99. उत्पीड़न और क्लेश के दौरान कर्तव्य को कायम रखना

कैलिन, चीन

अप्रैल 2023 में उच्च अगुआओं ने मुझे बताया कि शिंगयूआन कलीसिया की एक अगुआ को गिरफ्तार कर लिया गया है, दो अन्य अगुआओं से भी पुलिस ने उनके घरों में पूछताछ की है और सुरक्षा जोखिमों के कारण वे अब कलीसिया में अपना कार्य जारी नहीं रख सकते। इसलिए उच्च अगुआओं ने मुझे अनुवर्ती कार्य सँभालने और भाई-बहनों को सहारा देने को कहा। अगुआओं को यह कहते हुए सुनकर मैंने वास्तव में इस जिम्मेदारी का महत्व महसूस हुआ और मैं यह सोचकर कुछ चिंतित भी थी, “यह परिवेश इतना कठोर है। उन्होंने मुझे भेजने की व्यवस्था क्यों की? अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया तो? गिरफ्तार किए गए बहुत से भाई-बहनों को गंभीर यातनाएँ दी जाती हैं। कुछ लोग यातना सहन नहीं कर पाते हैं और परमेश्वर को धोखा देते हुए यहूदा बन जाते हैं, जबकि अन्य को पीट-पीटकर मार दिया जाता है या विकलांग बना दिया जाता है। लोगों को नुकसान पहुँचाने के लिए बड़े लाल अजगर द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले तरीके इतने क्रूर हैं। अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और मैं यातना न सह पाई, यहूदा बन गई और परमेश्वर से विश्वासघात कर बैठी तो मुझे बचाया नहीं जाएगा। क्या तब मेरी आस्था व्यर्थ नहीं हो जाएगी?” लेकिन फिर मैंने सोचा, “मैं इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती और सिर्फ अपने बारे में ही नहीं सोच सकती। एक अगुआ को गिरफ्तार किया गया है, परमेश्वर के वचनों की किताबें खतरे में हैं और उन्हें तुरंत स्थानांतरित करने की जरूरत है, भाई-बहन नकारात्मक और कमजोर हैं, उन्हें सहारे और मदद की जरूरत है। मुझे परमेश्वर के इरादे पर विचार करने और यह कर्तव्य स्वीकारने की जरूरत है।” इसलिए मैंने सहमति जताई।

शिंगयूआन कलीसिया में पहुँचने के बाद मुझे पता चला कि ज्यादातर भाई-बहनों के घरों में यहूदा झांग फेन आई थी, इसलिए उन सभी की सुरक्षा जोखिम में थी। उस समय सिर्फ बहन झांग यू का घर अपेक्षाकृत सुरक्षित था और कार्य पर चर्चा करने के लिए इसका अस्थायी रूप से इस्तेमाल किया जा सकता था। लेकिन झांग यू से मिलने पर मुझे पता चला कि कुछ साल पहले पुलिस ने उसके घर पर कई बहनों को गिरफ्तार किया था और यहूदा झांग फेन अपनी गिरफ्तारी से पहले झांग यू के घर भी आई थी। उसकी यह बात सुनकर मेरी धड़कन थम गई, “क्या पुलिस गुप्त रूप से निगरानी और देखरेख कर रही होगी? अगर उसने मुझे गिरफ्तार कर लिया तो? अगर मैं यातना सहन नहीं कर पाई और यहूदा बन गई तो क्या मेरे लिए सब कुछ खत्म नहीं हो जाएगा? मुझे रुकना चाहिए या तुरंत निकल जाना चाहिए? अगर मैं रुकती हूँ तो मुझे गिरफ्तार किए जाने का खतरा हो सकता है, लेकिन अगर मैं चली गई तो अनुवर्ती कार्य सँभालने के बारे में चर्चा करने का कोई उपाय नहीं रहेगा।” मैंने अपने दिल में प्रार्थना की, परमेश्वर से कहा कि वह मुझे यह मार्गदर्शन दे कि मैं कैसे अभ्यास करूँ। मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : “क्या मानवता से रहित व्यक्ति के लिए सत्य को प्राप्त करना आसान है? यह उसके लिए मुश्किल है। जब उसका किसी कष्ट की घड़ी से सामना होता है या उसे कोई कीमत चुकानी पड़ती है, तो वह सोचता है, ‘पहले तुम लोग आगे जाओ और ये सब कष्ट झेलो और मूल्य चुकाओ, और जब काफी हद तक परिणाम हासिल किए जा चुके होंगे, तो मैं तुम लोगों के साथ रहूँगा।’ यह किस तरह की मानवता है? इस तरह के व्यवहारों को सामूहिक रूप से ‘मानवता नहीं होने’ के रूप में जाना जाता है। ... जब खतरे का सामना होता है, तो कुछ लोग केवल छिपने की परवाह करते हैं। कुछ दूसरों की रक्षा करते हैं और अपनी परवाह नहीं करते। जब उनके साथ कुछ होता है, तो कुछ लोग उसे सह जाते हैं, और कुछ लड़ते हैं। ये मानवता में अंतर हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना हृदय परमेश्वर को देकर सत्य प्राप्त किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि अच्छे चरित्र वाले लोग खतरे का सामना होने पर सबसे पहले दूसरों की रक्षा करेंगे, वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने और अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने के लिए खुद को खतरे में डालने को तत्पर रहते हैं। मानवता रहित लोग स्वार्थी और नीच होते हैं, अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं और खतरा नजदीक आने पर छिपने के लिए भागते हैं, कलीसिया के कार्य या भाई-बहनों की सुरक्षा के लिए कोई चिंता नहीं दिखाते। परमेश्वर के वचनों की रोशनी में मैंने देखा कि मैं बहुत स्वार्थी थी और मेरा चरित्र बहुत दयनीय था। जब खतरे का सामना हुआ तो मैंने सबसे पहले अपने बारे में सोचा, गिरफ्तारी से डर गई और तुरंत भाग जाना चाहती थी, कलीसिया के कार्य या अपने स्वयं के कर्तव्य के लिए कोई चिंता नहीं दिखा रही थी। भले ही झांग यू के घर में कुछ सुरक्षा जोखिम थे, लेकिन कलीसिया में दूसरे घरों की तुलना में यह अभी अपेक्षाकृत रूप से सुरक्षित घर था। मैं कार्य पर चर्चा करने की खातिर भाई-बहनों से मिलने के लिए अस्थायी रूप से वहाँ रह सकती थी और जब कोई अधिक उपयुक्त स्थान मिल जाता तो उसमें रहने जा सकती थी। अगर मुझे वाकई विशेष परिस्थितियों का सामना करना पड़े तो मुझे परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, आस्था और बुद्धि के साथ चीजों को सँभालना चाहिए। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उससे विनती की कि वह मुझे आस्था दे और कष्ट सहने की इच्छाशक्ति दे।

अगले दिन मैंने काम पर चर्चा करने के लिए झांग यू के घर पर दो भाइयों को बुलाया। ली बिन, जो झांग यू के ही गाँव से था, उसने मुझे देखते ही कहा, “मेरे गाँव में झांग यू के घर के पास दो बुरे लोग हैं। अगर वे गाँव में अजनबियों को घुसते देखेंगे और पता लगा लेंगे कि वे विश्वासी हैं तो वे पुलिस को बुलाएँगे। मेरे गाँव में पहले भी कुछ भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया था क्योंकि इनमें से एक बुरे व्यक्ति ने उनकी रिपोर्ट की थी।” ली बिन की बातें सुनकर मुझे थोड़ा डर लगा, मैंने सोचा, “मैं नहीं जानती कि जब मैं आई थी तो बुरे लोगों ने मुझे देखा था या नहीं। अगर उन्होंने मेरी रिपोर्ट की तो मुझे निश्चित रूप से गिरफ्तार कर लिया जाएगा!” उस पल मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया और मैंने उसे पढ़ने के लिए खोजा। परमेश्वर कहता है : “शैतान चाहे जितना भी ‘ताकतवर’ हो, चाहे वह जितना भी दुस्साहसी और महत्वाकांक्षी हो, चाहे नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता जितनी भी बड़ी हो, चाहे मनुष्य को भ्रष्ट करने और लुभाने की उसकी तकनीकें जितनी भी व्यापक हों, चाहे मनुष्य को डराने की उसकी तरकीबें और साजिशें जितनी भी चतुराई से भरी हों, चाहे उसके अस्तित्व के रूप जितने भी परिवर्तनशील हों, वह कभी एक भी जीवित चीज सृजित करने में सक्षम नहीं हुआ, कभी सभी चीजों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाएँ या नियम निर्धारित करने में सक्षम नहीं हुआ, और कभी किसी सजीव या निर्जीव चीज पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं हुआ। ब्रह्मांड और आकाश के भीतर, एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उससे पैदा हुई हो, या उसके कारण अस्तित्व में हो; एक भी व्यक्ति या चीज नहीं है जो उसके द्वारा शासित हो, या उसके द्वारा नियंत्रित हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन रहना है, बल्कि, परमेश्वर के सभी आदेशों और आज्ञाओं के प्रति समर्पण करना है। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति की तो बात ही छोड़ दो। परमेश्वर की दृष्टि में, शैतान पहाड़ पर उगने वाली कुमुदिनियों से, हवा में उड़ने वाले पक्षियों से, समुद्र में रहने वाली मछलियों से, और पृथ्वी पर रहने वाले कीड़ों से भी तुच्छ है। सभी चीजों के बीच उसकी भूमिका सभी चीजों की सेवा करना, मानवजाति की सेवा करना और परमेश्वर के कार्य और उसकी प्रबंधन-योजना की सेवा करना है। उसकी प्रकृति कितनी भी दुर्भावनापूर्ण क्यों न हो, और उसका सार कितना भी बुरा क्यों न हो, केवल एक चीज जो वह कर सकता है, वह है अपने कार्य का कर्तव्यनिष्ठा से पालन करना : परमेश्वर के लिए सेवा देना, और परमेश्वर को एक विषमता प्रदान करना। ऐसा है शैतान का सार और उसकी स्थिति। उसका सार जीवन से असंबद्ध है, सामर्थ्य से असंबद्ध है, अधिकार से असंबद्ध है; वह परमेश्वर के हाथ में केवल एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में रत सिर्फ एक मशीन है!(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। परमेश्वर सब पर संप्रभु है और सब कुछ नियंत्रित करता है। सभी चीजें और घटनाएँ परमेश्वर के हाथों में हैं। सीसीपी और बुरे लोग चाहे कितने भी उग्र क्यों न हों, सभी परमेश्वर के हाथों में हैं। परमेश्वर की नजर में वे पृथ्वी पर मौजूद कीड़ों से भी गए गुजरे हैं। वे केवल उपकरण हैं जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पूर्ण बनाने के लिए सेवा प्रदान करते हैं। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को पकड़ने के लिए हद पार कर देता है, लेकिन परमेश्वर की अनुमति के बिना वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जैसे सीसीपी कुछ भाई-बहनों का शिकार करती है और उनके सिर पर इनाम रखती है, पार्टी खोज, ट्रैकिंग और निगरानी पर बहुत सारे मानव और भौतिक संसाधन खर्च करती है, निगरानी के लिए हर तरह की उच्च तकनीक वाले उपकरणों का इस्तेमाल करती है, लेकिन परमेश्वर की अनुमति के बिना वे उन्हें पकड़ नहीं सकते। उस दिन जब मैंने सुना कि कुछ बुरे लोग मेरे खिलाफ शिकायत कर सकते हैं तो मुझे कायरता और घबराहट महसूस हुई। मैंने देखा कि यूँ तो मैं परमेश्वर में विश्वास रखने की बात करती थी लेकिन जब वास्तव में जरूरत पड़ी तो लगा कि परमेश्वर मेरे हृदय से गायब है। परमेश्वर में मेरी आस्था इतनी कम थी। हालाँकि परिवेश कठोर था, मुझे गिरफ्तार किया जाएगा या नहीं, यह परमेश्वर के हाथों में था। यह मामला परमेश्वर पर निर्भर था। इस बात को ध्यान में रखते हुए अब मुझे उतना डर नहीं लगा। मैंने देखा कि दोनों भाई भय और कायरता में जी रहे हैं, इसलिए मैंने उनके साथ परमेश्वर के अधिकार और संप्रभुता के बारे में संगति की। सुनने के बाद उन्हें आस्था मिली और वे अपने कर्तव्य करने के लिए तैयार हो गए।

बाद में मैंने सोचा, “मैं गिरफ्तार होने और पीट-पीटकर मार डाले जाने से इतनी क्यों डरती थी? मुझे सत्य के किस पहलू में प्रवेश करना चाहिए?” मैंने पढ़ा कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : “प्रभु यीशु के उन शिष्यों की मौत कैसे हुई? उनमें ऐसे अनुयायी थे जिन्हें पत्थरों से मार डाला गया, घोड़े से बाँध कर घसीटा गया, सूली पर उलटा लटका दिया गया, पाँच घोड़ों से खिंचवाकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए—हर प्रकार की मौत उन पर टूटी। उनकी मृत्यु का कारण क्या था? क्या उन्हें उनके अपराधों के लिए कानूनी रूप से दंडित किया गया था? नहीं। उन्होंने प्रभु का सुसमाचार फैलाया था, लेकिन दुनिया के लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया, इसके बजाय उनकी भर्त्सना की, पीटा और डाँटा-फटकारा और यहाँ तक कि मार डाला—इस तरह वे शहीद हुए। हम उन शहीदों के अंतिम परिणाम की, या उनके व्यवहार की परमेश्वर की परिभाषा की बात न करें, बल्कि यह पूछें : जब उनका अंत आया, तब जिन तरीकों से उनके जीवन का अंत हुआ, क्या वह मानव धारणाओं के अनुरूप था? (नहीं, यह ऐसा नहीं था।) मानव धारणाओं के परिप्रेक्ष्य से, उन्होंने परमेश्वर के कार्य का प्रसार करने की इतनी बड़ी कीमत चुकाई, लेकिन अंत में इन लोगों को शैतान द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। यह मानव धारणाओं से मेल नहीं खाता, लेकिन उनके साथ ठीक यही हुआ। परमेश्वर ने ऐसा होने दिया। इसमें कौन-सा सत्य खोजा जा सकता है? क्या परमेश्वर द्वारा उन्हें इस प्रकार मरने देना उसका श्राप और दण्डादेश था, या यह उसकी योजना और आशीष थी? यह दोनों ही नहीं थे। यह क्या था? अब लोग गहरे दुख के साथ उनकी मृत्यु पर विचार करते हैं, किन्तु चीजें इसी प्रकार थीं। परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग इसी तरीके से मारे गए, इसे कैसे समझाया जाए? जब हम इस विषय का जिक्र करें, तो तुम लोग स्वयं को उनकी स्थिति में रखो, क्या तब तुम लोगों के हृदय उदास होते हैं, और क्या तुम भीतर ही भीतर पीड़ा का अनुभव करते हो? तुम सोचते हो, ‘इन लोगों ने परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने का अपना कर्तव्य निभाया, इन्हें अच्छा इंसान माना जाना चाहिए, तो फिर उनका अंत, और उनका परिणाम ऐसा कैसे हो सकता है?’ वास्तव में, उनके शरीर इसी तरह मृत्यु को प्राप्त हुए और चल बसे; यह मानव संसार से प्रस्थान का उनका अपना माध्यम था, तो भी इसका यह अर्थ नहीं था कि उनका परिणाम भी वैसा ही था। उनकी मृत्यु और प्रस्थान का साधन चाहे जो रहा हो, या यह चाहे जैसे भी हुआ हो, यह वैसा नहीं था जैसे परमेश्वर ने उन जीवनों के, उन सृजित प्राणियों के अंतिम परिणाम को परिभाषित किया था। तुम्हें यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए। इसके विपरीत, उन्होंने इस संसार की घोर निंदा करने और परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए ठीक उन्हीं साधनों का उपयोग किया। इन सृजित प्राणियों ने अपने सर्वाधिक बहुमूल्य जीवन का उपयोग किया—उन्होंने परमेश्वर के कर्मों की गवाही देने के लिए अपने जीवन के अंतिम क्षण का उपयोग किया, परमेश्वर के महान सामर्थ्य की गवाही देने के लिए उपयोग किया, और शैतान तथा इस संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए किया कि परमेश्वर के कर्म सही हैं, प्रभु यीशु परमेश्वर है, वह प्रभु है, और परमेश्वर का देहधारी शरीर है। यहाँ तक कि अपने जीवन के बिल्कुल अंतिम क्षण तक उन्होंने प्रभु यीशु का नाम कभी नहीं नकारा। क्या यह इस संसार के ऊपर न्याय का एक रूप नहीं था? उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, संसार के समक्ष यह घोषित करने के लिए, मानव प्राणियों के समक्ष यह पुष्टि करने के लिए कि प्रभु यीशु प्रभु है, प्रभु यीशु मसीह है, वह परमेश्वर का देहधारी शरीर है, कि उसने समस्त मानवजाति के छुटकारे के लिए जो कार्य किया, उसी के कारण मानवता जीवित रह पाई है—यह सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। जो लोग प्रभु यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिए शहीद हुए, उन्होंने किस सीमा तक अपना कर्तव्य निभाया? क्या यह अंतिम सीमा तक किया गया था? यह अंतिम सीमा कैसे परिलक्षित होती थी? (उन्होंने अपना जीवन अर्पित किया।) यह सही है, उन्होंने अपने जीवन से कीमत चुकाई। परिवार, सम्पदा, और इस जीवन की भौतिक वस्तुएँ, सभी बाहरी चीजें हैं; स्वयं से संबंधित एकमात्र चीज जीवन है। प्रत्येक जीवित व्यक्ति के लिए जीवन सबसे अधिक प्रिय और संजोने योग्य होता है, सबसे बहुमूल्य होता है, और यही कारण है कि ये लोग मानवजाति के प्रति परमेश्वर के प्रेम की पुष्टि और गवाही के रूप में अपनी सबसे बहुमूल्य वस्तु—जीवन—अर्पित कर सके। अपनी मृत्यु के दिन तक उन्होंने परमेश्वर के नाम को नहीं नकारा, न ही परमेश्वर के कार्य को नकारा, और उन्होंने जीवन के अपने अंतिम क्षणों का उपयोग इस तथ्य के अस्तित्व की गवाही देने के लिए किया—क्या यह गवाही का सर्वोच्च रूप नहीं है? यह अपना कर्तव्य निभाने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है; अपना उत्तरदायित्व इसी तरह पूरा किया जाता है। जब शैतान ने उन्हें धमकाया और आतंकित किया, और अंत में जब उसने उनसे उनके प्राणों की कीमत भी वसूल ली, तब भी उन्होंने अपना कर्तव्य नहीं छोड़ा। यही अपना कर्तव्य चरम सीमा तक पूरा करना है। इससे मेरा क्या आशय है? क्या मेरा आशय यह है कि तुम लोग भी परमेश्वर की गवाही देने और उसका सुसमाचार फैलाने के लिए इसी तरीके का उपयोग करो? तुम्हें हूबहू ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु तुम्हें समझना होगा कि यह तुम्हारा दायित्व है, यदि परमेश्वर ऐसा चाहे, तो तुम्हें इसे कुछ ऐसा मानकर स्वीकार करना चाहिए जिसे करने को तुम कर्तव्यबद्ध हो। आज लोगों के मन में भय और चिंता व्याप्त है, किंतु ये अनुभूतियां किस काम की हैं? यदि परमेश्वर तुमसे ऐसा करने के लिए न कहे, तो इसके बारे में चिंता करने का क्या लाभ है? यदि परमेश्वर को तुमसे ऐसा कराना है, तो तुम्हें इस उत्तरदायित्व से न तो मुँह मोड़ना चाहिए और न ही इसे ठुकराना चाहिए। तुम्हें आगे बढ़कर सहयोग करना और निश्चिंत होकर इसे स्वीकारना चाहिए। मृत्यु चाहे जैसे हो, किंतु उन्हें शैतान के सामने, शैतान के हाथों में नहीं मरना चाहिए। यदि मरना ही है, तो उन्हें परमेश्वर के हाथों में मरना चाहिए। लोग परमेश्वर से आए हैं, और उन्हें परमेश्वर के पास ही लौटना है—यही विवेक और रवैया सृजित प्राणियों में होना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सुसमाचार का प्रचार करना वह कर्तव्य है जिसे सभी विश्वासी पूरा करने को बाध्य हैं)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे समझ आया कि प्रभु यीशु का अनुसरण करने वाले शिष्यों को प्रभु के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए शासकों और धार्मिक दुनिया से उत्पीड़न सहना पड़ा और उन पर सभी तरह की मौत आई। लेकिन उन्होंने परमेश्वर के लिए सुंदर गवाही देने और शैतान को अपमानित करने के लिए अपने प्राणों से कीमत चुकाई। भले ही उनके शरीर मर गए, उनकी आत्माएँ परमेश्वर के हाथों में थीं और उनकी मृत्यु को परमेश्वर ने याद रखा। हम जो अंत के दिनों के मसीह का अनुसरण करते हैं, राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए चीनी सत्तारूढ़ पार्टी का क्रूर उत्पीड़न सहते हैं। गिरफ्तार किए जाने के बाद बहुत से भाई-बहनों को प्रताड़ित किया गया है, लेकिन मृत्यु के कगार पर भी उन्होंने परमेश्वर के नाम को अस्वीकार नहीं किया या उसे धोखा नहीं दिया। कुछ को मौत के घाट उतार दिया गया लेकिन फिर भी वे यहूदा नहीं बने। उन्होंने परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपना जीवन दे दिया, जो मूल्यवान और सार्थक है। लेकिन मेरा क्या? इस खतरनाक परिवेश को देखकर मुझे डर था कि कहीं मुझे गिरफ्तार न कर लिया जाए और पीट-पीटकर मार न डाला जाए, इसलिए मैं अपना कर्तव्य छोड़ना चाहती थी। मैं सच में मौत से डरती थी! अगर मैं सिर्फ खुद को बचाने और एक नीच अस्तित्व को घसीटने की कोशिश करती, भले ही मैं खुद को पूरी तरह से सुरक्षित रखती, मैं बस एक चलती-फिरती लाश बन जाती। अगर मैंने अपना कर्तव्य ठीक से न निभाया और परमेश्वर के सामने मेरे पास कोई अच्छा कर्म या गवाही नहीं हुई तो भले ही मैं अपनी देह में जीवित रहूँ, मुझे परमेश्वर की स्वीकृति नहीं मिलेगी और जब मैं मरूँगी तो मुझे नरक में दंडित किया जाएगा। यह समझने पर मैं मृत्यु के भय से उतनी बेबस नहीं रही।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा और खुद के बारे में और अधिक समझ हासिल की। परमेश्वर कहता है : “मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और घिनौने होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं होती, परमेश्वर के प्रति निष्ठा तो बिल्कुल नहीं होती; जब उनके सामने कोई मसला आता है तो वे केवल अपना बचाव और अपनी सुरक्षा करते हैं। उनके लिए अपनी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी और कुछ नहीं है। अगर वे जिंदा रह सकें और गिरफ्तार न हों तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया के काम को कितना नुकसान हुआ है। ये लोग बेहद स्वार्थी हैं, वे भाई-बहनों के बारे में या कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते, सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे मसीह-विरोधी हैं। तो ऐसी चीजें जब उन लोगों के साथ घटती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं और परमेश्वर में सच्ची आस्था रखते हैं तो वे इन्हें कैसे सँभालते हैं? वे जो करते हैं वह मसीह-विरोधियों के काम से किस तरह अलग है? ... जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं और खुद को बचाने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम कर जाते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य करने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए व्यक्ति को अपना कर्तव्य निभाने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें व्यक्ति को बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन उसे अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और यह सबसे पहले आता है। मसीह-विरोधी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं; उनका मानना है कि किसी और चीज का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब किसी दूसरे के साथ कुछ होता है तो वे परवाह नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो। जब तक खुद मसीह-विरोधियों के साथ कुछ बुरा नहीं होता, तब तक वे आराम से बैठे रहते हैं। वे निष्ठारहित होते हैं, जो मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार से निर्धारित होता है। मुख्यभूमि चीन के परिवेश में क्या अपना कर्तव्य करते समय कोई भी जोखिम उठाने से बचना और यह पक्का करना मुमकिन है कि कुछ भी बुरा न हो? सबसे सतर्क व्यक्ति भी यह गारंटी नहीं दे सकता। मगर सतर्कता जरूरी है। पहले से अच्छी तरह तैयार होने से चीजें थोड़ी बेहतर होंगी और कुछ गलत होने पर नुकसान को कम करने में मदद मिल सकेगी। अगर कोई तैयारी नहीं है तो नुकसान बड़ा होगा। क्या तुम इन दो स्थितियों के बीच अंतर को स्पष्ट रूप से देख सकते हो? इसलिए चाहे सभाओं की बात हो या किसी तरह का कर्तव्य निभाने की, सतर्क रहना सबसे अच्छा है और कुछ बचाव के उपाय करना जरूरी है। जब कोई निष्ठावान व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाता है तो वह थोड़ा और समग्र रूप से और अच्छी तरह से सोच सकता है। वह इन चीजों को जितना हो सके उतना व्यवस्थित करना चाहता है ताकि अगर कुछ गलत हो जाए तो नुकसान कम से कम हो। उसे लगता है कि यह नतीजा हासिल करना जरूरी है। जिस व्यक्ति में निष्ठा नहीं है वह इन चीजों के बारे में नहीं सोचता। उसे ये चीजें जरूरी नहीं लगती हैं और वह उन्हें अपनी जिम्मेदारी या कर्तव्य नहीं मानता। जब कुछ गलत हो जाता है तो वह बिल्कुल भी दोषी महसूस नहीं करता। यह निष्ठा की कमी की अभिव्यक्ति है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के प्रति कोई निष्ठा नहीं दिखाते। जब उन्हें काम सौंपा जाता है तो वे इसे बहुत खुशी से स्वीकार लेते हैं और कुछ अच्छी घोषणाएँ करते हैं, मगर जब खतरा आता है तो वे सबसे तेजी से भागते हैं; सबसे पहले भागने वाले, सबसे पहले बचकर निकलने वाले वही होते हैं। इससे पता चलता है कि उनका स्वार्थ और घिनौनापन बहुत गंभीर है। उन्हें जिम्मेदारी या निष्ठा का कोई एहसास नहीं है। जब किसी समस्या का सामना करना पड़ता है तो वे केवल भागना और छिपना जानते हैं, और वे सिर्फ खुद को बचाने के बारे में सोचते हैं, कभी अपनी जिम्मेदारियों या कर्तव्यों पर विचार नहीं करते। अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की खातिर मसीह-विरोधी लगातार अपनी स्वार्थी और घिनौनी प्रकृति दिखाते हैं। वे परमेश्वर के घर के काम या अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता नहीं देते। वे परमेश्वर के घर के हितों को तो और भी कम प्राथमिकता देते हैं। इसके बजाय, वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर उजागर करता है कि मसीह-विरोधी वाकई स्वार्थी और घृणित होते हैं और जब खतरा आता है तो सबसे पहले वही भागते और बच निकलते हैं, मानो उन्हें परमेश्वर के घर के कार्य, परमेश्वर के घर के हितों और भाई-बहनों के जीवन से कोई सरोकार न हो। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मैंने आत्म-चिंतन किया। मैंने जो चीजें प्रकट की हैं क्या वे बिल्कुल एक मसीह-विरोधी की चीजों जैसी नहीं हैं? जब अगुआओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, कलीसिया ने मेरे लिए व्यवस्था की कि मैं आकर परमेश्वर के वचनों की किताबें स्थानांतरित करूँ और भाई-बहनों को सहारा दूँ। यह महत्वपूर्ण था, लेकिन मुझे चिंता थी कि अगर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया, मैं अडिग नहीं रह पाई और यहूदा बन गई तो मेरी आस्था व्यर्थ हो जाएगी। इसलिए मैं यह कर्तव्य नहीं करना चाहती थी। मुझे ख्याल आया कि कैसे मैंने परमेश्वर के इतने सारे वचनों के सिंचन और प्रावधान का आनंद लिया है, फिर भी मुश्किलें सामने आने पर मैंने केवल अपने हितों और सुरक्षा के बारे में सोचा, परमेश्वर के घर के हितों की बिल्कुल भी रक्षा नहीं की, मैंने यह नहीं सोचा कि परमेश्वर के वचनों की किताबों को जल्दी से कैसे स्थानांतरित किया जाए या भाई-बहनों को कैसे सहारा दिया जाए। मेरे अंदर वाकई अंतरात्मा और मानवता की कमी थी! यह एहसास होने पर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मुझे हमेशा गिरफ्तार होने की चिंता रहती है, मैं लगातार इस परिवेश से भागना चाहती हूँ और कलीसिया के हितों की अनदेखी करना चाहती हूँ। मैं वाकई स्वार्थी हूँ! परमेश्वर, मुझे गिरफ्तार किया जाएगा या नहीं, यह तुम्हारे हाथों में है। अगर तुम मुझे गिरफ्तार होने की अनुमति देते हो तो मैं भाग नहीं पाऊँगी, लेकिन अगर तुम मुझे गिरफ्तार करने की अनुमति नहीं दोगे तो पुलिस मुझे पकड़ नहीं सकती। मैं तुम्हारे आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने और अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए तैयार हूँ। मुझे आस्था और कष्ट सहने की इच्छाशक्ति दो।” बाद में मुझे पता चला कि हे फेंग के घर यहूदा झांग फेन नहीं गई थी, इसलिए मैंने कई भाई-बहनों से वहाँ सभा करने के लिए कहा। परमेश्वर के वचन पढ़ने और एक साथ संगति करने के माध्यम से भाई-बहनों को समझ में आया कि उत्पीड़न और क्लेश के बीच अनुभव करने के लिए परमेश्वर पर कैसे निर्भर हुआ जाए। सभी ने कुछ आस्था हासिल की और अपने कर्तव्य करने के लिए तैयार हो गए। परमेश्वर के वचनों की किताबें भी सुरक्षित रूप से स्थानांतरित कर दी गईं।

नवंबर 2023 की एक दोपहर मुझे उच्च अगुआओं से एक पत्र मिला, जिसमें कहा गया था कि मेरे गृहनगर की कलीसिया के अगुआओं और कई बहनों से संपर्क टूट चुका है और बहुत संभव है कि इसकी वजह उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाना हो और इसलिए वे कह रहे थे कि मैं जाकर स्थिति की जाँच करूँ और अगर कुछ हुआ हो तो अनुवर्ती स्थिति सँभालूँ और चढ़ावा और परमेश्वर के वचनों की किताबें स्थानांतरित करूँ। मैं दुविधा में पड़ गई, सोचने लगी “उस कलीसिया का परिवेश बहुत भयानक है और जिन भाई-बहनों से संपर्क टूट गया है, वे सभी मुझे जानते हैं। अगर उन्हें गिरफ्तार किया जा चुका है तो क्या मुझे भी फँसाया जा सकता है? मेरे लिए अनुवर्ती स्थिति सँभालना बहुत खतरनाक होगा!” मैं जाने के लिए अनिच्छुक थी। बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “कुछ कलीसियाओं के इर्द-गिर्द शत्रुतापूर्ण वातावरण है जिसमें लोगों को अक्सर गिरफ्तार कर लिया जाता है और इस वजह से इस बात की बड़ी संभावना रहती है कि जिन घरों में भेंटें सुरक्षित रखी गई हों उन स्थानों का विश्वासघात कर भेद बता दिया जाए और यहाँ बड़ा लाल अजगर छापे मार ले और तलाशी ले ले—भेंटें किसी भी समय बुरे राक्षसों द्वारा लूटी जा सकती हैं। क्या ऐसे स्थान भेंटें रखने के लिए उपयुक्त हैं? (नहीं।) ऐसे में अगर वे पहले से ही वहाँ रखी हैं तो क्या करें? उन्हें तुरंत किसी दूसरी जगह भेज दो। ... जब कोई स्थिति अभी-अभी उत्पन्न हुई हो और वे ताड़ लें कि भेंटें खतरे में है तो उन्हें तुरंत हटा देना चाहिए, ताकि उन्हें बड़े लाल अजगर, बुरे दानव के कब्जे में जाने और हड़पने से बचाया जा सके। भेंटों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसी भी तरह की गड़बड़ी या चूक से बचने का यही एकमात्र तरीका है। यह वह काम है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। जैसे ही खतरे का थोड़ा-सा भी संकेत मिले, जैसे ही किसी को गिरफ्तार किया जाए, जैसे ही कोई स्थिति उत्पन्न हो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले सोचना चाहिए कि क्या भेंटें सुरक्षित हैं, क्या वे दुष्ट लोगों के हाथों में पड़ सकती हैं या दुष्ट लोग उन पर कब्जा कर सकते हैं, या बुरे राक्षस छीनकर ले जा सकते हैं और क्या भेंटों को कोई नुकसान हुआ है। उन्हें भेंटों की सुरक्षा के कदम तुरंत उठाने चाहिए। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (12))। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे समझ आया कि परमेश्वर के वचनों की किताबों और चढ़ावों की रक्षा करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। चूँकि सीसीपी मेरे गृहनगर में कलीसिया पर नकेल कस रही थी और कोई भी अनुवर्ती स्थिति को नहीं सँभाल रहा था और मैं उस कलीसिया से अपेक्षाकृत परिचित थी, मुझे परमेश्वर के इरादे पर विचार करना था और कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी थी। अगर मैं गिरफ्तार होने के डर से अनुवर्ती स्थिति सँभालने से बचती, अगर चढ़ावों और किताबों को बड़ा लाल अजगर छीन लेता तो मैं बुराई कर रही होती। यह एहसास होने पर मैं उसी शाम अपने गृहनगर की कलीसिया में वापस आ गई।

वापस आने के बाद मुझे पता चला कि कलीसिया के अगुआओं को वाकई गिरफ्तार कर लिया गया था और अन्य भाई-बहनों को भी लगातार गिरफ्तार किया जा रहा था। भंडारण के लिए कुछ घरों में रखी किताबों को तत्काल स्थानांतरित करने की जरूरत थी, लेकिन मुझे उस समय कोई उपयुक्त स्थान नहीं मिल पाया, इसलिए मैं मुश्किल स्थिति में थी। बाद में मैंने अनुभवजन्य गवाही वीडियो “दोहरी मुसीबत के दौरान इम्तहान” देखा और उस बहन का अनुभव मेरे लिए बहुत उन्नतिप्रद था। बहन पुलिस की गिरफ्तारी और महामारी के कारण लॉकडाउन की दोहरी मुसीबत का सामना कर रही थी, फिर भी अपना कर्तव्य करने पर अड़ी रही। मेरा वर्तमान परिवेश उतना गंभीर नहीं था, इसलिए मुझे अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करने के लिए परमेश्वर पर और भी अधिक निर्भर होने की जरूरत थी। कुछ ही समय बाद उच्च अगुआओं ने एक पत्र भेजा जिसमें कहा गया था कि दूसरी कलीसिया में भंडारण के लिए एक घर मिल गया है, इसलिए हमने जल्दी से परमेश्वर के वचनों की किताबें वहाँ स्थानांतरित करने के लिए एक गाड़ी की व्यवस्था की। उसके बाद भाई-बहनों के सहयोग से चढ़ावे और परमेश्वर के वचनों की किताबों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया। इस अनुभव के माध्यम से मुझे कुछ आस्था मिली और समझ में आया कि परिवेश चाहे कितना भी भयानक क्यों न हो, अपने कर्तव्य में दृढ़ रहना और कलीसिया के कार्य की रक्षा करना ही वह कार्य है जो एक सृजित प्राणी को करना चाहिए। परमेश्वर का धन्यवाद!

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