59. बोझ उठाने में अनिच्छा के पीछे क्या है
सितंबर 2022 में मैंने नवागंतुकों का सिंचन करने के लिए बहन ली मिंग के साथ सहयोग किया। मैंने अभी-अभी इस कर्तव्य में प्रशिक्षण लेना शुरू किया था और चूँकि ली मिंग लंबे समय से नवागंतुकों का सिंचन रही थी, इसलिए मैं उस पर काफी निर्भर हो गई। लोगों को विकसित करने, नवागंतुकों की विभिन्न मुश्किलों और समस्याओं को सुलझाने से संबंधित अधिकांश कार्यों को उसने सँभाला। कभी-कभी जब ली मिंग मेरे साथ लोगों को विकसित करने से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करती थी तो मैं उसे यह सोचकर टाल देती थी कि जब तक वह मुख्य रूप से प्रभारी है, तब तक यह पर्याप्त है और मुझे सिर्फ उन नवागंतुकों का सिंचन करने की जरूरत है जिनके लिए मैं जिम्मेदार हूँ। अपने खाली समय में मैं भाई-बहनों की अनुभवजन्य गवाहियाँ भी पढ़ लेती थी और भजन सुन पाती थी और मुझे लगा कि इस तरह से अपने कर्तव्य करना बहुत अच्छा है।
बाद में काम की जरूरतों के कारण ली मिंग को अपने कर्तव्य करने के लिए दूसरी कलीसिया में तबादला कर दिया गया और मुझ पर अचानक बहुत दबाव आ गया, सोचने लगी, “क्या मैं अकेले इतने सारे नवागंतुकों का सिंचन पाऊँगी? इतने कम समय में उनका सिंचन करने में मदद करने वाला कोई कहाँ से मिल सकता है? अगर मुझे किसी नए व्यक्ति को ढूँढ़ना और उसे विकसित करना है तो इसमें कितना समय और ऊर्जा लगेगी? मैं पहले से ही नवागंतुकों का सिंचन करने में बहुत व्यस्त हूँ और अब मुझे एक नौसिखिए को विकसित करना होगा। क्या यह सब मुझे और भी व्यस्त नहीं कर देगा? मैं अपने लिए खाली समय कैसे निकाल पाऊँगी?” मैंने अपने दिल में थोड़ा प्रतिरोध महसूस किया और मैं चाहती थी कि अगुआ जल्दी से किसी ऐसे व्यक्ति की व्यवस्था करे जो मेरे काम का बोझ हल्का करने के लिए मेरे साथ सहयोग करे। लेकिन एक उपयुक्त सिंचनकर्ता को खोजने में समय लगता। जाने से पहले ली मिंग ने बताया कि एक बहन की काबिलियत और समझ अच्छी है, लेकिन वह युवा और अस्थिर है और इसलिए उसने मुझे इस बहन को और अधिक विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने मौखिक रूप से सहमति व्यक्त की, लेकिन अंदर ही अंदर मैं बहुत अन्याय और दबाव महसूस कर रही थी, मैंने सोचा, “इस बहन को विकसित करना कोई आसान काम नहीं है। इन सब में कितना प्रयास लगेगा?” अगले कुछ दिनों में मैं अपने कर्तव्यों में बहुत निष्क्रिय रही और जब नवागंतुकों को समस्याएँ या मुश्किलें आती थीं तो मैं उन्हें सुलझाने के लिए प्रेरित महसूस नहीं करती थी। मैं तो बस नवागंतुकों के साथ सभाओं में भाग लेने की औपचारिकताएँ निभा रही थी और इससे कोई नतीजा नहीं निकला। एक दिन मेरी इलेक्ट्रिक बाइक बीच रास्ते में ही खराब हो गई, इसलिए मुझे इसे धक्का देना पड़ा और मुझे घर पहुँचने में एक घंटे से अधिक समय लगा। मैं इतनी थक गई थी कि मेरी एक भी माँसपेशी नहीं हिल पा रही थी और मैं पूरी तरह से थककर चूर हो गई थी। मुझे पता था कि इस स्थिति का सामना होना कोई संयोग नहीं है, इसलिए मैंने आत्म-चिंतन किया और परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, जब से मुझे पता चला कि ली मिंग का तबादला किया जा रहा है, तब से मैं प्रतिरोधी हो रही हूँ और अंदर ही अंदर शिकायत कर रही हूँ। मुझे एहसास है कि मेरी मनोदशा गलत है और मैं आत्म-चिंतन करने और तुम्हारे सामने पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हूँ। तुम्हारा इरादा समझने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।”
प्रार्थना करने के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों की एक पंक्ति याद आई : “परमेश्वर के आदेश के प्रति तुम्हारा बोझ जितना अधिक होगा, तुम्हारे लिए उसके द्वारा पूर्ण बनाया जाना उतना ही आसान होगा।” मैंने जल्दी से उस अंश को देखा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना, प्रार्थना का अभ्यास करना, परमेश्वर के बोझ को स्वीकार करना, और उसे स्वीकार करना जो उसने तुम्हें सौंपा है—यह सब इसलिए है कि तुम्हारे सामने एक मार्ग हो। परमेश्वर के आदेश के प्रति तुम्हारा बोझ जितना अधिक होगा, तुम्हारे लिए उसके द्वारा पूर्ण बनाया जाना उतना ही आसान होगा। कुछ लोग परमेश्वर की सेवा में दूसरों के साथ समन्वय करने के इच्छुक नहीं होते, तब भी नहीं जबकि वे बुलाए जाते हैं; ये आलसी लोग केवल आराम का सुख उठाने के इच्छुक होते हैं। तुमसे जितना अधिक दूसरों के साथ समन्वय करने का आग्रह किया जाएगा, तुम उतना ही अधिक अनुभव प्राप्त करोगे। तुम्हारे पास अधिक बोझ होने के कारण, तुम अधिक अनुभव करोगे, तुम्हारे पास पूर्ण बनाए जाने का अधिक मौका होगा। इसलिए, यदि तुम सच्चे मन से परमेश्वर की सेवा कर सको, तो तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहोगे; और इस तरह तुम्हारे पास परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाये जाने का अधिक अवसर होगा। ऐसे ही मनुष्यों के एक समूह को इस समय पूर्ण बनाया जा रहा है। पवित्र आत्मा जितना अधिक तुम्हें स्पर्श करेगा, तुम उतने ही अधिक परमेश्वर के बोझ के लिए विचारशील रहने के प्रति समर्पित होओगे, तुम्हें परमेश्वर द्वारा उतना अधिक पूर्ण बनाया जाएगा, तुम्हें उसके द्वारा उतना अधिक प्राप्त किया जाएगा, और अंत में, तुम ऐसे व्यक्ति बन जाओगे जिसे परमेश्वर द्वारा प्रयुक्त किया जाता है। वर्तमान में, कुछ ऐसे लोग हैं जो कलीसिया के लिए कोई बोझ नहीं उठाते। ये लोग सुस्त और ढीले-ढाले हैं, और वे केवल अपने शरीर की चिंता करते हैं। ऐसे लोग बहुत स्वार्थी होते हैं और अंधे भी होते हैं। यदि तुम इस मामले को स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम नहीं होते हो, तो तुम कोई बोझ नहीं उठा पाओगे। तुम जितना अधिक परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील रहोगे, तुम्हें परमेश्वर उतना ही अधिक बोझ सौंपेगा। स्वार्थी लोग ऐसी चीज़ें सहना नहीं चाहते; वे कीमत नहीं चुकाना चाहते, परिणामस्वरूप, वे परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के अवसर से चूक जाते हैं। क्या वे अपना नुकसान नहीं कर रहे हैं?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पूर्णता प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील रहो)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए मैंने समझा कि किसी व्यक्ति में परमेश्वर के आदेश के लिए बोझ उठाने की भावना है या नहीं, इसका सीधा असर इस बात पर पड़ता है कि उसे पूर्ण बनाया जा सकता है या नहीं। जब कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों को बोझ उठाने की भावना के साथ करता है और परमेश्वर के इरादों पर विचार करते हुए सत्य का अनुसरण करता है तो पवित्र आत्मा उस व्यक्ति को प्रबुद्ध करेगा और उसका मार्गदर्शन करेगा, जिससे वह अपने कर्तव्यों के दौरान सत्य समझ सकेगा और जीवन में प्रगति का अनुभव कर सकेगा। इसके विपरीत जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, वे बहुत आलसी होते हैं, जिम्मेदारियाँ लेने के लिए अनिच्छुक रहते हैं और परमेश्वर के इरादों पर विचार नहीं करते, वे संभवतः पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त नहीं कर सकते और आखिरकार कुछ भी हासिल नहीं कर पाएँगे। अपनी मनोदशा पर चिंतन करते हुए मैंने देखा कि मैं वाकई वैसी ही आलसी और आराम पसंद इंसान हूँ जिसे परमेश्वर ने उजागर किया है। जब कार्यभार बढ़ गया और मुझे शारीरिक कष्ट सहना पड़ा, मैं सहयोग करने में प्रतिरोधी और अनिच्छुक हो गई। अपने कर्तव्यों के प्रति ऐसा रवैया रखने पर मैं निश्चित रूप से सत्य पाने या पूर्ण बनाए जाने में सक्षम नहीं हो पाऊँगी। यह सोचकर मैं कुछ परेशान हो गई और परमेश्वर का श्रमसाध्य इरादा समझ गई। अब जब ली मिंग का तबादला हो गया तो सिंचन कार्य का भार मुझ पर आ गया, लेकिन परमेश्वर मेरे लिए चीजों को मुश्किल नहीं बना रहा था, बल्कि वह मुझे प्रशिक्षित कर रहा था। चाहे वह नवागंतुकों का सिंचन करना हो या दूसरों को विकसित करना हो, जब मैं समस्याओं और मुश्किलों का सामना करती थी तो ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं था जिस पर मैं निर्भर रह सकती थी, जिसने मुझे परमेश्वर पर निर्भर होने, सत्य की तलाश करने और समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य का उपयोग करना सीखने के लिए और भी अधिक प्रोत्साहित किया। यह परमेश्वर का अनुग्रह था! फिर भी मैंने अपनी देह की परवाह की, मुश्किल और थकान से डरते हुए जिम्मेदारियाँ लेने के लिए अनिच्छुक रही। मैंने परमेश्वर को मुझे पूर्ण बनाने और सत्य पाने में मेरी मदद करने के अवसर को परे धकेल दिया। मैं वाकई नहीं जानती थी कि मेरे लिए क्या अच्छा है!
फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “सत्य का अनुसरण न करने वाले सभी लोग अपने कर्तव्य, जिम्मेदारी रहित मानसिकता के साथ निभाते हैं। ‘अगर कोई अगुआई करता है, तो मैं उसका अनुसरण करता हूँ; वह जहाँ ले जाता है, मैं वहीं चला जाता हूँ। वह मुझसे जो भी करवाएगा, मैं करूँगा। जहाँ तक जिम्मेदारी लेने और चिंता करने की बात है, या कुछ करने के लिए ज्यादा परेशानी उठाने की बात है, पूरे तन-मन से कुछ करने की बात है—तो उसके लिए मैं तैयार नहीं हूँ।’ ये लोग कीमत चुकाने को तैयार नहीं हैं। वे सिर्फ परिश्रम करने के लिए तैयार हैं, जिम्मेदारी लेने के लिए नहीं। यह वह रवैया नहीं है, जिसके साथ कोई वास्तव में कर्तव्य निभाता है। व्यक्ति को अपने कर्तव्य के प्रदर्शन में अपना दिल लगाना सीखना चाहिए, और जमीर वाला व्यक्ति इसे कर सकता है। अगर कोई अपने कर्तव्य-प्रदर्शन में कभी अपना दिल नहीं लगाता, तो इसका मतलब है कि उसके पास जमीर नहीं है, और जिसके पास जमीर नहीं है, वह सत्य प्राप्त नहीं कर सकता। ... अपना कर्तव्य दिल लगाकर करने और इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए तुम्हें पीड़ा सहने और एक कीमत चुकाने की ज़रूरत है—इन चीजों के बारे में बात करना ही काफी नहीं है। यदि तुम अपना कर्तव्य दिल लगाकर नहीं करते, बल्कि हमेशा कड़ी मेहनत करना चाहते हो, तो तुम्हारा कर्तव्य निश्चित ही अच्छी तरह नहीं निभेगा। तुम बस बेमन से काम करते रहोगे, और कुछ नहीं, और तुम्हें पता नहीं चलेगा कि तुमने अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाया है या नहीं। यदि तुम दिल लगाकर काम करोगे, तो तुम धीरे-धीरे सत्य को समझोगे; लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं करोगे, तो तुम नहीं समझोगे। जब तुम दिल लगाकर अपना कर्तव्य निभाते हो और सत्य का पालन करते हो, तो तुम धीरे-धीरे परमेश्वर के इरादे समझने, अपनी भ्रष्टता और कमियों का पता लगाने और अपनी सभी विभिन्न अवस्थाओं में महारत हासिल करने में सक्षम हो जाओगे। जब तुम्हारा ध्यान केवल प्रयास करने पर ही केंद्रित होता है, और तुम अपना दिल आत्मचिंतन करने पर नहीं लगाते, तो तुम अपने दिल की वास्तविक अवस्थाओं और विभिन्न परिवेशों में अपनी असंख्य प्रतिक्रियाओं और भ्रष्टता के प्रकाशनों का पता लगाने में असमर्थ होगे। अगर तुम नहीं जानते कि समस्याएँ अनसुलझी रहने पर क्या परिणाम होंगे, तो तुम बहुत परेशानी में हो। ... अगर तुम अपने हृदय में अक्सर जिन मामलों पर विचार करते हो, वे तुम्हारे कर्तव्य निभाने से संबंधित मामले नहीं है, या ऐसे मामले नहीं है जिनका सत्य से संबंध है, बल्कि तुम देह के मामलों पर अपने विचारों के साथ बाहरी चीजों में उलझे रहते हो, तो क्या तुम सत्य समझने में सक्षम होगे? क्या तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने और परमेश्वर के सामने जीने में सक्षम होगे? हरगिज नहीं। ऐसा व्यक्ति बचाया नहीं जा सकता” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल एक ईमानदार व्यक्ति ही सच्चे मनुष्य की तरह जी सकता है)। मैंने देखा कि परमेश्वर उजागर करता है कि जो लोग अपने कर्तव्यों में कीमत चुकाने के लिए तैयार नहीं हैं, जो हमेशा देह में आराम और सहजता खोजते हैं और जो अपने काम में पूरी तरह से गैर-जिम्मेदार रहते हैं, वे सत्य प्राप्त नहीं कर सकते और परमेश्वर उनका अनुमोदन नहीं करता है। जब मैंने पहली बार नवागंतुकों का सिंचना शुरू किया तो मैं अपनी साथी बहन पर बहुत अधिक निर्भर थी, सोचती थी कि चूँकि उसे नवागंतुकों का सिंचन करने में अधिक अनुभव है, इसलिए उनकी मुश्किलें सुलझाने के लिए उसे संगति करने देना ठीक रहेगा। मैंने इन चीजों की बिल्कुल भी परवाह नहीं की और न ही इनके बारे में पूछताछ की, पूरी तरह से किसी बाहरी व्यक्ति की तरह पेश आई। अपने कर्तव्य करते समय मैं बस कष्टों और थकान से बचना चाहती थी और मैं उन चीजों को करने के लिए समय निकाल लेती थी जो मुझे पसंद हैं। फिर भी मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मुझमें अपने कर्तव्यों के लिए बोझ उठाने की कोई भावना नहीं है। जब मुझे पता चला कि ली मिंग का तबादला होने वाला है तो मुझे लगा जैसे मैंने अपना सहारा खो दिया है और जब मैंने उन सभी कामों के बारे में सोचा जिनका भार अब अकेले मुझ पर पड़ने वाला है तो मैं बेचैन हो गई। मैंने अपने आराम पर विचार करना शुरू कर दिया, हमेशा आसान काम चुनना चाहती थी और जब चीजें मेरे हिसाब से नहीं होती थीं तो मैं नकारात्मक और निष्क्रिय हो जाती थी, जिन लोगों को विकसित करने की जरूरत थी, उन्हें विकसित करने की उपेक्षा करती थी और नवागंतुकों का सिंचन करने में बस औपचारिकता निभाती थी। मैं कहती थी कि मैं परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहती हूँ और उसके इरादों पर विचार करना चाहती हूँ, लेकिन जब वाकई कष्ट सहने और कीमत चुकाने की बात आई तो मैं पीछे हट गई और कोई प्रयास भी नहीं करना चाहती थी। किस तरह से मेरे पास ऐसा दिल था जो परमेश्वर के इरादों पर विचारशील हो? यह सोचकर मुझे बहुत अपराध बोध हुआ। इसके बाद मैंने नवागंतुकों की मुश्किलें और समस्याएँ देखने की पहल की और उनकी मदद करने के लिए संगति की। मैंने दूसरों को और अधिक विकसित करने के लिए भी समय निकाला। भले ही मुझे ज्यादा चिंता करनी पड़ी और ज्यादा कष्ट सहना पड़ा, लेकिन मुझे अपने दिल में शांति और सुकून मिला।
एक महीने बाद नवागंतुकों का सिंचन करने के लिए मेरा तबादला दूसरी कलीसिया में कर दिया गया। मैंने अगुआओं से सुना कि बहन यांग किंग की कार्यक्षमताएँ खराब हैं और वह टीम अगुआ की भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं है और वे चाहते थे कि मैं यह भूमिका निभाऊँ। मैं बहुत दबाव में आ गई, सोचने लगी, “टीम अगुआ होने का मतलब न सिर्फ नवागंतुकों का सिंचन करना है, बल्कि काम में विचलन की समीक्षा करना और सिंचनकर्ताओं की समस्याएँ सुलझाने के लिए संगति करना भी है। क्या मैं वाकई यह सारा काम सँभाल सकती हूँ? यह बहुत चिंताजनक लगता है!” मैंने जल्दी से इस भूमिका को अस्वीकारने की कोशिश करते हुए कहा, “यांग किंग कई साल से सिंचन कार्य कर रही है और उसे कुछ सिद्धांतों की गहरी समझ है। क्यों न उसे अभी टीम अगुआ बने रहने दिया जाए? मैं उसका साथ दे सकती हूँ और अगर इससे काम नहीं बनता है तो हम बाद में उसे दूसरा काम सौंप सकते हैं।” अगुआओं ने देखा कि मैं टीम अगुआ बनने के लिए अनिच्छुक हूँ तो उन्होंने मुझ पर जोर नहीं डाला और मैंने राहत की साँस ली।
बाद में मैंने पाया कि यांग किंग अहंकारी स्वभाव की है और वह अपने कर्तव्यों में अनुभव और विनियमों के पालन पर निर्भर है। जब मैंने संगति करने और उसे सुधारने की कोशिश की तो वह इसे स्वीकार नहीं कर सकी और वह उसी तरह से काम करती रही। मैंने मन ही मन सोचा, “न सिर्फ यांग किंग की कार्यक्षमता खराब है, बल्कि वह संगति करने पर भी सिद्धांत नहीं समझ पाती है और उसकी काबिलियत बहुत खराब है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो इससे काम में देरी होगी। वह वाकई टीम अगुआ की भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं है।” लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर हम उसे बरखास्त कर देंगे तो अगुआई कौन करेगा? टीम के अन्य भाई-बहनों ने अभी-अभी प्रशिक्षण लेना शुरू किया है और उन्हें अभी तक सिद्धांतों की गहरी समझ नहीं है। भले ही मुझमें भी कई कमियाँ हैं, मैं कुछ समय से नवागंतुकों का सिंचन रही हूँ और कुछ सिद्धांत समझ गई हूँ, इसलिए मैं ज्यादा उपयुक्त विकल्प हूँ।” लेकिन जैसे ही मैंने सोचा कि टीम अगुआ होना बहुत ज्यादा दबाव वाला काम है, मुझे ही सब कुछ सँभालना होगा और मुझे अपनी सारी चिंताओं से खुद को थका देना होगा, मैंने जल्दी से इस विचार को खारिज कर दिया, इसके बजाय सोचा, “क्यों न यांग किंग के साथ ज्यादा संगति की जाए और काम में उसकी मदद की जाए? यह ठीक रहेगा।” इस तरह मैंने यांग किंग की समस्याओं को देखा लेकिन उनकी रिपोर्ट नहीं की। उसी समय कलीसिया में एक भाई के साथ कार दुर्घटना हुई और उसका हाथ टूट गया। मैंने सुना कि वह लगातार धूर्त था और अपने कर्तव्यों में बस औपचारिकता निभा रहा था, बरखास्त होने के बाद भी वह खुद को नहीं जान पाया और उसने पश्चात्ताप या बदलाव नहीं किया। अब जब उसका हाथ टूट गया था तो वह चाहकर भी अपने कर्तव्य नहीं कर सकता था। इस घटना ने मुझे वाकई झकझोर दिया। मैंने देखा कि अपने कर्तव्यों के दौरान अगर लोग धूर्त हैं, काम में ढिलाई बरतते हैं, अपने उचित काम के प्रति लापरवाह हैं और कभी पश्चात्ताप नहीं करते हैं, एक बार जब वे अपने कर्तव्य करने का अवसर गँवा देते हैं तो पछतावे के लिए बहुत देर हो जाती है। मुझे लगा कि भाई का अनुभव मेरे लिए एक ताकीद और चेतावनी है और मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “अगर तुम अपना कर्तव्य अनमने होकर निभाओगे, इसे अनादर के भाव से देखोगे तो इसका क्या नतीजा मिलेगा? तुम अपना कार्य खराब ढंग से करोगे, भले ही तुम इस काबिल हो कि इसे अच्छे से कर सको—तुम्हारा प्रदर्शन मानक पर खरा नहीं उतरेगा और कर्तव्य के प्रति तुम्हारे रवैये से परमेश्वर बहुत नाराज रहेगा। अगर तुमने परमेश्वर से प्रार्थना की होती, सत्य खोजा होता, इसमें अपना पूरा दिल और दिमाग लगाया होता, अगर तुमने इस तरीके से सहयोग किया होता तो फिर परमेश्वर पहले ही तुम्हारे लिए हर चीज तैयार करके रखता ताकि जब तुम मामलों को सँभालने लगो तो हर चीज दुरुस्त रहे और तुम्हें अच्छे नतीजे मिलें। तुम्हें बहुत ज्यादा ताकत झोंकने की जरूरत न पड़ती; तुम हर संभव सहयोग करते तो परमेश्वर तुम्हारे लिए पहले ही हर चीज की व्यवस्था करके रखता। अगर तुम धूर्त या काहिल हो, अगर तुम अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाते, और हमेशा गलत रास्ते पर चलते हो तो फिर परमेश्वर तुम पर कार्य नहीं करेगा; तुम यह अवसर खो बैठोगे और परमेश्वर कहेगा, ‘तुम किसी काम के नहीं हो; मैं तुम्हारा उपयोग नहीं कर सकता। जाकर एक तरफ खड़े हो जाओ। तुम्हें चालाक बनना और सुस्ती बरतना पसंद है, है न? तुम आलसी और आरामपरस्त हो, है न? तो ठीक है, आराम ही करते रहो!’ परमेश्वर यह अवसर और अनुग्रह किसी और को देगा। तुम लोग क्या कहते हो : यह हानि है या लाभ? (हानि।) यह प्रचंड हानि है!” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। मैंने महसूस किया कि कैसे परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव मनुष्य द्वारा अपमान बर्दाश्त नहीं करता। लोगों को अपने कर्तव्य करने का अवसर देना परमेश्वर का अनुग्रह है। परमेश्वर का इरादा है कि हम सत्य की खोज करें और अपने कर्तव्यों में सिद्धांतों के अनुसार कार्य करें, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और उसके प्रति वफादार होने में सक्षम हों और अपने कर्तव्यों को एक ऐसे तरीके से करें जो मानक स्तर के हों। लेकिन अगर मैंने ऐसे अवसर नहीं सँजोए और मैंने अपना कर्तव्य बिना पूरा प्रयास किए धूर्तता और ढिलाई से किया, अपने कर्तव्यों को हल्के में लिया तो परमेश्वर मुझे ठुकराकर अलग कर देगा, मुझे नजरअंदाज कर देगा। पहले अगुआ चाहते थे कि मैं टीम अगुआ बनूँ, लेकिन मैं कष्ट और कड़ी मेहनत से डरती थी, इसलिए मैंने कर्तव्य से इनकार कर दिया। लेकिन अब जब यह निर्धारित हो गया था कि यांग किंग टीम अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं है, तो उसे बनाए रखने से सिंचन कार्य में देरी होती, इसलिए मुझे जल्दी से उसकी समस्याओं की रिपोर्ट करनी थी। लेकिन मुझे डर था कि अगर उसे निकाल दिया गया और मैंने टीम अगुआ की भूमिका निभाई तो मुझे और भी ज्यादा चिंताएँ करनी पड़ेंगी, इसलिए अपनी देह के आराम के लिए, भले ही मैंने यांग किंग की समस्याएँ देखी थीं, मैंने उनकी रिपोर्ट नहीं की, यहाँ तक कि उसे कलीसिया के काम में बाधा डालना और नुकसान पहुँचाना जारी रखने दिया। तब मुझे एहसास हुआ कि धूर्त होने और अपने कर्तव्यों में ढिलाई बरतने के परिणाम कितने गंभीर हैं और अगर मैंने अभी भी पश्चात्ताप नहीं किया तो मेरा अंजाम भी उस भाई की तरह ही होगा और मैं अपने कर्तव्य करने का अवसर गँवा सकती हूँ। मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की, पश्चात्ताप करने और अपनी समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य खोजने के लिए तैयार हो गई।
अपनी खोज में मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े : “चूँकि तुम एक व्यक्ति हो, इसलिए तुम्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि व्यक्ति की क्या जिम्मेदारियाँ होती हैं। अविश्वासी जिन जिम्मेदारियों की सबसे ज्यादा कद्र करते हैं, जैसे कि संतानोचित व्यवहार करना, अपने माता-पिता का भरण-पोषण करना और अपने परिवार का नाम करना, उनका उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है। ये सभी खोखली हैं और इनका वास्तविक अर्थ नहीं है। वह न्यूनतम जिम्मेदारी क्या है जो एक व्यक्ति को निभानी चाहिए? सबसे वास्तविक चीज यह है कि अभी तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से कैसे करते हो। हमेशा केवल बेमन से काम करके संतुष्ट हो जाना अपनी जिम्मेदारी पूरी करना नहीं है, और सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के बारे में बोल पाना अपनी जिम्मेदारी पूरी करना नहीं है। केवल सत्य का अभ्यास करना और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना ही अपनी जिम्मेदारी पूरी करना है। केवल जब तुम्हारा सत्य का अभ्यास प्रभावी और लोगों के लिए लाभकारी रहता है, तभी तुमने वास्तव में अपनी जिम्मेदारी पूरी की होती है। तुम चाहे जो भी कर्तव्य कर रहे हो, अगर तुम सत्य सिद्धांतों के अनुसार सभी चीजें करते रहते हो, केवल तभी माना जाएगा कि तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। मानवीय तरीके के अनुसार बेमन से कार्य करना लापरवाह होना है; सिर्फ सत्य सिद्धांतों पर बने रहना ही उचित रूप से अपने कर्तव्य का निर्वहन करना और अपनी जिम्मेदारी पूरी करना है। और जब तुम अपनी जिम्मेदारी पूरी करते हो, तो क्या यह निष्ठा की अभिव्यक्ति नहीं है? यही निष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वहन करने की अभिव्यक्ति है। जब तुममें जिम्मेदारी का यह भाव होगा, यह संकल्प और इच्छा होगी, और अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा की अभिव्यक्ति होगी, तो ही परमेश्वर तुम पर कृपादृष्टि रखेगा और तुम्हें स्वीकार करेगा। अगर तुममें जिम्मेदारी का यह भाव भी नहीं है, तो परमेश्वर तुम्हें आलसी और मूढ़मति समझेगा और तुमसे घृणा करेगा। ... इस हिसाब से, अगर तुम चाहते हो कि परमेश्वर तुम पर कृपादृष्टि रखे, तो तुम्हें कम से कम दूसरों की नजरों में खुद को भरोसेमंद बनाना चाहिए। अगर तुम चाहते हो कि दूसरे लोग तुम पर भरोसा करें, तुम पर कृपादृष्टि रखें, तुम्हारे बारे में ऊँची राय रखें, तो कम-से-कम तुम्हें गरिमापूर्ण होना चाहिए, जिम्मेदारी की भावना रखनी चाहिए, अपने वचन का पक्का होना चाहिए, और भरोसेमंद होना चाहिए। इसके अलावा, तुम्हें परमेश्वर के सामने मेहनती, जिम्मेदार और वफादार बनकर आना चाहिए—तब तुम बुनियादी रूप से परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा कर चुके होगे। तब तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त होने की उम्मीद होगी, है ना?” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (8))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद लगा मानो मेरा दिल छेद दिया गया हो और मैं बेचैन हो गई। मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने कर्तव्यों में धूर्त और गैर-जिम्मेदार रही हूँ, जिससे मैं पूरी तरह से गैर-भरोसेमंद बन गई हूँ। मुझे पता था कि यांग किंग अपनी खराब काबिलियत के कारण टीम अगुआ की भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं है और यह भी कि उस समय टीम में अगुआई के ओहदे के लिए कोई अन्य उपयुक्त उम्मीदवार नहीं है, लेकिन मैं अभी भी कलीसिया के काम की रक्षा करने का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं थी। मुझे वाकई जिम्मेदारी का कोई एहसास नहीं था! मैंने सोचा कि कैसे कुछ माता-पिता अपने बच्चों को वयस्क होने तक पालते हैं, लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो वे सिर्फ अपने आनंद और मौज-मस्ती की परवाह करते हैं, जब उनके माता-पिता बीमार पड़ते हैं या बुढ़ापे में देखभाल की जरूरत होती है तो वे उनकी उपेक्षा करते हैं। ऐसे लोगों में अंतरात्मा और मानवता की कमी होती है। मैंने परमेश्वर के वचनों के माध्यम से उसके सिंचन और प्रावधान का बहुत आनंद लिया था, लेकिन जब सिंचन कार्य में लोगों के सहयोग की जरूरत थी तो मैं स्वार्थी और घृणित बन गई और सिर्फ अपने दैहिक आराम की परवाह की, कलीसिया के काम पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया। मेरे पास वाकई कोई मानवता नहीं थी! मुझे खुद से बेइंतहा नफरत होने लगी और अपनी हरकतों पर शर्मिंदगी हुई, लेकिन इससे भी अधिक मुझे पछतावा और अपराध बोध हुआ, मैं अब स्वार्थी और घृणित तरीके से जीने के लिए तैयार नहीं थी।
बाद में मैंने सोचा, “ऐसा क्यों है कि जब भी ऐसे कर्तव्य की बात आती है जिसके लिए शारीरिक कष्ट सहने की जरूरत होती है तो मैं प्रतिरोधी हो जाती हूँ और सहयोग करने के लिए अनिच्छुक होती हूँ? इस समस्या की जड़ क्या है?” एक दिन मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला : “जब तक लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं कर लेते हैं और सत्य को समझ नहीं लेते हैं, तब तक यह शैतान की प्रकृति है जो भीतर से इन पर नियंत्रण कर लेती है और उन पर हावी हो जाती है। उस प्रकृति में विशिष्ट रूप से क्या शामिल होता है? उदाहरण के लिए, तुम स्वार्थी क्यों हो? तुम अपने पद की रक्षा क्यों करते हो? तुम्हारी भावनाएँ इतनी प्रबल क्यों हैं? तुम उन अधार्मिक चीजों से प्यार क्यों करते हो? ऐसी बुरी चीजें तुम्हें अच्छी क्यों लगती हैं? ऐसी चीजों को पसंद करने का आधार क्या है? ये चीजें कहाँ से आती हैं? तुम इन्हें स्वीकार कर इतने खुश क्यों हो? अब तक, तुम सब लोगों ने समझ लिया है कि इन सभी चीजों के पीछे मुख्य कारण यह है कि मनुष्य के भीतर शैतान का जहर है। तो शैतान का जहर क्या है? इसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? उदाहरण के लिए, यदि तुम पूछते हो, ‘लोगों को कैसे जीना चाहिए? लोगों को किसके लिए जीना चाहिए?’ तो लोग जवाब देंगे, ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए।’ यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का फलसफा और तर्क लोगों का जीवन बन गए हैं। लोग चाहे जिसका भी अनुसरण करें, वे ऐसा बस अपने लिए करते हैं, और इसलिए वे केवल अपने लिए जीते हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’—यही मनुष्य का जीवन-दर्शन है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। ये शब्द पहले ही भ्रष्ट इंसान की प्रकृति बन गए हैं, और वे भ्रष्ट इंसान की शैतानी प्रकृति की सच्ची तस्वीर हैं। यह शैतानी प्रकृति पहले ही भ्रष्ट इंसान के अस्तित्व का आधार बन चुकी है। कई हजार सालों से वर्तमान दिन तक भ्रष्ट इंसान शैतान के इस जहर से जिया है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पतरस के मार्ग पर कैसे चलें)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए मैंने समझा कि शैतान स्कूली शिक्षा, सामाजिक प्रभावों, साथ ही प्रसिद्ध और महान हस्तियों के विचारों और कथनों का इस्तेमाल लोगों में जहर भरने के लिए करता है, लोगों में विभिन्न शैतानी जहर और फलसफे समाहित करता है, जैसे “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” और “ज़िंदगी छोटी है, तो जब तक है मौज करो।” लोग इन चीजों के अनुसार जीते हैं, दैहिक आनंद को अपना लक्ष्य और अनुसरण की दिशा बना लेते हैं और वे भोजन, कपड़े और दैहिक आनंद और बुरी प्रवृत्तियों के पीछे भागने लगते हैं, जिससे उनका जीवन और भी पतित होता जाता है, अंतरात्मा और सामान्य मानवता के विवेक से रहित हो जाता है। मुझे एहसास हुआ कि मैं भी ऐसी ही थी, खास तौर पर शारीरिक आराम में लिप्त रहती थी। परमेश्वर को पाने से पहले मैं काम में आराम खोजती थी, कष्ट और थकान से बचती थी। चाहे मैं बहुत कमाती या कम, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था; बस खाने-पीने के लिए पर्याप्त होना ही काफी था। जब मैंने अपने आस-पास लोगों को बेहतर जीवन जीने के लिए कष्ट सहते, प्रयास करते और खुद को थकाते देखा तो मुझे लगा कि वे मूर्ख हैं, मानती रही कि जीवन सिर्फ कुछ ही दशकों का है तो खुद के लिए मुश्किलें क्यों खड़ी करूँ? अब परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करते हुए भी मैं अभी तक सांसारिक विचारों को मानती थी, हमेशा शारीरिक आराम की लालसा करती थी और खुद को कष्ट या थकान नहीं होने देना चाहती थी। कभी-कभी अपने कर्तव्य करने में कुछ दिनों की व्यस्तता और मानसिक रूप से तनाव महसूस करने के बाद मैं हमेशा शारीरिक रूप से आराम करने और खुद को थकाने से बचाने के अवसर तलाशना चाहती थी। जब बोझ उठाने, पीड़ा सहने और कीमत चुकाने का समय आता था तो मैं हमेशा पीछे हटना चाहती थी या काम किसी और पर थोपना चाहती थी। जो लोग वाकई अंतरात्मा और विवेक वाले होते हैं, वे अपने कर्तव्यों में परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाने के बारे में सोचते हैं, अपनी पूरी ताकत से अपने कर्तव्य करने और अच्छे नतीजे पाने का प्रयास करते हैं, लेकिन मैं स्वार्थी और घृणित इंसान थी, सिर्फ अपने स्वयं के शारीरिक हितों के बारे में सोचती थी और अपने कर्तव्यों में अपना पूरा प्रयास करने में अनिच्छुक होने के कारण धूर्त और सुस्त बनी रहती थी। भले ही मेरे शरीर को आराम मिला और मुझे ज्यादा कष्ट सहने नहीं पड़े, मैंने सत्य पाने के कई अवसर गँवा दिए। मैंने बार-बार अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ा और इनकार किया और परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह किया, अगर यह ऐसे ही चलता रहा तो परमेश्वर मुझे बस ठुकरा देगा और हटा देगा। यह एक ऐसा मार्ग है जो मृत्यु की ओर ले जाता है! इस क्षण मैंने वाकई नीतिवचन की पुस्तक में कही गई बातों का अर्थ गहराई से समझ लिया, “निश्चिन्त रहने के कारण मूढ़ लोग नष्ट होंगे।” मेरे दिल में डर की भावना बनी हुई थी। अगर मैंने उस भाई की कार दुर्घटना के बारे में नहीं सुना होता तो मैं आत्म-चिंतन नहीं करती और मुझे आराम के पीछे भागने के गंभीर परिणामों का एहसास नहीं होता, पश्चात्ताप करने या बदलने में तो मैं सक्षम ही नहीं होती। मैंने मन ही मन परमेश्वर का धन्यवाद किया।
बाद में मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश मिला, जिसने मुझे अभ्यास का मार्ग प्रदान किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “एक ईमानदार व्यक्ति की अभिव्यंजनाएँ क्या हैं? सबसे पहले, परमेश्वर के वचनों के बारे में कोई संदेह नहीं होना। यह ईमानदार व्यक्ति की अभिव्यंजनाओं में से एक है। इसके अलावा, सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यंजना है सभी मामलों में सत्य की खोज और उसका अभ्यास करना—यह सबसे महत्वपूर्ण है। तुम कहते हो कि तुम ईमानदार हो, लेकिन तुम हमेशा परमेश्वर के वचनों को अपने मस्तिष्क के कोने में धकेल देते हो और वही करते हो जो तुम चाहते हो। क्या यह एक ईमानदार व्यक्ति की अभिव्यंजना है? तुम कहते हो, ‘भले ही मेरी योग्यता कम है, लेकिन मेरे पास एक ईमानदार दिल है।’ फिर भी, जब तुम्हें कोई कर्तव्य मिलता है, तो तुम इस बात से डरते हो कि अगर तुमने इसे अच्छी तरह से नहीं किया तो तुम्हें पीड़ा सहनी और इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी, इसलिए तुम अपने कर्तव्य से बचने के लिए बहाने बनाते हो या फिर सुझाते हो कि इसे कोई और करे। क्या यह एक ईमानदार व्यक्ति की अभिव्यंजना है? स्पष्ट रूप से, नहीं है। तो फिर, एक ईमानदार व्यक्ति को कैसे व्यवहार करना चाहिए? उसे परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहिए, जो कर्तव्य उसे निभाना है उसके प्रति निष्ठावान होना चाहिए और परमेश्वर के इरादों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। यह कई तरीकों से व्यक्त होता है : एक तरीका है अपने कर्तव्य को ईमानदार हृदय के साथ स्वीकार करना, अपने दैहिक हितों के बारे में न सोचना, और इसके प्रति अधूरे मन का न होना या अपने लाभ के लिए साजिश न करना। ये ईमानदारी की अभिव्यंजनाएँ हैं। दूसरा है अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने के लिए अपना तन-मन झोंक देना, चीजों को ठीक से करना, और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपने कर्तव्य में अपना हृदय और प्रेम लगा देना। अपना कर्तव्य निभाते हुए एक ईमानदार व्यक्ति की ये अभिव्यंजनाएँ होनी चाहिए। अगर तुम जानते और समझते हो कि क्या करना है, लेकिन तुम इसे करते नहीं हो, तो तुम अपने कर्तव्य में अपना पूरा दिल और अपनी सारी शक्ति नहीं लगा रहे हो। बल्कि तुम धूर्त और काहिल हो। क्या इस तरह से अपना कर्तव्य निभाने वाले लोग ईमानदार होते हैं? बिल्कुल नहीं। परमेश्वर के पास ऐसे धूर्त और धोखेबाज लोगों का कोई उपयोग नहीं है; उन्हें निकाल देना चाहिए। परमेश्वर कर्तव्य निभाने के लिए सिर्फ ईमानदार लोगों का उपयोग करता है। यहाँ तक कि निष्ठावान मजदूर भी ईमानदार होने चाहिए। जो लोग हमेशा अनमने और धूर्त होते हैं और ढिलाई के तरीके तलाशते रहते हैं—वे सभी लोग धोखेबाज हैं, वे सभी राक्षस हैं। उनमें से कोई भी वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता और वे सभी निकाल दिए जाएँगे। कुछ लोग सोचते हैं, ‘ईमानदार व्यक्ति होने का मतलब बस सच बोलना और झूठ न बोलना है। ईमानदार व्यक्ति बनना तो वास्तव में आसान है।’ तुम इस भावना के बारे में क्या सोचते हो? क्या ईमानदार व्यक्ति होने का दायरा इतना सीमित है? बिल्कुल नहीं। तुम्हें अपना हृदय प्रकट करना होगा और इसे परमेश्वर को सौंपना होगा, यही वह रवैया है जो एक ईमानदार व्यक्ति में होना चाहिए। इसलिए एक ईमानदार हृदय अनमोल है। इसका तात्पर्य क्या है? इसका तात्पर्य है कि एक ईमानदार हृदय तुम्हारे व्यवहार को नियंत्रित कर सकता है और तुम्हारी दशा बदल सकता है। यह तुम्हें सही विकल्प चुनने, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और उसकी स्वीकृति प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है। ऐसा हृदय सचमुच अनमोल है। यदि तुम्हारे पास इस तरह का ईमानदार हृदय है, तो तुम्हें इसी स्थिति में रहना चाहिए, तुम्हें इसी तरह व्यवहार करना चाहिए, और इसी तरह तुम्हें खुद को समर्पित करना चाहिए” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे समझ आया कि परमेश्वर ईमानदार लोगों को और उन्हें पसंद करता है जिनमें अपने कर्तव्यों के प्रति बोझ उठाने और जिम्मेदारी का एहसास होता है। ऐसे लोगों की काबिलियत कम हो सकती है, लेकिन उनका दिल परमेश्वर के घर की ओर निर्देशित हो सकता है। वे अपने हितों की योजना बनाए बिना अपने कर्तव्यों में अपना पूरा दिल और ताकत लगाते हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों का अनुमोदन करता है। मैं परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करने के लिए तैयार हो गई। भले ही टीम अगुआ होने के नाते काम में कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, परमेश्वर लोगों पर इतना अधिक बोझ नहीं डालता कि वे उसे उठा न सकें। मुझे परमेश्वर के इरादे पर विचार करना चाहिए, कलीसिया के काम को प्राथमिकता देनी चाहिए और जो मैं कर सकती हूँ, उसे करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, कोई धूर्तता या ढिलाई नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपने कर्तव्यों में परमेश्वर के प्रति समर्पण वाला दिल रखना चाहिए। मैंने नूह के जहाज बनाने के बारे में सोचा। उस समय उद्योग अविकसित थे और परिवहन सीमित थे और नूह एक पेशेवर जहाज निर्माता नहीं था। नूह के लिए इतना बड़ा जहाज बनाना बहुत मुश्किल था, लेकिन जब परमेश्वर का आदेश हुआ तो नूह पीछे नहीं हटा और उसने अपने शारीरिक हितों के बारे में विचार नहीं किया या ऐसी योजना नहीं बनाई। जैसे ही परमेश्वर का आदेश उसके पास आया, वह तुरंत बिना देर किए अभ्यास करने लगा। नूह ने अपने दिल को परमेश्वर के हृदय के साथ जोड़ दिया और परमेश्वर के बोझ को अपना बोझ बना लिया। उसका परमेश्वर के आदेश के प्रति सरल और विनम्र हृदय था, यह सबसे कीमती है और परमेश्वर इसका अनुमोदन करता है। अगुआओं ने मुझे टीम अगुआ बनने के लिए कहा ताकि भाई-बहनों को उनके सिंचन कार्य को अच्छी तरह से करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके, इसके लिए मुझे सिर्फ थोड़ा और कष्ट सहना पड़ता और थोड़ी और कीमत चुकानी पड़ती, लेकिन मेरे पास आज्ञाकारिता का कोई रवैया नहीं था। अपने कर्तव्य के प्रति मेरा रवैया नूह से बिल्कुल अलग था! खुद की तुलना नूह की सादगी, ईमानदारी और समर्पण से करते हुए मुझे बहुत शर्मिंदगी और अपराध बोध हुआ। अब जब सिंचन कार्य बाधित हो गया है, मुझे परमेश्वर के इरादे पर विचार करना चाहिए, इसे अपने कंधों पर उठाने की पहल करनी चाहिए और बिना किसी पछतावे के जो मुझे करना चाहिए और कर सकती हूँ, उसे करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। इसलिए मैंने यांग किंग के मुद्दों पर ईमानदारी से रिपोर्ट की; नतीजतन अगुआओं ने उसे बरखास्त कर दिया और मैं टीम अगुआ बन गई।
शुरू में जब मैंने टीम अगुआ के रूप में प्रशिक्षण लिया तो मैं कई क्षेत्रों में कमजोर थी और मेरे सामने सुलझाने के लिए कई समस्याएँ थीं और मैं अक्सर ओवरटाइम काम करती थी। समय के साथ मेरे अंदर कुछ नकारात्मक भावनाएँ आने लगीं, मुझे लगा कि टीम अगुआ होने में बहुत सारी चिंताएँ हैं और मेरा मूल कर्तव्य बहुत आसान था। जब मैंने इस तरह से सोचा तो मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से अपनी देह की परवाह करने लगी हूँ, इसलिए मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की, अपनी देह के खिलाफ विद्रोह करने के लिए तैयार हो गई। मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “आज, मुझे वह आदमी पसंद है, जो मेरी इच्छा के अनुसार चल सके, जो मेरी ज़िम्मेदारियों का ध्यान रख सके, और जो मेरे लिए सच्चे दिल और ईमानदारी से अपना सब-कुछ दे सके। मैं उन्हें लगातार प्रबुद्ध करूँगा, उन्हें अपने से दूर नहीं जाने दूँगा। मैं अक्सर कहता हूँ, ‘जो ईमानदारी से मेरे लिए स्वयं को खपाता है, मैं निश्चित रूप से तुझे बहुत आशीष दूँगा।’ ‘आशीष’ किस चीज़ का संकेत करता है? क्या तुम जानते हो? पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य के संदर्भ में, यह उन ज़िम्मेदारियों का संकेत करता है, जो मैं तुम्हें देता हूँ। वे सभी, जो कलीसिया के लिए ज़िम्मेदारी वहन कर पाते हैं, और जो ईमानदारी से मेरे लिए खुद को अर्पित करते हैं, उनकी ज़िम्मेदारियाँ और उनकी ईमानदारी दोनों आशीष हैं, जो मुझसे आते हैं। इसके अलावा, उनके लिए मेरे प्रकटन भी मेरे आशीष हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 82)। परमेश्वर के वचनों पर मनन करने से मैं परमेश्वर का इरादा समझ गई। टीम अगुआ बनने के बाद मैंने ज्यादा लोगों, घटनाओं और चीजों के साथ संवाद किया। जब भी मुझे किसी समस्या या मुश्किल का सामना करना पड़ता, मुझे इसके समाधान के लिए परमेश्वर पर निर्भर होना और सत्य की खोज करना सीखना था। यह मेरी जीवन प्रगति के लिए ज्यादा फायदेमंद था और यह परमेश्वर का अनुग्रह था! यह सोचकर मैं प्रोत्साहित और दृढ़ संकल्पित हो गई। इसके बाद मैंने सक्रियता से काम का जायजा लिया और जब भी मुझे पता चलता कि भाई-बहन खराब मनोदशा में हैं तो मैं समाधान तक पहुँचने के लिए सत्य की संगति करती। मैंने काम में मुद्दों से संबंधित सत्य सिद्धांतों की भी तलाश की। इस तरह अभ्यास करने से मुझे लगा कि चाहे मेरा जीवन प्रवेश हो या मेरे कर्तव्य, मैं कुछ प्रगति कर रही हूँ। भाई-बहनों के साथ हर बातचीत के बाद उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ हासिल हुआ है और मुझे बहुत खुशी हुई। मैंने देखा कि जिम्मेदारियों को सक्रियता से उठाने के लिए तैयार होने से मैंने न सिर्फ खुद को लाभ पहुँचाया बल्कि दूसरों की मदद करने में भी सक्षम हुई। मुझे एहसास हुआ कि देह के लिए न जीने और अपने कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने से मुझे सुकून और शांति मिली।