65. प्रसिद्धि और लाभ की चाहत ने मुझे सचमुच बर्बाद कर दिया

झोंगचेंग, चीन

जब मैं अभी छोटा ही था, मेरे दो चचेरे भाईयों ने कम उम्र में ही सफलता हासिल कर ली थी और उनके पास कारें और मकान थे। हर बार नववर्ष पर जब हम रिश्तेदारों से मिलने जाते थे, वे लगातार मेरे चचेरे भाइयों की प्रशंसा करते और उन्हें आदर भरी नजरों से देखते रहते। मेरे चचेरे भाइयों की उत्कृष्ट छाप मेरे दिल में गहराई से अंकित हो गई। उस समय मेरा परिवार हमारे रिश्तेदारों में सबसे गरीब था और लोग हमें नीची नजर से देखते थे। इसलिए मुझे अपने चचेरे भाइयों से ईर्ष्या होती थी क्योंकि वे जहाँ भी जाते थे, दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। मुझे लगता था कि गरिमा और मूल्य के साथ जीने का यही तरीका है। मैंने मन ही मन खुद से वादा किया, “भविष्य में मैं पक्का कुछ कर दिखाऊँगा और कुछ हासिल करूँगा और मेरे रिश्तेदारों और दोस्तों को मेरा आदर करना ही पड़ेगा।”

सोलह साल की उम्र में मैं अभी नादान ही था, अपने दिल में सपने सँजोए मैं कामकाज की यात्रा पर निकल पड़ा। गुआंगजो जैसे अपरिचित शहर में अकेले काम ढूँढ़ने में मुझे कठिनाइयों का अनुभव हुआ। और मुझे रेलवे स्टेशन के पास फूलों की क्यारियों के पास सोना पड़ता था क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं होते थे। मेरे आदर्श सुंदर थे, लेकिन हकीकत कठोर थी और चाहे मैंने कितनी भी मेहनत की हो, मैं कभी भी ज्यादा पैसा नहीं कमा सका। उस समय मेरी माँ ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के सुसमाचार का उपदेश दिया और मैंने कुछ समय के लिए सभाओं में भाग लिया, लेकिन क्योंकि मैं पैसा कमाना चाहता था और बेहतर जीवन जीना चाहता था, इसलिए मैं काम करने के लिए इधर-उधर जाता रहा। 2014 में मैं एक प्रसिद्ध चेन कंपनी में विक्रेता बन गया, मन ही मन सोचने लगा, “बहुत से सेलिब्रिटी और अमीर लोग सेल्स से शुरुआत करते हैं। सेल्स न सिर्फ लोगों को प्रशिक्षित करती है बल्कि व्यक्ति के व्यावसायिक कौशल को भी बढ़ाती है।” इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने खुद को पूरी लगन से काम में डुबो दिया। नतीजे पाने के लिए मैं अक्सर व्यापारिक यात्राओं के लिए प्रांतों और शहरों में यात्रा करता था, दिन-रात काम करता था, लगभग कभी भी समय पर खाना नहीं खाता था या ठीक से सो नहीं पाता था। चूँकि मुझे पहले ही सफर के दौरान उल्टी आने की समस्या थी, तो मुझे हर दिन यात्रा करने से चक्कर आते थे और थकान होती थी। गर्मियों में जब मैं ट्रक में सामान ढूँढ़ने लगता, मैं पसीने से लथपथ हो जाता, मेरी पैंट मेरी टाँगों से ऐसे चिपक जाती थी जैसे उसे अभी-अभी धोया गया हो। एक बार सर्दियों में मेरी कार की विंडशील्ड टूट गई और मुझे कड़कती ठंडी हवा और बर्फ के बीच सौ किलोमीटर से अधिक समय तक गाड़ी चलानी पड़ी। कार से बाहर निकलने के बाद मैं इतना जम गया था कि मैं स्थिर होकर नहीं चल पा रहा था। मेरा दृढ़ विश्वास था कि “जो लोग मुश्किलें सहते हैं, वे लैंड रोवर चला सकते हैं” और आज मैं जो मुश्किलें झेल रहा हूँ, वे कल की सफलता का मार्ग प्रशस्त करेंगी। मैंने अपने प्रयासों से अपने सपनों को हासिल करने का लक्ष्य रखा। कंपनी में मेरी कई ब्रैंड मैनेजरों से बातचीत होती थी और मुझे उन शानदार कपड़े पहनने वाले कुलीन लोगों से ईर्ष्या होती थी, मैं उम्मीद करता था कि एक दिन मैं भी ब्रैंड मैनेजर बन सकता हूँ और दूसरों की प्रशंसा और आदर पा सकता हूँ।

पलक झपकते दो साल बीत गए और आखिरकार मुझे ब्रैंड मैनेजर के पद पर पदोन्नत कर दिया गया। उसके बाद मुझे कई बार डिपार्टमेंट सेल्स चैंपियन का खिताब मिला और बेहतरीन ब्रैंड मैनेजर का दर्जा दिया गया। सहकर्मी मेरी ओर ईर्ष्या से देखते और कहते, “यह ब्रैंड तुम्हारे बिना काम नहीं कर सकता।” फैक्ट्री मैनेजर अक्सर मुझे सामाजिक कार्यक्रमों में ले जाते और लगातार मेरे लिए उपहार लाते थे। मेरा अहंकार संतुष्ट था और मैं बेहद खुश रहता था। मुझे लगा कि मेरी कार्यक्षमताएँ मजबूत हैं और मैं आत्मविश्वास की भावना के साथ आगे बढ़ा। अपनी महत्वाकांक्षा से प्रेरित होने के चलते ब्रैंड मैनेजर का पद अब मेरे लिए पर्याप्त नहीं था और मैं एक और सीढ़ी चढ़ना चाहता था, ताकि मेरे अमीर और शक्तिशाली रिश्तेदार देख सकें कि मैं उनसे बेहतर हूँ। लगातार व्यापारिक यात्राओं और सामाजिक कार्यक्रमों के चलते मैं हर दिन पूरी तरह से क्षीण और थका हुआ महसूस करता था और कितनी भी नींद इसकी भरपाई नहीं कर पाती थी। मेरी त्वचा की हालत बिगड़ने लगी और मैं अस्थायी राहत के लिए सिर्फ मलहम पर ही निर्भर हो गया। मैंने अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए घर जाने पर भी विचार किया, लेकिन जब मैंने सोचा कि जो मैंने हासिल किया है, उसके लिए मैंने कितना प्रयास किया है, मैं जानता था कि एक बार अगर कुछ समय के लिए वापस चला गया तो जिस ब्रैंड के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, उसे कोई और सँभाल लेगा और मैं प्रबंधक का अपना पद गँवा दूँगा और सारी महिमा और प्रशंसा गायब हो जाएगी। मैंने तय किया कि मैं इतनी आसानी से हार नहीं मान सकता और चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों, मुझे दृढ़ रहना होगा।

बाद में चावल के नूडल की फैक्ट्री के एक प्रांतीय प्रबंधक ने मुझे फोन किया, वह दो शहरों में चावल के नूडल की बिक्री का कारोबार मुझे सौंपना चाहता था। मैंने मन ही मन सोचा, “अगर मैं अच्छा करता हूँ तो मैं भविष्य में प्रांतीय प्रबंधक बन सकता हूँ। अलग दिखने के लिए मुझे उच्च पद की चुनौती लेने का साहस करना चाहिए।” इसलिए मैंने अपनी कई वर्ष पुरानी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और चावल के नूडल फैक्ट्री का सिटी मैनेजर बन गया। जब गाँव के लोगों ने सुना कि मैं सिटी मैनेजर बन गया हूँ तो उन्होंने ईर्ष्या से मुझसे कहा, “एक बार जब तुम खुद को स्थापित कर लोगे तो कृपया हमारे बच्चे को अपने साथ काम में लगा देना।” यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई और मेरा अहंकार संतुष्ट हो गया। मुझे बस उम्मीद थी कि एक दिन मैं प्रांतीय प्रबंधक बन जाऊँगा, तब मैं चाहे कभी भी कहीं भी जाऊँ, दूसरे लोग मुझे कुलीन ही कहेंगे और मेरे रिश्तेदार मुझे नई रोशनी में देखेंगे। ये विचार मुझे वास्तव में उत्साहित करते थे। लेकिन अप्रत्याशित रूप से कुछ ऐसा हुआ जिसकी उम्मीद भी नहीं थी। 2021 की शुरुआत में फैक्ट्री की कुल बिक्री में काफी गिरावट आई और मैं चिंतित होकर चावल के नूडल्स के एक के बाद एक बैच को मियाद खत्म होने के करीब पहुँचते देखता रहा। साथ ही सभी व्यावसायिक यात्राओं, देर से सोने और अनियमित भोजन से मुझे जठरांत्र संबंधी शिथिलता और दैनिक दस्त की समस्या हो गई। इससे भी बदतर मेरा सोरायसिस काफी बिगड़ गया और मेरी त्वचा में असहनीय खुजली होने लगी। मेरे सिर की त्वचा मोटी पपड़ी से ढक गई और उसमें बुरी तरह जलन होने लगी, इतनी सख्त हो गई कि पलक झपकाना भी मुश्किल हो गया। मैं इलाज के लिए कई जगहों पर गया, लेकिन कोई भी दवा और इंजेक्शन काम नहीं आया। मैं अपनी हालत से इतना परेशान था कि बुरी तरह थक गया था। लेकिन यह सारा दिल का दर्द, पीड़ा और कमजोरी ऐसी चीजें हैं जिन्हें मैं दूसरों के साथ साझा नहीं कर सकता था, क्योंकि मुझे डर था कि वे मेरा मजाक उड़ाएँगे या मुझे नीचा दिखाएँगे। जब मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर पाता था तो मैं अपनी कुंठा निकालने के लिए अपनी माँ को फोन करता था और हर बार मेरी माँ कहती थी, “बस काम करना बंद करो और वापस आ जाओ!” लेकिन इस पद पर पहुँचने के लिए मैंने बहुत मेहनत की थी, मैं यह सब कैसे छोड़ सकता था? मुझे यह करना सहन नहीं हो पाता। मेरे दिल में अभी भी आस्था थी और मुझे यह कहावत याद आई : “जीवन एक चींटी की तरह है, लेकिन किसी व्यक्ति में हंस की महत्वाकांक्षा होनी चाहिए और भले ही जीवन कागज की तरह पतला हो, लेकिन व्यक्ति में अदम्य साहस होना चाहिए।” मैंने सोचा, “चूँकि मैं अलग दिखना चाहता हूँ और महान चीजें हासिल करना चाहता हूँ, इसलिए निश्चित रूप से दुख अपरिहार्य है।” इस प्रकार मैं जून तक सहता रहा, लेकिन फैक्ट्री के कामकाज में अभी भी सुधार नहीं हुआ। कुछ समय बाद मेरा सोरायसिस बिगड़ता रहा और यह मेरे पूरे चेहरे पर फैल गया। मैं दुकानों पर जाते समय और कार्यक्रम आयोजित करते समय मास्क पहनता था और कर्मचारी मुझे देखकर बच निकलते थे। मुझे बहुत संताप महसूस होता था, मैंने सोचा, “मैं हर दिन कड़ी मेहनत कर रहा हूँ और इतना दबाव झेल रहा हूँ, फिर भी यह नतीजा है। क्या मेरा संघर्ष वाकई इसके लायक है?” कुछ दिनों बाद एक सहकर्मी ने मुझे बताया कि हमारे प्रमुख को कैंसर हो गया है और अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है। फोन रखने के बाद मैं बहुत देर तक शांत नहीं हो सका। मैं शीशे के सामने खड़ा था, अपने चेहरे पर लाल धब्बे देख रहा था और मैं गहरी सोच में डूब गया, “प्रांतीय प्रबंधक बस उम्र के चौथे दशक में है; इतनी जानलेवा बात अचानक कैसे हो सकती है? उसने बहुत पैसा कमाया और उसे प्रसिद्धि भी मिली, लेकिन चाहे उसने कितना भी पैसा कमाया हो या वह कितनी भी प्रसिद्ध हो, वह अपने स्वास्थ्य को वापस नहीं खरीद सकती। मेरी महज उम्र के तीसरे दशक में हूँ और मेरा शरीर पहले से ही बहुत सारी समस्याओं से ग्रस्त है। अगर मैं इसी तरह चलता रहा तो क्या मेरा अंत भी उसकी तरह होगा? अगर मैं ऐसे नतीजे पाने के लिए अपने स्वास्थ्य को जोखिम में डालता हूँ तो पैसे और उच्च सम्मान का क्या मतलब है?” उन अगले कुछ दिनों में मैं पूरी तरह से भ्रमित और असहाय हो गया, जैसे कि मैं जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता। शारीरिक दर्द और मानसिक तनाव के दोहरे दबाव के बीच मैंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और भारी मन से मैंने अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए घर जाने का फैसला किया।

घर लौटने के बाद मैंने अपने दिन उदासी और संतप्त होकर बिताए, मैं सोचता था, “इतने सालों के संघर्ष के बाद ऐसा लगता है कि मैं फिर से वहीं पहुँच गया हूँ जहाँ से मैंने शुरुआत की थी। मैंने अपनी सारी प्रसिद्धि और लाभ गँवा दिया है और मेरा शरीर बीमारियों से भर गया है। मैं कैसे आगे बढ़ सकता हूँ?” मेरी माँ ने देखा कि मैं दुखी हूँ और मुझे कुछ मार्गदर्शन दिया, संगति की कि हम अपने भाग्य को नियंत्रित नहीं कर सकते और सब कुछ परमेश्वर द्वारा निर्धारित है। फिर उसने मेरे लिए परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “कोई व्यक्ति कौन-सा व्यवसाय चुनता है, कोई व्यक्ति कैसे जीविका अर्जित करता है : क्या लोगों का इस पर कोई नियन्त्रण है कि वे अच्छा चुनाव करते हैं या बुरा चुनाव? क्या वो उनकी इच्छाओं एवं निर्णयों के अनुरूप होता है? अधिकांश लोगों की ये इच्छाएं होती हैं—कम काम करना और अधिक कमाना, बहुत अधिक परिश्रम न करना, अच्छे कपड़े पहनना, हर जगह नाम और प्रसिद्धि हासिल करना, दूसरों से आगे निकलना, और अपने पूर्वजों का सम्मान बढ़ाना। लोग सब कुछ बेहतरीन होने की इच्छा रखते हैं, किन्तु जब वे अपनी जीवन-यात्रा में पहला कदम रखते हैं, तो उन्हें धीरे-धीरे समझ में आने लगता है कि मनुष्य का भाग्य कितना अपूर्ण है, और पहली बार उन्हें समझ में आता है कि भले ही इंसान अपने भविष्य के लिए स्पष्ट योजना बना ले, भले ही वो महत्वाकांक्षी कल्पनाएँ पाल ले, लेकिन किसी में अपने सपनों को साकार करने की योग्यता या सामर्थ्य नहीं होता, कोई अपने भविष्य को नियन्त्रित नहीं कर सकता। सपनों और हकीकत में हमेशा कुछ दूरी रहेगी; चीज़ें वैसी कभी नहीं होतीं जैसी इंसान चाहता है, और इन सच्चाइयों का सामना करके लोग कभी संतुष्टि या तृप्ति प्राप्त नहीं कर पाते। कुछ लोग तो अपनी जीविका और भविष्य के लिए, अपने भाग्य को बदलने के लिए, किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं, हर संभव प्रयास करते हैं और बड़े से बड़ा त्याग कर देते हैं। किन्तु अंततः, भले ही वे कठिन परिश्रम से अपने सपनों और इच्छाओं को साकार कर पाएं, फिर भी वे अपने भाग्य को कभी बदल नहीं सकते, भले ही वे कितने ही दृढ़ निश्चय के साथ कोशिश क्यों न करें, वे कभी भी उससे ज्यादा नहीं पा सकते जो नियति ने उनके लिए तय किया है। योग्यता, बौद्धिक स्तर, और संकल्प-शक्ति में भिन्नताओं के बावजूद, भाग्य के सामने सभी लोग एक समान हैं, जो महान और तुच्छ, ऊँचे और नीचे, तथा उत्कृष्ट और निकृष्ट के बीच कोई भेद नहीं करता। कोई किस व्यवसाय को अपनाता है, कोई आजीविका के लिए क्या करता है, और कोई जीवन में कितनी धन-सम्पत्ति संचित करता है, यह उसके माता-पिता, उसकी प्रतिभा, उसके प्रयासों या उसकी महत्वाकांक्षाओं से तय नहीं होता, बल्कि सृजनकर्ता द्वारा पूर्व निर्धारित होता है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचन बिल्कुल सत्य हैं। हर कोई अच्छा जीवन जीना चाहता है और इसे पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, लेकिन आखिरकार किसी व्यक्ति का भाग्य ऐसी चीज नहीं है जिसे वह स्वयं तय कर सके। मैंने अपने चचेरे भाइयों के बारे में सोचा। उन्होंने इतनी मेहनत नहीं की थी, फिर भी वे जिस भी उद्योग में काम करते थे, उसमें अग्रणी बनने में सक्षम थे और अच्छे लाभ का आनंद लेते थे। मैंने उनके जैसी सफलता पाने के लिए दस वर्षों से अधिक समय तक संघर्ष किया, लेकिन मुझे सिर्फ बीमारी से भरा शरीर मिला और मैंने जो भी पैसा कमाया था, वह सब अस्पताल की फीस में खर्च हो गया। फिर मुझे एक पुराने कर्मचारी की याद आई। उसका सेल्स प्रदर्शन प्रभावशाली नहीं था, लेकिन उसे दूसरी जगह बसने के बदले मुआवजे के रूप में दस से अधिक मकान मिले। इससे मुझे एहसास हुआ कि जो होना है, वह होकर रहेगा और चाहे हम कितनी भी मेहनत करें, अगर कोई चीज हमारे लिए नहीं बनी है तो वह सब व्यर्थ है। किसी व्यक्ति का भाग्य उसके हाथ में नहीं होता और कोई भी प्रयास उसे बदल नहीं सकता। बाद में भाई-बहनों ने मेरी हालत के बारे में सुना और मेरे साथ संगति की, कहा कि यह बीमारी भी परमेश्वर की अनुमति से हुई है और इस कष्ट के बिना मैं परमेश्वर के पास वापस नहीं लौट पाता। मैं बहुत भावुक हो गया। मुझे याद आया कि मैं पहले भी परमेश्वर में विश्वास करता था, लेकिन धन, प्रसिद्धि और लाभ की खोज में बीच में ही उसे छोड़ दिया था। अगर मैं बीमार नहीं पड़ता तो मैं अभी भी इस दुनिया में भटक रहा होता और खोया हुआ होता। इतने सालों के बाद भी परमेश्वर ने मुझे नहीं छोड़ा था और इस बीमारी के माध्यम से वह मुझे अपने घर में वापस लाया ताकि मैं उस पर विश्वास करता रहूँ। यह बीमारी वाकई मेरे लिए परमेश्वर का उद्धार थी और मैं सच में परमेश्वर का आभारी था। उसके बाद मैंने सक्रियता से सभाओं में भाग लिया और परमेश्वर के वचनों को खाया और पिया।

एक सभा के दौरान एक बहन ने परमेश्वर के वचनों से दो अंश पढ़े। परमेश्वर कहता है : “लोग सोचते हैं कि एक बार उनके पास प्रसिद्धि और लाभ आ जाए, तो वे ऊँचे रुतबे और अपार धन-संपत्ति का आनंद लेने के लिए, और जीवन का आनंद लेने के लिए इन चीजों का लाभ उठा सकते हैं। उन्हें लगता है कि प्रसिद्धि और लाभ एक प्रकार की पूँजी है, जिसका उपयोग वे भोग-विलास का जीवन और देह का प्रचंड आनंद प्राप्त करने के लिए कर सकते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ की खातिर, जिसके लिए मनुष्‍य इतना ललचाता है, लोग स्वेच्छा से, यद्यपि अनजाने में, अपने शरीर, मन, वह सब जो उनके पास है, अपना भविष्य और अपनी नियति शैतान को सौंप देते हैं। वे ईमानदारी से और एक पल की भी हिचकिचाहट के बगैर ऐसा करते हैं, और सौंपा गया अपना सब-कुछ वापस प्राप्त करने की आवश्यकता के प्रति सदैव अनजान रहते हैं। लोग जब इस प्रकार शैतान की शरण ले लेते हैं और उसके प्रति वफादार हो जाते हैं, तो क्या वे खुद पर कोई नियंत्रण बनाए रख सकते हैं? कदापि नहीं। वे पूरी तरह से शैतान द्वारा नियंत्रित होते हैं, सर्वथा दलदल में धँस जाते हैं और अपने आप को मुक्त कराने में असमर्थ रहते हैं। जब कोई प्रसिद्धि और लाभ के दलदल में फँस जाता है, तो फिर वह उसकी खोज नहीं करता जो उजला है, जो न्यायोचित है, या वे चीजें नहीं खोजता जो खूबसूरत और अच्छी हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि प्रसिद्धि और लाभ की जो मोहक शक्ति लोगों के ऊपर हावी है, वह बहुत बड़ी है, वे लोगों के लिए जीवन भर, यहाँ तक कि अनंत काल तक सतत अनुसरण की चीजें बन जाती हैं। क्या यह सत्य नहीं है?(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और इन बेड़ियों को पहने रहते हुए, उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्‍य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है। अब, शैतान की करतूतें देखते हुए, क्या उसके भयानक इरादे एकदम घिनौने नहीं हैं? हो सकता है, आज शायद तुम लोग शैतान के भयानक इरादों की असलियत न देख पाओ, क्योंकि तुम लोगों को लगता है कि व्यक्ति प्रसिद्धि और लाभ के बिना नहीं जी सकता। तुम लोगों को लगता है कि अगर लोग प्रसिद्धि और लाभ पीछे छोड़ देंगे, तो वे आगे का मार्ग नहीं देख पाएँगे, अपना लक्ष्य देखने में समर्थ नहीं हो पाएँगे, उनका भविष्य अंधकारमय, धुँधला और विषादपूर्ण हो जाएगा। परंतु, धीरे-धीरे तुम लोग समझ जाओगे कि प्रसिद्धि और लाभ वे विशाल बेड़ियाँ हैं, जिनका उपयोग शैतान मनुष्य को बाँधने के लिए करता है। जब वह दिन आएगा, तुम पूरी तरह से शैतान के नियंत्रण का विरोध करोगे और उन बेड़ियों का विरोध करोगे, जिनका उपयोग शैतान तुम्हें बाँधने के लिए करता है। जब वह समय आएगा कि तुम वे सभी चीजें निकाल फेंकना चाहोगे, जिन्हें शैतान ने तुम्हारे भीतर डाला है, तब तुम शैतान से अपने आपको पूरी तरह से अलग कर लोगे और उस सबसे सच में घृणा करोगे, जो शैतान तुम्हारे लिए लाया है। तभी मानवजाति को परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और तड़प होगी(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे गहराई तक प्रभावित किया। ऐसा लगा जैसे मैं अभी-अभी किसी स्वप्न से जागा हूँ। मुझे एहसास हुआ कि बचपन से ही मैं जिस प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भाग रहा था, वह शैतान द्वारा बिछाया गया जाल है। मैं सोचता था कि प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागना उचित है, जीने का मतलब सिर्फ पेट भरने से संतुष्ट होना नहीं है, बल्कि प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागना है, सिर्फ इसी तरह जीने से ही कोई गरिमा और मूल्य के साथ जी सकता है। अब मैं समझ गया कि धन, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागना उस पतंगे की तरह है जो उड़कर आग की लपटों में समा जाता है, ऐसा लगता है कि तुम जो कुछ भी देखते हो वह उज्ज्वल है, लेकिन जब तुम असल में उसमें गोता लगाते हो तो तुम अपना जीवन गँवा सकते हो। पीछे मुड़कर देखने पर मुझे एहसास हुआ कि मैंने छोटी उम्र से ही विभिन्न शैतानी विचारधाराओं को आत्मसात कर लिया था, जैसे कि “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है” और “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है,” “एक अच्छा आदमी दुनिया के चारों कोनों को लक्ष्य बनाता है,” इत्यादि। इन विचारों से प्रभावित होकर मैंने छोटी उम्र से ही अपने लिए ऊँचे आदर्श और आकांक्षाएँ निर्धारित कर ली थीं और अपनी किशोरावस्था में ही यात्राएँ करनी शुरू कर दी थीं, अपने सपने साकार करने के अवसर तलाशने लगा था। अनेक असफलताओं के बावजूद मैंने कभी हार नहीं मानी। खासकर जब मैंने लोकप्रिय कहावत सुनी, “जीवन चींटी की तरह है, लेकिन व्यक्ति में हंस जैसी महत्वाकांक्षा होनी चाहिए और भले ही जीवन कागज की तरह पतला हो, लेकिन व्यक्ति में अदम्य साहस होना चाहिए।” मैंने अपना नाम कमाने, प्रसिद्ध व्यक्ति बनने और लोगों से आदर पाने का संकल्प लिया। पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि मैं बीमारी से बहुत परेशान था और जीवित रहने के लिए केवल दवा पर ही निर्भर था। लेकिन जो आदर मैं चाहता था उसे पाने के लिए मैंने कई कठिनाइयाँ झेलीं और कई वर्षों के प्रयास के बाद मैं आखिरकार ब्रैंड मैनेजर बन गया और दूसरों से आदर पा सका। फिर भी मैं अभी तक संतुष्ट नहीं था। प्रांतीय प्रबंधक बनने और अपने रिश्तेदारों के सामने खुद को नई रोशनी में दिखाने के लिए मैंने सिटी मैनेजर बनने के लिए कई वर्ष पुरानी अपनी नौकरी छोड़ दी। जब बिक्री में गिरावट आई, मैंने हर तरह के संभावित समाधान के बारे में सोचा, हर दिन मार्केटिंग रणनीतियों पर शोध करते हुए दबाव और अपनी बीमारी के दर्द का सामना किया। मैं थक कर चूर और क्षीण हो गया, लेकिन जब तक मेरे शरीर ने पूरी तरह से हार नहीं मान ली, तब तक मैंने अस्थायी रूप से अपनी नौकरी नहीं छोड़ी। मैंने खुद को पूरी तरह से खपा दिया और प्रसिद्धि और लाभ के पीछे हताश होकर भागकर स्वास्थ्य खराब कर लिया, लेकिन मुझे सिर्फ कष्ट ही मिला। पैसे, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने से मुझे वाकई नुकसान पहुँचा! हालाँकि मुझे पता था कि परमेश्वर लोगों को बचाने का कार्य करने के लिए अंत के दिनों में सत्य व्यक्त करता है, मैं जंजीर से बंधे कुत्ते की तरह प्रसिद्धि और लाभ के पीछे इधर-उधर भटक रहा था और परमेश्वर के सामने आने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी। मैंने प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने में एक दशक से अधिक समय बिता दिया और मैं परमेश्वर से लगातार दूर होता गया। अगर यह बीमारी नहीं होती तो मैं इसी के पीछे भागता रहता और आखिरकार यह मेरे विनाश का कारण बनता। यह परमेश्वर के वचन थे जिन्होंने मुझे प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने से हुई पीड़ा को स्पष्ट रूप से देखने में मदद की और मैं इन चीजों को अपने दिल से छोड़ने, परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के लिए तैयार हो गया।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों से दो और अंश पढ़े और मेरा दिल और भी उज्ज्वल हो गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “बिल्कुल शून्य से जीवन आरंभ करने वाली एक एकाकी आत्मा को सृष्टिकर्ता की संप्रभुता और पूर्वनियति-निर्धारण के कारण माता-पिता और परिवार मिलता है, मानवजाति का सदस्य बनने का अवसर मिलता है, मानव जीवन का अनुभव करने और मानव जगत की यात्रा करने का अवसर मिलता है; इसे सृष्टिकर्ता की संप्रभुता का अनुभव करने, सृष्टिकर्ता की सृष्टि की अद्भुतता को जानने और इससे भी बढ़कर, सृष्टिकर्ता के अधिकार को जानने और इसके प्रति आत्मसमर्पण करने का अवसर भी मिलता है। फिर भी अधिकतर लोग वास्तव में इस दुर्लभ और क्षणभंगुर अवसर को नहीं लपकते हैं। लोग भाग्य के विरुद्ध लड़ते हुए अपने पूरे जीवन भर की ऊर्जा खपा देते हैं, अपने परिवारों का भरण-पोषण करने की कोशिश में दौड़-भाग करते हुए और प्रतिष्ठा और लाभ की खातिर दौड़-धूप करते हुए अपना सारा जीवन बिता देते हैं। जिन चीजों को लोग सँजोकर रखते हैं, वे हैं पारिवारिक प्रेम, पैसा, शोहरत और लाभ, वे इन्हें जीवन में सबसे मूल्यवान चीजों के रूप में देखते हैं। सभी लोग अपना भाग्य खराब होने के बारे में शिकायत करते हैं, फिर भी वे अपने दिमाग में उन प्रश्नों को पीछे धकेल देते हैं जिन्हें सबसे ज्यादा समझना और टटोलना चाहिए : मनुष्य जीवित क्यों है, मनुष्य को कैसे जीना चाहिए और मानव जीवन का मूल्य और अर्थ क्या है। उनका जीवन चाहे जितना भी लंबा हो, जब तक कि उनकी युवावस्था उनका साथ नहीं छोड़ देती, उनके बाल सफेद नहीं हो जाते और उनकी त्वचा पर झुर्रियाँ नहीं पड़ जातीं, वे अपना सारा जीवन शोहरत और लाभ के पीछे भागने में ही लगा देते हैं, तब जाकर उन्हें एहसास होता है कि शोहरत और लाभ उन्हें बूढ़ा होने से नहीं रोक सकते हैं, धन हृदय के खालीपन को नहीं भर सकता है; तब जाकर वे समझते हैं कि कोई भी व्यक्ति जन्म, उम्र के बढ़ने, बीमारी और मृत्यु के नियमों से बच नहीं सकता है और नियति के आयोजनों से कोई अपना पिंड नहीं छुड़ा सकता है। केवल जब उन्हें जीवन के अंतिम मोड़ का सामना करना पड़ता है, तभी सही मायने में उन्हें समझ आती है कि चाहे किसी के पास करोड़ों रुपयों की संपत्ति हो, उसके पास विशाल संपदा हो, भले ही उसे विशेषाधिकार प्राप्त हों और वह ऊँचे पद पर हो, फिर भी वह मृत्यु से नहीं बच सकता है, और उसे अपनी मूल स्थिति में वापस लौटना ही पड़ेगा : एक एकाकी आत्मा, जिसके पास अपना कुछ भी नहीं है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। “लोग अपना जीवन धन-दौलत और प्रसिद्धि का पीछा करते हुए बिता देते हैं; वे इन तिनकों को यह सोचकर कसकर पकड़े रहते हैं, कि केवल ये ही उनके जीवन का सहारा हैं, मानो कि उनके होने से वे निरंतर जीवित रह सकते हैं, और मृत्यु से बच सकते हैं। परन्तु जब मृत्यु उनके सामने खड़ी होती है, केवल तभी उन्हें समझ आता है कि ये चीज़ें उनकी पहुँच से कितनी दूर हैं, मृत्यु के सामने वे कितने कमज़ोर हैं, वे कितनी आसानी से बिखर जाते हैं, वे कितने एकाकी और असहाय हैं, और वे कहीं से सहायता नही माँग सकते हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि जीवन को धन-दौलत और प्रसिद्धि से नहीं खरीदा जा सकता है, कि कोई व्यक्ति चाहे कितना ही धनी क्यों न हो, उसका पद कितना ही ऊँचा क्यों न हो, मृत्यु के सामने सभी समान रूप से कंगाल और महत्वहीन हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि धन-दौलत से जीवन नहीं खरीदा जा सकता है, प्रसिद्धि मृत्यु को नहीं मिटा सकती है, न तो धन-दौलत और न ही प्रसिद्धि किसी व्यक्ति के जीवन को एक मिनट, या एक पल के लिए भी बढ़ा सकती है। लोग जितना अधिक इस प्रकार महसूस करते हैं, उतनी ही अधिक उनकी जीवित रहने की लालसा बढ़ जाती है; लोग जितना अधिक इस प्रकार महसूस करते हैं, उतना ही अधिक वे मृत्यु के पास आने से भयभीत होते हैं। केवल इसी मोड़ पर उन्हें वास्तव में समझ में आता है कि उनका जीवन उनका नहीं है, और उनके नियंत्रण में नहीं है, और किसी का इस पर वश नहीं है कि वह जीवित रहेगा या मर जाएगा—यह सब उसके नियंत्रण से बाहर है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर की संगति के वचन बहुत स्पष्ट हैं। धन, प्रसिद्धि और लाभ किसी व्यक्ति का जीवन नहीं खरीद सकते, न ही वे उसे मृत्यु से बचा सकते हैं। और आखिरकार में इन चीजों के पीछे भागना व्यर्थ है। मैं सोचा करता था कि प्रसिद्धि और लाभ होने से मुझे जीवन मूल्य मिल सकता है, कि ये चीजें सार्थक हैं और इसलिए मैंने हमेशा आगे रहने को ही अपना आदर्श माना। इतने वर्षों में मैंने प्रसिद्धि और लाभ पाने के लिए बहुत कुछ सहा। ऐसा लगता था कि मैं पैसा कमा रहा था, बढ़िया कपड़े पहन रहा था और दूसरों से आदर पा रहा था, लेकिन जब मैं बीमार पड़ा, तभी मुझे एहसास हुआ कि धन, प्रसिद्धि और लाभ, साथ ही दूसरों से प्रशंसा पाने से मेरे कष्ट कम नहीं हो सकते, न ही वे मेरे स्वास्थ्य को ठीक कर सकते हैं। मैंने लगभग चालीस साल की प्रांतीय प्रबंधक के बारे में सोचा, जिसे कैंसर हो गया था और उस चेयरमैन के बारे में सोचा, जो बीमारी के कारण मर गया था। उनके पास प्रसिद्धि और लाभ दोनों थे, लेकिन मृत्यु में वे इनमें से कुछ भी अपने साथ नहीं ले जा सके। बेतहाशा धन कमाने के बावजूद मरते वक्त उनके हाथ खाली थे। तो फिर प्रसिद्धि और लाभ की खोज का क्या महत्व है? जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा : “मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे और अपने प्राण की हानि उठाए तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?(मत्ती 16:26)

एक दिन मैंने एक कलीसियाई भजन सुना, जिसका शीर्षक था, “मुझे बचाने के लिए धन्यवाद परमेश्वर” और दूसरी पंक्ति ने मुझे सचमुच प्रभावित किया। इसमें कहा गया है : “मैं कभी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए करता था कड़ी मेहनत और दौड़-भाग, अपने कर्तव्य में हमेशा करता था दिखावा और दूसरों से प्रशंसा पाने के प्रयास। प्रसिद्धि और लाभ की होड़ में शैतान के प्रलोभनों में पड़ गया था मैं। कितनी ही बार मैं हुआ परेशान और डगमगाया, खो बैठा अपनी राह। मैं जागा तो सिर्फ परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के जरिए, देखा कि प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे का अनुसरण बिल्कुल खोखला है। गोबर से गया-गुज़रा इंसान होकर भी दूसरों से श्रेष्ठ दिखने की तड़प— कैसा अज्ञानी और अहंकारी है, पूरी तरह विवेक से रहित! हे परमेश्वर! इतना विद्रोही था मैं, तुम्हारा दिल तोड़ा मैंने। केवल न्याय के माध्यम से देखा है मैंने कितना अनमोल है सत्य हासिल करना। मैं तुमसे विनती करता हूँ कि मेरा न्याय करो और मेरी भ्रष्टता को स्वच्छ करो, जिससे मैं मानव के समान जी सकूँ और उद्धार हासिल कर सकूँ। सुसमाचार प्रचार करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए मैं भरसक मेहनत करूँगा, उसके प्रेम का प्रतिफल चुकाऊँगा” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। इस भजन ने मेरी दर्दनाक यादें ताजा कर दीं, प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने की छवियाँ मेरे दिमाग में घूम गईं। मैं प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागा करता था, प्रसिद्धि और लाभ के प्रलोभन में परमेश्वर से और दूर होता जा रहा था। प्रसिद्धि और लाभ पाने के लिए मैंने बहुत कष्ट और कठिनाई झेली, मेरी यात्रा दिल के दर्द और पीड़ा से भरी हुई थी। लेकिन परमेश्वर का प्रेम एक बार फिर मेरे पास आया था, इतने सालों तक परमेश्वर के खिलाफ मेरे विद्रोहीपन के बावजूद उसने अभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ा था और मुझे अपने घर लौटने की अनुमति दी थी। बस इसके बारे में सोचते ही मेरी आँखों में आँसू आ गए और परमेश्वर के प्रति ऋणी होने की भावनाएँ मेरे दिल में भर गईं। मैंने सोचा कि अब से मुझे परमेश्वर पर सही तरीके से विश्वास करना चाहिए और उसके प्रेम का प्रतिदान चुकाना चाहिए।

बाद में मैंने कलीसिया में अपने कर्तव्य किए। एक बार मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व में जीते हैं और वे वह सब जो परमेश्वर द्वारा प्रदान किया जाता है और हर वह चीज जो परमेश्वर से आती है, स्वीकार करते हैं, इसलिए उन्हें अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व पूरे करने चाहिए। यह पूरी तरह से स्वाभाविक और न्यायोचित है, और यह परमेश्वर का आदेश है। इससे यह देखा जा सकता है कि लोगों के लिए सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना धरती पर रहते हुए किए गए किसी भी अन्य काम से कहीं अधिक उचित, सुंदर और भद्र होता है; मानवजाति के बीचइससे अधिक सार्थक या योग्य कुछ भी नहीं होता, और सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने की तुलना में किसी सृजित व्यक्ति के जीवन के लिए अधिक अर्थपूर्ण और मूल्यवान अन्य कुछ भी नहीं है। ... इस शर्त पर कि सृजित प्राणी अपने कर्तव्य निभाएं, सृष्टिकर्ता ने मानवजाति के बीच और भी बड़ा कार्य किया है, और उसने लोगों पर कार्य का एक और चरण पूरा किया है। और वह कौन-सा कार्य है? वह मानवजाति को सत्य प्रदान करता है, जिससे उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए परमेश्वर से सत्य हासिल करने, और इस प्रकार अपने भ्रष्ट स्वभावों को दूर करने और शुद्ध होने, परमेश्वर के इरादों को पूरा कर पाने और जीवन में सही मार्ग अपना पाने, और अंततः, परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में सक्षम होने, पूर्ण उद्धार प्राप्त करने और शैतान द्वारा दी जाने वाली पीड़ाओं का शिकार न बनने का मौका मिलता है। यही वह प्रभाव है जिसे परमेश्वर मानवजाति से कर्तव्य पालन करवाने के माध्यम से अंततः हासिल करने का इरादा रखता है। इसलिए, अपना कर्तव्य निभाने की प्रक्रिया के दौरान परमेश्वर तुम्हें केवल एक चीज स्पष्ट रूप से देखने और थोड़ा-सा सत्य ही समझने नहीं देता, वह तुम्हें केवल एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने से मिलने वाले अनुग्रह और आशीषों का आनंद मात्र ही लेने नहीं देता है। इसके बजाय, वह तुम्हें शुद्ध होने और बचने, और अंततः, सृष्टिकर्ता के मुखमंडल के प्रकाश में रहने का अवसर भी देता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग सात))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे समझ आया कि एक सृजित प्राणी के रूप में मुझे अपने कर्तव्य करने चाहिए और यही एक मनुष्य की जिम्मेदारी और दायित्व है। सिर्फ अपने कर्तव्य करके ही मुझे सत्य और जीवन पाने, अपना भ्रष्ट स्वभाव त्यागने, शुद्ध और रूपांतरित होने और आखिरकार परमेश्वर का उद्धार पाने का अवसर मिल सकता है। अपने कर्तव्य अच्छी तरह से करना जीवन में सबसे महत्वपूर्ण और मूल्यवान चीज है। तब से मैंने प्रतिदिन परमेश्वर के वचनों को खाया-पिया और मेरा हृदय शांति और आनंद से भर गया। अपने कर्तव्यों के दौरान जब भी मैंने अपनी भ्रष्टता प्रकट की, मैंने आत्म-चिंतन करने और खुद को जानने के लिए परमेश्वर के वचन पढ़े, जिससे मेरे भ्रष्ट स्वभाव का समाधान हुआ। ये सभी चीजें अपने कर्तव्य करने का फल थीं। कुछ समय बाद मेरा स्वास्थ्य भी बेहतर हो गया।

2022 में वसंत महोत्सव के बाद मेरे चचेरे भाई ने मुझे फोन किया और कहा कि मेरी पिछली कंपनी के प्रबंधक का तबादला हो गया है और उपाध्यक्ष चाहते हैं कि मैं प्रबंधक के रूप में वापस आऊँ। अपने चचेरे भाई को ऐसा कहते हुए सुनकर मैंने सोचा, “मैंने इस कंपनी में कई साल तक कड़ी मेहनत की है। अगर मैं वापस नहीं गया तो मेरे सारे संपर्क खत्म हो जाएँगे। इसके अलावा यह ब्रैंड कंपनी के विकास के लिए अपार संभावना वाले क्षेत्र में है और यह प्रबंधकीय पद है। इससे न सिर्फ मुझे प्रतिष्ठा मिलेगी, बल्कि मैं मध्य और वरिष्ठ प्रबंधन के साथ संवाद भी कर पाऊँगा, जिससे मुझे प्रसिद्धि और लाभ मिलेगा। इस पद को पाने के लिए बहुत से लोग लालायित रहते हैं और अगर मैं इसे स्वीकार नहीं करता तो मुझे शायद ऐसा अवसर फिर कभी न मिले। लेकिन यह नौकरी बहुत व्यस्तता वाली है और मेरे पास परमेश्वर के वचन पढ़ने या अपने कर्तव्य करने के लिए जरा भी समय नहीं बचेगा।” तभी मुझे याद आया कि प्रसिद्धि और लाभ के पीछे भागने ने मुझे पहले कितना दर्द दिया है, मैं लौकिक दुनिया में वापस नहीं लौटना चाहता था और शैतान को नुकसान पहुँचाने नहीं दे सकता था। इसलिए मैंने पद अस्वीकार कर दिया। मेरा चचेरा भाई हैरान था और मुझे याद दिलाता रहा कि ऐसा अवसर दुर्लभ है, उसने मुझे इस पर विचार करने और कल जवाब देने के लिए कहा। उस पल मैंने सोचा, “मैं पहले ही एक साल से कंपनी से दूर हूँ तो फिर वे अचानक मुझे फिर से मैनेजर क्यों बनाना चाहते हैं, जबकि मैंने अभी-अभी अपने कर्तव्य करने लगा हूँ?” मुझे यह स्पष्ट हो गया कि यह शैतान का प्रलोभन है और मैंने सोचा कि परमेश्वर ने क्या कहा है : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब का परीक्षण हुआ : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ होड़ लगा रहा था और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे और मनुष्यों का विघ्न डालना था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। ऊपर से देखें तो मेरा चचेरा भाई मुझे मैनेजर के रूप में वापसी करने के लिए कह रहा था, लेकिन असल में यह शैतान की चाल थी। शैतान इसका इस्तेमाल मुझे प्रसिद्धि और लाभ के मार्ग पर वापस खींचने के लिए कर रहा था। उस समय मैं दूसरों का सिंचन करने का अपना कर्तव्य निभा रहा था और कुछ नवागंतुकों का सिंचन करने और उन्हें सहारा देने की जरूरत थी। मैं सिर्फ काम के कारण अपना कर्तव्य नहीं छोड़ सकता था। अब परमेश्वर का कार्य समाप्त होने वाला है, यह मेरे लिए जीवन में एक बार मिलने वाला अवसर है कि मैं परमेश्वर पर विश्वास कर सकूँ और अपना कर्तव्य कर सकूँ। मुझे अपना समय अपना कर्तव्य निभाने और सत्य का अनुसरण करने में लगाना चाहिए। यह मैनेजर होने से कहीं अधिक मूल्यवान है। अगले दिन मैंने अपने चचेरे भाई के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और मुझे अपने दिल में बहुत राहत मिली। हालाँकि मैं अब मैनेजर नहीं हूँ और मेरा जीवन उतना आकर्षक नहीं है, लेकिन मेरा जीवन स्थिर है। मेरे पास भोजन और कपड़े हैं, मैं अपना गुजारा कर सकता हूँ। मैं अपने सारे दिन अपना कर्तव्य करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए सत्य का ईमानदारी से अनुसरण करने में बिताने को तैयार हूँ।

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