89. मेरी गिरफ्तारी के बाद
नवंबर 2002 में एक दिन दोपहर को मैं घर पर खाना बना रही थी, तभी अचानक मुझे तेजी से बार-बार दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनाई दी। दरवाजा खोलने पर मैंने देखा कि बाहर चार पुरुष और एक महिला खड़ी थी। उनमें से एक मेरे पास आकर पूछने लगा, “क्या तुम वांग ली हो? क्या तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती हो?” इससे पहले कि मैं जवाब दे पाती, उसने जल्दी से मुझे अपना पहचान पत्र दिखाया और कहा, “हम सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो से हैं। किसी ने रिपोर्ट की है कि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती हो और एक कलीसिया अगुआ हो। हम यहाँ जाँच करने आए हैं।” इससे पहले कि मैं जवाब दे पाती, वे पाँचों मेरे घर में घुस गए और बरामदे और कमरों में तलाशी लेने लगे। उन्हें 50 युआन की एक भेंट रसीद, वचन देह में प्रकट होता है की एक प्रति, दो टेप और एक छोटा रिकॉर्डर मिला और वे सख्ती से बोले, “ये सबूत हैं!” इतना कहते ही उन्होंने मुझे पुलिस की गाड़ी में ठूँस दिया और साथ ले गए।
थाने में पुलिस मुझे दूसरी मंजिल पर बने पूछताछ कक्ष में ले गई और मुझे हथकड़ी लगा दी, मेरे हाथों को रेडिएटर पाइप से बाँध कर लटका दिया और मैं केवल अपने पंजों के बल खड़ी हो पा रही थी। मेरा सारा वजन मेरी कलाइयों पर टिका हुआ था, जिससे उनमें असहनीय दर्द होने लगा। मैंने एक पुलिसकर्मी को यह कहते हुए सुना, “इस बार हमने एक अगुआ को पकड़ा है” और मेरी जान हलक में अटक गई और मैंने सोचा, “वे जानते हैं कि मैं अगुआ हूँ, इसलिए वे मेरे भाई-बहनों के बारे में जानकारी निकालने के लिए मुझे जरूर प्रताड़ित करेंगे। क्या होगा अगर मैं यातना सहन नहीं कर पाई?” मैंने आगे सोचने की हिम्मत नहीं की और जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे मुझे आस्था और बुद्धि देने के लिए कहा और मुझे मेरी गवाही में अडिग रखने के लिए कहा। मैं चार घंटे से अधिक समय तक इसी तरह लटकी रही, अपने पैरों को जमीन पर नहीं टिका पाई, जिससे हथकड़ी और भी कसती गई। मेरे हाथ इतने खिंचते रहे कि वे काले और बैंगनी पड़ गए और उनमें असहनीय दर्द होने लगा और मेरे पैर भी सूज कर सुन्न हो गए। मुझे लगा कि मैं मुश्किल ही टिक पाऊँगी और अंदर से कमजोर पड़ने लगी, नहीं जानती थी कि मैं कब तक वहाँ लटकी रहूँगी। मैंने एक पल के लिए भी अपने दिल को परमेश्वर से दूर जाने नहीं दिया। मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा, जिन्होंने गहरी पीड़ा के समय में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी दूर तक ही है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं, जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, और ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं, जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे जो भी व्यक्ति हो, मेरा यही स्वभाव है। मुझे तुम लोगों को बता देना चाहिए : जो कोई मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई मेरे प्रति निष्ठावान रहा है, वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे एहसास दिलाया कि परमेश्वर का स्वभाव अपमान बर्दाश्त नहीं करता और अगर मैंने अपने भाई-बहनों से गद्दारी की और परमेश्वर को धोखा दिया तो परमेश्वर मुझे कभी माफ नहीं करेगा, वह पक्का मुझसे घृणा करेगा और मुझे हटा देगा। मैंने संकल्प लिया कि चाहे पुलिस मुझे कितना भी प्रताड़ित करे, मैं कभी भी यहूदा नहीं बनूँगी!
शाम करीब 7 बजे तक मेरा सिर चकराने लगा था, मेरे पूरे शरीर में भयंकर दर्द हो रहा था और मुझे साँस लेने में परेशानी हो रही थी। पुलिस ने देखा कि मैं गिरने वाली हूँ तो मेरी एक बाँह खोल दी और मैं आखिरकार अपने पैरों पर खड़ी हो पाई। तभी एक पुलिस अधिकारी मुझ पर चिल्लाया, “ठीक है, अब उगल दो, कलीसिया के चढ़ावे का पैसा किसके पास गया? रसीद पर अंकित व्यक्ति कहाँ रहता है?” मुझे कुछ भी नहीं बोलते देखकर उसने आगे कहा, “भले ही तुम मत बोलो, हमने पहले ही पूरी तरह से तुम्हारी जाँच कर ली है। हम काफी समय से तुम्हारा पीछा और छानबीन कर रहे हैं!” फिर उसने मेज से एक कागज उठाया और विस्तृत जानकारी पढ़ने लगा कि मैं कितने समय से परमेश्वर में विश्वास करती हूँ, कहाँ रहती हूँ, क्या कर्तव्य करती हूँ और भी बहुत कुछ। मैंने सोचा, “वे इतना सब कैसे जानते हैं? क्या किसी ने यहूदा बनकर मेरे साथ विश्वासघात किया है?” इस विचार ने मुझे बहुत चिंतित कर दिया और मैंने जल्दी से अपना सिर झुका लिया, सोचने लगी कि कैसे जवाब दूँ। अधिकारी ने मुझे गौर से देखा और एक फोटो निकाल कर पूछा कि क्या मैं उसमें दिख रहे व्यक्ति को पहचानती हूँ। मैंने उस पर नजर डाली और कहा, “मैं उसे नहीं पहचानती।” उसने झूठी मुस्कान के साथ कहा, “क्या तुम सच में उसे नहीं पहचानती? क्या तुम जानती हो कि आज किसने तुम्हारी रिपोर्ट की है? फोटो में दिख रहे इसी व्यक्ति ने।” मैंने देखा कि फोटो में मौजूद शख्स एक बुरा व्यक्ति था, जिसे कलीसिया से निकाल दिया गया था। फिर अधिकारी ने एक और बहन का नाम लिया और पूछा कि क्या मैं उसे पहचानती हूँ और मैंने कहा कि मैं उसे भी नहीं पहचानती। अधिकारी ने झल्लाकर कहा, “मैं तुम्हें बता देता हूँ। अगर तुम कुछ नहीं बोलोगी तो तुम्हारे घर में जो धार्मिक सामग्री मिली है और जो गवाह हमारे पास हैं, वे तुम्हें तीन साल तक सश्रम पुनः शिक्षा की सजा देने के लिए काफी हैं। हम तुम्हें अपराध कबूलने का मौका दे रहे हैं और जितनी जल्दी तुम अपराध कबूल करोगी, उतनी जल्दी तुम घर जा सकोगी!” तब एक महिला पुलिस अधिकारी ने उसे मेरा दूसरा हाथ छोड़ने का इशारा किया जो अभी भी लटका हुआ था और फिक्र की झूठी अभिव्यक्ति के साथ उसने मुझे एक कप पानी दिया, मेरा हाथ थामा और कहा, “प्रिय, चलो सोफे पर बैठते हैं और बातें करते हैं। मैंने देखा कि तुम्हारे दोनों बच्चे बहुत प्यारे हैं और वे अभी बड़े हो रहे हैं। एक माँ के रूप में तुम्हें अपनी जिम्मेदारियाँ अच्छे से निभानी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें पौष्टिक भोजन मिले, क्योंकि अगर वे अच्छा नहीं खाएँगे तो इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होगी। हम माताओं के कंधों पर बहुत जिम्मेदारी होती है। तुम्हारा पति अच्छा इंसान है, जो पैसे कमाने के लिए कमरतोड़ मेहनत कर रहा है और तुम्हें बच्चों की देखभाल करने के लिए घर पर रहने दे रहा है। तुम ऐसे अच्छे बच्चों को नजरअंदाज कैसे कर सकती हो? क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम उनकी ऋणी हो?” महिला अधिकारी की बातों से मैं थोड़ी कमजोर पड़ गई और मुझे लगा कि मैंने अपने बच्चों की अच्छे से देखभाल नहीं की है और मैं वाकई उनकी ऋणी हूँ। मुझे कुछ भी नहीं बोलते देखकर महिला अधिकारी मेरे पास आई, मेरा कंधा थपथपाया और कहा, “प्रिय, सबसे अच्छा यही होगा कि तुम बस अपराध कबूल कर लाे। हमें बताओ कि तुम क्या जानती हो और हम तुम्हें तुरंत घर वापस भेज देंगे और तुम अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए घर जा सकोगी।” उसने यह भी कहा, “तुम कानून नहीं समझती, इसलिए तुम्हें लग सकता है कि अपराध कबूलने से तुम और भी ज्यादा फँस जाओगी, लेकिन ऐसा सच में नहीं है। अगर तुम हमें वही बताओ जो तुम जानती हो तो हम तुम्हारा बयान दर्ज कर सकते हैं और तुम घर जा सकती हो।” मैंने सोचा, “यह सब सिर्फ झूठ और धोखा है। तुम मुझे बस परमेश्वर को धोखा देने के लिए कह रही हो और मैं इसके झांसे में नहीं आऊँगी! लेकिन अगर मुझे वाकई तीन साल की सश्रम पुन : शिक्षा की सजा होती है तो मेरे बच्चों का क्या होगा? वे अभी भी इतने छोटे हैं, वे मेरी देखभाल के बिना कैसे रहेंगे?” इन विचारों ने मुझे बहुत परेशान कर दिया, इसलिए मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की। मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “कौन वास्तव में पूरी तरह से मेरे लिए खप सकता है और मेरी खातिर अपना सब-कुछ अर्पित कर सकता है? तुम सभी अनमने हो; तुम्हारे विचार इधर-उधर घूमते हैं, तुम घर के बारे में, बाहरी दुनिया के बारे में, भोजन और कपड़ों के बारे में सोचते रहते हो। इस तथ्य के बावजूद कि तुम यहाँ मेरे सामने हो, मेरे लिए काम कर रहे हो, अपने दिल में तुम अभी भी घर पर मौजूद अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के बारे में सोच रहे हो। क्या ये सभी चीजें तुम्हारी संपत्ति हैं? तुम उन्हें मेरे हाथों में क्यों नहीं सौंप देते? क्या तुम्हें मुझ पर पर्याप्त विश्वास नहीं है? या ऐसा है कि तुम डरते हो कि मैं तुम्हारे लिए अनुचित व्यवस्थाएँ करूँगा?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 59)। हाँ, परमेश्वर सभी चीजों पर शासन करता है। मेरे बच्चों की नियति और कष्ट सब परमेश्वर द्वारा पूर्व निर्धारित किए जा चुके हैं और कोई भी व्यक्ति इसे बदल नहीं सकता। मुझे अपने बच्चों को परमेश्वर के हाथों में सौंपना था। पुलिस द्वारा मुझे परमेश्वर को धोखा देने के लिए लुभाने की खातिर स्नेह का इस्तेमाल करना वाकई घृणित है! यह परिवेश परमेश्वर की ओर से एक परीक्षा है और वह मेरे द्वारा चुने जा रहे विकल्पों को देख रहा है। यह मेरे लिए परमेश्वर की गवाही देने का मौका भी है और मुझे परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपनी गवाही में अडिग रहना है। इसका एहसास होने पर मैंने परमेश्वर से मन ही मन प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं अपने बच्चों को पूरी तरह से तुम्हारे हाथों में सौंपने के लिए तैयार हूँ। देह की कमजोरी पर काबू पाने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए अपनी गवाही में अडिग रहने में मेरी मदद करो।” प्रार्थना करने के बाद मुझे आस्था मिली और चाहे पुलिस ने मुझे लुभाने की कितनी भी कोशिश की हो, मैं चुप रही। मुझे कुछ भी नहीं बोलते देखकर महिला अधिकारी की अभिव्यक्ति तुरंत बदल गई। उसने मुझे झटका देकर सोफे से उठाया, मुझे बुरी तरह घूरते हुए कहा, “मैंने अच्छा बनने की कोशिश की, लेकिन तुम नहीं मानी। तुमने अपने लिए हालात और भी बदतर बना लिए हैं! चलो दिखाती हूँ कि मैं तुम्हें कैसे ठीक करती हूँ!” यह कहते हुए वह मेरे बाल खींचकर मुझे घसीटने लगी, खींचने और गालियाँ देने लगी, “लगता है तुम सिर्फ पिटना चाहती हो!” तब एक पुरुष अधिकारी ने परमेश्वर के वचनों की एक किताब उठाई और उसे मेरे चेहरे पर पटक दिया, मुझे गालियाँ देते हुए मारने लगा, “बस अब बक दो! तुम कितने सालों से अगुआ हो? कलीसिया का चढ़ावा किसके पास जाता है? हमें बताओ कि तुम क्या जानती हो। अगर तुम अपराध कबूल नहीं करती हो तो मैं सुनिश्चित करूँगा कि तुम्हारी बाकी जिंदगी जेल में कटे और अपने पति और बच्चों को फिर कभी न देख पाओ!” मैंने शांति से कहा, “मुझे नहीं पता कि तुम किस बारे में बात कर रहे हो।” पुलिस अधिकारी का चेहरा काला पड़ गया और उसने मेरे गाल पर मुक्का मारा और वह मेरे चेहरे पर ऐसे घूंसे बरसाने लगा जैसे वह पागल हो गया हो। मुझे याद नहीं कि उसने मुझे कितनी बार थप्पड़ मारे। मेरा एक दांत ढीला हो गया, मेरी नाक और मुँह के कोने से खून बहने लगा, मेरा सिर भन्ना गया और सूज गया। मुझे चक्कर आने लगा और मेरा दिमाग बंद हो गया, मैं लड़खड़ा गई और मुश्किल से दीवार के सहारे खुद को सँभाल पाई। मुझे लगा कि मैं इसे और ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सकती, सोचने लगी, “अगर यह ऐसे ही चलता रहा तो क्या वे मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे? भले ही मैं मारी न जाऊँ, अगर मैं अपंग हो गई तो मैं अपना बाकी जीवन कैसे जियूँगी? शायद मुझे उन्हें कुछ महत्वहीन बात बता देनी चाहिए?” लेकिन जैसे ही मैं बोलने वाली थी, मुझे अचानक यहूदा के भाग्य का ख्याल आया, जिसने प्रभु यीशु को धोखा दिया था। मैं डर गई और जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरी देह बहुत कमजोर है, मेरे दिल पर नजर रखो, मुझे आस्था और शक्ति दो और अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे एक भजन याद आया, जिसका शीर्षक था, “मैं परमेश्वर की महिमा का दिन देखना चाहता हूँ” : “अपने हृदय में परमेश्वर द्वारा सौंपी अहम जिम्मेदारी होने के चलते मैं कभी भी शैतान के आगे घुटने नहीं टेकूँगी। चाहे मेरा सिर कट जाए और मेरा खून बह जाए, परन्तु परमेश्वर के लोगों की रीढ़ झुक नहीं सकती। मैं परमेश्वर के लिए जबर्दस्त गवाही दूँगी और शैतान और राक्षस को अपमानित करूँगी। दर्द और कठिनाइयाँ परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित हैं मैं मृत्यु तक उसके प्रति वफादार रहूँगी और समर्पण करूँगी। मैं फिर कभी परमेश्वर को रोने या चिंता में डालने का कारण नहीं बनूँगी। मैं अपना प्यार और वफादारी परमेश्वर को अर्पित करूँगा और उसे महिमा देने का अपना मिशन पूरा करूँगा” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। इस भजन ने मुझे आस्था और शक्ति दी। मैं रीढ़विहीन कमजोर नहीं हो सकती थी। यह पीड़ा परमेश्वर का आशीष थी और चाहे पुलिस मुझे कितना भी प्रताड़ित करे, मैं अपनी गवाही में अडिग रहूँगी और शैतान के आगे कभी नहीं झुकूँगी! मुझे लगा कि परमेश्वर ठीक मेरे बगल में है, हर समय मेरी मदद और मार्गदर्शन कर रहा है, मेरा सहारा बन रहा है और मेरा दिल गहराई तक प्रभावित हो गया। पुलिसवाले ने देखा कि मैं कुछ नहीं बोलने वाली, तो उसने मेरी कमर पर जोर से लात मारी, जिससे मैं दर्द से रोने लगी। ऐसा लगा जैसे मेरी कमर टूट गई हो। मैं जमीन पर सिकुड़ गई, हिल भी नहीं पाई। दर्द के बीच मैंने गुस्से में पुलिसवाले की तरफ देखा और कहा, “मैं परमेश्वर में सिर्फ सत्य का अनुसरण करने और अच्छी इंसान बनने के लिए विश्वास करती हूँ और मैंने कोई गैर-कानूनी काम नहीं किया है तो तुम मुझे इस तरह क्यों पीट रहे हो?” अधिकारी ने दाँत पीसते हुए कहा, “मैं तुम्हें इसलिए पीट रहा हूँ क्योंकि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती हो। तुम्हें देखना भी घृणित है। तुम और तुम्हारे जैसे सभी लोग राजनीतिक अपराधी हैं!” मैंने कहा, “हमारी आस्था सिर्फ सभा करने और परमेश्वर के वचन पढ़ने तक सीमित है। हम राजनीति में बिल्कुल भी शामिल नहीं होते। तुम उन लोगों को नजरअंदाज करते हो जो नशा करते हैं और दूसरों से धोखाधड़ी और ठगी करते हैं, लेकिन तुम हम लोगों को पकड़ते हो जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं। क्या कोई कानून-व्यवस्था है भी?” अधिकारी ने जवाब दिया, “नशेड़ी और ठग सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए ऐसा करते हैं, लेकिन तुम लोग अलग हो। अगर हम तुम्हें गिरफ्तार नहीं करें और वे परमेश्वर में विश्वास करने में तुम्हारा अनुसरण करने लगें तो कोई भी कम्युनिस्ट पार्टी की बात नहीं सुनेगा!” तब राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड के कप्तान ने मेरी ओर इशारा किया और दूसरे अधिकारियों से कहा, “अगर वह अपराध कबूल नहीं करती है तो हमारा मिशन पूरा नहीं होगा और हमें अपना बोनस नहीं मिलेगा। हम उसे ऐसे ही नहीं छोड़ सकते; उसे तब तक पीटते रहो, जब तक वह अपना मुँह नहीं खोलती!” फिर दो अधिकारी मेरे चेहरे पर मुक्के बरसाने लगे, मेरे होंठ पर एक घाव बना दिया, जिससे बहुत खून बहने लगा। वे मुझे मारते रहे और फटकारते रहे, “अगर तुमने अपना अपराध नहीं कबूला तो मैं तुम्हें अंधी, बहरी, गूँगी बना दूँगा और तुम्हें जिंदगी भर के लिए अपंग कर दूँगा! तुम मरने की दुआ माँगोगी!” लगभग दस मिनट बाद जो दो अधिकारी मुझे पीट रहे थे, वे थककर चूर हो गए, हाँफने और सोफे पर बैठकर सिगरेट पीने लगे। फिर उन्होंने मेरे पति और बच्चों का जिक्र करके मुझे मनाने की कोशिश की, धमकी दी कि अगर मैंने अपना अपराध नहीं कबूला तो मुझे उम्रकैद की सजा दी जाएगी। मैंने सोचा, “मेरी सजा की अवधि तुम्हारे हाथों में नहीं है, यह परमेश्वर के हाथ में है। भले ही मुझे उम्रकैद की सजा सुनाई जाए, मुझे अपनी गवाही में अडिग रहना होगा!” देर रात तक पुलिस को मुझसे कलीसिया के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली और वे निराश होकर पूछताछ कक्ष से चले गए। उस दिन मुझे दस घंटे से ज्यादा समय तक प्रताड़ित किया गया, पानी की एक भी बूँद या खाने का एक निवाला नहीं दिया गया। मेरा पूरा शरीर कमजोरी और दर्द से कराह रहा था और मेरे पैरों में खड़े होने की ताकत नहीं बची थी। उसी रात बाद में दो अधिकारियों ने मुझे एक कार में ठूँसा और मुझे हिरासत केंद्र ले गए।
जब हम वहाँ पहुँचे, तब तक रात के 2 बज चुके थे और पुलिस ने ड्यूटी पर मौजूद महिला अधिकारियों से कहा कि मैं चमकती पूर्वी बिजली की सदस्य हूँ और उन्हें निर्देश दिया कि वे मुख्य कैदी से मेरी “अच्छी तरह से खिदमत” करवाएँ। जब मैं कोठरी में पहुँची तो एक महिला अधिकारी ने मुख्य कैदी के कान में कुछ फुसफुसाया जो मुझे सुनाई नहीं दिया। मुख्य कैदी सो रहीं बाकी कैदियों को जगाने के लिए चिल्लाई और मुझे जमीन पर पटक दिया। उसने चिल्लाते हुए उनसे कहा, “उसे मारो! वह चमकती पूर्वी बिजली की सदस्य है।” छह कैदी आगे बढ़े। कुछ ने मुझे लात मारी, कुछ ने मेरे बाल खींचे और मैं बस अपने हाथों से अपना चेहरा ढक सकी, सिकुड़ गई और उन्हें मुझे मारने दिया। मुख्य कैदी ने खड़े होकर मुझे फटकारा, “तुम्हें चमकती पूर्वी बिजली में किसने शामिल किया? तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें बचाने क्यों नहीं आता? अगर तुम परमेश्वर पर विश्वास करना बंद कर दोगी तो हम तुम्हें नहीं मारेंगे।” पीटे जाने और जमीन पर छटपटाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि जब पुलिस ने मुख्य कैदी से कहा कि वह मेरी “अच्छी तरह से खिदमत करो” तो वे मुझे प्रताड़ित करने के लिए कह रहे थे। मुझे इन राक्षसों से दिल की गहराई से नफरत हो गई! वे मुझे आधे घंटे से ज्यादा देर तक पीटते रहे और फिर मुख्य कैदी ने मुझे रात की ड्यूटी पर शौचालय के पास बैठा दिया। मुझे इतनी बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया था कि मेरे पास अपना सिर उठाने की भी ताकत नहीं थी। मैं बस धीरे-धीरे चल पा रही थी और शौचालय की दीवार के सहारे टिकी हुई थी। जैसे ही मैं झपकी लेने लगती तो मुझे समय-समय पर लोगों के शौचालय जाने की आवाजें सुनाई देतीं और कुछ लोग पेशाब करने के बाद मुझे लात मारते भी थे। शौचालय से आने वाली बदबू से मुझे उल्टी आने लगी। बचपन से ही मेरे माता-पिता हमेशा मेरे प्रति उदार दयालु रहे थे और शादी के बाद मेरा पति मेरे साथ अच्छा रहा था। किसी ने भी कभी मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया था। सिर्फ इसलिए कि मैं परमेश्वर में विश्वास करती थी, मुझे इस घोर यातना और अपमान का सामना करना पड़ रहा था। मुझे बहुत बुरा लगा। मुझे नहीं पता था कि वे मुझे पीटते रहेंगे या नहीं, मुझे इस जगह पर कब तक रहना होगा या मैं इसे सहन कर पाऊँगी या नहीं। जितना ज्यादा मैं इसके बारे में सोचती, उतना ही मुझे बुरा लगता और मैं खुद को रोक नहीं पाती और रो पड़ती। उस पल मुझे एक भजन याद आया, “तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास” : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों की दया पर निर्भर होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे एहसास हुआ कि जब तक मैं गिरफ्तार नहीं हुई थी और मुझे सताया नहीं गया था तो मुझे हमेशा लगता था कि परमेश्वर में मेरी आस्था बहुत मजबूत है और मैं हमेशा कलीसिया में हर चीज में सबसे आगे रहती थी। अपने कर्तव्य करते हुए मैं वह पीड़ा सहन कर सकती थी जो दूसरे नहीं कर पाते थे और हमेशा खुद को परमेश्वर से सबसे ज्यादा प्रेम करने वाली इंसान मानती थी। लेकिन अब गिरफ्तार और प्रताड़ित होने के बाद मैंने देखा कि मेरा आध्यात्मिक कद कितना छोटा है। थोड़ी सी पीड़ा और अपमान के बाद ही मैं इस परिवेश से बचकर भागना चाहती थी, जो दर्शाता है कि मुझमें कोई आज्ञाकारिता नहीं थी और परमेश्वर में मेरी आस्था बहुत कम थी। मुझे यह भी याद आया कि जब भी मैं कमजोर पड़ती थी, परमेश्वर अपने वचनों का उपयोग मेरा मार्गदर्शन और मेरी अगुआई करने के लिए करता था और बार-बार शैतान की साजिशों का भेद पहचानने में मेरी मदद करता था। परमेश्वर का प्रेम वाकई महान है। मैंने मन में संकल्प लिया, “जब तक मेरी साँस चल रही है, मैं शैतान के आगे कभी नहीं झुकूँगी!”
अगली सुबह भोर में मुख्य कैदी उठी, शौचालय गई और मुझे लात मारते हुए बोली कि उठकर शौचालय साफ करो। पुलिस द्वारा दस घंटे से अधिक समय तक प्रताड़ित किए जाने के बाद मेरा पूरा शरीर बेहद पीड़ा में था और मुझमें बोलने की भी ताकत नहीं बची थी, शौचालय साफ करना तो दूर की बात थी। यह देखकर कि मैं हिल भी नहीं रही हूँ, मुख्य कैदी ने अन्य कैदियों को मुझे फिर से पीटने के लिए बुलाया। मुझे जमीन पर गिरा दिया गया, मैं मुश्किल से होश में थी। एक दोषी हत्यारे ने क्रूरता से कहा, “उसे इतनी आसानी से मत छोड़ो। उसे उठकर शौचालय साफ करने के लिए कहो!” यह कहने के बाद कुछ कैदी मुझे घसीट कर शौचालय में ले गए और मेरे हाथों को जबरन शौचालय में घुसा दिया। नीचे देखने पर मैंने देखा कि शौचालय मल से भरा हुआ था और बदबू से मुझे मतली और उल्टी आ रही थी। अन्य कैदी एक तरफ खड़े थे, अपनी नाक ढककर जोर-जोर से हँस रहे थे। उनकी हँसी भयानक और डरावनी थी, ऐसा लग रहा था मानो यह नरक से आ रही हो। उन्होंने मुझे वहाँ अपमानित करना बंद नहीं किया। हत्यारे ने मेरा हाथ पकड़ लिया, मुझे अपने हाथों से शौचालय धोने के लिए मजबूर किया और मुझे चेतावनी दी, “अगर तुमने इस शौचालय पर एक भी दाग छोड़ा तो मैं तुम्हें मार डालूँगी! किसी को फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे जैसे विश्वासियों को यहाँ पीट-पीट कर मार दिया जाए!” शौचालय साफ करने के बाद उन्होंने मुझे जमीन पर घुटने टेकने और फर्श पर पोछा मारने को कहा और जैसे ही मैंने सामने के हिस्से पर पोछा मारा, मुख्य कैदी ने जानबूझकर अभी साफ की गई जगह को फिर से गंदा कर दिया और फिर मुझे आदेश दिया, “वापस जाओ और फिर से पोछा मारो। अगर यह साफ नहीं हुआ तो खाने के बारे में सोचना भी मत!” मेरे पास फिर से पोछा मारने के अलावा कोई चारा नहीं था। खाने के समय जैसे ही मैं भाप से पका हुआ बन लेने वाली थी, मुख्य कैदी ने उसे छीन लिया, इसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए, उसे जमीन पर फेंक दिया और टुकड़ों को लात मारते हुए कहा, “अगर तुम ठीक से अपराध कबूल नहीं करती हो तो तुम्हें लगता है कि तुम बन खाने के लायक हो? तुम सिर्फ भूख से मरने के लायक हो!” बस यही सब चलता रहा, कैदी मुझे हर दिन शौचालय साफ करने और फर्श पर पोछा मारने के लिए मजबूर करते थे और रात में वे मुझे सोने नहीं देते थे।
चौथे दिन सुबह पुलिस मुझसे फिर से पूछताछ करने आई। ठंड अपने चरम पर थी और जैसे ही मैं पूछताछ वाले कमरे में दाखिल हुई, पुलिसवालों ने मेरी सूती-पैड वाली जैकेट फाड़ दी और आक्रामक तरीके से कहा, “अगर तुम सच नहीं बोलती हो तो हम तुम्हें आज ठंड से मरने देंगे!” मैंने सिर्फ एक पतला सा स्वेटर पहना हुआ था और मेरा पूरा शरीर ठंड से काँप रहा था। पुलिसवाले मुझे घसीटकर दीवार के पास ले गए और रेडिएटर से लटका दिया, मेरे पैर की उंगलियाँ मुश्किल से जमीन को छू रही थीं। लगभग एक घंटे बाद राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड का कप्तान अंदर आया, मुझे रेडिएटर से नीचे उतारा, मेरी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बोला, “मैं कभी लोगों को नहीं मारता, मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे खुलकर सच बताओ। क्या तुम अपना इकबालिया बयान खुद लिखोगी या तुम इसे मुझे लिखवाना चाहती हो? हमने पिछले कुछ दिनों में तुम्हारी स्थिति की फिर से छानबीन की है। तुम एक अगुआ हो और अब हमारे पास यह साबित करने के लिए गवाह और सबूत हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि तुम खुद इसे कबूल करो। अगर तुम अपराध कबूल कर लेती हो तो हम तुम्हें तुरंत तुम्हारे परिवार के पास वापस भेज देंगे।” एक महिला पुलिस अधिकारी भी मेरे सामने बैठी थी, वह उनकी बातों को दोहराते हुए बोली, “हम तुम्हारे घर गए थे, तुम्हारा पति दुखी लग रहा था और तुम्हारे बच्चे माँ के लिए रो रहे थे। तुम एक माँ होने के नाते उन्हें कैसे छोड़ सकती हो? क्या तुम माँ होने के लायक हो? अब जल्दी करो और हमें बताओ कि कलीसिया में क्या चल रहा है और हम तुम्हें तुरंत तुम्हारे परिवार के पास घर भेज देंगे।” पुलिस ने जो बातें कहीं, उनसे मैं बहुत उलझन में पड़ गई, “क्या मुझे बस अपराध कबूल कर लेना चाहिए ताकि मैं घर जाकर अपने बच्चों की देखभाल कर सकूँ?” फिर मैंने यहूदा के अंत के बारे में सोचा और एहसास हुआ कि यह शैतान की साजिश है। पुलिस मुझे परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने के लिए स्नेह का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही थी। उनके तरीके वाकई घृणित थे! अपने बच्चों की देखभाल करने और एक माँ होने के नाते अपनी जिम्मेदारियाँ अच्छे से निभाने में सक्षम न होना सारी उनकी गलती थी। अपना कर्तव्य करना और परमेश्वर में विश्वास करना पूरी तरह से स्वाभाविक और न्यायसंगत है और मैंने कुछ भी गैर-कानूनी नहीं किया था, लेकिन उन्होंने मुझे बिना किसी जायज वजह के गिरफ्तार कर लिया और मुझे प्रताड़ित किया और अब वे अच्छे लोग होने का दिखावा कर रहे थे, कह रहे थे कि मैं अच्छी माँ नहीं थी क्योंकि मैं अपने बच्चों की देखभाल नहीं कर रही थी। वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे थे और काले को सफेद और सफेद को काला कह रहे थे! मेरे बच्चे मेरी दुखती रग थे, इसलिए मुझे और अधिक प्रार्थना करने और परमेश्वर पर भरोसा करने की जरूरत थी। मैं अपने स्नेह के कारण परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती थी और अंतरात्मा रहित यहूदा नहीं बन सकती थी। यह देखकर कि मैं कुछ नहीं कह रही हूँ, राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड के कप्तान ने मुझसे बहुत ही कोमल स्वर में कहा, “क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपनी आस्था के लिए पीड़ा सहना उचित है? अन्य लोगों ने हमें पहले ही परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास के बारे में बता दिया है; क्या दूसरों के लिए अपराध कबूल न करना और अभी भी दूसरों को बचाना मूर्खता नहीं है?” मैंने दृढ़ता से कहा, “उन्होंने जो भी कहा या नहीं कहा, उसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। मैं कुछ नहीं जानती और मैं किसी को भी नहीं जानती!” जैसे ही मैंने यह कहा, कप्तान ने गुस्से में मेज पर जोर का मुक्का मारा, “अगर तुम अपराध कबूल नहीं करती हो तो तुम्हें वाकई तीन साल की सश्रम पुनः शिक्षा की सजा दी जाएगी। हमने तुम्हें बदलने के लिए गिरफ्तार किया है, इसलिए गलत काम करने पर इतना जोर देना बंद करो। अब जल्दी करो और जो तुम जानती हो उसे कबूल करो! आज तुमने जो कुछ भी खाया और पिया है, वह सब कम्युनिस्ट पार्टी ने दिया था, है न?” यह सुनकर मैंने सख्ती से उसका खंडन किया, “जिस परमेश्वर में हम विश्वास करते हैं, वह अद्वितीय सच्चा परमेश्वर है, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजों का सृजन किया है। वसंत, ग्रीष्म, शरद और शीत ऋतु के चार मौसम सभी परमेश्वर द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं; तुम जो कुछ भी खाते-पीते हो, वह सब परमेश्वर द्वारा दिया जाता है, है न? मानवजाति के लिए परमेश्वर के सृजन के प्रावधान और पोषण के बिना क्या तुम अब तक जीवित रह सकते थे?” जैसे ही मैंने अपनी बात कही, उसका चेहरा गुस्से से काला पड़ गया। उसने मेरी ओर इशारा किया और दाँत पीसते हुए कहा, “मैंने आज तुमसे बहुत कुछ कहा है और तुमने एक भी शब्द नहीं सुना। तुम सच में सुधरने के लायक नहीं हो!” आखिरकार वह गुस्से में चला गया। थोड़ी देर बाद दो और पुलिस अधिकारी आए और आते ही उन्होंने मुझे फिर से रेडिएटर पर लटका दिया। एक अधिकारी ने मेरी पीठ पर बेंत से मारा और मैंने सहज रूप से बचने की कोशिश की, लेकिन हर बार बचने की कोशिश में हथकड़ी के दाँत मेरे शरीर में गड़ जाते और असहनीय दर्द होता। अधिकारी ने मुझे मारते हुए फटकारा, “क्या तुम अब भी खुद को शहीद बनाना चाहती हो? भले ही हम आज तुम्हें पीट-पीटकर मार न डालें, हम तुम्हें जेल में ही सड़ा देंगे!” फिर उसने मेरे बाल पकड़े और मेरा सिर दीवार पर पटक दिया। मैं इस झटके से स्तब्ध और विचलित हो गई और मेरे माथे पर तुरंत एक बड़ी गांठ बनने लगी और मेरी आँखें बुरी तरह सूज गईं। फिर उसने दोबारा मेरे बाल पकड़े और मुझे मुक्के मारने लगा जैसे वह रेत की बोरी पर मार रहा हो। मैं दर्द से चिल्लाई, ऐसा लगा जैसे मेरी हड्डियाँ टूट रही हों और मेरी छाती जकड़ हो गई हो, जिससे साँस लेना मुश्किल हो रहा था। वह मुझे गालियाँ देते हुए पीटता रहा और बोला, “तुम्हें परमेश्वरमय बना दिया गया है। देखते हैं कि तुम्हारा मुँह मेरे मुक्कों से ज्यादा मजबूत है या नहीं। किसी न किसी तरह, हम आज तुम्हारा मुँह खुलवा ही देंगे!” यह कहते हुए उसने मेरे सिर पर जोर से मुक्का मारा, मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया और मैं तुरंत बेहोश हो गई। मुझे नहीं पता कि मुझे होश आने में कितना समय लगा। पुलिस अधिकारी मुझ पर चिल्लाया, “अभी भी मरने का नाटक कर रही हो? अगर तुम अपराध कबूल नहीं करोगी तो मैं तुम्हें बाहर ले जाऊँगा और रखवाली करने वाले कुत्तों को खिला दूँगा!” मुझे पता था कि मेरा जीना या मरना परमेश्वर के हाथों में है। परमेश्वर की अनुमति के बिना पुलिस मेरे साथ कुछ नहीं कर सकती थी। भले ही वे मेरे शरीर को प्रताड़ित करें और मेरी जान ले लें, मेरी आत्मा परमेश्वर के हाथों में थी। इस विचार ने मेरा डर कम दिया। मैंने मन बना लिया, “भले ही मुझे पीट-पीटकर मार डाला जाए, मैं अपनी गवाही में अडिग रहूँगी। मैं कभी यहूदा नहीं बनूँगी!”
मुझे तीन दिन-तीन रात रेडिएटर से लटकाकर रखा गया था। चूँकि मैं इतने लंबे समय तक वहाँ लटकी रही थी, मेरी दोनों टाँगे और पैर सूज गए। मेरी कमर से लेकर पैरों तक का दर्द असहनीय हो गया, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मुझे नहीं पता कि मैं और कितना सहन कर पाऊँगी। मुझे चिंता है कि मैं शायद इस यातना को सहन नहीं कर पाऊँगी। परमेश्वर! मेरी जान ले लो। मैं यहूदा बनने के बजाय मरना पसंद करूँगी।” प्रार्थना करने के बाद मुझे अपने पूरे शरीर में शीतलता महसूस हुई। मेरी टाँगों और पैरों में संवेदना खत्म हो गई और मुझे अब कोई दर्द महसूस नहीं हुआ। मैंने परमेश्वर के चमत्कारी कर्म देखे, क्योंकि उसने मेरा दर्द दूर कर दिया और मैं अपने दिल में परमेश्वर को धन्यवाद देती रही। अगली सुबह जब पुलिसवालों ने देखा कि मैं अभी भी कुछ नहीं बोल रही हूँ तो वे मुझ पर चिल्लाए, “तुम्हें लगता है कि तुम और कितना सहन कर पाओगी? अपना चेहरा देखो—यह इतना सूज गया है और तुम इंसान भी नहीं लग रही हो! कलीसिया को धोखा देने से बचने के लिए तुम यह सब सहन कर रही हो, अपने पति और बच्चों को छोड़ रही हो। क्या तुम्हें वाकई लगता है कि यह सब सार्थक है?” उसने आगे कहा, “अगर तुम्हें अपनी जिंदगी की परवाह नहीं है तो अलग बात है। लेकिन अपने बच्चों और पति के बारे में सोचो; वे तुम्हारे घर आने का इंतजार कर रहे हैं। बस ईमानदारी से अपराध कबूल कर लो और तुम्हें और दर्द नहीं सहना पड़ेगा।” यह बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने सोचा, “यह तुम ही हो जो मुझे परमेश्वर में विश्वास करने से रोक रहे हो, मुझे गिरफ्तार कर रहे हो, मेरा परिवार तोड़ रहे हो और मेरे लिए घर वापस लौटना असंभव बना रहे हो। तुम मुझे पीड़ा देने के लिए यातना दे रहे हो और फिर तुम मुझ पर अपनी आस्था की खातिर अपने बच्चों और पति को छोड़ने का आरोप लगा रहे हो। यह सच्चाई से पूरी तरह से उलट है! जैसे कोई चोर चिल्ला रहा हो ‘चोर रुको!’” मुझे याद आया कि परमेश्वर ने क्या कहा था : “हजारों सालों से यह मलिनता की भूमि रही है। यह असहनीय रूप से गंदी और असीम दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए, निर्दयी और क्रूर बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध जमीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर जबर्दस्त पहरेदारी है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? ... प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुआ? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अँधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब बुराई को छिपाने की चालें हैं!” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। कम्युनिस्ट पार्टी विश्वास की स्वतंत्रता बनाए रखने का दावा करती है, लेकिन आंतरिक रूप से यह निर्दयता के साथ ईसाइयों को दबाती है, गिरफ्तार करती है और सताती है, जिसका उद्देश्य परमेश्वर का कार्य नष्ट करना, लोगों को परमेश्वर पर विश्वास न करने या उसकी आराधना न करने देना और सभी को उसका पालन करने के लिए नियंत्रित करना और आखिकार उसके साथ नष्ट हो जाना है। कम्युनिस्ट पार्टी की क्रूरता और यातना का अनुभव करने के बाद मैंने इसका असली दुष्ट सार देखा। यह एक राक्षस है जो परमेश्वर का विरोध करती है और लोगों को नुकसान पहुँचाती है और मेरे मन में इसके लिए गहरी नफरत पैदा हो गई। मैंने बड़े लाल अजगर के खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह करने और उसे अस्वीकारने का संकल्प लिया। इस विचार से मैं अपनी कलाई का दर्द भूल गई और बेताबी से घुटने टेकना चाहती थी और परमेश्वर से अपने दिल की बात कहना चाहती थी। उस पल मेरा शरीर अचानक फिसल गया और चमत्कारिक रूप से हथकड़ी खुल गई। मैं जमीन पर घुटनों के बल बैठ गई, रोते हुए मन ही मन प्रार्थना करने लगी, “हे परमेश्वर! मैंने तुम्हारे अद्भुत कर्म देखे हैं। भले ही मेरी देह कमजोर है, फिर भी तुम हमेशा मेरे साथ रहे हो, मेरी देखभाल और रक्षा करते रहे हो, तुम्हारा प्रेम बहुत वास्तविक है!” राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड का कप्तान यह देखकर दंग रह गया। मेरी प्रार्थना पूरी होने के बाद जैसे ही दो पुलिस अधिकारी मुझे फिर से हथकड़ी पहनाने के लिए आगे आने लगे, कप्तान घबरा कर चिल्लाया, “हिलना मत, पीछे हट जाओ!” दोनों पुलिस अधिकारी इतने डर गए कि वे हिलने की हिम्मत नहीं कर पाए। फिर कप्तान ने आदेश दिया, “वह प्रार्थना कर रही है और हमें कोस रही है; जल्दी से पीछे हट जाओ!” दोनों अधिकारी थोड़ा पीछे हटकर खड़े हो गए, हिलने की हिम्मत नहीं कर सके और मुझे घूरते रहे। लगभग आधे घंटे तक कमरा शांत रहा। बाद में एक अधिकारी ने हथकड़ी उठाई और पूछा, “वे कैसे खुलीं? क्या वह जिस परमेश्वर में विश्वास करती है, वाकई उसका अस्तित्व है? ये हथकड़ियाँ टूटी नहीं हैं! मुझे विश्वास नहीं होता। चलो उसे एक और हथकड़ी पहनाते हैं और उसे लटका देते हैं!” यह कहते हुए उन्होंने मुझे फिर से हथकड़ी पहनाई और मुझे लटका दिया। फिर दोनों अधिकारियों ने मेरे शरीर को रस्सी के झूले की तरह घुमाया और हर झटके के साथ हथकड़ी मेरे शरीर में धंसती चली गई। मेरे हाथ ऐसे लग रहे थे जैसे वे चुभन भरे दर्द से फट रहे हों और मैं न चाहते हुए भी चिल्लाने लगी। अधिकारी खड़े होकर मुस्कुराए और बोले, “तुम अभी भी रो रही हो? क्या तुम्हारा परमेश्वर चमत्कार नहीं करता? तुम्हें अभी भी दर्द हो रहा है? हम आज तुम्हारी बाँहें तोड़ देंगे!” यह देखकर कि इन शैतानों को लोगों को पीड़ा देने में कितना मजा आता है, मैंने रोना बंद कर दिया और मन बना लिया, “भले ही वे मुझे मौत के घाट उतार दें, मुझे अपनी गवाही पर अडिग रहना होगा!” अंत में पुलिसवालों ने देखा कि उन्हें मुझसे कोई सबूत नहीं मिलने वाला है तो उदास होकर बोले, “हमने उससे तीन दिन-तीन रात पूछताछ की है, लेकिन कुछ नहीं मिला। चूँकि वह पहले ही अधमरी हो चुकी है तो आओ उसे तीन साल की सश्रम पुन : शिक्षा दें!” फिर पुलिस मुझे वापस हिरासत केंद्र ले गई।
पीछे कोठरी में कैदी मुझे इस तरह से पिटते हुए देखकर हैरान रह गए और वे अविश्वास में आपस में बातें करने लगे, “वे किसी को इस तरह से कैसे पीट सकते हैं? हम हत्यारों और नशेड़ियों को इस तरह की पिटाई का सामना करना ही पड़ता है, लेकिन वह बस एक विश्वासी है, उसने कोई गैर-कानूनी काम नहीं किया है और उसे इस तरह से पीटा जा रहा है। यह दुनिया कितनी भयानक जगह है!” एक कैदी ने मुझसे कहा, “तुम्हारे पास परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए काफी हिम्मत है। तुम्हारी कथनी और करनी से यह साफ है कि तुम अच्छी इंसान हो। मैंने लोगों को मारा है, इसलिए मुझे इस जीवन में परमेश्वर में विश्वास रखने का मौका कभी नहीं मिलेगा, लेकिन अगले जीवन में मैं भी परमेश्वर में विश्वास रखूँगी और अच्छी इंसान बनूँगी।” कैदियों को ये बातें कहते हुए सुनकर मुझे पता चला कि यह मेरी अपनी अच्छाई नहीं थी, बल्कि परमेश्वर के वचनों का प्रभाव था, जो मुझे मार्गदर्शन दे रहे थे।
पुलिस मुझसे पूछताछ करके कुछ हासिल नहीं कर सकी और आखिरकार मुझे तीन साल की सश्रम पुनः शिक्षा की सजा दी गई। जब मुझे पता चला कि मुझे तीन और साल जेल में बिताने होंगे तो मैं बहुत कमजोर पड़ने लगी, नहीं जानती थी कि यह सब कब खत्म होगा, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए मार्गदर्शन देने को कहा। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया “जिनके पास सच्चा विश्वास होता है उन्हीं को परमेश्वर की स्वीकृति मिलती है” : “जब मूसा ने चट्टान पर प्रहार किया, और यहोवा द्वारा प्रदान किया गया पानी उसमें से बहने लगा, तो यह उसकी आस्था के कारण ही था। जब दाऊद ने—आनंद से भरे अपने हृदय के साथ—यहोवा की स्तुति में वीणा बजाई, तो यह उसकी आस्था के कारण ही था। जब अय्यूब ने पहाड़ों में भरे अपने पशु और संपदा के अनगिनत ढेर खो दिए, और उसका शरीर पीड़ादायक फोड़ों से भर गया, तो यह उसकी आस्था के कारण ही था। जब वह यहोवा की वाणी सुन सका, और उसकी महिमा देख सका, तो यह उसकी आस्था के कारण ही था” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (1))। मैंने अय्यूब, दाऊद और मूसा के बारे में सोचा, जिन्होंने अपनी आस्था के कारण परमेश्वर के अद्भुत कर्म देखे थे। आज मैं परमेश्वर में अपनी आस्था के कारण इन कठिनाइयों को झेल रही थी। इसकी अनुमति परमेश्वर ने दी थी, मैं इसे स्वीकारने और इसका अनुभव करने के लिए तैयार थी।
जून 2003 में पुलिस ने मुझे श्रम शिविर में स्थानांतरित कर दिया। श्रम शिविर में अपने समय के दौरान मैं हर सुबह 5 बजे उठती थी, दिन में सत्रह से अठारह घंटे काम करती थी और अक्सर मुझे रात दो-तीन बजे तक ओवरटाइम काम करना पड़ता था। अगर मैं काम ठीक से नहीं करती तो मुझे खड़ी रहने की सजा दी जाती, मेरी सजा बढ़ा दी जाती और काम पूरा होने तक मुझे आराम नहीं करने दिया जाता था। हर रात सोने से पहले मुझे शिविर के नियमों को याद करना पड़ता था और अगर मैं उन्हें याद नहीं कर पाती थी तो मुझे सोने नहीं दिया जाता था। लंबे समय तक की अत्यधिक शारीरिक मेहनत और मानसिक तनाव के कारण मेरा सिर हर दिन चकराता था और मेरे उच्च रक्तचाप, मेरे दिल में लगातार दर्द, चौंकने पर घबराहट और हर्नियेटेड डिस्क के कारण मैं बेहद तकलीफ में थी, लेकिन पुलिस ने मुझे सिर्फ कुछ दवा दी और फिर मुझे काम पर लगा दिया। श्रम शिविर में हम गुलामों की तरह थे, पूरी तरह से उनकी दया पर थे, हमारे पास कोई मानवाधिकार या स्वतंत्रता नहीं थी। मुझे सिर्फ एक ही बात से तसल्ली मिली कि श्रम शिविर में दस से अधिक बहनें थीं जो परमेश्वर में विश्वास रखती थीं और हम अक्सर एक-दूसरे को प्रोत्साहित करने के लिए परमेश्वर के वचनों और गीतों को साझा करने के लिए चुपके से नोट भेजती थीं। एक बहन ने मुझे चुपके से एक पत्र दिया और जब मैंने भाई-बहनों का पत्र और परमेश्वर के हाथ से लिखे गए वचन देखे, मुझे वाकई बहुत अच्छा लगा और मैं भावुक हो गई। मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : “पतरस उसकी आस्था के कारण ही यीशु मसीह का अनुसरण कर सका था। वह जो मेरे वास्ते सलीब पर चढ़ाया जा सका और महिमामयी गवाही दे सका, तो यह भी उसकी आस्था के कारण ही था। जब यूहन्ना ने मनुष्य के पुत्र की महिमामयी छवि देखी, तो यह उसकी आस्था के कारण ही था। जब उसने अंत के दिनों का दर्शन देखा, तो यह सब और भी ज्यादा उसकी आस्था के कारण था” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (1))। मैं इतनी भावुक हो गई कि मैं खुद को रोने से रोक नहीं पाई। परमेश्वर मेरी कमजोरी जानता था और उससे भी ज्यादा मेरी आत्मा की जरूरतों को जानता था। उसने बहन से मुझे प्रोत्साहन और मदद का पत्र भेजने की व्यवस्था की थी और वह अपने वचनों से मेरा मार्गदर्शन और अगुवाई कर रहा था, मुझे आस्था और शक्ति दे रहा था। मैंने महसूस किया कि परमेश्वर का प्रेम कितना असीम है और तकलीफ पहले जितनी बुरी नहीं लगी।
सितंबर 2005 में मुझे रिहा कर दिया गया और मैं घर चली गई। यातना के कारण मुझे गंभीर हृदय रोग और उच्च रक्तचाप हो गया और बरसात के दिनों में मेरे हाथों, कमर और पैरों में बहुत तेज दर्द होता था और लंबे समय तक हथकड़ी में बंधे रहने के कारण मेरी कलाई अभी भी भारी वस्तुओं को नहीं उठा पाती थी। भले ही मेरी सजा के बाद मुझे जेल से रिहा कर दिया गया था, लेकिन पुलिस ने मेरा पीछा करने और निगरानी करने के लिए लोगों को भेजना जारी रखा और उन्होंने मेरे रिश्तेदारों और पड़ोसियों को हर समय मेरी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कहा। समय-समय पर वे मेरे घर लोगों को यह पूछने के लिए भेजते थे कि क्या मैं अभी भी परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ और अगर मैं घर पर नहीं होती तो वे पूछते कि मैं कहाँ गई थी। मैं अपने कर्तव्य सामान्य रूप से नहीं कर पाती थी या सभाओं में भाग नहीं ले पाती थी, जिससे मुझे बहुत तनाव होता था। कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा व्यक्तिगत रूप से गिरफ्तार किए और सताए जाने के बाद मैंने कम्युनिस्ट पार्टी का घिनौनापन और क्रूरता देखी और परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उससे घृणा करने के उसके शैतानी सार को साफ तौर पर पहचाना। मैं अपने दिल की गहराई से उससे घृणा करती हूँ और उसे अस्वीकारती हूँ और साथ ही मैं शैतान की साजिशें समझने के लिए कदम दर कदम मेरा मार्गदर्शन करने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ, जिसने मेरी आस्था को मजबूत किया और मुझे राक्षसों द्वारा पहुँचाए जाने वाले नुकसान से उबरने और दानवों की माँद से जीवित बाहर निकलने में सक्षम बनाया। मैंने वाकई परमेश्वर के प्रेम और उद्धार का स्वाद चखा है और मैं अपने कर्तव्य अच्छी तरह से करने और परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने को दृढ़ संकल्पित हूँ।