100. अपमान और दुर्व्यवहार सहन करना
नवंबर 2007 की एक सुबह जब हम बहन लियू हुआ के घर सभा कर रहे थे, अचानक एक दर्जन से ज्यादा पुलिस अधिकारी अहाते में घुस आए और इससे पहले हम कुछ कर पाते, वे चिल्लाते हुए घर में घुस गए, “हिलना मत!” बड़ा कोहराम मच गया और मैं बहुत डर गई थी, इसलिए मैं लगातार परमेश्वर से प्रार्थना करती रही। पुलिस अधिकारियों ने घर में छानबीन की। कुछ ही देर में उन्होंने घर को उलट-पुलट कर रख दिया और लियू हुआ के घर में रखी परमेश्वर के वचनों की किताबें और डीवीडी ढूँढ़ निकालीं। फिर उन्होंने जल्दी से हमारी जबरन तलाशी ली और मेरी जेब से उन्हें कलीसिया की सदस्यता संख्या और वित्त संबंधी सामग्री मिली। मैं वाकई चिंतित थी, मुझे डर था कि कहीं दूसरे भाई-बहन इसमें न फँस जाएँ, इसलिए मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे उनकी रक्षा करने के लिए कहा। इस दौरान पुलिस अधिकारियों में से एक ने लियू हुआ को पकड़ लिया और पूछा, “क्या तुम्हारे घर में और किताबें या कलीसिया का पैसा है?” जब उसने जवाब नहीं दिया तो अधिकारी ने उसके बुढ़ापे की परवाह न करते हुए उसे जोर से धक्का दिया और लियू हुआ जमीन पर गिरकर बेहोश हो गई। मैंने देखा कि लियू हुआ जमीन पर बेसुध पड़ी है, उसका चेहरा पीला पड़ गया था, मैं दौड़कर उसे उठाने की कोशिश करना चाहती थी, लेकिन अप्रत्याशित रूप से दो अधिकारियों ने मेरी बाँह पकड़ी और कार में खींच लिया। अन्य अधिकारी लियू हुआ को बाहर निकालने के लिए गए और उसे जमीन पर बेहोश पड़े देखकर उन्होंने दूसरों को गिरफ्तार कर लिया। मैंने सोचा, “कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर से नफरत करती है और एक बार जब वे सुसमाचार का प्रचार करने वाले किसी व्यक्ति को पकड़ते हैं तो वे उसे यातनाएँ देते हैं। कुछ को पीटकर विकलांग बना दिया जाता है, दूसरों को जेल भेज दिया जाता है और विशेष रूप से प्रमुख अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बिना किसी नतीजे के पीट-पीटकर मार डाला जाता है। अब जब मुझे गिरफ्तार कर लिया गया है और उन्हें मेरे पास कलीसिया की सदस्यता संख्या और वित्त से जुड़ी सामग्री मिल गई है, तो वे निश्चित रूप से सोचेंगे कि मैं कलीसिया अगुआ हूँ और मुझे आसानी से नहीं छोड़ेंगे।” मैं बहुत डरी हुई थी, मुझे नहीं पता था कि पुलिस मुझे किस तरह की यातनाएँ देगी और अगर मैं इसे सहन नहीं कर पाई और यहूदा बन गई, तो यह परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध अपराध होगा, मैं यहूदा नहीं बन सकती थी। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, “परमेश्वर, मैं अभी बहुत डरी हुई हूँ, मुझे नहीं पता कि पुलिस मेरे साथ कैसा व्यवहार करेगी। मेरी रक्षा करो और मुझे आस्था दो। मैं अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए तैयार हूँ!” प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा : “जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। जब परमेश्वर तुमसे अपने आप को छिपाता है, तो उसका अनुसरण करने के लिए तुम्हें अपने पिछले प्रेम को डिगने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए विश्वास रखने में समर्थ होना चाहिए। परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम्हें वह जैसे चाहे वैसे आयोजन करने देना चाहिए, और उसके विरुद्ध शिकायतें करने के बजाय अपनी देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब परीक्षणों से तुम्हारा सामना हो, तो तुम जिन चीजों से प्रेम करते हो, उन्हें त्यागने का दर्द सहने के लिए का इच्छुक होना चाहिए और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए फूट-फूटकर रोने का इच्छुक होना चाहिए। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों से मेरे दिल को बहुत शांति मिली। परमेश्वर हमारी आस्था को पूर्ण बनाने के लिए हम पर दुख और परीक्षण आने देता है। जब मुझे गिरफ्तार किया गया और सताया गया तो मैं कायर बन गई और यातना से डरने लगी और मैंने देखा कि परमेश्वर में मेरी आस्था सच्ची नहीं थी। मुझे अब अपनी देह के बारे में नहीं सोचना चाहिए, चाहे पुलिस मुझे किसी भी तरह की यातना क्यों न दे, मुझे अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना था और अगर मरना भी पड़े तो भी कभी यहूदा नहीं बनूँगी।
जब हम पुलिस स्टेशन पहुँचे तो दो पुरुष अधिकारियों ने मुझसे आक्रामक तरीके से पूछताछ की, “कलीसिया का अगुआ कौन है? कलीसिया का पैसा कहाँ है?” उन्होंने मुझसे रात 8 बजे तक पूछताछ की और जब उन्होंने देखा कि मैं कुछ नहीं बोल रही हूँ, तो वे मुझे हिरासत केंद्र में ले आए। साल के उस समय बहुत ठंड थी और दो महिला अधिकारियों ने मुझे जबरन नंगा करके मेरी तलाशी ली, फिर मुझे और दो अन्य बहनों को एक कमरे में बंद कर दिया और हमें खाने को नहीं दिया, हमें केवल एक पतला कंबल दिया और कठोरता से कहा, “तुम सब ठंड से मरो! किसने कहा कि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण कर सकते हो? जब तक तुम में आस्था बाकी है, तब तक खाने के बारे में सोचना भी मत!” उस रात हम तीनों ने चुपचाप एक-दूसरे को सांत्वना दी और प्रोत्साहित किया। हम समझ गए कि गिरफ्तारी और उत्पीड़न परमेश्वर का परीक्षण है और हमें परमेश्वर के लिए गवाही देने की जरूरत है। चाहे पुलिस हमें कितना भी प्रताड़ित करे, भले ही वे हमें पीट-पीटकर मार डालें, हम शैतान के साथ कभी समझौता नहीं करेंगे! हमने आस्था और शक्ति प्राप्त की और हालाँकि ठंड लग रही थी और हम भूखे थे, लेकिन यह इतना असहनीय नहीं लगा।
अगले दिन पुलिस ने मुझसे पूछताछ की। एक अधिकारी ने मेरे सिर पर जोरदार प्रहार किया और कहा, “तुम्हारी कलीसिया का अगुआ कौन है डायन? तुम्हें कलीसिया के वित्तीय दस्तावेज किसने दिए? अगर तुम हमें बता दोगी तो हम तुम्हें आज ही रिहा कर देंगे, लेकिन अगर तुम हमें कुछ नहीं बताओगी तो तुम वाकई मुश्किल में पड़ जाओगी!” उनके लगातार सवालों का सामना करते हुए मैं अंदर ही अंदर परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, परमेश्वर से अपने दिल की रक्षा करने को कहती रही। यह देखकर कि मैं कुछ नहीं बोल रही हूँ, एक अधिकारी भड़क गया और बोला, “अगर तुम नहीं बोलोगी तो हमारे पास तुम्हें प्रताड़ित करने के तरीके हैं! हम तुम्हें दस साल की सजा देंगे!” दूसरे ने कहा, “मैं तुम्हें चीन के बर्फीले साइबेरिया में भेज दूँगा, ताकि तुम्हें वहाँ की मुसीबतों का स्वाद चखा सकूँ। तब हम देखेंगे कि तुम कितनी जिद्दी हो!” वे मुझसे जवाब पाने और लुभाने की कोशिश करते रहे। मैंने बस प्रार्थना की और अपने दिल में परमेश्वर पर भरोसा किया और उनके जाल में नहीं फँसी। तीसरे दिन सुबह 8 बजे चार अधिकारियों ने मेरी तस्वीर लेने के लिए मुझे बुलाया। एक अधिकारी ने नकली मुस्कान के साथ कहा, “तुम्हें पता है कि हम तुम्हारी तस्वीर क्यों ले रहे हैं? तुम कम्युनिस्ट पार्टी का खाना खाती हो पर तुम कम्युनिस्ट पार्टी में विश्वास नहीं करती और इसके बजाय परमेश्वर में विश्वास करती हो और सुसमाचार का प्रचार करती हो। अगर अब हर कोई परमेश्वर में विश्वास करने लगे, तो कम्युनिस्ट पार्टी में कौन विश्वास करेगा? तुम कम्युनिस्ट पार्टी का विरोध कर रही हो! सुसमाचार प्रचार का तुम्हारा उत्साह देखें तो तुम दस साल की जेल की हकदार हो। हम तुम्हारी तस्वीर टीवी पर सभी को दिखाएँगे और तुम्हें इतना शर्मिंदा करेंगे कि तुम सार्वजनिक रूप से अपना चेहरा नहीं दिखा पाओगी!” यह कहकर वह मुस्कराया और मेरी बाँह पकड़कर जबर्दस्ती मेरी तस्वीर खींची। मैं गुस्से में थी लेकिन साथ ही यह सोचकर काफी चिंतित भी थी, “अगर पुलिस ने टीवी पर यह तथ्य प्रसारित किया कि मुझे मेरी आस्था के लिए गिरफ्तार किया गया था और इस बारे में लोगों को भड़काया, तो मेरे दोस्त और रिश्तेदार मेरे बारे में क्या सोचेंगे? हो सकता है कि मेरे पड़ोसी मेरा उपहास उड़ाएँ। मैं सार्वजनिक रूप से अपना चेहरा कैसे दिखा पाऊँगी? क्या मेरे बच्चे मुझसे शर्मिंदा होकर मुझे ठुकरा देंगे?” इन विचारों ने मुझे पूरी तरह से थका दिया। मुझे एहसास हुआ कि मेरा दिल परमेश्वर से दूर चला गया है, इसलिए मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे अपने दिल की रक्षा करने के लिए कहा। इस समय मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “तुम लोगों के बीच एक भी व्यक्ति नहीं है जो व्यवस्था द्वारा सुरक्षित है—इसके बजाय, तुम व्यवस्था द्वारा दण्ड के भागी ठहराए जाते हो। इससे भी अधिक समस्यात्मक यह है कि लोग, तुम लोगों को समझते नहीं हैं : चाहे वे तुम्हारे रिश्तेदार हों, तुम्हारे माता-पिता, तुम्हारे मित्र, या तुम्हारे सहकर्मी हों, उनमें से कोई भी तुम लोगों को समझता नहीं है। जब परमेश्वर द्वारा तुम लोगों को त्याग दिया जाता है, तब तुम लोगों के लिए पृथ्वी पर और रह पाना असंभव हो जाता है, किंतु फिर भी, लोग परमेश्वर से दूर होना सहन नहीं कर सकते हैं, जो परमेश्वर द्वारा लोगों पर विजय प्राप्त करने का महत्व है, और यही परमेश्वर की महिमा है। तुम लोगों ने आज के दिन जो विरासत पाई है वह युगों-युगों तक परमेश्वर के प्रेरितों और नबियों की विरासत से भी बढ़कर है और यहाँ तक कि मूसा और पतरस की विरासत से भी अधिक है। आशीष एक या दो दिन में प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं; उन्हें कई कीमतों से अर्जित किया जाना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है, तुम लोगों को उस प्रेम से युक्त होना ही चाहिए जो शोधन से गुज़र चुका है, तुममें अत्यधिक आस्था होनी ही चाहिए, और तुम्हारे पास कई सत्य होने ही चाहिए जो परमेश्वर अपेक्षा करता है कि तुम प्राप्त करो; इससे भी बढ़कर, भयभीत हुए या टाल-मटोल किए बिना, तुम्हें न्याय की ओर जाना चाहिए, और मृत्युपर्यंत परमेश्वर-प्रेमी हृदय रखना चाहिए। तुममें संकल्प होना ही चाहिए, तुम लोगों के जीवन स्वभाव में बदलाव आने ही चाहिए; तुम लोगों की भ्रष्टता की चंगाई होनी ही चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के सारे आयोजन बिना शिकायत स्वीकार करने ही चाहिए, और तुम्हें मृत्युपर्यंत समर्पित होना ही चाहिए। यह वह है जो तुम्हें प्राप्त करना ही है, यह परमेश्वर के कार्य का अंतिम लक्ष्य है, और यह वह है जो परमेश्वर लोगों के इस समूह से चाहता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे यह समझाया कि कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा ईसाइयों की गिरफ्तारी और उत्पीड़न और हमें बदनाम करने और हमला करने के लिए जनमत बनाने की उसकी कोशिशें हमें परमेश्वर से विश्वासघात करने को मजबूर करने के लिए हैं। क्या मैं उपहास के डर से नकारात्मक और पीड़ाग्रस्त होकर शैतान की योजना में नहीं फँस रही थी? परमेश्वर में विश्वास करने के लिए गिरफ्तार और अपमानित होना धार्मिकता के लिए सताया जाना है और यह एक शानदार बात है, लेकिन मैं उपहास से डरती थी। क्या यह नहीं दर्शाता कि मैं अच्छे और बुरे में अंतर नहीं कर सकती? मैंने परमेश्वर के वचनों के सिंचन और प्रावधान का बहुत आनंद लिया था और अब जब परमेश्वर को मेरी गवाही की जरूरत है तो मैं अपनी देह के बारे में सोच रही थी और अपने घमंड और अभिमान को लेकर चिंतित थी। मुझमें सचमुच अंतरात्मा की कमी थी! यह सोचकर मुझे बहुत पछतावा हुआ और मैंने सोचा, “चाहे वे आज मेरे साथ कुछ भी करें, भले ही वे मुझे बदनाम करने और लोगों से मेरा उपहास कराने और ठुकराने के लिए टीवी पर मेरी तस्वीर प्रसारित कर दें, मैं तब भी अपनी गवाही में अडिग रहूँगी और कभी परमेश्वर से विश्वासघात नहीं करूँगी!”
फोटो खींचने के बाद पुलिस मुझे पूछताछ कक्ष में वापस ले गई। एक अधिकारी ने मेरे बैग से कलीसिया की सदस्यता संख्या और वित्त के बारे में दस्तावेज निकाले और उन्हें मेज पर फेंक दिया, मुझे घूरते हुए चिल्लाया, “आज तुम्हें साफ तौर पर बताना होगा कि ये चीजें कहाँ से आई हैं! अगर तुम नहीं बोलोगी तो तुम्हें दस साल की सजा होगी!” यह देखकर कि मैं जवाब नहीं दे रही थी, उसने अपनी उँगली से मेरे सिर पर जोरदार प्रहार किया और कहा, “बुढ़िया, मैंने तुम्हारे जैसे कई देखे हैं। अगर तुमने आज कबूल नहीं किया, तो तुम अपनी बची हुई जिंदगी को खतरे में डाल रही हो! तुमसे उगलवाने के लिए हमारे पास पाँच टीमें हैं। देखते हैं कि कौन ज्यादा देर तक टिकता है!” इससे मैं डर गई, मैंने सोचा कि कैसे कुछ भाई-बहनों को उनके नाखूनों के नीचे बाँस की छड़ियाँ डालकर प्रताड़ित किया गया था और बहुतों को गिरफ्तार करके जबरन काली मिर्च का पानी पिलाया गया था। मैंने सोचा कि अगर मैं चुप रही तो क्या वे मेरे साथ भी यही करेंगे। अगर उन्होंने मुझे प्रताड़ित किया और कई साल तक जेल में रखा, तो क्या मैं इसे सहन कर पाऊँगी? मैं 50 वर्ष से अधिक उम्र की थी और मेरा स्वास्थ्य अच्छा नहीं था, अगर उन्होंने मुझे यातना देकर मार डाला तो? मैं अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, उससे मुझे शक्ति देने के लिए कहती रही। उस पल मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में सोचा : “कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर लोगों की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। चाहे मुझे किसी भी तरह की पीड़ा या परीक्षण का सामना करना पड़े, मुझे अपनी आस्था पर भरोसा रखना था और अपनी गवाही में अडिग रहना था। केवल इसी तरह मैं परमेश्वर द्वारा पूर्ण की जा सकती थी। मैंने शैतान के प्रलोभन के तहत अय्यूब की पीड़ा के बारे में सोचा। जब उसने अपने मवेशियों और भेड़ों का विशाल झुंड, अपनी अपार संपत्ति और अपने बच्चे खो दिए और उसका पूरा शरीर दर्दनाक घावों से भर गया, तब भी अय्यूब को परमेश्वर पर आस्था रही। उसने परमेश्वर के बारे में शिकायत करने के बजाय अपनी देह को कोसना पसंद किया और परमेश्वर के नाम की स्तुति करना जारी रखा, इस प्रकार वह अपनी गवाही में अडिग रहा, शैतान को अपमानित किया और परमेश्वर की स्वीकृति और आशीष प्राप्त किए। मेरा पकड़ा जाना और सताया जाना शैतान का मुझे प्रलोभित करना था और यह परमेश्वर की परीक्षा और परीक्षण भी था। मुझे अय्यूब के उदाहरण का अनुसरण करना था और परमेश्वर के बारे में शिकायत नहीं करनी थी, भले ही इसका मतलब मरना हो और मुझे अपनी गवाही में अडिग रहने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना था। तब से चाहे पुलिस ने मुझसे कैसे भी पूछताछ की हो, मैंने कुछ नहीं कहा। यह देखते हुए कि वे मुझसे कुछ भी हासिल नहीं कर सकते, पुलिस ने दूसरी टीम से कहा, “उसका मुँह खोलने का कोई तरीका ढूँढ़ो, इन दस्तावेजों में काफी पैसा है। उससे कलीसिया के पैसे और अगुआओं के बारे में ब्यौरा कबूल करवाओ, जब तक वह न बोले, उसे सोने मत देना!” पुलिस की दूसरी टीम में दो युवा पुरुष शामिल थे। वे मेरे दोनों ओर खड़े हो गए और अपनी मुट्ठियों से मेरे कंधों पर जोर से मारने लगे, वे जानना चाहते थे कि कलीसिया के अगुआ कौन थे। मुझे थोड़ा चक्कर आ रहा था, मैं एक स्टूल पर बैठे काँप रही थी और बोल नहीं पा रही थी। उन्होंने हार नहीं मानी और घूँसों से मुझे पीटना जारी रखा। थोड़ी देर बाद सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो का प्रमुख दाँत पीसते हुए आया और बोला, “इतने समय बाद भी तुमने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया? तुम्हें कलीसिया के वित्तीय दस्तावेज किसने दिए? अगर तुमने आज हमें नहीं बताया तो तुम्हारी खैर नहीं!” यह सुनकर मेरा दिल जोर से धड़कने लगा और मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, लगता है कि वे मुझे नहीं छोड़ेंगे। मैं अकेले इससे नहीं निपट सकती, मैं तुम पर भरोसा करने को तैयार हूँ। चाहे वे मुझे कितना भी प्रताड़ित करें, मैं कभी भी यहूदा नहीं बनूँगी!” उस पल मुझे अचानक अपने पेट में मरोड़ महसूस हुई और उल्टी होने लगी। पुलिसवालों ने देखा कि मैं हर जगह उल्टी कर रहा हूँ, इसलिए वे वहाँ से चले गए। मैंने मौके का फायदा उठाते हुए कलीसिया की सदस्यता संख्या और वित्तीय मामलों के दस्तावेज टेबल से उठाए और उनसे अपने शरीर को पोंछ लिया। फिर मैंने उन्हें जमीन पर फेंक दिया और उन्हें रौंदकर बरबाद कर दिया, इससे पुलिस वाले भड़क गए और उनका चेहरा पीला पड़ गया। उसी समय सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो के प्रमुख को एक फोन आया, जिसमें बताया गया कि उसकी सास का निधन हो गया है और उसे घर जाना पड़ेगा, इसलिए उसे पूछताछ रोकनी पड़ी। मुझे पता था कि यह परमेश्वर की सुरक्षा है और मैं उसकी बहुत आभारी थी। पुलिस ने मुझसे कुल आठ बार पूछताछ की, लेकिन उन्हें मुझसे कोई जानकारी नहीं मिली और इसलिए आखिरकार उन्होंने मुझे एक हिरासत गृह में भेज दिया।
हिरासत गृह में दो महिला अधिकारी मुझे एक छोटे से कमरे में ले गईं और मुझे डाँटते हुए कहा, “हम तुम्हारी खाल उधेड़ देंगे बुढ़िया!” फिर उन्होंने कैंची ली और मेरे कपड़ों के हर बटन को काटकर निकाल दिया। इसके बाद उन्होंने मुझे नंगा कर दिया और मेरे जूते फेंक दिए। निरीक्षण करने के बाद उन्होंने मुझे नंगे पैर आँगन से दूसरे कमरे में चलने को कहा। मैं बहुत अपमानित महसूस कर रही थी और बहुत नाराज और व्यथित थी, इसलिए मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। लोगों की पीड़ा के माध्यम से, उनकी काबिलियत के माध्यम से, और इस गंदे देश के लोगों के समस्त शैतानी स्वभावों के माध्यम से परमेश्वर अपना शुद्धिकरण और विजय का कार्य करता है, ताकि इससे वह महिमा प्राप्त कर सके, और ताकि उन्हें प्राप्त कर सके जो उसके कर्मों की गवाही देंगे। इस समूह के लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए सारे त्यागों का संपूर्ण महत्व ऐसा ही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन ने मुझे यह समझा दिया कि पकड़े जाने और अपमानित होने में हालाँकि मेरे शरीर को थोड़ी पीड़ा हुई और मेरे अभिमान को ठेस पहुँची, लेकिन यह पीड़ा धार्मिकता और सत्य को प्राप्त करने के लिए थी और यह पीड़ा मूल्यवान और सार्थक थी। सताए जाने से मुझे भेद की पहचान हासिल करने और बड़े लाल अजगर की दुष्टता और बेशर्मी को और अधिक स्पष्ट रूप से देखने में मदद मिली और मैं अपने दिल से उससे घृणा करने लगी और ठुकराने लगी। यह सोचकर मुझे अब शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई और मैंने शैतान को शर्मिंदा करने के लिए अपनी गवाही में अडिग रहने का संकल्प लिया।
हिरासत गृह में तीस दिन तक बंद रहने के बाद पुलिस ने मुझ पर “सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने” का आरोप लगाया और मुझे एक साल के श्रम पुनर्शिक्षा की सजा सुनाई। श्रम शिविर में मैं लगभग 10 वर्ग मीटर के कमरे में रहती थी जो 20 लोगों से भरा था और हर सुबह 6 बजे काम शुरू हो जाता था। पुलिस हमें लगातार काम सौंपती रहती थी और अगर हम उन्हें पूरा नहीं करते थे तो खाने या सोने नहीं देती थी और हमें रात में ओवरटाइम काम करना पड़ता था। चाहे दिन हो या रात, जब हमें कुछ हटाने के लिए बुलाया जाता, तो हमें तुरंत 60 से 70 पाउंड का सामान खुद तीसरी मंजिल पर ले जाना पड़ता था और अगर हम धीरे-धीरे चलते, तो पुलिस हम पर चिल्लाती और हमें डाँटती थी। दूसरी मंजिल पर पहुँचने तक मैं हिलने में असमर्थ हो जाती और हर कदम पर गिरने लगती थी और मुझे तीसरी मंजिल तक पहुँचने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ना पड़ता था। मैं थक जाती, पसीने से लथपथ हो जाती और हर बार पैर कमजोर पड़ जाते और काम खत्म करने के बाद मुझे साँस लेने का भी वक्त नहीं मिलता और तुरंत ही दूसरे काम में लगना पड़ता। मैं हर दिन ऐसे काम करती थी जैसे मेरी जिंदगी उसी पर निर्भर हो, अगर मैंने काम पूरा न किया तो दंड या लंबी सजा का डर होता था, अक्सर सिरदर्द और चक्कर आते थे और कई बार लगभग बेहोश हो जाती थी। पूरे दिन काम करने के बाद मुझे रात में दो घंटे तक सोए, दीवार से टिके या स्वतंत्र रूप से इधर-उधर घूमे बिना पहरा देना पड़ता था और किसी भी उल्लंघन के नतीजे में दंड मिलता और डाँट पड़ती थी। जब आखिरकार सोने का समय आता तो सोना भी एक यातना होती थी क्योंकि हम चारों को एक मीटर चौड़े बिस्तर पर सिमट कर रहना पड़ता था और मुझे एक छोटे से हिस्से में सिमट कर लेटना पड़ता था, मैं करवट नहीं ले पाती थी या हिल नहीं पाती थी क्योंकि दूसरे कैदी मेरे हिलने पर चिल्लाते थे। मेरे पैर बिस्तर से बाहर लटके रहते थे, ठंड में ऐंठन होने लगती थी। मुझे अक्सर पकड़े जाने या पूछताछ किए जाने के बुरे सपने आते थे और मैं पसीने में जाग जाती थी। हम हमेशा भूखे रहते थे और जब खाने का समय आता था, तो हममें से जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते थे, उन्हें बिना किसी तेल के केवल पतला, पानी जैसा भोजन मिलता था। श्रम शिविर में हर दिन एक साल जैसा लगता था। हर दिन मैं सोचती थी, “ये अंधेरे और दयनीय दिन कब खत्म होंगे?” मैं काफी कमजोर महसूस करती थी, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करे और तुम्हारा परिवेश कैसा भी हो, अगर तुम जीवन का अनुसरण करने और सत्य खोजने में समर्थ होते हो, परमेश्वर के कार्य के ज्ञान का अनुसरण करते हो और उसके कर्मों को जानने का प्रयास करते हो और तुम सत्य के अनुसार कार्य करने में समर्थ होते हो तो यह सच्ची आस्था का होना है और इससे साबित होता है कि तुमने परमेश्वर में आस्था नहीं खोई है। तुम केवल तभी परमेश्वर में सच्ची आस्था रखते हो, जब तुम शोधन के दौरान सत्य का अनुसरण करते रहने और परमेश्वर से सचमुच प्रेम करने में डटे रहें में समर्थ होते हो, उसके बारे में संदेह विकसित नहीं करते हो और जब परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, फिर भी तुम उसे संतुष्ट करने के लिए सत्य का अभ्यास करते हो, गहराई से उसके इरादे खोजने में समर्थ होते हो और उसके इरादों के प्रति विचारशील होते हो” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। “क्या तुम लोगों ने कभी वे आशीष स्वीकार किए हैं जो तुम्हारे लिए तैयार किए गए थे? क्या तुम लोगों ने कभी उन वादों का पीछा किया है जो तुम लोगों के लिए किए गए थे? तुम लोग मेरे प्रकाश के मार्गदर्शन में अन्धकार की शक्तियों का शिकंजा तोड़कर बाहर आ जाओगे। तुम अंधकार के बीच प्रकाश का मार्गदर्शन नहीं खोओगे। तुम सभी चीजों के मालिक होगे। तुम शैतान के सामने विजेता होगे। तुम बड़े लाल अजगर के देश के पतन पर मेरी जीत के सबूत के रूप में अनगिनत लोगों के बीच उठ खड़े होगे। तुम लोग सिनिम की जमीन पर दृढ़ और अटल रहोगे। तुम जो कष्ट सहते हो उनके परिणामस्वरूप विरासत में मेरे आशीष प्राप्त करोगे और तुम पूरे ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा के प्रकाश की किरणें बिखेरोगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 19)। परमेश्वर के वचनों ने वास्तव में मुझे सांत्वना दी और प्रोत्साहित किया। विजेता वह व्यक्ति होता है जो उत्पीड़न और क्लेश के बीच भी सत्य का अभ्यास कर सकता है, शैतान पर विजय पा सकता है और परमेश्वर के लिए गवाही दे सकता है। लेकिन मैं थोड़ी सी पीड़ा से ही निराश और कमजोर हो गई थी। ऐसे मैं शैतान पर कैसे विजय पाती? इन कठिनाइयों को झेलना और परमेश्वर के लिए गवाही देने का अवसर पाना परमेश्वर की बड़ाई और उसका मुझे आशीष देना था। इसे सोचकर मुझे लगा कि यह पीड़ा मूल्यवान और सार्थक थी और मैं इसका अनुभव करने के लिए परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और भरोसा करने को तैयार थी। इस तरह प्रार्थना और परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन पर भरोसा करके मैं जेल में एक साल बिता पाई। जब मैं श्रम शिविर से बाहर निकली, तब तक मेरा वजन तीस पाउंड से कम हो चुका था और मेरे हाथों पर इसके दुष्प्रभाव थे।
श्रम शिविर से बाहर निकलने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझ पर अपनी निगरानी कम नहीं की और उन्होंने सिर्फ मुझ पर नजर रखने के लिए गाँव में एक मुखबिर रख दिया, ताकि वे देख सकें कि मैं अभी भी परमेश्वर में विश्वास करती हूँ या सभाओं में जाती हूँ। मैं एक तस्वीर के फ्रेम में सिमटी हुई जिंदगी जी रही थी, सभाओं में भाग लेने या सुसमाचार का प्रचार करने में असमर्थ थी, इसलिए अपने कर्तव्य करने के लिए घर छोड़ने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। उन वर्षों में अक्सर पुलिस स्टेशन से लोग मेरे घर आते और मेरे पति से मेरे ठिकाने के बारे में पूछताछ करते थे और वे अक्सर मेरे बेटे और बहू को बुलाते थे और उनसे मुझे ढूँढ़ने का आग्रह करते थे। एक दिन मेरी बहू मुझे सड़क पर मिली और मुझे साथ घर चलने का आग्रह किया। जब हम वहाँ पहुँचे तो मेरे बेटे ने आँखों में आँसू भरकर कहा, “तुम्हारे घर पर न होने पर पुलिस स्टेशन से फोन आता रहता है, हमें शांति नहीं मिलती! हम जानते हैं कि परमेश्वर में तुम्हारी आस्था अच्छी बात है, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी इसका विरोध करती है और अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करती रहोगी, तो वे हमारे बच्चों को स्कूल नहीं जाने देंगे और हमारा जीवन असहनीय हो जाएगा। तुम्हें चुनाव करना होगा, तुम्हारा परमेश्वर या यह परिवार?” यह सुनकर मैंने सोचा, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास करना और सुसमाचार का प्रचार करना जारी रखती हूँ तो बेटे-बहू के साथ मेरा रिश्ता टूट जाएगा और वे भविष्य में मेरी परवाह नहीं करेंगे। जब मैं बूढ़ी हो जाऊँगी तो मैं क्या करूँगी?” मैंने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की। इस समय मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “जब परमेश्वर और शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में लड़ाई करते हैं, तो तुम्हें परमेश्वर को कैसे संतुष्ट करना चाहिए और किस प्रकार उसकी गवाही में अडिग रहना चाहिए? तुम्हें यह पता होना चाहिए कि जो कुछ भी तुम्हारे साथ होता है, वह एक महान परीक्षण है और वह समय है जब परमेश्वर को तुम्हारी गवाही की आवश्यकता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों के जरिए मैंने उसके इरादे को समझा। मैं जिन परिस्थितियों से जूझ रही थी, वे एक परीक्षा थीं और मुझे परमेश्वर की तरफ रहकर उसे संतुष्ट करना था। मेरा बेटा और बहू मुझे सता रहे थे और मेरे काम में बाधा डाल रहे थे, लेकिन असली अपराधी कम्युनिस्ट पार्टी थी, जो इन चालों का इस्तेमाल करके मुझे परमेश्वर को धोखा देने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रही थी। मैं शैतान की चालों को सफल नहीं होने दे सकती थी और मुझे अपनी गवाही में अडिग रहने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना था। भले ही मेरा जीवन कैसा भी हो या मेरा बेटा मेरी देखभाल करे या नहीं, यह सब परमेश्वर के हाथों में है और मैं इसे अनुभव करने के लिए उस पर भरोसा करने को तैयार हूँ। मुझे पता था कि मैं अपनी आस्था का पालन नहीं कर सकती और घर पर अपने कर्तव्य नहीं कर सकती, इसलिए मैंने घर छोड़ने और अपने कर्तव्य जारी रखने का तरीका खोज लिया।
बड़ा लाल अजगर कई साल से मेरे पीछे लगा है और जितना अधिक वह मुझे सताता है, उतना ही मैं अपने दिल की गहराई से उससे नफरत करती हूँ और उसे ठुकराती हूँ और उतना ही मैं अपने विश्वास में दृढ़ रहती हूँ, परमेश्वर का अनुसरण करती हूँ और अपने कर्तव्य करती हूँ। परमेश्वर का धन्यवाद!