अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है

कलीसिया का अगुआ होने के नाते तुम्‍हें समस्याएँ सुलझाने के लिए केवल सत्य का प्रयोग सीखने की आवश्‍यकता ही नहीं है, बल्कि प्रतिभाशाली लोगों का पता लगाने और उन्‍हें विकसित करना सीखने की आवश्‍यकता भी है, जिनसे तुम्‍हें बिल्कुल ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए या जिनका बिल्कुल दमन नहीं करना चाहिए। इस तरह अभ्यास करना कलीसिया के कार्य के लिए लाभकारी है। अगर तुम अपने साथ सहयोग करने के लिए सत्य के कुछ अनुसरणकर्ताओं को विकसित कर सकते हो और सारा काम अच्छे से कर सकते हो और अंत में तुम सबके पास अनुभवजन्‍य गवाहियाँ होती हैं तो फिर तुम एक मानक स्तर के अगुआ या कार्यकर्ता हो। यदि तुम हर चीज सिद्धांतों के अनुसार सँभाल सको, तो तुम अपनी वफादारी अर्पित कर रहे हो। कुछ लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊपर हैं, अन्‍य लोगों को पहचान मिलेगी, जबकि उन्हें अनदेखा किया जाता है, और इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या यह स्‍वार्थपूर्ण और निंदनीय नहीं है? यह कैसा स्वभाव है? यह दुर्भावना है। जो लोग दूसरों के बारे में सोचे बिना या परमेश्वर के घर के हितों को ध्‍यान में रखे बिना केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, जो केवल अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, वे बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर में उनके लिए कोई प्र‍ेम नहीं होता। अगर तुम परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखाने में वाकई समर्थ हो तो तुम दूसरे लोगों से निष्पक्ष ढंग से पेश आने में सक्षम होगे। अगर तुम किसी अच्छे व्यक्ति की सिफारिश करते हो और उसे प्रशिक्षित होने और कोई कर्तव्य निर्वहन करने देते हो, और इस तरह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को परमेश्वर के घर में शामिल करते हो, तो क्या उससे तुम्‍हारा काम और आसान नहीं हो जाएगा? तब क्या तुम अपने कर्तव्‍य में वफादारी नहीं दिखा रहे होगे? यह परमेश्वर के समक्ष एक अच्छा कर्म है; यह वह न्यूनतम अंतरात्मा और विवेक है जो अगुआ के रूप में कार्य करने वालों के पास होना चाहिए। जो लोग सत्य को अभ्‍यास में लाने में समर्थ हैं वे जो चीजें करते हैं उनमें परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकार कर सकते हैं। परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकार करते हो तो तुम्‍हारा हृदय सही हो जाएगा। यदि तुम हमेशा दूसरों को दिखाने के लिए ही चीजें करते हो और हमेशा दूसरों की प्रशंसा और सराहना प्राप्त करना चाहते हो और परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकार नहीं करते हो तो क्या तब भी परमेश्वर तुम्‍हारे हृदय में है? ऐसे लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं होता। हमेशा अपने लिए कार्य मत करो, हमेशा अपने हितों की मत सोचो, इंसान के हितों पर ध्यान मत दो, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और रुतबे पर विचार मत करो। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम समर्पित रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीजों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्‍हारे लिए अपना कर्तव्‍य अच्‍छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा। अगर तुम्‍हारे पास ज्यादा काबिलियत नहीं है, अगर तुम्‍हारा अनुभव उथला है, या अगर तुम अपने पेशेवर कार्य में दक्ष नहीं हो, तब तुम्‍हारे कार्य में कुछ गलतियाँ या कमियाँ हो सकती हैं, हो सकता है कि तुम्‍हें अच्‍छे परिणाम न मिलें—पर तब तुमने अपना सर्वश्रेष्‍ठ दिया होगा। तुम अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाएँ या प्राथमिकताएँ पूरी नहीं करते। इसके बजाय, तुम लगातार कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हो। यूँ तो हो सकता है कि तुम अपने कर्तव्‍य में अच्छे नतीजे प्राप्त न करो, फिर भी तुम्‍हारा दिल दुरुस्त हो चुका होगा; इसके अलावा अगर तुम अपने कर्तव्य में समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य खोज सकते हो तो तुम अपने कर्तव्‍य निर्वहन में मानक स्तर के होओगे और साथ ही तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर पाओगे। किसी के पास गवाही होने का यही अर्थ है।

कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास तो करते हैं, लेकिन सत्य का अनुसरण नहीं करते। वे हमेशा देह के अनुसार जीते हैं, दैहिक सुखों के लिए ललचाते हैं, हमेशा अपनी स्वार्थपूर्ण कामनाओं को तुष्ट करते हैं। वे चाहे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास करें, वे कभी भी सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं करेंगे। यह परमेश्वर को शर्मिंदा करने का संकेत है। तुम कहते हो, “मैंने परमेश्वर के प्रतिरोध जैसा कुछ नहीं किया। मैंने उसे शर्मिंदा कैसे कर दिया?” तुम्‍हारे सभी विचार और सोच दुष्टतापूर्ण हैं। तुम जो करते हो उसके पीछे की मंशाएँ, लक्ष्‍य और उद्देश्‍य और तुम्‍हारे क्रियाकलापों के परिणाम हमेशा शैतान को संतुष्‍ट करते हैं, तुम्हें उपहास का पात्र बनाते हैं और उसे तुम्हारी कमजोरी लपकने देते हैं। तुमने एक भी गवाही नहीं दी है जो एक ईसाई को देनी चाहिए। तुम शैतान के हो। तुम सभी चीजों में परमेश्वर का नाम बदनाम करते हो और तुम्‍हारे पास सच्ची गवाही नहीं है। क्या परमेश्वर तुम्‍हारे द्वारा किए गए कृत्यों को याद रखेगा? अंत में परमेश्वर तुम्‍हारे सभी क्रियाकलापों, व्‍यवहार और उन कर्तव्‍यों के बारे में क्या निष्कर्ष निकालेगा जो तुम निभा चुके हो? क्या उसका कोई नतीजा नहीं निकलना चाहिए, किसी प्रकार का कोई वक्तव्य नहीं आना चाहिए? बाइबल में, प्रभु यीशु कहता है, “उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए?’ तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, ‘मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ’” (मत्ती 7:22-23)। प्रभु यीशु ने ऐसा क्यों कहा? धर्मोपदेश देने, दुष्टात्माओं को निकालने और प्रभु के नाम पर इतने चमत्कार करने वालों में से इतने सारे लोग कुकर्मी क्यों हो गए? इसका कारण यह था कि उन्होंने प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त किए गए सत्‍यों को स्वीकार नहीं किया, उन्‍होंने उसकी आज्ञाओं का पालन नहीं किया, और सत्य के लिए उनके दिल में कोई प्रेम नहीं था। वे सिर्फ प्रभु के लिए किए गए अपने काम, उठाए गए कष्टों और त्यागों के बदले में स्वर्ग के राज्य के आशीष चाहते थे। ऐसा करके, वे परमेश्वर के साथ एक सौदा करने की कोशिश कर रहे थे, और वे परमेश्वर का इस्तेमाल करने और परमेश्वर को धोखा देने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए प्रभु यीशु उनसे घिनाता था, उनसे घृणा करता था और उनकी कुकर्मियों के रूप में निंदा करता था। आज लोग परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन कुछ अब भी नाम और रुतबे के पीछे भागते हैं, और हमेशा विशिष्ट दिखना चाहते हैं, हमेशा अगुआ और कार्यकर्ता बनना और नाम और रुतबा पाना चाहते हैं। हालाँकि वे सभी कहते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, और वे परमेश्वर के लिए चीजों को छोड़ देते हैं और खपते हैं, पर वे कीर्ति, लाभ और रुतबा पाने के लिए ही अपने कर्तव्य निर्वहन करते हैं और उनके सामने हमेशा निजी योजनाएँ रहती हैं। वे परमेश्वर के प्रति समर्पित या वफादार नहीं हैं, वे थोड़ा भी आत्मचिंतन किए बिना अनियंत्रित रूप से बुरी चीजें कर सकते हैं, इसलिए वे कुकर्मी बन जाते हैं। परमेश्वर इन कुकर्मियों से घृणा करता है, और उन्हें बचाता नहीं है। वह मानक क्या है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के कर्मों को अच्छे या बुरे के रूप में आँका जाता है? वह यह है कि वह अपने विचारों, प्रकाशनों और कार्यों में सत्य को व्यवहार में लाने और सत्य वास्तविकता को जीने की गवाही रखता है या नहीं। यदि तुम्‍हारे पास यह वास्तविकता नहीं है या तुम इसे नहीं जीते, तो बेशक, तुम एक कुकर्मी हो। परमेश्वर कुकर्मियों को कैसे देखता है? परमेश्वर के लिए, तुम्‍हारे विचार और बाहरी कर्म परमेश्वर की गवाही नहीं देते, न ही वे शैतान को शर्मिंदा करते या उसे हराते हैं; बल्कि वे परमेश्वर को शर्मिंदा करते हैं और उस अपमान के निशानों से भरे हुए हैं जो तुमने परमेश्वर का किया है। तुम परमेश्वर के लिए गवाही नहीं दे रहे, न ही तुम परमेश्वर के लिए खुद को खपा रहे हो, तुम परमेश्वर के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों को भी पूरा नहीं कर रहे; बल्कि अपने फायदे के लिए काम कर रहे हो। “अपने फायदे के लिए” इसका क्या मतलब है? इसका सही-सही मतलब है, शैतान के फायदे के लिए काम करना। इसलिए अंत में परमेश्वर यही कहेगा, “हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।” परमेश्वर की नजर में तुम्‍हारे कार्यों को अच्‍छे कर्मों के रूप में नहीं देखा जाएगा, बल्कि उन्‍हें बुरे कर्म माना जाएगा। उन्‍हें न केवल परमेश्वर की स्वीकृति हासिल नहीं होगी—बल्कि उनकी निंदा भी की जाएगी। परमेश्वर में ऐसे विश्‍वास से कोई क्‍या हासिल करने की आशा कर सकता है? क्या इस तरह का विश्‍वास अंततः व्‍यर्थ नहीं हो जाएगा?

अपने कर्तव्य को निभाने वाले सभी लोगों के लिए, फिर चाहे सत्य को लेकर उनकी समझ कितनी भी उथली या गहरी क्यों न हो, सत्य वास्तविकता में प्रवेश के अभ्यास का सबसे सरल तरीका यह है कि हर काम में परमेश्वर के घर के हित के बारे में सोचा जाए, और अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं, व्यक्तिगत मंशाओं, अभिप्रेरणाओं, घमंड और रुतबे का त्याग किया जाए। परमेश्वर के घर के हितों को सबसे आगे रखो—कम से कम इतना तो व्यक्ति को करना ही चाहिए। अपना कर्तव्य निभाने वाला कोई व्यक्ति अगर इतना भी नहीं कर सकता, तो उस व्यक्ति को कर्तव्य निभाने वाला कैसे कहा जा सकता है? यह अपना कर्तव्य निभाना नहीं है। तुम्‍हें पहले परमेश्वर के घर के हितों के बारे में सोचना चाहिए, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना चाहिए, और कलीसिया के कार्य का ध्यान रखना चाहिए। इन चीजों को पहले स्थान पर रखना चाहिए; उसके बाद ही तुम अपनी रुतबे की स्थिरता या दूसरे लोग तुम्‍हारे बारे में क्या सोचते हैं, इसकी चिंता कर सकते हो। क्या तुम लोगों को नहीं लगता कि जब तुम इसे दो चरणों में बाँट देते हो और कुछ समझौते कर लेते हो तो यह थोड़ा आसान हो जाता है? यदि तुम कुछ समय के लिए इस तरह अभ्यास करते हो, तो तुम यह अनुभव करने लगोगे कि परमेश्वर को संतुष्ट करना इतना भी मुश्किल काम नहीं है। इसके अलावा, तुम्‍हें अपनी जिम्मेदारियाँ, अपने दायित्व और कर्तव्य पूरे करने चाहिए, और अपनी स्वार्थी इच्छाओं, मंशाओं और उद्देश्‍यों को दूर रखना चाहिए, तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखानी चाहिए, और परमेश्वर के घर के हितों को, कलीसिया के कार्य को और जो कर्तव्य तुम्हें निभाना चाहिए, उसे पहले स्थान पर रखना चाहिए। कुछ समय तक ऐसे अनुभव के बाद, तुम पाओगे कि यह आचरण का एक अच्छा तरीका है। यह सरलता और ईमानदारी से जीना और नीच और भ्रष्‍ट व्‍यक्ति न होना है; यह कायर, घृणित और नीच होने की बजाय न्यायसंगत और सम्मानित ढंग से जीना है। तुम पाओगे कि किसी व्यक्ति को ऐसे ही कार्य करना चाहिए और ऐसी ही छवि को जीना चाहिए। धीरे-धीरे, अपने हितों को तुष्‍ट करने की तुम्‍हारी इच्छा घटती चली जाएगी। इस समय, भले ही तुम लोग कितने ही वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करते रहे हो, लेकिन सत्य का अनुसरण करने, सत्य का अभ्यास करने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश से संबंधित सबकों में तुम्‍हारे प्रवेश और अनुभव में गहराई की कमी है, और तुम्हें उनका कोई सच्चा अनुभव नहीं है, इसलिए तुम सच्ची गवाही नहीं दे सकते। अब मैंने तुम लोगों को यह सरल-सा तरीका बता दिया है : इस तरह के अभ्‍यास के साथ शुरुआत करो, और जब एक बार तुम कुछ समय तक ऐसा कर लोगे, तो तुम लोगों की आंतरिक अवस्‍था बदलने लगेगी और तुम्‍हें पता भी नहीं चलेगा। यह उस दुविधापूर्ण अवस्‍था, जिसमें तुम न तो परमेश्वर में विश्‍वास करने में बहुत अधिक रुचि रखते हो और न ही उस अवस्‍था से बहुत अधिक विमुख होते हो, से उस अवस्‍था में बदल जाएगी जिसमें तुम्‍हें लगेगा कि परमेश्वर में विश्‍वास करना और एक ईमानदार इंसान होना अच्‍छी चीजें हैं, और जिसमें एक ईमानदार इंसान होने में तुम्‍हारी रुचि होगी और तुम्‍हें लगेगा कि इस तरह जीवन जीना अर्थपूर्ण और पुष्टिकर है। तुम स्थिर, शान्‍त और अपने हृदय में आनंद महसूस करोगे। तुम इस अवस्‍था में आ जाओगे। अपनी मंशाओं, हितों और स्‍वार्थपूर्ण इच्‍छाओं को छोड़ देने पर यह परिणाम प्राप्‍त होता है। यह उसका परिणाम है। यह आंशिक रूप से मानवीय सहयोग का नतीजा है और आंशिक रूप से पवित्र आत्‍मा के कार्य का नतीजा है। पवित्र आत्मा लोगों के सहयोग के बिना कार्य नहीं करेगा। सभी लोगों के भीतर कुछ गलत अवस्थाएँ होती हैं, जैसे नकारात्मकता, कमजोरी, निराशा और भंगुरता; या उनकी कुछ नीचतापूर्ण मंशाएँ होती हैं; या वे लगातार अपने घमंड, स्वार्थपूर्ण इच्छाओं और निजी हितों से परेशान रहते हैं; या वे स्‍वयं को कम काबिलियत वाला समझते हैं, और कुछ नकारात्मक दशाओं का अनुभव करते हैं। यदि तुम हमेशा इन अवस्‍थाओं में रहते हो तो तुम्‍हारे लिए पवित्र आत्‍मा के कार्य को प्राप्‍त करना बहुत कठिन होगा। यदि तुम्‍हारे लिए पवित्र आत्‍मा के कार्य को प्राप्‍त करना कठिन हो जाता है, तो तुम्‍हारे भीतर सकारात्मक तत्‍व कम होंगे और नकारात्मक तत्‍व बाहर आकर तुम्‍हें परेशान करेंगे। इन नकारात्‍मक अवस्‍थाओं के दमन के लिए लोग हमेशा अपनी इच्‍छा पर निर्भर रहते हैं, लेकिन वे इनका कैसे भी दमन क्‍यों न करें, इनसे छुटकारा नहीं पा सकते। इसका मुख्‍य कारण यह है कि लोग इन नकारात्‍मक चीजों का भेद पूरी तरह पहचान नहीं सकते हैं; वे अपने सार को स्‍पष्‍ट रूप से नहीं देख सकते हैं। इस कारण उनके लिए देह और शैतान के खिलाफ विद्रोह करना बहुत कठिन हो जाता है। साथ ही, लोग हमेशा इन नकारात्मक, विषादपूर्ण और पतनशील दशाओं में फँस जाते हैं और वे परमेश्वर से प्रार्थना या उसका आदर नहीं करते हैं, बल्कि बस खानापूरी करते हैं। परिणामस्‍वरूप, पवित्र आत्‍मा उनमें कार्य नहीं करता, और अंततः वे सत्‍य को समझने में अक्षम रहते हैं, वे जो भी करते हैं उसमें उन्‍हें रास्‍ता नहीं मिलता, और वे किसी भी मामले को स्‍पष्‍टता से नहीं देख पाते। तुम्‍हारे भीतर बहुत-सी नकारात्‍मक चीजें हैं और वे तुम्‍हारे हृदय में भर गई हैं, इसलिए तुम अक्‍सर नकारात्‍मक, विषादपूर्ण चित्‍त वाले और परमेश्वर से दूर, और दूर और पहले से भी अधिक कमजोर होते जाते हो। यदि तुम पवित्र आत्‍मा के प्रबोधन और कार्य को प्राप्‍त नहीं कर सकते, तो तुम इन अवस्‍थाओं से बच नहीं पाओगे, और तुम्‍हारी नकारात्‍मक अवस्‍था नहीं बदलेगी, क्‍योंकि यदि तुम्‍हारे भीतर पवित्र आत्‍मा कार्य नहीं कर रहा है, तो तुम रास्‍ता नहीं खोज पाओगे। इन दो कारणों के चलते, तुम्‍हारे लिए अपनी नकारात्‍मक अवस्‍था को त्‍यागकर सामान्‍य अवस्‍था में प्रवेश करना बहुत कठिन है। हालाँकि, जब तुम लोग अपना कर्तव्‍य निभाते हो तो कठिनाई का सामना करते हो, कड़ी मेहनत करते हो, बहुत प्रयास करते हो, अपना परिवार और करियर भी छोड़ देते हो और सब कुछ त्‍याग देते हो, तब भी तुम्‍हारे भीतर की नकारात्‍मक अवस्‍थाएँ रूपांतरित नहीं हो पातीं। ऐसे बहुत-से बंधन हैं जो तुम लोगों को सत्‍य का अनुसरण और अभ्‍यास करने से रोकते हैं, जैसे, तुम्‍हारी धारणाएँ, कल्‍पनाएँ, ज्ञान, सांसारिक आचरण के फलसफे, स्‍वार्थपूर्ण इच्‍छाएँ और भ्रष्‍ट स्‍वभाव। ये प्रतिकूल चीजें तुम लोगों के हृदय में समा गई हैं। युवा होने के बावजूद तुम लोगों के विचार बहुत जटिल हैं। तुम लोग मेरे हर शब्‍द और अभिव्‍यक्ति का निरीक्षण और अध्‍ययन करते हो, फिर उन पर निरंतर विचार करते रहते हो। ऐसा क्‍यों है? तुम लोग कई वर्षों से परमेश्वर का अनुसरण कर रहे हो, लेकिन मैंने अभी तक तुम लोगों में कोई प्रगति या परिवर्तन नहीं देखा है। लोगों के हृदय पूरी तरह से शैतानी चीजों से भरे हुए हैं। यह सभी को स्‍पष्‍ट रूप से दिखाई देता है। यदि तुम इन चीजों को अपने भीतर से नहीं निकाल फेंकते, यदि तुम इन नकारात्मक अवस्‍थाओं का त्‍याग नहीं करोगे, तो तुम स्‍वयं को रूपांतरित करके एक बच्‍चे के समान नहीं बन पाओगे और जीवंत, प्‍यारे, मासूम, सरल, सत्‍यपूर्ण और निश्‍छल रूप में परमेश्वर के सामने नहीं आ पाओगे। तब तुम्‍हारे लिए पवित्र आत्‍मा का कार्य या सत्‍य प्राप्‍त करना कठिन हो जाएगा।

इस समय, तुम लोगों के पास कुछ अच्‍छे गुण हैं जिनके कारण तुम्‍हारी अनुशंसा की जा सकती है, जैसे, दुःख भोगने का संकल्प और आस्था। इन अच्‍छे गुणों ने तुम सभी को बचा लिया है। यदि तुम्‍हारे पास ये गुण—कठिनाइयाँ भोगने का तुम्‍हारा संकल्प और स्‍वयं को परमेश्वर के लिए खपाने की सच्ची आस्था—न होते तो तुम्‍हारे पास अपना कर्तव्‍य निभाने की कोई प्रेरणाशक्ति नहीं होती और तुम आज तक अडिग न रह पाते। कुछ लोग थोड़े समय के लिए अपना कर्तव्‍य निभाते हैं, लेकिन चूँकि उनकी सत्‍य में रुचि नहीं होती और उन्‍हें कर्तव्‍य निभाने से कोई लाभ नहीं होता, वे कार्य करने, पैसा बनाने और शादी करने के लिए सांसारिकता में लौट जाते हैं। वे सोचते हैं कि बिना कोई नतीजे पाए यहाँ निठल्ले समय गँवाना उनकी जवानी, उनके सर्वश्रेष्‍ठ वर्षों और उनके जीवन की बरबादी है। ये लोग बेनकाब हो चुके छद्म-विश्‍वासी होते हैं। परमेश्वर के लिए स्‍वयं को गंभीरता से खपाने वाले ही अपने कर्तव्‍य पर कायम और दृढ़ बने रह सकते हैं। इस समय, तुम सभी अपने कर्तव्यों का पूर्णकालिक निर्वहन करते हो। तुम परिवार, विवाह या धन-संपत्ति से बेबस या उनके बंधन में नहीं हो। तुम पहले ही इन चीजों से ऊपर उठ चुके हो। लेकिन, तुम्हारे दिमाग में जो धारणाएँ, कल्पनाएँ, जानकारियाँ, और निजी मंशाएँ व इच्छाएँ भरी हुई हैं, वे पूरी तरह से यथावत् बनी हुई हैं। तो, जैसे ही कोई ऐसी बात आती है जिसमें प्रतिष्‍ठा, रुतबे या विशिष्‍ट दिखने का अवसर सम्मिलित हो—उदाहरण के तौर पर, जब तुम लोग सुनते हो कि परमेश्वर के घर की योजना विभिन्‍न प्रकार के प्रतिभावान व्‍यक्तियों को विकसित करने की है—तुममें से हर किसी का दिल प्रत्याशा में उछलने लगता है, तुममें से हर कोई हमेशा अपना नाम करना चाहता है और सुर्खियों में आना चाहता है। तुम सभी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए लड़ना चाहते हो। तुम्‍हें इस पर शर्मिंदगी भी महसूस होती है, पर ऐसा न करने पर तुम्‍हें बुरा महसूस होगा। जब तुम्‍हें कोई व्यक्ति भीड़ से अलग दिखता है, तो तुम उससे ईर्ष्‍या व घृणा महसूस करते हो और उसकी शिकायत करते हो, और तुम सोचते हो कि यह अन्‍याय है : “मैं भीड़ से अलग क्‍यों नहीं हो सकता? हमेशा दूसरे लोग ही क्‍यों सुर्खियों में आ जाते हैं? कभी मेरी बारी क्यों नहीं आती?” और रोष महसूस करने पर तुम उसे दबाने की कोशिश करते हो, लेकिन ऐसा नहीं कर पाते। तुम परमेश्वर से प्रार्थना करते हो और कुछ समय के लिए बेहतर महसूस करते हो, लेकिन जब तुम्‍हारा सामना दुबारा ऐसी ही परिस्‍थिति से होता है, तो तुम फिर भी उसे नियंत्रित नहीं कर पाते। क्या यह एक अपरिपक्व आध्‍यात्मिक कद का प्रकटीकरण नहीं है? जब लोग ऐसी स्थितियों में फँस जाते हैं, तो क्या वे शैतान के जाल में नहीं फँस गए हैं? ये शैतान की भ्रष्ट प्रकृति के बंधन हैं जो इंसानों को बाँध देते हैं। यदि लोग इन भ्रष्ट स्वभावों को त्याग दें, तो क्या वे स्वतंत्र और मुक्त महसूस नहीं करेंगे? इस बारे में सोचो : यदि तुम कीर्ति और लाभ के लिए होड़ की इन अवस्‍थाओं में फँसने से बचना चाहते हो—इन भ्रष्‍ट अवस्‍थाओं से स्‍वयं को आजाद करने और स्‍वयं को कीर्ति, लाभ और रुतबे के तनाव और बंधन से मुक्‍त करने के लिए—तो तुम्हें कौन-से सत्य समझने चाहिए? स्वतंत्रता और मुक्ति पाने के लिए तुममें कौन-सी सत्य वास्‍तविकताएँ होनी चाहिए? पहले तो तुम्हें यह देखना चाहिए कि शैतान लोगों को भ्रष्ट करने के लिए, उन्हें फँसाने, उन्हें चोट पहुँचाने, उन्हें नीचा दिखाने और पाप में झोंकने के लिए प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे का इस्तेमाल करता है; इसके अलावा, केवल सत्य स्वीकारकर ही लोग कीर्ति, लाभ और रुतबे का त्‍याग कर सकते हैं और उन्‍हें दर-किनार कर सकते हैं। इन चीजों को दरकिनार करना किसी के लिए भी अत्‍यंत कठिन है, फिर चाहे वह युवा हो या वृद्ध, नया हो या कोई पुराना विश्‍वासी। हालाँकि कुछ लोग अंतर्मुखी होते हैं और वे कुछ अधिक कहते हुए नहीं नजर आते, लेकिन उन्‍होंने अपने हृदय में अन्‍य लोगों से अधिक परेशानियों को स्‍थान दिया होता है। प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे का त्‍याग सभी के लिए कठिन है; कोई भी इन चीजों के लालच पर नियंत्रण नहीं पा सकता—लोगों की आंतरिक दशाएँ बिल्कुल एक जैसी होती हैं। शैतान ने कीर्ति और लाभ का प्रयोग करके ही इंसान को भ्रष्‍ट किया है; हजारों वर्षों से पारंपरिक संस्‍कृति ने लोगों में इन्‍हीं चीजों को रोपित किया है। इसलिए, इंसान की भ्रष्‍ट प्रकृति प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे से प्रेम करती है और इन्हीं का अनुसरण करती है, बस अंतर इतना है कि इनका अनुसरण करने और इन्‍हें अभिव्‍यक्‍त करने के विभिन्न लोगों के तरीके अलग-अलग होते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इनके बारे में कभी बात नहीं करते, और इन्‍हें अपने हृदय में छिपाकर रखते हैं, जबकि कुछ अन्‍य लोग इन्‍हें शब्‍दों में प्रकट कर देते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इन चीजों के लिए बेझिझक लड़ाई कर लेंगे, जबकि ऐसे लोग भी हैं जो इनके लिए लड़ाई नहीं करते, लेकिन निजी तौर पर वे शिकायत करते हैं, बड़बड़ाते हैं और चीजें तोड़ देते हैं। हालाँकि, इसका प्रकटन अलग-अलग लोगों में अलग-अलग तरह से होता है, लेकिन उनके स्‍वभाव बिल्‍कुल एक जैसे होते हैं। वे सभी भ्रष्‍ट इंसान हैं जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं। यदि तुम हमेशा कीर्ति, लाभ और रुतबे पर ध्‍यान केंद्रित करते हो, यदि तुम इन चीजों को बहुत महत्‍व देते हो, यदि ये तुम्‍हारे हृदय में बसती हैं, और यदि तुम इन्‍हें त्‍यागने के इच्‍छुक नहीं हो, तो तुम इनके द्वारा नियंत्रित होकर इनके बंधन में आ जाओगे। तुम इनके गुलाम बन जाओगे, और अंत में, ये तुम्‍हें पूरी तरह से बरबाद कर देंगी। तुम्‍हें इन चीजों को त्यागना और इन्हें दरकिनार करना, दूसरों की अनुशंसा करना और उन्हें विशिष्ट बनने देना सीखना चाहिए। विशिष्‍ट बनने और चमकने के अवसरों का लाभ उठाने के लिए संघर्ष या जल्‍दबाजी मत करो। तुम्‍हें इन चीजों को दरकिनार करना आना चाहिए, लेकिन तुम्‍हें अपने कर्तव्य के निर्वहन में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति बनो जो शांत गुमनामी में काम करता है, और जो समर्पित होकर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए दूसरों के सामने दिखावा नहीं करता है। तुम अपने घमंड और रुतबे को जितना अधिक त्याग दोगे, अपने हितों को जितना अधिक त्याग दोगे, उतनी ही अधिक शांति महसूस करोगे, तुम्‍हारे दिल में उतनी ही अधिक रोशनी होगी और तुम्‍हारी दशा उतनी ही अधिक सुधरेगी। तुम जितना अधिक संघर्ष और प्रतिस्पर्धा करोगे, तुम्‍हारी दशा उतनी ही अधिक अंधकारमय होती जाएगी। अगर तुम्‍हें मुझ पर विश्वास नहीं है, तो इसे आजमाकर देखो! अगर तुम इस तरह की भ्रष्ट दशा को बदलना चाहते हो और इन चीजों से नियंत्रित होना नहीं चाहते तो तुम्‍हें सत्य खोजना चाहिए और इन चीजों का सार स्पष्ट रूप से समझना चाहिए और फिर इन्हें एक तरफ रख देना और त्याग देना चाहिए। अन्यथा, तुम जितना अधिक संघर्ष करोगे, तुम्‍हारा हृदय उतना ही अंधकारमय हो जाएगा, तुम उतनी ही अधिक ईर्ष्या और नफरत महसूस करोगे बस इन चीजों को पाने की तुम्‍हारी इच्छा अधिक मजबूत ही होगी। इन्‍हें पाने की तुम्‍हारी इच्छा जितनी अधिक मजबूत होगी, तुम उन्‍हें प्राप्‍त कर पाने में उतने ही कम सक्षम होगे, और ऐसा होने पर तुम्‍हारी नफरत बढ़ती जाएगी। जैसे-जैसे तुम्‍हारी नफरत बढ़ती है, तुम्‍हारे अंदर उतना ही अंधेरा छाने लगता है। तुम अंदर से जितना अधिक अंधकारमय होते जाओगे, तुम्‍हारा कर्तव्य निर्वहन उतना ही बुरा हो जाएगा; तुम्‍हारे कर्तव्‍य का निर्वहन जितना ज्यादा खराब होता जाएगा, तुम परमेश्वर के घर द्वारा उतने ही कम उपयोग किए जा सकते हो। यह एक आपस में जुड़ा हुआ, दुष्चक्र है। अगर तुम कभी भी अपने कर्तव्य का निर्वहन अच्छी तरह से नहीं कर सकते तो धीरे-धीरे तुम्‍हें हटा दिया जाएगा।

पवित्र आत्‍मा किसी व्‍यक्ति में कार्य कर सके और उसकी विभिन्‍न नकारात्मक अवस्‍थाओं को बदल सके, इसके लिए उस व्‍यक्ति को सक्रिय सहयोग करना चाहिए और खोजना चाहिए, कभी-कभी दुःख भोगते हुए, इसकी कीमत चुकाते हुए, चीजों का त्‍याग करते हुए, और देह के खिलाफ विद्रोह करते हुए, चरण दर चरण अपनी दिशा बदलते हुए। इसमें परिणाम मिलने और सही रास्‍ते पर कदम रखने में लंबा समय लगता है—लेकिन परमेश्वर को किसी को बेनकाब करने में केवल कुछ सेकंड लगते हैं। अगर तुम अपना कर्तव्‍य अच्छे से नहीं निभाते हो, बल्कि हमेशा खुद को विशिष्‍ट दिखाने की कोशिश करते हो और हमेशा रुतबे के लिए प्रतिस्‍पर्धा की कोशिश करते हो, विशिष्‍ट द‍िखने और प्रसिद्धि पाने की कोशिश करते हो, अपनी प्रतिष्‍ठा और हितों के लिए लड़ते हो तो फिर इस दशा में जीते हुए क्‍या तुम बस एक मजदूर नहीं हो? यदि तुम चाहो तो मजदूरी कर सकते हो, लेकिन यह संभव है कि तुम्‍हारी मजदूरी पूरी होने से पहले ही तुम्‍हें बेनकाब कर दिया जाए। जब लोगों को बेनकाब किया जाता है, तब उनकी निंदा किए जाने और हटाए जाने का दिन आ जाता है। क्‍या उस परिणाम को पलटना संभव है? यह आसान नहीं है; संभव है कि परमेश्वर ने उनका परिणाम पहले ही निर्धारित कर रखा हो, ऐसा होने पर, वे संकट में हैं। लोग आम तौर पर अपराध करते हैं, भ्रष्‍ट स्‍वभाव प्रकट करते हैं, और कुछ छोटी-छोटी गलतियाँ करते हैं या वे अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्‍छाएँ पूरी करते हैं, अप्रत्यक्ष उद्देश्यों से बोलते हैं और धोखेबाजी में लिप्त रहते हैं, लेकिन जब तक वे कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी या बाधा पैदा नहीं करते या कोई बड़ी गड़बड़ नहीं करते या परमेश्वर के स्‍वभाव को नाराज नहीं करते या स्‍पष्‍ट रूप से प्रतिकूल परिणामों का कारण नहीं बनते, तब तक उनके पास पश्‍चात्ताप का अवसर बना रहता है। लेकिन यदि वे कोई जघन्य दुष्टता करते हैं या किसी बड़ी विपदा का कारण बनते हैं, क्‍या वे तब भी स्‍वयं को छुड़ा सकते हैं? परमेश्वर में विश्‍वास करने वाले और अपना कर्तव्‍य निभाने वाले किसी भी व्‍यक्ति के लिए इस बिंदु तक आ जाना बहुत खतरनाक होता है। यह ऐसा ही है जैसे एक विवाहित युगल एक साथ जीवन जीता है। यदि उन दोनों में थोड़ा-बहुत टकराव होता है, और वे कभी-कभी दूसरे को आहत करने वाली बात कह देते हैं, तो जब तक वे एक-दूसरे के प्रति सहिष्‍णु हैं, तब तक एक-दूसरे के साथ रहना जारी रख सकते हैं। लेकिन अगर उनमें से कोई एक विवाहेत्तर संबंध रखता है और उसके साथी की ओर से कोई भी प्रयास उसे वापस नहीं ला पाता है और यदि वह वापस जाने का इच्‍छुक न हो तो क्‍या वे दोनों साथ रह सकते हैं? उस व्‍यक्ति के प्रति और सहिष्‍णु होने का प्रयास करने से कोई लाभ नहीं होगा, यह व्‍यर्थ होगा। इस तरह का विवाह टूट जाता है, वे केवल तलाक ही ले सकते हैं। यदि दो लोग इस स्थिति तक आ पहुँचते हैं, तब भले ही वे एक छत के नीचे रहते रहें, उनका विवाह नाम का ही रह जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे तलाक लेते हैं या नहीं। यदि तुम परमेश्वर में विश्‍वास करते हो, अपना कर्तव्‍य निभाते हो, और उसी बिंदु तक पहुँच जाते हो—जब तुम सत्‍य का अनुसरण करने और पूर्ण बनाए जाने के अवसर खो देते हो, तुम्‍हारा हृदय हमेशा सख्‍त हो जाता है और तुम कभी पश्‍चात्ताप नहीं करते या वापस नहीं लौटते और तुम लगातार हठपूर्वक रुतबे के पीछे भागते रहते हो, परमेश्वर के अनेक अवसर देने के बावजूद सत्‍य को लेशमात्र भी स्‍वीकार नहीं करते हो—तब देर-सबेर एक दिन आएगा जब तुम्‍हें प्रकट कर दिया और हटा दिया जाएगा। संभव है कि कोई मामला या स्थिति या वचन या रवैया तुम्‍हें पूरी तरह से प्रकट कर देगा। इसलिए यदि कोई व्‍यक्ति पवित्र आत्‍मा के कार्य को प्राप्‍त नहीं करता या सत्‍य को प्राप्‍त नहीं करता, यदि वह हमेशा अपने भ्रष्‍ट, शैतानी स्‍वभाव के बंधन और नियंत्रण में रहता है, यदि वह सभी प्रकार की स्‍वार्थपूर्ण इच्‍छाओं और मंशाओं के साथ जीता है और उनसे उबर नहीं पाता, तो वह बड़े खतरे में है। कभी-न-कभी वह ठोकर खाएगा और बेनकाब हो जाएगा। हो सकता है कि तुमने अभी तक ठोकर न खाई हो, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम बाद में भी ठोकर नहीं खाओगे। हो सकता है कि तुम अभी भी अपना कर्तव्‍य निभा सकते हो, हो सकता है कि अभी भी तुम्‍हारे पास खुद को परमेश्वर के लिए खपाने और कठिनाइयों का सामना करने का कुछ संकल्प हो, हो सकता है कि तुम्‍हारे पास पूर्ण होने का प्रयास करने का कुछ संकल्प हो, लेकिन वह सत्‍य को समझने या सत्‍य वास्‍तविकता में प्रवेश करने का स्थानापन्न नहीं होता है, न ही उसका अर्थ यह है कि तुम बाद में ठोकर नहीं खाओगे या तुम अडिग रह पाओगे। कुछ लोग वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करते आए हैं, फिर भी थोड़ा-सा भी सत्य नहीं समझते। चीजों के बारे में उनका दृष्टिकोण अविश्वासियों जैसा ही होता है। जब वे किसी नकली अगुआ या मसीह-विरोधी का खुलासा होते या उसे हटाए जाते हुए देखते हैं तो सोचते हैं, “परमेश्वर में विश्वास करना, परमेश्वर का अनुसरण करना, परमेश्वर के समक्ष बर्फ की रपटीली पगडंडी पर चलने जैसा है! यह चाकू की नोंक पर जीने जैसा है!” और दूसरे कहते हैं, “एक अगुआ और कार्यकर्ता होना और परमेश्वर की सेवा करना जोखिमपूर्ण है। यह वैसा ही है जैसा लोग कहते हैं—‘राजा की संगत में रहना बाघ की संगत में रहने के समान है।’ यदि तुम गलत कहते या करते हो तो तुम परमेश्वर के स्वभाव को नाराज कर दोगे और तुम्हें हटा दिया जाएगा और दंडित किया जाएगा!” क्या ये टिप्पणियाँ सही हैं? “बर्फ की रपटीली पगडंडी पर चलना” और “चाकू की नोंक पर जीना”—इन शब्‍दों का क्या मतलब है? इन शब्‍दों का मतलब है कि कोई बड़ा खतरा है, कि हर पल कोई बड़ा खतरा है और यह कि थोड़ी-सी भी लापरवाही से व्यक्ति लड़खड़ा जाएगा। “राजा की संगत में रहना बाघ की संगत में रहने के समान है” अविश्वासियों के बीच एक आम कहावत है। इसका मतलब है कि दानवों के राजा से करीबी बनाना खतरनाक है। अगर कोई इस कहावत को परमेश्वर की सेवा करने पर लागू करता है, तो वह क्या गलती करता है? दानवों के राजा की तुलना परमेश्वर से, सृष्टिकर्ता से करना—क्या यह परमेश्वर की निंदा नहीं है? यह एक गंभीर समस्या है। परमेश्वर एक धार्मिक और पवित्र परमेश्वर है; परमेश्वर का विरोध करने या उससे शत्रुता रखने के लिए मनुष्य को दंडित किया जाना चाहिए, यह बिल्कुल स्वाभाविक और उचित है। शैतान और दानवों में लेशमात्र भी सत्य नहीं होता है; वे गंदे और दुष्ट हैं, वे बेगुनाहों का वध करते हैं और अच्छे लोगों को निगल जाते हैं। उनकी तुलना परमेश्वर से कैसे की जा सकती है? लोग तथ्यों को विकृत कर परमेश्वर को बदनाम क्यों करते हैं? यह परमेश्वर की घोर निंदा है! जब कुछ ऐसे लोगों की काट-छाँट की जाती है जो अक्सर नकारात्मक होते हैं और गंभीरता से अपने कर्तव्य नहीं निभाते हैं तो वे चिंता करते हैं कि उन्हें हटा दिया जाएगा और वे अक्सर मन ही मन में सोचते हैं, “परमेश्वर पर विश्वास करना वाकई बर्फ की रपटीली पगडंडी पर चलने जैसा है! जैसे ही तुम कुछ गलत करते हो, तुम्हारी काट-छाँट की जाती है; जैसे ही तुम नकली अगुआ या मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किए जाते हो, तुम बर्खास्त कर दिए और हटा दिए जाते हो। परमेश्वर के घर में परमेश्वर का क्रोधित होना असामान्य नहीं है और जब लोग कुछ खराब काम कर चुके होते हैं तो उन्हें एक शब्द के जरिए हटा दिया जाता है। उन्हें पछताने का भी मौका नहीं दिया जाता।” क्या वाकई में चीजें ऐसी हैं? क्या परमेश्वर का घर लोगों को वाकई में पश्‍चात्ताप करने का मौका नहीं देता? (यह गलत है।) उन बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को इसलिए हटा ही दिया जाता है, क्योंकि उन्‍होंने विविध बुराइयाँ की होती हैं और वे काट-छाँट से गुजर चुके होते हैं, लेकिन बार-बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद वे अपने तरीके नहीं बदलते। लोगों के इस तरह से सोचने में क्या समस्या है? वे खुद के लिए मिथ्‍या तर्क दे रहे होते हैं। वे सत्य का अनुसरण नहीं करते, न ही वे ठीक से श्रम करते हैं और चूँकि वे बाहर निकाल दिए जाने और हटाए जाने से डरते हैं, इसलिए वे कटुतापूर्वक शिकायत करते हैं और धारणाएँ फैलाते हैं। स्पष्ट रूप से, वे खराब मानवता के होते हैं, और अक्सर अपने काम में अनमने, नकारात्मक और सुस्त होते हैं। वे बेनकाब कर हटाए जाने से डरते हैं, इसलिए सारा दोष कलीसिया और परमेश्वर पर डाल देते हैं। इसकी प्रकृति क्‍या है? वह परमेश्वर की आलोचना करना, उसकी शिकायत करना और उसका प्रतिरोध करना है। ये टिप्पणियाँ सबसे स्पष्ट भ्रांतियाँ और सबसे बेतुके दावे हैं। यह तथ्‍य कि ये लोग ऐसी चीजें कह सकते हैं इस बात का प्रमाण है कि वर्षों तक परमेश्वर में विश्‍वास करने के बावजूद, इन्‍होंने कभी भी सत्‍य का अनुसरण नहीं किया है। केवल यही इन्‍हें परमेश्वर की आलोचना करने, उसका प्रतिरोध और उसकी ईशनिंदा करने के स्‍तर तक गिरा देगा। यह स्‍पष्‍ट है कि जो अक्‍सर नकारात्मक रहते हैं और सत्‍य का अनुसरण नहीं करते, वे वास्‍तव में खतरे में जी रहे होते हैं। तो, परमेश्वर के विश्‍वासियों को कैसे अभ्‍यास करना चाहिए ताकि वे स्‍वयं को सुरक्षित और इन खतरनाक परिस्थितियों से आजाद रख सकें? सत्‍य के अनुसरण के पथ पर चलना ही इसकी कुंजी है। यदि कोई व्‍यक्ति थोड़ा-बहुत सत्‍य भी समझ सकता है, यदि वह आधारभूत स्‍तर पर परमेश्वर को समर्पण कर सकता है, तो वह अपेक्षाकृत सुरक्षित होगा। जो सत्‍य का अनुसरण नहीं करते, जिनके पास जरा भी सत्‍य वास्‍तविकता नहीं होती, और जो अक्‍सर नकारात्मक रहते हैं, उन पर हमेशा हटाए जाने का खतरा बना रहता है। जो लोग मन ही मन सत्‍य से विमुख हो चुके हैं, जिन्‍हें हमेशा लगता है कि सत्‍य का अभ्‍यास करना अत्‍यंत कठिन या मूर्खतापूर्ण है, वही लोग सबसे ज्‍यादा खतरे में होते हैं। कभी-न-कभी, उन्‍हें बेनकाब कर हटा दिया जाएगा।

भले ही कोई व्‍यक्ति धोखेबाज हो या अपेक्षाकृत निष्कपट और ईमानदार, लोगों के इरादे, इच्‍छाएँ और अशुद्धियाँ कमोबेश समान ही होती हैं। यदि तुम सब लोग अपनी दिशा बदल सको, इन भ्रष्‍ट अवस्‍थाओं को त्‍याग सको और कम-से-कम अपना कर्तव्‍य सही तरह से निभा सको, तो तुम मानव के समान होगे। यदि तुम अपना कर्तव्‍य निभाते समय निजी इरादों, प्रेरणाओं और इच्‍छाओं को ही लादे रहोगे तो तुम्हारे भटकने और तुम से गलतियाँ होने की बहुत संभावना है और तुम्‍हारे लिए सिद्धांतों के अनुसार मामलों से निपटना और अपना कर्तव्‍य ठीक से और परमेश्वर के इरादों के अनुरूप निभाना कठिन हो जाएगा। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि लोग बहुत अनमने हैं और अनेक अशुद्धियों से भरे हुए हैं। यदि तुम अपने कर्तव्‍य ठीक से निभाना चाहते हो तो पहले तुम्‍हें अपने निजी इरादों और इच्‍छाओं का समाधान करना होगा। तब तुम्‍हारी आंतरिक दशा धीरे-धीरे बदल जाएगी, तुम्‍हारी मानसिकता सुधरेगी, तुम्‍हारे भीतर सकारात्मक तत्‍व बढ़ेंगे, तुम्‍हारी अशुद्धियाँ कम होंगी, तुम्‍हारा हृदय पहले से अधिक शुद्ध और सरल होगा और तुम परमेश्वर को संतुष्‍ट करने के लिए सिर्फ यह चाहोगे कि तुम अपना कर्तव्‍य ठीक से निभा सको। उस तरह, तुम शैतानी विचारों व दृष्टिकोणों या सांसारिक आचरण के फलसफों से आसानी से नियंत्रित नहीं होगे। तुम स्‍वाभाविक रूप से आजादी और मुक्ति पा लोगे और जो भी करोगे, वह आसान और सुखद होगा। यह ठीक वैसा ही है जैसे लोग पैदल चल रहे हों—यदि उनके पास बहुत बोझ हो तो चलना थका देने वाला होगा, और वे धीरे-धीरे चलेंगे जब तक कि वे थकान से गिर कर ढेर न हो जाएँ। यदि वे उस बोझ को उतार दें तो चलना अपेक्षाकृत बहुत आसान हो जाएगा और वे आजाद और मुक्‍त भी महसूस करेंगे। तुम लोग मुक्ति और आजादी का जो भी पहलू हासिल करते हो उसके बारे में तुम्‍हें डायरी में लिखना चाहिए या गवाही निबंध लिखना चाहिए। तुम्‍हें इस बारे में लिखना चाहिए कि जब तुम पर विपत्तियाँ आईं तो तुमने सत्य की खोज कैसे की और अपने बोझ को कैसे कम किया, और तुमने अपने कौन-से इरादों और प्रेरणाओं के खिलाफ विद्रोह किया, और तुम्‍हें किस प्रकार का प्रबोधन प्राप्‍त हुआ, और तुमने किन सुखद भावनाओं का अनुभव किया—इन अवस्‍थाओं और ज्ञान के बारे में लिखो। यह अनुभवजन्य गवाही है, और यह तुम्‍हारे और अन्य लोगों के लिए बहुत लाभदायक है। इस तरह, तुम्‍हारे अनुभव में वृद्धि होगी, सत्य संबंधी तुम्‍हारी समझ में सुधार होगा, और तुम्‍हारे स्वतंत्रता और मुक्ति के दिन बढ़ेंगे। तुम एक आजाद व्‍यक्ति बन जाओगे, अय्यूब की तरह। अय्यूब इतनी आसानी से ये प्रसिद्ध शब्‍द क्‍यों बोल पाया, “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21)? क्या वह इतनी आसानी से रातों-रात उन्हें बोल सका? कदापि नहीं। वे शब्द दिनों, वर्षों और दशकों के अनुभव का निचोड़ थे। वे दशकों के संचित जीवन अनुभव का फल थे। सत्य प्राप्त करना और गवाही के वचन बोलना कोई साधारण बात नहीं है। किसी के द्वारा परमेश्वर में विश्वास के संबंध में परिणाम प्राप्त करने का एकमात्र तरीका सत्य के अनुसरण के मार्ग पर चलना है। कीर्ति, लाभ और रुतबे का पीछा छोड़ने पर चीजें तुम्‍हारे लिए बहुत आसान हो जाएँगी। तुम्‍हारे लिए सत्‍य के अनुसरण के मार्ग पर चलना सरल हो जाएगा। जब तुम्‍हारा अनुभव उस बिंदु पर पहुँच जाएगा, जहाँ तुम सत्‍य समझने लगोगे और वास्‍तविकता में प्रवेश करोगे, तो तुम सत्‍य प्राप्‍त कर चुके होगे और आजादी और मुक्ति पा चुके होगे। उस बिंदु पर, तुम सोचोगे कि तुमने मसीह और सत्‍य का अनुसरण करके बहुत कुछ पा लिया है। सत्‍य प्राप्‍त करने के लिए, तुम कीर्ति, लाभ और रुतबे का पीछा करना और अपने पारिवारिक मामलों की उलझनों को छोड़ चुके होगे। तुम परमेश्वर का अनुसरण कर चुके होगे और एक सृजित प्राणी का कर्तव्‍य अच्छे से निभा चुके होगे, तुम धीरे-धीरे सत्‍य समझ चुके होगे और अनेक चीजों की असलियत देख चुके होगे। तुम फिर से शैतान द्वारा गुमराह या बाध्य नहीं होगे। सत्य और जीवन प्राप्त करना सबसे मूल्यवान वस्तु है; सत्य वह चीज है जो तुम्हारे प्रेम के सबसे अधिक योग्य है। जब तुम देखोगे कि सत्‍य सबसे अधिक कीमती चीज है, तब तुम्‍हें अहसास होगा कि कीर्ति, लाभ, रुतबा, पैसा, घमंड और अभिमान मूल्‍यहीन हैं और ये चीजें तुम्‍हें नुकसान पहुँचाती रही हैं। इसलिए, तुम इन चीजों को ठुकरा दोगे, और इन्हें त्यागने में समर्थ होगे। यह अत्यंत अर्थपूर्ण है। फिर भी, अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो प्रतिष्ठा और रुतबे की बाधाओं को त्यागने में असमर्थ हैं। दिन भर, वे अपना दिमाग चलाते हैं और कीर्ति, लाभ और रुतबे के लिए दूसरों से लड़ते हैं। यहाँ तक कि वे घमंड और अभिमान के कुछ मामलों पर हंगामा और झगड़ा भी कर लेंगे। वे सत्य की खोज नहीं करते हैं, न ही वे परमेश्वर के इरादों पर कोई ध्यान देते हैं। वे कीर्ति, लाभ और रुतबे को किसी भी अन्‍य चीज से ज्‍यादा महत्‍व देते हैं और परिणामस्‍वरूप, जरा-सी भी सत्‍य वास्‍तविकता रखे बिना, वे इन चीजों के लिए वर्षों तक दौड़-धूप करते रहते हैं। वे जो भी कर्तव्‍य निभाते हैं, उसे वो बहुत बुरे तरीके से निभाते हैं, और अपने जीवन के सर्वोत्‍तम वर्षों को खो देते हैं। यह सत्‍य का अनुसरण न करने वालों की दयनीय अवस्‍था है। ये लोग इस तरह से परमेश्वर में अपने विश्‍वास में लापरवाही से खानापूरी करते हैं। दस या बीस वर्ष बीत चुके हैं और उन्होंने अभी तक सत्‍य व जीवन हासिल नहीं किया है और वे अभी भी परमेश्वर की गवाही नहीं दे पा रहे हैं। जब विनाश आएँगे, तो वे भौचक्‍के रह जाएँगे, इस बात से अनजान कि न जाने किस दिन वे विनाशों में मर जाएँगे, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो चुकी होगी। इसलिए परमेश्वर में विश्‍वास करने लेकिन सत्‍य का अनुसरण न करने वालों को कभी-न-कभी पश्चात्ताप का दिन देखना होगा। फिलहाल ऐसे बहुत-से लोग हैं जो अभी भी कीर्ति, लाभ और रुतबे का आँखें मूँदकर पीछा कर रहे हैं और जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो उन्‍हें लगता है कि उनका अत्‍यधिक अपमान हुआ है। वे अपने लिए दिखावटी औचित्य और स्‍पष्‍टीकरण तैयार करने की भरपूर कोशिश करते हैं ताकि उनका घमंड और अभिमान बचा रहे। वे अपने भ्रष्‍ट स्‍वभाव को ठीक करने के लिए सत्‍य को स्‍वीकार नहीं करते हैं, और अब भी कीर्ति, लाभ और रुतबे को किसी भी अन्‍य चीज से अधिक महत्‍व देते हैं। ऐसा व्‍यक्ति एक दयनीय जीवन जीता है! ये सबसे मूर्ख और अज्ञानी लोग होते हैं।

यह समय तुम लोगों के लिए अपना कर्तव्य निभाने का सबसे अच्छा अवसर है, यह अनुभव करने का कि अपने भ्रष्ट स्वभाव को कैसे छोड़ा जाए, परमेश्वर का मार्गदर्शन कैसे प्राप्त किया जाए, अपना कर्तव्य समर्पित होकर कैसे निभाया जाए, परमेश्वर के इरादों को कैसे संतुष्ट किया जाए, अपनी जिम्मेदारियों को कैसे निभाया जाए और अपने कर्तव्य के प्रति अनमना होने से कैसे बचा जाए, और अपना हृदय परमेश्वर को कैसे दिया जाए, और अपना कर्तव्य करते हुए कैसे परमेश्वर के वचनों का अनुभव और उनका ज्ञान प्राप्त किया जाए और कैसे परमेश्वर के कर्मों को देखा जाए। कितना शानदार अवसर है! किसी दिन जब तुम लोग बदल चुके होगे, तुम अभिमान और रुतबे के लिए नहीं लड़ोगे। तुम लोगों से जो भी अपेक्षित है, वह तुम लोगों को मुश्किल नहीं लगेगा और तुम्‍हारे लिए वह करना आसान होगा। तुम्‍हारे लिए सत्‍य का अभ्‍यास करना, अपने सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करना और अनेक चीजों को समझना आसान होगा। तुम अपने कर्तव्‍य को सामान्‍य रूप से निभाने में पूरी तरह सक्षम होगे और फिर कभी किसी व्‍यक्ति, घटना या चीज से बाधित नहीं होगे। यह पूरी तरह से सत्‍य वास्‍तविकता में प्रवेश करना है।

16 जुलाई 2015

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परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 6) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 7) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 8) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 9) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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