79. समस्याएँ बताने से जुड़ी चिंताएँ

झांग यी, चीन

अप्रैल 2023 में, मैं कलीसिया में एक सिंचन उपयाजक के तौर पर सेवा कर रहा था। उस समय अपने कर्तव्य का पालन कर रहे कई भाई-बहनों को सीसीपी ने गिरफ्तार कर लिया था और कलीसिया का काम ठप्प पड़ गया था। भले ही मैं कुछ भाई-बहनों के साथ काम का जायजा लेने में सहयोग कर रहा था, फिर भी प्रगति बहुत धीमी थी। कुछ समय बाद बहन चेन पिंग को कलीसिया अगुआ चुना गया और मैंने सोचा, “यह तो बढ़िया है, अगुआ के होने से काम ज्यादा तेजी से आगे बढ़ेगा।”

एक दिन, ऊपरी अगुआओं ने एक पत्र भेजकर हमसे प्रचारक बहन सू जिंग का मूल्यांकन लिखने को कहा। क्योंकि सू जिंग हमारी कलीसिया के काम के लिए जिम्मेदार थी, हम सब उसे अच्छी तरह से जानते थे, लेकिन चेन पिंग कुछ भी लिखने को तैयार नहीं थी, उसने यहाँ तक कह दिया कि वह सू जिंग को अच्छी तरह से नहीं जानती। मैं हैरान था, सोच रहा था, “चेन पिंग को क्या हो गया है? उसने पहले भी सू जिंग के साथ काफी बातचीत की है, तो वह उसके साथ अपनी बातचीत से मिली समझ के आधार पर एक निष्पक्ष मूल्यांकन दे सकती थी। वह कुछ लिखना क्यों नहीं चाहती?” कुछ दिनों बाद मैं चेन पिंग से मिला और उसने मुझसे कहा, “क्या तुम जानते हो कि मैंने उस दिन सू जिंग का मूल्यांकन क्यों नहीं लिखना चाहा? मुझे नहीं पता कि अगुआ सू जिंग को कौन सा कर्तव्य सौंपना चाहते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि सू जिंग सही व्यक्ति है।” मैंने उससे और जानकारी माँगी तो चेन पिंग ने गुस्से से कहा, “तुम्हें कुछ नहीं पता, 2012 में सू जिंग एक अगुआ के तौर पर सेवा कर रही थी और उसने कभी कोई वास्तविक काम नहीं किया। एक बार, हमने बड़ी मेहनत से एक मसीह-विरोधी के निष्कासन की सामग्री तैयार की, लेकिन सू जिंग ने बिना कोई कारण बताए प्रक्रिया रोक दी। उस व्यक्ति ने कलीसिया में पूरी तरह से अराजकता फैला दी थी, लेकिन सू जिंग ने हमें उसके बारे में सामग्री इकट्ठा नहीं करने दी। क्या यह कलीसिया की स्वच्छता के काम में बाधा डालना नहीं था? क्या वह नकली अगुआ नहीं थी?” चेन पिंग ने इस डर से कि मैं उस पर विश्वास नहीं करूँगा, यहाँ तक डींग मारी कि उसने पहले स्वच्छता का काम किया था और वह लोगों के कुछ भेद पहचानती थी। लेकिन सू जिंग के बारे में मेरी जो समझ थी, उसके आधार पर वह वैसी इंसान नहीं थी जैसा चेन पिंग बता रही थी। मुझे अस्पष्ट सा एहसास हुआ कि चेन पिंग और सू जिंग के बीच शायद कोई व्यक्तिगत द्वेष था, वरना चेन पिंग सू जिंग के प्रति इतनी ज्यादा पक्षपाती क्यों होती? लेकिन मुझे नहीं पता था कि क्या हुआ था, इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। चेन पिंग ने आगे कहा, “हाल ही में, मैं सू जिंग को कलीसिया की समस्याएँ बता रही हूँ, लेकिन वह कोई जवाब नहीं दे रही है। एक प्रचारक के तौर पर, वह वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं कर रही है!” यह सुनकर मैं थोड़ा हैरान हुआ, क्योंकि मुझे लगा कि चेन पिंग की कुछ बातें वास्तविकता से मेल नहीं खाती थीं। मैंने सू जिंग के साथ एक साल से ज्यादा समय तक सहयोग किया था, भले ही उसकी काबिलियत कुछ कम थी, फिर भी वह कुछ वास्तविक काम कर सकती थी। इसके अलावा, जब चेन पिंग ने समस्याएँ बताईं तो मैं वहाँ मौजूद था, भले ही उस समय सू जिंग को कोई समाधान नहीं मिला था, लेकिन बाद में उसने सबके साथ चर्चा की और समाधान खोजा और कुछ वास्तविक समस्याओं का समाधान भी किया था। ऐसा नहीं था जैसा चेन पिंग ने कहा—कि सू जिंग कोई वास्तविक काम नहीं करती थी। थोड़ी देर बाद, चेन पिंग ने मुझसे यूँ ही पूछा, “हो सकता है मेरी राय पूरी तरह सही न हो। तुम सू जिंग को लंबे समय से जानते हो, तो तुम्हें उसे बेहतर समझना चाहिए। तुम क्या सोचते हो?” तो मैंने सू जिंग की खूबियाँ और कमियाँ दोनों बता दीं। जब मैंने सू जिंग की कमियाँ बताईं, तो चेन पिंग बहुत खुश हुई, लेकिन जब मैंने सू जिंग की खूबियों के बारे में बताया, तो चेन पिंग ने मुँह बना लिया और सुनना नहीं चाहा। अंत में, उसने अनिच्छा से कहा, “शायद में उसके प्रति पक्षपाती हूँ।” उसके बाद, चेन पिंग ने मुझसे इस मामले का जिक्र दोबारा नहीं किया। मुझे लगा कि चेन पिंग सू जिंग के प्रति पक्षपाती है और ऐसा लगता है कि जब उसने मुझसे ये बातें कहीं तो वह सू जिंग की पीठ पीछे उसकी आलोचना कर रही थी और वह फूट डालने की भी कोशिश कर रही थी। मैंने सोचा, “क्या मुझे यह बात ऊपरी अगुआओं को बतानी चाहिए ताकि वे इसका समाधान करें? वरना उनके सामंजस्यपूर्ण सहयोग की कमी से काम प्रभावित होगा।” लेकिन फिर मैंने सोचा, “मैं अभी इस स्थिति को पूरी तरह से नहीं समझ पाया हूँ, अगर मैं इसकी रिपोर्ट करता हूँ और चेन पिंग को पता चल गया, तो क्या वह मुझ पर चुगली करने का आरोप लगाकर मेरा जीवन कठिन बना देगी?” यह सोचकर, मैंने इसे बताने की हिम्मत नहीं की।

कुछ दिनों बाद, चेन पिंग ने सू जिंग के प्रति अपने पक्षपात को एक दूसरी कलीसिया की अगुआ, वू शिन तक फैलाया, उसने सुसमाचार उपयाजक ली युन को भी अपनी तरफ मिला लिया और उससे कहा कि सू जिंग एक नकली कार्यकर्ता है। मैं थोड़ा हैरान था, सोच रहा था, “ली युन भी इसमें कैसे शामिल हो गई? अब वह चेन पिंग का पक्ष ले रही है। लगता है यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। मुझे इस बात की रिपोर्ट तुरंत ऊपरी अगुआओं को करनी चाहिए; वरना कलीसिया के काम में अव्यवस्था फैल जाएगी।” लेकिन मैं चिंतित भी था, सोच रहा था, “चेन पिंग मेरे काम की प्रभारी है, अगर मैं उसकी समस्याओं की रिपोर्ट करता हूँ और उसे पता चल गया, तो क्या वह मेरा दमन करेगी या मुझे सताएगी?” यह सोचकर, मैं थोड़ा डर गया, इसलिए मैंने इसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की।

कुछ दिनों बाद, स्वच्छता के काम की प्रभारी बहन डानचुन ने मुझे एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया था कि चेन पिंग ने उसके सामने भी सू जिंग के प्रति अपना पक्षपात फैलाया था, चेन पिंग ने दावा किया कि वह सू जिंग के साथ अच्छी तरह से सहयोग नहीं कर सकती और सू जिंग उसे दिए गए किसी भी सुझाव को स्वीकार नहीं करेगी। चेन पिंग ने डानचुन से यह भी कहा कि वह सू जिंग के निरंतर व्यवहार की जाँच करे। मैं बहुत हैरान था, शुरू में मैंने सोचा था कि चेन पिंग को केवल सू जिंग के प्रति व्यक्तिगत पक्षपात था, लेकिन इन बातों को जानने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि यह मामला इतना सरल नहीं था, चेन पिंग जानबूझकर गुट बनाने और अव्यवस्था फैलाने की कोशिश कर रही थी, उसका एक उद्देश्य था। मैंने परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ा : “किसी व्यक्ति की अकारण निंदा करने, उस पर कोई ठप्पा लगाने और उसे पीड़ित करने की परिघटना अक्सर हर कलीसिया में होती है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग किसी खास अगुआ या कार्यकर्ता के खिलाफ पूर्वाग्रह रखते हैं और बदला लेने की कोशिश में उनकी पीठ पीछे उनके बारे में टिप्पणियाँ करते हैं, सत्य के बारे में संगति करने की आड़ में उनका पर्दाफाश और उनका गहन-विश्लेषण करते हैं। ऐसे कार्यों के पीछे का इरादा और उद्देश्य गलत होते हैं। अगर कोई वास्तव में परमेश्वर के लिए गवाही देने और दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए सत्य पर संगति कर रहा है, तो उसे अपने स्वयं के सच्चे अनुभवों पर संगति करनी चाहिए और खुद का गहन-विश्लेषण करके और खुद को जानकर दूसरों को लाभ पहुँचाना चाहिए। इस तरह के अभ्यास से बेहतर परिणाम मिलते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोग इसे स्वीकार करेंगे। अगर किसी की संगति किसी दूसरे व्यक्ति पर हमला करने या उससे बदला लेने के प्रयास में उसे उजागर करती है, हमला करती है और उसे नीचा दिखाती है, तो संगति का इरादा गलत है, यह अनुचित है, परमेश्वर इससे घृणा करता है और भाई-बहनों को इससे कोई शिक्षा नहीं मिलती। अगर किसी का इरादा दूसरों की निंदा करना या उन्हें पीड़ा पहुँचाना है, तो वह एक बुरा व्यक्ति है और वह बुराई कर रहा है। जब बुरे लोगों की बात आती है तो परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों में उन्हें पहचानने की समझ होनी चाहिए। अगर कोई जानबूझकर लोगों पर प्रहार करता है, उन्हें उजागर करता है या उन्हें नीचा दिखाता है, तो उनकी प्रेम से मदद की जानी चाहिए, उनके साथ संगति करनी चाहिए और उनका गहन-विश्लेषण करना चाहिए या उनकी काट-छाँट करनी चाहिए। अगर वे सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं और हठपूर्वक अपने तौर-तरीके सुधारने से इनकार करते हैं, तो वह मामला पूरी तरह से अलग होगा। जब अक्सर मनमाने ढंग से दूसरों की निंदा करने वाले, दूसरों पर कोई ठप्पा लगाने और पीड़ा पहुँचाने वाले बुरे लोगों की बात आती है, तो उन्हें पूरी तरह से उजागर किया जाना चाहिए, ताकि हर कोई उनका भेद पहचानना सीख सके, और फिर उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए या कलीसिया से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए। यह आवश्यक है, क्योंकि ऐसे लोग कलीसियाई जीवन और कार्य को बाधित करते हैं और संभव है कि वे लोगों को गुमराह करें और कलीसिया में अराजकता पैदा करें। ... इन लोगों का व्यवहार न केवल कलीसिया के जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि कलीसिया में संघर्ष को भी जन्म देता है। यह पूरे कलीसिया के काम और सुसमाचार के प्रसार को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस तरह के व्यक्ति को चेतावनी देने की और उसे प्रतिबंधित कर सँभालने की भी जरूरत है(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (15))। परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। मनमाने ढंग से दूसरों की आलोचना और निंदा करना बुराई करना है। यह कलीसिया के काम को बाधित करता है और ऐसा करने वाले लोगों को तुरंत प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। हाल की घटनाओं पर विचार करते हुए मैंने सोचा, “सू जिंग में कुछ समस्याएँ हैं, लेकिन वह अभी भी कुछ वास्तविक काम कर सकती है, तो चेन पिंग उसकी कमियों और समस्याओं पर ही क्यों ध्यान केंद्रित किए रहती है? अगर चेन पिंग को लगता है कि सू जिंग कुछ अनुचित कर रही है, तो वह उसे बता सकती है या ऊपरी अगुआ को रिपोर्ट कर सकती है, लेकिन चेन पिंग मुझसे ये बातें क्यों कह रही है और सालों पहले से सू जिंग के प्रति अपनी पुरानी शिकायतें क्यों निकाल रही है? क्या यह फूट डालना नहीं है? क्या यह सू जिंग को नीचा दिखाना नहीं है? इसके अलावा वह न केवल मेरे सामने सू जिंग की आलोचना कर रही है, बल्कि वह दूसरी कलीसिया के अगुआ और सुसमाचार उपयाजक को भी अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है और यहाँ तक कि स्वच्छता के काम के लिए जिम्मेदार बहन के सामने भी इसे फैला रही है। चेन पिंग जो कर रही है, वह निश्चित रूप से कलीसिया के काम की रक्षा के लिए नहीं है, न ही सू जिंग की मदद करने के लिए है। वह गुट बनाने और अव्यवस्था फैलाने की कोशिश कर रही है, जिसका मकसद सू जिंग की आलोचना करने और उसे अलग-थलग करने के लिए लोगों को अपनी तरफ करना है ताकि उसे नीचा दिखाया जा सके।” इन विचारों ने मुझे चिंतित कर दिया, “कलीसिया ने अभी-अभी सीसीपी की कार्रवाइयों का सामना किया है, कई भाई-बहन सामान्य कलीसियाई जीवन नहीं जी पा रहे हैं और कलीसिया के सभी काम अभी भी सुधार की प्रक्रिया में हैं। यदि इस समय अराजकता उत्पन्न होती है, तो कलीसिया के काम और भाई-बहनों के जीवन दोनों को बहुत नुकसान होगा।” मैंने इस मामले की रिपोर्ट करने के लिए एक पत्र लिखने के बारे में सोचा। लेकिन जब मैं इसे लिखने वाला था, तभी मैं फिर से यह सोचकर झिझक गया, “चेन पिंग मेरे काम की प्रभारी है, अगर उसे पता चला कि मैंने पत्र लिखा है, तो क्या वह मुझ पर हमला करेगी और मुझे बाहर कर देगी? क्या वह मेरा जीवन कठिन बना देगी या मेरी गलतियों को पकड़कर मुझे सताएगी या निष्कासित कर देगी? अगर ऐसा होता है, तो क्या मेरे उद्धार का मौका बर्बाद नहीं हो जाएगा?” इस विचार ने मुझे डरा दिया और मैंने खुद से कहा, “जब तुम किसी और की छत के नीचे होते हो, तो तुम्हें सिर झुकाना ही पड़ता है! चेन पिंग मेरे काम के लिए जिम्मेदार है, अगर मैं उसे नाराज करता हूँ और वह मुझे सताती है, तो भला किसे पता चलेगा? मेरी मदद कौन करेगा? चलो छोड़ो, बेहतर है कि मैं इसमें शामिल न होऊँ, वरना मैं खुद पर मुसीबत लाऊँगा।” इसलिए मैंने इस मामले की रिपोर्ट नहीं की, लेकिन बाद में मुझे अपने अंदर लगातार अपराध-बोध होता रहा।

एक दिन भक्ति के दौरान मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरुद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफाश कर सकोगे? क्या तुम मेरे इरादों को स्वयं में संतुष्ट होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है? स्वयं से ये सवाल पूछो और अक्सर इनके बारे में सोचो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। “इंसान का दिमाग मशीन की अपेक्षा अधिक चुस्त-दुरुस्त होता है : वे जानते हैं कि खुद को कैसे ढालें, वे जानते हैं कि हालात का सामना होने पर कौन-से कर्म उनके अपने हितों में योगदान करते हैं और कौन-से नहीं, और वे शीघ्रता से अपने पास का हर तरीका इस्तेमाल कर लेते हैं। नतीजतन जब भी तुम कुछ चीजों का सामना करते हो, तो परमेश्वर में तुम्हारा थोड़ा-सा भरोसा दृढ़ नहीं रह पाता। तुम परमेश्वर के साथ कपटपूर्ण बर्ताव करते हो, उसके खिलाफ चालें चलते हो, तिकड़में लगाते हो, और यह परमेश्वर में तुम्हारी सच्ची आस्था का अभाव दर्शाता है। तुम सोचते हो कि परमेश्वर विश्वास योग्य नहीं है, शायद वह तुम्हारी रक्षा न कर पाए या तुम्हारी सुरक्षा सुनिश्चित न कर पाए, और संभव है वह तुम्हें मर जाने दे। तुम्हें लगता है कि परमेश्वर भरोसेमंद नहीं है, और तुम सिर्फ खुद पर भरोसा करके ही सुनिश्चित हो सकते हो। अंत में क्या होता है? तुम्हारा चाहे जैसे भी हालात या मामलों से सामना हो, तुम इन्हीं तरीकों, चालों और रणनीतियों के नजरिये से उन्हें देखते हो, और तुम परमेश्वर की अपनी गवाही में दृढ़ नहीं रह पाते। हालात चाहे जो हों, तुम एक ऐसे अगुआ या कार्यकर्ता बनने में असमर्थ हो जो मानक स्तर का है, चरवाहे के गुण या कर्म दर्शाने में असमर्थ हो, और संपूर्ण निष्ठा प्रदर्शित करने में असमर्थ हो, और इस तरह तुम अपनी गवाही गंवा देते हो। तुम्हारा चाहे जितने भी मामलों से सामना हो, तुम परमेश्वर में अपनी आस्था के जरिए अपनी वफादारी और जिम्मेदारी पूरी करने में नाकाम रहते हो। नतीजतन, अंतिम परिणाम यह होता है कि तुम कुछ भी हासिल नहीं करते(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (19))। परमेश्वर के वचनों ने मेरी सटीक मनोदशा को उजागर किया। जब चीजें ठीक चल रही थीं, मैं जोर-शोर से कहता था कि परमेश्वर हर चीज पर संप्रभुता रखता है और मेरा भाग्य परमेश्वर के हाथों में है, लेकिन जब मैंने चेन पिंग को गुट बनाने और अव्यवस्था फैलाने की कोशिश करते देखा, मुझे पता था कि मुझे ऊपरी अगुआओं को इसकी रिपोर्ट करनी चाहिए ताकि इसका जल्दी से समाधान हो सके, लेकिन मुझे परमेश्वर पर सच्चा विश्वास नहीं था और मेरा दिल चिंताओं और आशंकाओं से भरा था। मुझे डर था कि अगर चेन पिंग को पता चला कि मैंने उसकी रिपोर्ट की है, तो वह मुझे सताने और मुझसे बदला लेने के मौके ढूँढ़ेगी और शायद मुझे निष्कासित भी करवा देगी। खुद को बचाने के लिए, मैंने चेन पिंग की समस्याओं की रिपोर्ट नहीं की। मैंने परमेश्वर पर विश्वास करने का दावा किया लेकिन उसकी संप्रभुता पर भरोसा नहीं किया। मैंने यहाँ तक मान लिया कि मेरा भाग्य अगुआओं के हाथों में है और अगर कोई अगुआ मुझे सताता है, तो यह अनिश्चित था कि परमेश्वर मेरी रक्षा करेगा या नहीं। मेरा यह दृष्टिकोण एक छद्म-विश्वासी के दृष्टिकोण से कैसे अलग था? मैंने समस्या की प्रकृति को स्पष्ट रूप से देखा, लेकिन इसकी रिपोर्ट करने को तैयार नहीं था। मैं हमेशा अपने हितों की रक्षा कर रहा था, अगुआ द्वारा दबाए जाने या बाहर किए जाने से डरता था। मैं परमेश्वर के घर के हितों की बिल्कुल भी रक्षा नहीं कर रहा था। मैं बहुत स्वार्थी और नीच था!

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीजों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्‍हारे लिए अपना कर्तव्‍य अच्‍छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। परमेश्वर की लोगों से अपेक्षाएँ ऊँची नहीं हैं, वह बस यही चाहता है कि जब कुछ घटित हो, तो लोग उसके घर के हितों की रक्षा कर सकें और अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार अपना कर्तव्य निभा सकें। इस तरह, परमेश्वर संतुष्ट होगा। मैं पहले ही पुष्टि कर चुका था कि चेन पिंग दूसरों को नीचा दिखा रही थी, कलीसिया में बाधा डाल रही थी और अव्यवस्था फैला रही थी और मुझे यह भी पता था कि अगर इस समस्या का तुरंत समाधान नहीं किया गया, तो यह कलीसिया के काम में बहुत बाधा डालेगी। लेकिन सताए जाने के डर से मैं इसकी रिपोर्ट करने को तैयार नहीं था। इसके बजाय मैंने इससे बचने और इस समस्या को नजरअंदाज करने का विकल्प चुना। मेरी अंतरात्मा और विवेक कहाँ थे? मेरा रवैया शैतान को कलीसिया के काम में बाधा डालने देने का था, जो परमेश्वर के साथ विश्वासघात था! अब मैं खुद को और नहीं बचा सकता था। मुझे परमेश्वर के घर के हितों को पहले रखना था। परमेश्वर धार्मिक है और परमेश्वर के घर में सत्य का शासन है और अगर मैं सही तरीके से इस मुद्दे की रिपोर्ट करता, तो चेन पिंग मेरा कुछ नहीं कर सकती थी। भले ही मुझे सताया और दबाया जाता, यह कुछ ऐसा होता जिसका मुझे अनुभव करना चाहिए था और इसमें एक सबक होता जो मुझे सीखना था। मैंने कुछ भाई-बहनों की अनुभवजन्य गवाहियाँ भी पढ़ीं। जब वे मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों का सामना कर रहे थे, उनमें से कुछ शुरू में खुद को बचाने की स्थिति में चले गए थे, सताए जाने की चिंता कर रहे थे, लेकिन प्रार्थना और खोज के माध्यम से परमेश्वर के इरादे को समझने के बाद, उन्होंने इन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के बुरे कर्मों की रिपोर्ट की, जाँच और सत्यापन के बाद, इन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को अंततः निष्कासित कर दिया गया और कलीसिया का काम फिर से सामान्य हो गया। उनकी गवाहियाँ पढ़कर मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला। मैंने सोचा, “मुझे इस मुद्दे की रिपोर्ट करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए, ताकि ऊपरी अगुआ स्थिति को समझ सकें, इस अराजकता को जल्दी से दूर करने के लिए किसी की व्यवस्था करें और कलीसिया के काम की सामान्य व्यवस्था को बहाल करें। यह मेरी जिम्मेदारी और कर्तव्य है और मैं इससे मुँह नहीं मोड़ सकता।” इसलिए जो कुछ भी हुआ था, मैंने वह सब लिख दिया और रिपोर्ट ऊपरी अगुआओं को भेज दी। इस तरह अभ्यास करके मुझे सुकून महसूस हुआ।

बाद में मैंने विचार किया, “चेन पिंग के गुट बनाने के प्रयासों को उजागर करने या रिपोर्ट करने की मुझमें हिम्मत क्यों नहीं थी? इसके पीछे क्या कारण था?” एक दिन मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “तो फिर बुरे लोगों को संभालने और उन्हें संबोधित करने की तुम्हारी नाकाबिलियत की जड़ क्या है? क्या ऐसा है कि तुम्हारी मानवता सहज ही कायर, दब्बू और डरपोक है? यह न तो मूल कारण है, न ही समस्या का सार। समस्या का सार यह है कि लोग परमेश्वर के प्रति वफादार नहीं हैं; वे खुद की रक्षा करते हैं, अपनी निजी सुरक्षा, शोहरत, रुतबा और निकासी के मार्ग की रक्षा करते हैं। उनकी निष्ठाहीनता इस बात में अभिव्यक्त होती है कि वे हमेशा खुद की रक्षा कैसे करते हैं, किसी भी चीज से सामना होने पर, वे कैसे कछुए की तरह अपने कवच में घुस जाते हैं, और अपना सिर तब तक बाहर नहीं निकालते जब तक वह चीज गुजर न जाए। उनका चाहे जिस भी चीज से सामना हो, वे हमेशा बेहद सावधानी बरतते हैं, उनमें बहुत व्याकुलता, चिंता और आशंका होती है, और वे कलीसिया कार्य के बचाव में खड़े होने में असमर्थ होते हैं। यहाँ समस्या क्या है? क्या यह आस्था का अभाव नहीं है? परमेश्वर में तुम्हारी आस्था सच्ची है ही नहीं, तुम नहीं मानते कि परमेश्वर की संप्रभुता सभी चीजों पर है, नहीं मानते कि तुम्हारा जीवन और सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। तुम परमेश्वर की इस बात पर विश्वास नहीं करते, ‘परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान तुम्हारे शरीर का एक रोआँ भी हिला नहीं सकता।’ तुम अपनी ही आँखों पर भरोसा कर तथ्य परखते हो, हमेशा अपनी रक्षा करते हुए अपने ही आकलन के आधार पर चीजों को परखते हो। तुम नहीं मानते कि व्यक्ति का भाग्य परमेश्वर के हाथों में होता है; तुम शैतान से डरते हो, बुरी ताकतों और बुरे लोगों से डरते हो। क्या यह परमेश्वर में सच्ची आस्था का अभाव नहीं है? (बिल्कुल है।) परमेश्वर में सच्ची आस्था क्यों नहीं है? क्या इसलिए कि लोगों के अनुभव बहुत उथले हैं, और वे इन चीजों को गहराई से नहीं समझ सकते, या फिर इसलिए कि वे बहुत कम सत्य समझते हैं? कारण क्या है? क्या इसका लोगों के भ्रष्ट स्वभावों से कुछ लेना-देना है? क्या ऐसा इसलिए है कि लोग बहुत कपटी हैं? (बिल्कुल।) वे चाहे जितनी भी चीजों का अनुभव कर लें, उनके सामने कितने भी तथ्य रख दिए जाएँ, वे नहीं मानते कि यह परमेश्वर का कार्य है, या व्यक्ति का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है। यह एक पहलू है। एक और घातक मुद्दा यह है कि लोग खुद की बहुत ज्यादा परवाह करते हैं। वे परमेश्वर, उसके कार्य, परमेश्वर के घर के हितों, उसके नाम या महिमामंडन के लिए कोई कीमत नहीं चुकाना चाहते, कोई त्याग नहीं करना चाहते। वे ऐसा कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं जिसमें जरा भी खतरा हो। लोग खुद की बहुत ज्यादा परवाह करते हैं! मृत्यु, अपमान, बुरे लोगों के जाल में फँसने और किसी भी प्रकार की दुविधा में पड़ने के अपने डर के कारण लोग अपनी देह को संरक्षित रखने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं, किसी भी खतरनाक स्थिति में प्रवेश न करने की कोशिश करते हैं। एक ओर, यह व्यवहार दिखाता है कि लोग बहुत ज्यादा कपटी हैं, जबकि दूसरी ओर यह उनका आत्म-संरक्षण और स्वार्थ दर्शाता है(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (19))। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से, मैं समझ गया कि मैं सत्य का अभ्यास क्यों नहीं कर सका या कलीसिया के काम की रक्षा क्यों नहीं कर सका, इसका मुख्य कारण यह था कि मेरी प्रकृति वास्तव में स्वार्थी और कपटी थी। “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” और “समझदार लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं, वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं” जैसे शैतानी जहरों ने मुझे काबू में कर लिया था। इसलिए जब कुछ घटित होता था, मैं सबसे पहले यह सोचता था कि मेरे हितों को नुकसान होगा या नहीं। जो चीजें मुझे फायदा पहुँचाती थीं, मैं उन्हें करने को तैयार रहता था, लेकिन अगर कोई चीज मेरे हितों को नुकसान पहुँचाती या मेरी सुरक्षा को खतरे में डालती, भले ही वह कलीसिया के काम की रक्षा करती, मैं उसे नहीं करता। मैं अच्छी तरह जानता था कि चेन पिंग गुट बनाने और अव्यवस्था फैलाने की कोशिश कर रही थी, अगर इसका तुरंत समाधान नहीं किया गया, तो यह कलीसिया के काम में बहुत बाधा डालेगी। लेकिन मैं लगातार डरा रहता था। मुझे चिंता थी कि इस मुद्दे की रिपोर्ट करने के बाद, चेन पिंग मुझसे बदला लेगी, मुझे सताएगी या मुझे निष्कासित भी कर देगी, इसलिए मैंने रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की और इसके बजाय कछुए की तरह अपना सिर कवच में छिपा लिया। मुझमें परमेश्वर में जरा भी सच्ची आस्था नहीं थी। मैं कितना डरपोक था! मैंने कई सालों तक परमेश्वर में विश्वास किया था और कलीसिया में अपने कर्तव्य इसलिए निभा रहा था क्योंकि उसने मुझे ऊँचा उठाया था। परमेश्वर का इरादा था कि मैं महत्वपूर्ण क्षणों में परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करूँ, लेकिन जब चेन पिंग ने गुट बनाने और अव्यवस्था फैलाने की कोशिश की और इससे कलीसिया का काम ठप्प होने का खतरा पैदा हो गया, मैंने केवल अपने हितों पर विचार किया। मैं बहुत स्वार्थी और कपटी था! खुद को बचाने के लिए, मैं उस सत्य का भी अभ्यास करने को तैयार नहीं था जिसे मैं समझता था—क्या मैं इस तरह से एक नीच जीवन नहीं जी रहा था? अगर मैं इसे नहीं बदलता, तो परमेश्वर निश्चित रूप से मुझे ठुकरा देता और हटा देता। खासकर जब कलीसिया ने अभी-अभी सीसीपी की कार्रवाई का सामना किया था और काम के विभिन्न पहलू अभी ठीक नहीं हुए थे, अगर अराजकता का एक और दौर आता, तो न केवल कलीसिया का काम बाधित होता, बल्कि भाई-बहनों के जीवन प्रवेश को भी काफी नुकसान उठाना पड़ता। यह सोचकर, मैं अपने आँसू और नहीं रोक सका। मैंने मन ही मन खुद से कहा : “मैं अब परमेश्वर को निराश नहीं कर सकता। मुझे कलीसिया के काम की रक्षा के लिए सत्य का अभ्यास करना चाहिए और इस मुद्दे को जल्द से जल्द हल करना चाहिए।”

बाद में, मैंने स्थिति की जाँच और सत्यापन के लिए ऊपरी अगुआओं के साथ सहयोग किया। जाँच के बाद, हमने पाया कि चेन पिंग 2012 से ही सू जिंग के प्रति द्वेष रखती थी। उस समय सू जिंग अगुआ थी और पद की भूखी, चेन पिंग अगुआ बनना चाहती थी और सू जिंग को हटाने की कोशिश में दूसरों के साथ गिरोह बना रही थी। लेकिन उनकी योजनाएँ सफल नहीं हुईं। बाद में, चेन पिंग को बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन वह हमेशा सू जिंग से द्वेष रखती थी और उसकी गलतियाँ पकड़ने की कोशिश करती रहती थी। चेन पिंग द्वारा सू जिंग पर लगाए गए अधिकांश आरोप निराधार थे। सभी चीजों का मूल्यांकन करने के बाद यह स्पष्ट था कि सू जिंग वास्तविक काम करने में विफल नहीं हो रही थी, बल्कि चेन पिंग लगातार सू जिंग की गलतियों को पकड़ रही थी और उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर बता रही थी, यहाँ तक कि सू जिंग को बाहर करने के लिए और लोगों को भी अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही थी। चेन पिंग ने एक मसीह-विरोधी का गंभीर स्वभाव प्रदर्शित किया और उसे बर्खास्त कर दिया गया। ऊपरी अगुआओं ने उसके क्रियाकलापों की प्रकृति और नुकसान का गहन-विश्लेषण किया और उसे चेतावनी जारी की। संगति और भेद पहचानने के माध्यम से सुसमाचार उपयाजक ली युन को एहसास हुआ कि चेन पिंग ने उसका इस्तेमाल किया था। उसे यह भी एहसास हुआ कि उसने कलीसिया के काम में बाधा डाली थी और गड़बड़ी पैदा की थी और बाद में उसने एक पश्चात्ताप पत्र लिखा। सिद्धांतों के आधार पर, कलीसिया ने ली युन को पश्चात्ताप करने का एक मौका दिया और उसे बनाए रखा।

इस मामले से गुजरने के बाद मैंने अपने दिल में सचमुच महसूस किया कि परमेश्वर के घर में सत्य का शासन है और परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव कोई अपमान सहन नहीं करता। मसीह-विरोधी और बुरे लोग, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं और इसका प्रतिरोध करते हैं या इससे विमुख होते हैं, उन सभी को अंततः परमेश्वर बेनकाब करेगा और हटा देगा। मैंने यह भी देखा कि सत्य को समझना और न्याय की भावना रखना महत्वपूर्ण है। यदि हम कलीसिया में बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों का तुरंत बेनकाब नहीं करते हैं और उनकी रिपोर्ट नहीं करते हैं, तो न केवल कलीसिया का काम गंभीर रूप से बाधित होगा, बल्कि भाई-बहनों की जीवन प्रगति भी बाधित होगी। इस वास्तविक परिवेश के माध्यम से मैंने देखा कि मैं कितनी गहराई तक भ्रष्ट था और मुझमें कितनी कमी थी, मैं कितना स्वार्थी और कपटी था। साथ ही, इस मामले ने कुछ भेद पहचानने में मेरी मदद की। मैं तहे दिल से परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ!

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