76. अपना कर्तव्य गँवाने के बाद चिंतन

डिंग शाओ, चीन

अक्टूबर 2015 में मैं कलीसिया में वीडियो कार्य के लिए जिम्मेदार थी। दो महीने बाद कार्यभार अधिक होने के कारण कलीसिया के अगुआओं ने मेरे साथ सहयोग करने के लिए बहन वांग यान की व्यवस्था की। मैं उस समय बहुत खुश थी क्योंकि हम एक दूसरे को पहले से जानते थे। वह एक साल से भी अधिक समय से वीडियो बना रही थी और उसका कौशल काफी अच्छा था। मैंने सोचा कि हम दोनों मिलकर कार्य करेंगे तो कार्य बेहतर ढंग से कर पाएँगे। बाद में मैंने धैर्यपूर्वक उसे सिद्धांतों के अनुसार वीडियो की जाँच करना सिखाया। धीरे-धीरे उसने कुछ सिद्धांत समझ लिए।

एक बार मुझे कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ा। मेरे लौटने के बाद वांग यान ने मुझे बताया कि उसने कई वीडियो की समीक्षा की और पुष्टि करने के बाद कि उनमें कोई मसला नहीं है, सीधे उन्हें प्रस्तुत कर दिया और उसने अगुआओं द्वारा सौंपे गए कुछ कार्य भी संभाले थे। यह सुनकर मैं थोड़ी दुखी हो गई और सोचने लगी, “पहले तो अगुआ हमेशा मेरे साथ मसलों पर चर्चा करते और उनका समाधान करते थे। मैं तो बस कुछ ही दिनों के लिए बाहर गई थी फिर भी उन्होंने तुम्हें ये सारे कार्य सौंपने शुरू कर दिए!” मुझे लगा कि अगुआओं ने मेरी कद्र नहीं की और मैं काफी परेशान हो गई, इसलिए मैंने बेमन उसे जवाब दिया। भाई-बहनों को कई मामलों को संभालने के लिए वांग यान की ओर रुख करते देखकर मुझे अचानक उपेक्षित महसूस होने लगा। उसे बड़े उत्साह के साथ तुरंत प्रश्नों का उत्तर देते हुए देखकर मैं और भी अधिक बेचैन हो गई और सोचने लगी, “जो कुछ मेरा होना चाहिए था वह सब अब तुम्हारा कैसे हो गया? मैं तुमसे अधिक समय से यह कार्य कर रही हूँ और मैं तुम्हारी पर्यवेक्षक हुआ करती थी। अनुभव, समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य की संगति और पेशेवर कौशल के मामले में मैं तुमसे कम नहीं हूँ!” मैं पीछे हटने को तैयार नहीं थी इसलिए मैंने भाई-बहनों से सक्रियता से संपर्क किया और उनकी कार्य प्रगति के बारे में जानकारी ली, मैंने उनसे कहा कि मैं वापस आ गई हूँ और वे हमेशा की तरह मुझसे मामलों पर चर्चा कर सकते हैं। अपनी स्थिति को स्थिर करने के लिए मैं नहीं चाहती थी कि वांग यान कार्य में बहुत अधिक शामिल हो और मैंने कुछ कार्य अकेले ही संभाले, पहले की तरह उसे कुछ नहीं बताया और फिर मैं उसे बाद में सूचित करती। कई बार जब उसने मुझसे कार्य से संबंधित कुछ विवरण के बारे में पूछा तो मैंने उसे यह कहकर टाल दिया कि मैं बहुत व्यस्त हूँ। यह देखकर कि वह स्पष्ट रूप से कुछ कहना चाहती है तो मुझे अपराध-बोध हुआ, मुझे लगा कि मैंने कुछ ज्यादा ही कर दिया है। चूँकि हमने एक साथ मिलकर कार्य किया था इसलिए हमें एक दूसरे के साथ मामलों पर विचार-विमर्श करनी चाहिए थी, लेकिन जब मैंने सोचा कि उसे कार्य में शामिल होने और कार्य पर पकड़ बनाने देने से वह एक भरोसेमंद व्यक्ति बन जाएगी और मुझे अपनी पहचान बनाने का कोई मौका नहीं मिलेगा तो अंततः मैंने उसे कार्य में भाग नहीं लेने दिया। एक दिन अगुआओं ने हमें एक भजन का वीडियो भेजा ताकि हम जाँच कर सकें कि उसमें कोई मसला तो नहीं है। देखने के बाद मुझे उसमें कोई मसला नहीं दिखा, लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ कि वांग यान ने कई विस्तृत संशोधनों का सुझाव दिया और अगुआ उसके विचारों से सहमत थे। इससे मैं बहुत परेशान हो गई और सोचने लगी, “अगुआ मेरे बारे में बहुत अच्छी राय रखते थे, लेकिन अब तुम सुर्खियों में आ गई हो। मैं तुमसे अधिक समय से यह कर्तव्य कर रही हूँ और तुम्हारे कार्यों का पर्यवेक्षण किया करती थी। लेकिन अब मैं तुमसे कमतर दिखती हूँ, दूसरे लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे?” इसके बाद वीडियो जाँचते समय मैं उसके साथ उन पर चर्चा नहीं करना चाहती थी और मैंने खुद ही उन पर विचार और मूल्यांकन किया। बाद में अगुआओं ने कहा कि मेरे सुझाए गए संशोधन सही हैं। अगुआओं की स्वीकृति से मुझे बहुत खुशी हुई। जब मैंने अगुआओं को वांग यान के विचलनों और समस्याओं पर बात करते देखा तो मुझे मन ही मन खुशी हुई और मैंने सोचा, “आखिरकार मैं तुमसे ज्यादा समय से यह कार्य कर रही हूँ और मुझे ज्यादा जानकारी है!”

थोड़ी देर बाद अगुआओं ने हमसे एक टीम मीटिंग आयोजित करने को कहा ताकि सभी लोग अध्ययन कर सकें और व्यावसायिक कौशल का आदान-प्रदान कर सकें। चूँकि वांग यान का कौशल मुझसे बेहतर था इसलिए बैठक की मेजबानी उसी ने की। हालाँकि वह थोड़ी घबराई हुई थी, लेकिन उसने सामान्य तरीके से प्रदर्शन किया और भाई-बहनों ने चर्चाओं और आदान-प्रदान में सक्रिय रूप से भाग लिया। मुझे फिर से ईर्ष्या हुई और मेरा संतुलन जाता रहा और मैं सोचने लगी कि “तुम सुर्खियाँ बटोर रही हो!” बैठक के दौरान वांग यान बीच-बीच में मुझसे पूछ लेती कि क्या मैं कुछ कहना चाहती हूँ। मैंने सोचा, “अब सभी लोग तुम्हारे पक्ष में हैं, तुम अकेले ही इसकी मेजबानी कर सकती हो। मैं तुम्हारी सहायक नहीं बनना चाहती!” इसलिए मैं उसे अनदेखा कर देती। मुझे बोलते न देखकर उसे बैठक की मेजबानी करते समय मेरी भावनाओं पर विचार करना पड़ता। बैठक समाप्त होने के बाद, अधिकाधिक भाई-बहनों ने उससे मदद माँगी और मेरी ईर्ष्या और नाराजगी की भावनाएँ और तेज हो गईं। मैंने सोचा, “अगर तुम यहाँ नहीं होती तो हर कोई अपनी समस्याएँ लेकर मेरे पास आता। अब बाजी तुम्हारे हाथ में है!” मैं बहुत परेशान हो गई। वांग यान मेरे मन की बात समझ गई और सावधानी से पूछने लगी कि क्या मैं उनके अध्ययन में शामिल होना चाहती हूँ। उसके निमंत्रण देने से उसके साथ शामिल होने की मेरी इच्छा और भी कम हो गई और मैं सोचने लगी, “ऐसा लग रहा है जैसे मैं उसकी अधीनस्थ बन रही हूँ। कितना अपमानजनक है!” इसलिए मैंने कार्य में व्यस्त होने का हवाला देते हुए मना कर दिया। इसके बाद हालाँकि मैं कार्य में व्यस्त थी फिर भी मेरा मन अशांत रहा। वांग यान को चमकने के अधिक से अधिक अवसर मिल रहे थे। जब मैंने उसे अध्ययन से प्राप्त लाभों के बारे में उत्साहपूर्वक बात करते देखा तो मुझे लगा कि वह दिखावा कर रही है और मैं नकारात्मक भावनाओं से घिरी बहुत दुखी महसूस करने लगी। मैं प्रार्थना करने और खोजने के लिए परमेश्वर के सामने आई और तब मुझे परमेश्वर के ये वचन मिले : “कुछ लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊपर हैं, अन्‍य लोगों को पहचान मिलेगी, जबकि उन्हें अनदेखा किया जाता है, और इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या यह स्‍वार्थपूर्ण और निंदनीय नहीं है? यह कैसा स्वभाव है? यह दुर्भावना है! जो लोग दूसरों के बारे में सोचे बिना या परमेश्वर के घर के हितों को ध्‍यान में रखे बिना केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, जो केवल अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, वे बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर में उनके लिए कोई प्र‍ेम नहीं होता(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। “जैसे ही कोई ऐसी बात आती है जिसमें प्रतिष्‍ठा, हैसियत या वि‍शिष्‍ट दिखने का अवसर सम्मिलित हो—उदाहरण के तौर पर, जब तुम लोग सुनते हो कि परमेश्वर के घर की योजना विभिन्‍न प्रकार के प्रतिभावान व्‍यक्तियों को पोषण देने की है—तुममें से हर किसी का दिल प्रत्याशा में उछलने लगता है, तुममें से हर कोई हमेशा अपना नाम करना चाहता है और सुर्खियों में आना चाहता है। तुम सभी प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए लड़ना चाहते हो। तुम्‍हें इस पर शर्मिंदगी भी महसूस होती है, पर ऐसा न करने पर तुम्‍हें बुरा महसूस होगा। जब तुम्‍हें कोई व्यक्ति भीड़ से अलग दिखता है, तो तुम उससे ईर्ष्‍या व घृणा महसूस करते हो और उसकी शिकायत करते हो, और तुम सोचते हो कि यह अन्‍याय है : ‘मैं भीड़ से अलग क्‍यों नहीं हो सकता? हमेशा दूसरे लोग ही क्‍यों सुर्खियों में आ जाते हैं? कभी मेरी बारी क्यों नहीं आती?’ और रोष महसूस करने पर तुम उसे दबाने की कोशिश करते हो, लेकिन ऐसा नहीं कर पाते। तुम परमेश्वर से प्रार्थना करते हो और कुछ समय के लिए बेहतर महसूस करते हो, लेकिन जब तुम्‍हारा सामना दुबारा ऐसी ही परिस्‍थि‍ति से होता है, तो तुम फिर भी उसे नियंत्रित नहीं कर पाते। क्या यह एक अपरिपक्व आध्‍यात्मिक कद का प्रकटीकरण नहीं है? जब लोग ऐसी स्थितियों में फँस जाते हैं, तो क्या वे शैतान के जाल में नहीं फँस गए हैं? ये शैतान की भ्रष्ट प्रकृति के बंधन हैं जो इंसानों को बाँध देते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर ने बिल्कुल मेरी मनोदशा उजागर कर दी थी—मैं वांग यान के प्रति ईर्ष्या की मनोदशा में फँस गई थी और खुद को इससे मुक्त नहीं कर पा रही थी। पहले तो मैं उसके साथ सामान्य रूप से सहयोग कर पाती थी क्योंकि अगुआ और भाई-बहन कार्य मामलों के लिए मेरे पास आते थे, छोटे-बड़े मसलों को व्यवस्थित करने और संभालने की जिम्मेदारी मेरे पास हुआ करती थी और टीम में मेरा दबदबा था। लेकिन जब मैंने देखा कि वांग यान धीरे-धीरे अलग पहचान बनाकर अगुआओं से स्वीकृति पाने लगी है और हर कोई अपनी समस्याएँ लेकर उसी के पास जाता है तो मुझे लगा कि मेरा रुतबा खतरे में है और मैं उसे अपने से आगे नहीं निकलने देना चाहती थी। अपनी स्थिति सुरक्षित करने के लिए मैंने उसे बाहर रखना शुरू कर दिया और अधिक कार्य लेने से रोक दिया। अगुआओं को उसके सुझावों को मंजूरी देते देख मैं बेचैन हो गई, इसलिए बाद में वीडियो जाँचते समय मैं उसके साथ चर्चा और विचारों का आदान-प्रदान करने से परहेज करने लगी। इसके बजाय मैं इस उम्मीद में चुपके-चुपके कड़ी मेहनत करने लगी कि उसे मात देने के लिए बेहतर संशोधन प्रस्तुत कर सकूँ। जब अगुआओं ने उसकी वीडियो जाँच में विचलन और समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया तो इन बातों का सारांश देने और चर्चा करने के लिए उसके साथ सहयोग करने के बजाय, मुझे मन ही मन खुशी हुई और उम्मीद करने लगी कि उसके सुझावों को अगुआओं द्वारा पसंद नहीं किया जाएगा ताकि मैं अलग दिख सकूँ। जब वांग यान ने अध्ययन और आदान-प्रदान बैठक की मेजबानी की और जब मैंने उसे बैठक के दौरान अपनी पहचान बनाते देखा तो मुझे उससे ईर्ष्या और घृणा हो गई। मैंने जानबूझ कर उसके साथ कार्य करने से परहेज किया ताकि उसके लिए चीजें मुश्किल हो जाएँ, इस वजह से वह मेरे द्वारा बेबस महसूस करने लगी। बाद में उसे लगातार ख्याति प्राप्त करते देख, जबकि मेरी पहचान घटती जा रही थी, उसके प्रति मेरी घृणा और तेज हो गई और मैं ईर्ष्या और नाराजगी की मनोदशा में जीने लगी। वीडियो की समीक्षा का कार्यभार काफी अधिक था, अगुआओं ने वांग यान को मेरे साथ जोड़ दिया ताकि हम मिलकर वीडियो कार्य संभालें और परमेश्वर की गवाही के और अधिक वीडियो बनाएँ। लेकिन अपने रुतबे की रक्षा के लिए मैंने कलीसिया के कार्य और उसकी भावनाओं दोनों की उपेक्षा की। मेरी सारी हरकतें उसे बाहर रखने और उसे बेबस करने की थीं, अनजाने में ही मैं वीडियो कार्य में गड़बड़ी और बाधा डाल रही थी। मैं सचमुच स्वार्थी, नीच और मानवता से रहित थी! यह सब एहसास होने पर मैंने पश्चात्ताप में परमेश्वर से प्रार्थना की, मैंने वांग यान के साथ मिलकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन अच्छे से करने की इच्छा व्यक्त की।

कुछ समय बाद उसके व्यावसायिक कौशल में उल्लेखनीय प्रगति देखकर मैं एक बार फिर उसके साथ बेतहाशा होड़ करने लगी। लेकिन जितना अधिक मैं होड़ करती गई, मेरा दिल उतना ही अधिक अंधकारमय होता गया। वीडियो की जाँच करते समय वह सिद्धांतों के मसले उठाती, जबकि मैं केवल छोटे-मोटे मसलों की ओर ध्यान दिलाती जो सिद्धांतों से संबंधित न होते। मुझे बहुत शर्मिंदगी होती और उसके प्रति मेरे मन में और भी अधिक ईर्ष्या और आक्रोश पैदा होने लगा। एक बार उसने मेरे साथ वीडियो में संशोधन के लिए कुछ सुझावों पर चर्चा की। सच तो यह है कि उसके सुझाव सही थे, लेकिन मुझे लगा कि उसके सुझावों को स्वीकार करने से मैं उसके सामने कमतर नजर आऊँगी। इसलिए मैं सिद्धांतों पर विचार किए बिना उसके सुझावों को अस्वीकार करती रही और अंततः उसने अपने विचारों पर जोर नहीं दिया क्योंकि वह मेरे द्वारा बेबस महसूस कर रही थी और उसने मेरे विचारों के अनुसार संशोधन कर लिए। नतीजतन अगुआओं को लगा कि संशोधित वीडियो मूल वीडियो से भी बदतर है। उन्होंने हमसे पूछा कि वीडियो को इस तरह क्यों संशोधित किया गया है। मैंने केवल इतना ही स्वीकार किया कि यह मेरा अहंकार और सुझावों को स्वीकार न करने की प्रवृत्ति थी जिसके कारण यह स्थिति पैदा हुई। समय के साथ वांग यान वीडियो की जाँच करते समय सिद्धांतों को लागू करने में लगातार निपुण होती गई, जबकि मैं कई बार वीडियो देखने के बाद भी समस्याओं की पहचान नहीं कर पाती थी। मुझे गहरे अंधकार और निराशा का एहसास हुआ। लेकिन मेरे लिए इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह हुई कि कुछ समय बाद मैं अचानक बीमार पड़ गई और अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ हो गई और अगुआओं ने मेरे स्वस्थ होने के लिए घर वापस जाने की व्यवस्था की। जिस दिन मैं वहाँ से गई मैंने मुड़कर देखा तो वांग यान कंप्यूटर पर व्यस्त थी, मैंने अनिच्छा से टीम छोड़ी, मैं एक हारे हुए जुआरी की तरह महसूस कर रही थी। मैंने तो दुर्भावनापूर्ण विचार भी पाल लिए, “यह मत सोचो कि तुम बहुत अच्छा कर रही हो! एक दिन तुम भी मेरी जैसी हो जाओगी!”

घर लौटने के बाद मैं अकेली थी और मेरे दिल में एक खालीपन था और मैं दिशाहीन महसूस कर रही थी। मैंने सोचा कि कैसे भाई-बहन अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं जबकि मैं कोई कर्तव्य नहीं कर पा रही थी। हमारे बीच की इस दूरी ने मुझे बहुत परेशान कर दिया। इतना महत्वपूर्ण कर्तव्य गँवाने से मुझे गहरा अफसोस और पीड़ा हुई और मैंने न जाने कितनी बार परमेश्वर से प्रार्थना की और रोई। बाद में मुझे एहसास हुआ कि बीमारी कोई संयोग नहीं है, मुझे स्पष्ट हो गया कि परमेश्वर ही मुझे ताड़ना देकर अनुशासित कर रहा है। मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “उस समस्त कार्य के, जो परमेश्वर मनुष्य में करता है, अपने लक्ष्य और अपना अर्थ होता है; परमेश्वर निरर्थक कार्य नहीं करता, और न ही वह ऐसा कार्य करता है, जो मनुष्य के लिए लाभदायक न हो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल शोधन का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है)। परमेश्वर के वचनों पर मनन करते हुए मैंने सोचा कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह अर्थपूर्ण होता है, मैं जिस परिस्थिति का सामना कर रही हूँ वह भी परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं का ही हिस्सा और परमेश्वर का इरादा है। मुझे लगा कि मुझे सत्य खोजना चाहिए और अपनी समस्याओं को समझने के लिए आत्मचिंतन करना चाहिए। बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े : “तुम लोगों के अनुसरण में तुम्हारी बहुत सी व्यक्तिगत धारणाएँ, आशाएँ और भविष्य होते हैं। वर्तमान कार्य तुम लोगों की रुतबा पाने की अभिलाषा और तुम्हारी असंयत इच्छाओं की काट-छाँट करने के लिए है। आशाएँ, रुतबा और धारणाएँ सभी शैतानी स्वभाव के विशिष्ट प्रतिनिधित्व हैं। ... जितना अधिक तू इस तरह से तलाश करेगा उतना ही कम तू पाएगा। रुतबे के लिए किसी व्यक्ति की अभिलाषा जितनी अधिक होगी, उतनी ही गंभीरता से उसकी काट-छाँट की जाएगी और उसे उतने ही बड़े शोधन से गुजरना होगा। इस तरह के लोग निकम्मे होते हैं! उनकी अच्छी तरह से काट-छाँट करने और उनका न्याय करने की जरूरत है ताकि वे इन चीजों को पूरी तरह से छोड़ दें। यदि तुम लोग अंत तक इसी तरह से अनुसरण करोगे, तो कुछ भी नहीं पाओगे। जो लोग जीवन का अनुसरण नहीं करते वे रूपान्तरित नहीं किए जा सकते; जिनमें सत्य की प्यास नहीं है वे सत्य प्राप्त नहीं कर सकते। तू व्यक्तिगत रूपान्तरण का अनुसरण करने और प्रवेश करने पर ध्यान नहीं देता; बल्कि तू हमेशा उन असंयत इच्छाओं और उन चीजों पर ध्यान देता है जो परमेश्वर के लिए तेरे प्रेम को बाधित करती हैं और तुझे उसके करीब आने से रोकती हैं। क्या ये चीजें तुझे रूपान्तरित कर सकती हैं? क्या ये तुझे राज्य में ला सकती हैं?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो?)। “इंसान का भ्रष्‍ट स्‍वभाव कीर्ति, लाभ और हैसियत से ही प्रेम करता है और उन्हीं चीजों के पीछे भागता है, बस अंतर इतना है कि लोगों के इनका अनुसरण करने और इन्‍हें अभिव्‍यक्‍त करने के तरीके अलग-अलग होत हैं। ... यदि तुम हमेशा कीर्ति, लाभ और रुतबे पर ध्‍यान केंद्रित करते हो, यदि तुम इन चीजों को बहुत महत्‍व देते हो, यदि ये तुम्‍हारे हृदय में बसती हैं, और यदि तुम इन्‍हें त्‍यागने के इच्‍छुक नहीं हो, तो तुम इनके द्वारा नियंत्रित होकर इनके बंधन में आ जाओगे। तुम इनके गुलाम बन जाओगे, और अंत में, ये तुम्‍हें पूरी तरह से बरबाद कर देंगी। तुम्‍हें नजरअंदाज करने औरइन चीजों को अलग करने, दूसरों की अनुशंसा करने, और उन्हें विशिष्ट बनने देने का तरीका सीखना चाहिए। विशिष्‍ट बनने और कीर्ति पाने के लिए संघर्ष मत करो अवसरों का लाभ उठाने के लिए जल्‍दबाजी मत करो। तुम्‍हें इन चीजों को दरकिनार करना आना चाहिए, लेकिन तुम्‍हें अपने कर्तव्य के निर्वहन में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति बनो जो शांत गुमनामी में काम करता है, और जो वफादारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए दूसरों के सामने दिखावा नहीं करता है। तुम जितना अधिक प अपने अहंकारऔर हैसियत को छोड़ते हो, और जितना अधिक अपने हितों को नजरअंदाज करते हो, उतनी ही शांति महसूस करोगे, तुम्‍हारे हृदय में उतना ही ज्‍यादा प्रकाश होगा, और तुम्‍हारी अवस्था में उतना ही अधिक सुधार होगा। तुम जितना अधिक संघर्ष और प्रतिस्पर्धाकरोगे, तुम्‍हारी अवस्था उतनी ही अंधेरी होती जाएगी। अगर तुम्‍हें मुझ पर विश्वास नहीं है, तो इसे आजमाकर देखो! अगर तुम इस तरह की भ्रष्ट स्थिति को बदलना चाहते हो, और इन चीज़ों से नियंत्रित नहीं होनाचाहते, तो तुम्‍हेंसत्य की खोज करनी चाहिए और इन चीजों का सार स्पष्ट रूप से समझना चाहिए, और फिर इन्हें एक तरफ रख देना चाहिए और त्याग देना चाहिए। अन्यथा, तुम जितना अधिक संघर्ष करोगे, तुम्‍हारा हृदय उतना ही अंधकारमय हो जाएगा, तुम उतनी ही अधिक ईर्ष्या और नफरत महसूस करोगे बस इन चीजों को पाने की तुम्‍हारी इच्छा अधिक मजबूत ही होगी। इन्‍हें पाने की तुम्‍हारी इच्छा जितनी अधिक मजबूत होगी, तुम उन्‍हें प्राप्‍त कर पाने में उतने ही कम सक्षम होंगे, और ऐसा होने पर तुम्‍हारी नफरत बढ़ती जाएगी। जैसे-जैसे तुम्‍हारी नफरत बढ़ती है, तुम्‍हारे अंदर उतना ही अंधेरा छाने लगता है। तुम अंदर से जितना अधिक अंधकारमय होते जाओगे, तुम्‍हारा कर्तव्य निर्वहन उतना ही बुरा हो जाएगा; तुम्‍हारे कर्तव्‍य का निर्वहन जितना बुरा हो जाएगा, तुम परमेश्वर के घर के लिए उतना ही कम उपयोगी होंगे। यह एक आपस में जुड़ा हुआ, कभी न ख़त्म होने वाला दुष्चक्र है। अगर तुम कभी भी अपने कर्तव्य का निर्वहन अच्छी तरह से नहीं कर सकते तो धीरे-धीरे तुम्‍हें हटा दिया जाएगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मैंने देखा कि शैतान द्वारा भ्रष्ट किये जाने के बाद हम सभी प्रतिष्ठा और रुतबे से प्रेम करने लगते हैं। हम जितना अधिक प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं उतना ही अधिक हम उनसे बँधते और नियंत्रित होते जाते हैं और उनसे मुक्त नहीं हो पाते। अंत में हम बहुत सारे कुकर्म करने के कारण परमेश्वर द्वारा तिरस्कृत और हटा दिए जाते हैं। मैंने वांग यान के साथ कार्य करने के समय को याद किया, जब मेरे रुतबे को खतरा हुआ तो मैं ईर्ष्यालु हो गई और मैंने उसे बाहर कर दिया। जितना ज्यादा मेरे लिए इसे स्वीकारना मुश्किल हो रहा था, उतना ही ज्यादा मैं होड़ कर रही थी और जितना ज्यादा होड़ कर रही थी, मेरा दिल उतना ही ज्यादा अंधकारमय और पीड़ित होता जा रहा था। मुझे अपने कर्तव्य निर्वहन में आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। अब मैं बीमार हो गई थी और मुझे घर भेज दिया गया था, अब अपने कर्तव्य निर्वहन का मेरे पास कोई अवसर नहीं था। परमेश्वर प्रतिष्ठा और रुतबे की मेरी इच्छा के कारण मेरी काट-छाँट कर रहा था! मेरे पास आत्मचिंतन के अलावा कोई रास्ता नहीं था कि मैं इस स्थिति तक क्यों पहुँची। परमेश्वर के वचनों ने उजागर किया कि “आशाएँ, रुतबा और धारणाएँ सभी शैतानी स्वभाव के विशिष्ट प्रतिनिधित्व हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो?)। मैंने वह जहर पी लिया जो शैतान ने लोगों में डाला था, जैसे कि “सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ,” “दूसरों से ऊँचा स्थान रखो,” और “भीड़ से ऊपर उठो” मैंने जीवन में इन लक्ष्यों का अनुसरण किया। मैं हमेशा लोगों के बीच एक प्रमुख स्थान रखना चाहती थी, मेरा मानना था कि केवल इसी से मुझे अपने अस्तित्व का अहसास होगा और जीवन मूल्यवान और सार्थक बनेगा। पर्यवेक्षक बनने के बाद मुझे लगा कि मैं कलीसिया में एक दुर्लभ प्रतिभावान व्यक्ति हूँ। अगुआ और भाई-बहन कार्य मामलों पर चर्चा करने के लिए मेरे पास आते और मैं ही वह इंसान थी जो भाई-बहनों द्वारा बनाए गए वीडियो की समीक्षा और जाँच करती थी। मेरे अहंकार को बहुत संतुष्टि मिलती थी। वांग यांग के साथ कार्य करने के बाद जैसे-जैसे वह धीरे-धीरे उभर कर सामने आती गई, मेरे अंदर जलन और घृणा बढ़ती गई। अपने रुतबे की रक्षा के लिए मैंने उसे अलग-थलग कर दिया, उपेक्षित किया और शामिल नहीं किया। लेकिन जितना अधिक मैंने होड़ की मेरी आत्मा उतनी ही कलुषित होती गई। उसके कर्तव्य को और अधिक प्रभावशाली होता देख मैं उससे और भी अधिक घृणा करने लगी। अंततः अपने सम्मान और रुतबे की रक्षा के लिए मैंने अपनी कुंठा अपने कर्तव्य पर भी उतारी। मैं उसके सुझावों को उनकी उपयुक्तता की परवाह किए बिना अस्वीकार कर देती जिसके कारण वीडियो पर फिर से कार्य करना पड़ता और प्रगति में देरी होती। जब मैं वांग यान के साथ कार्य कर रही थी, चूँकि वह व्यावसायिक कौशल में बेहतर थी और मेरी पकड़ अधिक सिद्धांतों पर थी तो परस्पर सहयोग से हमें एक-दूसरे की क्षमताओं का लाभ उठाने और एक-दूसरे की कमजोरियों की भरपाई करने का अवसर मिल जाता था ताकि हमारे कर्तव्यों के नतीजे बेहतर हो सकें। लेकिन मेरा मन तो प्रतिष्ठा हासिल करने की जुगत में लगा रहता था। टीम में अपनी प्रमुख स्थिति को बनाए रखने के लिए मैं उसे दबाती और शामिल नहीं करती, जिससे वीडियो कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा होती और वह बेबस हो जाती। इन शैतानी जहर के सहारे जीते हुए मेरे अंदर न तो जमीर था और न ही विवेक, मेरा दिल ईर्ष्या और द्वेष से भरा हुआ था और मैं अपना कर्तव्य अच्छे से नहीं निभा रही थी, इससे न केवल कार्य में देरी हो रही थी बल्कि मैं अपने लिए कलंक और अपराध भी छोड़ रही थी। इस बात का एहसास होने पर मुझे अपने कार्यों पर पछतावा हुआ, आत्मग्लानि हुई और अपनी करतूतों से घृणा हो गई। इसलिए मैंने परमेश्वर के आगे पश्चात्ताप किया, मैं अब अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार नहीं जीना चाहती थी।

एक सुबह भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े जिससे मुझे अपने आपको समझने में थोड़ी मदद मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “यह जरूरी नहीं कि मसीह-विरोधी जहाँ भी हों, वहाँ सबसे ऊँचा स्थान पाना चाहते हों। जब भी वे किसी स्थान पर जाते हैं तो उनके पास एक स्वभाव और एक मानसिकता होती है जो उन्हें इस तरह काम करने के लिए मजबूर करती है। वह मानसिकता क्या है? वह यह है, ‘मुझे प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा! प्रतिस्पर्धा!’ तीन ‘प्रतिस्पर्धाएँ’ क्यों, एक ही ‘प्रतिस्पर्धा’ क्यों नहीं? (प्रतियोगिता उनका जीवन बन गई है, वे इसी के सहारे जीते हैं।) यह उनका स्वभाव है। वे ऐसे स्वभाव के साथ पैदा हुए थे, जो बेतहाशा अहंकारी है और जिसे नियंत्रित करना मुश्किल है; यानी वे खुद को किसी से भी कम नहीं समझते और बेहद अहंकारी होते हैं। कोई भी उनका यह बेहद अहंकारी स्वभाव कम नहीं कर सकता; वे खुद भी इसे नियंत्रित नहीं कर सकते। इसलिए उनका जीवन लड़ने और प्रतिस्पर्धा करने वाला होता है। वे किसके लिए लड़ते और प्रतिस्पर्धा करते हैं? स्वाभाविक रूप से, वे शोहरत, लाभ, रुतबे, नाम और अपने हितों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। चाहे उन्हें जिन भी तरीकों का इस्तेमाल करना पड़े, अगर हर कोई उनके प्रति समर्पण करता है और अगर उन्हें अपने लिए लाभ और प्रतिष्ठा मिलती है तो उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया होता है। प्रतिस्पर्धा करने की उनकी इच्छा कोई अस्थायी मनोरंजन नहीं होता; यह एक प्रकार का स्वभाव है, जो शैतानी प्रकृति से आता है। यह बड़े लाल अजगर के स्वभाव जैसा है, जो स्वर्ग से लड़ता है, पृथ्वी से लड़ता है और लोगों से लड़ता है। अब, जब मसीह-विरोधी कलीसिया में दूसरों से लड़ते और प्रतिस्पर्धा करते हैं तो वे क्या चाहते हैं? निस्संदेह, वे प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन))। “जो लोग अपना कर्तव्य ठीक से निभाने के बजाय प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, वे आग से खेल रहे हैं और अपने जीवन से खेल रहे हैं। आग और जीवन से खेलने वाले लोग कभी भी बर्बाद हो सकते हैं। आज अगुआ या कर्मी के तौर पर तुम परमेश्वर की सेवा कर रहे हो, जो कोई सामान्य बात नहीं है। तुम किसी व्यक्ति के लिए काम नहीं कर रहे हो, अपने खर्चे उठाने और रोजी-रोटी कमाने का काम तो बिल्कुल भी नहीं कर रहे हो; बल्कि तुम कलीसिया में अपना कर्तव्य निभा रहे हो। खासकर यह देखते हुए कि तुम्हें परमेश्वर के आदेश से यह कर्तव्य मिला है, इसे निभाने का क्या अर्थ है? यही कि तुम अपने कर्तव्य के लिए परमेश्वर के प्रति जवाबदेह हो, फिर चाहे तुम इसे अच्छी तरह से निभाओ या न निभाओ; अंततः परमेश्वर को हिसाब देना ही होगा, एक परिणाम होना ही चाहिए। तुमने जिसे स्वीकारा है वह परमेश्वर का आदेश है, एक पवित्र जिम्मेदारी है, इसलिए वह कितनी भी अहम या छोटी जिम्मेदारी क्यों न हो, यह एक गंभीर मामला है। यह कितना गंभीर है? छोटे पैमाने पर देखें तो इसमें यह बात शामिल है कि तुम इस जीवन-काल में सत्य प्राप्त कर सकते हो या नहीं और यह भी शामिल है कि परमेश्वर तुम्हें किस तरह देखता है। बड़े पैमाने पर देखें तो यह सीधे तुम्हारी संभावनाओं और नियति से जुड़ा है, तुम्हारे परिणाम से जुड़ा है; यदि तुम दुष्टता कर परमेश्वर का विरोध करते हो, तो तुम्हें निंदित और दंडित किया जाएगा। अपना कर्तव्य निभाते हुए तुम जो कुछ भी करते हो उसे परमेश्वर दर्ज करता है, और इसकी गणना और मूल्यांकन करने के लिए परमेश्वर के अपने सिद्धांत और मानक हैं; अपना कर्तव्य निभाते हुए तुम जो कुछ भी प्रकट करते हो, उसके आधार पर परमेश्वर तुम्हारा परिणाम तय करता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। परमेश्वर के वचन मसीह-विरोधियों की “होड़” करने की प्रवृत्ति की प्रकृति को बहुत विस्तार से उजागर करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए मसीह-विरोधियों की होड़ की प्रकृति और परिणामों की स्पष्ट रूप से संगति करते हैं। मैं भय और घबराहट से भर गई और वांग यान के साथ कार्य करने के दिनों को याद किए बिना न रह सकी। प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर मैंने अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों की उपेक्षा की, कलीसिया के कार्य की कोई परवाह नहीं की और लगातार वांग यान के साथ होड़ करती रही। अंततः मैं बीमार पड़ गई और अपना कर्तव्य करने में असमर्थ हो गई। परमेश्वर ने मुझे ऊपर उठाया था और वीडियो कार्य के लिए जिम्मेदार होने का अवसर दिया था, लेकिन मैंने उसकी कोई कद्र नहीं की। स्वार्थी इच्छाओं से प्रेरित होकर मैं होड़ करने में ही लगी रही जबकि मुझे पता था कि इससे कार्य में देरी होगी। मैं एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलकर वीडियो कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा कर रही थी और परमेश्वर के स्वभाव का अपमान कर रही थी। मैंने सोचा कि कैसे जब मैं वहाँ से गई और देखा कि वांग यान अभी भी अपना कर्तव्य निभा रही है जबकि मैं एक हारे हुए जुआरी की तरह महसूस कर रही थी, मुझे विशेष रूप से निराशा हुई, यहाँ तक कि मेरे मन में उसके प्रति दुर्भावनापूर्ण विचार आने लगे और मैं कामना करने लगी कि वह भी अपना कर्तव्य गँवा दे। मैंने देखा कि मैं प्रतिष्ठा के लिए पागल हुई जा रही थी और अपना जमीर और विवेक गँवा बैठी थी, अहंकारी और दुर्भावनापूर्ण बन गई थी। अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया तो परमेश्वर में मेरे विश्वास का अंत हो जाएगा। यह सब एहसास होने पर मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं तुम्हारे समक्ष पश्चात्ताप करने को तैयार हूँ और भविष्य में इस प्रकार का व्यवहार नहीं करूँगी।” तभी मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर ने मुझे बुराई के मार्ग पर बढ़ते रहने से रोकने के लिए इस बीमारी का इस्तेमाल किया है और मुझे वीडियो कार्य में गड़बड़ी करने और उसे बाधित करने जैसे बड़े अपराध करने से रोका है। यह परमेश्वर का प्रेम और संरक्षण है, मैंने मन ही मन परमेश्वर को धन्यवाद दिया।

बाद में मैंने पढ़ा कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “अगर तुम वाकई परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखने में सक्षम हो, तो तुम दूसरे लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने में सक्षम होंगे। अगर तुम किसी अच्छे व्यक्ति की सिफ़ारिश करते हो और उसे प्रशिक्षण प्राप्‍त करने और कोई कर्तव्य निर्वहन करने देते हो, और इस तरह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को परमेश्वर के घर में शामिल करते हो, तो क्या उससे तुम्‍हारा काम और आसान नहीं हो जाएगा? तब क्या यह तुम्‍हारा कर्तव्‍य के प्रति वफादारी प्रदर्शित करना नहीं होगा? यह परमेश्वर के समक्ष एक अच्छा कर्म है; अगुआ के रूप में सेवाएँ देने वालों के पास कम-से-कम इतनी अंतश्‍चेतना और तर्क तो होना ही चाहिए। ... हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीजों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्‍हारे लिए अपना कर्तव्‍य अच्‍छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। “किसी की क्षमता, गुण या विशेष प्रतिभा कुछ भी हो, वह सभी कार्य स्वयं नहीं कर सकता; यदि उसे कलीसिया का काम अच्छी तरह से करना है तो उसे सद्भाव में सहयोग करना सीखना होगा। इसलिए सौहार्दपूर्ण सहयोग, कर्तव्य के निर्वहन के अभ्यास का एक सिद्धांत है। अगर तुम अपना पूरा मन, सारी ऊर्जा और पूरी निष्ठा लगाते हो, और जो हो सके, वह अर्पित करते हो, तो तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभा रहे हो(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, उचित कर्तव्यपालन के लिए आवश्यक है सामंजस्यपूर्ण सहयोग)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे समझ आया कि जो लोग वास्तव में परमेश्वर के इरादों पर विचार करते हैं और अपने कर्तव्यों का भार उठाते हैं, वे प्रतिभाशाली लोगों को विकसित करने के लिए अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और रुतबे को अलग रख सकते हैं। इस बात को परमेश्वर याद रखता है। वास्तव में चाहे कोई व्यक्ति कितना भी योग्य, सक्षम और अनुभवी क्यों न हो उसके लिए अकेले सारा कार्य संभालना असंभव होता है। अगर प्रतिभाशाली व्यक्तियों को विकसित किया जा सके और भाई-बहन अपने कार्यों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग कर सकें तो क्या यह कलीसिया के कार्य के लिए कहीं अधिक लाभदायक नहीं है? मैंने देखा कि मैं बहुत संकीर्ण सोच वाली इंसान हूँ। हालाँकि बाद में मैंने वांग यान के साथ कार्य नहीं किया, चाहे मैं किसी के साथ भी कार्य करूँ, मैं परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाने और ऐसी इंसान बनने को तैयार हूँ जो अपने कर्तव्य को अच्छे से करने के लिए परमेश्वर के इरादों पर विचार करता है।

इसके बाद मुझे कलीसिया का अगुआ चुन लिया गया और बहन चेन फेंग के साथ सहयोग करने का कार्य सौंपा गया। जब मुझे यह खबर मिली तो मैंने सोचा, “क्या चेन फेंग पहले वीडियो बनाने का कार्य नहीं किया करती थी? मैं उसकी पर्यवेक्षक हुआ करती थी। मुझे उम्मीद नहीं थी कि अब वह कलीसिया अगुआ बन जाएगी।” कुछ समय उसके साथ कार्य करने के बाद मैंने समझ लिया कि वह तेजी से प्रगति और कई क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही है। मुझे चिंता हुई कि वह जल्द ही मुझसे आगे निकल जायेगी और तब भाई-बहन उसे मुझसे भी अधिक सम्मान देंगे। इसलिए मुझे हर समूह की सभाओं में उसकी उपस्थिति की व्यवस्था करने में हिचकिचाहट महसूस हुई। इस मुकाम पर मुझे एहसास हुआ कि मेरी मनोदशा गलत है। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और रुतबा त्यागने की इच्छा व्यक्त की और यह सीखना चाहा कि कैसे उसके साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग किया जाए, एक दिल और एक मन से मिलकर कलीसिया का कार्य अच्छे से किया जाए। इसके बाद चेन फेंग और मैं एक साथ हर समूह में जाने लगे और सभाओं की मेजबानी में एक-दूसरे के साथ सहयोग करने लगे। जब मैं प्रतिष्ठा और रुतबे की बेबसी से मुक्त हो गई तो मुझे अपने दिल में शांति और सहजता महसूस हुई।

बाद में मैंने और अधिक आत्म-चिंतन किया और पाया कि पद की वरिष्ठता की अवधारणा वाला मेरा दृष्टिकोण ही भ्रामक था। मैंने सोचा कि चूँकि मैं एक पर्यवेक्षक हुआ करती थी और एक बार कुछ भाई-बहनों के कार्य के लिए जिम्मेदार थी तो मुझे उनसे बेहतर होना चाहिए, बदतर नहीं। मैंने पढ़ा कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “कलीसिया के अंदर तुम्हें इस तरह का परिवेश रखना चाहिए—हर कोई सत्य पर ध्यान केंद्रित करे और उसे पाने का प्रयास करे। इससे फर्क नहीं पड़ता कि लोग कितने बूढ़े अथवा युवा हैं या वे पुराने विश्वासी हैं या नहीं। न ही इस बात से फर्क पड़ता है कि उनकी काबिलियत ज्यादा है या कम है। इन चीजों से फर्क नहीं पड़ता। सत्य के सामने सभी बराबर हैं। तुम्हें यह देखना चाहिए कि सही और सत्य के अनुरूप कौन बोल रहा है, परमेश्वर के घर के हितों की कौन सोच रहा है, कौन सबसे अधिक परमेश्वर के घर का कार्यभार उठा रहा है, सत्य की अधिक स्पष्ट समझ किसे है, न्याय की भावना को कौन साझा कर रहा है और कौन कीमत चुकाने को तैयार है। ऐसे लोगों का उनके भाई-बहनों द्वारा समर्थन और सराहना की जानी चाहिए। ईमानदारी का यह परिवेश, जो सत्य का अनुसरण करने से आता है, कलीसिया के अंदर व्याप्त होना चाहिए; इस तरह से, तुम्हारे पास पवित्र आत्मा का कार्य होगा, और परमेश्वर तुम्हें आशीष और मार्गदर्शन प्रदान करेगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने पूरे हृदय, मन और आत्मा से अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने वाला ही परमेश्वर से प्रेम करने वाला व्यक्ति होता है)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर की नजर में सब बराबर हैं। इस बात पर ध्यान दिए बिना कि किसी व्यक्ति ने कितने समय तक अपना कर्तव्य निर्वहन किया है या वह कौन सा कर्तव्य निभा रहा है, जब तक वह कलीसिया के हितों को बनाए रखता है और उसकी संगति सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है हमें स्वीकार करना चाहिए, आज्ञापालन करना चाहिए, सहारा और सहयोग प्रदान करना चाहिए। भले ही मैं पर्यवेक्षक हुआ करती थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं सब कुछ समझती या जानती हूँ। चेन फेंग भेद पहचानने में मुझसे बेहतर थी और वह मेरे कर्तव्य में विचलनों और मसलों की पहचान कर सकती थी। उसके मार्गदर्शन और पूरक बनने से यह कार्य अधिक संपूर्णता से पूरा किया जा सकता था। मैंने देखा कि मैं खुद को बिल्कुल भी नहीं समझती थी, एक पर्यवेक्षक होने के नाते हमेशा खुद को श्रेष्ठ समझती थी। मैं कितनी अहंकारी और अविवेकपूर्ण थी! अब मुझे समझ आया कि हर किसी की क्षमता और फायदे अलग-अलग होते हैं, परमेश्वर हमारे लिए यह व्यवस्था करता है कि हम अपने कर्तव्यों में सहयोग करें ताकि हम एक दूसरे की क्षमताओं से लाभ उठाते हुए एक दूसरे की कमजोरियों को पूरा कर सकें जिससे कि हमारे कर्तव्यों की प्रभावशीलता में निरंतर सुधार हो सके। परमेश्वर का धन्यवाद!

पिछला:  75. मैं अब अपनी मंजिल को लेकर विवश नहीं हूँ

अगला:  77. क्या “दयालुता का बदला कृतज्ञतापूर्वक लौटाना चाहिए” का दृष्टिकोण सही है?

संबंधित सामग्री

10. हृदय की मुक्ति

झेंगशिन, अमेरिका2016 के अक्टूबर में, जब हम देश से बाहर थे, तब मेरे पति और मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया था। कुछ...

40. एक अलग प्रकार का उद्धार

हुआंग ली, चीनमैं करिश्माई ईसाई धर्म की एक साधारण विश्वासी हुआ करती थी। जब से मैंने प्रभु में विश्वास करना शुरू किया, तब से मैंने हर एक सेवा...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

Connect with us on Messenger