55. क्या मैं वास्तव में एक अच्छी अगुआ थी?

शियाओयू, चीन

मई 2020 में मुझे कलीसिया अगुआ चुना गया। एक महीने बाद दो साथी बहनों को बरखास्त कर दिया गया। मैंने भाई-बहनों द्वारा लिखे गए मूल्यांकनों में देखा कि ये दोनों बहनें समस्याओं का समाधान नहीं करती थीं और लोगों को डाँटती थीं, जिससे वे बेबस महसूस करते थे। उन्होंने लिखा कि दोनों अपने कर्तव्य ऐसे निभाती थीं मानो वे अधिकारी हों और मैंने यह भाँप लिया कि भाई-बहन उन्हें नापसंद करते थे। मैंने सोचा, “क्या दूसरों को उजागर कर काट-छाँट करना और उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाना बहुत कठोर नहीं है? यह प्रेम तो बिल्कुल भी नहीं है! मैं उनकी तरह नहीं हो सकती कि हर मोड़ पर लोगों की काट-छाँट करूँ और उन्हें फटकार लगाती रहूँ। जब मैं देखूँ कि भाई-बहनों को समस्याएँ हैं, तो मुझे चतुराई से पेश आना चाहिए। इस तरह सभी को लगेगा कि मेरे साथ घुलना-मिलना आसान है और मैं परवाह करती हूँ और मैं एक अच्छी अगुआ हूँ जो उन्हें समझती है।” भाई-बहनों के साथ बाद की बातचीत में मैंने आराम से बात करने पर ध्यान केंद्रित किया, दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाने की कोशिश की और जब समस्याएँ होती थीं तो मैं उनके साथ ठीक से बातचीत करती थी और विनम्र और नरम तरीके से बोलती थी। मैं शायद ही कभी दूसरों की काट-छाँट करती थी या भाई-बहनों की समस्याएँ उजागर करती थी। कुछ समय बाद बहुत से भाई-बहन मेरी प्रशंसा करने लगे, कहने लगे कि मैं दिखावा न करने वाली अगुआ हूँ और यह कि मैं विनम्रता से बात करती हूँ और मेरे साथ घुलना-मिलना आसान है। भाई-बहनों की इस सारी प्रशंसा से मुझे बहुत खुशी हुई और उसके बाद मैं हमेशा दूसरों के साथ इसी तरह से बातचीत करने लगी।

भाई ली लियांग के साथ कुछ समय तक बातचीत के बाद मैंने पाया कि वह हमेशा अपने कर्तव्यों में प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागता था। वह वीडियो कार्य की देखरेख करता था और उसे वीडियो बनाने की तकनीक का और अधिक अध्ययन करना चाहिए था, लेकिन उसने सोचा कि तकनीक सीखना पर्दे के पीछे का काम है और इसलिए उसने इसमें कोई प्रयास नहीं किया क्योंकि वह इसका इस्तेमाल दिखावे के लिए नहीं कर पाएगा। इसके बजाय वह अक्सर भाई-बहनों की इलेक्ट्रॉनिक्स की मरम्मत करने में मदद करता था, जिससे उसका काम लंबित हो जाता था। मुझे पता था कि एक अगुआ के रूप में मुझे ली लियांग को उसकी समस्याएँ बतानी चाहिए ताकि वह अपने मसले जान सके और समय पर सुधार कर सके। लेकिन फिर मैंने सोचा, “ली लियांग के मन में मेरी अच्छी छवि है और जब मैं उसकी टीम की बैठकों में जाती हूँ तो वह काफी उत्साहित रहता है। अगर मैं अगुआ बनने के तुरंत बाद ही उसकी समस्याएँ उजागर कर दूँगी, तो उसे लगेगा कि मेरे साथ तालमेल बिठाना मुश्किल है और मुझमें प्रेम की कमी है और इससे मेरे बारे में उसकी अच्छी धारणा खराब हो जाएगी। मैं समस्याओं को सीधे-सीधे नहीं बता सकती, मुझे अधिक चतुराई से काम लेना होगा।” इसलिए जब मैंने ली लियांग को देखा तो बस इतना कहा, “पर्यवेक्षकों के रूप में हमें वीडियो बनाने की तकनीक के अध्ययन को प्राथमिकता देनी चाहिए अन्यथा हमारे काम की प्रगति प्रभावित होगी।” ली लियांग ने हाँ में सिर हिलाया और बदलाव की इच्छा जताई। लेकिन मुझे बाद में पता चला कि वह अभी भी वीडियो बनाने की तकनीक का अध्ययन करने के प्रयास नहीं कर रहा है। मैं उसे उजागर करना चाहती थी, लेकिन फिर मैंने सोचा, “वह युवा है और यही क्या कम काबिले-तारीफ है कि कलीसिया में अपने कर्तव्य निभाने के लिए वह अपना काम दरकिनार कर चुका है। अगर मैं उसकी काट-छाँट करती हूँ और उसे उजागर करती हूँ और उसके बाद वह नकारात्मक हो गया तो क्या होगा? क्या भाई-बहन यह नहीं कहेंगे कि मैं भी बरखास्त किए गए पिछले अगुआओं जैसी ही हूँ जो केवल लोगों को डाँटते थे और जिनमें प्रेम की कमी थी? क्या इससे भाई-बहनों के मन में मेरी अच्छी छवि खराब नहीं हो जाएगी?” इसे ध्यान में रखते हुए मैंने उसे एक अनुभवजन्य गवाही वीडियो ढूँढ़कर दिया जो उसकी दशा से मेल खाता था, मुझे उम्मीद थी कि वह खुद ही होश में आ जाएगा। लेकिन ली लियांग ने बस इतना स्वीकारा कि उसने प्रतिष्ठा और रुतबे का पीछा किया लेकिन उसे समस्या की गंभीरता का एहसास नहीं हुआ। जवाब में मैंने उसे केवल धीरे से सलाह दी कि वह प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे न भागे और उसके बाद वह अपने कर्तव्य पहले जैसे ही निभाता रहा, जिसके परिणामस्वरूप वीडियो कार्य में कोई प्रगति नहीं हुई। इसके तुरंत बाद ऊपरी अगुआ कार्य देखने आए और अपने कर्तव्यों में ली लियांग के लगातार व्यवहार के आधार पर उसे बरखास्त कर दिया गया। फिर अगुआओं ने मुझसे पूछा, “तुमने ली लियांग में जो समस्याएँ देखी थीं उन पर संगति क्यों नहीं की और उनका समाधान क्यों नहीं किया? जब वह इस भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं था तो तुमने उसे दूसरा काम क्यों नहीं सौंपा?” मेरा चेहरा लाल हो गया और मुझे एहसास हुआ कि मैं ली लियांग की बरखास्तगी का दोष किसी और को नहीं दे सकती। अगर मैंने समय रहते उसके कर्तव्य में प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने की प्रकृति और दुष्परिणाम उजागर कर दिए होते और खुद को जानने में उसकी मदद की होती तो संभव है कि ऐसा न हुआ होता। इससे मुझे बहुत पछतावा हुआ। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं अच्छी तरह से जानती थी कि ली लियांग प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भाग रहा था, उसके कर्तव्यों में सिद्धांतों की कमी थी और मुझे उसे उजागर करना चाहिए था और उसकी काट-छाँट करनी चाहिए थी, लेकिन मुझे चिंता थी कि इससे उसके मन में मेरे बारे में गलत धारणा बन जाएगी, इसलिए मैंने उसकी समस्याएँ नहीं बताईं या उसे उजागर नहीं किया और इससे कार्य को नुकसान हुआ। परमेश्वर, मेरा प्रबोधन और मार्गदर्शन करो ताकि मैं अपना भ्रष्ट स्वभाव जान सकूँ।”

अपनी खोज के दौरान मुझे एक अनुभवजन्य गवाही वीडियो याद आया जिसे मैंने देखा था, इसका शीर्षक था “‘अच्छी छवि’ के पीछे क्या छुपा होता है” और मैंने वीडियो खोला और परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “जब कोई कलीसियाई अगुआ भाई-बहनों को अनमने ढंग से अपने कर्तव्य करते हुए देखता है तो उन्हें डाँटता नहीं, हालाँकि उसे डाँटना चाहिए। स्पष्ट रूप से यह देखने पर भी कि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँच रहा है, वह इस बारे में कोई चिंता नहीं करता है और न ही कोई पूछताछ करता है और वह दूसरों को जरा भी नाराज नहीं करता है। दरअसल, वह लोगों की कमजोरियों के प्रति सचमुच विचारशील नहीं है; बल्कि, उसका इरादा और लक्ष्य लोगों के दिल जीतना है। उसे पूरी तरह से मालूम है कि : ‘जब तक मैं ऐसा करता रहूँगा और किसी को नाराज नहीं करूँगा, तब तक वे यही सोचेंगे कि मैं एक अच्छा अगुआ हूँ। वे मेरे बारे में अच्छी, ऊँची राय रखेंगे। वे मुझे स्वीकार करेंगे और मुझे पसंद करेंगे।’ वह इसकी परवाह नहीं करता है कि परमेश्वर के घर के हितों को कितनी हानि पहुँच रही है या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को कितने बड़े-बड़े नुकसान हो रहे हैं या उनके कलीसियाई जीवन को कितनी ज्यादा बाधा पहुँच रही है, वह बस अपने शैतानी फलसफे पर कायम रहता है और किसी को नाराज नहीं करता है। उसके दिल में कभी कोई आत्म-निंदा का भाव नहीं होता है। जब वह किसी को गड़बड़ियाँ और विघ्न उत्पन्न करते देखता है तो ज्यादा से ज्यादा वह उससे इस बारे में कुछ बात कर लेता है, मुद्दे को मामूली बनाकर पेश करता है और फिर मामले को समाप्त कर देता है। वह सत्य पर संगति नहीं करेगा या उस व्यक्ति को समस्या का सार नहीं बताएगा, उसकी स्थिति का गहन-विश्लेषण तो और भी कम करेगा और परमेश्वर के इरादों के बारे में संगति तो कभी नहीं करेगा। नकली अगुआ कभी भी लोगों द्वारा बार-बार की जाने वाली गलतियों या प्रायः प्रकट किए जाने वाले भ्रष्ट स्वभावों को उजागर या गहन विश्लेषित नहीं करते। वह किसी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं करता है, बल्कि हमेशा लोगों के गलत अभ्यासों और भ्रष्टाचार के खुलासों में शामिल रहता है और भले ही लोग कितने भी निराश या कमजोर क्यों ना हों, वह इस चीज को गंभीरता से नहीं लेता है। वह सिर्फ कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का ही प्रचार करता है और मेल-मिलाप बनाए रखने का प्रयास करते हुए बेपरवाह तरीके से स्थिति से निपटने के लिए प्रोत्साहन के कुछ शब्द बोल देता है। फलस्वरूप, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यह मालूम नहीं होता है कि उन्हें कैसे आत्मचिंतन करना है और आत्म-ज्ञान कैसे प्राप्त करना है, वे जो भी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं उनका कोई समाधान नहीं निकलता है और वे जीवन प्रवेश के बिना ही शब्दों और धर्म-सिद्धांतों, धारणाओं और कल्पनाओं के बीच जीवन जीते रहते हैं। वे अपने दिलों में भी यह मानते हैं, ‘हमारी कमजोरियों के बारे में हमारे अगुआ को परमेश्वर से भी ज्यादा समझ है। परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने के लिए हमारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। हमें बस अपने अगुआ की अपेक्षाएँ पूरी करने की जरूरत है; अपने अगुआ के प्रति समर्पण करके हम परमेश्वर के प्रति समर्पण कर रहे हैं। अगर ऐसा कोई दिन आता है जब ऊपरवाला हमारे अगुआ को बर्खास्त कर देता है तो हम अपनी आवाज उठाएँगे; अपने अगुआ को बनाए रखने और उसे बर्खास्त किए जाने से रोकने के लिए हम ऊपरवाले से बातचीत करेंगे और उसे हमारी माँगें मानने के लिए मजबूर करेंगे। इस तरह से हम अपने अगुआ के साथ उचित व्यवहार करेंगे।’ जब लोगों के दिलों में ऐसे विचार होते हैं, जब वे अपने अगुआ के साथ ऐसा रिश्ता बना लेते हैं और उनके दिलों में अपने अगुआ के लिए इस तरह की निर्भरता, ईर्ष्या और आराधना की भावना जन्म ले लेती है तो ऐसे अगुआ में उनकी आस्था और बढ़ जाती है और वे हमेशा परमेश्वर के वचनों में सत्य तलाशने के बजाय अगुआ के शब्दों को सुनना चाहते हैं। ऐसे अगुआ ने लोगों के दिलों में परमेश्वर की जगह लगभग ले ली है। अगर कोई अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ ऐसा रिश्ता बनाए रखने के लिए राजी है, अगर इससे उसे अपने दिल में खुशी का एहसास होता है और वह मानता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए तो इस अगुआ और पौलुस के बीच कोई फर्क नहीं है, वह पहले से ही एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर अपने कदम रख चुका है और परमेश्वर के चुने हुए लोग पहले से ही इस मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह हो चुके हैं और वे बिल्कुल भी भेद नहीं पहचान पाते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद एक : वे लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं)। परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ने के बाद मैंने आत्म-चिंतन किया। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि भाई-बहन अपने भ्रष्ट स्वभाव से प्रेरित होकर अपने कर्तव्यों के दौरान कलीसिया के कार्य में बाधा डाल रहे हैं, फिर भी मैंने न तो उन्हें उजागर किया और न ही उनकी काट-छाँट की और इसके बजाय उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए बस कुछ अच्छे शब्द कहे। मैंने ऐसा इसलिए किया ताकि लोग मुझे एक परवाह करने वाली और समझदार अगुआ के रूप में देखें। यह लोगों के दिल जीतने की कोशिश की एक अभिव्यक्ति थी, जैसा परमेश्वर ने उजागर किया है। मैंने ली लियांग के साथ अपनी बातचीत पर विचार किया। मैंने बहुत पहले ही देख लिया था कि वह प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भाग रहा था, कि वह एक पर्यवेक्षक के रूप में अपने कर्तव्यों से भटक रहा था और इससे समग्र कार्य प्रगति धीमी हो रही थी। मैं यह भी जानती थी कि उसे समय पर मार्गदर्शन और सुधार की जरूरत है, लेकिन मुझे चिंता थी कि अगर मैं उसकी समस्याएँ उजागर करती हूँ तो वह कहेगा कि मैं प्रेमपूर्ण नहीं हूँ और बहुत कठोर माँग करती हूँ, इसलिए मैंने बस नरमी से बात की। मैंने बस उसे याद दिलाया और प्रोत्साहित किया कि वह प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे न भागे, बल्कि अपने मुख्य कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करे। ली लियांग ने अपनी समस्याओं को नहीं पहचाना, फिर भी मैंने उसकी समस्याओं को उजागर नहीं किया या उनका गहन-विश्लेषण नहीं किया। इसके बजाय मैंने उसे एक अनुभवजन्य गवाही वीडियो भेजने का परोक्ष तरीका आजमाया ताकि वह खुद ही होश में आ जाए। मैंने अपने भाई-बहनों की समस्याएँ देखीं, लेकिन उन्हें कभी उजागर नहीं किया, बस इसलिए कि हर कोई मुझे परवाह करने वाली, साथ ही सहज मेल-जोल वाली और एक अच्छे अगुआ के रूप में देखे जो दूसरों को समझती है। मैंने लोगों के दिल जीतने के लिए ऐसा किया। मैं सचमुच मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रही थी! एक अगुआ के रूप में मेरा कर्तव्य सत्य की संगति करना और अपने भाई-बहनों की समस्याएँ हल करना और कलीसिया के कार्य की रक्षा करना होना चाहिए। लेकिन मैंने ली लियांग को भ्रष्ट स्वभाव में रहते और काम में देरी करते देखा और मैंने न तो उसकी संगति की, न उसका मार्गदर्शन किया, न ही उसे उजागर किया या उसकी काट-छाँट की। मैंने अपनी जिम्मेदारियों को बिल्कुल भी पूरा नहीं किया। किस तरह से मेरे पास कोई मानवता थी? दूसरों की नजर में एक “अच्छे अगुआ” की अपनी छवि बनाए रखने के लिए मैंने कलीसिया के हितों की अवहेलना की। मैं असल में स्वार्थी और नीच थी! इसे पहचान कर मुझे गहरा पछतावा और अपराध-बोध हुआ। जब मैंने ली लियांग को फिर से देखा, तो मैंने उसके सामने अपनी बात रखी और उसकी समस्याएँ उजागर कीं और उनका गहन विश्लेषण किया। उसने कहा, “मैंने तुम्हें शायद ही कभी हमारी समस्याओं के बारे में बात करते देखा है, तुम हमेशा ही काफी विनम्रता से बात करती हो और यह हमारे या कलीसिया के कार्य के लिए फायदेमंद नहीं है। यह बहुत अच्छा है कि तुमने आज इस बारे में बात की। मैं प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने की प्रकृति और परिणामों को जान गया हूँ।” यह सुनकर मुझे वाकई शर्मिंदगी महसूस हुई। ली लियांग के मन में इस बात को लेकर मेरी बुरी छवि नहीं थी कि मैंने उसके मसले बता दिए थे। इसके उलट वह इस मार्गदर्शन को स्वीकार करने और आत्म-चिंतन करने में सक्षम था। मुझे एहसास हुआ कि समस्याएँ देखने पर लोगों को उजागर करने और उनका मार्गदर्शन करने में विफल होना वास्तव में लोगों के लिए हानिकारक था!

कुछ ही समय बाद मुझे पता चला कि सिंचन कार्य की पर्यवेक्षक जू मेई में अपने कर्तव्यों में बोझ की भावना की कमी थी और वह दैहिक सुखों में लिप्त थी। उसे जो काम करने को कहा गया था वह उसने सिंचनकर्ताओं के कंधों पर डाल दिया था और खुद इसके विशिष्ट विवरणों की खोज खबर नहीं ले रही थी, न उनका पर्यवेक्षण कर रही थी। उसे यह भी नहीं पता था कि नवागंतुकों की सभाएँ कैसी चल रही थीं। मैंने मन ही मन सोचा, “सिंचन कार्य करने के लिए कम से कम बोझ और जिम्मेदारी का एहसास तो होना ही चाहिए। अपने कर्तव्य करने का उसका तरीका कलीसिया के कार्य में देरी करेगा और नवागंतुकों के जीवन के विकास में बाधा पैदा करेगा, मुझे उसकी आराम में लिप्त होने की प्रकृति और इसके दुष्परिणामों पर संगति प्रदान करने की जरूरत है ताकि उसे अपने कर्तव्यों के प्रति रवैया बदलने में मदद मिले।” लेकिन फिर मैंने सोचा, “जब उसे टीम अगुआ के रूप में बरखास्त किया गया था, तब मैं ही संगति कर रही थी और उसे उजागर कर रही थी। उसकी बरखास्तगी के बाद से मुझे लगा था कि वह मुझसे बहुत दूर हो गई है। अगर मैं फिर से उसके मुद्दे उजागर करती हूँ, तो क्या वह सोचेगी कि मैं हमेशा उसे उजागर करती और उसकी काट-छाँट करती रहती हूँ और प्रेमपूर्ण नहीं हूँ? अगर ऐसा हुआ तो मेरे बारे में उसकी धारणा और भी खराब हो जाएगी। छोड़ो भी। बेहतर है कि अपने बीच और खटास पैदा न की जाए।” जब मैंने जू मेई को फिर से देखा, तो मैंने उससे हौले से कहा, “हाल ही में सिंचन कार्य के परिणाम बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। हमें अपने कर्तव्यों के प्रति अपना रवैया जल्दी से बदलना चाहिए और अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए!” यह सुनकर जू मेई ने अपना सिर झुकाया और कहा, “मुझे अपने कर्तव्यों में बोझ की भावना नहीं है; मुझे इसे तुरंत बदलने की जरूरत है।” मैंने उसकी आँखों में असहजता देखी और सोचा कि उसे इस पर आत्म-चिंतन करने के लिए समय देना चाहिए। बाद में भी जू मेई बिना किसी बोझ की भावना के अपने कर्तव्य निभाने में पैर खींचती रही। इस कारण ऐसे नवागंतुकों की संख्या बढ़ती गई जो नियमित रूप से सभाएँ नहीं करते थे, जिससे सिंचन कार्य में गंभीर रूप से देरी हो रही थी। उच्च अगुआओं ने मेरे लगातार व्यवहार पर गौर किया और पाया कि मैं अपने कर्तव्यों में केवल अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बचाती थी और जब मैंने अपने भाई-बहनों में समस्याएँ देखीं, तब भी उन्हें उजागर नहीं किया या उनकी काट-छाँट नहीं की। उन्होंने देखा कि मैं परमेश्वर के घर के हितों की बिल्कुल भी रक्षा नहीं कर रही थी, कि मैं कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों में प्रगति की कमी को समय पर हल नहीं कर रही थी और यह कि मैं कोई असली कार्य नहीं कर रही थी। परिणामस्वरूप मुझे सिद्धांतों के आधार पर बरखास्त कर दिया गया। बरखास्त होने के बाद मुझे बहुत पछतावा और अपराध-बोध हुआ। कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों को नुकसान सब मेरी प्रतिष्ठा और रुतबे की चाहत और कलीसिया के हितों की रक्षा न करने के कारण हुआ। मैंने जू मेई के लगातार व्यवहार के बारे में सोचा और सोचा कि अब वह पर्यवेक्षक बनने के लिए उपयुक्त नहीं थी और उसे तुरंत बरखास्त कर दिया जाना चाहिए, इसके लिए मैंने अगुआओं से चर्चा की और उसे बरखास्त कर दिया।

बाद में मैं मेजबान घर में दो भाइयों से मिली। एक भाई ने मेरे सामने कहा कि मैं एक प्रतिभाशाली व्यक्ति हूँ जिसे विकसित किया जा सकता है, कहा कि मैं कष्ट सह सकती हूँ और अपने कर्तव्यों में कीमत चुका सकती हूँ और मैं अभी बस छोटी हूँ, इसलिए यह समझ में आता है कि कलीसिया में भारी कार्यभार देखते हुए मैं अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। दूसरे भाई ने भी सहमति जताई। मुझे याद आया कि मुझे बरखास्त किए जाने से पहले कई भाई-बहनों ने मेरे सामने मेरी प्रशंसा की थी, कहा था कि मैं एक सरल अगुआ हूँ जो विनम्रता से बात करती है और जिसके साथ मेल-जोल आसान है। अब जब मैंने कलीसिया के कार्य को इतना बड़ा नुकसान पहुँचा दिया था, तब भी भाई-बहन मेरी असलियत नहीं जान पाए थे और मेरे लिए खड़े थे। क्या मैंने सभी को गुमराह नहीं किया था? यह सोचकर मैं डर गई, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे अपनी समस्याएँ जानने के लिए प्रबुद्ध करने और मार्गदर्शन करने के लिए कहा। बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “कुछ लोग सोचते हैं कि वे अच्छा लिखते हैं, कि वे कुशल लेखक हैं; कुछ सोचते हैं कि वे अच्छे अगुआ हैं, कि वे कलीसिया को सहारा देने वाले स्तंभ हैं; दूसरे लोग सोचते हैं कि वे अच्छे लोग हैं। जैसे ही ये लोग किसी न किसी कारणवश अपनी अच्छी छवि खो देते हैं तो वे बहुत सोचते हैं और इसकी खातिर एक कीमत चुकाते हैं और परिस्थिति को सुधारने का प्रयास करने में अपने दिमाग खपाते हैं। फिर भी उन्हें अपने द्वारा चुने गए गलत मार्गों या सत्य के खिलाफ की गई अलग-अलग चीजों के लिए कभी शर्मिंदगी या आत्म-निंदा महसूस नहीं होती है और न ही वे कभी परमेश्वर के प्रति ऋणी महसूस करते हैं। उनके मन में इस तरह की भावना कभी नहीं आती है। वे लोगों को गुमराह करने और उनके दिल जीतने के लिए सभी तरह की युक्तियों का उपयोग करते हैं। क्या यह एक सृजित प्राणी का कर्तव्य करना है? बिल्कुल नहीं। क्या यह वह कार्य है जिसे कलीसियाई अगुआओं को करना चाहिए? बिल्कुल नहीं। ... ये लोग अगुआ का कर्तव्य करने का झंडा तो फहराते हैं, लेकिन वे वह कार्य नहीं करते हैं जो एक अगुआ को करना चाहिए। वे जो करते हैं वह अगुआ का कर्तव्य करना बिल्कुल नहीं है, यह एक मसीह-विरोधी की भूमिका निभाना है, परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा डालने और उसे नष्ट करने के लिए शैतान की जगह खड़े होना है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य मार्ग से दूर रहने और परमेश्वर से दूर रहने के लिए गुमराह करना है। उनके सभी क्रिया-कलाप और व्यवहार शैतान के स्वभाव और उसकी प्रकृति को प्रकट करते हैं और लोगों को परमेश्वर से दूर रहने, सत्य और परमेश्वर को अस्वीकार करने और उनकी खुद की आराधना और अनुसरण करने के लिए मजबूर करने का परिणाम देते हैं। एक दिन जब वे लोगों को पूरी तरह से गुमराह कर देंगे और उन्हें अपने नियंत्रण में ले लेंगे तो लोग उनकी आराधना करना, उनका अनुसरण करना और उनकी आज्ञा मानना शुरू कर देंगे। तब वे लोगों के दिलों को फँसाने का अपना लक्ष्य हासिल कर लेंगे। वे कलीसिया के अगुआ हैं, लेकिन वे परमेश्वर द्वारा उन्हें सौंपा गया कार्य नहीं करते हैं; वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कार्य नहीं करते हैं। इसके बजाय वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर कार्य करते हैं, उन्हें गुमराह करते हैं, उन्हें फँसाते हैं और उन्हें नियंत्रित करते हैं और उन भेड़ों को अपने नियंत्रण में ले लेते हैं जो स्पष्ट रूप से परमेश्वर की हैं। क्या वे चोर और लुटेरे नहीं हैं? परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उसके साथ होड़ करते हुए क्या वे शैतान के चाकरों के रूप में कार्य नहीं कर रहे हैं? क्या ऐसे मसीह-विरोधी परमेश्वर के दुश्मन नहीं हैं? क्या वे उसके चुने हुए लोगों के दुश्मन नहीं हैं? (वे हैं।) वे सौ फीसदी हैं। वे परमेश्वर और उसके चुने हुए लोगों के दुश्मन हैं; इसमें रत्ती भर भी शक की गुंजाइश नहीं है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद एक : वे लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं)। परमेश्वर उजागर करता है कि यदि कोई अगुआ या कार्यकर्ता अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ पूरी करने में विफल रहता है और भाई-बहनों को अपने कर्तव्यों में गलत रास्ता अपनाते और कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाते देखकर उन्हें उजागर नहीं करता, बल्कि लोगों के दिलों में एक अनुकूल छवि बनाने, लोगों से अपनी प्रशंसा कराने और अपना सम्मान कराने के लिए दूसरों का दिल जीतने और गुमराह करने के लिए चालें चलता है, तो सार रूप में यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा करना और एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना है। मैं एक अगुआ के रूप में अपने दौर के बारे में सोचती हूँ तो मैंने भाई-बहनों के दिलों में एक “अच्छे अगुआ” के रूप में अपनी छवि स्थापित करने के लिए और सभी से अपनी प्रशंसा और सम्मान करवाने के लिए यहाँ तक कि भाई-बहनों को भ्रष्ट स्वभाव में रहते और कलीसिया के काम में बाधा डालते देखने पर भी उन्हें उजागर नहीं किया या काट-छाँट नहीं की और उनके साथ केवल नरमी से संगति की, उन्हें हल्के से याद दिलाया और प्रोत्साहित किया। इससे भाई-बहनों ने मेरी सराहना की और एक अच्छे और समझदार अगुआ के रूप में मेरी प्रशंसा की। यहाँ तक कि जब मैंने कलीसिया के कार्य को गंभीर नुकसान पहुँचाया और मुझे बरखास्त कर दिया गया, तब भी उन्हें मेरी असलियत पता नहीं थी और यहाँ तक कहा कि मैं सिर्फ युवा होने के कारण अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। कुछ लोगों ने तो मुझसे सहानुभूति भी जताई और मेरे लिए खड़े हुए। एक अगुआ के रूप में मैं लोगों को परमेश्वर के सामने नहीं ले गई, बल्कि मैंने अपने कर्तव्यों का उपयोग लोगों के दिल जीतने, उनसे अपना आदर करवाने और उनके दिलों में अपने लिए जगह बनाने के अवसर के रूप में किया। मेरे कार्य-कलाप उन डाकुओं और लुटेरों से किस तरह अलग थे, जिन्हें परमेश्वर ने उजागर किया था? हो सकता है ऐसा लगा हो कि ली लियांग और जू मेई सत्य का अभ्यास न करके कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचा रहे थे, लेकिन वास्तव में उन्हें सिर चढ़ाने और बचाने वाली तो मैं थी। मैंने अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के लिए कलीसिया के हितों को दाँव पर लगाना पसंद किया और एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चली। यह कुछ ऐसा है जो परमेश्वर के स्वभाव को नाराज करता है! मेरी बरखास्तगी परमेश्वर की धार्मिकता थी और अगर मैंने पश्चात्ताप न किया, तो मैं बस परमेश्वर द्वारा निंदा करके हटा दी जाऊँगी। यह सब एहसास होने पर मैं डर गई और मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैंने लोगों का दिल जीतने और अपना आत्म-सम्मान और रुतबा बचाने के लिए मीठी-मीठी बातें कही हैं। मैं एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रही हूँ। परमेश्वर! मैं नहीं चाहती कि अब और बुराई करूँ और तुम्हारा विरोध करूँ; मैं पश्चात्ताप करना चाहती हूँ।”

इस आत्म-चिंतन के साथ मुझे एहसास हुआ कि मेरा एक और भ्रामक दृष्टिकोण था। मुझे लगता था कि विनम्र होकर बात करना, नरम रुख अपनाना और लोगों को उजागर न करने या उनकी काट-छाँट न करने का मतलब है कि मैं उनके प्रति प्रेमपूर्ण हूँ, जबकि लोगों को उजागर करना और काट-छाँट करना कठोर और समझदार न होना है। अपनी खोज और चिंतन के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़े : “परमेश्वर के चुने हुए लोगों में जमीर और विवेक तो कम से कम होना ही चाहिए और उन्हें दूसरों के साथ परमेश्वर द्वारा लोगों से अपेक्षित सिद्धांतों और मानकों के अनुसार बातचीत करना, जुड़ना और मिलकर काम करना चाहिए। यह सबसे अच्छा नजरिया है। यह परमेश्वर को संतुष्ट करने में सक्षम है। तो परमेश्वर द्वारा अपेक्षित सत्य सिद्धांत क्या हैं? यह कि जब दूसरे कमजोर और नकारात्मक हों तो लोग उन्हें समझें, उनके दर्द और कठिनाइयों के प्रति विचारशील हों, और इन चीजों के बारे में पूछताछ करें, सहायता और सहारे की पेशकश करें, उनकी समस्याएँ हल करने में उनकी मदद करने के लिए उन्हें परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाएँ, उन्हें परमेश्वर के इरादे समझने और कमजोर न बने रहने में समर्थ बनाएँ और उन्हें परमेश्वर के सामने लाएँ। क्या अभ्यास का यह तरीका सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है? इस प्रकार अभ्यास करना सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। स्वाभाविक रूप से, इस प्रकार के संबंध और भी सत्य सिद्धांतों के अनुरूप होते हैं। जब लोग जानबूझकर बाधा डालते हैं और गड़बड़ी पैदा करते हैं, या जानबूझकर अपना कर्तव्य अनमने ढंग से निभाते हैं, अगर तुम यह देखते हो और सिद्धांतों के अनुसार उन्हें इन चीजों के बारे में बताने, फटकारने, और उनकी मदद करने में सक्षम हो, तो यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (14))। “सक्रिय पहलू से, रचनात्मक वक्तव्य किसे कहा जाता है? वह मुख्य रूप से प्रोत्साहित करने वाला, उन्मुख करने वाला, राह दिखाने वाला, प्रोत्साहित करने वाला, समझने वाला और दिलासा देने वाला होता है। साथ ही, कुछ विशेष परिस्थितियों में, दूसरों की गलतियों को सीधे तौर पर उजागर करना और उनकी काट-छाँट करना जरूरी हो जाता है, ताकि वे सत्य का ज्ञान पाएँ और उनमें पश्चात्ताप की इच्छा जागे। केवल तभी यथोचित प्रभाव प्राप्त होता है। इस तरह से अभ्यास करना लोगों के लिए बहुत लाभकारी होता है। यह उनकी वास्तविक मदद है, और यह उनके लिए रचनात्मक है, है न?(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (3))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं समझ गई कि लोगों की काट-छाँट करना कठोर होना नहीं है, बल्कि उनके जीवन प्रवेश और उनके अपने कर्तव्य अच्छी तरह से करने में फायदेमंद है और लोगों को सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने में मदद कर सकता है। मुझे यह भी समझ आया कि भाई-बहनों के साथ व्यवहार करने में हमारे पास सिद्धांत होने चाहिए। यदि दूसरा व्यक्ति अस्थायी रूप से निराश और कमजोर है, तो हमें उसके आध्यात्मिक कद के अनुसार प्रेम के साथ संगति करनी चाहिए और उसकी मदद करनी चाहिए, उसे कठिनाइयों में नहीं रहने देना चाहिए और अभ्यास और प्रवेश का मार्ग प्रदान करना चाहिए। लेकिन गंभीर रूप से भ्रष्ट स्वभावों वाले लोगों के लिए जो कई दौर की संगति के बावजूद बिना किसी बदलाव के कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा करना जारी रखते हैं, उन्हें परमेश्वर के वचनों के अनुसार उजागर कर हमें उनकी काट-छाँट करनी चाहिए, ताकि वे अपनी समस्याएँ और भ्रष्ट स्वभाव के आधार पर अपने कर्तव्य करने की प्रकृति और परिणामों को जान सकें। लोगों की वास्तव में मदद करने का यही मतलब है। मैंने यह भी जाना कि लोगों के प्रति कठोर होने का मुख्य अर्थ उनके साथ उचित व्यवहार न करना है— जैसे ही कोई व्यक्ति संदर्भ को देखे बिना या भाई-बहनों की दशा और कठिनाइयों पर विचार किए बिना और उनके आध्यात्मिक कद को ध्यान में रखे बिना थोड़ा सा भी विचलन या गलती पाता है, वह अंधाधुंध ढंग से अपना आपा खो देगा और लोगों को डाँट देगा। जबकि लोगों को उजागर करने और उनकी काट-छाँट करने का मतलब यह होता है कि जब भाई-बहनों को सिद्धांतों के विरुद्ध जाते हुए या भ्रष्ट स्वभाव के आधार पर काम करके कलीसिया के कार्य को बाधित करते हुए पाया जाता है, तो व्यक्ति परमेश्वर के वचनों का उपयोग करके उनका मार्गदर्शन, काट-छाँट, संगति और मदद करने में सक्षम होता है, ताकि भाई-बहन अपनी समस्याएँ जान सकें और समय रहते अपनी दशा को सुधार सकें और अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से कर पाएँ। यह भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के साथ-साथ कलीसिया के कार्य के लिए भी फायदेमंद है और यह लोगों के प्रति कठोर होना नहीं है। जिस तरह से मैंने ली लियांग और जू मेई के साथ व्यवहार किया, मैंने सोचा था कि उनकी काट-छाँट और उन्हें उजागर करना बहुत कठोर और अप्रिय होगा और मुझे उन्हें केवल विनम्र होकर प्रोत्साहित करना चाहिए। परिणामस्वरूप, उन्हें अपने भ्रष्ट स्वभावों की कोई समझ नहीं मिली और इससे कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचा। मुझे एहसास हुआ कि इस तरह के कार्यों से उन्हें मदद नहीं मिली, बल्कि उन्हें नुकसान हुआ, यह सच्चा प्रेम नहीं था। मैंने जो दृष्टिकोण अपना रखे थे वे वास्तव में बेतुके थे और सत्य के अनुरूप नहीं थे!

बाद में मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “यदि तुम हमेशा दूसरों को दिखाने के लिए ही काम करते हो, और हमेशा दूसरों की प्रशंसा और सराहना प्राप्त करना चाहते हो और परमेश्वर की पड़ताल स्वीकार नहीं करते, तब भी क्या तुम्‍हारे हृदय में परमेश्वर है? ऐसे लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं होता। हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीजों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्‍हारे लिए अपना कर्तव्‍य अच्‍छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। “कुछ अगुआ और कार्यकर्ता लोगों को उपदेश देकर, कुछ प्रेरणा देकर और कुछ दूसरे उजागर करके, आरोप लगाकर और काट-छाँट के माध्यम से मदद करना पसंद करते हैं। वे चाहे जिस तरीके का उपयोग करते हों, वह अगर वास्तव में सत्य वास्तविकता में प्रवेश में तुम्हारी अगुआई करता हो, तुम्हारी वास्तविक कठिनाइयों को हल करता हो, तुम्हें परमेश्वर के इरादे समझा देता हो और इस तरह तुम्हें अपने आप को जानने और अभ्यास का मार्ग पाने में सक्षम बनाता हो, तो जब भविष्य में तुम इसी तरह की परिस्थितियों का सामना करोगे, तो तुम्हारे पास अनुसरण करने के लिए एक मार्ग होगा। इसलिए, किसी अगुआ या कार्यकर्ता के मानकों के अनुरूप होने या न होने का सबसे बुनियादी मानक यह है कि क्या वह लोगों की समस्याओं और कठिनाइयों को हल करने के लिए सत्य का इस प्रकार उपयोग कर सकता है, जिससे वे सत्य समझ जाएँ और अभ्यास का मार्ग प्राप्त कर सकें(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (2))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे अभ्यास का मार्ग मिल गया। मुझे अपने कर्तव्यों में कलीसिया के हितों को प्राथमिकता देनी थी और अपने व्यक्तिगत रुतबे या छवि पर विचार नहीं करना था। मुझे भाई-बहनों को सत्य की खोज करने और समस्याओं का सामना करते समय अपनी कमियों पर आत्म-चिंतन करने और उन्हें जानने के लिए प्रेरित करने में सक्षम बनाना था, ताकि वे सिद्धांतों के अनुसार अपने कर्तव्य निभा सकें। यदि मुझे पता चलता है कि कोई व्यक्ति कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी कर बाधा डाल रहा है, तो मुझे समस्या हल करने के लिए समय पर उसके साथ सत्य की संगति करनी चाहिए और कार्य को सुचारु रूप से आगे बढ़ाने के लिए आवश्यकता के अनुसार लोगों की काट-छाँट करनी चाहिए और उन्हें उजागर करना चाहिए। केवल यही एक अगुआ के रूप में मेरी जिम्मेदारियाँ पूरा करना है। मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर हमें बचाने के लिए केवल सांत्वना देने वाले और प्रोत्साहित करने वाले वचन ही नहीं बोलता बल्कि हमारी भ्रष्ट मानवता की जरूरतों के अनुसार भी बोलता है, हमारे विद्रोहीपन का न्याय करने और उसे उजागर करने के लिए सत्य व्यक्त करता है ताकि हम अपनी भ्रष्ट प्रकृति को जान सकें और परमेश्वर के सामने कबूल और पश्चात्ताप कर सकें। चाहे परमेश्वर के वचन अनुस्मारक और प्रोत्साहन हों या गंभीर प्रकाशन और न्याय, उनका अंतिम लक्ष्य हमें शुद्ध करना और बदलना होता है, ताकि हम उद्धार प्राप्त कर सकें। आगे से मुझे सत्य का अभ्यास करना था, अपनी छवि के बारे में नहीं सोचना था और कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को प्राथमिकता देनी थी।

कुछ ही समय में मुझे फिर से अगुआ चुन लिया गया। एक बार मैं कई टीम अगुआओं के साथ एक सभा में थी और मैंने देखा कि एक टीम अगुआ काम को लागू करने में धीमी थी। जब मैंने उससे कारण पूछा तो उसने दूसरे पर दोष मढ़ दिया। मैंने देखा कि इस टीम अगुआ का अपने कर्तव्यों के प्रति रवैया उपेक्षापूर्ण था और अपने काम में देरी होने के बावजूद वह अपनी समस्या नहीं जानती थी। मुझे पता था कि मुझे उसकी समस्याएँ उजागर करनी होंगी ताकि वह अपने भ्रष्ट स्वभाव को जान सके और अपने कर्तव्यों के प्रति अपना रवैया बदल सके। लेकिन फिर मैंने सोचा कि मैं अभी-अभी अगुआ चुनी गई हूँ और मुझे खयाल आया, “अगर मैं अगुआ बनते ही उसकी समस्याएँ उजागर करती हूँ तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगी? अतीत में हम दोनों टीम अगुआ थे और जब हम एक साथ अपने कर्तव्य निभाते थे, तो उसके मन में मेरी बहुत अच्छी छवि थी। शायद यह सबसे अच्छा होगा कि मैं उसकी समस्या का संक्षेप में उल्लेख कर देती हूँ?” लेकिन फिर मैंने एक अगुआ के रूप में अपनी पिछली नाकामी के बारे में सोचा, जो अपनी छवि बचाने के मेरे लगातार प्रयासों और लोगों को उजागर न करने और उनकी काट-छाँट न करने के कारण हुई थी और कैसे इसने कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाया था। मैं अभी भी खुद को क्यों बचाना चाहती थी और समस्याओं से सामना होने पर सत्य का अभ्यास क्यों नहीं करना चाहती थी? मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। इसे ध्यान में रखते हुए मैंने परमेश्वर के वचनों का सहारा लिया और इस टीम अगुआ के अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह दृष्टिकोण की प्रकृति और परिणामों को उजागर करके उनका गहन विश्लेषण किया। मेरी संगति के बाद टीम अगुआ ने स्वीकार किया कि वह अपने कर्तव्यों में वाकई लापरवाह थी और ऐसा नहीं था कि वह उन्हें नहीं कर सकती थी, लेकिन वह बस अपना दिल नहीं लगा रही थी और बस औपचारिकता निभा रही थी। उसने यह भी कहा कि अब से वह चीजों को बदलने और उचित ढंग से अपने कर्तव्य करने के लिए तैयार है। जब मैंने देखा कि टीम अगुआ खुद के बारे में कुछ ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हो गई है, तो मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करना कितना अद्भुत है! बाद में जब मैंने पाया कि मैं अपने कर्तव्य निभाते हुए अपनी छवि बचाना चाहती हूँ, तो मैंने अपनी देह के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए परमेश्वर से सचेत रूप से प्रार्थना की और समय पर मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करने के लिए परमेश्वर के वचनों का सहारा लिया, भाई-बहनों को आत्म-चिंतन करने और खुद को जानने के लिए मार्गदर्शन दिया। कुछ समय इस तरह से अभ्यास करने के बाद मैंने देखा कि भाई-बहनों ने न केवल मेरे बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रखा क्योंकि मैंने मुद्दों के बारे में बताया और उजागर किया था, बल्कि वे आत्म-चिंतन करने और खुद को जानने में सक्षम हो गए और अपने कर्तव्यों के प्रति उनके रवैये भी बदलकर बेहतर हो गए थे। मुझे यह भी लगा कि मैंने पहले की तुलना में कुछ अधिक प्रगति की है। ये एहसास और बदलाव हासिल करने में मेरा सक्षम होना पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के कारण था। परमेश्वर का धन्यवाद!

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