524  परमेश्वर तुम्हारे हृदय और रूह को खोज रहा

1

मानव, जिन्होंने त्यागा है सर्वशक्तिमान का दिया जीवन,

अस्तित्व में क्यों वे हैं जानें ना, फिर भी डरते हैं मृत्यु से।

न कोई सहारा, न मदद,

फिर भी मानव आँखों को बंद करने में अनिच्छुक है,

ज़ुर्रत कर, दिखाता है एक अशोभनीय अस्तित्व, इस जहां में,

बिन आत्माओं की चेतना के शरीरों में।

जीते हो तुम आशा के बिन। जैसे जीता है वो लक्ष्य के बिन।

रिवायत में एक ही बस पवित्र जन है, रिवायत में एक ही बस पवित्र जन है,

आएगा जो बचाने उन्हें रोएं जो कष्ट से

और हताश हो तड़पते हैं उसके आगमन के लिए।

इन लोगों में जो हैं अभी अचेत, यह विश्वास नहीं है जगाया जा सकता।

फिर भी लोगों में इसे प्राप्त करने की इच्छा है।


2

सर्वशक्तिमान को है करुणा उनपे जो पीड़ा में हैं।

और साथ ही वो ऊब चुका है इनसे जो हैं बेहोश,

क्योंकि करना होता है उसको बहुत इंतज़ार मनुष्य से पाने को जवाब।

वो चाहता है ढूंढना तुम्हारे दिल और रूह को।

वो देना चाहता है भोजन और पानी तुम्हें।

जगाना चाहता है, वो तुम्हें ताकि तुम भूखे और प्यासे न रहो।

और जब तुम थक जाते हो,

और जब तुम खुद को अकेला पाते हो, अपने इस संसार में,

न घबराना तुम, न रोना तुम। सर्वशक्तिमान ईश्वर,

किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा।


3

निगरानी वो कर रहा, इंतज़ार में तुम्हारे लौटने के।

तुम्हारी याददाश्त लौटने का इंतज़ार वो कर रहा।

तुम्हारे जान जाने का कि तुम परमेश्वर से ही आये हो,

यह सत्य कि आये हो तुम परमेश्वर से ही।

एक दिन तुम राह खो कर, किसी तरह कहीं पे,

पड़े थे बेहोश किनारे एक सड़क के,

और फिर अनजाने में मिला तुमको "पिता"।

तुम्हें हो एहसास कि सर्वशक्तिमान वहां पहरे पर है।

इंतज़ार कर रहा है तुम्हारे वापस लौट आने का, एक अरसे से।


4

वो बेहद चाहता है। वो करता इंतज़ार प्रत्युत्तर के लिए बिन किसी जवाब के।

उसका इंतज़ार है अनमोल

और यह है दिल के लिए, मानव की रूह और दिल के लिए।

ये इंतज़ार शायद सदा ही रहेगा, या शायद ये इंतज़ार अब अंत होने को है।

पर जानना तुम्हें है चाहिए, कहाँ है तुम्हारा दिल और रूह? कहाँ हैं वे?


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह से रूपांतरित

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