56. आपदा में भी कर्तव्यों पर डटे रहना
21 मार्च 2023 को सुबह मुझे एक बहन से पत्र मिला, इसमें कहा गया था कि उनकी सभा के बाद झाओ जून नाम के एक अगुआ को कुछ मामले सँभालने के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया है और उसने हमें बाद के काम जल्दी से निपटाने के लिए कहा। यह खबर सुनकर मेरे मन में चिंता की एक लहर दौड़ गई और मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा, “झाओ जून एक साल से अधिक समय से हमारी कलीसिया में काम कर रहा है और वह कई मेजबान घरों में गया है, इसलिए उन घरों में अपने कर्तव्य करने वालों और परमेश्वर के वचनों की किताबों को स्थानांतरित करने की जरूरत है। हम उन्हें इस समय कहाँ ले जा सकते हैं? अगर पुलिस को पता चलता है कि झाओ जून यहाँ के काम के लिए जिम्मेदार मुख्य अगुआ है तो वे लोगों को पकड़ने के लिए इस क्षेत्र पर नजर रख सकते हैं। कुछ दिन पहले झाओ जून उसी मेजबान घर में था, जहाँ मैं रहती हूँ।” मुझे लगा कि मैं बहुत खतरे में हूँ और मुझे किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है। मैं अपने दिल में परमेश्वर को पुकारती रही, उससे अपने दिल की रक्षा करने के लिए कहती रही। प्रार्थना करने के बाद मुझे थोड़ी शांति मिली। मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “आस्था एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है : जो लोग हर हाल में जीवन जीने की लालसा से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो अपनी जान देने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फिक्र के, मजबूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है, उसे डर है कि हम आस्था का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जाएँगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि यह स्थिति मेरे लिए एक परीक्षा है। अगर मैंने कायरता दिखाई और अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में नाकाम रही और इसके चलते परमेश्वर के वचनों की किताबें पुलिस के हाथ लग गईं तो क्या यह अपने कर्तव्य की अनदेखी नहीं होगी? मुझे कलीसिया के हितों की रक्षा करनी थी और आस्था के साथ परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना था। इसका एहसास होने पर मुझे आत्मविश्वास मिला और मैंने जल्दी से अपने साथी भाई-बहनों के संग इस पर चर्चा की और हम परमेश्वर के वचनों की किताबों और वहां अपने कर्तव्य करने वालों को स्थानांतरित करने के लिए टीमों में बँट गए।
स्थानांतरण पूरा होने के तुरंत बाद हमें उच्च अगुआओं से एक पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि मेरी सहयोगी बहन लियू वेई को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। इन निरंतर गिरफ्तारियों का सामना होने पर मैं अचानक कमजोर और शिथिल पड़ गई, सोचने लगी, “लियू वेई को भी कैसे गिरफ्तार किया जा सकता है? मैं एक साल से अधिक समय से हमारे कर्तव्यों में उसके साथ सहयोग कर रही हूँ। क्या इसका मतलब यह है कि पुलिस मुझ पर भी नजर रख रही है? अगर मेरी निगरानी की जा रही है तो मुझे कभी भी या कहीं भी गिरफ्तार किया जा सकता है! अगर पुलिस ने मुझे पकड़ लिया तो वे मुझे पीट-पीट कर मार डालेंगे। अगर उन्होंने मुझे वाकई पीट-पीटकर मार डाला या मुझे अपंग बना दिया तो?” मैंने यह भी सोचा कि लियू वेई अपने कर्तव्य निभा रहे कई भाई-बहनों के घर के पते जानती है, इसलिए मुझे उन भाई-बहनों और परमेश्वर के वचनों की किताबों को जल्दी से जल्दी दूसरी जगह ले जाना होगा, जो जोखिम में हैं। यह सब सोचकर मैं बेहद चिंतित हो गई, इसलिए मैंने जल्दी से घुटनों के बल बैठकर परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! लियू वेई की गिरफ्तारी की खबर ने मुझे वाकई चिंतित और भयभीत कर दिया है, मुझे नहीं पता कि इस समय क्या करना चाहिए। हे परमेश्वर! मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और मुझे नहीं पता कि इस स्थिति से कैसे बाहर निकलना है। मुझे प्रबुद्ध करो, मेरा मार्गदर्शन करो और मुझे आस्था दो।” प्रार्थना करने के बाद मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आए : “तुम्हें जानना चाहिए कि तुम्हारे आसपास का सारा परिवेश मेरी अनुमति और मेरी व्यवस्था से बना है। इस बारे में स्पष्ट रहो और मैंने तुम्हें जो परिवेश दिया है उसमें मेरे दिल को संतुष्ट करो। इस या उस चीज से डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा सहायक बल है और तुम्हारी ढाल है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और हिम्मत दी। परमेश्वर मेरा सहारा है और जब तक मैं उस पर निर्भर हूँ और उसकी ओर देखती हूँ, वह मेरे साथ रहेगा। अब जबकि लियू वेई को गिरफ्तार कर लिया गया था, मुझे परमेश्वर के वचनों की किताबों और वहाँ अपने कर्तव्य करने वालों को फिर से दूसरी जगह ले जाने का तरीका खोजना था—यह मेरा कर्तव्य और जिम्मेदारी थी। इस बात को ध्यान में रखते हुए मेरी चिंता कम हो गई। उस रात 10 बजे के कुछ समय बाद मैंने और एक भाई ने इन कार्यों को आपस में बाँट लिया।
थोड़ी देर बाद हमें उच्च अगुवाई से एक और पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि झाओ जून ने अपने द्वारा किए गए सभी कर्तव्यों को कबूल लिया है, लेकिन अभी तक यह पता नहीं है कि उसने कुछ और विश्वासघात किया है या नहीं, इसलिए हमें सावधान रहने की चेतावनी दी गई थी। मैंने सोचा, “अगर झाओ जून ने खुलासा कर दिया कि मैं अगुआ हूँ तो क्या पुलिस कभी मुझ पर नरमी बरतेगी? अगर मुझे गिरफ्तार किया जाता है तो क्या मैं उन सीसीपी राक्षसों की यातना को झेल पाऊँगी? अगर मुझे पीट-पीटकर मार डाला गया तो?” जितना मैंने इसके बारे में सोचा, उतना ही मैं डर गई और मैं सच में जल्द से जल्द इस खतरनाक जगह को छोड़ देना चाहती थी। लेकिन फिर मैंने सोचा कि मेरे साथी भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया है और बाद का काम करना अभी बाकी है। अगर मैं इस महत्वपूर्ण क्षण में अपनी जिम्मेदारियाँ अच्छे से पूरी करने में नाकाम रही तो क्या मैं उस कछुए की तरह नहीं बन जाऊँगी जो अपने खोल में छिप जाता है? अगर खतरे का सामना होने पर मैं छिप गई, परमेश्वर के वचनों की किताबों और भाई-बहनों की सुरक्षा की उपेक्षा की तो यह पूरी तरह से गैर-जिम्मेदाराना और परमेश्वर के प्रति गंभीर विश्वासघात होगा! लेकिन मुझे डर था कि अगर मैं नहीं गई तो मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं अपना कर्तव्य छोड़ना चाहती हूँ और इस जगह से चली जाना चाहती हूँ, लेकिन मुझे पता है कि यह तुम्हारे इरादों के अनुरूप नहीं है। परमेश्वर, मुझे आस्था और शक्ति दो ताकि मैं इस स्थिति में अडिग रह सकूँ।”
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “शैतान चाहे जितना भी ‘ताकतवर’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और साजिशें जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानवजाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे आस्था और शक्ति मिली और मुझे एहसास हुआ कि सभी चीजें और घटनाएँ परमेश्वर के हाथों में हैं। बड़ा लाल अजगर चाहे कितना भी क्रूर और दुष्ट क्यों न हो, वह परमेश्वर के हाथ में एक मोहरा मात्र है और एक ऐसा उपकरण है जो परमेश्वर की सेवा करता है ताकि उसके चुने हुए लोगों को पूर्ण बनाया जा सके। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, चाहे वह कितना भी क्रूर क्यों न हो। मुझे दिसंबर 2012 की एक रात याद आई, एक सभा के दौरान जब सात या आठ पुलिस अधिकारियों ने छापा मारा था। जब उनका ध्यान नहीं था, मैंने मौका देखा और भाग गई। लेकिन जब मैं सोसायटी के गेट पर पहुँची तो पहरा दे रहे दो पुलिस अधिकारियों ने मुझे रोक लिया, इसलिए मैं मुड़ी और पीछे भाग गई। पुलिस ने मुझे पकड़ने के लिए सोसायटी के हर घर की तलाशी लेने के लिए एक टीम बनाई। जैसे ही वे दूसरी मंजिल की तलाशी लेने वाले थे, जहाँ मैं छिपी हुई थी, मैं सीढ़ियों के पास कोने में छिप गई और जब पुलिस उसके बगल से तलाशी लेने आई, मैं सोसायटी के मेन गेट से भाग निकली। मुझे हैरानी हुई कि दो गार्ड मुझे पहचान भी नहीं पाए और मैं मुसीबत से बाल-बाल बच गई। और इस बार भी झाओ जून और लियू वेई के गिरफ्तार होने के बाद हमारी कल्पनाओं के अनुसार हमारी जगह बहुत खतरनाक लग रही थी और इस दौरान मैं लगातार बाद के काम से निपट रही थी और किसी भी समय निगरानी और गिरफ्तार होने का जोखिम उठा रही थी। लेकिन परमेश्वर की अनुमति के बिना पुलिसवाले मुझे गिरफ्तार नहीं कर सकते थे, चाहे वे कितने भी क्रूर क्यों न हों। इन तथ्यों से मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता देखी और यह जाना कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। अगर परमेश्वर ने इसकी अनुमति नहीं दी है तो पुलिस कितना भी चाहे, मुझे पकड़ नहीं सकती और अगर परमेश्वर ने मुझे गिरफ्तार होने दिया तो मैं चाहे जहाँ भी छिपूँ, बच नहीं पाऊँगी। इसका एहसास होने पर मुझे आस्था और शक्ति मिली और मैंने बाद के काम को सँभालना जारी रखा।
16 मई की सुबह मुझे पता चला कि एक और साथी बहन शिन यी को भी गिरफ्तार कर लिया गया है और मेरा दिल बैठ गया। उच्च अगुआई ने हमें एक पत्र भेजा जिसमें शिन यी के मेजबान घर में भाई-बहनों को जल्दी से जल्दी स्थानांतरित करने के लिए सूचित करने का आग्रह किया गया था। मैंने सोचा, “अगर मैं उन्हें सूचित करने के लिए जाती हूँ और पुलिस वहाँ घात लगाए बैठी हो तो क्या मैं जाल में नहीं फँस जाऊँगी? अगर पुलिस को पता चल जाए कि मैं एक अगुआ हूँ तो? वे मुझे और भी बुरी तरह से प्रताड़ित करेंगे। भले ही वे मुझे मार न डालें, मुझे अपंग तो पक्का बना ही देंगे! और अगर मैं मर गई तो क्या होगा? क्या तब भी मुझे बचाया जा सकता है?” जितना मैंने इसके बारे में सोचा, उतनी ही मैं डर गई। मुझे लगा कि मैं बहुत बड़े खतरे में हूँ। मैं खिड़की के पास गई और गहरी साँस ली, सोचने लगी, “मुझे जाना चाहिए या नहीं? अगर मैं नहीं गई तो दूसरे भाई-बहन शिन यी का मेजबान घर नहीं ढूँढ़ पाएँगे। क्या मैं बस वहाँ भाई-बहनों को गिरफ्तार होते देखती रहूँगी?” मैंने इस बारे में बहुत देर तक और गहराई सोचा, मुझे बहुत तकलीफ हुई और मैं यह नहीं समझ पाई कि मुझे क्या करना चाहिए। मैंने घुटने टेके और परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरी आस्था बहुत कम है; मैं डर और कायरता में जी रही हूँ और भाई-बहनों को सूचित करने के लिए बाहर नहीं जाना चाहती। मैं बहुत स्वार्थी हूँ! परमेश्वर, मैं तुम पर निर्भर रहने और तुम्हारी ओर देखने को तैयार हूँ। मुझे आस्था के साथ इस स्थिति से उबरने के लिए आस्था और शक्ति दो और मुझे अपनी भ्रष्टता समझने के लिए मार्गदर्शन दो।”
प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और घिनौने होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं होती, परमेश्वर के प्रति निष्ठा तो बिल्कुल नहीं होती; जब उनके सामने कोई मसला आता है तो वे केवल अपना बचाव और अपनी सुरक्षा करते हैं। उनके लिए अपनी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी और कुछ नहीं है। अगर वे जिंदा रह सकें और गिरफ्तार न हों तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया के काम को कितना नुकसान हुआ है। ये लोग बेहद स्वार्थी हैं, वे भाई-बहनों के बारे में या कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते, सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे मसीह-विरोधी हैं। तो ऐसी चीजें जब उन लोगों के साथ घटती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं और परमेश्वर में सच्ची आस्था रखते हैं तो वे इन्हें कैसे सँभालते हैं? वे जो करते हैं वह मसीह-विरोधियों के काम से किस तरह अलग है? (जब ऐसी चीजें उन लोगों के साथ घटती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं तो वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने, परमेश्वर के चढ़ावे को नुकसान से बचाने के लिए हर तरीके के बारे में सोचेंगे और वे नुकसान को कम करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं और भाई-बहनों के लिए जरूरी व्यवस्थाएँ भी करेंगे। जबकि मसीह-विरोधी सबसे पहले यह सुनिश्चित करते हैं कि वे सुरक्षित रहें। वे कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा के बारे में चिंता नहीं करते और जब कलीसिया को गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ता है तो इससे कलीसिया के कार्य को नुकसान होता है।) मसीह-विरोधी कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चढ़ावे को छोड़कर भाग जाते हैं और वे गिरफ्तारी के बाद की स्थिति को सँभालने के लिए लोगों की व्यवस्था नहीं करते। यह बड़े लाल अजगर को परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों को अपने कब्जे में लेने की अनुमति देने के समान है। क्या यह परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों के साथ गुप्त विश्वासघात नहीं है? जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं और खुद को बचाने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम कर जाते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य करने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए व्यक्ति को अपना कर्तव्य निभाने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें व्यक्ति को बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन उसे अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और यह सबसे पहले आता है। मसीह-विरोधी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं; उनका मानना है कि किसी और चीज का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब किसी दूसरे के साथ कुछ होता है तो वे परवाह नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो। जब तक खुद मसीह-विरोधियों के साथ कुछ बुरा नहीं होता, तब तक वे आराम से बैठे रहते हैं। वे निष्ठारहित होते हैं, जो मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार से निर्धारित होता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी वाकई स्वार्थी और घृणित होते हैं। जब कुछ होता है तो वे सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं और अपने हितों को प्राथमिकता देते हैं, भाई-बहनों के जीवन और परमेश्वर के घर के हितों की उपेक्षा करते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति कोई वफादारी नहीं होती। क्या मैं बिल्कुल मसीह-विरोधी की तरह व्यवहार नहीं कर रही थी? जब खतरे का सामना करना पड़ा तो मैंने सबसे पहले अपनी सुरक्षा के बारे में सोचा। जब शिन यी को पकड़ लिया गया तो मुझे पता था कि मुझे बाहर जाकर उसके साथ रहने वाले भाई-बहनों को स्थानांतरित करने के लिए सूचित करना चाहिए, वरना उन्हें पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है। लेकिन मुझे गिरफ्तार होने, अपंग होने या पीट-पीटकर मार दिए जाने का डर था, इसलिए मैं अपनी जान बचाने की खातिर वहाँ नहीं जाना चाहती थी। जब चीजें घट गईं तो मैंने अपने भाई-बहनों की सुरक्षा की उपेक्षा करते हुए सिर्फ अपने बारे में सोचा। मैं वास्तव में स्वार्थी और घृणित थी और मुझमें मानवता नहीं थी! एक व्यक्ति जिसमें वाकई मानवता होती है और जो परमेश्वर के प्रति वफादार होता है, वह खतरे का सामना होने पर कलीसिया के काम की रक्षा के लिए अपने हितों को दर-किनार कर देता है। लेकिन जब खतरे से मेरा सामना हुआ, मैं अपने दयनीय अस्तित्व को बाहर निकालने की कोशिश करते हुए कछुए की तरह अपनी खोल में छिप गई। मैंने परमेश्वर के घर के हितों या अपने भाई-बहनों की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैं एक शर्मनाक यहूदा से कैसे अलग थी? मैंने सोचा कि संतों ने पूरे इतिहास में सुसमाचार का प्रचार करने के लिए अपनी जवानी और जीवन का बलिदान दिया। उन्होंने उत्पीड़न और क्लेश के बीच परमेश्वर के लिए सुंदर गवाही दी। मैंने परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकारा है और उसके द्वारा व्यक्त सत्य का आनंद ले रही हूँ। परमेश्वर ने हमें अतीत के प्रेरितों और पैगंबरों से कहीं अधिक दिया है। उत्पीड़न और क्लेश के आगमन के साथ मेरे आस-पास के अगुआ और मेरे साथी भाई-बहन एक के बाद एक गिरफ्तार किए जा रहे थे, जबकि परमेश्वर ने पकड़े जाने से मेरी रक्षा की थी। अगर मुझमें जरा-सी भी अंतरात्मा होती तो मुझे कलीसिया के हितों की रक्षा के लिए खड़ा होना चाहिए था और अपने भाई-बहनों की सुरक्षा की रक्षा करनी चाहिए थी। लेकिन मैंने हर समय सिर्फ अपने हितों के बारे में सोचा और परमेश्वर के इरादों पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया। मैं अपने मालिक के लिए रखवाली करने वाले कुत्ते से भी कम वफादार थी। मैं वास्तव में इंसान कहलाने के लायक नहीं थी! इसका एहसास होने पर इतनी स्वार्थी और नीच होने के लिए मुझे खुद से घृणा हुई।
बाद में मैंने फिर से सोचा, खुद से पूछा, “मैं वाकई अपने जीवन को सँजोती हूँ और मुझे हमेशा गिरफ्तार होने या मौत के घाट उतार दिए जाने का डर सताता है। इस समस्या का समाधान कैसे हो सकता है?” मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था, लेकिन दुनिया के लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया, इसके बजाय उनकी भर्त्सना की, पीटा और डाँटा-फटकारा और यहाँ तक कि मार डाला—इस तरह वे शहीद हुए। हम उन शहीदों के अंतिम परिणाम की, या उनके व्यवहार की परमेश्वर की परिभाषा की बात न करें, बल्कि यह पूछें : जब उनका अंत आया, तब जिन तरीकों से उनके जीवन का अंत हुआ, क्या वह मानव धारणाओं के अनुरूप था? (नहीं, यह ऐसा नहीं था।) मानव धारणाओं के परिप्रेक्ष्य से, उन्होंने परमेश्वर के कार्य का प्रसार करने की इतनी बड़ी कीमत चुकाई, लेकिन अंत में इन लोगों को शैतान द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। यह मानव धारणाओं से मेल नहीं खाता, लेकिन उनके साथ ठीक यही हुआ। परमेश्वर ने ऐसा होने दिया। इसमें कौन-सा सत्य खोजा जा सकता है? क्या परमेश्वर द्वारा उन्हें इस प्रकार मरने देना उसका श्राप और भर्त्सना थी, या यह उसकी योजना और आशीष था? यह दोनों ही नहीं था। यह क्या था? अब लोग अत्यधिक मानसिक व्यथा के साथ उनकी मृत्यु पर विचार करते हैं, किन्तु चीजें इसी प्रकार थीं। परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग इसी तरीके से मारे गए, इसे कैसे समझाया जाए? जब हम इस विषय का जिक्र करें, तो तुम लोग स्वयं को उनकी स्थिति में रखो, क्या तब तुम लोगों के हृदय उदास होते हैं, और क्या तुम भीतर ही भीतर पीड़ा का अनुभव करते हो? तुम सोचते हो, ‘इन लोगों ने परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने का अपना कर्तव्य निभाया, इन्हें अच्छा इंसान माना जाना चाहिए, तो फिर उनका अंत, और उनका परिणाम ऐसा कैसे हो सकता है?’ वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं छोड़ा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि उसने समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए जो कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित रह पाई है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी उपादान हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए, जीवन सर्वाधिक सहेजने योग्य है, सर्वाधिक बहुमूल्य है, और असल में कहा जाए तो ये लोग मानव-जाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में, अपनी सर्वाधिक बहुमूल्य चीज अर्पित कर पाए, और वह चीज है—जीवन। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर का नाम नहीं छोड़ा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में, यहां तक कि जब उसने उनसे अपने जीवन की कीमत अदा करवाई, तब भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ी। यह उनके कर्तव्य-निर्वहन की पराकाष्ठा है। इससे मेरा क्या आशय है? क्या मेरा आशय यह है कि तुम लोग भी परमेश्वर की गवाही देने और उसका सुसमाचार फैलाने के लिए इसी तरीके का उपयोग करो? तुम्हें हूबहू ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु तुम्हें समझना होगा कि यह तुम्हारा दायित्व है, यदि परमेश्वर ऐसा चाहे, तो तुम्हें इसे अपने बाध्यकारी कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रसार करना सभी विश्वासियों का गौरवपूर्ण कर्तव्य है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं समझ गई। अगर मैं सच में जीने और मरने की कीमत देख सकती हूँ, जीवन का अर्थ समझती हूँ, मैं उत्पीड़न और क्लेश का सामना होने पर मृत्यु से बेबस होने से बच सकती हूँ, अपना कर्तव्य निभा सकती हूँ और अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए अपने जीवन का बलिदान करने के लिए तैयार हो सकती हूँ। मुझे युग-युगांतर के उन संतों का ख्याल आया जिन्होंने प्रभु यीशु के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए अपने जीवन का बलिदान और खून दिया। अनेक लोग परमेश्वर के लिए शहीद हुए हैं। कुछ को पत्थरों से मार डाला गया और कुछ को घोड़ों से घसीट कर मारा गया। उन्होंने परमेश्वर के लिए मजबूत और जबर्दस्त गवाही देने की खातिर अपने जीवन की कीमत चुकाई। उनकी मृत्यु सार्थक थी, क्योंकि उन्होंने धार्मिकता के लिए उत्पीड़न सहा और परमेश्वर की स्वीकृति पाई। भले ही उनके शरीर नष्ट हो गए, लेकिन उनकी आत्माएँ नष्ट नहीं हुईं। कुछ लोग पकड़े जाने के बाद परमेश्वर को धोखा देते हैं और यातना के डर से अपने भाई-बहनों को फँसा देते हैं और वे शर्मनाक यहूदा बन जाते हैं। वे परमेश्वर के स्वभाव का गंभीर रूप से अपमान करते हैं और परमेश्वर का उद्धार गँवा देते हैं। भले ही उनके शरीर जीवित रहें, लेकिन वे चलती-फिरती लाशों की तरह होते हैं और अंत में वे दंड पाने के लिए नरक में उतरेंगे, और वहाँ वे हमेशा के लिए कष्ट सहेंगे! जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा : “क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा” (मत्ती 16:25)। इस समय मैं आखिरकार परमेश्वर के वचनों के इस अंश का अर्थ समझ गई। पहले मैं मौत के मामले को साफ नहीं देख पाती थी। मुझे पुलिस द्वारा पकड़े जाने और मार डाले जाने का डर था, सोचती थी कि अगर मैं मर गई तो मुझे बचाया नहीं जा सकेगा। अब मुझे एहसास हुआ कि शरीर का मरना वास्तविक मृत्यु नहीं है, शरीर तो मर सकता है, लेकिन आत्मा परमेश्वर के साथ रहती है। जो व्यक्ति उत्पीड़न का सामना करते हुए धार्मिकता के लिए मरने में सक्षम होता है, उसे परमेश्वर द्वारा अनुमोदित और याद किया जाता है। अब जबकि भाई-बहन खतरे में थे, इस महत्वपूर्ण क्षण में मैं अब अपनी सुरक्षा के बारे में नहीं सोच सकती थी। मुझे जल्दी से भाई-बहनों को स्थानांतरित करने के लिए सूचित करने का एक तरीका सोचना था। भले ही मैं पुलिस द्वारा पकड़ ली जाती और यातना देकर मार डाली जाती, ऐसी मृत्यु सार्थक होती। इसका एहसास होने पर मुझे शांति और सहजता मिली। उसी रात मैं मेजबान के घर गई, जहाँ शिन यी रुकी थी और रास्ते में मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही। जब मैं हाई-डेफिनिशन निगरानी कैमरे के नीचे से गुजरी तो मुझे फिर से थोड़ा डर लगा, इसलिए मैंने एक दूरदराज की गली से रास्ता लिया। जब मैं इमारत के नीचे पहुँची तो मैं फिर से घबरा गई और मुझे बहुत चिंता हुई कि शायद पुलिस छिपकर देख रही हो। मैं अपने दिल में परमेश्वर को पुकारती रही। मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “ब्रह्मांड में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था दी और अब मुझे इतना डर नहीं लगा। आखिरकार सभी भाई-बहनों को सफलतापूर्वक स्थानांतरित कर दिया गया और मेरा चिंतित दिल आखिरकार शांत हो गया।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, जिससे मुझे परमेश्वर द्वारा अपनी सेवा में बड़े लाल अजगर के उपयोग के महत्व को समझने में मदद मिली। परमेश्वर कहता है : “जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, वे अपने कार्य की परीक्षा का सामना करने में समर्थ हैं, जबकि जो लोग सच में परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, वे परमेश्वर के किसी भी परीक्षण का सामना करने में अक्षम हैं। देर-सवेर उन्हें निर्वासित कर दिया जाएगा, जबकि विजेता राज्य में बने रहेंगे। मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को खोजता है या नहीं, इसका निर्धारण उसके कार्य की परीक्षा द्वारा किया जाता है, अर्थात्, परमेश्वर के परीक्षणों द्वारा, और इसका स्वयं मनुष्य द्वारा लिए गए निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर हल्के में किसी मनुष्य को अस्वीकार नहीं करता; वह जो कुछ भी करता है, वह मनुष्य को पूर्ण रूप से आश्वस्त कर सकता है। वह ऐसा कुछ नहीं करता, जो मनुष्य के लिए अदृश्य हो, या कोई ऐसा कार्य जो मनुष्य को आश्वस्त न कर सके। मनुष्य का विश्वास सही है या नहीं, यह तथ्यों द्वारा साबित होता है, और इसे मनुष्य द्वारा तय नहीं किया जा सकता। इसमें कोई संदेह नहीं कि ‘गेहूँ को जंगली दाने नहीं बनाया जा सकता, और जंगली दानों को गेहूँ नहीं बनाया जा सकता।’ जो सच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे सभी अंततः राज्य में बने रहेंगे, और परमेश्वर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार नहीं करेगा, जो वास्तव में उससे प्रेम करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। परमेश्वर बड़े लाल अजगर को ईसाइयों को सताने और पकड़ने की अनुमति देता है, हमारे काम को परखने के लिए बड़े लाल अजगर की सेवा का उपयोग करता है और देखता है कि क्या हमारे भीतर उसके प्रति सच्ची आस्था और वफादारी है। यह परमेश्वर के हर विश्वासी के लिए एक परीक्षा होती है। कुछ लोग कायरता के कारण परमेश्वर में अपनी आस्था कायम रखने का साहस नहीं रखते हैं, कुछ लोग पकड़े जाने के डर से छिप जाते हैं और अपने कर्तव्य करने की हिम्मत नहीं करते हैं और अन्य पकड़े जाने के बाद यातना सहन करने में असमर्थ होकर परमेश्वर को धोखा देते हैं और यहूदा बन जाते हैं। ये लोग परमेश्वर के कार्य द्वारा बेनकाब किए गए खरपतवार और छद्म-विश्वासी होते हैं और आखिरकार उन्हें निकाल दिया जाता है। लेकिन कुछ लोग, चाहे कितनी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो, अपने कर्तव्य करने और कलीसिया के काम की रक्षा करने में सक्षम होते हैं और भले ही उन्हें पकड़ लिया जाए और प्रताड़ित किया जाए, वे यहूदा बनने के बजाय जेल जाना पसंद करते हैं। वे परमेश्वर के लिए जबर्दस्त गवाही देते हैं। यही लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और उसके प्रति वफादार रहते हैं। बड़े लाल अजगर की सेवा के माध्यम से सच्चे और झूठे विश्वासी, साथ ही कलीसिया में गेहूँ और खरपतवार सभी बेनकाब हो जाते हैं। अनजाने में ही लोगों को उनकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है। परमेश्वर का कार्य बहुत बुद्धिमानी भरा है! साथ ही सीसीपी की गिरफ्तारियों और उत्पीड़न के माध्यम से मैंने देखा कि मेरी आस्था कितना छोटी है। आमतौर पर जब मैं किसी खतरनाक स्थिति में नहीं होती तो मैं परमेश्वर के सामने प्रार्थना करती कि मैं उसके लिए खुद को त्यागने, खपाने और उसके प्रेम का प्रतिदान करने के लिए तैयार हूँ। लेकिन जब खतरे का सामना करना पड़ा तो मैंने सिर्फ अपने बारे में सोचा और महत्वपूर्ण क्षणों में मैंने अपने भाई-बहनों की सुरक्षा और परमेश्वर के वचनों की किताबों की उपेक्षा की। क्या मैं परमेश्वर को धोखा नहीं दे रही थी? अगर इन तथ्यों का प्रकाशन और परमेश्वर के वचनों का न्याय और ताड़ना न होती तो मुझे अपने स्वार्थी और घृणित शैतानी स्वभाव का कोई ज्ञान नहीं होता, मैं अभी भी सोचती कि मैं अपने परिवार और करियर को त्यागकर परमेश्वर के प्रति वफादार रह सकती हूँ और मैं निश्चित रूप से उसकी स्वीकृति पाऊँगी और मैं अभी भी सोचती कि एक बार परमेश्वर का कार्य पूरा हो जाने पर मुझे बचा लिया जाएगा और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश मिलेगा। यह वाकई दयनीय है कि मैं खुद को नहीं जानती थी!
इस दौरान बड़े लाल अजगर द्वारा किए गए उत्पीड़न और गिरफ्तारियों ने मेरी भ्रष्टता उजागर कर दी। मैंने देखा कि मुझमें सत्य वास्तविकताओं की कमी है और यह बहुत खतरनाक है और इसने मुझे सत्य का अनुसरण करने और ऊपर की ओर प्रयास करने के लिए भी प्रेरित किया, ताकि मैं भविष्य में और अधिक प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना होने पर परीक्षणों में अडिग रह सकूँ और आखिरकार शैतान पर विजय पाकर परमेश्वर के लिए गवाही दे सकूँ। इन परिस्थितियों का अनुभव करना मेरे जीवन के लिए बहुत फायदेमंद रहा है। यह मेरे लिए परमेश्वर का उद्धार है! इससे गुजरने के बाद मेरा दिल परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर गया। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से ही मुझे परमेश्वर के अधिकार, सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता की कुछ समझ मिली, जिससे मेरी आस्था मजबूत हुई। परमेश्वर का धन्यवाद!