14. उत्पीड़न और क्लेश के दौरान एक विकल्प

तियान शिन, चीन

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन दिखने में भले ही सीधे-सादे या गहन हों, लेकिन वे सभी सत्य हैं, और मनुष्य के जीवन प्रवेश के लिए अपरिहार्य हैं; वे जीवन-जल के ऐसे झरने हैं, जो मनुष्य को आत्मा और देह दोनों से जीवित रहने में सक्षम बनाते हैं। वे मनुष्‍य को जीवित रहने के लिए जरूरी चीजें मुहैया कराते हैं : उसके दैनिक जीवन के सिद्धांत और मत; उद्धार पाने का अनिवार्य मार्ग और साथ ही उस मार्ग के लक्ष्य और दिशा; हर वह सत्य जो उसमें परमेश्वर के समक्ष एक सृजित प्राणी के रूप में होना चाहिए; और हर वह सत्य जो यह बताए कि परमेश्वर के प्रति समर्पण कर उसकी आराधना कैसे की जाए। वे मनुष्य का अस्तित्व सुनिश्चित करने वाली गारंटी हैं, वे मनुष्य का दैनिक आहार हैं, और ऐसा मजबूत सहारा भी हैं, जो मनुष्य को सशक्त और अटल रहने में सक्षम बनाते हैं(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, प्रस्तावना)। पहले जब मैं परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ती थी, तो मुझे इसकी व्यावहारिक समझ नहीं थी या मैं परमेश्वर के वचनों का अर्थ सच्चे ढंग से नहीं समझती थी। बाद में जब कलीसिया को बड़े पैमाने पर दमन झेलना पड़ा, तो मैं कायरता और भय में जीने लगी और मुझमें अपना कर्तव्य निभाने का साहस नहीं था और ये परमेश्वर के वचन ही थे जिन्होंने मुझे आस्था दी और नकारात्मकता और कमजोरी से उबरने में मेरी मदद की। मुझे अब शैतान की बुरी ताकतों से डर नहीं लगता था और परमेश्वर पर भरोसा करके मैंने बाद का कार्य अच्छी तरह सँभाल लिया। इस अनुभव के माध्यम से मुझे परमेश्वर के अधिकार की कुछ व्यावहारिक समझ मिली।

यह अगस्त 2019 की शुरुआत थी। सामान्य मामलों के उपयाजक का पीछा किया जा रहा था और वह अपना कर्तव्य निभाना जारी नहीं रख पाया, इसलिए जिला अगुआओं ने मुझे सामान्य मामलों का काम सँभालने को कहा। 19 तारीख को मैंने देखा कि जिला अगुआओं ने दो दिन तक कलीसियाओं से संपर्क नहीं किया है और पिछले कुछ दिनों में मैंने लगातार सुना कि दस से अधिक भाई-बहन गिरफ्तार किए जा चुके हैं। ये लोग गिरफ्तारी से पहले जिला अगुआओं के साथ लगातार संपर्क में थे। यह सोचकर कि कैसे पुलिस अक्सर समन्वित कार्रवाई करने से पहले विश्वासियों का विवरण जानने के लिए लंबे समय तक उनका पीछा करती है और उन पर नजर रखती है, मुझे आशंका हुई और मैंने सोचा, “कहीं जिला अगुआ भी गिरफ्तार तो नहीं कर लिए गए हैं?” मैं जल्दी से बहन युआन लिंग के घर गई। जैसे ही मैंने उसे देखा, उसने व्याकुलता से कहा, “कुछ हुआ है! तीन जिला अगुआओं और सामान्य मामलों के कर्मी गिरफ्तार किए गए हैं।” मेरा दिल बैठ गया, “वाकई ऐसा हो गया है! वे बहुत से लोगों और उनके घरों को जानते हैं। हमें तुरंत भाई-बहनों को छिपने और जगह बदलने के लिए कहना चाहिए।” उन्हें सूचित करने के बाद चलकर घर जाते हुए मुझे घबराहट और डर महसूस हुआ, मैंने सोचा, “इस बार इतने सारे भाई-बहनों को एक के बाद एक गिरफ्तार किया गया है, पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने से पहले लंबे समय तक उन पर नजर रखी होगी। इस घटना से पहले मैं हर दिन जिले के अगुआओं से मिल रही थी। हर जगह निगरानी कैमरे लगे हैं और मैं हमेशा भागती-दौड़ती रहती हूँ, इसलिए बहुत संभावना है कि पुलिस मेरी भी निगरानी कर रही हो। शायद अगली गिरफ्तारी मेरी ही हो।” मैंने उन भाई-बहनों के बारे में सोचा जिन्हें गिरफ्त्तारी के बाद यातनाएँ दी गईं थीं, जिनमें से कुछ तो बड़े लाल अजगर के पंजे में फँसकर बुरी तरह मारे गए और जितना मैंने इस बारे में सोचा, उतनी ही मैं डर गई, मैंने सोचा, “अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस ने मुझे भाई-बहनों से गद्दारी करने को मजबूर किया तो क्या होगा? अगर मैं यातनाएँ न झेल पाई और यहूदा बन गई तो क्या होगा? क्या वह मेरी आस्था की यात्रा का अंत नहीं होगा? नहीं, मुझे अपना कर्तव्य करना बंद कर देना चाहिए और कुछ समय के लिए छिप जाना चाहिए।” यह सोचकर मुझे अपराध-बोध महसूस हुआ। अब जबकि जिला अगुआओं और सामान्य मामलों के कर्मियों को गिरफ्तार कर लिया गया था, कई कलीसियाओं का संपर्क टूट गया था, भाई-बहन परमेश्वर के नवीनतम वचन खाने या पीने में सक्षम नहीं थे और जोखिम में पड़े भाई-बहनों को तुरंत स्थानांतरित करने की आवश्यकता थी। मैं अब नहीं रुक सकती थी। लेकिन जब मैंने सोचा कि हो सकता है कि मुझ पर भी निगरानी चल रही हो, तो मुझे उलझन महसूस हुई। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं इस स्थिति में खुद को कायर महसूस कर रही हूँ, लेकिन मुझे पता है कि मैं पीछे नहीं हट सकती। मेरे दिल का डर दूर करने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में सोचा : “ब्रह्मांड में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो? जो कुछ मैं कहता हूँ, वह किया जाता है, और मनुष्यों के बीच कौन है, जो मेरे मन को बदल सकता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। पहले मैं अक्सर भाई-बहनों के साथ संगति करती थी और कहती थी कि परमेश्वर सब चीजों पर संप्रभु है और चाहे कुछ भी हो जाए, हमें परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। लेकिन अब जब खतरा मुझ पर आ गया था, तो मैं डर गई और पीछे हटना चाहती थी। मुझे एहसास हुआ कि मैंने पहले जो कुछ भी कहा था, वह शब्द और धर्म-सिद्धांतों के अलावा कुछ नहीं था। किस तरह से मेरे पास वास्तविक आस्था थी? परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। सब कुछ परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन है और परमेश्वर ही सभी चीजों में अंतिम निर्णय लेता है। भले ही मैं अगुआओं के साथ दैनिक संपर्क में थी, लेकिन मुझे गिरफ्तार किया जाएगा या नहीं, यह पुलिस पर निर्भर नहीं था। अगर मुझे गिरफ्तार भी किया गया, तो यह केवल परमेश्वर की अनुमति से होगा। मन में यह बात आने पर मैं अब उतनी कायर और भयभीत महसूस नहीं कर रही थी।

उसके बाद मैंने और मेरी सहयोगी बहन ने परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें स्थानांतरित करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा किया। इस दौरान हम हमेशा सतर्क रहते थे और एक-दूसरे को लगातार याद दिलाते रहते थे। हम हर दिन कपड़े और हेयरस्टाइल बदलते थे और बाहर जाते समय निगरानी कैमरों से बचने की पूरी कोशिश करते थे। बाद तक मुझे भाई-बहनों की गिरफ्तारी की खबरें मिलती रहीं और मैं वाकई बहुत तनावग्रस्त और डरा हुआ महसूस कर रही थी, जैसे कोई जगह सुरक्षित न हो। दो दिन बाद काम के लिए जिम्मेदार बहन सोंग यांग ने मुझसे मिलने का इंतजाम किया। उसने कहा कि उसे सामान्य रूप से अपने कर्तव्य करते रहने के लिए तत्काल एक सुरक्षित घर चाहिए। मैं यह सोचकर बहुत व्याकुल हो गई कि “अब जब जिला अगुआ गिरफ्तार कर लिए गए हैं तो बहुत से भाई-बहनों को स्थानांतरित करने की जरूरत है। मैं इतने सारे सुरक्षित घर कहाँ से लाऊँ?” मैंने यह भी सोचा कि कैसे हर जगह निगरानी कैमरे लगे हैं और कैसे अधिक से अधिक भाई-बहनों को गिरफ्तार किया जा रहा है। मुझे नहीं पता था कि पुलिस गुप्त रूप से कहाँ निगरानी कर रही होगी। अगर मैं लोगों और घरों की तलाश में बाहर निकलती रही तो मुझे निशाना बनाकर किसी भी समय गिरफ्त्तार किया जा सकता था। यह सब सोचकर मैं बहुत उलझन में थी, इसलिए मैंने अपनी चिंताएँ सोंग यांग के साथ साझा कीं। मैंने और सोंग यांग ने परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिलकर पढ़ा : “यह पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है कि मनुष्यों को परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले सभी आदेश पूरे करने चाहिए। यह मनुष्य का सर्वोच्च दायित्व है, और उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उनका जीवन है। यदि तुम परमेश्वर के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम उसके साथ सबसे कष्टदायक तरीके से विश्वासघात कर रहे हो। इसमें, तुम यहूदा से भी अधिक शोचनीय हो और तुम्हें शाप दिया जाना चाहिए। परमेश्वर के सौंपे हुए कार्य को कैसे लिया जाए, लोगों को इसकी पूरी समझ हासिल करनी चाहिए, और उन्हें कम से कम यह समझना चाहिए कि वह मानवजाति को जो आदेश देता है, वे परमेश्वर से मिले उत्कर्ष और विशेष कृपाएँ हैं, और वे सबसे शानदार चीजें हैं। अन्य सब-कुछ छोड़ा जा सकता है। यहाँ तक कि अगर किसी को अपना जीवन भी बलिदान करना पड़े, तो भी उसे परमेश्वर का आदेश पूरा करना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं बहुत भावुक हो गई। जब कलीसियाएँ इतनी खतरनाक स्थिति से जूझ रही हों और सभी जिला अगुआ गिरफ्तार कर लिए गए हों तो कलीसियाओं की स्थिति को मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता था। अगर मैं इस महत्वपूर्ण क्षण में भगोड़ी बन गई, भाई-बहनों की सुरक्षा के बारे में नहीं सोचती हूँ और बाद के कार्य जल्दी से सँभालने में विफल रहती हूँ तो यह परमेश्वर के साथ गंभीर विश्वासघात होगा! भाई-बहनों की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना मेरी जिम्मेदारी थी कि कलीसिया के कार्य में बाधा न आए। लेकिन सीसीपी की गिरफ्तारियों से सामना होने पर कलीसिया के कार्य की सुरक्षा करने के बजाय मुझे अपनी गिरफ्तारी की चिंता ज्यादा थी। इस महत्वपूर्ण क्षण में मैं कछुए की तरह अपने खोल में सिमट जाना चाहती थी। मैं इतनी स्वार्थी और नीच थी! मुझे अपने घृणित इरादों के खिलाफ विद्रोह करके जल्दी से बाद के कार्य को सँभाल लेना चाहिए। इसके तुरंत बाद मेरी सहयोगी बहन लियू ना और मैंने सहयोग के लिए परमेश्वर पर भरोसा किया। अगली शाम तक हमने सोंग यांग और अन्य लोगों को एक सुरक्षित घर में पहुँचा दिया था और मैंने काफी अधिक सहज महसूस किया।

कुछ दिन बाद जिस कलीसिया से वांग जुआन नामक जिला अगुआ गिरफ्तार हुआ था, उसने एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया था कि वांग जुआन की माँ को पुलिस से पता चला है कि वे लंबे समय से वांग जुआन पर नजर रखे थी और उसे उन सभी घरों का पता था जिनमें वांग जुआन गया था। पुलिस ने यह भी कहा कि वह गिरफ्तार किए गए विश्वासियों को आसानी से नहीं छोड़ेगी और अगर उन्होंने अपना अपराध स्वीकार न किया तो उन्हें सजा दी जाएगी। मेरा दिल बैठ गया और मैंने सोचा, “ये सभी भाई-बहन एक के बाद एक गिरफ्तार हो रहे हैं, शायद इसलिए क्योंकि पुलिस वांग जुआन पर नजर रखे थी। जब से मैंने सामान्य मामले सँभालने का अपना कर्तव्य निभाना शुरू किया है, मैं काम पर चर्चा करने के लिए रोज उससे मिलती थी। उसके गिरफ्तार होने से एक दिन पहले हम एक चौराहे पर अलग हुए थे। हो सकता है कि मैं पहले से ही मुख्य निशाने पर हूँ और पुलिस मेरा पीछा कर रही हो और मुझे किसी भी समय गिरफ्तार कर लिया जाए। अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस मुझे भाई-बहनों से गद्दारी करने को मजबूर करे तो क्या होगा? सीसीपी की जेलें धरती पर नरक जैसी हैं और बड़ा लाल अजगर बहुत ही भयावह और दुर्भावनापूर्ण है। अगर मैं चुप रही तो भले ही मुझे पीट-पीटकर न मार दिया जाए, फिर भी मैं अपंग तो हो ही जाऊँगी ...” मैं इस बारे में और नहीं सोच पाई और मेरे अंदर एक अकल्पनीय भय की लहर उमड़ने लगी। क्या मुझे कुछ समय के लिए ठहर जाना चाहिए और अस्थायी तौर पर छिप जाना चाहिए और फिलहाल दूसरी बहनों को कार्य भार ले लेने देना चाहिए? लेकिन फिर मैंने सोचा कि कैसे दूसरी बहनें कलीसियाओं के हालात से परिचित नहीं हैं और मुझे पता था कि अगर मैंने काम करना बंद कर दिया, तो कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदें सामान्य रूप से आगे नहीं बढ़ेंगी और इससे काम में देरी होगी। लेकिन मुझे चिंता थी कि अगर मैं रुकी नहीं तो मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। मैं डर और घबराहट की दशा में जी रही थी। तब से अपने कर्तव्य निभाने जाते समय मैं अनजाने ही पीछे नजर डालती चलती थी, अपने आस-पास जायजा लेती थी और सड़क के किनारे लगे सभी निगरानी कैमरे देखकर व्याकुल हो जाती थी। कभी-कभी जब मैं घर पर परमेश्वर के वचन पढ़ रही होती और आँगन में कुत्तों को बार-बार भौंकते हुए सुनती, तो मेरा दिल धड़कने लगता था और मैं सोचती, “कहीं पुलिस तो नहीं आ गई?” और मैं जल्दी से परमेश्वर के वचनों की किताबें छिपा देती। कुछ दिन बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरी दशा में कुछ गड़बड़ है, इसलिए मैंने जल्दी से घुटनों के बल बैठकर परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर से कहा कि वह यह दशा बदलने के लिए मेरा मार्गदर्शन करे।

बाद में मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए : “शैतान चाहे जितना भी ‘ताकतवर’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और साजिशें जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानवजाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आया कि सभी घटनाएँ और सभी चीजें परमेश्वर के नियंत्रण में हैं और चाहे बड़ा लाल अजगर कितना भी उग्र और क्रूर क्यों न हो, वह परमेश्वर द्वारा निर्धारित सीमाओं को परमेश्वर की अनुमति के बिना नहीं लांघ सकता। मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में है और परमेश्वर की अनुमति के बिना पुलिस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। ठीक वैसे ही जैसे जब परमेश्वर ने शैतान को अय्यूब की परीक्षा लेने दी तो हालाँकि शैतान ने अय्यूब के शरीर को पीड़ा दी, परमेश्वर ने शैतान को अय्यूब का जीवन नहीं लेने दिया, इसलिए शैतान उस सीमा से आगे जाने की हिम्मत नहीं कर पाया। अय्यूब के परीक्षणों के जरिए उसकी आस्था पूर्ण की गई। अब बड़े लाल अजगर द्वारा ईसाइयों के उन्मत्त उत्पीड़न और गिरफ्तारी को भी परमेश्वर की ओर से अनुमति है। जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, उनकी आस्था इस परिवेश का अनुभव करके पूर्ण हुई है और उन्होंने परमेश्वर के लिए गवाही दी है। जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, वे डर और कायरता के कारण पीछे हट गए हैं और बेनकाब कर हटा दिए गए हैं। परमेश्वर बड़े लाल अजगर को सेवा के उपकरण के रूप में उपयोग करता है ताकि यह खुलासा हो सके कि कलीसिया में कौन सचमुच विश्वास करता है और कौन नहीं। अनजाने में लोगों को उनकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया गया है। मुझे खयाल आया कि जैसे ही मैंने सुना कि वांग जुआन पर लंबे समय से नजर रखी जा रही है, मैं डरपोक और भयभीत हो गई थी और अपनी सुरक्षा के लिए जल्दी से छिप जाना चाहती थी। मुझे एहसास हुआ कि मुझमें नाममात्र की आस्था थी और मैं वास्तव में परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं समझती थी। असल में अगर मैं हर दिन वांग जुआन से मिलती, तो भी परमेश्वर की अनुमति के बिना पुलिस मुझे गिरफ्तार नहीं कर पाती, लेकिन अगर परमेश्वर मुझे गिरफ्तार होने देता तो मुझे इससे कोई नहीं बचा सकता था। मैंने यह भी सोचा कि कितने भाई-बहनों को गिरफ्तार करके प्रताड़ित किया गया था। हालाँकि उन्हें पुलिस की धमकियों और पिटाई के चलते निराशा और कमजोरी महसूस हुई, लेकिन प्रार्थना करके और परमेश्वर और परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन पर भरोसा करके उन्होंने बड़े लाल अजगर के साथ समझौता नहीं किया और अंततः अपनी गवाही में अडिग रहे। उन्होंने सचमुच परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता और चमत्कारी सुरक्षा का अनुभव किया। उन्होंने शैतान के बुरे और बदसूरत चेहरे को भी स्पष्ट रूप से देखा। ये मूल्यवान लाभ थे। मैंने देखा कि परमेश्वर हर चीज पर संप्रभु है और चाहे बड़ा लाल अजगर कितना भी उग्र क्यों न हो, वह केवल एक औजार है जो परमेश्वर के कार्य में सेवा प्रदान करता है। परमेश्वर इसका उपयोग हमारी आस्था और समर्पण को पूर्ण करने के लिए करता है। यह सोचते हुए मैंने अपना मन बना लिया, “यदि परमेश्वर मुझे गिरफ्तार होने देता है, तो मैं उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के लिए समर्पित रहने और अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए तैयार रहूँगी।”

इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा और मुझे परमेश्वर के इरादों के बारे में और अधिक समझ मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर उन लोगों को पूर्ण बनाता है जो उससे सचमुच प्रेम करते हैं, और उन सबको भी जो विभिन्न किस्म के परिवेशों में सत्य का अनुसरण करते हैं। वह लोगों को इस लायक बनाता है कि वे विभिन्न परिवेशों या परीक्षणों के जरिये उसके वचनों का अनुभव कर सकें, इससे सत्य की समझ और परमेश्वर का सच्चा ज्ञान हासिल कर सकें, और अंततः सत्य हासिल कर सकें। अगर तुम परमेश्वर के कार्य का अनुभव इस ढंग से कर लो तो तुम्हारा जीवन स्वभाव बदल जाएगा, और तुम सत्य और जीवन हासिल कर लोगे। इन वर्षों के अनुभव से तुम लोग कितना हासिल कर चुके हो? (बहुत ज्यादा।) तो क्या अपना कर्तव्य निभाते हुए थोड़ा-सा कष्ट सहना और थोड़ी-सी कीमत चुकाना सार्थक नहीं है? तुम्हें बदले में क्या हासिल हुआ है? तुम बहुत सारा सत्य समझ चुके हो। यह अनमोल खजाना है! परमेश्वर पर विश्वास करके लोग क्या पाना चाहते हैं? क्या इसका उद्देश्य सत्य और जीवन हासिल करना नहीं है? क्या तुम्हें लगता है कि इन परिवेशों का अनुभव किए बिना तुम सत्य हासिल कर लोगे? बिल्कुल भी नहीं कर सकते। अगर कभी तुम्हारे सामने कुछ खास मुसीबतें आती हैं या तुम कुछ खास परिवेशों का सामना करते हो, तब तुम्हारा रवैया हमेशा उनसे बचने या भागने, उन्हें नकारने और उनसे पिंड छुड़ाने का रहता है—अगर तुम खुद को परमेश्वर के आयोजनों के रहमो-करम पर नहीं छोड़ते, उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण के लिए अनिच्छुक रहते हो और सत्य से नियंत्रित होना नहीं चाहते हो—अगर तुम हमेशा खुद फैसले करना चाहते हो और खुद से जुड़ी हर चीज को अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार नियंत्रित करना चाहते हो तो इसके परिणाम यह होंगे कि परमेश्वर तुम्हें यकीनन दरकिनार कर देगा या शैतान को सौंप देगा और यह होन बस समय की बात है। अगर लोग यह बात समझ जाएँ तो उन्हें तुरंत पीछे मुड़ जाना चाहिए और परमेश्वर की अपेक्षा वाले सही मार्ग के अनुसार अपने जीवन की राह पर चलना चाहिए—यही रास्ता सही है और जब रास्ता सही होता है तो इसका मतलब है कि दिशा भी सही है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे एहसास दिलाया कि लोगों को पूर्ण बनाने और प्राप्त करने के लिए परमेश्वर लोगों की परीक्षा लेने को विभिन्न उत्पीड़न, क्लेश, परीक्षण और शोधनों की व्यवस्था करेगा। जो लोग सचमुच परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, वे उसके इरादों पर विचार कर सकते हैं और भले ही चीजें कितनी भी खतरनाक क्यों न हों, वे उन्हें अनुभव करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं, जिससे कलीसिया के कार्य की सुचारु प्रगति सुनिश्चित होती है। लेकिन हालात के खतरे देखते हुए मुझे गिरफ्तार होने का, यातनाएँ झेलने का और अपनी जान गँवाने का डर था, या यह डर था कि कहीं मैं अपनी गवाही में अडिग रहने में विफल न हो जाऊँ, परमेश्वर के घर के हितों से विश्वासघात न कर बैठूँ और इस तरह उद्धार का मौका न गँवा बैठूँ, इसलिए मैं कलीसिया के हितों पर विचार किए बिना छिप जाना चाहती थी और अपना कर्तव्य करना बंद कर देना चाहती थी। मैं सचमुच स्वार्थी और नीच थी, मुझमें कोई अंतरात्मा और विवेक नहीं था! मैंने वर्तमान स्थिति के बारे में सोचा। सीसीपी की गिरफ्तारियों के कारण भाई-बहनों का संपर्क टूट गया था और वे कलीसियाई जीवन नहीं जी पा रहे थे और कलीसिया के कार्य की कई मदें ठप हो गई थीं। परमेश्वर का दिल कितना दुखी और व्याकुल रहा होगा! ऐसे महत्वपूर्ण समय में किसी को खड़ा होना चाहिए और यह जिम्मेदारी उठानी चाहिए ताकि कलीसिया का कार्य सामान्य रूप से आगे बढ़ पाए। लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए मैं कलीसिया के कार्य या भाई-बहनों के जीवन प्रवेश पर विचार किए बिना खोल में छिपे कछुए की तरह पीछे हटना चाहती थी। मैं पूरी तरह से स्वार्थी और नीच थी! मैंने प्रभु यीशु के वचनों के बारे में भी सोचा : “क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा(मत्ती 16:25)। मैंने परमेश्वर के वचनों पर मनन किया और आत्म-चिंतन किया। ऐसा क्यों था कि सीसीपी के उत्पीड़न और गिरफ्त्तारियों का सामना करते समय मैं हमेशा छिपना और खुद को बचाना चाहती थी? ऐसा इसलिए था क्योंकि मैं अपने जीवन को बहुत ज्यादा महत्व देती थी। मैंने अपने दैहिक जीवन को बहुत अधिक महत्व दे रखा था और जीवन और मृत्यु के अर्थ को पूरी तरह से नहीं समझा था। यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर के मार्ग पर चलने के लिए अपना जीवन त्यागने को तैयार है, तो ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर की स्वीकृति मिलती है। यह ठीक वैसा ही है जैसे पूरे इतिहास में संतों ने परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने के लिए सत्ता में बैठे लोगों के उत्पीड़न का सामना किया और कुछ को तो मौत के घाट उतार दिया गया। हालाँकि ऐसा लग सकता है कि उनके शरीर मर गए, वे धार्मिकता के लिए शहीद हुए और अपनी गवाही में अडिग रहे और उनकी आत्माओं के लिए परमेश्वर के पास कुछ और योजना थी। उनकी मौतें मूल्यवान थीं और परमेश्वर द्वारा याद रखी जाती हैं। लेकिन अगर मैंने स्वार्थी होकर अपना दैहिक जीवन बचाने के लिए अपना कर्तव्य त्याग दिया और एक नीच अस्तित्व के साथ जीती रही तो भले ही ऐसा लगे कि मैंने अस्थायी रूप से खुद को सुरक्षित कर लिया है, किंतु सत्य का अभ्यास न करने या कलीसिया के कार्य की रक्षा न करने के कारण परमेश्वर मुझसे घृणा करेगा और मैं बस एक चलती-फिरती लाश की तरह जीती रहूँगी। यह समझकर मैंने घुटने टेके और परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर! सब कुछ तुम्हारे द्वारा नियत है। मुझे गिरफ्तार किया जाएगा या नहीं, यह भी तुम्हारी संप्रभुता और आयोजनों के अधीन है। हो सकता है कि कल ही मुझे गिरफ्तार कर लिया जाए, लेकिन वह भी तुम्हारी इजाजत से ही होगा। चाहे कल कुछ भी हो जाए, जब तक मुझे आज गिरफ्तार नहीं किया जाता, मैं कलीसिया का कार्य अच्छी तरह से करने को तैयार हूँ। मैं विनती करती हूँ कि तुम मेरी आस्था को मजबूत करो।” बाद में मैंने और भाई-बहनों ने सामंजस्य बनाकर मिलकर काम किया और हमने उन सभी भाई-बहनों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जो खतरे में थे। भाई-बहन अपना कलीसियाई जीवन फिर से शुरू करने में सक्षम थे और मुझे अपने दिल में खुशी और मुक्ति की एक अवर्णनीय भावना महसूस हुई।

इस स्थिति से गुजरने के बाद मुझे कुछ आस्था मिली। जब भी मैं अपना काम पूरा करके घर लौटती तो मैं खुद को अनायास ही भजन गुनगुनाते हुए पाती। “मैं परमेश्वर की महिमा का दिन देखना चाहता हूँ” :

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2  अपने हृदय में परमेश्वर द्वारा सौंपी अहम जिम्मेदारी होने के चलते मैं कभी भी शैतान के आगे घुटने नहीं टेकूँगी। चाहे मेरा सिर कट जाए और मेरा खून बह जाए, परन्तु परमेश्वर के लोगों की रीढ़ झुक नहीं सकती। मैं परमेश्वर के लिए जबर्दस्त गवाही दूँगी और शैतान और राक्षस को अपमानित करूँगी। दर्द और कठिनाइयाँ परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित हैं मैं मृत्यु तक उसके प्रति वफादार रहूँगी और समर्पण करूँगी। मैं फिर कभी परमेश्वर को रोने या चिंता में डालने का कारण नहीं बनूँगी। मैं अपना प्यार और वफादारी परमेश्वर को अर्पित करूँगा और उसे महिमा देने का अपना मिशन पूरा करूँगा।

3  परमेश्वर के वचन मुझे आस्था देते हैं और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगा। जब तक मेरी साँस चल रही है, मैं सुसमाचार का प्रचार करता रहूँगा और अडिग संकल्प के साथ परमेश्वर की गवाही देता रहूँगा।

—मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ

नवंबर 2020 की एक रात मुझे एक पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि एक अन्य कलीसिया भी गिरफ्तारियों का सामना कर रही है और परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एक बहन को गिरफ्तार कर लिया गया है। कलीसिया के अगुआओं ने अपनी जान जोखिम में डालकर पुस्तकें दूसरी जगह स्थानांतरित कर दी थीं, लेकिन उस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ होने के कारण अब पुस्तकें रखने के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं बची थी और उन्हें पुस्तकों को जल्दी से सुरक्षित स्थान पर रखवाने में हमारी जरूरत थी। पत्र पढ़ने के बाद मुझे यह सोचकर घबराहट हुई और डर लगा, “पुस्तकों की सुरक्षा करने वाली बहन को अभी-अभी गिरफ्तार किया गया है और हालाँकि कलीसिया के अगुआओं ने पुस्तकें स्थानांतरित करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाली, क्या पुलिस उनकी निगरानी कर रही होगी? अगर उनका पीछा किया जा रहा है तो क्या भाई-बहनों का और मेरा भी पुस्तकें स्थानांतरित करने जाने पर पीछा किया जाएगा और गिरफ्तार कर लिया जाएगा? शायद मुझे नहीं जाना चाहिए।” मुझे लगा कि मैं फिर से खुद को बचाने की कोशिश कर रही थी, इसलिए मैंने जल्दी से परमेश्वर से एक मौन प्रार्थना की, उससे कहा कि वह मेरे दिल की रक्षा करे और शांत होने और भय में न जीने में मेरी मदद करे। प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा : “लोग अक्सर कहते हैं, ‘परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है’ और ‘सभी चीजें परमेश्वर के हाथ में हैं,’ लेकिन जब वे किसी स्थिति का सामना करते हैं तो वे सोचते हैं, ‘क्या परमेश्वर वास्तव में इस बारे में संप्रभुता रख सकता है? क्या सच में उस पर भरोसा किया जा सकता है? बेहतर होगा कि मैं दूसरे लोगों पर भरोसा करूँ और अगर इससे काम नहीं बना तो मैं अपने दम पर कुछ करूँगा।’ तब उन्हें एहसास होता है कि वे कितने बचकाने, हास्यास्पद हैं और आध्यात्मिक कद में कितना छोटे हैं। वे परमेश्वर पर निर्भर रहने की चाहत में फिर से पीछे मुड़ते हैं लेकिन पाते हैं कि अभी भी कोई रास्ता नहीं है। हालाँकि दिल से वे जानते हैं कि परमेश्वर वफादार है और उस पर भरोसा किया जा सकता है; बात सिर्फ इतनी है कि उनमें बहुत कम आस्था है और वे हमेशा बहुत शक करते हैं। तुम इस मसले को कैसे सुलझाओगे? तुम्हें अपने अनुभव पर और सत्य के अनुसरण और समझ पर भरोसा करना होगा। सिर्फ तभी तुम सच्ची आस्था पैदा कर सकते हो। जितना ज्यादा तुम तजुर्बा हासिल करोगे और जितना ज्यादा तुम परमेश्वर पर निर्भर होगे, उतना ज्यादा तुम महसूस करोगे कि उस पर भरोसा किया जा सकता है। जैसे-जैसे तुम ज्यादा मामलों का तजुर्बा हासिल करते हो, तब यह देखते हुए कि परमेश्वर बार-बार तुम्हारी रक्षा करता है, परेशानियों को दूर करने और खतरे से बचने में तुम्हारी मदद करता है, अनजाने में परमेश्वर पर तुम्हारी सच्ची आस्था और निर्भरता विकसित होगी। तुम महसूस करोगे कि परमेश्वर भरोसेमंद और सच्चा है। सबसे पहले तुम्हें अपने दिल में यह विश्वास पैदा करना होगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर में सच्ची आस्था रखने के लिए हमें सचमुच चीजों का अनुभव करना चाहिए और ऐसे अनुभवों से गुजरने के बाद ही हम परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता की सराहना कर सकते हैं। मैंने पिछले साल हुई सामूहिक गिरफ्तारियों के बारे में सोचा। हमने ऐसी खतरनाक स्थिति का सामना किया, लेकिन परमेश्वर, उसके वचनों के मार्गदर्शन और प्रार्थना पर भरोसा करके हम इससे बाहर निकल आए और हमने परमेश्वर की सुरक्षा, सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता को देखा। अब मुझे परमेश्वर पर आस्था होनी चाहिए और जल्दी से परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें स्थानांतरित कर देनी चाहिए। अगले दिन मेरे भाई-बहन और मैं एक जगह पर मिले। और जब हम किताबें ले जा रहे थे तो हमने पुलिस को कारों की तलाशी लेते देखा, इसलिए हमने परमेश्वर से प्रार्थना की और थोड़ी देर के लिए एक छोटे से रास्ते पर जाकर छिप गए और अंत में हमने सफलतापूर्वक पुस्तकों को एक सुरक्षित घर में स्थानांतरित कर दिया।

उत्पीड़न और क्लेशों का अनुभव करने के जरिए मैं अपने स्वार्थी और नीच स्वभाव को समझ पाई। मैंने परमेश्वर की बुद्धि को भी देखा जो सेवा लेने के लिए बड़े लाल अजगर का उपयोग करता है और मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता की ज्यादा सच्ची समझ प्राप्त हुई। परमेश्वर का अनुसरण करने में मेरी आस्था और अधिक मजबूत हो गई।

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