308  परमेश्वर बड़ा अपमान सहता है

ईश्वर है पवित्र और धार्मिक।

भले ही मैली भूमि में जन्मा वो,

अशुद्ध लोगों के बीच रहे वो,

जैसे यीशु रहा पापियों के बीच अनुग्रह के युग में,

क्या उसका काम इंसानों की खातिर नहीं,

ताकि वे उद्धार प्राप्त कर सकें?


1

दो हज़ार साल पहले वो, रहता था पापियों के बीच।

ये था छुटकारे की खातिर।

अगर इंसान को न बचाना होता तो वो क्यों दूसरी बार

देह बनता, आता दानवों की भूमि में?


वो क्यों रहता उनके साथ जो

शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट हैं?


इन सबका यही मतलब है

ईश्वर इंसान से बिल्कुल निस्वार्थ प्रेम करे।

वो जो अपमान सहे, वो है हद से ज़्यादा।

क्या तुम्हें नहीं पता कि

उसकी सारी पीड़ा तुम्हारे और तुम्हारे भाग्य के लिए है?


2

इंसान जी सके इसलिए, वो एक गंदी भूमि में जन्मा,

वो सहे हरेक मुमकिन अपमान।

क्या ये सारा काम असल और व्यावहारिक नहीं?


भले ही सभी उसे बदनाम करें,

कहें वो पापियों के संग खाये-पिये,

उसका मज़ाक उड़ाएँ कि वो मैले लोगों के संग रहे,

निस्स्वार्थ भाव से वो फिर भी दे,

पर इंसान फिर भी उसे नकारे।


इन सबका यही मतलब है

ईश्वर इंसान से बिल्कुल निस्वार्थ प्रेम करे।

वो जो अपमान सहे, वो है हद से ज़्यादा।

क्या तुम्हें नहीं पता कि

उसकी सारी पीड़ा तुम्हारे और तुम्हारे भाग्य के लिए है?


3

पूछो खुद से, ईश्वर जितनी पीड़ा सहे,

क्या वो तुम्हारी पीड़ा से ज़्यादा नहीं?

क्या उसके द्वारा किया गया काम

तुम्हारी चुकाई कीमत से ज़्यादा नहीं?


इन सबका यही मतलब है

ईश्वर इंसान से बिल्कुल निस्वार्थ प्रेम करे।

वो जो अपमान सहे, वो है हद से ज़्यादा।

क्या तुम्हें नहीं पता कि

उसकी सारी पीड़ा तुम्हारे और तुम्हारे भाग्य के लिए है?


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मोआब के वंशजों को बचाने का अर्थ से रूपांतरित

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