाँ तक कि जब अप्रत्याशित परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, तो अच्छी काबिलियत वाले लोगों को पता होता है कि उन्हें कैसे सँभालना है। अगर उन्होंने ऐसी परिस्थितियाँ पहले न भी संभाली हों तो भी उन्हें पता होगा कि सिद्धांतों की तलाश कैसे करनी है। क्योंकि उनमें चीजों को पहचानने, उनके बारे में राय बनाने और उनसे परिचित होने की क्षमता होती है, इसलिए वे जल्दी से सिद्धांतों के अनुसार समस्याएँ हल कर देते हैं। उनमें समस्याएँ हल करने की क्षमता बिल्कुल होती है। उनकी चीजों को पहचानने, उन पर प्रतिक्रिया करने और फैसले लेने की क्षमताएँ उन्हें अप्रत्याशित परिस्थितियों को जल्दी से तनावमुक्त और शांत करने में सक्षम बनाती हैं जिससे कलीसिया के कार्य की सामान्य और व्यवस्थित प्रगति का बचाव और परमेश्वर के घर के हितों का बचाव होता है जो सुनिश्चित करता है कि ऐसी परिस्थितियाँ दोबारा उत्पन्न न हों या लंबे समय तक अशांत न बनी रहें। साथ ही, वे जिन सिद्धांतों के अनुसार चीजें सँभालते हैं और जो अंतिम नतीजे प्राप्त करते हैं, वे दोनों ही परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने का कार्य करते हैं। अच्छी काबिलियत वाले लोग अपने कार्य में ऊँची दक्षता और अच्छे नतीजे प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन, जब औसत काबिलियत वाले लोग कलीसियाई कार्य या दैनिक जीवन में होने वाली समस्याएँ सँभालते हैं, तो वे कुछ हद तक अभिभूत हो जाते हैं और उन्हें यह थोड़ा-सा कठिन लगता है। समस्याओं को सँभालने का उनका तरीका अक्सर अकुशल और बहुत धीमा होता है। जिन मुद्दों को एक-दो दिन में हल किया जाना चाहिए, क्योंकि वे उनकी असलियत नहीं देख पाते हैं, इसलिए उनके लिए उन्हें प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है और उन्हें तीन से पाँच दिनों तक सोच-विचार करना पड़ सकता है। वे परिस्थिति को बदलने के लिए निर्णायक फैसले नहीं ले सकते हैं, बल्कि वे असहाय होते हैं और परिस्थिति को सिर्फ लगातार बदतर होने दे सकते हैं। वे सिर्फ कुछ सरल कार्य ही कर सकते हैं, जैसे तथ्यों की पुष्टि करना, परिस्थिति के बारे में संबंधित लोगों से पूछना या समस्याएँ छाँटना और ऊपर उनकी रिपोर्ट करना। जिन समस्याओं को लोग दो दिनों में हल कर सकते हैं, उन्हें हल करने में उन्हें आधा महीना लग सकता है। वैसे तो अंत में समस्याएँ हल कर दी जाती हैं, लेकिन लंबे समय की देरी से कलीसियाई कार्य को कुछ नुकसान होते हैं। इस दौरान कुछ लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह हो सकते हैं, चढ़ावे गुम हो सकते हैं या कार्य की कुछ मदों को नुकसान हो सकते हैं क्योंकि समस्याएँ तुरंत हल नहीं की गईं। वैसे तो बाद में मुआवजा या प्रतिफल प्रदान किया जाता है और जिन लोगों को सँभाला जाना चाहिए उन्हें अंत में सँभाल लिया जाता है, लेकिन नतीजे और दक्षता बहुत औसत होती है। यह आग बुझाने जैसा है : अच्छी काबिलियत वाले लोगों में आग बुझाने, अच्छे नतीजे प्राप्त करने और आर्थिक नुकसान रोकने का कौशल होता है। लेकिन औसत काबिलियत वाले लोग अनुचित तरीकों, आपातकालीन उपायों की कमी, धीमी रफ्तार से कार्य करने के कारण और निर्णायक फैसले लेने में और यह समस्या हल करने के लिए मुख्य बिंदुओं को गहराई से समझने में असमर्थता के कारण अंत में ज्यादा नुकसान पहुँचा देते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “मैं अपने कारण हुए नुकसानों के लिए मुआवजा देने को तैयार हूँ।” अगर यह सिर्फ आर्थिक नुकसान है तो मुआवजा यह समस्या हल कर सकता है। लेकिन अगर बड़े लाल अजगर की गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ता है और तुम इसे उचित रूप से सँभालने में विफल हो जाते हो जिससे कलीसिया के कार्य को नुकसान होता है तो क्या तुम उसकी भरपाई कर सकते हो? क्या तुम देर हो चुके कार्य और खोए समय की लागत की भरपाई कर सकते हो? जब अप्रत्याशित घटनाएँ होती हैं, तब क्योंकि औसत काबिलियत वाले लोगों की चीजों पर प्रतिक्रिया करने, राय बनाने, चीजों को पहचानने की क्षमताएँ और यहाँ तक कि फैसले लेने की क्षमता भी औसत होती है, इसलिए वे समस्याएँ धीरे-धीरे और बेहद कम दक्षता से सँभालते हैं और उनके आपातकालीन उपाय बेअसर होते हैं जिसके कारण अंत में असंतोषजनक कार्य परिणाम और कुछ नुकसान होते हैं। भले ही अंत में समस्याएँ हल कर दी जाती हैं, लेकिन क्योंकि लंबे समय की देरी होती है और दक्षता कम हो जाती है, इसलिए यह एक नुकसान है। इसलिए, ये लोग औसत काबिलियत वालों के रूप में निरूपित किए जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “यह उचित नहीं है। उन्होंने भी प्रयास किया, कड़ी मेहनत की और समस्याएँ हल कीं। तुम फिर भी यह कैसे कह सकते हो कि उनकी काबिलियत औसत है?” ऐसे मामलों का मूल्यांकन करना भावनाओं या भावुकताओं पर आधारित नहीं किया जा सकता है। वस्तुनिष्ठ और उचित रूप से और उस स्तर के लिहाज से बोला जाए जिसे व्यक्ति की काबिलियत प्राप्त कर सकती है, तो तुम्हारी काबिलियत औसत है। यह औसत क्यों है? क्योंकि तुमसे ऊँची काबिलियत वाले लोग हैं; ऐसी परिस्थितियों में जहाँ उनकी और तुम्हारी मानवता लगभग एक जैसी होती है, वहाँ अच्छी काबिलियत वाले लोग तुम्हारी तुलना में बेहतर दक्षता और नतीजों के साथ समस्याएँ सँभालते हैं और तुम्हारी तुलना में नुकसान छोटे होते हैं। इसलिए, तुम्हारी काबिलियत को सिर्फ औसत के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। तुम समझ रहे हो? (हाँ।) ऐसे लोगों को औसत काबिलियत वालों के रूप में निरूपित करने का कारण यह है कि अच्छी काबिलियत वाले ऐसे लोग हैं जो उनकी तुलना में अपने कार्यों में बेहतर दक्षता और नतीजे प्राप्त करते हैं। इसलिए, उनकी काबिलियत औसत है। यह स्पष्टीकरण उचित और तर्कसंगत है। कुछ लोग कहते हैं, “उनमें ईमानदारी है और उन्होंने इस कार्य में अपने दिल लगाए; उन्होंने ढेरों कष्ट सहे और कोई छोटी कीमत नहीं चुकाई।” यह कहने का क्या फायदा है? क्या इसका मतलब यह है कि उनमें अच्छी काबिलियत है? उनकी मानवता, भावनाएँ या इच्छाएँ चाहे जैसी भी हों, बस उनकी काबिलियत के लिहाज से ये औसत काबिलियत होने की अभिव्यक्तियाँ हैं।

खराब काबिलियत वाले लोगों की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? विभिन्न क्षमताओं के परिप्रेक्ष्य से देखा जाए तो खराब काबिलियत वाले लोगों के पास अपेक्षाकृत कुछ सीखने की क्षमता और चीजों को समझने की क्षमता होती है। जब वे विशेष ज्ञान, सिद्धांत, पेशेवर कौशल या शैक्षणिक विषय सीखते हैं, तो वे उन्हें ठोस और सटीक रूप से याद कर सकते हैं, वे अपनी नोटबुक में मुख्य बिंदुओं को लिख लेते हैं। क्योंकि उन्होंने शिक्षा प्राप्त की है, इसलिए उनकी चीजों को समझने की क्षमता बहुत ज्यादा खराब नहीं होती है; यह औसत स्तर तक पहुँच सकती है। लेकिन उनके पास वे क्षमताएँ नहीं हैं जो समझने की क्षमता के बाद आती हैं, जैसे कि चीजों को स्वीकार करने की क्षमता और चीजों को पहचानने की क्षमता। यानी, उनकी क्षमताएँ पाठ्य-स्तर पर सिद्धांत, ज्ञान, तकनीकी कौशल या पेशे सीखने और समझने तक सीमित रहती हैं। जब वास्तविक जीवन में लोगों को देखने, मामले सँभालने, समस्याएँ हल करने और कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करने की बात आती है, तो वे कम पड़ जाते हैं। उनकी क्षमताएँ सीखने की क्षमता और चीजों को समझने की क्षमता तक ही सीमित रहती हैं; वे समझने की क्षमता प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन जब चीजों को स्वीकार करने की क्षमता की बात आती है, तो वे कम पड़ जाते हैं। जिन लोगों के पास चीजों को स्वीकार करने की क्षमता होती है, वे जान सकते हैं कि ये सिद्धांत, नियम और मूल तत्व वास्तविक जीवन की किन चीजों से मेल खाती हैं और साथ ही, इनमें से कौन-सी व्यावहारिक और लागू करने लायक हैं, कौन-सी व्यावहारिक नहीं हैं और कौन-सी उनके अपने लिए उपयुक्त हैं और कौन-सी नहीं हैं। लेकिन खराब काबिलियत वाले लोग इन चीजों की असलियत नहीं देख पाते हैं। उदाहरण के लिए, ऑनलाइन विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और तंदुरुस्ती पर प्रशिक्षण सामग्री उपलब्ध है। खराब काबिलियत वाले लोग भी इन संसाधनों से व्यायाम करना और अपनी देखभाल करना सीख सकते हैं। उनके पास सीखने की क्षमता, चीजों को समझने की क्षमता और समझने की क्षमता होती है और वे यह ढूँढ़ना भी जानते हैं कि उन्हें क्या पसंद है। लेकिन जब यह बात आती है कि इनमें से कौन-सी चीजें व्यावहारिक और प्रभावी हैं और जिनकी सही मायने में लोगों को जरूरत है, तो खराब काबिलियत वाले लोग इसे पहचान नहीं पाते हैं। जब चीजें स्वीकार करने की क्षमता की बात आती है, तो वे कम पड़ जाते हैं। आज ऑनलाइन यह कहा जाता है कि टोफू के साथ दम किया हुआ पालक बहुत पौष्टिक होता है, इसलिए वे इसे हर रोज खाते हैं। लेकिन इसे कुछ समय खाने के बाद उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं होता कि इसके क्या प्रभाव हैं या क्या यह ऑनलाइन दावा किया गया प्रभाव देता है। बाद में ऑनलाइन यह कहा जाता है कि पालक और टोफू बेमेल हैं और यह सुनने के बाद वे फिर कभी टोफू के साथ दम किया हुआ पालक नहीं बनाते हैं। जहाँ तक यह प्रश्न है कि क्या पालक और टोफू सही मायने में बहुत पौष्टिक हैं या बेमेल हैं, तो उन्हें नहीं पता होता है और वे नहीं पूछेंगे; वे सिर्फ आँख मूंदकर पालन करना जानते हैं। आजकल जानकारी बहुत ही विकसित है; विभिन्न खबरें बेहद पेचीदा होती हैं। वे यह नहीं पहचान पाते हैं कि क्या सही है और क्या गलत या क्या ठीक है और क्या दोषपूर्ण। वे सब कुछ पढ़ते और सुनते हैं, यह मानते हैं कि जो कुछ उन्होंने पहले नहीं सुना है, जो कुछ भी नया या गहरा प्रतीत होता है, वह जरूर अच्छा होगा। उदाहरण के लिए, ऑनलाइन कहा जाता है कि चॉकलेट खाना दिल के लिए अच्छा है, इसलिए वे हर रोज चॉकलेट खाते हैं। नतीजतन, उनके अंदर गर्मी पैदा होती है, मुँह में छाले पड़ जाते हैं, आँखें लाल हो जाती हैं और उनके कानों में झंझनाहट होती है। दरअसल यह कहा गया था कि सीमित मात्रा में चॉकलेट खाना दिल के लिए अच्छा है, लेकिन उन्हें “सीमित मात्रा में” शब्द याद नहीं रहे। वे मुख्य बिंदु को गहराई से समझने में अक्षम हैं और अंत में अपना नुकसान कर बैठते हैं। कुछ दिनों बाद अब ऑनलाइन यह कहा जाता है : “चॉकलेट खाना दिल के लिए बुरा है और इसे बहुत ज्यादा खाने से वजन भी बढ़ सकता है।” जो लोग पहचान सकते हैं उन्हें पता होगा कि इसे बहुत ज्यादा खाना शरीर के लिए बुरा है, लेकिन सीमित मात्रा में खाना ठीक है। लेकिन वे इसे पहचान नहीं पाते हैं; यह सुनने के बाद वे चॉकलेट खाना पूरी तरह से बंद कर देते हैं। वे एक चरम से दूसरे चरम पर झूलते हैं, उनका झुकाव या तो बहुत ज्यादा बाईं तरफ होता है या बहुत ज्यादा दाईं तरफ, फिर भी उन्हें लगता है कि वे अत्यंत आधुनिक हैं : “देखो, इंटरनेट जो भी कहता है कि अच्छा है, उसे मैं खाता हूँ; वह जो भी कहता है कि बुरा है, उसे मैं नहीं खाता। मैं ऐसा व्यक्ति हूँ जो जमाने के चलन के साथ कदम से कदम मिलाकर चलता है।” वास्तव में, वे ऐसे लोग हैं जिनमें चीजों को पहचानने की क्षमता नहीं होती है, वे भ्रमित व्यक्ति होते हैं जो आँख मूंदकर भीड़ के पीछे-पीछे चलते हैं। ऑनलाइन सभी प्रकार की जानकारी मौजूद है और ज्यादातर दावे गलत होते हैं। यकीनन ऐसी थोड़ी-सी जानकारी और दावे भी हैं जो सही हैं। तुम्हें उन्हें पहचानने में समर्थ होने की जरूरत है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि किस जानकारी को स्वीकार करना है, तो तुम्हें इसे अपनी जरूरतों और इसके अनुसार मापना चाहिए कि क्या वह तुम्हारे लिए फायदेमंद है और क्या यह जानकारी सकारात्मक है। खराब काबिलियत वाले लोगों में ऐसी चीजें पहचानने की क्षमता नहीं होती है। वे चीजों को स्वीकार करने की क्षमता के स्तर से आगे की सभी क्षमताओं में कम पड़ जाते हैं। वे पाठ्य, सैद्धांतिक और ज्ञान के स्तर पर चीजों को सीखने और समझने तक ही सीमित रहते हैं और उनमें समझने की कुछ क्षमता होती है। लेकिन जहाँ तक विभिन्न दावों के सही होने और उनके मूल्यवान और अर्थपूर्ण होने की पहचान करने की बात है, तो खराब काबिलियत वाले लोगों में इसे निर्धारित करने और इसे पहचानने की क्षमता नहीं होती है। और फिर चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता की बात है, जो उसी तरह से खराब काबिलियत वाले लोगों के पास नहीं होती है। जब वास्तविक जीवन में या जीवित रहने के मार्ग पर उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं की बात आती है, तो वे इन्हें उन सत्य सिद्धांतों के आधार पर नहीं सँभाल पाते हैं जिन्हें वे जानते हैं या जिन्हें उन्होंने गहराई से समझ लिया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितने शब्द और सिद्धांत बोल सकते हैं, ये खोखले और अव्यावहारिक होते हैं। अपने आस-पास या जीवित रहने के मार्ग पर होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए वे अपनी खुद की ओछी चालों पर भरोसा करते हैं; वे सिर्फ नुकसान उठाने से बचने का प्रयास करते हैं और कुछ नहीं, जबकि वे उन सिद्धांतों का अनुभव करने, पकड़ने या सत्यापित करने के स्तर तक पहुँचने में विफल रहते हैं जिन्हें वे गहराई से समझ चुके हैं। इसके अलावा, खराब काबिलियत वाले लोगों में संज्ञानात्मक क्षमता भी नहीं होती है। यानी, जब कोई समस्या उत्पन्न होती है, तो वे चीजों का सारांश प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं या खुद मामले का सार, इसके पीछे का मूल कारण या यह नहीं पहचान पाते हैं कि भविष्य में इसके क्या नतीजे हो सकते हैं। खराब काबिलियत वाले लोग बिल्कुल भी नहीं जानते हैं कि इन चीजों के बारे में कैसे सोचना है, फिर ऐसी समस्याओं का सामना करने और उन्हें सँभालने के लिए उन्होंने जो सत्य या विभिन्न चीजों के सिद्धांत और नियम गहराई से समझे हैं, उन्हें लागू करना तो उन्हें आता ही नहीं है। क्योंकि उनकी काबिलियत खराब है, इसलिए उनकी सोच बेहद सरल और सतही होती है और मामलों पर उनका परिप्रेक्ष्य पथभ्रष्ट होता है। इसके अलावा, और भी समस्यात्मक चीज यह है कि उन्हें नहीं पता होता है कि वे किस परिप्रेक्ष्य से चीजों को ठीक तरीके से देख सकते हैं। इसलिए, वे किसी भी चीज के सार की असलियत नहीं देख पाते हैं और न ही वे किसी चीज के ठीक होने या उसके सही और गलत होने के बारे में राय बना पाते हैं। बिना राय बनाए वे पहचान नहीं सकते हैं; यकीनन फिर उनमें चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता भी नहीं होती है, फैसले लेने की क्षमता की बात तो रहने ही दो। कुछ लोग कहते हैं, “खराब काबिलियत वाले लोग भी जानते हैं कि हर रोज क्या खाना और पहनना है और वे अपने दैनिक जीवन का प्रबंधन कर सकते हैं।” काबिलियत होने का मतलब यह नहीं है। काबिलियत होने का मतलब है जीवन में और जीवित रहने के मार्ग पर सामने आने वाली विभिन्न मूलभूत समस्याओं को उन सत्य सिद्धांतों के अनुसार सँभालने में समर्थ होना जिन्हें व्यक्ति समझता है। जीवन में आने वाली विभिन्न समस्याओं में व्यक्ति का मूल्यांकन करना, मामले सँभालना, वगैरह-वगैरह शामिल हैं। जीवित रहने के मार्ग पर आने वाली समस्याओं में सही और गलत के बड़े मुद्दों का सामना करना, परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए व्यवस्थित परिवेश, परमेश्वर की संप्रभुता, संभावनाओं और गंतव्य से संबंधित मामले, आगे का रास्ता चुनने का तरीका, वगैरह-वगैरह शामिल हैं—ये सभी जीवित रहने से संबंधित समस्याओं का हिस्सा हैं। अगर किसी में जीवन में या जीवित रहने के मार्ग पर आने वाली समस्याओं को सँभालने की कोई क्षमता नहीं है तो इसका मतलब है कि उसमें फैसले लेने की क्षमता नहीं है। ऐसे लोग मानसिक रूप से खाली होते हैं, इसलिए उनके लिहाज से चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता के बारे में बात करना कुछ हद तक अनुचित है। यकीनन, अंतिम क्षमता, अभिनव क्षमता, खराब क्षमता वाले लोगों की पहुँच से और भी दूर है। यह इस बात पर चर्चा करने जैसा है कि क्या जानवरों का राजा शेर है या बाघ। कम-से-कम, दोनों ही योग्य उम्मीदवार हैं क्योंकि जानवरों के बीच शेर और बाघ दोनों में ही शासक की अकड़ और क्षमताएँ होती हैं। उनमें से हरेक की अपनी-अपनी खूबियाँ होती हैं और जब इनकी एक दूसरे से तुलना की जाती है, तो हो सकता है कि वे टक्कर के निकलें, जो उन्हें जानवरों के राजा के खिताब के लिए मुकाबला करने के योग्य बनाता है। अगर तुम यह तय करने के लिए कि जानवरों का राजा कौन है अफ्रीकी बारहसिंघे, गोजन या याक की तुलना शेरों और बाघों से करते हो तो लोग तुम पर हँसेंगे। वे तुम पर क्यों हँसेंगे? (क्योंकि ये जानवर तुलना करने लायक नहीं हैं।) वे एक ही स्तर पर नहीं हैं, एक ही वजन श्रेणी में नहीं हैं; वे तुलना करने लायक नहीं हैं। इसी तरह, खराब काबिलियत वाले लोगों के पास कोई विचार नहीं होता है और उनमें मानसिक स्तर पर किसी भी व्यक्ति, घटना या चीज का मूल्यांकन करने और उसकी सराहना करने की कोई क्षमता नहीं होती है। इसलिए, यह तो बात किए जाने लायक भी नहीं है कि ऐसे लोगों के पास चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता होती है या नहीं। चीजों का मूल्यांकन करने और उनकी सराहना करने की क्षमता अपेक्षाकृत उन्नत है और यह अच्छी काबिलियत वाले लोगों पर लागू होती है। फिर अभिनव क्षमता अच्छी काबिलियत वाले लोगों पर और भी ज्यादा लागू होती है। अभिनव क्षमता का निर्धारण व्यक्ति की वास्तविक जीवन में किसी भी चीज को व्यावहारिक रूप से सँभालने की क्षमता से किया जाता है। खराब काबिलियत वाले लोगों में न सिर्फ अपने द्वारा किए जाने वाले हर कार्य में विचारों और चरणों की कमी होती है, बल्कि उनके पास चीजों को पूरा करवाने की कोई क्षमता भी नहीं होती है, इसलिए उनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता है कि उनके पास कोई अभिनव क्षमता है। तो बिना काबिलियत वाले लोगों में क्या क्षमताएँ होती हैं? बिना काबिलियत वाले ज्यादातर लोगों में एक आम विशेषता होती है : उनमें कोई खूबी नहीं होती है। भावबोधक क्षमता के लिहाज से उनके पास कुछ भी नहीं होता है; किसी भी तकनीकी या पेशेवर खूबी के लिहाज से भी उनके पास कुछ भी नहीं होता है; यहाँ तक कि सबसे सरल कार्य के निर्वहन में भी, जैसे कि सफाई करना, उनके पास कोई जल्द और संक्षिप्त समाधान नहीं होता है, कोई चरण नहीं होता है और कोई क्रम नहीं होता है। एक सरल काम का निर्वहन करने से तुम देख सकते हो कि बिना काबिलियत वाले लोगों की आखिर क्या विशेषताएँ होती हैं। बिना काबिलियत वाले लोगों की सबसे स्पष्ट विशेषता यह है कि उनमें हर लिहाज से क्षमता की कमी होती है। आसान शब्दों में कहा जाए तो यहाँ तक कि वे अपने मानव जीवन या सबसे मूलभूत जरूरतों का प्रबंधन भी नहीं कर पाते हैं—ये सब पूरी तरह से अव्यवस्थित होते हैं और इनमें कोई सिद्धांत नहीं होता है। बिना क्षमता वाले लोगों का सबसे सटीक वर्णन यह है कि वे कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाते हैं और सिर्फ अपनी मूलभूत दैनिक जरूरतें पूरी करने के लिए जीते हैं—इससे ज्यादा कुछ नहीं। काबिलियत के विभिन्न स्तरों वाले लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ और साथ ही उनके पास जो काबिलियत और क्षमताएँ होती हैं उनकी विशेषताएँ ये सभी बातें स्पष्ट रूप से समझा दी गई हैं। अगर तुम लोग समझ गए हो तो तुम यह सीखने में समर्थ होगे कि विभिन्न काबिलियतों वाले लोगों का भेद कैसे पहचानना है और उनके साथ कैसे पेश आना है।

इस बारे में संगति करने के बाद कि काबिलियत क्या है और लोगों की काबिलियत के स्तरों और प्रकारों को कैसे विभाजित करना है, जब तुमने सुनना समाप्त किया, तो क्या तुम्हें कोई लाभ हुआ? (हाँ।) क्या तुम सही मायने में जानते हो कि तुम्हारी अपनी काबिलियत खराब है? (हाँ।) बिना काबिलियत वाले कुछ लोग कहते हैं : “ऐसा कैसे है कि मेरे पास कोई काबिलियत नहीं है? अगर मेरी काबिलियत औसत या खराब भी होती, तो भी वह ठीक होता।” कोई भी व्यक्ति बिना काबिलियत वाला होने, मूर्ख, नासमझ या निकम्मा होने के स्तर तक गिरने का इच्छुक नहीं होता है, लेकिन इसे किस्मत का खेल कहो कि कुछ लोग अपमी प्राथमिक अभिव्यक्तियों और इन वर्षों में अपना कर्तव्य करने के नतीजों के आधार पर खुद को मापते हुए सही मायने में बिना काबिलियत वाले लोगों के स्तर तक गिर जाते हैं। क्या यह कुछ लोगों को नकारात्मक बना देता है? जब कई चीजें स्पष्ट नहीं की जाती हैं, तो लोग मूर्खतापूर्वक सोचते हैं, “मुझमें क्षमता है, मुझमें योग्यता है, मैं बुद्धिमान हूँ, मेरी काबिलियत खराब नहीं है, मैं महान हूँ, मैं परमेश्वर के राज्य में कोई हूँ, मैं एक स्तंभ हूँ, मुख्य आधार हूँ,” वे मूर्खतापूर्वक अपने ख्याली पुलाव से चिपके रहते हैं, काफी अच्छा महसूस करते हैं, काफी आत्मविश्वासी होते हैं, सोचते हैं कि उनके पास संभावना और उम्मीद है; वे नकारात्मक नहीं हैं और उद्देश्य के साथ जीते हैं। लेकिन एक बार जब वे सच्चे तथ्य जान लेते हैं, तो वे उदास हो जाते हैं, सोचते हैं, “क्या इसका मतलब यह नहीं है कि मेरे उद्धार प्राप्त करने की कोई उम्मीद नहीं है?” और नकारात्मक दशा में पहुँच जाते हैं। अगर ये बातें स्पष्ट नहीं की जाती हैं, तो लोग मूर्खतापूर्वक घमंडी हो जाते हैं; व्यक्ति जितना ज्यादा मूर्ख होता है, वह उतना ही ज्यादा घमंडी होता है और उसका घमंड उतना ही ज्यादा असीम होता है। चतुर लोग इन वर्षों में सत्य की आपूर्ति स्वीकार करने के बाद चिंतन करेंगे और आत्म-परीक्षण करेंगे, सत्य की तुलना खुद से करेंगे और धीरे-धीरे उनके घमंडी स्वभाव के प्रकाशन कम हो जाएँगे। व्यक्ति की काबिलियत जितनी ज्यादा खराब होती है, वह उतना ही ज्यादा मूर्खतापूर्ण घमंडी होता है। क्या ऐसी कहावत नहीं है : “वे कुछ भी नहीं हैं, फिर भी वे किसी के सामने नहीं झुकते”? यह कहावत काफी उपयुक्त है; जो लोग कुछ भी नहीं हैं वे किसी के सामने नहीं झुकते हैं। क्यों? वह इसलिए क्योंकि उनकी काबिलियत बहुत ही खराब होती है। किस हद तक? बुद्धिमत्ता नहीं होने की और अपनी योग्यता की सीमा नहीं जानने की हद तक, यह नहीं जानने की हद तक कि उनकी बुद्धिमत्ता कसौटी पर कितनी खरी उतरती है, यह नहीं जानने की हद तक कि हमेशा ऐसे लोग होते हैं जो उनसे बेहतर हैं और यह नहीं जानने की हद तक कि अच्छी काबिलियत क्या है। और उनका घमंड किस हद तक पहुँच जाता है? इस हद तक कि लोगों को यह देखने में घिनौना और मतली लानेवाला लगता है—यह मूर्खतापूर्ण घमंड है। “वे कुछ भी नहीं हैं, फिर भी वे किसी के सामने नहीं झुकते” का मतलब है कि वे कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते, उनके जीवन के मामले पूरी तरह से गड़बड़ हैं, वे किसी भी चीज की असलियत नहीं देख पाते हैं, उनका कोई विचार या दृष्टिकोण नहीं है और वे यह नहीं बता पाते हैं कि क्या दूसरों के दृष्टिकोण सही हैं या क्या वे सटीक हैं और वे बस मूर्खतापूर्वक अपने घमंड में अड़े रहते हैं, सोचते हैं, “मेरे पास क्षमता है, मेरे पास योग्यता है, मैं बुद्धिमान हूँ, मैं दूसरों से बेहतर हूँ!” मुझे बताओ, क्या बेहतर यह है कि उन्हें मूर्खतापूर्ण घमंडी लोग बने रहने दिया जाए जो किसी के सामने नहीं झुकते या यह है कि उन्हें यह बता दिया जाए कि उनकी काबिलियत खराब है, वे कुछ भी नहीं हैं, बस मूर्ख, निकम्मे लोग हैं और मानसिक रूप से अधूरे हैं ताकि वे नकारात्मक बन जाएँ? तुम लोग क्या चुनते हो? (उन्हें नकारात्मक बनने दो क्योंकि अगर वे मूर्खतापूर्ण घमंडी हैं, तो यह संभावना है कि वे सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाली चीजें करेंगे और वे कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त कर सकते हैं।) अगर वे नकारात्मक बन जाते हैं, तो वे मानवता की सूझ-बूझ पर लौट सकते हैं और ज्यादा शिष्ट हो सकते हैं, अस्त-व्यस्त करने वाली चीजें कम कर सकते हैं। यह उनके लिए एक सुरक्षा है। वैसे तो उन्होंने ऐसी बहुत सारी चीजें नहीं की हैं जो दूसरों के लिए फायदेमंद हों, लेकिन अस्त-व्यस्त करने वाली चीजें कम करने का यह मतलब है कि वे बहुत ही कम अपराध और कुकर्म करेंगे और भविष्य में उनके दंडित होने की संभावना कम हो जाएगी, है ना? (हाँ।) बिना इस पर चर्चा किए कि क्या वे उद्धार प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि यह कुछ ऐसी चीज है जो अपेक्षाकृत दूर है, क्या परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन करने और परमेश्वर के स्वभाव को नाराज करने की उनकी संभावना कम हो जाएगी? और क्या उनके जीवित बचने की संभावना बढ़ जाएगी? (हाँ।) इन लाभों के परिप्रेक्ष्य से देखा जाए तो लोगों को अपनी खुद की काबिलियत पहचानने देना और अंत में यह एहसास होने देना कि उनमें कोई काबिलियत नहीं है और उन्हें नकारात्मक बनने देना वास्तव में एक अच्छी चीज साबित होती है। नहीं तो जब लोग कहते हैं, “तुम कुछ भी नहीं हो, फिर भी तुम किसी के सामने नहीं झुकते—यह मूर्खतापूर्ण घमंड है!” तो वे बस इसकी असलियत देख ही नहीं पाते हैं या इसे पहचान ही नहीं पाते हैं; वे उद्दंड हो जाते हैं और फिर भी सोचते हैं, “मेरी काबिलियत खराब नहीं है! और तुम कहते हो कि मैं मूर्खतापूर्ण घमंडी हूँ। मैं किसी मूर्ख से कहीं बेहतर हूँ!” इससे आगे यह साबित होता है कि वे सही मायने में मूर्ख हैं, उनकी बुद्धिमत्ता बहुत ही कम है और इसलिए उन्हें और ज्यादा यह तथ्य स्वीकार करने की जरूरत है कि उनमें कोई काबिलियत नहीं है। यह तथ्य स्वीकार करने के क्या लाभ हैं? यह तुम्हें नकारात्मक बनाने के लिए नहीं है, बल्कि तुम्हें अपने साथ सही ढंग से व्यवहार करने और मूर्खतापूर्ण तरीके से कार्य करने से बचने में मदद करने के लिए है। लोग घमंडी होते हैं क्योंकि उनका स्वभाव भ्रष्ट होता है और उनमें बिल्कुल भी आत्म-ज्ञान नहीं होता है। हालाँकि कुछ लोगों का घमंड सामान्य घमंड होता है। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों के पास कैद किए जाने और कष्ट सहने से पूँजी होती है, उन्होंने कुछ तरीकों से कलीसिया में योगदान दिया है या उनके पास ऐसे गुण हैं जो उन्हें दूसरों से बेहतर बनाते हैं; क्योंकि उनके पास कुछ पूँजी होने के साथ-साथ घमंडी स्वभाव भी होता है, इसलिए इसे अब भी समझ में आने वाली बात मानी जा सकती है कि वे घमंड प्रकट करते हैं। लेकिन अगर तुम कुछ भी नहीं हो, अगर तुम मूल रूप से कुछ भी पूरा नहीं कर पाते हो, तुमने कोई योगदान नहीं दिया है और इससे भी बढ़कर यह कि तुम्हारे पास कोई खूबी नहीं है, फिर भी तुम घमंडी हो, तो इसका कोई मतलब नहीं निकलता है—इसमें तर्कसंगतता की कमी है। अब यह तुम्हें स्पष्ट कर दिया गया है : तुममें कोई काबिलियत नहीं है, तुम कुछ भी नहीं हो और तुम्हारे पास किसी भी तरह की कोई खूबी भी नहीं है। तुम्हारा मन खाली है और विचारों वाले लोगों की तुलना में तुम्हारे मन में संतोष की कमी है। वैसे इसके बावजूद भी तुम मनुष्य हो, लेकिन तुम उनसे बहुत पीछे हो; परमेश्वर की नजर में तुम मनुष्य होने का मानक पूरा नहीं करते हो। तो, तुम अब भी किस बात पर घमंड कर रहे हो? परमेश्वर के वचनों के अनुसार तुम मनुष्य होने का मानक पूरा नहीं करते हो। परमेश्वर की नजर में तुम्हारे साथ मनुष्य जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह अपार है, इसलिए परमेश्वर ने तुम्हारा उन्नयन किया है, तुम्हें चुना है और तुम्हारे साथ मनुष्य जैसा व्यवहार किया है, तुम्हें परमेश्वर के घर में कर्तव्य करने की अनुमति दी है। क्या परमेश्वर तुम्हारे साथ मनुष्य जैसा व्यवहार इसलिए करता है ताकि वह तुम्हें परमेश्वर और उसके द्वारा तुम्हें प्रदान किए गए गए सत्य के साथ ऐसे मूर्खतापूर्वक घमंडी तरीके से व्यवहार करता देखे? तुम्हें अपने कर्तव्य और अपने जीवन के साथ इस तरीके से व्यवहार करता देखे? नहीं। चूँकि परमेश्वर तुम्हारे साथ मनुष्य जैसा व्यवहार करता है और तुम्हें वे विभिन्न सत्य बताता है जिन्हें मनुष्यों को समझना चाहिए, इसलिए वह उम्मीद करता है कि तुम एक सच्चे मनुष्य बन सको, उम्मीद करता है कि तुम उन विचारों को स्वीकार कर सको जो मनुष्यों के पास होने चाहिए और तुम मूर्खतापूर्ण घमंडी नहीं बनोगे। इसलिए, नकारात्मक होना गलत है—तुम्हें नकारात्मक नहीं होना चाहिए। चूँकि परमेश्वर ने तुम्हारी काबिलियत के आधार पर तुम्हारे साथ व्यवहार नहीं किया है या तुम्हें अनदेखा नहीं किया है, बल्कि तुम्हारे साथ एक सामान्य व्यक्ति जैसा व्यवहार किया है और इस तरह से तुम्हारा उपयोग किया है, इसलिए तुम्हें परमेश्वर के इस अनुग्रह की अपेक्षाएँ पूरी करनी चाहिए और परमेश्वर को निराश नहीं करना चाहिए। तुम्हारी जो भी काबिलियत है और तुम जो भी कार्य कर सकते हो, बस उस कार्य को अच्छी तरह से करो। बड़बोले विचार बोलने का प्रयास मत करो, वह मत करो जो एक व्यक्ति को नहीं करना चाहिए और ऐसे अत्यधिक विचार या महत्वाकांक्षाएँ मत रखो जो एक व्यक्ति को नहीं रखनी चाहिए। वह करो जो एक व्यक्ति को करना चाहिए और परमेश्वर के उत्कर्ष की अपेक्षाएँ पूरी करो। क्या यह उचित नहीं है? क्या यह नकारात्मक होने की समस्या नहीं सुलझाता है? (हाँ।)

अलग-अलग काबिलियत वाले लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियों का भेद पहचानने और ये विशिष्ट उदाहरण प्रदान करने का उद्देश्य यह है कि तुम्हें उनके साथ खुद को जोड़कर देखने में मदद मिले। यह इसलिए है ताकि तुम अपनी स्थिति को सही ढंग से पहचान सको, अपनी काबिलियत और विभिन्न स्थितियों को तर्कसंगत रूप से देख सको और परमेश्वर के प्रकाशन, न्याय और तुम्हारी काट-छाँट या तुम्हारे लिए व्यवस्थित कार्य के प्रति तर्कसंगत रुख अपना सको और तुम प्रतिरोध और विकर्षण दिखाने के बजाय अपने दिल की गहराइयों से समर्पण कर सको और आभारी हो सको। जब लोग अपनी काबिलियत के प्रति तर्कसंगत रुख अपना पाते हैं और फिर अपनी स्थिति को सटीकता से पहचान पाते हैं, ऐसे सृजित प्राणियों के रूप में व्यावहारिक तरीके से कार्य करते हैं जिन्हें परमेश्वर चाहता है, अपनी अंतर्निहित काबिलियत के आधार पर उन्हें जो करना चाहिए वह उचित रूप से करते हैं और अपनी निष्ठा और अपना सारा प्रयास समर्पित करते हैं तो वे परमेश्वर की संतुष्टि प्राप्त करते हैं। चूँकि परमेश्वर ने तुम्हें यह काबिलियत और ये स्थितियाँ दी हैं, इसलिए परमेश्वर तुम्हें ऐसी चीजें करने के लिए मजबूर नहीं करेगा जो तुम्हारे लिए कठिन हैं, वह मछली को जमीन पर रहने के लिए मजबूर नहीं करेगा। परमेश्वर ने तुम्हें जितना भी दिया है, वह तुमसे उतना ही अर्पित करने के लिए कहता है। परमेश्वर ने तुम्हें जो नहीं दिया है, उसकी वह अत्यंत माँग नहीं करेगा। अगर तुम लगातार अपने लिए अत्यधिक ऊँची अपेक्षाएँ रखते हो, एक मजबूत व्यक्ति, एक महामानव, साधारण से परे व्यक्ति बनने का प्रयास करते हो, तो यह दर्शाता है कि तुम भ्रष्ट स्वभाव वाले हो—यह महत्वाकांक्षा है। अगर तुम्हारी काबिलियत अच्छी है, तो तुम ज्यादा कार्य स्वीकार कर सकते हो; अगर तुम्हारी काबिलियत औसत है, तो तुम सिर्फ कम कार्य ही स्वीकार कर सकते हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या कर्तव्य कर सकते हो, उसे अपना सब कुछ दे दो, अपनी निष्ठा दे दो और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करो—बड़बोले विचार बोलने का प्रयास मत करो। हमेशा यह साबित करने की चाहत रखना कि तुम साधारण व्यक्ति नहीं हो, हमेशा यह चाहत रखना कि दूसरे तुम्हारा बहुत सम्मान करें—यह गलत है। यह आत्म-जागरूकता की बड़ी कमी दर्शाता है, अपनी खुद की माप नहीं जानना दर्शाता है। अगर तुम अपनी महत्वाकांक्षा और इच्छाओं के अनुसार अनुसरण करते रहोगे, तो तुम्हारे लिए चीजों का नतीजा अच्छा नहीं निकलेगा। इसलिए, खराब काबिलियत वाले लोगों को हमेशा अगुआ, टीम प्रमुख या पर्यवेक्षक बनने की आकांक्षा नहीं रखनी चाहिए; उन्हें बहुत ऊँचा लक्ष्य नहीं रखना चाहिए। अगर तुम्हारी काबिलियत खराब है, तो बस कर्तव्यनिष्ठा से वे चीजें करो जो खराब काबिलियत वाले लोग कर सकते हैं। अगर तुम्हारे पास विचारों की कमी है और तुम कोई कार्य नहीं कर सकते हो, तो इसके लिए जबरदस्ती मत करो—चूँकि परमेश्वर ने तुम्हें वह काबिलियत नहीं दी है, इसलिए उसने तुम्हारे लिए अत्यधिक ऊँची अपेक्षाएँ नहीं रखी हैं। जहाँ तक सत्य सिद्धांतों की बात है, तो उनका वहाँ तक अभ्यास करो जहाँ तक तुम उन्हें समझ और स्वीकार कर सकते हो—यह सबसे महत्वपूर्ण है। परमेश्वर ने तुम्हें जो दिया है, तुम वही बूझने में समर्थ हो। क्या तुमने ये चीजें अपने कर्तव्य या परमेश्वर द्वारा तुम्हें सौंपे गए आदेश पर लागू की हैं? अगर तुमने इन्हें लागू किया है, तो तुमने अपना सब कुछ दे दिया है और अपनी निष्ठा अर्पित कर दी है। परमेश्वर संतुष्ट होगा और तुम एक सृजित प्राणी के रूप में मानक-स्तर के होगे। अगर तुम्हारी काबिलियत खराब है, तो परमेश्वर तुमसे अच्छी काबिलियत वाले लोगों के लिए मानक के अनुसार अपेक्षाएँ बिल्कुल नहीं करेगा। परमेश्वर ऐसा नहीं करेगा। बिना काबिलियत वाले लोग लोगों के बीच सबसे निम्न स्तर की काबिलियत वाले होते हैं। अगर परमेश्वर में विश्वासियों में से कुछ में कोई काबिलियत न हो, तो उन्हें कैसे अभ्यास करना चाहिए? क्या तुम लोग परमेश्वर का अनुसरण करना चाहते हो? क्या तुम यह मान लेते हो कि परमेश्वर मनुष्य से संबंधित सभी चीजों पर संप्रभु है? क्या तुम परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहते हो? अगर तुम स्वीकार करने और समर्पण करने को तैयार हो, तो अपने दिल को शांत करो और तुम्हारे लिए परमेश्वर की सारी व्यवस्थाएँ स्वीकार करो। अपनी काबिलियत के अनुसार तुम सिर्फ कुछ ऐसे कार्य कर सकते हो जिनके लिए शारीरिक श्रम की जरूरत पड़ती है, ऐसे कार्य जो दिखाई नहीं देते हैं, जिन्हें नीची नजर से देखा जाता है और जिन्हें लोग याद नहीं रखते हैं—अगर तुम्हारी यह स्थिति है तो तुम्हें इसे परमेश्वर से स्वीकार कर लेना चाहिए और शिकायतें नहीं रखनी चाहिए और इससे भी ज्यादा यह कि तुम्हें अपनी इच्छाओं के आधार पर अपने कर्तव्य नहीं चुनने चाहिए। परमेश्वर का घर तुम्हारे लिए जो भी व्यवस्था करता है, उसे करो और जब तक यह तुम्हारी काबिलियत में है, तुम्हें उसे अच्छी तरह से करना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर तुम्हें सूअर पालने के लिए नियुक्त किया गया है तो तुम्हें उन्हें अच्छी तरह से खाना खिलाना चाहिए ताकि भाई-बहन अच्छा सूअर का माँस खा सकें। अगर तुम्हें मुर्गियाँ पालने के लिए नियुक्त किया गया है तो तुम्हें उन्हें अच्छी तरह से खाना खिलाना और सँभालना चाहिए ताकि वे अंडे देने के मौसम में सामान्य रूप से अंडे दें और तुम्हें उन्हें दूसरे जानवरों से भी सुरक्षित रखना चाहिए, इसे ऐसे करना चाहिए कि तुम्हारी पाली मुर्गियों को देखने वाला हर व्यक्ति यही कहे कि वे अच्छी तरह से पाली गई हैं। यह साबित करता है कि तुम परमेश्वर की बनाई सभी चीजों को सँजोते हो और तुम उनका अच्छी तरह से प्रबंध कर सकते हो; यह साबित करता है कि चाहे यह किसी भी तरह का जीव या जानवर हो, तुम उसे सँजो सकते हो और उसका अच्छी तरह से प्रबंध कर सकते हो, इसे अपने द्वारा पूरी की जाने वाली जिम्मेदारी और कर्तव्य के रूप में लेते हो। भले ही तुम कोई और कार्य न कर सको, भले ही तुम कलीसिया के कार्य में कोई मुख्य और निर्णायक भूमिका न निभा सको और तुम्हारा कोई बड़ा योगदान न हो, लेकिन अगर तुम किसी साधारण कार्य में अपना पूरा प्रयास और निष्ठा लगा पाते हो और सिर्फ परमेश्वर को संतुष्ट करने का प्रयास करते हो, तो यह काफी है। परमेश्वर ने तुम्हारा जो उन्नयन किया है, यह उसे विफल करना नहीं है। कामों को लेकर इस आधार पर नखरे मत करो कि वे गंदे या थकाऊ हैं या नहीं, कि दूसरे लोग तुम्हें उन्हें करते देखते हैं या नहीं, कि लोग तुम्हारी तारीफ करते हैं या नहीं, या उन्हें करने के लिए वे तुम्हें नीची नजर से देखते हैं या नहीं। इन चीजों के बारे में मत सोचो; बस इसे परमेश्वर से स्वीकार करने, समर्पण करने और तुम्हें जो कर्तव्य पूरे करने चाहिए उन्हें करने का प्रयास करो। जब मैं बिना काबिलियत वाले लोगों की अभिव्यक्तियों के बारे में संगति करता हूँ, तो मैं कह सकता हूँ कि तुम एक मूर्ख, निकम्मे व्यक्ति हो और मानसिक रूप से अधूरे हो। लेकिन अगर तुम तुम्हें सौंपे गए कामों की जिम्मेदारी उठा सकते हो और अंत में तुम परमेश्वर के तुम्हारे उन्नयन को या उस जीवन श्वास को निराश नहीं करते हो जो परमेश्वर ने तुम्हें प्रदान किया है, तुम व्यर्थ जीते या खाते नहीं हो, तुम परमेश्वर द्वारा मानवजाति के लिए प्रदान की गई किसी भी भौतिक चीज का व्यर्थ आनंद नहीं लेते हो और तुम परमेश्वर के मुँह से निकले वचनों की अपेक्षाएँ पूरी करने में विफल नहीं होते हो, तो यह पर्याप्त है। भले ही काबिलियत के लिहाज से तुम एक पूर्ण व्यक्ति होने का मानक पूरा नहीं करते हो, लेकिन अगर तुम इस निष्ठा और ईमानदारी से अपना कर्तव्य और कार्य कर सकते हो, तो कम-से-कम, परमेश्वर के दिल में तुम एक सृजित प्राणी के रूप में मानक-स्तर के हो। परमेश्वर यही निष्ठा और ईमानदारी चाहता है; वह एक ऐसा सृजित प्राणी चाहता है जो मानक-स्तर का हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर का घर तुम्हारे लिए क्या कर्तव्य व्यवस्थित करता है, तुम उसे परमेश्वर से स्वीकार करते हो और स्वीकार कर सकते हो और समर्पण कर सकते हो। यह सबसे कीमती चीज है। अगर तुमने वह किया है जो परमेश्वर तुमसे अपेक्षा करता है और तुमने वह सब कुछ अर्पित किया है जो तुम अर्पित करने में समर्थ हो, तो क्या अब भी परमेश्वर तुमसे और ऊँची माँगें करेगा? अगर परमेश्वर की नजर में तुम्हारी ईमानदारी और निष्ठा कीमती है, तो तुम्हारे जीवन का मूल्य है। क्या यह समझ अच्छी है? (हाँ।)

कुछ लोग कहते हैं : “मुझे अब भी लगता है कि मैं इसे नहीं समझता। परमेश्वर लोगों को सभी प्रकार की काबिलियतों से क्यों पूर्वनिर्धारित करता है? चूँकि परमेश्वर चाहता है कि लोग उसके लिए गवाही दें, सत्य का अभ्यास करें और अपने भ्रष्ट स्वभाव छोड़ दें, तो वह लोगों को अच्छी काबिलियत क्यों नहीं दे सकता? क्या परमेश्वर के लिए लोगों को अच्छी काबिलियत देना इतना कठिन है? अगर परमेश्वर ऐसा कर दे कि लोगों के पास सभी क्षेत्रों में क्षमताएँ हों—संज्ञानात्मक क्षमता, राय बनाने की क्षमता, चीजों को पहचानने की क्षमता, चीजों पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता, फैसले लेने की क्षमता, अभिनव क्षमता और इससे भी ज्यादा चीजों का मूल्यांकन करने और उन्हें सराहने की क्षमता—लोगों को सभी क्षेत्रों में क्षमताएँ देने से क्या लोगों की काबिलियत अच्छी नहीं होगी? अगर वह लोगों को औसत काबिलियत भी दे दे, तो क्या फिर वे औसत स्तर तक सत्य समझने में समर्थ नहीं होंगे? अगर लोग सत्य समझ सकते हैं, तो क्या फिर वे सत्य का अभ्यास करने में समर्थ नहीं होंगे? और क्या वे अपने भ्रष्ट स्वभाव छोड़ने और उद्धार प्राप्त करने में समर्थ नहीं होंगे?” लोगों द्वारा ऐसे विचार रखने में क्या समस्या है? लोग यह नहीं समझते हैं कि परमेश्वर उन्हें इतनी नितांत औसत काबिलियत क्यों देता है। अच्छी काबिलियत वाले अगुआ ढूँढ़ना कठिन है और कलीसिया का कार्य अच्छी तरह से करना बेहद कठिन है। लोग सोचते हैं, “अगर परमेश्वर ने लोगों को अच्छी काबिलियत दी होती तो क्या अगुआओं को ढूँढ़ना आसान नहीं होता? क्या कलीसियाई कार्य करना आसान नहीं होता? परमेश्वर लोगों को अच्छी काबिलियत क्यों नहीं देता है?” परमेश्वर के घर के पूरे कार्य के परिप्रेक्ष्य से इसे देखा जाए तो यकीनन अगर अच्छी काबिलियत वाले लोग और ज्यादा होते तो कलीसियाई कार्य सचमुच आसान होता। लेकिन एक आधार है : परमेश्वर के घर में परमेश्वर अपना कार्य कर रहा है और लोग निर्णायक भूमिका नहीं निभाते हैं। इसलिए चाहे लोगों की काबिलियत अच्छी हो, औसत हो या खराब हो, इससे परमेश्वर के कार्य के नतीजे तय नहीं होते हैं। जो अंतिम नतीजे प्राप्त किए जाने हैं, वे परमेश्वर द्वारा पूरे किए जाते हैं। हर चीज की अगुआई परमेश्वर करता है, हर चीज पवित्र आत्मा का कार्य है। परमेश्वर के कार्य के परिप्रेक्ष्य से इस मामले को इस तरह से समझाया जाना चाहिए—यह एक कारण है। एक और कारण है : शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद लोग शैतान के भ्रष्ट स्वभाव को अपने जीवन के सार के रूप में अपना लेते हैं; यानी वे सभी अपने भ्रष्ट स्वभावों के अनुसार जीने लगते हैं और उनका जीवन उनके भ्रष्ट स्वभावों द्वारा ही नियंत्रित होता है। इसके अलावा, अगर किसी के पास अच्छी या असाधारण काबिलियत है और सभी क्षेत्रों में उसकी क्षमताएँ पूरी, परिपूर्ण और त्रुटिरहित हैं, तो यह उसके भ्रष्ट स्वभावों को बढ़ावा देगा। इससे उसके भ्रष्ट स्वभाव बेलगाम तरीके से बढ़ जाएँगे जिससे वह बेकाबू हो जाएगा और इस कारण से वह व्यक्ति ज्यादा घमंडी, अड़ियल, धोखेबाज और दुष्ट बन जाएगा। सत्य स्वीकार करने में उसकी कठिनाई बढ़ जाएगी और उसके भ्रष्ट स्वभावों को हल करने का कोई तरीका नहीं होगा। यह एक और कारण है। इसके अलावा परमेश्वर लोगों को ऐसी काबिलियत इसलिए देता है क्योंकि परमेश्वर जिस मानवजाति को बचाना चाहता है वह स्वाभाविक रूप से ऐसी अधूरी मानवजाति है जिसकी सभी पहलुओं में क्षमताएँ औसत हैं और उनमें दोष हैं। और यही नहीं, परमेश्वर के वचन और सत्य जानने का कार्य सिर्फ विभिन्न क्षमताओं का उपयोग करके पूरा नहीं होता है; इसके लिए एक प्रक्रिया की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया में क्या शामिल है? इसमें परिवेश में बदलाव, व्यक्ति की आयु में बढ़ोतरी, जीवन अनुभवों और ज्ञान में बढ़ोतरी और विभिन्न परिवेशों के जरिये प्राप्त अनुभव शामिल हैं, जो लोगों की स्वाभाविक काबिलियत और सहज ज्ञान की नींव पर धीरे-धीरे उन्हें यह समझने और जानने लगने की अनुमति देते हैं कि वास्तव में परमेश्वर के वचनों में सत्य क्या बताता है; फिर वे परमेश्वर के वचन स्वीकार करते हैं और उनका अभ्यास करते हैं। ऐसी प्रक्रिया के जरिये परमेश्वर के वचनों में सत्य को व्यक्ति में कार्यान्वित किया जाता है ताकि वह उसका जीवन बन जाए—यह जीने का सिद्धांत या फलसफा और जीने का साधन नहीं बनता है; बल्कि परमेश्वर के वचन उसके अस्तित्व के लिए नींव बन जाते हैं। ऐसा व्यक्ति एक नया व्यक्ति, एक नवजात जीवन होता है। यह एक मूलभूत प्रक्रिया है। अगर सभी पहलुओं में तुम्हारी काबिलियत और क्षमताएँ असाधारण रूप से अच्छी और ऊँची भी हो, तो भी इन प्रक्रियाओं को हटाया नहीं जा सकता। एक सृजित मनुष्य के रूप में कोई भी व्यक्ति अंत में अपने जीवन में परमेश्वर के वचनों का परिवर्तन प्राप्त करने में पूरी प्रक्रिया के ऐसे किसी भी चरण को नहीं छोड़ सकता जिसे अनुभव किया जाना चाहिए। यानी, हर किसी में परमेश्वर के प्रति धारणाएँ, कल्पनाएँ, प्रतिरोध, विरोध और विद्रोह जन्म लेंगे। वे सभी लोग बाधाओं, विफलताओं, ठोकरों, बरखास्तगी, काट-छाँट, न्याय और ताड़ना से गुजरेंगे, विभिन्न परिवेशों का अनुभव करेंगे, विभिन्न प्रकार के लोगों का सामना करेंगे और ऐसी अन्य प्रक्रियाओं से गुजरेंगे। चाहे तुम्हारी काबिलियत कितनी भी अच्छी या ऊँची क्यों न हो या सभी पहलुओं में तुम्हारी क्षमताएँ कितनी भी मजबूत क्यों न हों, इनमें से किसी भी प्रक्रिया या चरण को छोड़ा नहीं जा सकता है। इसलिए, अगर परमेश्वर तुम्हें असाधारण रूप से ऊँची काबिलियत और क्षमताएँ दे भी दे, तो भी यह बरबादी ही होगी। तुम्हारे लिए एक साधारण, औसत व्यक्ति होना बेहतर है। वैसे तो तुम्हारी मानवता में कुछ दोष हो सकते हैं, लेकिन तुम परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर सकते हो, परमेश्वर के वचन सुनने के बाद उन्हें समझ सकते हो और अपनी कमजोरियों और दोषों को पहचान सकते हो। इस तरह, एक बात यह है कि तुम जो प्राप्त करते हो वह ज्यादा व्यावहारिक होता है और तुम परमेश्वर से ज्यादा प्राप्त करते हो; दूसरी बात यह है कि तुम ज्यादा सटीकता से अपनी प्राकृतिक क्षमताएँ जान पाते हो और तुम ज्यादा तर्कसंगत बन जाते हो। यही कारण है कि परमेश्वर हर किसी को अच्छी काबिलियत देने का इरादा नहीं रखता है—वह लोगों को औसत काबिलियत देता है।

लोगों की काबिलियत मापने वाली विभिन्न क्षमताओं की इन विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में सुनने के बाद तुम अपना मूल्यांकन करते हो और पाते हो कि ज्यादा-से-ज्यादा तुममें बस औसत काबिलियत है, तुम अच्छी काबिलियत होने के स्तर तक नहीं पहुँचते हो। तो, वे कौन लोग हैं जो अच्छी काबिलियत के स्तर तक पहुँचते हैं? ये वे लोग हैं जिनका उपयोग पवित्र आत्मा द्वारा किया जाता है। अगर परमेश्वर तुम्हें अच्छी काबिलियत देता है, तो तुम्हें ऐसा कार्य स्वीकार करना चाहिए जो अच्छी काबिलियत से मेल खाता हो। अगर तुम्हें ऐसा कार्य स्वीकार करने की कोई जरूरत नहीं है, तो यह पहले से ही काफी अच्छा है कि परमेश्वर ने तुम्हें औसत काबिलियत दी है—यह परमेश्वर का अनुग्रह है। अगर परमेश्वर तुम्हें औसत काबिलियत देता है, तो तुम बहुत बड़ा कार्य नहीं कर सकते, इसलिए तुम घमंडी नहीं बन सकते। यह तुम्हारे लिए सुरक्षा है। तुम्हें दी गई औसत काबिलियत के चलते तुम्हारे पास ऐसी कोई पूँजी नहीं है जिससे तुम शेखी बघार सको और न ही तुम कोई चौंका देने वाला योगदान दे सकते हो। तुम्हें हमेशा यह सोचने की जरूरत है, “मेरी काबिलियत औसत है; मैं इस क्षेत्र में अच्छा नहीं हूँ और न ही उस क्षेत्र में। मुझे विवेकी होना चाहिए और अपना कर्तव्य पूरा करने में सत्य सिद्धांतों की तलाश करनी चाहिए।” जब तुम्हें लगता है कि तुममें सभी पहलुओं में कमी हैं, तो तुम और ज्यादा शिष्ट और नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति बन जाते हो और ज्यादा शांत हो जाते हो। उदाहरण के लिए, चाहे तुम लोग कोई भी कार्य करते हो, चाहे तुम पर्यवेक्षक हो या कोई साधारण सदस्य, अगर एक खास अवधि के दौरान तुम्हारा कार्य अपेक्षाकृत सुचारू रूप से चलता है, कुछ नतीजे देता है और उपलब्धियाँ अपेक्षाकृत उत्कृष्ट हैं और तुम्हें ऊपरवाले से समर्थन मिलता है, तो तुम्हारी मानसिकता क्या होगी? (हम आत्मसंतुष्ट हो जाएँगे, यह महसूस करेंगे कि हम अच्छे हैं और अब आसानी से सत्य की तलाश नहीं करेंगे।) फिर तुम्हारे लिए नियमों का पालन करना और आचरण करने में व्यावहारिक बने रहना कठिन हो जाएगा। यह तुम्हारे लिए बहुत ही खतरनाक प्रलोभन है; यह अच्छा संकेत नहीं है। लेकिन चूँकि तुममें विभिन्न क्षमताओं की कमी है या उनमें दोष हैं और कार्य करते समय तुम या तो एक पहलू पर विचार करने में विफल हो जाते हो या दूसरे पहलू का अनुमान लगाने में विफल हो जाते हो या उसे अनदेखा कर देते हो और भूल जाते हो या एक पहलू के लिहाज से काट-छाँट किए जाते हो या दूसरे पहलू में रुकावटों और झटकों का सामना करते हो, तुम अपने दिल की गहराइयों में लगातार खुद को यह चेतावनी देते हो : “मैं सक्षम नहीं हूँ। मेरी काबिलियत खराब है और मैं सत्य नहीं समझता। मैं सिद्धांत नहीं समझता।” इस तरह से तुम चीजें करने में बहुत सतर्क हो जाते हो, गलतियाँ करने और काट-छाँट किए जाने से बहुत डरते हो, गड़बड़ करने और बाधा डालने से बहुत डरते हो और कार्य में ऐसी खामियाँ पैदा करने से बहुत डरते हो जिनसे नुकसान होते हैं। क्योंकि विभिन्न पहलुओं में तुम्हारी क्षमताओं में कमी है या सभी बहुत ही औसत हैं, इसलिए कार्य के लिए सक्षम होने की तुम्हारी योग्यता भी बहुत ही औसत है और तुम जो कार्य करते हो वह भी बहुत ही औसत है। इसलिए तुम्हें लगता है कि शेखी बघारने की कोई बात नहीं है—अगर तुम कड़ी मेहनत से हासिल होने वाले कुछ नतीजे प्राप्त करने में सफल हो भी जाते हो, तो भी तुम उन्हें सिर्फ बहुत कष्ट सहने और पर्दे के पीछे बहुत ज्यादा प्रयास करने के बाद ही प्राप्त करते हो। तुम दूसरों के सामने यह ढोंग करना चाहते हो कि तुम योग्य और काफी अच्छे हो, लेकिन अपने दिल में तुममें आत्मविश्वास की कमी है। तुम जानते हो कि चाहे तुम जो भी करो, तुम उसे अच्छी तरह से नहीं कर सकते और अब भी इसे जाँचने के लिए तुम्हें ऊपरवाले की जरूरत होती है। कुछ चीजों में सिर्फ जब तुम्हें काट-छाँट किए जाने का सामना करना पड़ता है, तभी तुम्हें यह एहसास होता है कि तुम कहाँ गलत हो और तुम देख पाते हो कि तुम्हारी काबिलियत वास्तव में कितनी खराब है। इस तरह से तुम घमंडी बनने में समर्थ नहीं होगे। यानी, हमेशा तुम्हारे आस-पास कोई ऐसा अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति होगा जो तुमसे श्रेष्ठ है और तुम्हें रोकने के लिए हमेशा सत्य और परमेश्वर के अपेक्षित मानक मौजूद होंगे। तुम्हें लगता है, “मैं जो थोड़ा-सा कार्य पूरा कर पाया हूँ, वह सिर्फ इसलिए हो पाया है क्योंकि ऊपरवाले ने इसकी जाँच की और इसे तय किया; यह सिर्फ इसलिए पूरा हुआ क्योंकि ऊपरवाले ने बार-बार इसकी जाँच की, इसे देखा और इसे सही किया। मेरे पास शेखी बघारने की कोई बात नहीं है।” अगली बार जब तुम कुछ करते हो, तो तब भी तुम अपने कौशल का दिखावा करने के बारे में सोचते हो, लेकिन फिर भी तुम इसे अच्छी तरह से करने में विफल हो जाते हो और कभी भी दूसरों से अलग नहीं दिख पाते हो। ठीक इसलिए क्योंकि तुम्हारी काबिलियत और क्षमताएँ सीमित हैं, तुम्हारे कर्तव्य करने के प्रभाव हमेशा औसत होते हैं, हमेशा उस स्तर या मानक तक पहुँचने में विफल रहते हैं जिसे तुम आदर्श मानते हो। इसलिए तुम्हें अनजाने में लगातार यह एहसास होता है कि तुम किसी भी तरह से अलग से दिखने वाले, बेहतर या असाधारण व्यक्ति नहीं हो। धीरे-धीरे तुम्हें यह समझ आने लगता है कि तुम्हारी काबिलियत उतनी अच्छी नहीं है जितनी तुमने कल्पना की थी, बल्कि यह बहुत ही आम है। यह लगातार बढ़ने वाली प्रक्रिया आत्म-ज्ञान प्राप्त करने में तुम्हारे लिए बहुत ही उपयोगी है—तुम व्यावहारिक तरीके से कुछ असफलताओं और रुकावटों का अनुभव करते हो और आंतरिक रूप से चिंतन करने के बाद तुम अपने स्तर, क्षमताओं और काबिलियत का आकलन करने में ज्यादा सटीक हो जाते हो। तुम यह ज्यादा-से-ज्यादा जानने लगते हो कि तुम अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति नहीं हो, हालाँकि हो सकता है कि तुम्हारे पास कुछ शक्तियाँ और प्रतिभाएँ हों, राय बनाने के लिए थोड़ी-सी क्षमता हो या कभी-कभी तुम्हारे पास कुछ विचार या योजनाएँ होती हों, फिर भी तुम सत्य सिद्धांतों से दूर हो, तुम परमेश्वर की अपेक्षाओं और सत्य के मानकों से दूर हो और सत्य वास्तविकता को प्राप्त करने के मानक से तो और भी दूर हो—अनजाने में तुम्हारे मन में अपने बारे में ये राय और आकलन होते हैं। अपने बारे में राय बनाने और अपना आकलन करने की प्रक्रिया में तुम्हारा आत्म-ज्ञान ज्यादा-से-ज्यादा सटीक होता जाएगा और तुम्हारे भ्रष्ट स्वभावों और भ्रष्टता के खुलासे लगातार कम होते जाएँगे, वे ज्यादा सीमित और नियंत्रित होते जाएँगे। यकीनन, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभावों को नियंत्रित किया जाना लक्ष्य नहीं है। लक्ष्य क्या है? लक्ष्य यह है कि जैसे-जैसे तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव नियंत्रित किए जाते हैं, वैसे-वैसे धीरे-धीरे तुम सत्य की तलाश करना और शिष्ट तरीके से आचरण करना सीख जाते हो, हमेशा बड़ी-बड़ी बातें करने या अपने कौशल का प्रदर्शन करने का प्रयास नहीं करते हो, हमेशा बेहतरीन या सबसे ताकतवर बनने की होड़ नहीं करते हो और हमेशा खुद को साबित करने का प्रयास नहीं करते हो। जबकि यह जागरूकता लगातार तुम्हारे दिल में अपनी गहरी छाप छोड़ती रहेगी, तुम सोचोगे, “मुझे यह तलाश करनी होगी कि ऐसा करने के सत्य सिद्धांत क्या हैं और परमेश्वर इस बारे में क्या कहता है।” यह जागरूकता धीरे-धीरे तुम्हारे दिल की गहराइयों में अपनी जड़ें जमा लेगी और परमेश्वर के वचन और सत्य की तुम्हारी तलाश, मान्यता और स्वीकृति लगातार बढ़ती जाएगी, जो तुम्हारे लिए बचाए जाने की उम्मीद दर्शाती है। जितना ज्यादा तुम सत्य स्वीकार कर पाओगे, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव खुद को उतना ही कम प्रकट करेंगे; इससे भी बेहतर परिणाम यह होगा कि तुम्हारे पास अभ्यास के मानक के रूप में परमेश्वर के वचन का उपयोग करने के ज्यादा अवसर होंगे। क्या यह धीरे-धीरे उद्धार के मार्ग पर चल पड़ना नहीं है? क्या यह अच्छी बात नहीं है? (हाँ।) लेकिन अगर तुम्हारी सभी क्षमताएँ बेहतर और परिपूर्ण हैं और लोगों के बीच असाधारण हैं, तो क्या फिर भी तुम मामलों को संभालते हुए और अपने कर्तव्य करते हुए सत्य की तलाश कर सकते हो? यह कहना मुश्किल है। सभी क्षेत्रों में असाधारण क्षमताओं वाले व्यक्ति के लिए शांत हृदय या विनम्र रवैये के साथ परमेश्वर के सामने आना, खुद को जानना, अपने दोषों और भ्रष्ट स्वभावों को जानना और सत्य की तलाश करने, सत्य स्वीकारने और फिर सत्य का अभ्यास करने की हद तक पहुँच जाना बहुत ही कठिन है। ऐसा करना काफी कठिन है, है ना? (हाँ, है।)

औसत काबिलियत वाले लोगों में परमेश्वर के अच्छे इरादे निहित होते हैं; बहुत खराब काबिलियत वाले लोगों में भी परमेश्वर के अच्छे इरादे निहित होते हैं। तुम्हें बचाने की चाह में परमेश्वर तुम्हें अत्यधिक अच्छी काबिलियत नहीं देता है। ऐसा क्यों है? परमेश्वर लोगों को विभिन्न जन्मजात स्थितियाँ देता है, जैसे कि उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, रंग-रूप, सहज ज्ञान, व्यक्तित्व और विभिन्न जीवन क्षमताएँ। यहाँ तक कि परमेश्वर लोगों को कुछ विशेष शक्तियाँ, रुचियाँ और शौक भी देता है और कुछ लोगों को विशेष गुण भी देता है। यह पर्याप्त है। ये तुम्हारी व्यक्तिगत उत्तरजीविता को बनाए रखने के लिए पर्याप्त हैं। इनके साथ तुम्हारे पास स्वतंत्र रूप से जीने की क्षमता और स्थितियाँ होती हैं और एक खास स्तर की क्षमता के आधार पर तुम परमेश्वर के वचन स्वीकार कर सकते हो, अलग-अलग हदों तक अपने भ्रष्ट स्वभाव छोड़ सकते हो और बचाया जाना प्राप्त कर सकते हो। यही कारण है कि परमेश्वर लोगों को अत्यधिक ऊँची काबिलियत नहीं देता है। परमेश्वर लोगों को बेहद अच्छी काबिलियत नहीं देता है। एक तो ऐसा इसलिए है ताकि लोग इस बुनियादी शर्त के होते हुए थोड़ा-सा व्यावहारिक बने रह सकें और खुद को साधारण, औसत और भ्रष्ट स्वभावों वाले लोग महसूस करने के आधार पर खुशी से परमेश्वर का कार्य और परमेश्वर का उद्धार स्वीकार कर सकें। सिर्फ इसी तरह से लोगों के पास परमेश्वर के वचन स्वीकार करने की बुनियादी शर्त होती है। दूसरी बात यह है कि अगर लोगों में बहुत अच्छी काबिलियत या असाधारण रूप से तेज दिमाग हों, सभी पहलुओं में बहुत मजबूत क्षमताएँ हों, सभी असाधारण हों, दुनिया में उनके लिए सब कुछ सुचारु रूप से चल रहा हो—वे व्यापार में बहुत पैसा कमा रहे हों, उनके विशेष रूप से सुचारु राजनीतिक करियर हों, वे सभी परिस्थितियों में सहजता से कार्य कर रहे हों, खुद को पानी में मछली की तरह महसूस कर रहे हों—तो ऐसे लोग आसानी से परमेश्वर के सामने आने और परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करने में समर्थ नहीं होते हैं, है ना? (सही कहा।) परमेश्वर द्वारा बचाए जाने वालों में से ज्यादातर लोग दुनिया में या समाज के लोगों के बीच ऊँचे पदों पर नहीं होते हैं। चूँकि उनकी काबिलियत और क्षमताएँ औसत या यहाँ तक कि कमहोती हैं और वे दुनिया में लोकप्रियता या सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, उन्हें हमेशा लगता है कि दुनिया बेरंग और अन्यायी है, इसलिए उन्हें आस्था की जरूरत होती है और अंत में वे परमेश्वर के सामने आते हैं और परमेश्वर के घर में प्रवेश करते हैं। लोगों को चुनते समय परमेश्वर की यह एक बुनियादी शर्त है। तुममें सिर्फ इसी जरूरत के साथ परमेश्वर का उद्धार स्वीकारने की इच्छा हो सकती है। अगर हर दृष्टि से तुम्हारी स्थितियाँ बहुत अच्छी हैं और दुनिया में उद्यम करने के लिए उपयुक्त हैं और तुम हमेशा अपने लिए नाम कमाना चाहते हो तो तुममें परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करने की इच्छा नहीं होगी और न ही तुम्हारे पास परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने का अवसर होगा। भले ही तुम्हारी काबिलियत औसत या खराब हो, फिर भी तुम अविश्वासियों की तुलना में कहीं ज्यादा धन्य हो क्योंकि तुम्हारे पास परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का अवसर है। इसलिए खराब काबिलियत होना तुम्हारा दोष नहीं है और न ही यह तुम्हारे द्वारा भ्रष्ट स्वभाव छोड़ देने और उद्धार प्राप्त करने में कोई रुकावट है। अंतिम विश्लेषण में, तुम्हें यह काबिलियत परमेश्वर ने ही दी है। तुम्हारे पास बस उतना ही है जितना परमेश्वर ने तुम्हें दिया है। अगर परमेश्वर तुम्हें अच्छी काबिलियत देता है तो तुम्हारे पास अच्छी काबिलियत होती है। अगर परमेश्वर तुम्हें औसत काबिलियत देता है तो तुम्हारी काबिलियत औसत होती है। अगर परमेश्वर तुम्हें खराब काबिलियत देता है तो तुम्हारी काबिलियत खराब होती है। जब तुम यह बात समझ जाते हो तो तुम्हें इसे परमेश्वर से स्वीकार लेना चाहिए और परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने में समर्थ हो जाना चाहिए। कौन-सा सत्य समर्पण करने का आधार बनता है? यह सत्य कि परमेश्वर द्वारा की गई ऐसी व्यवस्थाओं में परमेश्वर के अच्छे इरादे निहित होते हैं; परमेश्वर श्रमसाध्य रूप से विचारशील है और लोगों को परमेश्वर के दिल के बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिए या उसे गलत नहीं समझना चाहिए। परमेश्वर तुम्हारी अच्छी काबिलियत के कारण तुम्हारा सम्मान नहीं करेगा और न ही वह तुम्हारी खराब काबिलियत के कारण तुम्हारा तिरस्कार करेगा या तुमसे नफरत करेगा। परमेश्वर किस चीज से नफरत करता है? परमेश्वर जिस चीज से नफरत करता है वह है लोगों का सत्य से प्रेम न करनाया इसे स्वीकार न करना, लोगों का सत्य समझना लेकिन उसका अभ्यास न करना, वह कार्य न करना जिसे करने में वे सक्षम हैं, अपने कर्तव्यों में अपना सर्वस्व न दे पाना, फिर भी हमेशा असंयत इच्छाएँ रखना, हमेशा रुतबे की चाहत रखना, हमेशा पद के लिए होड़ करना और हमेशा परमेश्वर से माँगें करते रहना। यही बात परमेश्वर को खराब और घिनौनी लगती है। तुममें शुरू से ही खराब काबिलियत है या कोई काबिलियत ही नहीं है, तुम कोई भी कार्य करने में असमर्थ हो और फिर भी तुम हमेशा अगुआ बनना चाहते हो; तुम हमेशा पद और सत्ता के लिए होड़ करते हो और हमेशा चाहते हो कि परमेश्वर तुम्हें एक निश्चित उत्तर दे, तुम्हें बताए कि भविष्य में तुम राज्य में प्रवेश कर सकते हो, आशीषें प्राप्त कर सकते हो और एक अच्छा गंतव्य पा सकते हो। परमेश्वर द्वारा तुम्हारा चुना जाना पहले से ही एक बहुत बड़ा उन्नयन है, फिर भी तुम उँगली पकड़ाए जाने पर बाँह पकड़ना चाहते हो। परमेश्वर ने तुम्हें वह दिया है जो तुम्हें मिलना चाहिए और तुम पहले से ही परमेश्वर से बहुत कुछ प्राप्त कर चुके हो, फिर भी तुम अनुचित माँगें करते हो। परमेश्वर इसी से नफरत करता है। तुम्हारी काबिलियत बहुत खराब है या तुम मानव बुद्धि के स्तर तक भी नहीं पहुँचते हो, फिर भी परमेश्वर ने तुम्हारे साथ एक जानवर जैसा व्यवहार नहीं किया है, बल्कि वह अब भी तुम्हें एक मनुष्य मानता है। इसलिए तुम्हें वही करना चाहिए जो एक मनुष्य को करना चाहिए, वही कहना चाहिए जो एक मनुष्य को कहना चाहिए और जो कुछ भी परमेश्वर ने तुम्हें दिया है उसे परमेश्वर से आ रहा मानकर स्वीकार करना चाहिए। तुम जो भी कर्तव्य कर सकते हो, उसे करो। परमेश्वर को निराश मत करो। उँगली पकड़ाए जाने पर बाँह पकड़ने की इच्छा मत रखो क्योंकि परमेश्वर तुम्हारे साथ एक मनुष्य जैसा व्यवहार करता है, यह मत कहो, “चूँकि परमेश्वर मुझे एक मनुष्य मानता है, उसे मुझे बेहतर काबिलियत देनी चाहिए, मुझे टीम प्रमुख, पर्यवेक्षक या अगुआ बनने देना चाहिए। यह सबसे अच्छा होता अगर वह ऐसी व्यवस्था करता कि मुझे कोई थकाऊ कार्य नहीं करना पड़ता, परमेश्वर का घर मुफ्त में मेरा भरण-पोषण करता और मुझे प्रयास करने या थकान सहने की जरूरत नहीं पड़ती, मुझे वह करने की अनुमति देता जो मैं करना चाहता हूँ।” ये सभी अनुचित माँगें हैं। ये वे अभिव्यक्तियाँ या अनुरोध नहीं हैं जो किसी सृजित प्राणी के पास होने चाहिए या उसे प्रस्तुत करने चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हारे साथ तुम्हारी कमजोर काबिलियत के अनुसार व्यवहार नहीं किया है, बल्कि तुम्हें चुना है और तुम्हें अपना कर्तव्य करने का अवसर दिया है। यह परमेश्वर का उन्नयन है। तुम्हें उँगली पकड़ाए जाने पर बाँह पकड़ने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए और परमेश्वर से अनुचित माँगें नहीं करनी चाहिए। बल्कि तुम्हें परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए और परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाने के लिए अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए। परमेश्वर की तुमसे यही अपेक्षा है। तुम्हारी काबिलियत खराब है, लेकिन परमेश्वर ने अच्छी काबिलियत वाले लोगों के मानकों के अनुसार तुमसे अपेक्षाएँ नहीं रखी हैं। तुममें काबिलियत और बुद्धि की कमी है, लेकिन परमेश्वर ने यह अपेक्षा नहीं की है कि तुम उन मानकों को प्राप्त करो जिन तक अच्छी काबिलियत वाले लोग पहुँच सकते हैं। तुम जो कुछ भी करने में समर्थ हो, बस वही करो। परमेश्वर मछली को जमीन पर रहने के लिए मजबूर नहीं करता है। बात बस इतनी है कि तुममें हमेशा असंयत इच्छाएँ होती हैं और तुम हमेशा एक साधारण व्यक्ति, कम काबिलियत वाला औसत व्यक्ति बनने के अनिच्छुक रहते हो; बात यह है कि तुम ऐसे श्रमसाध्य कार्य नहीं करना चाहते हो जो तुम्हें सुर्खियों में नहीं लाता है और अपना कर्तव्य करने में तुम हमेशा कष्ट को नापसंद करते हो और थकान से कतराते हो, इस बारे में नखरेबाजी करते हो और चुनते हो कि क्या करना है; तुम हमेशा उद्दंड होते हो और तुम्हारे पास हमेशा अपनी योजनाएँ और प्राथमिकताएँ होती हैं—ऐसा नहीं है कि परमेश्वर ने तुम्हारे साथ अन्याय किया है। तो लोगों को अपनी काबिलियत सही तरीके से कैसे देखनी चाहिए? एक बात यह है कि परमेश्वर तुम्हें जो भी काबिलियत देता है, तुम्हें उसे परमेश्वर से स्वीकार करना चाहिए और परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के प्रति समर्पण करना चाहिए। यह सबसे बुनियादी विचार और नजरिया है जो लोगों के पास होना चाहिए। यह नजरिया सही है और यह किसी भी परिस्थिति में बना रहता है। यह सत्य सिद्धांत ही है जो अटल रहता है, चाहे चीजें कैसे भी क्यों न बदलें। दूसरी बात यह है कि चाहे तुम्हारी काबिलियत अच्छी हो, औसत हो, खराब हो या गैर-मौजूद हो, तुम्हें वह कार्य करना चाहिए जिसे तुम्हारी काबिलियत प्राप्त कर सकती है। तुम्हें न तो खुद को रोककर रखना चाहिए और न ही दूसरों से अलग दिखने का प्रयास करना चाहिए। चाहे तुम्हारी काबिलियत अच्छी हो या औसत, तुम सिर्फ वही चीजें कर सकते हो जो तुम्हारी काबिलियत और क्षमता के दायरे में आती हैं; शेखी बघारने की कोई बात नहीं है—यह वही है जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है; तुम्हें इसे अर्पित कर देना चाहिए। तुम्हारा पूरा अस्तित्व, तुम्हारी साँस, तुम्हारी जन्मजात स्थितियाँ और तुम्हारी काबिलियत के सभी पहलुओं में तुम्हारी क्षमताएँ परमेश्वर द्वारा दी गई हैं। जिन विभिन्न सत्य सिद्धांतों को तुम अब समझते हो, वे भी परमेश्वर द्वारा प्रदान किए गए हैं। परमेश्वर के कार्य के बिना और परमेश्वर द्वारा लोगों को प्रदान की गई विभिन्न जन्मजात स्थितियों के बिना मनुष्य मुट्ठी भर धूल के सिवाय कुछ भी नहीं है। इसलिए, लोगों के पास शेखी बघारने की कोई बात नहीं है। यह दूसरा पहलू है। यहाँ एक और पहलू है : चाहे तुम्हारी काबिलियत अच्छी हो, औसत हो, खराब हो या गैर-मौजूद हो, तुम्हें इसे सही ढंग से सँभालना चाहिए। सबसे पहले, यह पहचानो कि तुम्हारी काबिलियत किस स्तर की है और फिर अपनी जन्मजात काबिलियत के आधार पर वह करो जो तुम्हें करना चाहिए। हमेशा अपनी क्षमताओं से परे जाने और ऐसी चीजें करने का प्रयास मत करो जिन्हें तुम पूरा नहीं कर सकते, हमेशा लोगों या परमेश्वर के सामने खुद को साबित करने का प्रयास मत करो। तुम कुछ भी साबित नहीं कर सकते। तुम इस तरह से जितना ज्यादा खुद को साबित करने का प्रयास करते हो, उतना ही यह साबित होता है कि तुम्हारी काबिलियत खराब है, तुम अपनी खुद की माप नहीं जानते हो और उतना ही यह साबित होता है कि तुम सूझ-बूझ से परे हो और तुम्हारे पास बुरी तरह से भ्रष्ट स्वभाव है। हर प्रकार से अपनी काबिलियत को बदलने या हर दृष्टि से अपनी क्षमताओं में सुधार करने का प्रयास मत करो, बल्कि अपनी जन्मजात काबिलियत और क्षमताओं को सटीकता से पहचानो और उनका सही ढंग से उपयोग करो। अगर तुम्हें यह पता लग जाता है कि तुममें कहाँ कमी है तो जल्दी से उन क्षेत्रों का अध्ययन करो जिनमें तुम कम समय में प्रगति हासिल कर सकते हो ताकि तुम इन क्षेत्रों के लिए भरपाई कर सको। जो क्षेत्र तुम्हारी पहुँच से बाहर हैं, उनके लिए जबरदस्ती मत करो। अपनी वास्तविक स्थिति के अनुसार कार्य करो; अपनी खुद की काबिलियत और क्षमताओं के आधार पर चीजें करो। अंतिम सिद्धांत है परमेश्वर के वचन, मनुष्यों के लिए परमेश्वर की अपेक्षाओं और सत्य सिद्धांतों के अनुसार अपना कर्तव्य करना। तुम्हारी काबिलियत का स्तर चाहे जो भी हो, तुम सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने और अपने कर्तव्य करने के अलग-अलग स्तर हासिल कर सकते हो; तुम परमेश्वर के मानक पूरे कर सकते हो या उनके उनके अनुसार जी सकते हो। ये सत्य सिद्धांत बिल्कुल भी खोखली बातें नहीं हैं; वे बिल्कुल भी मानवता से परे नहीं हैं। वे सभी सृजित मानवजाति के भ्रष्ट स्वभावों, सहज प्रवृत्तियों और विभिन्न क्षमताओं और काबिलियतों के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए अभ्यास के मार्ग हैं। इसलिए चाहे तुम्हारी काबिलियत कुछ भी हो, चाहे तुम्हारी क्षमताएँ किसी भी पहलू से अपर्याप्त या दोषपूर्ण हों, यह कोई समस्या नहीं है; अगर तुम सही मायने में सत्य समझते हो और सत्य का अभ्यास करने को तैयार हो, तो आगे बढ़ने का एक मार्ग जरूर होगा। काबिलियत और क्षमताओं के कुछ पहलुओं में किसी व्यक्ति के दोष उसके सत्य के अभ्यास में बिल्कुल भी बाधा नहीं बनते हैं। अगर तुम्हारी राय बनाने की क्षमता या किसी दूसरी क्षमता में कमी है, तो तुम और तलाश कर सकते हो और ज्यादा संगति कर सकते हो—सत्य समझने वाले लोगों से निर्देश और सुझाव माँगो। जब तुम अभ्यास के सिद्धांतों और मार्गों को समझते हो और उनकी सारी जानकारी रखते हो, तो तुम्हें उन्हें अपने आध्यात्मिक कद के आधार पर अपने पूरे प्रयास के साथ अभ्यास में लाना चाहिए। स्वीकार करना और अभ्यास करना—तुम्हें यही करना चाहिए। क्या मेरे इस तरह से संगति करने से तुम्हें समझने में मदद मिलती है? (हम थोड़ा-सा ज्यादा समझते हैं।)

परमेश्वर लोगों के लिए सभी प्रकार की काबिलियतें क्यों पूर्वनियत करता है? परमेश्वर लोगों को परिपूर्ण काबिलियत क्यों नहीं देता है? इस संबंध में परमेश्वर के इरादे क्या हैं और लोगों को इसे सही तरीके से कैसे देखना चाहिए, इस बारे में हमने कितने पहलुओं पर संगति की है? आओ हम उन्हें संक्षेप में प्रस्तुत करें। पहला पहलू परमेश्वर से इसे स्वीकार करना है। यह सबसे बुनियादी विचार और नजरिया है जो लोगों के पास होना चाहिए। दूसरा पहलू यह पहचानना और आकलन करना है कि तुम्हारी काबिलियत क्या है और अपनी काबिलियत और क्षमता के आधार पर कार्य करना और अपना कर्तव्य करना है। ऐसी चीजें करने का प्रयास मत करो जो तुम्हारी काबिलियत और क्षमता से बढ़कर हों। तुम जो कर सकते हो, उसे निष्ठा से और व्यावहारिक तरीके से करो और उसे अच्छे तरीके से करो। जो तुम नहीं कर सकते हो, उसके लिए अपने साथ जबरदस्ती मत करो। तीसरा पहलू क्या है? (हमें हमेशा अपनी काबिलियत बदलने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। भले ही हमारी काबिलियत औसत हो, खराब हो या ना के बराबर भी हो, फिर भी हमें इसे सही तरीके से सँभालना चाहिए। हमें हमेशा परमेश्वर के सामने खुद को साबित करने की इच्छा नहीं करनी चाहिए कि हमारी काबिलियत अच्छी है। यह अनुचित है।) सही कहा। अपनी काबिलियत को सही तरीके से देखो। शिकायत मत करो। परमेश्वर ने तुम्हें जितना भी दिया है, वह तुमसे उतना ही माँगेगा। परमेश्वर ने तुम्हें जो नहीं दिया है, वह तुमसे उसकी माँग नहीं करता है। उदाहरण के लिए, अगर परमेश्वर ने तुम्हें औसत या खराब काबिलियत दी है तो वह तुमसे अगुआ, टीम प्रमुख या पर्यवेक्षक बनने की अपेक्षा नहीं करता है। लेकिन अगर परमेश्वर ने तुम्हें वाक्पटुता, खुद को व्यक्त करने की क्षमता या कोई खास गुण दिया है और वह तुमसे इस गुण से संबंधित कार्य करने की अपेक्षा करता है तो तुम्हें इसे अच्छे तरीके से करना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो स्थितियाँ दी हैं, उनके अनुसार अपेक्षाएँ पूरी करने में विफल मत होओ। तुम्हें परमेश्वर की इनायत के अनुसार अपेक्षाएँ पूरी करनी चाहिए, उसे पूरी तरह से विकसित करना चाहिए और अच्छी तरह से लागू करना चाहिए, उसे सकारात्मक चीजों पर लागू करना चाहिए और ऐसे कीमती कार्य नतीजे उत्पन्न करने चाहिए जो मानवजाति को फायदा पहुँचाते हों। यह बहुत ही बढ़िया होगा, है ना? (हाँ।) इसके अलावा, तुम्हें यह पता होना चाहिए कि लोगों को विभिन्न काबिलियतें देने में परमेश्वर के अच्छे इरादे हैं। उसने तुम्हें अत्यधिक अच्छी काबिलियत ठीक इसलिए नहीं दी है क्योंकि परमेश्वर तुम्हें बचाना चाहता है। इसमें परमेश्वर का श्रमसाध्य इरादा निहित है। परमेश्वर द्वारा तुम्हें औसत या खराब काबिलियत देना तुम्हारे लिए सुरक्षा है। अगर लोगों में बहुत ही अच्छी या असाधारण काबिलियत होती तो उनके लिए दुनिया और शैतान के पीछे-पीछे चलना आसान होता और वे आसानी से परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते। दुनिया के विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों में असाधारण लोगों को देखो—वे किस तरह के लोग हैं? वे सभी शातिर षड्यंत्रकारी हैं, देहधारी दानव हैं। अगर तुम उन्हें परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए कहते हो तो वे सोचते हैं, “परमेश्वर में विश्वास रखने से कुछ नहीं मिलता—सिर्फ अक्षम लोग ही परमेश्वर में विश्वास रखते हैं!” अत्यधिक अच्छी काबिलियत, महान क्षमताओं और उन्नत युक्तियों वाले लोगों को शैतान कैदी बना लेता है। वे पूरी तरह से अपने भ्रष्ट स्वभावों के अनुसार और पूरी तरह से दुनिया के लिए जीते हैं। ऐसे सभी लोग देहधारी दानव हैं। मुझे बताओ, क्या परमेश्वर ऐसे लोगों को बचाता है? (नहीं।) तो क्या तुम लोग देहधारी दानव बनने को तैयार हो या तुम एक साधारण व्यक्ति, एक ऐसा व्यक्ति बनने को तैयार हो जो खराब काबिलियत वाला है, लेकिन जो परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकता है? (हम साधारण लोग बनने को तैयार हैं।) इन दो प्रकार के लोगों में से कौन धन्य है? जो लोग दुनिया में फलते-फूलते हैं, विशिष्टता की ऊँचाइयों तक पहुँचते हैं, जिनके पास प्रसिद्धि होती है, जो उच्च अधिकारी या दौलतमंद लोग बनते हैं, जिनके पास वह सब कुछ होता है जो वे चाहते हैं और खर्च करने के लिए असीम धन होता है—क्या तुम लोग ऐसे लोग बनने को तैयार हो या तुम परमेश्वर के सामने आने और औसत काबिलियत वाले सीधे-सादे, साधारण लोग बनने को तैयार हो? तुम क्या चुनते हो? (सीधे-सादे, साधारण लोग बनना।) अगर तुम औसत काबिलियत वाले सीधे-सादे, साधारण व्यक्ति बनना चुनते हो, जो इस जीवन में अच्छे भौतिक जीवन का आनंद लेना पसंद नहीं करता है, प्रसिद्धि की ऊँचाइयों तक नहीं पहुँचना चाहता है, इस दुनिया में उपस्थिति की कोई भावना नहीं रखता है और सभी के द्वारा नीची नजर से देखा जाता है, इस प्रकार का व्यक्ति बनना पसंद करता है और परमेश्वर द्वारा लोगों को दिए जाने वाले उद्धार का अवसर सँजोना या प्राप्त करना पसंद करता है—अगर तुम्हारी यह पसंद है, अगर तुम बचाए जाना चुनते हो और इस दुनिया का अनुसरण न करना चुनते हो और अपने दिल में तुम इस दुनिया के नहीं बल्कि परमेश्वर के होना चाहते हो तो तुम्हें उस काबिलियत का तिरस्कार नहीं करना चाहिए जो परमेश्वर ने तुम्हें दी है। अगर तुम्हारी काबिलियत बहुत खराब हो या परमेश्वर ने तुम्हें कोई काबिलियत नहीं दी हो, तो भी तुम्हें इस सच्चाई को खुशी-खुशी स्वीकार करना चाहिए और परमेश्वर द्वारा तुम्हें दी गई विभिन्न क्षमताओं की जन्मजात स्थितियों के साथ एक सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करना चाहिए। दूसरा पहलू यह है कि भले ही परमेश्वर लोगों को जो काबिलियत देता है वह बहुत अच्छी न हो—सिर्फ साधारण लोगों की काबिलियत हो—और वह उन्हें सभी पहलुओं में जो क्षमताएँ देता है वे औसत या यहाँ तक कि खराब हों, फिर भी परमेश्वर जो सबसे बुनियादी सत्य लोगों को सिखाता है जिनका उन्हें अभ्यास करना चाहिए उन्हें अब भी प्राप्त किया जा सकता है अगर वे उनका अभ्यास करने में अपना दिल लगाने को तैयार हैं। भले ही तुम्हारी काबिलियत बहुत खराब हो और तुम्हारी समझने की क्षमता, चीजों को स्वीकार करने की क्षमता, राय बनाने की क्षमता और चीजों को पहचानने की क्षमता बहुत खराब हों या यहाँ तक कि गैर-मौजूद हों, फिर भी जब तक तुममें सबसे बुनियादी मानवता और सूझ-बूझ है, तब तक परमेश्वर द्वारा तुम्हें सौंपे गए कार्य पूरे किए जा सकते हैं और अच्छी तरह से किए जा सकते हैं। इसके अलावा, परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के जिस सबसे बुनियादी तरीके की परमेश्वर लोगों से अपेक्षा करता है, वह कुछ ऐसी चीज है जिसका तुम अनुसरण कर सकते हो; यह कुछ ऐसी चीज है जिसे तुम प्राप्त कर सकते हो। इसलिए परमेश्वर ने कभी भी तुम्हें बहुत अच्छी काबिलियत देने का इरादा नहीं रखा है। अगर परमेश्वर ने तुम्हें अच्छी काबिलियत और कुछ विशेष क्षमताएँ दी होतीं, जिससे तुम दुनिया में देहधारी दानव बनने में सक्षम होते तो परमेश्वर तुम्हें नहीं बचाता। क्या अब तुम लोग इस मामले के संबंध में परमेश्वर के दिल को समझ सकते हो? (हाँ।) अगर तुम परमेश्वर के दिल को समझ सकते हो तो यह अच्छा है; तुम यह सत्य समझोगे और अपनी काबिलियत को सही ढंग से देखोगे; इस संबंध में कोई और कठिनाई नहीं होगी। यहाँ से लोगों को बस वही करना चाहिए जो उन्हें करना चाहिए। भले ही यह सिर्फ एक नौकरी हो, फिर भी इसे अच्छी तरह से करने में अपना दिल और प्रयास लगा दो और परमेश्वर की तुमसे जो अपेक्षाएँ हैं उन पर खरा उतरने में विफल मत होओ। क्या तुम समझ रहे हो? (हाँ।) इस विषय पर आज की संगति के लिए बस इतना ही। अलविदा!

11 नवंबर 2023

पिछला:  सत्य का अनुसरण कैसे करें (4)

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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