228  जो सत्य पाने की कोशिश नहीं करते, वे अंत तक अनुसरण नहीं कर सकते

1

ईश्वर कार्य करता इंसान में ताकि इंसान सत्य को पा सके।

वो चाहे तुम जीवन का अनुसरण करो,

ताकि वो तुम्हें पूर्ण बनाकर अपने उपयोग में ला सके।

अभी तुम्हारा लक्ष्य केवल रहस्यों, ईश-वचनों को सुनना है,

देखना है नयी और मौजूदा चीज़ों को।

तुम सिर्फ़ अपनी आँखों को तृप्त, जिज्ञासा को संतुष्ट करते हो।

अगर यही इरादा रहा तुम्हारा,

तुम कभी पूरा न करोगे ईश्वर की अपेक्षाओं को।

जो सत्य पाने की कोशिश नहीं करते,

वो अंत तक अनुसरण नहीं कर सकते।


2

ऐसा नहीं कि ईश्वर कुछ नहीं करता,

इंसान ही उससे सहयोग नहीं करता।

क्योंकि उसके काम से ऊब गया इंसान।

इंसान सिर्फ़ ईश्वर के आशीष-वचन चाहे,

ताड़ना या न्याय के नहीं।

क्योंकि आशीष पाने की उसकी इच्छा पूरी नहीं हुई,

वो इंसान मायूस और कमज़ोर है।

जो सत्य पाने की कोशिश नहीं करते, वो अंत तक अनुसरण नहीं कर सकते।


3

ईश्वर इंसान को अपना अनुसरण करने देता है।

वो जानबूझकर उस पर आघात करता नहीं।

इंसान कमज़ोर और मायूस है, क्योंकि उसके इरादे सही नहीं हैं।

ईश्वर ऐसा जानबूझकर करता नहीं।

ईश्वर वो ईश्वर है जो इंसान को जीवन दे, वो इंसान को मौत नहीं दे सकता।

इंसान अपनी मायूसी, कमज़ोरी और पीछे हटने का ज़िम्मेदार खुद ही है।

जो सत्य पाने की कोशिश नहीं करते, वो अंत तक अनुसरण नहीं कर सकते।

जो सत्य पाने की कोशिश नहीं करते, वो अंत तक अनुसरण नहीं कर सकते।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए से रूपांतरित

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