281  क्या तुमने अपनी आस्था में सचमुच अपना जीवन समर्पित किया है?

1 परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का क्या हाल है? क्या तुमने अपना जीवन सचमुच अर्पित किया है? यदि तुम लोगों ने अय्यूब के समान परीक्षण सहे होते, तो आज परमेश्वर का अनुसरण करने वाले तुम लोगों में से कोई भी अडिग न रह पाता, तुम सभी लोग नीचे गिर जाते। और, निस्संदेह, तुम लोगों और अय्यूब के बीच ज़मीन-आसमान का अंतर है। आज यदि तुम लोगों की आधी संपत्ति जब्त कर ली जाए, तो तुम लोग परमेश्वर के अस्तित्व को नकारने की हिम्मत कर लोगे; यदि तुम्हारा बेटा या बेटी तुमसे ले लिया जाए, तो तुम चिल्लाते हुए सड़कों पर दौड़ोगे कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है; यदि आजीविका कमाने का तुम्हारा एकमात्र रास्ता बंद हो जाए, तो तुम परमेश्वर से उसके बारे में पूछताछ करने की कोशिश करोगे; तुम पूछोगे कि मैंने तुम्हें डराने के लिए शुरुआत में इतने सारे वचन क्यों कहे। ऐसा कुछ नहीं है, जिसे तुम लोग ऐसे समय में करने की हिम्मत न करो।

2 तुम लोगों ने वास्तव में कोई सच्ची अंतर्दृष्टि नहीं पाई है, और तुम्हारा कोई वास्तविक आध्यात्मिक कद नहीं है। इसलिए, तुम लोगों में परीक्षण अत्यधिक बड़े हैं, क्योंकि तुम लोग बहुत ज्यादा जानते हो, लेकिन तुम लोग वास्तव में जो समझते हो, वह उसका हज़ारवाँ हिस्सा भी नहीं है जिससे तुम लोग अवगत हो। मात्र समझ और ज्ञान पर मत रुको; तुम लोगों ने अच्छी तरह से देखा है कि तुम लोग वास्तव में कितना अभ्यास में ला सकते हो, पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी में से कितनी तुम्हारे कठोर परिश्रम के पसीने से अर्जित की गई है, और तुम लोगों ने अपने कितने अभ्यासों में अपने स्वयं के संकल्प को साकार किया है। तुम्हें अपने आध्यात्मिक कद और अभ्यास को गंभीरता से लेना चाहिए। परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें किसी के लिए भी मात्र ढोंग करने का प्रयास नहीं करना चाहिए—अंतत: तुम सत्य और जीवन प्राप्त कर सकते हो या नहीं, यह तुम्हारी स्वयं की खोज पर निर्भर करता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (3) से रूपांतरित

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