88. विपत्ति के बीच अपने कर्तव्य पर कैसे कायम रहें
जून 2022 में मुझे पता चला कि पुलिस ने तीस से ज्यादा भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया है, जिनमें कई अगुआ भी शामिल हैं। बहुत से भाई-बहनों और जिन घरों में सभाएँ हुई थीं उन्हें सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ा था और परमेश्वर के वचनों की किताबों को तत्काल स्थानांतरित करने की जरूरत थी। अगुआओं ने दो बहनों और मेरे लिए चेंगुआंग कलीसिया में जाने की व्यवस्था की ताकि हम इसके बाद की स्थिति को सँभाल सकें। मैंने मन ही मन सोचा, “मेरी पिछली गिरफ्तारियों का एक आपराधिक रिकॉर्ड है और कम्युनिस्ट पार्टी पिछले कई साल से लगातार मेरा पीछा कर रही है। अगर मैं बाद की स्थिति सँभालने जाता हूँ तो यह अपरिहार्य है कि मुझे सार्वजनिक रूप से बाहर जाना पड़ेगा और मुझे ऐसे लोगों के संपर्क में आना पड़ेगा जो सुरक्षा जोखिम में हैं। अगर मुझे फिर से गिरफ्तार किया जाता है तो कम्युनिस्ट पार्टी निश्चित रूप से मेरे साथ नरमी नहीं बरतेगी। भले ही वे मुझे मार न भी डालें, वे मुझे आठ से दस साल की सजा दे सकते हैं। अब जब परमेश्वर का कार्य अंत के करीब है, क्या होगा अगर पुलिस मुझे मार दे या गंभीर रूप से घायल कर दे? क्या मेरा बरसों तक अपने परिवार और करियर का सारा त्याग और मेरा सारा खपना व्यर्थ नहीं हो जाएगा? मैं कैसे बचा लिया जाऊँगा और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करूँगा?” लेकिन यह सोचते हुए मुझे थोड़ा अपराध बोध हुआ, मैंने सोचा, “मैं अभी भी ऐसे समय में अपने बारे में सोच रहा हूँ। मैं बहुत स्वार्थी हो रहा हूँ।” मुझे परमेश्वर के कुछ वचन याद आए : “परमेश्वर का कार्य मानवजाति के लिए किया जाता है, और मनुष्य का सहयोग परमेश्वर के प्रबंधन के लिए दिया जाता है। जब परमेश्वर वह सब कर लेता है जो उसे करना चाहिए, तो मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने अभ्यास में उदार हो और परमेश्वर के साथ सहयोग करे। परमेश्वर के कार्य में मनुष्य को कोई कसर बाकी नहीं रखनी चाहिए, उसे अपनी वफादारी प्रदान करनी चाहिए, और अनगिनत धारणाओं में संलग्न नहीं होना चाहिए, या निष्क्रिय बैठकर मृत्यु की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। परमेश्वर मनुष्य के लिए स्वयं को बलिदान कर सकता है, तो क्यों मनुष्य परमेश्वर को अपनी वफादारी प्रदान नहीं कर सकता? परमेश्वर मनुष्य के प्रति एक हृदय और मन वाला है, तो क्यों मनुष्य थोड़ा-सा सहयोग प्रदान नहीं कर सकता? परमेश्वर मानवजाति के लिए कार्य करता है, तो क्यों मनुष्य परमेश्वर के प्रबंधन के लिए अपना कुछ कर्तव्य पूरा नहीं कर सकता? परमेश्वर का कार्य इतनी दूर तक आ गया है, पर तुम लोग अभी भी देखते ही हो किंतु करते नहीं, सुनते ही हो किंतु हिलते नहीं। क्या ऐसे लोग तबाही के लक्ष्य नहीं हैं? परमेश्वर पहले ही अपना सर्वस्व मनुष्य को अर्पित कर चुका है, तो क्यों आज मनुष्य ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ है? परमेश्वर के लिए उसका कार्य उसकी पहली प्राथमिकता है, और उसके प्रबंधन का कार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मनुष्य के लिए परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाना और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करना उसकी पहली प्राथमिकता है। इसे तुम सभी लोगों को समझ लेना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए मुझे अपनी अंतरात्मा में अपराध बोध की गहरी भावना महसूस हुई। कम्युनिस्ट पार्टी कलीसिया को बेतहाशा सता रही थी, भाई-बहन खतरे में थे और उन्हें तुरंत छिपने के लिए कहने की जरूरत थी, परमेश्वर के वचनों की किताबों को भी स्थानांतरित करने की जरूरत थी और कलीसिया का बहुत सारा काम भी था जिसे तत्काल सँभालने की जरूरत थी। ऐसे समय में जरूरी था कोई आगे आकर जल्द से बाद की स्थिति को सँभाले और नुकसान को न्यूनतम करे। यह परमेश्वर के इरादे के अनुरूप था। लेकिन मैं केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोच रहा था, कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोच रहा था और परमेश्वर के इरादे के बारे में विचारशील नहीं था। मुझमें वाकई अंतरात्मा की कमी थी और मैं बहुत स्वार्थी और नीच बन रहा था! इसलिए मैंने यह कर्तव्य स्वीकार कर लिया और दो बहनों के साथ इस घटना के बाद की स्थिति से निपटने के विशिष्ट विवरण पर चर्चा की।
एक रात एक बहन ने कहा कि उसके इलेक्ट्रिक स्कूटर पर कुछ लगाया गया है, इसलिए हमने जल्दी से जाँच की और पाया कि हमारे दोनों स्कूटरों में ट्रैकर लगे हुए थे, जिसका मतलब था कि हम शायद पहले से ही पुलिस के निशाने पर हैं और हमें किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है। मैं बेचैन और असहज हो गया और पिछली गिरफ्तारी के बाद की यातनाओं की तस्वीरें मेरी आँखों के सामने घूम गईं। जब मुझे पहले गिरफ्तार किया गया था तो पुलिस ने मुझे कलीसिया के वित्त और भाई-बहनों को धोखा देने के लिए मजबूर करने को यातनाएँ दी थीं, लंबे समय तक नींद से वंचित करने का कठोर तरीका इस्तेमाल किया था, जिसमें उन्होंने मुझे पूरे दिन जगाए रखा, जब भी मैं सोने लगता तो मुझे पीटा या डराया जाता। उन्होंने ऐसा लगातार बीस दिनों तक किया। उन्होंने मुझे इस हद तक प्रताड़ित किया कि जीना मौत से भी बदतर हो गया और अगर परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा न होती तो मैं बहुत पहले ही मर चुका होता। इसकी याद मुझे अभी भी सताती है। मैंने यह भी सोचा कि इस समय तक मैं साठ साल से ज्यादा उम्र का हो चुका हूँ और मेरा स्वास्थ्य खराब है, मुझे हृदय रोग और उच्च रक्तचाप भी है और मैंने सोचा, “अगर मुझे फिर से गिरफ्तार किया गया तो क्या मैं यातना और बर्बर पिटाई झेल पाऊँगा?” कम्युनिस्ट पार्टी हरसंभव तरीके से विश्वासियों को यातना देती है, उन्हें पीट-पीटकर मार देती है और इसके लिए उसे किसी दुष्प्रभाव का सामना नहीं करना पड़ता है। अगर मुझे पीट-पीटकर मार दिया गया या पंगु बना दिया गया तो मैं परमेश्वर में विश्वास करने या अपने कर्तव्य निभाने में कैसे सक्षम हो पाऊँगा? मैंने सोचा, “भूल भी जाओ, मैं बस फिलहाल अपने कर्तव्य निभाना बंद कर देता हूँ और छिपने के लिए कोई जगह ढूँढ़ लेता हूँ। यह तरीका सुरक्षित रहेगा।” मैंने मन ही मन यह शिकायत भी की कि अगुआओं ने यह कर्तव्य किसी और को नहीं सौंपा। आखिर वे मेरे जैसे किसी ऐसे व्यक्ति को बाद का काम सँभालने कैसे दे सकते हैं, जिसकी सुरक्षा खतरे में है? जितना ज्यादा मैं इस तरह सोचता, उतना ही मेरा दिल बैठ जाता। बाद में मुझे एहसास हुआ कि मेरी मनोदशा गलत थी, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरी आस्था बहुत छोटी है। जब मुझे स्कूटर पर ट्रैकर लगे मिले तो मैं डर के मारे घबरा गया और कछुए की तरह अपना सिर अपने खोल में छुपाना चाहता था। मैं वाकई स्वार्थी हूँ। हे परमेश्वर, मैं तुम पर भरोसा करने, तुम्हारी ओर देखने और आस्था के साथ इस स्थिति का अनुभव करने के लिए तैयार हूँ, मुझे आशा है कि तुम मुझे अपने मसलों पर चिंतन करने और उन्हें पहचानने के लिए मार्गदर्शन दोगे।” प्रार्थना करने के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जब तक लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं कर लेते हैं और सत्य को समझ नहीं लेते हैं, तब तक यह शैतान की प्रकृति है जो भीतर से इन पर नियंत्रण कर लेती है और उन पर हावी हो जाती है। उस प्रकृति में विशिष्ट रूप से क्या शामिल होता है? उदाहरण के लिए, तुम स्वार्थी क्यों हो? तुम अपने पद की रक्षा क्यों करते हो? तुम्हारी भावनाएँ इतनी प्रबल क्यों हैं? तुम उन अधार्मिक चीजों से प्यार क्यों करते हो? ऐसी बुरी चीजें तुम्हें अच्छी क्यों लगती हैं? ऐसी चीजों को पसंद करने का आधार क्या है? ये चीजें कहाँ से आती हैं? तुम इन्हें स्वीकार कर इतने खुश क्यों हो? अब तक, तुम सब लोगों ने समझ लिया है कि इन सभी चीजों के पीछे मुख्य कारण यह है कि मनुष्य के भीतर शैतान का जहर है। तो शैतान का जहर क्या है? इसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? उदाहरण के लिए, यदि तुम पूछते हो, ‘लोगों को कैसे जीना चाहिए? लोगों को किसके लिए जीना चाहिए?’ तो लोग जवाब देंगे, ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए।’ यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का फलसफा और तर्क लोगों का जीवन बन गए हैं। लोग चाहे जिसका भी अनुसरण करें, वे ऐसा बस अपने लिए करते हैं, और इसलिए वे केवल अपने लिए जीते हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’—यही मनुष्य का जीवन-दर्शन है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। ये शब्द पहले ही भ्रष्ट इंसान की प्रकृति बन गए हैं, और वे भ्रष्ट इंसान की शैतानी प्रकृति की सच्ची तस्वीर हैं। यह शैतानी प्रकृति पहले ही भ्रष्ट इंसान के अस्तित्व का आधार बन चुकी है। कई हजार सालों से वर्तमान दिन तक भ्रष्ट इंसान शैतान के इस जहर से जिया है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पतरस के मार्ग पर कैसे चलें)। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मुझे एहसास हुआ कि जब भी मैं किसी खतरनाक स्थिति का सामना करता था तो मैं हमेशा अपने बारे में सोचता था और इसके मूल में शैतानी जहर थे, जैसे—“हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए” और “बिना पुरस्कार के कभी कोई काम मत करो,” क्योंकि इन विचारों ने मुझे गहराई से प्रभावित किया था। ये कहावतें इस बात की मानक बन गई थीं कि मैं कैसे व्यवहार और आचरण करता हूँ। इन विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार जीने से मैं स्वार्थी और स्वहितकारी हो गया, लाभ कमाने और नुकसान से बचने को ही अपना सिद्धांत मानने लगा। जब मैं समाज में काम करता था तो मैं इसी तरह से अपना आचरण करता था, यहाँ तक कि अपने दोस्तों को भी इसी आधार पर चुनता था कि कौन मेरे काम आ सकता है। परमेश्वर को पाने और अपने कर्तव्य शुरू करने के बाद भी मैं बस अपने बारे में सोच रहा था, ऐसे आसान काम करना पसंद करता था जिन्हें अगुआ बेहतर मानते थे। जब स्थिति आरामदायक थी तो मैं कष्ट सह सकता था और अपने कर्तव्य करने में खुद को खपा सकता था, लेकिन जब स्थिति गंभीर हो गई और व्यक्तिगत सुरक्षा की बात आई तो मैंने केवल अपने हितों के बारे में सोचा और कलीसिया के काम की बिल्कुल भी परवाह नहीं की। जब अगुआओं ने मेरे लिए बाद की स्थिति सँभालने की व्यवस्था की तो मेरी पहली चिंता मेरी अपनी सुरक्षा थी और खासकर जब मुझे पता चला कि हमारे स्कूटरों पर ट्रैकर लगाए गए हैं तो मैं इस बारे में और भी अधिक चिंतित हो गया कि पुलिस मेरी निगरानी कर रही है और इस जोखिम के बारे में भी कि किसी भी समय मुझे गिरफ्तार किया जा सकता है या मेरी जान तक जा सकती है। मैंने जीवित रहने को प्राथमिकता देने के लिए अपने कर्तव्य छोड़ने और छिप जाने के बारे में भी सोचा। मैं केवल अपने बारे में सोच रहा था, मैं कलीसिया के कार्य या भाई-बहनों की गिरफ्तारी की परवाह नहीं कर रहा था। मैं कितना स्वार्थी और नीच था! बाद का काम सँभालने के लिए समय के खिलाफ काम करना पड़ता है और इस तरह के महत्वपूर्ण समय पर कोई भी अंतरात्मा और विवेक वाला व्यक्ति परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा के लिए खड़ा होता और नुकसान कम करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करता। भले ही इसका मतलब गिरफ्तार होना, जेल जाना या अपनी जान गँवाना हो, वह परमेश्वर के हृदय को सुकून पहुँचाने के लिए कलीसिया के कार्य की रक्षा करना चुनेगा। लेकिन जहाँ तक मेरा सवाल है, जब खतरे का सामना करना पड़ा तो मैंने भागना और छिपना चाहा, जैसे कछुआ अपना सिर खोल में खींच लेता है। मेरे पास किस तरह कोई मानवता थी? इसका एहसास होने पर मुझे बहुत शर्मिंदगी और पछतावा हुआ, मुझे खुद से घिन हो गई। मैं इस स्थिति से अब और नहीं भागना चाहता था, मैं समर्पण करने और बाद के काम को ठीक से सँभालने के लिए तैयार था।
बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “शैतान चाहे जितना भी ‘ताकतवर’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और साजिशें जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं को समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानवजाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों में वाकई अधिकार और सामर्थ्य है। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं आस्था से भर गया, मुझे यह एहसास हुआ कि कम्युनिस्ट पार्टी चाहे कितनी भी बेलगाम क्यों न हो, फिर भी यह परमेश्वर के हाथ में है। यह केवल सेवा का एक साधन है जिसका उपयोग परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को पूर्ण बनाने के लिए करता है। यह जो कुछ भी करती है वह परमेश्वर की अनुमति के दायरे में है और अगर परमेश्वर इसकी अनुमति नहीं देता है तो यह किसी को नुकसान नहीं पहुँचा सकती। अगर मेरा पुलिस से आमना-सामना भी हो गया तो भी मैं पकड़ा नहीं जाऊँगा। मुझे कुछ साल पहले की बात याद आई जब हमारे इलाके के बहुत से अगुआ और कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिए गए थे, फिर भी हम बेखबर होकर सभाओं में भाग ले रहे थे। अचानक दस से अधिक पुलिस अधिकारी आए और दरवाजा खटखटाने लगे। वे कई मिनट तक खटखटाते रहे, हम बस प्रार्थना करते रहे और दरवाजा नहीं खोला। आधे घंटे बाद पुलिस को लगा कि घर पर कोई नहीं है और दो अधिकारियों को पहरे पर लगा दिया, जबकि बाकी चले गए। बाद में हमने खिड़की से देखा और जब पुलिस ध्यान नहीं दे रही थी तो हम मौका पाकर भाग गए। एक और बार जब हम एक सभा समाप्त कर चुके थे, मैं और एक भाई अभी निकले ही थे कि दो बहनों को पुलिस ने कमरे में घेर लिया। बहनों ने जल्दी से कंप्यूटर उठाए और बिस्तर के नीचे छिप गईं, लेकिन भले ही वे ठीक पुलिस के सामने थीं, लेकिन उनका पता नहीं चला। इन तथ्यों से मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता देखी और मुझे पता था कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है। भले ही मेरे स्कूटर में ट्रैकर लगा हुआ था, लेकिन मैं पकड़ा जाऊँगा या नहीं, यह पुलिस पर निर्भर नहीं करता था; यह परमेश्वर पर निर्भर करता था। अगर परमेश्वर ने मुझे पुलिस द्वारा गिरफ्तार होने दिया तो चाहे मैं कहीं भी छिप जाऊँ, मैं बच नहीं पाऊँगा। मुझे परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के आगे समर्पण करना था। इसका एहसास होने पर मेरा दिल शांत और स्थिर हो गया और मैं अब इतना डरपोक या भयभीत नहीं था। फिर हमने बाद के काम को जारी रखा, परमेश्वर के वचनों की सभी पुस्तकों को सुरक्षित रूप से स्थानांतरित किया और भाई-बहनों को कर्तव्य निर्वहन के लिए सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया।
इस कलीसिया का काम व्यवस्थित करने के बाद मैं बाद का काम सँभालने के लिए दूसरी कलीसिया में गया। मैंने कलीसिया के काम को जल्दी से सामान्य करने के तरीके पर चर्चा करने के लिए दो पर्यवेक्षकों को खोजा। लेकिन मुझे हैरानी हुई कि एक पर्यवेक्षक के स्कूटर में भी ट्रैकर लगा हुआ था और पुलिस जाँच करने के लिए हमारे निवास पर भी गई थी। हमारे ऊपर फिर से तनावपूर्ण माहौल छा गया और मैं वाकई दबाव महसूस कर रहा था। कम्युनिस्ट पार्टी एक भूत की तरह है, जो विश्वासियों को लगातार गिरफ्तार कर रही है और सता रही है, कलीसिया के काम को बाधित और नष्ट कर रही है। यह वाकई शापित और निंदनीय है! अगले दिन मुझे उच्च अगुआई से एक पत्र मिला, जिसमें मुझे और एक बहन को एक रिपोर्ट के पत्र से निपटने के लिए कहा गया था। पत्र में बताया गया था कि कलीसिया में एक मसीह-विरोधी सत्ता में है, जो लोगों पर अत्याचार कर रहा है और उन्हें यातना दे रहा है और कलीसिया में अराजकता पैदा कर रहा है। उन्होंने कहा कि मामला बहुत जरूरी है और इससे मैं फौरन निपटूँ। मैं जाना नहीं चाहता था और पत्र लिखने वाले व्यक्ति के बारे में यह सोचकर शिकायत कर रहा था, “यहाँ स्थिति पहले से ही काफी खराब है और तुमने रिपोर्ट का पत्र लिखने के लिए यही समय चुना। हम पहले से ही बाद के कामों में काफी व्यस्त हैं और अब तुम बस अराजकता और बढ़ा रहे हो!” उसी पल मुझे पता चला कि गिरफ्तार किए गए दो लोग यहूदा बन गए हैं और वे दोनों मुझे जानते थे। पुलिस ने उनसे मेरे बारे में पूछताछ भी की थी और मुझे नहीं पता था कि उन्होंने मेरे बारे में पुलिस को कितनी जानकारी दी है। मैंने सोचा, “पुलिस पहले से ही मेरा पीछा कर रही है, अगर मैं फिर से सार्वजनिक रूप से बाहर निकला तो क्या मैं बंदूक के निशाने की सीध में नहीं चल रहा हूँगा? अगर मैं पकड़ा गया तो पुलिस मुझे आसानी से नहीं छोड़ेगी। भले ही वह मुझे पीट-पीटकर न मार डाले, लेकिन वह मुझे अपंग जरूर बना देगी।” मैंने बहुत ही अंतर्द्वंद्व महसूस किया, “रिपोर्ट पत्र से निपटना कलीसिया के कार्य से संबंधित है और अगर इन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों से तुरंत न निपटा गया तो और अराजकता पैदा होगी और भाई-बहन अत्याचार और यातना झेलते रहेंगे। लेकिन इस रिपोर्ट पत्र में कई कलीसिया शामिल हैं और इसके लिए मौके पर जाँच और सत्यापन की जरूरत है और अगर मैं ऐसा करने के लिए सार्वजनिक रूप से बाहर जाता हूँ तो मुझे देर-सवेर गिरफ्तार किए जाने का खतरा होगा!” यह सोचकर मैं बहुत घबरा गया और शांत हो ही नहीं पाया। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे आस्था और शक्ति माँगी। प्रार्थना करने के बाद मुझे परमेश्वर के वो वचन याद आए जो यह बताते हैं कि कैसे प्रभु यीशु के लिए उसके शिष्य शहीद हो गए थे। मैंने जल्दी से इन खोजकर इन वचनों को पढ़ा।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “प्रभु यीशु के उन अनुयायियों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी तौर पर फाँसी दी गई थी? नहीं। उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था, लेकिन दुनिया के लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया, इसके बजाय उनकी भर्त्सना की, पीटा और डाँटा-फटकारा और यहाँ तक कि मार डाला—इस तरह वे शहीद हुए। ... वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की भर्त्सना करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहां तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं नकारा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि उसने समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए जो कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित रह पाई है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपने कर्तव्य का पालन किया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रचार करना वह कर्तव्य है जिसे सभी विश्वासी अच्छे पूरा करने को बाध्य हैं)। “जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं और खुद को बचाने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम कर जाते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य करने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए व्यक्ति को अपना कर्तव्य निभाने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें व्यक्ति को बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन उसे अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और यह सबसे पहले आता है। मसीह-विरोधी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं; उनका मानना है कि किसी और चीज का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब किसी दूसरे के साथ कुछ होता है तो वे परवाह नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो। जब तक खुद मसीह-विरोधियों के साथ कुछ बुरा नहीं होता, तब तक वे आराम से बैठे रहते हैं। वे निष्ठारहित होते हैं, जो मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार से निर्धारित होता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। अनुग्रह के युग के दौरान प्रभु यीशु के शिष्यों ने उसकी गवाही दी और सुसमाचार का प्रसार किया, इसके लिए वे अपने जीवन का बलिदान करने के लिए तैयार थे। उदाहरण के लिए पतरस को परमेश्वर के लिए सूली पर उल्टा लटका दिया गया, जो मृत्यु तक वफादार रहा, स्तिफनुस को प्रभु यीशु के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए पत्थर मार-मारकर मौत के घाट उतार दिया गया, इत्यादि। उन्होंने परमेश्वर के वचनों का प्रचार करने और दुनिया को उसके कार्य की गवाही देने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। हालाँकि उन्हें सताया गया और वे देह में मर गए, लेकिन उनकी मृत्यु मूल्यवान और सार्थक थी और उन्हें परमेश्वर की स्वीकृति मिली। मैंने ख्याल किया कि कैसे अंत के दिनों में परमेश्वर का अनुसरण करने वाले बहुत से सच्चे विश्वासियों को गिरफ्तार किया गया था और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत दिनों का सुसमाचार प्रसारित करने और उसकी गवाही देने के लिए क्रूर यातनाएँ सहनी पड़ी थीं। कुछ को पीट-पीटकर मार डाला गया था और कुछ को अपंग बना दिया गया था, लेकिन उन्होंने परमेश्वर को अस्वीकारने या उसे धोखा देने के बजाय अपना जीवन जेल में बिताना पसंद किया। उन्होंने यहूदा बनने के बजाय मरना पसंद किया। आखिरकार उन्होंने ऐसी गवाही दी जिसने शैतान पर विजय प्राप्त की। अब कलीसिया को अपना कार्य सँभालने के लिए किसी की तत्काल जरूरत थी, लेकिन मैं हमेशा अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहा था और अपने जीवन को बाकी सब चीजों से ऊपर रख रहा था। मैं न तो परमेश्वर के प्रति वफादार था और न ही आज्ञाकारी, उसके लिए कोई गवाही देने में सक्षम तो बिल्कुल नहीं था। अपने कर्तव्य निभाए बिना इस तरह से अपने नीच अस्तित्व को घसीटने का क्या अर्थ था? मुझे यह एहसास भी हुआ कि मेरी समझ विकृत थी, क्योंकि मुझे हमेशा चिंता रहती थी कि अगर मुझे पीट-पीटकर मार दिया गया या अपंग कर दिया गया तो मैं अपने बचाए जाने का मौका खो दूँगा, लेकिन असल में बचाए जाने का मतलब है परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना, उस बिंदु तक जहाँ एक व्यक्ति अपने भ्रष्ट स्वभाव को उतार फेंक सकता है और परमेश्वर के प्रति सच्चा समर्पण प्राप्त कर सकता है। अगर मैं परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण न कर सका, अगर मैंने सत्य का अनुसरण न किया और अपने कर्तव्य अच्छी तरह न निभाए, न ही परमेश्वर ने जिस स्थिति की व्यवस्था की है उसमें अपने भ्रष्ट स्वभाव उतार फेंके, बल्कि कछुए की तरह अपना सिर अपने खोल में खींचकर भागने और छिपने का चयन किया तो मैं वाकई बचाए जाने का मौका गँवा दूँगा। इसका एहसास होने पर मैंने परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने का संकल्प लिया और यह भी कि भविष्य में चाहे मुझे किसी भी स्थिति का सामना करना पड़े, मैं शुरुआत अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को ठीक से पूरा करके करूँगा। अगर मुझे किसी दिन गिरफ्तार कर भी लिया गया तो उसे भी परमेश्वर की अनुमति मिली हुई होगी और मैं प्रभु यीशु के शिष्यों के उदाहरण का अनुसरण करूँगा और मृत्यु तक परमेश्वर के प्रति वफादार रहूँगा। इसलिए मैंने अपना भेष बदला और बाद का काम सँभालते हुए मैंने रिपोर्ट पत्र को सत्यापित करने का भी काम किया। बाद में सत्यापन के बाद मैंने पाया कि रिपोर्ट पत्र में अधिकांश सामग्री तथ्यों के अनुरूप नहीं थी और इसका एक छोटा हिस्सा बदनामी करने और झूठे आरोप वाला था। मैंने यह भी पता चला कि जिस इंसान ने रिपोर्ट पत्र लिखा था, वह अक्सर अथक रूप से लोगों और चीजों पर निगाहें गड़ाए रहती थी, परेशानी खड़ी करती थी और कलह के बीज बोती रहती थी, कि वह उन सभी लोगों से प्रतिशोध लेती थी जो उसकी गलती सुधारते थे और यह भी कि उसकी मानवता दुर्भावनापूर्ण थी। अंत में अधिकांश कलीसियाई सदस्यों की सहमति से उसे कलीसिया से निकाल दिया गया।
बाद का काम सँभालने के इस अनुभव के माध्यम से मुझे अपनी स्वार्थी प्रकृति की कुछ समझ मिली और मैंने यह भी देखा कि परमेश्वर का कार्य अविश्वसनीय रूप से बुद्धिमानी भरा है। परमेश्वर सीसीपी की गिरफ्तारियों और उत्पीड़न का उपयोग अपने चुने हुए लोगों को पूर्ण बनाने के लिए करता है और विभिन्न प्रकार के लोगों को प्रकट करने के लिए भी करता है। उदाहरण के लिए, इस बार बहुत सी कलीसियाओं के अगुआ, कार्यकर्ता और भाई-बहन गिरफ्तार किए गए थे और कुछ इस प्रतिकूल स्थिति में खुद को बचाने के लिए इतने डर गए कि अपने कर्तव्य नहीं निभा पाए, जबकि अन्य गिरफ्तार होने के बाद अपनी जान बचाने के लिए यहूदा बन गए, उन्होंने भाई-बहनों से गद्दारी कर दी और यहाँ तक कि परमेश्वर को अस्वीकारने और धोखा देने के लिए “तीन कथनों” पर हस्ताक्षर भी किए। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने गिरफ्तारी के बाद और बड़े लाल अजगर के बहकाने, जबरदस्ती करने, प्रलोभन देने और यातना देने के बाद भी परमेश्वर में आस्था नहीं गँवाई। उन्होंने यहूदा बनने के बजाय जेल की सजा काटना और दोषी ठहराया जाना पसंद किया और मृत्यु तक भी परमेश्वर को धोखा न देने की कसम खाई। उन्होंने परमेश्वर के लिए सुंदर और जबरदस्त गवाही दी और भले ही उन्होंने देह में बहुत कष्ट सहे, परन्तु उनकी गवाहियों को परमेश्वर की स्वीकृति मिली और उसने इन गवाहियों को याद रखा। इस तरह परमेश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को उसकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया। हालाँकि बड़ा लाल अजगर अभी भी हमें गिरफ्तार कर रहा था और सता रहा था, कलीसिया का काम हमेशा की तरह जारी रहा और जो भाई-बहन खतरे में थे, उन्हें परमेश्वर के वचनों की किताबों के साथ सुरक्षित रूप से स्थानांतरित कर दिया गया था, जो बुरे लोग और छद्म-विश्वासी गड़बड़ियाँ और बाधाएँ पैदा कर रहे थे उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल दिया गया था। इस स्थिति ने मुझे परमेश्वर के चमत्कारिक कर्म देखने दिए और यह कि परमेश्वर का सारा काम स्वयं परमेश्वर द्वारा किया जाता है। परमेश्वर में मेरी आस्था बढ़ गई है। परमेश्वर का धन्यवाद!