468  ईश्वर ईश्वर है, इंसान इंसान है

1

शायद ईश-वचनों की पुस्तक खोली हो तुमने

शोध करने या स्वीकारने के इरादे से, मगर इसे दर-किनार न करना।

इसे पूरा पढ़ना, शायद ये वचन तुम्हारा मन बदल दें,

तुम्हारे इरादों और समझ के आधार पर।

मगर एक बात तुम्हें जान लेनी चाहिए :

ईश-वचन नहीं हैं इंसान के, न इंसान के शब्द हैं ईश्वर के।

ईश्वर द्वारा प्रयुक्त इंसान, देहधारी ईश्वर नहीं,

देहधारी ईश्वर, ईश्वर द्वारा प्रयुक्त इंसान नहीं।

एक मौलिक भेद है इसमें।


आख़िर ईश्वर ईश्वर है, इंसान इंसान है।

ईश्वर में ईश्वर का सार है, इंसान में इंसान का सार है।

ईश-वचन पवित्र आत्मा द्वारा बताया गया प्रबोधन नहीं;

प्रेरितों और नबियों के वचन ईश्वर के नहीं।

उन्हें ईश्वर का मानना इंसान की भूल है।


2

इन वचनों को पढ़कर अगर, तुम इन्हें ईश-वचन न मानकर,

इंसान द्वारा हासिल प्रबोधन मानो, तो फिर तुम अज्ञानी हो।

ईश्वर के वचन इंसान को हासिल प्रबोधन के समान नहीं।

देहधारी ईश्वर के वचन शुरू कर सकते हैं नए युग को,

वो शुरू कर सकते हैं नए युग को।

वो राह दिखा सकते हैं हर इंसान को,

खोल सकते हैं रहस्य, दिशा दे सकते इंसान को।

इंसान द्वारा हासिल प्रबोधन महज़ अभ्यास और ज्ञान की राह दिखाए।

ये हर इंसान को नए युग में न ले जा सके, या ईश्वर के राज़ न खोल सके।


आख़िर ईश्वर ईश्वर है, इंसान इंसान है।

ईश्वर में ईश्वर का सार है, इंसान में इंसान का सार है।

ईश-वचन पवित्र आत्मा द्वारा बताया गया प्रबोधन नहीं;

प्रेरितों और नबियों के वचन ईश्वर के नहीं।

ऐसा सोचना इंसान की भूल है।


3

तुम्हें मिलाना नहीं चाहिए सही और गलत को,

ऊँचे-नीचे को, गहरे और छिछले को,

झुठलाना नहीं चाहिए जानते तुम जिस सत्य को।

सही नज़रिए से समस्याओं की जाँच करो,

ईश्वर के नए काम, नए वचनों को

उसके सृजित प्राणी की नज़र से स्वीकार करो।

विश्वासी इन कामों को अवश्य करें, वरना ईश्वर हटा देगा तुम्हें।


आख़िर ईश्वर ईश्वर है, इंसान इंसान है।

ईश्वर में ईश्वर का सार है, इंसान में इंसान का सार है।

ईश-वचन पवित्र आत्मा द्वारा बताया गया प्रबोधन नहीं;

प्रेरितों और नबियों के वचन ईश्वर के नहीं।

उन्हें ईश्वर का मानना इंसान की भूल है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना से रूपांतरित

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