504  क्या तुम्हें मसीह के प्रति सच्चा विश्वास और प्रेम है?

1

तुम सब पाना चाहो ईश्वर से कृपा और पुरस्कार;

ईश्वर में विश्वास से इंसान की होती आशा यही,

क्योंकि हर कोई लगा है ऊँची चीज़ें पाने में,

कोई नहीं रहना चाहता पीछे दूसरों से। इंसान तो है बस ऐसा ही।

स्वर्ग के परमेश्वर की चापलूसी की कोशिश करते तुममें से कई,

फिर भी तुम्हारी निष्ठा, खरापन ईश्वर के प्रति

है कम उससे जो है खुद के प्रति।


2

यूँ तो तुम बनते हो मसीह के प्रति आज्ञाकारी,

पर न करते विश्वास, न उससे प्रीत तुम्हारी।

तुम अपने दिल के अज्ञात परमेश्वर पर विश्वास करते;

तुम उस ईश्वर से प्यार करते जिसे तुम रात-दिन चाहते,

पर तुम जिससे कभी ना मिले।


विश्वास है ईमान और भरोसा,

प्रेम है तुम्हारे हृदय में आदर और प्रशंसा और कभी जुदा न होना।

पर आज के मसीह में तुम्हारा विश्वास और उससे प्यार

बहुत कम पड़ता है, हाँ वो बहुत कम पड़ता है।


3

तुम्हारा विश्वास है बहुत कम, और मसीह के लिए प्यार कुछ नहीं है।

ना तुम जानो उसका स्वभाव और जानो नहीं सार,

तो तुम कैसे करते उसमें विश्वास और उससे प्यार,

उस पे तुम्हारे विश्वास का यथार्थ कहाँ है?

क्या तुम सच में उससे प्यार कर रहे हो?

क्या तुम सच में उससे प्यार कर रहे हो?


विश्वास है ईमान और भरोसा,

प्रेम है तुम्हारे हृदय में आदर और प्रशंसा और कभी जुदा न होना।

पर आज के मसीह में तुम्हारा विश्वास और उससे प्यार

बहुत कम पड़ता है, हाँ वो बहुत कम पड़ता है।


जब विश्वास की बात आती है,

तो तुम कैसे उसमें विश्वास रखते हो? विश्वास रखते हो?

जब प्यार की बात आती है,

तो तुम किस तरह उससे प्यार करते हो? प्यार करते हो?


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें से रूपांतरित

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