सत्य का अनुसरण कैसे करें (4)

पिछली सभा में हमने “सत्य का अनुसरण कैसे करें” विषय पर संगति जारी रखी थी। उस संगति की मुख्य विषयवस्तु क्या थी? हमने लोगों की जन्मजात स्थितियों और उनके भ्रष्ट स्वभावों के बीच अंतरों के बारे में संगति की थी और हमने इन दो पहलुओं पर भी विशिष्ट रूप से संगति की थी। उस संगति के जरिये क्या तुम लोगों को परमेश्वर जो कार्य करना चाहता है और लोगों को बचाने में परमेश्वर लोगों के जिन पहलुओं को बदलना चाहता है उनकी एक निश्चित समझ प्राप्त हुई है? (हाँ। परमेश्वर की पिछली संगति के जरिये मैंने समझा कि परमेश्वर अपने कार्य से लोगों के भ्रष्ट स्वभाव बदलना चाहता है।) लोगों को बचाने में परमेश्वर उन्हें उनके भ्रष्ट स्वभावों से छुटकारा दिलाना चाहता है; वह उनकी जन्मजात स्थितियाँ बदलने का इरादा नहीं रखता, है न? (हाँ।) परमेश्वर सत्य व्यक्त करता है, लोगों को सत्य प्रदान करता है और कार्य के विभिन्न तरीके इस्तेमाल करता है—यह सब लोगों के भ्रष्ट स्वभावों पर लक्षित होता है। अपने कार्य के जरिये परमेश्वर लोगों को वे स्वभाव उतार फेंकने में सक्षम बनाता है जिन पर वे जीवित रहने के लिए निर्भर करते हैं, जिन्हें शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है। इस तरह परमेश्वर के वचन और सत्य लोगों में समाहित किए जाते हैं और वे उनका जीवन बन जाते हैं। यह वह अंतिम नतीजा है जिसे परमेश्वर का कार्य हासिल करना चाहता है। इस पहलू पर की गई संगति से तुम लोगों ने क्या समझा? किस विषयवस्तु ने तुम लोगों पर सबसे गहरी छाप छोड़ी? एक पल के लिए इस बारे में सोचो। (परमेश्वर की पिछली संगति ने मेरा एक भ्रामक दृष्टिकोण सही करने में मेरी मदद की। अतीत में मैं सोचता था कि परमेश्वर लोगों की अंतर्निहित काबिलियत, योग्यताएँ और व्यक्तित्व बदलेगा, लेकिन परमेश्वर की संगति के जरिये मैंने समझा कि परमेश्वर अलौकिक कार्य नहीं करता। परमेश्वर का कार्य लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और उनके विभिन्न भ्रामक विचार और दृष्टिकोण बदलना है, जो शैतान की चीजें हैं। परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने से लोगों की सामान्य मानवता बहाल होती है और उनका जमीर और विवेक अधिकाधिक सामान्य होते जाते हैं। साथ ही मैंने सत्य का अनुसरण करने का महत्व भी समझा। सत्य का अनुसरण और अभ्यास करने से ही हमारे भ्रष्ट स्वभावों का समाधान हो सकता है; जब परमेश्वर के वचन हमारा जीवन बन जाते हैं, तब हम परमेश्वर द्वारा बचाया जाना हासिल करते हैं। परमेश्वर की संगति के इन दो पहलुओं ने मुझ पर अपेक्षाकृत गहरी छाप छोड़ी।) पिछली संगति की विषयवस्तु में दर्शनों से संबंधित सत्य शामिल था; उसमें परमेश्वर के कार्य के कुछ विशिष्ट पहलू, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और वे नतीजे शामिल थे जिन्हें वह हासिल करना चाहता है। जिस विषयवस्तु पर संगति की गई थी, उसके आधार पर कुछ विशिष्ट प्रश्न उठे। इन प्रश्नों में शामिल हैं कि दैनिक जीवन में कौन-सी अभिव्यक्तियाँ व्यक्ति की जन्मजात स्थितियाँ मानी जाती हैं, कौन-सी अभिव्यक्तियाँ व्यक्ति के चरित्र या उसके मानवता सार को—यानी जिसे हम आम तौर पर व्यक्ति की मानवता के अच्छे या बुरे होने की कुछ अभिव्यक्तियों के रूप में संदर्भित करते हैं—प्रतिबिंबित करती हैं और कौन-सी अभिव्यक्तियाँ भ्रष्ट स्वभावों के प्रकाशन हैं। ये विशिष्ट प्रश्न हैं, है न? हालाँकि जब हमने पहले इस विषय पर संगति की थी तो हमने कुछ उदाहरण दिए थे, लेकिन वे बहुत लक्षित या विशिष्ट नहीं थे। आज हम इस मुद्दे पर विशेष रूप से संगति करेंगे ताकि लोगों द्वारा प्रकट की जाने वाली उन अभिव्यक्तियों के बीच अंतर किया जा सके जो जन्मजात स्थितियाँ हैं, जो उनके चरित्र से संबंधित हैं और जो भ्रष्ट स्वभावों की श्रेणी में आती हैं और इन तीन पहलुओं की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ पहचानेंगे। इस तरह यह स्पष्ट हो जाएगा कि लोगों को अपने दैनिक जीवन में आने वाले असंख्य मुद्दों को परमेश्वर के वचनों और सत्य के आधार पर इन तीन पहलुओं के साथ कैसे परस्पर जोड़ना चाहिए। इसमें यह शामिल है कि लोगों के कौन-से प्रकाशन सामान्य मानवता के जन्मजात पहलू हैं जिनसे निपटने या जिन्हें नियंत्रित करने की जरूरत नहीं है; कौन-से पहलू लोगों की मानवता से जुड़ी समस्याओं के प्रकाशन हैं और उन्हें कैसे बदलना और ठीक करना चाहिए या सत्य की खोज के जरिये कैसे हल करना चाहिए; और कौन-सी अभिव्यक्तियाँ भ्रष्ट स्वभावों की श्रेणी में आती हैं और लोगों को इन स्वभावों का सार कैसे समझना चाहिए और सत्य स्वीकारने और उसका अभ्यास करने के जरिये उन्हें कैसे हल करना और उतार फेंकना चाहिए। इन सभी की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ होती हैं और बेशक इनमें अभ्यास के विशिष्ट मार्ग शामिल हैं। लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के अनुसार हम अभ्यास के सिद्धांतों और मार्गों पर संगति करेंगे ताकि लोग समझ सकें कि इन मुद्दों का सामना और समाधान कैसे करें और लोगों के पास विभिन्न समस्याओं के लिए ज्यादा ठोस रवैये और अभ्यास के मार्ग हो सकें। क्या इस तरह से संगति करना अच्छा प्रतीत होता है? (हाँ।)

हमने जन्मजात स्थितियों, मानवता और भ्रष्ट स्वभावों के तीन मुद्दों पर पहले दो बार संगति की है। हालाँकि हमने विशिष्ट रूप से लक्षित तरीके से यह स्पष्ट नहीं किया कि लोगों की अभिव्यक्तियाँ और प्रकाशन इन तीन मुद्दों में से किससे संबंधित हैं, फिर भी हमने प्रत्येक मुद्दे पर संगति करते समय कुछ उदाहरण दिए। पिछली संगतियों में इन तीन मुद्दों पर बात करते समय हमने इन मुद्दों के सार या इसमें शामिल अभ्यास के मार्गों और सिद्धांतों पर भी संगति की थी। मैंने अभी जिन तीन मुद्दों का उल्लेख किया है, उनके बारे में अब मैं चाहता हूँ कि सभी लोग पहले इस बात पर चर्चा करें कि जन्मजात स्थितियाँ किससे संबंधित हैं। तुम सभी लोग पहले मूल अवधारणा को समझने के लिए मोटे तौर पर इस पर संगति कर सकते हो। (परमेश्वर, क्या जन्मजात स्थितियाँ व्यक्ति की काबिलियत, योग्यताओं, जन्मजात व्यक्तित्व और सहज प्रवृत्तियों को संदर्भित करती हैं?) हमने इस विषय-वस्तु पर पहले संगति की है, इसलिए तुम सभी लोगों को इससे परिचित होना चाहिए। क्या और भी कुछ है? क्या खूबियों और रूप-रंग को जन्मजात स्थितियाँ माना जाता है? (हाँ।) व्यक्ति की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में क्या कहना है? (हाँ, इसे भी।) और जीवनशैली की दिनचर्याएँ और आदतें, है ना? और कुछ? (रुचियाँ और शौक भी।) रुचियाँ और शौक खूबियों से थोड़े भिन्न होते हैं। रुचियाँ और शौक जोड़ने से ज्यादा विशिष्टताएँ सामने आती हैं। आओ उन्हें क्रम से सूचीबद्ध करें : पहली है पारिवारिक पृष्ठभूमि। दूसरी है रूप-रंग। तीसरी है व्यक्तित्व। चौथी है सहज प्रवृत्तियाँ। पाँचवीं है काबिलियत। छठी है खूबियाँ। सातवीं है रुचियाँ और शौक। आठवीं है योग्यताएँ। और फिर जीवनशैलीगत आदतें और जीवनशैलीगत दिनचर्या। ये आख़िरी दो समान हैं, लेकिन इनमें कुछ विशिष्ट अंतर हैं। ये कुल दस हैं। आगे बढ़ो और इन्हें पढ़ो। (एक : पारिवारिक पृष्ठभूमि। दो : रूप-रंग। तीन : व्यक्तित्व। चार : सहज प्रवृत्तियाँ। पाँच : काबिलियत। छह : खूबियाँ। सात : रुचियाँ और शौक। आठ : योग्यताएँ। नौ : जीवनशैलीगत आदतें। दस : जीवनशैलीगत दिनचर्या।) ये सब लोगों की जन्मजात स्थितियाँ हैं। क्या हमें जन्मजात स्थितियों के बारे में भी विशिष्ट रूप से संगति नहीं करनी चाहिए? संगति किए बिना क्या तुम लोग अपने आप उचित अंतर कर सकते हो? (नहीं।) किन स्थितियों में तुम अंतर नहीं कर सकते? (कभी-कभी जब हम किसी व्यक्ति में कुछ अभिव्यक्तियाँ देखते हैं तो हम यह नहीं बता सकते कि वे उस व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित कर रही हैं या प्रवृत्ति को या क्या वे भ्रष्ट स्वभावों के प्रकाशन हैं।) (साथ ही, जीवनशैलीगत आदतें और जीवनशैलीगत दिनचर्या—मैं सोचा करता था कि ये उपार्जित जीवन-स्थितियों और पृष्ठभूमि के आधार पर बनती हैं; मैं नहीं जानता था कि ये जन्मजात स्थितियाँ हो सकती हैं।) देखो, जब हम एक प्रमुख विषय के भीतर कुछ विस्तृत और विशिष्ट विषय-वस्तु को विभाजित करते हैं तो ऊपरी तौर पर तो लगता है कि तुम ये विशिष्टताएँ जानते हो, लेकिन वास्तविक जीवन में तुम उन्हें थोड़ा उलझा देते हो; तुम अभी भी स्पष्ट नहीं हो कि उनमें कैसे भेद किया जाए, है न? (सही है।) हमें अभी भी इस मुद्दे पर कुछ विशिष्ट संगति करने की जरूरत है।

हमने अभी जिन तीन पहलुओं का उल्लेख किया—जन्मजात स्थितियाँ, मानवता और भ्रष्ट स्वभाव—आओ जन्मजात स्थितियों के लिए कुछ विशिष्ट विषयवस्तुएँ सूचीबद्ध करें और उन पर एक-एक करके विस्तार से संगति करें। मानवता और भ्रष्ट स्वभावों के लिए हम उन्हें सूचीबद्ध नहीं करेंगे। जन्मजात स्थितियों की विशिष्ट विषयवस्तुओं और अभिव्यक्तियों पर संगति करते समय हम मानवता की कुछ अभिव्यक्तियों और भ्रष्ट स्वभावों के प्रकाशनों पर भी बात करेंगे। हमारे इन पर संगति करने पर तुम लोग यह पहचान सकते और अंतर कर सकते हो कि क्या वे जन्मजात स्थितियों से संबंधित हैं जिन्हें बदलने की जरूरत नहीं है या वे लोगों के चरित्र या उनके भ्रष्ट स्वभावों से संबंधित हैं जिन्हें सत्य की खोज के जरिये हल करने की जरूरत है। विशिष्ट उदाहरणों और मुद्दों का उपयोग करके विशिष्ट संगति में संलग्न होने से भेद स्पष्ट हो जाएँगे, है न? (हाँ।) उदाहरण के लिए, कुछ लोग गरीब परिवारों से आते हैं और आर्थिक रूप से वंचित होते हैं। वे तंगहाल रहते हैं; उनके पास हमेशा पैसे की कमी रहती है और उन्हें हर खर्च का हिसाब-किताब रखना पड़ता है और उसकी योजना बनानी पड़ती है। जब पैसे खर्च करने की बात आती है तो उनका तरीका हर पैसे को जितना हो सके मितव्ययिता से खर्च करना होता है। वे ऐसे परिवारों और ऐसी परिस्थितियों में पैदा हुए थे। हमने जिन तीन पहलुओं पर संगति की थी, उनमें से यह किसमें आता है? क्या यह जन्मजात स्थिति है, मानवता है या भ्रष्ट स्वभाव है? यह उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का एक पहलू है, जो एक जन्मजात स्थिति है, है न? (हाँ।) क्या यह पारिवारिक पृष्ठभूमि अच्छी है या बुरी है? (मानवीय परिप्रेक्ष्य से यह बुरी है।) वे मुश्किल से गुजारा करते हैं, उनके परिवार दरिद्र होते हैं, उनकी आर्थिक स्थितियाँ समृद्ध या संपन्न नहीं होतीं—ये उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से जुड़े मुद्दे हैं। हालाँकि ऐसा व्यक्ति एक गरीब परिवार में पैदा हुआ था, उसने कभी महँगा पकवान नहीं खाया, कभी ब्रांडेड कपड़े नहीं पहने, कभी विविध विलासिताओं का अनुभव नहीं किया और कभी किसी उच्च-स्तरीय चीज या किसी धनी या प्रसिद्ध व्यक्ति के संपर्क में नहीं आया, फिर भी उसमें जमीर और विवेक होता है। दूसरों से मिलने-जुलने पर वह कभी उनका फायदा नहीं उठाता। जब वह किसी को अच्छी चीजों का आनंद लेते हुए देखता है या किसी धनी व्यक्ति को देखता है तो हालाँकि वह ईर्ष्या महसूस करता है, फिर भी वह कभी दूसरों की संपत्ति चुराने या हड़पने के बारे में नहीं सोचता। ऐसे व्यक्ति का प्रकाशन किस पहलू से संबंधित है? (उसके चरित्र, उसकी मानवता से।) यह उसकी मानवता से संबंधित है। इस पहलू में उसकी मानवता की अभिव्यक्ति अच्छी है या बुरी? (उसकी मानवता अच्छी और खरी है।) इसे अभी भी खरा नहीं माना जा सकता; इसका मतलब सिर्फ इतना है कि वह छोटे-मोटे लाभों का फायदा नहीं उठाता और अमीरों की चापलूसी नहीं करता। वह ऐसे मामले सही तरीके से सँभालने में सक्षम है। ऐसे व्यक्ति की मानवता कैसी होती है? (उसकी मानवता अपेक्षाकृत अच्छी होती है।) यह एक वस्तुनिष्ठ कथन है; उसकी मानवता अपेक्षाकृत अच्छी होती है, जिसका अर्थ है कि अपने चरित्र के संदर्भ में उसमें अपेक्षाकृत सत्यनिष्ठा और गरिमा होती है। हालाँकि उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि गरीब होती है और कुलीन नहीं होती, फिर भी वह गरीबों से घृणा नहीं करता और अमीरों का पक्ष नहीं लेता, न ही वह दूसरों का फायदा उठाता है। एक और तरह का व्यक्ति होता है : वह एक अमीर परिवार में पैदा हुआ था, या जैसा कि अविश्वासी कहेंगे, “मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर पैदा हुआ था।” उसे कभी भोजन या कपड़ों की चिंता नहीं करनी पड़ी और उसके लिए सब कुछ आसानी से उपलब्ध है; जो भी खाना वह खाना चाहता है वह उसे सुलभ है। उसकी पारिवारिक स्थितियाँ विशेष रूप से अच्छी हैं और उसके माता-पिता उसके साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं। यह किस पहलू से संबंधित है? (यह भी उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि से संबंधित है।) व्यक्ति की पारिवारिक पृष्ठभूमि एक जन्मजात स्थिति होती है। हालाँकि ऐसे व्यक्ति की पारिवारिक पृष्ठभूमि विशेष रूप से अच्छी होती है, उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी होती है और उसे भोजन या कपड़ों की कोई चिंता नहीं होती, उसने अच्छी चीजें देखी होती हैं और दुनिया की हर सौगात का अनुभव किया होता है, फिर भी दूसरों से मिलने-जुलने पर अगर वह किसी ऐसे व्यक्ति को देखता है जो उससे बेहतर और ज्यादा सक्षम है या जो किसी क्षेत्र में उल्लेखनीय रूप से उत्कृष्ट है या लोगों के बीच प्रतिष्ठित है तो वह ईर्ष्या महसूस करता है और उसे नीचा दिखाने के तरीके सोचने में दिमाग खपाता है। ये अभिव्यक्तियाँ किस पहलू से संबंधित हैं? (मुझे लगता है कि ये भ्रष्ट स्वभावों और मानवता दोनों से संबंधित हैं।) यह सही है। ये अभिव्यक्तियाँ उसकी मानवता और उसके भ्रष्ट स्वभावों दोनों से संबंधित हैं। जब ऐसा व्यक्ति किसी को खुद से बेहतर देखता है तो वह ईर्ष्या, नफरत महसूस करता है और उसे दबाना, सताना और अलग करना चाहता है; वह उससे आगे निकलना चाहता है। अगर वह सिर्फ ये विचार रखता है लेकिन उन्हें अमल में नहीं लाता तो वह खराब मानवता वाला व्यक्ति है—क्या उसकी मानवता बुरी है? (हाँ।) अगर, इस बुरी मानवता के आधार पर वह किसी व्यक्ति को अपने से बेहतर देखकर अवज्ञाकारी महसूस करता है, उसकी पीठ पीछे उसकी आलोचना करता है और उसे दबाने के लिए कुटिल चालें चलता है तो ये भ्रष्ट स्वभाव की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। इस भ्रष्ट स्वभाव का सार क्या है? यह क्रूरता है। ये अभिव्यक्तियाँ मानवता और भ्रष्ट स्वभाव दोनों से संबंधित हैं। भले ही ऐसे व्यक्ति की पारिवारिक परिस्थितियाँ अच्छी हों और वह अच्छा खाता-पहनता हो और तुम उससे यह अपेक्षा कर सकते हो कि वह अंतर्दृष्टि से युक्त और दूसरों के प्रति सहिष्णु होगा, लेकिन लोगों से मिलते-जुलते समय वह हमेशा उनका फायदा उठाना चाहता है और हमेशा अत्यधिक हिसाब-किताब करता है। जब वह दूसरों के साथ कहीं बाहर जाता है तो वह इस बात पर मीन-मेख निकालता है कि किसने ज्यादा पैसे खर्च किए और किसने यात्रा का खर्च उठाया, वह एक भी अतिरिक्त पैसा खर्च करने को तैयार नहीं होता। दूसरों के साथ काम करते समय वह हमेशा यह हिसाब लगाता है कि किसने ज्यादा काम किया और किसने कम और हमेशा ढिलाई बरतने के तरीके सोचता है। यह किस पहलू से संबंधित है? (यह उसकी मानवता से संबंधित है।) मानवता के किस पहलू से? (स्वार्थ और नीचता से।) स्वार्थ और नीचता, दूसरों का फायदा उठाने की चाहत, सत्यनिष्ठा और गरिमा की कमी—यह उसके चरित्र से संबंधित है। लोगों के साथ मिलते-जुलते समय वह हिसाब-किताब करता है और दूसरों का फायदा उठाना पसंद करता है, भले ही उसे मिलने वाला फायदा धेले भर का ही क्यों न हो और वह फायदा उठाने के लिए हर अवसर की तलाश में रहता है। चाहे सार्वजनिक स्रोत हो या निजी स्रोत या युवा लोग हों या वृद्ध लोग, वह सभी का फायदा उठाता है। चाहे जो भी व्यक्ति हो, वह हिचकता नहीं और जब भी अवसर मिलता है, वह फायदा उठाता है। दूसरों के साथ मेल-जोल रखने में वह विशेष रूप से कठोर और हिसाब-किताब करने वाला होता है। उदाहरण के लिए, पिछली बार तुमने उससे कोई उपकार करने के लिए कहा था और अब उसे लगता है कि तुम उसके ऋणी हो। वह इसके बदले में तुमसे उपकार करवाने के लिए विशेष प्रयास करेगा और यह उपकार उसके द्वारा तुम पर किए गए उपकार से भी बड़ा होना चाहिए; तभी उसे लगेगा कि यह एक सही सौदा है। क्या यह अत्यधिक हिसाब-किताब करने वाला होना नहीं है? (हाँ, है।) यह अत्यधिक हिसाब-किताब करने वाला होना, दूसरों के साथ विशेष रूप से कठोर होना और बहुत ही षड्यंत्रकारी होना है। भले ही उसे खाने और कपड़े की दृष्टि से कोई कमी न हो और वह दूसरों की तुलना में हर तरह से बेहतर जीवन का आनंद लेता हो, फिर भी जब वह किसी व्यक्ति को ऐसी चीज के साथ देखता है जिसे उसने पहले न देखा हो तो वह उसका कुछ देर इस्तेमाल करके और उसे आजमाकर देखना चाहता है। उसे दूसरों के पास जो कुछ भी है उसे पाने की जरूरत महसूस होती है। अगर वह उसे नहीं मिलता तो वह अपने दिल में इस हद तक असहज और असंतुलित महसूस करता है कि उसकी भूख मर जाती है और वह सो भी नहीं पाता; उसके मिलने पर ही वह संतुष्ट महसूस करता है। यह किस तरह का मुद्दा है? (यह भी मानवता का ही मुद्दा है।) ये विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ उसकी मानवता के मुद्दे हैं, उसकी जन्मजात स्थितियों के नहीं। जन्मजात स्थितियाँ सिर्फ उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और पारिवारिक परिस्थितियों को संदर्भित करती हैं जिनका वह आनंद ले सकता है, जबकि उसके आचरण करने और चीजों से निपटने के तरीके उसकी मानवता से संबंधित हैं। उसके प्रकाशन और अभिव्यक्तियाँ, जैसे कि उसके आचरण करने और चीजों से निपटने के तरीके के पीछे के उसके रवैये, तरीके और प्रेरणाएँ, उसके चरित्र के मुद्दे से संबंधित हैं; यह अभी भ्रष्ट स्वभावों के स्तर तक नहीं पहुँचता। वह स्वार्थी, कठोर, अत्यधिक हिसाब-किताब करने वाला, षडयंत्रकारी होता है और दूसरों का फायदा उठाना पसंद करता है—क्या ये अच्छी मानवता की अभिव्यक्तियाँ हैं या खराब मानवता की? (ये खराब मानवता की अभिव्यक्तियाँ हैं।) ये सब निम्न चरित्र और खराब मानवता की अभिव्यक्तियाँ हैं। क्या खराब मानवता की ये अभिव्यक्तियाँ दूसरों को दिखाई देती और महसूस होती हैं? (हाँ।)

कुछ लोगों का चेहरा-मोहरा खूब तराशा हुआ होता है और वे सजीव और अभिव्यंजक दिखने वाली बड़ी, चमकदार और बुद्धिमान आँखों के साथ पैदा होते हैं। बचपन से ही वे काफी पसंद किए जाते रहे हैं। यह किस पहलू के अंतर्गत आता है? (यह उनके रूप-रंग से संबंधित है।) रूप-रंग जन्मजात स्थितियों से संबंधित है, है न? (हाँ।) बड़ी आँखें और तराशा हुआ चेहरा-मोहरा होना, जन्मजात रूप से आकर्षक दिखने का फायदा होना—क्या यह भ्रष्ट स्वभावों का एक पहलू है? (नहीं।) क्या यह मानवता के मुद्दों से संबंधित है? (नहीं, यह उससे भी संबंधित नहीं है।) यह मानवता या भ्रष्ट स्वभावों से संबंधित नहीं है, इसलिए कुछ भी बदलने की जरूरत नहीं है। जन्मजात स्थितियाँ नैसर्गिक होती हैं; वे इस रूप-रंग के साथ पैदा हुए थे और उन्होंने उसमें कोई कृत्रिम सुधार या फेरबदल नहीं करवाया। वे बस ऐसे ही हैं। हालाँकि वे प्राकृतिक रूप से आकर्षक होते हैं, लेकिन दैनिक जीवन में जटिल मुद्दों से निपटने में वे हमेशा उलझन में रहते हैं और नहीं जानते कि उन्हें कैसे सँभालें। उनमें लोगों, घटनाओं और चीजों का भेद पहचानने की क्षमता भी नहीं होती। वे इस बारे में स्पष्ट नहीं होते कि वे किसके साथ जुड़ सकते हैं और उन्हें किससे दूर रहना चाहिए। वे नहीं जानते कि कौन बुरा है और कौन-से संबंध मुसीबत ला सकते हैं। बीस-बाईस साल की उम्र में वे इन चीजों को नहीं जानते, यहाँ तक कि तीस या चालीस की उम्र में भी, जीवन के कुछ अनुभव होने के बावजूद, वे इन चीजों को नहीं जानते। हालाँकि उनकी बड़ी, अभिव्यंजक आँखें होती हैं, लेकिन उनका दिमाग काफी भ्रमित रहता है। यह किस तरह की समस्या है? (क्या यह उनकी जन्मजात काबिलियत की समस्या है?) उनकी जन्मजात काबिलियत बहुत अच्छी नहीं होती। दूसरों के साथ मिलते-जुलते समय और चीजों से निपटते समय वे कभी सिद्धांत नहीं खोज पाते और विभिन्न प्रकार के लोगों की असलियत नहीं जान पाते। उन्हें अक्सर दूसरों द्वारा धोखा दिया जाता है, ठगा जाता है और उनके साथ खिलवाड़ किया जाता है। ऐसे व्यक्ति की काबिलियत कैसी होती है? (उनकी काबिलियत अपेक्षाकृत खराब होती है।) उनकी काबिलियत अच्छी नहीं होती। अभिव्यंजक आँखें होने का यह मतलब होना जरूरी नहीं कि उनका दिमाग भी बुद्धिमत्तापूर्ण होगा। हालाँकि अपनी जन्मजात स्थिति की दृष्टि से उनका चेहरा-मोहरा अच्छा होता है लेकिन उनकी काबिलियत बहुत अच्छी नहीं होती। लेकिन एक बात है : अपने स्कूल के वर्षों के दौरान वे पाठ्यपुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने में उत्कृष्ट थे; वे साहित्य जल्दी याद कर सकते थे और गणित, भौतिकी और रासायनिकी या कोई नई भाषा सीखते समय वे विषय जल्दी समझ लेते थे। वे आसानी से विश्वविद्यालय में प्रवेश पा गए, स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की और पीएचडी कर ली। यह किसमें आना चाहिए? क्या यह उनकी अच्छी काबिलियत में आ सकता है? (नहीं।) तो यह किसमें आता है? (यह उनकी खूबियों में आता है जो उनकी जन्मजात स्थिति है।) यह सही है। ऐसा व्यक्ति अध्ययन करने, ज्ञान प्राप्त करने और शैक्षिक विषयों में उत्कृष्ट होता है। वह पाठ्यपुस्तकीय ज्ञान और सैद्धांतिक और नियमों पर आधारित चीजें जल्दी समझ लेता है, जैसे कि पेशेवर कौशलों और प्रौद्योगिकी से संबंधित पहलू या गणित, भौतिकी और रासायनिकी के सूत्र और नियम, और उन्हें बहुत अच्छी तरह से याद कर लेता है। ऐसा व्यक्ति ये चीजें सीखने में उत्कृष्ट होता है और उसके पास इनके लिए एक खास हुनर होता है। वह उन्हें एक नजर में समझ सकता है और वह परीक्षाओं में और प्रश्नों के उत्तर देने में विशेष रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन करता है; जब प्रश्नों के उत्तर देने की बात आती है तो वह इसे आसानी से कर लेता है—यहाँ वह अपने मजबूत पक्षों को सबसे अच्छे तरीके से काम में ला सकता है। तुम कह सकते हो कि ऐसा व्यक्ति ज्ञान के सागर में सहज होता है। क्या ये अभिव्यक्तियाँ उसकी काबिलियत दर्शाती हैं? (नहीं।) ये सिर्फ यह दर्शाती हैं कि उसके पास एक विशेष खूबी है। ऐसा व्यक्ति ज्ञान के क्षेत्र में विशेष रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन करता है, जिससे लोगों को यह पता चलता है कि इस क्षेत्र में उसकी खूबी सबसे अलग है। चूँकि उसमें यह खूबी होती है और चूँकि उसने कुछ उपलब्धियाँ हासिल की होती हैं—स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की होती है और उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त की होती है—इसलिए अन्य लोगों के बीच वह खुद को ज्ञानी व्यक्ति, विद्वान और उच्च-स्तरीय बुद्धिजीवी समझता है। जितनी ज्यादा पुस्तकें वह पढ़ता है, उतना ही ज्यादा उसे लगता है कि वह एक प्रसिद्ध व्यक्ति, एक श्रेष्ठ व्यक्ति है और बाकी सभी साधारण हैं, अज्ञानी हैं, उसके मन को समझने या उसकी असलियत जानने में असमर्थ हैं और उसके समान स्तर के नहीं हैं। नतीजतन, वह अक्सर दूसरों से श्रेष्ठ महसूस करता है और खुद को खास और असाधारण समझता है। यह कौन-सी अभिव्यक्ति है? (एक भ्रष्ट स्वभाव।) भ्रष्ट स्वभावों का कौन-सा पहलू? (अहंकार।) उसका अहंकारी भ्रष्ट स्वभाव उसे उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बाद सभी वर्गों के लोगों और आम जनता को और भी ज्यादा नीचा दिखाने के लिए प्रेरित करता है। अपनी उच्च डिग्री और डिप्लोमा के कारण, परमेश्वर में विश्वास करने के बाद वह हमेशा कलीसिया में अपनी ही चलाना चाहता है और अगुआ बनने की आकांक्षा रखता है। हर बार जब चुनाव होता है तो वह चुने जाने की उम्मीद करता है। अगर वह चुना नहीं जाता तो नकारात्मक हो जाता है और निराश होकर हार मान लेता है। अगुआ और कार्यकर्ता जो कुछ भी कहें, वह उसे सुनना नहीं चाहता और उसका विरोध करना चाहता है। चाहे उसे जो भी कर्तव्य सौंपा जाए, वह उस सौंपे गए कार्य से घृणा करता है और पर्दे के पीछे आलोचना करता है। अपने दिल में वह सोचता है, “तुम्हें ज्यादा ज्ञान नहीं है। तुम्हारे शब्द तर्कहीन हैं। अपने दिल की गहराई में मैं तुम्हें एक कलीसियाई अगुआ के रूप में तुच्छ समझता हूँ। मैं तुम्हारे सामने झुकने से इनकार करता हूँ! ऐसा मत सोचो कि तुम मुझसे बेहतर हो। चलो तुलना करते हैं—देखते हैं कि कौन कितने पानी में है। चलो देखते हैं कि कौन परमेश्वर के वचन ज्यादा सुना सकता है और कौन ज्यादा समझ साझा कर सकता है। अगर तुम्हारी संगति मेरी संगति जितनी अच्छी नहीं है तो मैं तुम्हारे सामने झुकने से इनकार करता हूँ! भले ही तुम्हें अगुआ चुना गया हो, लेकिन मुझे तुम्हारे द्वारा मुझसे कही गई कोई भी बात सुनने, लागू करने या उसका पालन करने की जरूरत नहीं है!” यह किस तरह की अभिव्यक्ति है? (भ्रष्ट स्वभाव की।) यह भ्रष्ट स्वभाव का एक विशिष्ट प्रकाशन है। क्या यह मानवता से संबंधित है? चूँकि ऐसे व्यक्ति में एक प्राकृतिक खूबी होती है और उसके आधार पर वह विस्तृत अध्ययन करता है, बहुत ज्ञान प्राप्त करता है और सामाजिक रुतबा प्राप्त करता है, इसलिए वह दूसरों से श्रेष्ठ, अद्वितीय महसूस करता है और बाकी सबसे उच्च स्थिति से बोलना चाहता है और दबंगई से काम करना चाहता है; लोगों के बीच वह हमेशा अगुआई करने वाला बनना चाहता है, दूसरों को अपनी बात सुनने के लिए बाध्य करना चाहता है—क्या ऐसे व्यक्ति के जमीर और विवेक के साथ कोई समस्या होती है? (हाँ, होती है।) यह किस तरह की समस्या होती है? उसकी खूबी ने उसके लिए अध्ययन के जरिये उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करना बहुत आसान बना दिया। क्या यह खूबी अपने आप में एक समस्या है? क्या यह खूबी अपने आप में भ्रष्ट स्वभावों का एक पहलू है? क्या यह बुरी मानवता की अभिव्यक्ति है? (नहीं।) लेकिन चूँकि उसमें यह खूबी है, इसलिए उसने बहुत सारा ज्ञान प्राप्त किया और उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त की, जो समाज के मूल्यांकन और रुतबे की परिभाषा के अनुरूप है। इससे उसे यह विश्वास हो गया कि कलीसिया में उसी की चलनी चाहिए, लोगों के किसी भी समूह में उसे सर्वश्रेष्ठ और बाकी सभी से ऊपर होना चाहिए। क्या ऐसी मानवता में कोई विवेक होता है? क्या ऐसी मानवता अच्छी होती है? (उसकी मानवता अच्छी नहीं होती।) उसकी मानवता किस तरह से अच्छी नहीं होती? (उसमें विवेक और जमीर नहीं होता; वह हमेशा दूसरों से ऊपर रहना चाहता है।) हमेशा दूसरों से ऊपर रहने की चाहत रखना अंशतः भ्रष्ट स्वभाव के कारण होता है। दूसरे अर्थ में, मानवता के परिप्रेक्ष्य से, क्या यह कुछ हद तक बेशर्मी नहीं है? (हाँ, है।) परमेश्वर का घर समाज नहीं है। क्या परमेश्वर का घर अगुआओं का चुनाव करते समय शैक्षणिक योग्यताओं की तुलना करता है? (नहीं।) परमेश्वर का घर अगुआओं का चुनाव किस आधार पर करता है? यह सत्य सिद्धांतों पर आधारित होता है, है न? (हाँ।) परमेश्वर के घर में अगुआओं का चुनाव सत्य सिद्धांतों पर आधारित होता है, न कि इस बात पर कि किसके पास उच्च शैक्षिक योग्यताएँ हैं। क्या वे अगुआओं के चुनाव के सिद्धांत जानते हैं? वे जानते हैं, लेकिन वे इन सिद्धांतों को सिर्फ नौकरशाही बयान और सिद्धांत मानते हैं और नहीं जानते कि उनका दैनिक जीवन में कैसे अभ्यास किया जाए या उन्हें कैसे लागू किया जाए। वे लगातार यह विचार फैलाते हैं कि सिर्फ उच्च शैक्षिक योग्यता वाले लोगों में ही अच्छी काबिलियत होती है, वे ही सत्य समझ सकते हैं और दूसरों की अगुआई कर सकते हैं। चूँकि उनके पास उच्च शैक्षिक योग्यता, कुछ ज्ञान और सामाजिक रुतबा होता है, इसलिए वे यह सोचते हुए कि परमेश्वर का घर समाज की तरह ही काम करता है, अपने ज्ञान और उच्च शैक्षिक योग्यता का उपयोग परमेश्वर के घर में अंतिम निर्णय लेने के लिए पूँजी के रूप में करते हैं। वे परमेश्वर के घर में अगुआओं को चुनने के सिद्धांतों को लोगों को देखने और चीजों से निपटने के अपने तरीकों और सामाजिक हैसियत और रुतबे पर अपने नजरियों, परिप्रेक्ष्यों और दृष्टिकोणों से बदलना चाहते हैं। क्या यह विवेक की कमी नहीं है? (हाँ, है।) विवेक की कमी का वर्णन करने का दूसरा तरीका क्या है? (बेशर्म होना।) सीधे शब्दों में कहें तो यह बेशर्मी है; इसे कहने का दूसरा तरीका यह है कि ऐसे व्यक्ति में बहुत कम तार्किकता होती है। देखो, हालाँकि उन्होंने तथाकथित उच्च शिक्षा प्राप्त की होती है और कई किताबें पढ़ी होती हैं, लेकिन उनमें से किसी भी किताब या किसी भी अध्यापक या शिक्षक ने उन्हें कभी नहीं सिखाया कि विवेक प्राप्त करने के लिए कैसे कार्य करना है। किताबों से बहुत-सी चीजें सीखने के बाद उन्हें लगता है कि उन्होंने पूँजी प्राप्त कर ली है और वे साधारण लोगों से श्रेष्ठ हैं। हालाँकि उनकी खूबी कोई नकारात्मक चीज नहीं है और वह एक जन्मजात स्थिति है, लेकिन यह खूबी आसानी से एक निश्चित परिणाम की ओर ले जा सकती है—यह उन्हें अहंकारी और दंभी बना देती है, उनका विवेक खो जाता है और वे ढिठाई से निर्लज्ज और बेशर्म बन जाते हैं। कई किताबें पढ़ने और बहुत सारा ज्ञान प्राप्त करने के बावजूद वे “शर्म” शब्द का अर्थ नहीं समझते। इसलिए कुछ शैक्षिक योग्यताएँ प्राप्त करने के बाद वे इसे हर जगह दिखावा करने के लिए पूँजी के रूप में इस्तेमाल करते हैं और इसका उपयोग परमेश्वर के घर में रुतबा प्राप्त करने और निर्णायक बात कहने के लिए करना चाहते हैं। वे सोचते हैं, “मेरे पास उच्च शैक्षिक योग्यताएँ हैं और मैं चीजें जल्दी सीख लेता हूँ, जिसका अर्थ है कि मुझमें अच्छी काबिलियत है। इतना ही नहीं, मैं बहुत ज्ञानी हूँ, मैंने बहुत दुनिया देखी है और मेरी बुद्धि तेज है, इसलिए मैं दूसरों की अगुआई करने के योग्य हूँ।” निहितार्थ यह होता है कि उनका ज्ञान और खूबी ही सत्य हैं। ये सब विवेक की कमी की अभिव्यक्तियाँ हैं। क्या ऐसे व्यक्ति में, जिसमें विवेक की कमी हो, ईमानदारी होती है? क्या उसमें गरिमा होती है? (नहीं।) ईमानदारी और गरिमा का अभाव—यह अच्छी मानवता की अभिव्यक्ति है या घृणित, नीच मानवता की? (यह घृणित मानवता की अभिव्यक्ति है।) ऐसे लोगों में अच्छी मानवता नहीं होती। वे अपनी शैक्षिक योग्यताओं, सामाजिक रुतबे, व्यक्तिगत मूल्य और हैसियत को सबसे ज्यादा सँजोते हैं। इन्हें अपनी पूँजी मानकर वे बहुत ही अहंकारी और दंभी हो जाते हैं और अपनी चलाना चाहते हैं। यह घृणित मानवता की अभिव्यक्ति है। इस मुद्दे में दो पहलू शामिल हैं : एक उनकी मानवता से संबंधित है और दूसरा उनके भ्रष्ट स्वभाव से। मुद्दों पर उनका परिप्रेक्ष्य और मुद्दे सँभालने में उनका रवैया और दृष्टिकोण उनकी मानवता से संबंधित होते हैं। ऐसी मानवता उन्हें विशिष्ट क्रियाकलाप, अभिव्यक्तियाँ और प्रकाशन विकसित करने की ओर ले जाती है, जो एक भ्रष्ट स्वभाव की अभिव्यक्तियाँ हैं।

कुछ लोग स्वाभाविक रूप से बातूनी नहीं होते; छोटी उम्र से ही वे ज्यादा बोलना पसंद नहीं करते। दूसरों के साथ मिलते-जुलते समय वे सरल, कम समृद्ध भाषा में बात करते हैं और जब उनके साथ कई चीजें होती हैं तो उनके पास ज्यादा विचार नहीं होते, न ही उनके पास उन्हें व्यक्त करने के लिए ज्यादा शब्द होते हैं। अगर वे खुद को व्यक्त करते भी हैं तो यह बहुत सरल होता है। यह किस तरह की समस्या है? (यह उनके व्यक्तित्व से जुड़ी समस्या है।) यह उनके व्यक्तित्व की समस्या है, जो उनकी जन्मजात स्थितियों का हिस्सा है। उनका व्यक्तित्व प्राकृतिक रूप से अल्पभाषी होता है। वे सरल भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उनके विचार बहुत जटिल नहीं होते और दूसरों के साथ मिलते-जुलते समय वे बोलने के प्रति अनिच्छुक होते हैं। जब सभाओं के दौरान सत्य पर संगति की जाती है तो वे सिर्फ दूसरों को बोलते हुए सुनते हैं और अगर वे दूसरों के बोलने के बाद एक सरल प्रतिक्रिया दे पाएँ तो यही उनके लिए काफी अच्छा रहता है। अगर तुम उनसे पूछो, “इस बारे में तुम्हारी क्या समझ है?” तो वे कहेंगे, “मेरी समझ तुम्हारी समझ जैसी ही है।” अगर तुम उनसे विशिष्ट होने के लिए कहो तो वे बोलेंगे, “मैं भी तुम्हारी तरह ही सोचता हूँ,” और फिर उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता। यही उनका व्यक्तित्व होता है; अगर तुम उनसे और ज्यादा बोलने के लिए कहो तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता। यह उनकी जन्मजात स्थिति का हिस्सा है। एक और तरह के व्यक्ति होते हैं, जिनके बारे में हालाँकि ऐसा प्रतीत होता है कि उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ नहीं है और अक्सर वे बाहर से अल्पभाषी रहते हैं, फिर भी निजी तौर पर वे गपशप के बारे में पूछना पसंद करते हैं और इस तरह की चीजें कहते हैं : “फलाँ-फलाँ भाई या बहन कौन-से पास्टोरल क्षेत्र से है? मैंने सुना है कि वह आठ वर्षों से ईश्वर में विश्वास कर रहा है—क्या वह कभी अगुआ रहा है? उसकी उम्र कितनी है? क्या यह सच है कि उसका तलाक हो गया है और उसका एक बच्चा है?” यह किस तरह की अभिव्यक्ति है? ऊपर से वे ज्यादा बात नहीं करते और सार्वजनिक स्थलों पर बोलना पसंद नहीं करते। उनकी भाषा बहुत समृद्ध नहीं होती और दूसरों के साथ सामान्य रूप से संवाद करने के लिए उनके पास शब्दों की कमी रहती है। लेकिन अन्य मामलों में उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ होता है और वे हमेशा दूसरों के बारे में पूछताछ करना पसंद करते हैं और इस तरह की चीजें कहते हैं : “क्या उस व्यक्ति ने दोहरी पलकों की सर्जरी करवाई है? उसकी त्वचा बहुत गोरी है—क्या वह अक्सर ब्यूटी सैलून जाती है?” या “मैं देखता हूँ कि फलाँ व्यक्ति हमेशा लेटेस्ट कंप्यूटर इस्तेमाल करता है और उसके तमाम कपड़े नामी ब्रांड्स के और काफी महँगे होते हैं। क्या उसका परिवार संपन्न है? उसका परिवार किस तरह का व्यवसाय करता है? क्या उसके पिता एक अधिकारी हैं?” इन अभिव्यक्तियों में क्या समस्याएँ शामिल हैं? (इनमें उनकी मानवता से संबंधित समस्याएँ शामिल हैं।) गपशप के बारे में पूछना पसंद करना, तुच्छ व्यक्तिगत मामलों के बारे में जानकारी एकत्र करना और अन्य लोगों के मामलों के बारे में बातचीत करने का आनंद लेना—ये व्यक्ति की मानवता से संबंधित अभिव्यक्तियाँ हैं। क्या ये अभिव्यक्तियाँ अच्छी हैं? (नहीं।) ये किस तरह से अच्छी नहीं हैं? इनमें मानवता की कौन-सी समस्याएँ हैं? इन्होंने किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया या पीड़ा नहीं दी, न ही इन्होंने दूसरों के हितों को ठेस पहुँचाई, फिर इन अभिव्यक्तियों को बुरा क्यों माना जाता है? (वे हमेशा दूसरों के मामलों के बारे में जानना चाहते हैं, लगातार दूसरों की पीठ पीछे उनके कामों में ताक-झाँक करते रहते हैं। उनकी मानवता के विवेक में समस्या होती है।) यह उनकी मानवता के विवेक से संबंधित है। अगर वे स्पष्ट रूप से और सीधे पूछें, उदाहरण के लिए, “भाई फलाँ-फलाँ, तुम्हारी उम्र कितनी है?” तो क्या यह मानवता की सामान्य अभिव्यक्ति होगी? (हाँ।) क्या इस तरह से पूछना खुला और ईमानदारी से भरा नहीं है? क्या यह उचित नहीं है? (हाँ, है।) तो कुछ लोग संबंधित लोगों से सीधे सवाल क्यों नहीं पूछते या सीधे कुछ क्यों नहीं कहते? वे दूसरों की पीठ पीछे संदिग्ध चालें क्यों चलते हैं? अगर किसी विषय पर व्यक्तिगत रूप से पूछा जा सकता है या चर्चा की जा सकती है तो उसे खुले तौर पर सामने लाया जाना चाहिए। दूसरों की पीठ पीछे रहस्य क्यों फुसफुसाए जाएँ? क्या इसमें आचरण करने और चीजों से निपटने का एक निश्चित रवैया और तरीका शामिल नहीं है? क्या यह रवैया और तरीका अच्छा है? (नहीं।) इस रवैये और तरीके को अच्छा क्यों नहीं माना जाता? क्या ये लोग जो गुप्त रूप से चीजों के बारे में पूछताछ करना पसंद करते हैं, दूसरों की निजता की खोजबीन करने और लोगों की पीठ पीछे उनकी पड़ताल करने में आनंद लेते हैं? (हाँ।) वे लोगों की पीठ पीछे उनकी पड़ताल करना पसंद क्यों करते है? अगर उनके पास सवाल हैं तो वे सीधे क्यों नहीं पूछते? क्या आमने-सामने पूछने में कोई कठिनाई है? उन्हें लगता है कि सीधे पूछना आसान या संभव नहीं है, इसलिए वे दूसरों की पीठ पीछे पूछताछ करते हैं। क्या उनके इस तरह से व्यवहार करने का यही कारण नहीं है? (हाँ।) असल में कुछ चीजें सीधे पूछी जा सकती हैं, जैसे किसी व्यक्ति से ऐसे सवाल पूछना : “तुम कितने सालों से ईश्वर में विश्वास कर रहे हो? क्या तुमने कॉलेज में पढ़ाई की है? तुम्हारी शिक्षा का स्तर क्या है? तुम्हारी उम्र क्या है?” ये तमाम सवाल आमने-सामने पूछे जा सकते हैं। अगर कुछ लोग तुम्हें बताने के लिए तैयार न हों तो मत पूछो और उनकी पीठ पीछे पूछताछ मत करो। अगर तुम्हें लगता है कि वे तुम्हारे साथ कुछ चीजें साझा करने के लिए तैयार होंगे या अगर तुम दोनों एक-दूसरे को जानते हो और वे तुम पर इतना भरोसा करते हैं कि तुमसे बात कर सकते हैं तो तुम लोग उनसे सीधे पूछ सकते हो। उनकी पीठ पीछे पूछताछ करने के लिए इधर-उधर भटकने पर जोर क्यों दिया जाए? क्या यह वाकई जरूरी है? क्या यह काफी नीचतापूर्ण नहीं लगता? ये लोग सीधे पूछने की हिम्मत इसलिए नहीं करते, क्योंकि वे डरते हैं कि सामने वाला उन्हें नहीं बताएगा। लेकिन वे इन चीजों के बारे में दृढ़तापूर्वक जानना और पता लगाना चाहते हैं। अगर उन्हें पता नहीं लगता तो वे बेचैन महसूस करेंगे, लेकिन जब उन्हें जानकारी मिल जाती है तो वे अंदर से सहज महसूस करते हैं, मानो उन्हें कोई अनमोल खजाना मिल गया हो। वे किस तरह के लोग हैं? दूसरों के निजी मामलों या व्यक्तिगत जानकारी के बारे में पूछताछ करने और उसे समझने में आनंद लेना—ऐसे लोग गपशप करने और दूसरों की आलोचना करने में प्रवृत्त होते हैं, है न? (हाँ।) अगर तुम्हें लगता है कि दूसरा व्यक्ति तुम्हारे सवालों का जवाब देने के लिए तैयार होगा तो तुम उससे सीधे पूछ सकते हो और इन चीजों के बारे में पता लगा सकते हो। अगर दूसरे व्यक्ति को लगता है कि तुम्हारे कुछ सवाल अतिरेकी हैं और तुम्हारे पूछने की सीमा से परे हैं और वे तुम्हें जवाब देने से इनकार करते हैं तो कोई बात नहीं। अगर वे तुम्हें जवाब नहीं देना चाहते या नहीं चाहते कि तुम कुछ चीजें जानो तो उनकी पीठ पीछे भी पूछताछ मत करो। अगर तुम किसी अन्य व्यक्ति की जानकारी या उसके निजी मामले जानने पर जोर देते हो तो एक ओर वह तुम्हें संदेह की दृष्टि से देखना शुरू कर देगा : “तुम ये चीजें क्यों जानना चाहते हो? तुम मेरी पीठ पीछे मेरे बारे में जानने की कोशिश क्यों कर रहे हो? क्या तुम मुझे नियंत्रित करना, सताना या मेरे साथ विश्वासघात करना चाहते हो?” यह एक पहलू है। दूसरी ओर तुम्हें दूसरों के बारे में जानने की जरूरत क्या है? उनके बारे में जानने का तुम्हें क्या अधिकार है? क्या तुम हर किसी के बारे में जानकारी इकट्ठी करना चाहते हो? तुम्हें हर चीज के बारे में जानना है—क्या तुम जानकारी इकट्ठी करने में विशेषज्ञ हो? क्या यह तुम्हारा काम है? परमेश्वर के घर ने किसी को ऐसा काम नहीं सौंपा है। अगर तुम लगातार दूसरों के निजी मामलों के बारे में पूछताछ करने की कोशिश करते हो, उन चीजों के बारे में पूछताछ करते हो जिन्हें वे नहीं चाहते कि तुम जानो, तो इससे वे तुम्हें बहुत चिढ़ पैदा करने वाला पाते हैं। जिस किसी को दूसरे लोग चिढ़ पैदा करने वाला पाते हैं, उसकी मानवता कैसी होती है? कम से कम यह व्यक्ति बेशर्म होता है। गैर-विश्वासी ऐसे व्यक्ति को क्या कहते हैं? ढीठ बदमाश। उनकी मानवता नीच होती है, उनमें गरिमा नहीं होती और वे अनुचित आचरण करते हुए हर चीज के बारे में पूछताछ करना चाहते हैं। क्या वे ऐसे ही नहीं होते? (हाँ।) ऐसे व्यक्ति की मानवता अच्छी होती है या बुरी? (उसकी मानवता बुरी होती है।) उनकी मानवता, कम से कम, अच्छी नहीं होती। यह अच्छी मानवता न होने की श्रेणी के अंतर्गत एक अभिव्यक्ति है—अनुचित तरीके से व्यवहार करना और हमेशा संदिग्ध चालें चलना। ऊपर से वे तुम्हारे प्रति विनम्र, सम्मानप्रद और शालीन लगते हैं, अपने आचरण में शिष्ट और उचित प्रतीत होते हैं। लेकिन तुम्हारी पीठ पीछे वे संदिग्ध चालें चलते हैं, तुम्हारी उम्र, पारिवारिक पृष्ठभूमि और तुम्हारे अन्य पहलुओं के बारे में खुलकर चर्चा करने या तुमसे सीधे पूछने के बजाय़ पूछताछ करते हैं। दूसरों के साथ मिलते-जुलते समय या बातचीत करते समय वे स्पष्टवादी या सीधे नहीं होते; इसके बजाय वे हमेशा लोगों की पीठ पीछे संदिग्ध चालें चलते हैं, ऐसी चीजें करते हैं जो जो उजाले में आने लायक नहीं हैं। वे लगातार दूसरों के निजी मामलों पर और इस बात पर विचार करते रहते हैं कि वे क्या सोच रहे हैं, वे हमेशा ऐसे मामलों में तल्लीन रहते हैं। ऐसे लोगों की मानवता अच्छी नहीं होती और किसी भी समूह में ऐसे लोग सभी के द्वारा नापसंद किए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि लोग नहीं चाहते कि तुम निजी चीजें जानो या वे तुमसे कुछ छिपा रहे होते हैं; बात यह है कि तुम्हारी मानवता और आचरण करने और चीजों से निपटने का तुम्हारा तरीका दूसरों को तुम्हें नापसंद करने के लिए बाध्य करता है। लोगों के तुम्हें नापसंद करने का कारण यह है कि आचरण करने और चीजों से निपटने का तुम्हारा तरीका कुछ हद तक घटिया होता है; तुम जो तरकीबें इस्तेमाल करते हो वे उचित और निष्कपट होने के बजाय निम्न और घटिया होती हैं। कुछ लोगों को दूसरों के साथ आमने-सामने बातचीत करने में कोई समस्या नहीं होती, लेकिन उनकी पीठ पीछे वे हमेशा रहस्यमय ढंग से काम करते हैं। जब दूसरे लोग चले जाते हैं तो वे जल्दी से उनके कंप्यूटर खोलकर यह देखते हैं कि वे किससे बात कर रहे थे, उन्होंने किस बारे में बात की, उन्होंने अपनी डायरी में क्या लिखा है और उनके पास कौन-सी अंतर्दृष्टियाँ हैं। कभी-कभी जब किसी व्यक्ति के कंप्यूटर में पासवर्ड लगा होता है तो वे यह कहकर उसे फुसलाने की कोशिश करते हैं, “क्या तुमने अपना कंप्यूटर पासवर्ड बदल लिया है? मैंने अभी-अभी अपना पासवर्ड बदलकर 1234567 किया है, शायद तुम्हें भी अपना पासवर्ड बदल लेना चाहिए।” ऐसा कहने का क्या उद्देश्य क्या है? “मैं तुम्हें अपना पासवर्ड बता रहा हूँ—तुम्हें भी अपना पासवर्ड मुझे बताना चाहिए, ताकि मुझे तुम्हारा कंप्यूटर जाँचने का मौका मिल सके।” यहाँ तक कि कुछ लोग दूसरों के बैग और सामान की तलाशी लेने का दुस्साहस भी करते हैं, जब वे आसपास नहीं होते। उदाहरण के लिए, अगर वे किसी को नए हेडफोन पहने हुए देखते हैं और जानना चाहते हैं कि उसकी ध्वनि की गुणवत्ता कैसी है, तो वे उस व्यक्ति के आसपास न होने पर वे हेडफोन लेकर सुनने का दुस्साहस कर सकते हैं। अगर तुम खुले तौर पर उस व्यक्ति के हेडफोन उधार माँगते हो और वह सहमत हो जाता है तो तुम उसे साधिकार जाँच सकते हो। अगर वह सहमत न हो तो तुम्हें उसे नहीं जाँचना नहीं चाहिए। क्या यह इसे सँभालने का उचित तरीका नहीं है? चाहे दूसरे लोग सहमत हों या नहीं, तुम्हें चीजें खुलकर उनके सामने सँभालनी चाहिए, उनकी पीठ पीछे नहीं। इस तरह का व्यक्ति यह कर ही नहीं कर सकता—वह हमेशा संदिग्ध चालें ही चलता है। किस हद तक? जैसे ही तुम वहाँ से जाते हो, वह तुरंत तुम्हारी चीजें खँगालता है, आध्यात्मिक भक्ति नोट्स में तुमने जो लिखा होता है उसे देखता है और इस डर से कि कहीं कुछ छूट न जाए, जल्दी से उसे कॉपी कर लेता है। ऊपर से वह सत्य के लिए लालायित दिखता है, लेकिन पर्दे के पीछे उसकी हरकतें घटिया होती हैं। जब वह तुम्हें नया कंप्यूटर खरीदते देखता है तो उसे जलन होती है। बाहरी तौर पर वह कहता है कि नया कंप्यूटर बढ़िया और तेज है, लेकिन अंदरूनी तौर पर वह सोचता है, “तेज? काश यह किसी दिन खराब हो जाए!” एक दिन तुम जिक्र करते हो कि नया कंप्यूटर ठीक से काम नहीं कर रहा और धीमा है, और वे चोरी-छिपे प्रफुल्लित महसूस करते हैं : “तुम्हें नया कंप्यूटर इस्तेमाल करने की सही सजा मिली है! मैंने अभी तक इसका इस्तेमाल नहीं किया है, इसलिए बेहतर है कि तुम भी इसका इस्तेमाल न कर पाओ!” उनका दिमाग नीच, घटिया विचारों से भरा रहता है जो उजाले में आने लायक नहीं हैं। कुछ लोग देखते हैं कि किसी व्यक्ति के पास अच्छा दिखने वाला कपड़ा है और वे भी उसे पहनकर देखना चाहते हैं। लेकिन सीधे पूछने के बजाय उन्हें बस उस व्यक्ति के आसपास न होने के अवसर का इंतजार करना होता है ताकि वे उसे चोरी-छिपे पहन सकें। वे खुद को आईने में देखते हैं, सोचते हैं कि वे बहुत अच्छे लग रहे हैं, लेकिन जैसे ही वे उस व्यक्ति के लौटने की पदचाप सुनते हैं, वैसे ही वे जल्दी से उसे उतार देते हैं और वापस उसकी जगह पर रख देते हैं। हालाँकि शायद ऐसे व्यक्ति की संदिग्ध चालबाजियों और चीजें सँभालने के उसके तरीकों में भ्रष्ट स्वभाव शामिल न हो या वे भ्रष्ट स्वभाव जितने गंभीर न हों, लेकिन आचरण करने और चीजों से निपटने के प्रति उसका रवैया और लोगों के साथ उसका व्यवहार काफी अरुचिकर और घृणास्पद होता है और यह किसी न किसी स्तर पर दूसरों के सामान्य जीवन को प्रभावित करता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति की मानवता के साथ गंभीर समस्याएँ होती हैं। कितनी गंभीर? वह आचरण करने में अनुचित होता हैं, पर्दे के पीछे कई संदिग्ध चालें चलता है और समस्याओं से निपटने का उसका तरीका घटिया और गंदा होता है। वह हमेशा छिपा रहता है; वह कभी खुलेआम कुछ नहीं करता और हमेशा लोगों की पीठ पीछे काम करता है। जब दूसरे लोग आसपास नहीं होते, ध्यान नहीं दे रहे होते या जब कोई नहीं देख सकता या पता नहीं लगा सकता कि वह क्या कर रहा है, तब वह गुप्त रूप से काम करता है। ऐसे व्यक्ति की मानवता अच्छी नहीं होती। वह हमेशा अँधेरे कोनों में रहता है, अँधेरे के वातावरण में लिपटा रहता है, प्रकाश या अन्य लोगों का सामना करने में असमर्थ होता है। उसकी मानवता नीच और घटिया होती है। क्या उसकी नीच मानवता की ये अभिव्यक्तियाँ स्वतः प्रवृत्त होती हैं? (नहीं।) वह दूसरों के सामने काम करने में शर्मिंदगी महसूस करता है; वह उन्हें उनकी पीठ पीछे करना पसंद करता है और दूसरों की पीठ पीछे काम करते समय वह किसी तरह का संयम नहीं दिखाता। क्या इसका उसके व्यक्तित्व से कोई लेना-देना है? (नहीं।) अगर तुम कहते हो कि ये संदिग्ध चालें या जो वह अपनी मानवता में प्रकट करता और जीता है वह भ्रष्ट स्वभाव के एक निश्चित पहलू से संबंधित होता है, तो यह सही नहीं होगा। लेकिन उसकी संदिग्ध चालें निरंतर चलती रहती हैं। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि उसने कोई बड़ी गलती नहीं की है और जब कलीसिया उसे कोई कर्तव्य सौंपती है तो ज्यादातर समय वह अपना दिल लगाकर काम करता है और आज्ञाकारी रहता है; बाहर से देखने में वह काफी उचित भी लगता है। लेकिन पर्दे के पीछे एक अलग ही कहानी रहती है—चूहे की तरह, जैसे ही कोई नहीं देख रहा होता, वह संदिग्ध चालें चलना शुरू कर देता है और चीजों को अंजाम देने लगता है। क्या ये लोग चूहों जैसे नहीं होते? इसके बारे में सोचो—अगर उनकी मानवता ऐसी है और दूसरों से मिलने-जुलने और चीजों से निपटने का उनका तरीका ऐसा है, अगर उनकी मानवता का नैतिक चरित्र ऐसा है और उनका मानवता सार ऐसा है, तो वे परमेश्वर और सत्य के साथ कैसे पेश आते हैं? क्या वे परमेश्वर और सत्य के साथ वैसे ही पेश आते हैं जैसे वे लोगों के साथ पेश आते हैं? (हाँ।) वे पर्दे के पीछे संदिग्ध चालें भी चलते हैं, है न? वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की निगरानी से बचने की हर संभव कोशिश करते हैं, उनके सामने एक तरह से पेश आते हैं और उनकी पीठ पीछे दूसरी तरह से। वे परमेश्वर की जाँच-पड़ताल नहीं स्वीकारते, न ही वे अपने दिल की गहराइयों में सत्य स्वीकारते हैं। चाहे परमेश्वर के वचन कुछ भी कहें, वे उन्हें अपने ही तरीके से लेते हैं, कुछ संदिग्ध चालें चलते हैं और दिखावे के लिए कुछ चीजें करते हैं, ताकि बाहरी तौर पर कोई उनकी किसी समस्या या दुराचार को न देख सके। बाहरी तौर पर वे कुछ भी गलत करते प्रतीत नहीं होते और सत्य का अभ्यास करते दिखते हैं, लेकिन पर्दे के पीछे वे पहले ही अपनी संदिग्ध चालें चल चुके होते हैं और गलत काम पहले ही गुप्त रूप से बिना किसी को पता चले किए जा चुके होते हैं। वे परमेश्वर की जाँच-पड़ताल पर विश्वास नहीं करते या उसे स्वीकार नहीं करते और इसलिए वे सत्य नहीं स्वीकारते। इसमें क्या शामिल है? इसमें भ्रष्ट स्वभाव शामिल हैं। जब वे परमेश्वर, सत्य और अपने कर्तव्य के साथ ऐसी मानवता से और दूसरों के साथ बातचीत करने और चीजों से निपटने के इस तरीके से पेश आते हैं तो अपनी मानवता की जो विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ वे प्रकट करते हैं, उनमें भ्रष्ट स्वभाव शामिल होते हैं। इन भ्रष्ट स्वभावों में क्या शामिल होता है? कम से कम, उनमें धोखेबाज़ी शामिल होती है। अगर उनके क्रियाकलाप और ज्यादा गुप्त और कपटी होते हैं तो इसमें क्या शामिल होता है? (यह दुष्टता की ओर बढ़ जाता है।) इसमें उनके भ्रष्ट स्वभावों के भीतर की धोखेबाज़ी और दुष्टता शामिल होती है। इसके अलावा, अपने दिलों की गहराई में वे हमेशा सत्य और परमेश्वर की जाँच-पड़ताल के बारे में संदेह रखते हैं। यह उनमें गहराई से समाया होता है। वे सोचते हैं, “कोई नहीं जानता कि मैं पर्दे के पीछे क्या करता हूँ। मैंने परमेश्वर को कहीं नहीं देखा है, इसलिए निश्चित रूप से परमेश्वर भी नहीं जानता—सिर्फ मैं जानता हूँ।” क्या इसमें भी भ्रष्ट स्वभाव शामिल नहीं है? भ्रष्ट स्वभावों के किस पहलू से इसका संबंध है? (क्या यह हठधर्मिता है?) उनके भीतर हठधर्मी स्वभाव अवश्य होता है। तो क्या इन विचारों का सार सत्य से विमुखता है? (हाँ।) सत्य के प्रति उनका रवैया प्रतिरोध और विरोध का होता है। हठधर्मी होने के अलावा वे सत्य से विशेष रूप से विमुख होते हैं, जो इसे एक गंभीर मुद्दा बनाता है। जब इसमें भ्रष्ट स्वभाव शामिल हो जाता है तो यह सिर्फ खराब मानवता से ज्यादा गंभीर हो जाता है। इसमें परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह, परमेश्वर का विरोध और सत्य के विरुद्ध जाने का सार शामिल होता है। इसमें परमेश्वर और सत्य के प्रति व्यक्ति का रवैया शामिल होता है। जब इसमें भ्रष्ट स्वभाव शामिल हो जाता है तो इसमें सत्य सिद्धांत और सत्य से भ्रष्ट स्वभाव हल करने की जरूरत शामिल होती है।

कुछ लोग स्वाभाविक रूप से लंबे होते हैं और उनका रूप आकर्षक होता है, इतना ही नहीं, उनके सुडौल, साफ-सुथरे, परिष्कृत नैन-नक्श होते हैं जो दूसरों को दिलकश लगते हैं। वे जो पहनते हैं, लोग उसकी यह कहते हुए प्रशंसा करते हैं, “वे वाकई किसी पत्रिका के चलते-फिरते विज्ञापन जैसे हैं—कितने सुंदर, कितने खूबसूरत, कितने शानदार!” यह उनकी जन्मजात स्थितियों के अंतर्गत आता है या उनकी मानवता या उनके भ्रष्ट स्वभावों के अंतर्गत? (यह उनका प्राकृतिक रूप होता है।) वे अच्छे चेहरे-मोहरे के साथ पैदा हुए थे। चूँकि वे प्राकृतिक रूप से आकर्षक होते हैं और उनके नैन-नक्श अच्छे होते हैं, इसलिए छोटी उम्र से ही उनके बड़े-बुजुर्ग उनकी प्रशंसा करते रहे, उनके सहपाठी उनसे ईर्ष्या करते रहे और उनके माता-पिता उन पर विशेष रूप से प्यार लुटाते रहे। हर रोज उनके माता-पिता उन्हें सजाकर रखते और उनके तीन या पाँच साल के होने से पहले एक दिन उन्हें छोटी लड़की के कपड़े पहनाए जाते और अगले दिन छोटे लड़के के। संक्षेप में, उनसे एक प्यारे-से छोटे-से खिलौने की तरह दुलार किया जाता था। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उन्हें अच्छा दिखने का विशेष शौक हो जाता है। आधुनिक, विशेषाधिकार प्राप्त जीवन-परिवेश में पले-बढ़े वे अच्छे कपड़े पहनने की आदत पाल लेते हैं। विशेष रूप से विविध तरह के फैशन के बारे में अंतर्दृष्टि हासिल करने के बाद वे रंगों, पोशाकों और शैलियों का मिलान करने का आनंद लेना शुरू कर देते हैं; वे विशेष रूप से रुचिकर ढंग से कपड़े पहनते हैं, एक परिष्कृत चाल-ढाल दिखाते हैं। यहाँ तक कि एक साधारण टी-शर्ट और जींस भी उन पर अलग दिखते हैं और सामंजस्यपूर्ण रंगों के जूतों के साथ इनका मेल बिठाने पर उनकी शैली और भी प्रभावशाली हो जाती है—वे एकदम शानदार और अविश्वसनीय रूप से सुंदर होते हैं। उन्हें देखना आँखों के लिए एक सुखद अनुभव होता है। जब भी वे सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर दिखाई देते हैं तो वे निश्चित रूप से बहुत लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं। चूँकि वे अच्छे नैन-नक्श के साथ पैदा हुए थे और उनमें यह जन्मजात स्थिति है और वे अच्छे कपड़े पहनना जानते हैं, चाहे जैसे भी कपड़े पहनें, एक विशेष रूप से परिष्कृत चाल-ढाल दिखाते हैं, इसलिए समान और विपरीत दोनों लिंगों के व्यक्ति उनके साथ बातचीत करने और जुड़ने का विशेष रूप से आनंद लेते हैं। लोग उनके साथ बैठकर बातचीत और गपशप करने और उनके साथ निकटता से मिलने-जुलने के लिए उत्सुक रहते हैं ताकि उनकी सुंदरता उन्हें आनंदित कर सके। क्या यह उनकी गलती है? (नहीं।) उनकी अनुकूल जन्मजात स्थिति के कारण लोग हमेशा उनके साथ हो सकने वाली किन्हीं समस्याओं, दोषों या कमियों के प्रति सहनशील रहते हैं। इस तरह, वे जहाँ भी जाते हैं वहाँ उनका विशेष रूप से स्वागत किया जाता है और वे लोकप्रिय होते हैं। यहाँ तक कि अगर वे कुछ अप्रिय कहें तो भी दूसरों को इसे सुनने में आनंद आता है। जब उनका गुस्सा भड़कता है या वे कोई रवैया अपनाते हैं तो लोग बुरा नहीं मानते या नाराज नहीं होते—वे उसे उनके द्वारा दिया गया इनाम तक समझते हैं। जैसे-जैसे ये अनुभव इकट्ठे होते हैं, उनकी जन्मजात स्थिति उन्हें श्रेष्ठता का एहसास कराती है। वे सोचने लगते हैं, “सुंदर दिखना, एक परिष्कृत चाल-ढाल होना और अच्छे कपड़े पहनना मुझे जहाँ भी जाता हूँ लोकप्रिय बनाता है—यह शानदार है! यह समाज, यह मानवजाति वास्तव में इसे महत्व देती है। ऐसा लगता है कि मेरे माता-पिता ने मुझे जो यह जन्मजात स्थिति दी है, यह मेरी पूँजी है। नौकरी पाना आसान है और परीक्षा के दौरान अगर मैं किसी के पेपर से नकल करना चाहूँ तो मुझे बस उसे एक नजर देखने की जरूरत है और वह मुझे नक़ल करने देगा।” विपरीत लिंग के कई लोग उनका पीछा करते हैं और समान लिंग के लोगों में भी कई ऐसे होते हैं जो उनके साथ अच्छी तरह से पेश आते हैं और लगातार उनकी सुंदरता और अच्छे नैन-नक्श की प्रशंसा करते हैं। समय के साथ वे इस लाभ का ज्यादा से ज्यादा आनंद लेने लगते हैं। यह लाभ उन्हें कई सुविधाएँ, कई फायदे और बहुत सारे तरजीही व्यवहार दिलवाता है, जिससे वे कई चीजों का आनंद ले पाते हैं। इसलिए ऐसे माहौल में वे अपने लिए कुछ खास जरूरतें पैदा कर लेते हैं। वे बिना मेकअप किए घर से बाहर नहीं निकलते और अगर उन्हें एक मुँहासा भी हो जाए तो वे उसे लोगों को दिखाने की हिम्मत नहीं करते। वे अपने खान-पान को लेकर सतर्क रहते हैं, मसालेदार भोजन और सोया सॉस से परहेज करते हैं और मन ही मन चिंतित होते हैं : “यह मुँहासा कब जाएगा? मैं इसे फोड़ नहीं सकता—मुझे डर है कि इससे निशान पड़ जाएगा। लेकिन अगर मैं इसे नहीं फोड़ता तो विपरीत लिंग के सदस्य जो कभी मेरी प्रशंसा करते थे, क्या इसे देखकर सोचेंगे नहीं कि मैं अब आकर्षक नहीं रहा, अब उनके सपनों का व्यक्ति नहीं रहा? क्या वे मेरे प्रति उदासीन होना शुरू कर देंगे? मुझे क्या करना चाहिए? मुझे लगता है कि मुझे बाहर जाने से पहले मुँहासा ठीक होने तक इंतजार करना होगा। मैं लोगों को मुझे इस हालत में देखने बिल्कुल नहीं दे सकता; इससे उनके दिमाग में मौजूद मेरी उत्तम छवि नष्ट हो जाएगी।” कुछ लोगों को अपने कपड़ों के रंग, फिटिंग और स्टाइल एकदम सही से मैच करने होते हैं। बाहर जाने से पहले उन्हें शीशे में खुद को हर कोण से देखना पड़ता है और कुछ तो यह सुनिश्चित करने के लिए सेल्फी भी लेते हैं कि वे धूप या कृत्रिम रोशनी में बिल्कुल सही दिखें, वे यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी त्वचा, रंग, हेयर-स्टाइल, कपड़े और चाल-ढाल जैसे पहलू आँखों को दिलकश लगें और दूसरों का अनुराग आकर्षित करें, उसके बाद ही वे बाहर जाने के लिए तैयार महसूस करते हैं। कर्तव्य शुरू करने के बाद भी वे यही जीवनशैली बनाए रखते हैं। अगर विशेष परिस्थितियों के कारण वे उस दिन नहाए न हों और विपरीत लिंग का कोई व्यक्ति उनके पास आता है तो वे तुरंत उससे दूर हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे नहाए नहीं हैं तो वे देखे जाने लायक नहीं हैं। चूँकि अपने रूप और चाल-ढाल को लेकर उनकी बहुत-सी अपेक्षाएँ होती हैं, इसलिए इससे उनका दैनिक जीवन प्रभावित होता है। अगर वे किसी ऐसी जगह जाते हैं जहाँ वे नहा नहीं सकते तो वे बहुत परेशान और पीड़ित महसूस करते हैं और ठीक से खा या सो नहीं पाते। वे सोचते हैं, “अगर मैं नहा नहीं पाया तो क्या करूँगा? मैं तीन दिन से ज्यादा बिना नहाए कभी नहीं रहा हूँ। अगर मुझसे बदबू आने लगी तो क्या लोग मुझे नीची निगाह से देखेंगे? क्या मेरी छवि उत्तम नहीं रहेगी? क्या मैं अब दूसरों के सपनों का व्यक्ति नहीं रहूँगा? मुझे क्या करना चाहिए?” अगर वे खुद को ऐसी जगह पाते हैं, जहाँ रहने की स्थितियाँ खराब हों और भोजन पर्याप्त पौष्टिक या संतुलित न हो तो वे चिंता करने लगते हैं : “क्या इससे मेरी त्वचा प्रभावित होगी? क्या मेरी त्वचा रूखी या बूढ़ी हो जाएगी? क्या मेरी त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ जाएँगी? मैं इस जगह पर नहीं रह सकता—मुझे यहाँ से चले जाना चाहिए!” उनकी जन्मजात स्थिति से उत्पन्न श्रेष्ठता का भाव उनके जीवन को विशेष रूप से जटिल बना देता है, जिससे वे विशेष रूप से थकाऊ और संयमित तरीके से जीने लगते हैं। वे अपने प्रति दूसरों की राय के बारे में बेहद चिंतित रहते हैं, खासकर इस बारे में कि दूसरे उनके पहनावे, चाल-ढाल और आचरण का कैसे आकलन करते हैं, इस बारे में बहुत चिंतित रहते हैं कि दूसरे उन्हें कैसे देखते हैं—इतना कि यह किस हद तक पहुँच जाता है? इस हद तक कि यह उनके सामान्य जीवन, कार्य और कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित करता है। उनके रूप-रंग से उत्पन्न श्रेष्ठता की भावना ने उन्हें बहुत सतही बना दिया होता है, अपने नैन-नक्श को लेकर और इस बात को लेकर वे बहुत चिंतित रहते हैं कि दूसरे उन्हें कैसे देखते हैं। यह किस तरह की समस्या है? क्या ये तमाम अभिव्यक्तियाँ दैनिक जीवन में मुद्दे सँभालने के लिए एक सही रवैया है? (नहीं।) क्या ये विकृत विचार हैं जो उन्होंने अपने दैनिक जीवन के दौरान विकसित कर लिए होते हैं? (हाँ।) तो ये अभिव्यक्तियाँ किससे संबंधित हैं? (ये उनकी मानवता से संबंधित हैं।) यह उनकी मानवता के किस पहलू से संबंधित है? वे जिस तरह से आचरण करते हैं, उसमें क्या समस्या है? क्या यह सतहीपन है? (हाँ।) सतहीपन उनकी मानवता के भीतर एक समस्या होती है। और क्या? घमंड, इस बात की चिंता कि दूसरे उन्हें कैसे देखते हैं, दूसरों की नजर में सर्वोत्तम व्यक्ति बनने की इच्छा और एक विशेष नजाकत, और कठिनाई सहन करने में असमर्थता। इसके अलावा स्वार्थ भी होता है। अपनी छवि बनाए रखने के लिए वे सभी से अपना इंतजार और सेवा करवाते हैं, जबकि वे थोड़ी-सी भी कठिनाई सहने से इनकार कर देते हैं। उनके प्राकृतिक रूप-रंग से उत्पन्न श्रेष्ठता का भाव उन्हें यह चाहने के लिए विवश करता है कि हर कोई उनके इर्द-गिर्द घूमे। उनके दैनिक जीवन में उनके ध्यान का केंद्र और जो लक्ष्य वे प्राप्त करना चाहते हैं वह है अपना बाहरी रूप-रंग बनाए रखना। उदाहरण के लिए, एक अवसर पर फोटो खींचते समय किसी व्यक्ति को पता चलता है कि जब वे मुस्कुराते हैं तो उनके दाँतों में सलाद के पत्ते का एक टुकड़ा फँसा दिखता है। उस क्षण से वे पत्तेदार सब्जियाँ खाना बंद कर देते हैं। यहाँ तक कि अगर यही एकमात्र विकल्प उपलब्ध हो और उनके पास इन्हें खाने के सिवा कोई विकल्प न हो तो भी वे खाने के तुरंत बाद कुल्ला कर लेते हैं और बाहर जाकर दूसरों से मिलने की हिम्मत करने से पहले शीशे में देखकर पूरी तरह से यह जाँच लेते हैं कि उनके दाँतों में कुछ फँसा हुआ तो नहीं है। क्या यह उनकी मानवता के भीतर कोई समस्या है? (हाँ।) दैनिक जीवन में ये सामान्य समस्याएँ मानवता के दायरे में आती हैं और भ्रष्ट स्वभाव के स्तर तक नहीं बढ़ी होतीं। जिन समस्याओं से वे निपटते हैं, वे सभी सिर्फ मानव-जीवन के पहलुओं से संबंधित होती हैं—अपने शारीरिक रूप-रंग और आंतरिक अपेक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करके वे अपनी सुंदरता और अपने प्रति दूसरों का उच्चस्तरीय ध्यान बनाए रखने की कोशिश करते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं—चाहे वह खाना हो, कपड़े पहनना हो या कठिनाई सहना और कीमत चुकाना हो—इन मुद्दों को सँभालने में उनके दृष्टिकोण और उनका रवैया पूरी तरह उनकी बाहरी छवि बनाए रखने की ओर उन्मुख होते हैं ताकि वे हमेशा आँखों को भाते रहें और यह सुनिश्चित हो कि दूसरों पर उनकी अच्छी छाप पड़े और वे उच्चस्तरीय ध्यान आकर्षित करें। क्या इसमें उनकी मानवता शामिल है? (हाँ।) इन तमाम अभिव्यक्तियों में उनकी मानवता शामिल होती है—ये दिखाती हैं कि उनकी मानवता अत्यधिक सतही है।

एक और तरह का व्यक्ति होता है जो विपरीत लिंग के सदस्यों के आसपास होने पर दिखावा करने का हर संभव प्रयास करता है, ज्यादा मोहक दिखने के लिए ज्यादा खास तरीके से कपड़े पहनने और मेकअप करने की कोशिश करता है। उदाहरण के लिए, जब वह उन भाई-बहनों के साथ होता है जिनसे वह विशेष रूप से परिचित होता है, तब उसका व्यवहार और रूप-रंग फिर भी सामान्य रहता है, लेकिन जैसे ही विपरीत लिंग का कोई हमउम्र व्यक्ति उसके सामने आता है, वैसे ही वह अंदर से उत्साहित हो जाता है और एक विशेष परिधान और रूप-रंग अपनाने के लिए बाध्य महसूस करता है। कुछ महिलाएँ अपने होंठों को ज्यादा चमकदार बनाने के लिए तुरंत लिपस्टिक लगाती हैं, अपनी भौंहें सँवारती हैं और अगर समय मिले तो थोड़ी लाली भी लगा लेती हैं। आम तौर पर वे अपने बालों की पोनीटेल बनाती हैं, लेकिन जब उन्हें विपरीत लिंग का कोई ऐसा व्यक्ति मिलता है जो उन्हें पसंद आता है या आकर्षक लगता है, तो वे अपने बाल नीचे कंधों तक आने देकर अपनी छवि सँवारती हैं। इस बीच, कुछ पुरुष अपने बाल ज्यादा चमकीले बनाते हैं, उन्हें कोरियाई, हांगकांग या पश्चिमी हेयरकट-स्टाइल दे देते हैं, अपनी दाढ़ी-मूँछ ट्रिम कर लेते हैं, चश्मा लगा लेते हैं, अच्छे कपड़े पहन लेते हैं और अगर परिस्थितियाँ अनुकूल हों तो कुछ इत्र छिड़क लेते हैं, यह सब वे विपरीत लिंग के व्यक्तियों को आकर्षित करने के लिए करते हैं। विपरीत लिंग के सदस्यों से बात करते समय दिखावा करने के लिए अक्सर वे कुछ आकर्षक शब्द बोलते हैं, जिसका उद्देश्य अपना सांस्कृतिक परिष्कार, सुरुचि, हाजिरजवाबी और हास्य-बोध प्रदर्शित करना होता है। इन तमाम क्रियाकलापों के पीछे उनका इरादा बहुत ही सुविचारित होता है—वे ऐसा सिर्फ विपरीत लिंग के व्यक्तियों को आकर्षित करने के लिए करते हैं। कुछ लोग जब विपरीत लिंग के अपने किसी पसंदीदा व्यक्ति के या विपरीत लिंग के किसी हमउम्र व्यक्ति के आसपास होते हैं, तो वे और भी ज्यादा जीवंत हो जाते हैं, और ज्यादा बात करते हैं और खुद को बेहतर ढंग से व्यक्त करते हैं, और उनकी आँखें ज्यादा सजीव हो उठती हैं और निस्तेज और चमकहीन नहीं रहतीं, और उनके चेहरे के भाव भी विशेष रूप से विविधतापूर्ण हो जाते हैं। यहाँ क्या हो रहा है? विपरीत लिंग के व्यक्तियों को देखकर वे विशेष रूप से प्रभावित और अप्राकृतिक क्यों दिखाई देते हैं? जब विपरीत लिंग के सदस्य पहली बार मिलते हैं तो वे आम तौर पर थोड़े शर्मीले होते हैं, लेकिन कुछ मुलाकातों के बाद वे ज्यादा परिचित हो जाते हैं और ज्यादा प्राकृतिक रूप से व्यवहार करते हैं। लेकिन कुछ लोग विपरीत लिंग के व्यक्तियों को देखकर विशेष रूप से जीवंत और उत्तेजित हो उठते हैं। यह किस तरह का मुद्दा है? (यह फुसलाने से संबंधित है, जो भ्रष्ट स्वभाव के स्तर तक बढ़ जाता है।) यह किस तरह का भ्रष्ट स्वभाव है? (यह दुष्टता है।) क्या उनकी मानवता के साथ कोई समस्या नहीं है? (हाँ, है।) सख्ती से कहें तो, ऐसे लोगों की मानवता के साथ यह एक समस्या है। यहाँ उनकी मानवता का कौन-सा पहलू समस्याग्रस्त है? यह विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ बातचीत की समस्या है। गैर-विश्वासी इसका कैसे वर्णन करते हैं? वे इसे “नजरिये का मुद्दा” कहते हैं, है न? (हाँ।) अगर इसमें भ्रष्ट स्वभाव शामिल है तो इसे दुष्टता के रूप में सारांशित किया जा सकता है; लेकिन ज्यादा सटीक रूप से कहें तो, यह व्यक्ति के विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ बातचीत के प्रति नजरिये का मुद्दा है, जो व्यक्ति की मानवता से संबंधित है। विपरीत लिंग के व्यक्तियों से सामना होने पर कुछ लोग विशेष रूप से जीवंत और विशेष रूप से सकारात्मक और अग्रसक्रिय हो जाते हैं। ये “विशेष” व्यवहार व्यक्ति की मानवता से संबंधित नजरिये का मुद्दा अभिव्यक्त करते हैं। यह नजरिया सामान्य है या असामान्य? (असामान्य।) तो फिर, क्या इसे दुष्ट कहा जा सकता है? क्या यह कहना उचित है कि यह दुष्ट है? क्या यह कहना ठीक है कि यह थोड़ा नीच है? (हाँ।) ऐसे लोग थोड़े नीच होते हैं। जहाँ कहीं भी विपरीत लिंग का कोई ऐसा व्यक्ति होता है जिसे वे पसंद करते हैं, वे उस व्यक्ति के समूह की ओर आकर्षित होते हैं, उसकी बगल में बैठने पर जोर देते हैं, शारीरिक संपर्क में संलग्न होते हैं और उसे वासना भरी नजरों से देखते हैं। यह उनके चरित्र के साथ समस्या दर्शाता है—वे उच्छृंखल, बदतमीज और नीच होते हैं। अगर कोई व्यक्ति छिछोरा है तो वह चाहे समान लिंग के व्यक्तियों की उपस्थिति में हो या विपरीत लिंग के व्यक्तियों की उपस्थिति में, उसकी अभिव्यक्तियाँ समान होनी चाहिए—वह बस अच्छा दिखना चाहता है और यह भी चाहता है कि दूसरे उसे पसंद करें, उससे ईर्ष्या करें और उसकी प्रशंसा करें। यह उसकी मानवता में छिछोरेपन की समस्या है। लेकिन अगर उसका इरादा विपरीत लिंग के व्यक्तियों को आकर्षित कर उनके साथ छेड़खानी करना है, तो यह विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ बातचीत के प्रति उसके नजरिये का मुद्दा बन जाता है। अगर कोई व्यक्ति अत्यधिक छिछोरा है, इतना कि उससे उसका सामान्य जीवन प्रभावित होता है, तो यह उसकी मानवता के एक पहलू में दोष या समस्या है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति विशेष रूप से विपरीत लिंग के सदस्यों को आकर्षित करने के लिए कपड़े पहनता है, सेक्सी, मोहक दिखने और लोगों का ध्यान आकर्षित करने का लक्ष्य रखता है, तो यह दुष्ट, नीच और खराब नजरिये का संकेत है। कुछ लोग, जितने ज्यादा लोग उपस्थित होते हैं उतने ही ज्यादा नीच हो जाते हैं, हमेशा विपरीत लिंग के लोगों से संपर्क बनाने और उनके सामने दिखावा करने की कोशिश करते हैं। जो भी गैर-विश्वासियों के बीच चलन में होता है, वे उसी तरह के कपड़े पहनेंगे। खास तौर पर समारोहों में भाग लेते समय या कैमरे पर दिखते समय, जितने ज्यादा विपरीत लिंग के लोग होते हैं उतने ही ज्यादा वे अच्छे-अच्छे कपड़े पहनना चाहते हैं। कुछ महिलाएँ कैमिसोल टॉप्स पहनती हैं, अपने बाल खुले रखती हैं, चटक लिपस्टिक और लाली लगाती हैं। कुछ तो अपनी नाक को भी आकार देती हैं, आई-शैडो लगाती हैं और हर तरह के गहने पहनती हैं। वे ऐसे कपड़े पहनती हैं जो विपरीत लिंग के व्यक्तियों को आकर्षित करें। यह छिछोरा होने से ज्यादा गंभीर है। अगर छिछोरापन व्यक्ति की मानवता के एक पहलू में दोष या खामी है और एक छोटी समस्या है तो विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ संबंधों के दुष्ट और नीच पहलू एक बड़ी समस्या हैं। किसी छिछोरे व्यक्ति का अनैतिक गतिविधियों में लिप्त होना जरूरी नहीं, लेकिन जो लोग दुष्ट और नीच दोनों होते हैं उनमें से नब्बे प्रतिशत से ज्यादा लोगों के अनैतिक गतिविधियों में शामिल होने की संभावना होती है। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? अगर कोई व्यक्ति विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ अपने मिलने-जुलने को बहुत महत्व देता है और विपरीत लिंग के सदस्यों के सामने दिखावा करना और अपना प्रदर्शन करना विशेष रूप से पसंद करता है तो ऐसे व्यक्ति के विपरीत लिंग के सदस्यों को अपने प्रेम-जाल में फँसाने की बहुत संभावना है। विपरीत लिंग के सदस्यों को अपने प्रेम-जाल में फँसाने का क्या उद्देश्य है? इसका उद्देश्य अनुचित संबंधों में लिप्त होना है। अगर वह विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति को यूँ ही फुसला सकता है, तो क्या यह ये संकेत नहीं देता कि वह विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ संबंधों के मामले में बहुत लापरवाह है? (हाँ।) ऐसे लोगों में कोई गरिमा नहीं होती; वे लापरवाही से दूसरों पर डोरे डालते हैं, यहाँ तक कि पहल भी वे ही करते हैं। वे जितने ज्यादा लोगों पर डोरे डालते हैं, उतने ही ज्यादा खुश होते हैं, और जब तक वे किसी को पसंद करते हैं तब तक उसे कभी मना नहीं करते। यह किस तरह का व्यक्ति है? फिलहाल इस बात को अलग रखते हुए कि उनमें कौन-से भ्रष्ट स्वभाव हैं, क्या ऐसी मानवता अच्छी है? (नहीं।) अपनी मानवता के अन्य पहलुओं में उनमें चाहे जो भी खूबियाँ या कमियाँ हों, अगर वे विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ संबंधों के प्रति अपने नजरिये के संदर्भ में विशेष रूप से लापरवाह, तुच्छ और भोगी हैं, तो यह अकेला ही यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि उनकी मानवता अच्छी नहीं है। अगर वे किसी समय या स्थान पर गलती कर सकते हैं या हद लाँघ सकते हैं तो क्या यह एक गंभीर समस्या नहीं है? (हाँ, है।) क्या ऐसे व्यक्ति विश्वसनीय हैं? (नहीं।) उनकी अविश्वसनीयता का मूल क्या है? यह उनकी दुष्ट प्रकृति में निहित है। वे किसी भी समय और स्थान पर कामुक विचार मन में ला सकते हैं और किसी भी समय और स्थान पर विपरीत लिंग के व्यक्ति को फुसला सकते हैं—उनका दिमाग सिर्फ इन्हीं विचारों से भरा रहता है। अगर परिवेश या परिस्थितियाँ अनुमति न दें या उनके पास सजने-सँवरने के लिए पर्याप्त समय न हो, तो भी वे कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं; वे चुलबुली नजरों से काम लेते हैं और अपने नैन-नक्श या हाव-भाव दिखाते हैं, दूसरों को फुसलाने के लिए उन्हें वासनाभरी निगाहों से देखते हैं। ऐसे लोग बेकार होते हैं; वे बहुत अविश्वसनीय होते हैं! वे तुच्छ, लंपट और लापरवाह होते हैं और किसी भी समय और स्थान पर वे दूसरों को पाप और गुनाह करने के लिए फुसला सकते हैं; ऐसे लोगों की मानवता में शर्म की कोई भावना नहीं होती, वे कभी नहीं सुधर सकते। क्या ऐसे लोग भयावह होते हैं? (हाँ।) और उन्हें नहीं लगता कि ये शर्मनाक चीजें हैं; चाहे कितने भी लोग आसपास हों, वे खुलेआम इस तरह सज-धजकर दिखावा करते हैं, आसक्तिपूर्ण व्यवहार करते हैं और इस तरीके से दूसरों को फुसलाते हैं। दूसरों को पता तक नहीं चलता कि क्या हो रहा है—जबकि दूसरे लोग अभी भी मिलकर अपने सामान्य काम, गपशप या बातचीत पर ध्यान केंद्रित कर रहे होते हैं, ये जनाब पहले ही किसी को चुलबुली नजरों से देखकर उस पर डोरे डालना शुरू कर चुके होते हैं। देखो ऐसे लोग कितने घिनौने और भयावह होते हैं! उनमें कोई शर्म नहीं होती, है न? बेशर्म लोग लगातार अपराध करते हैं, और उनका अंतिम परिणाम क्या होता है? (वे अंततः नरक में दंडित होंगे।) परमेश्वर के वचन क्या कहते हैं? “अपराध मनुष्य को नरक में ले जाएँगे।” इसलिए अगर तुम्हारी मानवता के साथ बहुत गंभीर समस्याएँ हैं तो तुम बहुत खतरे में हो। अगर व्यक्ति की खराब मानवता किसी दृष्टि से एक दोष है, तो उसे सुधारने के अवसर हो सकते हैं। लेकिन अगर उसकी मानवता का कोई पहलू इसलिए खराब है क्योंकि उसमें प्राकृतिक रूप से शर्म की भावना नहीं है और वह किसी भी समय और स्थान पर दूसरों को फुसलाने में सक्षम है और—भले ही उसने स्पष्ट रूप से भ्रष्ट स्वभाव प्रकट न किया हो फिर भी—वह गंभीर अपराध कर सकता है जिसके गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं, तो इस बात की कोई सीमा नहीं होती कि ऐसे लोग किस तरह आचरण करते हैं, उनका चरित्र विशेष रूप से खराब होता है, और अगर वे कुछ अपराध करते हैं तो यह उन्हें बरबाद कर सकता है। मानवता की समस्याओं के संबंध में, उन्होंने अपना आगे का मार्ग अवरुद्ध कर लिया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी मानवता इतनी खराब है और उनके अपराध इतने ज्यादा हैं कि यह उन्हें नरक भेजने के लिए पर्याप्त है और सत्य का अनुसरण कर उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर चलने का कोई अवसर मिलने से पहले ही उनके लिए सब कुछ खत्म हो जाएगा। शर्म की भावना का अभाव व्यक्ति की मानवता से संबंधित एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है। सच तो यह है कि यह भ्रष्ट स्वभाव के स्तर तक नहीं बढ़ता; यह बस एक तरीका, एक रवैया है, जिसे व्यक्ति आचरण करने और कुछ मामलों से निपटने में अपनाता है। यह रवैया उनकी मानवता से संबंधित है और अपराधों की ओर ले जा सकता है, जिससे समस्या गंभीर हो जाती है।

कुछ लोगों को नृत्य करना बहुत पसंद होता है और वे नृत्य-चर्याएँ बहुत जल्दी सीख लेते हैं। शिक्षक द्वारा तीन बार प्रदर्शन करने के बाद वे मूल रूप से नृत्य की लय और चेष्टाओं में महारत हासिल कर लेते हैं और उसे सटीक रूप से प्रस्तुत कर सकते हैं। वे बहुत अच्छा नृत्य भी करते हैं, पुरस्कार जीत चुके होते हैं और नृत्य से संबंधित करियर बनाने की आशा रखते हैं, शायद नृत्य-शिक्षक या कलाकार के रूप में। यह किस पहलू से संबंधित है? (यह उनकी रुचियों और शौकों से संबंधित है।) यह उनकी खूबी है; यह उनकी रुचि और शौक है। वे नृत्य करना बहुत जल्दी सीख लेते हैं, जो दर्शाता है कि वे नृत्य करने में बहुत अच्छे होते हैं; वे प्राकृतिक रूप से इस तरह की चीज सटीकता से समझ लेते हैं और उसे आसानी से सीख लेते हैं। यह एक खूबी है, है न? (हाँ।) इस संबंध में उनमें एक खूबी होती है। नृत्य सीखने के बाद वे नृत्य करने का भी आनंद लेते हैं, नृत्य करने के लिए उत्सुक रहते हैं; और इतना ही नहीं, वे भविष्य में नृत्य से संबंधित करियर बनाने की योजना बनाते हैं और नृत्य को अपने भावी जीवन और भविष्य की यात्रा का साथी बनाने का इरादा रखते हैं—यह उनकी रुचियों और शौकों से संबंधित है। नृत्य उनकी खूबी और उनकी रुचि और शौक दोनों होता है—यह उनकी एक जन्मजात स्थिति होती है। कुछ लोगों में यह जन्मजात स्थिति होती है और परमेश्वर में विश्वास करना शुरू करने के बाद वे नृत्य के वीडियो देखने में भी आनंद लेते हैं। इसलिए वे इस उम्मीद से परमेश्वर के घर में नृत्य करने का कर्तव्य लेते हैं कि उन्होंने जो सीखा है, उसका लाभ अपना कर्तव्य निभाने में उठाया जा सकता है और परमेश्वर के घर में वह उपयोगी हो सकता है और वे परमेश्वर द्वारा याद किए जाने के लिए अपने अच्छे कर्म तैयार कर सकते हैं। नृत्य में उनका एक ठोस आधार होता है और वे विभिन्न प्रकार के नृत्य भी जल्दी से सीख लेते हैं। परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार नृत्य-कार्यक्रम बनाते समय वे पूरी तरह से खुलकर दूसरों को वह सब सिखाने के लिए तैयार रहते हैं जो उन्होंने सीखा होता है। हालाँकि उन्होंने दूसरों की तुलना में ज्यादा तरह के नृत्य सीखे होते हैं और अपने पेशे में वे ज्यादा कुशल होते हैं, फिर भी वे खुद को दूसरों से श्रेष्ठ नहीं समझते। वे दूसरों के साथ सौहार्दपूर्ण ढंग से मिलजुलकर रहते हैं और भाई-बहनों को बहुत धैर्यपूर्वक वह सिखाते हैं जो उन्होंने सीखा होता है। यह किस चीज की अभिव्यक्ति है? (यह उनकी मानवता की अभिव्यक्ति है।) उनकी मानवता अच्छी है या नहीं? (उनकी मानवता अच्छी है।) वह किस तरह से अच्छी है? (वे पूरी तरह से खुलकर दूसरों को वह सब सिखाने में सक्षम होते हैं जो वे जानते हैं, दूसरों को भी वह प्राप्त करने देते हैं जो उनके पास होता है—यह अच्छी मानवता है।) वे पूरी तरह से खुलकर दूसरों को वह सब सिखाने में सक्षम होते हैं जो उन्होंने सीखा होता है। उनमें और क्या गुण होते हैं? वे वास्तव में दिखावा नहीं करते। ऐसे व्यक्ति की मानवता अच्छी होती है। चूँकि उनमें नृत्य की खूबी होती है, इसलिए वे परमेश्वर के घर में नृत्य से संबंधित कर्तव्य ग्रहण करते हैं। लेकिन कुछ समय बाद कार्य की जरूरतों के कारण परमेश्वर का घर उनके लिए अन्य उपयुक्त कार्य करने की व्यवस्था करता है। वे मन ही मन सोचते हैं, “क्या मैंने नृत्य सीखने में लगाए बीस साल बरबाद कर दिए? अब जब मुझे नृत्य से असंबंधित कार्य करने के लिए कहा गया है, तो मैं बहुत असंतुष्ट महसूस करता हूँ! मुझे टीम अगुआ या पर्यवेक्षक बनाने के बजाय, मुझे अपनी खूबी, अपनी विशेषता का इस्तेमाल क्यों नहीं करने दिया जाता? यह मेरी खूबी नहीं है और मैं नहीं जानता कि इसे कैसे करना है। यह ऐसी चीज है जिसकी मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी।” हालाँकि बाहरी तौर पर वे कहते हैं, “यह सब परमेश्वर की व्यवस्थाओं का हिस्सा है और मैं समर्पण करने का इच्छुक हूँ”, लेकिन वास्तव में, चाहे अगुआ कुछ भी कहें, वे उसे स्वीकारने के इच्छुक नहीं होते और उसे स्वीकार नहीं करते। वे सोचते हैं, “तुम लोगों में पेशेवर ज्ञान की कमी है और फिर भी तुम लोग हमारी अगुआई करने आ जाते हो। तुम बस धर्म-सिद्धांत के बारे में बात करते हो। तुम लोग मुझसे बेहतर नहीं हो!” यह किस चीज की अभिव्यक्ति है? (आंतरिक अवज्ञा की।) यह किस तरह की समस्या है? क्या यह भ्रष्ट स्वभाव का प्रकाशन है? (हाँ।) हालाँकि उनकी मानवता सामान्यतः ठीक-ठाक होती है—वे दूसरों के साथ सहयोग करने, दयालु होने और एक अच्छा इंसान बनने के लिए तैयार रहते हैं, गड़बड़ नहीं करते और बाधा नहीं डालते या नुकसान और मुसीबत पैदा नहीं करते—और अपनी व्यक्तिपरक इच्छा के संदर्भ में वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए तैयार रहते हैं, फिर भी जब उनके रुतबे या उन मामलों की बात आती है जो उनकी धारणाओं और इच्छाओं के अनुरूप नहीं होते, तो क्या उनमें समर्पण होता है? क्या वे सत्य खोजने की कोई अभिव्यक्ति दिखाते हैं? (नहीं।) तो वे क्या अभिव्यक्त करते हैं? (वे जो अभिव्यक्त करते हैं वह है प्रतिरोध, शिकायत और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण की कमी।) यह सही है। तो इन अभिव्यक्तियों को किस तरह की समस्या के रूप में सारांशित किया जा सकता है? (एक भ्रष्ट स्वभाव के रूप में।) हालाँकि बाहरी तौर पर उनकी मानवता दयालु लगती है और वे खुले तौर पर विरोध नहीं करते, हल्ला नहीं मचाते या अगुआओं की आलोचना नहीं करते, फिर भी इन मामलों के प्रति उनका रवैया उनके भ्रष्ट स्वभाव का प्रकाशन होता है। वे किस तरह के भ्रष्ट स्वभाव का प्रकाशन करते हैं? (एक अहंकारी स्वभाव का।) सही कहा, अहंकार। उन्हें लगता है कि वे एक निश्चित विधा में कुशल हैं और उनकी मानवता बहुत अच्छी है, इसलिए वे कलीसिया के अगुआओं की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने का विरोध करने के लिए इसका इस्तेमाल पूँजी के रूप में करते हैं। वे सत्य नहीं खोजते और अपनी पसंद का कर्तव्य ही निभाना चाहते हैं। यहाँ तक कि जब कलीसिया उन्हें कोई उपयुक्त कर्तव्य सौंपती है तो भी वे उसे स्वीकार नहीं कर पाते और अगर कोई चीज उनकी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप नहीं होती, भले ही वह परमेश्वर के घर की व्यवस्था ही क्यों न हो, तो वे समर्पण करने से इनकार कर देते हैं। ये विद्रोह और अहंकारी स्वभाव के प्रकाशन हैं। उनके द्वारा प्रदर्शित अभिव्यक्तियों की यह शृंखला देखो : उनकी जन्मजात स्थितियों की खूबियों से लेकर उनकी मानवता तक और अंत में उनके भ्रष्ट स्वभाव तक—उनकी अभिव्यक्तियों में ये तीन अलग-अलग पहलू शामिल होते हैं। उनकी जन्मजात स्थितियों की खूबी ऐसी चीज है जिसके साथ वे पैदा हुए थे और इसमें आलोचना करने लायक कुछ नहीं है। वे जिस भी चीज में कुशल हों, इसका मतलब यह नहीं कि उनमें भ्रष्ट स्वभाव नहीं है, न ही यह ये दिखा सकता है कि उनका चरित्र अच्छा है या बुरा। लेकिन कुछ जन्मजात स्थितियों से पैदा हुई श्रेष्ठता की भावना या सांसारिक जनमत द्वारा थोपी गई स्थिति और निरूपण व्यक्ति की मानवता को विकृत कर सकते हैं। इस विकृतीकरण का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि चूँकि किसी व्यक्ति में कुछ ऐसी जन्मजात स्थितियाँ हैं जिन्हें दूसरे लोग अपेक्षाकृत प्रशंसात्मक ढंग से देखते हैं और उन्हें समाज में कुछ लोगों से सराहना और सम्मान मिलता है, इसलिए वे अपने मूल्य और स्थिति का गलत निरूपण विकसित कर लेते हैं। उन्हें लगता है कि वे बहुत अच्छे हैं, दूसरों से श्रेष्ठ हैं, और वे लोगों को नीची निगाह से देखना शुरू कर देते हैं, हमेशा यह मानते हैं कि वे सही हैं और उनका सब कुछ अच्छा है, और वे चाहते हैं कि दूसरे उनकी बात सुनें और उनका अनुसरण करें। उस हालत में चीजों पर उनके तमाम विचार और दृष्टिकोण गलत होते हैं। इन गलत विचारों और दृष्टिकोणों के साथ व्यक्ति दुनिया और बुरी मानवजाति का अनुसरण करेगा। बुरी मानवजाति और बुरी दुनिया का अनुसरण करने का क्या निहितार्थ है? निहितार्थ यह है कि तुम इस बुरी दुनिया और बुरी मानवजाति से आने वाले भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार जिओगे और इन भ्रामक विचारों, दृष्टिकोणों और कहावतों का इस्तेमाल हर चीज को पहचानने और उसकी विशेषता बताने के लिए करोगे। उदाहरण के लिए, मान लो तुम काफी अच्छे दिखते हो, तुम्हारा चेहरा-मोहरा और नैन-नक्श अच्छे हैं—ये जन्मजात स्थितियाँ हैं, जो ईश्वर-प्रदत्त हैं। इसमें कुछ भी गलत नहीं है; यह बस एक तथ्य है। लेकिन इस समाज और इस दुष्ट मानवजाति द्वारा गलत स्थिति-निर्धारण के तहत यह तथ्य तुम्हें ढीठ और भोगी, छिछोरा और घमंडी बना सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जन्मजात, श्रेष्ठ स्थितियाँ होने के साथ-साथ इस समाज और मानव जाति के अनुकूलन, प्रलोभन और विभिन्न भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों के आकार देने के कारण तुम्हारी मानवता विकृत हो जाती है। “विकृत” का क्या मतलब है? तुम्हारे पास ये जन्मजात स्थितियाँ होना अपने आप में पूरी तरह से सामान्य है—अच्छा दिखना कोई असाधारण बात नहीं है; इसका यह मतलब नहीं कि तुम सत्य समझते हो, न ही इसका यह मतलब है कि तुम महान हो। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि तुम अच्छे दिखते हो, आकर्षक लगते हो और लोग तुम पर थोड़ी ज्यादा नजर डालने को तैयार हो सकते हैं; तुम दूसरों के लिए चिढ़ पैदा करने वाले या अप्रिय नहीं हो, बस। लेकिन ऐसे सामाजिक परिवेश में जहाँ सुंदरता, आकर्षण और उत्कृष्ट, उच्च-स्तरीय ग्लैमर के विचारों को आदर्श माना जाता है, यह प्रवृत्ति तुम्हें चरम सीमा पर धकेलती है, जिससे तुम्हारी मानवता घमंडी, भोगी और छिछोरी हो जाती है। चेहरा-मोहरा अच्छा होना एक जन्मजात स्थिति है। परमेश्वर ने तुम्हें यह जन्मजात स्थिति इसलिए नहीं दी कि तुम घमंडी, भोगी या छिछोरे बनो, बल्कि वह चाहता है कि तुम इसे सामान्य रूप से देखो : “मुझे यह जन्मजात स्थिति, यह रूप-रंग देने के लिए परमेश्वर का शुक्रिया। यह परमेश्वर का अनुग्रह और देन है। मुझे परमेश्वर का शुक्रगुजार होना चाहिए। मेरे पास शेखी बघारने लायक कुछ नहीं है।” ऐसी जन्मजात स्थिति के साथ व्यक्ति को जो करना चाहिए, वह यह है कि परमेश्वर की शिक्षाओं के अनुसार लोगों और चीजों को देखे और आचरण और क्रियाकलाप करे। लेकिन समाज और शैतान से विभिन्न विचार और दृष्टिकोण स्वीकारने के बाद वह सुंदरता और आकर्षण को पूँजी के एक रूप की तरह देखने लगता है। फिर वह इस पूँजी का इस्तेमाल हर समूह में हर व्यक्ति से अनुग्रह प्राप्त करने के लिए करता है, जो वह चाहता है उसे प्राप्त करने के लिए इस जन्मजात, मूलभूत स्थिति का लाभ उठाता है। कुछ लोग तो इस जन्मजात स्थिति का इस्तेमाल ऐसे काम करने के लिए भी करते हैं जो कानून तोड़ते हैं, नैतिक सीमाओं का उल्लंघन करते हैं या मानवता के खिलाफ जाते हैं। किसी व्यक्ति की मानवता में कुछ विकृत और चरम चीजें होने का कारण समाज और दुष्ट मानवजाति से आने वाले कुछ पाखंडों, भ्रांतियों और गलत सार्वजनिक मतों का बढ़ता प्रभाव है। चूँकि लोगों में जन्मजात रूप से सत्य और भेद पहचानने की क्षमता का अभाव होता है, इसलिए वे प्राकृतिक रूप से ये सार्वजनिक मत, कहावतें और सिद्धांत स्वीकार लेते हैं, जो समाज और दुष्ट मानवजाति से आते हैं। वे इन नकारात्मक चीजों को ऐसे लेते हैं जैसे वे सही हों और इन भ्रामक और बुरे विचारों और दृष्टिकोणों के मार्गदर्शन में उनका जमीर और विवेक उच्च या शुद्ध नहीं होता, बल्कि विकृत और क्षतिग्रस्त होता है। अगर यह समाज सुंदर स्त्री-पुरुषों की प्रशंसा या गुणगान न करे और अगर कोई बाहरी विचार तुम्हें लुभाएँ नहीं या आकार न दें—अगर जहाँ तुम जाओ वहाँ कोई तुम्हारी सुंदरता के लिए तुम्हारी प्रशंसा न करे, तुम्हारे साथ विशेष व्यवहार न करे या तुम्हें विभिन्न चीजें करने के लिए ललचाए नहीं या दबाव न डाले—तो तुम देखोगे कि प्राकृतिक रूप से अच्छा चेहरा-मोहरा होना पूरी तरह से सामान्य है और शेखी बघारने लायक नहीं है। इसका मतलब यह है कि तुम अपनी अंतर्निहित, मूलभूत स्थिति के आधार पर वे काम करोगे जो तुम्हें करने चाहिए और वे काम नहीं करोगे जो तुम्हें सिर्फ इसलिए नहीं करने चाहिए क्योंकि तुम्हारी जन्मजात स्थिति इतनी श्रेष्ठ है। लेकिन बाहरी परिवेश के प्रलोभन और भ्रष्टता के कारण तुम यह मानने लगते हो कि प्राकृतिक रूप से अच्छा चेहरा-मोहरा होना असाधारण चीज है और यह तुम्हें बाकी सबसे बेहतर बनाती है। कोई आत्म-संयम न होने के कारण तुम अपने आकर्षक चहरे-मोहरे का इस्तेमाल दूसरों को फुसलाने के लिए करते हो, जमीर और विवेक का संयम तोड़ देते हो और आत्म-संयम की सीमाएँ लाँघ जाते हो। अपने इच्छित लाभ प्राप्त करने के लिए विभिन्न परिवेशों में तुम विभिन्न भ्रष्ट स्वभाव प्रकट कर सकते हो, अपनी श्रेष्ठ जन्मजात स्थिति का दोहन कर सकते हो और विभिन्न तरकीबें इस्तेमाल कर सकते हो। यह जन्मजात स्थितियों, मानवता और भ्रष्ट स्वभावों के बीच का संबंध है। कभी-कभी इन तीन पहलुओं के बीच एक निश्चित संबंध होता है और बेशक, कभी-कभी पहले दो या आखिरी दो पहलुओं के बीच एक आवश्यक संबंध होता है। क्या तुम समझते हो? (अब हम थोड़ा और समझते हैं।) तुम्हें कम से कम क्या पता होना चाहिए? कोई भी जन्मजात स्थिति अपने आप में गलत नहीं होती; यह बस व्यक्ति की मानवता की एक मूलभूत स्थिति होती है। जब लोगों की मानवता की बात आती है तो अच्छी और बुरी, सकारात्मक और नकारात्मक मानवता होती है। तो भ्रष्ट स्वभाव कैसे पैदा होता है? यह तब पैदा होता है जब अपनी अंतर्निहित, जन्मजात स्थितियों के आधार पर व्यक्ति शैतान के विभिन्न विचारों और फलसफों से अनुकूलित होता है और यह अनुकूलन विभिन्न गलत दृष्टिकोणों के निर्माण की ओर ले जाता है, जो तब एक तरह का जीवन सार बन जाता है जिस पर व्यक्ति जीवित रहने के लिए निर्भर करता है। यही होता है भ्रष्ट स्वभाव।

अभी-अभी हमने जन्मजात स्थितियों, मानवता और भ्रष्ट स्वभावों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की। हमने दस जन्मजात स्थितियाँ सूचीबद्ध कीं और हमने मानवता से संबंधित विभिन्न अभिव्यक्तियों के बारे में भी संगति की। आओ, अब सारांश प्रस्तुत करते हैं : हमने मानवता की किन विभिन्न अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की? (मानवता के संबंध में, अच्छी मानवता की अभिव्यक्तियाँ होती हैं और बुरी मानवता की अभिव्यक्तियाँ होती हैं। परमेश्वर ने अभी कुछ उदाहरण दिए थे। कुछ लोगों में प्राकृतिक रूप से किसी निश्चित क्षेत्र में कोई विशेष खूबी होती है और वे किसी निश्चित तकनीकी पेशे में कुशल होते हैं और वे पूरी तरह से खुलकर दूसरों को सिखाने में सक्षम होते हैं। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो दूसरों का फायदा नहीं उठाते। ये अपेक्षाकृत अच्छी मानवता की अभिव्यक्तियाँ हैं। परमेश्वर ने बुरी मानवता की अभिव्यक्तियों के उदाहरण भी दिए। मसलन, नीच और घटिया मानवता होना और लगातार दूसरों की पीठ पीछे गपशप के लिए ताक-झाँक करना; और विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ बातचीत में अपने नजरिये के संबंध में लापरवाह होना और गरिमा और निष्ठा न होना; और स्वार्थी, नीच होना और दूसरों का फायदा उठाना पसंद करना, साथ ही दूसरों के साथ बातचीत में बिना जमीर और विवेक के अत्यधिक मतलबी होना—ये सब बुरी मानवता की अभिव्यक्तियाँ हैं।) बुरी मानवता की अभिव्यक्तियों में से सबसे बुरी अभिव्यक्ति कौन-सी होती है? कैसा व्यक्ति तुम लोगों को सबसे अप्रिय लगता है? (जिसमें शर्म की कोई भावना नहीं होती और जो विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ अपनी बातचीत में विशेष रूप से लापरवाह होता है।) लापरवाह, लंपट और शर्म की भावना से रहित। इसे कहने का एक ज्यादा सुसंस्कृत तरीका यह है कि ये लोग “कोई शर्म नहीं जानते।” सरल भाषा में, वे “बेशर्म” होते हैं या ज्यादा सटीक रूप से कहें तो, “बिलकुल निर्लज्ज।” ऐसे लोगों को कोई पसंद नहीं करता।

कुछ लोग ऐसी जगह पैदा हुए, जहाँ मिर्च खाना आम बात है; शायद जलवायु के कारण या इसलिए कि उनके परिवार को मिर्च खाने की आदत है और उन्हें मिर्च खाना पसंद है, वे उसे रोज खाते हैं और उनके दैनिक आहार में अक्सर मसालेदार स्वाद की प्रधानता रहती है। यह स्पष्ट रूप से एक जन्मजात स्थिति है। यह कौन-सी जन्मजात स्थिति है? (जीवनशैली से जुड़ी आदत।) उनकी जीवनशैली से जुड़ी आदत यह है कि वे अपने दैनिक आहार में मसालेदार स्वादों के बिना नहीं रह सकते; जो कुछ भी वे खाते हैं, उसमें मसालेदार स्वाद होना ही चाहिए। यह पसंद कहाँ तक जाती है? यहाँ तक कि वे मीठे खाद्य पदार्थों में भी मसाला मिलाते हैं, मसालेदार स्वाद वाले हैमबर्गर और पिज्जा खाते हैं और चाय-कॉफी तक में मिर्च डालते हैं—यह है उनके मसालेदार भोजन के सेवन की सीमा। यह एक जीवनशैली से जुड़ी आदत है। क्या इसमें कुछ सही या गलत है? (नहीं।) मसालेदार भोजन की पसंद व्यक्ति के जीवन-परिवेश और जीवनशैली से जुड़ी आदतों के कारण होती है; इसमें कुछ सही या गलत नहीं है। कुछ लोग अत्यधिक मात्रा में मसालेदार भोजन करते हैं; अगर मसालेदार भोजन न हो तो वे नहीं खाएँगे। चाहे तुम इसे स्वीकार कर पाओ या नहीं, वे मसालेदार भोजन खाने पर ही जोर देते हैं और कोई इसे बदल नहीं सकता। संक्षेप में, मिर्च खाने का शौक एक जीवनशैली से जुड़ी आदत है, इसमें कोई समस्या नहीं है और इसमें सत्य शामिल नहीं है। कुछ लोग कहते हैं, “जीवनशैली से जुड़ी यह आदत बहुत चरम पर है; क्या इसे नकारात्मक चीज माना जाना चाहिए? क्या इसकी आलोचना या विनियमन किया जाना चाहिए? क्या हमें कुछ स्वास्थ्य-ज्ञान को बढ़ावा देना चाहिए और यह विचार फैलाना चाहिए कि खाने और जीवनशैली से जुड़ी आदतों के सिद्धांतों में स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए?” क्या तुम निश्चित हो सकते हो कि मिर्च और मसालेदार भोजन खाना अस्वास्थ्यकर है? वे कई सालों से, कई पीढ़ियों से इस तरह से खा रहे हैं और काफी स्वस्थ हैं। विशेष रूप से, कुछ स्थानों पर लोग मिर्च इस हद तक खाते हैं कि दूसरों के लिए इसे स्वीकारना मुश्किल है। जब लोग देखते हैं कि उनका भोजन कितना मसालेदार है तो वे असहज महसूस करते हैं, फिर भी ये व्यक्ति मजबूत, स्वस्थ और काफी हृष्ट-पुष्ट होते हैं, जिनमें शारीरिक कार्य करने का दम और सहनशक्ति होती है। यह साबित करता है कि मिर्च खाने से कोई नुकसान नहीं होता और स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता; और ऐसा लगता है कि उनका मसालेदार आहार स्वास्थ्य-सिद्धांतों के अनुरूप भी है। मिर्च खाने की पसंद जीवनशैली से जुड़ी एक जन्मजात आदत है। चाहे दूसरे इसे पसंद करें या न करें, अगर व्यक्ति इसका आनंद लेता है और यह दूसरों के जीवन या आहार को प्रभावित नहीं करती, तो इसे बनाए रखा जा सकता है। इसमें कुछ भी सही या गलत नहीं है; यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है और परमेश्वर का घर इसके बारे में कोई निर्णय नहीं देता। कुछ लोग कहते हैं, “मिर्च खाना पेट के लिए बुरा है।” अगर तुम्हें चिंता है कि यह तुम्हारे पेट के लिए बुरा है तो तुम बस इसे न खाने का विकल्प चुन सकते हो। अगर दूसरे लोग लंबे समय से मसालेदार खाना खा रहे हैं और उनका पेट खराब होता है तो वे इसे खुद ही महसूस कर लेंगे और अपना चुनाव कर लेंगे। इसलिए हर किसी का अपना स्वाद होता है—उसे मीठा स्वाद पसंद है या खट्टा, कड़वा या मसालेदार स्वाद, यह एक व्यक्तिगत मामला है। चाहे तुम जैसे भी खाओ या जितना भी खाओ, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, तुम्हें दोषी महसूस करने की जरूरत नहीं है। जब तक परिस्थितियाँ और परिवेश खाने दें, तब तक तुम तमाम चिंताएँ एक तरफ रखकर बिना किसी संकोच के खा सकते हो। जहाँ तक मेरा संबंध है, इस बारे में कोई नुस्खा नहीं है। अगर किसी को इस बारे में कुछ कहना हो तो तुम जवाब दे सकते हो, “यह मेरी स्वतंत्रता है, यह मेरा अधिकार है और तुम्हें इसमें दखल देने की जरूरत नहीं है। यहाँ तक कि अगर मैं सिर्फ मिर्च का ही भोजन खाऊँ तो भी इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं है। इससे मेरा पेट खराब होता है या नहीं, यह मेरी जिम्मेदारी है, तुम्हारी नहीं।” क्या इस तरह बोलना ठीक है? (हाँ।) यह तुम्हारा अपना मामला है; इससे दूसरों का कोई लेना-देना नहीं है और इससे मेरा भी कोई लेना-देना नहीं है। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? क्योंकि इस मामले में सत्य शामिल नहीं है, इसमें भ्रष्ट स्वभाव शामिल नहीं है और यह उन समस्याओं में से एक नहीं है जिन्हें परमेश्वर लोगों को बचाने में हल करना चाहता है। इसलिए जब जीवनशैली से जुड़ी आदतों की समस्याओं की बात आती है तो हम उन्हें नजरंदाज कर सकते हैं। यह कोई सकारात्मक चीज नहीं है, लेकिन यह कोई नकारात्मक चीज भी नहीं है—यह बस कुछ लोगों की पसंद है।

मेजबानी करने वाले कुछ लोग मिर्च खाना पसंद करते हैं और दिन में तीनों बार मसालेदार भोजन करना चाहते हैं। इसलिए जब वे खाना पकाते हैं तो हर बार के भोजन के लिए मसालेदार व्यंजन बनाते हैं। कुछ लोगों को, जिन्होंने कभी मिर्च नहीं खाई होती, इसे झेलना मुश्किल लगता है और वे सुझाव देते हैं कि मसालेदार व्यंजनों के बजाय बिना मसाले के व्यंजन बनाए जाएँ। लेकिन खाना पकाने वाला व्यक्ति इसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होता और कहता है, “ऐसा नहीं चलेगा। मुझे मसालेदार खाना खाने की आदत है; अगर मैं इसे मसालेदार नहीं बनाऊँगा, तो मुझे इसमें स्वाद नहीं आएगा। तुम्हें मसालेदार खाना खाने का अभ्यास चाहिए; कुछ समय तक इसे खाने के बाद तुम्हें इसकी आदत हो जाएगी और तुम मसालेदार खाने से नहीं डरोगे।” यहाँ समस्या क्या है? (उनकी मानवता के साथ समस्या है।) उनकी मानवता में कैसी समस्या है? (वे दूसरों पर चीजें थोपते हैं।) दूसरों पर चीजें थोपना अच्छा नहीं है। क्या यह दूसरों को वह करने के लिए मजबूर करना नहीं है, जो वे नहीं करना चाहते? ऐसे लोग यह मानते हुए अपने हर काम में खुद को केंद्र में रखने की कोशिश करते हैं कि उन्हें जो पसंद है वही सबसे अच्छा है और दूसरों को उसे स्वीकार करना ही चाहिए। अगर उन्हें कुछ पसंद होता है तो वे दूसरों को भी उसे पसंद करने के लिए बाध्य करने की कोशिश करते हैं; हर किसी को चाहिए कि उन्हें संतुष्ट करे। क्या यह स्वार्थी और नीच नहीं है? वे न सिर्फ दूसरों पर चीजें थोपते हैं, बल्कि इसमें थोड़ी दुर्भावना भी होती है। क्या ऐसे व्यक्ति की मानवता अच्छी होती है? (नहीं।) खराब मानवता वाले लोग दूसरों को लाभ नहीं पहुँचा सकते; वे सिर्फ चोट पहुँचा सकते हैं और गंभीर मामलों में वे नुकसान भी पहुँचा सकते हैं। ऐसे लोग बहुत स्वार्थी और नीच होते हैं और वे हद से ज्यादा अशिष्ट भी होते हैं। अगर व्यक्ति में विवेक हो तो वह कह सकता है, “मुझे मसालेदार खाना पसंद है, लेकिन कुछ लोगों को नहीं है। इसलिए खाना बनाते समय मैं सिर्फ अपने बारे में नहीं सोच सकता। मुझे मसालेदार और दोनों तरह के व्यंजन बनाने चाहिए, ताकि मैं और बाकी सभी लोग संतुष्ट हों। अपना कर्तव्य निभाते समय मैं जिस सिद्धांत का पालन करता हूँ, वह है हर किसी को संतुष्ट करना, यह सुनिश्चित करना कि हर कोई अच्छी तरह खाए, और सिर्फ खुद पर ध्यान केंद्रित न करना। मुझे यह कर्तव्य सिद्धांतों के अनुसार अच्छी तरह से निभाना चाहिए।” ऐसे व्यक्ति के बारे में तुम क्या सोचते हो? (उसकी मानवता अपेक्षाकृत अच्छी है।) वह किस तरह से अच्छी है? (वह दूसरों का ध्यान रखना और उनकी देखभाल करना जानता है। ऐसा नहीं है कि वह सिर्फ खुद को संतुष्ट करता है।) वह तुलनात्मक रूप से दयालु है, है न? अच्छी मानवता में दयालुता—दूसरों के प्रति विचारशील होना और उनकी देखभाल करना—शामिल है। क्या इसमें व्यक्ति की मानवता शामिल है? (हाँ।) व्यक्ति की उम्र, लिंग या मिजाज कैसा भी हो, अगर उसमें अच्छी मानवता है तो उसके आस-पास के लोग और उससे मिलने-जुलने वाले लोग लाभान्वित होंगे। ज्यादा विशेष रूप से, कुछ लोगों को उससे समर्थन और मदद मिलेगी, जबकि अन्य लोगों की वे दैनिक जीवन में देखभाल करेंगे। यह अच्छी मानवता की एक अभिव्यक्ति है।

ऐसे लोग भी हैं जिन्हें मसालेदार खाना इतना पसंद है कि जब वे अपना कर्त्तव्य निभाने बाहर जाते हैं तो वे खाने के समय मसालेदार व्यंजन परोसने वाली जगहें तलाशते हैं। अगर उन्हें बिना मसाले का भोजन करना पड़े, तो वे अंदर से असहज महसूस करते हैं : “यहाँ मसालेदार भोजन न खा पाने से अपना कर्तव्य निभाना सच में अरुचिकर लगता है। मैं घर जाना चाहता हूँ, जहाँ मैं हर बार मसालेदार भोजन का आनंद ले सकूँ—उसी से मुझे संतोष मिलेगा! मिर्च के बिना किसी चीज में स्वाद नहीं आता; यहाँ तक कि दम देकर पकाया गया सुअर का गोश्त भी अपना स्वाद खो देता है। मुझे क्या करना चाहिए?” तो वे ऐसी जगहें तलाशते रहते हैं, जहाँ वे मिर्च खा सकें। बाद में उन्हें एक ऐसा रेस्तराँ मिल जाता है जो मसालेदार भोजन में महारत रखता है, लेकिन वहाँ गाड़ी चलाकर जाने में एक घंटे से ज्यादा समय लगता है। वे कहते हैं, “चाहे वह कितनी भी दूर हो, मुझे जाना ही है! अगर मैंने आज कुछ मसालेदार नहीं खाया तो मैं अपना कर्तव्य नहीं निभाऊँगा। अगर मुझे मेरा मसालेदार भोजन न मिला तो मैं सहज महसूस नहीं करूँगा और दिन नहीं बिता पाऊँगा!” कोई उनसे कहता है, “अभी बाहर का माहौल खतरनाक है और यह इलाका काफी अराजक है! चलो वहाँ खाने नहीं जाते।” लेकिन वे नहीं सुनते और कहते हैं, “डरने की क्या बात है? खाना मायने रखता है! क्या तुम भी अक्सर बाहर नहीं जाते? डरो मत, कुछ नहीं होगा—परमेश्वर हमारी रक्षा करेगा!” खाना खाकर वे प्रसन्न हो जाते हैं। अगर उन्हें मिर्च और वह स्वादिष्ट भोजन खाने को मिलता रहे जिसके लिए वे लालायित रहते हैं तो उन्हें सब ठीक लगता है और वे इतने खुश होते हैं कि नींद में भी मुस्कुराना बंद नहीं कर पाते। यह किस तरह की मानवता है? (एक स्वार्थी और नीच मानवता।) स्वार्थी और नीच होने के अलावा इसकी एक विशेषता और है : जब वे कुछ करना चाहते हैं तो वस्तुनिष्ठ परिवेश या स्थितियों पर विचार नहीं करते। अगर वे अपनी इच्छाएँ और प्राथमिकताएँ पूरी कर पाते हैं तो बस यही मायने रखता है। वे जो चीज खाना चाहते हैं, उसके एक निवाले के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं—भले ही इसके लिए उन्हें एड़ी-चोटी का जोर क्यों न लगाना पड़े, वे अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ भी करेंगे। क्या यह सिर्फ स्वार्थी और नीच होना है? क्या यह उच्छृंखलता भी नहीं है? (हाँ, है।) यह चरम उच्छृंखलता है! जो कोई भी उनके साथ होता है, उसे उनकी की कीमत चुकानी पड़ती है और उसके कारण शिकायतें झेलनी पड़ती हैं। वे जो कहते और करना चाहते हैं, वही होता है। आज उनका मूड खराब है, इसलिए वे खाना नहीं चाहते। जब उनसे पूछा जाता है कि वे क्यों नहीं खा रहे तो वे कहते हैं, “मैं आज क्रोधित हूँ, मेरा मूड खराब है, इसलिए मेरा खाने का मन नहीं है।” बाद में शाम को जब आराम करने का समय होता है तो वे यह कहते हुए सोने भी नहीं जाते कि उन्हें नींद नहीं आ रही और वे अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए गाना चाहते हैं। कोई उन्हें यह कहते हुए मनाने की कोशिश करता है, “अगर तुम गाओगे तो दूसरों की नींद खराब होगी।” वे जवाब देते हैं, “अभी मेरा मूड खराब है। मैं गाना चाहता हूँ। तुम लोग सो पाते हो या नहीं, यह मेरी चिंता का विषय नहीं है। मेरा मूड खराब है, फिर भी कोई मुझे सांत्वना नहीं दे रहा या मेरी परवाह नहीं कर रहा—तुम सभी लोग बहुत स्वार्थी हो!” क्या यह उच्छृंखल होना नहीं है? वे बेहद उच्छृंखल होते हैं; वे सही तरह से पेश नहीं आते और जो चाहे करते हैं। जब वे खुश होते हैं तो दूसरों की कोई भी बात उन्हें परेशान नहीं करती और वे यह तक कहते हैं, “मैं एक उदार व्यक्ति हूँ। मुझे चीजों पर हो-हल्ला करना पसंद नहीं है।” लेकिन जब वे खुश नहीं होते तो सभी को सँभलकर बोलना पड़ता है, कोशिश करनी पड़ती है कि वे नाराज न हों, क्योंकि ऐसा न करने से बड़ी परेशानी हो सकती है। वे झल्ला सकते हैं, चीजें तोड़ सकते हैं, यहाँ तक कि खाने से मना भी कर सकते हैं। ज्यादा गंभीर मामलों में वे यह कहते हुए अपना कर्तव्य छोड़ना, काम बंद करना और घर जाना चाह सकते हैं, “तुम लोगों में से कोई भी मेरे साथ अच्छी तरह पेश नहीं आता; तुम सब मुझे धौंस देते हो। दुनिया में कोई अच्छा व्यक्ति नहीं है!” क्या यह उच्छृंखलता नहीं है? (हाँ, है।) क्या उच्छृंखलता व्यक्ति की मानवता के भीतर एक समस्या है? (हाँ।) वे बेहद उच्छृंखल होते हैं—सभी को उनकी सेवा करनी होती है, और अगर चीजें उनके हिसाब से नहीं होतीं तो वे तुरंत शत्रु हो जाते हैं और उनका विस्फोटक गुस्सा भड़क उठता है। कोई उनका विरोध नहीं कर सकता और सभी को उन्हें मनाना पड़ता है। भले ही वे अब युवा न रहे हों, लेकिन उनकी मानवता एक बच्चे की तरह अपरिपक्व बनी रहती है। चाहे वे कहीं भी अपना कर्तव्य निभाएँ, वे कभी सार्वजनिक नियमों का पालन नहीं करते। जब वे खुश होते हैं और बात करना चाहते हैं तो सभी को सुनना पड़ता है और अगर कोई नहीं सुनता तो वे उस व्यक्ति के खिलाफ़ द्वेष पाल लेते हैं। जब तुम उनसे बात करते हो तो तुम्हें मुस्कुराना पड़ता है; अगर तुम कोई हाव-भाव नहीं दिखाते और सुनने के लिए तैयार नहीं दिखते तो वे गुस्सा हो जाते हैं और अपना आपा खो देते हैं। कलीसिया में वे जो चाहें जब चाहें करते हैं, बिना इस बात की परवाह किए कि इससे दूसरों की सामान्य जीवन-चर्या पर क्या असर पड़ेगा। अगर वे सहज महसूस करते हैं और अच्छे मूड में होते हैं तो उनके लिए यही सब मायने रखता है, और दूसरों को कोई आपत्ति नहीं उठाने दी जाती। अगर कोई घृणा या नाखुशी दिखाने के लिए आपत्ति उठाता है तो इससे वे भड़क उठते हैं और इसे छोड़ते नहीं। ऐसे कुछ लोग अपरिपक्व मानवता वाले युवा होते हैं, लेकिन अन्य लोग चालीस, पचास, यहाँ तक कि सत्तर या अस्सी वर्ष की आयु के होते हैं और बुढ़ापे में भी उनमें ऐसी ही मानवता होती है, वे विशेष रूप से उच्छृंखल होते हैं। चाहे परिवेश या स्थितियाँ इसकी अनुमति दें या नहीं, वे जो चाहें करते हैं। उदाहरण के लिए, वे ऐसी जगह पहुँचते हैं जहाँ नहाने की स्थितियाँ नहीं होतीं, लेकिन वे नहाने पर जोर देते हैं और कहते हैं, “घर पर मैं रोज नहाता हूँ; मैं बिना नहाए नहीं रह सकता।” लेकिन इस जगह उचित स्थितियाँ नहीं होतीं; हफ्ते में एक बार नहाना भी मुश्किल होता है। तो तुम क्या करोगे? सामान्य मानवता वाला व्यक्ति जानता है कि इस स्थिति से कैसे पेश आना है और इसे कैसे सँभालना है। अगर मौसम नम और घुटन भरा है तो पानी का एक बर्तन लेकर रात में बस शरीर पोंछकर सो जाना ही काफी है—यह एक ऐसी कठिनाई है जिसे सहा जा सकता है। इस पर काबू पाना असंभव नहीं है। लेकिन ऐसा व्यक्ति इसे नहीं सँभाल पाता; अगर वह नहाता नहीं तो वह सो नहीं पाता, खा नहीं पाता, यहाँ तक कि उसे लगता है कि वह जीवित नहीं रह पाएगा, मानो वह बहुत बड़ा अपमान सह रहा हो। कितना उच्छृंखल है वह? वह इतना उच्छृंखल है कि अपना कर्तव्य सामान्य रूप से नहीं निभा पाता, दूसरों के साथ सामान्य रूप से बातचीत नहीं कर पाता या मिलजुलकर नहीं रह पाता, यहाँ तक कि एक सामान्य व्यक्ति की तरह जी भी नहीं पाता। दूसरों को ऐसे व्यक्ति ऐसे लगते हैं जैसे उनमें कोई मनोविकार हो। अगर उनका किसी के साथ अच्छा रिश्ता होता है तो वे हमेशा साथ रहते हैं, मानो वे दो जिस्म एक जान हों। लेकिन अगर उनका किसी के साथ बुरा रिश्ता होता है या अगर किसी ने कभी उन्हें अपमानित किया होता है तो वे उस व्यक्ति से बात किए बिना अपना पूरा जीवन बिता सकते हैं। जब वे उसे देखते हैं तो वे अपनी आँखें फेर लेते हैं और उनका चेहरा तुरंत काला पड़ जाता है मानो वे किसी दुश्मन का सामना कर रहे हों—ठेठ अतिवादी। क्या ऐसे व्यक्ति की मानवता सामान्य होती है? (नहीं।) ऐसे व्यक्ति अत्यधिक उच्छृंखल होते हैं और उनकी मानवता सामान्य नहीं होती। “सामान्य नहीं होने” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि उनमें सामान्य मानवता नहीं होती। क्या ऐसे लोग दूसरों के साथ सामान्य मेलजोल और सहयोग कर सकते हैं? क्या वे लोगों के बीच सामान्य रूप से जी सकते हैं? क्या वे अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकते हैं? (नहीं।) अगर वे अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं—चाहे वह भोजन करना हो, अच्छे व्यवहार का आनंद लेना हो या कुछ ऐसा करना हो जो वे करना चाहते हों—तो वह पूरा होना चाहिए। अगर नहीं तो ऐसा लगता है मानो आसमान गिर रहा हो, मानो उनकी दुनिया खत्म होने वाली हो। वे बेचैन हो जाते हैं और बड़बड़ाना शुरू कर देते हैं, दूसरों के बारे में शिकायत करते हैं, परिवेश के बारे में शिकायत करते हैं, यहाँ तक कि यह कहते हुए परमेश्वर के बारे में भी शिकायत करते हैं, “परमेश्वर ने मेरे लिए कैसे परिवेश की व्यवस्था की है जिससे मुझे इतना कष्ट हो रहा है? दूसरों को ऐसे परिवेश का सामना क्यों नहीं करना पड़ा और इस तरह से कष्ट क्यों नहीं सहना पड़ा? मैं ही क्यों कष्ट सह रहा हूँ? परमेश्वर पक्षपाती है!” देखो, उनका राक्षसी स्वभाव उभर आया है, है न? क्या ऐसी मानवता मानक स्तर की है? (नहीं।) ऐसे लोगों से निपटा जाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति से कैसे निपटा जाना चाहिए? (उसे एक साधारण कलीसिया में भेज दो।) अगर वह उस बिंदु तक पहुँच जाता है जहाँ वह अब अपना कर्तव्य नहीं निभा सकता, अपना कर्तव्य निभाते समय विघ्न-बाधाएँ ही पैदा करता है, जिससे उसे देखने वाला हर व्यक्ति घृणा और नाराजगी ही महसूस करता है और दूसरे लोग उसके साथ मिलजुलकर नहीं रह पाते तो उसे तुरंत चलता कर देना चाहिए—ऐसा व्यक्ति कुत्ते के बदबूदार मल जैसा होता है। उच्छृंखलता में स्वार्थी, नीच और साथ ही बेहद असभ्य होना शामिल है। कभी-कभी इसमें अत्यधिक मतलबी, कठोर, यहाँ तक कि दुष्ट और द्वेषपूर्ण होना भी शामिल होता है। जब ऐसा व्यक्ति कुछ समय के लिए अपना कर्तव्य निभाता है तो सभी को बहुत नुकसान होता है और जो भी उसे देखता है, भयभीत हो जाता है। अगर तुम उससे बचने की कोशिश करते हो और उसे उकसाते नहीं, तो भी उसके पास कहने के लिए कुछ होगा : “तुम किससे छिप रहे हो, चोर से? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुम मुझसे बच रहे हो?” लेकिन अगर तुम उसके पास जाते हो और कुछ कहने की कोशिश करते हो, तो भी वह तुमसे सामान्य बातचीत नहीं करेगा। उसमें सामान्य मानवता नहीं होती और जो लोग उसके साथ बातचीत करते हैं, वे न सिर्फ मौखिक नुकसान झेलते हैं, बल्कि अपनी ईमानदारी का नुकसान, भावनात्मक नुकसान, यहाँ तक कि कुछ शारीरिक नुकसान भी झेलते हैं। ऐसे लोग वास्तव में घृणित होते हैं! क्या उन्हें बुरी मानवता वाले लोगों के रूप में वर्गीकृत करना उचित होगा? (हाँ।) ऐसे व्यक्ति में बुरी मानवता होती है और वह उच्छृंखल होता है। उच्छृंखल व्यक्ति न सिर्फ दूसरों का उन्नयन करने में विफल रहता है, बल्कि उन्हें नाराजगी और घृणा भी महसूस कराता है और वह किसी के साथ मिलजुलकर नहीं रह पाता। मुझे बताओ, क्या उच्छृंखल व्यक्ति सत्य स्वीकार सकता है? (नहीं।) तो उसके अंदर किस तरह का स्वभाव होता है? (हठधर्मिता का।) उसकी हठधर्मिता जाहिर है, लेकिन कुछ और भी है—वह क्या है? (सत्य से विमुख होना।) सही कहा। हठधर्मी और सत्य से विमुख होने के भ्रष्ट स्वभाव होना—ये उच्छृंखल लोगों की दो विशेषताएँ हैं। ऐसा व्यक्ति न सिर्फ उच्छृंखल होता है, बल्कि स्वार्थी और हद से ज्यादा अशिष्ट भी होता है। उसकी हद से ज्यादा अशिष्टता में दूसरों को अनुचित और मनमाने ढंग से परेशान करने का तत्त्व शामिल होता है। जब तुम उससे बातचीत करते हो तो दयालुता से बात करना काम नहीं आता—उसे लगता है कि तुम्हारे गुप्त इरादे हैं। अगर तुम सख्ती से बात करते हो तो उसे लगता है कि तुम उसे धमका रहे हो, लेकिन जब उसकी उच्छृंखलता से दूसरों को नुकसान पहुँचता है तो वह फिर भी कहेगा, “मेरा इरादा तुम्हें ठेस पहुँचाने का नहीं था। अगर तुम्हें ठेस लगी हो तो मैं माफी माँगता हूँ।” हालाँकि ये शब्द अच्छे लगते हैं लेकिन जब वह व्यक्ति जिसे ठेस पहुँची है, उसे माफ नहीं करता, यहाँ तक कि उसकी आलोचना भी करता है तो उच्छृंखल व्यक्ति क्रोधित हो जाता है और कहता है, “तुम बस इसे छोड़ नहीं सकते—क्या तुम मेरी माफी का फायदा नहीं उठा रहे? क्या तुम्हें लगता है कि मेरे माफी माँग लेने के कारण मुझे आसानी से धौंस दी जा सकती है? और अब तुम मेरी कमियाँ बता रहे हो! क्या मुझमें कमियाँ हैं? क्या तुम उन्हें बताने के काबिल हो?” क्या यह सत्य को स्वीकार न करने का मामला नहीं है? (हाँ, है।) इसमें उसका भ्रष्ट स्वभाव शामिल है। उसकी मानवता के ये लक्षण स्वाभाविक रूप से भ्रष्ट स्वभावों के कुछ लक्षणों में भी अभिव्यक्त होते हैं—वे जुड़े हुए हैं। ऐसे लोगों के भ्रष्ट स्वभावों की विशेषताओं में हठधर्मिता, सत्य से विमुखता और थोड़ी-बहुत दुष्टता शामिल है। ये पहलू उनके भ्रष्ट स्वभावों के लक्षण हैं।

जन्मजात स्थितियों में एक और पहलू शामिल है, जो मानवीय सहजवृत्ति है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास करने के बाद सीसीपी सरकार द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों का उन्मत्त उत्पीड़न, उनकी गिरफ्तारियाँ और उनके साथ क्रूर व्यवहार देखकर भयभीत, उद्वेलित, हो जाते हैं, कातर बन जाते हैं और डर जाते हैं। कभी-कभी उनके पैरों में भी जान नहीं रहती और वे लगातार शौचालय जाना चाहते हैं। यह किस चीज की अभिव्यक्ति है? (सहजवृत्ति की।) यह एक सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया है। सामान्य मानवता के भीतर, जब कुछ भयावह घटनाओं, लोगों के जीवन से जुड़ी स्थितियों या उन्हें ख़तरे में डाल सकने वाले मामलों की बात आती है तो चाहे वह जानकारी सुनने पर हो या वास्तविकता से सामना होने पर, उनमें कुछ सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ होंगी, वे कातर और डरे हुए महसूस करेंगे। साथ ही, उनके शरीर प्राकृतिक रूप से कुछ सामान्य प्रतिक्रियाएँ प्रदर्शित करेंगे, जैसे कि घबराहट, मांसपेशियों में ऐंठन, अस्थायी बहरापन या अंधापन, साथ ही शुष्क मुँह, कमजोर पैर, अत्यधिक पसीना आना, मूत्राशय या आँतों पर नियंत्रण खोना। क्या ये प्रतिक्रियाएँ होने की संभावना है? (हाँ।) ये प्रतिक्रियाएँ चाहे तंत्रिका-तंत्र द्वारा नियंत्रित हों या किसी अन्य कारण से उत्पन्न हों, हर हालत में बाहरी कारक द्वारा देह में उत्पन्न प्रतिक्रियाएँ हैं और इन प्रतिक्रियाओं को सामूहिक रूप से सहजवृत्ति कहा जाता है। शरीर की सहन करने की क्षमता की अपनी सीमाएँ होती हैं; जब वह व्यक्ति के साहस की सीमाएँ पार कर जाती है तो शरीर कुछ सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ प्रदर्शित करेगा। इन प्रतिक्रियाओं को दूसरे लोग कमजोरी समझ सकते हैं या वे हास्यास्पद, दयनीय या सहानुभूति के योग्य लग सकती हैं, लेकिन ये अकाट्य रूप से व्यक्ति की जन्मजात सहजवृत्तियों की अभिव्यक्तियाँ हैं। ऐसे लोग भी हैं जो खतरे से सामना होने पर अपना सिर पकड़कर रोएँगे, आँसू बहाएँगे, यहाँ तक कि जोर से चिल्लाएँगे; दूसरे लोग छिपने के लिए किसी अँधेरे कोने में सिकुड़ सकते हैं—ऐसी सभी प्रतिक्रियाएँ सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ हैं। ये सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ, चाहे वह रोना हो, हँसना हो या इतना ज्यादा भयभीत हो जाना कि वे कुछ अपमानजनक कर दें—क्या इनमें कुछ सही या गलत है? (नहीं।) तो जो लोग सरकार द्वारा विश्वासियों को गिरफ्तार किए जाने के बारे में सुनकर डर जाते हैं, क्या हम उनके बारे में यह कह सकते हैं कि वे लोग कायर हैं और उनमें मानवता नहीं है? (नहीं।) क्या यह कथन, “ईश्वर में विश्वास करना आस्था के साथ आना चाहिए; व्यक्ति को डरना नहीं चाहिए!” सही है? (नहीं।) “यह कमजोरी है, कायरता और अक्षमता की अभिव्यक्ति है। यह ईश्वर में विश्वास की कमी दर्शाती है और यह भी दर्शाती है कि वे ईश्वर पर भरोसा करना नहीं जानते। ऐसा व्यक्ति विजेता नहीं है!” क्या हम यह कह सकते हैं? (नहीं।) क्यों नहीं? (यह सिर्फ एक शारीरिक प्रतिक्रिया है जो तब होती है जब कोई व्यक्ति बाहरी परिस्थितियों का सामना करता है।) यह एक सामान्य शारीरिक प्रतिक्रिया है, न कि भ्रष्ट स्वभाव से प्रेरित अभिव्यक्ति। इसका मतलब यह है कि जब लोगों में ऐसी परिस्थितियों में ये अभिव्यक्तियाँ और प्रकाशन होते हैं तो यह भ्रष्ट स्वभाव के प्रभाव के कारण नहीं होता, न ही ऐसा इसलिए होता है कि उनकी मानवता के भीतर कुछ विचार या दृष्टिकोण उनके ऊपर हावी हो रहे होते हैं। ये प्रतिक्रियाएँ कोई ऐसी चीज नहीं होतीं जिसकी तुम पहले से कल्पना कर लो; ऐसा नहीं है कि ऐसी परिस्थितियों से सामना होने पर तुम्हारे मन में अचानक अजीबोगरीब विचार आते हैं और फिर जब तुम इसके बारे में ज्यादा सोचते हो तो तुम घबरा जाते हो, तुम्हारा शरीर ऐंठने लगता है, यहाँ तक कि तुम अपने मूत्राशय या आँतों पर नियंत्रण खो देते हो। इन प्रतिक्रियाओं के पीछे यह कारण नहीं होता। बल्कि ऐसा इसलिए होता है कि इन घटनाओं या इस समाचार के बारे में सुनने के बाद बिना किसी सुचिंतित विचार के, बिना किसी मानसिक फिल्टरिंग या प्रोसेसिंग के तुम्हारा शरीर प्राकृतिक रूप से कुछ सहजवृत्तिजन्य शारीरिक प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करता है। तो ऐसी प्राकृतिक प्रतिक्रिया शरीर की सहजवृत्तियों द्वारा उत्पन्न होती है। इसमें कुछ सही या गलत नहीं होता, ताकत और कमजोरी के बीच का कोई अंतर नहीं होता और निश्चित रूप से सकारात्मक और नकारात्मक के बीच का कोई अंतर नहीं होता। कुछ लोग कहते हैं, “चाहे सरकार कैसे भी गिरफ्तारियाँ करे, मैं नहीं डरता!” मैं कहूँगा, तो यह तुम्हें मूर्ख बनाता है। जब बड़ा लाल अजगर तुम्हें प्रताड़ित करेगा, तब देखेंगे तुम डरते हो या नहीं—उस समय तुम्हारे लिए चीख रोकना असंभव होगा। जब दर्द अपने चरम पर पहुँचेगा तो क्या सोचोगे? “मैं मरना पसंद करूँगा। मरकर मैं आजाद हो जाऊँगा, फिर मुझे दर्द नहीं होगा।” ये सब शरीर की सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ हैं और इनमें से कोई भी समस्या नहीं है। कुछ लोग कह सकते हैं, “मैं नहीं डरता; अगर कोई मुझे पीटेगा तो मैं जवाबी हमला करूँगा, और अगर मैं जीत न पाया तो बस भाग जाऊँगा।” लेकिन जब तुम भागोगे और कोई तुम पर बंदूक तान देगा तो तुम्हारे पैरों में जान नहीं रहेगी, तुम्हारा दिल कातर बन जाएगा और तुम नहीं चिल्लाओगे, “मैं नहीं डरता”। जब तुम्हारा जीवन दाँव पर लगा होगा तो तुम भी मरने से डरोगे—यह तुम्हारी सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया है। चूँकि ये सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ हैं, इसलिए चाहे व्यक्ति में जो भी अभिव्यक्तियाँ हों या मानवीय कमजोरी के जो भी प्रकाशन हों, इसे गलत नहीं माना जाता, न ही यह शर्मनाक है और परमेश्वर इसकी निंदा नहीं करता। प्राकृतिक रूप से, तुम्हें इन प्रतिक्रियाओं को रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और देखने वालों को भी उनका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, क्योंकि सभी एक-जैसे है—हर कोई मांस और खून से बना है। मांस और खून की सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ ऐसी ही होती हैं; तुम ऐसे हो, वे ऐसे हैं, हर व्यक्ति ऐसा है। यह ऐसा ही है जैसे भेड़िये से सामना होने पर व्यक्ति की पहली सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया क्या होती है? “भागो! जितना तेज भाग सको, भागो!” और भागते समय वे यह देखते हुए कि भेड़िया उन्हें पकड़ तो नहीं लेगा, चिंता करते हैं : “क्या होगा अगर उसने मुझे पकड़ लिया? क्या होगा अगर उसने मेरी गर्दन पर काट लिया—क्या मैं मर जाऊँगा? काश मेरे पास बंदूक या लोहे की छड़ होती।” वे इन चीजों के बारे में सिर्फ भागते समय सोचते हैं। लेकिन चाहे तुम इस बारे में जो भी सोचो, तुम्हारी पहली सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया निश्चित रूप से जल्दी से जल्दी उसके पीछा करने से बचना, जितना हो सके उतनी तेजी से और दूर भागना, पकड़े और खाए जाने से बचना होती है। ये सब सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ हैं। तुम्हारी सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया क्या है? वह है खुद को बचाना, अपने जीवन की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना कि तुम्हारा जीवन खतरे में न पड़े। चाहे ये सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ देखने वाले को कायरतापूर्ण, असहनीय या शर्मनाक लगें, ये वास्तव में शर्मनाक नहीं हैं, क्योंकि ये मांस और रक्त से बने लोगों की सामान्य अभिव्यक्तियाँ हैं; ये प्राकृतिक प्रकाशन हैं। एक सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया बस एक प्राकृतिक प्रकाशन है और उसमें कुछ भी शर्मनाक नहीं है। उदाहरण के लिए, जब तुम कोई चुटकुला सुनोगे तो हँसोगे। अगर तुम्हारे मुँह में भोजन या पानी हो तो भी तुम हँसोगे, क्योंकि यह एक सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया है। सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया ईश्वर प्रदत्त, जन्मजात कार्य होता है, जो प्राकृतिक रूप से तब घटित होगा जब परिस्थितियाँ सही होंगी। इसलिए जब सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाओं की बात आती है तो वे प्राकृतिक प्रकाशन होती हैं। वे मानवता की कमजोरी या दोष के प्रकाशन हो सकते हैं या वे तुम्हारी देह की प्राकृतिक अभिव्यक्ति के प्रकाशन हो सकते हैं। जो भी हो, चूँकि यह एक सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया है, इसलिए कुछ सही या गलत नहीं है। अगर तुम्हें शर्म आती है तो यह दर्शाता है कि तुममें अंतर्दृष्टि की कमी है और तुम्हारी मानवता काफी छिछली है—तुम दूसरों पर अच्छा प्रभाव छोड़ना चाहते हो। अगर तुम अपनी सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाओं को रोकने की कोशिश करते हो तो यह साबित होता है कि तुम मूर्ख हो और तुम्हारे विवेक में समस्या है। विशेष खतरनाक परिवेशों और परिस्थितियों में, भले ही तुम इतने भयभीत हो कि तुम्हारी पतलून गीली हो जाए, तुम्हें इसे शर्मनाक नहीं समझना चाहिए। असल में, यह सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति है। ऐसी परिस्थितियों में किसी में भी ये अभिव्यक्तियाँ हो सकती हैं—यहाँ तक कि प्रसिद्ध या महान लोग भी इसके अपवाद नहीं हैं। कड़ी परिस्थितियों में कोई अतिमानव नहीं होता—तुम सिर्फ एक साधारण व्यक्ति हो, कुछ खास नहीं, और तुम्हारे पास शेखी बघारने लायक कुछ नहीं है। यहाँ तक कि अगर तुम इतने डर जाते हो कि तुम्हारी पतलून गीली हो जाती है और दूसरों को इसका पता चल जाता है तो भी यह कोई शर्मनाक बात नहीं है, क्योंकि इस तरह लोग तुम्हारा आदर नहीं करेंगे या तुम्हारी पूजा नहीं करेंगे, और कम से कम, तुम सुरक्षित रहोगे। यह अब स्पष्ट हो जाना चाहिए, है? सहजवृत्तिजन्य मानवीय प्रतिक्रियाएँ बहुत सामान्य और स्वाभाविक हैं। उदाहरण के लिए, जब तुम्हारे बाल गंदे होते हैं और तुम्हारी खोपड़ी में खुजली होती है तो तुम सहजवृत्तिजन्य रूप से उसे खुजलाते हो। भले ही बाद में तुम्हारे नाखून गंदगी से भर जाएँ और लोग तुम्हें अशोभनीय या अस्वास्थ्यकर समझें, तुम क्या कर सकते हो? जब तुम्हारे बाल गंदे होंगे तो उनमें गंदगी होगी, क्योंकि तुम मांस और रक्त हो, धूल से बने हो और तुम्हें यह तथ्य स्वीकारना चाहिए। यह स्थिति बस तुम्हें यह बता रही है कि तुम्हारे बाल गंदे हैं और उन्हें धोने की जरूरत है। जब तुम्हारी खोपड़ी में खुजली होती है तो खुजलाना एक सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया है। सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया एक प्राकृतिक, सामान्य प्रतिक्रिया है, जो ईश्वर द्वारा बनाई गई जन्मजात स्थितियों और तंत्रिका-तंत्र के तहत एक सामान्य अभिव्यक्ति है। भले ही कभी-कभी ये अभिव्यक्तियाँ तुम्हें शर्मिंदा, अशोभनीय या अप्रतिष्ठित महसूस करा सकती हैं, फिर भी तुम्हें उन्हें बदलने या रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। एक बात तो यह है कि ऐसा करने से तुम्हें मानवीय प्रवृत्तियों के साथ सही तरीके से पेश आने में मदद मिलती है; दूसरी बात यह है कि यह तुम्हारे आचरण के लिए भी उन्नयनकारी और लाभकारी है। एक बार जब तुम इस पहलू के बारे में एक निश्चित समझ और जागरूकता हासिल कर लेते हो तो दूसरों के साथ बातचीत और व्यवहार करते समय अगर मानवीय दैहिक सहजवृत्ति के कुछ पहलू प्राकृतिक रूप से अभिव्यक्त और बेनकाब होते हैं तो तुम्हें उन्हें जानबूझकर छिपाने की जरूरत नहीं होगी। और अगर कभी-कभी कोई शर्मनाक स्थिति वास्तव में उत्पन्न हो ही जाती है तो उसे समझाने या छिपाने या दिखावा करने की कोई जरूरत नहीं होगी, क्योंकि यह सामान्य मानवता का प्रकाशन है और यह एक सहज मानवीय प्रतिक्रिया भी है—यह सब उन सीमाओं के भीतर है जिसे एक सामान्य व्यक्ति स्वीकार सकता है। उदाहरण के लिए, जब लोग फलियाँ खाते हैं तो उनके शरीर में प्राकृतिक रूप से कुछ गैस बनती है और सहजवृत्तिजन्य रूप से वे डकार लेंगे या गैस निकालेंगे। यह एक बहुत ही प्राकृतिक बात है। युवा स्त्री-पुरुष अक्सर महसूस करते हैं कि ऐसी अभिव्यक्तियाँ शर्मनाक हैं, लेकिन असल में इसमें कुछ भी शर्मनाक नहीं है। यह शरीर की एक सामान्य सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया है और इसका आचरण या क्रियाकलाप करने के सिद्धांतों से कोई लेना-देना नहीं है। हालाँकि कुछ लोग शायद इसे न समझ सकें या वे इससे असंतुष्ट हो सकते हैं, लेकिन यह निश्चित रूप से व्यक्ति के स्व-आचरण के लिए कोई सीमा न होने, खराब परवरिश होने, अनियंत्रित, उच्छृंखल, स्वार्थी होने या खराब या बुरी मानवता होने के स्तर तक नहीं पहुँचता—इसे इस हद तक बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है। यह मुद्दा स्व-आचरण से जुड़ा नहीं है और निश्चित रूप से इसका भ्रष्ट स्वभाव से कोई लेना-देना नहीं है। मामले को बढ़ा-चढ़ाकर कहने की कोई जरूरत नहीं है। इन चीजों के साथ सही तरीके से पेश आना चाहिए।

कुछ लोग अविकसित देशों या परिवेशों में या खराब परिस्थितियों वाले परिवारों में पैदा होने के कारण अपने जीवन में चीजों पर विशेष ध्यान नहीं देते। हो सकता है वे भोजन की स्वच्छता को लेकर सतर्क न हों, हो सकता है वे एक ही वस्त्र बिना धोए लंबे समय तक पहनते हों, शायद उन्हें यह भी पता नहीं चलता कि उनके कपड़ों से पसीने की बदबू आ रही है। यह किस तरह की अभिव्यक्ति है? (यह व्यक्ति की जीवनशैली से जुड़ी आदतों की अभिव्यक्ति है।) यह जीवनशैली से जुड़ी आदतों का मामला है; यह स्वच्छता पर ज्यादा ध्यान न देना है। कुछ लोग अपना चेहरा और पैर धोने के लिए एक ही तौलिया इस्तेमाल करते हैं और फिर दिन में काम पर जाते समय पसीना पोंछने के लिए उसका इस्तेमाल करते हैं। कभी-कभी, अगर उन्हें कोई घायल दिखता है तो वे घाव ढकने के लिए भी उसी तौलिये का इस्तेमाल करते हैं। वे स्वच्छता पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते। यह क्या समस्या है? इसका उस परिवार की स्थितियों से एक निश्चित संबंध है, जिसमें वे पैदा हुए थे। कुछ लोग अच्छी जीवन-स्थितियों वाले परिवारों से आते हैं, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति के पास कई तौलिये और नहाने के तौलिये होते हैं, जिनमें चेहरे के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तौलियों और पैरों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तौलियों के बीच स्पष्ट अंतर होता है। वे रोज नहाते हैं और अपना चेहरा धोते हैं, और तौलिये और नहाने के तौलिये भी रोज धोए जाते हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि वे सफाई को लेकर विशेष रूप से तुनकमिजाज हैं। ऐसी आदतें कैसे बनती हैं? वे परिवार में एक निश्चित आर्थिक आधार और वित्तीय स्थितियों का नतीजा होती हैं, जो इन परिष्कृत जीवनशैली से जुड़ी आदतों को जन्म देती हैं। इससे व्यक्ति स्वच्छता के प्रति बहुत चौकस और सम्माननीय दिखाई देता है। ऊपर से ऐसा लगता है कि वे सफाई को लेकर विशेष रूप से तुनकमिजाज हैं, लेकिन असल में इन सबके पीछे वे जन्मजात स्थितियाँ हैं जो इन्हें जन्म देती हैं। तो कुछ लोग इन चीजों पर ध्यान क्यों नहीं देते? कुछ लोग प्राकृतिक रूप से ऐसे मामलों पर ज्यादा ध्यान देने की प्रवृत्ति नहीं रखते और अगर उनके पास साधन हों तो भी वे इन चीजों को बहुत गंभीरता से नहीं लेते—यह कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है। जहाँ तक दूसरों का संबंध है, यह उनकी पारिवारिक स्थितियों और परिवेश के कारण होता है। सात-आठ लोगों के परिवार में सभी लोग अपना चेहरा और पैर धोने के लिए एक ही तौलिया इस्तेमाल कर सकते हैं और एक व्यक्ति के बाद दूसरा उसका इस्तेमाल कर सकता है। कुछ लोग तो अपने पैर धोए बिना ही बिस्तर पर चले जाते हैं और फिर भी अच्छी नींद लेते हैं। इससे उनके दैनिक जीवन या स्व-आचरण पर कोई असर नहीं पड़ता। जो लोग सफाई को लेकर विशेष रूप से तुनकमिजाज होते हैं, वे कह सकते हैं, “लेकिन तुम्हारे पैरों पर कीटाणु हैं—वे बहुत गंदे हैं!” जिस पर दूसरे जवाब दे सकते हैं, “पैर गंदे नहीं हैं; वे पूरे दिन ढके रहते हैं और बाहरी दुनिया के संपर्क में नहीं आते, इसलिए कोई कीटाणु नहीं होते, बस थोड़ा पैरों का पसीना होता है। लोगों को लगता है कि पैरों का पसीना गंदा होता है, लेकिन असल में ऐसा नहीं है। कुछ जगहों पर पैरों का इस्तेमाल खाना बनाने के लिए भी किया जाता है। कौन जानता है, बाजार से जो खाना तुम खरीदते हो, वह लोगों ने पैरों से आटा गूँधकर बनाया हो। तुम इसे नहीं देख सकते और खाना खा लेते हो—फिर भी तुम खुद को सफाई के मामले में इतना तुनकमिजाज समझते हो!” चाहे कोई व्यक्ति विशेष ध्यान दे या न दे, यह सब जीवनशैली से जुड़ी आदतें या जीने के तरीके हैं जिन्हें जन्मजात स्थितियों द्वारा आकार दिया जाता है। इसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि वे कैसे आचरण करते हैं। तो किस तरह की अभिव्यक्तियों में व्यक्ति का आचरण शामिल होता है? उदाहरण के लिए, किसी खतरनाक स्थिति से सामना होने पर, बड़े लाल अजगर द्वारा पीछा किए जाने पर हर व्यक्ति तनावग्रस्त और डरा हुआ महसूस करता है और उसकी कुछ सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ होंगी। लेकिन कुछ लोग कह सकते हैं, “चाहे हम सब अभी कितने भी तनावग्रस्त और डरे हुए क्यों न हों, हमें शांत रहना चाहिए और स्थिति की समस्याओं से निपटना चाहिए। हमें पहले अगुआओं और कार्यकर्ताओं और दूसरे क्षेत्रों के भाई-बहनों को बचाना चाहिए, ताकि वे जल्दी से निकल सकें।” लेकिन दूसरे लोग अलग तरह से सोच सकते हैं : “उन्हें बचाना चाहिए? और मेरा क्या? अगर अंत में मैं बच नहीं पाया तो क्या होगा? मुझे पहले भागना होगा! जो पहले भागेगा, वह पकड़ा नहीं जाएगा और सजा या यातना नहीं पाएगा।” देखो, खतरे से सामना होने पर, हालाँकि सभी में डर की एक ही जैसी सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रिया होती है, कुछ लोग दूसरों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं और अपने जीवन की सुरक्षा को पृष्ठभूमि में रखते हैं—ऐसे लोग प्रेम और दयालुता दिखाते हैं। लेकिन दूसरे लोग पहले अपने बारे में सोचते हैं, दूसरों के बारे में सोचे बिना भाग लेते हैं—यह स्वार्थ है। असल में, अपनी मानवता के जमीर के अर्थ में, क्या यह दूसरा समूह जानता है कि उन्हें पहले अगुआओं और कार्यकर्ताओं और दूसरे क्षेत्रों के भाई-बहनों की रक्षा करनी चाहिए? औचित्य के संदर्भ में, क्या वे इसे समझते हैं? (हाँ।) जब हर व्यक्ति इस औचित्य को समान रूप से समझता है और उसमें सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ होती हैं तो लोग अपनी अभिव्यक्तियों के संबंध में भिन्न होते हैं। यह व्यक्तियों के बीच मानवता में अंतर दर्शाता है। कुछ लोग स्वार्थी और नीच होते हैं, सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं और दूसरों को नजरअंदाज करते हैं, जबकि अन्य दयालु होते हैं, दूसरों के प्रति निस्स्वार्थ और विचारशील होने में सक्षम होते हैं, उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं और स्वार्थपूर्ण तरीके से कार्य नहीं करते। क्या यह मानवता के विभिन्न प्रकार दर्शाता है? (हाँ।) इससे अंतर स्पष्ट हो जाता है। तो इन दो अलग-अलग प्रकार की मानवता वाले लोगों में से किस तरह का व्यक्ति सत्य स्वीकारने और अपना भ्रष्ट स्वभाव त्याग देने में सक्षम होता है? (अच्छी मानवता वाला व्यक्ति सत्य स्वीकारने और आसानी से अपना भ्रष्ट स्वभाव त्याग देने में सक्षम होता है।) स्वार्थी लोगों के बारे में क्या कहना है? (उनके लिए सत्य का अभ्यास करना आसान नहीं है; अगर वे उसे समझते हों तो भी वे उसे अभ्यास में नहीं ला सकते, इसलिए उनके लिए अपना भ्रष्ट स्वभाव त्याग देना कठिन है।) बिल्कुल। इसलिए, हालाँकि हर व्यक्ति भ्रष्ट स्वभाव प्रकट कर सकता है, लेकिन अगर लोगों की मानवता अलग-अलग है तो वे इस मामले में भी भिन्न होंगे कि वे अपना भ्रष्ट स्वभाव त्याग सकते हैं या नहीं। जब लोगों में अलग-अलग तरह की मानवता होती है तो वे एक ही स्थिति पर अलग-अलग रवैये और नजरिये से प्रतिक्रिया करते हैं। यह निर्धारित करता है कि व्यक्ति अंततः सत्य और सकारात्मक चीजें स्वीकार सकता है या नहीं, सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकता हैं या नहीं और अपना भ्रष्ट स्वभाव त्याग सकता है या नहीं। व्यक्ति की मानवता महत्वपूर्ण है, है न? खतरे का सामना करने पर हर व्यक्ति की कुछ सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ होंगी—वे सभी डर, घबराहट और आतंक महसूस करते हैं, वे अनिश्चित होते हैं, मृत्यु से डरते हैं और भाग जाना चाहते हैं। ऐसी विकट परिस्थिति में अच्छी और दयालु मानवता वाला इंसान पहले अगुआओं और कार्यकर्ताओं और दूसरे क्षेत्रों के भाई-बहनों की सुरक्षा के बारे में सोचेगा—पहले वह दूसरों की सुरक्षा के बारे में सोचता है। हालाँकि उसमें भी सहजवृत्तिजन्य प्रतिक्रियाएँ होती हैं—भय, घबराहट, आतंक—और प्राकृतिक रूप से उसमें आत्म-सुरक्षा की प्रवृत्ति भी होती है, लेकिन जिस तरह वह स्थिति सँभालता है, वह पहले अपनी सुरक्षा करने के लिए नहीं बल्कि पहले दूसरों की सुरक्षा करने के लिए होता है। दयालु मानवता वाला इंसान इसी तरह से आचरण करता है। और स्वार्थी व्यक्ति जिस तरह से आचरण करता है, उसके बारे में क्या कहना है? वह दूसरों के बारे में सोच सकता है, लेकिन उनकी सुरक्षा नहीं करता—वह पहले अपनी सुरक्षा करता है। इसलिए दयालु मानवता वाले लोगों में, जो दूसरों से सहानुभूति रख सकते हैं और उनकी रक्षा कर सकते हैं, सत्य स्वीकारने की संभावना होती है। उनकी मानवता का जमीर और विवेक सत्य स्वीकारने और अपना भ्रष्ट स्वभाव त्याग देने के लिए आवश्यक स्थितियों के अनुरूप होते हैं। जहाँ तक स्वार्थी किस्म के व्यक्ति का संबंध है, अगर वह सत्य समझता हो तो भी वह न तो उसे स्वीकारता है और न ही उसका अभ्यास करता है। खतरे से सामना होने पर उसकी मानवता आत्म-सुरक्षा और स्वार्थ अभिव्यक्त करती है। इसलिए उसके द्वारा अभिव्यक्त मानवता से आँकने पर यह स्पष्ट है कि उसमें सत्य स्वीकारने और अपना भ्रष्ट स्वभाव त्याग देने के लिए आवश्यक मूलभूत स्थितियाँ नहीं होतीं। इसका मतलब यह है कि ऐसी परिस्थितियों में जहाँ सत्य का अभ्यास करना आवश्यक होता है, उसका जमीर और विवेक अपना काम करना बंद कर देते हैं। वह अपने जमीर और विवेक के खिलाफ काम करता है। वह सत्य खोजना और सही चीजें करना नहीं चुनता जो उसे करना चाहिए, इसके बजाय वह अपने जमीर और विवेक के खिलाफ जाना चुनता है, यहाँ तक कि नैतिक न्याय और सत्य के खिलाफ जाता है, अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाएँ और अपने हितों की जरूरतें पूर्ण रूप से पूरी करता है ताकि वह खुद को बचा सके और अपने तमाम हित सुरक्षित रख सके। इसलिए ऐसे व्यक्ति के लिए सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर या उद्धार के मार्ग पर चलना आसान नहीं होगा। इसका निहितार्थ यह है कि उसका भ्रष्ट स्वभाव उतार फेंकना बहुत कठिन है। इसे कुछ हद तक विवेकपूर्ण तरीके से कहें तो, यह कहने के बजाय कि वह अपना भ्रष्ट स्वभाव त्याग देने में असमर्थ है, हम कहेंगे कि उसके लिए ऐसा करना बहुत कठिन है। तो अब इस मुद्दे को देखते हुए, व्यक्ति अपना भ्रष्ट स्वभाव त्यागकर उद्धार प्राप्त कर सकता है या नहीं, क्या यह पूरी तरह से उसकी जन्मजात स्थितियों पर निर्भर करता है? (नहीं।) यह किस पर निर्भर करता है? (उसकी मानवता पर।) यह उसके चरित्र पर निर्भर करता है और इस बात पर भी कि जब वह विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करता है तो उसकी मानवता का जमीर और विवेक काम कर सकते हैं या नहीं। दूसरे शब्दों में, यह इस बात पर निर्भर करता है कि जब चीजें होती हैं तो वह अपने जमीर और विवेक के अनुसार कार्य करता है या नहीं। अगर व्यक्ति अपने जमीर और विवेक के निर्देशन में कार्य करता है तो वह सकारात्मक चीजें और सत्य चुनेगा। लेकिन अगर वह अपने जमीर और विवेक के खिलाफ कार्य करता है तो चाहे वह कितना भी सत्य समझता हो या उसकी काबिलियत उच्च हो या निम्न, वह नैतिक न्याय के खिलाफ जाएगा, सत्य सिद्धांतों के खिलाफ जाएगा, यहाँ तक कि अपनी मानवता भी खो देगा। इससे तुम्हें क्या स्पष्ट होता है? क्या मानवता महत्वपूर्ण है? (हाँ।) चाहे जो भी स्थिति हो, अगर व्यक्ति अपने जमीर और विवेक के खिलाफ और नैतिक न्याय के विरुद्ध कार्य करता है, जब भी ये उसके हितों से संबंधित हों, तो वह अपनी मानवता खो देगा। वह अपने हित निरापद और सुरक्षित रखने के लिए कुछ भी करेगा। इसलिए किसी स्थिति से सामना होने पर वह अपने जमीर और विवेक के अनुसार कार्य करना नहीं चुनेगा। इसके बजाय वह अपने हितों की खातिर उनके खिलाफ जाएगा, अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए अपनी ईमानदारी और गरिमा का त्याग करेगा। इसे इस परिप्रेक्ष्य से देखें तो, ऐसे लोग आम तौर पर चाहे कितना भी अच्छा व्यवहार करें, वे अपने हितों का ही अनुसरण करते हैं—उनका भ्रष्ट स्वभाव उतार फेंकना बहुत मुश्किल है। वे सत्य नहीं स्वीकारते—क्षण जितना ज्यादा नाजुक होता है और जितना ज्यादा वे वास्तविकता का सामना करते हैं, उतना ही ज्यादा वे अपने जमीर, विवेक और सत्य के खिलाफ जाना चुनते हैं; और क्षण जितना ज्यादा नाजुक होता है, उतना ही ज्यादा वे सत्य से विमुख होने का अपना भ्रष्ट स्वभाव और उतनी ही ज्यादा अपनी स्वार्थपूर्ण, नीच मानवता प्रकट करते हैं। इसलिए, ऐसे व्यक्ति के लिए अपना भ्रष्ट स्वभाव उतार फेंकना बहुत कठिन है। अब तक, क्या यह स्पष्ट हो गया है कि भ्रष्ट स्वभाव उतार फेंकने के लिए व्यक्ति की मानवता एक मूलभूत स्थिति है? व्यक्ति में किस तरह की मानवता है, इससे निर्धारित होता है कि वह अंततः अपना भ्रष्ट स्वभाव त्याग सकता है या नहीं, वह अंततः सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकता है या नहीं और वह अंततः उद्धार प्राप्त कर सकता है या नहीं।

कुछ लोग सौम्य और सहनशील व्यक्तित्व के साथ प्राकृतिक रूप से अल्पभाषी होते हैं। वे शायद ही कभी किसी बात का बतंगड़ बनाते हैं या दूसरों से विवाद करते हैं, न ही वे बहुत ज्यादा शोरगुल मचाते हैं। उनकी वाणी दिखावटी नहीं होती और उनकी आवाज नरम होती है। बाहरी तौर पर वे बहुत सौम्य दिखाई देते हैं और व्यवस्थित तरीके से और बिना हड़बड़ी के काम करते हैं। यहाँ तक कि कुछ शर्मीले लोग भी होते हैं जो दूसरों के साथ ज्यादा मौखिक संवाद करना पसंद नहीं करते और लोगों के साथ ज्यादा मिलने-जुलने के लिए तैयार नहीं होते। जहाँ भी वे जाते हैं, वहाँ मूलभूत रूप से उनकी मौजूदगी का कोई एहसास नहीं होता। ये अभिव्यक्तियाँ किस तरह के मुद्दे से संबंधित हैं? (यह उनके व्यक्तित्व से जुड़ा मुद्दा है।) यह उनके जन्मजात व्यक्तित्व से जुड़ा मुद्दा है। इन लोगों का व्यक्तित्व बाहर से ऐसा होता है और अंदर से उनके विचार भी बहुत सरल होते हैं। वे दूसरों के साथ अपेक्षाकृत अच्छे होते हैं, दूसरों के साथ अपेक्षाकृत ठीक से मिलते-जुलते हैं, दूसरों का फायदा नहीं उठाते और जब दूसरों से उपकार या मदद लेते हैं तो उसका बदला चुकाते हैं और अपने दिल में दूसरों की दयालुता याद भी रखते हैं। बाहरी तौर पर ऐसा लगता है कि इन लोगों में अच्छी मानवता है : वे मनुष्यों और जानवरों दोनों को ही नुकसान नहीं पहुँचाते; वे दूसरों के प्रति सहनशील, संवेदनशील होते हैं और दूसरों के साथ किसी बात पर झगड़ा नहीं करते; वे विवादों में नहीं उलझते, न ही वे दूसरों के बारे में गपशप करते हैं; वे लोगों की पीठ पीछे उनकी आलोचना नहीं करते और कभी दूसरों पर अग्रसक्रिय रूप से हमला नहीं करते या उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाते; जब कोई मुश्किल में होता है तो अगर वे मदद कर सकते हों तो कभी मना नहीं करते और बदले में कुछ नहीं माँगते। ज्यादातर लोग कहेंगे कि ये व्यक्ति काफी मस्तमौला हैं। तो क्या बाहरी तौर पर ऐसा लगता है कि इन लोगों में अच्छी मानवता होती है? (हाँ।) लेकिन एक अवसर पर परमेश्वर का घर उनसे पूछता है कि चीजें कैसी चल रही हैं : “तुम लोगों की कलीसिया के अगुआओं का काम कैसा चल रहा है? भाई-बहन उनके बारे में क्या सोचते हैं? क्या इस अवधि के दौरान सुसमाचार के काम के कोई नतीजे मिले हैं? क्या किसी ने कलीसिया के कार्य में गड़बड़ की है या बाधा डाली है?” वे इस पर विचार करते हैं : “ये मुझसे इस बारे में क्यों पूछ रहे हैं? ये कहना क्या चाहते हैं? क्या इनका तात्पर्य यह है कि मुझे कहना चाहिए कि अगुआ अच्छा काम नहीं कर रहे? क्या ये हमारे अगुआओं को बरखास्त करना चाहते हैं? ये कुरेद-कुरेदकर मेरे मुँह से शब्द निकलवाने और मुझसे पुष्टि प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। खैर, मैं कुछ नहीं कहने वाला। अगर किसी दिन अगुआओं को बरखास्त कर दिया गया और उन्हें पता चला कि मैंने उनकी समस्याओं की रिपोर्ट की थी तो क्या वे मेरे प्रति द्वेष नहीं पाल लेंगे?” इसलिए वे जवाब देते हैं, “अगुआ फिलहाल बहुत अच्छा काम कर रहे हैं; मैंने कोई समस्या नहीं देखी।” वे बस इतना ही कहते हैं। जब उनसे दोबारा पूछा जाता है, “तुमने वाकई कोई समस्या नहीं देखी?” तो वे जवाब देते हैं, “फलाँ-फलाँ बहन से पूछो, वह अक्सर अगुआओं से बातचीत करती है। वे अक्सर मिलते-जुलते हैं और वह उन्हें अच्छी तरह से जानती है। मैं उन्हें उतनी अच्छी तरह से नहीं जानता।” लेकिन असल में वे मन में सोचते हैं : “अगर मुझे पता हो तो भी मैं कुछ नहीं कह सकता। अगर मैं बोला और बाद में अगुआओं को बरखास्त कर दिया गया तो क्या वे मेरे प्रति द्वेष नहीं पाल लेंगे? अगर वे बरखास्त नहीं किए गए तो भी अगर उन्हें पता चला कि मैंने उनके बारे में कुछ बुरा कहा है तो क्या वे मेरे लिए समस्याएँ खड़ी नहीं कर देंगे? क्या वे मुझे सताएँगे नहीं? क्या मेरा कर्तव्य छीन नहीं लिया जाएगा? मैं कुछ नहीं कह सकता!” यह किस तरह की अभिव्यक्ति है? (यह धोखेबाजी की अभिव्यक्ति है।) और यह किस तरह की समस्या से संबंधित है? एक भ्रष्ट स्वभाव से। ऐसे व्यक्ति बाहरी तौर पर प्राकृतिक रूप से अच्छे व्यक्तित्व और अच्छी मानवता वाले लगते हैं, लेकिन जब भी दूसरों का मूल्यांकन करने या समस्याओं की रिपोर्ट करने की बात आती है तो वे दावा करते हैं कि वे उनके बारे में नहीं जानते, कहते हैं कि वे थोड़े समय से ही विश्वासी हैं और सत्य नहीं समझते, वे इतने मूर्ख हैं कि चीजों की असलियत नहीं जानते। चाहे वे किसी की भी समस्याएँ देखें, वे कभी इसकी रिपोर्ट नहीं करते या इसके बारे में नहीं बोलते। जब कोई व्यक्ति अगुआओं की पीठ पीछे उनकी आलोचना करता है या अपना कर्तव्य लापरवाही से निभाता है तो वे ऐसा दिखावा करते हैं कि उन्होंने उसे नहीं देखा या उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता और वे कभी कुछ नहीं बताते। जब अगुआ पूछते हैं, “तुमने फलाँ व्यक्ति के साथ बहुत समय बिताया है; उसका कर्तव्य-निर्वहन आम तौर पर कैसा होता है? क्या वह कठिनाई सहने और कीमत चुकाने में सक्षम है?” तो वे जवाब देते हैं, “अरे, मैं देखता हूँ कि वह सुबह बहुत जल्दी उठ जाता है और रात में बहुत देर से सोता है।” असल में वे बहुत पहले ही देख चुके होते हैं कि यह व्यक्ति अक्सर गैर-विश्वासी दुनिया के वीडियो देखता है और अपना कर्तव्य निभाने में कोई कीमत नहीं चुकाता, लेकिन वे सच नहीं बोलते; वे सभी के साथ हमेशा एक सतही सामंजस्य बनाए रखते हैं। बाहरी तौर पर उनका जन्मजात व्यक्तित्व ठीक लगता है और उनकी मानवता भी अच्छी लगती है, लेकिन अच्छी मानवता के इस दिखावे के पीछे क्या छिपा होता है? वे खुशामदी होते हैं; ऐसे खुशामदी लोग, जो किसी को नाराज नहीं करते, कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाते, कभी दूसरों का फायदा नहीं उठाते और कभी दुश्मन नहीं बनाते। उनके आचरण का सिद्धांत क्या होता है? (किसी को नाराज न करना।) वे किसी को नाराज नहीं करते, किसी को नुकसान नहीं पहुँचाते और सिर्फ खुद को बचाना चाहते हैं। क्या यह धूर्त होना है? (हाँ।) यहाँ तक कि जब कोई यह कहते हुए ईमानदारी से उनके साथ संगति करता है, “हमने अपने कर्तव्य निभाते हुए एक-साथ सबसे ज्यादा समय बिताया है। कृपया मुझमें जो भी समस्याएँ तुम्हें दिखती हैं, मुझे बताओ। मैं उन्हें स्वीकारकर बदलने का वादा करता हूँ। कृपया इस संबंध में अभ्यास के सिद्धांतों के बारे में मेरे साथ संगति भी करो”—यहाँ तक कि जब दूसरा व्यक्ति इतना ईमानदार होता है, तब भी वे सच नहीं बताते। इसके बजाय वे झूठे मन से कहते हैं, “तुम मुझसे बहुत बेहतर हो। असल में तुम लोगों में से किसी को भी इसका एहसास नहीं है, लेकिन मैं वास्तव में कमजोर हूँ। मैं नकारात्मक हो जाता हूँ और मैं विद्रोही भी हूँ।” चाहे दूसरे उनसे कितनी भी ईमानदारी से पूछें, वे फिर भी कुछ नहीं कहेंगे। वे किसी को भी नाराज करने से बिल्कुल इनकार करते हैं और कभी एक भी सच्चा बयान नहीं देते। वे किसी से भी सच नहीं बोलेंगे, सब-कुछ अपने दिल में दबाए रखेंगे। इससे यह देखा जा सकता है कि ऐसा नहीं है कि उनके कोई विचार नहीं होते, क्योंकि वे रोबोट नहीं हैं और शून्य में नहीं रहते। अलग-अलग लोगों और मामलों के बारे में उनकी राय होती अवश्य है, लेकिन वे उसे कभी व्यक्त नहीं करते या किसी से साझा नहीं करते या किसी को बताते नहीं। वे हर चीज अपने तक ही रखते हैं, अंशतः इसलिए क्योंकि वे नहीं चाहते कि दूसरे उनकी असलियत जानें और अंशतः इसलिए क्योंकि वे किसी को नाराज नहीं करना चाहते। तो उनके आचरण का सिद्धांत क्या होता है? क्या उनका कोई सिद्धांत नहीं होता? (हाँ, नहीं होता।) उनका कोई सिद्धांत नहीं होता। वे कभी सत्य नहीं खोजते या सिद्धांतों का पालन नहीं करते। वे सिर्फ अपना बचाव और सुरक्षा करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। जब तक उन्हें चोट नहीं पहुँचती, तब तक वे इस बात की परवाह नहीं करते कि परमेश्वर क्या चाहता है। उनके आचरण में कोई सिद्धांत या सीमाएँ नहीं होतीं और वे किसी को नाराज नहीं करते—वे सिर्फ खुशामदी होते हैं। इसलिए दूसरों की नजर में वे अच्छे लोग भी माने जाते हैं, क्योंकि जो लोग उनसे मिलते-जुलते हैं, उन्हें अक्सर उनकी मदद मिलती है और जब भी दूसरे उनसे कुछ माँगते हैं तो वे कभी मना नहीं करते, जिससे लोगों को लगता है कि वे अच्छे इंसान हैं। लेकिन अगर तुम उनके आचरण के सिद्धांतों की बारीकी से जाँच करो तो तुम पाओगे कि उनके आचरण का कोई सिद्धांत नहीं है। जब भ्रष्ट स्वभावों से संबंधित समस्याओं की बात आती है तो क्या वे उन्हें हल करने के लिए सत्य खोजेंगे? क्या वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करेंगे? (नहीं।) उत्तर निश्चित रूप से नहीं है। ये लोग यह मानते हुए अपनी व्यक्तिपरक समझ पर अड़े रहते हैं कि उनमें अच्छी मानवता और दयालु हृदय है। उन्हें लगता है कि वे कभी दूसरों के प्रति दुर्भावना नहीं रखते, या कम से कम, दूसरों को सक्रिय रूप से नुकसान नहीं पहुँचाएँगे या उनके हितों को क्षतिग्रस्त नहीं करेंगे। जब भी दूसरे कोई अनुरोध करते हैं या उन्हें किसी चीज की दरकार होती है, तो वे हमेशा आशा के अनुकूल उत्तर देते हैं। अपनी समझ में, वे मानते हैं कि किसी को नाराज न करना या नुकसान न पहुँचाना उन्हें अच्छा इंसान बनाता है। किसी को दुश्मन न बनाकर वे सोचते हैं कि वे खुद को किसी खतरनाक स्थिति में नहीं डालेंगे और कोई उन्हें दुश्मन नहीं समझेगा। इस तरह वे चोट नहीं खाएँगे और सुरक्षित रहेंगे। वे जिस तरह आचरण करते हैं, उसके पीछे उनका क्या उद्देश्य होता है? उनका एकमात्र उद्देश्य आत्म-सुरक्षा होता है; उनके लिए उस जगह रहना पर्याप्त है जिसे वे सबसे आरामदायक और सुरक्षित आश्रय और सुविधाजनक क्षेत्र मानते हैं। वे अपने आचरण या उसकी दिशा के सिद्धांत और सीमाएँ बदलने का कोई इरादा नहीं रखते और निश्चित रूप से उनका अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्याग देने का कोई इरादा नहीं होता। ये खुशामदी और परेशानी से बचने वाले लोग होते हैं। दूसरे लोग सत्य सिद्धांतों के बारे में या व्यक्ति के आचरण की सीमाओं और सिद्धांतों के बारे में चाहे कैसे भी संगति करें, ये अपने आचरण करने का तरीका नहीं बदलेंगे। तो क्या इन लोगों में अच्छी मानवता होती है? (नहीं।) क्या ये लोग सत्य स्वीकार सकते हैं या सिद्धांतों को बनाए रख सकते हैं? (नहीं।) वे सत्य सिद्धांतों को क्यों नहीं बनाए रख सकते? क्योंकि अपने दिमाग में आचरण करने का उनका मानक खुशामदी होना है। जब किसी ऐसे मामले की बात आती है जिसमें कोई राय रखने या कोई रुख अपनाने की जरूरत होती है तो वे चुप रहते हैं, उदासीन रवैया बनाए रखते हैं और दखल न देने का नजरिया अपनाते हैं, बेपरवाह और अलग रहते हैं मानो इसका उनसे कोई संबंध न हो। नतीजतन, उनके आचरण और क्रियाकलाप करने के तरीके में कोई धार नहीं होती; वे धूर्त लोग हैं। वे अपने आस-पास के लोगों और घटनाओं की परवाह नहीं करते। चाहे किसी परिवेश में या किसी व्यक्ति के साथ समस्याएँ कितनी भी महत्वपूर्ण हों, उन्हें उनकी परवाह करने, उनके बारे में पूछताछ करने या उनके बारे में जानने में कोई दिलचस्पी नहीं होती। वे मानते हैं कि जब तक वे इसमें शामिल नहीं हैं, तब तक चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं। इसके लिए एक कहावत है, कैसी है यह? “गुण मत देखो, पर दोष से बचो।” यह भी एक सिद्धांत है जिसके अनुसार खुशामदी लोग आचरण करते हैं। ऐसे लोगों के भ्रष्ट स्वभावों की क्या विशेषताएँ होती हैं? धोखेबाजी, दुष्टता, हठधर्मिता, सत्य स्वीकारने से इनकार करना—उनमें भ्रष्ट स्वभावों की लगभग सभी विशेषताएँ होती हैं। बाहरी तौर पर हो सकता है वे बुरा काम न करते हों और शायद ही कभी अपराध करते हों, लेकिन अगर तुम उन सिद्धांतों और तरीकों का निरीक्षण करो जिनसे वे आचरण करते हैं तो सबसे उल्लेखनीय विशेषता यह होती है कि वे कभी सत्य सिद्धांतों को कायम नहीं रखते और जिस तरह वे आचरण करते हैं उसकी कोई सीमा नहीं होती। यहाँ तक कि जब कोई उनका अपमान करता है या उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाता है, तो वे इसे सहन कर हँसी में उड़ा सकते हैं, कभी अपने आंतरिक विचार प्रकट या अभिव्यक्त नहीं करते। बाहर से वे बहुत सहनशील, दयालु मानवता वाले लगते हैं और हमला करने या बदला लेने का कोई इरादा नहीं दिखाते। लेकिन, ऐसा नहीं है कि उनके कोई विचार नहीं होते—वे तुम्हारी करनी याद रखते हैं और सही समय पर सामने आकर अपनी रक्षा और बचाव करते हैं और तुम पर ऐसा पलटवार करते हैं जिस पर शायद तुम्हारा ध्यान भी न जाए। वे सत्य सिद्धांतों को कायम नहीं रखते; जिस तरह वे आचरण करते हैं, उसमें सिद्धांत और सीमाएँ सिर्फ अपने हितों, सुरक्षा और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए होती हैं। ऐसे लोगों को दुष्ट के रूप में वर्णित करना और हठधर्मी, धोखेबाज और सत्य से विमुख के रूप में वर्णित करना सही है। कुछ लोग कह सकते हैं, “उन्होंने दूसरों के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाया है या कोई बुरा काम नहीं किया है, फिर तुम कैसे कह सकते हो कि उनमें भ्रष्ट स्वभाव हैं? तुम्हारे यह कहने का आधार क्या है?” जब यह बात आती है कि वे लोगों और चीजों को कैसे देखते हैं और कैसे आचरण और क्रियाकलाप करते हैं, तो यह उनके विचारों, दृष्टिकोणों और रवैयों पर आधारित होता है। क्या तुम लोगों ने इसे देखा है? (हम अब इसे देखते हैं।) तुम इसे पहले क्यों नहीं देख पाए? उनकी किस चीज ने तुम्हें गुमराह किया? (हमें लगा कि वे अपनी कथनी और करनी में, और जिस तरह वे दूसरों के साथ मिलते-जुलते और सहयोग करते हैं उसमें काफी मस्तमौला हैं और किसी को चोट नहीं पहुँचाते, इसलिए हमने मान लिया कि उनमें अच्छी मानवता है। हम उनके बाहरी मुखौटे से गुमराह हो गए।) बाहरी तौर पर एक सौम्य व्यक्तित्व होने और कभी लोगों पर हमला नहीं करने और जानवरों को चोट नहीं पहुँचाने का मतलब यह नहीं कि व्यक्ति में अच्छी मानवता है। मानवता के किस तरह के प्रकाशन असल में अच्छी मानवता दर्शाते हैं? (एक चीज है दूसरों को नुकसान न पहुँचाना या उनका फायदा न उठाना। इसके अलावा, खतरा पैदा होने पर अपनी सुरक्षा के बारे में न सोचकर व्यक्ति का पहला विचार अगुआओं और कार्यकर्ताओं और साथ ही सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों की रक्षा करने का होना और हर स्थिति में परमेश्वर के घर के हितों को पहले रखने में सक्षम होना। ये सब अच्छी मानवता की अभिव्यक्तियाँ हैं।) दयालु, प्रेमपूर्ण, धैर्यवान और सहनशील होना, दूसरों के प्रति सम्मानपूर्ण होना, दूसरों का खयाल रखने के लिए तैयार रहना, लोगों का फायदा न उठाना, अपेक्षाकृत ईमानदार होना और साथ ही विनम्र, शांत होना और दबंग न होना : मानवता के ये गुण होना, साथ ही सत्य सिद्धांतों को बनाए रखने और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने की क्षमता भी होना—यह अच्छी मानवता है। अगर किसी में बाहरी तौर पर सहिष्णुता, धैर्य, दयालुता, दूसरों का फायदा न उठाना, दूसरों के प्रति संवेदनशीलता, दूसरों की देखभाल करना जैसे मानवता के गुण हैं, लेकिन परमेश्वर के घर के हितों की बात आने पर वह आसानी से उन्हें दूसरों को सौंप देता है, यहाँ तक कि सक्रिय रूप से उनके साथ विश्वासघात भी करता है तो क्या उसमें अच्छी मानवता है? (नहीं।) इसका मतलब है कि उसकी मानवता अच्छी नहीं है। अच्छी मानवता कैसे मापी जाती है? न्यूनतम अपेक्षा क्या है? (कम से कम, परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम होना।) परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम होना; और फिर, इस आधार पर दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करने में सक्षम होना, दयालु और सहनशील होना, दूसरों का फायदा न उठाना और दूसरों की कमजोरियाँ के प्रति धैर्यवान होने और उन्हें समझने में सक्षम होना, दूसरों के प्रति संवेदनशील होना, प्रेमपूर्ण होना, दूसरों की मदद और समर्थन करने में सक्षम होना और जो लोग कमजोर हैं उनकी देखभाल करना आदि—ये सब अच्छी मानवता की विशेषताएँ हैं। इसके विपरीत, स्वार्थ, नीचता, लालच, दूसरों के साथ कठोर और अत्यधिक मतलबी होना, गपशप करना और लोगों पर अत्याचार करना पसंद करना, उच्छृंखल, आडंबरी, विशेष रूप से सतही, दुष्ट, लंपट, निर्लज्ज होना और शर्म की भावना न होना—ये किस तरह की अभिव्यक्तियाँ हैं? (ये बुरी मानवता की अभिव्यक्तियाँ हैं।) क्या ये अभिव्यक्तियाँ होने पर भी व्यक्ति परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर सकता है? (नहीं।) अच्छी मानवता की अभिव्यक्तियाँ होने के साथ-साथ परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने की क्षमता होना—यही वास्तव में अच्छी मानवता है।

कुछ लोग बाहर से बहुत दयालु दिखाई देते हैं; वे दूसरों के साथ धैर्यवान और सहनशील होते हैं और उनमें अच्छी मानवता की तमाम विशेषताएँ होती हैं। लेकिन जब कलीसिया के कार्य, परमेश्वर के चढ़ावे या परमेश्वर के घर के हितों की बात आती है तो वे इन सबके साथ विश्वासघात करने में सक्षम हैं। क्या तुम लोग कहोगे कि ऐसे व्यक्ति में अच्छी मानवता होती है? (नहीं।) उदाहरण के लिए, भाई-बहनों के लिए चीजें खरीदते समय कुछ लोग ऐसी चीजें चुनते हैं जिनकी गुणवत्ता अच्छी हो, कीमत कम हो और जो व्यावहारिक हों। लेकिन जब चीजें खरीदने के लिए चढ़ावे खर्च करने की बात आती है तो वे महँगी चीजें चुनते हैं। चाहे वह सिर्फ एक ट्रैक्टर ही हो, वे नेविगेशन वाला ट्रैक्टर तक खरीदना चाहेंगे। चाहे वे कुछ भी खरीद रहे हों, वे हमेशा किसी सस्ती चीज पर विचार करने से इनकार करते हुए सबसे अच्छे, सबसे महँगे और हाई-टेक विकल्प ही चुनते हैं। आम तौर पर वे दूसरों के साथ सामान्य रूप से मिल-जुलकर रहते दिखते हैं; वे लोगों का फायदा नहीं उठाते, काफी सहनशील होते हैं और हर तरह से दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। लेकिन जब चढ़ावे खर्च करने की बात आती है तो उनका निर्दयी पक्ष उभर आता है और उनका भयावह चेहरा सामने आ जाता है। क्या उन्हें अच्छी मानवता वाला माना जा सकता है? (नहीं।) क्या उनकी अच्छी मानवता वास्तव में सच्ची होती है? यह सिर्फ दिखावा और ढोंग है, यह सब मुखौटा है। जब वास्तव में परमेश्वर के घर के हितों से जुड़े मामलों की बात आती है, खासकर जब चढ़ावे खर्च करने की बात आती है तो उनका लालच उभर आता है और उनका भयावह चेहरा, शैतानी मुख और क्रूर चाल-ढाल प्रकट हो जाती है। क्या यह अच्छी मानवता है? (नहीं।) उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति वचन देह में प्रकट होता है के कॉपीराइट के लिए आवेदन करता है और कहता है : “अगर हम एक संगठन के रूप में कलीसिया के नाम से आवेदन करते हैं तो इससे बहुत सारा पैसा बचेगा। लेकिन अगर हम देहधारी मसीह के नाम से आवेदन करते हैं तो इसमें बहुत ज्यादा खर्च होगा। हमें इस पर पैसे बचाने चाहिए; चढ़ावे लापरवाही से खर्च नहीं किए जाने चाहिए!” क्या यह कथन सही है? क्या उनके पास ऐसा महत्वपूर्ण मामला सँभालने के लिए सिद्धांत हैं? आखिर ये शब्द किसके द्वारा व्यक्त किए गए थे, परमेश्वर द्वारा या कलीसिया द्वारा? (ये परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए थे।) तो कॉपीराइट किसका होना चाहिए? वह परमेश्वर का होना ज्यादा उचित है या कलीसिया का? (यह परमेश्वर का होना ज्यादा उचित है।) यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। ऐसे महत्वपूर्ण मामले में पैसे बचाने पर ध्यान केंद्रित करने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं? क्या समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं? दुष्परिणाम अकल्पनीय हो सकते हैं! अगर तुम परमेश्वर के घर के हितों की उपेक्षा करते हो और सिर्फ पैसे बचाने पर विचार करते हो तो यह तुम्हें किस तरह का व्यक्ति बनाता है? क्या ऐसे लोगों में जमीर या मानवता होती है? (उनमें कोई मानवता नहीं होती।) चाहे ऐसे लोग बाहर से कितने भी दयालु या सहनशील दिखें, क्या उनमें वास्तव में मानवता होती है? (नहीं।) कलीसिया में भोजन, पेय और दैनिक जरूरतों के तमाम खर्च पूरी तरह से परमेश्वर के चढ़ावों से पूरे होते हैं। क्या मैंने कभी इन खर्चों के बारे में तुम लोगों के साथ क्षुद्रता बरती है? एकमात्र अपेक्षा यह है कि तुम लोग बर्बादी करने से बचो, लेकिन क्या मैंने कभी तुम लोगों के सामान्य खर्चों की जाँच की है? (नहीं।) सभी पहलुओं में मैं तुम लोगों का ध्यान रखता रहा हूँ और मैंने कभी तुम्हारे खर्चों की जाँच नहीं की, फिर भी तुम लोग मुझसे मुँह फेरते हो और जल्दबाजी में जैसे-तैसे काम निपटाते हो। क्या यह मानवता की कमी नहीं है? (हाँ, है।) मानवता से रहित कोई व्यक्ति लोगों के प्रति चाहे कितना भी दयालु या सहनशील दिखे, यह सिर्फ मुखौटा होता है। जब वास्तव में ऐसे क्षण आते हैं जब जमीर और विवेक काम में आने चाहिए, तो वे पूरी तरह से मानवता से रहित के रूप में प्रकट होते हैं। क्या वे इंसान भी होते हैं? (नहीं।) उन्हें इंसान नहीं कहा जा सकता। जब मैं खरीदारी करता हूँ तो मैं भी सावधानीपूर्वक और मितव्ययिता से खरीदारी करता हूँ, यह विचार करते हुए कि कब वस्तुओं पर छूट मिलती है और उन्हें खरीदने के उपयुक्त तरीके क्या हैं, और अगर कोई चीज व्यावहारिक, उपयुक्त और उचित मूल्य की होती है तो मैं उसे खरीदता हूँ। लेकिन मैं लापरवाही से खरीदारी नहीं करता, मैं बेकार की चीजों पर पैसे खर्च नहीं करता। लेकिन कुछ ऐसे खर्च होते हैं जिन्हें टाला नहीं जा सकता और जिन्हें करना ही चाहिए, और उन मामलों में मैं सिद्धांतों के अनुसार खर्च करता हूँ। मैं अपने भोजन, कपड़े और दैनिक जरूरतों के मामले में भी मितव्ययिता बरतने की कोशिश करता हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं अपनी पसंद की कोई भी चीज खरीद लेता हूँ; मुझे अपनी खरीददारियों पर ध्यानपूर्वक विचार करना पड़ता है। देखो, मैं सादगी से, उचित ढंग से और आकर्षक तरीके से कपड़े पहनता हूँ। मेरा खर्च सिद्धांतों के अनुसार होता है : मैं वही खरीदता हूँ जो आवश्यक और व्यावहारिक होता है और जो ऐसा नहीं होता मैं उसे नहीं खरीदता। पैसे को उड़ाओ या बर्बाद मत करो; वह पैसा खर्च मत करो जो खर्च नहीं किया जाना चाहिए; जहाँ बचत करनी चाहिए वहाँ बचत करो और अनावश्यक खर्चों से बचो—ये सिद्धांत हैं। लेकिन जब मानवता से रहित कुछ लोग परमेश्वर के चढ़ावे खर्च करने का अवसर पाते हैं तो उनकी आँखें चौड़ी हो जाती हैं। जब तक इसमें लोगों के भोजन, कपड़े, आवास या परिवहन पर खर्च करना शामिल होता है, वे कार्रवाई करने के लिए दौड़ पड़ते हैं। खासकर जब दूसरों के लिए कपड़े खरीदने या जीवन-यापन के खर्चे बाँटने की बात आती है तो वे अति उत्साही और बहुत उदार हो जाते हैं। अपने दिल में वे सोचते हैं, “अरे, यह मेरा पैसा खर्च नहीं हो रहा। यह परमेश्वर का पैसा खर्च हो रहा है और इससे मुझे अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने में मदद मिलती है तो खर्च क्यों न करूँ?” इसलिए वे इस अवसर का लाभ उठाकर फिजूलखर्ची करते हैं। उनके दिल में बुरे इरादे होते हैं, वे परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाने के अलावा कुछ नहीं चाहते! लेकिन अगर यह उनका पैसा होता तो वे हर चीज का हिसाब लगाते, जरूरत से ज्यादा एक पैसा भी खर्च करने से इनकार कर देते। चाहे वे आम तौर पर कितने भी दयालु दिखें, ऐसे लोगों में अच्छी मानवता नहीं होती। मेरे विचार से, परमेश्वर के चढ़ावों के प्रति उनका रवैया बहुत-कुछ कहता है। यह तथ्य कि वे चढ़ावे बर्बाद कर सकते हैं और उनमें परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय बिल्कुल नहीं होता, कम से कम यह दिखाता है कि वे दयालु नहीं हैं, वे नीच हैं और उनमें खराब मानवता है। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, ऐसा है।)

व्यक्ति की जन्मजात स्थितियों, मानवता और भ्रष्ट स्वभावों से संबंधित कई अभिव्यक्तियाँ होती हैं। हमने आज उनके एक हिस्से पर सरसरी तौर पर चर्चा की है; अन्य अभिव्यक्तियाँ होने की भी संभावना है, जिन्हें हम भावी संगतियों में शामिल कर सकते हैं। आओ, आज अपनी संगति यहीं समाप्त करें। अलविदा!

23 सितंबर 2023

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