345 सृजित प्राणियों को परमेश्वर के अधिकार के प्रति समर्पण करना चाहिए
1 मैं एक सर्वभक्षी अग्नि हूँ और मैं अपमान बरदाश्त नहीं करता। क्योंकि सभी मानव मेरे द्वारा बनाए गए थे, इसलिए मैं जो कुछ कहता और करता हूँ, उसके प्रति उन्हें समर्पण करना चाहिए और वे विरोध नहीं कर सकते। लोगों को मेरे कार्य में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, और वे इस बात का विश्लेषण करने के योग्य तो बिल्कुल नहीं हैं कि मेरे कार्य और मेरे वचनों में क्या सही या ग़लत है। मैं सृष्टिकर्ता हूँ, और सृजित प्राणियों को मेरा भय मानने वाले हृदय के साथ वह सब-कुछ हासिल करना चाहिए, जिसकी मुझे अपेक्षा है; उन्हें मेरे साथ बहस नहीं करनी चाहिए, और विशेष रूप से उन्हें मेरा विरोध नहीं करना चाहिए। मैं अपने अधिकार के साथ अपने लोगों पर शासन करता हूँ, और वे सभी लोग जो मेरी सृष्टि का हिस्सा हैं, उन्हें मेरे अधिकार के प्रति समर्पण करना चाहिए।
2 यद्यपि आज तुम लोग मेरे सामने दबंग और धृष्ट हो, यद्यपि तुम उन वचनों के खिलाफ विद्रोह करते हो जिनसे तुम लोगों को शिक्षा देता हूँ और डरना नहीं जानते हो, फिर भी मैं तुम लोगों की विद्रोहशीलता का केवल सहिष्णुता से सामना करता हूँ; मैं अपना आपा नहीं खोऊँगा और अपने कार्य को इसलिए प्रभावित नहीं करूँगा, क्योंकि छोटे, तुच्छ भुनगों ने गोबर के ढेर में हलचल मचा दी है। मैं अपने पिता की इच्छा के लिए उन सभी चीजों का अविरत अस्तित्व सहता हूँ जिनसे मैं घृणा करता हूँ और उन सभी चीजों को भी जिनसे मैं घिन्न करता हूँ, और मैं अपने कथन पूरे होने तक, अपने अंतिम क्षण तक ऐसा करूँगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा