47. क्या आदर्श शादी होने से खुशी मिलती है?

आठ साल तक एक-दूसरे को जानने और प्यार करने के बाद मैं और मेरा पति सगाई करने वाले थे, तभी मुझे अचानक ऐसी बीमारी हो गई, जिसके चलते मैं कभी माँ नहीं बन सकती थी। उस समय मैं पूरी तरह से निराश हो गई और जीने की हिम्मत खो बैठी। मेरे पति के परिवार ने देखा कि मैं माँ नहीं बन सकती और उसे मुझसे रिश्ता तोड़ने को कहा, लेकिन उसने अपने परिवार की मनाही को नजरअंदाज किया और मुझसे शादी करने का दृढ़ निश्चय किया। मेरे पति की दृढ़ निष्ठा ने जीवन में मेरी आशा को फिर से जगा दिया और मैं उसकी बहुत आभारी थी, लेकिन साथ ही मुझे माँ नहीं बन पाने का बहुत दुख भी था और मुझे हमेशा लगता था कि मैं अपने पति की ऋणी हूँ। मैंने मन ही मन कहा कि मुझे हमारी बड़ी मुश्किल से हुई शादी को ठीक से संजोना है। शादी होने के बाद मैं घर को एकदम व्यवस्थित रखती थी ताकि मेरा पति शांत मन से काम पर जा सके। महत्वपूर्ण और मामूली दोनों ही मामलों में मैंने उसे प्राथमिकता देने की पूरी कोशिश की, रिश्तेदारों और दोस्तों के सामने उसे इज्जत देना सुनिश्चित किया। हमारी शादी के करीब दो साल बाद मेरा पति नहीं चाहता था कि मैं माँ नहीं बन पाने के कारण अपराध बोध में जियूँ, इसलिए उसने एक बच्चा गोद ले लिया। इस बच्चे को गोद लेने के बाद हमारा घर बहुत ज्यादा आनंद और हँसी से भर गया और मुझे लगा कि घर पहले से ज्यादा खुशनुमा हो गया है।

जनवरी 2009 में मेरे चचेरे भाई ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में बहुत अधिकार और सामर्थ्य थी और मैं उनकी ओर गहराई से आकर्षित हुई। उसके बाद मैं अक्सर परमेश्वर के वचन पढ़ती और भाई-बहनों के साथ उसके वचनों की हमारी समझ पर संगति करती थी। मुझे समझ आया कि अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य मानवजाति को बचाने के लिए है, ऐसे कई लोग थे जिन्हें शैतान ने नुकसान पहुँचाया था और वे अभी तक परमेश्वर के सामने नहीं आए थे और यह हमारी जिम्मेदारी और दायित्व था कि हम इन लोगों को परमेश्वर के सामने लाएँ ताकि वे उसका उद्धार स्वीकारें। मैं सुसमाचार कार्य में अपना योगदान देना चाहती थी। जल्द ही परमेश्वर के अनुग्रह से मैं कलीसिया में अपना कर्तव्य करने लगी। मैंने मन ही मन सोचा, “मेरे पति को परमेश्वर के सुसमाचार की गवाही देना और उसे परमेश्वर में अपनी आस्था में शामिल करना कितना बढ़िया होगा।” लेकिन मेरी बात सुनने के बाद मेरे पति ने तिरस्कारपूर्ण ढंग से कहा, “इस दुनिया में कोई भी परमेश्वर नहीं है” और कहा कि वह एक भौतिकवादी है। मेरे पति ने देखा कि मैं परमेश्वर में अपने विश्वास को लेकर काफी उत्साही हूँ और जिज्ञासा से उसने कुछ ऑनलाइन शोध किया। उसने देखा कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) द्वारा कलीसिया को बदनाम करने और परमेश्वर की ईश-निंदा करने के लिए गढ़े गए नकारात्मक प्रचार से इंटरनेट भरा हुआ है और इसलिए उसने मुझसे घबराते हुए पूछा, “क्या तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती हो? ऐसा करने पर तुम्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। परमेश्वर में विश्वास करने का मतलब है अपने परिवार और अपनी नौकरी से हाथ धोना। इसके बहकावे में मूर्ख मत बनो!” उसने यह भी कहा कि वह पूछताछ करने के लिए डोमेस्टिक सिक्योरिटी प्रोटेक्शन ब्यूरो गया था और उसे बताया गया कि जिस भी परिवार में कोई व्यक्ति सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करता है, उसके परिवार के सदस्यों को उसकी रिपोर्ट करनी चाहिए और उनके बच्चे भविष्य में सिविल सेवक नहीं बन सकते या सेना में शामिल नहीं हो सकते और परिवार के अन्य सभी सदस्य भी इसमें फँसा दिए जाएँगे। उसने कहा कि अगर मैं इसी रास्ते पर चलती रही तो देर-सवेर मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। अपने पति की बातें सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई। परमेश्वर में विश्वास करने वालों की रिपोर्ट करने के लिए सीसीपी परिवार के सदस्यों का भी इस्तेमाल कर रही थी; यह बड़ी दुष्टता थी! मैंने तुरंत अपने पति से कहा, “ऑनलाइन देखी गई अफवाहों पर विश्वास मत करो; वे सभी सीसीपी द्वारा गढ़ी गई हैं। और सिर्फ इसलिए कि मैं परमेश्वर में विश्वास करती हूँ, इसका मतलब यह नहीं है कि मैं अपना परिवार और नौकरी गँवा दूँ।” लेकिन उसने मुझ पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं किया और अभी भी सीसीपी का पक्ष लेता रहा। मेरे पास उसके पीछे चोरी-छिपे विश्वास करते रहने के अलावा कोई चारा नहीं था।

एक साल बाद मेरे पति ने देखा कि मैं अभी भी परमेश्वर में विश्वास कर रही हूँ और उसे चिंता थी कि मैं गिरफ्तार हो जाऊँगी और हमारे परिवार को इसमें फँसा दूँगी, जिससे उसकी प्रतिष्ठा प्रभावित होगी। मुझे याद है कि एक बार तो वह घुटनों के बल बैठ गया और मुझसे विश्वास करना बंद करने की विनती करने लगा। मेरे पति को घुटनों के बल बैठकर मुझसे विनती करते देखकर मैं बहुत हैरान रह गई। वह आमतौर पर पुरुषवादी जैसा व्यवहार करता था, लेकिन वहाँ वह घुटनों के बल बैठकर मुझसे विनती कर रहा था। मुझे याद आया कि वह आमतौर पर हमारे परिवार की कितनी परवाह करता है और मैंने सोचा, “अगर मैं उसकी बात नहीं मानूँगी तो क्या वह अब भी मेरे साथ वैसे ही व्यवहार करेगा जैसा वह पहले करता था? क्या हमारी इस बारे में अक्सर बहस होगी? क्या यह उस हद तक पहुँच जाएगा जहाँ हमारी एक दूसरे के साथ नहीं निभ पाएगी?” इस पर विचार करते हुए मैं थोड़ी कमजोर पड़ गई और मैंने सोचा, “शायद मैं भविष्य में कम ही बाहर जाऊँगी। मैं सप्ताह के आखिरी दिन उसके साथ घर पर बिताऊँगी ताकि उसे ज्यादा चिंता न हो।” लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर मैं उसकी बात मानूँगी और परमेश्वर में विश्वास करना छोड़ दूँगी तो मैं उद्धार पाने का अपना मौका गँवा दूँगी। यह ठीक नहीं होगा!” मैंने यह भी सोचा, “शायद मेरे पति को सीसीपी ने अस्थायी रूप से गुमराह किया है। अभी मैं जो सत्य समझती हूँ वह उथला है; भविष्य में अगर मैं उससे बात करने में अपना समय लगाऊँगी तो मुझे यकीन है कि वह पार्टी की अफवाहों की असलियत समझ जाएगा।” लेकिन बाद में मुझे परमेश्वर में अपनी आस्था छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए उसने चुपके से सीसीपी का नकारात्मक ऑनलाइन दुष्प्रचार प्रिंट किया और घर लाकर मुझे पढ़ने के लिए दे दिया। मैंने मना किया, लेकिन उसने मुझे खींचकर इसे पढ़ने के लिए मजबूर किया। अनजाने में मैं उससे दूर हट गई और मुझे हैरानी हुई कि इससे मेरे पति को गुस्सा आ गया। उसने मेरा कॉलर पकड़ा, मुझे कोने में धकेल दिया और उन्मादी गुस्से में हिंसक होकर मेरे गले को अपने हाथों से जकड़ लिया। उसकी आँखों में क्रूरता थी। उसने गुस्से में मुझसे कहा, “आज तुम सच देखने वाली हो! तुम्हें इसके लिए जागने की जरूरत है!” वह मेरा गला इतनी जोर से घोंट रहा था कि मुझे साँस लेने में भी थोड़ी दिक्कत हो रही थी और कुछ समय बाद आखिरकार उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी। मेरे पति ने जो किया था, उसे देखकर मैं दंग रह गई। जब से मैं अपने पति को जानती थी, उसने कभी भी मुझ पर हाथ नहीं उठाया था। अब वह परमेश्वर में मेरे विश्वास के कारण मेरे साथ हिंसक हो गया। मुझे बहुत बुरा लगा और मेरे चेहरे पर आँसू बहने लगे। मैंने मन ही मन सोचा, “मेरा भविष्य कैसा होने वाला है? अगर मैं परमेश्वर में विश्वास करती रही और अपना कर्तव्य करती रही तो मेरा पति पक्का मेरे साथ पहले की तरह अच्छे से पेश नहीं आएगा। तो हमारा परिवार कितने दिनों तक चल पाएगा? लेकिन अगर मैं परमेश्वर में अपनी आस्था छोड़ दूँ तो मैं बचाए जाने का अपना मौका गँवा दूँगी। सत्य व्यक्त करने और मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर का देहधारी होना अत्यंत दुर्लभ अवसर है जिसे गँवाना मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती।” मैं बहुत उलझन और तकलीफ में थी और मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। मैंने परमेश्वर के सामने आकर उससे प्रार्थना की : “परमेश्वर, मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। मुझे प्रबुद्ध करो और इन परिस्थितियों में अडिग रहने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।” उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “संसार के सृजन के समय से मैंने लोगों के इस समूह को—अर्थात् आज के तुम लोगों को—पूर्वनिर्धारित करना तथा चुनना प्रारंभ कर दिया है। तुम लोगों का मिज़ाज, क्षमता, रूप-रंग, कद-काठी, वह परिवार जिसमें तुमने जन्म लिया, तुम्हारी नौकरी और तुम्हारा विवाह—अपनी समग्रता में तुम, यहां तक कि तुम्हारे बालों और त्वचा का रंग, और तुम्हारे जन्म का समय—सभी कुछ मेरे हाथों से तय किया गया था। यहां तक कि हर एक दिन जो चीज़ें तुम करते हो और जिन लोगों से तुम मिलते हो, उसकी व्यवस्था भी मैंने अपने हाथों से की थी, साथ ही आज तुम्हें अपनी उपस्थिति में लाना भी वस्तुतः मेरा ही आयोजन है। अपने आप को अव्यवस्था में न डालो; तुम्हें शांतिपूर्वक आगे बढ़ना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 74)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे एहसास दिलाया कि मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है। किसी व्यक्ति की नौकरी, विवाह और परिवार, सभी परमेश्वर द्वारा बहुत पहले ही निर्धारित किए जा चुके हैं। मेरा परिवार टूटेगा या नहीं, यह सब परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं में निर्धारित है और मेरा इस बात पर कोई नियंत्रण नहीं है कि मेरा पति मुझे तलाक देगा या नहीं। मुझे परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के प्रति समर्पण करना चाहिए और सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना चाहिए। परमेश्वर के इरादे समझने के बाद मेरा दिल थोड़ा शांत हुआ।

इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “तुममें मेरा साहस होना चाहिए और जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन मेरी खातिर तुम्हें किसी भी अंधकार की शक्ति से हार भी नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षड्यंत्र को कामयाब न होने दो। अपने हृदय को मेरे सम्मुख रखने हेतु जो बन पड़े वह सब करो, मैं तुम्हें आराम दूँगा, तुम्हें शांति और आनंद प्रदान करूँगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए मुझे एहसास हुआ कि अपने लगाव के कारण मैं लगभग शैतान की धूर्त साजिश का शिकार हो गई थी। सीसीपी ने कलीसिया को बदनाम करने के लिए ये अफवाहें ऑनलाइन फैलाईं, हमारे अविश्वासी रिश्तेदारों को गुमराह किया और उनका इस्तेमाल हमें रोकने और सताने के लिए किया, जिसका मकसद हमें परमेश्वर से दूर करने और धोखा देने के लिए मजबूर करना था। पहले तो मेरे पति ने मुझे नहीं सताया, लेकिन उन अफवाहों को ऑनलाइन देखने के बाद उसने अपना विरोध और उत्पीड़न दिखाने के लिए हर संभव कोशिश की, परमेश्वर में मेरा विश्वास छुड़वाने के लिए सभी तरह की चालें चलीं और शैतान के लिए एक साधन के रूप में काम किया। मैं अपने पति के उत्पीड़न के कारण अपना कर्तव्य करना बंद नहीं कर सकती थी; क्या इसका मतलब यह नहीं होता कि मैं शैतान की धूर्त साजिश के आगे झुक गई थी? परमेश्वर के वचन कहते हैं : “जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए।” जब रोज़मर्रा के मामलों की बात आती थी तो मैं अपने पति की बात सुन सकती थी, लेकिन परमेश्वर में अपनी आस्था के संबंध में मेरे पास अपना खुद का रुख और सिद्धांत होना चाहिए। मैं उसके उत्पीड़न के कारण परमेश्वर में विश्वास करना नहीं छोड़ सकती थी; मुझे इसका सामना बुद्धि से करना था। उसके बाद मैं अपना कर्तव्य शाम को करने लगी और अपने पति को बताया कि मैं एक क्लास ले रही हूँ, जबकि दिन में सामान्य रूप से काम पर जाती थी। कुछ समय तक सब कुछ ऐसे ही शांति से चलता रहा और मेरे पति ने परमेश्वर में मेरी आस्था के बारे में मुझसे बहस नहीं की। कुछ समय बीतने के बाद मेरे पति को शक होने लगा। वह चुपके से मेरा पीछा करने लगा, अक्सर मेरे बैग में ताक-झाँक करने लगा। उसे परमेश्वर के वचनों की किताबें और मेरी आध्यात्मिक भक्ति के नोट्स मिले, जिन्हें मैंने अलमारी में छिपा रखा था और गुस्से में अपनी उँगली मेरी ओर दिखाते हुए कहा, “तुम बहुत जिद्दी हो, है ना! मैं तुम्हारी ये सारी किताबें जला दूँगा; देखते हैं कि तुम फिर कैसे विश्वास करती रहती हो!” उस समय मैं काफी डरी हुई थी, मुझे डर था कि वह वाकई उन्हें जला देगा और इसलिए जब वह घर पर नहीं था तो मैं उन्हें सुरक्षित रखने के लिए चुपके से एक बहन के घर ले गई। मेरे पति के उत्पीड़न के कारण मैं घर पर सामान्य रूप से आध्यात्मिक भक्ति में शामिल नहीं हो सकती थी और परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ सकती थी, इसलिए मेरे पास अपना खुद का अपार्टमेंट किराए पर लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। हर दिन मैं घर जाने से पहले इस किराए की जगह में परमेश्वर के वचन पढ़ती थी।

मई 2012 में चूँकि मेरा पति परमेश्वर में विश्वास के मामले के बारे में जानने के लिए सुरक्षा ब्यूरो गया था, ब्यूरो का कोई व्यक्ति उस पर नजर रखने लगा था। वे आमतौर पर उसकी परवाह करने के बहाने उसका हालचाल जानने के लिए वीचैट पर उससे संपर्क करते थे और उन्होंने उससे पूछा कि मैं कहाँ काम करती हूँ। नतीजतन दो महीने से ज्यादा समय तक मैं सीसीपी की निगरानी में रही और आखिरकार मुझे एक सभा में गिरफ्तार कर लिया गया। अपनी रिहाई के बाद मुझे डर था कि अगर वे मेरा पीछा करेंगे तो भाई-बहनों के लिए मुसीबत हो जाएगी, इसलिए मैंने कुछ समय के लिए सभा में जाना बंद कर दिया और जब मेरा पति घर पर नहीं होता था तो मैं आमतौर पर चुपके से परमेश्वर के वचन पढ़ती थी। एक दिन मेरे पति को पता चला कि मैं अभी भी परमेश्वर में विश्वास करती हूँ और उसने मुझसे गंभीर स्वर में पूछा, “क्या तुम विश्वास करना बंद कर सकती हो? अगर तुम विश्वास करती रही और फिर से गिरफ्तार हो गई तो क्या तुम जानती हो कि इससे मेरी प्रतिष्ठा पर क्या असर पड़ेगा? क्या तुमने मेरी भावनाओं या हमारे बच्चे के भविष्य के बारे में सोचा है? क्या हम तीनों का जीवन ठीक से नहीं चल रहा है? अगर तुम दुखी हो तो हम घूमने जा सकते हैं। मैं तुम्हारे लिए एक छोटी कार भी खरीद सकता हूँ। अगर तुम्हें कुछ चाहिए तो मैं दूँगा। तुम इस रास्ते पर चलने पर क्यों अड़ी हो?” उस समय मैं कुछ हद तक प्रलोभन में आ गई और कमजोर पड़ गई। मुझे लगा कि अपने परिवार के साथ खुश रहना काफी अच्छा होगा और मैं अपने पति के प्रस्ताव पर सहमत होना चाहती थी। लेकिन परमेश्वर में विश्वास न करने के बारे में सोचकर मैं बहुत दुखी हो गई। और मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की : “परमेश्वर, मैं तुम पर विश्वास करते हुए अपना कर्तव्य करना चाहती हूँ, लेकिन मैं नहीं चाहती कि मेरा परिवार बिखर जाए। मुझे आस्था और कष्ट सहने का संकल्प दो ताकि मैं शैतान के इस प्रलोभन पर विजय पा सकूँ।” उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “यदि परमेश्वर से प्रेम करने के मार्ग पर तुम उस समय परमेश्वर की ओर खड़े होने में समर्थ हो, जब वह शैतान के साथ संघर्ष करता है, और तुम शैतान की ओर वापस नहीं जाते, तब तुमने परमेश्वर के लिए प्रेम प्राप्त कर लिया होगा, और तुम अपनी गवाही में दृढ़ खड़े रहे होगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। इन परिस्थितियों का सामना करते हुए मुझे परमेश्वर के पक्ष में खड़े होना था और शैतान को अपमानित करना था। मेरे पति को डर था कि अगर मुझे फिर से गिरफ्तार किया गया तो इससे उसकी प्रतिष्ठा प्रभावित होगी और उसे रिश्तेदारों और दोस्तों के सामने अपना चेहरा दिखाने में शर्म आएगी, इसलिए उसने मुझसे समझौता करवाने के लिए भौतिक सुखों का इस्तेमाल किया। लेकिन मैंने कोई समझदारी नहीं दिखाई और जब मेरे पति ने मेरे भौतिक सुखों को पूरा किया तो मैं प्रलोभन में आ गई, यहाँ तक कि मैं अपने पति को संतुष्ट करना चाहती थी और दैहिक पारिवारिक सुख के पीछे भागना चाहती थी। मेरा आध्यात्मिक कद वाकई बहुत छोटा था। साथ ही, मेरे गिरफ्तार होने से पहले मुझसे परमेश्वर में अपनी आस्था छुड़वाने के लिए मेरे पति ने मुझ पर नजर रखने, मेरा पीछा करने और मेरे बैग की तलाशी लेने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए थे, यहाँ तक कि वह परमेश्वर के वचनों की किताबें जलाना चाहता था। मेरा पति वाकई मेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहा था; वह मुझे सिर्फ अपनी आस्था छोड़ने को मजबूर करने के लिए ये लाभ दे रहा था। मैं शैतान की धूर्त साजिश के आगे नहीं झुक सकती थी। इसलिए मैंने अपने पति से कहा, “मनुष्य का सृजन परमेश्वर ने किया है और परमेश्वर की अराधना करना सही और उचित है।” मेरे पति ने तिरस्कारपूर्ण ढंग से उत्तर दिया, “मनुष्य का सृजन परमेश्वर ने किया है, यह विचार बाइबल से आता है, जिसे स्वयं मनुष्य ने लिखा है, फिर भी तुम इस पर विश्वास करती हो। तुम वाकई बहुत सीधी हो!” उसकी बातें सुनकर मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर में विश्वास करने के बारे में हमारे परस्पर विरोधी विचार असंगत थे। हम दो अलग-अलग रास्तों पर चल रहे थे और देर-सवेर हमारी शादी टूटनी ही थी। लेकिन अंदर से मैं सच में तकलीफ में थी और मैंने सोचा, “हमने अपनी शादीशुदा जिंदगी में वाकई बहुत कुछ सहा है। शुरुआत में मेरे पति की दृढ़ निष्ठा ने मुझे मेरे जीवन के सबसे कठिन समय से गुजरने में मदद की। अगर मैं यह शादी तोड़ देती हूँ तो मैं भविष्य में कैसे जी पाऊँगी?” मुझे अभी भी अपने पति और बच्चे के प्रति कुछ हद तक ऋणी महसूस होता है। लेकिन फिर मैंने सोचा, “परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है और परमेश्वर का न होना जीवन न होने के समान है। अगर मैं अपने पति की बात मानकर परमेश्वर में विश्वास न करूँ, उसके वचनों को न खाऊँ और न पियूँ तो मैं परमेश्वर का उद्धार छोड़ दूँगी और शैतान की शक्ति के अधीन जीवन जीती रहूँगी। तो क्या मैं चलती-फिरती लाश नहीं बन जाऊँगी? मैं परमेश्वर में अपनी आस्था नहीं छोड़ सकती।” इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे मेरे सामने मौजूद मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करने को कहा।

उसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “वे घातक प्रभाव, जो हज़ारों वर्षो की ‘राष्ट्रवाद की बुलंद भावना’ ने मनुष्य के हृदय में गहरे छोड़े हैं, और साथ ही सामंती सोच, जिसके द्वारा लोग बिना किसी स्वतंत्रता के, बिना महत्वाकांक्षा या आगे बढ़ने की इच्छा के, बिना प्रगति की अभिलाषा के, बल्कि नकारात्मक और प्रतिगामी रहने और गुलाम मानसिकता से घिरे होने के कारण बँधे और जकड़े हुए हैं, इत्यादि—इन वस्तुगत कारकों ने मनुष्यजाति के वैचारिक दृष्टिकोण, आदर्शों, नैतिकता और स्वभाव पर अमिट रूप से गंदा और भद्दा प्रभाव छोड़ा है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मनुष्य आतंक की अँधेरी दुनिया में जी रहे हैं, और उनमें से कोई भी इस दुनिया के पार नहीं जाना चाहता, और उनमें से कोई भी किसी आदर्श दुनिया में जाने के बारे में नहीं सोचता; बल्कि, वे अपने जीवन की सामान्य स्थिति से संतुष्ट हैं, बच्चे पैदा करने और पालने-पोसने, उद्यम करने, पसीना बहाने, अपना रोजमर्रा का काम करने; एक आरामदायक और खुशहाल परिवार के सपने देखने, और दांपत्य प्रेम, नाती-पोतों, अपने अंतिम समय में आनंद के सपने देखने में दिन बिताते हैं और शांति से जीवन जीते हैं...। सैकड़ों-हजारों साल से अब तक लोग इसी तरह से अपना समय व्यर्थ गँवा रहे हैं, कोई पूर्ण जीवन का सृजन नहीं करता, सभी इस अँधेरी दुनिया में केवल एक-दूसरे की हत्या करने के लिए तत्पर हैं, प्रतिष्ठा और लाभ की दौड़ में और एक-दूसरे के प्रति षड्यंत्र करने में संलग्न हैं। किसने कब परमेश्वर के इरादे जानने की कोशिश की है? क्या किसी ने कभी परमेश्वर के कार्य पर ध्यान दिया है? एक लंबे अरसे से मानवता के सभी अंगों पर अंधकार के प्रभाव ने कब्ज़ा जमा लिया है और वही मानव-प्रकृति बन गए हैं, और इसलिए परमेश्वर के कार्य को करना काफी कठिन हो गया है, यहाँ तक कि जो परमेश्वर ने लोगों को आज सौंपा है, उस पर वे ध्यान भी देना नहीं चाहते(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (3))। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मुझे अपनी पीड़ा का मूल कारण पता चला। “एक बार जब पुरुष और महिला की शादी हो जाती है तो उनका प्रेमपूर्ण बंधन गहरा हो जाता है,” “एक दूसरे का हाथ पकड़ना और साथ-साथ बूढ़ा होना” और “अच्छी पत्नी और प्यारी माँ होना,” जैसी पारंपरिक धारणाओं से बंधे और प्रतिबंधित होने के कारण, मैं मानती थी कि वैवाहिक प्रेम और संतानोचित धर्मनिष्ठा होने और शांति से अपना जीवन व्यतीत करने का मतलब ही खुशी है। जब मेरे पति ने परमेश्वर में विश्वास करने से इनकार कर दिया, मेरा विरोध किया और मुझे सताया, इस मामले पर हमेशा मुझसे बहस की, मैं डरती रही कि हमारा प्रेम बिखर जाएगा और हमारी खूबसूरत शादी टूट जाएगी और मैं इसे बचाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहती थी। लेकिन परमेश्वर में विश्वास करने से पहले भले ही मेरा पति मेरे प्रति अच्छा था और भले ही हमारा परिवार काफी घनिष्ठ था और हमारी शादी सतही तौर पर सामंजस्यपूर्ण थी, लेकिन हर दिन उन छोटे घरेलू मामलों के अलावा कुछ नहीं होता था, जिससे मुझे अक्सर अंदर से एक तरह का खालीपन महसूस होता था। दरअसल वह सच्ची खुशी नहीं थी। अब अगर मैं अपने परिवार को बचाती तो मेरी दैहिक इच्छा पूरी होती, लेकिन मेरा पति परमेश्वर में विश्वास नहीं करता था, सांसारिक प्रवृत्तियों के पीछे भागता था और सांसारिक व्यक्ति के मार्ग का अनुसरण करता था। हम एक-दूसरे से जुड़े हुए प्रतीत होते थे, लेकिन हम दिल से बँटे हुए थे; हमारी कोई एक भाषा नहीं थी, किसी भी खुशी की तो बात ही छोड़ दो। जिन परिवारों को मैं जानती थी, उनमें से कई बाहरी तौर पर खुश और आनंदित दिखते थे, लेकिन वे अपने भीतर के खालीपन से मुक्त नहीं हो पाते थे। उदाहरण के लिए, मेरी एक सहकर्मी थी, जो कार, घर, सुंदर बेटी, आरामदायक भौतिक जीवन और अच्छी शादी होने के बावजूद जरा भी खुश नहीं थी और अक्सर चिंतित रहती थी कि घर से दूर के मामलों में शामिल होने के दौरान उसका पति किसी और से संबंध बना लेगा। जवान दिखने के लिए वह अपने स्वास्थ्य और सुंदरता को बनाए रखने में बहुत समय लगाती थी और वह अपने पति का पीछा भी करती थी। वह अक्सर मुझसे शिकायत करती थी कि उसका जीवन बहुत थकाऊ है। इससे मुझे एहसास हुआ कि लोग अपने भौतिक जीवन का कितना भी आनंद लें, यह उनके दिलों का खालीपन नहीं भर सकता और पारिवारिक सद्भाव उनकी आध्यात्मिक जरूरतें पूरी नहीं कर सकता। अगर लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं तो चाहे उनके पास कितना भी दैहिक सुख क्यों न हो, यह सब अस्थायी है। जब बड़ा क्लेश हम पर आएगा तो उन लोगों को परमेश्वर की सुरक्षा नहीं मिलेगी और वे सभी नष्ट हो जाएँगे। अगर मैं अविश्वासी के मार्ग पर चलने का फैसला करती, वैवाहिक प्रेम और पारिवारिक खुशी की तलाश में परमेश्वर में अपनी आस्था छोड़ देती और क्षणिक दैहिक आनंद को संतुष्ट करती तो मैं आखिरकार आपदा में पड़ जाती और दंडित की जाती। परमेश्वर ने मनुष्य का सृजन किया है और जब कोई सृष्टिकर्ता के पास लौटता है और अपना कर्तव्य करता है केवल तभी उसके जीवन का मूल्य और अर्थ हो सकता है। उदाहरण के लिए, पतरस को ही लो, जिसने प्रभु यीशु की पुकार सुनी और उसका अनुसरण करने के लिए सब कुछ त्याग दिया। अंत में उसने परमेश्वर की सच्ची समझ पाई और परमेश्वर की पूर्णता और आशीष पाया। उसका जीवन सबसे मूल्यवान, सार्थक था। आगे बढ़ते हुए मुझे सही तरीके से सत्य का अनुसरण करना चाहिए और एक सार्थक जीवन जीना चाहिए। बाद में मेरी कंपनी में नौकरियों में कटौती के कारण मुझे एक सेल्सपर्सन के रूप में काम करने के लिए लगाया गया, जिसका मतलब था कि मुझे पूरा दिन दफ्तर में नहीं बिताना था और मैं दिन के समय अपना कर्तव्य कर सकती थी। यह वाकई परमेश्वर द्वारा मुझे मार्ग दिखाने जैसा था। कुछ समय बाद मुझे फिर से गिरफ्तार कर लिया गया।

दिसंबर 2012 में मुझे सुसमाचार का प्रचार करते समय गिरफ्तार कर लिया गया और पंद्रह दिन जेल में बिताने पड़े। जब मैं घर पहुँची तो मेरे पति ने निराश स्वर में मुझसे कहा, “तुम्हें पता है, अब तुम्हारा आपराधिक रिकॉर्ड है। इस बार मैंने अपने संपर्कों का इस्तेमाल करने की कोशिश की और सुरक्षा ब्यूरो के कप्तान से कहा कि वह फाइल में तुम्हारा जिक्र न करे, लेकिन उसने कहा, ‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने वालों के मामले गंभीर मामले हैं! यह केंद्रीय अधिकारियों का आदेश है; वह कुछ नहीं कर सकता!’ अब हमारा बच्चा तुम्हारी वजह से मुसीबत में फँस गया है और भविष्य में वह सिविल सेवक के रूप में काम नहीं कर पाएगा या सेना में शामिल नहीं हो पाएगा। इस बार तुमने पूरे परिवार को इसमें फँसा दिया है; सोचो तुमने मेरी प्रतिष्ठा के साथ क्या किया है!” यह सुनकर मैं क्रोधित हो गई और सोचने लगी, “परमेश्वर में विश्वास करना कोई अपराध तक नहीं है तो इसका मतलब मेरे पूरे परिवार के लिए मुसीबत क्यों है? सीसीपी वाकई बहुत घृणित है!” मेरे पति ने आगे कहा, “मैं इस तरह हर समय तनाव में नहीं रहना चाहता। अब तुम्हारे पास दो रास्ते हैं : एक है परमेश्वर में अपनी आस्था छोड़ दो और मेरे साथ जिंदगी जीती रहो। दूसरा है तलाक; हम अलग-अलग रास्ते अपनाएँ और एक-दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करें। यह तुम पर निर्भर है।” जब मैंने अपने पति से तलाक का जिक्र सुना तो मेरा दिल टूट गया। मैंने सोचा, “हमारा बच्चा अभी बहुत छोटा है; हमारे तलाक के बाद उसका क्या होगा?” इससे भी बदतर यह हुआ कि उस दौरान गिरफ्तार होने के कारण मैं भाई-बहनों से बातचीत नहीं कर सकी। मैं खासकर अकेली और असहाय थी और मुझे भाई-बहनों के साथ बिताए दिन याद आते थे। उस दौरान मेरा पति हर रात देर से घर आता था और वह अक्सर नशे में धुत रहता था। भले ही हम अभी भी एक ही छत के नीचे रहते थे, लेकिन हम एक-दूसरे से दूर हो गए थे और हमारे घर में जो गर्मजोशी थी, वह बहुत पहले ही खत्म हो चुकी थी। मैं दुखी थी और सीसीपी के प्रति मेरी नफरत बढ़ती ही गई। उनकी मनगढ़ंत अफवाहों के कारण ही मेरे परिवार पर यह मुसीबत आई। मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंशों के बारे में सोचा : “प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुआ? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अँधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब बुराई को छिपाने की चालें हैं!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। “क्या तुम लोग सच में बड़े लाल अजगर से घृणा करते हो? क्या तुम सच में, ईमानदारी से उससे घृणा करते हो? मैंने तुम लोगों से इतनी बार क्यों पूछा है? मैं तुमसे यह प्रश्न बार-बार क्यों पूछता हूँ? तुम लोगों के हृदय में बड़े लाल अजगर की क्या छवि है? क्या उसे वास्तव में हटा दिया गया है? क्या तुम सचमुच उसे अपना पिता नहीं मानते। सभी लोगों को मेरे प्रश्नों में निहित मेरा इरादा समझना चाहिए। यह लोगों का क्रोध भड़काने के लिए नहीं है, न ही मनुष्यों में विद्रोह उभारने के लिए है, न ही इसलिए है कि मनुष्य अपना मार्ग स्वयं ढूँढ़ सके, बल्कि इसलिए है कि सभी लोग अपने आपको बड़े लाल अजगर के बंधन से छुड़ा लें(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 28)। परमेश्वर के वचनों की रोशनी में मैंने साफ देखा कि सीसीपी एक दानव है जो परमेश्वर से घृणा करती है और उसका प्रतिरोध करती है। यह “धार्मिक स्वतंत्रता” का झंडा फहराती है जबकि परमेश्वर में विश्वास करने वालों को हर जगह गिरफ्तार करती है और सताती है। यह लोगों को गुमराह करने के लिए तरह-तरह की अफवाहें फैलाती है, लोगों को अपने शैतानी बातों पर विश्वास करने और इसके साथ-साथ परमेश्वर का प्रतिरोध करने के लिए मजबूर करती है। मैंने ऐसे बहुत से विश्वासियों के बारे में सोचा जिन्हें सीसीपी ने गिरफ्तार किया था और सताया था और घर छोड़ने के लिए मजबूर किया था और बहुत से सामंजस्यपूर्ण परिवार इसकी अफवाहों और जहर से टूटकर बिखर गए थे। फिर भी सीसीपी अभी भी पीड़ितों को दोषी ठहराती है, कहती है कि परमेश्वर में विश्वास करने वाले अपने घर छोड़ देते हैं। यह हमेशा दूसरों पर दोष मढ़ती है! सीसीपी का दुष्ट और बदसूरत सार स्पष्ट देखने से सत्य पर चलने और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने के मेरे दृढ़ संकल्प को बल मिला। चाहे सीसीपी ने मुझे कितना भी सताया हो, मैं परमेश्वर का अनुसरण करने जा रही थी।

रात को मैं बालकनी में अकेली खड़ी थी, परमेश्वर में विश्वास करने के अपने समय के बारे में गहराई से सोच रही थी। मैंने परमेश्वर के अनुग्रह का भरपूर आनंद लिया था, परमेश्वर के वचनों का बहुत अधिक सिंचन और पोषण प्राप्त किया था और उसके वचनों ने मुझे कुछ सत्य समझने में भी मदद की थी और मेरे दिल को सहारा दिया था। मुझे पता था कि अगर मैं परमेश्वर पर विश्वास करूँ और उसका अनुसरण करूँ तो ही मेरे जीवन का मूल्य होगा, लेकिन जब मैंने सोचा कि मेरी बड़ी मुश्किल से हुई शादी इस तरह कैसे टूटकर बिखर जाएगी तो मुझे अभी भी अपने दिल में कुछ हिचकिचाहट महसूस हुई। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “परमेश्वर, मैं तुम्हारा अनुसरण करना चाहती हूँ, लेकिन मैं अपना परिवार नहीं छोड़ सकती। मुझे इस दैहिक बेबसी से मुक्त होने के लिए संघर्ष करने की आस्था और शक्ति दो।” इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “मानवजाति को जीवन परमेश्वर ने जीवन दिया है; उनके पास जो कुछ भी है वह परमेश्वर ने दिया है, और यह परमेश्वर ही है जिसका उन्हें आभार मानना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने पथभ्रष्‍ट विचारों को पहचानकर ही खुद को सचमुच बदला जा सकता है)। मैंने हमेशा अपने पति को अपना हितैषी माना था, मेरा मानना था कि उसी ने मुझे जीने का साहस और खूबसूरत शादीशुदा जिंदगी दी है, यहाँ तक कि जब मैंने परमेश्वर में विश्वास करना शुरू किया और उसने मुझे सताया और मेरा विरोध किया तो भी मैंने उससे नफरत नहीं की। जब मैं अपना कर्तव्य नहीं निभा रही होती तो भी मैं उसके लिए कुछ अच्छा खाना बनाने का समय निकालने की कोशिश करती और उसका ऋण चुकाना चाहती। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि मेरे पास जो कुछ भी है वह मुझे परमेश्वर ने दिया है और यह शादी परमेश्वर की संप्रभुता और विधान से हुई है। मुझे परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए! यह सोचकर मुझे बहुत अधिक सुकून मिला और वर्षों से मेरे दिल पर जो बोझ था वह आखिरकार हट गया। मैंने अपने दिल की गहराई से परमेश्वर को धन्यवाद दिया!

इसके बाद मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े और अपने पति के सार के बारे में कुछ भेद पहचान पाई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जो कोई परमेश्वर को नहीं पहचानता, शत्रु है; यानी कोई भी जो देहधारी परमेश्वर को नहीं पहचानता—चाहे वह इस धारा के भीतर है या बाहर—एक मसीह-विरोधी है! परमेश्वर पर विश्वास न रखने वाले प्रतिरोधियों के सिवाय भला शैतान कौन है, दुष्टात्माएँ कौन हैं और परमेश्वर के शत्रु कौन हैं? क्या ये वे लोग नहीं, जो परमेश्वर के प्रति विद्रोही हैं? क्या ये वे नहीं, जो विश्वास करने का दावा तो करते हैं, परंतु उनमें सत्य नहीं है? क्या ये वे लोग नहीं, जो सिर्फ आशीष पाने की फिराक में रहते हैं जबकि परमेश्वर के लिए गवाही देने में असमर्थ हैं? तुम अभी भी इन दुष्टात्माओं के साथ घुलते-मिलते हो और उनसे अंतःकरण और प्रेम से पेश आते हो, लेकिन क्या इस मामले में तुम शैतान के प्रति सदिच्छाओं को प्रकट नहीं कर रहे? क्या तुम दानवों के साथ मिलकर षड्यंत्र नहीं कर रहे? यदि लोग इस बिंदु तक आ गए हैं और अच्छाई-बुराई में भेद नहीं कर पाते और परमेश्वर के इरादों को खोजने की कोई इच्छा किए बिना या परमेश्वर के इरादों को अपने इरादे मानने में असमर्थ रहते हुए आँख मूँदकर प्रेम और दया दर्शाते रहते हैं तो उनका अंत और भी अधिक खराब होगा। जो भी व्यक्ति देहधारी परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता, वह परमेश्वर का शत्रु है। यदि तुम शत्रु के प्रति साफ अंतःकरण और प्रेम रख सकते हो, तो क्या तुममें न्यायबोध की कमी नहीं है? यदि तुम उनके साथ सहज हो, जिनसे मैं घृणा करता हूँ, और जिनसे मैं असहमत हूँ और तुम तब भी उनके प्रति प्रेम और निजी भावनाएँ रखते हो, तब क्या तुम विद्रोही नहीं हो? क्या तुम जान-बूझकर परमेश्वर का प्रतिरोध नहीं कर रहे हो? क्या ऐसे व्यक्ति में वास्तव में सत्य होता है? यदि लोग शत्रुओं के प्रति साफ अंतःकरण रखते हैं, दुष्टात्माओं से प्रेम करते हैं और शैतान पर दया दिखाते हैं, तो क्या वे जान-बूझकर परमेश्वर के कार्य में रुकावट नहीं डाल रहे हैं? ... मनुष्य जिस मानक से दूसरे मनुष्य को आंकता है, वह व्यवहार पर आधारित है; जिनका आचरण अच्छा है वे धार्मिक हैं और जिनका आचरण घृणित है वे बुरे हैं। परमेश्वर जिस मानक से मनुष्यों का न्याय करता है, उसका आधार यह है कि क्या व्यक्ति का सार परमेश्वर को समर्पित है या नहीं; जो परमेश्वर को समर्पित है वह धार्मिक है और जो नहीं है वह शत्रु और बुरा व्यक्ति है, भले ही उस व्यक्ति का आचरण अच्छा हो या बुरा, भले ही इस व्यक्ति की बातें सही हों या गलत हों(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर ने उजागर किया कि जो लोग उसे नहीं स्वीकारते वे राक्षस और शैतान हैं; वे परमेश्वर के शत्रु हैं। परमेश्वर लोगों का सार देखता है, जबकि मैं सिर्फ उनका सतही स्वरूप देखती थी। मैंने देखा कि मेरा पति घर के अंदर-बाहर सब कुछ अच्छी तरह से करता था, वह अपने परिवार और दोस्तों के प्रति दयालु था, जब लोगों को उसकी मदद की जरूरत होती थी तो वह मदद के लिए आगे आता था और जब मैं माँ बनने में असमर्थ हो गई तब भी उसने मुझसे मुँह नहीं मोड़ा और इसलिए मैंने सोचा कि वह इस दुनिया में एक दुर्लभ नेक इंसान है। लेकिन जब उसे पता चला कि मैं परमेश्वर में विश्वास करती हूँ तो उसका उग्र पक्ष सामने आया; ऐसा लगा जैसे वह कोई और व्यक्ति बन गया हो। मुझे अपनी आस्था छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए उसने मुझे डराने और रिश्वत देने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए, यहाँ तक कि तलाक की धमकी देकर मुझे मजबूर किया। मैंने देखा कि मेरे पति का सार सत्य से घृणा करने वाले, परमेश्वर से घृणा करने वाले दानव का था। मुझे यह भी एहसास हुआ कि वह मेरे साथ अतीत में सिर्फ इसलिए अच्छा था क्योंकि मैं बिना किसी शिकायत के अपने परिवार के लिए खुद को खपाने को तैयार थी और वह जो भी कहता था, उसे सुनती थी, जिससे उसका पुरुषवादी होने का अहंकार संतुष्ट होता था। जब मैं परमेश्वर में विश्वास करने लगी, कुछ सत्य समझी और अपने खुद के कुछ विचार विकसित किए तो उसने मुझे सताना और मेरा विरोध करना शुरू कर दिया। जब मुझे गिरफ्तार किया गया तो उसकी प्रतिष्ठा पर असर पड़ने और उसके हित प्रभावित होने के चलते उसने मुझे तलाक देने की धमकी दी। हकीकत में वह मेरे प्रति बिल्कुल भी अच्छा नहीं था, जिससे मुझे पता चला कि लोगों के बीच सच्चा प्यार नहीं होता और यह कि सब कुछ हितों और लेन-देन से जुड़ा है। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “विश्वासी और अविश्वासी आपस में मेल नहीं खाते हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर में विश्वास करने के इस मार्ग पर मुझे अपने पति से अलग होना ही था। अगर हम साथ रहने की कोशिश भी करते तो भी हम खुश नहीं रहते और इससे परमेश्वर में मेरी आस्था और मेरे कर्तव्य निर्वहन पर असर पड़ता। जब परमेश्वर में मेरे विश्वास की बात आई तो मैं समझौता करने को तैयार नहीं थी। बाद में मेरे पति ने मुझसे पूछा कि क्या मैंने अपना मन बना लिया है और मैंने कहा, “मैंने परमेश्वर में विश्वास करना चुना है।” यह सुनकर मेरे पति ने अपना सिर हिलाया और निराशा में कहा, “मैंने वाकई अपने सारे विकल्प खत्म कर दिए हैं; मैं तुम्हारे परमेश्वर के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता। मैं तुम्हें शुभकामनाएं देता हूँ।” मैंने अपने दिल में चुपचाप परमेश्वर को धन्यवाद दिया।

उसके बाद हमने जल्दी से तलाक की प्रक्रिया पूरी कर ली। जिस क्षण मैं नागरिक मामलों के ब्यूरो से बाहर निकली, मैंने राहत की गहरी साँस ली। उस दिन से मैं आखिरकार आजादी से परमेश्वर में विश्वास कर सकी। इस अनुभव से मुझे मेरा असली आध्यात्मिक कद देखने में मदद मिली। मैं परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ कि उसने मुझे मेरे परिवार से दूर कर दिया, मुझे इसके बंधनों से मुक्त कर दिया ताकि मैं पूरे दिल से उसके लिए खुद को खपा सकूँ, सत्य का अनुसरण कर सकूँ और सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य अच्छी तरह से कर सकूँ।

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