44. कर्तव्यों का पालन करते समय वरिष्ठता का अधिकार जताना गलत है
मंगलवार, 28 मार्च 2023
सुबह मुझे उच्च-स्तरीय अगुआओं से एक पत्र मिला जिसमें लिखा था कि शिन रैन को नया जिला अगुआ चुन लिया गया है। पत्र पढ़कर थोड़ी देर तो मैं शांत नहीं रह पाई और सोचने लगी, “शिन रैन को कलीसिया अगुआ बने अभी कुछ ही महीने तो हुए हैं। मैं उसके कार्य जायजा लेती थी और मुझे पता है कि उसकी कार्यक्षमता में कुछ कमी है। अब अचानक वह पूरे जिले के कार्य की देखरेख कर रही है—क्या यह बहुत जल्दबाजी नहीं है? शिन रैन में अच्छी मानवता है और वह अपने जीवन प्रवेश पर भी ध्यान देती है इसलिए वह विकसित करने लायक तो है, लेकिन उसकी कार्यक्षमता इतनी मजबूत नहीं है। वह पूरे जिले का कार्य कैसे संभाल पाएगी? मैं कई वर्षों से कलीसिया अगुआ रही हूँ। अब जो व्यक्ति थोड़े समय से ही विश्वासी हो और अगुआई में भी बहुत कम अनुभव रखता हो वह मेरे कार्य का पर्यवेक्षण करेगा। क्या इससे ऐसा नहीं लगेगा कि मैं अयोग्य हूँ?” मैं इस बारे में जितना अधिक सोचती उतना ही अधिक इसे स्वीकार न पाती और मैं काफी असंतुष्ट महसूस कर रही थी। लेकिन फिर मुझे याद आया कि हम हर दिन जिन चीजों का सामना करते हैं उनकी अनुमति परमेश्वर देता है और शिन रैन का कर्तव्य परमेश्वर की व्यवस्था और संप्रभुता के अंतर्गत ही आता है। मुझे इसे अपने नजरिए से नहीं देखना चाहिए। बल्कि पहले मुझे समर्पित हो जाना चाहिए।
सोमवार, 10 अप्रैल 2023
पिछले दो दिनों में शिन रैन ने सुसमाचार कार्य का जायजा लेते हुए लिखा कि मैं अपने कार्य में आने वाली कुछ समस्याओं को समझने की कोशिश कर रही हूँ और इस बात पर संगति कर रही हूँ कि चीजों को कैसे सुलझाया जाए। पत्र पढ़कर मुझे बेचैनी हुई और मैंने कोई जवाब नहीं देना चाहा। मैंने सोचा, “मैं एक दशक से भी अधिक समय से कलीसिया अगुआई में हूँ। मैं जानती हूँ कि कार्य का जायजा कैसे लिया जाता है। मुझे तुम्हारे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है! तुम्हें अगुआ बनने का प्रशिक्षण लेते हुए अभी एक साल से भी कम समय हुआ है और अब मेरे कार्य का मार्गदर्शन देने की कोशिश कर रही हो? तुमने जो तरीका साझा किया है मैं उससे पहले से ही वाकिफ हूँ।” मुझे एहसास हुआ कि मैं अहंकारी स्वभाव प्रकट कर रही हूँ और मैंने सोचा : अगर मैं इसी अहंकारी स्वभाव में जीती रही, शिन रैन द्वारा मेरे कार्य का जायजा लेने के प्रति अवज्ञाकारी और असंतुष्ट बनकर उसके साथ सहयोग करने से इनकार करती रही तो क्या इससे वह बेबस नहीं हो जाएगी? मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्हें इन चीजों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्हारे लिए अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आया कि जब मेरे साथ कुछ घटित हो तो मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार नहीं जी सकती। मुझे परमेश्वर के घर के हितों के बारे में अधिक विचार करना चाहिए और वह सब करना चाहिए जो कलीसिया के कार्य के लिए लाभदायक हो। अगर मैं अपने अहंकारी स्वभाव में रहूँ और शिन रैन के पत्रों का उत्तर न दूँ तो वह मेरी कार्य स्थिति को समझ नहीं पाएगी जिससे उसके लिए आगे जायजा लेना मुश्किल हो जाएगा। इसके अलावा इससे वह बेबस हो सकती है और उसकी अवस्था पर असर पड़ सकता है जो आसानी से कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा कर सकता है। कार्य का जायजा लेना और पर्यवेक्षण करना शिन रैन का कर्तव्य है और मुझे सुसमाचार कार्य की स्थिति के बारे में तुरंत जवाब देकर उसके साथ सहयोग करना चाहिए।
शुक्रवार, 12 मई 2023
आज दोपहर सुसमाचार कार्य के बारे में चर्चा के दौरान शिन रैन ने बताया कि मैं हाल ही में केवल सामान्य मामलों पर ही ध्यान दे रही हूँ, सुसमाचार के कार्य पर ध्यान नहीं दे रही हूँ, और अपने मूल कर्तव्य से भटक गई हूँ। उसने जिस मुद्दे की बात की मुझे उसकी जानकारी थी और मुझे पता था कि यह वास्तव में मेरे कार्य में एक समस्या है, लेकिन जब उसने यह बात कही तो मुझे विशेष रूप से असहज महसूस हुआ। मैंने सोचा, “तुम्हें अगुआ बने अभी कुछ ही समय हुआ है, फिर भी तुम मेरे गौरव का ख्याल किए बिना इतने सारे लोगों के सामने मेरी समस्याएँ उजागर कर रही हो। मैंने अपनी पिछली कार्य रिपोर्ट में इस विचलन का सारांश पहले ही दे दिया है। मैं तुमसे अधिक समय से सुसमाचार के कार्य के लिए जिम्मेदार रही हूँ और जानती हूँ कि इसका जायजा कैसे लिया जाता है। तुम्हें इस विचलन के बारे में मुझे बताने की आवश्यकता नहीं है—मैं आने वाले दिनों में इसे खुद ही ठीक कर लूँगी!” उसके बाद शिन रैन ने संगति जारी रखी, मैंने अपने कामों पर ध्यान दिया और बातचीत में बिल्कुल भाग नहीं लिया। माहौल कुछ अजीब-सा हो गया और इससे बैठक की प्रभावशीलता पर असर पड़ा। शाम को शिन रैन ने अपनी अवस्था के बारे में बताया कि जब किसी ने उसकी बातों का जवाब नहीं दिया तो उसे बहुत दुख हुआ जिससे उसे काम करने की अपनी क्षमता पर ही संदेह होने लगा। यह सुनकर मुझे थोड़ी ग्लानि हुई। मैं जानती थी कि शिन रैन मेरे कार्य में विचलन और समस्याओं को किसी दुर्भावना के तहत नहीं बता रही थी बल्कि समय रहते विचलन को दूर करने में मेरी सहायता कर रही थी ताकि सुसमाचार के कार्य में देरी न हो। लेकिन मुझे इसके प्रति इतना प्रतिरोध क्यों महसूस हुआ? अगर कोई उच्च-स्तरीय अगुआ या मेरे साथी भाई-बहन मेरी समस्याओं की ओर ध्यान दिला रहे होते तो मैं इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं देती। मैंने शिन रैन के प्रति ऐसा शत्रुतापूर्ण रवैया क्यों अपनाया? मेरे द्वारा इस प्रकार की भ्रष्टता उजागर करने का मूल कारण क्या है?
मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला : “लोग किस आधार पर अपनी ही योग्यता के स्तर को परखते हैं? इस पर कि उन्होंने कोई कर्तव्य विशेष कितने वर्षों तक किया है, कितना अनुभव प्राप्त किया है, है न? अगर बात ऐसी है तो, क्या तुम लोग धीरे-धीरे वरिष्ठता को ध्यान में रखकर सोचना शुरू नहीं कर दोगे? उदाहरण के लिए, एक भाई ने कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास किया है और लंबे समय तक कर्तव्य निभाया है, इसलिए वह बात करने के लिए सबसे योग्य है; एक बहन को यहाँ कुछ ही समय हुआ है, और हालाँकि उसमें थोड़ी क्षमता है, पर उसे यह कर्तव्य निभाने का अनुभव नहीं है, और उसे परमेश्वर पर विश्वास किए लंबा समय नहीं हुआ है, इसलिए वह उसके बारे में बात करने के लिए सबसे कम योग्य है। बात करने के लिए सबसे योग्य इंसान मन में सोचता है, ‘चूँकि मेरे पास वरिष्ठता है, इसलिए इसका अर्थ है कि मेरा कर्तव्य निर्वहन मानक स्तर का है, और मेरा अनुसरण अपने चरम पर है, और ऐसा कुछ नहीं है जिसके लिए मुझे प्रयास करना चाहिए या जिसमें मुझे प्रवेश करना चाहिए। मैंने यह कर्तव्य बखूबी निभाया है, मैंने यह काम कमोबेश पूरा कर दिया है, परमेश्वर को संतुष्ट होना चाहिए।’ और इस तरह वे बेपरवाह होने लगते हैं। क्या यह इस बात का संकेत है कि उन्होंने सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर लिया है? उनकी तरक्की बंद हो गयी है। उन्होंने अभी भी सत्य या जीवन प्राप्त नहीं किया है, और फिर भी वे खुद को अत्यधिक योग्य समझते हैं, और वरिष्ठता को ध्यान में रखकर बात करते हैं, और परमेश्वर द्वारा पुरस्कार की प्रतीक्षा करते हैं। क्या यह अहंकारी स्वभाव का खुलासा नहीं है? जब लोग ‘अत्यधिक योग्य’ नहीं होते, तो वे सतर्क रहना जानते हैं, वे खुद को गलतियाँ न करने की याद दिलाते हैं; जब वे खुद को अत्यधिक योग्य मान लेते हैं, तो वे अहंकारी हो जाते हैं, अपने बारे में ऊँची राय रखना शुरू कर देते हैं, और उनके बेपरवाह होने की संभावना होती है। ऐसे समय, क्या यह संभव नहीं कि वे परमेश्वर से पुरस्कार और मुकुट माँगें, जैसा कि पौलुस ने किया था? (हाँ।) इंसान और परमेश्वर के बीच क्या संबंध है? यह सृजनकर्ता और सृजित प्राणियों के बीच का संबंध नहीं है। यह एक लेनदेन के संबंध से ज्यादा कुछ नहीं। और जब ऐसा होता है, तो लोगों का परमेश्वर के साथ कोई संबंध नहीं होता, और संभव है कि परमेश्वर उनसे अपना चेहरा छिपा ले—जो एक खतरनाक संकेत है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर का भय मानकर ही इंसान उद्धार के मार्ग पर चल सकता है)। परमेश्वर के वचनों का यह अंश मेरी वास्तविक अवस्था को उजागर करता है। मैं वरिष्ठता के संदर्भ में सोच रही थी। मैंने सोचा कि शिन रैन अगुआई के लिए नई है और उसमें कार्यक्षमता की कमी है, जबकि मैं दस साल से अधिक समय से कलीसिया की अगुआई में हूँ और मेरे पास अधिक कार्य अनुभव और बेहतर योग्यताएँ हैं। इसलिए जब उसने मेरे कार्य का जायजा लिया और मेरी कमियों और समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया तो मुझे बहुत असहज महसूस हुआ क्योंकि मुझे लगा कि वह मेरे कार्य का जायजा लेने योग्य नहीं है। वास्तव में शिन रैन के लिए मेरे कार्य का जायजा लेना, उसकी जाँच करना और मेरे कार्य में विचलन और समस्याएँ बताना उसकी जिम्मेदारी और कर्तव्य का हिस्सा था और वह कलीसिया के कार्य के फायदे के लिए ऐसा कर रही थी। यह एक सकारात्मक बात थी। लेकिन मैं अपने अहंकारी स्वभाव में जी रही थी, अगुआई में अपने वर्षों के अनुभव का उपयोग करके अपनी वरिष्ठता का दावा और अपनी योग्यताओं का दिखावा कर रही थी और उसके मार्गदर्शन को नकार रही थी। सभा के दौरान मैंने कार्य के आदान-प्रदान में भाग नहीं लिया बल्कि केवल अपने कार्यों पर ध्यान दिया और मैं चेहरे पर कड़वाहट भरे हाव-भाव बनाए रही जिसके कारण शिन रैन ने मेरे कार्य का जायजा लेने में बेबस महसूस किया। क्या मैं कलीसिया के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा नहीं कर रही थी? जितना अधिक मैंने इसके बारे में सोचा उतना ही अधिक मुझे इस मुद्दे की प्रकृति की गंभीरता का एहसास हुआ। आगे बढ़ते हुए मुझे इस समस्या को हल करने के लिए सत्य की खोज करनी होगी।
गुरुवार, 25 मई 2023
आज सुबह की प्रार्थना के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परमेश्वर की सेवा करना कोई सरल कार्य नहीं है। जिनका भ्रष्ट स्वभाव अपरिवर्तित रहता है, वे परमेश्वर की सेवा कभी नहीं कर सकते हैं। यदि परमेश्वर के वचनों के द्वारा तुम्हारे स्वभाव का न्याय नहीं हुआ है और उसे ताड़ित नहीं किया गया है, तो तुम्हारा स्वभाव अभी भी शैतान का प्रतिनिधित्व करता है जो प्रमाणित करता है कि तुम परमेश्वर की सेवा अपनी भलाई के लिए करते हो, तुम्हारी सेवा तुम्हारी शैतानी प्रकृति पर आधारित है। तुम परमेश्वर की सेवा अपने स्वाभाविक चरित्र से और अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के अनुसार करते हो। इसके अलावा, तुम हमेशा सोचते हो कि जो कुछ भी तुम करना चाहते हो, वो परमेश्वर को पसंद है, और जो कुछ भी तुम नहीं करना चाहते हो, उनसे परमेश्वर घृणा करता है, और तुम पूर्णतः अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करते हो। क्या इसे परमेश्वर की सेवा करना कह सकते हैं? अंततः तुम्हारे जीवन स्वभाव में रत्ती भर भी परिवर्तन नहीं आएगा; बल्कि तुम्हारी सेवा तुम्हें और भी अधिक जिद्दी बना देगी और इससे तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव गहराई तक जड़ें जमा लेगा। इस तरह, तुम्हारे मन में परमेश्वर की सेवा के बारे में ऐसे नियम बन जाएँगे जो मुख्यतः तुम्हारे स्वयं के चरित्र पर और तुम्हारे अपने स्वभाव के अनुसार तुम्हारी सेवा से प्राप्त अनुभवों पर आधारित होंगे। ये मनुष्य के अनुभव और सबक हैं। यह मनुष्य के सांसारिक आचरण का फलसफा है। इस तरह के लोगों को फरीसियों और धार्मिक अधिकारियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। यदि वे कभी भी जागते और पश्चात्ताप नहीं करते हैं, तो वे निश्चित रूप से झूठे मसीह और मसीह-विरोधी बन जाएँगे जो अंत के दिनों में लोगों को गुमराह करते हैं। झूठे मसीह और मसीह-विरोधी, जिनके बारे में कहा गया था, इसी प्रकार के लोगों में से उठ खड़े होंगे। जो परमेश्वर की सेवा करते हैं, यदि वे अपने चरित्र का अनुसरण करते हैं और अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं, तब वे किसी भी समय निकाल दिए जाने के खतरे में होते हैं। जो दूसरों का दिल जीतने, उन्हें व्याख्यान देने और बेबस करने तथा ऊँचाई पर खड़े होने के लिए परमेश्वर की सेवा के कई वर्षों के अपने अनुभव का प्रयोग करते हैं—और जो कभी पछतावा नहीं करते हैं, कभी भी अपने पापों को स्वीकार नहीं करते हैं, रुतबे के लाभों को कभी नहीं त्यागते हैं—उनका परमेश्वर के सामने पतन हो जाएगा। ये अपनी वरिष्ठता का घमंड दिखाते और अपनी योग्यताओं पर इतराते पौलुस की ही तरह के लोग हैं। परमेश्वर इस तरह के लोगों को पूर्ण नहीं बनाएगा। इस प्रकार की सेवा परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी करती है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, धार्मिक सेवाओं का शुद्धिकरण अवश्य होना चाहिए)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मुझे एहसास हुआ कि भ्रष्ट स्वभाव के आधार पर अपना कर्तव्य निभाना और परमेश्वर की सेवा में व्यक्तिगत प्राथमिकताओं का अनुसरण करना परमेश्वर का प्रतिरोध करने के मार्ग की ओर ले जाता है। अगर कोई व्यक्ति अपने वर्षों के अनुभव को पूँजी के रूप में मानता है, दूसरों को बेबस करने के लिए लगातार अपनी वरिष्ठता का दिखावा करता है तो यह पौलुस के मार्ग पर चलना है और जो कुछ वह करता है वह कुकर्म होता है! जब से मुझे पता चला है कि शिन रैन को मेरे कार्य का जायजा लेने के लिए जिला अगुआ चुना गया है मैं अवज्ञा से भर गई हूँ। मेरा मानना था कि उसमें कार्यक्षमता की कमी है और केवल थोड़े समय ही अगुआ बनने का प्रशिक्षण लिया है, इसलिए मैंने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि वह इस भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं है। इस मामले में मैंने परमेश्वर के इरादों की खोज नहीं की। इसके बजाय मैं लगातार शिन रैन के आगे अपनी वरिष्ठता का दिखावा करती रही। जब उसने मेरे कार्य का जायजा लिया या मुझे मार्गदर्शन दिया तो मैंने बहुत उपेक्षा की, मैंने सोचा कि मेरी कार्यक्षमता और वर्षों की अगुआई के अनुभव को देखते हुए वह मुझे निर्देश देने योग्य नहीं है। लेकिन गहराई से आत्मचिंतन करने पर मुझे लगता है : क्या ऐसा हो सकता है कि मेरे कार्य में वाकई कोई विचलन न हो? क्या मुझे अपने कार्य का पर्यवेक्षण करने और जायजा लेने के लिए दूसरों की जरूरत नहीं है? चाहे मेरे पास कितना भी अनुभव क्यों न हो, इसका मतलब यह नहीं है कि मैं सत्य समझती हूँ या मेरे पास सत्य वास्तविकता है। मेरे कार्य में अनिवार्यतः विचलन और त्रुटियाँ होती हैं। शिन रैन का पर्यवेक्षण और मेरे कार्य का निर्देश मुझे अपना कर्तव्य बेहतर ढंग से निभाने में मदद करने के लिए हैं और वे कलीसिया के कार्य और मेरे अपने जीवन प्रवेश दोनों के लिए लाभदायक हैं। लेकिन मैंने अपने कार्य पर उसके जायजे और पर्यवेक्षण का प्रतिरोध किया और उसे नकार दिया, इससे सत्य के प्रति मेरी विमुखता उजागर हो गई। मैंने अपने कार्य अनुभव और अगुआई में लंबे कार्यकाल को पूंजी समझ लिया है और हमेशा सोचा है कि मैं यह कार्य शिन रैन से बेहतर जानती हूँ और इसे अपने दम पर अच्छे से कर सकती हूँ। लेकिन हकीकत में मेरे कर्तव्य में अभी भी कई विचलन और मुद्दे हैं। सत्य वास्तविकता की कमी के बावजूद मैं दंभी रही हूँ और मैंने शिन रैन को नीची नजर से देखा है, मुझे लगता था कि मैं उससे अधिक सक्षम हूँ। मैं इतनी अहंकारी और आत्म-तुष्ट हो गई हूँ कि मुझमें विवेक नाम की कोई चीज ही नहीं है!
सोमवार, 5 जून 2023
पिछले कुछ दिनों के चिंतन में मुझे एहसास हो गया है कि मैं लोगों को तरक्की देने और विकसित करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों को वाकई नहीं समझ पाई हूँ। मैं अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर चीजों का मूल्यांकन कर रही थी। मैंने व्यक्ति के अनुभव और अगुआई में रहने की अवधि पर बहुत अधिक जोर दिया, मैंने सत्य सिद्धांतों के आधार पर उनका मूल्यांकन नहीं किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षकों से कौन-से मानक अपेक्षित होते हैं? तीन मुख्य अपेक्षित मानक हैं। पहला, उनमें सत्य को समझने की योग्यता होनी चाहिए। केवल वही लोग जो सत्य को विशुद्ध रूप से बिना किसी विकृति के समझकर निष्कर्ष निकाल सकते हैं, वही अच्छी काबिलियत वाले होते हैं। अच्छी काबिलियत वाले लोगों में कम-से-कम आध्यात्मिक समझ तो होनी ही चाहिए और उन्हें स्वतंत्र रूप से परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने की प्रक्रिया में उन्हें परमेश्वर के वचनों के न्याय, ताड़ना और काट-छाँट को स्वतंत्र रूप से स्वीकार करने और सत्य को खोजने में सक्षम होना चाहिए, जिससे कि वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं और अपनी ही इच्छा में मिलावट और साथ ही अपने भ्रष्ट स्वभावों को दूर कर सकें—अगर वे इस मानक के स्तर तक पहुँच सकें, तो इसका अर्थ है कि वे परमेश्वर के कार्य को अनुभव करने का तरीका जानते हैं, और यह अच्छी काबिलियत की अभिव्यक्ति है। दूसरे, उन्हें कलीसिया के कार्य का बोझ उठाना ही चाहिए। जो लोग वास्तव में बोझ उठाते हैं, उनमें सिर्फ उत्साह ही नहीं, वास्तविक जीवन अनुभव होता है, वे कुछ सत्य समझते हैं, और वे कुछ समस्याओं की असलियत जान सकते हैं। वे देखते हैं कि कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों में बहुत-सी कठिनाइयाँ और समस्याएँ हैं, जिनका समाधान जरूरी है। वे इसे अपनी आँखों से देखते हैं और इस बारे में अपने दिल से चिंता करते हैं—यही है कलीसिया के कार्य के लिए बोझ उठाने का मतलब। अगर कोई महज अच्छी काबिलियत वाला और सत्य को समझने में सक्षम है, मगर वह आलसी है, देह-सुखों का लालच करता है, वास्तविक काम करने को तैयार नहीं है, और तभी थोड़ा-सा काम करता है जब ऊपरवाला उस काम को पूरा करने की आखिरी तारीख तय कर देता है, जब वे उसे करने से बच नहीं सकते, तो वह ऐसा व्यक्ति है जो कोई भी बोझ नहीं उठाता। जो लोग कोई भी बोझ नहीं उठाते, वे ऐसे लोग होते हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, जिनमें न्याय की भावना नहीं होती, और जो निकम्मे होते हैं, ठूंस-ठूंसकर खाते-पीते पूरा दिन बिता देते हैं, और किसी भी चीज पर गंभीरता से विचार नहीं करते। तीसरे, उनमें कार्यक्षमता होनी चाहिए। ‘कार्यक्षमता’ का क्या अर्थ है? सरल शब्दों में कहें, तो इसका अर्थ है कि न सिर्फ वे लोगों को काम सौंप सकते हैं और निर्देश दे सकते हैं, बल्कि वे समस्याओं को पहचान कर हल भी कर सकते हैं—कार्यक्षमता होने का मतलब यही हैं। इसके अतिरिक्त, उन्हें सांगठनिक कौशल की भी जरूरत पड़ती है। सांगठनिक कौशल वाले लोग विशेष रूप से लोगों को एकजुट करने, कार्य को संगठित और व्यवस्थित करने और समस्याएँ सुलझाने में कुशल होते हैं, और कार्य को व्यवस्थित करते और समस्याओं को हल करते समय वे लोगों को पूरी तरह से मनाकर उनसे पालन करवा सकते हैं—सांगठनिक कौशल होने का यही अर्थ है। जिन लोगों में वास्तव में कार्यक्षमता होती है, वे परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित विशेष कामों को क्रियान्वित कर सकते हैं, और वे ऐसा बिना किसी ढिलाई के तेजी से और निर्णायक ढंग से कर सकते हैं, और यही नहीं, वे विभिन्न कामों को अच्छे ढंग से कर सकते हैं। ये अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विकसित करने के परमेश्वर के घर के तीन मानक हैं। अगर कोई व्यक्ति इन तीन मानकों पर खरा उतरता है, तो वह एक दुर्लभ, प्रतिभाशाली व्यक्ति है और उसे पदोन्नत, विकसित, और सीधे प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, और कुछ समय तक अभ्यास के बाद वे कार्य हाथ में ले सकते हैं” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। “जब परमेश्वर का घर किसी को अगुआ बनने के लिए पदोन्नत और विकसित करता है, तो वह उन्हें प्रशिक्षित करने, परमेश्वर पर निर्भर करने और सत्य की ओर प्रयास करने के लिए उन्हें और भी अधिक दायित्व देता है; तभी उनका आध्यात्मिक कद यथाशीघ्र बढ़ेगा। उन पर जितना अधिक दायित्व डाला जाता है, उतना ही उन पर दबाव बनता है, वे सत्य को खोजने और परमेश्वर पर निर्भर रहने के लिए उतने ही मजबूर हो जाते हैं। अंत में, वे अपना कार्य ठीक से करने और परमेश्वर की इच्छा का पालन करने में सक्षम हो पाएँगे, और इस तरह वे बचाए और पूर्ण किए जाने के सही मार्ग पर कदम रखेंगे—यह प्रभाव तब प्राप्त होता है जब परमेश्वर का घर लोगों को पदोन्नत और विकसित करता है। ... जब कोई व्यक्ति अगुआ बनने के लिए पदोन्नत और विकसित किया जाता है, तो वह इस योग्य बनाया जाता है कि विभिन्न लोगों की दशाओं को बूझने का तरीका सीख ले, विभिन्न लोगों की कठिनाइयों को दूर करने और विभिन्न प्रकार के लोगों को सहारा देने और उनकी आपूर्ति करने और सत्य वास्तविकता में लोगों की अगुआई करने के लिए सत्य को खोजने में प्रशिक्षित हो सके। साथ-ही-साथ उसे कार्य के दौरान सामने आई विभिन्न समस्याओं और कठिनाइयों को दूर करने में भी प्रशिक्षण लेना चाहिए, और विभिन्न प्रकार के मसीह-विरोधियों, बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों में भेदकर उनसे निपटने और कलीसिया को स्वच्छ करने के कार्य का तरीका सीखना चाहिए। इस प्रकार, दूसरों के मुकाबले, वह ज्यादा लोगों, घटनाओं और चीजों का और परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित परिवेशों का अनुभव कर सकेगा, परमेश्वर के ज्यादा-से-ज्यादा वचनों को खा-पी सकेगा, और पहले से कहीं अधिक सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश कर सकेगा। यह उसके लिए खुद को प्रशिक्षित करने का अवसर है, है ना? प्रशिक्षण के जितने ज्यादा अवसर होंगे, उतने ही ज्यादा लोगों के अनुभव होंगे, उनकी अंतर्दृष्टियाँ उतनी ही व्यापक होंगी, और वे उतनी ही तेजी से बढ़ेंगे। ... लोगों के लिए सत्य वास्तविकता में तेजी से प्रवेश करना अच्छी बात है या धीरे-धीरे? (तेजी से।) इसलिए, जब उन लोगों की बात आती है, जिनमें काबिलियत होती है, जो दायित्व उठाते हैं, और जिनमें कार्यक्षमता है, परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को पदोन्नत कर एक अपवाद बनाता है, अगर वे ऐसे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, और सत्य की ओर प्रयास नहीं करते, तो ऐसी स्थिति में, परमेश्वर का घर उन्हें मजबूर नहीं करेगा” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मैंने देखा कि परमेश्वर लोगों को तरक्की देने और विकसित करने की आवश्यकताओं, सिद्धांतों और महत्ता के बारे में स्पष्ट रूप से संगति करता है। किसी को तरक्की देते और विकसित करते समय परमेश्वर का घर इस बात को प्राथमिकता देता है कि क्या उसके पास सत्य को समझने की क्षमता और काबिलियत है और क्या उसमें अपने कर्तव्यों के प्रति दायित्व-बोध है। अगर वह इन दो मानदंडों पर खरा उतरता है तो भले ही उसकी कार्यक्षमता में कमी हो, उसे प्रशिक्षण के जरिए सुधारा जा सकता है। परमेश्वर के घर में लोगों को विकसित करने की महत्ता मुख्य रूप से लोगों को प्रशिक्षित करने के अधिक अवसर प्रदान करना है ताकि उन्हें विभिन्न सत्य सिद्धांतों को समझने और अपने जीवन प्रवेश में अधिक तेजी से आगे बढ़ने में मदद मिले। अगर कोई व्यक्ति विकसित किए जाने के मानदंड पूरे करता है तो परमेश्वर का घर उसे प्रशिक्षण के अवसर देगा और उसे अधिक दायित्व सौंपेगा। लेकिन यह मूल्यांकन करते समय कि कोई व्यक्ति विकसित किए जाने के उपयुक्त है या नहीं, मैंने सत्य समझने की उसकी योग्यता और काबिलियत पर ध्यान नहीं दिया या यह नहीं देखा कि उसमें अपने कर्तव्यों के प्रति सच्चा दायित्व-बोध है या नहीं। इसके बजाय मैंने केवल इस बात पर ध्यान दिया कि वह कितने समय से अगुआ है और क्या वह अनुभवी है। मैंने चीजों को अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार देखा और यह सत्य के अनुरूप नहीं था! इन सिद्धांतों को समझने के बाद मैंने उन्हें शिन रैन पर लागू किया और देखा कि वह विकसित किए जाने के मानदंडों को पूरा करती है। उसमें अपने कर्तव्यों के प्रति दायित्व-बोध है और कार्य को आगे बढ़ाने की पहल करती है। जब उसे कोई समस्या नजर आती तो वह उसे हमारे सामने रखती और उसका विश्लेषण करती। इसके अलावा वह जीवन प्रवेश पर ध्यान देती है। जब हम अपने कर्तव्यों से जुड़े कार्यों में व्यस्त होते तो वह हमें याद दिलाती कि हम अपने सामने आने वाली चीजों से सबक लेने पर ध्यान दें। हो सकता है शिन रैन में कार्यक्षमता की कमी हो, लेकिन वह जो कुछ भी करती है उसमें सत्य सिद्धांत खोजने पर ध्यान देती है और कभी-कभी वह कार्य से संबंधित कुछ मुद्दों की पहचान कर पाती है। उसकी कार्यक्षमता में कमी का कारण प्रशिक्षण में बिताया कम समय है, लेकिन जिला अगुआ के रूप में सेवा करने का यह अवसर उसे तेजी से आगे बढ़ने में मदद करेगा। दूसरी ओर, अपने कर्तव्यों, मानवता और जीवन प्रवेश के प्रति मेरा दायित्व-बोध शिन रैन जितना अच्छा नहीं है, तो फिर मेरे पास उसकी अगुआई स्वीकार न करने का क्या आधार है? मुझे उसकी कमियों के प्रति सही मानसिकता अपनाने की जरूरत है, हमें अपनी कमियों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे की क्षमता से सीखना चाहिए और अपने कर्तव्य अच्छे से निभाने के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए। मुझे इसी दृष्टिकोण और अभ्यास पर अमल करना चाहिए।
मंगलवार, 20 जून 2023
आज शिन रैन के साथ कार्य पर चर्चा करते हुए उसने बताया कि मैं लोगों को विकसित करते समय उनके बाह्य व्यवहार पर ध्यान देती हूँ और मैंने सत्य सिद्धांतों की खोज नहीं की। उसने मेरे साथ संगति करने के लिए परमेश्वर के वचनों के प्रासंगिक अंशों का भी उल्लेख किया। उसकी संगति सुनकर मुझे अपने मुद्दों की स्पष्ट समझ प्राप्त हुई। मुझे यह भी वाकई महसूस हुआ कि अपने कर्तव्यों में भाई-बहनों के साथ कार्य करना अपनी कमियों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे की क्षमताओं का लाभ उठाने की एक प्रक्रिया है। जैसा कि परमेश्वर कहता है : “भाई-बहनों के बीच सहयोग एक की कमजोरियों की भरपाई दूसरे की खूबियों से करने की प्रक्रिया है। तुम दूसरों की कमियों की भरपाई करने के लिए अपनी खूबियों का उपयोग करते हो और दूसरे तुम्हारी कमियों की भरपाई करने के लिए अपनी खूबियों का उपयोग करते हैं। यही दूसरों की खूबियों से अपनी कमजोरियों की भरपाई करने और सामंजस्यपूर्वक सहयोग करने का यही अर्थ है। सामंजस्य से सहयोग करके ही लोग परमेश्वर के समक्ष धन्य हो सकते हैं, और व्यक्ति इसका जितना अधिक अनुभव करता है, उसमें उतनी ही अधिक वास्तविकता आती है, चलने पर उसका मार्ग उतना ही अधिक प्रकाशवान होता जाता है, और वह और भी अधिक सहज हो जाता है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सामंजस्यपूर्ण सहयोग के बारे में)। इसके बाद जब शिन रैन ने मार्गदर्शन दिया तो मैं उसे उचित रूप से और सहजता से स्वीकार कर पाई। जब भी मुझे अपने कार्य में कुछ समझ नहीं आता था तो मैं शिन रैन से इस बारे में चर्चा करती थी। परमेश्वर के वचनों के जरिए मुझे अपने अहंकारी स्वभाव की कुछ समझ प्राप्त हुई है, मैंने अपने गलत विचारों को सुधारा और दूसरों के साथ सहयोग करना सीखा। ये लाभ और उपलब्धियाँ परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन का ही परिणाम हैं। परमेश्वर का धन्यवाद!