224  पूर्ण किए जाने के लिए सत्य के अभ्यास पर ध्यान लगाओ

1

अगर तुम हो सरल, साफ़दिल और खुद को जानते हो

और सत्य को अभ्यास में लाते हो,

तो ईश्वर तुम्हें ज़रूर आशीष देगा,

कमज़ोर या नकारात्मक होते हो जब तुम,

तो वह तुम्हें दोगुना प्रबुद्ध करे,

मदद करे कि तुम खुद को जानो और गहराई से,

अधिक पछतावा कर सको,

अभ्यास कर पाओ उसका जिसका करना चाहिए।

इसी तरह तुम्हारा दिल शांति और सुकून पाएगा।


जब ईश्वर तुम्हें पूर्ण करे, तो वो तुम्हें प्रबुद्ध करे

तुम्हारे योग्य हिस्सों का इस्तेमाल करके

ताकि तुम्हें अभ्यास का पथ मिले,

अलग हो सको नकारात्मक चीज़ों से,

अपनी आत्मा की मुक्ति पाओ,

ईश्वर से और प्रेम कर पाओ।

इसी तरह तुम फेंक सकते हो

शैतान की भ्रष्टता को।


2

जो ध्यान दे अपने अभ्यास पर,

ईश्वर और खुद को जानने पर,

वो अक्सर पा सकेगा

ईश्वर का काम, मार्गदर्शन और प्रबोधन।

भले ही ऐसे इंसान का मन हो

नकारात्मक दशा में,

वो तुरंत ही चीज़ों को पलट सके

अपने ज़मीर या ईश-वचनों के प्रबोधन से।

किसी इंसान के स्वभाव में बदलाव

आए जब वो अपनी स्थिति जाने

और सिरजनहार के काम और स्वभाव को जाने।

जो इंसान तैयार हो खुलने को

खुद को जानने को, वो सत्य का अभ्यास कर सके।

वो होता वफादार और ईश्वर को समझे,

चाहे वो समझ हो थोड़ी या ज़्यादा।

ये है धार्मिकता ईश्वर की,

और लाभ उनका अपना।


जब ईश्वर तुम्हें पूर्ण करे, तो वो तुम्हें प्रबुद्ध करे

तुम्हारे योग्य हिस्सों का इस्तेमाल करके

ताकि तुम्हें अभ्यास का पथ मिले,

अलग हो सको नकारात्मक चीज़ों से,

अपनी आत्मा की मुक्ति पाओ,

ईश्वर से और प्रेम कर पाओ।

इसी तरह तुम फेंक सकते हो

शैतान की भ्रष्टता को।


3

जिसके पास है ज्ञान ईश्वर का

उसके पास है आधार और दर्शन।

वो निश्चित है ईश-देह, ईश-कार्य, ईश-वचन के बारे में।

चाहे ईश्वर जैसे भी काम करे या बोले,

चाहे दूसरे कैसे भी बाधा डालें,

वो अपनी बात पर अडिग रह सके, ईश्वर की गवाही दे सके।


जब ईश्वर तुम्हें पूर्ण करे, तो वो तुम्हें प्रबुद्ध करे

तुम्हारे योग्य हिस्सों का इस्तेमाल करके

ताकि तुम्हें अभ्यास का पथ मिले,

अलग हो सको नकारात्मक चीज़ों से,

अपनी आत्मा की मुक्ति पाओ,

ईश्वर से और प्रेम कर पाओ।

इसी तरह तुम फेंक सकते हो

शैतान की भ्रष्टता को।


ईश्वर का ज्ञान जितना हो किसी इंसान के पास,

उतना ही वो समझे हुए सत्य पर अमल कर सके।

क्योंकि वो हमेशा ईश-वचन का अभ्यास करे,

वो ईश्वर को बेहतर जाने और गवाही देना चाहे सदा, सदा।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं से रूपांतरित

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