69. प्रतिष्ठा और रुतबे को बचाने के दुष्परिणाम

सिल्वी, फिलीपींस

लिस कलीसिया में सामान्य मामलों का काम सँभालती थी। रॉजर ने अभी-अभी प्रशिक्षण लेना शुरू किया था और वह सामान्य मामलों के काम से परिचित नहीं था, इसलिए लिस ने उसे धैर्य से सिखाया। कुछ समय बाद, रॉजर बुनियादी काम करना जान गया था, और लिस ने उसे कुछ काम सौंपे। कई दिन बीत गए। जब लिस ने रॉजर के काम की जाँच की, तो उसने पाया कि किताबों की सुरक्षा करने वाले कुछ लोगों को अनुचित रूप से चुना गया था और कुछ नवागंतुकों को समय पर परमेश्वर के वचन की किताबें नहीं दी गई थीं। रॉजर को इन दोनों ही स्थितियों की कोई जानकारी नहीं थी। यह पता चलने पर, लिस का लहजा गंभीर हो गया, और उसने रॉजर से पूछा कि उसने ये काम क्यों नहीं किए थे। रॉजर ने कहा, “मुझे सच में अफ़सोस है। हाल ही में मैं काम में व्यस्त था और इनकी खोज-खबर नहीं ली। मैंने कुछ चीजों का जायजा तो लिया था...।” रॉजर तरह-तरह के कारण बताने लगा। लिस का गुस्सा अंदर ही अंदर बढ़ने लगा, और वह रॉजर की समस्याएँ बताना चाहती थी ताकि वह अपने कर्तव्य के प्रति अपने रवैये पर विचार करे, लेकिन बात उसके होंठों तक आई तो पर उसने कुछ कहा नहीं। उसने सोचा, “अगर मैं रॉजर की काट-छाँट करूँगी, तो कहीं वह यह न सोचे कि मैं बहुत कठोर हूँ? अभी तो हमने साथ काम करना शुरू ही किया है, अगर मेरी बुरी छवि बन गई, तो क्या वह सोचेगा कि मेरे साथ निभाना मुश्किल है?” इसलिए लिस ने अपने बोलने का तरीका बदला और अपना गला साफ किया, पहले जो चेहरा गंभीर था उस पर जबरदस्ती मुस्कान ले आई। नरम लहजे में, उसने रॉजर से कहा: “भाई, सामान्य मामलों का काम बहुत महत्वपूर्ण है। अगर इसमें देरी हुई तो यह कलीसिया के कार्य को प्रभावित करेगा। उम्मीद है आप समझेंगे। आप काम में व्यस्त हैं और मैं आपकी मुश्किलें समझ सकती हूँ। उम्मीद है कि आपको सौंपे गए काम को करने के लिए आप पूरी कोशिश कर सकेंगे। अगर आप व्यस्त हैं, तो आप मुझे बता सकते हैं और मैं यह कर सकती हूँ।” रॉजर ने अपराधबोध से कहा: “बहन, मुझे माफ करना। यह मेरी समस्या है। मैं सुधार करूँगा।” रॉजर की बातें सुनकर, लिस को थोड़ी राहत महसूस हुई, उसने मन ही मन सोचा: “लगता है कि नरम लहजे से भी समस्याएँ हल हो सकती हैं। इस तरह बोलने से न केवल भाई का सम्मान बचता है, बल्कि उसे यह भी लगता है कि मेरे साथ निभाना आसान है। यह तो अच्छा है न।” कुछ दिनों बाद, लिस को पता चला कि रॉजर का अपने कर्तव्यों के प्रति रवैया अभी भी काफी लापरवाह था, और वह वास्तव में काम का जायजा नहीं ले रहा था। वह रॉजर की काट-छाँट करना चाहती थी, लेकिन फिर उसने सोचा, “मैंने कुछ दिन पहले ही उसकी समस्याएँ बताई थीं। अगर मैं फिर से उसके साथ संगति करने गई, तो क्या वह सोचेगा कि मैं उसे परेशान कर रही हूँ? कुछ भी हो, तनाव कम करने के लिए थोड़ा समय तो देना ही चाहिए। अगर सच में काम नहीं बनता, तो ये काम मैं ही कर लूँगी।” लिस रॉजर को खोजने नहीं गई, बल्कि उसने खुद ही सक्रिय रूप से काम अपने ऊपर ले लिया।

समय तेजी से बीत गया और पलक झपकते ही एक महीना गुजर गया। एक दिन, लिस ने बहन लूना से पूछा: “रॉजर हाल ही में बहुत सुस्ती से काम कर रहा है। क्या आप जानती हैं कि उसे कोई समस्या हुई है?” लूना ने उदास होकर कहा: “मैंने रॉजर के साथ उसके कर्तव्य के प्रति रवैये के बारे में संगति की है, लेकिन वह हमेशा कहता है कि वह काम में व्यस्त है और उसके पास समय नहीं है।” यह खबर सुनकर, लिस के दिल में कुछ ऐसा एहसास हुआ जिसे बयां नहीं किया जा सकता। उसने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की यह खोजने के लिए कि उसे इस मामले से क्या सबक सीखना चाहिए। बाद में उसने परमेश्वर के वचन पढ़े : “सभी अविश्वासी शैतान के फलसफों के अनुसार जीते हैं। वे सभी चापलूस होते हैं और किसी को ठेस नहीं पहुँचाते। तुम परमेश्वर के घर आए हो, तुमने परमेश्वर के वचन पढ़े हैं और परमेश्वर के घर के उपदेश सुने हैं, तो तुम सत्य का अभ्यास करने, दिल से बोलने और एक ईमानदार इंसान बनने में असमर्थ क्यों हो? तुम हमेशा चापलूसी क्यों करते हो? चापलूस केवल अपने हितों की रक्षा करते हैं, कलीसिया के हितों की नहीं। जब वे किसी को बुराई करते और कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाते देखते हैं, तो इसे अनदेखा कर देते हैं। उन्हें चापलूस होना पसंद है, और वे किसी को ठेस नहीं पहुँचाते। यह गैर-जिम्मेदाराना है, और ऐसा व्यक्ति बहुत चालाक होता है, भरोसे लायक नहीं होता(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। जब उसने परमेश्वर के वचनों द्वारा उजागर की गई दशा से अपनी तुलना की तो लिस समझ गई कि वह भी वैसी ही है। वह हर मोड़ पर सांसारिक आचरण के शैतानी फलसफे पर भरोसा कर रही थी, अपने पारस्परिक संबंधों की रक्षा कर रही थी, ताकि वह दूसरों की नजरों में एक अच्छी इंसान दिखे। उसने रॉजर को काम में देरी करते देखा था और उसकी समस्याएँ बताना चाहती थी। लेकिन उसे डर था कि रॉजर उसके बारे में कोई नकारात्मक राय बना लेगा और अंत में रॉजर के दिल में उसका मूल्यांकन खराब होगा। इसलिए उसने न तो उन समस्याओं को बताया और न ही उसकी मदद की। एक पर्यवेक्षक के रूप में, उसे कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए थी, लेकिन उसने लोगों की नज़र में अपनी अच्छी छवि बचाने के लिए उन जिम्मेदारियों को पूरा नहीं किया जो उसे करनी चाहिए थीं। उसमें न्याय की भावना जरा भी नहीं थी। लिस अपने मन में बार-बार परमेश्वर की कही बातों पर विचार करती रही, “ऐसा व्यक्ति बहुत चालाक होता है, भरोसे लायक नहीं होता।” उसे लगा कि उदासी उसके दिल को चीर रही है। इस सबके दौरान उसके सभी काम और सभी कर्म परमेश्वर की नजरों में घृणित थे। इसलिए, लिस ने स्वयं पर विचार करना शुरू किया। वह क्यों चाहकर भी दूसरे लोगों के दिलों में अपनी अच्छी छवि बचाने से खुद को रोक नहीं पाई? कौन से विचार इसे नियंत्रित कर रहे थे?

अपने चिंतन के दौरान, लिस ने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “परिवार लोगों को बस एक या दो कहावतों से नहीं, बल्कि बहुत सारे मशहूर उद्धरणों और सूक्तियों से सिखाता है। उदाहरण के लिए, क्या तुम्हारे परिवार के बुजुर्ग और माँ-बाप अक्सर इस कहावत का उल्लेख करते हैं, ‘एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवज करता जाता है’? (हाँ।) इससे उनका मतलब होता है : ‘लोगों को अपनी प्रतिष्ठा की खातिर जीना चाहिए। लोग अपने जीवनकाल में दूसरों के बीच अच्छी प्रतिष्ठा कायम करने और अच्छा प्रभाव डालने के अलावा और कुछ नहीं चाहते हैं। तुम जहाँ भी जाओ, वहाँ अधिक उदारता के साथ सबका अभिवादन करो, खुशियाँ बाँटो, तारीफें करो, और कई अच्छी-अच्छी बातें कहो। लोगों को नाराज मत करो, बल्कि अधिक अच्छे और परोपकारी कर्म करो।’ परिवार द्वारा दी गई इस विशेष शिक्षा के प्रभाव का लोगों के व्यवहार या आचरण के सिद्धांतों पर विशेष प्रभाव पड़ता है, जिसका नतीजा यह होता है कि वे शोहरत और लाभ को ज्यादा अहमियत देते हैं। यानी, वे अपनी प्रतिष्ठा, साख, लोगों के मन में बनाई अपनी छवि, और वे जो कुछ भी करते हैं और जो भी राय व्यक्त करते हैं उसके बारे में दूसरों के अनुमान को बहुत महत्व देते हैं। शोहरत और लाभ को ज्यादा अहमियत देकर, तुम अनजाने में इस बात को कम महत्व देते हो कि तुम जो कर्तव्य निभा रहे हो वह सत्य और सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं, क्या तुम परमेश्वर को संतुष्ट कर रहे हो, और क्या तुम पर्याप्त मात्रा में अपना कर्तव्य निभा रहे हो। तुम इन चीजों को कम महत्वपूर्ण और कम प्राथमिकता वाली चीजें मानते हो, जबकि तुम्हारे परिवार द्वारा तुम्हें सिखाई इस कहावत को कि ‘एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवज करता जाता है,’ तुम बहुत महत्वपूर्ण मान लेते हो। ... यह कहावत कि ‘एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवज करता जाता है,’ तुम्हारे दिल में जड़ें जमा चुकी है और तुम्हारा आदर्श वाक्य बन गई है। बचपन से ही तुम इस कहावत से प्रभावित और शिक्षित किए गए हो, और बड़े होने के बाद भी तुम अपने परिवार की अगली पीढ़ी और अपने आस-पास के लोगों को प्रभावित करने के लिए अक्सर इस कहावत को दोहराते रहते हो। बेशक, इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि तुमने इसे अपने आचरण और चीजों के साथ निपटने के लिए अपने तरीके और सिद्धांत के रूप में अपनाया है, और यहाँ तक कि अपने जीवन का लक्ष्य और दिशा मान लिया है। तुम्हारा लक्ष्य और दिशा गलत है, तो फिर तुम्हारा अंतिम परिणाम भी यकीनन नकारात्मक ही होगा। क्योंकि तुम जो कुछ भी करते हो उसका सार केवल तुम्हारी प्रतिष्ठा की खातिर और सिर्फ इस कहावत को अभ्यास में लाने के लिए होता है कि ‘एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवज करता जाता है।’ तुम सत्य का अनुसरण नहीं कर रहे हो, और तुम्हें खुद ही यह पता नहीं है। तुम्हें लगता है कि इस कहावत में कुछ भी गलत नहीं है; क्या लोगों को अपनी प्रतिष्ठा के लिए नहीं जीना चाहिए? जैसी कि आम कहावत है, ‘एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवज करता जाता है।’ यह कहावत बहुत सकारात्मक और उचित लगती है, तो तुम अनजाने में इसकी सीख के प्रभाव को स्वीकार लेते हो और इसे एक सकारात्मक चीज मानते हो। इस कहावत को एक सकारात्मक चीज मानने के बाद, तुम अनजाने में इसका अनुसरण और अभ्यास करते हो। इसी के साथ, तुम अनजाने में और भ्रमित होकर इसे सत्य और सत्य की कसौटी मान लेते हो। इसे सत्य की कसौटी मानने के बाद, तुम परमेश्वर की नहीं सुनते, और न ही उसकी बातों को समझते हो। तुम आँख बंद करके इस आदर्श वाक्य को अभ्यास में लाते हो कि ‘एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवज करता जाता है,’ और इसके अनुसार कार्य करते हो, जिससे अंत में तुम अच्छी प्रतिष्ठा पा लेते हो। तुम जो चाहते थे अब वह तुम्हें मिल गया है, पर ऐसा करके तुमने सत्य का उल्लंघन और सत्य का त्याग किया है, और बचाए जाने का अवसर भी गँवा दिया है। यह देखते हुए कि यही इसका अंतिम परिणाम है, तुम्हें अपने परिवार द्वारा सिखाए गए इस विचार को त्याग देना चाहिए कि ‘एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवज करता जाता है।’ तुम्हें इस कहावत पर टिके नहीं रहना चाहिए, और न ही इस कहावत या विचार को अभ्यास में लाने के लिए अपनी जीवनभर की कोशिश और ऊर्जा लगानी चाहिए। यह विचार और दृष्टिकोण जो तुममें डाला और सिखाया गया है, सरासर गलत है, तो तुम्हें इसे त्याग देना चाहिए। इसे त्यागने का कारण सिर्फ यही नहीं है कि यह सत्य नहीं है, बल्कि असल में यह तुम्हें भटका देगा और तुम्हारे विनाश की ओर ले जाएगा, यानी इसके परिणाम बहुत गंभीर हैं। तुम्हारे लिए, यह बस कोई मामूली कहावत नहीं, बल्कि कैंसर है—लोगों को भ्रष्ट करने का साधन और तरीका है। क्योंकि परमेश्वर के वचनों में, लोगों से उसकी सभी अपेक्षाओं में, परमेश्वर ने लोगों से कभी भी अच्छी प्रतिष्ठा या प्रसिद्धि पाने या लोगों पर अच्छी छाप छोड़ने या लोगों की स्वीकृति प्राप्त करने, या लोगों की प्रशंसा पाने के लिए नहीं कहा है, और न ही उसने कभी लोगों को शोहरत पाने की खातिर जीने या अपने पीछे अच्छी प्रतिष्ठा छोड़ने के लिए मजबूर किया है। परमेश्वर बस इतना चाहता है कि लोग अच्छी तरह अपने कर्तव्य निभाएँ, उसके प्रति और सत्य के प्रति समर्पण करें। इसलिए, जहाँ तक तुम्हारा सवाल है, यह कहावत तुम्हारे परिवार से मिली एक तरह की शिक्षा है जिसे तुम्हें त्याग देना चाहिए(वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण कैसे करें (12))। परमेश्वर के वचनों का प्रकाशन पढ़ने के बाद, लिस समझ गई कि शैतान शिक्षा और परिवार की शिक्षा के प्रभाव का उपयोग लोगों के युवा दिलों में तरह-तरह के शैतानी नियम डालने के लिए करता है, जैसे “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज़ करता जाता है” और “जैसे पेड़ को उसकी छाल की जरूरत है वैसे ही लोगों को आत्मसम्मान की जरूरत है।” ये शैतानी जहर लोगों के खून और हड्डियों में समा गए हैं, और लोगों की प्रकृति बन गए हैं। लोग चाहकर भी इन चीजों के अनुसार जीने से खुद को रोक नहीं पाते और प्रतिष्ठा और रुतबे को अपनी जान मानते हैं। लिस ने विचार किया कि छोटी उम्र से ही, वह हमेशा दूसरों के मन में अपनी छवि की परवाह करती थी। अपने माता-पिता और आसपास के लोगों से प्रशंसा पाने के लिए, वह किसी भी दूसरे बच्चे से ज्यादा आज्ञाकारी थी और अक्सर घर के कामों में अपने माता-पिता की मदद करती थी। वह अपने पड़ोसियों के घर के काम भी कर देती थी। जब वह अपने दोस्तों के साथ खेलती थी, तो वह कभी झगड़ा नहीं करती थी और उसके माता-पिता और गाँव के सभी लोग एक समझदार बच्ची होने के लिए उसकी प्रशंसा करते थे। काम के बाद, अगर कोई सहकर्मी लिस से मदद माँगता, तो वह हमेशा हाँ कहती थी। कभी-कभी, जब उसके सहकर्मियों के साथ कोई अनबन होती, तो चाहे वह कितनी भी दुखी क्यों न हो, वह आपे से बाहर नहीं होती थी और लगातार सहकर्मियों के साथ उसके जो सौहार्दपूर्ण संबंध थे उनकी रक्षा करती थी। कलीसिया में शामिल होने के बाद, लिस अभी भी अपने भाई-बहनों के मन में अपनी छवि पर बहुत ध्यान देती थी। जब उसने देखा कि कुछ लोग सिद्धांतों के अनुसार अपना कर्तव्य नहीं कर रहे हैं, या लापरवाही बरत रहे हैं, और तो भले ही वह स्पष्ट रूप से यह बताना और उनकी काट-छाँट करना चाहती थी, पर उसने इस पर विचार किया कि उसके बारे में उनकी क्या राय हो सकती है और उसने उनके साथ अपने संबंधों की रक्षा के लिए उन्हें मीठे शब्दों से प्रोत्साहित करना चुना। उदाहरण के लिए रॉजर के साथ उसके रिश्ते को ही लें। जब उसने देखा कि वह देह के बंधनों में जी रहा है और अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह रवैया अपना रहा है और काम में देरी कर रहा है, तो उसे उसकी समस्याएँ बतानी चाहिए थीं और अपने कर्तव्य से ऐसे पेश आने की प्रकृति और परिणामों के बारे में उसके साथ संगति करनी चाहिए थी। हालाँकि, उसे डर था कि वह उसके बारे में बुरी राय बना लेगा और कहेगा कि उसमें सहानुभूति नहीं है और इसलिए उसने उसे मीठे शब्दों से धीरे से प्रोत्साहित करने की कोशिश की। उसने तो वह काम भी अपने ऊपर ले लिया जो रॉजर को करना चाहिए था और उसे खुद ही कर दिया। चूँकि रॉजर ने वास्तव में न तो आत्मचिंतन किया न ही खुद को समझा, इसलिए उसके कर्तव्य के प्रति उसका रवैया नहीं बदला। इससे न केवल उसके जीवन प्रवेश में बाधा आई बल्कि कलीसिया के कार्य में भी देरी हुई। जब लिस यह समझ गई, तो उसे लगा कि वह बेहद नीच और दुष्ट है। एक पर्यवेक्षक के रूप में, उसे कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए थी, और अपने भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के लिए बोझ उठाना चाहिए था। इसके बजाय, उसने बस अपने सम्मान और रुतबे की रक्षा की। अगर उसने इसे नहीं बदला, तो अंततः परमेश्वर उससे घृणा करेगा और उसे हटा देगा।

एक दिन भक्ति के दौरान, उसने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा, जिसने उसे सचमुच हिला दिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “अच्छी मानवता होने का कोई मानक अवश्य होना चाहिए। इसमें संयम का मार्ग अपनाना, सिद्धांतों से चिपके न रहना, किसी को भी नाराज न करने का प्रयत्न करना, जहाँ भी जाओ वहीं चापलूसी करके कृपापात्र बनना, जिससे भी मिलो उससे चिकनी-चुपड़ी बातें करना और सभी से अपने बारे में अच्छी बातें करवाना शामिल नहीं है। यह मानक नहीं है। तो मानक क्या है? यह परमेश्वर और सत्य के प्रति समर्पित होने में सक्षम होना है। यह अपने कर्तव्य को और सभी तरह के लोगों, घटनाओं और चीजों को सिद्धांतों के साथ और जिम्मेदारी की भावना से लेना है। सब इसे स्पष्ट ढंग से देख सकते हैं; इसे लेकर सभी अपने हृदय में स्पष्ट हैं। इतना ही नहीं, परमेश्वर लोगों के हृदयों की जाँच-पड़ताल करता है और उनमें से हर एक की स्थिति जानता है; चाहे वे जो भी हों, परमेश्वर को कोई मूर्ख नहीं बना सकता। कुछ लोग हमेशा डींग हाँकते हैं कि वे अच्छी मानवता से युक्त हैं, कि वे कभी दूसरों के बारे में बुरा नहीं बोलते, कभी किसी और के हितों को नुकसान नहीं पहुँचाते, और वे यह दावा करते हैं कि उन्होंने कभी अन्य लोगों की संपत्ति की लालसा नहीं की। जब हितों को लेकर विवाद होता है, तब वे दूसरों का फायदा उठाने के बजाय नुकसान तक उठाना पसंद करते हैं, और बाकी सभी सोचते हैं कि वे अच्छे लोग हैं। परंतु, परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाते समय, वे कुटिल और चालाक होते हैं, हमेशा स्वयं अपने हित में षड्यंत्र करते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचते, वे कभी उन चीजों को अत्यावश्यक नहीं मानते हैं जिन्हें परमेश्वर अत्यावश्यक मानता है या उस तरह नहीं सोचते हैं जिस तरह परमेश्वर सोचता है, और वे कभी अपने हितों को एक तरफ नहीं रख सकते ताकि अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। वे कभी अपने हितों का परित्याग नहीं करते। यहाँ तक कि जब वे बुरे लोगों को बुरे कर्म करते हुए देखते हैं, वे उन्हें उजागर नहीं करते; उनके रत्ती भर भी कोई सिद्धांत नहीं हैं। यह किस प्रकार की मानवता है? यह अच्छी मानवता नहीं है। ऐसे व्यक्तियों की बातों पर बिल्कुल ध्यान न दो; तुम्हें देखना चाहिए कि वे किसके अनुसार जीते हैं, क्या प्रकट करते हैं, और अपने कर्तव्य निभाते समय उनका रवैया कैसा होता है, साथ ही उनकी अंदरूनी दशा कैसी है और उन्हें किससे प्रेम है। अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम परमेश्वर के प्रति उनकी निष्ठा से बढ़कर है, अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम परमेश्वर के घर के हितों से बढ़कर है, या अगर अपनी शोहरत और फायदे के प्रति उनका प्रेम उस विचारशीलता से बढ़कर है जो वे परमेश्वर के प्रति दर्शाते हैं, तो क्या ऐसे लोगों में मानवता है? वे मानवता वाले लोग नहीं हैं। उनका व्यवहार दूसरों के द्वारा और परमेश्वर द्वारा देखा जा सकता है। ऐसे लोगों के लिए सत्य को हासिल करना बहुत कठिन होता है(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, लिस समझ गई कि वास्तव में अच्छी मानवता केवल सतह पर अच्छा व्यवहार नहीं है, या दूसरों द्वारा एक अच्छे इंसान के रूप में पहचाना और सराहा जाना नहीं है। इसके बजाय, यह परमेश्वर के साथ एक मन का होना है; परमेश्वर के प्रति समर्पित होना है; अपने कर्तव्य के प्रति वफादार होना है; कलीसिया के कार्य की रक्षा करने में सक्षम होना है; दुष्ट लोगों को बुराई करते देख उन्हें तुरंत उजागर करना और रोकना है; और भाई-बहनों को सिद्धांतों का उल्लंघन करते देख, या भ्रष्ट स्वभावों पर काम करते और कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाते देख, प्रेम से संगति करना और उनकी मदद करना या यदि उनके कार्यों की प्रकृति गंभीर है तो उनकी काट-छाँट करने में सक्षम होना है ताकि वे सिद्धांतों के साथ काम करें। यही वास्तव में अच्छी मानवता का होना है। अतीत में, लिस हमेशा मानती थी कि अच्छी मानवता का मतलब गुस्सा न करना, बहस या झगड़ा न करना और दूसरों के प्रति दयालु और विनम्र होना है। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन के माध्यम से, वह आखिरकार समझ गई कि वास्तव में इस तरह की “अच्छी मानवता” के पीछे भ्रष्ट स्वभाव छिपे थे—यह पाखंडी और कपटी था। लिस को लगा कि वह सचमुच बहुत मूर्ख थी। लिस ने इस पर विचार किया कि उसने कैसे स्पष्ट रूप से रॉजर को काम में देरी करते देखा था, तो उसने न केवल उसकी समस्याएँ नहीं बताईं और संगति कर उसकी मदद नहीं की, बल्कि उसने कुछ ऐसे प्रोत्साहन के शब्द भी कहे जो वास्तव में दिल से नहीं थे। उसने यह सब दूसरों के मन में अपनी अच्छी छवि बचाने के लिए किया था। उसने देखा कि वह बिल्कुल भी अच्छी मानवता वाली इंसान नहीं थी। लिस को परमेश्वर के वचनों से अपनी समस्याओं की कुछ समझ मिली, और सत्य का अभ्यास करने का संकल्प मिला। इस बार, उसे जल्दी से रॉजर को ढूँढ़ना और उसकी समस्याएँ बतानी थीं। अगर उसके साथ संगति करने के बाद वह इसे स्वीकार नहीं करता और पश्चात्ताप नहीं करता, तो सिद्धांतों के अनुसार उसके कर्तव्य में बदलाव किया जाना चाहिए।

लिस ने अचानक सोचा कि कैसे रॉजर दिन भर परिवार के बंधनों में जी रहा था, और वह खुद भी बहुत थक गया होगा। अगर उसने केवल उसकी काट-छाँट की और उसकी समस्याएँ बताईं, तो क्या इससे वह नकारात्मक हो जाएगा? हालाँकि, उन्हें बताए बिना, वह इस मुद्दे को हल नहीं कर पाएगी। जब उसने यह सोचा, तो लिस को समझ नहीं आया कि कैसे अभ्यास करे, और इसलिए उसने परमेश्वर से प्रार्थना की। बाद में, उसने परमेश्वर के वचनों में अभ्यास का मार्ग खोजा। उसने परमेश्वर के वचन पढ़े : “तुम्हें सच्चे भाई-बहनों के साथ सत्य सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार करना चाहिए। चाहे वे जैसे भी परमेश्वर पर विश्वास करते हों या वे जिस भी रास्ते पर हों, तुम्हें प्रेम की भावना से उनकी मदद करनी चाहिए। व्यक्ति को न्यूनतम क्या प्रभाव प्राप्त करना चाहिए? पहला, वह उनके ठोकर खाने का कारण न बने और उन्हें नकारात्मक न बनने दे; दूसरा, वह उनकी मदद करता हो और उन्हें गलत मार्ग से वापस लौटा लाए; और तीसरा, वह उन्हें सत्य समझाए और उनसे सही मार्ग चुनवाए। ये तीन प्रकार के प्रभाव केवल उन्हें प्रेम की भावना से मदद करके ही प्राप्त किए जा सकते हैं। अगर तुममें सच्चा प्रेम नहीं है, तो तुम ये तीन प्रकार के प्रभाव प्राप्त नहीं कर सकते, ज्यादा से ज्यादा एक या दो प्रकार के प्रभाव ही प्राप्त कर सकते हो। ये तीन प्रकार के प्रभाव दूसरों की मदद करने के तीन सिद्धांत भी हैं। तुम ये तीन सिद्धांत जानते हो और इन्हें अच्छी तरह समझते हो, लेकिन इन्हें वास्तव में कैसे लागू किया जाता है? क्या तुम वास्तव में दूसरे की कठिनाई को समझते हो? क्या यह एक अलग समस्या नहीं है? तुम्हें यह भी सोचना चाहिए : ‘उसकी कठिनाई का मूल क्या है? क्या मैं उसकी मदद करने में सक्षम हूँ? अगर मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और मैं समस्या हल नहीं कर सकता और लापरवाही से बोलता हूँ, तो मैं उन्हें गलत रास्ते पर ले जा सकता हूँ। इसके अतिरिक्त, इस व्यक्ति की समझने की क्षमता कैसी है, और उसकी काबिलियत क्या है? क्या वह दुराग्रही है? क्या उसे आध्यात्मिक समझ होती है? क्या वह सत्य को स्वीकार कर सकता है? क्या वह सत्य का अनुसरण करता है? अगर वह देखता है कि मैं उससे ज्यादा सक्षम हूँ, और मैं उसके साथ संगति करता हूँ, तो क्या उसमें ईर्ष्या या नकारात्मकता पैदा होगी?’ इन सभी प्रश्नों पर विचार किया जाना चाहिए। इन प्रश्नों पर विचार कर इन पर स्पष्टता प्राप्त कर लेने के बाद उस व्यक्ति के साथ संगति करो, परमेश्वर के वचनों के कई अंश पढ़ो जो उसकी समस्या पर लागू होते हों, और उसे परमेश्वर के वचनों में सत्य को समझने और अभ्यास का मार्ग खोजने में सक्षम बनाओ। तब समस्या का समाधान होगा और वे अपनी कठिनाई से बाहर निकल पाएँगे। ... किसी समस्या को हल करना सचमुच आसान नहीं होता। तुम्हें सत्य को समझना होगा, समस्या की असलियत जाननी होगी और फिर सत्य सिद्धांतों के अनुसार दूसरों के साथ स्पष्ट रूप से संगति करनी होगी, और अभ्यास के मार्ग पर इस तरह संगति करने में सक्षम होना पड़ेगा जिसे दूसरे समझ लें। इस प्रकार लोग न केवल सत्य को समझेंगे बल्कि उनके पास उसे अभ्यास में लाने का मार्ग भी होगा, केवल तभी समस्या को हल हुआ माना जा सकेगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सत्य का अनुसरण करने से ही परमेश्वर के बारे में अपनी धारणाओं और गलतफहमियों को दूर किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचन लोगों की मदद करने के सिद्धांतों को बहुत स्पष्ट रूप से समझाते हैं। लिस समझ गई कि लोगों को ठोकर न लगे, उनकी मदद हो सके, इसके लिए लोगों के आध्यात्मिक कद के अनुसार काम करना चाहिए और उनकी वास्तविक कठिनाइयों का पता लगाना चाहिए, और उन्हें परमेश्वर के इरादे समझाने चाहिए, उनके अपने भ्रष्ट स्वभावों को समझाना चाहिए, और परमेश्वर के वचनों से अभ्यास और प्रवेश का मार्ग खोजना चाहिए। इसके अलावा, संगति के दौरान आपको लोगों के साथ ईमानदारी से पेश आना होगा, और आप लोगों के साथ लापरवाही से पेश नहीं आ सकते या कोई और इरादा नहीं रख सकते। अगर आप केवल मीठी-मीठी बातें कहते हैं जो आपके दिल की बात के विपरीत हैं, तो भले ही आप सौम्यता से बोलें, यह फिर भी पाखंडी है; यह झूठा स्नेह और झूठे इरादे हैं। दूसरी ओर, यदि आपके शब्द सच्चे हैं और आपका उद्देश्य लोगों की मदद करना है, तो भले ही आप कठोरता से बोलें या उन्हें डाँटें भी, वह फिर भी उचित है। यदि आप सत्य पर स्पष्ट रूप से संगति करते हैं, और दूसरा व्यक्ति सत्य को समझता है लेकिन उसका अभ्यास नहीं करता, या परमेश्वर के घर के कार्य पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता, तो आप उनकी काट-छाँट कर सकते हैं या गंभीर प्रकृति के मामलों में उन्हें बर्खास्त कर सकते हैं। लिस ने सोचा कि कैसे रॉजर एक नवागंतुक था और उसे परमेश्वर में सच्चा विश्वास था। यह केवल उसके जीवन की कुछ वास्तविक कठिनाइयों के कारण था कि उसे काम पर जाना पड़ा, और जब काम और कर्तव्य के बीच टकराव होता था तो वह नहीं जानता था कि कैसे अभ्यास करे। उसे रॉजर की अवस्था और कठिनाइयों को लक्षित करते हुए परमेश्वर के वचनों के प्रासंगिक अंश खोजने थे ताकि उसके साथ संगति कर उसकी मदद की जा सके, इस अवस्था में जीने के खतरनाक परिणामों को बताना था, और मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के इरादे, आध्यात्मिक लड़ाइयों के बारे में संगति करनी थी, और देह के खिलाफ विद्रोह करने के अभ्यास के मार्ग के बारे में संगति करनी थी। अगर इस बारे में स्पष्ट रूप से संगति करने के बाद भी, रॉजर ने चीजों को नहीं बदला, तो वह उसकी काट-छाँट कर सकती थी या चेतावनी जारी कर सकती थी, और अगर वह फिर भी चीजों को नहीं बदलता तो उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा। अभ्यास का मार्ग मिलने के बाद, लिस का दिल अचानक हल्का हो गया।

अगले दिन, लिस रॉजर से मिली। उसने कहा, “भाई रॉजर, मैंने पहले सत्य का अभ्यास नहीं किया। जब मैंने आपको लगातार यह कहते सुना कि आप व्यस्त हैं और आपके पास अपना कर्तव्य करने का समय नहीं है, तो मैं आपकी देह के पक्ष में खड़ी रही और आपकी कमजोरी के प्रति विचारशीलता दिखाई। सतह पर, मैं आपके साथ कभी सख्त नहीं थी और मैंने आपकी समस्याएँ नहीं बताईं। दरअसल, मैं ऐसा करके आपको नुकसान पहुँचा रही थी। अब, मैं आपके साथ एक गंभीर मुद्दे पर चर्चा करना चाहती हूँ। यह हमारे कर्तव्य के प्रति हमारे रवैये से संबंधित एक मुद्दा है। ...” लिस की संगति समाप्त होने के बाद, रॉजर ने अफसोस के साथ कहा, “यह सच है। मैं लगातार देह में जी रहा हूँ और परमेश्वर के साथ मेरा रिश्ता बहुत दूर का रहा है। जब मेरी दशा खराब थी तो मुझे यह भी लगा कि अपना कर्तव्य करना एक बंधन है। अब, इस संगति के लिए धन्यवाद, मैं आखिरकार समझ गया हूँ कि मेरी दशा कितनी भयावह रही है। परमेश्वर का धन्यवाद। आपके शब्दों ने मेरे दिल को भेद दिया, लेकिन वे मेरे लिए बहुत मददगार रहे हैं। अब से मैं अपना कर्तव्य ठीक से करूँगा।” बाद में, हालाँकि रॉजर काम पर अभी भी बहुत व्यस्त था, वह अपना कर्तव्य करने के लिए अपने समय का उचित प्रबंधन कर पा रहा था और उसने कुछ नतीजे हासिल किए। यह दृश्य देखकर, लिस बहुत द्रवित हुई। उसने अनुभव किया कि केवल परमेश्वर के वचनों के अनुसार काम करने से ही उसके पास चलने के लिए एक मार्ग होगा और वह दूसरों को लाभ पहुँचा सकेगी। इस अनुभव के बाद, लिस बहुत द्रवित हुई, और उसने देखा कि शैतानी नियमों के अनुसार जीने से वह केवल और अधिक पाखंडी बनेगी; वह धूर्त और कपटी बन जाएगी, और अंत में केवल खुद को और दूसरों को नुकसान पहुँचाएगी। केवल परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करके ही वह एक इंसान की तरह जी सकती है।

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