32. आपदा के समय अपने कर्तव्य पर डटे रहना
23 जुलाई 2023 को जब मैं कुछ नवागंतुकों की सिंचाई करने के बाद घर लौटी, ऊपरी अगुआ ली किंग जल्दी में मेरे पास आया और मुझसे बोला, “शू गुआंग कलीसिया में बहुत से नवागंतुकों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और उन्होंने कलीसिया अगुआओं और उपयाजकों को भी पकड़ लिया है। दो नजदीकी कलीसियाओं के कई भाई-बहनों को भी गिरफ्तार किया गया है। अब नवागंतुकों का तुरंत सिंचन करने और सहारा देने की जरूरत है, वरना उनके लिए इस भयानक परिवेश में अडिग रहना कठिन होगा। चूँकि तुमने पहले भी उनका सिंचन किया है, इसलिए हम चाहते हैं कि तुम इन नवागंतुकों को सहारा दो।” अगुआ को यह कहते हुए सुनकर मुझे एहसास हुआ कि यह काम बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन फिर मैंने सोचा, “मैं अभी दो दिन पहले ही शू गुआंग कलीसिया से लौटी हूँ और अगले दिन इतने सारे भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके अलावा वे सभी मुझे जानते हैं, इसलिए इस समय नवागंतुकों का सिंचन करना बेहद खतरनाक होगा! हर जगह निगरानी वाले कैमरे लगे हैं। ऐसे में अगर कोई मेरे साथ गद्दारी करे और पुलिस निगरानी वाली फुटेज का इस्तेमाल करके मुझे पकड़ ले तो क्या होगा? मुझे पहले भी दो बार गिरफ्तार किया जा चुका है और अगर मुझे फिर से गिरफ्तार किया जाता है तो पुलिस मुझे पक्का यातना देकर मौत के घाट उतार देगी। अगर मुझे पीट-पीटकर मार दिया जाता है तो मेरे उद्धार का मौका पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।” मुझे थोड़ा डर लग रहा था, इसलिए मैंने सोचा कि पहले बर्खास्त हो चुकी एक सिंचनकर्ता से इन नवागंतुकों को सहारा देने के लिए कहा जाए। लेकिन इस बहन में अपने कर्तव्य के प्रति जिम्मेदारी की भावना की कमी है और उसने वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं किया था इसलिए उसे भेजने को लेकर मैं असहज हो गई। झल्लाते और झिझकते हुए मैंने सोचा, “क्या पुलिस भी परमेश्वर के हाथों में नहीं है? मुझे गिरफ्तार किया जाएगा या नहीं, यह पुलिस पर निर्भर नहीं है। अगर मैं कलीसिया जाने से पहले ही डर जाती हूँ तो मैं किस तरह से गवाही दे पाऊँगी?” मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह मेरी रक्षा करे और मुझे आस्था और शक्ति दे और फिर मैं नवागंतुकों का सिंचन करने चली गई।
लेकिन कुछ समय बाद मुझे पता चला कि कई और नवागंतुकों को गिरफ्तार किया गया है और पुलिस मेरी और दो अन्य बहनों की निगरानी वाली तस्वीरों का इस्तेमाल करके नवागंतुकों से हमारी पहचान करवा रही है। मैं और भी ज्यादा डर गई और सोचा, “मुझे कुछ साल पहले गिरफ्तार किया गया था और राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड की पुलिस मुझे जानती है। अगर मुझे फिर से गिरफ्तार किया जाता है तो वे निश्चित रूप से मुझे नहीं छोड़ेंगे।” यह सोचकर कि कैसे कुछ भाई-बहनों को पुलिस ने बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला था और कैसे मुझे पहले भी यातना देकर एक बार पुलिस ने मरने के कगार पर पहुँचा दिया था, मैंने सोचा, “अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया जाता है और वाकई पीट-पीटकर मार डाला जाता है तो क्या मेरी वर्षों की आस्था का अंत नहीं हो जाएगा?” जितना अधिक मैंने इसके बारे में सोचा, उतनी ही अधिक चिंतित हो गई और मैं रात को सो नहीं पाई। मैं बस चाहती थी कि अगुआ नवागंतुकों का सिंचन करने के लिए किसी और को ढूँढ़ ले। लेकिन ज्यादातर कलीसिया अगुआओं, कार्यकर्ताओं और सिंचनकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, इसलिए फिलहाल कोई अन्य उपयुक्त व्यक्ति उपलब्ध नहीं था। बाद में भले ही मैं नवागंतुकों का सिंचन करने के लिए आगे बढ़ी, मगर मैं डर और घबराहट में जीती थी, सभाओं में जाकर सिर्फ खानापूर्ति करती थी और जब भी मैं परमेश्वर के वचन पढ़ती तो मैं जल्द से जल्द वहाँ से निकल जाना चाहती थी, डरती थी कि सभा जितनी लंबी चलेगी, खतरा उतना ही बढ़ता जाएगा। उस समय कुछ नवागंतुक गिरफ्तार होने से डरते थे और उनकी दशा खराब थी और मैं बस संक्षेप में बात खत्म करके सभाओं को जल्द से जल्द खत्म कर देती थी। बाद में यह सोचकर कि नवागंतुकों के मुद्दे कैसे हल नहीं हुए हैं, मुझे अपराध बोध हुआ, डरती रही कि नवागंतुक नकारात्मक, कमजोर या सीसीपी की बेबुनियाद अफवाहों से गुमराह हो सकते हैं और आखिरकार छोड़कर जा सकते हैं। लेकिन मैंने यह भी सोचा कि भले ही पुलिस ने मेरी निगरानी वाली फुटेज और तस्वीरें हासिल कर ली थीं, लेकिन मैंने किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को मेरा पीछा करते हुए नहीं देखा था और जब तक मैं सुरक्षित रहने पर ध्यान देती और भेष बदलती हूँ, मैं अभी भी सभाओं में भाग ले सकती हूँ। अगर इस महत्वपूर्ण समय में मैंने सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचा और इस बात की उपेक्षा की कि क्या नवागंतुक अडिग रह सकते हैं तो क्या मुझमें अभी भी मानवता होगी? मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, जिसमें कहा गया है : “ब्रह्मांड में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। यह सच है, परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और चाहे बड़ा लाल अजगर कितना भी बुरा और उग्र क्यों न हो, वह परमेश्वर की संप्रभुता से परे नहीं जा सकता। परमेश्वर की अनुमति के बिना पुलिस मुझे पकड़ नहीं सकती। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और ताकत दी, इसलिए मैं नवागंतुकों का सिंचन करती रही।
बाद में काम की जरूरतों के कारण मैं सिंचन कार्य का पर्यवेक्षण करने के लिए शिन शेंग कलीसिया गई। लेकिन मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरे शिन शेंग कलीसिया पहुँचने के कुछ ही समय बाद पुलिस कलीसिया अगुआओं को गिरफ्तार कर लेगी। यह देखकर कि पुलिस इस कलीसिया में भी लोगों को गिरफ्तार करने लगी है, मुझे घबराहट हो गई और डर से नवागंतुकों का सिंचन करने नहीं जाना चाहती थी। लेकिन इस कलीसिया में नवागंतुक अभी-अभी सामान्य रूप से सभा करने लगे थे और कलीसिया अगुआओं को गिरफ्तार कर लिया गया। मैं सिर्फ यह नहीं देख सकती थी कि नवागंतुक सिंचन के बिना छोड़कर चले जाएँ और उनका जीवन कष्ट में हो। मेरे दिल में उथल-पुथल हो रही थी, इसलिए मैंने परमेश्वर के सामने घुटने टेके और प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर! कई नवागंतुकों का सिंचन करने और सहारा देने की जरूरत है, लेकिन मुझे गिरफ्तार होने का डर है और मुझमें जाने की हिम्मत नहीं है। मुझे आस्था और हिम्मत दो।” प्रार्थना करने के बाद मैंने एक अनुभवजन्य गवाही वीडियो देखा जिसने मुझे गहराई से प्रभावित किया। भले ही बहन पुलिस के उत्पीड़न और बड़े पैमाने पर महामारी दोनों के सामने कमजोर और नकारात्मक पड़ गई थी, वह कलीसिया में बाद के काम को ठीक से देखने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने में सक्षम थी और उसने परमेश्वर के वचनों की किताबों को सुरक्षित रूप से दूसरी जगह पहुँचा दिया। इस बहन को उत्पीड़न और विपदा के बीच अपने कर्तव्य निभाने में सक्षम देखकर मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई, खासकर जब मैं वीडियो में दिखे परमेश्वर के वचनों से प्रेरित हुई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “अब मैं तुम्हारी निष्ठा और समर्पण, तुम्हारा प्रेम और गवाही चाहता हूँ। यहाँ तक कि अगर तुम इस समय नहीं जानते कि गवाही क्या होती है या प्रेम क्या होता है, तो तुम्हें अपना सब-कुछ मेरे पास ले आना चाहिए और जो एकमात्र खजाना तुम्हारे पास है : तुम्हारी निष्ठा और समर्पण, उसे मुझे सौंप देना चाहिए। तुम्हें जानना चाहिए कि मेरे द्वारा शैतान को हराए जाने की गवाही मनुष्य की निष्ठा और समर्पण में निहित है, साथ ही मनुष्य के ऊपर मेरी संपूर्ण विजय की गवाही भी। मुझ पर तुम्हारी आस्था का कर्तव्य है मेरी गवाही देना, मेरे प्रति वफादार होना और किसी और के प्रति नहीं और अंत तक समर्पित बने रहना। इससे पहले कि मैं अपने कार्य का अगला चरण आरंभ करूँ, तुम मेरी गवाही कैसे दोगे? तुम मेरे प्रति वफादार और समर्पित कैसे बने रहोगे? तुम अपने कार्य के प्रति अपनी सारी निष्ठा समर्पित करते हो या उसे ऐसे ही छोड़ देते हो? इसके बजाय तुम मेरे प्रत्येक आयोजन (चाहे वह मृत्यु हो या विनाश) के प्रति समर्पित हो जाओगे या मेरी ताड़ना से बचने के लिए बीच रास्ते से ही भाग जाओगे? मैं तुम्हारी ताड़ना करता हूँ ताकि तुम मेरी गवाही दो, और मेरे प्रति निष्ठावान और समर्पित बनो। इतना ही नहीं, ताड़ना वर्तमान में मेरे कार्य के अगले चरण को प्रकट करने के लिए और उस कार्य को निर्बाध आगे बढ़ने देने के लिए है। अतः मैं तुम्हें समझाता हूँ कि तुम बुद्धिमान हो जाओ और अपने जीवन या अस्तित्व के महत्व को बेकार रेत की तरह मत समझो। क्या तुम सही-सही जान सकते हो कि मेरा आने वाला काम क्या होगा? क्या तुम जानते हो कि आने वाले दिनों में मैं किस तरह काम करूँगा और मेरा कार्य किस तरह प्रकट होगा? तुम्हें मेरे कार्य के अपने अनुभव का महत्व और साथ ही मुझ पर अपने विश्वास का महत्व जानना चाहिए। ... इसलिए, मैं अब भी तुमसे कहूँगा : तुम्हें मेरे कार्य के लिए अपना जीवन देना ही होगा, और इतना ही नहीं, तुम्हें मेरी महिमा के लिए अपने आपको समर्पित करना होगा। लंबे समय से मैं उत्सुक हूँ कि तुम मेरी गवाही दो, और इससे भी बढ़कर, लंबे समय से मैं उत्सुक हूँ कि तुम सुसमाचार फैलाओ। तुम्हें समझना ही होगा कि मेरे हृदय में क्या है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम आस्था के बारे में क्या जानते हो?)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मैं बहुत प्रभावित हुई, खास तौर पर जब परमेश्वर ने कहा, “इसके बजाय तुम मेरे प्रत्येक आयोजन (चाहे वह मृत्यु हो या विनाश) के प्रति समर्पित हो जाओगे या मेरी ताड़ना से बचने के लिए बीच रास्ते से ही भाग जाओगे?” मुझे लगा कि मुझमें खासकर अंतरात्मा की कमी है और मैं वाकई स्वार्थी और नीच हूँ! सीसीपी द्वारा कलीसिया में की गई ताबड़तोड़ गिरफ्तारियों और उत्पीड़न को देखते हुए मुझे स्पष्ट पता था कि इन नवागंतुकों में दर्शन के बारे में सत्य की कमी है और इस भयानक परिवेश और सीसीपी की निराधार अफवाहों के सामने उनके लिए नकारात्मक, कमजोर या गुमराह होना और यहाँ तक कि आस्था से पीछे हटना आसान होगा। मुझे नवागंतुकों के सिंचन कार्य की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठानी थी ताकि वे सत्य समझ सकें और अडिग रह सकें। लेकिन गिरफ्तार होने के डर से मैं इस महत्वपूर्ण क्षण में नवागंतुकों के सिंचन का काम छोड़कर भाग जाना चाहती थी और यह जानने के बाद कि पुलिस के पास खासकर मेरी तस्वीर है, मैं और भी ज्यादा डर गई। मुझे डर था कि पुलिस मुझे गिरफ्तार कर लेगी और पीट-पीटकर मार डालेगी, फिर मेरे लिए भविष्य में कोई अच्छा परिणाम और मंजिल नहीं होगा। इसलिए भले ही मुझे स्पष्ट पता था कि नवागंतुकों को सहारा देने वाला कोई नहीं है, फिर भी मैं उनका सिंचन करने नहीं जाना चाहती थी। भले ही मैं बाद में चली गई, लेकिन मैं बस खानापूर्ति कर रही थी और जल्द से जल्द सभा समाप्त करके निकल जाना चाहती थी। अपने व्यवहार पर चिंतन करते हुए मुझे एहसास हुआ कि मुझे परमेश्वर में कोई वास्तविक आस्था या समर्पण नहीं था और मुझे बस अपनी सुरक्षा की चिंता थी। मैं खतरे की थोड़ी सी आहट मिलने पर भी बस अपना कर्तव्य छोड़कर बीच रास्ते से भाग जाना चाहती थी। मुझे परमेश्वर में कोई आस्था कैसे थी? मेरी वफादारी और समर्पण कहाँ था? मेरी गवाही कहाँ थी? यह परमेश्वर को धोखा देने की अभिव्यक्ति थी। मैं व्यथित हो गई और मुझे अपराध बोध हुआ, इतनी स्वार्थी और नीच होने और जरा भी वफादारी नहीं होने के लिए मैं खुद से घृणा करने लगी! साथ ही मुझे यह भी समझ आया कि गिरफ्तारियों और उत्पीड़न के सामने मुझे अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना होगा, अपना दिल समर्पित करना होगा और परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना होगा और भले ही इसका मतलब अपना जीवन बलिदान करना हो, मुझे अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना होगा। इसका एहसास होने पर मेरी ताकत बढ़ गई और अब मुझे गिरफ्तार होने का डर नहीं रहा। फिर मैं जल्दी से नवागंतुकों के पास गई, उनके साथ परमेश्वर के वचनों की संगति की और परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि को समझने में उनकी मदद की ताकि वे इस परिवेश का अनुभव करने के लिए आस्था रख सकें।
इसके बाद मैंने सोचा, “भाई-बहनों की गिरफ्तारी के बारे में सुनकर मुझे हमेशा डर क्यों लगता है और मैं खुद को बचाना क्यों चाहती हूँ? इसका मूल कारण क्या है?” मैंने इस मामले पर परमेश्वर के वचन खोजे और उन्हें पढ़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “मुख्यभूमि चीन में, परमेश्वर में विश्वास रखने का मतलब है एक खतरनाक परिवेश में रहना। परमेश्वर का अनुसरण करने वाले हरेक व्यक्ति को रोज गिरफ्तार किए जाने, सजा पाने और बड़े लाल अजगर द्वारा क्रूर उत्पीड़न दिए जाने के जोखिम का सामना करना पड़ता है। मसीह-विरोधियों के साथ भी यही होता है। भले ही परमेश्वर के घर में उन्हें मसीह-विरोधियों की तरह देखा जाए, धार्मिक समुदाय के साथ मिलकर बड़ा लाल अजगर, परमेश्वर की कलीसिया और उसके चुने हुए लोगों को दबाने और सताने के लिए लगातार अपनी पूरी कोशिश करता है, और बेशक, मसीह-विरोधी भी खुद को ऐसे परिवेश में पाते हैं और वे भी गिरफ्तारी के खतरे से मुक्त नहीं हो पाते। इसलिए, उन्हें अक्सर अपनी सुरक्षा की समस्या का सामना करना पड़ता है। अब सवाल उठता है कि मसीह-विरोधी अपनी सुरक्षा के मामले से कैसे निपटते हैं। इस उपखंड के लिए हम मुख्य रूप से अपनी सुरक्षा के प्रति मसीह-विरोधियों के रवैये के बारे में संगति कर रहे हैं। उनका रवैया क्या है? (वे अपनी सुरक्षा बनाए रखने के लिए भरसक प्रयास करते हैं।) मसीह-विरोधी अपनी सुरक्षा बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं। वे मन ही मन यह सोचते हैं : ‘मुझे अपनी सुरक्षा अवश्य सुनिश्चित करनी चाहिए। चाहे जो भी पकड़ा जाए, मैं न पकड़ा जाऊँ।’ ... अगर कोई स्थान सुरक्षित होता है, तो मसीह-विरोधी उस स्थान को कार्य करने के लिए चुनेगा, और बेशक, वह बहुत सक्रिय और सकारात्मक दिखाई देगा, अपनी महान ‘जिम्मेदारी की भावना’ और ‘निष्ठा’ दिखाएगा। अगर किसी कार्य में जोखिम होता है और उसके घटना का शिकार होने या उसे करने वाले के बारे में बड़े लाल अजगर को पता चल जाने की संभावना होती है, तो वे बहाने बना देते हैं और इससे इनकार करते हुए बचकर भागने का मौका ढूँढ़ लेते हैं। जैसे ही कोई खतरा होता है, या जैसे ही खतरे का कोई संकेत होता है, वे भाई-बहनों की परवाह किए बिना, खुद को छुड़ाने और अपना कर्तव्य त्यागने के तरीके सोचते हैं। वे केवल खुद को खतरे से बाहर निकालने की परवाह करते हैं। दिल में वे पहले से ही तैयार रह सकते हैं : जैसे ही खतरा प्रकट होता है, वे उस काम को तुरंत छोड़ देते हैं जिसे वे कर रहे होते हैं, इस बात की परवाह किए बिना कि कलीसिया का काम कैसे होगा, या इससे परमेश्वर के घर के हितों या भाई-बहनों की सुरक्षा को क्या नुकसान पहुँचेगा। उनके लिए जो मायने रखता है, वह है भागना। यहाँ तक कि उनके पास एक ‘तुरुप का इक्का,’ खुद को बचाने की एक योजना भी होती है : जैसे ही उन पर खतरा मँडराता है या उन्हें गिरफ्तार किया जाता है, वे जो कुछ भी जानते हैं, अपनी सुरक्षा बनाए रखने के लिए वह सब कह देते हैं और खुद को पाक-साफ बताकर तमाम जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। उनके पास यह योजना तैयार रहती है। ये लोग परमेश्वर पर विश्वास करने के कारण उत्पीड़न सहने को तैयार नहीं होते; वे गिरफ्तार होने, प्रताड़ित किए जाने और दोषी ठहराए जाने से डरते हैं। सच तो यह है कि वे बहुत पहले ही अपने दिलों में शैतान के आगे घुटने टेक चुके हैं। वे शैतानी शासन की शक्ति से भयभीत हैं, और इससे भी ज्यादा वे खुद पर होने वाली यातना और कठोर पूछताछ जैसी चीजों से डरते हैं। इसलिए, मसीह-विरोधियों के साथ अगर सब-कुछ सुचारु रूप से चल रहा होता है, और उनकी सुरक्षा को कोई खतरा या उसे लेकर कोई समस्या नहीं होती, और कोई जोखिम संभव नहीं होता है, तो वे अपने उत्साह और ‘वफादारी,’ यहाँ तक कि अपनी संपत्ति की भी पेशकश कर सकते हैं। लेकिन अगर हालात खराब हों और परमेश्वर में विश्वास रखने और अपना कर्तव्य करने के कारण उन्हें किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता हो, और अगर परमेश्वर पर उनके विश्वास के कारण उन्हें उनके आधिकारिक पद से हटाया जा सकता हो या उनके करीबी लोगों द्वारा त्यागा जा सकता हो, तो वे असाधारण रूप से सावधान रहेंगे, न तो सुसमाचार का प्रचार करेंगे, न ही परमेश्वर की गवाही देंगे और न ही अपना कर्तव्य करेंगे। जब परेशानी का कोई छोटा-सा भी संकेत होता है, तो वे अपने खोल में छिपने वाले कछुए की तरह पीछे हट जाते हैं; जब परेशानी का कोई छोटा-सा भी संकेत होता है, तो वे परमेश्वर के वचनों की अपनी पुस्तकें और परमेश्वर पर विश्वास से संबंधित कोई भी चीज फौरन कलीसिया को लौटा देना चाहते हैं, ताकि खुद को सुरक्षित और हानि से बचाए रख सकें। क्या वे खतरनाक नहीं हैं? गिरफ्तार किए जाने पर क्या वे यहूदा नहीं बन जाएँगे? मसीह-विरोधी इतने खतरनाक होते हैं कि कभी भी यहूदा बन सकते हैं; इस बात की संभावना हमेशा बनी रहती है कि वे परमेश्वर से विश्वासघात करेंगे। इतना ही नहीं, वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं। यह मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार से निर्धारित होता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह विरोधियों की प्रकृति खासकर स्वार्थी और घृणित है। अगर कर्तव्य करने की जगह सुरक्षित है और वहाँ कोई खतरा नहीं है तो मसीह-विरोधी बहुत सक्रिय होते हैं और बहुत जिम्मेदार दिखाई देते हैं, लेकिन जब परिवेश कठोर हो जाता है तो वे केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं और कलीसिया के काम या भाई-बहनों की सुरक्षा के बारे में बिल्कुल भी परवाह नहीं करते हैं। मैं इसी तरह से व्यवहार करती थी। जब कलीसिया में गिरफ्तारी नहीं होती थी तो मैं बहुत ऊर्जावान और सक्रिय रहती थी और जब काम में व्यस्तता होती थी तो मैं भूखी रहकर भी नवागंतुकों का सिंचन करती थी। लेकिन जब कलीसिया में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ हुईं और अगुआओं और सिंचनकर्ताओं को पकड़ लिया गया और मेरे लिए नवागंतुकों का सिंचन करना जरूरी हो गया तो मैं हार मानकर पीछे हट गई, डरती रही मुझे पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाएगा और यातना देकर मौत के घाट उतार दिया जाएगा और मुझे कोई अच्छा परिणाम या मंजिल नहीं मिलेगी। इसलिए मैं नवागंतुकों का सिंचन करने नहीं जाना चाहती थी और भले ही मैं साफ जानती थी कि जिस सिंचनकर्ता को बर्खास्त कर दिया गया था, वह गैर-जिम्मेदार है, फिर भी मैं उसे नवागंतुकों पर थोपना चाहती थी और इस महत्वपूर्ण क्षण में भाग जाना चाहती थी। मैंने अपनी सुरक्षा को सबसे ज्यादा महत्व दिया और इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं की कि कहीं कलीसिया के काम को नुकसान पहुँच रहा है या नहीं या नवागंतुक अडिग रह पाएँगे या नहीं। मैंने देखा कि मुझमें वाकई मानवता और अंतरात्मा की कमी है और मैंने जो स्वभाव प्रकट किया वह बिल्कुल एक मसीह-विरोधी जैसा था—अत्यधिक स्वार्थी और नीच! अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया और अपने कर्तव्य छोड़ती रही और महत्वपूर्ण क्षणों में एक भगोड़े की तरह काम करती रही तो आखिरकार मुझे हटा दिया जाएगा।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा और मृत्यु से डरने के मुद्दे पर कुछ समझ हासिल की और जाना कि इससे कैसे निपटा जाए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था, लेकिन दुनिया के लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया, इसके बजाय उनकी भर्त्सना की, पीटा और डाँटा-फटकारा और यहाँ तक कि मार डाला—इस तरह वे शहीद हुए। हम उन शहीदों के अंतिम परिणाम की, या उनके व्यवहार की परमेश्वर की परिभाषा की बात न करें, बल्कि यह पूछें : जब उनका अंत आया, तब जिन तरीकों से उनके जीवन का अंत हुआ, क्या वह मानव धारणाओं के अनुरूप था? (नहीं, यह ऐसा नहीं था।) मानव धारणाओं के परिप्रेक्ष्य से, उन्होंने परमेश्वर के कार्य का प्रसार करने की इतनी बड़ी कीमत चुकाई, लेकिन अंत में इन लोगों को शैतान द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। यह मानव धारणाओं से मेल नहीं खाता, लेकिन उनके साथ ठीक यही हुआ। परमेश्वर ने ऐसा होने दिया। ... वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं छोड़ा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि उसने समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए जो कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित रह पाई है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी उपादान हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए, जीवन सर्वाधिक सहेजने योग्य है, सर्वाधिक बहुमूल्य है, और असल में कहा जाए तो ये लोग मानव-जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में, अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य चीज अर्पित कर पाए, और वह चीज है—जीवन। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर का नाम नहीं छोड़ा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में, यहां तक कि जब उसने उनसे अपने जीवन की कीमत अदा करवाई, तब भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी। यह उनके कर्तव्य-निर्वहन की पराकाष्ठा है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए मैं गहराई से प्रभावित हुई। मैंने देखा कि युगों-युगों से परमेश्वर के सुसमाचार का प्रसार करने वाले संतों को सत्ता में बैठे लोगों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। कुछ को घोड़ों द्वारा घसीट कर मार डाला गया, कुछ को पथराव करके मार डाला गया और बाकियों को सूली पर उल्टा लटका दिया गया, लेकिन मृत्यु के खतरे के सामने वे अंधकार के प्रभाव से बेबस नहीं हुए और उन्होंने मृत्यु तक अपने कर्तव्य का पालन किया, परमेश्वर के नाम को अस्वीकार नहीं किया या उसे धोखा नहीं दिया, बल्कि अपने जीवन का उपयोग परमेश्वर के लिए सुंदर और जबर्दस्त गवाही देने के लिए किया। उनकी मृत्यु मूल्यवान और सार्थक थी। भले ही मनुष्य की नजरों में वे शारीरिक रूप से मर गए, उन्हें धार्मिकता के लिए सताया गया और परमेश्वर उनकी सराहना करता है और उन्हें याद रखता है। मैंने सोचा कि कैसे मैं अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य स्वीकारने और सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम हुई और यह परमेश्वर का अनुग्रह है। एक सृजित प्राणी के रूप में मुझे परमेश्वर के प्रेम का ऋण चुकाना था और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना था। अगर परमेश्वर ने पुलिस को मुझे गिरफ्तार करने की अनुमति दी तो यह भी मेरे लिए परमेश्वर की गवाही देने का अवसर होगा। भले ही पुलिस सचमुच अत्याचार करते हुए मुझे मार डाले, यह परमेश्वर की अनुमति से होगा। मुझे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहना होगा क्योंकि मेरा जीवन परमेश्वर द्वारा दिया गया है और चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ, मुझे परमेश्वर को मेरे लिए आयोजन करने देना चाहिए और उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहिए। इसके विपरीत अगर मैंने अपने जीवन को सँजोया और खुद की रक्षा की और महत्वपूर्ण क्षणों में मैंने अपना कर्तव्य नहीं निभाया या नवागंतुकों को सहारा और सिंचन नहीं दिया तो मैं परमेश्वर के सामने एक अपराध करूँगी और पछताने के लिए बहुत देर हो जाएगी। भले ही मेरा शरीर न मरे, परमेश्वर मुझे ऐसे व्यक्ति के रूप में देखेगा जिसने अपनी गवाही खो दी है और उसे धोखा दिया है और मैं चलती-फिरती लाश की तरह जियूँगी। यह समझकर मेरा दिल अब मृत्यु के भय से बेबस नहीं रहा।
एक शाम मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा, जिसमें कहा गया है : “शैतान ने कभी परमेश्वर के अधिकार को लांघने का साहस नहीं किया है, और, इसके अलावा, उसने हमेशा परमेश्वर के आदेश और विशिष्ट आज्ञाएँ ध्यान से सुनी हैं और उनका पालन किया है, कभी उनका उल्लंघन करने का साहस नहीं किया है, और निश्चित रूप से, परमेश्वर के किसी भी आदेश को मुक्त रूप से बदलने की हिम्मत नहीं की है। ऐसी हैं वे सीमाएँ, जो परमेश्वर ने शैतान के लिए निर्धारित की हैं, और इसलिए शैतान ने कभी इन सीमाओं को लाँघने का साहस नहीं किया है। क्या यह परमेश्वर के अधिकार का सामर्थ्य नहीं है? क्या यह परमेश्वर के अधिकार की गवाही नहीं है? मानव-जाति की तुलना में शैतान को इस बात की ज्यादा स्पष्ट समझ है कि परमेश्वर के प्रति कैसे व्यवहार करना है, और परमेश्वर को कैसे देखना है, और इसलिए, आध्यात्मिक क्षेत्र में, शैतान परमेश्वर की हैसियत और अधिकार को बहुत स्पष्ट रूप से देखता है, और वह परमेश्वर के अधिकार की शक्ति और उसके अधिकार प्रयोग के पीछे के सिद्धांतों की गहरी समझ रखता है। वह उन्हें नजरअंदाज करने की बिल्कुल भी हिम्मत नहीं करता, न ही वह किसी भी तरह से उनका उल्लंघन करने की या ऐसा कुछ करने की हिम्मत करता है, जो परमेश्वर के अधिकार को लांघता हो, और वह किसी भी तरह से परमेश्वर के कोप को चुनौती देने का साहस नहीं करता। हालाँकि शैतान दुष्ट और अहंकारी प्रकृति का है, लेकिन उसने कभी परमेश्वर द्वारा उसके लिए निर्धारित हद और सीमाएँ लाँघने का साहस नहीं किया है। लाखों वर्षों से उसने इन सीमाओं का कड़ाई से पालन किया है, परमेश्वर द्वारा दी गई हर आज्ञा और आदेश का पालन किया है, और कभी भी हद पार करने की हिम्मत नहीं की है। हालाँकि शैतान दुर्भावना से भरा है, लेकिन वह भ्रष्ट मानव-जाति से कहीं ज्यादा बुद्धिमान है; वह सृष्टिकर्ता की पहचान जानता है, और अपनी सीमाएँ भी जानता है। शैतान के ‘विनम्र’ कार्यों से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य स्वर्गिक आदेश हैं, जिन्हें शैतान लांघ नहीं सकता, और यह ठीक परमेश्वर की अद्वितीयता और उसके अधिकार के कारण है कि सभी चीजें एक व्यवस्थित तरीके से बदलती और बढ़ती हैं, ताकि मानव-जाति परमेश्वर द्वारा स्थापित क्रम के भीतर रह सके और वंश-वृद्धि कर सके, कोई भी व्यक्ति या वस्तु इस आदेश को भंग करने में सक्षम नहीं है, और कोई भी व्यक्ति या वस्तु इस व्यवस्था को बदलने में सक्षम नहीं है—क्योंकि ये सभी सृष्टिकर्ता के हाथों से और सृष्टिकर्ता के विधान और अधिकार से आते हैं” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों से मैंने परमेश्वर का अधिकार और महान सामर्थ्य देखा। सभी चीजें और घटनाएँ परमेश्वर के नियंत्रण में हैं और चाहे बड़ा लाल अजगर कितना भी आक्रामक क्यों न हो, वह परमेश्वर की अनुमति के बिना हमें अपनी इच्छा से पकड़ने की हिम्मत नहीं करेगा क्योंकि वह परमेश्वर द्वारा निर्धारित दायरों और सीमाओं को पार नहीं कर सकता। यह परमेश्वर का अद्वितीय अधिकार है। मैंने सोचा कि कैसे मूसा ने मिस्र से बाहर निकलने में इस्राएलियों की अगुआई की, उसके सामने लाल सागर और पीछे फिरौन की सेना थी। मनुष्य की कल्पना में इस्राएलियों का बच निकलना असंभव लग रहा था, लेकिन जब इस्राएली बहुत मुश्किल में थे तो परमेश्वर ने लाल सागर को दो भागों में विभाजित करके उसे सूखी भूमि में बदल दिया और इस्राएली सुरक्षित रूप से पार हो गए, जबकि मिस्र की पूरी सेना डूब गई। मैंने परमेश्वर का अधिकार और महान सामर्थ्य देखा और मैंने यह भी देखा कि यह परमेश्वर ही था जिसने इस्राएलियों को बच निकलने का रास्ता प्रदान किया और उसके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। उत्पीड़न और विपदा के सामने परमेश्वर मेरी आस्था को पूर्ण बनाने के लिए सेवा वस्तु के रूप में बड़े लाल अजगर का इस्तेमाल कर रहा था और चाहे परिस्थिति कितनी भी खतरनाक क्यों न हो, मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना था और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना था।
दो महीने बाद यहूदा के विश्वासघात के कारण माहौल और भी भयानक हो गया और लगभग सौ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। जिन लोगों को गिरफ्तार करने के बाद रिहा किया गया था, उनसे मुझे पता चला कि पुलिस ने कई बार मेरे ठिकाने के बारे में पूछा था। मैंने सोचा कि मुझे कलीसिया अगुआ चुने जाने के बाद, अगर मुझे वाकई गिरफ्तार किया गया तो पुलिस निश्चित रूप से मुझे प्रताड़ित करेगी। मैंने सोचा कि अगर मैं सहन नहीं कर सकी और मुझे पीट-पीटकर मार डाला गया तो क्या परमेश्वर में मेरी वर्षों की आस्था का अंत नहीं हो जाएगा? जब मैंने इस बारे में सोचा तो मुझे एहसास हुआ कि मैं अभी भी अपने जीवन से चिपकी हुई थी। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उसे मेरे दिल की रक्षा करने के लिए कहा। “मुझे मेरी कहानी, हमारी कहानी” नामक एक फिल्म याद आई और मैं तुरंत उसे देखने लगी। मैंने देखा कि परमेश्वर के वचनों का प्रसार करने के कारण भाइयों को पुलिस ने प्रताड़ित किया था, लेकिन उन्होंने शैतान के आगे झुकने के बजाय मरना पसंद किया। खासकर अंत में जब वे “तीन कथनों” पर हस्ताक्षर करने और परमेश्वर को धोखा देने के बजाय मरना पसंद करते हैं तो उन्होंने एक मजबूत और जबर्दस्त गवाही दी। मैं गहराई से प्रेरित हुई और मैंने संकल्प लिया कि अगर एक दिन वाकई पुलिस मुझे गिरफ्तार कर लेती है तो फिल्म के भाई-बहनों की तरह मैं शैतान के साथ समझौता करने से इनकार कर दूँगी, भले ही इसका मतलब मौत हो, ताकि परमेश्वर के दिल को सुकून देने के लिए सुंदर गवाही दे सकूँ। इसके बाद मैंने वाकई नवागंतुकों को सत्य की संगति की, शैतान की साजिशों को समझने में उनकी मदद की और धीरे-धीरे कुछ नवागंतुक सामान्य रूप से सभाओं में भाग लेने में सक्षम हो गए।
बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तारी और उत्पीड़न का अनुभव करने से मेरे असली आध्यात्मिक कद के साथ ही मेरे स्वार्थी और घृणित शैतानी स्वभाव का भी खुलासा हुआ। इससे मुझे खुद को बेहतर ढंग से समझने का मौका मिला और मैंने समझा कि गिरफ्तारियाँ और उत्पीड़न परमेश्वर की अनुमति से होते हैं और परमेश्वर इन चीजों का उपयोग हमारी आस्था और प्रेम को पूर्ण करने के लिए करता है। मुझे पता है कि भविष्य में मुझे और भी अधिक उत्पीड़न और विपदा का सामना करना पड़ेगा, लेकिन मेरा मानना है कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है और चाहे कुछ भी हो जाए, मैं एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाऊँगी और परमेश्वर की गवाही दूँगी।