326  पतरस के अनुभव का अनुकरण करो

1

बड़ा शोधन पाया पतरस ने उसने जो किया उसके कारण।

एहसास था उसे कि वो है परमेश्वर का ऋणी,

इस ऋण को कभी वो भर न पायेगा।

उसने देखा मानवजाति भ्रष्ट है, इस कारण

अपराध-बोध से भरी थी उसकी अंतरात्मा।

यीशु ने उससे कही कई बातें, पर समझ सका वो थोड़ा ही।

किया विरोध और विद्रोह भी उसने।

यीशु के सूली पर चढ़ाये जाने के बाद,

अंतरात्मा पतरस की जगी ग्लानि से।

अबसे कोई गलत विचार न आने देगा वो मन में।

परमेश्वर के कार्य से होकर गुज़रा जब,

पाया उसने विवेक और अंतर्दृष्टि,

सेवा के सिद्धांतों को समझा वो,

यीशु ने सौंपा था जो हो सका उसको समर्पित।


2

पतरस जानता था अपनी अवस्था,

अवगत था वो अच्छी तरह प्रभु की पवित्रता से,

पतरस के सारे ज्ञान से, प्रभु के लिए उसका प्रेम बढ़ा,

और उसने अपने जीवन पर अधिक ध्यान दिया।

इस कारण मुश्किलें झेलीं उसने।

कभी लगा जैसे हो गया रोगी इतना,

कि मौत लगी दरवाज़े पर दस्तक देने।

अनेक बार शोधन किये जाने से, जानता था वो खुद को अच्छे से,

प्रभु के लिए सच्चे प्रेम को उसने बढ़ाया ऐसे।

जीवन उसका गुज़रा शोधन से, और बीत गया ताड़ना में।

उसका अनुभव था बिल्कुल जुदा,

जो पूर्ण नहीं किये गये उनसे, उसका प्रेम था कहीं बड़ा।


3

आदर्श था वो, क्योंकि सहा उसने सभी से ज़्यादा,

उसने किये जो अनुभव, थे वे सबसे सफल।

तो चलोगे जो तुम सब पथ पर इस तरह,

तो कोई भी न ले पायेगा आशीषें तुम्हारी,

कोई भी न ले पायेगा आशीषें तुम्हारी, कोई भी न ले पायेगा आशीषें तुम्हारी,

कोई भी न ले पायेगा, कोई भी न ले पायेगा।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए से रूपांतरित

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