41  परीक्षाओं के प्रति पतरस का रवैया

1

पतरस ने सही परीक्षाएं, अनगिनत परीक्षाएं ईश्वर के द्वारा।

इन परीक्षाओं ने उसे अधमरा कर दिया,

पर उसकी आस्था कभी कम न हुई।

तब भी जब ईश्वर ने कहा वो उसे सराहेगा नही,

और शैतान के हाथों में दे देगा, और कहा उसने छोड़ दिया है उसे,

वो बिलकुल भी हताश ना हुआ।

वो ईश्वर को पूर्व सिद्धांतों के अनुसार,

व्यवहारिक ढंग से प्रेम करता रहा, प्रार्थना करता रहा।

ऐसी परीक्षाओं के बीच भी, जो शरीर की नहीं, बल्कि वचनों की थीं,

वो ईश्वर से प्रार्थना करता रहा।


2

हे, ईश्वर, सर्वशक्तिमान, स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों के बीच,

तेरे हाथों में हैं सारे प्राणी और सारे इंसान।

जब तू हो दयावान, मेरा दिल खुश होता है तेरी दया से।

जब तू मेरा न्याय करे, तो अयोग्य होकर भी,

मैं तेरे असीम कर्मों की और समझ पाऊँ,

क्योंकि तू बुद्धि और अधिकार से परिपूर्ण है।

मेरा शरीर पीड़ित हो भले, मेरी आत्मा को सुकून है।

तेरी बुद्धि और कर्मों की प्रशंसा कैसे न करूं?

यदि तुझको जानने के बाद मरना भी पड़े, कैसे मैं ख़ुशी ख़ुशी वो न करूं?


3

ऐसी परीक्षाओं के दौरान, पतरस पूरी तरह न समझ पाया ईश-इच्छा,

फिर भी उसके द्वारा इस्तेमाल होने पर गर्व था उसे।

अपनी निष्ठा, ईश्वर के आशीष के कारण,

हज़ारों सालों से इंसान के लिए वो आदर्श रहा है।


क्या तुम्हें ठीक इसका ही अनुसरण नहीं करना चाहिए?

सोचो क्यों ईश्वर ने पतरस का इतना ब्योरा दिया है।

ये तुम्हारे व्यवहार के सिद्धांत होने चाहिए।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 6 से रूपांतरित

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