66. ईर्ष्या की बेड़ियों से मैं बच निकली

आन शिया, चीन

2021 की शरद ऋतु में, मैं पाठ-आधारित कर्तव्य कर रही थी। उस समय चेंग शिन नाम की एक बहन हमारी टीम में शामिल हुई। चेंग शिन की काबिलियत अच्छी है और उसकी समझ शुद्ध है। भले ही उसे सिद्धांतों पर बहुत ठोस पकड़ नहीं थी, लेकिन वह सक्रिय रूप से खोज सकती थी और दूसरों के सुझाव स्वीकार कर सकती थी। कभी-कभी जिन बहनों के साथ मैं काम कर रही थी, वे मेरे सामने चेंग शिन की तारीफ करती थीं, वे कहती थीं कि कुछ समस्याओं पर थोड़ा मार्गदर्शन दिए जाने के बाद, उसके काम में विचलन और समस्याएँ कम हो गईं। कुछ समय बाद, क्योंकि जिस टीम के लिए हम जिम्मेदार थीं, उसके नतीजे अच्छे नहीं थे, पर्यवेक्षक ने हमसे चेंग शिन को उनके साथ सभा और संगति की व्यवस्था करने के बारे में चर्चा की। मैंने मन ही मन सोचा, “चेंग शिन को यहाँ आए एक महीने से भी कम समय हुआ है और वह अभी तक सिद्धांतों पर ठीक से पकड़ नहीं बना पाई है। तुमने उसके जाने के लिए व्यवस्था कर दी, मुझसे यह भी नहीं पूछा कि मैं जाना चाहती हूँ या नहीं। क्या तुम सोचते हो कि चेंग शिन की काबिलियत मुझसे बेहतर है और उसकी संगति से मिलने वाले नतीजे मेरे नतीजों से बेहतर होंगे? मैंने कभी नहीं सोचा था कि इतने सालों के प्रशिक्षण के बाद भी मैं एक नवागंतुक जितनी अच्छी नहीं रहूँगी।” लेकिन फिर मैंने सोचा कि जब मैं पिछली बार संगति करने गई थी, तो नतीजे सचमुच उतने अच्छे नहीं थे, इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। बाद में, जब मैंने पर्यवेक्षक को चेंग शिन के साथ अकेले में उसके काम पर मार्गदर्शन करते देखा, तो मुझे बहुत बुरा लगा, मैंने सोचा, “चेंग शिन अभी-अभी आई है और पर्यवेक्षक ने उसे तुरंत महत्व दिया और विकसित करना शुरू कर दिया। ऐसा लगता है कि मैं उसके जितनी अच्छी नहीं हूँ। सबसे अच्छा यही होगा कि इस बार चेंग शिन सभा में जाए लेकिन अच्छे नतीजे न मिलें। तब पर्यवेक्षक उसे उतना महत्व नहीं देगा।” बाद में, चेंग शिन सभा से वापस आई और पर्यवेक्षक को बताया कि उसने समस्या का समाधान कैसे किया। यह सुनकर मुझे बहुत असहज महसूस हुआ, मैंने सोचा, “जब मैंने पहली बार प्रशिक्षण शुरू किया था, तो मुझे बहुत सारी समस्याएँ थीं। तुम अब मुझसे बेहतर कर रही हो। क्या इससे यह नहीं लगता कि तुम मुझसे बेहतर हो? यह नहीं चलेगा। मुझे तुम्हारी कमियाँ निकालनी ही होंगी!” लेकिन मुझे उसमें कोई समस्या नहीं मिली और मैं बहुत निराश हुई।

बाद में, मैंने देखा कि चेंग शिन के कर्तव्य में कुछ समस्याएँ आ गई थीं, जिसका मतलब था कि काम दोबारा करना पड़ेगा। इस पर मुझे थोड़ी खुशी हुई, मैंने सोचा, “तुम्हारे सामने जितनी ज्यादा समस्याएँ आएँ, उतना ही अच्छा है। शायद दूसरों की नजरों में मैं तुमसे बेहतर मानी जाऊँगी और मेरे सामने तुम्हारी जितनी समस्याएँ नहीं आएँगी।” कभी-कभी मेरे मन में एक विचार कौंध जाता था : “क्या मैं चेंग शिन से ईर्ष्या कर रही हूँ?” लेकिन मैं यह स्वीकार नहीं करना चाहती थी कि मैं इतनी बुरी हूँ, इसलिए मैंने इस पर चिंतन नहीं किया। बाद में, मैंने देखा कि चेंग शिन अपना कर्तव्य निभाने में सिद्धांतों पर पकड़ नहीं बना पाती थी और मुद्दों पर काफी एकतरफा तरीके से विचार करती थी, इसलिए मैंने उसे इस बारे में बताया। मैं उसकी सकारात्मकता को कम करने के लिए उसकी कमियाँ निकालना चाहती थी, लेकिन मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह इसे सही ढंग से लेगी और सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभाती रहेगी। मैं बहुत निराश हुई, सोचने लगी, “तुम नकारात्मक क्यों नहीं होती?” कुछ समय बाद, चेंग शिन ने कुछ सिद्धांतों में महारत हासिल कर ली थी और काम में आने वाली समस्याओं को स्वतंत्र रूप से हल कर सकती थी और समस्याएँ भी कम होती थीं। पर्यवेक्षक ने खुशी से कहा, “चेंग शिन ने इस दौरान कुछ प्रगति की है।” लेकिन मैं बिल्कुल भी खुश नहीं थी, सोचने लगी, “चेंग शिन ने अभी-अभी प्रशिक्षण शुरू किया है लेकिन इतनी बड़ी प्रगति की है। वह पीछे से आकर शीर्ष पर पहुँच गई है। क्या इससे यह नहीं लगता कि मेरी काबिलियत उससे खराब है?” मैंने इस बारे में जितना सोचा, उतना ही असंतुलित महसूस किया, “मुझे पता होना चाहिए था कि मुझे तुम्हें उन सभी बातों के बारे में नहीं बताना चाहिए जिनके बारे में जानना जरूरी है। तब तुमने इतनी जल्दी प्रगति नहीं की होती!” मैं ईर्ष्या में जीती रही, मेरा मन अपने अभिमान और रुतबे से भरा था, लगातार चेंग शिन के कर्तव्य में विचलन और खामियाँ खोजने के बारे में सोचती रहती, चाहती थी कि वह बहुत सारी गलतियाँ करे। क्योंकि मैं एक गलत दशा में जी रही थी, मेरा दिल अंधकारमय और मैला हो गया था, और मैं अपने कर्तव्य में बहुत सी समस्याओं पर ध्यान नहीं दे पाती थी।

एक रात मैं सोने की तैयारी कर रही थी, तभी मैंने इस दौरान अपने कर्तव्य निभाने की अपनी दशा के बारे में सोचा। समस्याओं को देखने में बहुत मेहनत लगती थी और मेरा सिर रुई से भरा हुआ महसूस होता था। मैं समस्याओं को उतनी स्पष्टता से नहीं देख पाती थी जितनी पहले देख पाती थी, परमेश्वर की अगुआई और मार्गदर्शन को महसूस नहीं कर पाती थी। मुझे थोड़ी बेचैनी महसूस हुई, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “प्रिय परमेश्वर, इन दिनों मैं चेंग शिन को अच्छा करते हुए नहीं देख सकती और जब मैं अपना कर्तव्य कर रही होती हूँ तो मैं अपने दिल को शांत भी नहीं कर पाती। मैं नहीं जानती कि खुद को कैसे समझूँ। कृपया मुझे प्रबुद्ध करो और मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना करने के बाद, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “कलीसिया का अगुआ होने के नाते तुम्‍हें समस्याएँ सुलझाने के लिए केवल सत्य का प्रयोग सीखने की आवश्‍यकता ही नहीं है, बल्कि प्रतिभाशाली लोगों का पता लगाने और उन्‍हें विकसित करना सीखने की आवश्‍यकता भी है, जिनसे तुम्‍हें बिल्कुल ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए या जिनका बिल्कुल दमन नहीं करना चाहिए। इस तरह अभ्यास करना कलीसिया के कार्य के लिए लाभकारी है। अगर तुम अपने साथ सहयोग करने के लिए सत्य के कुछ अनुसरणकर्ताओं को विकसित कर सकते हो और सारा काम अच्छे से कर सकते हो और अंत में तुम सबके पास अनुभवजन्‍य गवाहियाँ होती हैं तो फिर तुम एक मानक स्तर के अगुआ या कार्यकर्ता हो। यदि तुम हर चीज़ सिद्धांतों के अनुसार संभाल सको, तो तुम अपनी वफादारी अर्पित कर रहे हो। कुछ लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊपर हैं, अन्‍य लोगों को पहचान मिलेगी, जबकि उन्हें अनदेखा किया जाता है, और इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या यह स्‍वार्थपूर्ण और निंदनीय नहीं है? यह कैसा स्वभाव है? यह दुर्भावना है। जो लोग दूसरों के बारे में सोचे बिना या परमेश्वर के घर के हितों को ध्‍यान में रखे बिना केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, जो केवल अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, वे बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर में उनके लिए कोई प्र‍ेम नहीं होता। अगर तुम परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखाने में वाकई समर्थ हो तो तुम दूसरे लोगों से निष्पक्ष ढंग से पेश आने में सक्षम होगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मैंने स्वीकार किया कि मैं सचमुच ईर्ष्या की दशा में जी रही थी। जब मैंने देखा कि चेंग शिन की काबिलियत अच्छी है और पर्यवेक्षक उसे महत्व देता है और विकसित करता है, तो मुझे ईर्ष्या हुई और मैं इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं थी, मुझे चिंता थी कि उसके काम से मेरे काम के मुकाबले बेहतर नतीजे मिलेंगे और वह मुझसे आगे निकल जाएगी और मैं उससे कमतर दिखूँगी। मैं लगातार चाहती थी कि उसके कर्तव्य में बहुत सारे विचलन और समस्याएँ हों, हमेशा उसकी गलती खोजने और उसे नीचा दिखाने की कोशिश करती थी, जिससे वह नकारात्मक हो जाए और अपना काम न कर सके, ताकि मैं उससे बेहतर दिखूँ। क्या मैं उसे दबा और बाहर नहीं कर रही थी? मैंने जो प्रकट किया था वह एक स्वार्थी और दुर्भावनापूर्ण स्वभाव था! कोई नहीं जानता था कि मैं क्या सोच रही हूँ, लेकिन परमेश्वर की जाँच-पड़ताल में सब कुछ स्पष्ट था। अतीत में, मैं लगातार सोचती थी कि मैं दूसरों से ईर्ष्या नहीं करूँगी, उन्हें दबाने की कोशिश करना तो दूर की बात है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इतनी दुर्भावनापूर्ण और मानवता से रहित हूँ! मैं अच्छी तरह जानती थी कि मेरी काबिलियत बहुत औसत है और अपने कर्तव्य निभाने में मुझे जो नतीजे मिले, वे बहुत अच्छे नहीं थे, लेकिन फिर भी मैं प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए चेंग शिन के साथ प्रतिस्पर्धा करना चाहती थी। मुझमें आत्म-जागरूकता और विवेक की पूरी तरह से कमी थी! मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई।

फिर मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “हालाँकि मसीह-विरोधी लोग परमेश्वर के घर में खाते हैं, परमेश्वर के वचनों का आनंद लेते हैं और उसके घर के सभी फायदे उठाते हैं, फिर भी वे अक्सर चाहते हैं कि उन्हें परमेश्वर के घर का मखौल उड़ाने का मौका मिले। वे बेसब्री से इस ताक में बैठे हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखने वाले सभी लोग बिखर जाएँ और परमेश्वर का कार्य आगे तरक्की करने लायक न रहे। इसलिए जब परमेश्वर के घर में कुछ होता है तो इसकी रक्षा करने की बजाय या समस्या हल करने के तरीके सोचने या अपनी पूरी ताकत से भाई-बहनों की रक्षा करने या उनके साथ मिल-जुलकर समस्या का हल करने या एक साथ मिलकर परमेश्वर के समक्ष आने और उसकी संप्रभुता के प्रति समर्पण करने की बजाय मसीह-विरोधी लोग तमाशबीन बने रहेंगे, हँसते रहेंगे, खराब सलाह देंगे, विध्वंस करेंगे और बाधा डालते रहेंगे। किसी महत्वपूर्ण क्षण में तो वे परमेश्वर के घर की कीमत पर बाहरी लोगों को मदद की पेशकश भी कर देंगे, इस प्रकार वे शैतान के सेवकों के रूप में पेश आते हैं और जानबूझकर बाधा डालकर चीजों का विध्वंश करते हैं। क्या ऐसा इंसान परमेश्वर का दुश्मन नहीं होता है? जितना ज्यादा महत्वपूर्ण क्षण होगा, उतने ही ज्यादा स्पष्ट रूप से उनका दानवी स्वरूप उजागर होता है; जितना अधिक महत्वपूर्ण क्षण होगा, उतना ही अधिक यह घटनापूर्ण होगा, और उतनी ही ज्यादा उनकी दानवी समानता अपनी पूरी गहराई और सीमा तक उजागर होगी; जितना अधिक महत्वपूर्ण क्षण होगा, वे परमेश्वर के घर की कीमत पर बाहरी लोगों की उतनी ही अधिक मदद करेंगे। ये लोग किस तरह की चीज हैं? क्या ऐसे लोग भाई-बहन हैं? ये विनाशकारी, घृणित कार्य करने वाले लोग हैं; ये परमेश्वर के दुश्मन हैं; ये दानव हैं, शैतान हैं; ये बुरे लोग हैं, मसीह-विरोधी हैं। ये भाई-बहन नहीं हैं और ये उद्धार के पात्र नहीं हैं। अगर ये वास्तव में भाई-बहन होते, परमेश्वर के घर के लोग होते तो उसके घर में कोई भी समस्या आने पर ये अपने भाई-बहनों के साथ दिल और दिमाग से एक होकर उसका सामना करते और एक साथ मिलकर इसे सँभालते। वे तमाशबीन बनकर खड़े नहीं रहते और न ही वे इसे देखकर हँसते रहते। ऐसी स्थिति में केवल मसीह-विरोधी जैसे लोग ही होंगे जो तमाशबीन बनकर हँसते रहेंगे और परमेश्वर के घर में बुरी चीजें घटने का बेसब्री से इंतजार करेंगे(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दस : वे सत्य का तिरस्कार करते हैं, सिद्धांतों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाते हैं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं (भाग एक))। परमेश्वर उजागर करता है कि जो लोग हमेशा परमेश्वर के घर का मजाक उड़ाना चाहते हैं और उम्मीद करते हैं कि परमेश्वर के घर का काम गलत हो जाए, वे दानव हैं। मैंने महसूस किया कि परमेश्वर ऐसे लोगों पर बहुत क्रोधित होता है और मैं बहुत डर गई थी। मैं हमेशा चेंग शिन पर हमला करने के लिए उसकी गलती निकालना चाहती थी और चाहती थी कि उसके कर्तव्य में समस्याएँ हों : जितनी ज्यादा समस्याएँ हों उतना अच्छा। वह जितनी ज्यादा गलतियाँ करती, उतनी ही मुझसे कमतर दिखती, मैं तो यह भी चाहती थी कि वह इतनी नकारात्मक हो जाए कि अपना कर्तव्य ही न कर सके। चेंग शिन जो कर रही थी वह कलीसिया का काम था, इसलिए जब मैं लगातार चाहती थी कि वह अपने कर्तव्य में गलतियाँ करे, तो क्या मैं यह उम्मीद नहीं कर रही थी कि कलीसिया के काम में समस्याएँ आएँ? इसमें और मसीह-विरोधियों के तरीके में क्या अंतर है, जब उनकी प्रतिष्ठा और रुतबे की इच्छा पूरी नहीं होती है, वे परमेश्वर के घर के काम के विफल होने के लिए कोसते हैं और परमेश्वर के घर पर हँसते हैं? मेरा दिल सचमुच बहुत दुर्भावनापूर्ण था! अंतरात्मा और विवेक वाला व्यक्ति यह देखकर खुश होता कि परमेश्वर के घर का काम सामान्य रूप से आगे बढ़ रहा है और बहुत सारी समस्याएँ देखकर दुखी होता है। लेकिन जब मैंने चेंग शिन के कर्तव्य में समस्याएँ देखीं, तो मैंने यह नहीं सोचा कि उसके साथ संगति कैसे करूँ और उसकी मदद कैसे करूँ या काम को अच्छी तरह से करने के लिए उसके साथ एकमत होकर सहयोग कैसे करूँ। इसके बजाय, मेरा मन इन विचारों से भरा था कि उसके काम में और समस्याएँ कैसे खोजूँ ताकि मैं उस पर हमला कर सकूँ और खुद को अच्छा दिखा सकूँ। मैं तो यह भी चाहती थी कि वह अपने काम में और गलतियाँ करे : जितनी ज्यादा गलतियाँ हों उतना अच्छा। मैंने परमेश्वर के वचनों के प्रावधान का आनंद लिया, लेकिन फिर भी एक मसीह-विरोधी की तरह परमेश्वर के घर पर हँसी। मुझमें सचमुच परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल भी नहीं था—मैं परमेश्वर के घर की सदस्य कैसे हुई? वैसे तो मैंने दानवों और शैतानों की तरह सीधे तौर पर कलीसिया के काम में बाधा नहीं डाली और गड़बड़ी नहीं की, लेकिन मैंने जो इरादे प्रकट किए और मेरे क्रियाकलापों की प्रकृति दानवों और शैतानों के समान थी—मैं परमेश्वर का प्रतिरोध कर रही थी! अगर परमेश्वर का प्रकाशन और परमेश्वर के वचनों का प्रकाशन न होता, तो मैं अपने इरादों को नहीं खोज पाती या समस्या के सार की असलियत नहीं देख पाती और मैं अपनी बाहरी दिखावट से गुमराह हो जाती। मैं बहुत डरी हुई थी और दुखी और दोषी महसूस कर रही थी। मैं स्पष्ट रूप से जानती थी कि चेंग शिन की काबिलियत अच्छी है, वह जल्दी समझ जाती है और वह इन मामलों में मुझसे बेहतर है, लेकिन मैं उससे ईर्ष्या करती थी और परमेश्वर के घर के हितों पर जरा भी विचार किए बिना उसे दबाती थी। मैं ऐसा कैसे कर सकती थी? मुझमें सचमुच मानवता की कमी थी! मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं बहुत बुरी हूँ। ईर्ष्या की बेड़ियों से मुक्त होने के लिए मेरी अगुआई करो। मैं अब और अपने भ्रष्ट स्वभाव में नहीं जीना चाहती।”

बाद में, मैंने आत्म-चिंतन किया। आखिर कौन सी चीज मुझे दूसरों से ईर्ष्या करने के लिए नियंत्रित कर रही है? मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “मसीह-विरोधियों को प्रतिष्ठा और रुतबा बहुत अधिक पसंद आता है। प्रतिष्ठा और रुतबा उनके जीवन का आधार है; उन्हें लगता है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के बिना जीवन बेकार है और प्रतिष्ठा और रुतबे के बिना उनमें कुछ भी करने की ऊर्जा नहीं होती है। मसीह-विरोधियों के लिए प्रतिष्ठा और रुतबा दोनों उनके व्यक्तिगत हितों से नजदीकी से जुड़े हैं; वे उनकी घातक कमजोरी हैं। इसीलिए मसीह-विरोधी जो भी करते हैं वह उनके रुतबे और प्रतिष्ठा से जुड़ा होता है। अगर ये चीजें न होतीं तो शायद वे कोई काम नहीं करते। मसीह-विरोधियों के पास चाहे कोई रुतबा हो या न हो, जिस लक्ष्य के लिए वे लड़ रहे हैं, जिस दिशा में वे आगे बढ़ रहे हैं, वह इन्हीं दो चीजों की ओर है—प्रतिष्ठा और रुतबा। ... मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए कभी कोई वास्तविक कार्य नहीं करते, न ही वे राज्य का सुसमाचार फैलाने के लिए कोई वास्तविक कार्य करते हैं। जब वे कीमत चुकाते हैं तो गौर करो कि वे यह कीमत क्यों चुकाते हैं। जब वे किसी मुद्दे पर उत्साहपूर्वक वाद-विवाद करते हैं तो गौर करो कि वे उस पर बहस क्यों करते हैं। जब वे किसी व्यक्ति के बारे में विचार-विमर्श करते या उसकी निंदा करते हैं तो गौर करो कि उनकी मंशा और लक्ष्य क्या है। जब वे किसी बात को लेकर दुखी या गुस्सा होते हैं तो गौर करो कि वे किस तरह का स्वभाव प्रकट करते हैं। लोग दूसरे लोगों के दिलों के अंदर नहीं झाँक सकते, मगर परमेश्वर ऐसा कर सकता है। जब परमेश्वर लोगों के दिलों में झाँकता है तो वह लोगों की कथनी और करनी के सार को मापने के लिए किस चीज का उपयोग करता है? वह इसे मापने के लिए सत्य का उपयोग करता है। मनुष्य की नजर में अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा करना उचित है। तो फिर परमेश्वर की नजर में इसे मसीह-विरोधियों के प्रकाशन और अभिव्यक्ति और मसीह-विरोधियों के सार के रूप में क्यों निरूपित किया जाता है? यह मसीह-विरोधियों द्वारा किए जाने वाले हर काम के पीछे के आवेग और अभिप्रेरणा पर आधारित है। परमेश्वर उनके द्वारा किए जाने वाले कामों के पीछे के आवेग और अभिप्रेरणा की पड़ताल करता है और अंत में यह निर्धारित करता है कि वे जो कुछ भी करते हैं वह उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए होता है, न कि अपना कर्तव्य निभाने की खातिर; यह सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने की खातिर तो बिल्कुल भी नहीं है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर के वचनों से मुझे एहसास हुआ कि लोगों से मेरी ईर्ष्या का मुख्य कारण यह था कि प्रतिष्ठा और रुतबे की मेरी इच्छा बहुत प्रबल थी। मैं “जैसे पेड़ को उसकी छाल की जरूरत है वैसे ही लोगों को आत्मसम्मान की जरूरत है,” “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है,” और “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है” जैसे शैतानी जहरों के अनुसार जी रही थी। मेरा मानना था कि दूसरों द्वारा सम्मान और प्रशंसा पाना मुझे जीवन में गरिमा और आत्मविश्वास देता है, जब दूसरे मुझसे बेहतर होते थे तो मैं शर्मिंदा और अपमानित महसूस करती थी। इसलिए, अपने कर्तव्य निभाने में मैंने हर मोड़ पर अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे का ध्यान रखा। जब मैंने पर्यवेक्षक को चेंग शिन के लिए सभा की व्यवस्था करते और उसके साथ अकेले में संगति करते देखा, तो मुझे इस बात से ईर्ष्या हुई कि पर्यवेक्षक चेंग शिन को महत्व दे रहा था और उसे विकसित कर रहा था। मैंने चेंग शिन को नीचा दिखाने के लिए उसके कर्तव्य में विचलन और समस्याएँ खोजने में अपना दिमाग खपाया, मैं इस बात से डरी हुई थी कि वह मुझसे बेहतर है। जब मैंने उसके कर्तव्य में समस्याएँ पाईं, तो मैं खुश हो गई, मुझे लगा कि मुझे संतुलन मिल गया है। मेरा पूरा दिमाग इन विचारों से भरा था कि इस समूह में किसका रुतबा ऊँचा है और किसका नीचा, कौन बेहतर है और कौन कमजोर और मैं खुद को अच्छा कैसे दिखा सकती हूँ। प्रतिष्ठा और रुतबे ने मुझे खुशी और चिंता दी। मैंने जो कुछ भी सोचा, प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर सोचा, इस खातिर तो बिल्कुल भी नहीं सोचा कि एक सृजित प्राणी का कर्तव्य अच्छी तरह से कैसे निभाऊँ और परमेश्वर को संतुष्ट कैसे करूँ। मैं शैतानी जहरों के अनुसार जी रही थी और मेरी प्रकृति विशेष रूप से घमंडी थी। मैं हमेशा अपने आस-पास के बाकी लोगों से बेहतर दिखने का प्रयास करना चाहती थी और दूसरों को मुझसे बेहतर होने की इजाजत नहीं देती थी। मैं केवल खुद को अच्छा दिखाना चाहती थी और दूसरों को सुर्खियों में नहीं आने देना चाहती थी। मैंने प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर लोगों को दबाया भी और उन्हें मुश्किल में डाला। मैंने देखा कि जिस रास्ते पर मैं चल रही थी, वह मसीह-विरोधियों का मार्ग था। इस समय, मुझे बहुत पछतावा हुआ और खुद से नफरत हुई क्योंकि प्रतिष्ठा और रुतबे की मेरी इच्छा बहुत प्रबल थी। अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया, तो अंत में मुझे परमेश्वर द्वारा केवल ठुकराकर हटा ही दिया जाता! मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “सभी लोगों के भीतर कुछ गलत अवस्थाएँ होती हैं, जैसे नकारात्मकता, कमजोरी, निराशा और भंगुरता; या उनकी कुछ नीचतापूर्ण मंशाएँ होती हैं; या वे लगातार अपने घमंड, स्वार्थपूर्ण इच्छाओं और निजी हितों से परेशान रहते हैं; या वे स्‍वयं को कम काबिलियत वाला समझते हैं, और कुछ नकारात्मक दशाओं का अनुभव करते हैं। यदि तुम हमेशा इन अवस्‍थाओं में रहते हो तो तुम्‍हारे लिए पवित्र आत्‍मा के कार्य को प्राप्‍त करना बहुत कठिन होगा। यदि तुम्‍हारे लिए पवित्र आत्‍मा के कार्य को प्राप्‍त करना कठिन हो जाता है, तो तुम्‍हारे भीतर सकारात्मक तत्‍व कम होंगे और नकारात्मक तत्‍व बाहर आकर तुम्‍हें परेशान करेंगे। इन नकारात्‍मक अवस्‍थाओं के दमन के लिए लोग हमेशा अपनी इच्‍छा पर निर्भर रहते हैं, लेकिन वे इनका कैसे भी दमन क्‍यों न करें, इनसे छुटकारा नहीं पा सकते। इसका मुख्‍य कारण यह है कि लोग इन नकारात्‍मक चीजों का भेद पूरी तरह पहचान नहीं सकते हैं; वे अपने सार को स्‍पष्‍ट रूप से नहीं देख सकते हैं। इस कारण उनके लिए देह और शैतान के खिलाफ विद्रोह करना बहुत कठिन हो जाता है। साथ ही, लोग हमेशा इन नकारात्मक, विषादपूर्ण और पतनशील दशाओं में फँस जाते हैं और वे परमेश्वर से प्रार्थना या उसका आदर नहीं करते हैं, बल्कि बस खानापूरी करते हैं। परिणामस्‍वरूप, पवित्र आत्‍मा उनमें कार्य नहीं करता, और अंततः वे सत्‍य को समझने में अक्षम रहते हैं, वे जो भी करते हैं उसमें उन्‍हें रास्‍ता नहीं मिलता, और वे किसी भी मामले को स्‍पष्‍टता से नहीं देख पाते। तुम्‍हारे भीतर बहुत-सी नकारात्‍मक चीजें हैं और वे तुम्‍हारे हृदय में भर गई हैं, इसलिए तुम अक्‍सर नकारात्‍मक, विषादपूर्ण चित्‍त वाले और परमेश्वर से दूर, और दूर और पहले से भी अधिक कमजोर होते जाते हो। यदि तुम पवित्र आत्‍मा के प्रबोधन और कार्य को प्राप्‍त नहीं कर सकते, तो तुम इन अवस्‍थाओं से बच नहीं पाओगे, और तुम्‍हारी नकारात्‍मक अवस्‍था नहीं बदलेगी, क्‍योंकि यदि तुम्‍हारे भीतर पवित्र आत्‍मा कार्य नहीं कर रहा है, तो तुम रास्‍ता नहीं खोज पाओगे। इन दो कारणों के चलते, तुम्‍हारे लिए अपनी नकारात्‍मक अवस्‍था को त्‍यागकर सामान्‍य अवस्‍था में प्रवेश करना बहुत कठिन है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। मैंने महसूस किया कि परमेश्वर का स्वभाव कितना धार्मिक है। परमेश्वर बुराई और प्रतिकूल चीजों से बेइंतहा नफरत करता है। जब मैं अपना कर्तव्य निभाने में लगातार अपने गौरव और रुतबे के बारे में सोचती रही, चेंग शिन से ईर्ष्या करती रही और प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की दशा में जीती रही, तो मेरा दिल नकारात्मक और प्रतिकूल चीजों से भर गया था और नतीजतन परमेश्वर ने मुझसे अपना मुँह छिपा लिया। पवित्र आत्मा के कार्य और अगुआई के बिना, मैं अंधकार में जी रही थी और अपना कर्तव्य निभाना बहुत मुश्किल हो गया था। मैं बस अपने गौरव और रुतबे के बारे में ही सोचती थी, मेरे मन में यह सोचने का ख्याल ही नहीं आया कि मेरे कर्तव्य में क्या समस्याएँ हैं या परमेश्वर के इरादों के अनुरूप अभ्यास कैसे किया जाए। मैं इस तरह से अपना कर्तव्य अच्छी तरह से कैसे निभा सकती थी? अपने बेकार के गौरव और रुतबे की रक्षा के लिए, मैंने अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों को एक तरफ रख दिया और परमेश्वर की बेइंतहा नफरत की पात्र बनी। मैं सचमुच बहुत मूर्ख थी!

इसके बाद, मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “अगर तुम परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखाने में वाकई समर्थ हो तो तुम दूसरे लोगों से निष्पक्ष ढंग से पेश आने में सक्षम होगे। अगर तुम किसी अच्छे व्यक्ति की सिफ़ारिश करते हो और उसे प्रशिक्षित होने और कोई कर्तव्य निर्वहन करने देते हो, और इस तरह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को परमेश्वर के घर में शामिल करते हो, तो क्या उससे तुम्‍हारा काम और आसान नहीं हो जाएगा? तब क्या तुम अपने कर्तव्‍य में वफादारी नहीं दिखा रहे होगे? यह परमेश्वर के समक्ष एक अच्छा कर्म है; यह वह न्यूनतम अंतरात्मा और विवेक है जो अगुआ के रूप में कार्य करने वालों के पास होना चाहिए। जो लोग सत्य को अभ्‍यास में लाने में समर्थ हैं वे जो चीजें करते हैं उनमें परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकार कर सकते हैं। परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकार करते हो तो तुम्‍हारा हृदय सही हो जाएगा। यदि तुम हमेशा दूसरों को दिखाने के लिए ही चीजें करते हो और हमेशा दूसरों की प्रशंसा और सराहना प्राप्त करना चाहते हो और परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकार नहीं करते हो तो क्या तब भी परमेश्वर तुम्‍हारे हृदय में है? ऐसे लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं होता। हमेशा अपने लिए कार्य मत करो, हमेशा अपने हितों की मत सोचो, इंसान के हितों पर ध्यान मत दो, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत करो। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीजों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्‍हारे लिए अपना कर्तव्‍य अच्‍छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा। अगर तुम्‍हारे पास ज्यादा काबिलियत नहीं है, अगर तुम्‍हारा अनुभव उथला है, या अगर तुम अपने पेशेवर कार्य में दक्ष नहीं हो, तब तुम्‍हारे कार्य में कुछ गलतियाँ या कमियाँ हो सकती हैं, हो सकता है कि तुम्‍हें अच्‍छे परिणाम न मिलें—पर तब तुमने अपना सर्वश्रेष्‍ठ दिया होगा। तुम अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाएँ या प्राथमिकताएँ पूरी नहीं करते। इसके बजाय, तुम लगातार कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हो। यूँ तो हो सकता है कि तुम अपने कर्तव्‍य में अच्छे नतीजे प्राप्त न करो, फिर भी तुम्‍हारा दिल दुरुस्त हो चुका होगा; इसके अलावा अगर तुम अपने कर्तव्य में समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य खोज सकते हो तो तुम अपने कर्तव्‍य निर्वहन में मानक स्तर के होओगे और साथ ही तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर पाओगे। किसी के पास गवाही होने का यही अर्थ है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने के बाद, मैं समझ गई कि जो लोग परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होते हैं, वे अच्छी काबिलियत वाले लोगों को देखकर उनकी सिफारिश करेंगे और उन्हें विकसित करेंगे। भले ही चेंग शिन थोड़े ही समय से प्रशिक्षण ले रही है और कई सिद्धांतों पर पकड़ नहीं बना पाई है, लेकिन उसकी काबिलियत अच्छी है और अगर उसे विकसित किया जाता है, तो काम सँभालने के लिए एक और व्यक्ति होगा और हमें एक अतिरिक्त सहायक मिल जाएगा। यह कलीसिया के काम के लिए फायदेमंद होगा। मैंने चिंतन किया कि मैं यह स्वीकार नहीं करना चाहती थी कि चेंग शिन मुझसे बेहतर है क्योंकि मेरे अंदर एक गलत राय थी। मैंने सोचा कि चूँकि मैं कई सालों से पाठ-आधारित कर्तव्य कर रही हूँ, इसलिए मुझे हर तरह से दूसरों से बेहतर होना चाहिए और मुझे महत्व दिया जाना चाहिए और विकसित किया जाना चाहिए। लेकिन इस बारे में सोचती हूँ तो भले ही मैं कई सालों से पाठ-आधारित कर्तव्य कर रही हूँ, पर मेरी काबिलियत औसत है और कुछ सिद्धांतों को समझने और उन पर पकड़ बनाने के लिए मुझे कई असफलताओं और प्रकाशनों का अनुभव करने की जरूरत है। लेकिन चेंग शिन का कम समय में सिद्धांतों के सार पर पकड़ बना पाना यह साबित करता है कि उसकी काबिलियत मुझसे बेहतर है। मुझे इस तथ्य को स्वीकार करना था, अपनी काबिलियत और आध्यात्मिक कद को स्पष्ट रूप से देखना था और अपनी जगह पर ठीक से खड़ा होना था। मैं पहले की तरह चेंग शिन से ईर्ष्या नहीं कर सकती थी और उसे बाहर नहीं कर सकती थी; मुझे अपने इरादों को सही करना चाहिए और अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभाने के लिए उसके साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करना चाहिए। इसके बाद, मैंने सचेत रूप से परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे अपनी ईर्ष्या को छोड़ने के लिए मेरा मार्गदर्शन करने की विनती की, कलीसिया के हितों पर विचार करने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपनी मानसिकता को सही करने की विनती की। इसके बाद, मैंने चेंग शिन की कमियाँ निकालना बंद कर दिया, इसके बजाय इस बारे में सोचा कि उसके साथ कैसे काम किया जाए, मैंने अपने कर्तव्यों में समस्याओं का सारांश तैयार किया और उसके साथ चर्चा करने के लिए प्रासंगिक सिद्धांत खोजे। जब मैंने अपनी गलत दशा को बदला, अपनी ईर्ष्या को छोड़ दिया और अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपनी मानसिकता को सही किया, तो मैंने पवित्र आत्मा के कार्य और अगुआई को महसूस किया और मैं समस्याओं को और अधिक स्पष्ट रूप से देख पाई। बाद में, जब हमने अपनी टीम के लिए एक पर्यवेक्षक चुना, तो मैंने चेंग शिन को वोट दिया। जब नतीजे आए, तो चेंग शिन को पर्यवेक्षक चुना गया, मैं इसे सही ढंग से ले पाई और उसके साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम कर पाई। यह परमेश्वर के वचनों की अगुआई थी जिसने मुझे दूसरों से ईर्ष्या करने के अपने भ्रष्ट स्वभाव के बारे में कुछ समझ हासिल करने और इसे कुछ हद तक बदलने में मदद की। परमेश्वर का धन्यवाद!

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