96  वही पात्र हैं सेवा के जो अंतरंग हैं परमेश्वर के

1

जो करते सेवा परमेश्वर की, वही होने चाहिये अंतरंग उसके,

प्रिय हों परमेश्वर को, निष्ठावान हों परमेश्वर के।

काम करो सामने या पीठ पीछे दूसरों की, परमेश्वर का आनंद पाते हो तुम,

और अडिग रहोगे सम्मुख परमेश्वर के तुम।

चाहे जैसा बर्ताव करें दूसरे तुमसे, चलोगे राह अपनी ही तुम,

परमेश्वर के दायित्व की परवाह करोगे तुम।

यही है परमेश्वर का अंतरंग होना। यही है परमेश्वर का अंतरंग होना।

परमेश्वर के अंतरंग हैं विश्वासपात्र उसके।

चिंताएं और ज़रूरत उसकी, वे करते हैं संग साझा उसके।

है कष्टकर, दुर्बल काया उनकी, सह लेते वे दर्द फिर भी,

त्यागते हैं परमेश्वर की संतुष्टि की ख़ातिर, जो प्रिय है उन्हें।


2

परमेश्वर के अंतरंग कर पाते हैं सेवा उसकी

क्योंकि दिया जाता है परमेश्वर का आदेश और दायित्व उनको।

ले पाते हैं वे अपने दिल की तरह, परमेश्वर के दिल को,

बिना ख़्याल किये, गँवाएंगे या पाएंगे।

बिना संभावनाओं के भी, कर लेंगे यकीन ईश्वर-प्रेमी हृदय से वे।

इस तरह का इंसान, कहलाता है अंतरंग परमेश्वर का।

यही है परमेश्वर का अंतरंग होना। यही है परमेश्वर का अंतरंग होना।

परमेश्वर के अंतरंग हैं विश्वासपात्र उसके।

चिंताएं और ज़रूरत उसकी, वे करते हैं संग साझा उसके।

है कष्टकर, दुर्बल काया उनकी, सह लेते वे दर्द फिर भी,

त्यागते हैं परमेश्वर की संतुष्टि की ख़ातिर, जो प्रिय है उन्हें।


3

देता है परमेश्वर अधिक दायित्व इस तरह के लोगों को।

परमेश्वर जो करेगा, उसकी पुष्टि होती उनकी गवाही में।

लिहाज़ा, करता है प्रेम परमेश्वर इस तरह के लोगों को।

सेवक हैं वही जो अनुरूप हैं उसके दिल के।

परमेश्वर के अंतरंग हैं विश्वासपात्र उसके।

चिंताएं और ज़रूरत उसकी, वे करते हैं संग साझा उसके।

है कष्टकर, दुर्बल काया उनकी, सह लेते वे दर्द फिर भी,

त्यागते हैं परमेश्वर की संतुष्टि की ख़ातिर, जो प्रिय है उन्हें।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें से रूपांतरित

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