299 परमेश्वर के शुभ समाचार की प्रतीक्षा में
1
तड़पती आँखों से व्यग्रता से पुकारते हो तुम,
क्रूर मानवजाति का सामना करते हुए तुम अपने हृदय से निकले हुए वचन बोलते हो।
अपनी एकमात्र इच्छा के लिए तुम घोर अन्याय सहते हो,
इतनी सारी कष्टसाध्य देखभाल और अपेक्षा उंडेलते हो।
कभी भी असाधारण अपेक्षा नहीं करते, खुशी-खुशी सब कुछ देते हो।
सुबह से रात तक मुश्किलों में साथी बनकर
तुम मनुष्यों के बीच घोर उत्पीड़न सहते हो।
सुंदरता में तुम्हारी तुलना किससे हो सकती है,
सबसे अधिक सम्माननीय और सबसे पवित्र प्रिय।
तुम्हारे महान अग्रणी उपक्रम की स्तुति युगों-युगों तक की जाएगी।
2
मैं पाप में गिर गई, लेकिन रोशनी में उठ खड़ी हुई।
मैं तुम्हारे द्वारा अत्यधिक उन्नत किए जाने के लिए कितनी आभारी हूँ।
देहधारी परमेश्वर कष्ट सहता है
तो मुझ भ्रष्ट व्यक्ति को कितना अधिक कष्ट सहना चाहिए!
अगर मैं अंधकार के प्रभाव के आगे झुक जाऊँ तो मैं परमेश्वर को कैसे देखूँगी?
जब भी मैं तुम्हारे वचन याद करती हूँ तो मैं तुम्हारे लिए तरसने लगती हूँ।
जब भी मैं तुम्हारा चेहरा देखती हूँ तो मैं अपराध बोध और सम्मान से भर जाती हूँ।
मैं तथाकथित आजादी की तलाश में तुम्हें छोड़ना कैसे सहन कर सकती हूँ?
मैं तुम्हारे घायल दिल का प्रतिदान चुकाने के लिए हर तरह की पीड़ा सहना पसंद करूँगी।
जब फूल फिर से खिलेंगे तो मैं तुम्हारा शुभ समाचार सुनूँगी।